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718e116b56405eec44879975419de8c8ae43684159d9fdcd6947e1cabe57d33e | pdf | * लिङ्ग-मान एवं श्य
तत्पश्चात् चौसठ कोणसे युक्त करके वहाँ गोल रेखा बनावे / तदनन्तर श्रेष्ठ आचार्य लिङ्गके शिरोभागका कर्तन करें। इसके बाद लिङ्गके बिस्तारको आठ भागों में विभाजित करे । फिर उनमेंसे एक भागके चौथे अंशको छोड़ देनेपर छत्राकार सिरका निर्माण होता है। जिसकी लंबाई-चौड़ाई तीन भागों में समान हो, वह समभागवाला लिङ्ग सम्पूर्ण मनोवाञ्छित फलोंको देनेवाला है। देवपूजित लिङ्गमें लंबाईके चौथे भागसे विष्कम्भ बनता है। अन्य तुम सभी
के लक्षण सुनो ॥ ५-ell
आदिका वर्णन *
पुरुष ब्रह्मशिख्यकी स्थापना करे और उस शिलाके ऊपर ही उत्तम रीतिते कर्मका सम्पादन करे । मिहिकाकी ऊँचाईको जानकर उसका बिभाजन करे । दो भागकी ऊँचाईको पीट समझे नौड़ाई में यह लिङ्गके समान ही हो । पीठके मध्यभागमै खात ( गड्डा ) करके उसे तीन भागों में विभाजित करे । अपने मानके आवे. विभागमे 'बाहुल्य' की कल्पना करे। माहुल्यके तृतीय भागले मेखला बनावे और मेखलाके ही तुल्य खात (गड़ा ) तैयार करे । उसे क्रमशः निम्न ( नीचे चुका हुआ ) रक्खे । मेखलाके सोलहवे अंशसे खात निर्माण करे और उसीके मापके अनुसार उस पीठकी ऊँचाई, जिसे 'विकाराङ्ग' कहते हैं, करावे । प्रस्तरका एक भाग भूमिमे प्रविष्ट हो, एक भागसे पिण्डिका बने, तीन भागसे कण्ठका निर्माण कराया जाय और एक भागसे पट्टिका बनायी जाय ।। १४-१९ ॥
विद्वान् पुरुष सोलह अङ्गुलवाले लिङ्गके मध्यवर्ती सूत्रको, जो ब्रह्म और रुद्रभागके निकटस्थ है, लेकर उसे छः भागों में विभाजित करे । वैयमन-सूत्रद्वारा निश्चित जो वह माप है, उसे 'अन्तर' कहते हैं। जो सबसे उत्तरवर्ती लिए है, उसे आठ जो बड़ा बनाना चाहिये; शेष लिङ्गोको एक-एक जौ छोटा कर देना चाहिये । उपर्युक्त लिङ्गके निचले भागको तीन हिस्सोंमें विभक्त करके ऊपरके एक भागको छोड़ दे । शेष दो भागोंको आठ हिस्सोंमें विभक्त करके ऊपरके तीन भागोंको त्याग दे । पाँचवें भागके अरसे धूमती हुई एक लंबी रेखा बनावे और एक भागको छोड़ कर बीच में उन दो रेखाओका संगम करावे । यह साधारण लक्षण बताया गया; अन्य पिण्डिकाका सर्वसाधारण लक्षण बताता हूँ, मुझसे सुनो ॥ ९ - १३ ।।
दो भागसे ऊपरका पट्ट बने; एक भागसे शेष-पट्टिक। तैयार करायी जाय। कण्डपर्यन्त एक-एक भाग प्रविष्ट हो । तत्पश्चात् पुनः एक भागसे निर्गम ( जल निकलनेका मार्ग ) बनाया जाय । यह शेष पट्टिका तक रहे। प्रणाल ( नाली ) के तृतीय भागसे निर्गम बनना चाहिये। तृतीय भागके मूलमें अङ्गुलिके अप्रभागके बराबर विस्तृत जात बनावे, जो तृतीय भागसे आधे विस्तारका हो । वह स्वात उत्तरकी ओर जाय । यह पिण्डिकासहित साधारण लिङ्गका वर्णन किया गया ॥ २० २३ ॥
बहभागमें प्रवेश तथा लिङ्गकी ऊँचाई जानकर विद्वान
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें लिङ्ग आदिके कक्षणका वर्णन' नामक तिरपनवाँ अध्याय पूरा हुआ ।। ५३ १,
चौवनवाँ अध्याय
लिङ्ग-मान एवं व्यक्ताव्यक्त लक्षण आदिका वर्णन
श्रीभगवान् हयग्रीव कहते हैं-झन् ! अब मैं दूसरे प्रकारसे लिङ्ग आदिका वर्णन करता हूँ, सुनो, लवण तथा घृतसे निर्मित शिवलिङ्ग बुद्धिको बढ़ानेवाला होता है। वस्त्रमय लिङ्ग ऐश्वर्यदायक होता है । उसे तात्कालिक ( केवल एक बार ही पूजाके उपयोग में आने वाला ) लिङ्ग माना गया है। मृत्तिकासे बनाया हुआ शिव लिङ्ग दो प्रकारका होता है--पक तथा अपक्क । अपकसे पक श्रेष्ठ माना गया है। उसकी अपेक्षा काष्ठका बना हुआ शिवलिङ्ग अधिक पवित्र एवं पुण्यदायक है । काष्ठमय
लिङ्गसे प्रस्तरका लिङ्ग श्रेष्ठ है । प्रस्तरसे मोताका और मोतीसे सुवर्णका बना हुआ 'लौह लिङ्ग उत्तम माना गया है। चाँदी, ताँबे, पीतल, रत्न तथा रस (पारद) का बना हुआ शिवलिङ्ग भांग-मोक्ष देनेवाला एवं श्रेष्ठ है। रस ( पारद आदि ) के लिङ्गको राँगा, लोहा ( सुवर्ण, ताँचा ) आदि तथा रत्नके भीतर आबद्ध करके स्थापित करे । सिद्ध आदिके द्वारा स्थापित स्वयम्भूलिङ्ग आदिके लिये माथ आदि करना अभीष्ट नहीं है ॥ १-५ ।।
बाणलिङ्ग ( नर्मदेश्वर ) के लिये भी यही बात है।
* पुराणं परमानेयं महाविद्यासरं परम् *
( अर्थात् उसके लिये भी यह इतने अनुलका हो' - इस तरहका मान आदि आवश्यक नहीं है। ) वैसे शिवके लिये अपनी इच्छाके अनुसार पीठ और प्रासादका निर्माण करा लेना चाहिये । सूर्यमण्डलस्थ शिवलिङ्गको दर्पणमें प्रतिबिम्बित करके उसका पूजन करना चाहिये । वैसे तो भगवान् शंकर सर्वत्र ही पूजनीय हैं, किंतु शिवलिङ्गमें उनके अर्चनकी पूर्णता होती है। प्रस्तरका शिवलिङ्ग एक हायसे अधिक ऊँचा होना चाहिये । काष्ठमय लिङ्गका मान भी ऐसा ही है। चल शिवलिङ्गका स्वरूप अङ्गुल-मानके अनुसार निश्चित करना चाहिये तथा स्थिर लिङ्गका द्वारमान, गर्भमान एवं इस्तमानके अनुसार । गृहमें पूजित होनेवाला चललिङ्ग एक अङ्गुलमे लेकर पंद्रह अङ्गुल तकका सकता है ॥ ६-८ ॥
द्वारमानसे लिङ्गके तीन भेद है। इनमेंसे प्रत्येक के गर्भमानके नौ-नौ भेद होते हैं। [ इस तरह कुल सन्ताईस हुए। इनके अतिरिक्त ] करमानसे नौ लिङ्ग और हैं। इनकी देवालयमें पूजा करनी चाहिये । इस प्रकार सबको एकमें जोड़नेसे छप्तीस लिङ्ग जानने चाहिये । ये ज्येष्ठमानके अनुसार हैं । मध्यममानसे और अधम (कनिष्ठ - ) मानसे भी छत्तीस-छत्तीस शिवलिङ्ग हैं----ऐसा जानना चाहिये। इस प्रकार समस्त लिङ्गको एकत्र करनेसे एक सौ आट शिवलिङ्ग हो सकते हैं । एकसे लेकर पाँच अङ्गुल तकका चलशिवलिङ्ग 'कनिष्ठ' कहलाता है, छः से लेकर दस अङ्गुल तकका चल लिङ्ग 'मध्यम' कहा गया है तथा ग्यारहसे लेकर पंद्रह अकुल तकका चल शिवलिङ्ग 'ज्येष्ठ' जानने योग्य है। महामूल्यवान् रनोंका बना हुआ शिवलिङ्ग छः अलका, अन्य रत्नोंसे निमित शिवलिङ्ग नौ अङ्गुलका, सुवर्णभारका बना हुआ बारह अङ्गुलका तथा शेष वस्तुओंसे निर्मित शिवलिङ्ग पंद्रह अङ्गुलका होना चाहिये । ९-१३ ।।
लिङ्ग- शिलाके सोलह अंश करके उसके ऊपरी चार अंशोंमेंसे पार्श्ववर्ती दो भाग निकाल दे। फिर बत्तीस अंश करके उसके दोनों कोणवर्ती सोलह अंशोंको लुप्त कर दे । फिर उसमें चार अंश मिलानेसे कण्ठ' होता है। तात्पर्य यह कि बीस अंशका कण्ठ होता है और उभय पार्श्ववर्ती ३४४=१२ अंशको मिटानेसे ज्येष्ठ चल लिङ्ग बनता है। प्रासादकी ऊँचाईके मानको सोलह अंशोंमें विभक्त करके उसमेसे चार, छः और आठ अंशद्वारा क्रमशः हीन,
[ अध्याय ५४
मध्यम और ज्येष्ठ द्वार निर्मित होता है । द्वारकी ऊँचाईमेंसे एक चौथाई कम कर दिया जाय तो वह लिनकी ऊँचाईका मान है । लिङ्गशिलाके गर्भके आधे भागतककी ऊँचाईका शिवलिङ्ग 'अधम' (कनिष्ठ ) होता है और तीन भूतांश ( ३४५ = ) पंद्रह अंशोके बराबरकी ऊँचाईका शिवलिङ्ग 'ज्येष्ठ ' कहा गया है। इन दोनों के बीच में बराबरकी ऊँचाईपर सात जगह सूत्रपात ( सूतद्वारा रेखा ) करे । इस तरह नौ सूत ( सूत्रनिर्मित रेखाचिह्न) होंगे। इन नौ सूतोंमेंसे पाँच सूतोंकी ऊँचाईके मापका शिवलिङ्ग 'मध्यम' होगा। लिङ्गोकी लंबाई ( या ऊँचाई ) उत्तरोत्तर दो-दो अंशके अन्तरसे होगी। इस तरह लिनोंकी दीर्घता बढ़ती जायगी और नौ लिङ्ग निर्मित होंगे #॥ १४-१८ ॥
यदि हाथके मापसे नो लिङ्ग बनाये जायँ तो पहला लिङ्ग एक हाथका होगा, फिर दूसरेके मापसे पहलेसे एक हाथ बढ़ जायगा। इस प्रकार जबतक नौ हाथकी लंबाई पूरी न हो जाय तबतक शिला या काष्ठकी मापसे एक-एक हाथ बढ़ाते रहेंगे। ऊपर जो हीन, मध्यम और -तीन प्रकार के लिङ्ग बताये गये हैं, उनमें से प्रत्येकके तीन-तीन भेद हैं । बुद्धिमान् पुरुष एक-एक लिङ्गमे विभागपूर्वक तीन-तीन लिङ्गका निर्माण करावें । छः अङ्गुल और नौ अङ्गुलके शिवलिङ्गों में भी तीन-तीन लिङ्ग निर्माण करावे । स्थिर लिङ्ग द्वारमान, गर्भमान तथा इस्तमान-इन नीन दीर्घ प्रमाणी ( मार्गों ) के अनुसार बनाना चाहिये । उक्त तीन मार्गीके अनुसार ही उसकी तीन साएँ -भगेश, जलेश तथा देवेश । विष्कम्भ
( विस्तार ) के अनुसार लिङ्गके चार रूपलक्षित करे । दीर्घप्रमाणके अनुसार सम्पादित होनेवाले तीन रूपोंमें निर्दिष्ट लिङ्गको शुभ आय आदिसे युक्त करके निर्मित करावे । उन त्रिविध लिङ्गोंकी लबाई चार या आठ आठ हाथकी हो - यह अभीष्ट है। वे क्रमशः त्रितत्त्वरूप अथवा त्रिगुणरूप हैं। जो लिङ्ग जितने हाथका हो, उसका अङ्गुल बनाकर आय-संख्या ( ८ ), स्वर-संख्या ( ७ ), भूत-संख्या ( ५ ) तथा अग्नि-संख्या ( ३ ) से पृथकपृथक् भाग दे । जो शेष बचे उसके अनुसार शुभाशुभ फलको जाने ।। १९-२४ ।।
'समराङ्गणसूत्रबार' में कहा है कि दो-दो अंशको वृद्धि करते हुए तीन हाथकी लंबाई तक पहुँचते-पहुँचते नो लिङ्ग निर्मित हो सकते हैं- नवैव स्युराहम्तत्रिनयाबचेः ।' |
d43d48cd7d139df714d298fca844fabd1589c42b | web | कुछ महीने पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कीव शासन को बेकाबू सौंपने का वादा किया था विमानन ज़ूनी रॉकेट और उनके लिए लॉन्च ब्लॉक। अब तक यह हथियार यूक्रेनी वायु सेना के निपटान में प्राप्त हुआ। मौजूदा सोवियत-शैली के मीडिया पर उपयोग के लिए इसे अंतिम रूप दिया जाना था। वहीं, तमाम कोशिशों के बावजूद मिसाइलों की वास्तविक क्षमता बहुत सीमित रहती है।
6 जनवरी, 20223 को अमेरिकी रक्षा विभाग ने यूक्रेन को सैन्य-तकनीकी सहायता के अगले पैकेज के आवंटन की घोषणा की। इस बार, लदान के लिए सैन्य उत्पादों की लागत $3 बिलियन से अधिक हो गई, जो एक तरह का रिकॉर्ड था। नए पैकेज के हिस्से के रूप में, बख्तरबंद वाहनों, कारों, विभिन्न हथियारों आदि को स्थानांतरित करना था।
जनवरी के पैकेज में, पहली बार अमेरिकी निर्मित 127-मिमी ज़ूनी रॉकेट के रूप में बिना निर्देशित विमान हथियार दिखाई दिए। ऐसे 4 हजार उत्पादों को शिप करने की योजना थी। जाहिरा तौर पर, पैकेज में विमान या हेलीकाप्टरों पर चढ़ने के लिए संगत लॉन्चर भेजना भी शामिल था, लेकिन खुले दस्तावेजों में इस मुद्दे का खुलासा नहीं किया गया था।
मिसाइलों और संबंधित उपकरणों की डिलीवरी का समय नहीं बताया गया था। कम से कम उत्पादों के पहले बैच की डिलीवरी भी बंद दरवाजों के पीछे हुई। यूक्रेन में अमेरिकी मिसाइलों की उपस्थिति 1 मई को ही ज्ञात हुई। वायु सेना कमान ने एक हवाई क्षेत्र में "नया" हथियार दिखाया।
उन्होंने Su-25 हमले के विमान की उड़ान की तैयारी दिखाते हुए कुछ तस्वीरें प्रकाशित कीं। लॉन्चर में लोड होने के लिए तैयार ट्रांसपोर्ट ट्रॉली पर विमान के सामने अमेरिकी निर्मित गोला-बारूद पड़ा था। उसी समय, इंस्टॉलेशन स्वयं नहीं दिखाए गए थे। ये उत्पाद फ्रेम में थे, लेकिन सेंसर किए गए थे। जाहिर है, यूक्रेनी संरचनाएं प्रतिष्ठानों के प्रकार और उन पर मिसाइलों की संख्या को छिपाने की कोशिश कर रही हैं।
अमेरिकी "ज़ूनी" के युद्धक उपयोग की रिपोर्ट अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। साथ ही, यह उम्मीद की जा सकती है कि निकट भविष्य में हमारे सैनिकों के खिलाफ इस तरह के हथियारों का इस्तेमाल करने का पहला प्रयास किया जाएगा। हालांकि, कम से कम कई वस्तुनिष्ठ कारक, अनिर्देशित मिसाइलों के उपयोग को बहुत जटिल बनाते हैं या यूक्रेनी विमानन के लिए अस्वीकार्य जोखिम भी पैदा करते हैं।
ज़ूनी मिसाइलें शायद अमेरिकी डिज़ाइन किए गए विमानन हथियारों का सबसे पुराना उदाहरण हैं जो अभी भी संचालन में हैं। होनहार 5-इंच फोल्डिंग-फिन एयरक्राफ्ट रॉकेट (FFAR) या ज़ूनी प्रोजेक्ट पर काम पचास के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ, और 1957 में मॉड्यूलर आर्किटेक्चर के पहले कुछ नमूने सेवा में आए। भविष्य में, मौजूदा मॉड्यूल में सुधार किया गया और नए विकसित किए गए।
पचास के दशक के उत्तरार्ध से, ज़ूनी मिसाइलों को बड़े पैमाने पर अमेरिकी वायु सेना को आपूर्ति की गई, और जल्द ही विदेशी ग्राहकों को डिलीवरी शुरू हो गई। ऐसे हथियार लगभग सभी राज्यों द्वारा प्राप्त किए गए थे जिन्होंने अमेरिकी लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर खरीदे थे।
यह उत्सुक है कि यह विदेशी ग्राहक था जो वास्तविक युद्ध में 5-इन एफएफएआर मिसाइलों का उपयोग करने वाला पहला व्यक्ति था। इसलिए, सितंबर 1965 में, पाकिस्तानी लड़ाकों ने भारतीय सैनिकों के खिलाफ बिना दिशा वाली मिसाइलों का इस्तेमाल किया। इसके तुरंत बाद, नौसैनिक उड्डयन और अमेरिकी वायु सेना ने अपनी मिसाइलों का उपयोग करना शुरू कर दिया। वियतनाम युद्ध के दौरान, ज़ूनी अमेरिकी लड़ाकू विमानों के मुख्य हथियारों में से एक बन गया। ऐसी मिसाइलों का इस्तेमाल बाद में सभी बड़े संघर्षों में किया गया।
काफी उम्र के बावजूद, ज़ूनी परिवार का विकास जारी है। हाल के वर्षों में, व्यक्तिगत मॉड्यूल के साथ-साथ नए घटकों के आधुनिकीकरण के लिए कई परियोजनाएं प्रस्तावित की गई हैं। विशेष रूप से, अर्ध-सक्रिय लेजर होमिंग हेड के साथ नियंत्रण मॉड्यूल विकसित किए गए हैं, जो एक अनिर्देशित मिसाइल को उच्च-सटीक युद्ध सामग्री में बदल देते हैं।
ज़ूनी परियोजना के हिस्से के रूप में, रॉकेट का एक पूरा परिवार विभिन्न उपकरणों और कार्यों के साथ विकसित किया गया था, लेकिन समान उड़ान विशेषताओं के साथ। उत्पादन और संचालन को सरल बनाने के लिए, परिवार को मॉड्यूलर आधार पर बनाया गया था। कई प्रकार के एकीकृत ठोस प्रणोदक इंजन और वारहेड्स का एक सेट है। जीओएस मॉड्यूल भी पेश किए जाते हैं। ऐसे मॉड्यूल को मिलाकर वांछित आकार का रॉकेट बनाया जाता है।
कॉन्फ़िगरेशन के बावजूद, ज़ूनी रॉकेट की लंबाई 2,8 मीटर से अधिक नहीं है और व्यास 127 मिमी है। बेलनाकार शरीर के पूंछ खंड में, स्टेबलाइज़र के विमानों को उड़ान में रखा जाता है। उत्पाद का द्रव्यमान 45 से 61 किलोग्राम की सीमा में है। प्रक्षेपण की ऊँचाई और वाहक की गति के आधार पर, रॉकेट की गति 700-720 m/s तक पहुँच जाती है। अधिकतम लॉन्च रेंज 8 किमी है।
तीन इंजन मॉड्यूल विकसित किए गए हैं। ऐसा उत्पाद एक 127 मिमी ट्यूब है जिसमें ईंधन चार्ज, नोजल और स्टेबलाइजर होता है। सबसे पहले दिखाई देने वाला एमके 16 मॉड्यूल था, जो 2 मीटर लंबा और 25,6 किलोग्राम वजन का था। यह लगभग कर्षण उत्पन्न करता है। 3400 किग्रा; ईंधन लगभग जलता है। 1 सेकंड। एक बाद का एमके 71 इंजन। 1,9 मीटर की कम लंबाई के साथ, यह भारी (30 किग्रा) है और 3500 सेकंड के लिए 1,17 किग्रा से अधिक का जोर देता है। इसके आधार पर, एमके 71 मॉड 1 मॉड्यूल बनाया गया था। 2,1 मीटर की लंबाई और 36 किग्रा के द्रव्यमान के साथ, यह 3700 सेकंड के लिए लगभग 1,8 किग्रा का जोर देता है।
विभिन्न उद्देश्यों के लिए लड़ाकू इकाइयों की एक विस्तृत श्रृंखला है। अधिकांश लड़ाकू मिशनों को हल करने के लिए, एमके 24 या एमके 63 मॉड्यूल का उपयोग क्रमशः 22 और 25,6 किलोग्राम वजन वाले उच्च विस्फोटक विखंडन शुल्क के साथ किया जाता है। एमके 32 उत्पाद 20,7 किलोग्राम चार्ज के साथ एक संचयी विखंडन गोला-बारूद है। इसके अलावा, वहाँ एक रोशनी या धूम्रपान चार्ज के साथ हथियार हैं, साथ ही साथ व्यावहारिक गोला बारूद भी हैं।
प्रारंभ में, ज़ूनी के लिए विभिन्न प्रकार की मिसाइलों के साथ कई लांचर विकसित किए गए थे। सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला उत्पाद एलएयू-10/ए है और इसके संशोधन चार ट्यूबलर गाइड के साथ हैं। इस तरह के ब्लॉक विभिन्न वाहकों पर स्थापित किए जा सकते हैं - लगभग सभी अमेरिकी सामरिक विमानों पर, पचास के दशक में विकसित नमूनों से शुरू।
जैसा कि हाल की घटनाओं से पता चलता है, सोवियत शैली के उपकरणों पर उपयोग के लिए प्रतिष्ठानों को अनुकूलित करना संभव है। जाहिरा तौर पर, अमेरिकी और यूक्रेनी विशेषज्ञों ने Su-25 तोरणों पर आयातित ब्लॉकों को लटकाने के साथ-साथ उन्हें मानक हथियार नियंत्रण प्रणाली से जोड़ने के लिए कुछ प्रकार के एडेप्टर बनाए हैं। स्पष्ट रूप से अनिर्देशित हथियारों का ऐसा एकीकरण विशेष रूप से कठिन नहीं है।
सामान्य तौर पर, 5-इन एफएफएआर/जूनी परिवार के बिना निर्देशित रॉकेट अपनी श्रेणी के विशिष्ट हथियार हैं और काफी उच्च प्रदर्शन करते हैं। उपलब्ध लड़ाकू इकाइयाँ आपको जनशक्ति, असुरक्षित या हल्के बख्तरबंद वाहनों, साथ ही असुरक्षित इमारतों को हिट करने की अनुमति देती हैं। इस मामले में, ज्ञात तरीके से मार्गदर्शन की कमी सटीकता को कम करती है और दक्षता को कम करती है।
सामान्य विशेषताओं और क्षमताओं के संदर्भ में, अमेरिकी मिसाइल विदेशी मॉडल के समान है। उदाहरण के लिए, "ज़ूनी" की तुलना एस -13 श्रृंखला की रूसी मिसाइलों से की जा सकती है। सभी संशोधनों में अमेरिकी और रूसी मिसाइलों के समान आयाम और वजन हैं। उसी समय, C-13 उत्पाद भारी हथियार ले जाते हैं, और ज़ूनी के लिए एक उच्च अधिकतम सीमा घोषित की जाती है।
हालांकि, एक अनिर्देशित मिसाइल के युद्धक उपयोग की प्रभावशीलता न केवल अपनी "टेबल" विशेषताओं पर निर्भर करती है। समग्र परिणाम काफी हद तक वाहक प्लेटफॉर्म पर निर्भर करता है, साथ ही साथ उस स्थिति और परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है जिसमें उसे काम करना पड़ता है। इन कारकों को देखते हुए, ज़ूनी की उपस्थिति यूक्रेनी वायु सेना को कोई लाभ नहीं देगी।
8 किमी तक की लॉन्च रेंज के साथ, अमेरिकी मिसाइलों वाला एक यूक्रेनी विमान रूसी सैन्य वायु रक्षा के विनाश के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए मजबूर होगा। इसके परिणाम पूर्वानुमेय हैं - कुछ यूक्रेनी विमानों की हार की नियमित रूप से रिपोर्ट की जाती है। यह बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में हाल की तस्वीरों में दिखाए गए Su-25 का भी यही हश्र होगा।
पिच-अप फायरिंग के कारण लॉन्च रेंज बढ़ने की सैद्धांतिक संभावना है। हालांकि, इस मामले में विमान वायु रक्षा प्रणाली के विनाश के क्षेत्र में रहेगा। इसके अलावा, पहले से ही कम गाइडेड रॉकेट की सटीकता को और कम किया जाएगा। इसी समय, यूक्रेनी विमानों के पास कोई उपकरण नहीं है जो बिना हथियार वाले हथियारों की सटीकता में सुधार कर सके।
इस प्रकार, संदिग्ध संभावनाओं वाले विदेशी गोला-बारूद को फिर से कीव शासन को सौंप दिया गया। ज़ूनी उत्पादों में उनकी कक्षा के लिए अच्छी विशेषताएं हैं और सैद्धांतिक रूप से वांछित प्रभाव के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हालाँकि, रूसी वायु रक्षा के रूप में वस्तुनिष्ठ कारक व्यावहारिक रूप से इसे बाहर करते हैं।
इस संदर्भ में, यूक्रेनी विमानन की स्थिति और संभावनाओं पर भी विचार किया जाना चाहिए। इसके अधिकांश विमान और हेलीकॉप्टर पहले ही नष्ट हो चुके हैं। विदेशों से मौजूदा उपकरणों और आपूर्तियों की मरम्मत के प्रयास समग्र स्थिति को प्रभावित नहीं करते हैं। नतीजतन, निकट भविष्य में, यूक्रेन को लड़ाकू विमानों के बिना छोड़ दिया जा सकता है, और लॉन्चर के बिना मिसाइलों का आयात किया जा सकता है।
- लेखकः
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23247eb6de5093e9a0fb5d7f5ae98501e38901c6e2f8ef976c455d13301f3f7b | pdf | दुःख - दारिद्र आदि क्रमशः दूर हो जाते हैं। इसी प्रकार नामापराधी व्यक्ति जब भगवद्भक्त, शास्त्र एवं गुरु आदिकी निष्कपट होकर सेवा करता है, तब क्रमशः नामकी ही कृपासे उसके अपराधरूपी अनर्थोंका क्रमशः विनाश होने लगता है, इसमें कोई भी विवाद नहीं है। यदि कोई इस प्रकार कहे कि मेरा नामापराध नहीं है, तो यह कहना होगा कि फलको देखकर ही उसके कारणका अनुमान होता है। वह आधुनिक हो या प्राचीन, नामापराधका अनुमान हो जाता है। उसका फल यह है कि अनेक नामसंकीर्त्तन करनेपर भी प्रेमके लक्षण उदित नहीं होते। जैसे श्रीमद्भागवतमें कहा गया है२१७
तदश्मसारं हृदयं बतेदं यद्गृह्यमानैर्हरिनामधेयैः। न विक्रियेताथ यदा विकारो नेत्रे जलं गात्ररुहेषु हर्षः ॥ (श्रीमद्भा. २/३/२४)
अर्थात् हरिनामके ग्रहण करनेपर भी जिस व्यक्तिके नेत्रोंसे अश्रु, शरीरमें रोमाञ्चादि सात्त्विक विकार उत्पन्न नहीं होते, उनका हृदय वज्रके समान कठोर है।
पीयूषवर्षिणी-वृत्ति - यह पहले ही कहा गया है कि अपराध कहनेसे 'राध' अर्थात् सन्तोष दूर हो जाता है, इसीका नाम अपराध है। अपराधी व्यक्तियोंके प्रति नामका सन्तोष या उनकी प्रसन्नता दूर हो जाती है। इसलिए उसको नामका फल प्राप्त होते हुए नहीं देखा जाता। श्रील ग्रन्थकार महोदय इस विषयको सहज रूपमें समझानेके लिए एक दृष्टान्त दे रहे हैं। अपराधी सेवकके प्रति जैसे उसका स्वामी समर्थ होते हुए भी उससे उदासीन रहता है, उसका पालन-पोषण नहीं करता और वह सेवक दुःखी हो जाता है। उसी प्रकार नामापराधी व्यक्तिके प्रति श्रीनाम भी उदासीन हो जाते हैं। अपनी कृपा या महान शक्तिका उसके प्रति प्रकाश नहीं करते और उसके फलस्वरूप नामापराधीको नाना प्रकारके अनर्थ घेरे रहते हैं। उस अपराधी व्यक्तिके दुःख- दारिद्रका दर्शनकर ऐसा समझना उचित नहीं है कि धनाढ्य व्यक्तिमें अपने उस आत्मीय स्वजन या सेवकको
पालन करनेकी शक्ति नहीं है । सामर्थ्य युक्त होकर भी धनाढ्य व्यक्ति असन्तुष्ट होकर उसके पालन करनेकी इच्छा नहीं करता, किन्तु तब भी वह व्यक्ति धनाढ्य व्यक्तिका पाल्य है, क्योंकि वह आत्मीय स्वजन है। उसे छोड़कर वह धनाढ्य व्यक्ति किसी भी अनात्मीय जनका पालन नहीं करता। यदि किसी कारणवश अपराधी व्यक्ति अपने अपराधको समझकर अपने स्वामीके मनोभावको जानकर उसके अनुरूप सेवा करता है अथवा उसको प्रसन्न करनेकी चेष्टा करता है, तो स्वभावतः दयालु स्वामी सन्तुष्ट होकर क्रमशः उसके दुःख - दारिद्र इत्यादिको दूर करते हैं ।
इसी प्रकार अनुग्रह करनेमें परम समर्थ श्रीहरिनाम अपने आश्रित अर्थात् भक्तिपथका आश्रय ग्रहणकर नामकीर्त्तन आदि भजनकारी मनुष्योंको प्रेमदानकर निरन्तर पालन किया करते हैं। किन्तु नामाश्रित व्यक्ति उनके प्रति यदि अपराध करते हैं, तब अपराधीके प्रति सन्तुष्ट न रहनेके कारण वे उसका पालन नहीं करते अर्थात् उसके भजनका फल प्रेम नहीं देते। इसलिए किसीको ऐसा नहीं समझना चाहिए कि श्रीहरिनाममें भजनका फल देनेका सामर्थ्य नहीं है। भजनका फल नहीं पानेपर भी वे श्रीनामप्रभुके पाल्य ही हैं । आश्रितजनोंको छोड़कर श्रीहरिनाम अनाश्रितोंको अर्थात् जो भजन नहीं करते, उनका पालन-पोषण नहीं करते। यदि अपराधी व्यक्ति अपनी त्रुटि या भूल समझकर जिसके प्रति उसका अपराध है, उस भक्त, शास्त्र या गुरुकी निष्कपट रूपमें पुनः पुनः सेवा करता है, उनको प्रसन्न करनेके लिए चेष्टा करता है। तब श्रीनामप्रभु पुनः क्रमशः उसके प्रति प्रसन्न होकर उसके नामापराध आदिका नाश कर देते हैं तथा प्रेम फल प्रदान करते हैं। इस विषयमें किसी प्रकारके मतभेदकी कोई आशङ्का नहीं है। "साधुसङ्गवशात् सर्वनामापराधक्षये तु भक्तिदेवी-सम्यक्-प्रसादेन नामफलप्राप्तिरेव निर्विवादा ।" (श्रीमद्भा. ६/२/९-१० श्लोककी सारार्थदर्शिणी टीका) अर्थात् साधुसङ्ग में हरिकथाके द्वारा सब प्रकारके नामापराध क्षय हो जाते हैं और तब भक्तिदेवीकी पूर्ण कृपा प्राप्त होती है और उससे नामका फल प्रेम प्राप्त हुआ जाता है। इस विषयमें किसी प्रकारका कोई विवाद नहीं है ।
फिर भी यदि कोई यह कहते हैं कि मेरा कोई भी अपराध नहीं है, फिर भी मैं नामका फल क्यों नहीं अनुभव कर रहा हूँ? इसके उत्तरमें कहते हैं, फलके द्वारा ही फलका कारण अनुमान किया जाता है। अपराधके बिना दूसरी कोई भी विघ्न-बाधा महाशक्तिशाली हरिनामके फलको प्राप्त होनेमें बाधा नहीं दे सकती। इसलिए नामका फल अनुभव न करनेपर यह समझना चाहिए कि मुझसे अवश्य ही कुछ अपराध हो गया है। इस विषयमें किसी प्रकारका सन्देह करना उचित नहीं है। यदि नामका फल अनुभव न किया जा सके और यदि जान-बूझकर कोई अपराध न हुआ हो, तो ऐसी दशामें यह समझना चाहिए कि मुझसे अवश्य ही कोई अज्ञात अपराध हो गया है। इसलिए श्रीनामप्रभु मुझपर प्रसन्न नहीं हैं। बहुत नामसंकीर्त्तन करनेपर भी यदि प्रेमका चिह्न या सात्त्विक विकार आदि प्रकाशित नहीं हो रहे हैं, तो समझना चाहिए कि नामका फल प्राप्त नहीं हो रहा है। श्रीमद्भागवत (२/३/२४) में देखा जाता हैयद्गृह्यमाणैर्हरिनामधेयैः । न विक्रियेताथ यदा विकारो नेत्रे जलं गात्रहेषु हर्षः ॥
"वह हृदय नहीं लोहा है जो भगवान्के मङ्गलमय नामोंका श्रवण-कीर्त्तन करनेपर भी पिघल नहीं जाता। जिस समय हृदय पिघलता है, उस समय नेत्रोंसे अश्रु छलकने लगते हैं और शरीरका रोमरोम खिल उठता है।" इस श्लोककी सारार्थदर्शिनी टीकामें श्रील चक्रवर्ती ठाकुरने जो लिखा है, उसका तात्पर्य यह है कि बार-बार हरिनाम करनेपर भी जिसके हृदयमें भक्तिका विकार नहीं होता, वह लोहेके समान अत्यन्त कठिन है। अर्थात् बाहरमें नेत्रोंसे अश्रुधारा और शरीरमें रोमाञ्च इत्यादि भाव उदित नहीं हो रहे हैं, बार - बार नामसंकीर्त्तनसे भी चित्त द्रवित नहीं होता - ये सब नामापराधके ही चिह्न हैं। पुनः केवल अश्रु - पुलकादि भी चित्तके द्रवित होनेके लक्षण नहीं भी हो सकते हैं, क्योंकि श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु ग्रन्थमें ऐसा कहा गया है - स्वभावतः पिच्छिलचित्तवाले व्यक्ति एवं जो अश्रु - पुलकादि प्रकाश करनेके लिए अभ्यास करते हैं, उनके सत्त्वाभासके बिना भी
अश्रु - पुलकादि देखे जाते हैं। पक्षान्तरमें अत्यन्त गम्भीर स्वभाववाले महानुभावका चित्त हरिनाम ग्रहणसे द्रवित होनेपर भी उनके अङ्गोंमें सहसा बाहरमें अश्रु - पुलकादि देखा नहीं जाता। इसलिए इस श्लोककी व्याख्या इस रूपसे होगी - जब बाहरमें अश्रु - पुलकादि विकार देखा जाए, उस समय यदि हृदय द्रवित नहीं होता हो तो वह हृदय लोहेके समान कठिन है।
भक्तिभावके द्वारा हृदय द्रवित होनेपर बहिर्क्रियाके स्वरूप अश्रुपुलकादि उदित होनेपर उसे सात्त्विक विकार कहते हैं। हृदय विकारका ऐसा साधारण लक्षण होनेपर भी कुछ असाधारण लक्षण भी हैं- क्षान्ति, अव्यर्थकालत्व, विरक्ति, मानशून्यता, आशाबन्ध, समुत्कण्ठा, नामगानमें सदा रुचि, भगवत्-गुणकीर्त्तनमें आसक्ति और वृन्दावनादि भगवत् - धामोंमें वास करनेमें प्रीति । हृदय-द्रवित होनेके ये नौ यथार्थ लक्षण हैं। निरापराधी भक्तजन नामसंकीर्त्तन करनेसे ही अपने हृदयमें नामका प्रभाव अनुभव करते हैं और नामके आस्वादनमें विभोर हो जाते हैं। उस अनुभवके कार्यस्वरूप हृदय द्रवित हो जाता है, जिससे उक्त लक्षण प्रकटित होते हैं। किन्तु जो अपराधी, परश्रीकातर (दूसरोंके सम्पन्न होनेपर ईर्ष्यालु) होते हैं, वे बहुत नाम करनेपर भी नामकी अप्रसन्नतासे उनका चित्त भक्तिभावसे द्रवित नहीं होता। बाहरसे अश्रु - पुलकादि देखे जानेपर भी हृदय लोहेके समान कठिन होनेके कारण, इस श्लोकमें उनकी निन्दा की गई है। साधुसङ्गके प्रभावसे निरन्तर नाम ग्रहण करनेसे चित्त द्रवित होनेपर उनके हृदयका काठिन्य दूर हो सकता है।
क्या नामापराधी व्यक्तिका गुरुधारण करना व्यर्थ है?
तथाहि नामापराधप्रसङ्ग एव - ( भ. र. सि.)
"के तेऽपराधा विपेन्द्र नाम्नो भगवतः कृताः ।
विनिघ्नन्ति नृणां कृत्यं प्राकृतं ह्यानयन्ति हि ॥" इति । तदीयगुणनामादीनि सद्यः प्रेमप्रदान्यपि श्रुतानि कीर्त्तितानि च तत्तीर्थादिकं सद्यः सिद्धिदमपि चिरात् सेवितं तन्निवेदितानि घृतदुग्धताम्बूलादीनि सद्यः सर्वेन्द्रियतरङ्गनिवर्त्तकानि मुहुरास्वाद्य उपयुक्तान्येव स्वतः परमचिन्मयान्यप्येतानि
यस्मात् प्राकृतानीव भवन्ति तेऽपराधाः के भगवन्नाम्न इति सोत्कम्पसविस्मयः प्रश्नः । नन्वेवं सति नामापराधवतो जनस्य भगवद्वैमुख्यस्यैवौचित्यात् तदुक्तं गुरुपादाश्रयभजनक्रियादिकमपि न सम्भवेत् । सत्यम् । प्रवर्त्तमाने महाज्वर इव ओदनादेररोचकत्वादेवानुपादानामिव नामापराधस्य गाढ़त्वे सति तत्र पुंसि श्रवणकीर्त्तादिभजनक्रियाया अवकाश एव न स्यादित्यत्र कः सन्देहः । किन्तु ज्वरस्य मृदुत्वे चिरन्तनत्वे ओदनादेरपि किञ्चिद्रोचकत्वमिव । बहुदिनतो भोगेनापराधस्य क्षीणवेगत्वे मृदुत्वे च भगवद्भक्तौ किञ्चिन्मात्ररुचिः स्यादिति पुंसः प्रसज्जति भक्त्यधिकारः । ततश्च यथा पौष्टिकान्यपि दुग्धौदनादीनि जीर्णज्वरवन्तं पुमांस न पुष्यन्ति किञ्चित् पुष्यन्ति च किन्तु ग्लानिकार्ये न निवर्त्तयितुं शक्नुवन्ति कालेनौषधपथ्ययोः सेवितयोः शक्नुवन्ति च । तथैव तादृशस्य भक्त्यधिकारिणः श्रवणकीर्त्तनादीनि कालेनैव क्रमेणैव सकलं प्रकाशयन्तीति साधूक्तमादौ श्रद्धा ततः साधुसङ्गोऽथ भजनक्रिया । ततोऽनर्थनिवृत्तिः स्यात् ततो निष्ठेत्यादि ।
भावानुवाद - नामापराधके प्रसङ्ग में श्रीभक्तिरसामृतसिन्धुमें कहा गया है - हे ब्राह्मण श्रेष्ठ ! श्रीभगवान्के नामके प्रति कौनसे अपराध हैं, जिनका आचरण करनेसे मनुष्योंकी सब सुकृतियाँ नष्ट हो जाती और अप्राकृत वस्तुओंमें भी प्राकृत होनेका भाव ला देते हैं? और श्रीभगवान्के गुण, नामादि तत्काल प्रेमप्रदाता होकर भी अनेक काल पर्यन्त श्रवण और कीर्त्तन करनेसे भी जिन अपराधोंके कारण वे अपना फल प्रदान नहीं कर पाते, वे कौन से हैं ? और भगवत् सम्बन्धी तीर्थादि सदा सिद्धिप्रद होकर भी अनेक समय तक सेवन किए जानेपर भी सिद्धि क्यों प्रदान नहीं कर पाते? तथा भगवान्को निवेदित किए जानेपर भी घी, दूध, ताम्बूलादि तत्काल सब इन्द्रियोंकी विषय-वासनारूप तरङ्गोंको नष्ट करनेवाले और बार-बार आस्वादन करनेपर चिन्मय होते हुए भी प्राकृत वस्तुकी भाँति क्यों प्रतीत होते हैं ? श्रीभगवन्नामके प्रति जिन गुरुतर अपराधोंके कारण ये सब अपना-अपना फल प्रदान नहीं करते, वे अपराध कौनसे हैं? अत्यन्त भयभीत होकर और कौतूहलके साथ प्रश्न किया गया है।
यदि ऐसा ही है तो नामापराधी व्यक्तिको भगवान्से विमुख ही मानना उचित है। फिर उसके लिए तो गुरुपदाश्रय और भजनक्रिया आदि जिसका वर्णन पहले किया जा चुका है, उनका आचरण करना सम्भव नहीं हो सकता ? ग्रन्थकार कहते हैं, यह ठीक है; किन्तु प्रबल ज्वर होनेपर भोजनमें अरुचि होनेके कारण जैसे अन्न आदिके ग्रहणकी सम्भावना नहीं रहती, उसी प्रकार नामापराधोंकी प्रबलता होनेपर उस व्यक्तिमें श्रवण-कीर्त्तनादि भजनक्रियाका अवसर नहीं रहता। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। किन्तु जब ज्वर उतर जाता है, उसका वेग भी क्षीण हो जाता है, तब जैसे अन्नादि भोजन करनेपर कुछ-कुछ रुचिकर होने लगता है।
उसी प्रकार अनेक दिन तक भोग करनेपर नामापराधोंका वेग क्षीण और हल्का पड़ जाता है, तब भगवद्भक्तिमें थोड़ी-थोड़ी रुचि पैदा होने लगती है। ऐसे ही उस नामापराधी पुरुषका भक्तिमें अधिकार पैदा होना सिद्ध होता है। तदनन्तर जैसे दूध, अन्नादि पुष्टिकारक खाद्य पदार्थ भी उतरे हुए ज्वरके रोगीको अच्छी तरह पुष्ट नहीं करते, किन्तु थोड़ा-थोड़ा पुष्ट करते हैं। कुछ समय तक क्रमसे औषधि और पथ्य इत्यादिका सेवन करनेपर वे अन्नादि ग्लानि और दुर्बलताको दूर कर देते हैं। उसी प्रकार ऐसे भक्ति- अधिकारीके लिए कुछ समय तक श्रवण - कीर्त्तनादि क्रमशः सेवन करनेके बाद वे अपना फल प्रकाशित करते हैं। इसलिए यह ठीक ही कहा गया है कि पहले श्रद्धा, साधुसङ्ग, उसके बाद भजनक्रिया, फिर अनर्थनिवृत्ति, तत्पश्चात् निष्ठा और पुनः रुचि उत्पन्न होती है, इत्यादि ।
पीयूषवर्षिणी-वृत्ति - ग्रन्थकारने यहाँ एक और शङ्का उठाई है कि भगवन्नाम-गुणादिका श्रवण और कीर्त्तन तत्काल प्रेम देनेवाला है, समस्त तीर्थ सिद्धि देनेवाले हैं तथा भगवत्-प्रसाद चिन्मय या अप्राकृत हैं - यह सब बातें शास्त्र में कही गई हैं और इनके विषयमें असंख्य प्रमाण हैं, फिर भी अनेक समय तक भगवन्नाम - गुण श्रवण और कीर्त्तन करनेपर भी प्रेमकी प्राप्ति नहीं होती, अनेक काल तक तीर्थोंमें वास करनेपर भी सिद्धि या अभीष्ट फलकी प्राप्ति नहीं होती
तथा श्रीभगवान्को भोग लगानेपर भी उन पदार्थोंमें चिन्मयता या अप्राकृतत्वकी अनुभूति नहीं होती। ऐसे कौन-से अपराध हैं जिनके कारण मनुष्योंको इनका फल प्राप्त नहीं होता? और यदि यह बातें ठीक हैं कि अपराधोंके कारण भगवन्नाम, तीर्थवास और भगवत् - प्रसाद अपना कुछ भी फल नहीं देते, तो यह कहा जा सकता है कि फिर अपराधी मनुष्योंको श्रवण, कीर्त्तन, भजनादि करनेकी ही क्या आवश्यकता है? भक्तिके अङ्ग गुरुपदाश्रय आदिमें उसका प्रवृत्त होना भी सम्भव नहीं हो सकता है ।
इस पूर्वपक्षको उठाकर श्रीलचक्रवर्तिपाद स्वयं इसका समाधान करते हुए कहते हैं कि भगवन्नाम, तीर्थवास, श्रवण - कीर्त्तन, भगवत्-प्रसाद ग्रहण करना भी निष्फल नहीं होता। उनमें अपना अपना फल देनेकी शक्ति नित्य विराजमान है। फिर भी वे अपनी शक्तियोंको किसलिए प्रकाश नहीं करते, इसके सम्बन्धमें श्रील चक्रवर्ती ठाकुर कह रहे हैं - इसके पहले कहा गया है कि निरपराध व्यक्तियोंके लिए भगवत्-प्राप्तिके केवलमात्र दो सोपान हैं - नामग्रहण और वैकुण्ठारोहण । किन्तु निरपराध व्यक्ति इस विश्वमें अति विरल हैं। अपराधसे ही इस देहकी सृष्टि हुई है। अतएव सभीके प्राक्तनी अथवा आधुनिकी अपराध कुछ कम या अधिक हैं ही । इसलिए श्रद्धासे प्रेम प्राप्तिके जो नौ सोपान कहे गए हैं, वह युक्तिसङ्गत है। श्रील ग्रन्थकार महोदय दृष्टान्तके द्वारा इस विषयको परिस्फुट कर रहे हैं।
नामापराध वर्णनके प्रसङ्ग में एक श्लोक कहा गया हैके तेऽपराधा विप्रेन्द्र नाम्नो भगवतः कृताः। विनिघ्नन्ति नृणां कृत्यं प्राकृतं ह्यानयन्ति हि ॥
" हे विप्रश्रेष्ठ ! श्रीभगवान्के नामके प्रति कौन-से अपराध हैं जिनके आचरणके कारण मनुष्योंकी सब सुकृतियाँ नष्ट हो जाती हैं और अप्राकृत वस्तुमें प्राकृत बुद्धि हो जाती है?" श्रील ग्रन्थकार स्वयं उपरोक्त श्लोककी व्याख्या कर रहे हैं - शास्त्रों में देखा जाता है कि श्रीभगवान्के गुण, नामादि श्रवण - कीर्त्तनमात्रसे ही मनुष्य तत्क्षणात् प्रेमलाभकर धन्य हो जाते हैं। श्रीमद्भागवतके प्रारम्भमें ही देखा जाता
है, "सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्र कृतिभिः शुश्रूषुभिस्तत्क्षणात्" (श्रीमद्भा १/१/२) अर्थात् "श्रीमद्भागवतके श्रवणकी इच्छा करनेवाले पुण्यात्माओंके हृदयमें श्रीहरि तत्क्षणात् अवरुद्ध हो जाते हैं।" प्रेमके अतिरिक्त भगवान् कभी भी किसीके हृदयमें अवरुद्ध नहीं होते। इसलिए श्रीहरिके गुण - नामादि वर्णनमें श्रीमद्भागवतके श्रवणकी इच्छा करनेमात्रसे प्रेम उदयकी फलश्रुति देखी जाती है। उसी प्रकार पुराणमें श्रीवृन्दावनादि धाममें भी प्रेम प्रदानकी शक्तिका वर्णन है - "अहो मधुपुरी धन्या वैकुण्ठाच्च गरीयसी। दिनमेकं निवासेन हरौ भक्तिः प्रजायते ॥" (पद्मपुराण) "अहो! मधुपुरी अत्यन्त धन्य है और वैकुण्ठसे भी प्रशंसनीय है, क्योंकि वहाँ एक दिन निवास करनेपर भी भगवद्भक्ति प्राप्त होती है।" इसी प्रकार भगवन्निवेदित महाप्रसादकी महिमा भी अपूर्व है। श्रीउद्धव महाशयने श्रीकृष्णसे कहा है -
त्वयोपभुक्तस्रग्-गन्ध-वासोऽलङ्कारचच्चिताः । उच्छिष्टभोजिनो दासास्तव मायां जयेम हि ॥
अर्थात् "आपकी उपभुक्त माला, गन्ध, वसन या अलङ्कारके द्वारा अलंकृत होकर, आपके उच्छिष्टभोजी दास हम आपकी मायाको जय करेंगे।"
इस प्रकार प्रेमदानमें परम समर्थ भगवान्के रूप-गुण-नामादि पुनः-पुनः पुनः पुनः श्रवण और कीर्त्तन करनेपर भी, दीर्घकाल तक धाममें निवास करके भी, बहुत दिनों तक भगवन्निवेदित महाप्रसादका सेवन करके भी प्रेमलाभ करना तो दूरकी बात रहे, अपराध आदि अनर्थ ही बढ़ जाते हैं। फलस्वरूप इन चिन्मय वस्तुओंमें भी प्राकृत बुद्धि उपस्थित हो रही है। जो नामापराध भजनमें इतना बड़ा बाधक है, भयसे काँपते हुए और विस्मयके साथ प्रश्न हो रहा है, वे नामापराध कौन-कौनसे हैं? अर्थात् प्रत्येक साधकोंको ही इन नामापराधोंको अच्छी तरह जानकर अत्यन्त सावधानीके साथ इनका वर्जनकर भजन पथमें अग्रसर होना चाहिए। अपराधोंका फल जिस प्रकार भीषण है, उससे अपराधीकी भगवत् - विमुखता होनी ही उचित है।
अर्थात् अपराधियोंके लिए गुरुपदाश्रय, भजनक्रिया आदि न होना ही उचित है।
श्रील ग्रन्थकार कहते हैं ऐसा प्रश्न होना स्वाभाविक है। किन्तु प्रबल ज्वरकी स्थितिमें अन्नादि भोजन करना सम्भवपर नहीं होता, उसी प्रकार अपराधोंके प्रबल रहते समय गुरुपदाश्रय और श्रवण-कीर्त्तन आदि भजनका अवकाश नहीं रहता। किन्तु ज्वर उतर जानेपर और उसका वेग कम हो जानेपर जिस प्रकार अन्नादि कुछ-कुछ रुचिकर होने लगते हैं, उसी प्रकार अधिक समय तक अपराध भोगनेके बाद जब उसकी गति शिथिल हो जाती है, तब भजनक्रियामें कुछ-कुछ रुचि होती है। इसीलिए गुरुपदाश्रय और भजनकी क्रिया हो सकती
। पुनः ज्वर उतर जानेपर और उसका वेग कम होनेपर भी पुष्टिकर खाद्य इत्यादि उसको विशेष पुष्ट नहीं करते, थोड़े परिमाणमें ही पुष्ट करते हैं। उसी प्रकार अपराधकी गति मन्द होनेपर भी श्रीकृष्णके गुण, नामादिका आस्वादन या अनुभव विशेष रूपसे नहीं होता, कम परिमाणमें ही होता है। अधिक समय तक ज्वरके लिए उचित औषध और पथ्य इत्यादिका सेवन करते रहनेपर जिस प्रकार रोग दूर हो जाता है, उसीके अनुरूप देहकी पुष्टि साधित होती है। उसी प्रकार अपराधोंके लिए महौषधि स्वरूप श्रीनाम, श्रीगुरु, श्रीवैष्णवोंकी निष्कपट रूपसे सेवा करते-करते अपराध नाशके तारतम्यसे क्रमशः भजनकी परिपुष्टि एवं भजनरसमें आस्वादनकी चमत्कारिता जग उठती है। इसलिए श्रीभगवान्के गुण, नाम आदिमें तत्क्षणात् प्रेमदानमें परम सामर्थ्य रहनेपर भी साधकोंमें अपराधका अस्तित्व रहनेपर श्रद्धा, साधुसङ्ग, भजनक्रिया, अनर्थनिवृत्ति, निष्ठा आदि स्तरका वर्णन सुसङ्गत ही हुआ है।
प्रारब्ध नहीं रहनेपर भी, भक्तमें दीनता तथा उत्कण्ठाकी वृद्धि करनेके लिए भगवान् द्वारा अपने भक्तोंको दुःख प्रदान कैश्चित्तुनामकीर्त्तनादिवतां भक्तानां प्रेमलिङ्गादर्शनेन पापप्रवृत्त्या च न केवलमपराधः कल्प्यते व्यवहारिकबहुदुःखदर्शनेन चापि प्रारब्धनाशाभावश्च ।
निरपराधत्वेन निर्द्धारितस्याजामिलस्यापि स्वपुत्रनामकरणप्रतिदिनबहुधातन्नामाह्वानसमयेष्वपि प्रेमाभावदासीसङ्गादि पापप्रवृत्तिदर्शनात्, प्रारब्धाभावेऽपि युधिष्ठिरादेर्व्यवहारिकबहुदुःखदर्शनाच्च । तस्मात् फलन्नपि वृक्षः प्रायशः काल एव फलति इतिवत् निरपराधेषु प्रसीददपि नाम स्वप्रसादं काल एव प्रकाशयेत् । पूर्वाभ्यासात् क्रियमाणा पापराशिरप उत्खातदंष्ट्रौरगदंश इवाकिञ्चित्करा एव । रोगशोकादि दुःखमपि न प्रारब्धफलम्। "यस्याहमनुगृह्णामि हरिष्ये तद्धनं शनैः । ततोऽधनं त्यजन्त्यस्य स्वजना दुःखदुःखितम् ॥" इति । "निर्धनत्वमहारोगो मदनुग्रहलक्षणम् ।" इत्यादि वचनात्। स्वभक्तहितकारिणा तदीयदैन्योत्कण्ठादिवर्द्धनचतुरेण भगवतैव दुःखस्य दीयमानत्वात् कर्मफलत्वाभावेन न प्रारब्धत्वमित्याहुः ॥ ५ ॥ इति माधुर्य - कादम्बिन्यां सर्वग्रहप्रशमिनी नाम तृतीयामृतवृष्टिः ॥ ३ ॥
भावानुवाद - कुछ लोग भक्तोंमें प्रेमके लक्षणोंको न देखकर तथा उनकी पापोंमें प्रवृत्तिको देखकर उनमें केवल नामापराधोंकी ही कल्पना नहीं करते, अपितु उनमें व्यवहारिक अनेक दुःखोंको देखकर ऐसा मानते हैं कि इनका अभी प्रारब्ध भी नष्ट नहीं हुआ है। जिस प्रकार निरपराध रूपमें निर्धारित अजामिल द्वारा अपने पुत्रका नाम ग्रहण करनेमें तथा प्रतिदिन बार-बार उसे नाम ले-लेकर पुकारनेपर भी उसमें प्रेमका अभाव और दासीसङ्ग आदि पापोंमें भी प्रवृत्ति दीखती है और युधिष्ठिरादि पाण्डवोंमें प्रारब्धका अभाव होनेपर भी उनमें व्यवहारिक अनेक दुःखोंको देखा जाता है। इसलिए यह सिद्धान्त निरूपित होता है कि जैसे फल देनेवाला वृक्ष प्रायः समयपर ही फलता है, उसी तरह भगवन्नाम भी निरपराधियोंपर प्रसन्न होकर समयपर ही अपनी कृपा प्रकाशित करते हैं तथा भक्तोंके पूर्वाभ्यासवश किए गए पापसमूह भी विषरहित सर्पके काटनेकी तरह प्रभाव या क्रिया रहित ही होते हैं। भक्तोंमें जो रोग, शोक और दुःख दीखते हैं, वे प्रारब्धके फल नहीं होते। क्योंकि शास्त्रों में भगवान्ने स्वयं कहा है - "जिनपर मैं अनुग्रह करता हूँ उनकी सम्पत्ति मैं धीरे-धीरे हर लेता हूँ। दुःखसे दुःखित उस मेरे निर्धन भक्तको उसके बन्धु - बान्धव
त्याग देते हैं।" भगवान्ने और भी कहा है - "निर्धनतारूपी महारोग मेरी कृपाका लक्षण है।" इस प्रकारके अनेक वचन शास्त्रों में पाए जाते हैं। भक्तोंके हितकारी परम प्रवीण भगवान् ही अपने भक्तोंकी दीनता, उत्कण्ठा आदिकी वृद्धिके लिए उनको दुःख प्रदान करते हैं । अतएव भक्तोंमें कर्मफलका अभाव होनपर उनके समस्त दुःखादि प्रारब्धके फल नहीं होते, ऐसा तत्त्ववेत्ताओंका कहना है ।
सर्वग्रहप्रशमिनी नामक तृतीयामृतवृष्टिका भावानुवाद समाप्त ॥ ३ ॥
पीयूषवर्षिणी-वृत्ति - पहले यह कहा जा चुका है कि पुनः-पुनः नामकीर्त्तन आदि भजनका अनुष्ठान करनेपर भी प्रेमके लक्षणोंका उदित न होना ही अपराधके अस्तित्वका प्रमाण है। किन्तु ग्रन्थकारका कहना है, यह नियम सर्वत्र लागू नहीं होता। किसी-किसी निरपराध व्यक्तिमें भी प्रेमके लक्षणोंका अनुदय एवं उसकी पापमें प्रवृत्ति देखी जा सकती है। जिस प्रकार अजामिलका निरपराध होना सर्वत्र निर्धारित है, अन्यथा पुत्रके लिए उच्चारित नामाभासके फलसे उसकी रक्षा करनेके लिए विष्णुदूतोंका आगमन और उसकी वैकुण्ठ प्राप्ति कभी भी सङ्गत नहीं होती। उन्होंने सन्तानके बाल्यकालसे ही उसका नाम नारायण रखा था और प्रतिदिन अनेकों बार उसे 'नारायण' नामसे पुकारा करते थे, तथापि उसमें प्रेमोदयका कोई भी लक्षण नहीं देखा गया और पुनः - पुनः दासीके सङ्गरूप पापमें उसकी प्रवृत्ति भी थी, फिर भी वह निरपराध था, पूर्वाभ्यास वश दासीसङ्गरूप पापमें प्रवृत्ति भी उसके अपराधका चिह्न नहीं है। क्योंकि मृत्युके समय पुत्रके लिए नारायण नामका उच्चारणमात्रसे विष्णुके दूत उसकी रक्षा करनेके लिए उसके समीप आए, यही इसके लिए यथार्थ प्रमाण है। अतएव फलवान वृक्ष भी जिस प्रकार समय आनेपर ही फल देते हैं, उसी प्रकार श्रीहरि भी ऐसे निरपराध व्यक्तिके प्रति प्रसन्न होनेपर भी यथा समयपर ही उसको फल प्रदान करते हैं, ऐसा समझना होगा । अतः निरपराधी अजामिलके पूर्वाभ्यासवशतः जो पापराशि देखी गई, वह विष दन्तहीन सर्प दंशनकी भाँति अत्यन्त अकिञ्चित्कर या तुच्छ ही है, ऐसा समझना होगा ।
पुनः किसी-किसी भक्तके प्रारब्धके अभावमें भी रोग, शोक तथा दरिद्रता इत्यादि नाना प्रकारके व्यवहारिक दुःख और पापमें प्रवृत्ति देखकर कोई-कोई उनमें प्रारब्ध फलकी स्थिति ही समझते हैं। किन्तु महाराज युधिष्ठिरादि पञ्चपाण्डवोंका वनवास और नाना प्रकारके क्लेश, द्यूत-क्रीड़ामें प्रवृत्ति, क्या यह सब उनके प्रारब्धके कारण हैं? वे श्रीकृष्णके परिकर हैं। उनका प्रारब्ध आदि कुछ भी नहीं है, यह कहना ही बाहुल्यमात्र है। साधनभक्तिके द्वारा प्रारब्ध नाशकी बात पहले कही गई है। महाजनोंका कहना है कि ब्रह्मानुभवी ज्ञानियोंकी जीवन - मुक्ति दशामें भी भोगके बिना उनका प्रारब्ध नष्ट नहीं होता। ऐसा जो भीषण प्रारब्ध कर्म है, यहाँ वह भक्तिके नामकीर्त्तन आदि किसी एक अङ्गके अनुष्ठानसे जीवोंके हृदयमें आविर्भूत होनेपर अनायास ही नष्ट हो जाते हैं। श्रील रूपगोस्वामिपाद श्रीनामाष्टकमें कहते हैं२२८
यद्ब्रह्मसाक्षात्कृतिनिष्ठयापि, विनाशमायाति विना न भोगैः । अपैति नाम! स्फुरणेन तत्ते, प्रारब्धकर्मेति विरौति वेदः ॥
"हे नाम भगवन् ! जो प्रारब्धकर्म, भोगोंके बिना, ब्रह्मकी अविच्छिन्न तैलधारावत् की गई साक्षात्कारकी निष्ठाके द्वारा भी, विनष्ट नहीं हो पाता; वह प्रारब्धकर्म, आपकी स्फूर्तिमात्रसे ही अर्थात् भक्तोंकी जिह्वापर स्फुरण होनेमात्रसे ही दूर भाग जाता है, इस बातको वेद उच्च स्वरसे कहते हैं, अर्थात् ब्रह्मविद्याके साक्षात्कारसे, सञ्चित और क्रियमाण कर्मोंका नाश तो हो जाता है, किन्तु फल देनेके लिए प्रवृत्त पाप- पुण्यरूप प्रारब्ध कर्मोंका नाश तो भोगसे ही होता है, ब्रह्मविद्यासे नहीं । किन्तु वह प्रारब्ध कर्म भी, नामोच्चारण मात्रसे विनष्ट हो जाता है।" श्रीकृष्ण स्वयं उद्धवके प्रति कहते हैं - "भक्तिः पुनाति मनिष्ठा श्वपाकानपि सम्भवात् ।" अर्थात् "मन्निष्ठ भक्ति कुकुरभोजी चण्डालको भी जातिदोषसे पवित्र करती है ।" जातिदोष प्रारब्धकर्म जनित होता
। "कारण नाशसे कार्य नाश" इस न्यायके अनुसार कार्य स्थानीय जातिदोषका नाश स्वीकार करनेके कारण स्थानीय प्रारब्धका नाश
स्वीकृत हुआ। पुनः नामसंकीर्त्तन इत्यादिके द्वारा प्रारब्ध जनित आधि-व्याधि इत्यादि नाशका भी पुराणोंमें वर्णन किया गया हैआधयो व्याधयो यस्य स्मरणान्नामकीर्त्तनात्। तदैव विलयं यान्ति तमनन्तं नमाम्यहम् ॥
अर्थात् "जिनके स्मरण और नामसंकीर्त्तनसे आधि और व्याधि समूह तत्क्षण विनष्ट हो जाते हैं, मैं उन अनन्त भगवान्को प्रणाम करता हूँ। " इसीलिए भक्तोंके प्रारब्धके अभाव रहनेपर भी भगवान् करुणाकर उनमें दैन्य, आर्ति, उत्कण्ठा आदि वृद्धिके लिए भक्तोंको व्यवहारिक रोग-शोकादि एवं दुःख - दैन्यादि प्रदान किया करते हैं। श्रीमद्भागवतमें यह देखा जाता है कि श्रीकुन्तीदेवीने श्रीकृष्णके निकट विपदके लिए ही प्रार्थना की है। इस विपत्तिके भीतर जो प्रेमसम्पद छिपा हुआ है, वह सहज ही जाना जाता है।
श्रीभगवान्ने स्वयं मुखसे कहा है, "मैं जिसपर अनुग्रह करता हूँ, उसका शीघ्र ही समस्त धन हरण कर लेता हूँ । धन हरण करनेपर उसके आत्मीय स्वजन उसे दुःखी जानकर उसका त्याग कर देते हैं। तभी वह निराश्रय व्यक्ति श्रीभगवान्के चरणों में सब प्रकारसे आश्रय ग्रहण करता है।" भगवान् और भी कहते हैं, "निर्धनता रूप महारोग मेरे अनुग्रहका लक्षण है।" अतः भक्तोंके कल्याणके लिए ही श्रीभगवान् स्वेच्छापूर्वक उनको दुःख, दैन्य इत्यादि प्रदान किया करते हैं। इसलिए भक्तोंमें कर्मफलके अभावके कारण इन दुःखोंको कभी भी प्रारब्धका फल नहीं कहा जा सकता ।
सर्वग्रहप्रशमिनी नामक तृतीयामृतवृष्टिकी पीयूषवर्षिणी-वृत्ति समाप्त ॥३॥ |
26ad19ad7afcf80b923e06eced33723460475a82 | web | एक कानूनी इकाई की स्थिति में उद्यम, मेंरूसी संघ के कानून के अनुसार, रिकॉर्ड रखने की आवश्यकता है। इस प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले मुख्य नियमों में से एक पीबीयू 4/99 है। इसकी मुख्य विशेषताएं क्या हैं? इस नियामक अधिनियम में निर्धारित मानकों के मुताबिक रिपोर्टिंग दस्तावेजों की संरचना क्या होनी चाहिए?
पीबीयू 4/99 विनियमन क्या है?
कानून के स्रोत को परिसंचरण में रखा जाता हैरूसी संघ सं। 43 एन के वित्त मंत्रालय का आदेश, जिसे 6 जुलाई, 1 999 को जारी किया गया था। इस विनियमन को विनियमन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उनका पूरा नाम - स्थिति लेखांकन "संगठन के लेखांकन विवरण" (पीबीयू 4/99)।
कानून का उचित स्रोत क्या है? यह विनियमन संरचना को परिभाषित करता है, साथ ही वित्तीय विवरणों को रखने के लिए उद्यमों के लिए पद्धतिगत नींव भी परिभाषित करता है।
कानून के विचाराधीन स्रोत का अधिकार क्षेत्रबैंकों के साथ-साथ राज्य और नगरपालिका संरचनाओं को छोड़कर, सभी कानूनी संस्थाओं पर लागू होता है। इसके अलावा, पीबीयू 4/99 लागू नहीं किया जा सकता है यदि वित्तीय विवरणों को किसी भी उद्यम द्वारा आंतरिक आवश्यकताओं के लिए तैयार किया जाता है, ताकि व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा सांख्यिकीय संस्थाओं द्वारा सांख्यिकीय रिपोर्टिंग और लेखांकन दस्तावेज प्रदान करने के लिए वित्त मंत्रालय 43 के आदेश द्वारा सीधे नियंत्रित नहीं किया जा सके।
प्रश्न में दस्तावेज़ का उपयोग तैयारी में नहीं किया जाना चाहिएः
- आंतरिक उद्देश्यों के लिए एक आर्थिक इकाई द्वारा उत्पन्न रिपोर्टिंग, साथ ही संस्थानों के लिए संकलित आंकड़े;
- स्थापित आवश्यकताओं के अनुसार बैंकिंग संगठन द्वारा तैयार की गई जानकारी, जब तक कि अन्यथा अलग-अलग नियमों द्वारा प्रदान नहीं किया जाता।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि मानदंडों का प्रासंगिक स्रोत सीधे वित्त मंत्रालय द्वारा उपयोग किया जा सकता हैः
- रिपोर्टिंग टेम्पलेट्स की परिभाषाओं के साथ-साथ उनके लिए दिशानिर्देश;
- छोटे व्यवसायों और एनपीओ के लिए विशेष रिपोर्टिंग प्रक्रियाएं;
- समेकित रिपोर्ट बनाने के लिए नियमों की स्थापना, साथ ही एक उद्यम की स्थिति में बदलाव के लिए दस्तावेज़ीकरण।
इस प्रकार, प्रश्न में मानक एक व्यापक क्षेत्राधिकार के साथ एक सार्वभौमिक स्रोत है।
कानून के माना जाने वाला स्रोत कई परिभाषाओं को स्थापित करता है जिन्हें रिपोर्टिंग के दौरान उद्यमों का पालन करना चाहिए।
हम शर्तों की परिभाषा के बारे में बात कर रहे हैं जैसेः
- लेखा विवरण;
- रिपोर्टिंग की तारीख, अवधि;
- उपयोगकर्ता।
लेखांकन कथनों के तहत, के अनुसारPBU 4/99 के प्रावधान, इसे कंपनी की वित्तीय स्थिति के साथ-साथ कंपनी की व्यावसायिक गतिविधियों के परिणामों के बारे में जानकारी का एक एकल अंतर-कॉर्पोरेट सिस्टम समझा जाना चाहिए, जो लेखांकन में परिलक्षित होने वाली जानकारी के आधार पर संकलित किया गया है।
पीबीयू 4/99 में रिपोर्टिंग अवधि के तहतअवधि जिसमें संगठन में उपयुक्त प्रकार की रिपोर्टिंग का गठन किया जाना चाहिए। रिपोर्टिंग की तारीख को समझा जाता है, बदले में, वह तारीख जिसके बारे में आर्थिक इकाई रिपोर्ट प्रदान करने के लिए बाध्य है।
एक और शब्द जो सामने आया हैप्रश्न में अधिकार का स्रोत उपयोगकर्ता है। इस तरह का अर्थ एक प्राकृतिक व्यक्ति या एक संगठन है जो आर्थिक इकाई के बारे में जानकारी प्राप्त करने में रुचि रखते हैं।
पीबीयू 4/99 में "संगठन के लेखांकन विवरण" उद्यम के प्रासंगिक दस्तावेज की संरचना, साथ ही साथ इसके लिए आवश्यकताओं द्वारा निर्धारित किया जाता है। उन पर विचार करें।
PBU 4/99 "संगठन के वित्तीय विवरण" के प्रावधानों के अनुसार, कंपनी के वित्तीय विवरणों में शामिल हैंः
- संतुलन;
- लाभ और हानि बयान;
- बैलेंस शीट और रिपोर्ट के लिए विशेष पूरक;
- व्याख्यात्मक नोट;
- कानून द्वारा प्रदान किए गए मामलों में - एक ऑडिट रिपोर्ट।
बदले में, कानून का माना स्रोत कंपनी के वित्तीय वक्तव्यों के लिए आवश्यकताओं की एक विस्तृत श्रृंखला स्थापित करता है। हम उनका अध्ययन करते हैं।
PBU 4/99 के अनुसार "लेखासंगठन के कथन ", उद्यम द्वारा बनाए गए दस्तावेजों को मज़बूती से और आवश्यक पूर्णता के साथ व्यापार में मामलों की स्थिति, कंपनी की व्यावसायिक गतिविधियों के परिणामों और कंपनी के आर्थिक प्रदर्शन की विशेषता वाले रुझानों को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
पूर्णता और विश्वसनीयता के लिए मुख्य मानदंडरिपोर्टिंग - सक्षम अधिकारियों द्वारा अपनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित नियमों का अनुपालन। यदि प्रासंगिक दस्तावेजों के गठन से कुछ आंकड़ों की अपर्याप्तता का पता चलता है, तो कंपनी को रिपोर्टिंग में आवश्यक अतिरिक्त संकेतक और स्पष्टीकरण करना चाहिए।
चरम स्थिति में, पीबीयू 4/99 इस परिदृश्य की अनुमति देता है, एक उद्यम स्थापित मानदंडों से विचलित हो सकता है, अगर यह उद्देश्य कारणों से आवश्यक संकेतक प्राप्त करना संभव नहीं है।
कार्य के दौरान एकत्र की गई जानकारीरिपोर्टिंग तटस्थ होनी चाहिए। इसका आवेदन वित्तीय परिणामों के मूल्यांकन के दौरान सक्षम व्यक्तियों द्वारा किए गए निर्णयों को प्रभावित नहीं करना चाहिए।
वित्तीय वक्तव्यों के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकताकानूनी इकाई - इसमें सभी डिवीजनों, प्रतिनिधि कार्यालयों और साथ ही अन्य संरचनाओं के आर्थिक गतिविधियों के परिणामों को दर्शाते हुए संकेतक शामिल होने चाहिए, जिनमें अलग-अलग शेष राशि शामिल हैं।
कंपनी को सबसे महत्वपूर्ण प्रदान करने की आवश्यकता हैलेखांकन विनियमों "संगठन के वित्तीय विवरण" (PBU 4/99) का अनुपालन, जो दस्तावेजों के क्रमिक गठन में होता है, उस खाते की संरचना की निरंतरता को ध्यान में रखते हुए जिसमें विभिन्न रिपोर्टिंग अवधि के लिए संकेतक दर्ज किए जाते हैं। एक बैलेंस शीट के लिए आधार के रूप में उपयोग किए गए दस्तावेजों के रूपों, एक रिपोर्ट जो मुनाफे और नुकसान को ठीक करती है, और ऐसे स्रोत भी हैं जो उन्हें पूरक करते हैं, इसलिए उन्हें स्थायी होना चाहिए। वे असाधारण मामलों में परिवर्तन के अधीन हैं। एक विकल्प के रूप में - यदि कंपनी की गतिविधि का प्रकार बदलता है। इसी समय, संगठन को बैलेंस शीट के लिए अलग-अलग स्पष्टीकरण के माध्यम से संबंधित परिवर्तनों को प्रमाणित करने के लिए तैयार होना चाहिए, साथ ही साथ लाभ और हानि को दर्शाती एक रिपोर्ट भी।
लेखा विवरण, इसकी संरचना और सामग्री(पीबीयू 4/99 के लेखांकन पर विनियमन में प्रासंगिक मानक शामिल हैं) अलग-अलग रिपोर्टिंग अवधि के लिए संकेतकों की निरंतरता को ध्यान में रखते हुए बनाया जाना चाहिए। प्रासंगिक डेटा के बीच विसंगतियों का पता लगाने के मामले में, लेखाकार कुछ संकेतकों के आवश्यक समायोजन कर सकता है। इस मामले में, इसके बारे में जानकारी बैलेंस शीट के अतिरिक्त परिवर्धन और उद्यम के लाभ और हानि को दर्शाती एक रिपोर्ट में दिखाई देनी चाहिए।
कई बारीकियां हैं जो निर्धारण को चिह्नित करती हैंप्रमुख संकेतकों के वित्तीय वक्तव्यों में - वे दस्तावेज़ "संगठन के वित्तीय विवरण" PBU 4/99 के लिए भी प्रदान किए जाते हैं। संक्षेप में उनके बारे में निम्नानुसार उल्लेख किया जा सकता है। कंपनी की संपत्ति, देनदारियों, राजस्व और खर्चों के बारे में संकेतक अलग से परिलक्षित होने चाहिए, यदि वे कंपनी में मामलों की स्थिति के एक विश्वसनीय मूल्यांकन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। बदले में, इन संकेतकों को बैलेंस शीट में जोड़ और रिपोर्ट में परिलक्षित किया जा सकता है, अगर वे व्यवसाय की स्थिति का आकलन करने के लिए विशेष महत्व के नहीं हैं।
नियामक के अनुसारस्रोत, लेखा दस्तावेज बनाते समय, उद्यम को ध्यान में रखना चाहिए कि संबंधित अवधि के अंतिम कैलेंडर दिन को रिपोर्टिंग तिथि माना जाना चाहिए। रिपोर्टिंग वर्ष 1 जनवरी से 31 दिसंबर की अवधि के अनुरूप है। एक नए संगठन के लिए पहला रिपोर्टिंग वर्ष निगमन की तारीख से 31 दिसंबर तक की अवधि है। यदि 1 अक्टूबर के बाद एक फर्म की स्थापना की जाती है, तो इसके लिए पहला रिपोर्टिंग वर्ष राज्य निकायों के साथ पंजीकरण की तारीख से 31 दिसंबर तक की अवधि से मेल खाता है, इस प्रकार अगले वर्ष।
के लिए अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकताओं पर विचार करेंPBU 4/99 के लिए वित्तीय विवरणों का गठन। इसलिए, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इसके प्रत्येक घटक - बैलेंस शीट, रिपोर्ट, उनके अतिरिक्त, ऑडिट रिपोर्ट - में शामिल होना चाहिएः
- नाम;
- रिपोर्टिंग दिनांक या अवधि जिसके लिए रिपोर्टिंग प्रदान की जाती है;
- दस्तावेजों को प्रदान करने वाली कंपनी का नाम;
- व्यवसाय के कानूनी रूप की जानकारी;
- रिपोर्टिंग के लिए रिपोर्टिंग प्रारूप।
लेखा विनियमों "एक संगठन की लेखा रिपोर्ट" PBU 4/99 के अनुमोदन पर आदेश के लिए प्रलेखन संकलन के लिए एकाउंटेंट की आवश्यकता होती हैः
- रूसी में;
- रूबल में आंकड़े इंगित करें।
प्रासंगिक कथनों द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिएः
- कंपनी के प्रमुख;
- मुख्य लेखाकार या अन्य कर्मचारी जो लेखांकन बनाए रखने के लिए प्राधिकरण का उपयोग करते हैं।
यह दो प्रमुख वित्तीय वक्तव्यों की संरचना का अध्ययन करने के लिए उपयोगी होगा - बैलेंस शीट और रिपोर्ट, जो कंपनी के मुनाफे और नुकसान को दर्शाती है। पहले स्रोत से शुरू करते हैं।
बैलेंस शीट में एक परिसंपत्ति और एक देयता होती है। संबंधित संकेतक रिपोर्टिंग तिथि में कंपनी की आर्थिक स्थिति की विशेषता रखते हैं। कंपनी की संपत्ति और देनदारियों के लिए, उन्हें अल्पकालिक और दीर्घकालिक में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। पहले वे हैं जिनकी अवधि 12 महीने से अधिक नहीं है। दूसरा - इसके विपरीत, जो अनुबंध के समापन के बाद और बाद में बाध्य पार्टी द्वारा भुनाया जा सकता है।
अगला सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज एक रिपोर्ट है जिसमेंलाभ और हानि के संकेतक को दर्शाता है। इस स्रोत का उपयोग, विशेष रूप से, PBU 4/99 "संगठन के लेखांकन विवरण" के आधार पर आय का वर्गीकरण किया जा सकता है। विचाराधीन दस्तावेज़ को रिपोर्टिंग अवधि के दौरान कंपनी के व्यवसाय के परिणामों को प्रतिबिंबित करना चाहिए। इसमें मुख्य संकेतक मेल खाते हैं, इस प्रकार, आय और व्यय जो सामान्य और अन्य पर वर्गीकृत किए जाते हैं।
अन्य प्रमुख प्रकार के स्रोतों में शामिल हैंकंपनी के लेखा विवरण - बैलेंस शीट की व्याख्या और कंपनी के लाभ और हानि को दर्शाती एक रिपोर्ट। इसके अलावा उन सूचनाओं का खुलासा करना है जो किसी कंपनी की लेखा नीतियों से संबंधित हैं और इच्छुक पार्टियों के लिए कंपनी के वित्तीय संकेतकों का एक विश्वसनीय मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक हैं।
मामले में स्पष्टीकरण को प्रतिबिंबित करने के लिए आवश्यक हैंबयान की तैयारी में कंपनी के सक्षम विशेषज्ञ द्वारा बनाए गए नियमों से विचलन, इस विचलन की धारणा के कारण को ठीक करता है। इसके अलावा, कंपनी को उद्यमों के लिए वित्तीय विवरणों की तैयारी को नियंत्रित करने वाले कानून का अनुपालन न करने की धारणा के वित्तीय परिणामों को प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है।
लेखांकन के रिपोर्टिंग स्रोतों के अतिरिक्तसंगठन के व्यवसाय से सीधे संबंधित जानकारी को प्रतिबिंबित करना चाहिए, और जानकारी के संदर्भ में इसका खुलासा करना चाहिए, जो लेखांकन डेटा द्वारा पुष्टि की जाती है। इस प्रकार, उद्यम में आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी की विश्वसनीयता बढ़ाने पर, प्रश्न में स्रोतों को प्राप्त करने में रुचि रखने वाला व्यक्ति सबसे पहले निर्भर करता है।
प्रासंगिक पूरक के लिए अनिवार्य मानदंडPBU 4/99 "एक संगठन की लेखा रिपोर्ट" - यदि निगम की प्रबंधन नीति के आधार पर, कानूनों और आंतरिक नियमों का अनुपालन किया जाता है। यदि फाइनेंसरों को किसी भी मानदंड को छोड़ना पड़ता है, तो इसे विचाराधीन संशोधनों में दर्ज किया जाना चाहिए। इस प्रकार, संबंधित दस्तावेज किसी भी इच्छुक पार्टियों के लिए पारदर्शी होने चाहिए।
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ee73acf7ac6c2aab1a9ece6f4bb78677b4614e72 | web | 1. प्राचीन भारत के इतिहास के संदर्भ में, भवभूति, हस्तिमल्ल तथा क्षेमेश्वर क्यो प्रसिद्ध थे?
उत्तरः (b)
व्याख्याः 8वीं सदी के विद्वान भवभूति संस्कृत में लिखे अपने नाटकों और कविताओं के लिये विख्यात् हैं। उनके द्वारा लिखित नाटक 'मालती माधव' प्रसिद्ध है।
- हस्तिमल्ल होयसल राज में रहने वाले एक जैन नाटककार थे जो दिगंबर जैन कथाओं को आधार बनाकर संस्कृत में नाटक लिखते थे। उनके द्वारा कई नाटक लिखे गए जिनमें से चार नाटक प्राप्त हैं- मैथिली कल्याण, विक्रांत कौरव, अञ्जना पवनंजय और सुभद्रा (नाटिका)।
- क्षेमेश्वर एक नाटककार थे जिन्होंने 'चंडकौशिक' नामक नाटक की रचना की थी। इस प्रकार भवभूति, हस्तिमल्ल और क्षेमेश्वर 'नाटककार' थे अतः विकल्प (b) सही है।
- 1919 के मॉन्टेग्यू-चेम्सफड़ॱर सुधारों में, 21 वर्ष से अधिक आयु की सभी महिलाओं के लिये मताधिकार की संस्तुति की गई।
- 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में, विधानमंडल में महिलाओं के लिये आरक्षित स्थानों का प्रावधान किया गया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
उत्तरः (b)
व्याख्याः 1919 के मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों में 21 वर्ष से अधिक आयु की सभी महिलाओं को मताधिकार की संस्तुति नहीं की गई थी। अतः कथन 1 गलत है यद्यपि 1919 के भारत शासन अधिनियम में प्रांतीय परिषदों को महिलाओं को मताधिकार देने के नियम बनाने के लिये कहा गया था जो संपत्ति, आय और शिक्षा पर आधारित हो।
- इस आधार पर 1919 में मद्रास शहर, 1920 में त्रावणकोर और झालवाड़, 1921 में बंबई और मद्रास प्रांत में सीमित मात्रा में महिलाओं को मताधिकार दिया गया। गोलमेज़ सम्मेलन ने मत देने के लिये महिलाओं की उम्र 21 वर्ष करने की सिफारिश की थी।
- 1935 के अधिनियम में और अधिक महिलाओं को मताधिकार मिला लेकिन कुल मिलाकर 2.5% महिलाओं तक ही सीमित था। उनके लिये संप्रदाय के आधार पर विधान मंडल में स्थान आरक्षित किया गया। यद्यपि वे किसी भी अनारक्षित स्थान पर भी चुनाव लड़ सकती थीं। अतः कथन 2 सही है। अतः विकल्प (b) सही है।
3. भारतीय इतिहास में 8 अगस्त, 1942 के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है?
(a) ए.आई.सी.सी. द्वारा भारत छोड़ो प्रस्ताव अंगीकार किया गया।
(b) वायसराय की एक्जेक्यूटिव काउंसिल का विस्तार अधिक संख्या में भारतीयों को सम्मिलित करने के लिये किया गया।
(c) सात प्रांतों में कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दिया।
(d) क्रिप्स ने प्रस्ताव रखा कि द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होते ही संपूर्ण डोमिनियन स्टेटस वाले भारतीय संघ की स्थापना की जाएगी।
उत्तरः (a)
व्याख्याः 8 अगस्त, 1942 को ए.आई.सी.सी. (All India Congress Committee) के बंबई अधिवेशन में गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया था। अतः विकल्प (a) सही है।
4. इनमें से कौन अंग्रेज़ी में अनूदित प्राचीन भारतीय धार्मिक गीतिकाव्य- 'सॉन्ग्स फ्रॉम प्रिज़न' से संबद्ध है?
उत्तरः (c)
व्याख्याः येरवडा जेल, पूना में गांधी जी ने भारतीय धार्मिक गीतिकाव्य का अनुवाद अंग्रेज़ी में 'सॉन्ग्स प्रॉम प्रिज़न' नाम से किया था। अतः विकल्प (c) सही है।
5. मध्यकालीन भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा आकार की दृष्टि से आरोही क्रम में सही अनुक्रम है?
उत्तरः (a)
व्याख्याः मध्यकालीन भारत में राज्य का प्रशासनिक विभाजन सूबा यानी प्रांत/प्रदेश में, सूबा का सरकार (यानी आधुनिक तहसील/अनुमंडल) और परगने का विभाजन गाँव में किया जाता था। अतः सबसे छोटी इकाई गाँव, उससे बड़ी परगना, परगना से बड़ी सरकार और सरकार से बड़ी इकाई सूबा होती थी। अतः विकल्प (a) सही है।
6. इनमें से कौन सेक्रेटरी के रूप में हिंदू फीमेल स्कूल से संबद्ध थे/थीं, जो बाद में बेथ्यून फीमेल स्कूल के नाम से जाना जाने लगा?
उत्तर (c)
व्याख्याः बेथ्यून ने 1849 में कोलकाता में कलकत्ता महिला विद्यालय के नाम से दक्षिणा रंजन मुखर्जी के वित्तीय सहयोग से एक विद्यालय खोला जो बाद में हिंदू महिला विद्यालय और उसके बाद बेथ्यून विद्यालय के नाम से जाना गया। 1879 में इसे कॉलेज के रूप में विकसित किया गया। यह भारत का पहला वूमेन कॉलेज बना और एशिया का पहला महिला विद्यालय। इसी विद्यालय से सेक्रेटरी के रूप में ईश्वरचंद्र विद्यासागर जुड़े हुए थे। इस प्रकार विकल्प (c) सही है।
(a) स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नेता के रूप में।
(b) 1946 की अंतरिम सरकार के सदस्यों के रूप में।
(c) संविधान सभा में प्रारूप समिति के सदस्यों के रूप में।
(d) आज़ाद हिंद फौज (इंडियन नेशनल आर्मी) के अधिकारियों के रूप में।
उत्तर (d)
व्याख्याः 1945 में आज़ाद हिंद फौज के सिपाही सरदार गुरुबख्श सिंह, श्री प्रेम सहगल व शाहनवाज़ पर सरकार के प्रति निष्ठा की शपथ तोड़ने के आरोप पर लाल किले में मुकदमा चलाया गया। उनका बचाव भूलाभाई देसाई के नेतृत्व में तेबहादूर सप्रू, काटजू तथा जवाहरलाल नेहरू ने भी किया। एक संक्षिप्त सुनवाई के पश्चात् उन्हें मृत्युदंड सुनाया गया। लेकिन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने जन-भावना को देखते हुए उनको क्षमा प्रदान कर दिया। अतः विकल्प (d) सही है।
8. भारतीय इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
- हैदराबाद राज्य से आरकोट की निज़ामत का उदय हुआ।
- विजयनगर साम्राज्य से मैसूर राज्य का उदय हुआ।
- रुहेलखंड राज्य का गठन, अहमद शाह दुर्रानी द्वारा अधिकृत राज्यक्षेत्र में से हुआ।
व्याख्याः कर्नाटक जिसकी राजधानी आरकोट थी, मुगल दक्कन का एक सूबा था और इस प्रकार हैदराबाद के निज़ाम के तहत आता था। लेकिन जिस प्रकार निज़ाम ने अपने को दिल्ली की मुगल सरकार से स्वतंत्र कर लिया था, उसी प्रकार कर्नाटक के उप-सूबेदार ने दक्कन के निज़ाम से स्वयं को स्वतंत्र कर लिया। इस प्रकार कर्नाटक के नवाब सदातुल्ला खान ने अपने भतीजे दोस्त अली को अपनी गद्दी सौंपी। अतः कथन 1 सही है।
- विजयनगर के पतन के पश्चात् मैसूर वाडयार वंश के शासन में एक स्वतंत्र राज्य के रूप में उभरा। अतः कथन 2 सही है।
- नादिरशाह के आक्रमण के पश्चात् मुगल प्रशासन के संकट काल में अली मुहम्मद खान ने रुहेलखंड नाम से एक नए राज्य का गठन किया जो उत्तर में कुमाऊँ की पहाड़ियों तथा दक्षिण में गंगा तक विस्तृत था। आरंभ में इसकी राजधानी बरेली के आवलां में स्थित थी जो बाद में रामपुर में स्थानांतरित कर दी गई। रुहेलों का संघर्ष दिल्ली, अवध और जाट राज्य से लगातार चलता रहता था। अतः कथन 3 गलत है। अतः विकल्प (a) सही है।
9. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है?
(a) अजंता गुफाएँ, वाघोरा नदी की घाटी में स्थित हैं।
(b) साँची स्तूप, चंबल नदी की घाटी में स्थित है।
(c) पांडू-लेणा गुफा देव मंदिर, नर्मदा नदी की घाटी में स्थित है।
(d) अमरावती स्तूप, गोदावरी नदी की घाटी में स्थित है।
व्याख्याःअजंता गुफा दक्कन पठार में वाघोर नदी घाटी में स्थित है। अतः विकल्प (a) सही है।
- साँची स्तूप, बेतवा नदी की घाटी में स्थित है।
- पांडू-लेणा गुफा देव, मंदिर नासिक में स्थित है, जहाँ गोदावरी नदी का उद्गम स्थल है।
- अमरावती स्तूप, कृष्णा नदी घाटी में स्थित है।
- यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया गया।
- पाकिस्तान की संविधान सभा में यह मांग रखी गई कि राष्ट्रभाषाओं में बांग्ला को भी सम्मिलित किया जाए।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्या 17 नवंबर, 1999 को पहली बार यूनेस्को (UNESCO) ने '21 फरवरी' को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया था। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा अपने प्रस्ताव 56/262 द्वारा अपना लिया गया। अतः कथन 1 गलत है।
- 7 मई, 1954 को मुस्लिम लीग के समर्थन से पाकिस्तान की संविधान सभा ने बांग्ला भाषा को राजभाषा (राष्ट्रभाषा) का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित किया। 29 फरवरी, 1956 को पाकिस्तान के पहले संविधान में अनुच्छेद 214(1) में उर्दू के साथ बांग्ला भाषा को भी राजभाषा का दर्जा दिया गया था। अतः कथन 2 सही है। अतः विकल्प (b) सही है।
- यह कच्छपघात राजवंश के शासनकाल में निर्मित एक वृत्ताकार मंदिर है।
- यह भारत में निर्मित एकमात्र वृत्ताकार मंदिर है।
- इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में वैष्णव पूजा-पद्धति को प्रोत्साहन देना था।
- इसके डिज़ाइन से यह लोकप्रिय धारणा बनी कि यह भारतीय संसद भवन के लिये प्रेरणा-स्रोत रहा था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः मितौली गाँव, मुरैना (मध्य प्रदेश) स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण 1323 ई. में कच्छपघात राजा देवपाल ने करवाया था। अतः कथन 1 सही है।
- हीरापुर, भुवनेश्वर स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर भी वृत्ताकार है। अतः यह एक मात्र वृत्ताकार मंदिर नहीं है। अतः कथन 2 गलत है।
- चौंसठ योगिनी मंदिर देवी पार्वती के मंदिर हैं जो तंत्र तथा शैव पूजा पद्धति को बढ़ावा देते हैं। अतः कथन 3 गलत है।
- चौंसठ योगिनी मंदिर के वृत्ताकार रूप को संसद भवन के लिये प्रेरणास्रोत के रूप में देखा जाता है। अतः कथन 4 सही है। अतः विकल्प (c) सही है।
12. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बांधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था?
व्याख्याः हड़प्पा सभ्यता के एक प्रमुख नगर धौलावीरा की अनूठी विशेषताओं में से एक है। उसका उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली पूरी तरह से पत्थरों से निर्मित है। यहाँ विशाल जलराशि के कुंड, बंाध, नहर और तटबंध मिले हैं। सबसे प्राचीन जलसंभरण प्रणाली का विकास यहीं हुआ था। यहाँ से स्टेडियम के अवशेष और 10 बड़े आकार के संकेताक्षर वाला अभिलेख भी मिला है। अतः विकल्प (a) सही है।
13. सत्रहवीं शताब्दी के पहले चतुर्थांश में, निम्नलिखित में से कहाँ इंग्लिश 'ईस्ट इंडिया कंपनी' का कारखाना/के कारखाने स्थित था/थे?
व्याख्याःसर थॉमस रो ने जहाँगीर से अनुमति लेकर अहमदाबाद, भरूच और आगरा में फैक्टरियाँ स्थापित की थीं। चिकाकोल और त्रिचनापोली में ईस्ट इंडिया कंपनी का कारखाना नहीं था। अतः विकल्प (a) सही है।
14. गुप्त वंश के पतन से लेकर आरंभिक सातवीं शताब्दी में हर्षवर्धन के उत्थान तक उत्तर भारत में निम्नलिखित में से किन राज्यों का शासन था?
उत्तरः (b)
- थानेसर के पूष्यभूति जिस वंश से हर्षवद्धन संबंधित था।
- कन्नौज के मौखरि जिसके राजा गृहवर्मन से हर्ष की बहन राज्यश्री का विवाह हुआ था।
- वल्लभी के मैत्रक वंशी ध्रुवसेन द्वितीय से हर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह किया था।
- मालवा के परमार और देवगिरि के यादव दक्कन में शासन किये। उनका शासनकाल 10वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी के मध्य था। जबकि गुप्त वंश का पतन और हर्ष का उत्थान 6-7वीं शताब्दी में हुआ था। अतः विकल्प (b) सही है।
15. पुर्तगाली लेखक नूनिज़ के अनुसार, विजयनगर साम्राज्य में महिलाएँ निम्नलिखित में से किन क्षेत्रों में निपुण थीं?
व्याख्याः 1535 से 1537 के मध्य पुर्तगाली यात्री नूनिज़ ने विजयनगर की यात्रा की थी और उसने वहाँ की सामाजिक-आर्थिक दशा का विस्तृत वर्णन किया था। इस समय अच्चुत देवराय का शासन था। नूनिज़ के अनुसार विजयनगर में स्त्रियों का बहुत सम्मान था। कुछ स्त्रियाँ मल्लयोद्धा, ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, अंगरक्षिकाएँ, सुरक्षाकर्मी, लेखाधिकारी, लिपिक एवं संगीतकार होती थीं। वे युद्ध में भी भाग लेती थीं। अतः विकल्प (d) सही है।
16. आंध्र प्रदेश में मदनपल्ली के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(a) पिंगली वेंकैया ने यहाँ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का डिज़ाइन किया।
(b) पट्टाभि सीतारमैया ने यहाँ से आंध्र क्षेत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया।
(c) रवींद्रनाथ टैगोर ने यहाँ राष्ट्रगान का बांग्ला से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया।
(d) मैडम ब्लावात्स्की तथा कर्नल ऑलकॉट ने सबसे पहले यहाँ थियोसोफिक़ल सोसाइटी का मुख्यालय स्थापित किया।
व्याख्याः गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने 1919 में 'जन गण मन' को बांग्ला से अंग्रेज़ी में अनुवाद मदनपल्ली (चिक्तर, आंध्र प्रदेश) के बेसेंट थियोसोफिकल कॉलेज (एनी बेसेंट द्वारा स्थापित) में किया था। इसकी धुन भी उसी समय उन्होंने बनाई। उस समय कॉलेज के प्रधानाध्यापक शिक्षाविद् जेम्स हेनरी कजिन की पत्नी मार्गरेट कजिन ने 'जन गण मन' को संगीतबद्ध किया। अतः विकल्प (c) सही है।
(ऐतिहासिक स्थान) (ख्याति का कारण)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
व्याख्याः बुर्ज़होम कश्मीर का एक नवपाषाणकालीन स्थल है जहाँ से गर्तावास के साक्ष्य मिले हैं। आखेट पर आश्रित मानव इस समय मंदिर का निर्माण करना नहीं जानता था। अतः पहला युग्म गलत है।
- उत्तरी 24 परगना ज़िला, पश्चिम बंगाल में स्थित चंद्रकेतुगढ़ का उल्लेख टॉलेमी ने 'गंगेरीदाई' नाम से किया है। यहाँ की खुदाई में टेराकोटा (पकी मिट्टी) की मूर्तियाँ मिली हैं। यह स्थल मौर्य, मौर्योत्तर, गुप्त-गुप्तोत्तर काल में आबाद था। यहाँ से गुप्तकालीन सोने और चांदी के सिक्के भी मिले हैं। अतः युग्म 2 सही है।
- राजस्थान के सीकर ज़िले की नीम का थाना तहसील में स्थित गणेश्वर से ताम्र वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं जिनमें शामिल हैं- बाणाग्र, मछली का काँटा, चूड़ी, शूलाग्र, छेनी आदि। अतः युग्म 3 सही है।
- अतः विकल्प (d) सही है।
- इल्तुतमिश के शासनकाल में, चंगेज़ खान भगोड़े ख्वारिज़्म युवराज की खोज में सिंधु नदी तक पहुँचा था।
- मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में, तैमूर ने मुल्तान पर अधिकार किया था और सिंधु नदी पार की थी।
- विजयनगर साम्राज्य के देवराय द्वितीय के शासनकाल में, वास्को-द-गामा केरल के तट पर पहुँचा था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः मंगोलों के महान नेता चंगेज खान ने पर्शिया (ईरान) पर आक्रमण कर उसके शासक अलाउद्दीन मुहम्मद ख्वारिज़्मशाह का साम्राज्य नष्ट कर दिया और उसे जान बचाकर कैस्पियन समुद्रतट की ओर भागने पर मजबूर कर दिया। ख्वारिज़्मशाह का बड़ा बेटा युवराज जलालुद्दीन मांगबर्नी भारत की ओर सिंधु नदी तट तक भाग कर आया, जहाँ तक मंगोलों ने उसका पीछा किया। उसने इल्तुतमिश से मंगोलों के विरुद्ध सहायता की अपील की लेकिन चंगेज खान के आक्रमण के भय से इल्तुतमिश ने उसकी मदद करना स्वीकार नहीं किया। अतः कथन 1 सही है।
- मुहम्मद बिन तुगलक का शासन काल 1325-1351 ई. तक था, जबकि तैमूर ने भारत पर 1398-99 के दौरान आक्रमण किया अतः कथन 2 गलत है।
- विजयनगर के राजा देवराय द्वितीय का शासन काल 1424-1446 ई. तक था, जबकि वास्को-द-गामा 1498 ई. में भारत के कालीकट के तट पर पहुँचा था। अतः कथन 3 असत्य है। अतः विकल्प (a) सही है।
- संत फ्रांसिस ज़ेवियर, जेसुइट संघ (ऑर्डर) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
- संत फ्रांसिस ज़ेवियर की मृत्यु गोवा में हुई तथा यहाँ उन्हें समर्पित एक गिरजाघर है।
- गोवा में प्रति वर्ष संत फ्रांसिस ज़ेवियर के भोज का अनुष्ठान किया जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः संत फ्रांसिस ज़ेवियर का जन्म स्पेन के ज़ेवियर में हुआ था। वे संत इग्नेशियस के मित्र थे और उन्होंने उनके साथ मिलकर जेसुइट संघ की स्थापना की थी। अतः कथन 1 सही है।
- संत फ्रांसिस ज़ेवियर की मृत्यु 3 दिसंबर, 1552 को चीन के शेगंचुआन द्वीप पर हुई। 1553 में उन्हें गोवा में दफनाया गया। अतः कथन 2 गलत है।
- प्रत्येक वर्ष 3 दिसंबर को गोवा में संत ज़ेवियर के भोज का अनुष्ठान किया जाता है। अतः कथन 3 सही है। अतः विकल्प (c) सही है।
20. प्राचीन भारत के इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
- मिताक्षरा ऊँची जाति की सिविल विधि थी और दायभाग निम्न जाति की सिविल विधि थी।
- मिताक्षरा व्यवस्था में, पुत्र अपने पिता के जीवनकाल में ही संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे, जबकि दायभाग व्यवस्था में पिता की मृत्यु के उपरांत ही पुत्र संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे।
- मिताक्षरा व्यवस्था किसी परिवार के केवल पुरुष सदस्यों के संपत्ति-संबंधी मामलों पर विचार करती है, जबकि दायभाग व्यवस्था किसी परिवार के पुरुष एवं महिला सदस्यों, दोनों के संपत्ति-संबंधी मामलों पर विचार करती है।
व्याख्याः विज्ञानेश्वर द्वारा याज्ञवल्क्य स्मृति पर लिखी गई टीका मिताक्षरा पूरे देश में (बंगाल, असम तथा उड़ीसा एवं बिहार के कुछ भागों को छोड़कर जहाँ दायभाग व्यवस्था लागू थी) संपत्ति के अधिकार के लिये कानून की सर्वमान्य पुस्तक थी। मिताक्षरा और दायभाग जाति भेद नहीं करती थी, यानी ऊँची या नीची जाति के लिये नहीं लिखी गई थी। अतः कथन 1 गलत है।
- मिताक्षरा व्यवस्था में पिता के जीवित रहते पुत्र, पिता की संपत्ति में अधिकार का दावा कर सकता था जबकि दायभाग पिता की मृत्यु के पश्चात् ऐसे किसी दावे पर विचार करती थी। अतः कथन 2 सही है।
- मिताक्षरा और दायभाग स्त्री-पुरुष दोनों के संपत्ति संबंधी मामलों पर विचार व्यक्त करते हैं। अतः कथन 3 गलत है। अतः विकल्प (b) सही है।
21. निम्नलिखित में से किससे किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा गुणक में वृद्धि होती है?
व्याख्याः किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा गुणक उसके मौद्रिक आधार और मुद्रा आपूर्ति के संबंध को व्यक्त करता है। मुद्रा गुणक से तात्पर्य अर्थव्यवस्था में मुद्रा के स्टॉक और शक्तिशाली मुद्रा (High Powered Money) के स्टॉक के अनुपात से है।
यहाँ M से तात्पर्य मुद्रा का स्टॉक और H से शक्तिशाली मुद्रा से है।
- चूँकि, मुद्रा का स्टॉक सामान्यतया शक्तिशाली मुद्रा के मूल्य से अधिक होता है, इसलिये मुद्रा गुणक का मूल्य 1 से अधिक होता है। जनता की बैंकिंग आदतों की वृद्धि के साथ बैंक जमाओं में वृद्धि होने से बैंकों द्वारा अधिक ऋण सृजन होगा, जिससे चलन में मुद्रा के बढ़ने से मुद्रा गुणक में वृद्धि होगी। अतः विकल्प (c) सही है।
22. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति या उसमें वृद्धि निम्नलिखित किन कारणों से होती है?
- मुद्रास्फीति सूचकांकन मज़दूरी (इनफ्लेशन-इंडेक्स़िग वेजेज़)
व्याख्याः जब अर्थव्यवस्था में साधन लागत एकसमान रहती है, किंतु वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति की अपेक्षा उसकी मांग अधिक हो जाती है तो उसे 'मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति' कहते हैं।
- मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति के कारणों में, लोगों की आय बढ़ने से उपजी उच्च क्रय शक्ति, सरकारी व्यय में तीव्र वृद्धि, बैंकों द्वारा अधिक मात्रा में ऋण देना तथा जनसंख्या वृद्धि एवं नगरीकरण आदि करने के परिणामस्वरूप मांग बढ़ना शामिल हैं।
- इसे विस्तारपूर्वक समझने का प्रयास करें तो, सरकार अर्थव्यवस्था में सकल मांग बढ़ाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये राजकोषीय प्रोत्साहन के अंतर्गत 'कर प्रोत्साहन छूट' जैसी पहल कर सकती है।
- इस दृष्टिकोण के पीछे यह तर्क होता है कि यदि लोगों के कर अदायगी के भार को कम कर दिया जाए तो उनके पास व्यय करने या निवेश करने के लिये अधिक धन रहता है जो उच्च मांग को बढ़ावा देता है।
- परिणामस्वरूप उत्पादन की मांग बढ़ने से रोज़गार सृजन होता है, जिससे बेरोज़गारी में कमी आती है।
- इसके अलावा, सरकार अपने व्यय में वृद्धि कर आर्थिक विस्तार कर सकती है, जैसे- आधारभूत संरचना में निवेश के ज़रिये रोज़गार को बढ़ावा देकर मांग और विकास में वृद्धि की जा सकती है। अतः विकल्प (a) सही है।
- खुदरा निवेशक डीमैट खातों के माध्यम से प्राथमिक बाज़ार में 'राजकोष बिल (ट्रेज़री बिल)' और 'भारत सरकार के ऋण बॉण्ड' में निवेश कर सकते हैं।
- 'बातचीत से तय लेन-देन प्रणाली-ऑर्डर मिलान (नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग)' भारतीय रिज़र्व बैंक का सरकारी प्रतिभूति व्यापारिक मंच है।
- 'सेंट्रल डिपोज़िटरी सर्विसेज़ लिमिटेड' का भारतीय रिज़र्व बैंक एवं बंबई स्टॉक एक्सचेंज द्वारा संयुक्त रूप से प्रवर्तन किया जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः फरवरी 2021 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने खुदरा निवेशकों को आरबीआई के साथ गिल्ट खाते खोलकर सीधे सरकारी बॉण्ड खरीदने की अनुमति दी। आरबीआई ने खुदरा निवेशकों को आरबीआई के माध्यम से सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में पहुँच प्रदान की है। अतः कथन (1) सही है।
- इसके तहत खुदरा निवेशक गैर-प्रतिस्पर्धी बोलियों के लिये स्टॉक एक्सचेंजों पर खुद को पंजीकृत करके सरकारी बॉण्ड खरीद सकते हैं। खुदरा निवेशकों के लिये सरकारी बॉण्ड खरीदने का एक अन्य तरीका सरकारी प्रतिभूतियाँ म्यूचुअल फंड हैं। बातचीत से तय लेनदेन प्रणाली-ऑर्डर मिलान [नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग (एनडीएस-ओएम)] आरबीआई के स्वामित्व वाला सरकारी प्रतिभूतियों का व्यापारिक मंच है। इसकी सदस्यता बैंकों, प्राथमिक डीलरों, बीमा कंपनियों, म्यूचुअल फंड आदि जैसी संस्थाओं के लिये खुली है। अतः कथन (2) सही है।
- सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (सीडीएसएल) को बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) द्वारा प्रवर्तित किया गया था। अतः कथन (3) सही नहीं है। अतः विकल्प (b) सही है।
- यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
- यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
- इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सेे सही हैं?
व्याख्याः अमेरिका स्थित एनजीओ Water.org अपनी वाटरक्रेडिट पहल के माध्यम से विभिन्न देशों में सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों और गैर-सरकारी संगठनों को जल आपूर्ति और स्वच्छता के लिये सूक्ष्म वित्तीय साधनों (Microfinance Tools) को लागू करता है। इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी (Subsidy) के बिना अपनी जल संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है। यह ज़रूरतमंद परिवारों को पानी और स्वच्छता के लिये किफायती वित्तपोषण प्रदान करने के लिये चयनित संस्थानों के साथ साझेदारी करता है। अतः कथन (1) और (3) सही हैं।
- Water.org एक वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन है जो दुनिया में पानी और स्वच्छता लाने के लिये काम कर रहा है। इसने सुरक्षित पानी और स्वच्छता के लिये किफायती वित्तपोषण की बाधा को दूर करने के लिये 'वाटरक्रेडिट' कार्यक्रम की पहल शुरू की। अतः कथन (2) सही नहीं है। अतः विकल्प (c) सही है।
25. भारत में, 'अंतिम उधारदाता (लेंडर ऑफ लास्ट रिसॉर्ट)' के रूप में केंद्रीय बैंक के कार्य में सामान्यतः निम्नलिखित में से क्या सम्मिलित है/हैं?
व्याख्याः भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) देश की बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली के कार्यान्वयन हेतु बैंकिंग परिचालन के विस्तृत मानदंड निर्धारित करता है। इसे बैंकाें का बैंक कहा जाता है जो समस्त वित्तीय प्रणाली और निजी बैंकों में पर्याप्त नकदी की उपलब्धता दैनिक आधार पर करता है तथा सभी बैंकों के लिये अंतिम उधारदाता (लेंडर ऑफ लास्ट रिसॉर्ट) की भूमिका निभाता है। अतः कथन (2) सही है।
- आरबीआई, व्यापार एवं उद्योग निकाय को अन्य स्रोतों से ऋण प्राप्ति की विफलता पर तथा सरकार को बजटीय घाटों की पूर्ति के लिये ऋण प्रदान नहीं करता है। अतः कथन 1 और 3 सही नहीं हैं। अतः विकल्प (b) सही है।
26. निम्नलिखित में से किसके अंगीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये 'R2 व्यवहार संहिता (R2 कोड ऑफ प्रैक्टिसेज़)' साधन उपलब्ध करती है?
व्याख्याः 'R2 व्यवहार संहिता' में R2 का अर्थ रिस्पांसिबल रिसाइक्ल़िग है। यह सस्टेनेबल इलेक्ट्रॉनिक्स रिसाइक्ल़िग इंटरनेशनल (SERI) द्वारा विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिकी पुनर्चक्रण उद्योगों के लिये बनाया गया एक मानक है।
- इलेक्ट्रॉनिकी पुनर्चक्रण कंपनी जो इस व्यवहार संहिता के अनुसार R2 प्रमाणित है, अपने ऑपरेटिंग सिस्टम और प्रक्रियाओं में सुधार और प्रमाणन द्वारा प्रदान की गई स्थिति के माध्यम से उच्च लाभ सीमा और अतिरिक्त बाज़ार हिस्सेदारी प्राप्त करने से लाभान्वित होगी।
- एक R2 प्रमाणित कंपनी अपने ग्राहकों को आश्वस्त करने में सक्षम होगी कि वह पर्यावरण, कार्यकर्त्ता, सार्वजनिक स्वास्थ्य और डेटा सुरक्षा की रक्षा के लिये अपनी सुविधा पर उचित उपाय करती है। अतः विकल्प (a) सही है।
27. ताम्र प्रगलन संयंत्रों के बारे में चिन्ता का कारण क्या है?
- वे पर्यावरण में कार्बन मोनोक्साइड को घातक मात्राओं में निर्मुक्त कर सकते हैं।
- ताम्रमल (कॉपर स्लैग) पर्यावरण में कुछ भारी धातुओं के निक्षालन (लीचिंग) का कारण बन सकता है।
- वे सल्फर डाइऑक्साइड को एक प्रदूषक के रूप में निर्मुक्त कर सकते हैं।
व्याख्याः ताम्र (तांबा) प्रगलन संयंत्र द्वारा ताम्र सांद्र से तांबा को अलग किया जाता है जो कई सल्फाइड ऑक्सीकरण चरणों के माध्यम से होता है। इस प्रक्रिया में सल्फर ऑक्साइड प्रदूषक के रूप में निर्मुक्त होता है। इस गलाने की प्रक्रिया में लगातार काम करने वाली फ्लैश स्मेल्ट़िग फर्नेस (एफएसएफ) और बैचों में संचालित कई पियर्स-स्मिथ कन्वर्टर्स शामिल हैं। इसके अंतर्गत ताम्रमल (कॉपर स्लैग) प्रगलन प्रक्रिया में तांबे के निष्कर्षण से बना उप-उत्पाद है। गलाने के दौरान अशुद्धियाँ स्लैग बन जाती हैं जो पिघली हुई धातु पर तैरती हैं। यह पर्यावरण में भारी धातुओं के निक्षालन का कारण बन सकता है। इन भारी धातुओं में, विशेष रूप से आर्सेनिक, कैडमियम और लेड की उच्च सांद्रता हो सकती है। अतः विकल्प (b) सही है।
- यह तेल परिष्करणियों (रिफाइनरी) का एक उत्पाद है।
- कुछ उद्योग इसका उपयोग ऊर्जा (पावर) उत्पादन के लिये करते हैं।
- इसके उपयोग से पर्यावरण में गंधक का उत्सर्जन होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः भट्टी तेल( फर्नेस ऑयल) तेल परिष्करणियों (रिफाइनरी) का एक उत्पाद है। उद्योगों में ऊर्जा के स्रोत के रूप में इन ईंधनों का उपयोग किया जाता है। बड़े जेनरेटरों और स्टील उद्योग में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। जब इन्हें जलाया जाता है तो पर्यावरण में भारी मात्रा में सल्फर (गंधक) का उत्सर्जन होता है, जो हवा को ज़हरीला बनाता है। फर्नेस तेल में सल्फर का स्तर 20000 पीपीएम तक होता है। अतः विकल्प (d) सही है।
29. ब्लू कार्बन क्या है?
व्याख्याः समुद्री एवं तटीय पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा अवशोषित किये जाने वाले कार्बन को नीले कार्बन अथवा ब्लू कार्बन की संज्ञा दी जाती है। यह अवशोषण जीवभार और अवसाद के रूप में मैंग्रोव, दलदलीय क्षेत्रों, समुद्री घास तथा शैवालों द्वारा किया जाता है। महासागरों की कार्बन अवशोषण क्षमता भूमि पर स्थित पारितंत्र के मुकाबले पाँच गुना अधिक होती है। महासागर एक महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक (ब्लू कार्बन) के रूप में है और जलवायु परिवर्तन को कम करने में यह मददगार हो सकते हैं। अतः विकल्प (a) सही है।
30. प्रकृति में, निम्नलिखित में से किस जीव का/किन जीवों के मृदाविहीन सतह पर जीवित पाए जाने की सर्वाधिक संभावना है?
4. छत्रक (मशरूम)
व्याख्याः लाइकेन समेत मॉस ऐसे सजीव हैं, जो चटेानों पर उगते हैं। इस प्रकार इनकी मृदाविहीन सतह पर जीवित पाए जाने की संभावना हैं। इनका पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इन्होनें चटेानों को अपघटित किया और अन्य उच्च कोटि के पौधों को उगने के अनुरूप बनाया।
- चूँकि, मॉस मिट्टी पर एक सघन परत बना देते हैं, इसलिये वर्षा की बौछारें मिट्टी को अधिक नुकसान नहीं पहुँचा पातीं और इस प्रकार यह मृदा अपक्षरण को रोकते हैं।
- वहीं लाइकेन एक मिश्रित जीव है, जिसमें दो अलग-अलग जीवों, एक कवक और एक शैवाल के बीच पारस्परिक कल्याणकारी सहजीविता होती है। लाइकेन प्रदूषित क्षेत्रों में नहीं उगता है अर्थात् यह प्रदूषण के अच्छे संकेतक होते हैं। मशरूम मिट्टी में, लटॅे तथा वृक्षों के ठूँठों पर और सजीव पादपों के अंदर परजीवी के रूप में उगते हैं। अतः विकल्प (c) सही है।
- केंद्र सरकार द्वारा रिज़र्व बैंक (आर.बी.आई.) के गवर्नर की नियुक्ति की जाती है।
- भारतीय संविधान के कतिपय प्रावधान केंद्र सरकार को जनहित में आर.बी.आई. को निर्देश देने का अधिकार देते हैं।
- आर.बी.आई. का गर्वनर अपना अधिकार (पावर) आर.बी.आई. अधिनियम से प्राप्त करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) का केंद्रीय निदेशक बोर्ड इसके कारोबार का पर्यवेक्षण करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 8 के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा इस निदेशक बोर्ड में एक गवर्नर और अधिकतम 4 उप-गवर्नर नियुक्त किये जाते हैं। अतः कथन 1 सही है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 7 के अनुसार केंद्र सरकार बैंक के गवर्नर के परामर्श से समय-समय पर बैंक को जनहित में आवश्यक निर्देश दे सकती है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
- आरबीआई गवर्नर भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 से अपना अधिकार प्राप्त करता है। इसकी धारा 7 के अनुसार केंद्रीय निदेशक बोर्ड द्वारा बनाए गए विनियमों में गवर्नर और उनकी अनुपस्थिति में उनके द्वारा इस निमित्त नामित उप-गवर्नर के पास बैंक के मामलों और व्यवसाय के सामान्य अधीक्षण और निर्देशन की शक्तियाँ होती हैं। अतः कथन 3 सही है। अतः विकल्प (c) सही है।
- सभी अनियत मज़दूर, कर्मचारी भविष्य निधि सुरक्षा के हकदार हैं।
- सभी अनियत मज़दूर नियमित कार्य-समय एवं समयोपरि भुगतान के हकदार हैं।
- सरकार अधिसूचना के द्वारा यह विनिर्दिष्ट कर सकती है कि कोई प्रतिष्ठान या उद्योग केवल अपने बैंक खातों के माध्यम से मज़दूरी का भुगतान करेगा।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः जनवरी 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'पवन हंस लिमिटेड बनाम एविएशन कर्मचारी संगठन वाद' में निर्णय दिया था कि एक नियोक्ता संविदा और स्थायी कर्मचारियों के बीच अंतर नहीं कर सकता है। कर्मचारी भविष्य निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 के तहत अनियत कर्मचारी भी सामाजिक सुरक्षा लाभों के हकदार हैं। उल्लेखनीय है कि इस अधिनियम को सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 में अन्य 8 कानूनों के साथ समाहित कर दिया गया है। अतः कथन 1 सही है।
- मज़दूरी संहिता, 2019 की धारा 13 और 14 में सामान्य कार्यदिवस में कार्य के घंटे का निर्धारण और समयोपरि (Overtime) भुगतान का प्रावधान है। अतः कथन 2 सही है।
- मज़दूरी संदाय अधिनियम, 1936 में मज़दूरी संदाय (संशोधन) अधिनियम, 2017 के माध्यम से संशोधन किया गया था। जिसके तहत नियोक्ता को कर्मचारियों को सिक्कों या करंसी नोट्स में या चेक द्वारा या कर्मचारियों के बैंक खाते में जमा करके वेतन भुगतान की अनुमति दी गई थी। इसके तहत चेक द्वारा या कर्मचारियों के बैंक खाते में जमा करके वेतन भुगतान करने की स्थिति में कर्मचारी की लिखित अनुमति लेने संबंधी शर्त हटा दी गई। हालाँकि केंद्र या राज्य सरकार कुछ विशिष्ट औद्योगिक या अन्य स्थापन्न को यह निर्देश दे सकती है कि उनके नियोक्ता को अपने कर्मचारियों को केवल चेक द्वारा, या कर्मचारी के बैंक खाते में जमा करने के माध्यम से ही वेतन भुगतान करना होगा। अतः कथन 3 सही है। अतः विकल्प (d) सही है।
33. आर्थिक मंदी के समय, निम्नलिखित में से कौन-सा कदम उठाए जाने की सर्वाधिक संभावना होती है?
व्याख्याः जब किसी देश की अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाही तक ऋणात्मक विकास दर अर्जित करती है तो इसे 'मंदी' कहा जाता है। मंदी का मूल कारण अर्थव्यवस्था में मांग का अभाव होता है। मंदी में अर्थव्यवस्था में निवेश तथा उत्पादन में गिरावट होती है। मंदी के प्रभाव को दूर करने के लिये सरकार के साथ केंद्रीय बैंक को क्रमशः विस्तारवादी राजकोषीय और मौद्रिक नीति का पालन करना चाहिये।
- कर की दरों में कटौती के साथ ब्याज दर में वृद्धि से अर्थव्यवस्था में ऋण महँगा हो जाएगा, जिससे निवेश हतोत्साहित होगा, जो मंदी के समय वांछनीय नहीं है। अतः विकल्प (a) सही नहीं होगा।
- अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिये सार्वजनिक परियोजनाओं पर व्यय में वृद्धि एक उचित उपकरण है क्योंकि यह पुनर्निवेश को बढ़ावा देती है। जिससे जीडीपी और अर्थव्यवस्था में आय में वृद्धि होती है। इससे मांग में वृद्धि से मंदी से उबरने में मदद मिलती है। अतः विकल्प (b) सही है।
- कर दरों में वृद्धि से निवेशकों की आय में कमी होगी जो अर्थव्यवस्था में निवेश को हतोत्साहित करेगी। इसलिये मंदी के समय कर की दर में वृद्धि वांछनीय नहीं है। अतः विकल्प (c) सही नहीं होगा।
- सार्वजनिक परियोजनाओं पर खर्च में कमी मंदी के समय वांछनीय नहीं है क्योंकि इससे सरकारी खर्च में कमी होगी। अतः विकल्प (d) सही नहीं होगा।
- इसकी स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि हो।
- इसकी पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि हो।
- वस्तु घटिया किस्म की है और उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि होती है।
- इसकी कीमत घटती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः अन्य कारकों के अपरिवर्तित रहने पर उपभोक्ता की किसी वस्तु के लिये मांग और वस्तु की कीमत के बीच संबंध साधारणता नकारात्मक होता है। दूसरे शब्दों में, वस्तु की मात्रा जो उपभोक्ता का इष्टतम चयन होगा, वह वस्तु की कीमत गिरने से संभावित रूप से बढ़ सकती है और वस्तु की कीमत में वृद्धि के साथ घट सकती है। अतः कथन (4) सही है।
- उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने के साथ वस्तु की प्रकृति के आधार पर किसी वस्तु की मांग बढ़ या घट सकती है। अधिकांश वस्तुओं की मांग उपभोक्ता की आय बढ़ने पर बढ़ती है और उपभोक्ता की आय घटने पर घट जाती है। ऐसी वस्तुएँ 'सामान्य वस्तु' कहलाती हैं। हालाँकि, कुछ ऐसी वस्तुएँ भी होती हैं जिनकी मांग उपभोक्ता की आय के विपरीत दिशा में चलती है। ऐसी वस्तुओं को 'निम्नस्तरीय (घटिया) वस्तु' कहा जाता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय बढ़ती है, निम्नस्तरीय वस्तु की मांग घटती जाती है और आय घटने पर निम्नस्तरीय वस्तु की मांग बढ़ती जाती है। निम्नस्तरीय वस्तुओं में निम्न गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ जैसे मोटे अनाज शामिल हैं। अतः कथन 3 सही नहीं है।
- एक वस्तु की मात्रा जिसका चयन उपभोक्ता करता है, किसी संबंधित वस्तु की मूल्य वृद्धि के साथ बढ़ या घट सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों वस्तुएँ एक दूसरे की 'स्थानापन्न (Substitute)' या 'पूरक (Complement)' हैं या नहीं। जिन वस्तुओं का साथ-साथ उपयोग किया जाता है उन्हें 'पूरक वस्तुएँ' कहा जाता है। जैसे- चाय और चीनी, जूते और जुराब, कलम और स्याही इत्यादि। क्योंकि चाय और चीनी का एक साथ उपयोग में लाए जाते हैं, संभव है कि चीनी की कीमत में वृद्धि से चाय के लिये मांग घटाएगी तथा चीनी कीमत में कमी चाय की मांग में वृद्धि करेगी। पूरक वस्तुओं के विपरीत स्थानापन्न का एक साथ सेवन नहीं किया जाता है जैसे- चाय और कॉफी। वास्तव में चाय और कॉफी एक दूसरे के विकल्प हैं। चूँकि चाय कॉफी का विकल्प है, अगर कॉफी की कीमत बढ़ती है, तो उपभोक्ता चाय की ओर रुख कर सकते हैं, और इसलिये, चाय की मांग बढ़ने की संभावना है। दूसरी ओर, यदि कॉफी की कीमत घटती है, तो चाय की मांग कम होने की संभावना है। किसी वस्तु की मांग सामान्यतः उसके स्थानापन्नों की कीमत की दिशा में चलती है। अतः कथन 1 सही है, किंतु कथन 2 सही नहीं है। अतः विकल्प (a) सही होगा।
- राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय मंडलों द्वारा उनका पर्यवेक्षण एवं विनियमन किया जाता है।
- वे इक्विटी शेयर और अधिमान शेयर जारी कर सकते हैं।
- उन्हें वर्ष 1966 में एक संशोधन के द्वारा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के कार्य-क्षेत्र में लाया गया था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अधिनियम, 2020 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों (यूसीबी) को आरबीआई की अनुमति से इक्विटी शेयर और अधिमान शेयर के माध्यम से पूंजी जुटाने की अनुमति प्रदान करता है। अतः कथन 2 सही है।
शहरी सहकारी बैंकों की व्यावसायिकता के बारे में चिंताओं ने बेहतर विनियमन की ओर बल दिया। बड़े सहकारी बैंकों, जिनकी चुकता शेयर पूंजी और कोष ` 1 लाख है, को 1 मार्च, 1966 से बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 ( मन आरबीआई और राज्य के रजिस्ट्रार जनरल ऑफ कॉपरेटिव सोसायटीज द्वारा किया जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है। अतः विकल्प (b) सही उत्तर होगा।
36. भारतीय सरकारी बॉण्ड प्रतिफल निम्नलिखित में से किससे/किनसे प्रभावित होता है/होते हैं?
व्याख्याः बॉण्ड प्रतिफल एक निवेशक को उस बॉण्ड पर मिलने वाला प्रतिफल (रिटर्न) है। यह प्रतिफल बॉण्ड की कीमत पर निर्भर करता है जो इसकी मांग से प्रभावित होता है। प्रतिफल को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति, सरकार की वित्तीय स्थिति, सरकार का ऋण कार्यक्रम, वैश्विक बाज़ार की स्थिति और मुद्रास्फीति की दर हैं।
- यूनाइटेड स्टेट्स फेडरल रिज़र्व की कार्रवाइयाँ भी भारतीय सरकारी बॉण्ड के प्रतिफल को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिये यदि फेडरल रिज़र्व ब्याज दर में वृद्धि करता है तो निवेशक सरकारी बॉण्ड का विक्रय करेंगे, जिसके फलस्वरूप बॉण्ड के मूल्य में कमी होगी और बॉण्ड प्रतिफल में वृद्धि होगी। अतः कथन 1 सही है।
- रिज़र्व बैंक अपने विभिन्न मुद्रास्फीति प्रबंधन उपकरणों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में उपलब्ध तरलता और कोष की लागत का निर्धारण करता है। कोष की लागत बाज़ार में सरकारी बॉण्ड की मांग को सीधे प्रभावित करेगी और इस तरह इस पर प्रतिफल को प्रभावित करेगी। अतः कथन 2 सही है।
- मुद्रास्फीति और अल्पकालिक ब्याज दरें अर्थव्यवस्था में लोगों की क्रय क्षमता निर्धारित करती हैं। इसलिये, इसका सरकारी बॉण्ड की मांग और कीमत पर भी असर पड़ता है जिससे बॉण्ड प्रतिफल प्रभावित होता है। अतः कथन (3) सही है। अतः विकल्प (d) सही होगा।
उपर्युक्त में से किसे/किन्हें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सम्मिलित किया जा सकता है/किये जा सकते हैं?
उत्तरः (a)
व्याख्याः समेकित एफडीआई नीति, 2020 के अनुसार विदेशी मुद्रा संपरिवर्तनीय बॉण्ड (Foreign Currency Convertible Bonds) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में शामिल किये जाते हैं। अतः कथन 1 सही है।
- विदेशी संस्थागत निवेश को विदेश प्रत्यक्ष निवेश में शामिल किया जाता है। उल्लेखनीय है कि विदेशी संस्थागत निवेश 24 प्रतिशत की समग्र सीमा की शर्त के अधीन हैं। अतः कथन (2) सही है।
- इसी तरह वैश्विक डिपॉजिटरी रसीदें (GDR) भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का साधन हैं। अतः कथन 3 सही है।
- अनिवासी विदेशी जमा भुगतान संतुलन खाते में एक ऋण सृजन प्रवाह है। अतः कथन (4) सही नहीं है। अतः विकल्प (a) सही होगा।
- विदेशी बाज़ारों में घरेलू निर्यातों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है।
- घरेलू मुद्रा के विदेशी मूल्य को बढ़ाता है।
- व्यापार संतुलन में सुधार लाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः स्थिर विनियम दर प्रणाली (इसके साथ ही प्रबंधित विनिमय दर प्रणाली) के अंतर्गत, जब किसी सरकारी कार्रवाई द्वारा विनिमय दर बढ़ती है अर्थात् घरेलू मुद्रा, विदेशी मुद्रा की तुलना में सस्ती हो जाती है तो इसे मुद्रा अवमूल्यन कहा जाता है। अतः कथन (2) सही नहीं है।
- मुद्रा के अवमूल्यन से घरेलू मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा के मूल्य की तुलना में कम हो जाता है। इसके फलस्वरूप घरेलू निर्यात सस्ता और आयात महँगा हो जाता है। सस्ता घरेलू निर्यात विदेशी बाज़ार में प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि करता है। अतः कथन (1) सही है।
- व्यापार संतुलन एक निश्चित अवधि में किसी देश की वस्तुओं के निर्यात के मूल्य और आयात के मूल्य के बीच का अंतर है। मुद्रा के अवमूल्यन के साथ निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार होता है किंतु व्यापार संतुलन निर्यात और आयात दोनों पर निर्भर करता है और यह अनिवार्य नहीं है कि मुद्रा के अवमूल्यन से व्यापार संतुलन में सुधार हो। अतः कथन 3 सही नहीं है। अतः विकल्प (a) सही होगा।
39. भारत में काले धन के सृजन के निम्नलिखित प्रभावों में से कौन-सा भारत सरकार की चिंता का प्रमुख कारण है?
व्याख्याः राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान(एनआईपीएफपी) के अनुसार, 'काला धन वह धन है जिस पर कर की देनदारी तो बनती है लेकिन उसकी जानकारी कर विभाग को नहीं दी जाती है।' काला धन सरकार की आय में रुकावटें तो उत्पन्न करता ही है, साथ ही देश के सीमित वित्तीय साधनों को अवांछित दिशाओं में मोड़ देता है। इसमें अवैध तरीकों से अर्जित किया गया धन तथा कर योग्य, वह धन जिस पर कर न दिया गया हो, को काले धन की श्रेणी में रखा जाता है।
- काला धन के सृजन का एक स्रोत आपराधिक गतिविधियाँ भी हैं। इसमें अपहरण, तस्करी, नशीली दवाएँ, अवैध खनन, जालसाज़ी और घोटाले आदि आपराधिक गतिविधियाँ आती हैं। इसके अलावा भ्रष्टाचार जैसे रिश्वतखोरी और चोरी भी काले धन का प्रमुख स्रोत हैं। काले धन की उत्पत्ति का दूसरा स्रोत, कर अपवंचन है। इसके तहत यदि किसी व्यक्ति की वार्षिक आय आयकर के अंतर्गत है तथा वह आयकर की राशि को बचाने के लिये अपनी वास्तविक आय के स्थान पर कम आय को दर्शाता है तो वास्तविक आय और घोषित आय के बीच का अंतर काला धन कहलाता है। उल्लेखनीय है कि देश में काले धन के पैदा होने का सबसे बड़ा कारण यही है। विकल्प (a), (b) और (c) काले धन के सृजन और निवेश के तरीके हैं जबकि विकल्प (d) काले धन के निर्माण का प्रभाव है। अतः विल्कप (d) सही होगा।
40. निम्नलिखित में से कौन-सा अपने प्रभाव मेें सर्वाधिक मुद्रास्फीतिकारक हो सकता है?
व्याख्याः किसी भी कदम को स्फीतिकारी (inflationary) तब माना जाता है जब उसके परिणामस्वरूप बाज़ार में मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि होती है। विकल्प (b) और (c) सही नहीं हैं क्योंकि बजट घाटे के वित्तीयन के लिये जनता से उधार अथवा बैंकों से उधार लेने का अर्थ है बाज़ार से तरलता खींचना, न कि बढ़ाना।
- विकल्प (a) के अनुसार सार्वजनिक ऋण की चुकौती से बाज़ार में मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि ज़रूर होती है और इसमें स्फीतिकारी प्रभाव की संभावना भी रहती है किंतु सार्वजनिक ऋण की चुकौती से सरकार की सार्वजनिक व्यय करने की क्षमता कम होने की संभावना रहती है जो स्फीतिकारी प्रभाव को संतुलित भी कर सकता है। अतः विकल्प (a) सही नहीं होगा।
- लेकिन सर्वाधिक स्फीतिकारी होने की दृष्टि से विकल्प (d) सही है, क्योंकि नई मुद्रा सर्वाधिक तरल होती है एवं यह वस्तुओं अथवा सेवाओं के उत्पादन में कोई वृद्धि किये बिना ही अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि कर देती है।
41. निम्नलिखित में से किसका उपयोग प्राकृतिक मच्छर प्रतिकर्षी तैयार करने में किया जाता है?
व्याख्याः कांग्रेस घास मूल रूप से अमेरिका, मेक्सिको तथा वेस्टइंडीज क्षेत्र में पाई जाती हैैै। भारत, ऑस्ट्रलिया तथा अप्रीका में यह आक्रमणकारी प्रजाति के रूप में पाई जाती है। यह मच्छरों की शरणस्थली है। यह पशुओं में त्वचा संबधी समस्याओं एंव मनुष्यों में श्वसन संबंधी समस्याओं हेतु उत्तरदायी है।
- एलिफेंट घास को 'नेपियर घास' तथा 'युगाण्डा घास' के नाम से भी जाना जाता है। यह मूलतः अप्रीका में पाई जाती है। इसका उपयोग फसलों में लगने वाले कीड़ों को नष्ट करने में किया जाता है।
- लेमन घास में एस्कॉर्बिक एसिड पाया जाता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है। इसमें सिट्रोनेला नामक तेल पाया जाता है जिसकी तेज़ सुंगध के कारण इसका प्रयोग मच्छर प्रतिकर्षी तैयार करने में किया जाता है। अतः विकल्प (c) सही है।
- नट घास को 'मोथा' के नाम से भी जाना जाता है। यह खेतों के लिये सर्वाधिक खराब खतपरवार के लिये जानी जाती है, जो फसलों की बर्बादी के लिये प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। हालँाकि इसके औषधीय गुणों के कारण इसका प्रयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये भी किया जाता है।
उपर्युक्त में से कौन-से जीव महासागरों की आहार शृंखलाओं में प्राथमिक उत्पादक हैं?
व्याख्याः हरे पेड़-पौधे,कुछ खास जीवाणु एवं शैवाल जो सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं,स्वपोषी अथवा प्राथमिक उत्पादक कहलाते हैं। महासागरों की आहार शृंखलाओं में पादप्लवक प्रमुख उत्पादक होते हैं। इसमें साइनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल) एवं डायटम क्लोरोफिल की उपस्थिति में अपना भोजन स्वयं बनाते है, वहीं कॉपीपोड तथा फोरेमिनिफेरा उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं। अतः विकल्प (b) सही है।
- जाहक (हेज्हॉग)
- शैलमूषक (मारमॉट)
- वज्रशल्क (पैंगोलिन)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से जीव परभक्षियों द्वारा पकड़े जाने की संभावना को कम करने के लिये, स्वयं को लपेटकर अपने सुभेद्य अंगों की रक्षा करता है/करते हैं?
व्याख्याः जाहक (हेज्हॉग) और वज्रशल्क (पैंगोलिन) ऐसे जीव हैं जो परभक्षियों द्वारा पकड़े जाने की संभावना को कम करने के लिये स्वयं को लपेटकर अपनी रक्षा करते हैं। हेज्हॉग एक छोटा स्तनपायी है और पैंगोलिन पृथ्वी पर पाया जाने वाला एकमात्र सशल्क स्तनपायी जीव है। विश्व में पाई जाने वाली पैंगोलिन की आठ प्रजातियों में से दो,चीनी पैंगोलिन तथा इंडियन पैंगोलिन भारत में पाई जाती हैं। ये अधिकतर पूर्वोत्तर भारत में देखी जा सकती हैं। वहीं शैलमूषक (मारमॉट) गिलहरी परिवार के सबसे भारी सदस्य हैं जो गर्मियों के दौरान सक्रिय होते हैं। अतः विकल्प (d) सही है।
44. 'वनों पर न्यूयॉर्क घोषणा (न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन ऑन फॉरेस्ट्स)' के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं?
- 2014 में, संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में पहली बार इसका समर्थन किया गया था।
- इसमें वन के ह्रास को रोकने के लिये एक वैश्विक समय-रेखा का समर्थन किया गया।
- यह वैध रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय घोषणा है।
- यह सरकारों, बड़ी कंपनियों और देशीय समुदायों द्वारा समर्थित है।
- भारत, इसके प्रारंभ के समय, हस्ताक्षरकर्त्ताओं में से एक था।
व्याख्याः वनों पर 2014 की न्यूयॉर्क घोषणा पर 200 से अधिक हस्ताक्षर किये गए थे, जिनमें विभिन्न देशों और कंपनियों के अलावा पर्यावरण समूह भी शामिल थे। न्यूयॉर्क घोषणा में वर्ष 2020 तक वैश्विक प्राकृतिक वन हानि को आधा करना तथा वर्ष 2030 तक इस हानि को समाप्त करना शामिल है। इसके अंतर्गत वनों के ह्रास को रोकने के लिये एक वैश्विक समय-रेखा का समर्थन किया गया है। अतः विकल्प (a) सही है।
45.तंत्रिका अपह्रास (न्यूरोडीजेनेरेटिव) समस्याओं के लिये उत्तरदायी माने जाने वाले मैग्नेटाइट कण पर्यावरणीय प्रदूषकों के रूप में निम्नलिखित में से किनसे उत्पन्न होते हैं?
व्याख्याः ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं द्वारा मानव मस्तिष्क के ऊतकों में वायु प्रदूषण से संबंधित मैग्नेटाइट या आयरन ऑक्साइड के नैनोकण देखे गए हैं और शोधकर्त्ताओं का मानना हैं कि वे मनोभ्रंश, अल्जाइमर और मिर्गी जैसे तंत्रिका अपह्रास (न्यूरोडीजेनेरेटिव) विकारों के कारणों में से एक हैं। शोधकर्त्ताओं ने मस्तिष्क के ऊतकों में निकल, कोबाल्ट और प्लैटिनम जैसी धातु के नैनोकणों को भी देखा जो बाहरी स्रोत की ओर संकेत करते हैं। ध्यातव्य है कि मैग्नेटाइट एक प्रबल चुंबकीय लौह खनिज है। गोलाकार नैनो-मैग्नेटाइट की रेडॉक्स गतिविधि और सरफेस चार्ज इसे न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी के कारणों से जोड़ता है। ऐसे मैग्नेटाइट कण प्रमुख रूप से उच्च तापमान पर जीवाश्म ईंधन वाले दहन स्रोत, बिजली स्टेशन, टेलीफोन लाइन, निर्माण प्रक्रिया, वाहन इंजन (विशेष रूप से डीजल) और घरों में प्रयोग होने वाला माइक्रोवेव स्टोव आदि से प्रदूषकों के रूप में उत्पन्न होते हैं। ऐसा प्रदूषण वाहनों के ब्रेक के घर्षण से भी हो सकता है। अतः विकल्प (d) सही है।
46. निम्नलिखित में से कौन-सा जीव निस्यंदक भोजी (फिल्टर फीडर)है?
(a) अशल्क मीन (कैटफिश)
(b) अष्टभुज (ऑक्टोपस)
(c) सीप (ऑयस्टर)
(d) हवासिल (पेलिकन)
व्याख्याः फिल्टर फीडर ऐसे जीव हैं (जैसे बड़ी सीपी या बेलन व्हेल) जो अपने शरीर के कुछ हिस्से से गुज़रने वाले पानी की धारा से कार्बनिक पदार्थ या सूक्ष्म जीवों को छानकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। सीप (ऑयस्टर) प्राकृतिक फिल्टर फीडर हैं। इसका अर्थ है कि वे अपने गलफड़ों के माध्यम से पानी पंप करके, भोजन के कणों के साथ-साथ पोषक तत्त्वों, निलंबित तलछट और रासायनिक संदूषकों को प्रग्रहीत कर भोजन करते हैं। ये जल को साफ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः विकल्प (c) सही है।
47. निम्नलिखित जैव भू-रासायनिक चक्रों में से किसमें, चट्टानों का अपक्षय चक्र में प्रवेश करने वाले पोषक तत्त्व के निर्मुक्त होने का मुख्य स्रोत है?
व्याख्याः फॉस्फोरस का प्राकृतिक भंडार चटेानों में है जो कि फॉस्फेट के रूप में फॉस्फोरस को संचित किये हुए है। फॉस्फोरस चक्र के अंतर्गत जब चटेानों का क्षय होता है तो थोड़ी मात्रा में ये फॉस्फेट भूमि पर जल में घुल जाते हैं और उन्हें पादपों की जड़ द्वारा अवशोषित कर लिया जाता हैं। शाकाहारी और अन्य जानवर इन तत्त्वों को पादपों से ग्रहण करते हैं। कचरा उत्पादों एवं मृत जीवों को फॉस्फोरस विलेयक जीवाणुओं द्वारा अपघटित करने पर फॅास्फोरस मुक्त होता है। कार्बन चक्र की भाँति पर्यावरण में फॉस्फोरस को श्वसन द्वारा अवमुक्त नहीं किया जाता है। अतः विकल्प (c) सही है।
48. निम्नलिखित में से कौन-से जीव अपरदाहारी (डेट्राइटिवोर) हैं?
3. सहस्रपादी (मिलीपीड)
4. समुद्री घोड़ा (सीहॉर्स)
5. काष्ठ यूका (वुडलाइस)
व्याख्याः अपरदहारी (Detritivore) ऐसे जीव हैं जो मृत या सड़ने वाले पौधों या जानवरों को भोजन के रूप में खाते हैं। इनमें सूक्ष्मजीव जैसे बैक्टीरिया और बड़े जीव जैसे कवक, केंचुआ, कीड़े, सहस्रपादी (Millipedes) और कुछ क्रस्टेशियन (crustacean) जैसे काष्ठ यूका (Woodlice) शामिल हैं। अतः विकल्प (c) सही है।
49. यू.एन.ई.पी. द्वारा समर्थित 'कॉमन कार्बन मेट्रिक' को किसलिये विकसित किया गया है?
व्याख्याः संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा समर्थित 'कॉमन कार्बन मेट्रिक' को संपूर्ण विश्व में निर्माण कार्यों के कार्बन पदचिह्न को आकलित करने लिये विकसित किया गया है। यह दुनिया भर की इमारतों से उत्सर्जन का लगातार मूल्यांकन और तुलना करने एवं सुधारों को मापने की अनुमति प्रदान करता है। इमारतों से लगातार, मापने योग्य, रिपोर्ट करने योग्य और सत्यापन योग्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी के लिये इनकी आवश्यकता होती है। इन मेट्रिक्स को अलग-अलग इमारतों या इमारतों के समूहों में ऊर्जा के उपयोग को मापने के लिये लागू किया जा सकता है। अतः विकल्प (a) सही है।
50. निम्नलिखित समूहों में से किन में ऐसी जातियाँ होती हैं, जो अन्य जीवों के साथ सहजीवी संबंध बना सकती हैं?
- कवक (पंजाई)
- आदिजंतु (प्रोटोजोआ)
व्याख्याः सहजीवी संबंध (Symbiotic Relationship) दो प्राणियों में परस्पर लाभजनक, आंतरिक साझेदारी है। यह सहभागिता दो पौधों या दो जंतुओं के बीच, या पौधे और जंतु के पारस्परिक संबंध में हो सकती है। अधिकांश कवक (फंजाई) परपोषित होते हैं। ये शैवाल तथा लाइकेन के साथ एवं उच्चवर्गीय पौधों के साथ कवक मूल बना कर भी रह सकते हैं। ऐसे कवक सहजीवी कहलाते हैं। नाइडेरिया, जिसे सीलेन्टरेटा भी कहा जाता है। इनमें मूंगा, हाइड्रा, जेलीफिश, समुद्री एनीमोन, आदि शामिल हैं। नाइडेरिया और शैवाल के बीच सहजीवी संबंध पाया जाता है। साथ ही, दीमक का प्रोटोजोआ के साथ सहजीवी संबंध होता है जो इस कीट की आँत में रहते हैं। दीमक अपना भोजन सेल्यूलोज के रूप में प्राप्त करते हैं, जिसे पचा पाने की क्षमता इनमें नहीं होती। प्रोटोजोआ के भीतर सेल्यूलोज को पचाने की क्षमता से दीमक को लाभ होता है। अतः कथन (d) सही है।
51. भारतीय संविधान के अंतर्गत धन का केंद्रीकरण किसका उल्लंघन करता है?
व्याख्याःसंविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 36-51 के मध्य 'राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व' वर्णित हैं। भाग-3 के ही अंतर्गत अनुच्छेद 39 के खंड (ग) में प्रावधान है कि राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्वसाधारण के लिये अहितकारी संकेंद्रण न हो। अतः विकल्प (b) सही उत्तर होगा।
52. भारत में संपत्ति के अधिकार की क्या स्थिति है?
व्याख्याः भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300क में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधि के प्राधिकार से ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। इस अनुच्छेद से स्पष्ट हो जाता है कि भारत में संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार है, जो किसी भी व्यक्ति को प्राप्त है। अतः विकल्प (b) सही उत्तर होगा।
53. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक सांविधानिक स्थिति क्या थी?
व्याख्याः 26 जनवरी, 1950 को लागू हुए भारतीय संविधान की उद्देशिका में भारत को 'संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य' के रूप में घोषित किया था। अर्थात्, तब के अनुसार भारत की वास्तविक सांविधानिक स्थिति 'संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य' की ही थी। अतः विकल्प (b) सही उत्तर होगा।
नोटः हालाँकि 1976 में किये गए संविधान के 42वें संशोधन के पश्चात् प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'पंथनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्द जोड़ दिये गए, जिससे भारत की सांविधानिक स्थिति में परिवर्तन हुआ।
54. सांविधानिक सरकार का आशय क्या है?
व्याख्याः परिभाषा से, सांविधानिक सरकार वह सरकार है, जो संविधान की सीमाओं से परिबद्ध हो। अतः विकल्प (d) सही उत्तर होगा। उल्लेखनीय है कि सरकार के प्रमुख के पास नाममात्र की शक्तियाँ होना 'संसदीय प्रणाली' की सरकार का अभिलक्षण है, जबकि सरकार के प्रमुख के पास वास्तविक शक्तियाँ होना 'अध्यक्षीय प्रणाली' की सरकार का अभिलक्षण है। किसी राष्ट्र की परिसंघीय संरचना वाली प्रतिनिधि सरकार की उपस्थिति 'परिसंघ' (Federation) की विशेषता है।
55. भारत के संदर्भ में 'हल्बी, हो और कुई' पद किससे संबंधित हैं?
व्याख्याः'हल्बी' उड़ीसा में बोली जाने वाली जनजातीय भाषा है। 'हो', मुंडा परिवार की जनजातीय भाषा है। जबकि 'कुई' द्रविड़ परिवार की जनजातीय भाषा है जिसको बोलने वाले उड़ीसा में रहते हैं। अतः विकल्प (d) सही है।
56. भारतरत्न और पँ पुरस्कारों के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- भारतरत्न और पँ पुरस्कार भारत के संविधान के अनुच्छेद-18(1) के अंतर्गत उपाधियाँ हैं।
- वर्ष 1954 में प्रारंभ किये गए पँ पुरस्कारों को केवल एक बार निलंबित किया गया था।
- किसी वर्ष-विशेष में भारतरत्न पुरस्कारों की अधिकतम संख्या पाँच तक सीमित है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही नहीं हैं?
व्याख्याः संविधान का अनुच्छेद 18 (1) यह प्रावधान करता है कि राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा। 1995 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बालाजी राघवन मामले में दिये गए निर्णय में यह स्पष्ट किया गया कि भारतरत्न व पँ पुरस्कार संविधान के अनुच्छेद 18 (1) में वर्णित उपाधियाँ नहीं हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 1954 में आरंभ किये जाने के पश्चात् ऐसा दो बार (1978-79 व 1993-97) हुआ कि पँ पुरस्कार वितरित नहीं किये गए, क्योंकि इन्हें निलंबित किया गया था। अतः कथन 2 सही नहीं है।
- किसी वर्ष-विशेष में अधिकतम 3 भारतरत्न पुरस्कार दिये जा सकते हैं। अतः कथन 3 सही नहीं है। इस प्रकार विकल्प (d) सही उत्तर होगा।
57. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
कथन 1: संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास निधि (यू.एन.सी.डी.एफ.) और आर्बर डे फाउंडेशन ने हाल ही में हैदराबाद को विश्व के 2020 वृक्ष नगर की मान्यता प्रदान की है।
कथन 2: शहरी वनों को बढ़ाने और संपोषित करने के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए हैदराबाद का एक वर्ष के लिये इस मान्यता हेतु चयन किया गया है।
उपर्युक्त कथनों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
व्याख्याः हैदराबाद भारत का वह एकमात्र शहर है, जिसे आर्बर डे फाउंडेशन और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा एक वर्ष के लिये '2020 विश्व के वृक्ष नगर' के रूप में मान्यता दी गई है। हैदराबाद को 63 देशों के 119 अन्य शहरों के साथ यह मान्यता प्रदान की गई है। स्वस्थ और खुशहाल नगरों के निर्माण में नगरीय वनों को बढ़ाने और संपोषित करने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिये इन्हें वृक्ष नगर की मान्यता दी गई है। ध्यातव्य है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम इस सूची में अधिकतम नगरों वाले देश हैं, जिनमें क्रमशः 38] 15 और 11 नगर हैं। अतः कथन (d) सही है।
58. वर्ष 2000 में प्रारंभ किये गए लॉरियस विश्व खेल पुरस्कार (लॉरियस वर्ल्ड स्पोर्ट्स अवार्ड) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- अमेरिकी गोल्फ खिलाड़ी टाइगर वुड्स इस पुरस्कार का सर्वप्रथम विजेता थे।
- अब तक यह पुरस्कार अधिकतर 'फॉर्मूला वन' के खिलाड़ियों को मिला है।
- अन्य खिलाड़ियों की तुलना में रॉजर पेडरर को यह पुरस्कार सर्वाधिक बार मिला है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः लॉरियस विश्व खेल पुरस्कार का आयोजन पहली बार 2000 में किया गया था। इसके अंतर्गत छह श्रेणियों (पुरुष खिलाड़ी, महिला खिलाड़ी, टीम, ब्रेकथ्रू, कमबैक और एक्शन) में पुरस्कार दिये जाते हैं।
- वर्ष 2000 में विश्व के सर्वश्रेष्ठ पुरुष खिलाड़ी के लिये लॉरियस खेल पुरस्कार गोल्फर टाइगर वुड्स ने जीता था। अतः कथन 1 सही है।
- अब तक वितरित किये गए 21 पुरस्कारों में से अधिकतर 'लॉन टेनिस' के खिलाड़ियों ने जीते हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है।
- स्विट्ज़रलैंड के टेनिस खिलाड़ी रॉजर फेडरर ने अब तक सर्वाधिक 5 बार यह पुरस्कार जीता है। अतः कथन 3 सही है। विकल्प (c) सही उत्तर होगा।
59. 32वें ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- इस ओलंपिक का आधिकारिक आदर्श वाक्य 'एक नई दुनिया (ए न्यू वर्ल्ड)' है।
- इस ओलंपिक में स्पोर्ट क्लाइंबिंग, सर्पिंग, स्केटबोर्डिंग, कराटे तथा बेसबॉल को शामिल किया गया है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः 2021 में टोक्यो में आयोजित किये गए 32वें ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों का आधिकारिक आदर्श वाक्य 'यूनाइटेड बाई इमोशन' (United by Emotion) था। यह आदर्श वाक्य विविध पृष्ठभूमि के लोगों को एक साथ लाने की खेल की शक्ति पर ज़ोर देता है और उनके लिये इस तरह से जुड़ना और जश्न मनाना संभव बनाता है, जो उनके मतभेदों से परे हो। अतः कथन 1 सही नहीं है।
- इस ओलंपिक में कुल छह नए खेल-स्पोर्ट क्लाइंबिंग, सर्फ़िग, सॉफ्टबॉल, बेसबॉल, कराटे तथा स्केटबोर्ड़िग शामिल किये गए थे। अतः कथन 2 सही है। विकल्प (b) सही उत्तर होगा।
60. आई. सी. सी. वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- अंतिम दौर में पहुँचने वाली टीमों का निर्धारण, उनके द्वारा जीते गए मैचों की संख्या के आधार पर किया गया।
- न्यूज़ीलैंड का स्थान इंग्लैंड से ऊपर था, क्योंकि उसने इंग्लैंड की तुलना में अधिक मैच जीते।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के अंतिम दौर में पहुँचने वाली टीमों का निर्धारण उनके द्वारा प्रतिस्पर्धित पॉइंट्स की तुलना में जीते गए पॉइंट्स के प्रतिशत (Percentage of Points Contested) के आधार पर किया गया था। इसी आधार पर 2019&2021 के बीच टेस्ट सीरीज़ खेलने वाली टीमों की रैंकिंग तैयार की गई थी। टूर्नामेंट के अंत (जून 2021) में रैंकिंग में शीर्ष 2 स्थानों पर रही टीमों के बीच फाइनल खेला गया। उदाहरण- भारत ने संपूर्ण वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में कुल 720 पॉइंट्स के लिये प्रतिस्पर्धा की, जिसमें से उसने 520 पॉइंट्स, अर्थात् 72.2 प्रतिशत पॉइंट्स जीते और रैंकिंग में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए फाइनल में जगह बनाई। अतः कथन 1 सही नहीं है।
- उल्लेखनीय है कि न्यूज़ीलैंड ने वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में 7 मैच जीते थे, जबकि इंग्लैंड ने इसी दौरान 11 मैच जीते थे। परंतु चूँकि न्यूज़ीलैंड द्वारा कुल प्रतिस्पर्धित पॉइंट्स में से 70 प्रतिशत जीते गए थे जबकि इंग्लैंड ने केवल 64.1 प्रतिशत पॉइंट्स जीते थे, इसी आधार पर न्यूज़ीलैंड का स्थान इंग्लैंड से ऊपर था। अतः कथन 2 सही नहीं है। विकल्प (d) सही उत्तर होगा।
- 'शहर का अधिकार' एक सम्मत मानव अधिकार है तथा इस संबंध में, संयुक्त राष्ट्र हैबिटेट (यू. एन. हैबिटेट) प्रत्येक देश द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं को मॉनिटर करता है।
- 'शहर का अधिकार' शहर के प्रत्येक निवासी को शहर में सार्वजनिक स्थानों को वापस लेने (रीक्लेम) एवं सार्वजनिक सहभागिता का अधिकार देता है।
- 'शहर का अधिकार' का आशय यह है कि राज्य, शहर की अनधिकृत बस्तियों को किसी भी लोक सेवा अथवा सुविधा से वंचित नहीं कर सकता।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
उत्तरः (c)
व्याख्याः'शहर का अधिकार' एक सम्मत मानव अधिकार है। यह सभी निवासियों, वर्तमान और भविष्य, स्थायी और अस्थायी, निवास करने, उपयोग करने, कब्ज़ा करने, उत्पादन करने, शासन करने, समावेशी, सुरक्षित और टिकाऊ शहरों, गाँवों और मानव बस्तियों का अधिकार है, जिसे एक पूर्ण और सभ्य जीवन के लिये सामान्य आवश्यकता के रूप में परिभाषित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र-पर्यावास (यूएन-हैबीटेट) इस संबंध में प्रत्येक देश द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं की निगरानी करता है। यहाँ राज्य, शहर में अनधिकृत कॉलोनियों को किसी भी सार्वजनिक सेवा या सुविधा से वंचित कर सकता है। अतः विकल्प (c) सही है।
62. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनाें पर विचार कीजियेः
- न्यायिक हिरासत का अर्थ है कि अभियुक्त संबंधित मजिस्ट्रेट की हिरासत में है और ऐसे अभियुक्त को पुलिस स्टेशन के हवालात में रखा जाता है न कि जेल में।
- न्यायिक हिरासत के दौरान, मामले के प्रभारी पुलिस अधिकारी, न्यायालय की अनुमति के बिना संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ नहीं कर सकते।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः भारत के संदर्भ में न्यायिक हिरासत का अर्थ है कि अभियुक्त संबंधित मजिस्ट्रेट की हिरासत में है और उसे जेल में रखा जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है। साथ ही, यदि मामले का प्रभारी पुलिस अधिकारी न्यायिक हिरासत के दौरान किसी संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ करना चाहता है तो उसके द्वारा न्यायालय की अनुमति ली जाना अनिवार्य है। अतः कथन 2 सही है। विकल्प (b) सही उत्तर होगा।
63. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनाें पर विचार कीजियेः
- जब एक कैदी पर्याप्त आधार प्रस्तुत करता है, तो ऐसे कैदी को पैरोल मना नहीं किया जा सकता, क्याेंकि वह उसके अधिकार का मामला बन जाता है।
- कैदी को पैरोल पर छोड़ने के लिये राज्य सरकारों के अपने नियम हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः भारत में कारागारों में सज़ा काट रहे बंदियों को समय-समय पर पैरोल पर छोड़े जाने की व्यवस्था प्रचलित है। सामान्यतः एक बंदी द्वारा पर्याप्त आधार प्रस्तुत किये जाने पर उसे पैरोल दी जा सकती है। हालाँकि पैरोल पर छोड़े जाना किसी भी प्रकार से बंदी के अधिकार का मामला नहीं है और पर्याप्त आधारों के बावजूद प्रशासन उसे पैरोल देने से इनकार कर सकता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
- संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत दी गई राज्य सूची की प्रविष्टि संख्या 4 "कारागार, सुधारालय, बोर्स्टल संस्थाएँ और उसी प्रकार की अन्य संस्थाएँ और उनमें निरुद्ध व्यक्ति : कारागारों और अन्य संस्थाओं के उपयोग के लिये अन्य राज्यों से ठहराव" है। इससे यह स्पष्ट है कि पैरोल के नियमों सहित कारागारों से संबंधित किसी प्रकार की विधि व नियम बनाना राज्य विधानसभाओं का क्षेत्राधिकार है। अतः कथन 2 सही है व विकल्प (b) सही उत्तर होगा।
64. राष्ट्रीय स्तर पर, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है?
व्याख्याः अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 की धारा-11 में यह प्रावधान है कि जनजातीय कार्य से संबंधित केंद्र सरकार का मंत्रालय या इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत कोई अधिकारी या प्राधिकरण अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी होगा। अतः विकल्प (d) सही उत्तर होगा।
65. कानून को लागू करने के मामले में कोई विधान, जो किसी कार्यपालक अथवा प्रशासनिक प्राधिकारी को अनिर्देशित एवं अनियंत्रित विवेकाधिकार देता है, भारत के संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेदों में से किसका उल्लंघन करता है?
व्याख्याः भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 में यह प्रावधान है कि राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के सामान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यहाँ 'विधि के समक्ष समता' का आशय यह है कि भारत में सभी व्यक्ति विधि के दायरे में समान रूप से आएंगे और किसी को भी कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होगा। ऐसे में यदि कोई विधान किसी कार्यपालक अथवा प्रशासनिक अधिकारी को अनिर्देशित एवं अनियंत्रित विवेकाधिकार देता है तो 'विधि के समक्ष समता' के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। इस प्रकार विकल्प (a) सही उत्तर होगा।
66. भारतीय राज्य-व्यवस्था में, निम्नलिखित में से कौन-सी अनिवार्य विशेषता है, जो यह दर्शाती है कि उसका स्वरूप संघीय है?
(a) न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुरक्षित है।
(b) संघ की विधायिका में संघटक इकाइयों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं।
(c) केंद्रीय मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय पार्टियों के निर्वाचित प्रतिनिधि हो सकते हैं।
(d) मूल अधिकार न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय हैं।
व्याख्याः संघवाद की अनिवार्य विशेषताओं की बात की जाए तो इसके अंतर्गत-संघ व राज्य के बीच शक्तियों का स्पष्ट संवैधानिक विभाजन; लिखित, कठोर एवं सर्वोच्च संविधान, द्विस्तरीय सरकार तथा स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका इत्यादि तत्त्व माने जाते हैं। इस प्रकार विकल्प (a) सही उत्तर होगा।
- उल्लेखनीय है कि संघीय विधायिका में संघटक इकाइयों के निर्वाचित प्रतिनिधि होना संघीय राजव्यवस्था का लक्षण तो है परंतु यह अनिवार्य नहीं है। साथ ही, केंद्रीय मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय पार्टियों के निर्वाचित प्रतिनिधि होना व मूल अधिकार न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय होना राजव्यवस्था के संघीय स्वरूप की अनिवार्य विशेषताओं से प्रत्यक्षतः संबद्ध नहीं हैं।
67. निम्नलिखित में से कौन-सा 'राज्य' शब्द को सर्वोत्तम रूप से परिभाषित करता है?
(a) व्यक्तियों का एक समुदाय, जो बिना किसी बाह्य नियंत्रण के एक निश्चित भू-भाग में स्थायी रूप से निवास करता है और जिसकी एक संगठित सरकार है।
(b) एक निश्चित भू-भाग के राजनीतिक रूप से संगठित लोग, जो स्वयं पर शासन करने, कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने, अपने नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करने तथा अपनी जीविका के साधनों को सुरक्षित रखने का अधिकार रखते हैं।
(c) बहुत से व्यक्ति, जो एक निश्चित भू-भाग में बहुत लंबे समय से अपनी संस्कृति, परंपरा और शासन-व्यवस्था के साथ रहते आए हैं।
(d) एक निश्चित भू-भाग में स्थायी रूप से रह रहा समाज, जिसकी एक केंद्रीय प्राधिकारी तथा केंद्रीय प्राधिकारी के प्रति उत्तरदायी कार्यपालिका और एक स्वतंत्र न्यायपालिका है।
व्याख्याः वर्तमान समय में राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व माने जाते हैं- जनसंख्या, भूभाग, सरकार व संप्रभुता। दूसरे शब्दों में, यदि व्यक्तियों का एक अथवा अनेक समुदाय (जनसंख्या) एक निश्चित भूभाग में स्थायी रूप से निवास करता है, एक संगठित सरकार वहाँ के शासन-प्रशासन का दायित्व संभालती है तथा उस भूभाग में निवास करने वाले समुदाय या समुदायों पर किसी प्रकार का कोई बाह्य नियंत्रण नहीं है, तो इसे 'राज्य' की संज्ञा दी जाएगी। इस प्रकार उपलब्ध विकल्पों में से विकल्प (a) 'राज्य' शब्द को सर्वोत्तम रूप से परिभाषित करता है।
68. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है।
- भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः संविधान के अनुच्छेद 128 में यह प्रावधान है कि आवश्यकता पड़ने पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को भी अल्पकाल के लिये सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध किया जाता है। (सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालयों के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश, जो सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये सम्यक रूप से अर्ह हों।) सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से ऐसे न्यायाधीश से लिखित अनुरोध कर सकता है। अतः कथन 1 सही है।
- अनुच्छेद 215 में उच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का दर्जा प्राप्त है। उसे अपनी अवमानना के लिये दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी। उल्लेखनीय है कि अभिलेख न्यायालय की शक्तियों के अंतर्गत अपने ही निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति भी शामिल है। अतः कथन 2 सही है। विकल्प (c) सही उत्तर होगा।
69. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- भारत में केवल एक नागरिक और एक ही अधिवास है।
- जो व्यक्ति जन्म से नागरिक हो, केवल वही राष्ट्राध्यक्ष बन सकता है।
- जिस विदेशी को एक बार नागरिकता दे दी गई है, किसी भी परिस्थिति में उसे इससे वंचित नहीं किया जा सकता।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः भारत में एकल नागरिकता और एकल अधिवास की व्यवस्था स्वीकार की गई है। अतः कथन 1 सही है।
- भारत में राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति) देश का कोई भी नागरिक बन सकता है, इस संदर्भ में संबंधित नागरिक को जिस विधि से मान्यता मिली है, उससे जुड़ी कोई बाध्यता आरोपित नहीं की जाती है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा-10 के अनुसार, "पंजीकरण, देशीयकरण या केवल संविधान के अनुच्छेद 5(ग) के आधार पर नागरिकता अर्जित करने वाले नागरिकों को केंद्र सरकार आदेश द्वारा नागरिकता से वंचित कर सकती है।" इस प्रावधान के आधार पर विदेशियों को भारत की नागरिकता से वंचित किया जा सकता है। अतः कथन 3 सही नहीं है। विकल्प (a) सही उत्तर होगा।
70. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक किसी उदार लोकतंत्र में स्वतंत्रता की सर्वोत्तम सुरक्षा को नियत करता है?
व्याख्याः किसी उदार लोकतंत्र में स्वतंत्रता की सर्वोत्तम सुरक्षा के लिये यह अनिवार्य है कि शक्तियों का केंद्रीकरण न हो। उल्लेखनीय है कि शक्तियों के पृथक्करण को यदि शासन का आधार बनाया जाता है, तो राज्य की विधायी, कार्यपालिका व न्यायिक शक्तियों का उपयोग पृथक-पृथक संस्थाओं द्वारा स्वायत्त रूप से किया जाता है और इसमें न्यायपालिका स्वतंत्र होती है, जिससे शासन व्यवस्था के किसी एक अंग द्वारा स्वतंत्रता पर आघात किये जाने की स्थिति में अन्य अंग नागरिकों की स्वतंत्रता के संरक्षण के लिये आगे आते हैं। इस प्रकार शक्तियों के पृथक्करण के माध्यम से उनके केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाता है तथा इससे ही स्वतंत्रता की सर्वोत्तम रक्षा की जा सकती है। अतः विकल्प (d) सही उत्तर होगा।
71. सवाना की वनस्पति में बिखरे हुए छोटे वृक्षों के साथ घास के मैदान होते हैं, किंतु विस्तृत क्षेत्र में कोई वृक्ष नहीं होते हैं। ऐसे क्षेत्रों में वन विकास सामान्यतः एक या एकाधिक या कुछ परिस्थितियों के संयोजन के द्वारा नियंत्रित होता है। ऐसी परिस्थितियाँ निम्नलिखित में से कौन-सी हैं?
- चरने वाले तृणभक्षी प्राणी (हर्बिवोर्स)
व्याख्याः सवाना की वनस्पति में बिखरे हुए छोटे वृक्ष और घास के मैदान इसकी प्रमुख विशेषता है। उर्वरता की दृष्टि से ये क्षेत्र कम समृद्ध होते हैं। इन क्षेत्रों में वन विकास का प्रमुख कारक मौसमी वर्षा है।
- यहाँ वर्षा आमतौर पर ग्रीष्मकाल में होती है तथा शुष्क और आर्द्र मौसम क्रम से आते हैं। इन क्षेत्रों में शुष्कता ज़्यादा होने से आग लगने का खतरा बढ़ जाता है, परिणामस्वरूप वृक्षों का विकास नहीं हो पाता।
- यहाँ चरने वाले तृणभक्षी प्राणी (हर्बिवोर्स) भी वनस्पति के विकास को प्रभावित करते हैं। विदित हो कि दीमक मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लकड़ी और पादप पदार्थों का पुनः उपयोग करने वाले अत्यधिक पारिस्थितिक महत्त्व वाले कीट हैं। अतः विकल्प (c) सही है।
72. पृथ्वी ग्रह पर जल के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- नदियों और झीलों में जल की मात्रा, भू-जल की मात्रा से अधिक है।
- ध्रुवीय हिमच्छद और हिमनदों में जल की मात्रा, भू-जल की मात्रा से अधिक है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः धरातल का लगभग दो-तिहाई से भी अधिक भाग जल से ढँका हुआ है। जलमंडल में महासागर, झील, नदियाँ, भूमिगत जल, हिमनदियाँ आदि सभी सम्मिलित होते हैं। इनमें महासागर सबसे बड़े जलखंड है। जल का लगभग 97 प्रतिशत भाग महासागरों में पाया जाता है,जो लवणीय होने के कारण पीने योग्य नहीं होता है। शेष 3 प्रतिशत का अधिकांश भाग हिमचादरों, हिमनदियों में और फिर भूमिगत जल के रूप में पाया जाता है। नदियों और झीलों में जल की मात्रा अपेक्षाकृत कम है। अतः विकल्प (b) सही है।
73. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- मोरिंगा (सहजन वृक्ष) एक फलीदार सदापर्णी वृक्ष है।
- इमली का पेड़ दक्षिण एशिया का स्थानिक वृक्ष है।
- भारत में अधिकांश इमली लघु वनोत्पाद के रूप में संगृहीत की जाती है।
- भारत इमली और मोरिंगा के बीज निर्यात करता है।
- मोरिंगा और इमली के बीजों का उपयोग जैव ईंधन के उत्पादन में किया जा सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः मोरिंगा (सहजन वृक्ष) एक फलीदार पर्णपाती वृक्ष है। यह वृक्ष उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से खेती की जाने वाली फसलों में से एक है।
- मोरिंगा के बीज का तेल एक उच्च ऑक्सीकरणी स्थिरता (Oxidative Stability) प्रदर्शित करता है और इसकी तापीय स्थिरता अन्य तेल फसलों जैसे सूरजमुखी तेल, सोयाबीन तेल आदि से अधिक होती है। मोरिंगा जैव ईंधन (बायोडीजल) को लंबे समय तक संगृहीत किया जा सकता है और यह परिवहन के लिये सुरक्षित है।
- इसके अलावा, इमली अफ्रीका में उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का स्थानिक वृक्ष है। इस खटेे-मीठे फल का उपयोग बड़े पैमाने पर खाद्य व पेय पदार्थों तथा पारंपरिक दवाओं में किया जाता है। इमली (बीजसहित) को लघु वनोपज के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- इमली के बीज के तेल का उपयोग भी जैव ईंधन के उत्पादन में किया जा सकता है, जो कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक हो सकता है। उल्लेखनीय है कि भारत से लगभग 60 देशों में इमली का निर्यात किया जाता है। साथ ही, दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत मोरिंगा मांग की आपूर्ति भारत करता है। अतः विकल्प (b) सही है।
74. भारत में काली कपास मृदा की रचना, निम्नलिखित में से किसके अपक्षयण से हुई है?
व्याख्याः काली मृदा का निर्माण दरारी उद्भेदन से निकले लावा पदार्थों (बेसाल्ट चटेान) के विखंडन से हुआ है। यह कपास की खेती के लिये अधिक उपयोगी एवं विख्यात है, इसलिये इसे 'काली कपासी मृदा' या 'रेगुर' के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त इसे 'उष्ण कटिबंधीय चेरनोजम' व 'ट्रॉपिकल ब्लैक अर्थ' भी कहते हैं। उत्तर प्रदेश में इस मृदा को 'करेल' की संज्ञा दी जाती है। कपास के अतिरक्त यह मृदा गन्ना, गेहूँ, प्याज और फलों की खेती करने के लिये अनुकूल है।
अतः विकल्प (b) सही है।
75. 'पुनःसंयोजित (रीकॉम्बिनेंट) वेक्टर वैक्सीन' से संबंधित हाल के विकास के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- इन वैक्सीनों के विकास में आनुवंशिक इंजीनियरी का प्रयोग किया जाता है।
- जीवाणुओं और विषाणुओं का प्रयोग रोगवाहक (वेक्टर) के रूप में किया जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः पुनः संयोजित (Recombinant) वेक्टर वैक्सीन एक नवीन तकनीक है। इसमें वैक्सीन की प्रतिकृति में एक पूरी तरह से सक्षम वायरल वेक्टर आधार होता है। इसे इस तरह बनाया जाता है कि जिससे एक विदेशी ट्रांसजीन को एंटीजन में व्यक्त कर सकें। पुनः संयोजित वेक्टर वैक्सीन जीवित प्रतिकृति वायरस (Live Replicating Viruses) होते हैं जिन्हें एक रोगजनक (Pathogen) से प्राप्त अतिरिक्त जीन को ले जाने के लिये इंजीनियर किया जाता है और ये अतिरिक्त जीन प्रोटीन उत्पन्न करते हैं जिसके खिलाफ हम प्रतिरक्षा उत्पन्न करना चाहते हैं। अतः कथन (1) सही है।
- रोगवाहक (Vector) जीवित जीव हैं जो मनुष्यों के बीच या जानवरों से मनुष्यों के बीच संक्रामक रोगजनकों को प्रसारित कर सकते हैं। अक्सर, एक बार जब एक वेक्टर संक्रामक हो जाता है, तो वे अपने शेष जीवन के लिये रोगजनक को प्रसारित करने में सक्षम होते हैं। वैक्सीन एक सुरक्षित जीवाणुओं और विषाणुओं का उपयोग करते हैं। इनके विशिष्ट भाग, जिसे प्रोटीन कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है। संबंधित रोगजनक का इस प्रकार उपयोग किया जाता है कि यह रोग पैदा किये बिना प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर सकें। अतः कथन (2) सही है। अतः विल्कप (c) सही है।
76. आनुवंशिक रोगों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- अंडों के अंतःपात्र (इन विट्रो) निषेचन से या तो पहले या बाद में सूत्रकणिका प्रतिस्थापन (माइटोकॉण्ड्रियल रिप्लेसमेंट) चिकित्सा द्वारा सूत्रकणिका रोगों (माइटोकॉण्ड्रियल डिजीज़) को माता-पिता से संतान में जाने से रोका जा सकता है।
- किसी संतान में सूत्रकणिका रोग आनुवंशिक रूप से पूर्णतः माता से जाता है न कि पिता से।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः सूत्रकणिका प्रतिस्थापन चिकित्सा (Mitochondrial Replacement Therapy) में माता के खराब माइटोकॉण्ड्रिया को दाता (Doner) महिला के स्वस्थ माइटोकॉण्ड्रिया के द्वारा बदला जाता है। उसके बाद इनविट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक के द्वारा अंडाणु (Ovum) और सहयोगी के शुक्राणु (Sperm) के साथ निषेचन से प्राप्त युग्मनज (Zygote) का प्रारंभिक भ्रूणीय विकास आंरम्भ कराया जाता है। इसके माध्यम से विकारयुक्त माइटोकॉण्ड्रिया डी.एन.ए को दुरुस्त किया जा सकता है तथा इससे उत्पन्न अन्य बीमारियों को रोका जा सकता है। अतः कथन (1) सही है। विकल्प (c) सही उत्तर होगा।
- मनुष्य केवल अपनी माता से माइटोकॉण्ड्रिया प्राप्त करता है और माइटोकॉण्ड्रिया डी.एन.ए (Mt. DNA) से प्राप्त करते हैं। अतः कथन (2) सही है।
77. बॉलगार्ड-I और बॉलगार्ड--II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है?
व्याख्याः बॉलगार्ड-I बीटी कपास से संबंधित तकनीक है। यह भारत की पहली बायौटेक फसल तकनीक है जिसे वर्ष 2002 में भारत में व्यवसायीकरण के लिये अनुमोदित किया गया है।
- बॉलगार्ड-I एकल जीन प्रौद्योगिकी (Cry-1Ac) है तो वहीं बॉलगार्ड-II डबल जीन प्रौद्योगिकी (Cry-2Ac, Cry-1Ab) है। अतः विकल्प (b) सही है।
78. किसी प्रेशर कुकर में, जिस तापमान पर खाद्य पकाए जाते हैं, वह मुख्यतः निम्नलिखित में से किन पर निर्भर करता है?
व्याख्याः प्रेशर कुकर में खाना इसलिये जल्दी पक जाता है क्योंकि अत्यधिक दाब पर क्वथनंाक बढ़ जाता है और ज़्यादा ऊष्मा देने पर ही क्वथन संभव हो पाता है। वस्तुतः ढक्कन में स्थित छिद्र का क्षेत्रफल कम होने पर दाब अधिक होगा तथा ज्वाला का तापमान एवं ढक्कन का भार अधिक होने पर क्वथनांक बढ़ने तथा अधिक दाब होने पर खाना जल्दी पकेगा। अतः विकल्प (d) सही है।
79. निम्नलिखित पर विचार कीजियेः
उपर्युक्त में से किन्हें कृत्रिम/संश्लेषित माध्यम में संवर्धित किया जा सकता है?
व्याख्याः वायरस वे अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो जीवित कोशिका में ही पुनरूत्पादन कर सकते हैं। ये शरीर के बाहर मृत या सुसुप्तावस्था में होते हैं परंतु शरीर या जीवित माध्यम के संपर्क में आने पर जीवित हो जाते हैं। ये केवल जीवित कोशिका में ही वृद्धि कर सकते हैं अतः इन्हें कृत्रिम रूप में संवर्द्धित नहीं किया जा सकता।
- बैक्टिीरिया कोशिकीय सूक्ष्मजीव होते हैं तथा कवक बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीव हैं। बैक्टिीरिया एंव कवक दोनों को कृत्रिम रूप में सवंर्द्धित किया जा सकता है। अतः विकल्प (a) सही है।
80. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- एडीनोवायरसों में एकल-तंतु डी.एन.ए. संजीन (जीनोम) होते हैं, जबकि रेट्रोवायरसों में द्वि-तंतु डी.एन.ए. संजीन (जीनोम) होते हैं।
- कभी-कभी सामान्य जुकाम एडीनोवायरस के कारण होता है, जबकि एड्स (ए.आई.डी.एस.) रेट्रोवायरस के कारण होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः एडीनोवायरस मध्यम आकार का एक न्यूक्लियोकैप्सिड (Nucleocapsid) और एक रैखिक द्वि-तंतु डी.एन.ए. संजीन (Linear Double-stranded DNA Genome) से बना आईकोसाहेड्रल (icosahedral) वायरस है। जबकि रेट्रोवायरस एकल-तंतु डी.एन.ए. संजीन आरएनए पशु वायरस (Single-Stranded RNA Animal Viruses) है जो प्रतिकृति के लिये द्वि-तंतु- डीएनए मध्यवर्ती (Double-stranded DNA Intermediate) को नियोजित करते हैं। अतः कथन (1) सही नहीं है।
- एडीनोवायरस आम वायरस है जो कई तरह की बीमारियों का कारण बनते हैं। ये सामान्य जुकाम, बुखार, गले में खराश, ब्रोंकाइटिस (Bronchitis), निमोनिया, दस्त और गुलाबी आँख (Conjunctivitis) पैदा कर सकते हैं। एडीनोवायरस संक्रमण किसी भी उम्र में हो सकता है। कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली या मौजूदा श्वसन या हृदय रोग वाले लोगों में एडीनोवायरस संक्रमण से बीमार होने की संभावना अधिक होती है। एचआईवी को रेट्रोवायरस कहा जाता है क्योंकि यह बैक-टू-फ्रंट तरीके से काम करता है। अन्य वायरस के विपरीत, रेट्रोवायरस डीएनए की बजाय आरएनए का उपयोग करके अपनी आनुवंशिक जानकारी संगृहीत करते हैं, जिसका अर्थ है कि जब वे मानव कोशिका में प्रवेश करते हैं तो उन्हें स्वयं की नई प्रतियाँ बनाने के लिये डीएनए को बनाने की आवश्यकता होती है। अतः कथन (2) सही है। अतः विकल्प (b) सही है।
81. स्थायी कृषि (पर्माकल्चर), पारंपरिक रासायनिक कृषि से किस तरह भिन्न है?
- स्थायी कृषि एकधान्य कृषि पद्धति को हतोत्साहित करती है, किन्तु पारंपरिक रासायनिक कृषि में एकधान्य कृषि पद्धति की प्रधानता है।
- पारंपरिक रासायनिक कृषि के कारण मृदा की लवणता में वृद्धि हो सकती है, किन्तु इस तरह की परिघटना स्थायी कृषि में दृष्टिगोचर नहीं होती है।
- पारंपरिक रासायनिक कृषि अर्धशुष्क क्षेत्रों में आसानी से संभव है, किन्तु ऐसे क्षेत्रों में स्थायी कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है।
- मल्च बनाने (मल्ंिचग) की प्रथा स्थायी कृषि में काफी महत्त्वपूर्ण है, किन्तु पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसी प्रथा आवश्यक नहीं है।
व्याख्याः स्थायी कृषि (पर्माकल्चर) प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के अंतर्संबंधों और स्थिरता को प्रतिबिंबित करती है। पर्माकल्चर भूमि का सर्वोत्तम उपयोग करने का एक प्रयास है ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ियाँ उत्पादक तरीके से भूमि का उपयोग जारी रख सकें। पर्माकल्चर एकधान्य कृषि को हतोत्साहित करता है और खाद्यान्न, फलों और सब्ज़ियों की एक विस्तृत शृंखला को उगाने और इस तरह खाद्य टोकरी का विस्तार करने की संभावना का मार्ग प्रशस्त करता है। पर्माकल्चर विधियों के अनुप्रयोग और पर्माकल्चर तकनीकों जैसे कि प्राकृतिक मल्च़िग, वर्षा जल संचयन, मिट्टी के गुणों में सुधार, मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाने और मिट्टी की लवणता को कम करने में एक स्पष्ट भूमिका है। मल्च़िग, फसल की उपज में सुधार करने और पानी के उपयोग को अनुकूलित करने में मदद कर सकती है जो कि पर्माकल्चर का एक अनिवार्य घटक है। जल संरक्षण और क्षेत्र विशिष्ट फसलों पर केंद्रित होने के कारण यह शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिये अधिक उपयुक्त है। अतः विकल्प (b) सही है।
82. 'ताड़ तेल (पाम ऑयल)' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
- ताड़ तेल वृक्ष दक्षिण-पूर्व एशिया में प्राकृतिक रूप में पाया जाता है।
- ताड़ तेल लिपस्टिक और इत्र बनाने वाले कुछ उद्योगों के लिये कच्चा माल है।
- ताड़ तेल का उपयोग जैव डीज़ल के उत्पादन में किया जा सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः ताड़ तेल वृक्ष अफ्रीका में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। वैश्विक बाज़ार में बायोडीजल उत्पादन में और विविधता लाने के लिये पाम तेल को एक वैकल्पिक और आशाजनक फीडस्टॉक माना जाता है। यह एक वनस्पति तेल है, जिसका उपयोग लिपस्टिक व इत्र (Perfume) जैसे सौंदर्य प्रसाधनों (Cosmetics) में नमी प्रदायक (moisturising) और टेक्सचराइजिंग (Texturising) गुणों के लिये किया जाता है। अतः विकल्प (b) सही है।
83. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में, निम्नलिखित चार नदियों में से तीन नदियाँ इनमें से किसी एक नदी में मिलती हैं जो सीधे सिंधु नदी से मिलती है। निम्नलिखित में से वह नदी कौन-सी है, जो सिंधु नदी से सीधे मिलती है?
व्याख्याः सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत में कैलाश पर्वत श्रेणी में 'बोखार चू' (Bokhar Chu) के निकट एक हिमनद से होता है, इसे तिब्बत में 'सिंगी खंबान' अथवा 'शेर मुख' कहते हैं। इस नदी के बाएँ और दाएँ दोनों तरफ से अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं, जैसे-श्योक, गिलगित,शिगार, काबुल, जास्कर, पंचनद (झेलम, चेनाब, रावी, व्यास, सतलुज)आदि। पंचनद नदियाँ आपस में मिलकर पाकिस्तान में 'मिथनकोट' के पास सिंधु नदी में मिल जाती हैं। ध्यातव्य है कि सतलुज नदी सिंधु नदी में सीधे मिलती है। अतः विकल्प (d) सही है।
84. भारत के संदर्भ में डीडवाना, कुचामन, सरगोल और खाटू किनके नाम हैं?
व्याख्याः हवाओं के प्रवाह एवं अपरदन से निर्मित झीलें 'वायु द्वारा निर्मित झील' की श्रेणी के अंतर्गत आती हैं। इन झीलों को प्लाया भी कहते हैं। ये मुख्यतः लवणीय झीलें होती हैं। राजस्थान की अधिकांश झीलें इसी श्रेणी की हैं,जैसे-सांभर, पंचभद्रा, लूणकरणसर, डीडवाना, कुचामन, सरगोल, खाटू आदि। अतः विकल्प (d) सही है।
85. निम्नलिखित नदियों पर विचार कीजियेः
उपर्युक्त में से कौन-सी नदियाँ पूर्वी घाट से निकलती हैं?
व्याख्याः पूर्वी घाट की असंबद्ध पहाड़ी शृंखलाएँ ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में फैली हुई हैं जो कि अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का उदाहरण हैं। नागावली नदी का उद्गम ओडिशा के कालाहांडी ज़िले में 1,300 मीटर की ऊँचाई पर स्थित लखबहल के पास पूर्वी घाट के पूर्वी ढलानों से होता है। वंशधारा नदी ओडिशा के कालाहांडी और रायगढ़ ज़िले की सीमा पर पूर्वी घाट से निकलती है। वहीं ब्राह्मणी नदी का उद्गम राउरकेला (ओडिशा) के निकट दक्षिणी कोयल एवं शंख नदियों के मिलने से तथा सुवर्णरेखा का उद्गम छोटानागपुर के पठार से होता है। अतः विकल्प (b) सही है।
- वैश्विक सागर आयोग (ग्लोबल ओशन कमीशन) अंतर्राष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्र-संस्तरीय (सीबेड) खोज और खनन के लिये लाइसेंस प्रदान करता है।
- भारत ने अंतर्राष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्र-संस्तरीय खनिज की खोज के लिये लाइसेंस प्राप्त किया है।
- 'दुर्लभ मृदा खनिज (रेयर अर्थ मिनरल)' अंतर्राष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्र अधस्तल पर उपलब्ध है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः वैश्विक सागर आयोग 2013 से 2016 के बीच समुद्री तंत्र के क्षरण को संबोधित करने,इसके लिये जागरूकता बढ़ाने और इसकी उत्पादकता को बहाल करने में मदद करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय पहल थी। जबकि समुद्र संस्तरीय (सीबेड) खोज और खनन के लिये लाइसेंस प्रदान करने का कार्य अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (International Seabed Authority-ISA) द्वारा किया जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ का एक निकाय है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय जल के अंतर्गत महासागरों में पाए जाने वाले निर्जीव संसाधनों के संबंध में अन्वेषण व दोहन आदि कार्यों को विनियमित करने के लिये स्थापित किया गया है।
- विदित हो कि केंद्रीय भारतीय महासागरीय बेसिन (Central Indian Ocean Basin- CIOB) के समुद्र तट में पॉलीमेटैलिक ग्रंथियों (polymetallic nodules) का पता लगाने संबंधी भारत के विशेषाधिकार को वर्ष 2017 में पाँच साल के लिये बढ़ा दिया गया है। अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र में दुर्लभ मृदा खनिज समुद्र अधस्थल पर उपलब्ध होते हैं। दुर्लभ मृदा खनिज में प्रमुख धातु घटकों के रूप में एक या अधिक दुर्लभ मृदा तत्त्व होते हैं। ये पृथ्वी की ऊपरी सतह (क्रस्ट) में पाए जाते हैं। दुर्लभ मृदा तत्त्व अपने नाम के विपरीत पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं लेकिन इनके प्रसंस्करण की प्रक्रिया बहुत ही जटिल है। अतः विकल्प (b) सही है।
87. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल, न्यूनतम जल-दक्ष (लीस्ट वाटर-एफिशिएंट) फसल है?
(d) अरहर (रेड ग्राम)
व्याख्याः गन्ना एक नकदी फसल है,जिसके उत्पादन के लिये 75&150 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। एक किलो ग्राम गन्ने के उत्पादन में करीब 210 लीटर पानी खर्च होता है। वहीं सूरजमुखी के प्रति किलो ग्राम उत्पादन में 7-9 लीटर पानी की खपत होती है। बाजरे की बुवाई शुष्क क्षेत्रों में न्यूनतम सिंचाई के साथ की जाती है। अरहर (लाल चना) एक वर्षा आधारित फसल है जो निश्चित वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है। इस फसल के लिये 35 से 40 सेमी. पानी के साथ-साथ नमी की भी आवश्यकता होती है। आमतौर पर इसे किसी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार उपर्युक्त विकल्पों में गन्ना ही वह फसल है जो न्यूनतम जल-दक्ष (Least Water-efficient) है। अतः विकल्प (a) सही है।
- उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में, व्यापारिक पवन के प्रभाव के कारण पूर्वी खंडों की तुलना में महासागरों के पश्चिमी खंड अधिक उष्ण होते हैं।
- शीतोष्ण क्षेत्र में, पश्चिमी पवन पश्चिमी खंडों की तुलना में महासागरों के पूर्वी खंडों को अधिक उष्ण बनाती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों में भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर चलने वाली पवनों को 'सन्मार्गी/व्यापारिक पवनें' कहते हैं। ये पवनें महासागरों के पूर्वी खंड से गर्म और हल्के जल को आगे की ओर लेकर जाती हैं, जिससे महासागर के निचले क्षेत्र का ठंडा जल ऊपर आ जाता है और इस प्रकार इन पवनों से महासागरों के पूर्वी खंड ठंडे और पश्चिमी खंड अपेक्षाकृत अधिक गर्म हो जाते हैं। इसी प्रकार शीतोष्ण क्षेत्र में उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंध से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर चलने वाली पश्चिमी पवनें (Westerlies) महासागरों के पश्चिमी खंड के गर्म और हल्के जल को आगे की ओर हटाती हैं, जिससे पूर्वी खंड गर्म हो जाते हैं। अतः विकल्प (c) सही है।
- भारत में 'जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)' दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी.सी.ए.एफ.एस.) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
- सी.सी.ए.एफ.एस. परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी.जी.आई.ए.आर.) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय प्राँस में है।
- भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आई.सी.आर.आई.एस.ए.टी.), सी.जी.आई.ए.आर. के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
व्याख्याः 'जलवायु स्मार्ट कृषि' (Climate Smart Agriculture-CSA) एक दृष्टिकोण है, जो बदलती हुई जलवायु में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु कृषि प्रणालियों को परिवर्तित और पुनर्जीवित करने के लिये आवश्यक क्रियाओं को निर्देशित करने में मदद करता है। देश में जलवायु-स्मार्ट कृषि विकसित करने की ठोस पहल की गई है और इसके लिये राष्ट्रीय स्तर की परियोजना भी लागू की गई है। यह परियोजना खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की परस्पर चुनौतियों का सामना करने के लिये बनाई गई है। इसके लिये 'जलवायु स्मार्ट ग्राम' तैयार किये गए है,जिसमें उचित फसल, किस्मों, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, कृषि यंत्रीकरण एवं कस्टम हायरिंग केंद्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह दृष्टिकोण 'अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा' द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है जो एक परामर्शदात्री समूह के अधीन संचालित किया जाता है। इसका मुख्यालय फ्राँस में है। अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जो ग्रामीण विकास के लिये कृषि अनुसंधान कार्य करता है। इसका मुख्यालय पाटनचेरू (हैदराबाद, तेलंगाना) में स्थित है। अतः विकल्प (d) सही है।
90. "पत्ती-कूड़ा (लीप़ लिटर) किसी अन्य जीवोम (बायोम) की तुलना में तेज़ी से विघटित होता है और इसके परिणामस्वरूप मिट्टी की सतह प्रायः अनावृत होती है। पेड़ों के अतिरिक्त, वन में विविध प्रकार के पौधे होते हैं जो आरोहण के द्वारा या अधिपादप (एपिफाइट)के रूप में पनपकर पेड़ों के शीर्ष तक पहुँचकर प्रतिस्थ होते हैं और पेड़ों की ऊपरी शाखाओं में जड़ें जमाते हैं।" यह किसका सबसे अधिक सटीक विवरण है?
व्याख्याः उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन को उष्णकटिबंधीय वर्षावन भी कहते हैं। ये वन सघन और पत्तों वाले होते हैं, जहाँ भूमि के नज़दीक झाड़ियाँ और बेलें होती हैं, इनके ऊपर छोटे कद वाले पेड़ और सबसे ऊपर लंबे पेड़ होते हैं। इन वनों में वृक्षों की लंबाई 60 मी. या उससे भी अधिक हो सकती है। चूँकि, इन पेड़ों के पत्ते झड़ने, फूल आने और फल लगने का समय अलग-अलग होता है, इसलिये ये वर्ष भर हरे-भरे दिखाई देते हैं। किसी अन्य जीवोम (बायोम) की तुलना में यहाँ पत्ती-कूड़ा तेज़ी से विघटित होता है, जिससे मिट्टी की सतह प्रायः अनावृत्त होती है। इसमें प्रमुख रूप से पाई जाने वाली वृक्ष प्रजातियाँ रोजवुड, महोगनी, ऐनी और ऐबनी हैं। अतः विकल्प (d) सही है।
व्याख्याः जल को सार्वभौमिक विलायक कहा जाता है क्योंकि यह किसी भी अन्य द्रव की तुलना में अधिक पदार्थों को घोलने में सक्षम है। जल अपनी द्विध्रुवीय प्रकृति के कारण किसी भी अन्य यौगिक की तुलना में अधिक पदार्थों को घोल सकता है। पानी के अणु अपनी विशिष्ट संरचना के कारण, एक तरफ धनात्मक आवेश वाले हाइड्रोजन और दूसरी ओर ऋणात्मक आवेश वाली ऑक्सीजन, अन्य अणुओं को आसानी से आकर्षित करने में सक्षम होते हैं। अतः विकल्प (a) सही है।
92. सड़क प्रकाश व्यवस्था के संदर्भ में, सोडियम बत्तियाँ, एल.ई.डी. बत्तियों से किस तरह भिन्न हैं?
- सोडियम बत्तियाँ प्रकाश को 360 डिग्री में उत्पन्न करती हैं, किंतु एल.ई.डी. बत्तियों में ऐसा नहीं होता है।
- सड़क की बत्तियों के रूप में, एल.ई.डी. बत्तियों की तुलना में सोडियम बत्तियों की उपयोगिता अवधि अधिक होती है।
- सोडियम बत्ती के दृश्य प्रकाश का स्पेक्ट्रम लगभग एकवर्णी होता है, जबकि एल.ई.डी. बत्तियाँ सड़क प्रकाश व्यवस्था में सार्थक वर्ण सुविधाएँ (कलर एडवैंटेज) प्रदान करती हैं।
व्याख्याः हाई प्रेशर सोडियम बत्तियाँ (Sodium Lamps) सर्वदिशिक (Omnidirectional) होती हैं, जो 360° में प्रकाश उत्पन्न करती हैं। इसमें प्रकाश का अधिक अपव्यय होता है जो इसे कम कुशल बनाता है। वहीं एल.ई.डी. बत्तियाँ (LED Lamps) प्रकाश दक्षता को बनाए रखने और लक्षित क्षेत्रों पर प्रकाश उत्पन्न करने के लिये 180° में प्रकाश उत्पन्न करती हैं। अतः कथन (1) सही है।
- सड़क की बत्तियों के रूप में सोडियम बत्तियों की तुलना में एल.ई.डी.बत्तियों की उपयोगिता अवधि अधिक होती है। एल.ई.डी.बत्तियों की उपयोगिता अवधि सोडियम बत्तियों की तुलना में लगभग 4 गुना अधिक होती है। अतः कथन (2) सही नहीं है।
- सोडियम बत्तियाँ एक बहुत ही संकीर्ण आवृत्ति 589 और 589.56 नैनोमीटर के दो तरंग दैर्ध्य का उत्सर्जन करती हैं। इनके दृश्य प्रकाश का स्पेक्ट्रम एकवर्णी (Monochromatic) होता है जो पीले रंग का उत्सर्जन करता है। जबकि एल.ई.डी. बत्तियों में बहुत ही विस्तृत आवृत्ति का तरंग दैर्ध्य उपलब्ध होता है। अतः कथन 3 सही है। अतः विकल्प (c) सही है।
93. 'ACE2' पद का उल्लेख किस संदर्भ में किया जाता है?
व्याख्याः हाल के शोधों के अनुसार मानव शरीर में ACE2 [एंजियोटेंसिन-परिवर्तित एंजाइम-2 (Angiotensin-Converting Enzyme 2)] वह प्रमुख कारक है जो COVID-19 को मानव कोशिकाओं को संक्रमित करने में सक्षम बनाता है। दरअसल मानव कोशिकाओं की सतह पर ACE2 नामक एक एंजाइम होता है, जो रिसेप्टर के रूप में कार्य करता है जो SARS-CoV2 को अपना हमला शुरू करने के लिये सक्षम करता है। वायरस का स्पाइक प्रोटीन रिसेप्टर से जुड़ जाता है, फिर कोशिका की सतह के साथ फ्यूज हो जाता है, और अपनी आनुवंशिक सामग्री (SARS-CoV2 के मामले में RNA) को कोशिका में छोड़ देता है। इस प्रकार ACE2 विषाणुजनित रोगों के प्रसार से संबंधित है। अतः विकल्प (d) सही है।
94. बिस्फिनॉल A (BPA), जो चिंता का कारण है, निम्नलिखित में से किस प्रकार के प्लास्टिक के उत्पादन में एक संरचनात्मक/मुख्य घटक है?
व्याख्याः बिस्फिनॉल A (BPA) पॉलिकार्बोनेट प्लास्टिक बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला एक रसायन है। पॉलिकार्बोनेट प्लास्टिक का उपयोग कठोर प्लास्टिक की वस्तुओं, जैसे कि पुनः उपयोग करने योग्य पानी की बोतलें, बच्चों के दूध की बोतलें, खाद्य कंटेनर, टेबलवेयर और अन्य भंडारण योग्य कंटेनर बनाने के लिये किया जाता है। BPA एक सिंथेटिक ऑर्गेनिक कंपाउंड (Synthetic Organic Compound) है। BPA एपॉक्सी रेजिन में भी पाया जाता है, जो कुछ धातु-आधारित खाद्य और पेय के डिब्बे के अंदर एक सुरक्षात्मक अस्तर के रूप में कार्य करता है। पॉलिकार्बोनेट की बोतलों से तरल में BPA का रिसाव तरल या बोतल के तापमान पर अधिक निर्भर होता है। दरअसल BPA का लोगों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है जो एक चिंता का कारण है। अतः विकल्प (b) सही है।
95. निम्नलिखित में से किसमें 'ट्राइक्लोसन' के विद्यमान होने की सर्वाधिक संभावना है, जिसके लंबे समय तक उच्च स्तर के प्रभावन में रहने को हानिकारक माना जाता है?
व्याख्याः ट्राइक्लोसन कई उपभोक्ता उत्पादों में मिलाया जाने वाला एक घटक है जिसका उद्देश्य जीवाणु संदूषण को कम करना या रोकना है। इसे कुछ जीवाणुरोधी साबुन और बॉडी वॉश, टूथपेस्ट और कुछ सौंदर्य प्रसाधनों में मिलाया जाता है। हाल के एक अध्ययन में यह पाया गया है कि ट्राइक्लोसन न्यूरोटॉक्सिक प्रभाव पैदा कर सकता है और न्यूरॉन्स को नुकसान पहुँचा सकता है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इसके उपयोग पर आंशिक प्रतिबंध लगा दिया है। अतः विकल्प (d) सही है।
96. खगोलीय दूरियाँ प्रकाश-वर्ष में मापे जाने का कारण निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(a) तारकीय पिंडों के बीच की दूरियाँ परिवर्तित नहीं होती हैं।
(b) तारकीय पिंडों का गुरुत्व परिवर्तित नहीं होता है।
(c) प्रकाश सदैव सीधी रेखा में यात्रा करता है।
(d) प्रकाश की गति (स्पीड) सदैव एकसमान होती है।
व्याख्याः एक प्रकाश वर्ष दूरी की माप है। एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो प्रकाश की किरण एक पृथ्वी वर्ष में तय करती है। प्रकाश लगभग 3,00,000 किमी प्रति सेकंड की गति से यात्रा करता है और यह गति पूरे ब्रह्मांड में हमेशा एक समान रहती है। एक वर्ष में प्रकाश द्वारा तय दूरी 9.4611012 किलोमीटर है। आइंस्टीन के अनुसार इस ब्रह्मांड में केवल एक चीज़ निरपेक्ष है, वह है प्रकाश की गति, बाकी सब कुछ सापेक्ष है। अतः विकल्प (d) सही है।
97. हमने ब्रिटिश मॉडल पर आधारित संसदीय लोकतंत्र को अपनाया है, किंतु हमारा मॉडल उस मॉडल से किस प्रकार भिन्न है?
- जहाँ तक विधि-निर्माण का संबंध है, ब्रिटिश संसद सर्वोपरि अथवा संप्रभु है, किंतु भारत में संसद की विधि-निर्माण की शक्ति परिसीमित है।
- भारत में, संसद के किसी अधिनियम के संशोधन की संवैधानिकता से संबंधित मामले उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान पीठ को भेजे जाते हैं।
व्याख्याः विधि निर्माण के संदर्भ में ब्रिटिश संसद संप्रभु है, जबकि भारत में संसदीय संप्रभुता के स्थान पर संविधान की सर्वोच्चता को स्वीकार किया गया है, अतः संसद की विधि निर्माण की शक्ति संविधान के प्रावधानों के द्वारा परिसीमित की जाती है। अतः कथन 1 सही है।
- संविधान के अनुच्छेद-145 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को प्रदत्त शक्तियों के आधार पर संसद द्वारा पारित किसी अधिनियम में संशोधन की संवैधानिकता जाँचने, अर्थात् उसमें निहित विधि के सारवान प्रश्न को संबोधित करने के लिये, न्यायालय की संविधान पीठ को भेजा जा सकता है। अतः कथन 2 सही है। विकल्प (c) सही उत्तर होगा।
- एन. गोपालास्वामी आयंगर समिति ने सुझाव दिया था कि किसी मंत्री और किसी सचिव को प्रशासनिक सुधार करने और उसे बढ़ावा देने के लिये पूर्णतः नामित किया जाना चाहिये।
- प्रशासनिक सुधार आयोग, 1966 की संस्तुति के आधार पर वर्ष 1970 में कार्मिक विभाग का गठन किया गया और इसे प्रधानमंत्री के प्रभार के अधीन रखा गया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
व्याख्याः प्रशासनिक सुधारों के लिये एक मंत्री व एक सचिव को नामित किये जाने की सिफारिश 'एन. गोपालास्वामी आयंगर समिति' द्वारा दी गई थी। अतः कथन 1 सही है।
- 1970 में 'प्रशासनिक सुधार आयोग, 1966' की अनुशंसा पर कैबिनेट सचिवालय के प्रभार के अधीन कार्मिक विभाग का गठन किया गया था। 1985 में इसका प्रभार प्रधानमंत्री कार्यालय को हस्तांतरित कर दिया गया था। उल्लेखनीय है कि कैबिनेट सचिवालय प्रभावी रूप से प्रधानमंत्री के प्रभार के अधीन है। अतः कथन 2 सही है। विकल्प (c) सही उत्तर होगा।
99. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत 'निजता का अधिकार' संरक्षित है?
व्याख्याः 24 अगस्त, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय की 9 न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने 'जस्टिस के.एस. पुटेास्वामी बनाम भारत संघ मामले' में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए 'निजता के अधिकार' को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी। न्यायालय ने कहा कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत (Intrinsic) भाग के रूप में और संविधान के भाग 3 द्वारा प्रत्याभूत (Guaranteed) स्वतंत्रताओं के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर होगा।
- भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है।
- 1991 में लोकसभा चुनाव में श्री देवी लाल ने तीन लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था।
- वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निवार्चन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन-क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिये, जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
उत्तरः (b)
व्याख्याः जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33 (7) के प्रावधानों के अनुसार कोई व्यक्ति 2 से अधिक लोकसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी नहीं बन सकता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
- निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध चुनाव परिणाम डाटा के अनुसार, देवीलाल 1991 के चुनाव में केवल हरियाणा के रोहतक लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे। हालाँकि 1989 में वे 3 सीटों (रोहतक, सीकर व फिरोजपुर) से चुनाव लड़े थे। अतः कथन 2 सही है।
- यदि कोई प्रत्याशी एकाधिक निर्वाचन क्षेत्रों से लोकसभा चुनाव लड़कर जीत जाता है और बाद में किसी जीते हुए निर्वाचन क्षेत्र को खाली करता है, तो उसके उप-चुनावों का खर्चा सामान्य स्थिति की तरह केंद्र सरकार ही उठाएगी। अतः कथन 3 सही नहीं है।
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7ce4de8b11d9af1522f7cdce0796d5c29fcba09e | web | नवंबर 2020 में स्कोडा रैपिड को भारत में लॉन्च हुए पूरे 9 साल होने जा रहे हैं। ऐसे में स्कोडा चाहती तो इसके फ्रंट में बदलाव करते हुए ज्यादा पावरफुल 1. 5 लीटर डीजल इंजन और नए फीचर्स भी जोड़ सकती थी जिससे ये कार और भी ज्यादा अच्छे पैकेज के रूप में उपलब्ध होती। हालांकि अपने ड्राइविंग डायनैमिक्स के कारण ये कार अब भी इस सेगमेंट की सबसे अच्छी कार है। बीएस6 नॉर्म्स लागू हो जाने के बाद से कंपनी ने रैपिड से 1. 5 लीटर डीजल इंजन और डीएसजी गियरबॉक्स का कॉम्बिनेशन हटा दिया है। साथ ही, कंपनी ने 1. 6 लीटर पेट्रोल और 6-स्पीड ऑटोमैटिक का ऑप्शन देना भी बंद कर दिया है। तो क्या नया इंजन आ जाने से ये कार अब भी उतनी ही पावरफुल है ये जानेंगे इस फर्स्ट ड्राइव रिव्यू मेंः
स्कोडा रैपिड में अब केवल एक ही इंजनः 1. 0 लीटर 3 सिलेंडर टर्बो पेट्रोल का ऑप्शन दिया गया है। यह इंजन 110 पीएस की पावर और 175 एनएम का टॉर्क जनरेट करने में सक्षम है। इस इंजन के साथ 6-स्पीड मैनुअल गियरबॉक्स दिया गया है और आने वाले समय में 6-स्पीड टॉर्क कन्वर्टर भी दिया जा सकता है।
इग्निशन ऑन करते ही इसका नया इंजन एक आवाज के साथ शुरू हो जाता है। सबसे अच्छी बात ये है कि इंजन से आने वाली वाइब्रेशन को आप केवल कार खड़े रहने पर ही महसूस कर सकते हैं जिसकी इंटेसिटी यानी प्रभाव भी ज्यादा नहीं होता है।
इस 1. 0 लीटर टर्बो पेट्रोल इंजन के दम पर सिटी में रैपिड आराम से चलती है। हालांकि, 2000 आरपीएम से नीचे लगातार चलने पर आपको ये कार थोड़ी सुस्त नजर आ सकती है। थ्रॉटल को पुश करने के बाद थोड़ी देर तक उसे होल्ड करने पर 2200 आरपीएम के करीब टॉर्क जनरेट होती है। इसमें तुरंत ओवरटेकिंग के लिए एक गियर ड्रॉप करने की भी जरूरत पड़ती है। सिटी में नई स्कोडा रैपिड 1. 0 टीएसआई 12. 79 किलोमीटर प्रति लीटर का माइलेज देने में सक्षम है।
सिटी के मुकाबले हाईवे पर इस कार को चलाने का अपना ही एक मजा है। यहां बिना गियर बदले आप तेजी से ट्रैफिक में से निकलते हुए आगे बढ़ सकते हैं। यहां तक कि आप महज तीसरे गियर में ही 100 से ऊपर की स्पीड का आंकड़ा भी तुरंत छू सकते हैं। आप चाहें तो छठे गियर पर भी इसे 90 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से दौड़ा सकते हैं। हाईवे पर भी इसका इंजन काफी माइलेज फ्रेंडली साबित होता है जहां ये 17. 13 किलोमीटर प्रति लीटर का माइलेज दे ही देता है।
बात करें 6-स्पीड मैनुअल गियरबॉक्स की तो ये काफी स्मूद है और इस स्पोर्टी इंजन के साथ मिलकर अपना काम बखूबी करता है। रैपिड का क्लच काफी हल्का है और मुंबई जैसी जगह जहां ट्रैफिक के बारे में सोच कर ही डर लग जाता है, वहां इस गाड़ी में आपको क्लच दबाने के लिए अपने घुटनों पर जोर नहीं देना पड़ता है। शुरू शुरू में रैपिड में आपको एक अच्छी ड्राइविंग पोजिशन पर आने में समस्या आ सकती है, मगर बाद में आप इसके आदि हो जाएंगे।
हमेशा से ही रैपिड की राइड उतनी खास नहीं रही है। इसमें सीटों पर बेहतर कुशनिंग की दरकार रही है। लेकिन अब स्कोडा ने रैपिड को अपडेट करते हुए ये समस्या कुछ हद तक दूर कर दी है।
पहले के मुकाबले अब स्कोडा रैपिड खराब सड़कों और गड्ढों को आराम से झेल लेती है। हालांकि आपके द्वारा जरा सी भी लापरवाही दिखाने के बाद यदि इसे किसी खराब सड़क या गड्ढे पर से ले जाया जाए तो इसके सस्पेंशन से आपको जोरदार आवाज सुनने को मिलेगी। लेकिन हमें उम्मीद है कि अपनी कार से प्यार करने वाला ड्राइवर ऐसा नहीं करेंगे।
स्कोडा रैपिड की हैंडलिंग भी अब काफी बेहतर हो गई है। पहले वाले डीजल इंजन के मुकाबले इसका 1. 0 लीटर पेट्रोल इंजन काफी हल्का है जिस वजह से इसका वजन भी 100 किलोग्राम कम हो गया हैै। फ्रंट में भारी वजन का दबाव कम होने से ये कार ज्यादा पावर के साथ आगे बढ़ती है। इसी वजह से कॉर्नर्स पर भी इसे आप तेजी से दौड़ा सकते हैं।
इसमें पहले की ही तरह बॉडी रोल की आज भी कोई समस्या नहीं होती है। हालांकि सिटी में इसके स्टीयरिंग व्हील का वजन काफी हल्का महसूस होता है, मगर कुल मिलाकर इसका वजन काफी बैलेंस्ड है। इससे यू टर्न मारने में ज्यादा सहूलियत मिलती है। हाईवे पर इसका स्टीयरिंग व्हील ज्यादा स्थिर रहता है। हालांकि इनसे ज्यादा अच्छा फीडबैक नहीं मिलता है। इसकी ब्रेकिंग क्वालिटी उम्मीद से ज्यादा अच्छी है, मगर पैडल से कुछ खास फीडबैक नहीं मिलता है।
नई स्कोडा रैपिड के एक्सटीरियर में कोई बदलाव नहीं हुआ है जिसके बारे में यहां बात की जा सके। वहीं, इसका इंटीरियर भी लगभग पहले की ही तरह है। इसमें केवल स्टाइल और मॉन्टे कार्लो वेरिएंट में नई 8 इंच की टचस्क्रीन दी गई है। हालांकि ये यूनिट हर किसी को पसंद आए ये उन्हीं पर निर्भर करता है।
इस एंड्रॉयड टैबलेट की डिस्प्ले काफी अच्छी है और स्मूद तरीके से काम करती है। मगर इसमें एंड्रॉयड ऑटो और एपल कारप्ले की कनेक्टिविटी का फीचर मौजूद नहीं है। हालांकि, आप कॉल उठाने या गाने सुनने के लिए ब्लूटूथ की मदद से अपने फोन को इससे कनेक्ट कर सकते हैं। एंड्रॉयड बेस्ड होने से इसे आप इंटरनेट हॉटस्पॉट से कनेक्ट करते हुए एंड्रॉयड स्मार्टफोन में इस्तेमाल होने वाली एप्स को डाउनलोड कर सकते हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि सबकी सेफ्टी के लिए इसमें वीडियो कंटेट जब तक नहीं चलता है जब तक कि हैंडब्रेक ना लगा दिया जाए। ऐसा ड्राइवर का ध्यान भटकने से रोकने के लिए किया गया है।
न्यू स्कोडा रैपिड में पहले की तरह ही सेफ्टी फीचर्स दिए गए हैं। इसके सभी वेरिएंट्स में एबीएस और दो एयरबैग का फीचर स्टैंडर्ड रखा गया है। आश्चर्य की बात ये है कि मॉन्टे कार्लो एडिशन से नीचे पोजिशन किए गए स्टाइल वेरिएंट में 4 एयरबैग दिए जा रहे हैं। वहीं प्रीटेंशनर और फ्रंट सीटबेल्ट के लिए लोड लिमिटर का फीचर भी केवल स्टाइल वेरिएंट में ही दिया गया है। जबकि मॉन्टे कार्लो और स्टाइल वेरिएंट में मामूली सा ही फर्क है। यदि आप सेफ्टी को प्राथमिकता देते हैं तो हम आपको इसका स्टाइल वेरिएंट खरीदने की सलाह देंगे।
चूंकि स्कोडा रैपिड में कोई ऑटोमैटिक वेरिएंट का ऑप्शन नहीं है, ऐसे में इसमें ट्रैक्शन कंट्रोल का फीचर नहीं दिया गया है। हालांकि ऑटोमैटिक वेरिएंट आ जाने के बाद इसमें ये फीचर दे दिया जाएगा।
इस सेगमेंट की दूसरी कारों के कंपेरिजन में स्कोडा रैपिड में कुछ अच्छे फीचर्स की कमी जरूर महसूस होती है। हालांकि फिर प्राइस के मोर्चे पर ये उन कारों पर भारी पड़ जाती है जिनसे ये सस्ती है। यदि आपको स्कोडा की विश्वनीयता पर भरोसा कम है तो उसके लिए कंपनी आपको इस कार के साथ रोड साइड असिस्टेंस समेत 1 लाख किलोमीटर तक के वॉरन्टी पैकेज की पेशकश कर रही है। यह सर्विस कार की प्राइस में शामिल है।
इसके अलावा राइडर वेरिएंट से ऊपर का कोई भी वेरिएंट लेने पर आपको 10,000 रुपये तक एनुअल मेंटेनेंस पैकेज भी मिलेगा। इसके तहत 60,000 किलोमीटर तक आप मेंटेनेंस से जुड़ा कोई भी काम करवा सकते हैंं।
हमारा मानना है कि आपको एक बार स्कोडा रैपिड को चलाकर जरूर देखना चाहिए, ड्राइविंग के लिहाज से आपको रैपिड काफी पसंद आएगी। इसमें आपको एक शानदार परफॉर्मेंस और अच्छी खासी फ्यूल एफिशिएंसी मिलेगी। हालांकि इसके मुकाबले की कारों के कंपेरिजन में आपको इसमें स्पेस की थोड़ी परेशानी आ सकती है। मगर 4 लोगों की फैमिली के हिसाब से ये कार अच्छी है।
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ef0ca3f541d6c8d9eb11b02873611979c0e6546acd64e1690d18c9620674ee2e | pdf | अनैतिकता एवं वर्ण- संकर सन्तति । क्या इस विषादमय दृश्य को विजय कहा जा सकता है ? इसका अर्थ तो यह हुआ कि शस्त्रयुद्ध में विजेता और विजित दोनों पराभूत और विफलमनोरथ रहते हैं। इसलिए गीता का सन्देश शस्त्र युद्ध एवं हिंसा की निरर्थकता सिद्ध करना है, उसका समर्थन करना नहीं ।
गीता से अहिंसा की प्रेरणा प्राप्त करना गांधी जी के दार्शनिक मस्तिष्क की एक मौलिक कल्पना कही जायगी। उन्होंने यावज्जीवन इस ग्रन्थ पर श्रद्धा रखी और इससे प्रेरणा प्राप्त करते रहे ।
२. रामचरित मानस
गांधी जी की दृष्टि में गोस्वामी तुलसीदास की अमर कृति 'रामचरितमानस' मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों का महत्वपूर्ण विवेचन है । इस कृति से गांधी जी का परिचय बाल्यावस्था में ही हो गया और वह इसकी रसमय कथा के माध्यम से अनेक आदर्शों के अंकुर हृदय में प्रस्फुटित कर चुके थे। आगे चल कर उन्होंने इस कृति से अधिकाधिक प्रेरणा प्राप्त की। गांधी जी सगर्व कहा करते थे कि यदि हिन्दू धर्म का सम्पूर्ण विशाल साहित्य-भाण्डार नष्ट हो जाय और मात्र गोता एवं रामायण शेष रहें तो भी इस धर्म का कुछ नहीं बिगड़ेगा । रामचरितमानस में प्रतिष्ठित मर्यादाओं के कठोर किन्तु स्पृहणीय, अनुकरणीय मानदण्ड को गांधी जो ने दृढ़ता से अपने जीवन में उतारा था । उनको धार्मिक मान्यताओं की पृष्ठभूमि में रामचरित मानस की प्रेरणा सहज ही देखने को मिलती है
३. योगदर्शन
षड्दर्शनों में से योग दर्शन महर्षि पतंजलि की कृति है । इसमें योगमार्ग की विशद व्याख्या की गई है। गांधी जी ने इस कृति को गम्भीरता से पढ़ा था । इसके अहिंसा-विषयक सूत्र 'अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः' को उन्होंने अनेक स्थलों पर उद्धृत किया है ।
४. ईशोपनिषद्
इस पुस्तक का पूरा नाम ईशावास्योपनिषद है। गांधी जी ने उपनिषदों के विशाल भण्डार का एक-एक ग्रन्थ-रत्न देखा-परखा था । पर वह सबसे अधिक प्रभावित ईशोपनिपद से हुए। इस ग्रन्थ का पहिला श्लोक गांधी जी के विचार से विश्व के एक श्रेष्ठतम सिद्धान्त की अवतारणता करता है। वह श्लोक
यों है -
गांधीजी के प्रेरणा स्त्रोत
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंचजगत्यां जगत् ।
तेनत्यक्तेन भुंजीथाः मागृधः कस्यस्विद्धनम् ॥
"इस संसार में जो कुछ है वह सब ईश्वर का है - यह मान कर ईश्वर द्वारा उच्छिष्ट जो प्राप्त हो हम उसी का भोग करें और किसी के धन की लालसा न रखें । "
( संरक्षकता) के जिस गांधी जी ने इस चमत्कारिक श्लोक से ट्रस्टीशिप संरक्षकता ) मौलिक सिद्धान्त का विकास किया वह समाज की आर्थिक समस्याओं के लिए एक सरल सहज निदान प्रस्तुत करता है।
जगत् में सब कुछ ईश्वर का है तो व्यक्तिगत स्वामित्व की बात ही कहाँ रही ? यदि हम इस आदर्श को मान लें तो आर्थिक क्षेत्र में होड़ाहोड़ी, अशान्ति और वंचना का जो दौर चल रहा है, जिसकी चरम परिणति पर महायुद्ध तक हो चुके हैं, वह समाप्त हो जायगा । तब हम उतनी ही सम्पत्ति का उपभोग करेंगे, जितने की हमें जरूरत है। शेष को हम ईश्वरीय आदेश मान कर समाज के दूसरे जरूरतमन्द भाइयों को दे देंगे ।
संरक्षकता के सिद्धान्त को हम धार्मिक अर्थशास्त्र का सिद्धान्त कह सकते हैं । यह समाजवाद एवं साम्यवाद का आध्यात्मिक विकल्प है, जो पूर्वोक्त दोनों की त्रुटियों से पूर्णतया मुक्त है । संरक्षकता का सिद्धान्त गांधी जी की मौलिक देन है । गांधी जी ने इस सिद्धान्त की प्रेरणा ईशोपनिषद से ही प्राप्त की थी ।
५. कुरान शरीफ़
इस्लाम धर्म के प्रतिनिधि धर्म ग्रन्थ कुरान के प्रति गांधी जी की सम्यक् अनुरक्ति थी। उन्होंने अनेक टीकाओं एवं भाष्यों के माध्यम से इस ग्रन्थ का गम्भीर अध्ययन किया था । इस ग्रन्थ में वर्णित एकेश्वरवाद एवं वर्म के सरल, सहज तत्वों की बात उनके हृदय को छूती थी । किन्तु कुरान का उद्धरण देकर सामाजिक अथवा राजनीतिक क्षेत्र में जिन गलत कामों का औचित्य सिद्ध किया जा सकता था, गांधी जी उन सबका समर्थन नहीं कर सकते थे। उनके जीवन में अनेक अवसर ऐसे आये जब उन्हें कुरान का उद्धरण देनेवाले मुल्ला-मौलवियों की भूल सुधारने को वाध्य होना पड़ा । उदाहरण के लिए संगसारी अर्थापापी को पत्थर के मार-मार कर खत्म कर देने की सजा पर एक विवाद उठ खड़ा हुआ था। कुरान के पण्डितों का मत था कि यह सज़ा कुरान-विहित है किन्तु गांधी जी ने इसका स्पष्ट प्रतिवाद किया। इसी प्रकार कुरान में काफिर को मारना पुण्यकार्य बताया गया है। गांवी जी ने इस मान्यता का भी खण्डन किया था।
किन्तु कुरान शरीफ़ के उत्तम उपदेशों का गांधी जी पर वांछित प्रभाव पड़ा था, इसमें सन्देह नहीं ।
६. बाइबिल
ईसाई धर्म का प्रतिनिधि धर्म ग्रन्थ बाइबिल विश्व को श्रेष्ठतम आध्यात्मिक कृतियों में समादृत है। गांधी जी का इस कृति से प्रथम परिचय इंग्लैण्ड में हुआ । उन्होंने बाइबिल को बड़ी रुचि से पढ़ा। इसके 'ओल्ड टेस्टामेण्ट' ( पुराने करार ) प्रकरण से तो वे तनिक भी आकर्षित न हुए किन्तु 'न्यू टेस्टामेण्ट' (नये करार ) ने उनकी आध्यात्मिक क्षुधा को शान्त किया। ईसा का गिरि- प्रवचन ( सर्मन आत द माउण्ट) और उनके दस आदेश ( कमाण्डमेण्ट्स) उन्हें अपनी भावना के अनुरूप लगे । इस अंश में वर्णित क्षमा, करुणा, दया और निष्ठापरक उपदेश गांधी जी के मन में रम गये ।
आगे चलकर दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी ने बाइबिल और उसके भाष्यों का गम्भीर अध्ययन किया । वे ईसाई धर्म के ज्ञाताओं से समय-समय पर खुलकर बाइबिल के सम्बन्ध में विवेचना करते थे। पर उन्हें इस ग्रन्थ के उस वचन पर आस्था नहीं थी जिसमें कहा गया है कि ईसा एकमात्र ईश्वर का वेटा है और मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को उसकी शरण जाना चाहिए अर्थात् ईसाई हो जाना चाहिए । गांधी जी मानते थे कि यदि ईसा ईश्वर के पुत्र हैं तो उस अर्थ में सम्पूर्ण मानवता ईश्वर की ही सन्तान है । और मुक्ति पाने के अनेक मार्ग हो सकते हैं, पर यह मार्ग एकमात्र नहीं है। दूसरे सभी प्रधान धर्म मार्गों का भी गन्तव्य मुक्ति ही है । मुक्ति पाने के लिए वाइबिल का आदेश मान कर ईसाई धर्म स्वीकार करना जरूरी नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति स्वधर्म का पालन करते हुए ही मुक्त हो सकता है क्योंकि 'स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ।' -- अपने धर्म का पालन करते हुए मृत्यु भी श्रेयस्कर है, किन्तु पर धर्म स्वीकार करना भय का कारण है ।
पारसी धर्म का मूल ग्रन्थ जेन्द अवेस्ता भारतीय वेदों के अत्यन्त निकट है । इसकी रचना से ज्ञात होता है कि एक समय मध्य एशिया में भारतीय और ईरानी शाखा के आर्य एक साथ रहते थे और वह प्राकृतिक शक्तियों, विशेषकर अग्नि की उपासना का आदेश देता है। अग्नि शरीर का धारक तत्व, वलदायक तत्व है, इसलिए पारसी धर्मग्रन्थ ने उसकी महिमा का गुणगान किया है। अहुरमज्द और अहरिमान, क्रमशः दैवी और राक्षसी शक्तियों की व्याख्या भी इस ग्रन्थ में है ।
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[ ४ ] कृतियां : अर्वाचीन
१. सर्वोदय ( अन टु दिस लास्ट ) .
श्री रस्किन की यह कृति दक्षिण अफ्रीका में श्री पोलक ने गांधी जी को पढ़ने के लिए दी थी। इस पुस्तक का असर गांवी जी पर जादू-भरा हुआ । जैसा कि पुस्तक से शीर्षक से ज्ञात है, इसमें समाज के सभी व्यक्तियों का मभी क्षेत्रों में कल्याण हो, इस विषय की व्याख्या की गई है। गांधी जी ने पुस्तक पढ़ने के साथ ही अगली भोर से उसके अनुरूप अपना और साथियों का जीवन ढालना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने इसका अनुवाद भी किया, जो प्रकाशित हो चुका है । सर्वोदय के सिद्धान्त का सारांश गांधी जी की राय में इस प्रकार है१. सबके भले में अपना भला समाया हुआ है ।
२. वकील और नाई दोनों के काम की कीमत एक-सी होनी चाहिए, क्योंकि आजीविका का अधिकार सवको समान है।
३. सादा, श्रमपूर्ण, कृपक का जीवन ही सच्चा जीवन है । गांधी जी ने धार्मिक ही नहीं सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी सर्वोदय के सिद्धान्तों का अनुसरण किया ।
२. 'पिलग्रिम्स प्राग्रेस'
जान वनियन की यह प्रसिद्ध कृति विश्व - साहित्य में अपना स्थान रखती है । यह एक आस्थावान ईसाई द्वारा किया गया वाइविल के चुने हुए अंशों पर भाष्य है। यहां हम इस कृति और इसके कृतिकार के सम्बन्ध में गांधी जी के विचार उन्हीं के शब्दों में दे रहे हैं। ये विचार गांधी जी ने आश्रमवासी वालकों के समक्ष पिलग्रिम्स प्र. ग्रेस का पाठ आरम्भ करते हुए व्यक्त किये थे ।
"देखो भाई, इसका लेखक कौन है ? जान वनियन । तुम्हें मालूम है, वह कौन था ? वह हमारे प्रह्लाद जी जैसा सत्यव्रती था । जैसे प्रह्लाद जी ने सत्य की खातिर कष्ट सहे, वैसे ही वह भी सत्य के खातिर जेल में रहा था, और जैसे हमारे तिलक महाराज ने जेल में रह कर गीता रहस्य लिखा था, वैसे ही उसने भी जेल में यह तीर्थयात्री की यात्रा लिखी थी । इसे यात्रा कहो, उत्थान कहो या प्रगति कहो ।
" जैसे गीता पर भाष्य है वैसे पिलग्रिम्स प्राग्रेस बाइबिल का एक भाष्य है । इसे बाइबिल पर लिखा गया भाष्य भी नहीं कहा जा सकता, बल्कि कहना चाहिए कि यह बाइबिल के सबसे सुन्दर भाग का विवेचन है । अंग्रेजी में तो यह बहुत ही ऊंची चीज़ मानी जाती है। इसे लगभग वाइविल के समान स्तर पर ही प्रतिष्ठित किया जाता है। बनियन ने बच्चों के लिए यह इतनी सरल और सुन्दर भाषा में लिखी है कि जहां-जहां अंग्रेजी भाषा बोली जाती है, वहां-वहां वह बच्चों के लिए अद्भुत पुस्तक मानी जाती है। इससे भी अधिक, पुस्तक के उपोद्घात में, जैसे तुलसीदास जी ने रामायण के बारे में कहा है, वैसे ही इस पुस्तक के बारे में भी कहा गया है कि इसे भविष्य में सब लोग पढ़ेंगे । और यह है भी रामायण - जैसी । जैसे तुलसीकृत रामायण में बच्चों को भी रस आता है और बहुत से बड़े-बड़े लोग भी गोते खाते हैं, उसी तरह इस पुस्तक में भी बच्चों को बहुत रस आ सकता है । परन्तु अब तो हम यह पुस्तक पढ़ेंगे । देखो उसने यह कहा है -- "संसाररूपी वन में भटकते-भटकते..... .. हमारे यहां भी संसार को घोर वन बताया गया है। इसी तरह उसने भी संसार को वन कहा है । वह कहता है, मैं ऐसे संसाररूपी वन में थका- माँदा एक घोर गुफा में आ पड़ा । शरीर-श्रम से ही थका-माँदा नहीं था, बल्कि आत्मिक श्रम से भी श्रान्त था । अनेक विचार किये, अनेक स्थानों में अनेक वातें जानीं और सुनीं, परन्तु कोई तत्व की बात नहीं मिली।" बेचारे की आत्मा थककर चूर हो गई थी, इसलिए वह थकान से सो गया । सो गया और सपना देखा । सपने में उसने क्या देखा ? किसे देखा रूखी, ' मालूम है, फटे-पुराने कपड़े पहिने एक आदमी को । अच्छा वच्चो ! भला वताओ तो जब सुदामा श्रीकृष्ण के यहां गया, तब वह कैसे कपड़े पहिने था ? क्या वह रेशमी किनारी की धोती, जरी का कोट, खासी कीमती दक्षिणी पगड़ी और कसीदेदार दुपट्टा था ? नहीं वह फटे-पुराने कपड़े पहिने था । इसी तरह यह आदमी भी चिथड़े पहिने था। क्यों रूखी, मालूम है, सुदामा क्या पहिने था ? तुझे तो मालूम नहीं होगा, लेकिन मुझे तो मालूम है। क्योंकि मैं तो सुदामा के गांव पोरबन्दर में पैदा हुआ हूं। खैर, सुदामा का मुँह किस तरफ था ? क्या अपने घर की तरफ था ? भाई, वह तो अपना घर छोड़ कर भगवान के घर जा रहा था । इसी तरह हमारा यात्री भी अपने घर की तरफ से मुंह मोड़ कर किसी दूसरी ही ओर पग बढ़ा रहा था । और फिर उसकी पीठ पर क्या लदा था ? जैसी वोरी उसकी पीठ पर लदी थी वैसी ही, रूखी, जब हम कोचरव में थे, तब
१. मगनलाल गांधी की पुत्री ।
मन की बोरी लेकर आता था; वह पसीने से लथपथ होता था और इतना झुक जाता था कि मैं उसे कैसे कह सकता था कि तू सीधे खड़ा रह । इस आदमी के हाथ में एक पुस्तक थी । वह पुस्तक और कोई नहीं वाइविल ही थी । उसे पढ़ कर उसकी आँखों से आँसू झर रहे थे । गोपीचन्द की याद है तुम्हें ? जब वह नहाने बैठा था, तब उसकी माता उसे ऊपर से देख रही थी; उसकी आँखों से आंसू झर रहे थे और गोपीचन्द के ऊपर गिर रहे थे । वादल तो कोई थे नहीं, फिर भी वर्ण कहां से हो रही थी ? गोपीचन्द ने देखा कि वर्षा तो उसकी माता की आँखों से हो रही है। लेकिन वह क्यों रो रही थी, यह तो फिर कभी समझाऊंगा । परन्तु इस यात्री की आँखों से भी आँसू झर रहे थे । वह भगवान के घर जाने के लिए निकला था। वह तो भक्त प्रवर था इसलिए उसकी आँखों से आँसू झर रहे थे।"
३. बैकुण्ठ तुम्हारे हृदय में है
'दि किंगडम आफ़ गाड इज विदिन यू', काउण्ट लियो ताल्सताय की यह कृति विश्व-साहित्य में अपना स्थान रखती है। गांधी जी ने यह पुस्तक पढ़ी तो वे इसकी स्वतन्त्र विचारशैली, प्रौढ़नीति और सत्य के कायल हो गये। इस पुस्तक ने उनका मन मोह लिया और वे इससे अत्यधिक प्रभावित हुए ।
४. गास्पेल्स इन ब्रीफ ( नवविधान का सार )
५. ह वाट टु डू ? ( क्या करें ? )
ये दोनों कृतियाँ प्रसिद्ध रूसी विचारक एवं साहित्यकार लियो ताल्सताय की हैं। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में दोनों कृतियों को पढ़ा था । ताल्सताय की विचारधारा पर वे पूर्णतया मुग्ध हुए विना न रह सके। इन कृतियां ने उन्हें यह विचार करने के लिए प्रेरणा दी कि विश्व प्रेम मनुष्य को कहां तक ले जा सकता है ।
६. जरथुस्त्र के वचनः सेइंग्स आफ़ जरथुस्त्र
यह पुस्तक पारसी वर्म के आदि प्रवर्तक जरथुस्त्र का संग्रह है। इसे गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में पढ़ा और इसके द्वारा उन्हें पारसी धर्म को समझने में सहायता मिली ।
७. धर्म-विचार
श्री नर्म दाशंकर राय की यह पुस्तक किसी मित्र ने गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में भेजी थी। इस कृति की प्रस्तावना गांधी जी को अत्यन्त आकर्षक लगी।
श्री नर्मदाशंकर राय अपने विलासमय जीवन के लिए प्रसिद्ध थे । प्रस्तावना में उनके जीवन में हुए परिवर्तनों का वर्णन किया गया था । इसने गांधी जी के हृदय में पुस्तक के प्रति श्रद्धा बढ़ा दी ।
८. इण्डिया ह्वाट कैन इट टीच अस ? ( भारत क्या सिखाता है ? )
उपर्युक्त कृति संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान, वेद-भाष्यकार एवं प्राच्यविद्याविद् मक्समूलर की है। मैक्समूलर को भारतीय संस्कृति के आदि स्रोत - - वेदों से पहिली वार पाश्चात्य जगत् को परिचित कराने के लिए सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। उपर्युक्त पुस्तक में उन्होंने भारत के सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक गौरव का मुक्तकण्ठ से यशोगान किया है। गांधी जी ने इस पुस्तक को अत्यन्त रुचि से पढ़ा और इसने हिन्दू धर्म के प्रति उनकी श्रद्धा को बढ़ाने में सहायता दी ।
गांधी जी ने विविध स्रोतों, व्यक्तियों, कृतियों, भजनों से धर्म एवं नीति की प्रेरणाएं प्राप्त की थीं। इनमें वेद, उपनिषद्, (विशेषतः ईशोपनिषद ) योगसूत्र, महाभारत, रामायण, धम्मपद, बाइविल, कुरानशरीफ, संतों की वाणियां एवं पद मुख्य हैं। देश - विदेश की कितनी ही कृतियों से वह प्रभावित हुए । वह एक विकासमान पुरुष थे और हर जगह से सत्य एवं श्रेय ग्रहण कर लेते थे । |
a55572d9541386290a6a21d6dd869bb6751dd316 | web | हार्डवेयर के साथ काम करता है अक्सर संचालन है कि उन्हें आकार बदलने के लिए अनुमति देने के प्रदर्शन शामिल है। परिभाषित विशेषताओं के साथ संरचनाओं बनाने के लिए, विशेष रूप से, काटने, तह की जरूरत है और गुना हो सकता है। आपरेशन के बाद तरह सबसे कठिन में से एक है। विशेष रूप से यह पाइप के प्रसंस्करण, जो आवश्यक है throughput बनाए रखने के लिए संबंधित है। यही कारण है, आंतरिक अंतरिक्ष मोड़ बिंदु पर काम कर रहे मध्यम के पारित होने की सर्वोत्कृष्ट मात्रा सुनिश्चित करना चाहिए। इस कार्य के साथ सामना करने गुणवत्ता आर्बर Bender स्वचालित रूप अलग प्रकार, में अपने कार्य प्रदर्शन में मदद करता है।
क्लासिक संस्करण में, इस उपकरण पतली दीवार ट्यूबों के साथ काम पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह अपने कार्यों की एक निश्चित विशेषज्ञता का मतलब है, लेकिन उन क्षेत्रों में जहाँ इस तरह के पाइप, काफी। एक पतली दीवार लेख के साथ यह काम अपने आप में यह उपकरण आपरेशन से कोई विचलन workpiece खराब हो सकते रूप में इस्तेमाल किया उपकरण पर बड़ी जिम्मेदारी, लगाता है। इस संबंध में सबसे संवेदनशील हाथ खराद का धुरा ट्यूब Bender, जो घर या छोटे कार्यशालाओं कार्यकर्ताओं में प्रयोग किया जाता है। सामग्री के लिए के रूप में, आर्बर मॉडल के बहुमत तांबा, स्टेनलेस स्टील और एल्यूमीनियम के साथ प्रभावी ढंग से काम करने में सक्षम हैं। पाइप सामग्री भी चुना गया है और हार्डवेयर विन्यास पर निर्भर करता है। यह एक विशेष इकाई और अपनी कार्यक्षमता का डिजाइन सुविधाओं पर निर्भर करता है।
मशीन के आधार आमतौर पर उच्च शक्ति इस्पात मिश्र के साथ प्रदान की जाती है। कार्यात्मक स्नैप सिर अक्सर कच्चा लोहा का बना है - सबसे अधीन है हिस्सा है, जो तह बिंदु सुनिश्चित करता है पहनने के लिए। clamping कार्रवाई के विभिन्न तरीकों के डिजाइन - वहाँ ऊपरी और पैर की अंगुली क्लिप कर रहे हैं। पहले मामले में, ऑपरेटर रैखिक ताला तंत्र और काम की सतह के बीच की खाई के माध्यम से पाइप स्थानांतरित कर सकते हैं। फिंगर खराद का धुरा ट्यूब Bender, बारी में, लीवर पर भार के प्रावधान शामिल नहीं है। आदेश के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए कुछ निर्माण में प्रयोग किया जाता है और एक हाइड्रोलिक बूस्टर है। काम कर चक्र के दौरान क्लैंप पट्टा workpiece इस प्रकार है और फिर प्रारंभिक स्थिति को गोद ले। सिलेंडर स्पष्ट रूप से हेरफेर स्ट्रिप्स को नियंत्रित करता है, यह भी पूछ उत्पाद के विमान को घुमाएगी। शारीरिक रूप से चरणों एक या कई ड्राइव से लागू किया जाता है।
वहाँ आर्बर तंत्र के साथ benders के तीन प्रकार हैं। यह, मैनुअल अर्द्ध स्वचालित और पूरी तरह से स्वचालित मॉडल कहा जाता है। वे सब के सब तथ्य यह है कि यांत्रिक कार्रवाई प्रदान करने के सिद्धांत रोलर उपकरण है, जो, वास्तव में, खाली घाव से महसूस किया है से एकजुट हो रहे हैं। हाथ उपकरण कम बिजली और कार्यप्रवाह निर्देशित करने के लिए ऑपरेटर कनेक्ट करने के लिए की जरूरत की विशेषता है। फिर, उपयोगकर्ता के संचालन का नियंत्रण हाइड्रोलिक प्रणाली। अधिक एक अर्द्ध स्वचालित खराद का धुरा ट्यूब Bender, जो ऑपरेटर नौकरी कार्रवाई का ही हिस्सा, सूची, जिनमें से डिजाइन के आधार पर भिन्न हो सकते हैं रखती है उपयोग करने के लिए सुविधाजनक। स्वचालित उपकरण न केवल पूरे काम कर चक्र अन्य उपकरणों के साथ इंटरफेस को अपने दम पर बाहर ले जाने के कर सकते हैं, लेकिन यह भी। इस तरह के मॉडल अक्सर एक पूर्ण उत्पादन लाइन, जिसमें गुना केवल निर्माण की समग्र प्रक्रिया में आपरेशन में से एक है में शामिल हैं।
ये वही स्वचालित लाइनें हैं, लेकिन संख्यात्मक नियंत्रण के पूरक। इस अभ्यास में क्या मतलब है? एक अर्द्ध स्वचालित मशीनों में ऑपरेटर की भूमिका और आम तौर पर कम से कम रखा जाता है, लेकिन यह अभी भी वहाँ है। इस मामले में, यह स्टाफ है कि मशीन का स्वतः आपरेशन के लिए विशेष कार्यक्रम निर्धारित करता है। तंत्र स्वतंत्र रूप से कार्य है, लेकिन सख्ती से एल्गोरिथ्म के अनुसार। विशेष रूप से, आर्बर Bender सीएनसी ऐसे clamping दबाव, खराद का धुरा के स्थान, झुकने इकाई घूर्णन गति और इतने पर के रूप में मानकों से प्रोग्राम किया जा सकता। डी इसी समय, मशीन स्मृति विशेषताओं पहले से ही समाप्त हो गया ट्यूब, जो आगे तकनीक की सुविधा के बारे में डेटा की एक किस्म को संग्रहीत कर सकती उत्पादों की गुणवत्ता का आकलन करने। इस प्रकार, उदाहरण के लिए, मानक संकेतक से पंजीकृत दोष विचलन, और उत्पाद की अन्य विशेषताएं हैं।
उपकरणों के अनुभवी उपयोगकर्ताओं जो धातु उत्पादों के साथ काम करने में प्रयोग किया जाता है, गबन इकाइयों के कई फायदे का उल्लेख किया। आम तौर पर विशेष नहीं - पहली अपवाद एक विशेषता हलचल या चलि है कि जब अन्य उपकरणों का प्रयोग मोड़ बना है। दूसरा सकारात्मक बात यह है कि विरूपण एक और अधिक मोटा होना या संकुचन दीवारों के साथ नहीं है। फिर, अव्यवसायिक लचीला धातु अक्सर खींच की ओर जाता है, और यह वरिष्ठ सुविधाओं में उत्पाद के आगे उपयोग के मामले में खतरनाक है। पृथक और एक ही सीएनसी के साथ स्वतः Bender आर्बर के लाभ। इस तरह के उपकरण न केवल सही मोड़ें और धारावाहिक उत्पादन में विरूपण की एक अपेक्षाकृत उच्च गति उच्च गुणवत्ता वाले मोड प्राप्त करने के लिए अनुमति देता है।
इकाइयों आर्बर तंत्र तह के लिए सावधान रखरखाव की आवश्यकता है। इस मामले कठिन संभोग तत्वों, निरंतर रखरखाव की आवश्यकता होती है के प्रतिनिधित्व में यांत्रिकी। इसके अलावा, इस तरह के प्रतिष्ठानों के कई ऑपरेटरों कई प्रारूपों वाला पाइप के साथ काम करने के लिए अवसरों के संदर्भ में अपनी सीमाओं को नोट करें। आमतौर पर, आधार में एक मशीन एक संकीर्ण आकार स्पेक्ट्रम में workpiece सेवा कर सकते हैं - और इस दीवार मोटाई और कुल मिलाकर व्यास पर लागू होता है। इस बिंदु उपयोगकर्ताओं और तथ्य यह है कि खराद का धुरा ट्यूब Bender कार्य स्थल पर अंतरिक्ष के एक बहुत लेता है, इसके काफी वजन का उल्लेख नहीं। तदनुसार, परिवहन और स्थापना लागत में वृद्धि हुई है।
बजट खंड का सबसे सरल मैनुअल मॉडलों के बारे में 50-70 हजार की लागत कर सकते हैं। रगड़ें। एक नियम के रूप में, वे, melkoformatnymi पाइप के साथ काम कर रहे हैं पल झुकने, शारीरिक प्रयास के माध्यम से साकार। मध्यम खंड स्वचालन घटकों के साथ इकाइयां हैं। यह कार्यात्मक और उत्पादक खराद का धुरा ट्यूब Bender, जिनकी कीमत के आसपास 200-300 हजार हो जाएगा हो सकता है। , विन्यास पर निर्भर करता है। उच्च स्वायत्तता और वैकल्पिक सामग्री, उच्च लागत। स्वचालित सीएनसी मशीनों 500-700 हजार के लिए उपलब्ध हैं। और यह सीमा नहीं है। उपकरण के इस वर्ग अक्सर औद्योगिक आवेदन विशिष्ट उद्यमों की सुविधाओं में की दिशा में एक प्रारंभिक पूर्वाग्रह के साथ डिजाइन किए हैं।
इकाई को आम तौर पर एक बड़े पैमाने पर धातु फ्रेम का ही बना है कार्यात्मक इकाइयों और अन्य घटकों से जुड़े होते हैं जो करने के लिए। आवास एक शाफ्ट झुकने बहु धारीदार रोलर्स, क्लैम्पिंग जबड़े और सनकी तत्वों के साथ प्रदान की जाती है। हाल उपकरण और घटकों workpiece clamps रूप में कार्य करेगा। यह भी आपरेशन बंद है, जो ट्यूब की दिशा से दी जाएगी प्रदर्शन करने के लिए आवश्यक है। इस प्रणाली के ज्यादातर पैड, ब्रेसिज़ और कील क्लैम्पिंग से बना है। प्रभावी रूप से खराद का धुरा नियंत्रित करने के लिए सक्षम होने के लिए , अपने ही हाथों से Bender एम्बेडेड गाइड विधानसभा पेंच और एक विशेष स्टीयरिंग व्हील द्वारा गठित की डिजाइन में।
धातु पाइप शायद ही कभी कार्यस्थल में पहले से ही विकृत कर रहे हैं। आम तौर पर एक ही गुना एक दिया परियोजना के अनुसार या एक विशिष्ट स्वरूप में कारखाने में किया जाता है। फिर भी, ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जब और प्रक्रिया के कुशल निष्पादन स्थापना अभियानों के दौरान की आवश्यकता हो सकती है। इस मामले में और यह खराद का धुरा ट्यूब Bender मैनुअल प्रकार बनाया गया है। कुछ embodiments में, यह आप भी क्षेत्र है, जो अक्सर स्थापना गतिविधियों के बारे में समय की बचत होती में काम करने के लिए अनुमति देता है। अधिक सम्मानित स्वचालित स्थापना नियमित यात्रा को शामिल नहीं करता - जब यह रिक्त स्थान की एक बड़ी संख्या के प्रसंस्करण में उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम प्राप्त करने के लिए आवश्यक है वे सिर्फ संयंत्र उपकरणों की एक भाग के रूप में उपयोग किया जाता है।
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e1335a73a210cfeceabbdc700ee154d9c4f7fac0 | web | मित्रता दो या दो से अधिक लोगों के बीच एक पारस्परिक संबंध है जो एक-दूसरे से मित्रतापूर्ण तरीके से जुड़े हुए हैं और आपस में लगाव रखते हुए हैं। अपने सुंदर बच्चों और स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए दोस्ती पर निबंध सीखना बहुत सरल और आसान है। उन्हें कुछ लिखने या इस बारे में मंच पर सुनाने के लिए दोस्ती का विषय मिल सकता है।
मित्रता पर निबंध, short essay on friendship in hindi (100 शब्द)
दोस्ती दुनिया में कहीं भी रहने वाले दो या दो से अधिक लोगों के बीच एक वफादार और सच्चा रिश्ता है। हम अपने पूरे जीवन को अकेले नहीं बिता सकते हैं और किसी को एक वफादार रिश्ते की जरूरत है जो खुशी से दोस्तों को बुलाए। दोस्तों के बीच अंतरंग संबंध और हमेशा के लिए एक दूसरे पर भरोसा है।
यह उम्र तक सीमित नहीं है, व्यक्ति की सेक्स और स्थिति का मतलब है कि दोस्ती पुरुषों और महिलाओं, पुरुषों और पुरुषों, महिलाओं और महिलाओं या किसी भी आयु वर्ग के लोगों के बीच हो सकती है। हालांकि, आम तौर पर यह एक ही उम्र के व्यक्तियों के बीच सेक्स और स्थिति की सीमा के बिना बढ़ता है। समान या विभिन्न जुनून, भावनाओं या भावनाओं वाले व्यक्तियों के बीच मित्रता विकसित हो सकती है।
मित्रता पर निबंध, 150 शब्दः
जीवन में कई महत्वपूर्ण चीजें होने के बजाय व्यक्ति के जीवन में दोस्ती सबसे मूल्यवान रिश्ता है। अगर हममें वफादार दोस्ती की कमी है, तो हममें से किसी का भी पूरा और संतुष्ट जीवन नहीं है। हर किसी को बुरे या अच्छे जीवन की घटनाओं को साझा करने, सुखद क्षणों का आनंद लेने और जीवन की असहनीय घटनाओं को साझा करने के लिए एक अच्छे और वफादार दोस्त की आवश्यकता होती है। सभी के अस्तित्व के लिए एक अच्छी और संतुलित मानवीय सहभागिता बहुत आवश्यक है।
अच्छे दोस्त एक-दूसरे की भावनाओं या विचारों को साझा करते हैं जो अच्छी तरह से और मानसिक संतुष्टि की भावना लाते हैं। दोस्त वह व्यक्ति होता है, जिसे कोई भी हमेशा के लिए गहराई से पसंद कर सकता है, जैसे और भरोसा कर सकता है। मित्रता में शामिल दो व्यक्तियों के स्वभाव में कुछ समानता होने के बजाय, उनके पास कुछ अलग लक्षण होते हैं, लेकिन उनकी विशिष्टता को बदले बिना उन्हें एक दूसरे की आवश्यकता होती है। आमतौर पर, दोस्त एक दूसरे की आलोचना किए बिना प्रेरित करते हैं लेकिन कभी-कभी अच्छे दोस्त एक दूसरे में कुछ सकारात्मक बदलाव लाने के लिए आलोचना करते हैं।
दोस्ती पर निबंध, essay on friendship in hindi (200 शब्द)
एक सच्ची दोस्ती इसमें शामिल व्यक्तियों के जीवन का सबसे अनमोल उपहार है। सच्ची दोस्ती हमें जीवन में कई प्रकार के यादगार, मीठे और सुखद अनुभव देती है। मित्रता किसी के जीवन की सबसे कीमती संपत्ति है जिसे वह कभी खोना नहीं चाहता है। सच्ची मित्रता जीवन में बिना किसी अवनति के सफलता की ओर दो या अधिक व्यक्तियों को ले जाती है। एक सबसे अच्छे दोस्त की खोज एक आसान प्रक्रिया नहीं है, कभी-कभी हमें सफलता मिलती है और कभी-कभी हम एक-दूसरे को गलतफहमी के कारण खो देते हैं।
दोस्ती प्यार की एक समर्पित भावना है जिसके बारे में हम अपने जीवन और देखभाल के बारे में कुछ भी साझा कर सकते हैं। एक मित्र वह है जो बिना किसी अतिशयोक्ति के दूसरे को समझता है और उसकी सराहना करता है। सच्चे दोस्त कभी भी एक-दूसरे के प्रति लालची नहीं बनते, इसके बजाय वे जीवन में एक-दूसरे को कुछ बेहतर देना चाहते हैं। उम्र, जाति, नस्ल, पंथ और लिंग की कोई सीमा या विभेद हैं। वे एक-दूसरे की वास्तविकताओं को जानते हैं और एक-दूसरे की मदद करके संतुष्ट रहते हैं।
मानव एक सामाजिक प्राणी है और अकेला नहीं रह सकता है; उसे / उसे खुशी या दुःख की अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए किसी की आवश्यकता होती है। आम तौर पर, एक सफल दोस्ती समान उम्र, चरित्र और पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के बीच मौजूद होती है। दोस्त एक-दूसरे के लिए वफादार समर्थन हैं जो जीवन के बुरे क्षणों के दौरान लक्ष्यहीन रूप से समर्थन करते हैं।
मित्रता पर निबंध, friendship essay in hindi (250 शब्द)
मित्रता दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच ईश्वरीय संबंध है। मित्रता एक-दूसरे की देखभाल और समर्थन का दूसरा नाम है। यह एक दूसरे पर विश्वास, भावनाओं और उचित समझ पर आधारित है। यह दो या दो से अधिक सामाजिक लोगों के बीच बहुत ही साधारण और वफादार रिश्ता है। दोस्ती में शामिल लोग बिना किसी लालच के हमेशा के लिए एक-दूसरे की देखभाल और समर्थन करते हैं।
सच्चे दोस्तों का रिश्ता देखभाल और विश्वास के साथ दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जाता है। दोस्त एक-दूसरे पर अपनी घमंड और शक्ति दिखाए बिना एक दूसरे पर भरोसा करते हैं और समर्थन करते हैं। उनके मन में इक्विटी की भावना है और जानते हैं कि उनमें से किसी को भी कभी भी देखभाल और समर्थन की आवश्यकता हो सकती है। लंबे समय तक दोस्ती बनाए रखने के लिए समर्पण और विश्वास बहुत आवश्यक है।
बहुत सारी माँगों और संतुष्टि की कमी के कारण कभी-कभी लालची लोग अपनी दोस्ती का नेतृत्व करने में असमर्थ हो जाते हैं। कुछ लोग सिर्फ अपने हितों और मांगों को पूरा करने के लिए दोस्ती करते हैं। लोगों की बड़ी भीड़ में एक अच्छे दोस्त की खोज करना उतना ही कठिन है जितना कोयले की खदान में हीरे की खोज करना के सामान है।
असली दोस्त वे नहीं होते हैं जो जीवन के अच्छे पलों में हमारे साथ खड़े होते हैं बल्कि वे जो हमारी परेशानी में भी खड़े होते हैं। हमें अपना सबसे अच्छा दोस्त चुनते समय सावधान रहना चाहिए क्योंकि हमें किसी से धोखा मिल सकता है। जीवन में एक सबसे अच्छा दोस्त पाना हर किसी के लिए बहुत कठिन होता है और अगर किसी को यह मिल जाता है, तो वह वास्तव में भगवान के सच्चे प्यार के साथ सबसे अच्छा होता है। एक अच्छा दोस्त हमेशा बुरे समय में समर्थन करता है और सही रास्ते पर जाने का सुझाव देता है।
मित्रता पर निबंध, 300 शब्दः
सच्चे दोस्तों को इस दुनिया में ढूंढना वास्तव में किसी वरदान से कम नहीं है। वास्तविक मित्रता दो या दो से अधिक लोगों का सच्चा रिश्ता है जहां केवल विश्वास बिना किसी मांग के मौजूद है। सच्ची दोस्ती में एक दूसरे की देखभाल, सहायता और अन्य आवश्यक चीजों को देने के लिए हमेशा तैयार रहता है। हर किसी के जीवन में दोस्त बहुत महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे किसी जरूरतमंद व्यक्ति को प्यार, देखभाल और भावनात्मक समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दोस्ती किसी भी आयु वर्ग के दो या दो से अधिक लोगों के बीच हो सकती है, लिंग, स्थिति, जाति या जाति। हालांकि, आम तौर पर दोस्ती एक ही उम्र के लोगों के बीच होती है।
कुछ लोग अपने बचपन की दोस्ती को पूरी जिंदगी सफलतापूर्वक निभाते हैं लेकिन किसी को गलतफहमी, समय की कमी या अन्य समस्याओं के कारण बीच में हीइसे छोड़ना पड़ता है। कुछ लोग अपने किंडरगार्टन या प्राथमिक स्तर पर कई दोस्त रखते हैं, लेकिन केवल एक या कोई नहीं जिसे वे बाद के जीवन में ले जाते हैं। कुछ लोगों के पास केवल एक या दो दोस्त होते हैं जिन्हें वे बाद के जीवन में बुढ़ापे में भी बहुत समझदारी से निभाते हैं। दोस्त परिवार के बाहर (पड़ोसी, रिश्तेदार, आदि) या परिवार के अंदर (परिवार के सदस्यों में से एक) से भी हो सकते हैं।
दोस्त अच्छे या बुरे दोनों प्रकार के हो सकते हैं, अच्छे दोस्त हमें अच्छे रास्ते पर ले जाते हैं जबकि बुरे दोस्त हमें बुरे रास्ते पर ले जाते हैं, इसलिए हमें जीवन में दोस्त चुनते समय सावधान रहना चाहिए। बुरे दोस्त हमारे लिए बहुत बुरे साबित हो सकते हैं क्योंकि वे हमारे जीवन को पूरी तरह से बर्बाद करने के लिए काफी हैं। हमें अपने जीवन में किसी व्यक्ति की जरूरत है कि वह हमारी भावनाओं (खुश या उदास) को साझा करे, किसी की जो हमारे अकेलेपन को दूर करने के लिए, किसी को दुखी करने के लिए और बहुत से लोगों को हंसाने के लिए।
मित्रता पर निबंध, long essay on friendship in hindi (400 शब्द)
दोस्ती दो लोगों के बीच एक समर्पित रिश्ता है जिसमें दोनों को बिना किसी मांग और गलतफहमी के एक दूसरे से प्यार, देखभाल और प्यार की सच्ची भावना है। आम तौर पर दोस्ती दो लोगों के बीच समान स्वाद, भावनाओं और भावनाओं के बीच होती है। यह माना जाता है कि दोस्ती की उम्र, लिंग, स्थिति, जाति, धर्म और पंथ की कोई सीमा नहीं है, लेकिन कभी-कभी यह देखा जाता है कि आर्थिक असमानता या अन्य भेदभाव दोस्ती को नुकसान पहुंचाते हैं।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि दो समान विचारधारा वाले और समान दर्जे के लोगों के बीच सच्ची और वास्तविक मित्रता संभव है, जो एक-दूसरे से स्नेह की भावना रखते हैं। दुनिया में कई दोस्त हैं जो समृद्धि के समय हमेशा एक साथ रहते हैं लेकिन केवल सच्चे, ईमानदार और वफादार दोस्त हैं जो हमें अपने बुरे समय, कठिनाई और परेशानी के समय में कभी भी अकेले नहीं रहने देते हैं।
हमारा बुरा समय हमें हमारे अच्छे और बुरे दोस्तों के बारे में एहसास कराता है। हर किसी को स्वभाव से पैसे के प्रति आकर्षण होता है लेकिन सच्चे दोस्त कभी भी हमें बुरा महसूस नहीं कराते हैं जब हमें पैसे या अन्य सहायता की आवश्यकता होती है। हालांकि, कभी-कभी दोस्तों से पैसे उधार लेना या उधार लेना दोस्ती को भारी जोखिम में रखता है। दोस्ती कभी भी या दूसरों से प्रभावित हो सकती है इसलिए हमें इस रिश्ते में संतुलन बनाने की जरूरत है।
कभी-कभी अहंकार और आत्म-सम्मान के मामले के कारण दोस्ती टूट जाती है। सच्ची दोस्ती के लिए उचित समझ, संतुष्टि की जरूरत होती है, जिससे प्रकृति पर भरोसा होता है। सच्चा दोस्त कभी शोषण नहीं करता है लेकिन जीवन में सही काम करने के लिए एक दूसरे को प्रेरित करता है। लेकिन कभी-कभी दोस्ती के मायने कुछ नकली और धोखेबाज दोस्तों के कारण पूरी तरह से बदल जाते हैं जो हमेशा एक दूसरे का गलत तरीकों से उपयोग करते हैं।
कुछ लोगों में जल्द से जल्द एकजुट होने की प्रवृत्ति होती है लेकिन वे अपने हितों को पूरा करते ही अपनी दोस्ती को समाप्त कर देते हैं। दोस्ती के बारे में कुछ बुरा कहना मुश्किल है लेकिन यह सच है कि कोई भी लापरवाह व्यक्ति दोस्ती में धोखा खा जाता है। अब एक दिन, बुरे और अच्छे लोगों की भीड़ में सच्चे दोस्त ढूंढना बहुत मुश्किल है लेकिन अगर किसी का सच्चा दोस्त है, तो उसके अलावा कोई भी व्यक्ति दुनिया में भाग्यशाली और कीमती नहीं है।
सच्ची दोस्ती इंसान और इंसान और इंसान और जानवर के बीच हो सकती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सबसे अच्छे दोस्त हमारी कठिनाइयों और जीवन के बुरे समय में मदद करते हैं। दोस्त हमेशा हमें अपने खतरों से बचाने के साथ-साथ समय पर सलाह भी देते हैं। सच्चे दोस्त हमारे जीवन की सबसे अच्छी संपत्ति होते हैं क्योंकि वे हमारे दुख को साझा करते हैं, हमारे दर्द को दूर करते हैं और हमें खुश महसूस कराते हैं।
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c916e80a1ae233d83c404be97bb76a73abf49b658026c2f33d6728eb334edbda | pdf | किया जा रहा है? विभाग इस संबंध में क्या कार्यवाही करेगा? यदि हाँ, तो कब तक? यदि नहीं, तो क्यों? कारण सहित बतावें ।
गृह मंत्री ( श्री भूपेन्द्र सिंह ठाकुर ) : (क) जी हाँ । (ख) जी नहीं। वफ्फ बोर्ड के अध्यक्ष के संबंध में इस अधिसूचना में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। (ग) नियमित जाँच की कार्यवाही की जाती है। नियम विरुद्ध बत्ती का उपयोग होने पर दण्ड का प्रावधान है। मर्जर भूमियों का निराकरण
111. ( क्र. 1916 ) श्री आरिफ अकील : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) भोपाल नवाब और भारत सरकार के मध्य दिनांक 30 अप्रैल 1949 को मर्जर एग्रीमेंट निष्पादित हुआ और प्रश्नकर्ता के अतांकित प्रश्न संख्या 11 (क्रमांक 784) दिनांक 10 मार्च 2008 को उत्तर दिया गया था कि मूल मर्जर एग्रीमेंट की प्रति भारत सरकार के आधिपत्य में होने के कारण जानकारी देना संभव नहीं है, तो वर्ष 2001 से प्रश्न दिनांक की स्थिति में भोपाल की मर्जर की भूमियों का निर्णय राजस्व विभाग/कलेक्टर कार्यालय द्वारा किस आधार पर तथा किन-किन अधिकारियों द्वारा निर्णय लिये गये ? (ख) प्रश्नांश (क) के परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश की राजधानी की मर्जर की भूमियों के करोड़ों रूपये का भ्रष्टाचार हुआ है इसकी गंभीरता को दृष्टिगत रखते हुए क्या मर्जर की प्रति विधान सभा पटल पर रखेगें? यदि नहीं, तो क्यों कारण सहित बतावें।
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) एवं (ख) जानकारी एकत्रित की जा रही है। मुख्यमंत्री कन्यादान योजनांतर्गत प्रोत्साहन राशि की जानकारी
112. ( क्र. 1920 ) श्री संजय शर्मा : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) म.प्र. शासन द्वारा सामूहिक विवाह योजनांतर्गत तेंदूखेड़ा विधान सभा क्षेत्र के वर्ष 2014 से प्रश्न दिनांक तक कितने हितग्राही लाभांवित हुये ? हितग्राहियों के नाम, पता सहित जानकारी प्रदान करें ? (ख) क्या शासन द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रोत्साहन राशि हितग्राहियों को प्रदान की जा चुकी है ? (ग) यदि नहीं, तो क्यों? कारण स्पष्ट करें। दोषी अधिकारी / कर्मचारी के विरुद्ध क्या कार्यवाही की गई ?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजनांतर्गत तेन्दूखेड़ा विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत वर्ष 2014 से प्रश्न दिनांक तक 385 हितग्राही लाभांवित हुए। शेष जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ख) जी हाँ। (ग) उत्तरांश 'ख' के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
शासकीय भूमि पर अतिक्रमण
113. ( क्र. 1946 ) श्रीमती नीना विक्रम वर्मा : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या पीथमपुर क्षेत्र के पटवारी हल्का नम्बर 61 की भूमि सर्वे क्रमांक 303 क्षेत्रफल 0.084 हे., सर्वे क्रमांक 304 क्षेत्रफल 0.021 हे. तथा सर्वे क्रमांक 307 क्षेत्रफल 0.136 शासकीय भूमि होकर राजस्व दस्तावेज में नजूल व मरघट के नाम
पर इंद्राज है? (ख) यदि हाँ, तो क्या उक्त सर्वे नम्बर की भूमि पर अल्पाईन इण्डस्ट्री पीथमपुर, जो वर्तमान में बंद होकर बेच दी गई है, इसके क्रेता द्वारा अवैध रूप से अतिक्रमण कर अपनी स्वयं की निजी भूमि के साथ मिलाकर व्यवसायिक प्रयोजन हेतु कालोनी निर्मित की जा रही है? (ग) क्या प्रश्नांश (क) के संदर्भ में उक्त शासकीय सर्वे नम्बर की भूमियों का सीमांकन किया जाकर अतिक्रमण मुक्त किया जा चुका है वर्तमान स्थिति बतावें ? (घ) यदि नहीं, तो प्रश्नांश (क) के संदर्भ में उक्त सर्वे नम्बर की भूमियों का सीमांकन कर अतिक्रमण मुक्त कब तक करवाई जावेगी? समयावधि बतावें तथा क्या अतिक्रमणकर्ताओं के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही की जावेगी?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) जी हाँ । (ख) वर्तमान में अल्पाईन इण्डस्ट्री पीथमपुर की निजी भूमि व प्रश्नांश (क) में दर्शित भूमि एक दूसरे से लगी होकर पास-पास स्थित है। सीमांकन करने के पश्चात् ही नजूल एवं मरघट भूमि की स्थिति स्पष्ट हो पायेगी, मौके पर अल्पाईन इण्डस्ट्री द्वारा भूमि का समतलीकरण किया जा रहा है एवं कॉलोनी जैसी कोई स्थिति निर्मित नहीं है। अल्पाईन इण्डस्ट्री पीथमपुर विक्रय किये जाने के संबंध में इस कार्यालय के संज्ञान में नहीं है। कम्प्यूट्रीकृत राजस्व अभिलेखों में वर्ष 2015-16 में अल्पलाईन इण्डस्ट्री पीथमपुर की भूमि के सर्वे नम्बर प्रश्नांश (क) में दर्शित सर्वे नम्बर से पृथक है । (ग) एवं (घ) प्रश्नांश (क) के संदर्भ में उक्त शासकीय सर्वे नम्बर की भूमियों के सीमांकन की कार्यवाही पृथक से की जाकर अतिक्रमण की स्थिति पाये जाने पर विधिवत् अतिक्रमण की कार्यवाही यथाशीघ्र की जावेगी।
शौचालय उपयोग हेतु पानी की उपलब्धता
114. ( क्र. 1951 ) श्री सुशील कुमार तिवारी : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत निर्मित शौचालयों के उपयोग हेतु पानी की उपलब्धता नहीं है? (ख) यदि यह सही है तो क्या बनाये गये शौचालय उपयोग विहीन रहेंगे ? (ग) यदि हाँ, तो क्या समस्त ग्रामों में नल-जल योजना का निर्माण कर पर्याप्त पानी उपलब्ध कराया जावेगा ? (घ) यदि हाँ, तो कब तक? यदि नहीं, तो क्यों?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत निर्मित शौचालयों के उपयोग हेतु समस्त ग्राम पंचायतों में पानी की उपलब्धता है। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत निर्मित शौचालयों में पानी की व्यवस्था का दायित्व स्वंय हितग्राही का है। हितग्राहियों को शौचालय के उपयोग हेतु प्रेरित कर ग्रामों को खुले में शौच से मुक्त किया जा रहा है । (ख) प्रश्नांश (क) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) प्रश्नांश (क) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा योजना के प्रावधानों के अनुरूप नल-जल योजना का संचालन किया जाता है। (घ) प्रश्नांश (क) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
वनग्रामों का राजस्व ग्राम में परिवर्तन
115. ( क्र. 1983 ) श्री देवेन्द्र वर्मा : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) खण्डवा विधान सभा क्षेत्र में किन-किन ग्रामीण क्षेत्रों को राजस्व ग्राम घोषित करने के प्रस्ताव जिला स्तर पर विचाराधीन है? इसमें वर्तमान में किस स्तर पर कार्यवाही प्रचलित है? (ख) ग्रामीण बसाहट को राजस्व ग्राम घोषित करने के क्या प्रावधान हैं? क्या इन क्षेत्रों में ग्रामीण को मूलभूत सुविधाएं पाने का अधिकार है। (ग) खण्डवा विधान सभा क्षेत्र के ऐसे किन-किन क्षेत्रों के प्रस्ताव जिला प्रशासन/राजस्व विभाग द्वारा शासन को प्रेषित किए गए हैं? प्रेषित प्रस्तावों का विवरण उपलब्ध कराएं? (घ) उक्त प्रस्ताव किस स्तर पर एवं किन कारणों से कार्यवाही हेतु लंबित हैं ? ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों को कब तक राजस्व ग्राम घोषित कर दिया जाएगा?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : अस्पष्ट। जानकारी एकत्रित की जा रही है।
(क) से (घ) कलेक्टर से प्राप्त जानकारी
अपूर्ण सड़क का निर्माण कार्य
116. ( क्र. 2022 ) श्रीमती प्रतिभा सिंह : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जबलपुर जिले के शहपुरा वि.स. के अंतर्गत निर्माणाधीन प्रधान मंत्री सड़क "इंद्रा नगर-भैरोंघाट" का अब तक कितना निर्माण कार्य हुआ है? कितना शेष है? (ख) उक्त इंद्रा नगर-भैरोंघाट प्रधानमंत्री सड़क निर्माण की निर्धारित अवधि क्या थी? अपूर्ण निर्माण कार्य कब तक पूर्ण किया जावेगा?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) जबलपुर जिले के शहपुरा विधान सभा क्षेत्र में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनांतर्गत निर्माणाधीन "इन्द्रानगर से भैरोंघाट" में 18.633 कि.मी. का निर्माण कार्य हुआ है। शेष 4.12 कि.मी. निर्माण कार्य की वन विभाग से अनुमति प्राप्त न होने से नहीं किया गया है। उक्त मार्ग की स्वीकृत लंबाई 26.67 कि.मी. है, मार्ग की आर.डी. 0 कि.मी. से 2.12 कि.मी. तक नैरादेही अभ्यारण्य क्षेत्र होने के कारण वर्तमान में फारेस्ट कंजरवेशन एक्ट के कारण सड़क निर्माण की अनुमति प्राप्त नहीं है। मार्ग की आर.डी. 2.12 कि.मी. से 20.955 तक के भाग में आर.डी. 19.2 कि.मी. से 19.4 कि.मी. में 200 मीटर लंबाई का सी.सी. मार्ग का कार्य प्रगति पर है। आर.डी. 21.50 कि.मी. से 23.50 कि.मी. में सड़क निर्माण हेतु आवश्यक चौड़ाई 6 मीटर में कार्य कराने की वन विभाग से अनुमति नहीं होने से उक्त लंबाई का सड़क निर्माण कार्य विलोपित किया गया है। मार्ग की आर.डी. 23.5 कि.मी. से 26.67 कि.मी. के मध्य कोई ग्राम स्थित नहीं होने एवं लक्ष्य ग्राम भैरोंघाट जो मार्ग की 26.67 कि.मी. पर स्थित है को लोक निर्माण विभाग द्वारा पाटन मनखेड़ी मार्ग से पिपरियाकलां मुख्य मार्ग द्वारा संपर्कता प्रदान करने के कारण मार्ग को आर. डी. 20.955 कि.मी. तक ही पूर्ण किया जा रहा है। (ख) "इन्द्रानगर से भैरोंघाट" तक प्रधानमंत्री सड़क निर्माण कार्य पूर्ण करने की अनुबंधानुसार निर्धारित अवधि दिनांक 25.11.2012 थी। मार्ग पूर्ण करने हेतु दिनांक 30.06.2016 तक समयावृद्धि दी गई थी। ठेकेदार द्वारा दिसम्बर 2016
तक समयावृद्धि हेतु निवेदन किया है। निर्माण कार्य की निश्चित समय-सीमा बताना संभव नहीं है।
वाटरशेड निर्माण की गुणवत्ता
117. (क्र. 2032 ) श्री इन्दर सिंह परमार : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) शाजापुर जिले के कालापीपल विकासखण्ड में एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम अंतर्गत किन-किन गाँवों में कौन-कौन से निर्माण कार्य प्रस्तावित थे उनमें से कितने कार्य पूर्ण हो चुके है तथा कितने कार्य चल रहे हैं? कार्यवार जानकारी देवें। (ख) प्रश्नांश (क) में उल्लेखित निर्माण कार्य के स्ट्रक्चर (फाउंडेशन) में उपयोग किये जा रहे मटेरियल का स्वीकृत प्राक्कलन अनुसार किस तकनीकी अधिकारी द्वारा कब-कब गुणवत्ता परीक्षण करवाया गया ? दिनांकवार जानकारी देवें?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) एवं (ख) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। परिशिष्ट "तेईस"
मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना
118. ( क्र. 2033 ) श्री इन्दर सिंह परमार : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) शाजापुर जिले में मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत प्रश्न दिनांक तक कितने ग्रामों के सड़क निर्माण के कार्य पूर्ण या चल रहें हैं तथा किन-किन गांवों के सड़क निर्माण कार्य स्वीकृत कर दिये गये हैं ? ( ख ) प्रश्नांश (क) में उल्लेखित योजना में शाजापुर जिले के शुजालपुर विकासखण्ड के खेरखेड़ी तथा कालापीपल विकासखण्ड के सेमलीखेड़ा व सुरतीकापुरा गांवों को सड़क मार्ग से क्यों नहीं जोड़ा गया? क्या उक्त ग्रामों को अन्य योजना से सड़क सुविधा प्राप्त हो गयी है? (ग) जनसंख्या के मान से प्रश्नांश (ख) में उल्लेखित गांवों को सड़क मार्ग से कब तक जोड़ा जाना था?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ख) हरूखेड़ी से सेमलीखेड़ा मार्ग स्वीकृत किया गया था, किन्तु शासकीय भूमि उपलब्ध न होने से निर्माण नहीं हो सका। ग्राम खेरखेड़ी की मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के मापदण्डानुसार मुख्यमार्ग से दूरी कम होने के कारण योजना में पात्र नहीं है। ग्राम सुरतीकापुरा में मार्ग निर्माण के प्रस्ताव का परीक्षण कराया जा रहा है। (ग) उत्तरांश (ख) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
परिशिष्ट - "चौबीस"
राशि भुगतान में अनियमितता
119. ( क्र. 2035 ) श्रीमती झूमा सोलंकी : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) भीकनगाँव विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत वर्ष 2013-14 से वर्ष 2015-16 तक मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम अंतर्गत प्रा.वि./मा.वि. संचालन हेतु कितनी मात्रा में गेहूं एवं राशि स्वयं सहायता समूह को प्रदाय की गई है? माहवार प्रदाय राशि एवं गेहूं (खाद्यान्न) की जानकारी समूहवार उपलब्ध करावें ? (ख) यह भी बतायें कि प्रा.वि./मा. वि.
में वर्ष 2013-14 में से वर्ष 2015-16 तक कितनी मात्रा में खाद्यान्न (गेहूं) एवं कितनी राशि प्रति बच्चे के अनुमान से प्रदाय किया जाना था ? अगर वर्ष 2013 के पश्चात् राशि प्रदाय/खाद्यान्न की दर में परिवर्तन हुआ है ? तो वह किस माह में लागू किया गया है? शासन के कार्यक्रम अंतर्गत संबंधित सर्कुलर उपलब्ध करावें? (ग) क्या वर्ष 2013 के पश्चात् निर्धारित मापदण्ड अनुसार बच्चों की उपस्थिति के अनुपात में खाद्यान्न एवं राशि, समूहों को अधिक प्रदाय की गई? हाँ, तो ऐसे समूह की संख्या कितनी है तथा यह कौन से विद्यालयों में संचालन कर रहे हैं तथा समूह का नाम क्या है तथा कितनी अधिक राशि एवं खाद्यान्न प्रदाय दिया गया है तथा यह अधिकता किस माह से हुई है तथा इसका क्या कारण था? (घ) क्या किसी समूह के पास स्टॉक में खाद्यान्न एवं राशि शेष रहने के उपरांत गेहूं एवं राशि प्रदाय की गई है? हाँ, तो क्यों? क्या यह आर्थिक अनियमितता नहीं है और है तो इसके लिये कौन-कौन दोषी हैं तथा भविष्य में पुनरावृत्ति न हो इसके लिये दोषी पर कार्यवाही प्रस्तावित की जावेगी?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "अ" अनुसार है। (ख) मध्यान्ह भोजन योजना के कास्ट नार्म भारत शासन द्वारा निर्धारित की जाती है, जिसके अनुसार प्रति बच्चा प्राथमिक विद्यालय में 100 ग्राम एवं माध्यमिक विद्यालय में 150 ग्राम प्रति छात्र के मान से दिए जाने के शासन के निर्देश है। भोजन पकाने की राशि शासन निर्देशानुसार निर्धारित दर से प्रदाय की है। वर्तमान में प्राथमिक विद्यालय हेतु रू. 3.86 एवं माध्यमिक विद्यालय हेतु रू 5.78 प्रति छात्र प्रति दिन है। परिवर्तित दरें शासन के निर्देशानुसार निर्धारित तिथियों से लागू की गई है, दरों की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "ब" अनुसार है। (ग) जी नहीं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) जी नहीं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
वाटर शेड योजना में कराये गये कार्य
120. ( क्र. 2039 ) श्री गोविन्द सिंह पटेल : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) गाडरवारा वि.स. क्षेत्र के अंतर्गत वाटर शेड योजना से कितने गाँव में कितने कार्य सन् 2014 से लेकर प्रश्न दिनांक तक कराये गये हैं ? (ख) कौन सा कार्य कितनी राशि से कराया जा रहा है एवं कौन से कार्य में कितनी राशि खर्च हुई है एवं कितनी राशि शेष है? कितने कार्य पूर्ण हो गये हैं एवं कितने कार्य अपूर्ण हैं? (ग) यह कार्य मजदूरों से कराये जाते हैं या मशीनों से कराये जाते हैं? कितने कार्य मजदूरों से एवं कितने कार्य मशीनों से कराये गये ? (घ) क्या आज की स्थिति में जिस जल संरक्षण के उद्देश्य से यह योजना चलाई जा रही है उस मंशा की पूर्ति हो रही? (ड.) क्या 2013 से लेकर प्रश्न दिनांक संपूर्ण कार्यों की जाँच कराकर अनियमितता पाये जाने पर इन पर संबंधित कर्मचारी अधिकारियों पर कार्यवाही की जायेगी ?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) एवं (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ग) आस्थामूलक कार्य व वाटरशेड विकास कार्य मजदूरों एवं मशीनों से कराये जाते हैं। आजीविका उन्नयन कार्य तथा उत्पादन प्रणाली संबंध कार्य
स्वयं हितग्राही द्वारा किये जाते है। शेष जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (घ) जी हाँ। (ड.) प्रश्नाधीन कार्यों का भौतिक सत्यापन एवं निरीक्षण समय-समय पर किया गया है, जिनमें कोई अनियमितता नहीं पाई गई है। अतः जाँच एवं कर्मचारी व अधिकारियों पर कार्यवाही का प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
भारत उदय कार्यक्रम
121. ( क्र. 2040 ) श्री गोविन्द सिंह पटेल : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) गाडरवारा विधान सभा क्षेत्र में ग्रामोदय से भारत उदय कार्यक्रम के अंतर्गत ग्राम पंचायत सिरसिरी विकासखण्ड साईंखेड़ा में ग्राम सभा किन-किन तारीखों में आयोजित की गई थी ? ( ख ) ग्राम सभा आयोजित करने के लिए क्या ग्राम में ग्राम पंचायत भवन उपलब्ध होने पर ग्राम सभा आयोजित करने का प्रावधान है ग्राम पंचायत भवन उपलब्ध न होने की दशा में क्या अन्य शासकीय भवन में ग्राम सभा आयोजित करने का प्रावधान है? (ग) क्या उपरोक्त ग्राम पंचायत में ग्राम पंचायत भवन उपलब्ध होने के बावजूद एवं अन्य छोटे से भवन में ग्राम सभा अयोजित की गई जहां पर कि न तो लोगों को बैठने की जगह है और न पेय जल आदि अन्य सुविधायें ? (घ) क्या इस संबंध में कलेक्टर नरसिंहपुर एस. डी. एम. गाडरवारा एवं सी.ई.ओ. साईंखेड़ा को शिकायत प्राप्त हुई है? (ड.) क्या ग्राम पंचायत सरपंच, ग्राम पंचायत सचिव एवं नोडल अधिकारी की कोई गलती पायी गई है एवं उनके खिलाफ कोई जाँच हुई है बतावें? भविष्य में इनके विरुद्ध क्या कार्यवाही कब तक की जाएगी?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) ग्राम पंचायत सिरसिरी में ग्राम उदय से भारत उदय कार्यक्रम के अंतर्गत दिनांक 10.05.2016, 11.05.2016 एवं 12.05.2016 व दिनांक 01.06.2016 को ग्राम सभा ( ग्राम संसद ) का आयोजन किया गया था। (ख) ग्राम सभा के आयोजन स्थल के संबंध में निर्णय स्थानीय परिस्थिति अनुसार किया जा सकता है। (ग) जी हाँ। ग्राम पंचायत भवन उपलब्ध होने के बावजूद शासकीय प्राथमिक शाला सिरसिरी में ग्राम सभा आयोजित की गई भवन में 150 व्यक्तियों के बैठने की जगह है, शाला परिसर में पेयजल हेतु हैंडपंप उपलब्ध है। (घ) जी हाँ। इस संबंध में मुख्य कार्यपालन अधिकारी साईंखेड़ा एवं अनुविभागीय अधिकारी, राजस्व गाडरवारा को शिकायत प्राप्त हुई थी। (ड.) जी हाँ। इस संबंध में संबंधितों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया है, संबंधितों का जवाब संतोषजनक पाये जाने से शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
टीकमगढ़ जिले की साख समिति में अनियमितता
122. ( क्र. 2047 ) श्रीमती अनीता नायक : क्या राज्यमंत्री, सहकारिता महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या प्राथमिक साख सह. समिति मर्या. गोर में दिनांक 31.12.15 से अध्यक्ष हैं? यदि हाँ, तो कौन है नाम एवं पदग्रहण का दिन बतावें? (ख) क्या दिनांक 19.1.2016 को समिति प्रबंधक गोर को उपायुक्त सहकारिता टीकमगढ़ के आदेश पर संचालक मण्डल की बैठक में निलंबित किया गया था? यदि हाँ, तो
किसकी अध्यक्षता में नाम बताये एवं समिति प्रबंधक ने स्टे किस आदेश पर लिया ? (ग) क्या स्टे उपरांत समिति प्रबंधक ने अपनी उपस्थिति दी थी यदि हाँ, तो किसको दी क्या अध्यक्ष पदेन होने के उपरांत समिति में उपाध्यक्ष कार्य करने हेतु विधि संगत ही बतायें एवं उपस्थिति किस आधार पर वैधानिक है? (घ) क्या दि. 4.1.16 से आज दिनांक तक राशि का आहरण किया गया है? यदि हाँ, तो कुल कितना, क्या आचरण नियम संगत है? यदि नहीं, तो कौन दोषी एवं दोषियों के खिलाफ क्या कार्यवाही होगी एवं कब तक समय-सीमा बतावें?
राज्यमंत्री, सहकारिता ( श्री विश्वास सारंग ) : (क) जी नहीं, दिनांक 26.09.2015 से समिति के अध्यक्ष का प्रभार उपाध्यक्ष श्रीमती राजकुंवर यादव के पास है. (ख) जी नहीं. प्रश्न उपस्थित नहीं होता. समिति प्रबंधक द्वारा उप आयुक्त सहकारिता जिला टीकमगढ़ के पत्र दिनांक 18.01.2016 एवं पूर्व अध्यक्ष के अवैधानिक आदेश दिनांक 19.01.2016 के क्रियान्वयन पर स्थगन प्राप्त किया गया है. (ग) जी नहीं, प्रश्न उपस्थित नहीं होता. समिति की उपविधि अनुसार अध्यक्ष के अपात्र हो जाने पर उपाध्यक्ष को समिति के अध्यक्ष का प्रभार दिए जाने का प्रावधान है. शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता. (घ) जी हाँ. राशि रूपये 8, 20,913.00 का आहरण किया गया है जो नियम संगत है. शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता.
दोषी पर कार्यवाही
123. ( क्र. 2068 ) श्रीमती शीला त्यागी : क्या राज्यमंत्री, सहकारिता महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) परि. अता. प्रश्न संख्या - 148 (क्र. 5209) दिनांक 10 मार्च 2016 के पैरा (घ) का उत्तर जी हाँ ( अंकेक्षण अनुसार ) बैलेन्स शीट में अधिरोपित राशि की वसूली हेतु म.प्र. सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 की धारा 64 वा 68 के तहत बाद दायर कर निर्णय लिया जावेगा तब दोषी समिति प्रबंधकों की पदस्थापना अन्यत्र कर दी गई है क्या दिया गया है, तो किन-किन समितियों के समिति प्रबंधकों की पदस्थापना अन्यत्र की गई है आदेश पूर्ति के साथ जानकारी देवें तथा उक्त समिति प्रबंधक वर्तमान में किस समिति में पदस्थ हैं? (ख) यदि प्रश्नांश (क) (ख) के समिति प्रबंधक अपने उसी
मूल पूर्व पदस्थापना समितियों पदस्थ रहते हुए कार्य कर रहे हैं तथा अन्यत्र हटाने
का उत्तर दिया गया है तो उक्त असत्य जानकारी देने में कौन-कौन दोषी है उनके विरूद्ध क्या कार्यवाही करेंगे? क्या उक्त समिति प्रबंधक उसी पद प्रभार में कार्य कर रहे है? यदि हाँ, तो सदन में दिए गए उत्तर के परिपालन में कब तक अन्यत्र हटा दिया जावेगा? आदेश की प्रति के साथ जानकारी देवें ।
राज्यमंत्री, सहकारिता ( श्री विश्वास सारंग ) : (क) जी हाँ, सेवा सहकारी समिति मर्यादित, मनगवां में पदस्थ समिति प्रबंधक श्री गोपाल नारायण शर्मा की पदस्थापना जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, रीवा के आदेश क्रमांक 3011, दिनांक 29.02.2016 द्वारा अन्यत्र की गई है, आदेश की प्रति संलग्न परिशिष्ट अनुसार है, उक्त आदेश का पालन न करने के कारण जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, रीवा के आदेश दिनांक
29.06.2016 के द्वारा उक्त श्री गोपाल नारायण शर्मा को निलंबित किये जाने से पदस्थापना का प्रश्न उपस्थित नहीं होता. (ख) उत्तरांश "क" के प्रकाश में प्रश्न उपस्थित नहीं होते.
अवैध पट्टा (लीज) निरस्त किए जाने बाबत्
124. ( क्र. 2069 ) श्रीमती शीला त्यागी : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) अशा.उ. मा. वि. संस्कार बैली स्कूल मैदानी ढेकहा रीवा जिला रीवा किस भूमि में संचालित है? उसका खसरा नं. रकबा अंकित कर जानकारी देवें। (ख) प्रश्नांश (क) की भूमि वर्ष 1980 के पूर्व खसरा में तथा वर्ष 1958-59 के खतौनी में किस के नाम दर्ज थी? उक्त भूमि विद्यालय अथवा विद्यालय संचालन समिति के नाम कब, किस आधार पर परिवर्तित की गई है की जानकारी राजस्व रिकार्डों के साथ देवें। (ग) यदि प्रश्नांश (क) की भूमि नियम विरुद्ध विद्यालय अथवा संचालन समिति के नाम दर्ज की गई है तो क्या उक्त भूमि अतिक्रमण मुक्त कराते हुए पूर्व के भाँति 1958-59 के खतौनी अनुसार खसरा में इद्रांज करा देगें? यदि नहीं, तो क्यों? (घ) प्रश्नांश की भूमि का नियम विरुद्ध व्यवस्थापन करने में कौन-कौन दोषी है? उनके विरूद्ध तथा संचालन समिति के एवं विद्यालय प्राचार्य के विरूद्ध पुलिस में प्रकरण दर्ज कराते हुए राजस्व रिकार्डों में सुधार करायेगें?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) से (घ) जानकारी एकत्रित की जा रही है। लिपिकीय वर्ग से नायब तहसीलदार की विभागीय परीक्षा
125. ( क्र. 2078 ) श्री तरूण भनोत : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या प्रदेश के राजस्व विभाग लिपिक वर्ग से नायब तहसीलदार विभागीय परीक्षा का प्रावधान है? यदि हाँ, तो आदेश की छायाप्रति दी जावे ? (ख) प्रश्नांश (क) में वर्ष 2005 के पश्चात् परीक्षा क्यों नहीं करवाई गई? लिपिक वर्ग से नायब तहसीलदार के कितने पद वर्तमान में रिक्त हैं? (ग) वर्ष 2005 में कितने पदों के लिये विभागीय परीक्षा करवाई गई थी? जिसके विरूद्ध कितनों की नियुक्ति की जा चुकी है व कितने पद रिक्त हैं? (घ) कब तक लिपिक वर्ग से नायब तहसीलदार के पदों की विभागीय परीक्षा कराई जाकर नियुक्ति की जावेगी?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) जी हाँ। मध्य प्रदेश शासन, राजस्व विभाग के अधिसूचना क्रमांक 464 दिनांक 19.10.2011 की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ख) लिपिक वर्ग से नायब तहसीलदार के पद पर विभागीय परीक्षा आयोजित किये जाने हेतु भर्ती नियम में संशोधन की कार्यवाही विचाराधीन होने के कारण परीक्षा आयोजित नहीं की जा सकी। लिपिक वर्ग से नायब तहसीलदार के 29 पद रिक्त है। (ग) वर्ष 2005 में विभागीय परीक्षा आयोजित नहीं कराई गई । (घ) समयसीमा बतायें जाना संभव नहीं है।
प्रधानमंत्री सडक योजना की जानकारी
126. ( क्र. 2088 ) श्री रजनीश सिंह : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जिला सिवनी में केवलारी विधान सभा क्षेत्र के अंतर्गत कितनी प्रधानमंत्री सड़कें निर्माण हेतु स्वीकृत हैं? कितनी सड़कों का कार्य प्रगति पर है एवं कितनी सड़कें अपूर्ण हैं? विकासखण्डवार सूची उपलब्ध करायें ? ( ख ) क्या विधान सभा क्षेत्र केवलारी के अंतर्गत वन ग्राम मोरडोंगरी डूंडलखेड़ा, (वि. खं. सिवनी) से छुई एवं विकासखण्ड केवलारी के ग्राम भादू टोला से तुर्गा तक प्रधानमंत्री सड़क निर्माण होना है? यदि हाँ, तो समयावधि बतावें? यदि नहीं, तो कारण स्पष्ट करें? (ग) क्या वि. खं. सिवनी अंतर्गत सिंघोड़ी से भालीवाड़ा तक प्रधानमंत्री सड़क निर्माणाधीन है ? यदि हाँ, तो कार्य पूर्णता की समयावधि बतावें? (घ) क्या प्रश्नांश (ग) में उल्लेखित सड़क निर्माण विगत 3 वर्षों से चल रहा है जबकि इसकी लम्बाई महज 5 कि. मी. है? यदि हाँ, तो विलम्ब होने का क्या कारण है एवं इसका उत्तरदायी कौन है ?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) जिला सिवनी केवलारी विधान सभा क्षेत्र के अन्तर्गत प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में अद्यतन 173 मार्ग, की स्वीकृतियां प्राप्त हुई है जिनमें से 110 मार्ग पूर्ण, 44 मार्ग प्रगति पर एवं 19 सड़कें निविदा स्तर पर है। विकासखंडवार जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है । (ख) जी हाँ, विधान सभा क्षेत्र केवलारी के अंतर्गत वनग्राम मोरडोंगरी से छुई पैकेज क्रमांक 36136 (शेष कार्य) के अंतर्गत अनुबंध दिनांक 23.06.2016 को किया गया है। भादूटोला से तुर्गा मार्ग का अनुबंध किया जाना शेष है। निश्चित समयावधि बताया जाना संभव नहीं है। (ग) विकासखंड सिवनी के अंतर्गत सिघोंडी से भालीवाड़ा मार्ग निर्माणाधीन है। निश्चित समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है। (घ) जी हाँ । सिघोंडी से भालीवाड़ा मार्ग का कार्य अनुबंधकर्ता द्वारा समय पर कार्य पूर्ण नहीं करने के कारण दिनांक 27.05.2015 को अनुबंध समाप्त किया गया। शेष कार्य हेतु माह अक्टूबर 2015 में नई एजेंसी का निर्धारण कर कार्य प्रगति पर है। कार्यपूर्णता में विलंब के लिये पूर्व अनुबंधकर्ता उत्तरदायी है जिसके विरूद्ध अनुबंध की शर्तों के अधीन कार्यवाही की गई।
परिशिष्ट "छब्बीस"
विधायक के पत्र पर कार्यवाही
127. ( क्र. 2127 ) श्रीमती शकुन्तला खटीक : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या पत्र क्रमांक 36 / MLA / 2016 दिनांक 12.05.2016 को अनुविभागीय अधिकारी राजस्व करैरा को प्रश्नकर्ता विधायक द्वारा प्रस्तुत किया था ? (ख) यदि हाँ, तो उपरोक्त (क) में वर्णित पत्र पर अभी तक क्या कार्यवाही हुई ? यदि नहीं, तो क्यों? कारण दर्शाते हुये कार्यवाही कब तक की जायेगी ? निश्चित दिनांक बतावें? (ग) क्या सामान्य प्रशासन विभाग मध्यप्रदेश शासन भोपाल के अनेकों बार निर्देश आदेशों के माध्यम से आयुक्त एवं कलेक्टर्स आदि अधिकारियों को अवगत कराया है कि माननीय सांसद व विधायक द्वारा प्रस्तुत पत्रों की प्राप्ती की सूचना एवं की गई कार्यवाही से
अवगत अतिशीघ्र कराया जावे ? यदि हाँ, तो प्रश्नांश (क) में वर्णित पत्र का उत्तर न देना शासन के नियमों का उल्लंघन होकर विधायकों के विशेषाधिकारों का हनन भी है ? (घ) क्या उपरोक्त प्रश्नांश (क) में वर्णित पत्र पर कार्यवाही न करने के कारण पत्र में उल्लेखित शिकायत के संबंध में लगातार प्रगति हो रही है जो निरंतर जारी है व भू-माफियाओं के हौंसले भी बुलंद हैं एवं यदि समय रहते कार्यवाही नहीं की गई तो नगर नरवर की सभी शासकीय भूमि, भू-माफियाओं द्वारा हथिया ली जायेगी ?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) से (घ) जानकारी एकत्रित की जा रही है। ग्राम उदय से भारत उदय अभियान
128. ( क्र. 2143 ) श्री अनिल जैन : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या प्रदेश में ग्राम उदय से भारत उदय अभियान के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत में ग्राम सभाओं के आयोजन की व्यवस्था की गई थी ? यदि हाँ, तो टीकमगढ़ जिले की कितनी ग्राम पंचायतों में यह आयोजन किये गये और कितनी पंचायतों में
नहीं किये गये ? जनपद पंचायतवार संख्या पृथक-पृथक बतायी जावे ? (ख) विधान सभा क्षेत्र निवाड़ी में ग्राम उदय से भारत उदय अभियान के अंतर्गत ग्राम सभाओं के आयोजन में कुल कितने आवेदन प्राप्त हुये ? इनमें से पात्र हितग्राहियों की संख्या जिनके आवेदन स्वीकृत किये गये तथा अपात्र हितग्राहियों की संख्या बतायी जावे? (ग) क्या प्रश्नांश (ख) में प्राप्त आवेदनों में से अधिकांश आवेदन निरस्त हुये हैं? कारण सहित बताया जावे कि आगामी अभियान कार्यक्रमों में स्वीकृत आवेदनों की संख्या बढ़ाने के लिये शासन द्वारा क्या कोई पहल की जा रही है ?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) जी हाँ । जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार (ख) विधान सभा क्षेत्र निवाड़ी अंतर्गत ग्राम उदय से भारत उदय अभियान के अंतर्गत आयोजित ग्राम सभाओं में 67730 आवेदन पत्र प्राप्त हुये, जिनमें 64583 आवेदन पत्र पात्र पाये गये और 3147 आवेदन पत्र अपात्र पाये गये। (ग) जी नहीं । 5 प्रतिशत से भी कम आवेदन अपात्र होने से निरस्त किये गये। शेष जानकारी निरंक है।
परिशिष्ट - "सत्ताईस"
हितग्राही मूलक योजनाएं
129. ( क्र. 2148 ) श्री अनिल जैन : क्या किसान कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या हितग्राही मूलक योजनाओं जैसे पाईप लाईन, यंत्र आदि के लिये शासन द्वारा ऑन-लाईन आवेदन की व्यवस्था की गई है? यदि हाँ, तो इस योजना के माध्यम से दूरस्थ जिलों, विकासखण्डों और ग्राम पंचायतों के किसानों को क्या शासन की मंशानुसार लाभ मिल पाता है या नहीं? यदि नहीं, तो कारण बताये जावें? (ख) क्या इन योजनाओं के लिये शासन द्वारा विकासखण्डवार लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं किन्तु ऑनलाईन व्यवस्था होने के कारण विकासखण्डवार लक्ष्यानुसार पूर्ति नहीं हो पाती है? यदि हाँ, तो विकासखण्डवार लक्ष्यों की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिये शासन
द्वारा कौन-कौन से सुधार प्रस्तावित हैं ? ( ग ) क्या इस नई व्यवस्था में हितग्राहियों का चयन भोपाल स्तर से लाटरी के माध्यम से किया जाता है? यह प्रावधान क्या छोटे किसानों के लिये प्रासंगिक है?
किसान कल्याण मंत्री ( श्री गौरीशंकर बिसेन ) : (क) जी हाँ। ऑनलाईन आवेदन व्यवस्था से किसानों को शासन की मंशानुसार लाभ प्राप्त हो रहा है। शेष प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। (ख) विभाग द्वारा जिले हेतु लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं, जिला स्तर से विकासखंडवार लक्ष्य आवंटित किये जाते है। जिन कृषकों द्वारा ऑनलाईन आवेदन किया जाता है, उनके आवेदनों पर लक्ष्यानुसार कार्यवाही की जाती है। (ग) जी नहीं। हितग्राहियों का चयन "प्रथम आवे प्रथम पावें" के सिद्धांत पर किया जाता है। इसमें सभी कृषकों को आवेदन के समान अवसर प्राप्त रहते है।
उपयंत्रिकों का अन्य विभाग में समायोजन
130. ( क्र. 2182 ) श्री गिरीश गौतम : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या बी. आर. जी. एफ. योजना 30-06-2015 को बंद कर दिये जाने के बाद उसमें कार्यरत उपयंत्रियों को अन्य विभाग में समायोजित करने की कार्यवाही की गयी है? (ख) क्या पंचायत राज संचालनालय द्वारा बी. आर. जी. एफ. में कार्यरत रहे उपयंत्रियों का जुलाई, 2015 में साक्षात्कार भी किया गया है तथा मध्यप्रदेश रोजगार गारंटी परिषद् की सशक्त समिति की उसी बैठक में भी निर्णय लिया गया है कि बी. आर. जी. एफ. के 16 उपयंत्रियों को मनरेगा योजना में समायोजित करने की अनुमति प्रदान की गयी है? (ग) क्या विभागीय मंत्री जी द्वारा भी अपर सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को परीक्षण उपरांत प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है? यदि हाँ, तो निर्देशानुसार क्या कार्यवाही हुई और कब तक उपयंत्रियों को मरनेगा योजनांतर्गत
समायोजित कर लिया जायेगा?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) एवं (ख) जी हाँ । (ग) जी हाँ। वर्तमान में मनरेगा योजनान्तर्गत प्रशासनिक व्यय मद में स्वीकृत पात्रता सीमा से अधिक व्यय होने से प्रकरण विचारण में है। समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है।
कुओं का निर्माण
131. (क्र. 2188 ) श्री बाला बच्चन : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) स्वच्छता अभियान के तहत हो रहे शौचालयों के निर्माण कार्य प्रदेश में किस स्थिति में हैं? । (ख) इसी अभियान के अंतर्गत बड़वानी जिले की अलग-अलग ग्राम पंचायतों द्वारा निर्मित शौचालयों को कितनी राशि प्रदान कर दी गई, कितनी शेष है? जहां राशि प्रदान करना शेष है वहां राशि कब तक प्रदान कर दी जायेगी ? (ग) प्रश्न दिनांक तक बड़वानी जिले में इंदिरा आवास योजना एवं कपिल धारा कुएँ की कितनी राशि, कितने हितग्राहियों की शेष है? विधान सभावार, ग्रामवार बतावें । यह राशि कब तक प्रदान कर दी जायेगी? (घ) उपरोक्त अपूर्ण कार्यों को कब तक पूर्ण करा लिया जायेगा एवं इससे जुड़े विभागीय अधिकारियों द्वारा जवाबदेही का निर्वहन क्यों नहीं किया?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) अंतर्गत प्रदेश में निर्मित हो रहे शौचालय उपयोगी है । (ख) बड़वानी जिले में ग्राम पंचायतवार निर्मित शौचालयों को प्रदाय की गई राशि की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। शौचालय निर्माण निरंतर चालू हैं, जिस हेतु राशि सतत् रूप से उपलब्ध कराई जा रही है। (ग) बड़वानी जिले में इंदिरा आवास योजनांतर्गत प्रश्न दिनांक तक विधान सभावार, ग्रामवार जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। इंदिरा आवास योजनांतर्गत हितग्राहियों द्वारा लिटल लेवल तक के आवास निर्माण पूर्ण कर निर्धारित मापदण्ड अनुसार फोटो आवास सॉफ्ट में अपलोड करने के पश्चात् एफ.टी.ओ. के माध्यम से द्वितीय किश्त हितग्राहियों के बैंक खातों में राशि हस्तांतरित करने की कार्यवाही प्रचलन में है। मनरेगा अंतर्गत कपिलधारा कूप निर्माण में हितग्राहियों को राशि देने का प्रावधान नहीं है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) शौचालय निर्माण, इंदिरा आवास एवं कपिलधारा कूप निर्माण कार्य सतत् प्रक्रिया है। अपूर्ण कार्यों को पूर्ण किया जा रहा है। निश्चित समय-सीमा बताना संभव नहीं है। शेष का प्रश्न नहीं उठता है।
गौण खनिजों के उपयोग हेतु नीति
132. ( क्र. 2191 ) श्री हेमन्त विजय खण्डेलवाल : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) ग्रामीण विकास कार्य के लिए म.प्र. गौण खनिज अधिनियम 1996 के नियम 3 में क्या प्रावधान दिए गए हैं? इन प्रावधानों के तहत म.प्र. शासन खनिज विभाग ने अप्रैल 2013 में क्या प्रक्रिया निर्धारित की है? (ख) जिला पंचायत बैतूल एवं जिले की जनपद पंचायतों द्वारा ग्राम विकास कार्यों के लिए किस-किस गौण खनिज के लिए खदान आरक्षित किए जाने के संबंध में वर्ष 2013 से प्रश्नांकित दिनांक तक क्या कार्यवाही की गई है? (ग) किस विकासखण्ड की कितनी पंचायतों के लिए किस ग्राम में, कितनी मुरम, गिट्टी, पत्थर एवं रेत की खदान प्रश्नांकित दिनांक तक आरक्षित की गई है? यदि खदान आरक्षित नहीं की गई है, तो उसके क्या कारण है? (घ) ग्राम विकास कार्यों के लिए कितनी गौण खनिजों का आरक्षण किया जाएगा तथा कब तक?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम 1996 अधिसूचित है, नियम 3 में उल्लेखित प्रावधान जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-अ अनुसार। मध्यप्रदेश शासन खनिज विभाग द्वारा जारी पत्र दिनांक 10.04.2013 में निर्धारित प्रक्रिया जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र अ अनुसार । (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - ब अनुसार, कलेक्टर खनिज शाखा बैतूल द्वारा म.प्र. शासन खनिज साधन विभाग द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 22 जून, 2015 अनुसार किये गये संशोधन बाबत् कार्यवाही किये जाने हेतु कार्यालय के पत्र क्रमांक-917 दिनांक 06.07.2015 से अधिसूचना की प्रति समस्त अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) तहसीलदारों एवं समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायतों को भेजी गई तथा कार्यालय के पत्र क्रमांक-1583 दिनांक 03.11.2015 से जिले के
तहसीलदारों को साधारण पत्थर, मुरम एवं फर्शी पत्थर खनिज अधिनियम-5 हेक्टेयर की एक-एक खदान आरक्षित करने हेतु संबंधित ग्राम पंचायतों के प्रस्ताव प्राप्त कर आवश्यक जाँच उपरांत प्रस्ताव प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया गया है तथा समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायतों को आवश्यक कार्यवाही हेतु लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त जिला पंचायत से भी इस संबंध में पत्र क्रमांक-3179 दिनांक 10.04.2015 के द्वारा भी निर्देश दिये गये हैं। (ग) प्रश्नांश 'क' में उल्लेखित प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश शासन खनिज साधन विभाग, भोपाल द्वारा जारी अधिसूचना में दिनांक 22 जून 2015 अनुसार किये गये संशोधन बाबत् कार्यवाही किये जाने हेतु कलेक्टर बैतूल ने पत्र क्रमांक 917 दिनांक 06.07.2015 से अधिसूचना की प्रति मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत समस्त अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व, समस्त तहसीलदार एवं समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायतों को भेजी गई है तथा कलेक्टर बैतूल ने पत्र क्रमांक 1583 दिनांक 03.11.2015 से जिले के समस्त तहसीलदारों को साधारण पत्थर, मुरम एवं फर्शी पत्थर खनिज की अधिकतम 5 हेक्टेयर की एक-एक खदान आरक्षित करने हेतु संबंधित ग्राम पंचायतों से प्रस्ताव प्राप्त कर आवश्यक जाँच उपरांत प्रस्ताव प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया गया है तथा समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायतों को आवश्यक कार्यवाही हेतु लेख किया है, किंतु किसी भी तहसीलदार से विधिवत् प्रस्ताव प्राप्त नहीं होने के कारण खदान आरक्षित नहीं की गई है। (घ) प्रस्ताव प्राप्त होने पर उनका परीक्षण किया जायेगा। परीक्षण उपरांत विधि समस्त कार्यवाही की जायेगी। समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है।
जनपद पंचायत परासिया में वित्तीय अनियमितताएं
133. ( क्र. 2194 ) श्री सोहनलाल बाल्मीक : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) परासिया विधान सभा क्षेत्र की जनपद पंचायत परासिया के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, राजधर पटेल के खिलाफ पिछले विधान सभा सत्र के परि. अता. प्रश्न संख्या 70 (क्र. 1681) दिनांक 02/03/2016 के द्वारा अवगत कराया गया था कि संबंधित अधिकारी के विरूद्ध मध्यप्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) नियम 1966 के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रारंभ की जा चुकी है, जिसकी प्रारंभिक जाँच में श्री पटेल दोषी पाये गये हैं। यह कार्यवाही कितनी प्रगति पर है अवगत करायें ? श्री राजधर पटेल द्वारा की गई अनियमितताओं की विभागीय जाँच कब तक पूर्ण कर दी जायेगी ? (ख) क्या अभी तक की गई विभागीय जाँच के आधार पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी, राजधर पटेल को इन अनियमितताओं के आधार पर निलम्बन की कार्यवाही की जावेगी? यदि निलम्बन की कार्यवाही की जावेगी तो कब तक?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) शिकायत की जाँच संभागीय आयुक्त जबलपुर द्वारा करायी जाने पर दोषी मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत
परासिया श्री राजधर पटेल के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही के प्रकरण में आदेश क्र.1199/विकास शाखा - स.अ., दिनांक 11 जुलाई 2016 द्वारा एक वेतन वृद्धि असंचयी प्रभाव से रोकी जाने की शास्ति अधिरोपित की गई है। (ख) जी नहीं । अनियमितताओं के आधार पर प्रश्नांश 'क' अनुसार कार्यवाही की जा चुकी है। पेंशन राशि में वृद्धि करना
134. ( क्र. 2196 ) श्री सुरेन्द्र सिंह बघेल : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) कुक्षी विधान सभा क्षेत्र में विधवा, वृद्धा, विकलांग एवं अन्य श्रेणी में कितने हितग्राहियों को कितनी पेंशन किस दर से दी जा रही है? (ख) विगत पेंशन प्रदाय किन-किन दिनांक को किया गया ? पेंशन समय पर प्रदाय न होने के कारण भी बतावें? (ग) अन्य राज्यों की तुलना में प्रदेश सरकार का राज्यांश कम क्यों है, कारण बतावें? (घ) क्या शासन राज्यांश बढ़ाकर इनकी पेंशन राशि में वृद्धि करेगा? यदि हाँ, तो कब तक? यदि नहीं, तो क्यों?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार (ख) हितग्राहियों को विगत माह की पेंशन का भुगतान दिनांक 01.06.2016 से 05.06.2016 के मध्य किया गया है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) यह एक नीतिगत मुद्दा है। प्रत्येक राज्य अपने वित्तीय संसाधनों तथा हितग्राहियों की संख्या को दृष्टिगत रखते हुए राज्यांश की सीमा तय करता है। राज्यांश में वृद्धि की तुलना अन्य राज्यों से नहीं की जा सकती है। (घ) पेंशन राशि में वृद्धि करने की कार्यवाही प्रचलन में है, समय-सीमा बताना संभव नहीं है ।
परिशिष्ट - "अटठाईस"
प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक के मेंटेनेंस कार्य
135. ( क्र. 2197 ) श्री सुरेन्द्र सिंह बघेल : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में कुक्षी विधान सभा क्षेत्र में दिनांक 01.01.2014 से 30.05.2016 तक मेंटेनेंस के कितने कार्य, कितनी राशि के किन स्थानों पर हुए माहवार जानकारी दे देवें? (ख) उपरोक्त अनुसार कार्य के एस्टीमेट की, मेंटेनेंस हेतु टेंडर की विज्ञप्ति की छायाप्रति, टेंडर की प्रक्रिया में शामिल फार्म / एजेंसी की जानकारी चयनित फर्म समेत देवें? प्रत्येक कार्य के संबंध में जानकारी देवें? (ग) संबंधित एजेंसी द्वारा दिए गए बिल, किए भुगतान की जानकारी देवें? क्या इन मेंटेनेंस के कार्यों का निरीक्षण किया गया यदि हाँ, तो निरीक्षण का विवरण देवें? (घ) मेंटेनेंस कार्यों का निरीक्षण न करने वाले अधिकारियों पर शासन कब तक कार्यवाही करेगा?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनांतर्गत विधान सभा क्षेत्र कुक्षी में दिनांक 01.01.2014 से 30.05.2016 तक कुल 75 सड़कों के संधारण कार्यों पर कुल रूपये 1197.28 लाख का भुगतान किया गया जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र- अ अनुसार है । (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के
प्रपत्र-ब, 'स' एवं 'द' अनुसार है। (ग) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-अ अनुसार है। जी हाँ । जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-ई अनुसार है। (घ) उत्तरांश (ग) के प्रकाश में प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
फसल बीमा राशि का वितरण न होना
136. ( क्र. 2199 ) श्री चन्द्रशेखर देशमुख : क्या किसान कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मुलताई वि.स. क्षेत्र के वि.खं. प्रभात पट्टन के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा वर्ष 2014-15 में खरीफ की फसल हेतु कितने कृषकों का बीमा किया गया? इन्हें कितनी बीमा राशि स्वीकृत हुई ? (ख) क्या यह बीमा राशि कृषकों के खाते में जमा कर दी गई, यदि नहीं, तो कारण बतावें? (ग) जिले के अन्य बैंकों द्वारा वर्ष 2014-15 की बीमा राशि जमा कर दिया गया वहीं स्टेट बैंक ऑफ इंडिया प्रभात पट्टन द्वारा अभी तक राशि जमा नहीं की गई क्यों? इसके लिए दोषी अधिकारियों के नाम, पदनाम बतावें? (घ) राशि जमा नहीं होने पर क्या किसानों को हो रहे नुकसान की भरपाई बैंक या बीमा कंपनी द्वारा की जावेगी एवं इतने दिनों के ब्याज की प्रतिपूर्ति की जावेगी? इसके दोषी अधिकारियों एवं एजेंसी पर कार्यवाही कब तक की जावेगी?
किसान कल्याण मंत्री ( श्री गौरीशंकर बिसेन ) : (क) मुलताई वि.स. क्षेत्र के विकासखंड प्रभात पट्टन के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा खरीफ की फसल हेतु 611 कृषकों का फसल बीमा किया गया है। किसानों को बीमा राशि स्वीकृत नहीं हुई है। (ख) जी नहीं, बीमा राशि किसानों के खाते में जमा नहीं की गई है। इस संबंध में किसानों से प्राप्त शिकायत के आधार पर अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) मुलताई द्वारा जाँच की गई जिसमें यह तथ्य पाया गया है कि उक्त बैंक द्वारा किसानों की के. सी.सी. के तहत काटी गई बीमा प्रीमियम राशि शाखा प्रबंधक द्वारा समयावधि में एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड भोपाल को नहीं भेजी गई। इस संबंध में शाखा प्रबंधक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया प्रभात पट्टन को कलेक्टर बैतूल के पत्र क्रमांक 6871 दिनांक 18.01.2016 के तहत बीमा राशि का समायोजन करने हेतु निर्देशित किया गया। साथ ही पत्र क्रमांक 6873 दिनांक 18.01.2016 के तहत जनरल मैनेजर भारतीय स्टेट बैंक भोपाल को संबंधित पर कार्यवाही हेतु लेख किया गया है। (ग) प्रकरण में तत्कलीन बैंक शाखा प्रबंधक द्वारा समयावधि में प्रीमियम राशि एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड भोपाल को जमा नहीं की गई है जिसके लिये तत्कलीन शाखा प्रबंधक जिम्मेदार है। (घ) एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड भोपाल द्वारा जारी अधिसूचना के परिपत्र के बिन्दु क्रमांक 6.4 में स्पष्ट उल्लेखित है कि नोडल बैंक शाखा की गलती की वजह से किसान फसल बीमा के लाभ से वंचित रहता है तो संबंधित वित्तीय संस्थायें ही ऐसी हानियों की भरपाई करेगी।
अनु. जनजाति की भूमि का विक्रय
137. ( क्र. 2200 ) श्री चन्द्रशेखर देशमुख : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या म.प्र. में अनु. जनजाति वर्ग की जमीन सामान्य वर्ग को क्रय करने
का अधिकार है? यदि हाँ, तो नियम / आदेश की छायाप्रति देवें? (ख) यदि अनु. जनजाति वर्ग का व्यक्ति अपनी जमीन सामान्य वर्ग के व्यक्ति को विक्रय करना चाहता हो तो उसे अनुमति किन-किन कारणों से मिलेगी ? मुलताई तहसील में विगत 2 वर्षों में इस संबंध में कितने लोगों ने भूमि विक्रय हेतु आवेदन किया उनके नाम, ग्राम नाम, पटवारी हल्का नम्बर एवं रकबे सहित बतावें? (ग) कितने प्रकरणों को अनुमति दी गई, कितनों को निरस्त किया गया? नामवार दोनों पक्षों के ग्रामवार हल्का नंबर, रकबा विक्रय राशि अनुमति कारण सहित बतावें । निरस्त प्रकरणों की सूची कारण सहित देवें? (घ) क्या अनु. उ · जनजाति के भूमि विक्रय प्रकरणों में कितनों की अवहेलना की गई ? यदि हाँ, इसके दोषी अधिकारियों पर शासन कब तक कार्यवाही करेगा?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) जी हाँ। म.प्र. भू-रा. संहिता 1959 की धारा 165 (6) की पुस्तकालय में रखे अनुसार है । (ख) विक्रय अनुमति हेतु कारण विशेष निर्धारित नहीं किए गए हैं। विगत 02 वर्षों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के 10 आवेदकों/व्यक्तियों द्वारा भूमि विक्रय करने की अनुमति हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किए गए। विस्तृत जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "अ" अनुसार है। (ग) कुल 07 आवेदन पत्रों में अनुमति प्रदान की गई है। कुल 01 आवेदन निरस्त किया गया है तथा 02 आवेदन पत्र, जाँचकर्ता अधिकारी का प्रतिवेदन अप्राप्त होने के कारण निराकरण हेतु लंबित हैं। स्वीकृत एवं निरस्त आवेदनों की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "ब" अनुसार है। (घ) जी नहीं। कोई अवहेलना नहीं की गई है। अतः शेष प्रश्न उद्भूत नहीं होता है।
स्वच्छता अभियान के अंतर्गत निर्मित राशि
138. ( क्र. 2201 ) श्री जितू पटवारी : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) स्वच्छता अभियान के अंतर्गत इंदौर, उज्जैन संभाग की अलग-अलग ग्रामवार, क्षेत्रवार, जिलावार, विधान सभावार पंचायतों द्वारा निर्मित राशि प्रदान कर दी गई, कितनी राशि शेष है? जहां राशि प्रदान करना शेष है वहां राशि कब तक प्रदान कर दी जाएगी? (ख) प्रश्न दिनांक तक इंदौर, उज्जैन संभाग में इंदिरा आवास योजना एवं कपिल धारा कुएं की कितनी राशि कितने हितग्राहियों की शेष है? विधान सभावार, ग्रामवार बतावें? यह राशि कब तक प्रदान कर दी जायेगी ? (ग) उपरोक्त अपूर्ण कार्यों को कब तक पूर्ण करा लिया जायेगा एवं इससे जुड़े विभागीय अधिकारियों द्वारा जवाबदेही का निर्वहन क्यों नहीं किया ? कारण बतावें?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - अ अनुसार है। उज्जैन जिले की जानकारी संकलित की जा रही है। शौचालय निर्माण सतत् प्रक्रिया है, निर्माण कार्य पूर्ण होने पर नियमानुसार राशि प्रदान की जाती है। (ख) इंदिरा आवास योजना की जिला इंदौर की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-ब अनुसार है। इंदिरा आवास की शेष जिलों की जानकारी एकत्रित की जा रही है। मनरेगा अंतर्गत कपिल धारा कूप निर्माण में हितग्राहियों को राशि देने का
प्रावधान नहीं है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) शौचालय निर्माण, इंदिरा आवास एवं कपिलधारा कूप निर्माण कार्य सतत् प्रक्रिया है, जिस हेतु हितग्राहियों एवं ग्राम पंचायतों को निरंतर प्रेरित किया जाता है। निश्चित समय-सीमा बताना संभव नहीं है । शेष का प्रश्न नहीं उठता है।
स्वच्छता अभियान में प्रचार-प्रसार के बजट
139. ( क्र. 2202 ) श्री जितू पटवारी : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) स्वच्छता अभियान में वर्ष 2015-16 में प्रचार-प्रसार के लिये कितना बजट दिया गया था एवं अभी तक कितना खर्च कर दिया गया ? (ख) इन्दौर, उज्जैन संभाग में स्वच्छता अभियान में किन-किन संस्था एवं एजेन्सियों को कार्य दिया गया, जिलेवार जानकारी देवें?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) स्वच्छता अभियान में वर्ष 2015-16 में प्रचार-प्रसार के लिए प्रावधानित राशि रूपये 4838.18 लाख थी। अभी तक राशि रूपये 970.45 लाख व्यय की जा चुकी है। (ख) स्वच्छता अभियान अंतर्गत जिला पंचायत धार में नाहर प्रिंटर्स धार, आयुषी आर्ट धार, अजय कला केन्द्र धार, गोयल फ्लेग्स एण्ड प्रिंटर्स धार, अजय कला मंदिर धार एवं लक्ष्मी नारायण डी. जे. धार को, जिला खरगोन में एम.पी. कॉन को, मंदसौर में पंचायती राज मुद्रणालय उज्जैन को एवं जिला नीमच में पंचायती राज मुद्रणालय उज्जैन तथा अरूणोदय सर्वेश्वरी सामाजिक संस्था को कार्य दिया गया है।
अतिक्रमण को हटाया जाना
140. ( क्र. 2205 ) श्रीमती सरस्वती सिंह : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) 2 मार्च, 2016 को किये गए प्रश्न क्रमांक (2772) का पूर्ण उत्तर अभी तक न आने का क्या कारण है? (ख) क्या तहसीलदार एवं पटवारी द्वारा जानबूझकर जानकारी भेजने में देरी की जा रही है? यदि हाँ, तो विभाग द्वारा उनके विरुद्ध क्या कार्यवाही की गई है? उत्तर कब तक दिया जावेगा? (ग) क्या भूमि स्वामी को उतनी ही जमीन शासन द्वारा ली गई जमीन के एवज में अन्यत्र कहीं दी जावेगी? यदि नहीं, तो क्या मुआवजा बाजार दर से दिया जावेगा?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) से (ग) कलेक्टर से जानकारी अप्राप्त। जानकारी एकत्रित की जा रही है।
राजस्व निरीक्षकों को नायब तहसीलदार की शक्तियां प्रदान किया जाना 141. ( क्र. 2206 ) डॉ. रामकिशोर दोगने : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या कार्यालय प्रमुख राजस्व आयुक्त मध्य प्रदेश राजस्व निरीक्षकों को नायब तहसीलदार की शक्तियां प्रदाय किये जाने हेतु वरिष्ठता क्रम से राजस्व निरीक्षकों की जानकारी चाही गई थी ? (ख) क्या राजस्व निरीक्षकों की वरिष्ठता राजस्व निरीक्षक संवर्ग की पदक्रम सूची से निर्धारित होती है? (ग) कार्यालय प्रमुख राजस्व आयुक्त मध्य प्रदेश द्वारा राजस्व निरीक्षकों को नायब तहसीलदार के कार्य करने हेतु
जो जानकारी जिला भोपाल से भेजी गई है उस सूची में प्रत्येक राजस्व निरीक्षकों के नाम एवं राजस्व निरीक्षक संवर्ग की पदक्रम सूची अनुसार वरिष्ठता क्रम बतावें? (घ) क्या कार्यालय आयुक्त भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त मध्य प्रदेश के आदेश क्रमांक 111/गोप.2/रा.नि./2016, ग्वालियर, दिनांक 05.04.2016 को राजस्व निरीक्षक से नायब तहसीलदार एवं सहायक अधीक्षक, भू-अभिलेख के पद पर पदोन्नति हेतु प्रारंभिक तैयारी के लिये पत्र एवं सूची जारी की गई है? यदि हाँ, तो भोपाल जिले से कार्यालय प्रमुख राजस्व उपायुक्त मध्यप्रदेश को भेजी गई जानकारी में प्रत्येक राजस्व निरीक्षकों के नाम एवं उक्त सूची अनुसार वरिष्ठता क्रम बतावें? (ड.) क्या मध्यप्रदेश राजपत्र दिनांक 12 मई, 2016 द्वारा भोपाल जिले में पदस्थ वरिष्ठ राजस्व निरीक्षकों को छोड़कर कनिष्ठ राजस्व निरीक्षकों को नायब तहसीलदार की शक्तियां प्रदान की गई हैं? यदि हाँ, तो उसके लिये कौन-कौन अधिकारी-कर्मचारी दोषी हैं उनके नाम बतावें एवं उनके विरूद्ध क्या कार्यवाही की जावेगी ? (च) क्या शासन वरिष्ठता क्रम अनुसार भोपाल जिले की संशोधित सूची जारी करेगा? यदि हाँ, तो कब तक?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) से (च) जानकारी एकत्रित की जा रही है। विभिन्न योजनाओं में लंबित आवेदन
142. ( क्र. 2209 ) श्री कमलेश्वर पटेल : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) भारत सरकार एवं मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कितने प्रकार की निराश्रित, विधवा, विकलांग एवं निःशक्त आदि पेंशन दी जा रही है? (ख) किस-किस योजना में कौन-कौन से हितग्राही पात्र है? (ग) क्या उपरोक्त योजनाओं में पूर्व से बी.पी.एल. की पात्रता अनिवार्य थी यदि नहीं, तो क्यों की गई? बी.पी.एल. की अनिवार्यता कब तक समाप्त की जावेगी ? (घ) सीधी एवं सिंगरौली के जनपदों में उपरोक्त योजनाओं के कितने आवेदन लंबित है और क्यों ? ये आवेदन कब तक पात्र किये जाकर लाभांवित होंगे?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) एवं (ख) की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार । (ग) भारत सरकार की पेंशन योजनाओं में पूर्व से ही बी.पी.एल. की अनिवार्यता निर्धारित है। राज्य की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना में 25 जून 2013 से बी.पी.एल. की अनिवार्यता निर्धारित की गई है, जिससे अधिक से अधिक गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले हितग्राहियों को योजना का लाभ दिया जाना संभव हो सके। 60 वर्ष से अधिक आयु के निराश्रित वृद्ध, कन्या अभिभावक एवं मानसिक बहुविकलांग पेंशन योजना में बी. पी. एल. की अनिवार्यता नहीं है। योजनांतर्गत बी.पी.एल. बंधन हटाने संबधी निर्णय एक नीतिगत बिन्दु है। वर्तमान में बी.पी.एल. अनिवार्यता समाप्त करने संबंधी कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। (घ) सीधी एवं सिंगरौली जिले के जनपदों में उपरोक्त योजनाओं के अंतर्गत किसी भी पात्र हितग्राहियों के आवेदन पत्र लंबित नहीं है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
परिशिष्ट - "उनतीस"
ईंट भट्टा समिति व सोसायटी के ऋण
143. ( क्र. 2212 ) श्री अमर सिंह यादव क्या राज्यमंत्री, सहकारिता महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) म.प्र. में सहकारिता विभाग अंतर्गत जिला सहकारी बैंक द्वारा ईंट भट्टों की समितियों का पंजीयन किया जाता है? यदि हाँ, तो क्या उन्हें निर्माण के लिये अनुदान सहित ऋण दिये जाने का प्रावधान है? निर्देश की प्रति उपलब्ध करावें? (ख) क्या उप पंजीयन सहकारी संस्थाएं जिला राजगढ़ द्वारा ईंट भट्टों की समितियों के पंजीयन किये गये है? यदि हाँ, तो किन-किन समितियों के? उन समितियों के पंजीयन, सदस्यों के पूर्ण नाम, पते व यदि ऑडिट कराया गया है, तो अंतिम ऑडिट रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध करावें? (ग) क्या उक्त समितियों को ईंट भट्टा निर्माण के लिये भी ऋण प्रदान किया गया है? यदि हाँ, तो दिनांक 1 अप्रैल 2013 से प्रश्न दिनांक तक राजगढ़ जिले में किन-किन भट्टों के लिये ऋण प्रदान किया गया है? उन्हें प्रदान किये गये अनुदान की राशि सहित समितियों के नाम, सदस्यों के नाम, पिता का नाम, स्थान की वर्षवार जानकारी उपलब्ध करावें? (घ) विगत एक वर्ष में राजगढ़ जिले की विधान सभा क्षेत्र राजगढ़ अंतर्गत संचालित सोसायटी कालीपीठ, माचलपुर, पीपलबे पुरोहित, फूलखेड़ी, चाटूखेड़ी, बांसखेड़ा, सुस्तानी, ओढ़पुर, करनवास, पपडेल, छीपीपुरा, भोजपुर, भूमरिया, रूपपुरा आदि के द्वारा कितने कृषकों को कितनी राशि का ऋण प्रदान किया गया है?
राज्यमंत्री, सहकारिता ( श्री विश्वास सारंग ) : (क) जी नहीं. सहकारी समितियों के पंजीयन की अधिकारिता सहकारिता विभाग के जिला अधिकारी को है, बैंक को नहीं. बैंक में अनुदान सहित ऋण उपलब्ध कराने का प्रावधान नहीं है. (ख) जी हाँ. जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - 1, 2 एवं 3 अनुसार है, दो समितियों कालीसिंध ईंट भट्टा समिति फूलपुर एवं ईंट भट्टा सहकारी समिति मर्यादित फुन्दिया के पंजीयन प्रस्ताव उपलब्ध नहीं होने से पंजीयन सदस्यों के नाम एवं पते उपलब्ध नहीं हैं. अतः रिकार्ड संधारित करने वाले उत्तरदायी कर्मचारी का उत्तरदायित्व निर्धारित कर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए हैं. (ग) बैंक द्वारा ईंट भट्टा निर्माण के लिए समितियों को ऋण नहीं दिया जाकर साख सीमा प्रदाय की गई है. कुल 11 समितियों को 1.07 लाख रूपये की साख सीमा प्रदाय की गई है. शेष प्रश्नांश की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - 2 अनुसार है. (घ) जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित राजगढ़ के द्वारा 9235 किसानों को राशि 3775.77 लाख रूपये का ऋण वितरण किया गया है. समितिवार जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - 4 अनुसार है.
रोजगार गारंटी योजनांतर्गत निर्माण कार्य
144. ( क्र. 2213 ) श्री अमर सिंह यादव : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) म.प्र. में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जनपद पंचायतों के माध्यम से ग्राम पंचायतों में रोजगार ग्यारंटी योजनान्तर्गत कौन-कौन से निर्माण कार्य
स्वीकृत किये जाते हैं? निर्देश की प्रति उपलब्ध करावें ? ( ख ) क्या पंचायत एवं ग्रामीण
विकास विभाग द्वारा जनपद पंचायत खिलचीपुर के माध्यम से ग्राम पंचायत भोजपुर में रोजगार ग्यारंटी योजनान्तर्गत कोई निर्माण कार्य स्वीकृत किये गये हैं ? (ग) यदि हाँ, तो ग्राम पंचायत भोजपुर में दिनांक 1 अप्रैल 2013 से प्रश्न दिनांक तक कौन-कौन से आंतरिक मार्ग, कूप निर्माण, खेत सड़क, जनभागीदारी सांसद निधि, विधायक निधि एवं आदिम जाति विभाग के निर्माण कार्य स्वीकृत किये गये हैं। वर्षवार स्वीकृत व मूल्यांकित राशि सहित जानकारी उपलब्ध करावें? (घ) उक्त स्वीकृत निर्माण कार्यों की वर्तमान स्थिति क्या है? क्या कार्य पूर्ण हो चुके हैं? यदि हाँ, तो मूल्यांकनकर्ता अधिकारी का नाम बतावें? यदि नहीं, तो कार्य पूर्ण नहीं होने का क्या कारण हैं?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) मध्यप्रदेश में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जनपद पंचायतों के माध्यम से ग्राम पंचायतों में रोजगार गारंटी योजनांतर्गत स्वीकृत किए जाने वाले कार्यों का विवरण व निर्देश पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र- 1 अनुसार है । (ख) जी हाँ । (ग) विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - 2 अनुसार है। (घ) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-2 के कॉलम 8 अनुसार है।
संयुक्त आयुक्त सहकारिता भोपाल के पत्र पर कार्यवाही
145. ( क्र. 2226 ) श्री गिरीश भंडारी : क्या राज्यमंत्री, सहकारिता महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) संयुक्त आयुक्त सहकारिता संभाग भोपाल द्वारा यदि जिले में पदस्थ उपायुक्त सहकारिता के पत्र / निर्देश दिये जाते हैं तो उक्त पत्र / निर्देश के पालन करने के क्या विभागीय नियम हैं? नियम की प्रति उपलब्ध करायें ? (ख) संयुक्त आयुक्त सहकारिता भोपाल ने पत्र क्र./शिकायत/2015/1023, दिनांक 22.09.2015 से उपायुक्त सहकारिता राजगढ़ को क्या नरसिंहगढ़ मार्केटिंग सोसायटी में पदस्थ कर्मचारी के संबंध में क्या कोई पत्र जारी किया? यदि हाँ, तो पत्र की प्रति तथा पत्र प्राप्त होने दिनांक से प्रश्न दिनांक तक उपायुक्त सहकारिता राजगढ़ द्वारा किस-किस दिनांक को क्या-क्या कार्यवाही की गई/पत्र लिखे / कारण बताओ नोटिस जारी किए / सूचना पत्र जारी किया ? दिनांक अनुसार पत्रों की प्रति सहित जानकारी उपलब्ध करावें? (ग) प्रश्न की कंडिका (ख) अनुसार उपलब्ध जानकारी प्रश्न की कंडिका (क) की उपलब्ध नि के अनुसार
है? यदि हाँ, तो जानकारी दें ? (घ) प्रश्न की कंडिका (क), (ख), (ग) की उपलब्ध जानकारी अनुसार क्या उपायुक्त सहकारिता राजगढ़ ने विभागीय नियमों का पालन कर वरिष्ठ कार्यालय से प्राप्त पत्र के ऊपर समुचित कार्यवाही की है? यदि हाँ, तो जानकारी दें? नहीं तो क्या शासन उपायुक्त सहकारिता राजगढ़ के खिलाफ कोई कार्यवाही करेगा? यदि हाँ, तो क्या? समय-सीमा बतावें?
राज्यमंत्री, सहकारिता ( श्री विश्वास सारंग ) : (क) वरिष्ठ अधिकारियों के वैध निर्देश मानना कनिष्ठ अधिकारियों के लिये बंधनकारी है. म.प्र. सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 के नियम 3 की प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'अ' अनुसार है. (ख) जी हाँ प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'ब' अनुसार है, पत्र प्राप्त होने
दिनांक से प्रश्न दिनांक तक उपायुक्त सहकारिता राजगढ़ द्वारा शिकायत की जाँच की जाकर जाँच प्रतिवेदन पत्र दिनांक 4.11.2015 से प्रेषित किया गया एवं पत्र दिनांक 03.11.2015 द्वारा संस्था प्रबंधक को शिकायत प्रमाणित पाये जाने पर सहायक सेल्समैन को नियमानुसार कार्यवाही कर सेवा से पृथक किये जाने के निर्देश संस्था को दिये गये, कारण बताओ नोटिस / सूचना पत्र जारी नहीं किया गया है, जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'स' अनुसार है. (ग) जी हाँ. जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'स' अनुसार है. ( घ) जी हाँ, उत्तरांश 'क', 'ख', 'ग' अनुसार, शेष प्रश्नांश उपस्थित नहीं होता.
सोयाबीन फसल की मुआवजा राशि
146. ( क्र. 2227 ) श्री गिरीश भंडारी : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या म.प्र. शासन द्वारा प्रदेश के किसानों को 2015 में सोयाबीन फसल की राहत (मुआवज़ा) राशि आवंटित की गई है? (ख) प्रश्न की कंडिका (क) की उपलब्ध जानकारी अनुसार राजगढ़ जिले की नरसिंहगढ़ विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत जो ग्राम तहसील नरसिंहगढ़, पचौर, सारंगपुर में आते हैं ? किस-किस ग्राम में कितने किसानों को कितनी-कितनी राशि आवंटित की गई ? (ग) नरसिंहगढ़ विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत प्रश्न दिनांक तक ऐसे कितने किसान हैं जो राहत राशि से वंचित रह गये हैं?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) से (ग) जानकारी एकत्रित की जा रही है। राजस्व ग्राम घोषित करना
147. ( क्र. 2234 ) श्री पुष्पेन्द्र नाथ पाठक : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) विधान सभा क्षेत्र में ऐसे कितने मजरा टोला है जिनकी जनसंख्या 100 या इससे अधिक है और वह राजस्व गाँव घोषित नहीं हैं? (ख) प्रश्नांश (क) के अनुक्रम में कितने ऐसे मजरा टोला हैं जिनके प्रस्ताव शासन के पास राजस्व ग्राम घोषित करने हेतु भेजे गए हैं ? (ग) प्रश्नांश (क) एवं (ख) के अनुक्रम में उक्त प्रस्ताव कब और कहाँ भेजे गए ? इनमें प्रश्न दिनांक तक क्या-क्या कार्यवाही की गई ?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) मान प्रश्नकर्ता विधायक के बिजावर विधान सभा क्षेत्रांतर्गत कुल 26 मजरा टोला ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या 100 या उससे अधिक है, जिन्हें राजस्व ग्राम नहीं बनाया गया है । (ख) उक्त ग्राम, राजस्व ग्राम बनाए जाने के निर्धारित मापदण्ड अनुसार न होने से कलेक्टर द्वारा प्रस्ताव शासन को नहीं भेजे गए (ग) उत्तरांश "क" एवं "ख" के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
म.प्र. राज्य सड़क परिवहन निगम की भूमि
148. ( क्र. 2235 ) श्री पुष्पेन्द्र नाथ पाठक : क्या गृह मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) म.प्र. राज्य सड़क परिवहन निगम की छतरपुर जिले में कितनी भूमि इनका खसरा नं. एवं रकबा कितना है यह भूमि कहाँ-कहाँ पर स्थित है? (ख) प्रश्नांश (क) के अनुक्रम में उपरोक्त भूमि का बाजार मूल्य प्रश्न दिनांक में क्या होगा? उपरोक्त
भूमि पर क्या अतिक्रमण है? यदि हाँ, तो किसका एवं किस जगह पर अतिक्रमण है? (ग) प्रश्नांश (क) के अनुक्रम में इस बेशकीमती शासकीय भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने हेतु शासन क्या प्रभावी कदम उठाएगा?
गृह मंत्री ( श्री भूपेन्द्र सिंह ठाकुर ) : (क) छतरपुर जिले में म.प्र.स. परि. निगम की रकबा 7.99 एकड़ जमीन है, जो वर्तमान में म.प्र. शासन के नाम दर्ज है जिस पर जिला परिवहन कार्यालय संचालित है। इसका खसरा क्रमांक 1687 एवं 1688 / 1 ( बंदोबस्त पश्चात् 2346 एवं 2347) है। उक्त भूमि छतरपुर जिले के महौबा रोड स्थित सौरा तिराहे पर है। (ख) उपरोक्त भूमि का बाजार मूल्य रुपये 3,65,47,338.50 है। उक्त भूमि के कुछ आवासीय भाग पर बुन्देलखण्ड मोटर ट्रांसपोर्ट कम्पनी छतरपुर का अतिक्रमण है। (ग) भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराने हेतु कलेक्टर (नजूल) छतरपुर के न्यायालय में प्रकरण क्रमांक 83/अ-60/2008-09 पंजीबद्ध है, जिसमें न्यायालय द्वारा स्थगन दिया गया है। शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
राजस्व ग्राम घोषित किया जाना
149. ( क्र. 2243 ) श्री विष्णु खत्री : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या बैरसिया विधान सभा की ग्राम पंचायत भूरीपठार का लालूखेडी, रमपुरा का बालाचौन, हिरनखेडी का करौली राजस्व ग्राम नहीं होने के बावजूद आबादी स्थल के रूप में है? (ख) प्रश्नांश (क) यदि हाँ, है तो इन्हें राजस्व ग्राम घोषित करने के संबंध में विभाग कब तक कार्यवाही करेगा?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) एवं (ख) कलेक्टर से प्राप्त जानकारी अस्पष्ट। जानकारी एकत्रित की जा रही है।
आरक्षकों की अवैध नियुक्ति
150. ( क्र. 2248 ) श्री मधु भगत : क्या गृह मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) परिवहन विभाग में वे कौन-कौन से आरक्षक हैं जिसकी नियुक्ति व्यापम के माध्यम से वर्ष 2007 के बाद हुई थी, कुल कितने पद स्वीकृत थे भरे कितने गये और किस-किस ने, कार्य पर उपस्थिति कब और कहाँ दी, उनके नाम, तैनाती स्थल, पद, उपस्थिति दिनांक बतायें ? (ख) क्या नियुक्ति आदेश जारी करने से पूर्व, उनके शैक्षणिक योग्यता तथा अन्य आवश्यक दस्तावेज का मिलान, मूल दस्तावेजों से किया गया था तथा उक्त प्रमाण पत्रों की छायाप्रति का सेट, विभाग / कार्यालय में रिकार्ड हेतु सुरक्षित रखा गया है? यदि हाँ, क्या यह पूर्ण सुरक्षित है? (ग) यदि रिकार्ड सुरक्षित है तो बतायें कि उक्त नियुक्ति किये गये आरक्षकों में से वे कौन-कौन है जिन्होंने कि महाराष्ट्र राज्य के शिक्षा मण्डल या वहां स्थित केन्द्र से, हाई स्कूल या इंटरमीडियट की परीक्षा उत्तीर्ण की है? उनके नाम पते बतायें ? (घ) आरक्षकों को किस प्रदेश का मूल निवासी होना अनिवार्य था ?
गृह मंत्री ( श्री भूपेन्द्र सिंह ठाकुर ) : (क) परिवहन विभाग में आरक्षकों के कुल 342 पद स्वीकृत थे। जिनके विरुद्ध 327 पद भरे गये हैं। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ख) जी हाँ, नियुक्ति आदेश जारी करने के पूर्व उनके शैक्षणिक योग्यता प्रमाण-पत्र आदि का मिलान मूल दस्तावेजों से किया गया था, उक्त प्रमाण पत्रों की छायाप्रतियाँ कार्यालय में सुरक्षित है। (ग) अभिलेखानुसार महाराष्ट्र राज्य के शिक्षा मण्डल या वहाँ स्थित केन्द्र से हाई स्कूल या इंटरमिडियट की परीक्षा किसी भी नियुक्त आरक्षक द्वारा उत्तीर्ण नहीं की है। (घ) परिवहन आरक्षकों की भर्ती के संबंध में व्यापम द्वारा जारी विज्ञापन के बिन्दु क्रमांक 1.6 के अनुसार नागरिकता एवं स्थाई निवासी के संबंध में निम्न प्रावधान रखा गया था :- (क) आवदेक को भारत का नागरिक होना चाहिए या (ख) आवेदक को सिक्किम की प्रजा होना चाहिए या (ग) भारतीय मूल का कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो भारत में स्थाई रूप से बसने के अभिप्राय से पकिस्तान से आया हो या (घ) नेपाल की या भारत स्थित किसी पुर्तगाली या फ्रांसीसी प्रदेश की प्रजा होना चाहिए।
बंद मिल का शेष भुगतान
151. ( क्र. 2261 ) श्री राजेश सोनकर क्या राज्यमंत्री, सहकारिता महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रश्नकर्ता के परि. अता प्रश्न संख्या 33 ( क्र. 622) दिनांक 2 मार्च, 2016 के उत्तर (ख) के संदर्भ में बंद शक्कर मिल बरलाई के कर्मचारियों के लंबित वेतन/स्वत्वों तथा कृषकों के बकाया गन्ना मूल्य के भुगतान हेतु राशि 5.62 करोड़ अग्रिम के रूप में प्रदाय करने का निर्णय लिया गया था ? (ख) प्रश्नांश (क) के संदर्भ में यदि हाँ, तो क्या शासन द्वारा राशि प्रदाय कर दी गई है? यदि हाँ, तो कृपया भुगतान की स्थिति स्पष्ट करने की कृपा करें? (ग) प्रश्नांश (क) के संदर्भ में कर्मचारियों के वेतन/स्वत्वों तथा कृषकों को बकाया गन्ना मूल्यों का भुगतान कब तक किया जावेगा? (घ) प्रश्नांश (ग) के संदर्भ में यदि नहीं, तो राशि कब तक प्राप्त होगी तथा प्राप्त राशि के भुगतान की प्रक्रिया क्या होगी? स्थिति स्पष्ट करें ?
राज्यमंत्री, सहकारिता ( श्री विश्वास सारंग ) : (क) जी हाँ. (ख) जी नहीं, शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता. (ग) कार्यवाही प्रक्रियाधीन है, समय-सीमा बताई जाना संभव नहीं. (घ) उत्तरांश (ग) अनुसार, राशि प्राप्त होने के उपरांत कर्मचारियों के देय वेतन / स्वत्वों एवं कृषकों के गन्ना मूल्य की राशि संबंधितों के बैंक खातों में जमा की जा सकेगी.
अतारांकित प्रश्नोत्तर
शासकीय जमीन पर अतिक्रमण
1. ( क्र. 5 ) श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) तहसील मुंगावली के ग्राम छैवलाई में अतिक्रमण की गई शासकीय भूमि पर किस-किस व्यक्ति का कितनी-कितनी भूमि पर कितने-कितने वर्ष से कब्जा है व कितना- कितना जुर्माना कब-कब किया गया? इसकी जानकारी देते हुए बताएं कि क्या प्रश्नकर्ता द्वारा पटवारी व राजस्व अधिकारियों से मिलकर कम भूमि पर अतिक्रमण बताने व कम जुर्माना करने की शिकायत की थी ? उस पर क्या कार्यवाही हुई, विवरण दें। (ख) क्या छैवलाई के राजेन्द्र सिंह ने भी पुनः आवेदन इस माह दिया कि इस गोचर भूमि पर पुनः प्लाऊ चलाकर खेती करने की शिकायत जन-सुनवाई में दी? उसका विवरण दें? (ग) मुंगावली में सेंट्रल स्कूल के सामने सरदारपुर में राजस्व विभाग ने किस-किस व्यक्ति से कितनी-कितनी भूमि के कब्जे पर कितना- कितना जुर्माना किस-किस वर्ष लिया है व कब-कब किया? क्या इस भूमि पर राजस्व व वन विभाग का विवाद था, जो समाप्त हो गया यदि हाँ, तो कब यदि नहीं, तो क्यों?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) से (ग) जानकारी एकत्रित की जा रही है। अशोकनगर जिले में अतिक्रमण
2. ( क्र. 16 ) श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) दिनांक 02 मार्च, 2016 के अता प्रश्न संख्या 2 (क्र. 97) के संदर्भ में बताएं कि विभाग द्वारा वर्णित सभी प्रकरणों में केविएट नहीं लगाई जाने का क्या कारण है ? क्या इसके अभाव में अतिक्रमण करने वालों को एक तरफा स्टे नहीं मिल जाता है? अतिक्रमण करने वाले गजराज सिंह, खामखेड़ा, चंदेरी, यादवेन्द्र सिंह, पिपरई, नरेश यादव, अथाईखेड़ा को सिविल जेल की कार्यवाही कर अतिक्रमण नहीं तोड़ कर न्यायालय जाकर स्टे प्राप्त करने का मौका क्यों दिया गया तथा ऐसे कर्मचारियों की पहचान कर उन्हें दण्डित क्यों नहीं कर रहे हैं? करोड़ों के मूल्य की अशोकनगर की भूमि पर दस हजार के अर्थदण्ड का क्या अर्थ है? (ख) जिला व सत्र न्यायधीश महोदय अशोकनगर के न्यायालय में लंबित प्रकरण की वर्तमान स्थिति बताएं?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) एवं (ख) जानकारी एकत्रित की जा रही है। कृषि उपकरणों का वितरण
3. ( क्र. 37 ) श्री मुकेश पण्ड्या : क्या किसान कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जनवरी 2014 से प्रश्न दिनांक तक उज्जैन जिले के बड़नगर विधान सभा क्षेत्र में कितने किसानों को कितने, किस प्रकार के कृषि उपकरण वितरित किये गये एवं कितना - कितना अनुदान दिया गया? कितने कृषकों का अनुदान शेष है? अनुदान नहीं मिलने के क्या कारण हैं? (ख) हितग्राही किसान चयन का मापदण्ड क्या है? इसके लिये
प्रचार-प्रसार किस तरह से किया जाता है तथा इसकी पात्रता क्या है? भविष्य में वास्तविक पात्र किसानों को कृषि उपकरण मिल सके इसके लिये विभाग क्या कार्यवाही करने जा रहा है ?
किसान कल्याण मंत्री ( श्री गौरीशंकर बिसेन ) : (क) जनवरी 2014 से उज्जैन जिले के बड़नगर विधान सभा क्षेत्र में वर्ष 2014-15, 2015-16 एवं 2016-17 में कृषि उपकरणों में अनुदान भुगतान किया गया जिसकी जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है, 15 कृषकों का अनुदान शेष है। विकासखण्ड से देयक सत्यापन विलंब से प्राप्त होने से भुगतान नहीं हो सका है। (ख) जनवरी 2014 से 05 नवम्बर 2015 तक कृषि यंत्रों का पंजीयन मेनुअली विकासखण्ड एवं जिला स्तर पर कृषकों का चयन प्रथम आओं प्रथम पाओं के आधार पर किया जाता था। 5 नवम्बर, 2015 से ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया प्रारंभ हुई है। प्रचार-प्रसार विभागीय वेबसाईट, स्थानीय समाचार पत्रों, ग्राम पंचायत की बैठकों, शिविर, प्रशिक्षण, भ्रमण एवं विभागीय मैदानी अमले द्वारा किया जाता है। योजनाओं के मार्गदर्शी निर्देशों में पात्रता निर्धारित है। शेष प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता।
परिशिष्ट - "तीस"
ग्राम पंचायतों के जीर्णशीर्ण पंचायत भवनों के निर्माण की स्वीकृति
4. ( क्र. 42 ) श्री मुकेश पण्ड्या : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) बड़नगर विधान सभा क्षेत्र में जनपद पंचायत बड़नगर की कितनी ग्राम पंचायतों में भवन जीर्णशीर्ण होकर उनके नवीन भवन निर्माण हेतु स्वीकृति जिला पंचायत द्वारा जारी की जाना लंबित हैं? जिला पंचायत उज्जैन द्वारा ऐसी ग्राम पंचायतों में भवनों के निर्माण हेतु क्या कार्यवाही प्रस्तावित की गई हैं? (ख) क्या जिला पंचायत उज्जैन को उपलब्ध आवंटन से भवनों के निर्माण हेतु स्वीकृति की कार्ययोजना है तथा इस हेतु कितना आवंटन शेष हैं? क्या शासन से इस हेतु अतिरिक्त आवंटन की मांग की गई हैं? (ग) क्या शासन द्वारा बड़नगर क्षेत्र के जीर्णशीर्ण भवनों में नवीन पंचायत भवन निर्माण हेतु आवंटन एवं स्वीकृति जारी की जावेगी ? हाँ तो कब तक? पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) बड़नगर विधान सभा क्षेत्र की जनपद पंचायत बड़नगर की 10 ग्राम पंचायतों यथा सलवा, सिजावता, सुन्दराबाद, बीराखेडी, सुनेडा, असावता, भिडावद, पिपलू, पीरझलार एवं नरसिंगा के भवन जीर्णशीर्ण है। इनमें से किसी भी पंचायत के नवीन भवन निर्माण की स्वीकृति जिला पंचायत उज्जैन द्वारा जारी की जाना लंबित नहीं है। सर्वप्रथम भवन विहीन ग्राम पंचायतों में राशि की उपलब्धता के आधार पर नवीन पंचायत भवन निर्माण किये जाने की योजना है । (ख) जी नहीं। जी नहीं। जी हाँ किन्तु सर्वप्रथम भवन विहीन ग्राम पंचायतों में राशि की उपलब्धता के आधार पर नवीन पंचायत भवन निर्माण किये जाने की योजना है। (ग) उत्तरांश (ख) के संबंध में प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता।
पंचायत सचिवों के वेतनमान में विसंगति
5. ( क्र. 43 ) श्री मुकेश पण्ड्या : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या पंचायत सचिवों को 01.08.2013 से नवीन संशोधित वेतनमान शासन द्वारा स्वीकृत किया गया है? यदि हाँ, तो इस वेतनमान के अनुरूप क्या प्रदेश के सभी सचिवों को एक समान वेतन दिया जा रहा है? एक ही जिले कि जनपदों में अलग-अलग वेतन भुगतान हो रहा है, तो उसका क्या कारण है? क्या शासन द्वारा स्पष्ट दिशा-निर्देश दिये जाकर इस विसंगति को समाप्त किया जावेगा? यदि हाँ, तो कब तक? (ख) क्या शासन द्वारा पंचायत सचिवों को अंशदायी पेंशन लागू की गई है? हाँ तो इस योजना का लाभ कितने सचिवों को दिया जाकर योजना का क्रियान्वयन प्रारंभ हो चुका है? यदि नहीं, तो क्यों? क्या शासन द्वारा समस्त औपचारिकताएं पूर्ण कर पंचायत सचिवों को अंशदायी कटौत्रा हेतु स्पष्ट निर्देश जारी किये गये हैं? इस अवधि में सचिवों के सेवानिवृत्त / मृत्यु होने पर आर्थिक रूप से क्षति के लिये कौन-कौन अधिकारी जवाबदार हैं? (ग) क्या सचिवों को पंचायत समन्वयक के पद पर पदोन्नति का प्रावधान है? यदि हाँ, तो क्या प्रावधान किया गया है? शासन द्वारा सचिवों की पदोन्नति की कार्यवाही कब तक पूर्ण कर ली जावेगी ?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) जी हाँ। जी हाँ। 10 वर्ष से कम सेवा वाले ग्राम पंचायत सचिवों को वेतनमान रूपये 3500-10000+ संवर्ग वेतन 1100 तथा 10 वर्ष पूर्ण करने वाले एवं उससे अधिक सेवा वाले ग्राम पंचायत सचिवों को वेतनमान रूपये 3500-10000+ संवर्ग वेतन 1200 संवर्ग अलग-अलग वेतन स्वीकृत किया गया है। वेतन विसंगति होने का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ख) जी हाँ । योजना का लाभ सभी पात्र पंचायत सचिवों के लिए प्रारंभ/लागू किया गया है। प्रश्न उद्भूत नहीं होता है। जी हाँ। सचिव की सेवानिवृत्ति अथवा मृत्यु होने पर पात्रतानुसार नियमों के अधीन लाभ प्रदान किया जा सकेगा। (ग) जी नहीं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
प्राकृतिक आपदा के तहत मुआवजा राशि का वितरण
6. ( क्र. 93 ) श्री हरवंश राठौर : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) विधान सभा क्षेत्र बण्डा / शाहगढ़ में वर्ष 2015-16 में प्राकृतिक आपदा के तहत कितनी राशि स्वीकृति हुई थी एवं कितने कृषकों को राशि के अभाव में राहत राशि प्रदान नहीं की गई है? (ख) शेष किसानों को राहत राशि प्रदान किए जाने हेतु प्रशासन द्वारा कब-कब, क्या कार्यवाही की गई ? (ग) कुल कितने किसानों को कितनी राशि वितरित की गई एवं शेष कितने किसान राहत राशि से वंचित हैं?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) विधान सभा क्षेत्र बण्डा/शाहगढ़ में वर्ष 2015-16 में प्राकृतिक आपदा के तहत रू. 266762025 की राशि स्वीकृत की जाकर वितरित की गई है अब राहत राशि वितरण हेतु कोई कृषक शेष नहीं है । (ख) प्रश्नांश (क) अनुसार जानकारी निरंक है। (ग) विधान सभा क्षेत्र बण्डा / शाहगढ़ अंतर्गत कुल
62464 कृषकों को रू. 266762025 की राहत राशि वितरित की जा चुकी है। अब कोई कृषक राहत राशि से वंचित नहीं है।
ग्रामीण भूमि पर अतिक्रमण
7. ( क्र. 130 ) श्रीमती चन्दा सुरेन्द्र सिंह गौर : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या तह. बल्देवगढ़ के ग्राम इमलाना में भूमि खसरा क्रमांक 443/1 पर अतिक्रमण कर निर्माण कार्य कर लिया गया है? (ख) क्या दिनांक 13/5/15 को डिप्टी कलेक्टर टीकमगढ़ द्वारा शासकीय भूमि 443/1 पर से कब्जा हटाये जाने का आदेश जारी किया गया था तथा 16/6/15 को कब्जा हटाये जाने का आदेश संयुक्त कलेक्टर टीकमगढ़ द्वारा किया गया था परन्तु अनावेदक ने जबरन शासन की बेशकीमती भूमि पर कब्जा कर मकान निर्माण कर लिया है और ऐसा कौन सा कारण है कि उक्त भूमि से कब्जा नहीं हटाया जा रहा है? (ग) क्या उक्त भूमि खसरा क्र. 443/1 को अतिक्रमण से मुक्त करायेंगे? यदि हाँ, तो समयावधि बतायें? यदि नहीं, तो कारण स्पष्ट करें?
राजस्व मंत्री ( श्री उमाशंकर गुप्ता ) : (क) जी हाँ । (ख) जी हाँ। अपर कलेक्टर के प्रश्नाधीन आदेश के पालन में नायब तहसीलदार डारगुवा ने प्रकरण क्रमांक-01/अ-68/ 3-14 में दिनांक 10.09.2015 को बेदखली का आदेश पारित किया था। इस आदेश के विरूद्ध अनुविभागीय अधिकारी बल्देवगढ़ के न्यायालय में अपील विचाराधीन होने से अतिक्रमण नहीं हटाया जा सका है। (ग) अनुविभागीय अधिकारी के न्यायालय में प्रचलित अपील प्रकरण में अंतिम आदेश पारित होने के बाद तद्नुसार कार्यवाही की जावेगी।
प्रधानमंत्री सिंचाई योजना में राशि का दुरूपयोग
8. ( क्र. 132 ) श्रीमती चन्दा सुरेन्द्र सिंह गौर : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या टीकमगढ़ जिले में संचालित प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना अंतर्गत संचालक द्वारा जारी आदेश क्र. /5060/22/वि-9/आर. जी. एम. /2015, भोपाल दिनांक 18/3/15 को सृजन संस्था को परियोजना क्र. 1 से पृथक कर दिया गया था तथा अनुबंध के प्रावधानों के विरूद्ध राशि 26,13 लाख के कार्य सक्षम अधिकारी से तकनीकी स्वीकृति प्राप्त किये बिना ही जि.पं. टीकमगढ़ में पदस्थ तकनीकी विशेषज्ञ की मिलीभगत से जारी कर दिया गया था? क्या अभी भी सृजन संस्था से तकनीकी विशेषज्ञ कार्य करा रहे? क्या तकनीकी विशेषज्ञ की जाँच कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही प्रस्तावित करेंगे? यदि हाँ, तो कब तक? यदि नहीं, तो कारण स्पष्ट करें? (ख) क्या तकनीकी विशेषज्ञ जिला पंचायत टीकमगढ़ को संचालक भोपाल द्वारा पत्र क्र. 3789 दिनांक 29/3/16 को जारी पत्र के पद क्र. 1 से 5 तक में तकनीकी विशेषज्ञ की अनियमितताओं का उल्लेख किया गया है और संविदा सेवा शर्तों का उल्लंघन होना पाया गया है? क्या ऐसी स्थिति में उक्त तकनीकी विशेषज्ञ को पद से हटायेंगे ? यदि हाँ, तो कब तक? यदि नहीं, तो कारण बतायें ? (ग) क्या टीकमगढ़ जिले में किसी भी टीम
लीडर का पद रिक्त होता है तो तकनीकी विशेषज्ञ द्वारा परियोजना क्र. 3 को ही प्रभार दिया जाता है कारण स्पष्ट करें तथा परियोजना क्र. 1, 2 एवं 3 के तहत विभिन्न मदों में परियोजना प्रारंभ से अभी तक व्यय हुई राशि का विवरण दें?
पंचायत मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) : (क) जी हाँ, परन्तु बिना स्वीकृति करायें गये कार्यों में जिला पंचायत में पदस्थ तकनीकी विशेषज्ञ की मिली भगत नहीं थी। वर्तमान में सृजन संस्था द्वारा कार्य नहीं किया जा रहा है। तकनीकी विशेषज्ञ को केवल निगरानी नहीं किये जाने के लिए उत्तरदायी होने के कारण भविष्य में सचेत रहने हेतु चेतावनी पत्र जारी किया जा चुका है। अतः शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ख) प्रश्नांकित पत्र में अनियमितताओं का उल्लेख नहीं था। यह पत्र श्री राजेश शर्मा, तकनीकी विशेषज्ञ - जिला पंचायत टीकमगढ़ को राज्य मुख्यालय में पदस्थ लेखाधिकारी से अमर्यादित वार्तालाप के अनुक्रम में संविदा सेवा शर्तों के प्रतिकूल व्यवहार के कारण स्पष्टीकरण हेतु जारी किया गया था। श्री राजेश शर्मा द्वारा प्रस्तुत स्पष्टीकरण समाधान कारक पाया गया है, अतः शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) जी नहीं। शेष जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है।
परिशिष्ट "इकतीस"
मंडी शुल्क अपवंचन पर कार्यवाही
9. ( क्र. 161 ) कुँवर सौरभ सिंह : क्या किसान कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) दिनांक 10.03.2016 के परि. अता. प्रश्न संख्या 156 (क्रमांक 5345 ) के प्रश्नांश (क) का उत्तर जी हाँ वर्तमान में प्रक्रियाधीन जाँच के प्रभावित होने की स्थिति को देखते हुए अंतरिम प्रतिवेदन को सार्वजनिक करना उपयुक्त नहीं होगा ? (ग) का उत्तर वर्तमान में जाँच प्रक्रियाधीन है, जिसके पूर्ण होने पर वास्तविक स्थिति स्पष्ट हो सकेगी? अतः अभी शेष प्रश्न ही उद्भूत नहीं होता है, दिया है ? तो क्या जाँच प्रतिवेदन शासन को भेज दिया गया है? (ख) यदि हाँ, तो जाँच प्रतिवेदन अनुसार किस-किस मंडी में कितना-कितना मंडी शुल्क का अपवंचन पाया गया है तथा उक्त अपवंचन के लिये कौन-कौन मंडी सचिव एवं कर्मचारी दोषी पाए गए हैं तथा मंडी शुल्क अपवंचन की वसूली की क्या कार्यवाही की गई ?
किसान कल्याण मंत्री ( श्री गौरीशंकर बिसेन ) : (क) जी हाँ। आंचलिक अपर संचालक मंडी बोर्ड भोपाल संभाग का प्रश्नाधीन अंतरिम जाँच प्रतिवेदन दिनांक 04.05.2016 को प्राप्त हुआ। (ख) प्रश्नगत प्रकरण में म.प्र. राज्य कृषि विपणन बोर्ड के आंचलिक अपर संचालक भोपाल संभाग के अंतिम जाँच प्रतिवेदन दिनांक 11.07.2016, आंचलिक संयुक्त संचालक उज्जैन संभाग के जाँच प्रतिवेदन दिनांक 10.02.2016 तथा आंचलिक संयुक्त संचालक सागर संभाग के जाँच प्रतिवेदन दिनांक 14.01.2016 के अनुसार मंडीवार मंडी फीस अपवंचन की स्थिति तथा उसकी वसूली की कार्यवाही की जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र - एक अनुसार है उज्जैन संभाग के मंडी सचिवों/कर्मचारियों की दोषिता का निर्धारण किया गया है। जिसकी जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र दो
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d28c7567b04325c292a0ed0b7a2a6456cbfae3209dae76dc7f0f5be43c15d186 | pdf | * स्वदेशो #
उस समय भी संसारमें औद्योगिक भारतका आसन सर्वोपरि था और वस्त्र बनानेकी कला भारतमे उन्नतिकी चरम सोमापर पहुंची हुई थी । अत्यन्त प्राचीन चैदिक कालको जाने दीजिये, रामायण, महाभारत तथा पीछेके कालीदास, माघ इत्यादि कवियोके समयकी बात भी छोड़िये । भारतीय पुरा तत्वके पडितोके लेखोंमें यदि यहांकी वस्त्र कलाकी कुछ प्रशंसा मिले तो उसपर भी ध्यान मत दीजिये, केवल बाहरी लोगोकी सम्मतिपर भी यदि विश्वास किया जाय तौसो यह मानना पडेगा कि एक समय था जब रोम, यूनान, चीन, जापान, मिश्र, ईरान आदि देशोमे भारतका माल आदर पाता था । योरोप के कवियो; लेखको और प्रवासियोंने भारतकी कारीगरी, कला, कौशल, तथा वैभवकी खूच प्रशंसा भी की है । उनके लेखोसे यह सिद्ध होता है कि एक हजार वर्ष पहिले मिश्र के साथ तथा पांच हजार वर्ष पहले बेवोलेनिया के साथ भारतका वाणिज्य सम्बन्ध था। यहांको वस्तुएं संसार भरमे भेजी जाती थी और सबसे अधिक आदर पाती थी । परलोकवासी श्री आर० सी० दत्तका कहना है कि यहांकी कारीगरीकी यस्तुएं संसार भरमें बिकती धीं बगदादके हारू रशीदके दरवारमे उनकी कदर होती थी, उन्हे देखकर प्रतापी शार्लमन और उनके दरवारी चकित हो जाते थे 1 एक अंगरेजी कविने लिखा है कि "पूर्वके दूर देशसे यूरोपके नवीन वाजरोमें आये हुये रेशमी तथा कारचोबीके वस्त्रो और
रत्नोंको लोग आखें फाड़ कर आश्चर्य भरी निगाहोंसे देखते थे-" एकग्रीक ऐतिहासिकका मत है कि इससे ६०० वर्ष पहले भारतमें वस्त्र बनाने की कला खूब उन्नति पर थी" ग्रीकके प्रसिद्ध प्रवासी होरोडाट्स जो ईसासे ४५० वर्ष पहिले भारतमें आये थे लिखते है कि "भारतवासी रुईके बने हुए बढ़ियां मुलायम कपडे पहिनते हैं।" इतिहास पंडित स्टैबोका मत है कि "भारतमें अत्यन्त प्रानीन कालसे रंग विरंगी छीट बढिया और मुलायम मलमल बनती आई है।" बेन साहव लिखते हैं कि "रूईसे बनाये जानेवाले मालका जन्म स्थान भारत है । और प्रमाणभूत इतिहास कालसे बहुत पहिले ही वहां यह उन्नतिके शिखरपर पहुच चुका था, वहाके बने कपड़े ऐसे सुन्दर होते थे-मानों देवताओने बनाये है । एरापन नामी एक इजिपशियन ग्रीकने ईसाकी पहिली या दूसरी सदी में एक पुस्तक लिखी थी उससे पता लगता है कि भारतमें बने हुये छीट मलमल और रेशमीके सुन्दर वस्त्र अवेस्थान आदि दूर २ देशोमें जाते थे। मछलीपट्टमके सूती वस्त्र और बंगालके मलमलोको "गंगा" कहते थे क्योंकि ये गंगा नदीके किनारे बनती थी ।
मुसलमानोंके राज्यकालकी स्थिति
मुसलमानोंने भारतको खूब लूटा, कुचला और मारा कोई कसर न रखी, बड़े २ बहुमुल्यरत छोनकर ले गये परन्तु पीछेसे उन्होंने यहां अपना राज्य स्थापित कर लिया तो भारतकेहित
को ही उन्होंने अपना हित समझा। यही कारण है कि उनके शाशनकालमें भारत के उद्योग धन्धे कला-कौशल रसातलको नहीं पहुचे। उनके समय में भी वस्त्र बनाने की कला यहाँ वढ़ी चढ़ी हुई थी । अकेले बङ्गालमे १५ करोड़ रुपये महीना प्रतिवर्ष विदेशों से आता था । सन् १८०७ में डाक्टर बुकाननने कम्पनीकी आज्ञासे बाणिज्यकी दवा जाननेके लिए पटना इत्यादि स्थानोंमें पर्यटन करके जो रिपोर्ट दी थी उससे पता लगता है कि उस समय पटनेमे २४०० बोधेमें रुईकी खेती होती थी । वहां ३ लाख ३० हजार १३ः. औरते सूत काता करतीं थी। वहांके जुलाहे अपना निर्वाह करके वर्षमें ७॥ लाख नफा पा जाते थे । शाहाबादमें १ लाख ५६ हजार ५०० स्त्रियां चरखा चलाती थीं। वहां ७ हजार ६ सौ ५० करघे चलते थे । भागलपुरमें १२ हजार बीघे कपास बोई जाती थी। वहाँ तसर बुननेके लिये ३२७५ करघे और कपड़ा चुननेके लिये ७२७६ करघे चलते थे । गोरखपुरमें १७५६०० स्त्रियां मूत कातनेका काम करती थीं। और वहां ६११४ करघे चलते थे । पटना शाहावाद और गोरखपुर की औरतें सिर्फ चरखा चला चलाकर लगभग ३५ लाख रुपये प्रतिवर्ष कमा लेती थीं । दिनाजपुरमें २४०० बीघे कपासकी खेती होती थी। यहांको विधवा स्त्रियां ६१०००० रुपये प्रति वर्ष चरखा कमा लेती थीं। और ५०० रेशमके व्यव सायियोंके घराने १२ लाख नफा पाते थे। यहांके जुलाहे प्रति* उन्नति सोपान *
वर्ष १६ लाख १४ हजार रुपये के कपड़े वुनते थे । मालदह जिले की मुसलमान स्त्रियोंमे सईकी कारीगरीका अत्याधिक प्रचार था । सूत और रेशम कपड़े में तरह तरहके रङ्ग चढ़ाकर हजारो मनुष्य अपनी गुजर करते थे। पूर्णियां जिलेकी स्त्रियां प्रतिवर्ष लगभग ३ लाख रुपयेकी कपास खरीदकर उसका सूत कातती थीं और उससे उनको लगभग १३ लाख रुपये मिला करते थे । वहां दरी फीते आदि व्यवसायकी वडी उन्नति थी। फतुहा नवादा तथा गया तसरके लिये विख्यात थे।
तेरह वीं सदी में मार्कोपालो नामके एक प्रवासी यहां आया था। उसने यहांके मलमलकी बडी तारीफ की है। मुग़लोंके शाशनकालमें यहां बस्त्र खूब बनाता था । स्वर्गीय श्री बडिमचन्द्र लाहिड़ीने "सम्राट अकचर" नामके ग्रन्थमें लिखा है कि "सभ्राट अकबरने बहुतसे स्थानोमे राजकीय शिल्प शालायें खोली थी । जिनमे बड़ी ही सुन्दर दरियां बनती थीं। उन्होंने रेशम पश्मीनोके वस्त्र बनाने के कामका प्रोत्साहन दे देकर बहुत उन्नतिकी थी। काश्मीर और लाहौरमें शालकी उन्नतिके लिये बहुतसे उपाय किये थे। शाहजहां और औरङ्गजेयके समयमे भी यहां अत्यन्त महीन और सुन्दर वस्त्र बनते थे । ढाकेका मलमलका १० गज लम्बा और १ गिरह चौड़ा एक थान तौलनेपर ८ तोले ४॥ मासे निकला था । तह करनेके बाद वह भलीअंगूठीके छिद्रमेसे उसपार हो जाता था। प्रायः सब ही
थान इतने ही चौड़ी वजनमें । तोलेके करीब होते थे। एक कारीगरने मलमलका एक थान सम्राट अकबरको एक बांसकी छोटीसी नलीमे रखकर भेंटकी थी। वह इतना बड़ी था कि अम्बा रीसहित हाथो पूर्णतः ढाक लेता था । यदि हरी हरी घासपर चारीक थान विछा दिये जाते थे तो उनका रङ्ग ओससे इतना मिल जाता था और इतने वारीक होते थे कि पशु घासकेसाथ थानको भी खा जाते थे। सम्राट औरङ्गजेवकी लडकी रौशन आराने एक ढाकेकी मलमल २० तहकी साड़ी पहनी थी जिसे देख कर वांदशोह बहुत नाराज हुए, क्योकि २० पलटोमेंसे भी उसके सत्र अङ्गादि दिखाते थे । इससे उस मलमलकी बारीकीका अनुमान किया जा सकता है । इसके बाद भी १३ वीं सदी तक यह व्यवसाय वैसा ही उन्नतपर रहा । सन् १८४६ में ढाकेके एक रेसीडेन्टने एक पुस्तकमें लिखा है कि उस समय आधसेर रूईमे २५० मील लम्बा सूत काता गया था । उन दिनो इतना वारीक कताई होती थी कि १७५ गज लम्बे तारकी वजन केवल एक रत्तो होती थी। सन् १९३७ में रायल एसियाटिक सोसाइटीके एक जरनल में भारतको वना हुई मलमलके मूल्यके विषय मे डाक्तर बारने लिखा था कि सन १७७६ में सबसे वढ़िया मलमलके एक थानको कीमत ७३० रुपये थो । क्या उन्नतिके शिखरपर पहुंचा हुआ योरप अपनो सारी विजली विद्वान और कलोंका वल रखता हुआ ऐसा मलमल तैयार कर सकता है ?
अंगरेज कागकों के सत्ययकी स्थिति ।
सत्रहवीं सदी मे हिन्दुस्थानी मलमलों और रेशमी वस्त्रोंका इङ्गलैण्ड और अन्य पाश्चात्य देशोमें बहुत व्यापक रूपले प्रचार हो गया था। साधारणत इङ्गलैण्डके सब लोग भारतके बने कपडे पहिनने लग गये थे । इङ्गलेंढके राज कुलमें भारतकी छींटे बहुत पसन्द की जाती थी । इड्डलैंडके वैटक खानों, चेम्वरों घरोमें लगे हुये परदो बिछौनों तकियों तथा वचो और स्त्रियों की 'पोशाकोमे चारो तरफ भारतके वने वस्त्र दिखाई देते थे। प्रायः सब कपड़ा भारतसे ही जाता था । पाश्चात्य देशोंके वाजार उस समय भारतके पक्के मालसे भरे रहते थे । अंग्रेज वणिक ( ईण्ट इण्डिया कंपनी) भारतीय मालके व्यापारसे विलायत में ६६) प्रतिशत नफा कमाते थे । ऐसी अवस्थामें भी भारतीय माल विलायत में बहुत सस्ता बेचा जाता था। भारतीय वस्त्रोको खपत वहां वे रोक टोक चढ़ रही थी, लोग उनपर लहू हो रहे थे। अकेले कासिम बाजारसे २२ हजार गाठ कपडा विदेशको प्रति वर्ष जाता था । सन १७१० ई० मे ८४ लाख ६० हजारका तो केवल रेशमी वस्त्र भारतने विदेश भेजा था । मालदहके भी खूशेखनेही अकेले तीन हजार रेशमी कपड़े एक बार फारसकी खाड़ीको शहसे रूसको भेजे थे। लिखनेका तात्पर्य यह है कि भारतसे परिमित परिमाणमें रेशमी वस्त्र सूती वस्त्र विदेश भेजे जाते थे भारत मालामाल होता जा रहा था । |
98d9312e6cf806e4655334c1fd7f6bf4e4ffb2824111d70ba7e88e17d84e324c | pdf | था । सम्भवतः मगध के नरेश नन्द भी जैन थे। ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी के अन्तिम वर्षों मे जैन सन्त व साधुओं के एक समुदाय ने मगध से भद्रबाह के नेतृत्व में दक्षिण भारत में प्रवास किया था। वहां उसने मैसूर में श्रवण बेलगोला को अपना प्रमुख केन्द्र स्थल बनाकर समस्त दक्षिण भारत में जैन धर्म का सूब प्रचार एवं प्रसार किया । 900 ई० का एक शिलालेग यह बताता है कि मैसूर के चन्द्रगिरि पर्वत के शृंग पर भद्रबाहु एवं चन्द्रगुप्त मुनिपति के पद-चिह्न अति है। दक्षिण में जैन धर्म विशेषकर वाणिज्य व्यवसायी-वर्ग में अत्यधिक लोकप्रिय हो गया था ।
जैन धर्म को राजकीय आश्रम व संरक्षण भी प्राप्त हुआ था। महान मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त जैन धर्म के बडे धार्मिक श्रद्धालु सरक्षक थे। ऊपर जैसा वर्णित है, वे स्वयं भद्रवाहु के शिष्य बनकर दक्षिण में उनके साथ गये थे । एक गुफा उनको हो समर्पित कर दी गयी और वह पर्वत जिसमें वह गुफा है, उनके नाम चन्द्रगुप्त के आधार पर चन्द्रगिरि नाम से प्रख्यात हो गया। ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में कलिंग (उड़ीसा) के राजा सारवेल ने जैन धर्म अगीकार कर लिया था। वह स्वयं एक विशाल जैन प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर जैन धर्म का प्रसिद्ध संरक्षक हो गया। जैन सन्त कालकाचार्य तथा उज्जैन- नरेश गर्दभिल्ल और उसके पुत्र विक्रम की गाथाओं से प्रतीत होता है कि ईसवी सतु की प्रथम शताब्दी में मालवा को राजधानी उज्जैन जैन धर्म का एक महान केन्द्र स्थन रहा होगा । कुषाण युग मे जैन धर्म मथुरा में अधिक समृद्ध ओर हर्ष के काल में पूर्वी भारत में इनका प्रभुत्व अधिक था । ईसवी सन् को प्रारम्भिक सदियों मे उत्तरी भारत में मथुरा और दक्षिण में श्रवण वेलगांवा जैन धर्म के प्रचार के महान् केन्द्र थे । इन दोनो स्थानो पर जो अनेक गिलानेस, मूर्तियां तथा अन्य स्मारक चिह्न एव समाधि प्राप्त हुए है, वे इस कथन की सबल पुष्टि करते है । पाँचवी से बारहवी सदी तक दक्षिण के अनेक राजवणी, जैसे गग, कदम्ब, नालुक्य और राष्ट्रकूट ने इस धर्म को आश्रय दिया था। आठवी से दसवी सदी तक मान्यखेत के कतिपय राष्ट्रकूट नरेश तो विशेष रूप से जैन धर्म के पक्षपाती थे। वे उसके उत्साही सरक्षक थे और जैन कला और साहित्य के विकास में उन्होंने अत्यन्त प्रोत्साहन दिया। प्रख्यात जैन कवि उनके राज्याश्रय मे ही फले-फूले । अमोघवर्ष के राज्यकाल मे ही जिनसेन और गणभद्र ने अपने महापुराण की रचना की ! अमोघवर्ष स्वयं लेखक था और उसका जैन ग्रन्थ सभी सम्प्रदाय के लोगो मे अधिक लोकप्रिय हो गया । ऐसा कहा जाता है कि अमोघवर्ष अपने जीवन के अन्तिम वर्षो मे जैन साधु हो गया था । अभिलेखो के प्रमाण के अनुसार उसके एक उत्तराधिकारी इन्द्र चतुर्थ ने जैन धर्म के अनुसार संसार त्याग कर व कठोर तप कर अपने जीवन की इतिश्री की थी । ईनवी सन् 1100 के लगभग गुजरात में जैन धर्म का अत्यधिक उत्थान हुआ, क्योंकि वहाँ अन्हिलवाड के राजा और गुजराती गाथाओ के लोकप्रिय नायक चालुक्य नरेगे सिद्धराज ( सन् 1094-1143) और उसके पुत्र कुमारपाल जैन सम्प्रदाय के महान संरक्षक थे । उन्होने जैन धर्म को पूर्णरूपेण अगीकार कर लिया था और जैनियो के साहित्य तथा उनकी मन्दिर निर्माणकला को खूब प्रोत्साहन दिया था। सिद्धराज के उत्तराधिकारी कुमारपाल की राजसभा में प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचन्द्व, जो राजपुरोहित व इतिहासज्ञ या रहता था । मुस्लिम युग मे जैन धर्म विद्यमान रहा क्योकि जैनियो की अधिक शान्तिप्रिय विधियो तथा उनकी धार्मिक उग्रता के अभाव में यवन शासको ने उन्हें अधिक मताया नहीं, परन्तु जैन धर्मावलम्बियो की संख्या दिन प्रति दिन न्यून
होती जा रही थी । सहिष्णु व उदार मुगल बादशाह अकबर के संरक्षण में जैनियों ने पुनः अपनी उन्नति की । परन्तु इस यवनकाल वे जॅनियों की संख्या में राजपूताने की रियासतो मे विशेष रूप से वृद्धि हुई । इन राज्यों में अनेक जैन उच्च शासकीय तथा मन्त्रियों के पदो पर सुशोभित थे । परन्तु इसके पश्चात के युग मे उनकी अवनति होती चली गयी ।
जैन धर्म का ह्रास - जैन सघ के अनेक त्यागी और सेवाभावी धार्मिक उपदेशकों तथा प्रचारको की संख्या दिन-प्रतिदिन गिरने लगी और वे अब अपने धार्मिक कृत्यों में पहले जैसे उत्साही न रहे । जैनियो के दो सम्प्रदायो ( श्वेताम्बर व दिगम्बर) मे विभक्त हो जाने से वे ठोस कार्य करने में असमर्थ हो गये । राजकीय सरक्षण और आश्रय के दिन व्यतीत हो चुके थे । साधारण जनता आन्तरिक मतभेदो तथा विभागो मे वँट गयी थी । अतएव किसी ठोस कार्य के लिए उनका एकीकरण प्राय. असम्भव-सा हो गया था । जाति प्रथा के भेद-भाव जो पहले वहिष्कृत हो चुके थे, पुन जनता पर लाद दिये गये और जाति प्रथा के अपरिवर्तनशील बन्धन व क्लिष्टता पुन सक्रिय हो गयी । यद्यपि जैन समाज ने अपना अस्तित्व विद्यमान रखा, परन्तु जाति प्रथा के इन दुर्गुणो ने उसकी मौलिक शक्ति और उत्साह को सोखकर शुष्क कर दिया । इसी वीच मे हिन्दू धर्म में सुधार हुआ एवं उसका पुनरुत्थान प्रारम्भ हुआ है। इसका प्रभाव जैन धर्म के लिए विनाशकारी हुआ । दक्षिण मे शैव मत के प्रचारकों ने जैन धर्म को खूब क्षति पहुँचायी । शिव-भक्त चोल नरेशो ने जैन धर्म के विनाश का पर्याप्त प्रयत्न किया । ग्यारहवी-बारहवी सदी मे चालुक्य नरेशो ने भी जैन धर्म को नष्ट करने की चेष्टा की व जैनियों पर अत्याचार किये ।
आज भारत में विभिन्न प्रान्तो को मिलाकर जैन धर्मावलम्बियो की संख्या लगभग तेरह लाख है, परन्तु राजस्थान, गुजरात, मध्यभारत तथा दक्षिण के जिलो मे ही इनकी संख्या अधिक है । अधिकाश मे ये धन-सम्पन्न है और समृद्धशाली व्यवसायी तथा उद्योगपति है । इन्होंने देश मे अनेक धार्मिक संस्थाएँ, जैसे औपधालय, धर्मशाला गौशाला, अन्न क्षेत्र आदि दानस्वरूप स्थापित किये हैं। आजकल इन्होने अपना ध्यान अपने समाज-सुधार, शिक्षा प्रसार, जैन धर्म की जाग्रति, जैन मन्दिरी तथा समाधियों के निर्माण एवं जीर्णोद्धार, और शताव्दियो से अनेक स्थलों पर जैन मन्दिरों में विविध हस्तलिखित ग्रन्थों के रूप मे अज्ञात पड़े हुए प्राचीन जैन साहित्य के प्रकाशन की ओर आकर्षित किया है ।
जैन साहित्य और कला - यद्यपि जैन समुदाय छोटा-सा है तथापि देश की भाषाओं के विकास मे इसका विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है । ब्राह्मणी के धार्मिक प्रचार, उपदेश तथा पवित्र ग्रन्थो की भाषा सदैव, संस्कृत रही और बौद्धो की पाली भाषा । परन्तु जैनियो ने अपने धर्म-प्रसार तथा ज्ञान-सचय व रक्षा के हेतु विभिन्न स्थलों पर विविध युगो की तत्कालीन भाषाओं का सदुपयोग किया। प्राकृत भाषा मे रचित उनका साहित्य अत्यन्त विस्तृत है । इस प्रकार प्राकृत भाषाओं के विकास में उनका प्रभाव महत्त्वपूर्ण रहा है । उस युग की बोलचाल की भाषाओं को उन्होने साहित्यिक रूप दिया । स्वय महावीर ने मिश्रित उपभाषा अर्द्धमागधी मे अपना उपदेश दिया था, जिससे मागधी या सूरसेनी बोलने वाली जनता उन्हें पूर्णरूपेण समझ सके । उनके धर्मोपदेशो 'ता' नामक वारह पुस्तकों में संगृहीत है, अर्द्धभागधी भाषा में लिखित है, थोडे समय पूर्व ही जैनियो द्वारा रचित सम्पन्न साहित्य प्रकाश में आया
है । इस साहित्य में वह भाषा परिलक्षित है जो आधुनिक हिन्दी, गुजराती तथा मराठी के विकास के पूर्व प्रचलित थी । यह साहित्य 'अपग' नामक भाषा में लिखा हुआ है । यह भाषा एक ओर यदि संस्कृत और प्राकृत को जोड़ती है तो दूसरी ओर आधुनिक काल की भाषाओ की परम्पर मिलाती है । अतएव भाषा-विज्ञान की दृष्टि से 'अपनग' का अध्ययन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । जैन विचारधारा और प्रेरणा दक्षिण के साहित्य में भी पायी गयी है । कन्नड भाषा का प्रारम्भिक साहित्य जैन प्रभाव से वंचित नहीं है । जैनियो ने सस्कृत मे भी वर्णनात्मक तथा दार्शनिक दोनों प्रकार के सम्पन्न साहित्य की रचना की है एवं व्याकरण, काव्य, कोप, रचनाशास्त्र, तथा गणित जैसे विशिष्ट 'टेकनिकल' विपयो पर भी उसके ग्रन्थों का अभाव नहीं है ।
ग्यारहवी तथा वारहवी सदियों मे जैनकला का सौन्दर्य अपनी चरम पराकाष्ठा पर पहुँच गया था । ईसवी सन् की प्रारम्भिक नदियों मे जैनियों ने भी अपने समकालीन बौद्ध धर्मावलस्त्रियों के समान अपने सन्तो की प्रतिष्ठा मे स्तूपों का निर्माण किया था । इन स्तूपो मे पापाण 'रेलिंग' (Railings), अलंकृत प्रवेग-द्वार, पापाणछत्र, रूप-शिल्प के उत्कीर्ण स्तम्भ एवं प्रचुर प्रतिमाएँ थी । इनके कुछ नमूने मथुरा में उपलब्ध हुए हे । मध्य भारत तथा बुन्देलखण्ड ग्यारहवी एवं बारहवी नदियों की जैन मूर्तियों से भरे पडे है । मैसूर में श्रवण वेलगोला तथा कर्कल मे बाहुबली की विशाल दैत्याकार प्रतिमा जो गोमतेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है विश्व की आश्चर्यजनक वस्तुओं में से एक है । मत्तर फुट ऊँची यह प्रतिमा जो पहाड़ी के शिखर पर स्थित है, सन् 984 मे गंग नरेश राजमल्ल चतुर्थ ( लगभग सन् 977-95) के मन्त्री ओर सेनापति जैन चामुण्डराय ने स्थापित की थी । यह विशाल ग्रेनाइट चट्टान मे से काटी गयी है । दक्षिण मध्य भारत में बड़वानी नगर के समीप प्रकार लगभग 29 मीटर ऊँची जैन तीर्थकर की विशालकाय प्रतिमा आज भी विद्यमान है। ग्वालियिर दुर्ग में जैनियो द्वारा चट्टानों पर उत्कीर्ण जो कला के नमूने हैं वे पन्द्रहवी सदी के हे । जैनियों ने चट्टानों को काटकर मन्दिरी का भी निर्माण किया था । नवसे पूर्व के उदाहरण ईसवी सन् की दूसरी शताब्दी पूर्व और उसके बाद के है और आज भी उड़ीसा मे हाथी गुम्फा नामक गुहाओ मे विद्यमान है । विभिन्न काल की जैनकला के अन्य नमूने जूनागढ़ (गिरनार), जुनार, उस्मानाबाद, ऊन (मध्य भारत) में आज भी है । जैनियो के अनेक तीर्थस्थानो, जैसे पार्श्वनाथ पर्वत, विहार में पादापुरी और राजगृह तथा काठियावाड ( सौराष्ट्र) मे गिरनार और पालिताना में विभिन्न युगो के जैन मन्दिर और अन्य कलापूर्ण स्मारक है । चित्तौड़ दुर्ग मे जैनियों का स्तम्भ (Tower) जैन स्थापत्यकला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हे । राजस्थान मे आनू पर्वत पर देलवाड़ा के पास ग्यारहवी सदी के जो जैन मन्दिर बने हुए है उनमें भारतीय कलाप्रतिभा शिल्पी की अलकृत पापाण-आकृतियों में अपनी परम पराकाष्ठा पर मिलती है । जैनियो ने चित्रकला के विकास में भी योग दिया। उन्होंने अपनी चित्रकला का प्रदर्शन अपनी हस्तलिखित पुस्तकों में किया जिनमे चमकीले रंगों का प्रयोग किया गया । कतिपय विद्वानों का मत है कि जैनियो की कला सादगी से पूर्ण है । उसमे हिन्दू कला की चमक-दमक का अभाव है ।
निष्कर्ष - इतिहास में जैन धर्म के अवशेष बहुत ही पूर्व-युग मे चले आते है और निस्सन्देह ये वैदिक धर्म से नही तो बौद्ध धर्म से अधिक प्राचीनतम है हो । यद्यपि यह भारत में सबसे अधिक प्रभुत्वशाली धर्म नहीं रहा तथापि देश में यह एक
सशक्त सम्प्रदाय अवश्य ही बना रहा । जैन धर्म की रूढ़िवादिता, ब्राह्मण धर्म से इसकी महशता, धर्म प्रचार की उग्र भावना के अभाव तथा अन्य धर्मो के विरोधाभास के दुर्भाव होने से जैन धर्म देशे के विभिन्न भागो मे आज भी विद्यमान । बौद्ध धर्म
गौतम बुद्ध का जीवन चरित्र - वह आन्दोलन जिसने ब्राह्मण धर्म को सबसे - भारी आघात पहुँचाया था, महावीर के प्रसिद्ध समकालीन गौतम बुद्ध द्वारा किया गया था । वे नेपाल की तराई मे कपिलवस्तु के शाक्य जाति के प्रधान शुद्धोधन के पुत्र थे । उनकी माता पार्श्ववर्ती कोलिय कुल की राजकुमारी थी । कपिलवस्तु से कुछ मील दूर लुम्बिनी ग्राम मे 566 ईसा पूर्व मे उनका जन्म हुआ था । यह स्थान आज मौर्य सम्राट अशोक के रुम्मिन्देह स्तम्भ जिस पर 249 ईसा पूर्व का अभिलेख है, सुशोभित है । प्रसव पीडा से माता का देहावसान हो जाने पर सिद्धार्थ : की विमाता प्रजापति गौतिमी ने इनका लालन-पालन किया । इसलिए इन्हे गौतम भी. कहते है ।
वाल्यकाल से ही सिद्धार्थ में मस्तिष्क की चिन्तन प्रवृत्ति एव सहृदयता तथा दयालुता के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे । शैशवशाल मे भी राजकीय वैभव राजकुमार के हृदय को मोहित करने में सर्वथा अमसर्थ रहा । अपने पुत्र मे सांसारिक जीवन के प्रति गहरी उदासीनता देखकर शुद्धोधन ने उनका विवाह यशोधरा नाम की सुन्दर राजकुमारी से कर दिया । इस नवविवाहित दम्पत्ति के प्रासाद को शुद्धोधन ने भोग-विलाम एव आनन्द की सर्वोत्कृष्ट मामग्री और साधनो से परिपूर्ण कर दिया । परन्तु दु खी और विपादग्रस्त विश्व के वीच भोग के इन उपकरणों से गौतम के आकुल व चिन्तित हृदय को शान्ति न मिली। एक वृद्ध, रुग्ण, मानव-शव तथा सन्यामी के दृश्य ने संसार के प्रति उनकी उदासीनता और भी दृढ करदी और उनके हृदय से सामारिक सुखो के साधनो की निष्फलता को भलीभांति स्पष्ट कर दिया । जीवन की अनन्त समस्याओ, उसके कप्टो तथा मृत्यु की भावना से वे आक्रान्त हो' गये, उनकी शान्ति भग हो गयी और वे वासना में रहित एकान्तवास की गम्भीर शान्ति की ओर अधिक आकर्पित हुए । अपनी आयु के 29वें वर्ष 533 ईसा पूर्व मे उन्होने सन्यामी जीवन द्वारा शाश्वत सत्य की खोज करने के लिए अपने प्रासाद एवं राज्य को एक रात्रि को छोड़ दिया । यह गृह-त्याग महाभिनिष्क्रमण के नाम से प्रसिद्ध है ।
निरन्तर छह वर्षो तक वे सन्यासी का जीवन व्यतीत करते रहे । इस काल मे उन्होंने दो ब्राह्मण आचार्यों के आश्रमो का अध्ययन किया एव पटना जिले के राजगृह तथा गया के समीप उरुवेला आदि अनेक स्थानों में भ्रमण किया । इतने पर भी - उनकी जिज्ञामा न मिटी और उन्हे सन्तोप न हुआ । तब उन्होंने उरवेला के सघन वन मे कठोर तप किया और अपने शरीर को अनेक कडी यातनाएँ दी एव सत्य की प्राप्ति के लिए निष्फल प्रयत्न किये । अन्त मे उन्होने तपस्वी जीवन को त्याग दिया, शरीर-यातना छोड दी तथा निरजना नदी में स्नान कर वर्तमान बोद्ध गया में पीपल वृक्ष के नीचे तृण के आसन पर बैठ गये । यहाँ उन्हे सहसा सत्य के दर्शन हुए एव ब्रह्म-ज्ञान प्राप्त हुआ । उन्हें यह प्रकाश मिली कि महान शान्ति उनके हृदय में ही है, उन्हे वही उसकी खोज करनी चाहिए । यही 'महान बुद्धत्व' गया है तब से वे 'बौद्ध' या 'तथागत' कहलाए । इस प्रकार अपनी आयु के पैतीसवे वर्ष मे गौतम ने |
d79d17ffc9befc410a21fb599b58bdcf3a2e55ee | web | नोवोचेर्कस्क रोस्टोव क्षेत्र के शहरों में से एक है। यह एमआई प्लेटोव के नाम पर दक्षिण-रूसी पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी (एसआरएसपीयू) के रूप में इस तरह का एक विश्वविद्यालय संचालित करता है। यह एक शताब्दी से अधिक समय से चल रहा है। अस्तित्व की इस अवधि के लिए, विश्वविद्यालय ने बहुत सारे ज्ञान और परंपराओं को जमा किया है, शैक्षणिक और वैज्ञानिक गतिविधियों में उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त किए हैं।
यही कारण है कि कुछ साल पहले विश्वविद्यालयसीआईएस के सर्वोत्तम उच्च शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग में शामिल किया गया था। इसमें कौन से संकाय हैं, यह कौन सी विशेषताएं प्रदान करती है, क्या यहां प्रवेश करना मुश्किल है - प्रश्न जो आवेदकों से संबंधित हैं।
राज्य शैक्षिक संगठनजो वर्तमान में नोवोचेर्कस्क में काम कर रहा है और इंजीनियरिंग कर्मियों के प्रशिक्षण में लगी हुई है, 1 9 07 में रूस में दिखाई दी। यह मंत्रिपरिषद के फैसले के लिए धन्यवाद बनाया गया था। यह हमारे देश के दक्षिण में उच्च शिक्षा का पहला संस्थान था। इसे डॉन पॉलिटेक्निक संस्थान कहा जाता था। भविष्य में, नाम कई बार बदल गया। उदाहरण के लिए, 1 9 48 में ऐसी एक प्रक्रिया की गई थी। विश्वविद्यालय को नोवोचेर्कस्क पॉलिटेक्निक संस्थान नामित किया गया था।
यह नाम एक शैक्षणिक संगठन है।40 साल से अधिक पहना था। 1 99 3 में, पॉलीटेक्निक संस्थान का नाम नोवोचेर्कस्क टेक्निकल यूनिवर्सिटी, 1 999 में - दक्षिण-रूसी राज्य तकनीकी विश्वविद्यालय, और 2013 में उन्होंने केवल "तकनीकी" शब्द को "पॉलीटेक्निक" के साथ बदल दिया और प्लाटोव के नाम पर विश्वविद्यालय का नाम दिया।
हालांकि, लोग इस स्कूल को पूर्व नाम - नोवोचेर्कस्क तकनीकी या पॉलिटेक्निक संस्थान (विश्वविद्यालय) कहते हैं।
राज्य उच्च शिक्षा संस्थान की संरचना में 10 संकाय शामिल हैं। यहां उनकी एक सूची दी गई हैः
- प्रबंधन और सूचना प्रौद्योगिकी;
- उत्पादन और नवाचार का संगठन;
- यांत्रिक;
- निर्माण;
- प्रौद्योगिकी;
- ऊर्जा;
- विद्युत;
- भूविज्ञान, तेल और गैस और खनन;
- कृषि,
- दूरी और खुली शिक्षा।
संकाय के अलावा, संरचना में संस्थान हैंमौलिक इंजीनियरिंग शिक्षा, खेल और शारीरिक शिक्षा, अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा, अतिरिक्त शिक्षा। नोवोचेर्कस्क पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी में एक सैन्य संस्थान और प्रबंधन का एक उच्च विद्यालय भी है।
शैक्षणिक संस्थान के संकाय और संस्थान स्नातक और विशेषज्ञ अध्ययन के विभिन्न क्षेत्रों में पूर्ण सामान्य या माध्यमिक विशेष शिक्षा के साथ आवेदकों की पेशकश करते हैंः
- "सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग"।
- "रोबोटिक्स और मेक्ट्रोनिक्स"।
- "धातुकर्म"।
- "अद्वितीय संरचनाओं और भवनों का निर्माण।"
- "भूमि परिवहन और तकनीकी साधन" और अन्य।
यह दिशाओं की पूरी सूची का केवल एक छोटा हिस्सा है।हाई स्कूल में प्रशिक्षण। सभी विशिष्टताओं को एक उच्च शैक्षणिक संस्थान के प्रवेश कार्यालय में या आधिकारिक वेबसाइट पर पाया जा सकता है, जिसमें नोवोचेर्कस्क पॉलिटेक्निक संस्थान है।
पूरी सूची में न केवल शामिल हैप्रशिक्षण के तकनीकी क्षेत्र। "नगरपालिका और राज्य प्रशासन", "न्यायशास्त्र", "अर्थशास्त्र" जैसे भी हैं। रचनात्मक व्यक्तियों के लिए विश्वविद्यालय में एक डिजाइन दिशा है।
में स्नातक या विशेषज्ञ डिप्लोमा प्राप्त कियाकोई भी उच्च शिक्षा संस्थान, दक्षिण रूसी पॉलिटेक्निक विश्वविद्यालय में शिक्षा को जारी रखने का अधिकार देता है यह आपको एक निश्चित क्षेत्र में अपने ज्ञान को गहरा करने या पूरी तरह से नई विशेषज्ञता प्राप्त करने का अवसर देता है।
नोवोचेर्कस्क पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी मास्टर डिग्री के 30 से अधिक विभिन्न क्षेत्रों की पेशकश करता है। यहाँ उनमें से कुछ हैंः
- "ज्ञान-गहन उद्योगों का प्रबंधन और संगठन।"
- "जैव प्रौद्योगिकी, पेट्रोकेमिस्ट्री और रासायनिक प्रौद्योगिकी में संसाधन और ऊर्जा की बचत की प्रक्रिया"।
- "तकनीकी उपकरण और मशीनें।"
दक्षिण-रूसी राज्य पॉलिटेक्निक विश्वविद्यालय में प्रवेश करते समय, आवेदक एक बयान लिखते हैं और इसके लिए दस्तावेजों का एक पैकेज देते हैंः
- पासपोर्ट;
- प्रमाण पत्र या आवेदन के साथ डिप्लोमा;
आपको पास होने के प्रमाण पत्र की भी आवश्यकता हो सकती है।चिकित्सा परीक्षा (परीक्षा)। यह कुछ विशेषताओं के लिए अनिवार्य है। उदाहरण के लिए, "खाद्य पदार्थों से खाद्य पदार्थ", "खनन", "परिवहन प्रक्रियाओं की तकनीक" जैसे दिशाओं में मदद की आवश्यकता है।
एक चिकित्सा परीक्षा (परीक्षा) गंभीर बीमारियों को प्रकट करती है जो अन्य लोगों के लिए या स्वयं आवेदक के लिए खतरनाक हो सकती है यदि वह चुने हुए गतिविधि में संलग्न है।
दक्षिण-रूसी राजकीय पॉलिटेक्निक विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षाओं की आवश्यकता होती है। उनकी सूची तालिका में प्रस्तुत की गई है।
आइटम का प्रत्येक समूह सूची से संबंधित है।प्रशिक्षण के कुछ क्षेत्रों। उदाहरण के लिए, प्रवेश परीक्षाओं के I समूह को यू.पी. में परिभाषित किया गया है। विशिष्टताओं के लिए प्लाटोव जिसमें भौतिकी का ज्ञान आवश्यक है। इस सूची में "इंस्ट्रूमेंट इंजीनियरिंग", "कंस्ट्रक्शन", "रोबोटिक्स और मेक्ट्रोनिक्स" आदि शामिल हैं। विषयों का आधार समूह "लॉ", "युवाओं के साथ काम करने का संगठन" और "डिजाइन" के लिए अंतिम एक है।
दक्षिण-रूसी में जादूगर में दाखिला लेनापॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी, आवेदक एक व्यापक कार्यक्रम पर एक परीक्षा देते हैं। इसमें कम से कम 3 विशेष विषयों को शामिल किया गया है। उनमें से प्रत्येक के परिणामों का मूल्यांकन 100-बिंदु पैमाने पर किया जाता है।
प्रवेश परीक्षा कार्यक्रम में परिभाषित किए गए हैंSRSPU (NPI) प्रशिक्षण की प्रत्येक दिशा के लिए और विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर पोस्ट किया गया। इन्हें कोई भी पढ़ सकता है। कार्यक्रमों में प्रश्नों की एक सूची और उन संदर्भों की एक सूची शामिल है जिनके लिए आप परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं।
नोवोचेर्स्क पॉलिटेक्निक में प्रवेश करनाविश्वविद्यालय, आपको दो बारीकियों के बारे में जानने की जरूरत है - न्यूनतम और गुजरने वाले बिंदु। पहली अवधारणा के तहत परिणाम का मतलब है कि प्रवेश परीक्षाओं के सफल पारित होने की पुष्टि करता है। न्यूनतम सीमा से आगे निकलने वाले आवेदक आगे की प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। जब स्कोर न्यूनतम मूल्यों तक नहीं पहुंचते हैं, तो परिणाम असंतोषजनक माना जाता है। जिन आवेदकों ने ज्ञान के इस स्तर को दिखाया है, उन्हें विश्वविद्यालय में स्वीकार नहीं किया जाता है।
नोवोकैरेस्क पॉलीटेक्निक संस्थान सालाना न्यूनतम अंक निर्धारित करता है। 2017 के लिए, निम्नलिखित मूल्य निर्धारित हैंः
- 25 अंक - रचनात्मक प्रवेश परीक्षा के लिए;
- 27 अंक - गणित में;
- 32 अंक - इतिहास, साहित्य में;
- 36 अंक - रूसी, भौतिकी, रसायन विज्ञान में;
- 42 अंक - सामाजिक अध्ययन में;
- 51 अंक - प्रत्येक विशेष अनुशासन के लिए (जादूगर शिक्षा में प्रवेश करने वालों के लिए)।
गुजर स्कोर वह परिणाम हैयह भुगतान और मुक्त स्थानों में प्रवेश के लिए न्यूनतम स्वीकार्य है। प्रवेश अभियान की शुरुआत में, यह निर्धारित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह प्रस्तुत किए गए आवेदनों की संख्या, आवेदकों के प्रशिक्षण के स्तर पर निर्भर करता है। प्रवेश पर, आप केवल पिछले वर्ष के दक्षिण शैक्षणिक राज्य विश्वविद्यालय के पासपोर्ट ग्रेड पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैंः
- स्नातक और विशेषज्ञ डिग्री पर, बजट पर उच्चतम उत्तीर्ण स्कोर "तेल और गैस व्यवसाय" की दिशा में 210 अंक था;
- बजट पर सबसे छोटा पासिंग स्कोर "प्लांट सामग्री से खाद्य" की दिशा में था - 107 अंक;
- भुगतान किए गए शिक्षा पर उच्चतम उत्तीर्ण स्कोर "डिज़ाइन" (4 प्रवेश परीक्षाओं के योग के लिए) पर 261 अंक निकला;
- भुगतान ट्यूशन पर कम उत्तीर्ण स्कोर "निर्माण", "खनन", और "अर्थशास्त्र" - 105 अंक पर था।
राज्य का लाइसेंस2016 में पॉलिटेक्निक विश्वविद्यालय, सुझाव देता है कि विश्वविद्यालय की 2 शाखाएं हैं। उनमें से एक Kamensk-Shakhtinsk (पता - K. मार्क्स एवेन्यू, 23) जैसे शहर में स्थित है। इस स्कूल में स्नातक के केवल 11 क्षेत्र हैं।
एक और शाखा का स्थान शेख़ी शहर है। शैक्षिक संस्थान लेनिन स्क्वायर पर स्थित है, 1. यहां, आवेदकों को स्नातक अध्ययन के 12 क्षेत्रों, 1 विशेष कार्यक्रम और 3 स्नातक कार्यक्रमों की पेशकश की जाती है। जो लोग एक माध्यमिक व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए मध्य स्तर के विशेषज्ञों के लिए 6 प्रशिक्षण कार्यक्रम हैं।
नोवोचेर्कस्क पॉलिटेक्निक विश्वविद्यालय एक राज्य के स्वामित्व वाली संस्था है जिसके पास राज्य मान्यता का लाइसेंस और प्रमाण पत्र है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना संभव है।
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390153563a822a2f1d9e5d30ea341875966fc15769667204c6c509d440540110 | pdf | और प्राकृतिक लवणोका उपवास नही कर सकता । और फल-तरकारियोके रस इन चीजोंसे भरे रहते है ।
शुरूमें ही यह बता देना ठीक होगा कि मोटापा भगानेके दो ही प्रभावशाली स्त्र है । पहला भोजनपर सयम मीर दूसरा उचित कसरत । मोटापा एक रोग है और प्रत्येक रोगका कारण होता है खूनमे खटाईका वढ जाना एव क्षारकी कमी । अत रोगमुक्त होनेके लिए यह आवश्यक है कि ऐसे भोजन, जो खूनमें खटाई पैदा करते है उन्हें छोड़ दिया जाय। गोश्त, मछली, अडे, मैदा, दाल, घी, छटे चावल आदि खाद्य खूनमें खटाई पैदा करते हैं, शरीरको रोगी बनाते है । इनका इस्तेमाल तो स्वस्थ रहने - की इच्छा रखनेवाले व्यक्तिको भी न करना चाहिए । मिर्च-मसाले भी अच्छी चीज नहीं हैं। इनके सहारे लोग भूखसे अधिक भोजन कर जाते है ।
खूनसे खटाईको दूरकर खूनको शुद्ध वनानेवाले एव रोगमुक्त करनेवाले खाद्य है सव तरहकी हरी तरकारिया, पत्तीदार भाजिया, सव तरहके फल । इसलिए मोटापेके रोगीको फल और तरकारियोको ही अपना मुख्य भोजन बनाना चाहिए । इनमे भी प्रत्येकके गुण-दोपको जान लेना जरूरी है। मोटापेका मुख्य कारण भोजन है अत उसके लिए भोजनके हर पहलूको समझ लेना आवश्यक है। खून साफ करनेके लिए फलोमे सभी रसदार फल, सतरा, अनन्नास, रसभरी, टमाटर आदि सर्वश्रेष्ठ है और उनसे घटकर है सेव, नासपाती, पपीता, खरबूजा, तरबूज सरीवे ठोस फल । इसके बाद हो और फलोको स्थान मिलना चाहिए । तरकारियोमें सभी पत्तीदार हरी भाजिया उत्तम है। खीरा, ककडी, लीकी, परवल, तरोई आदि उनसे कुछ ही कम है । रोगके दिनोमें सभी कद-मूल त्याज्य है, केवल गाजरका उपयोग किया जा सकता है ।
इन खाद्य वस्तुओंके अलावा चिकित्सा शुरु करनेके एक- दो सप्ताह बाद थोडी चोकरसमेत आटेकी रोटी और थोडा मक्खन निकाला हुआ दूध या मठा भी लिया जा सकता है। यहा यह दुहराना गलत न होगा
कि मोटापा दूर करनेके लिए भूखे रहनेकी जरूरत नही है । वताई गई खाद्य वस्तुको भर-भर पेट खूव खाइए । सोचकर इनके आवारपर क भोजन बनाए जा सकते है । सवेरे उठते ही एक नीबूका रस पानीमें निचोडकर पीजिए इससे आपमें स्फूर्ति और ताजगी आएगी । सवेरेके नाश्तेमें कोई रसदार फल लीजिए । दोपहरको कच्ची तरंकारियोका सलाद - ( कचुवर) इच्छानुसार खाइए और एक या दो हल्की चपातियां भी लीजिए ; शामको दो तरहकी पकी तरकारियो और पावभर मठेका भोजन उपयुक्त होगा । तरकारियोंके वजाय कोई फल भी लिया जा सकता है । इसके अलावा दिनमें इच्छा हो तो एक-दो वार फल एव तरकारियोका रस भी पिया जा सकता है । दुवला होनेके लिए टमाटर, लौकी और खीरे, ककड़ीका रस बहुत फायदेमंद सावित हुआ है । लौकी और खीरे-ककड़ीके रसमें नीवूका रस और एक आध तोला शहद मिला देनेसे वहुत बढिया शर्वत बनता है । यदि अधिक भूख लगे तो खीरा ककडी, टमाटर आदिको यो भी खाया जा सकता है ।
ऊपर वताए गये भोजन-क्रमसे वजन काफी घटेगा और शरीर निर्मल होगा । घटनेके लिए कभी उतावला न होना चाहिए । समझ-बूझकर एक क्रमको आरभ कर दीजिए और निश्चित हो जाइए । एक ही भोजनपर पहले वजन ज्यादा घटता है पर पीछे कम । इसी समय कसरत शुरू कीजिए । वजन जव घटता है तव त्वचा ढीली पड़ने लगती है, कसरतसे उसमें तनाव उत्पन्न होगा वह सिकुड़ेगी और शरीरमें सुघरता आयगी । पर कसरत अधिक करने की जरूरत नही है, टहलनेके साथ-साथ कोई भी हल्की कसरत की जा सकती है । रस्सीके खेलमें एक ही जगहपर दौड़ना दुवलानेके लिए अच्छी कसरत है । ये सभी कसरतें, जिनमें मासपेशियोपर तनाव पड़ता है, कामकी है ।
दुवलानेके लिए भोजनपर नियंत्रण एवं कसरत काफी है पर यदि कटिस्नान भी सुबह-शाम दस-पद्रह मिनटके लिए
लिया जा सके तो काम जल्दी वनेगा । मोटापा तो दूर होगा ही और भी जितने रोग शरीरमें होगे निकल जायगे । कभी-कभी सारे वदनको गोली पट्टी भी ली जा सकती है । इसके अभावमें, और गर्मीके दिनोमें धूपस्नानद्वारा पसीना निकालना भी उतना ही लाभकर होता है। कुछ लोग शरीरको केवल भाप देकर एक-दो पॉड लोग तुरंत कम कर देते है और भोजन आदिके विना हेर-फेरके इसीके वलपर दुबला करनेका वादा करते है । पर इससे स्थायी लाभ नही होता। रोज भाप लेनेसे नाडीमडलपर भटका लगता है और भाप लेनेके बाद ही जो प्यास लगती है उसे मिटानेके लिए पानी पीते ही वजन ज्यो-कान्त्यो हो जाता है।
दुवलानेका समय
किसी मौसममें भी दुवलानेका क्रम प्रारंभ किया जा सकता है । पर गर्मीमें दुवलाते समय वडा आराम मिलता है । भोजनमें श्वेतसार ( रोटी-चावल ) श्रादिकी कमीके कारण गर्मी बहुत कम लगती है । इसके विपरीत जाडेमें शरीरसे जव चर्बी कम होने लगती है तो जाडा अधिक लगता है और अधिक कपडेकी आवश्यकता होती है । जाडेके दिनोमें दुवलाते समय सवेरे और सोते वक्त एक-एक गिलास गरम पानी पीना बहुत लाभदायक होता है। जाडा मोटा होनेके लिए अधिक अच्छा है। उस समय वढी हुई शरीरकी गरमी नखरती नही । पर इसका तात्पर्य यह नही है कि जाडेमें दुबलानेका प्रयास ही न किया जाय । जाडेका भी अपना निजी फायदा है, उस समय दुवलानेके लिए उपयोगी फल एव तरकारिया अधिक प्राती है जिससे प्रत्येक दिनके भोजनमें भिन्नता रह सकती है जिसके कारण भोजनसे तवियत घवराती नही ।
प्रतमें यही कहना है कि दुवला होनेको इच्छा रखनेवाले महाराय और बहने कलाकार एवं मूर्तिकार वनें । उन्हें मिट्टी-पत्यरते मूर्ति नही गढ़नी है, उन्हें तो अपने बने बनाए शरीरको सुडौल, सुंदर एव सुगठित बनाना है ।
मोटापा दूर करनेके लिए कुछ विशेष कसरतें
इस कसरतमें एक मामूली कुर्तीपर बैठकर फिर उठनाभर होता है । जितनी ही कुर्सी नीची होती है, कसरतमें मेहनत उतनी ही ज्यादा पड़ती है । इस कसरतको करते समय वीच-बीच में गहरी सास लेते रहना चाहिए । और ध्यान रखकर प्रत्येक बार शरीरकी सभी मास-पेशियोको शिथिल करते जाना चाहिए ।
कसरत करते समय पहले कुर्सीसे उठिए, फिर कुर्सीके पिछली घोर शरीरको झुकाइए और पैरोको पूरा-पूरा सीघा कीजिए और फिर शरीरकी सारी मासपेशियोको जरा देरके लिए पूरी तरह शिथिल कीजिए ।
शरीरको शिथिल करके आराम करनेका काम आप अपनी कसरतमे आनेवाली थकानके हिसावमे कम-ज्यादा कर सकते है । यदि थकान अधिक हो तो शिथिलीकरणकी अवस्था अधिक देरतक रह सकते है, पर यदि थकान मामूली हो तो थोड़ी देर के लिए शरीरको शिथिल कीजिए या दो-तीन वार या ज्यादा कसरत करने के बाद शिथिलीकरणकी अवस्था आए ।
इस कसरतसे मिलनेवाला लाभ इस वातपर निर्भर है कि आप यह कमरत कितनी बार करते है । यदि आप यह कसरत केवल पच्चीस-तीस बार करें तो इस कसरतसे आपको अधिक लाभ नही होगा । यदि आप यह कसरत गुरू ही कर रहे हो तो भी यह कसरत पचाससे सौ बार तक जरूर कीजिए । कसरत करते समय हर वार जैसा कि पहले मैने कहा ह शरीरको शिथिल कीजिए । यदि आप शरीरको शिथिल करते जायगे तो डरा कसरतके सौ या पचास वार करनेपर भी आपको विशेष थकान नही आएगी। पर यह आपके ध्यान में रहना चाहिए कि टहलने, दौड़ने या पहाड़ीपर चढ़नेकी तरह इस कसरतके लगातार करते जानेपर हो
शरीरमें रक्तसचालन तीव्र होता है एवं शरीर जीवन पूर्ण बनता है । इस कसरतकी एक खास विशेषता यह है कि इससे कमर और निनव अधिक शक्तिपूर्ण र सुडौल बनते है और कुछ दिन इसके करते रहनेपर शरीर हलका और फुर्तीला प्रतीत होता है, जिससे एक आनंदकी मनुभूति होती है ।
जव श्रापका शरीर भारी और काठ-सा कडा प्रतीत हो तो इसका मतलब यह है कि आप थके हुए है । उस वक्त ग्राप जो भी काम करेंगे उसे थाप अच्छी तरह न कर सकेंगे। पर जब आपको शरीरके प्रत्येक परिचालनमें उत्साह मालूम हो तो उस समय आप जो भी काम करेंगे आपके लिए वह श्रानददायक होगा । आप विश्वास रखिए कि यदि आपने यह कसरत शुरू की है तो एक-दो दिनमें ही इस कसरतके वढिया प्रभावका ग्राप अनुभव कर सकेंगे। पहला प्रभाव यह होगा कि इम कसरतसे आपकी चालमें जान का जायगी, जो जवानोका एक खास चिह्न हैं।
इससे मासपेशियोका विकास होता है और शरीरमें जो सुन्दर गठन पैदा होता है, वह ग्राम प्राप्त करेंगे ।
कुर्सी या स्टूलपर साधारण स्थितिम बैठकर प्रागेकी ओर भुकिए, चित्रमें चित्रित व्यक्तिको तरह जरा-सा हाथोको घुटनोपर रखिए ! व भटसे खडे हो पाइए । उठते समय एक गहरी तास लीजिए। यह सास पहले छातीके निचले हिम्सेको भरे, फिर पूरी छातीको । अब दुर्सीपर बैठ जाइए ।
छातीमें भरी सासको आप बैठनेपर या बैठे शरीरको शिथिल करते वक्त निकाल दे सकते है । यह आवश्यक नही कि ग्राप सास उस रीतिसे हो लें जो रोति कि आपको यहा बताई जा रही है । पर यह सही है कि इस रीतिसे सास लेनेसे इरा कमरतके लाभ वढते है ।
कुर्मीसे खड़े होनेके वाद फिर तुरंत वैठनेके वजाय आप चाहें तो अपनी गर्दन और कंधे एक झटकेसे पीछेकी ओर ले जा सकते है । इन
प्रकार करनसे रीढ़ सशक्त वनती है । गर्दन और कंधे सुडौल होते है, |
85cf9334f0a65f5475de5c4b888bb8c40261c223 | web | इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, समुचित विधान-मंडल के अधिनियम संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित लोक सेवाओं और पदों के लिए भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन कर सकेंगेः
परंतु जब तक इस अनुच्छेद के अधीन समुचित विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, यथास्थिति, संघ के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों की दशा में राष्ट्रपति या ऐसा व्यक्ति जिसे वह निर्दिष्ट करे और राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों की दशा में राज्य का राज्यपाल[2] या ऐसा व्यक्ति जिसे वह निर्दिष्ट करे, ऐसी सेवाओं और पदों के लिए भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन करने वाले नियम बनाने के लिए सक्षम होगा और इस प्रकार बनाए गए नियम किसी ऐसे अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे।
(1) इस संविधान द्वारा अभिव्यक्त रूप से यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा रक्षा से संबंधित कोई पद या संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है और प्रत्येक व्यक्ति जो किसी राज्य की सिविल सेवा का सदस्य है या राज्य के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, उस राज्य के राज्यपाल[3] के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।
(2) इस बात के होते हुए भी कि संघ या किसी राज्य के अधीन सिविल पद धारण करने वाला व्यक्ति, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल [4] के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है, कोई संविदा जिसके अधीन कोई व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का या संघ या राज्य की सिविल सेवा का सदस्य नहीं है, ऐसे किसी पद को धारण करने के लिए इस संविधान के अधीन नियुक्त किया जाता है, उस दशा में, जिसमें, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्यपाल [5] विशेष अर्हताओं वाले किसी व्यक्ति के सेवाएँ प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझता है, यह उपबंध कर सकेगी कि यदि करार की गई अवधि की समाप्ति से पहले वह पद समाप्त कर दिया जाता है या ऐसे कारणों से, जो उसके किसी अवचार से संबंधित नहीं है, उससे वह पद रिक्त करने की अपेक्षा की जाती है तो, उसे प्रतिकर दिया जाएगा।
(1) किसी व्यक्ति को जो संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का या राज्य की सिविल सेवा का संदस्य है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, उसकी नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा पदच्युत नहीं किया जाएगा या पद से नहीं हटाया जाएगा।
(ग) जहाँ, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में यह समीचीन नहीं है कि ऐसी जाँच की जाए।
(3) यदि यथापूर्वोक्त किसी व्यक्ति के संबंध में यह प्रश्न उठता है कि खंड (2) में निर्दिष्ट जाँच करना युक्तियुक्त रूप से साध्य है या नहीं तो उस व्यक्ति को पदच्युत करने या पद से हटाने या पंक्ति में अवनत करने के लिए सशक्त प्राधिकारी का उस पर विनिश्चय अंतिम होगा।
(1) [8][भाग 6 के अध्याय 6 या भाग 11] में किसी बात के होते हुए भी, यदि राज्य सभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा यह घोषित किया है कि राष्ट्रीय हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो संसद, विधि द्वारा, संघ और राज्यों के लिए सम्मिलित एक या अधिक अखिल भारतीय सेवाओं के [9][(जिनके अंतर्गत अखिल भारतीय न्यायिक सेवा है)] सृजन के लिए उपबंध कर सकेगी और इस अध्याय के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी ऐसी सेवा के लिए भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन कर सकेगी।
(2) इस संविधान के प्रारंभ पर भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के नाम से ज्ञात सेवाएँ इस अनुच्छेद के अधीन संसद द्वारा सृजित सेवाएँ समझी जाएँगी।
(3)[10]खंड (1) में निर्दिष्ट अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के अंतर्गत अनुच्छेद 236 में परिभाषित ज़िला न्यायाधीश के पद से अवर कोई पद नहीं होगा।
(4) पूर्वोक्त अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के सृजन के लिए उपबंध करने वाली विधि में भाग 6 के अध्याय 6 के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट हो सकेंगे जो उस विधि के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक हों और ऐसी कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।
(क) उन व्यक्तियों के, जो सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा या सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इन कौंसिल द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले भारत में क्राउन की किसी सिविल सेवा में नियुक्त किए गए थे और जो संविधान (अट्ठाइसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1972 के प्रारंभ पर और उसके पश्चात्, भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी सेवा या पद पर बने रहते हैं, पारिश्रमिक, छुट्टी और पेंशन संबंधी सेवा की शर्तें तथा अनुशासनिक विषयों संबंधी अधिकार, भविष्यलक्षी या भूतलक्षी रूप से परिवर्तित कर सकेगी या प्रतिसंहृत कर सकेगी;
(ख) उन व्यक्तियों के, जो सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा या सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इन कौंसिल द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले भारत में क्राउन की किसी सिविल सेवा में नियुक्त किए गए थे और जो संविधान (अट्ठाइसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1972 के प्रारंभ से पहले किसी समय सेवा से निवृत्त हो गए हैं या अन्यथा सेवा में नहीं रहे हैं, पेंशन संबंधी सेवा की शर्तें भविष्यलक्षी या भूतलक्षी रूप से परिवर्तित कर सकेगी या प्रतिसंहृत कर सकेगी :
परंतु किसी ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक, संघ या किसी राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्य अथवा मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पद धारण कर रहा है या कर चुका है, उपखंड (क) या उपखंड (ख) की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह संसद को, उस व्यक्ति की उक्त पद पर नियुक्ति के पश्चात्, उसकी सेवा की शर्तों में, वहाँ तक के सिवाय जहाँ तक ऐसी सेवा की शर्तें उसे सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा या सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इन कौंसिल द्वारा भारत में क्राउन की किसी सिविल सेवा में नियुक्त किया गया व्यक्ति होने के कारण लागू हैं, उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन करने के लिए या उन्हें प्रतिसंहृत करने के लिए सशक्त करती है।
(2) वहाँ तक के सिवाय जहाँ तक संसद, विधि द्वारा, इस अनुच्छेद के अधीन उपबंध करे इस अनुच्छेद की कोई बात खंड (1) में निर्दिष्ट व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन करने की इस संविधान के किसी अन्य उपबंध के अधीन किसी विधान-मंडल या अन्य प्राधिकारी की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।
(क) किसी प्रसंविदा, करार या अन्य ऐसी ही लिखत के, जिसे खंड (1) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति ने किया है या निष्पादित किया है, किसी उपबंध से या उस पर किए गए किसी पृष्ठांकन से उत्पन्न कोई विवाद अथवा ऐसे व्यक्ति को, भारत में क्राउन की किसी सिविल सेवा में उसकी नियुक्ति या भारत डोमिनियन की या उसके किसी प्रांत की सरकार के अधीन सेवा में उसके बने रहने के संबंध में भेजे गए किसी पत्र के आधार पर उत्पन्न कोई विवाद ;
(ख) मूल रूप में यथा अधिनियमित अनुच्छेद 314 के अधीन किसी अधिकार, दायित्व या बाध्यता के संबंध में कोई विवाद।
(4) इस अनुच्छेद के उपबंध मूल रूप में यथा अधिनियमित अनुच्छेद 314 में या इस संविधान के किसी अन्य उपबंध में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।
जब तक इस संविधान के अधीन इस निमित्त अन्य उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी सभी विधियां जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रवृत्त हैं और किसी ऐसी लोक सेवा या किसी ऐसे पद को, जो इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् अखिल भारतीय सेवा के अथवा संघ या किसी राज्य के अधीन सेवा या पद के रूप में बना रहता है, लागू हैं वहाँ तक प्रवृत्त बनी रहेंगी जहाँ तक वे इस संविधान के उपबंधों से संगत है।
- 314. [कुछ सेवाओं के विद्यमान अधिकारियों के संरक्षण के लिए उपबंध।] संविधान (अट्ठाइसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1972 की धारा 3 द्वारा (2-8-1972 से) निरसित।
- ↑ संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा प्रथम अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट राज्य अभिप्रेत है के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा या राजप्रमुख शद्बों का लोप किया गया।
- ↑ संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा यथास्थिति, उस राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख के स्थान पर उपरोक्त रूप में रखा गया।
- ↑ संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा या राजप्रमुख शद्बों का लोप किया गया।
- ↑ संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा या राजप्रमुख शद्बों का लोप किया गया।
- ↑ संविधान (पन्द्रहवाँ संशोधन) धिनियम, 1963 की धारा 10 द्वारा खंड (2) और खंड (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (बयालीसवाँ संशोधऩ) अधिनियम, 1976 की धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्दों का लोप किया गया।
- ↑ संविधान (बयालीसवाँ संशोधऩ) अधिनियम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।
- ↑ संविधान (बयालीसवाँ संशोधऩ) अधिनियम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।
- ↑ संविधान (अट्ठाईसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1972 की धारा 2 द्वारा (29-8-1972 से) अंतःस्थापित।
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29b46e4dd95de379dd79ad3ab92a2543ed062515bdceabc3cff3493b657e1941 | pdf | रक्षाबन्धन और पर्यापण
सत्य वातको स्वीकार करना चाहिये और समता भावसे ही असत्य बातका निराकरण करना चाहिये । यहाँ भाद्रपद शुक्ल १० के दिन पण्डितगणोंमें परस्पर कुछ वार्तालापकी विषमता हो गई । विपमताका कारण 'परमार्थसे हमारी प्रतिष्ठामे कुछ वट्टा न लगे' यद भाव था । तत्त्वसे देखो तो आत्मा निर्विकल्प है उसमे यशोलिप्सा ही व्यर्थ है । 'यश तो नामकर्मको प्रकृति है । यशसे कुछ मिलता जुलता नहीं है । जिस वक्ताने शास्त्रप्रवचनमें यशकी लिसा रक्खी उसका २ घंटे तक गन्नेकी नशें खींचना ही हाथ रहा, 'स्वाध्यायके लाभसे वह दूर रहा इसी प्रकार जिस श्रोताने वक्ताकी परीक्षाका भाव रक्खा या अपनी बात जमानेका अभिप्राय रक्खा उसने अपना समय व्यर्थ खोया । वक्ताका भाव तो यह होना चाहिये कि हम अज्ञानी जीवोंको वीतराग जिनेन्द्रकी सुनाकर सुमार्ग पर लगावें और श्रोताका भाव यह होना चाहिये कि वक्ताके श्रीमुखसे जिनवारणीके दो शब्द सुन अपने विषय कपायको दूर करें ।
पर्वके वाद आश्विन कृष्णा प्रतिपदा क्षमावणीका दिन था परन्तु जैसा उसका स्वरूप है वैसा हुआ नहीं । केवल प्रभावना होकर समाप्ति हो गई । परमार्थसे अन्तरमें शान्तिभावकी प्राप्ति हो जाना यही क्षमा है सो इस ओर तो लोगोंकी दृष्टि है नहीं केवल ऊपरी भावसे क्षमा माँगते हैं, एक दूसरेके गले लगते हैं। इससे क्या होनेवाला है ? और खास कर जिससे बुराई होती है उसके पास भी नहीं जाते उससे बोलते भी नहीं, इसके विपरीत जिससे बुराई नहीं उसके पास जाते हैं. उसके गले लगते हैं, उसे क्षमावरणी पत्र लिखते हैं आदि । यह सव क्या क्षमावणी उत्सवका प्राणशून्य ढाँचा नहीं है ?
आश्विन कृष्ण ४ सं० २००७ को मेरे जन्मदिनका उत्सव
था । पं० राजेन्द्रकुमारजी, पं० नेमिचन्द्रजी ज्योतिषाचार्य, पं० चन्द्रमौलिजी, पं० पञ्चरत्नजी. कवि चन्द्रसेनजी, पं० खुशालचन्द्रजी तथा राजकृष्णजी आदि बाहरसे आये। जयन्ती उत्सवोंमें जो होता है वही हुआ, सबने प्रशंसामें चार शब्द कहे और हमने नीची गरदनकर उन्हे सुना । दूसरे दिन रतनलालजी मादेपुरिया, महावीरप्रसादजी ठेकेदार दिल्ली तथा फीरोजाबादसे छदामीलालजी भी आये । छदामीलालजीने आग्रह किया कि आप फीरोजाबाद । हम कुछ करना चाहते हैं और अच्छा कार्य करेंगे। हम वहाँ एक सुन्दर मन्दिर और एक उद्योग विद्यालय खोलना चाहते हैं। पं० राजेन्द्रकुमारजी तथा खुशालचन्द्रजीने भी इस पर जोर डाला तथा यह आग्रह किया कि वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थके समर्पणका समारोह यहाँ न हो कर • फिरोजाबाद में ही हो । मैंने कहा कि अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पणकी बात मैं नहीं जानता पर आप लोगोंका यदि कुछ काम करनेका भाव है और मेरे वहाँ पहुँचनेमे वह फली - भूत होता है तो दीपावली बाद मैं चलूँगा । मेरा उत्तर सुन उ हें प्रसन्नता हुई।
सब लोग अपने अपने घर गये और पर्यूषणपर्व सम्बन्धी चहल-पहल भी जयन्ती उत्सव के साथ समाप्त हुई। मनमें व्यग्रताका अभाव हुआ तथा निम्नाङ्कित भावना प्रकट हुईचाहत जो मन शान्ति सुख तजहु कल्पना, जाल । व्यर्थ भरमके भूतमें क्यों होते वेहाल ॥ १ ॥ यह जगकी माया विकट जो न तजोगे मित्र ।
तो चहुँगतिके बीचमें पावोगे
दुख चित्र ।॥ २ ॥
इटावासे प्रस्थान
आख़िन कृष्णण = सं० २० ७ को राजकोटसे डाक्टर और मोहन भाई आये । तत्त्वचर्चाका अच्छा आनन्द रहा । निमित्त उपादान की चर्चा हुई। यद्यपि इस चर्चामें विशेष आनन्द नहीं परन्तु फिर भी लोग यही करते है। 'आत्माका कल्याण हो ' यह मुख्य प्रयोजन है । वह उपादानकी प्रधानतासे हो या निमित्तकी प्रधानतासे हो पर हो यही मुख्य उद्देश्य है। मेरी समझके अनुसार तो कार्यकी सिद्धिमें न केवल उपादान कुछ कर सकता है और न केवल निमित्त । जब दोनोंकी अनुकूलता हो तभी कार्यकी सिद्धि हो सकती है। कुम्भकारके व्यापारसे निरपेक्ष केवल मृत्तिकासे घटकी उत्पत्ति नहीं हो सकती और मृत्तिकासे निरपेक्ष केवल कुम्भकारके व्यापार से घटकी रचना नहीं हो सकती। दोनों सापेक्ष रह कर ही कार्य उत्पन्न कर सकते हैं ।
आश्विन कृष्ण १४ सं० २००७ को फिरोजाबादसे पं० माणिकचन्द्रजी न्यायाचार्य आये । प्रातः काल ८३ से १३ तक उनका प्रवचन की कथनशैली अच्छी है, उच्च कोटिके विद्वान् हैं, आपने श्लोकवार्तिकके ऊपर भाषा टीक - लिखी है। जिसका प्रथम भाग मुद्रित हुआ है । उसको हमने देखा, व्याख्या समीचीन प्रतीत हुई । आपके द्वारा यह अभूतपूर्व कार्य हो गया है ।
कार्तिक शुक्ला ६ सं० २००७ के दिन जबलपुरसे बहुत से मानव आये। सवने आग्रह किया कि जबलपुर चलिये । मैं संकोच वश कुछ निश्चित उत्तर नहीं दे सका किन्तु मनमें यह बात आई कि वहाँ जानेसे जनताका उपकार बहुत हो सकता है अतः जाना
अच्छा है । उस देशमें जानेसे दान अच्छा होगा तथा संस्थाएँ स्थिर हो जावेंगी ।
प्रतिदिन प्रातःकाल मन्दिरमे शास्त्रप्रवचन, मध्यान्हमें स्वकीय स्थान पर स्वाध्याय और रात्रिको मन्दिरमे प्रवचन यही क्रम यहाँ पर जब तक रहा चलता रहा । चतुर्मासकी समाप्तिके बाद मार्गशीर्ष कृष्ण पञ्चमीको इटवासे भिण्ड के लिये प्रस्थान कर दिया । जाते समय अनेक स्त्री-पुरुष आये । १०-११ माह यहाँ रहनेसे लोगोंके हृदयमे मेरे प्रति आत्मीय भाव उत्पन्न होगया था इसलिए जाते समय लोगोंको बहुत दुःख हुआ। मैंने कहा कि यह स्नेह ही संसार वन्धनका कारण है। यदि आप लोगोंने इतने समय तक जैनधर्मका कुछ सार ग्रहण किया है तो उसके अनुसार प्रथम तो किसी पर पदार्थ में इष्ट अनिष्टकी भावना ही नहीं होना चाहिये और यदि कारण वश किसीमें इष्ट अनिष्ट भावना हो भी गई है तो उसके वियोग तथा संयोगमें हर्ष विषादका अनुभव नहीं करना चाहिए। इस विषम संसारमें अनादिसे यह जीव पर पदार्थ में निजत्वकी कल्पना करता है । जिसमें निजत्व मानता है उसे अपनानेकी चेष्टा करता है, उसको किसी प्रकार बाधा न पहुॅचे ऐसा प्रयत्न संतत करता है । यदि कोई उसके प्रतिकूल हुआ तो उससे पृथक् होनेकी चेष्टा करता है । वन्धन ही दुःखका मूल है, बन्धन स्नेह - मोहमूलक है और मोहपर पदार्थों को अपना मानना एतन्मूलक है । इस संसार में अनन्त काल भ्रमरण करते हैं करते आज यह अलव्ध मनुष्य पर्यायका लाभ हुआ है। अथवा यह कथनमात्र है क्योंकि अनन्त वार मनुष्य पर्याय पाया पर्याय ही नहीं पाया अनन्तवार द्रव्यमुनि होकर अनन्तवार ग्रैवेयक तक गया जहाँ ३१ सागरकी आयु पाई, तत्त्व विचारमें समय गया किन्तु स्वात्मज्ञानसे वञ्चित रहा । अब अवसर अच्छा है यदि
इटावास प्रस्थान
अन्तरसे परिश्रम किया जावे तो
सभेद-ज्ञानका लाभ हो
सकता है । भेदज्ञान वह वस्तु है जिसके होते ही यह आत्मा अनन्त संसारके बन्धको छेद सकता है । भेदज्ञानके अभावमे जो हमारी दशा हो रही है वह हमको विदित है। उसके बिना ही हम परको अपना मानते हैं और निरन्तर यही प्रयास करते हैं कि वह पदार्थ हमारे अनुकूल रहे । पदार्थ २ तरहके हैं एक चेतन और दूसरे अचेतन । अचेतन पदार्थ तो जड़ हैं उनमे न तो राग है और न द्वेप है । वह न किसीका भला करते हैं और न किसीका बुरा करते हैं। हम स्वयं अपनी रुचिके अनुकूल उन्हें काल्पनिक बुरा भला मान लेते हैं। इसमें कारण हमारी रुचि भिन्नता है । यद्यपि यह निर्विवाद है कि सर्व पदार्थ अपने अपने परिणमनसे परत होते रहते हैं। कोई कर्ता परिणमन करानेवाला नहीं परन्तु तो भी हमारी ऐसी धारणा वन गई है कि अमुक निमित्त न होता तो यह न होता, क्योंकि लोकमे जो कार्य देखे जाते हैं वे सर्व ही उपादान और निमित्तसे ही आत्म-लाभ करते हैं। लोगोंका हित
पर निर्भर है परन्तु आप लोगोंने मुझे उसका निमित्त मान रक्खा है इसलिए मेरे वियोगमे आपको दुःखका अनुभव हो रहा है ।
जो संसार समुद्रसे है तरनेकी चाह । भेदज्ञान नौका चढो परकी छोड़ो हाह ।।
इटावासे १३ मील चल कर नलियाजी मिली । वहाँ तक बहुत लोगोंका समुदाय रहा । नलियाजीमें दो छोटे छोटे मन्दिर हैं, दर्शन किये । एक मन्दिरमें प्राचीन प्रतिविम्ब है, बहुत मनोज्ञ हैं किन्तु हाथ खण्डित है । एक समय ऐसा था जब यवनोंके द्वारा अनेक मन्दिर ध्वस्त किये गये । यवन धर्मानुयायी मूर्तितत्त्वको नहीं |
d77a70262f235dca0e7b1b9ddf7c02fdc9f609b5 | web | हालिया रिपोर्ट तालिबान सैन्य बलों और उसकी सीमा पर तैनात पाकिस्तानी सेना के बीच तनाव का संकेत देती है। 22 दिसंबर को अफ़ग़ान रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इनायतुल्ला ख़्वारज़्मी ने इस बात का ख़ुलासा किया था कि तालिबान सैन्य बलों ने पाकिस्तानी सेना को पूर्वी नंगरहार सूबे के साथ "ग़ैर-क़ानूनी" सीमा बाड़बंदी करने से रोक दिया था।
सोशल मीडिया में घूम रहे एक वीडियो में दिखाया गया है कि तालिबान सैनिकों ने कंटीले तार की फिरकी को ज़ब्त कर लिया है और तालिबान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सुरक्षा चौकियों पर तैनात पाकिस्तानी सैनिकों को सीमा पर बाड़ लगाने की कोशिश नहीं करने की चेतावनी दे दी है।
तालिबान के दो अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि सीमा पर हुई इस घटना को लेकर तालिबान और पाक सेना "आमने-सामने" हो गयी थी और स्थिति "तनावपूर्ण" थी। घटना के बाद 22 दिसंबर को उत्तर में कुनार सूबे की सीमा के पाकिस्तानी इलाक़े से सीमा पार मोर्टार भी फ़ायर किया गया था।
दिलचस्प बात यह है कि ये घटनाक्रम 19 दिसंबर को इस्लामाबाद में अफ़ग़ानिस्तान पर हुई ओआईसी (इस्लामिक देशों के संगठन) के मंत्रिस्तरीय बैठक के तुरंत बाद हुए थे। जहां ओआईसी मंत्रिस्तरीय बैठक पाकिस्तानी कूटनीति के लिहाज़ से एक बड़ी घटना थी, वहीं तालिबान के लिहाज़ से इसके बहुत कम मायने था। उनकी सरकार की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के मुद्दे पर भी कोई प्रगति नहीं हुई।
पाकिस्तानी विश्लेषकों के मुताबिक़, जहां इस्लामाबाद में दिखायी देने वाले तालिबान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी को पीछे की पंक्ति में जगह दी गयी थी, वहीं मेजबानों ने अपने ख़ुद की छवि को चमकाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया था।
उस सम्मेलन से सही मायने में अमेरिका के अलग-थलग पड़ जाने की स्थिति को थोड़ा दुरुस्त करने में मदद मिली थी, क्योंकि जो बाइडेन प्रशासन अब असरदार मुस्लिम देशों के साथ अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति को लेकर एक समन्वित नज़रिये का दावा कर सकता है। इसके लिए विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पाकिस्तान के प्रति अपना आभार जताया।
राजनीतिक लिहाज़ से तालिबान ने 2,611 किलोमीटर लंबी डूरंड रेखा पर बाड़ लगाने की बात तो दूर रही, इस डूरंड रेखा की वैधता को कभी मंज़ूर ही नहीं किया है, जो कि औपनिवेशिक शासन की विरासत है। लेकिन, यह पाकिस्तानी सेना की एक ऐसी प्रभावशाली परियोजना है, जिसे पाकिस्तानी चौकियों पर सीमा पार से होने वाले हमलों को रोकने को लेकर चार साल के दौरान भारी लागत से शुरू किया गया है।
इस बाड़ में चेन-लिंक बाड़ के दो सेट होते हैं, जो कि कांटेदार गोल तार के कॉइल्स होते हैं और इनके बीच की दूरी दो मीटर की होती है। यह डबल बाड़ तक़रीबन चार मीटर ऊंची है और सेना ने किसी भी गतिविधि को रोकने की ख़ातिर निगरानी कैमरे लगा रखे हैं। इस परियोजना की लागत 600 मिलियन डॉलर के आस-पास होने का अनुमान है।
इस मामले की सबसे अहम बात यह है कि इस बाड़ ने डूरंड रेखा को न सिर्फ़ एक ठोस रूप दे दिया है, बल्कि आख़िरकार इससे अफ़ग़ानिस्तान के साथ लगने वाली इस सीमा को वैधता मिलने की भी उम्मीद है।
काबुल की सत्ता पर अपनी पकड़ बनाये रखने को लेकर पाकिस्तानी सेना के समर्थन पर अपनी ज़रूरी निर्भरता को देखते हुए तालिबान चुप तो ज़रूर रहा, लेकिन शायद डूरंड रेखा पर बाड़ लगाने के पाकिस्तानी इरादे को भांप लिया था। तालिबान ने काबुल की सत्ता में आने के 100 दिनों के भीतर उस बाड़ की अनदेखी करना शुरू कर दिया है।
डूरंड रेखा पर 235 क्रॉसिंग पॉइंट्स अंकित किये गये हैं। तालिबान शायद इस क्षेत्र में रहने वाले पश्तून आदिवासियों के लिए एक खुली सीमा की उम्मीद कर रहा है। लेकिन, रावलपिंडी में स्थित जीएचक्यू (पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय) इसे लेकर कभी राज़ी नहीं होगा।
बुनियादी तौर पर ऐसा लगता है कि तालिबान अपना ज़रबरदस्त असंतोष दिखा रहा है, क्योंकि पाकिस्तानी सेना की ओर से उसे जो भारी-भड़कम उम्मीदें बंधायी गयी थी,वह धराशायी हो गयी हैं। सोवियत राजनीति पर चर्चिल के उस मशहूर रूपक को उधार लेते हुए अगर कहा जाय,तो डूरंड रेखा पर लगाये जा रहे बाड़ को लेकर की जाने वाली मुक्केबाज़ी दरअस्ल "नहीं दिखायी देने वाले आमने-सामने की लड़ाई" की तरह है।
सौ दिन बीत चुके हैं, लेकिन तालिबान को पाकिस्तान से मदद की जो उम्मीदें थीं,वह अब भी अधूरी हैं। ठीक है कि अफ़ग़ान अर्थव्यवस्था को मदद करने में पाकिस्तान की अपनी सीमायें हो सकती हैं। लेकिन, तालिबान सरकार को मान्यता देने को लेकर पाकिस्तान की अनिच्छा बहुत परेशान करने वाली रही है।
ज़ाहिर है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय काबुल की सत्ता व्यवस्था को मान्यता देने को लेकर अभी और इंतज़ार करने जा रहा है, हालांकि मानवीय सहायता का मिलना शुरू हो गया है। क्षेत्रीय देशों ने कमोबेश तालिबान सरकार (इसे मान्यता दिये बिना) के साथ अपनी संलग्नता की शर्तों का हिसाब-किताब लगा रखा है।
30 दिसंबर को काबुल में तालिबान अधिकारियों के साथ बातचीत को औपचारिक रूप देने वाले ईरान के बाद ऐसा करने वाला चीन दूसरा देश बन गया। चीन के विदेश मंत्रालय के एशियाई मामलों के विभाग के महानिदेशक लियू जिनसोंग ने तालिबान सरकार के विदेश मामलों के मंत्रालय के तीसरे राजनीतिक विभाग के महानिदेशक ज़ाकिर जलाली के साथ मानवीय सहायता और आर्थिक पुनर्निर्माण पर दो कार्य-स्तरीय प्रणालियों की पहली बैठक की सह-मेज़बानी की।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि यह अंतर-मंत्रालयी बैठक "दोस्ताना और व्यावहारिक माहौल में" आयोजित हुई। दोनों पक्षों ने मुख्य रूप से मौजूदा मानवीय स्थिति और आर्थिक पुनर्निर्माण पर विचारों का आदान-प्रदान किया...और सरकार के शासन के अनुभव के आदान-प्रदान को मज़बूत करने, सक्षम विभागों के बीच संचार और समन्वय बढ़ाने और बीआरआई सहयोग को आगे बढ़ाने पर सहमत हुए।
चीन ने जहां क्षमता निर्माण और कर्मियों के प्रशिक्षण में मदद की पेशकश की, वहीं तालिबान सरकार ने "अफ़ग़ानिस्तान में चीनी संस्थानों और कर्मियों के लिए सुरक्षा की गारंटी दी, और भविष्य में ज़्यादा से ज़्यादा चीनी निवेश किये जाने की उम्मीद जतायी।"
इसी तरह, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पिछले हफ़्ते कहा था कि तालिबान अधिकारियों की आधिकारिक मान्यता देना सही मायने में "फिलहाल समय से पहले" की बात है, मास्को पहले से ही काबुल के साथ कारोबार कर रहा है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि तालिबान सरकार नहीं नकारने जाने वाली एक "हक़ीक़त" है, हालांकि मान्यता दिये जाने का इंतज़ार करना चाहिए। लगभग यही नज़रिया ईरान का भी है।
निश्चित ही रूप से यह रूस, चीन और ईरान के लिए मुनासिब है कि वे अपनी नीतियों को अफ़ग़ानिस्तान की वास्तविकताओं के साथ समायोजित करें, जबकि अमेरिकी बाहरी बना रहे। चीन ने बीआरआई (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) परियोजनाओं और निवेश के मौक़ों पर चर्चा शुरू कर दी है।
इसी में पाकिस्तान की विकट परस्थिति भी निहित है। जहां पाकिस्तान काबुल में नया-नया हाकिम बना है,वहीं इसका मतलब यह भी है कि तालिबान के प्रति उसकी एक नैतिक ज़िम्मेदारी भी है, और काबुल में सरकार को मान्यता दिया जाना उस दिशा में पहला क़दम होना चाहिए।
तालिबान का कभी उस परवेज़ मुशर्रफ़ के साथ एक कड़वा अनुभव रहा है, जिन्होंने उसकी क़ीमत पर अमेरिका के साथ एक नया रिश्ता बनाने की कोशिश की थी। लेकिन,वाशिंगटन अब ज़ोर देकर कह रहा है कि जब तक प्रतिबंधित हक़्क़ानी जैसे शीर्ष तालिबान नेता काबुल में पद पर बने हुए हैं, तबतक वह रोके हुए पैसों को जारी नहीं करेगा।
आख़िर तालिबान सरकार को मान्यता न देकर पाकिस्तान क्या यह साबित करना चाहता है कि तालिबान उसकी पैदाइश नहीं है; अगस्त में तालिबान के काबिज होने में इसका कोई लेना-देना नहीं रहा है; वह तालिबान की विचारधारा से घृणा करता है; क्या वह वास्तव में चाहता है कि अफ़ग़ानिस्तान में प्रतिनिधि शासन हो ? इनमें से कोई भी धारणायें काम नहीं करेंगी।
विश्व जनमत को यह पता है कि किस तरह पाकिस्तान ने अपने इस कमज़ोर, संकटग्रस्त, नाज़ुक पड़ोसी देश में सत्ता को आगे बढ़ाया है और अफ़ग़ानिस्तान में खंडित नेतृत्व और गृह युद्ध की स्थिति का ग़ैर-मुनासिब फ़ायदा उठाते हुए इसे शायद अपूरणीय रूप से तोड़कर रख दिया है।
ऐसा नहीं कि यह सब 2001 में अमेरिकी हमले या 1980 में सोवियत हस्तक्षेप के साथ शुरू हुआ हो, बल्कि इसकी जड़ें पाकिस्तान के उस नौवें प्रधान मंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के ज़माने में है, जिन्होंने काबुल विश्वविद्यालय में उग्रवादी मुस्लिम युवा संगठन के कार्यकर्ताओं को 1974 में एक विद्रोह की तैयारी के लिए पाकिस्तान आने के लिए दावत दी थी।
आज मसला यह है कि कथित उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के हिस्से के रूप में स्वीकार किये जाने की अपनी लालसा में पाकिस्तानी अभिजात वर्ग तालिबान के संरक्षक के रूप में ख़ुद के देखे जाने में शर्म महसूस करता है।
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8cc4dace3f7362e47304f66f294b81cffa5a26fec5cc377585c509850f79c70e | pdf | उस क्षण से, जब लेविन ने मृत्यु- शय्या पर पड़े प्यारे भाई को देखते हुए पहली बार जीवन और मृत्यु के प्रश्नों को, उसके शब्दों में, उन नई आस्थाओं के अनुसार देखना शुरू किया, जिन्होंने बीस से चौंतीस वर्ष की आयु में अनजाने ही उसके बचपन तथा किशोरावस्था के विश्वासों की जगह ले ली थी, उस क्षण से वह मौत के सम्बन्ध में तो इतना नहीं, जितना ज़िन्दगी के बारे में - कि उसका स्रोत क्या है. उद्देश्य क्या है, वह किसलिये है और उसका रूप क्या है - मामूली-से - ज्ञान के अभाव के कारण स्तम्भित रह गया । शरीर, उसका नाश, पदार्थ की अनश्वरता, शक्ति-संरक्षण का नियम विकास - ये वे शब्द थे, जिन्होंने उसके पहले के विश्वास का स्थान ले लिया था। ये शब्द और इनके साथ जुड़ी हुई धारणायें बौद्धिक लक्ष्यों की दृष्टि से तो बहुत अच्छी थीं, किन्तु जीवन के लिये कुछ भी नहीं देती थीं। लेविन ने अचानक अपने को ऐसे व्यक्ति की स्थिति में अनुभव किया, जो फ़र-कोट के बदले में मलमल की पोशाक लेकर पहन लेता है और पहली बार पाले में जाने पर तर्क-वितर्क से नहीं, बल्कि अपने समूचे व्यक्तित्व से यह मानने को विवश हो जाता है कि वह नंगे जैसा ही है और उसका अवश्य ही यातनापूर्ण अन्त हो जायेगा ।
उस क्षण से, यद्यपि लेविन को इस बात की चेतना नहीं थी और वह पहले की तरह ही अपना जीवन बिताता रहा, वह अपनी इस अज्ञानता के कारण निरन्तर भय अनुभव करता रहा था ।
इसके अतिरिक्त वह अस्पष्ट रूप से यह भी अनुभव करता था कि जिस चीज़ को वह अपने विश्वास कहता था, वह केवल अज्ञानता ही नहीं, बल्कि सोचने का ऐसा ढंग था, ढंग था, जिसके अनुसार वह ज्ञान पाना सम्भव ही नहीं था, जिसकी उसे आवश्यकता थी ।
शादी के बाद के पहले समय में नई खुशियों और जिम्मेदारियों ने इन विचारों को पूरी तरह से उसके दिमाग़ से निकाल दिया, किन्तु पिछले समय में पत्नी के प्रसवकाल की समाप्ति के बाद, जब वह किसी काम के बिना मास्को में रह रहा था, यह प्रश्न अधिकाधिक बार तथा अधिकाधिक ज़ोर से समाधान की मांग करने लगा ।
उसके सामने प्रश्न यह था यदि मैं उन उत्तरों को स्वीकार नहीं करता हूं, जो मेरे जीवन के बारे में ईसाई धर्म देता है, तो मैं किन उत्तरों को मान्यता देता हूं ? " और उसे अपनी मान्यताओं के पूरे भण्डार में न केवल कोई उत्तर ही, बल्कि उनसे मिलता-जुलता भी कुछ नहीं मिल सका।
वह उस व्यक्ति के समान था, जो खिलौनों और बन्दूक़ों की दुकानों पर खाने-पीने की चीज़ों की खोज करता हो ।
अनचाहे और अचेतन रूप से वह अब हर पुस्तक, हर बातचीत और हर व्यक्ति में इन प्रश्नों से सम्बन्धित रवैये और इनके समाधान ढूंढ़ता ।
इस सिलसिले में जिस बात से उसे सबसे बड़ी हैरानी और दुख होता, वह यह थी कि उसके हलके और उम्र के लोग उसी की भांति अपनी पहली मान्यताओं की जगह नई आस्थाओं को स्वीकार करके उसमें कोई परेशानी नहीं अनुभव करते थे और पहले की भांति ही बिल्कुल खुश और शान्त थे । तो इस तरह मुख्य प्रश्न के अतिरिक्त उसे ये प्रश्न भी परेशान करते थे - ऐसे लोग निष्कपट हैं या नहीं ? वे ढोंग तो नहीं करते ? या फिर उसकी तुलना में वे अधिक स्पष्टता से उन उत्तरों को समझते हैं, जो उसे विह्वल करनेवाले प्रश्नों के लिये विज्ञान प्रस्तुत करता है ? और वह इन लोगों के विचारों तथा इन उत्तरों को अभिव्यक्ति देनेवाली किताबों को बहुत ध्यान से पढ़ता ।
जब से ये प्रश्न उसके मन का मन्थन करने लगे थे, तब से उसे यह पता चल गया था कि अपनी किशोरावस्था, अपने विश्वविद्यालय के हलक़े से सम्बन्धित स्मृतियों के आधार पर ऐसा निष्कर्ष निकालकर उसने ग़लती की थी कि धर्म का समय बीत चुका है और अब उसका कोई अस्तित्व नहीं रहा । अच्छा जीवन बितानेवाले और उसके सभी घनिष्ठ लोग भगवान में आस्था रखते थे । बूढ़े प्रिंस, ल्वोव, जो उसे बेहद पसन्द था, कोनिशेव भी, सभी महिलायें और उसकी पत्नी भी वैसे ही आस्था रखती थी, जैसे वह अपने बचपन की पहली अवस्था में। रूसी जनता के निन्यानवे प्रतिशत लोग ऐसे साधारण लोग आस्थावान थे, जिनका जीवन उसके मन में अधिकतम आदर- भावना पैदा
करता था।
दूसरी बात यह थी कि बहुत सी किताबें पढ़ने पर उसे इस बात का विश्वास हो गया था कि उसके समान दृष्टिकोण रखनेवाले लोग अपने विचारों को उससे कुछ अधिक नहीं समझते थे और अपने लिये कुछ भी स्पष्ट किये बिना उन प्रश्नों की ही अवहेलना कर देते थे जिनके उत्तर पाये बिना उसे यह अनुभव होता था कि वह ज़िन्दा नहीं रह सकता और बिल्कुल दूसरी ही समस्यायें हल करने की कोशिश करते थे, जिनमें उसे दिलचस्पी नहीं हो सकती थी । उदाहरण के लिये ऐसी समस्यायें थीं - प्राणियों का विकासक्रम और आत्मा की यन्त्रवत व्याख्या, आदि ।
इसके अलावा पत्नी के प्रसवकाल में उसके लिये एक असाधारण बात हुई थी। वह नास्तिक व्यक्ति भगवान को याद करने लगा था और ऐसा करते समय उसमें आस्था रख रहा था । वह समय बीत गया और अपनी उस समय की मनःस्थिति को वह अपने जीवन में कोई स्थान नहीं दे पा रहा था ।
वह इस बात को स्वीकार नहीं कर सकता था कि तब सत्य को जानता था और अब भूल कर रहा है, क्योंकि जैसे ही वह शान्त मन से इसके बारे में सोचना आरम्भ करता था, सब कुछ खण्ड-खण्ड होकर बिखर जाता था । वह यह भी नहीं स्वीकार सकता था कि उससे तब भूल हुई थी, क्योंकि अपनी उस समय की मनःस्थिति को मूल्यवान मानता था और उसे दुर्बलता का परिणाम कहकर वह उन क्षणों को कलुषित कर देता । वह स्वयं अपने मानसिक द्वन्द्व की यातना का शिकार था और इससे मुक्ति पाने के लिये अपनी आत्मा का पूरा ज़ोर लगा रहा था ।
ये विचार उसे कभी बहुत अधिक और कभी कम परेशान तथा व्यथित करते, मगर हमेशा उसके दिमाग़ में बने रहते । वह पढ़ता और सोचता और जितना अधिक पढ़ता तथा सोचता, खुद को अपने ध्येय से उतना ही अधिक दूर अनुभव करता ।
यह विश्वास हो जाने पर कि भौतिकवादियों से उसे उत्तर नहीं
मिलेगा, उसने पिछले समय में मास्को और देहात में प्लाटो, स्पिनोज़ा, कान्ट, शेलिंग, हेगेल और शोपेनहार - यानी उन दार्शनिकों को पढ़ा और फिर से पढ़ा, जो जीवन की भौतिकवादी ढंग से व्याख्या नहीं करते हैं ।
वह जब इन्हें पढ़ता या दूसरों की शिक्षा, विशेषतः भौतिकवा दियों की शिक्षा के खण्डन के तर्क सोचता, तो उसे ये विचार फलप्रद लगते । किन्तु ज्योंही वह समस्याओं के समाधान के बारे में पढ़ता या स्वयं ऐसे समाधानों के बारे में सोचता, तो हमेशा एक ही नतीजा उसके सामने आता। आत्मा, संकल्प, मुक्ति और तत्त्व जैसे अस्पष्ट शब्दों की उपलब्ध व्याख्याओं को मानते और जान-बूझकर शब्दों के उस जाल में फंसते हुए, जो दर्शनशास्त्र या वह स्वयं अपने लिये बिछाता था, वह मानो कुछ समझने लगता था । किन्तु विचारों की कृत्रिम धारा को भूलते और वास्तविक जीवन से उधर मुड़ते ही, जो निश्चित चिन्तन-धारा का अनुकरण करते हुए उसे सन्तोषजनक लगता था, उसकी यह कृत्रिम इमारत ताश के पत्तों के घर की तरह भहरा कर नीचे गिर पड़ती और यह स्पष्ट हो जाता कि उस इमारत को जीवन में तर्क-शक्ति से कुछ अधिक महत्त्व रखनेवाली चीज़ की अवहेलना करके शब्दों के हेर-फेर से ही खड़ा किया गया था ।
एक बार शोपेनहार को पढ़ते समय उसने संकल्प की जगह प्यार शब्द रख दिया और जब तक कि उसने इसका दामन नहीं छोड़ा, यह नया दर्शन दो दिन तक उसे सान्त्वना देता रहा । किन्तु जब उसने इसे वास्तविक जीवन की दृष्टि से देखा, तो यह भी धराशायी हो गया और ठण्ड से बचा सकने में असमर्थ मलमल की पोशाक जैसा प्रतीत हुआ ।
लेविन के भाई कोनिशेव ने उसे धर्मशास्त्र के बारे में खोम्याकोव की रचना पढ़ने का सुझाव दिया। लेविन ने खोम्याकोव का दूसरा खण्ड पढ़ा और उसकी विवादपूर्ण, बढ़िया तथा चुटकियां लेनेवाली शैली के बावजूद, जो शुरू में उसे अच्छी नहीं लगी, चर्च के बारे में उसकी शिक्षा से आश्चर्यचकित रह गया । आरम्भ में उसे इस विचार ने हैरान किया कि किसी एक व्यक्ति के लिये ईश्वरीय सत्यों को समझ पाना सम्भव नहीं, मगर चर्च द्वारा सूत्रबद्ध सभी लोग इसे मिलकर
समझ सकते हैं । उसे इस विचार से खास खुशी हुई थी कि लोगों की सभी आस्थाओं को समेट लेनेवाले विद्यमान और अब सजीव चर्च पर, जिसका शीर्ष भगवान होने के कारण पावन और पापमुक्त था, विश्वास करना अधिक आसान था । दूरस्थ, रहस्यपूर्ण भगवान और विश्व-रचना, आदि से शुरू करने के बजाय इसे ही प्रस्थान-बिन्दु बनाकर भगवान, उत्पत्ति, पतन और प्रायश्चित में विश्वास किया जा सकता था। किन्तु बाद में एक कैथोलिक लेखक तथा एक रूसी आर्थोडाक्स लेखक का चर्च-सम्बन्धी इतिहास पढ़ने के बाद और यह देखकर कि दोनों चर्च अपने सार में अमोघ होते हुए भी एक-दूसरे का खण्डन करते हैं वह चर्च के बारे में खोम्याकोव की शिक्षा से भी निराश हो गया और दर्शनशास्त्र की इमारत की तरह यह भी भहरा कर नीचे गिर गयी।
इस पूरे वसन्त में वह अपने से पराया-सा रहा और उसने बहुत ही भयानक क्षणों की यातना सही ।
यह जाने बिना कि मैं क्या हूं और किसलिये यहां हूं, जीना सम्भव नहीं। मगर मैं यह जान नहीं सकता और इसलिये नतीजा यही निकलता है कि मुझे जीना नहीं चाहिये, " लेविन अपने आप से कहता ।
अनन्त काल, अनन्त भूतद्रव्य और अनन्त विस्तार में जीव रूपी एक बुलबुला सामने आता है और कुछ समय तक क़ायम रहकर फट जाता है और यह बुलबुला हूं मैं ।
यह यातनापूर्ण झूठ था, किन्तु किन्तु यही इस दिशा में मानव के शताब्दियों के चिन्तन का एकमात्र और अन्तिम परिणाम था।
यही वह अन्तिम विश्वास था, जिस पर लगभग सभी क्षेत्रों में मानवीय चिन्तन की सारी खोजें आधारित थीं। यही प्रमुखतम धारणा थी और अन्य सभी धारणाओं की तुलना में अधिक स्पष्ट होने के कारण लेविन ने यह न जानते हुए कि कब और कैसे अनजाने ही इसी धारणा को ग्रहण कर लिया था ।
किन्तु यह झूठ ही नहीं, बल्कि बुराई की तथा किसी ऐसी घृणित शक्ति का ऐसा क्रूर व्यंग्य था, जिसके सामने झुकना उचित नहीं था ।
इस शक्ति के चंगुल से निजात पाना ज़रूरी था। और निजात |
0d1d4dc40821eb1b94ccbbc95ecd037edb76b96a | web | सबसे अप्रिय त्वचा रोगों में से एक हैमुँहासे और मुँहासे लेकिन इससे भी बदतर, जब वे एक सूक्ष्म परजीवी की वजह से होते हैं जो त्वचा पर रहता है। इसे डेमोडेक्स कहा जाता है और यह त्वचा वसा पर फ़ीड करता है। इसके लिए, यह त्वचा के नीचे चलता है, जिससे लवण और मुँहासे की उपस्थिति होती है। हालांकि रोग इतनी आम नहीं है, लेकिन यह बहुत अप्रिय है और बिना उचित उपचार के कारण त्वचा पर अपरिवर्तनीय परिवर्तन हो सकते हैं। इसलिए, दवा उद्योग में डेमोडक्टिक संक्रमण के उपचार के लिए कई दवाएं पैदा होती हैं। केवल एक डॉक्टर ही सही दवा लिख सकता है, क्योंकि टिक से छुटकारा पाने के बजाय मुश्किल है प्रभावी साधनों में से एक यह है कि तैयारी "Demodex Stop" की एक श्रृंखला है एक जटिल में उन्हें का उपयोग करते हुए, आप जल्दी से घुन के आगे गुणा और मुँहासे की उपस्थिति को रोका जा सकता है।
यह सूक्ष्म घुन 90% में त्वचा पर रहता हैदुनिया की जनसंख्या का आप इसे पशु बाल, पंख तकिए या ऊनी कपड़े पर पा सकते हैं। और मूल तौर पर इस टिकटिक से व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं होता है। लेकिन कुछ शर्तों के तहत, यह सक्रिय रूप से गुणा करना शुरू होता है। यह प्रतिरक्षा में कमी, हार्मोन संबंधी विफलताओं, अंतःस्रावी विकार, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारियों या सेबम की संरचना में परिवर्तन के साथ होता है। जोखिम समूह में उन लोगों को शामिल किया गया है जिन्होंने एंटीबायोटिक उपचार के एक लंबे समय के कोर्स किए हैं। टिक बढ़ने लगती है, त्वचा के नीचे चलती है, वसामय ग्रंथियों के स्राव पर खिलाती है। यह महसूस करना बहुत अप्रिय है कि आपके चेहरे पर परजीवी है खासकर क्योंकि इससे छुटकारा पाने के लिए काफी मुश्किल है, क्योंकि रोग कई वर्षों तक ले सकता है। इसलिए, बीमार लोग सबसे प्रभावी दवाएं खरीदना पसंद करते हैं। इनमें से एक "डेमोडेक्स स्टॉप" है, जो टिकटिक से छुटकारा पाने में मदद करता है।
चेहरे पर मुँहासे कई कारणों से हो सकता है। आप यह कैसे समझ सकते हैं कि उनकी उपस्थिति गंभीर परजीवी बीमारी का संकेत है?
- त्वचा की वसा की मात्रा बढ़ जाती है, और यह लाल हो जाती है;
- लाल लाल चकत्ते और मुंह;
- इस जगह की त्वचा खुजली से शुरू होती है, और रात में खुजली बढ़ जाती है;
- डेमोडिकोसिस के साथ मुँहासे चेहरे, पलकें, कभी-कभी सिर या हाथों पर होते हैं;
- त्वचा असमान हो गई, उसके रंग ने ग्रे-हरे रंग की टेंट हासिल कर ली, और रक्त वाहिकाओं में वृद्धि हुई;
- आकार और धड़कते में नाक बढ़ जाती है;
- चेहरे की मांसपेशियों के आंदोलन के साथ, दर्दनाक उत्तेजना पैदा होती है।
यदि इनमें से कोई लक्षण दिखाई देते हैं,आपको तत्काल एक डॉक्टर से मिलने चाहिए आमतौर पर प्रारंभिक अवस्था में "डेमोडेक्स स्टॉप" कॉम्प्लेक्स की सहायता से रोग आसानी से ठीक हो जाता है अधिक गंभीर मामलों में, मजबूत दवाओं के साथ लंबे समय तक उपचार की आवश्यकता होती है। व्यक्तिगत स्वच्छता के नियमों का पालन करना सुनिश्चित करेंः एक गर्म लोहे की तकिया और तौलिया के साथ दैनिक परिवर्तन या इस्त्री करना। स्वच्छ और सूखी त्वचा के लिए सभी दवाओं को लागू करना बहुत महत्वपूर्ण है। सफाई के लिए सबसे अच्छा विकल्प "स्टॉप डेमोडेक्स" (साबुन) है यह त्वचा को सूखा नहीं करता है और अन्य तरीकों के उपयोग के लिए इसे प्रभावी ढंग से तैयार करता है। डेमोडिकोसिस के इलाज की कठिनाई यह है कि घुन को एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति असंवेदनशीलता और उसके खिलाफ एक प्रभावी सल्फर विकसित होता है। इसलिए, आपको कड़ाई से डॉक्टर के निर्देशों का पालन करना चाहिए और इन घटकों, पौधे के अर्क और आवश्यक तेलों के अलावा, एक व्यापक उपचार लागू करना चाहिए। कॉस्मेटिक श्रृंखला डेमोडेक्स स्टॉप इन आवश्यकताओं को जवाब देती है चिकित्सीय प्रभाव के अलावा, श्रृंखला की दवाएं प्रभावी रूप से त्वचा को पुनर्स्थापित करती हैं और टिक की मौजूदगी के सभी निशान निकाल देती हैं।
कुछ समय पहले प्रभाव को बढ़ाने के लिएडिमोडिकोसिस की मुख्य दवाएं कॉस्मेटिक्स की एक श्रृंखला "स्टॉप डेमोडेक्स" बनाई गई थी। इसके उपयोग पर टिप्पणियों से संकेत मिलता है कि इन दवाओं की मदद से दवाओं का इस्तेमाल न किए जाने वाले रोगों का अक्सर सामना कर सकते हैं।
2। बाम "डेमोडेक्स स्टॉप" एक चिकित्सीय और रोगनिरोधी है प्रभावी रूप से सूजन के फॉजेस्ट से त्वचा को साफ करता है और उनके प्रकटन के बहुत कारण को नष्ट कर देता है - एक चमड़े के नीचे की पतली। इसके आवेदन के कुछ दिनों के बाद, स्थिति में एक उल्लेखनीय सुधार मनाया जाता है।
3. "डेमोडेक्स को रोकें" (पलक के लिए जेल) डिमोडक्टिक ब्हेफेराइटिस के लिए प्रयोग किया जाता है। यह प्रभावी रूप से खुजली और सूजन को हटाता है, त्वचा को पुनर्स्थापित करता है, सूजन को हटाता है।
4। लोशन "स्टॉप डेमोडेक्स" का मतलब अन्य तरीकों को लागू करने से पहले प्रारंभिक त्वचा की सफाई के लिए है। संयंत्र निष्कर्षों के अतिरिक्त, इसमें यूरिया शामिल है लोशन का उपयोग त्वचा को साफ करने और मॉइस्चराइज करने में मदद करता है, सेबम के उत्पादन को कम करता है और पुनर्जन्म प्रक्रियाओं को तेज करता है।
5। "डेमोडेक्स फ़िन कंट्रोल को रोकें" अंततः कोज को खत्म करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, इसके आगे की उपस्थिति को रोकने और क्षतिग्रस्त त्वचा को पुनर्स्थापित करने के लिए बनाया गया है। यह एक अद्वितीय संरचना के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। उन घटकों के अलावा जो श्रृंखला के सभी तरीकों के लिए जरूरी है, इसमें कोलेजन, एक बड़ी मात्रा में विटामिन, फलों एसिड और प्लेकेन्ट हाइडोलाइजेट शामिल हैं।
6। इसके अलावा, प्रारंभिक इलाज के लिए, आपको "डेमोडेक्स स्टॉप" बूंदों का भी उपयोग करना चाहिए जो आंतरिक रूप से लिया जाता है वे केवल विषाक्त पदार्थों के शरीर को साफ करने में मदद नहीं करते, बल्कि अपनी सुरक्षा बल भी बढ़ाते हैं, और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के काम को भी विनियमित करते हैं। यह संरचना में सल्फर की मौजूदगी, साथ ही साथ एक्चेंसिआ, यरो और कैलेंडुला के अर्क के कारण प्राप्त किया जाता है।
इस श्रृंखला में दवाओं की अधिक प्रभावशीलताएक अद्वितीय संरचना के लिए धन्यवाद एंटीबायोटिक मेट्रोनिडाजोल और सल्फर के अतिरिक्त, जो कीड़े को मारने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, इन फंडों में अन्य घटक होते हैंः
- ग्लिसरॉल को त्वचा के सामान्य जल संतुलन बनाए रखने के लिए बनाया गया है और यह नरम बनाता है;
- पेपरमिंट निकालने में एनाल्जेसिक और एंटीसेप्टिक प्रभाव होता है। यह त्वचा को ताज़ा करती है और खुजली को दूर करती है;
- कैमोमाइल निकालने एक विरोधी भड़काऊ एजेंट के रूप में कार्य करता है;
- हाइलूरोनिक एसिड त्वचा पर एक सुरक्षात्मक फिल्म बनाता है, जिससे कोशिकाओं को स्वतंत्र रूप से खुद को सुधारने की अनुमति मिलती है;
डीमोडिकोसिस का इलाज करने के लिए, यह सबसे पहले आवश्यक हैउस कारण को खत्म करना जिसके कारण यह हुआ ऐसा करने के लिए, जठरांत्र संबंधी मार्ग का इलाज किया जाता है, हार्मोनल और अंतःस्रावी विकार ठीक होते हैं। यह व्यक्तिगत स्वच्छता के नियमों का पालन करना आवश्यक है, उचित पोषण के सिद्धांतों का पालन करें और सक्रिय रूप से उपचार कार्यक्रम "स्टॉप डेमोडेक्स" को लागू करें। यह निम्नलिखित में शामिल हैः
- साबुन से त्वचा को शुद्ध करें;
- चिकित्सीय क्षेत्रों पर लागू करें निवारक बाम या जेल "रोकें उन्मूलन खत्म नियंत्रण";
- यदि टिक ने खोपड़ी को मारा, तो आपको इसे एक विशेष शैम्पू "स्टॉप डेमोडेक्स" से 2-3 बार एक सप्ताह में धोना चाहिए;
- पलक झेल के उपचार में, आपको पहले कैलेंडुला की एक टिंचर के साथ उन्हें साफ करना होगा।
- आईलिनर लगाने से पहले, प्रभावित त्वचाकैलेंडुला या नीलगिरी के टिंचर के साथ इलाज किया जाना चाहिए इसके अलावा, यह परजीवी के प्रजनन को रोकने के लिए श्रवण द्वार पर भी लागू किया जाना चाहिए।
- "डीमोडेक्स को रोकें" (बाम) इसके अलावा में हैमेट्रोनिडाजोल भी बिर्च टार, इसलिए, रोगियों के अनुसार, यह एक बहुत ही अप्रिय गंध है का प्रयोग करें जटिल में आवश्यकः साबुन के साथ त्वचा को साफ करने के बाद, और एक विशेष लोशन लगाने के बाद।
लोग कॉस्मेटिक श्रृंखला के बारे में अलग तरह से जवाब देते हैं"रोकें demodex" प्रत्येक दवा के लिए कीमत उच्च नहीं है - लगभग 200 rubles। लेकिन यदि आप एक व्यापक उपचार पाने के लिए पूरी श्रृंखला खरीदते हैं, तो आपको एक प्रभावशाली राशि मिलती है। हालांकि मेरे स्वास्थ्य पर कोई दया नहीं है, अगर दवा का उपयोग वास्तव में 100% परिणाम होता है लेकिन यह बिल्कुल काम नहीं करता है। रोगियों के अनुसार, इस श्रृंखला के प्रभावी माध्यम केवल बीमारी के प्रारंभिक चरण में हैं। डॉक्टरों ने एंटीबायोटिक दवाओं वाली मजबूत दवाएं निर्धारित कीं और यह कॉस्मेटिक श्रृंखला उनके साथ मिलकर उपयोग करना बेहतर है।
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5786aa7aa9a395cf0939bfc338bc7f407db10e89 | web | खेल संस्कृति और खेल फेडरेशन के प्रशासन में राजनीतिक दख़ल रोकने के लिए बड़े बदलाव की जरूरत है. ( Image Source : PTI )
पिछले कुछ दिनों से देश के कई नामी-गिरामी पहलवान दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन कर रहे थे. ये सभी पहलवान भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं. इन लोगों ने बृजभूषण शरण सिंह पर एक नाबालिग समेत कई महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है. दूसरी तरफ बृजभूषण शरण सिंह बार-बार इन आरोपों को बेबुनियाद और राजनीतिक साजिश का हिस्सा बताते आ रहे हैं.
इसके साथ ही 28 मई को जब एक तरफ देश को नया संसद भवन मिल रहा था, ठीक उसी दौरान जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे पहलवानों को दिल्ली पुलिस जबरदस्ती बस में डालकर ले जा रही थी. दिल्ली पुलिस का कहना है कि ये कार्रवाई तब की गई, जब पहलवानों और उनके समर्थकों ने सुरक्षा घेरा तोड़कर नए संसद भवन की ओर कूच करने की कोशिश कर रहे थे.
हालांकि पुलिस कार्रवाई में जिस तरह की तस्वीरें सामने आई, वो देश की छवि के साथ ही खेल संस्कृति के लिए भी चिंतनीय विषय है. इस पर केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर की ओर से भी प्रतिक्रिया आई कि प्रदर्शन को जंतर-मंतर तक सीमित रखने तक पहलवानों को छुआ तक नहीं गया. उनका कहना है कि प्रदर्शनकारियों को तय स्थान पर विरोध प्रदर्शन करने से किसी ने नहीं रोका है. अनुराग ठाकुर ने कहा कि पहलवानों के आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक पहले ही प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है और अब पहलवानों को आगे आकर अपना बयान दर्ज कराना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि जांच पूरी होने पर उचित कार्रवाई की जाएगी.
भारत के पहले ओलंपिक व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 28 मई को जंतर-मंतर पर जो कुछ भी हुआ, उसकी निंदा की है. देश के शीर्ष पहलवानों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई को सही नहीं बताते हुए उन्होंने कहा है कि इस तरह की भयावह छवियां देखकर उनकी नींद उड़ गई थी और वह डर गए थे. देश के बाकी और खिलाड़ियों ने भी प्रतिक्रिया दी हैं.
इन सबके बीच एक बड़ा सवाल उठता है कि देश में जिस तरह की खेल संस्कृति है, उसको देखते हुए क्या स्पोर्ट्स सेक्टर में किसी बड़े बदलाव की जरूरत है. रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जिन पहलवानों ने मोर्चा खोल रखा है, वे कोई छोटे-मोटे खिलाड़ी नहीं हैं. इनमें 2016 के रियो डि जेनेरियो ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली पहलवान साक्षी मलिक, 2020 टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले बजरंग पुनिया शामिल हैं. इनके अलावा 2019 के वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक, कॉमनवेल्थ खेलों में तीन स्वर्ण पदक और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहलवान विनेश फोगाट शामिल हैं. कहने का मतलब है कि ये सभी खिलाड़ी ओलंपिक और विश्व चैंपियनशिप में पदक विजेता रह चुके हैं.
इस मामले में कौन सही है या कौन ग़लत है, ये तो जांच का विषय है. लेकिन हमारे यहां खिलाड़ियों की ओर से यौन शोषण का आरोप लगना कोई नई बात नहीं है. कभी कोच पर कभी स्पोर्ट्स फेडरेशन या एसोसिएशन के अधिकारियों पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं और इनकी लंबी सूची भी है. ये जरूर है कि किसी भी खेल फेडरेशन के अध्यक्ष को लेकर शायद इतना बड़ा मुद्दा यौन शोषण को लेकर इससे पहले नहीं बना है. जनवरी से देश के ये तमाम शीर्ष पहलवान बृजभूषण शरण सिंह पर कार्रवाई को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. ये अलग बात है कि इसके बावजूद सरकार की ओर से उनके खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि भारत में खेल तो खिलाड़ी और एथलीट खेलते हैं, लेकिन खेल से जुड़ी संस्थाओं पर राजनीतिक पकड़ शुरुआत से ही बहुत ज्यादा रही है.
भारत अब दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है. हम आर्थिक मोर्चे पर भी नित नई-नई इबारत गढ़ रहें है. दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था से अब तीसरी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन इस सबके बीच एक कड़वा सच ये भी है कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल के मामले में अभी काफी पीछे हैं.
दुनिया का सबसे बड़ा खेल आयोजन या प्रतियोगिता ओलंपिक को माना जाता है और ओलंपिक के इतिहास को उठाकर देखें तो हम इसमें काफी निचले पायदान पर आते हैं. ऐसे तो भारत आजादी के पहले से ओलंपिक में हिस्सा लेते आ रहा है. पहली बार 1990 के पेरिस ओलंपिक में ब्रिटिश इंडियन एथलीट रेसर नॉर्मन प्रिचर्ड भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए दो सिल्वर मेडल जीता था.
हालांकि भारत की ओर से पहली ऑफिशियल टीम 1920 में बेल्जियम के एंटवर्प ओलंपिक में गई थी. इसके बाद से 2020 टोक्यो ओलंपिक को मिलाकर हम 100 साल के भीतर महज़ 33 मेडल ही हासिल करने में कामयाब हो पाए हैं. उसमें भी इन 33 मेडल में से 12 मेडल हॉकी से आए हैं और 7 मेडल कुश्ती से आए हैं. हमें आजादी मिले 75 साल से ज्यादा हो गए हैं. इस दौरान 19 बार ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ है और भारत को इन 19 बार के ओलंपिक में कुल मिलाकर सिर्फ़ 30 पदक ही हासिल हुए हैं.
टीम स्पर्धा को छोड़ दें तो ओलंपिक के व्यक्तिगत स्पर्धा में तो हम और भी पीछे हैं. पहला व्यक्तिगत पदक हमें 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में मिला था. पहले व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक के लिए हमें 2008 तक इंतजार करना पड़ा. 2008 के बीजिंग ओलंपिक में निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने देश को पहला व्यक्तिगत गोल्ड मेडल दिलाया था.
पिछली बार टोक्यो ओलंपिक में हम 7 पदक जीतने में कामयाब रहे थे और ये ओलंपिक में भारत का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा था. हालांकि इसमें कोई गोल्ड मेडल शामिल नहीं था. हम 2020 टोक्यो ओलंपिक में 48वें पायदान पर रहे थे. इससे पहले हमने सबसे अच्छा प्रदर्शन 2008 के बीजिंग ओलंपिक में किया था. उस वक्त हम अभिनव बिंद्रा के गोल्ड के साथ 3 पदक हासिल करते हुए 51वें पायदान पर रहे थे. पदकों की संख्या के लिहाज से लंदन ओलंपिक 2012 दूसरा सबसे अच्छा ओलंपिक रहा था, जब हमने 6 पदक हासिल किए थे. जिसमें कोई भी गोल्ड मेडल नहीं था.
ओलंपिक में पदकों की संख्या ये बताने के लिए काफी है कि हर तरह से तरक्की के बावजूद हम खेलों की दुनिया में कितने पीछे खड़े हैं. इसके लिए सबसे बड़ा कारण ये है कि इतने सालों में हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबला करने के लिए देश में उस तरह की खेल संस्कृति बनाने में नाकाम रहे हैं. इसके तहत हम न तो ऐसी खेल नीति बना पाए, न ही खेलों का बुनियादी ढांचा तैयार कर पाए, जो देश के हर बच्चे को शुरुआत से ही आसानी से सुलभ हो सके.
दिल्ली में एशियन गेम्स 1982 के आयोजन के पहले इंदिरा गांधी सरकार की ओर से युवा मामलों और खेल के लिए अलग से एक मंत्रालय बनाया गया. आजादी के 37 साल बाद 1984 में राष्ट्रीय खेल नीति आई और उसके 17 साल बाद फिर से राष्ट्रीय खेल नीति 2001 आई.
जो सबसे बड़ी समस्या थी कि खेल से जितने भी जुड़े फेडरेशन या एसोसिएशन हैं, उनमें शुरुआत से ही राजनीतिक दखल काफी रहा है. देश में फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त स्पोर्ट्स फेडरेशन (NSFs) की संख्या 60 से ज्यादा है. इनमें से कई फेडरेशन के शीर्ष पदों पर लंबे वक्त से राजनीति से जुड़े लोगों का कब्जा रहा है.
ताजा विवाद को देखते हुए ही बात करें तो बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह 2011 से रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं. 2019 में वे लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए चुने गए थे. उसी तरह से एनसीपी नेता प्रफुल पटेल दिसंबर 2020 तक ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ फुटबॉल (AIFF) के लगातार 12 साल तक अध्यक्ष रहे. इससे पहले इस फुटबॉल फेडरेशन के 1989 से लेकर 2008 तक कर्ता-धर्ता कांग्रेस नेता प्रियरंजन दासमुंशी रहे थे. उसी तरह से बीजेपी सांसद अनिल जैन फिलहाल ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं.
उसी तरह से जनार्दन गहलोत 1984 से लेकर 2013 तक एमेच्योर कबड्डी फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे थे. उसी तरह से फिलहाल बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बीजेपी नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा है. उसी तरह से के. गोविंदराज बास्केटबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष है. कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा 2018 में जूडो फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बने थे. वॉलीबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बीजेडी सांसद अच्युतानंद सामंत हैं. कांग्रेस नेता सुरेश कलमाडी को हर लोग जानता है कि कैसे वे देश के कई खेल संगठनों के शीर्ष पदों पर लंबे वक्त तक काबिज रहे थे.
ये हाल तो तब है जब पिछले 7-8 सालों में सुप्रीम कोर्ट ने खेल फेडरेशन के प्रशासन में सुधार पर कई निर्देश दिए हैं. लंबे वक्त से मांग की जाती रही है कि खेल फेडरेशन के प्रशासन में राजनीतिक दखल कम हो और उसमें पूर्व खिलाड़ियों की हिस्सेदारी बढ़े. बीच-बीच में सुप्रीम कोर्ट भी निर्देश देते रहा है कि खेल संस्थाओं में चुनाव निष्पक्ष हो और इसके प्रशासन पर किसी एक ही व्यक्ति का दबदबा नहीं बना रहना चाहिए. इन सबके बावजूद भी अभी देश में मौजूद खेल फेडरेशन और एसोसिएशन में पूरी तरह से उन दिशानिर्देशों को लागू नहीं किया जा सका है.
भारत में खेल और उससे जुड़ी संस्थाओं पर राजनीतिक पकड़ का जो सिलसिला रहा है, वो भी देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए खिलाड़ियों को तैयार करके लिए पर्याप्त खेल संस्कृति विकसित नहीं करने का एक बहुत बड़ा कारण रहा है. ज्यादातर खेल फेडरेशन पर किसी एक राजनीतिक व्यक्ति या उसके परिवार का कब्जा होने से उस संस्था के प्रशासन पर भी असर पड़ता है.
खेल संस्कृति को बढ़ावा देने में एक अहम पहलू है शुरुआत से ही खिलाड़ी को वैसा माहौल मिले, जिससे उनका मानसिक संतुलन काफी मजबूत हो और उन्हें किसी भी तरीके से खेल के अलावा बाकी दूसरी चीजों से नहीं जूझना पड़े. इनमें बुनियादी सुविधाओं के साथ ही वैसे माहौल की भी जरूरत है, जहां पर हर खिलाड़ी बिनी किसी भेदभाव के अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सके. इसमें यौन शोषण जैसी प्रताड़ना से बचाव के लिए पर्याप्त मैकेनिज्म बनाने की जरूरत है.
भारत में स्पोर्ट्स गतिविधि केंद्रीय स्तर पर युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय के अधीन आता है. देश में राष्ट्रीय स्तर पर फिलहाल कोई खेल विकास कानून नहीं है. केंद्रीय खेल मंत्रालय ही संबंधित खेलों के फेडरेशन को मान्यता देता है. ऐसे तो संविधान की सातवीं अनुसूची में स्पोर्ट्स राज्य सूची की इंट्री 33 में शामिल है. देश में आजादी के बाद से ही केंद्रीय स्तर पर खेल नीति और खेल से जुड़े कानून को लेकर जितनी गंभीरता की दरकार थी, वो नहीं दिखा.
ऐसा नहीं है कि देश में केंद्रीय स्तर पर खेल विकास कानून बनाने की मांग नहीं उठी है. 2011 में भी इसकी कोशिश की गई थी. हालांकि तमाम दलों के नेताओं की ओर से इस विधेयक का विरोध किए जाने के बाद कैबिनेट से इसे मंजूरी नहीं मिली थी. उस वक्त भी इस पर बहस चली थी कि खेल फेडरेशन से राजनीतिक दखलंदाजी को कम किया जाए. बिल के जरिए इसकी कोशिश की जानी थी. उस वक्त पूर्व खिलाड़ियों ने कहा था कि खेल संघों की प्रशासनिक इकाइयों में खिलाड़ियों का एक चौथाई होना जरूरी हो.
खेल से जुड़े फेडरेशनों में पारदर्शिता लाने के मकसद से किए जा रहे इस मुहिम को उस वक्त कामयाबी नहीं मिली थी. उस वक्त कई नेताओं ने ये दलील दी थी कि खेल विकास विधेयक से खेल संगठनों की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा. खेल विधेयक के जरिए ये भी सुनिश्चित किया जाना था कि फेडरेशन या एसोसिएशन में प्रशासक 70 साल की उम्र के बाद न रह सकें और उनका कार्यकाल भी दो बार सीमित करने का प्रावधान था.
मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता वाले कार्य समूह ने राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक का ड्राफ्ट भी तैयार किया. हालांकि इस पर आगे बात नहीं बढ़ी. उस वक्त कई वरिष्ठ नेताओं ने इस बिल की निंदा की. 1979 से आर्चरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया को संभाल रहे बीजेपी नेता वीके मल्होत्रा भी उन नेताओं में शामिल थे. सबसे बड़ी बात है कि इस तरह के किसी भी बिल के खिलाफ सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष के कई नेता एक साथ थे. यहीं वजह थी कि उस वक्त केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन को खेल संस्थाओं में सुधार की दिशा में अपने कदम पीछे खींचने पड़े.
हालांकि कहने को तो केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खेल विकास संहिता 2011 (NSDCI) को लागू किया. इसके जरिए कोशिश की गई कि खेल फेडरेशन में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव और काम हो सके. इसके जरिए फेडरेशन में पदाधिकारियों की उच्चतम उम्र से लेकर कार्यकाल की सीमा तक तय करने की कोशिश की गई. 2010 से ही खेल से जुड़े मान्यता प्राप्त संस्थानों और फेडरेशन में सालाना आधार पर मान्यता प्रक्रिया अनिवार्य कर गई. ऐसी व्यवस्था की गई कि NSDCI के प्रावधानों का पालन करने वाले खेल फेडरेशन को ही को हर साल मान्यता दी जाएगी.
हालांकि इस खेल विकास संहिता को अपनाने में हर फेडरेशन या एसोसिएशन की ओर से हिचकिचाहट दिखाई जाती रही है. खेल प्रशासक के कार्यकाल और उम्र सीमा को तय करना का जो भी प्रयास इस संहिता के जरिए किया गया, अभी भी उस पर मुस्तैदी से अमल नहीं हो पाता है.
नरेंद्र मोदी सरकार में भी राष्ट्रीय खेल विकास कानून के लिए कोई ज्यादा प्रयास नहीं दिखा. ये बात दीगर है कि जनवरी 2017 में खेल सचिव इंजेती श्रीनिवास की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी, जिसे देश में मौजूदा स्पोर्ट्स फ्रेमवर्क और खेल शासन से संबंधित मुद्दों पर सिफारिशें देनी थी. एक तरह से 2011 के बाद फिर से खेल विकास संहिता तैयार करने के मकसद ये कमेटी बनाई गई थी.
दिसंबर 2021 में खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने संसद में कहा था कि मंत्रालय के पास राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक पेश करने का कोई प्रस्ताव नहीं है. हालांकि फिट इंडिया अभियान के जरिए ये सरकार देश में खेल संस्कृति को बढ़ावा देने की कोशिश जरूर कर रही है. लेकिन ओलंपिक जैसे खेल आयोजनों में जिस तरह की प्रतिस्पर्धा होती है, उसको देखते हुए ये पहल काफी नहीं है.
जिस तरह से खिलाड़ियों ख़ासकर महिला खिलाड़ियों को यौन शोषण से जूझना पड़ता है, वो भी फेडरेशन के कोच या फिर पदाधिकारियों से ही, उसको देखते हुए इस दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर तंत्र की जरूरत है. यौन उत्पीड़न से जुड़े बहुत सारे मामले तो बाहर आ ही नहीं पाते हैं. खिलाड़ियों में करियर खत्म होने का भय और सामने बैठे रसूखदार लोगों का डर इसके पीछे बड़ी वजह है. जो मामले सामने आते भी हैं, उनमें फेडरेशन के भीतर मौजूद मैकेनिज्म के जरिए या तो लीपा-रोती ज्यादा होती है या फिर उन पर प्रतिक्रिया या कार्रवाई बहुत ही धीमी और नाकाफी होती है.
ताजा विवाद को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि खेलों में महिलाओं की भागीदारी और बढ़ाने के लिए यौन शोषण से जुड़ी शिकायतों के लिए एक उचित तंत्र की जरूरत है, जिस पर खिलाड़ियों को पूरा भरोसा हो. संबंधित अथॉरिटी के पास घटनाओं की रिपोर्टिंग तत्काल हो सके, ऐसा भी माहौल बनाए जाने की जरूरत है. ये राष्ट्रीय खेल विकास कानून बनाकर किया जा सकता है.
खेल फेडरेशन और संस्थाओं को ज्यादा पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की जरूरत है. पर्याप्त बुनियादी ढांचे के विकास और उसकी उपलब्धता की जरूरत है. यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों के लिए पर्याप्त तंत्र की जरूरत है. खेल प्रशासन को ऐसा बनाने की जरूरत है, जिस पर किसी एक शख्स का वर्चस्व न हो जाए. ये सारे मुद्दे ऐसे हैं जिसका समाधान तभी निकल सकता है, जब केंद्रीय स्तर पर नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट लॉ बनाया जा सके.
एक बड़ृी कमी रही है . . खेल संबंधी विवादों के निपटारे के लिए तंत्र की. ये मामले सामान्य अदालतों में सुलझाए जा सकते हैं, लेकिन इस प्रकार के विवादों में जरूरी विशेषज्ञों की कमी की वजह से ये प्रक्रिया काफी लंबी और सुस्त हो जाती है. 1983 में बने कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय खेल विवाद समाधान निकाय है. खेलों के लिए अलग से मजबूत विवाद समाधान तंत्र की जरूरत को देखते हुए 2011 में भारतीय खेल पंचाट न्यायालय (ICAS) की स्थापना की गई थी. हालांकि ये उस तरह से प्रभावी नहीं रहा. इसको देखते हुए बाद में सुप्रीम कोर्ट ने खेल विवाद समाधान तंत्र में तत्काल सुधारों की जरूरत बताई थी. इसके बाद 2021 में स्पोर्ट्स आर्बिट्रेशन सेंटर ऑफ इंडिया बनाया गया. हालांकि इस दिशा में भी अभी और ठोस कदम उठाने की जरूरत है.
भले ही स्पोर्ट्स राज्य सूची का विषय है, लेकिन राष्ट्रीय हित में संसद को इस सूची से संबंधित विषयों पर भी कानून बनाने का प्रावधान संविधान में मौजूद है. अगर हमें सचमुच देश में ऐसी खेल संस्कृति का विकास करना है, जिससे भविष्य में हम ओलंपिक जैसे खेल आयोजन में भी बड़ी ताकत बनकर उभरे, तो इस दिशा में जल्द ही राष्ट्रीय खेल विकास कानून जैसे कदम उठाने की जरूरत है.
(यह आर्टकिल निजी विचारों पर आधारित है)
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a5c9486eac6f82d3f1ddd25bfab7ef3ad8f20f4f2e97c3d532ad676525cf20dd | pdf | जे के मेहता (J K Mehta 1901-1980)
जेके गेहता सक्षिप्त परिचय
भारतीय आध्यात्मिक परम्परा के अनुशीलकर्ता व उसकी महान परम्परा के परिप्रेक्ष्य म अर्थशास्त्र के दृष्टा विश्व प्रसिद्ध भारतीय अथशास्त्री जे के मेहता का जन्म 25 दिसम्बर 1901 का राजनद गाव म हुआ। ज क मेहता का पूरा नाग जमशद केखुशरो ( Jamshed Kaiklusroo Mehta ) था। उनके पिता खुशरोमनचर्जी महता बम्बई क एवं मध्यमवर्गीय परिवार स थ । जक मेहता की प्रारम्भिक शिक्षा राजनन्द गाव म हुई। हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त उन्होने मूर सेन्ट्रल कॉलज लाहाजद में प्रवेश लिया व गणित अग्रेजी व अर्थशास्त्र के विषया के साथ स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की। 1925 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए अर्थशास्त्र की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा वही शाधककार्य में सलग्न हो गये ।
• 027 में चार माह उन्हान क्राइस्ट चर्च कॉलेज (Christ Church College ) कानपुर में अध्यापन कार्य किया तथा शीघ्र ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवक्ता (अर्थशास्त्र) के रूप में उनकी नियुक्ति हो गयी। कुछ समय उपरान्त ज क महता वडी रीडर हो गय। 1951 में वे प्राफेसर व विभागाध्यक्ष बन गये तथा 36 वर्ष तक इस पद पर रहे। विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य के उपरान्त 1963 मे सेवनिवृत्ति हो गये परन्तु विश्वविद्यालय अनुदान आयाग दिल्ली ने उनकी सराहनीय सवाआ को दृष्टिगत रखते हुए उन्ह यूजीसी प्रोफसर ऑफ इकॉनामिक्स (UGC Professor of EconomICS) नियुक्त किया। प्राजक मेहता न एतदर्थ इलाहाबाद विश्वविद्यालय को ही चयन किया ओर 1963 से 1669 तक पद पर रहे। 1968 में प्रो जे के महता भारतीय आर्थिक परिषद (Indian Economic Association) के अध्यक्ष भी रहे। प्रो जेक मेहता आजीवन अर्थशास्त्र के अध्ययन व अध्यापन से जुड़ रहे और सपूर्ण अवधि में लेखन कार्य में सलग्न रह । अर्थशास्त्र के अन्तर्गत उनके अप्रतिम योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सक्ता उनके द्वारा लिखित पुस्तके निम्न प्रकार हैं
1 Groundwork of Economics
2-Studies in Advanced Economic Theory
3- Public Finance
4-Lectures on Modern Economic Theory 5-Economic Problems of Modern India
6-A Philosophical Interpretation of Economics 7-Economics of Growth
8-A Guide of Modern Economics
9-Economic Development Principles and Problems 10-Foundation of Economics
11- Principles of Exchange
12-Elements of Economics-Mathematically in terpreted 13-Macro Economics
14-Rhyme,Rythm and Truth in Economics
अर्थशास्त्र की परिभाषा व क्षेत्र (Definition and Scope of Econmmics)
मानव व्यवहार जो कि अर्थशास्त्र की विषय वस्तु है मस्तिष्क के असन्तुलन की स्थिति का परिणाम है। मस्तिष्क के असतुलन की स्थिति इसलिए है क्योंकि यह अनावश्यक ही इस पर कार्य कर रही शक्तियों से प्रभावित है। यह इसलिए भी है कि ससार प्रतिक्रिया स्वरूप हमे उत्तेजित कर रहा है कि हमारा मस्तिष्क अशान्त स्थिति मे है। एक मस्तिष्क जो कि प्रतिक्रिया स्वरूप उत्तेजना प्रदान नही कर सकता, पूर्ण विश्राम की स्थिति में होगा और निश्चयपूर्वक सतुलन की स्थिति में भी होगा। मस्तिष्क का असतुलन हमारे चारों तरफ फैले हुए ससार के विरुद्ध विरोध स्वरूप हमारे मानसिक स्व ( Mental Self) की जागृति का प्रतीक है !'
प्रो जेके मेहता ने बताया कि बाहरी उत्प्रेरणाओ पर भिन्न-भिन्न मष्तिष्क भिन्न-भिन्न रूपेण प्रतिक्रिया करते हैं। कुछ परिस्थितियों में उत्प्रेरणाओं का समूह इस प्रकार की क्रिया प्रदान करता है तो दूसरी परिस्थिति में अन्य प्रकार की क्रिया प्रदान करता है। कुछ परिस्थितियों में ये उत्प्रेरणाएँ किसी प्रकार की भी क्रिया को जागृत नही कर पाती । यद्यपि यह परिस्थिति बहुत कम पायी जाती है। जो व्यक्ति उच्च श्रेणी के आध्यात्मिक विकास को प्राप्त कर लेते हैं उन्हें किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया प्रभावित नहीं कर पाती है ।
प्रो मेहता ने मानव मस्तिष्क की सूक्ष्म विवेचना करते हुए स्पष्ट शब्दो मे कहा कि यह तो मानव मस्तिष्क का नियम है कि वह असतुलन (Disequuhbrium) को नामसद करता है तथा संतुलन की प्राप्ति के लिए संघर्ष करता है। हमारी शारीरिक एव मानसिक दोनों ही गतिविधियों सतुलन की प्राप्ति के साधर्ष (Means) है। असतुलन की स्थिति की चेतना दुख है। चेतना की असतुलन की स्थिति में कमी या सतुलने की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने को सुख कहा जा सकता है। इस पकार दुख का निवारण ही सुख
है। प्रारंभिक दुःख जितना अधिक होगा उसके निवारण पर सुख भी उतना ही अधिक होगा। अधिकतम सुख की प्राप्ति हेतु दुःख को न्यूनतम करना होगा।
प्रो जे के मेहता ने समस्त दुखो का मूलकारण आवश्यकता (Want) को बताया है। समस्त क्रियाएँ था गतिविधियाँ इसलिए सम्पन्न होती है क्योकि आवश्यकता का अस्तित्व होता है। उन्होंने कहा कि जब मस्तिष्क असतुलन की स्थिति में होता है तथा सतुलन के लिए संघर्ष करता है तो यह कहा जा सकता है कि यह सतुलन चाह रहा है। इस प्रकार आवश्यक्ता व दुःख दोनो साथ-साथ उपस्थिति होते हैं। जब तक आवश्यकता असतुष्ट रहती है दुख विद्यमान रहता है तथा इसके निवारण की प्रक्रिया सतुष्टि या सुख ( Pleasure) उत्पन्न करती है। जब आवश्यकता का पूर्ण निवारण हो जाता है तो किसी भी प्रकार का दुख शेष नही रहता तथा और अधिक सुख प्राप्ति की कोई सभावना भी शेष नही रह जाती तथा यह स्थिति मस्तिष्क के सतुलन का परिचायक है। जहाँ न दुय है न सुख वरन् पसन्नता (Happiness ) है। इस प्रकार प्रसन्नता को हम इस यथार्थ की चेतना कह सकते है कि हमारा मानसिक स्व (Mental Self) सतुलन की स्थिति में है। 3
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मानसिक रद के असतुलन से दुख की अनुभूति होती है तथा इस असतुलन के निवारण से सुख की अनुभूति होती है। इस प्रकार सतुलन की प्राप्ति हमारी मूलभूत आवश्यकता है। इस मूलभूत आवश्यकता की प्राप्ति हेतु तद्नुरूप संतुलन की प्राप्ति हेतु हमे ऐसे प्रयास करने होंगे जहाँ हमारा मष्तिष्क वातावरण विरोध का अत कर सके। इस विशिष्ट स्थिति की प्राप्ति हेतु दो मार्ग है-' प्रथम मार्ग के अन्तर्गत मस्तिष्क की इच्छानुसार वातावरण परिवर्तित किया जाए। इस मार्ग का अनुसरण करने पर हमे चारो ओर व्याप्त ससार को पुर्नव्यवसिथ्त करना होगा। वस्तुत यह साधनो के उपयोग से सम्बन्धित है। साधनो के उपयोग हेतु प्रयास करना होगा और प्रयास अनिवार्य रूप से विभिन्न क्रियाओ का परिचायक है। ये क्रियाए वस्तुत वातावरण के प्रति मानव मस्तिष्क की प्रतिक्रिया है। हमारा मस्तिष्क शरीर के माध्यम से प्रतिक्रिया करता है। जब मस्तिष्क असतुलन की स्थिति में होता है तो शरीर भे कुछ निश्चित परिवर्तनो का कारण होता है जिसका कि परिणाम साधनो का उपयोग कहा जा सकता है।
द्वितीय मार्ग के अनुसार मस्तिष्क को इस प्रकार ढाला जाय कि वह वातावरण से व्याकुल ही न हो । इस मार्ग के अंतर्गत हम आतरिक रच को इस प्रकार परिवर्तित कर सतुलन स्थापित करते हैं कि हमारा मरित्क वातावरण से प्रभावित ही नहीं होता तथा इसे किसी प्रकार का विरोध व्यक्त करने की आवश्यकता ही शेष नहीं रह जाती । इस विधि का अनुपालन अधिक चठिन है। हममे से अधिकाश यह नही जानने कि हमारे स्व का कौनसा भाग मस्तिष्क को शिक्षित कर सकता है ताकि वह कार्य कर रही बाह्य
। शक्तियों को वश मे कर लें। यहाँ किसी प्रकार का विरोध या निग्रह नही होगा। मस्तिष्क को प्रतिक्रिया व्यस्त करने से रोका नही जायेगा वरन् उसे इस प्रकार परिवर्तित किया जायेगा कि वह प्रतिक्रिया व्यक्त ही न करें। धर्म व दर्शन हमे इस सदर्भ में पर्याप्त शिक्षा प्रदान कर सकते हैं।
प्रो जेके मेहता भारतीय धर्म व दर्शन के एक प्रखर मनीषी थे। भारतीय धर्म व दर्शन में उनकी गहन आस्था ही नही वरन् तदनुरूप उन्होंने स्वयं के जीवन को ढाला भी। प्रो. मेहता ने एक ओर अर्थशास्त्री के रूप मे अर्थशास्त्र के सिद्धातो का गहन अध्ययन किया व दूसरी ओर वे भारतीय धर्म व दर्शन के प्रकाण्ड पडित व मर्मज्ञ थे। उन्होने अर्थशास्त्र के विद्यार्थी होने के उपरान्त भी जीवनस्तर (Standard of Living) की तुलना में जीवन मूल्यों (Life Standard ) पर बल दिया। ऋषि, मुनियो की भाँति वे सत्य की खोज में सलग्न रहे। वे एकमात्र अर्थशास्त्री थे जिन्होने भारतीय आध्यात्म के परिप्रेक्ष्य मे अर्थशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया । उन्होने अर्थशास्त्र को भारतीय आघ यात्मवादी परम्परा के परिप्रेक्ष्य में देखा व प्रस्तुत किया।
प्रो जेके मेहता की गाँधी जी के 'सादा जीवन उच्च विचार' मे गहन आस्था थी। गाँधी जी का भी कहना था कि हमे आवश्यकताओं को कम से कम करना चाहिये । आवश्यकताए तो अनन्त है हम उन्हें जितना बढायेगे उतनी ही बढती चली जाएगी। गाँधी जी के शब्दों में यह मन उस चचल पक्षी के समान है जिसे जितना मिलता है, उतनी ही ज्यादा इसकी भूख बढ़ती जाती है और अंत मे फिर भूखा का भूखा रहता है। इसलिए इच्छाओ की सीमाओं का अत्यन्त विस्तार करना और फिर उनकी पूर्ति के लिए हाय-हाय करना मात्र एक भ्रम और जाल प्रतीत होता है। सभ्यता का सच्चा अर्थ अपनी इच्छाओ को बढ़ाना नहीं बल्कि सप्रयास कम करना है।
प्रो जे के मेहता ने आध्यात्मवादी दृष्टिकोण के कारण उपर्युक्त दो सभव मार्गों में से द्वितीय मार्ग को चुना । उन्होने बताया कि अर्थशास्त्रियो ने एक नियम की भाति सतुलन हेतु प्रथम मार्ग पर बल दिया है। यह माना गया है कि संसाधनों के समुचित उपयोग के माध्यम से ही असतुलन का दूर किया जा सकता है। लेकिन प्रो मेहता ने प्रथम मार्ग का विरोध करते हुए स्पष्ट शब्दो मे कहा है कि यह सत्य है कि साधनो के समुचित उपयोग के माध्यम से मस्तिष्क के असतुलन को कुछ समय के लिए तो दूर किया जा सकता है लेकिन पूर्ण सतुलन की प्राप्ति इसके द्वारा असभव है। प्रथम मार्ग मे पूर्ण सतुलन अल्पावधि में भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। प्रथम मार्ग से असतुलन दूर करने की प्रक्रिया कुछ नये असतुलन उत्पन्न करती है। प्रत्येक कार्य जो कि वर्तमान इच्छा या आवश्यकता को दूर करने के लिए किया जाता है नई आवश्यकता को जन्म देता है। एक आवश्यकता की सतुष्टि दूसरी आवश्यकता को जन्म देती है।
प्रो मेहता ने स्पष्ट किया कि केवल प्रथम मार्ग का अनुसरण करने पर अर्थशास्त्र
मानव व्यवहार का अध्ययन है जिसके अन्तर्गत सतुलन की प्राप्ति हेतु या आवश्यकताओ की पूर्ति हेतु साधना का उपयोग समाहित हे मानवीय क्रियाएँ- शारीरिक व मानसिक दोनों ही अर्थशास्त्र की विषय वस्तु है। ये मानवीय क्रियाएँ वस्तुत सतुलन की प्राप्ति का साधन (Means) है । इस प्रकार सतुलन की प्राप्ति साध्य (End) तथा मानवीय क्रियाएँ साध्य की प्राप्ति हतु साधन (means) है। प्रथम मार्ग का अनुसरण करने पर पूर्ण सतुलन की प्राप्ति असभव हे और इस यथार्थ की स्थिति मे मानवीय व्यवहार का उद्देश्य जितना सभव हा सके सतुलन के निकट पहुॅचना है। इस प्रकार स मानवीय क्रियाएँ जिनका कि अर्थशास्त्र म अध्ययन किया जाता है इस स्थिति को पाने का साधन मात्र है।
मानवीय क्रियाएँ साधनों के उपयोग द्वारा सतुलन की बिंदु की प्राप्ति का माध्यम हे साधनो के विभिन्न उपयोग हे उनका उपयोग निश्चित तरीके से किया जाता है । प्रत्येक व्यक्ति लक्ष्य की प्राप्ति हतु साधनो के उपयोग के एक विशिष्ट तरीके का चयन करता है। एक अर्थशास्त्री इस उपयोग के चयन हेतु आधारभूत नियम बनाते समय मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। आधारभूत नियमो का निर्धारण इसलिए सभव है क्योंकि वे वास्तव म पाये जाते हैं। सभी व्यक्त्यिो के मस्तिष्क की बाह्य शक्तियों के प्रति प्रतिक्रिया लगभग समान ही होती है तथा एक मानव की प्रतिक्रिया सभी समय एक समान होती है। ये आधारभूत नियम चयन प्रक्रिया में मानव को सहायता प्रदान करते हैं। अर्थशास्त्री इन आधारभूत नियमो की खाज करते हैं तथा ये आधारभूत नियम या सिद्धान्त मिलकर अर्थशास्त्र या आर्थिक सिद्धात ( Economic Theory ) का निर्माण करते हैं।
प्रो मेहता के अनुसार अर्थशास्त्री सभी आधारभूत नियमो के अन्तर्गत मानवीय साधनो को इस प्रकार निर्दिष्ट करते हैं कि अधिकतम सतुष्टि की प्राप्ति हो सके। अधिकतम सतुष्टि की प्राप्ति का आधार यह है कि मानव सतुलन चाहता है। सतुलन को प्राप्त करने हेतु असतुलन को दूर करना होता है। असतुलन का निराकरण या निवारण दुख निवारण के सदृश्य है। पुनश्च दुख निवारण सुख की प्राप्ति ही है। अधिकतम सभव सुख दुख के न्यूनतमकरण (Mimumisation of pain) द्वारा सभव हो पाता है और जब दुख न्यूनतम होगा तब हम अतिम साध्य सतुलन के निकटतम होगे J
प्रो मेहता ने स्पष्ट किया कि अधिकतम सुख की प्राप्ति का निर्धारण करते समय प्रथम मार्ग का अनुसरण कारने वाले अर्थशास्त्री समय तत्त्व पर ध्यान नहीं देते उनके अनुसार समय तत्त्व का भी एक विशिष्ट स्थान है। यह अधिक महत्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति वर्तमान में सतुलन प्राप्त करना चाहता है या अतत भविष्य म प्राप्त होने वाले पूर्ण सतुलन पर बल देता है। व्यक्ति वर्तमान में कम सतुलन (Less equlibrilum) को प्राथमिकता देता है तथा भविष्य मे वृहत्तर सतुलन (Greater equilibrium) को प्राथमिकता प्रदान करता है। यह भी विचारणीय है कि क्या व्यक्ति भविष्य की कीमत पर आज के सतुलन पर ही बल देता है। इन सभी प्रश्ना के समाधान के समय हमारे समक्ष समय अधिमान
की समस्या आ जाती है। प्रो मेहता के अनुसार यह सत्य है कि हम वर्तमान मे रहते है। हमारी सारी मानसिक प्रक्रियाएँ वर्तमान अनुभव एव अनुभूतियों के अधीन होती है तथा हम वर्तमान से जुड़े होते हैं न कि मृत भूता या अजन्मे भविष्य से । यही कारण है कि हम वर्तमान को अधिक प्राथमिकता प्रदान करते हैं लेकिन प्रो मेहता ने वर्तमान की अपेक्षा भविष्य के पूर्ण सतुलन पर अधिक बल दिया। भविष्य को अधिक प्राथमिकता देने का कारण है कि भविष्य वर्तमान मे स्पष्ट परिलक्षित होता है। हमे भविष्य का विचार होता है और अधिकाश व्यक्ति भविष्य की प्रत्याशा में वर्तमान में निर्णय लेते हैं । भविष्य की सुखद कल्पना की जाती है, निकट भविष्य में आने वाली खुशिया वर्तमान मे हमारे मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है। मस्तिष्क के मनोवैज्ञानिक विश्लेषणार्थ वर्तमान के साथ- साथ भविष्य पर भी बल दिया जाना आवश्यक है। भविष्य का विश्लेषण वर्तमान के लिये उपयोगी है।
प्रो मेहता ने द्वितीय मार्ग का अनुसरण किया तथा वर्तमान व भविष्य दोनो को दृष्टिगत रखते हुए निरपेक्ष व पूर्ण सतुलन पर बल दिया। अधिकतम सतुष्टि या सुख व की प्राप्ति के स्थान पर प्रसन्नता (Happiness) पर बल दिया है। प्रो मेहता के शब्दो में हम स्वतंत्रता पूर्वक कह सकते हैं कि समस्त व्यवहार का उद्देश्य या तो मानसिक सतुलन की स्थिति को प्राप्त करना है, या दुख को न्यूनतम स्तर पर पहुॅचाना हे या सुख को अधिकतम करना है, या अधिक स्पष्ट शब्दो मे अतिम ध्येय प्रसन्नता (Happiness ) की प्राप्ति है। असतुलन दु खमय है। असतुलन को दूर करने की प्रक्रिया या सतुलन पर पहचने की प्रक्रिया सुखमय है। निरपेक्ष सतुलन की प्राप्ति पर मानसिक स्थिति प्रसन्नता की परिचालक है। सुख ओर दुख असतुलन के सहवर्ती है। दुख असन्तुलन जुड़ा है तथा सुख इसके निवारण के साथ जुड़ा है। इस प्रकार सुख या सतुष्टि इस तथ्य की मानसिक अनुभूति है कि निरपेक्ष या पूर्ण सतुलन की प्राप्ति हेतु एक निश्चित प्रक्रिया जारी है। प्रसन्नता इसकी परिणति है तथा सुख इसकी प्रतीती मात्र है। हमे सुख का अनुभव तभी होता है जब हम यह जानते हैं कि हम प्रसन्नता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। हम प्रसन्नता का अनुभव तभी करते हैं जब हम यह जानते हैं कि हमें किसी प्रकार का न तो कोई दुख है, न कोई आवश्यकता है और न ही किसी भी प्रकार का कोई असन्तुलन है।
प्रो मेहता के अनुसार हमारी सुख-दुख की गणनाएँ व मानव व्यवहार का अध्ययन हमारे वर्तमान जीवन क्रम के यथार्थ से जुड़ा हुआ है। व्यक्ति सतुलन के लक्ष्य की प्राप्ति में प्रयासरत रहता है। लक्ष्य की प्राप्ति हेतु साधनों का उपयोग कर अधिकाधिक आवश्यकताओं से मुक्ति चाहता है। समस्त आवश्यकताओं से मुक्ति की स्थिति में ही लक्ष्य प्राप्त हो सकता है अन्य शब्दों में आवश्यकता विहीनता (Wantlessness) की स्थिति मे ही लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है जिसके लिए व्यक्ति संघर्ष करता है।
प्रो मेहता के अनुसार आवश्यकता विहीनता की स्थिति मानव व्यवहार का वास्तविक लक्ष्य है। इसे प्राप्त करने हेतु हमे समस्त आवश्यकताओं से मुक्ति पानी होगी यदि हम वर्तमान मे सभी आवश्यकताओं से मुक्ति पा लेंगे तो भविष्य मे प्रसन्नता ही प्रसन्नता होगी। लेकिन प्रो मेहता ने स्पष्ट किया है कि समस्त आवश्यकताओं से एक साथ मुक्ति नहीं हो सकती। हमे इन आवश्यकताओं को इस प्रकार कम करत जाना है कि पुन वे हमारे समक्ष न आये तथा आवश्यकता विहीनता की स्थिति प्राप्त हो जाये । हमे एतदर्थ नई-नई आवश्यकताओं की उत्पत्ति को वर्तमान में निषेध करना होगा अन्यथा भविष्य मे आवश्यकता विहीनता की स्थिति हमें प्राप्त नहीं हो सकती। इस आवश्यकता विहीनता की स्थिति की प्राप्ति हेतु समस्त मानव व्यवहार अर्थशास्त्र विज्ञान की विषय वस्तु है।
प्रो जेके मेहता ने पूर्ण व निरपेक्ष सतुलन आवश्यकता विहीनता की प्राप्ति हेतु समुचित मार्ग निम्न चित्र वी सहायता से प्रस्तुत किया है।
चित्र-1 के अन्तर्गत एक विश्रामगृह है जो कि अतिम ध्येय आवश्यकता विहीनता का द्योतक है प्रारम्भिक बिंदु से इस विश्रामगृह को जाने वाले मार्ग सभी दिशाओं में फैले हुए हैं जो यह बता रहे हैं कि लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विभिन्न साधन या मार्ग है। चित्र में दर्शित यात्री वह व्यक्ति है जिसकी क्रियाएँ विचार-विमर्श हेतु हमारे समक्ष है। वह व्यक्ति विश्रामगृह पर विभिन्न भागों में से किसी का भी चयन कर पहुच सकता है। लेकिन प्रो मेहता के अनुसार एक मार्ग ही ऐसा है जो उसे सतत रूप से विश्रामगृह पर ले जाता है। यह मार्ग चित्र मे चिन्हित (Arroowed) है व गहरी रेखाओं के रूप मे दृश्य है। इस मार्ग के अतिरिक्त बोई भी मार्ग लक्ष्य की प्राप्ति हेतु भार्ग नहीं है। प्रत्येक मोड़ पर विश्राम गृह की ओर जाने वाले उचित अनुचित मार्ग दोनो ही हैं। विश्राम गृह पर हम अनुचित मार्ग को अपना लेने पर भी पहुच सकते है लेकिन अतत हमे उचित मार्ग का ही अनुसरण करना पडेगा अत समीचीन यही होगा कि हम प्रारंभ से ही उचित मार्ग को अपनाएँ । कोई भी व्यक्ति A या B स्थिति से प्रारम्भ होने की स्थिति में भी अतत उचित मार्ग पर चलकर ही विश्राम गृह पर पहुँच सकता है।
प्रो मेहता की दृष्टि मे सर्वोत्तम व्यवहार वही है जो व्यक्ति को विश्राम गृह के
उतना ही निकट ले जाये जितना सभव हो । अर्थशास्त्र के अंतर्गत हम उस मानव व्यवहार का अध्ययन करते हैं जो विश्राम गृह पर पहुॅचाने हेतु किया जाता है। 10
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रो जे के मेहता ने अतिम ध्येय (पूर्ण व निरपेक्ष सतुलन) आवश्यकता विहीनता की प्राप्ति हेतु मानव व्यवहार को अर्थशास्त्र की विषय वस्तु बताया है। उन्होंने विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा अपनाए जा रहे मार्ग, मानव व्यवहार लक्ष्य व अर्थशास्त्र की विषयवस्तु को स्पष्ट करते हुए स्वय द्वारा प्रस्तुत मार्ग लक्ष्य व तद्नुसार अर्थशास्त्र की विषय वस्तु को अध्यारोपित किया है। यह कार्य उन्होने वैज्ञानिक अर्थशास्त्री की भाँति सफलतापूर्वक किया है। अर्थशास्त्र को भी उन्होने उपर्युक्त परिपेक्ष्य में ही परिभाषित किया है।
प्रो. मेहता द्वारा प्रदत्त अर्थशास्त्र की परिभाषा -
प्रो मेहता भारतीय दार्शनिक व आध्यात्मिक परपरा का अनुसरण करते हुए स्वय द्वारा पूर्ण सतुलन प्राप्ति हेतु द्वितीय मार्ग- मस्तिष्क को इस प्रकार ढाला जाए कि वह वातावरण से व्याकुल ही न हो का वरण करते हुए अर्थशास्त्र को परिभाषित किया है। उनके द्वारा प्रदत्त परिभाषा निम्न प्रकार है -
'अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जो उस मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है जो कि आवश्यकता विहीन स्थिति के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्रयत्न करता है।
(Economics is a Science that studies human behaviour as a means to the end of wantlessness )
आवश्यकता विहीन स्थिति, जैसा कि पूर्व में ही स्पष्ट किया जा चुका है, दुख के न्यूनतमकरण व प्रसन्नता की स्थिति की परिचायक है और प्रो मेहता ने इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए अधिक स्पष्ट शब्दों मे अर्थशास्त्र को निम्न शब्दो मे परिभाषित
किया है।
'अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जो उस मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है जो दीर्घकाल मे दुख को न्यूनतम करने के प्रयास के रूप में किया जाता है अथवा दूसरे शब्दों में, आवश्यकताओ से मुक्ति पाने और प्रसन्नता की स्थिति तक पहुँचने के प्रयास के रूप में किया जाता है।
(Economics is.therefore, the science that studies human behaviour as the effort to minimise pain in the long run of in other works. as an endeavour to gain freedom, from wants and reach the state of happiness)
प्रो मेहता की परिभाषा से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र, आवश्यकता विहीन स्थिति की प्राप्ति हेतु किये जाने वाले समस्त मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। यह मानव को आवश्यकता के बधन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। आवश्यकताओ से मुक्ति एक साथ प्राप्त नहीं की जा सकती। इसकी प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम निम्नस्तरीय आवश्यकताओ की अपेक्षा उच्च स्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होगी। प्रो मेहता के अनुसार निम्न
स्तरीय आवश्यकताओ के स्थान पर उच्चस्तरीय आवश्यकताओं को अपना लेने से निम्न स्तरीय आवश्यकताएँ स्वत ही समाप्त हो जाती हैं। प्रो मेहता ने इस सदर्भ में एक उदाहरण भी दिया है कि घटिया फिल्म देखने की अपेक्षा उत्तम साहित्य पढना चाहिये । आवश्यकता विहीन स्थिति की प्राप्ति पूर्ण व निरपेक्ष सतुलन की प्राप्ति है जहाँ न दुय है न सुख है वरन प्रसन्नता ही प्रसन्नता है। आवश्यकता विहीन स्थिति हमे निर्वाण (Nirvana) का मार्ग प्रशस्त करती है। निर्वाण एक आधारभूत सत्य (Fundamental Truth) है।
प्रो मेहता व प्रो रोबिन्सन की अर्थशास्त्र की परिभाषाओं की तुलना
प्रो जेके मेहता की अर्थशास्त्र की परिभाषा की तुलना यदि हम अन्य अर्थशास्त्रियो द्वारा प्रदत्त परिभाषाओ से करे तो वैचारिक दृष्टि यह प्रो रॉबिन्स की परिभाषा के अधिक निकट है। प्रो रॉबिन्स पहले अर्थशास्त्री है जिन्होंने अर्थशास्त्र को मानव व्यवहार के अध्ययन के रूप में प्रतिष्ठित किया। प्रो रॉबिन्स की परिभाषा की रॉबिन्स की परिभाषा की तुलना करने हेतु उनकी परिभाषा पर दृष्टिपात आवश्यक है। प्रो रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को निम्न शब्दो मे परिभाषित किया है
अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जा उस मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है जिसका सबध लक्ष्यो व बेकल्पिक उपयोगो वाले सीमित साधनो से होता है । "
(Economics is the science which studies human behaviour as a relationship between ends and scarce means which have alternative uses )
प्रो रोबिन्स की परिभाषा से निम्न तथ्य स्पष्ट है1 अर्थशास्त्र मानव व्यवहार का अध्ययन करता है ।
2 उद्देश्यो या लक्ष्य से आशय मानवीय आवश्यकताओ से है जो कि अनत व असीमित होती है।
3 साधन सीमित होते हैं।
4 सीमित साधनो के वैकल्पिक उपयोग होते हैं ।
5 आवश्यकताओ की अनतता व सीमित साधनो का वैकल्पिक उपयोग चयन की समस्या उत्पन्न करते हैं।
प्रो मेहता तथा प्रो रॉबिन्स दोना ही अर्थशास्त्र को मानव व्यवहार का अध्ययन बताते हे। दोनो ही मानवीय आवश्यकताओं का विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं और ऐसा करते समय दोना ही चयन सबधी क्रियाओं पर बल देते है परन्तु प्रो मेहता के विचार प्रो रॉबिन्स स काफी भिन्न है। इस वेचारिक भिन्नता को निम्न बिदुओ के अंतर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है1 प्रो रॉबिन्स ने आवश्यकताओ की असीमित्ता व अनतता को दृष्टिगत रयते हुए |
9fac2a770f43ec708825ac0630b6a272a00175439cfe33fa02cf191ced46fe0b | pdf | हो। बैलगाड़ी में गुड़ भरा हो। गुड़ में एक बैल सींग लगा रहा हो। और सींग में गुड़ लग गया हो। ऐसा कोई भी एक लक्षण ले लेना।
यह महावीर का एक लक्षण था, जिसमें वे तीन महीने तक गांव में भटके और भोजन नहीं मिला। अब यह बड़ा अजीब - सा, जो भाव आ गया सुबह, वह..। अब यह बड़ा कठिन है कि किसी घर के सामने बैलगाड़ी में भरा हुआ गुड़ हो। फिर कोई बैल उसमें सींग लगा रहा हो। और फिर उस घर के लोग देने को राजी हों। कोई उनकी मजबूरी तो है नहीं। उन्होंने कोई कसम खाई नहीं कि देंगे ही।
तो महावीर कहते थे, भाग्य में नहीं है, तुम वापस लौट आना। गुणातीत खुद से नहीं जीता, गुणों से जीता है। प्रकृति को बचाना होगा, तो बचा लेगी।
और एक दिन - स्व दिन जरूर ऐसा हुआ। तीन महीने बाद हुआ, लेकिन बराबर ऐसा हुआ कि....।
अभी भी जैन दिगंबर मुनि ऐसा करता है। लेकिन उसके फिक्स लक्षण हैं। दो-चार हर मुनि के फिक्स हैं। सब भक्त जानते हैं। वे चारों लक्षण अपने घर के सामने खड़े कर देते हैं। लक्षण ऐसे सरल हैं, घर के सामने केला लटका हो। एक केला लटका हो घर के सामने, वहा से भिक्षा ले लेंगे। तो सब मुनियों के लक्षण पता हैं।
महावीर ने यह नहीं कहा कि तुम अपने लक्षण निश्चित कर लेना। तुम रोज सुबह जो तुम्हारा पहला भाव हो, वह लेकर निकलना। इनके सब तय हैं। तो उलटी हिंसा पच्चीस गुनी ज्यादा होती है। क्योंकि एक घर से जो भिक्षा ले लेते, तो पच्चीस घर, जितने उनके भक्त गांव में होंगे, सब बनाएंगे और सब अपने घर के सामने लक्षण लटकाएंगे। और उनका लक्षण रोज मिलता है। तीन महीने तक चूकने की किसी को नौबत आती नहीं। रोज मिलेगा ही। लक्षण ही वे लेते हैं, जो सबको पता हैं। तो नकल हो सकती है।
एक बौद्ध भिक्षु भिक्षा मांगने गया। एक कौआ मास का टुकड़ा लेकर उड़ता था, वह छूट गया उसके मुंह से। वह भिक्षापात्र में गिर गया। संयोग की बात थी। बुद्ध ने भिक्षुओं को कहा है कि जो भी तुम्हारे भिक्षापात्र में डल जाए, वह तुम खा लेना, फेंकना मत। बुद्ध को भी नहीं सूझा होगा कि कभी कोई कौआ मांस का टुकड़ा गिरा देगा।
अब इस भिक्षु के सामने सवाल खड़ा हुआ कि अब क्या करना! क्योंकि बुद्ध कहते हैं.। मांसाहार करना कि नहीं? गिरा तो है पात्र में ही। नियम के बिलकुल भीतर है। तो उस भिक्षु ने जाकर बुद्ध को कहा कि क्या करूं? मांस का टुकड़ा पड़ा है, इसे फेंकुं तो नियम का उल्लंघन होता है। क्योंकि भोजन का तिरस्कार हुआ। मैंने मांगा भी नहीं था, कौए ने अपने आप डाला है।
बुद्ध ने सोचा होगा। बुद्ध ने सोचा होगा, कौए रोज - रोज तो डालेंगे नहीं। कौओं को ऐसी क्या पड़ी है कि भिक्षुओं को परेशान करें। यह संयोग की बात है। तो बुद्ध ने कहा कि ठीक है; जो भिक्षापात्र में पड़ जाए, ले लेना। क्योंकि अगर यह कहा जाए कि फेंक दो इसे, तो अब एक दूसरा नियम बनता है कि भिक्षापात्र में जो पसंद न हो, वह फेंकना फिर। फिर चुनाव शुरू होगा। फिर भिक्षु वही जो पसंद है, रख लेगा, बाकी फेंक देगा। इससे व्यर्थ भोजन जाएगा। और भिक्षु के मन में चुनाव पैदा होगा।
तो आज चीन में, जापान में मांसाहार जारी है। क्योंकि भक्त मांस डाल देते हैं भिक्षापात्र में। और सब भक्त जानते हैं कि भिक्षु मांस पसंद करते हैं। वह कौए ने जो डाला था, रास्ता खोल गया। सारा चीन, सारा जापान, लाखों बौद्ध भिक्षु मांसाहार करते हैं। क्योंकि वे कहते हैं कि नियम है, जो भिक्षापात्र में डाला जाए, उसे छोड़ना नहीं ।
आदमी बेईमान है। वह नकल भी कर सकता है। नकल से तरकीब भी निकाल सकता है। सब उपाय खोज सकता है। लक्षण की वजह से एक उपद्रव हुआ है कि हम लक्षण को आरोपित कर सकते हैं, हम उसका अभिनय कर सकते हैं।
पर हमारे मन में उठता है कि क्या लक्षण होंगे।
कृष्ण ने जो लक्षण बताए हैं, वे कीमती हैं। यद्यपि बाहरी हैं, पर हमारे मन के लिए उपयोगी हैं।
किन लक्षणों से युक्त होता है? किस प्रकार के आचरणों वाला होता है? मनुष्य किस उपाय से इन तीनों गुणों के अतीत होता है? कृष्ण ने कहा, हे अर्जुन, जो पुरुष सत्वगुण के कार्यरूप प्रकाश को, रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह को भी न तो प्रवृत्त होने पर बुरा समझता है और न निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है।
बड़ा जटिल लक्षण है। खतरा भी उतना ही है। क्योंकि जितना जटिल है, उतना ही आपके लिए सुविधा है।
कृष्ण यह कह रहे हैं कि गुण जो भी करवाएं! तमोगुण कुछ करवाए, तो जब तमोगुण प्रवृत्ति में ले जाता है, तब दुखी नहीं होता कि मुझसे बुरा हो रहा है। रजोगुण किसी कर्म में ले जाता है, तो भी दुखी नहीं होता कि रजोगुण मुझे कर्म में ले जा रहा है। या सत्वगुण निवृत्ति में ले जाता है, तो भी सुखी नहीं होता कि मुझे सत्वगुण निवृत्ति में ले जा रहा है। न राग से दुखी होता है, न वैराग्य से सुखी होता है। जो दोनों ही चीजों को गुणों पर छोड़ देता है और समझता है, मैं अलग हूं।
इसका मतलब क्या हुआ?
आपको क्रोध आया। अब रजोगुण आपको किसी की हिंसा करने में ले जा रहा है। आप कहेंगे, यह तो लक्षण ही है गुणातीत का! इस वक्त दुख करने की कोई जरूरत नहीं है, मजे से जाओ। तो ऊपर से तो नकल हो सकती है। क्योंकि आप क्रोधित हो सकते हैं और आप कह सकते है, मैं क्या कर सकता हूं; यह तो गुणों का वर्तन है! आप हिंसा भी कर सकते हैं और कह सकते हैं, मैं क्या कर सकता हूं; यह तो गुणों का वर्तन है! मेरे भीतर जो गुण थे, उन्होंने हिंसा की।
इसीलिए मैं कह रहा हूं कि लक्षण बाहर हैं और असली बात तो भीतर है। असली बात भीतर है। वह आप ही पहचान सकते हैं कि जब आप क्रोध में गए थे, तो आप सच में क्रोध का सुख ले रहे थे या साक्षी थे। क्योंकि ध्यान रहे, जो आदमी क्रोध का साक्षी है, उसका क्रोध अपने आप निर्बीज हो जाएगा। क्रोध उठेगा भी, तो भी उसमें प्राण नहीं होंगे। क्योंकि प्राण तो हम डालते हैं। उसमें धुआं ही होगा, आग नहीं हो सकती।
कामवासना उठेगी, तो भी आपके साक्षी- भाव के रहने से कामवासना आपको ज्यादा दूर ले नहीं जाएगी। थोड़ी हिलेगी - डुलेगी; विदा हो जाएगी। क्योंकि आपके बिना सहयोग के, आपके साक्षी - भाव को खोए बिना कोई भी चीज बहुत दूर तक नहीं जा सकती। जब आप साथ होते हैं, तब चीजें दूर तक जाती हैं। लेकिन यह तो भीतरी बात है। इसको तय करना कठिन है। इसलिए जैनों ने कृष्ण को नहीं माना कि वे गुणातीत हैं। बड़ा मुश्किल है। कृष्ण तो गुणातीत हैं। लेकिन बात भीतरी है। कृष्ण उस युद्ध के मैदान पर खड़े हुए भी भीतर से वहां नहीं खड़े हैं। उस सारे जाल - प्रपंच के बीच भी भीतर से साक्षी हैं। लेकिन जैन कहते हैं, हम कैसे मानें कि वे साक्षी हैं? कौन जाने, वे साक्षी न हों और प्रवृत्ति में रस ले रहे हों?
तो जैन तो कहते हैं कि अगर प्रवृत्ति के साक्षी हैं, तो प्रवृत्ति गिर जानी चाहिए। तो वे कहते हैं, हम महावीर को मानेंगे, क्योंकि वे प्रवृत्ति छोड़कर चले गए हैं।
लेकिन दूसरी तरह भी खतरा वही है। आपकी प्रवृत्ति मौजूद हो, आप जंगल जा सकते हैं। क्या अड़चन है? और जंगल में आप ध्यान कर रहे हों। हम को लगता है, आप ध्यान कर रहे हैं। भीतर पता नहीं आप क्या सोच रहे हैं? कौन - सी फिल्म देख रहे हैं? क्या कर रहे हैं?
महावीर के जीवन में उल्लेख है। बिंबसार सम्राट, उस समय का एक बड़ा सम्राट, महावीर के दर्शन को आया। जब वह दर्शन को आ रहा था, तो उसने रास्ते में अपने एक पुराने मित्र को, जो कभी सम्राट था....... प्रसन्न कुमार् उसका नाम था, वह मुनि हो गया था महावीर का, राज्य छोड़ दिया था उसने। वह बिंबसार का बचपन का मित्र था और विश्वविद्यालय में दोनों साथ पढ़े थे। वह प्रसन्न कुमार उसे खड़ा हुआ दिखाई पड़ा एक पर्वत की कंदरा के पास, ध्यान |
e3798bf0a89c42ba0532a9a635cf955cc9d54b0c | web | कोर्ट, कचहरी, दलील, वकील, बहस, सबूत, गवाह और इंसाफ. . . लगता है ये सब दूसरे दौर की बात हो चुकी है. नए दौर में अब पुलिसवालों को अदालत में जाना भी गवारा नहीं. और इसीलिए उन्होंने अब इंसाफ का नाम बदलकर मिट्टी में मिला देना रख दिया है. उमेश पाल मर्डर केस के बाद जिस तरह से मिट्टी में मिलाने का चलन शुरु हुआ है, उसकी दूसरी कहानी एक नए अंदाज में सामने आई है.
कहानी की शुरूआत करते हैं यूपी के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार से. जिन्होंने बताया कि जो उस्मान एनकाउंटर में मारा गया, उसका उमेश पाल मर्डर केस में क्या रोल था? और वो कैसे पहचाना गया? बकौल एडीजी ये उस्मान वो शूटर था, जिसने ना सिर्फ उमेश पाल बल्कि उसके गनर पर भी गोली चलाई थी. इतना ही नहीं इन्होंने बाकायदा न्यूज चैनलों का भी हवाला दिया कि उस्मान गोली चलाता हुआ साफ नजर आ रहा है.
जाहिर है खुद एडीजी लॉ एंड ऑर्डर साहब और यूपी पुलिस के इनके बाकी साथियों ने भी चैनलों पर उस्मान को बार-बार देखा होगा. हालांकि चैनलों पर शूटआउट की जो तस्वीरें चल रही थी, कायदे से वो खुद यूपी पुलिस ने ही चैनलों को दी थी. इसका मतलब ये हुआ कि चैनल से पहले खुद यूपी पुलिस ने भी उस्मान को गोली चलाते हुए कई बार देखा होगा. चलिए. . . अब आपको उसी यूपी पुलिस की एक दूसरी के बारे में बताते हैं.
इतेफाक से यूपी पुलिस के ऑफिशियल ट्वीटर हैंडल पर एक ट्वीट पांच मार्च यानी रविवार को दोपहर 3. 17 मिनट पर किया गया था. उस ट्वीट के जरिए यूपी पुलिस ने उमेश पाल शूट आउट में शामिल शूटरों की गिरफ्तारी पर इनाम की रकम बढाने का ऐलान किया था. पहले इनाम 50 हजार था, जिसे यूपी डीजीपी के कहने पर ढाई लाख कर दिया गया. अब जरा इस ट्वीट में दर्ज आरोपियों के नामों को बेहद गौर से पढिएगा. कुल पांच नाम हैं, पहला नाम अरमान, दूसरा असद, तीसरा गुलाम, चौथा गुड्डू मुस्लिम और पांचवा साबिर. साथ में सबके पिता का भी नाम भी लिखा है. अब अगर अब भी समझ ना आया हो, तो फिर से इन नामों को देख लीजिए. आपको इस लिस्ट में उस्मान चौधरी या यूं कहें कि विजय चौधरी का नाम कहीं दिखाई नहीं देगा.
अब सोचिए. . . जिस उस्मान के एनकाउंटर की खबर सोमवार 6 मार्च की दोपहर एडीजी लॉ एंड ऑर्डर दे रहे हैं, उससे 12 घंटे पहले तक खुद उस उस्मान चौधरी या विजय चौधरी का नाम यूपी पुलिस की वॉन्टेड लिस्ट में कहीं है ही नहीं. अब सवाल ये है कि जो उस्मान चौधरी उर्फ विजय चौधरी पिछले कई दिनों से गोलियां चलाते हुए लगातार चैनलों पर दिखाई दे रहा है, एनकाउंटर से 12 घंटे पहले तक वही उस्मान चौधरी या विजय चौधरी यूपी पुलिस को क्यों नहीं दिखाई दिया? और अगर दिखाई दिया था तो फिर यूपी पुलिस की वॉन्टेड लिस्ट से उसका नाम बाहर कैसे था?
एडीजी की कहानी में झोल!
कहानी यहीं खत्म नहीं होती. एडीजी लॉ एंड ऑर्डर के पास एक बार फिर लौटते हैं. एनकाउंटर में मारे गए उस शख्स का नाम सुनने के लिए. मीडिया को दिए गए उनके बयान को सुनकर पता चलता है कि एडीजी साहब सिर्फ एक शब्द में नाम ले रहे हैं. वरना अमूमन नाम के साथ पिता का भी नाम लेते रहे हैं. आगे बढें, उससे पहले जरा उस्मान चौधरी या विजय चौधरी की पत्नी की बात कर लें. जो कह रही हैं कि उसका नाम विजय चौधरी है, हमारा पूरा परिवार हिंदू है और वो विजय चौधरी के पिता का नाम भी बताती है.
तो एनकाउंटर में मारे गए उस्मान चौधरी की पत्नी का दावा है कि वो उसका पति या उसका पूरा परिवार किसी ने धर्म परिवर्तन नहीं किया. सभी हिंदू हैं और उसके पति का नाम विजय चौधरी है. ना कि उस्मान चौधरी. उसने विजय से 2020 में शादी की थी. इतेफाक से प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार ने एडीजी लॉ एंड ऑर्डर से ये सवाल पूछ लिया कि उसका नाम विजय चौधरी है या उस्मान चौधरी? तो एडीजी सकपका गए और बोले कि क्या नाम है, जो आप कह रहे हैं उसकी विवेचना करेंगे.
चलिए, अब कहानी तीसरे किरदार की. जिसका नाम आयशा है. वो अतीक अहमद की बहन है. सोमवार को आयशा ने प्रयागराज प्रेस क्लब में एक प्रेस कांफ्रेंस की थी. उस प्रेस कांफ्रेंस के जरिए उसने मांग की कि उसके दोनों भाई यानी अतीक अहमद और अशरफ की सुरक्षा की जाए. क्योंकि परिवार को डर है कि दोनों का एनकाउंटर किया जा सकता है. लेकिन इधर जैसे ही आयशा प्रेस कांफ्रेंस खत्म कर बाहर निकलती है, तभी उसे पता चलता है कि उसके पति को यूपी एसटीएफ ने हिरासत में ले लिया है.
अब विजय चौधरी उर्फ उस्मान के ताजा एकाउंटर की पूरी कहानी समझें, उससे पहले उमेश पाल मर्डर केस में यूपी पुलिस की तफ्तीश का अब तक का अंजाम जान लेते हैं. उमेश पाल मर्डर केस के बाद यूपी पुलिस ने जो पहला एनकाउंटर जिस अरबाज का किया था, वो कहीं किसी कैमरे में कैद नहीं था. सोमवार को जो दूसरा एनकाउंटर किया, वो यूपी पुलिस की वॉन्टेड लिस्ट में शामिल नहीं था. बाकी बचे उपरोक्त पांच नाम. . . तो दस दिन तो हो चुके हैं, पर इनका कोई अता-पता नहीं है. वैसे भी अगर यूपी पुलिस खुद ही इन तक पहुंच जाती, तो शायद उसे इस तरह इन पांचों पर इनाम का ऐलान ना करना पड़ता.
वैसे एक दौर था जब हर एनकाउंटर पर हंगामा मच जाया करता था. मगर अब जमाना बदल चुका है. अब तो लुकछिप कर नहीं, बल्कि एनकाउंटर के बाद ऐलानिया ये बताया जाता है कि देखो, मिट्टी में मिला दिया. यूपी के एक विधायक शलभ मणि का एक ट्वीट उसकी बानगी भर है.
उमेश पाल एनकाउंटर के सिलसिले में यूपी पुलिस ने सोमवार को एक और शूटर का एनकाउंटर कर दिया. पुलिस ने बताया कि ये वही शूटर था, जिसने सबसे पहले उमेश पाल पर गोली चलाई थी. इससे पहले पुलिस ने अरबाज नाम के एक शूटर को एनकाउंटर में ढेर करते हुए ये बताया था कि उमेश पाल पर कत्ल के रोज वही शूटरों की क्रेटा कार चला रहा था.
पुलिस के मुताबिक सोमवार की सुबह प्रयागराज पुलिस को विजय चौधरी उर्फ उस्मान के बारे में इत्तिला मिली. एक मुखबिर ने पुलिस को जानकारी दी कि उस्मान प्रयागराज के ही कौधारिया इलाके में छुपा हुआ है. खबर मिलने पर पुलिस ने सुबह सवेरे करीब 5 बजे ही उस्मान की घेरेबंदी की कोशिश की. लेकिन पुलिस को अपनी ओर आता देख कर उस्मान गोली चलाने लगा. पहले तो पुलिस ने उसे खुद को कानून के हवाले कर देने की चेतावनी दी. लेकिन वो लगातार फायरिंग करता रहा. जवाब में पुलिस ने गोली चलाई और उस्मान जख्मी हो गया. इसके बाद पुलिस फौरन उस्मान को उठा कर प्रयागराज के ही एसआरएन अस्पताल लेकर गई, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. उस्मान और पुलिस के बीच हुई इस गोली बारी में यूपी पुलिस का एक कांस्टेबल नरेंद्र भी जख्मी हो गया.
पुलिस सूत्रों की मानें तो प्रयागराज जिले में जहां विजय चौधरी का गांव है, वहां से मध्य प्रदेश की सीमा बमुश्किल 50 किलोमीटर की दूरी पर है. वारदात के बाद से ही विजय उर्फ उस्मान को लगातार ट्रैक करने की कोशिश कर रही यूपी पुलिस को पता चल रहा था कि उस्मान लगातार एमपी और यूपी में अपनी लोकेशन बदल रहा है. लेकिन पुलिस ने उस पर अपनी नजरें गडाए रखी और सोमवार की सुबह आखिरकार पुलिस की गोलियां उसके लिए मौत लेकर आई.
विजय चौधरी उर्फ उस्मान के नाम पर पुलिस ने 50 हजार रुपये के इनाम का ऐलान कर रखा था. उमेश पाल मर्डर केस के सीसीटीवी फुटेज देखने से साफ है कि ये उस्मान उर्फ विजय ही था, जिसने सबसे पहले उमेश पाल और उसके गनर पर गोली चलाई थी. हाथ में पॉलीथिन का पैकेट लिए उमेश पाल पर बिल्कुल करीब से फायरिंग करते विजय की तस्वीरें सीसीटीवी में कैद हुई थी.
हालांकि विडंबना देखिए कि इतनी बड़ी वारदात को अंजाम देनेवाले और इस वारदात में पहली गोली चलाने वाले इस शूटर को शुरू में युपी पुलिस पहचान तक नहीं पा रही थी. अब से पहले तक यूपी पुलिस ने सीसीटीवी में कैद बाकी शूटरों की तो पहचान कर ली थी, लेकिन उमेश पाल पर सबसे पहले फायरिंग करनेवाले इस शूटर की पहचान साफ नहीं की थी.
अतीक ने विजय चौधरी को दिया था नया नाम!
सूत्रों की मानें तो विजय काफी समय से अतीक के लिए काम कर रहा था और उसकी वफादारी से खुश हो कर अतीक ने ना सिर्फ उसे अपना खास गुर्गा बना रखा था, बल्कि उसी ने विजय का नाम उस्मान चौधरी भी रख दिया था. कुछ सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि अतीक ने ही विजय का धर्म बदलवा कर उसे उस्मान बना दिया था. एनकाउंटर के बाद पुलिस को उस्मान के कब्जे से . 32 बोर की एक नाजायज पिस्टल और कुछ गोलियां भी मिली हैं. अब इस मामले में पुलिस क्या नई कहानी लेकर सामने आएगी, ये देखना बाकी है.
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e80a002fd5577a0b138acabda370260338155f6738b9108b035f7f3e84382302 | pdf | कहने वाला - ये तीनों ही रक्षा करने के योग्य हैं। आपत्ति समय में भी इनकी रक्षा करना न भूले । बलवान राजा को उचित है कि, वह इन चार बातों से सदा बचता रहे । एक तो नीच मनुष्य के साथ परामर्श न करे, आलसी सी से बात न करे, अधिक सुखी मनुष्य से गुप्त विचार न करे। हे सञ्जय ! धनी गृहस्थों के यहाँ चार मनुष्यों का रहना परम आवश्यक है । १ वृद्ध सम्बन्धी, २ कुशल कुलीन मनुष्य, ३ दरिद्री मित्र और ४ सन्तानहीन बहिन, वृद्ध सम्बन्धी कुल- धर्मो का उपदेश देता है, चतुर कुलीन पुत्रों की शिक्षा की देखरेख रखता है, निर्धन मित्र हित की बातें सुनाता और सन्तान रहित बहिन द्रव्य की रक्षा करती है। जिस समय देवराज इन्द्र ने बृहस्पति जी से पूँछा कि, तत्काल फल देने वाली क्या क्या वस्तुएँ हैं तब उस समय बृहस्पति ने कहा - देवताओं का मनोरथ, मेधावी का प्रताप, विद्वान् की विनम्रता, पापों का नाश यह तुरन्त फल देते हैं । कीर्ति-कामना से हीन हो कर अग्निहोत्र करना, मौनव्रत धारण करना, वेदों का स्वाध्याय करना और यज्ञों का अनुष्ठान करना - यह अभयदान देने वाले पदार्थ हैं । तात्पर्य यह है सच्चे मन से किये गये कर्मों का ही उत्तम फल प्राप्त होता है। माता, पिता, गुरु, परमेश्वर, और अग्नि- ये पाँचों अग्निस्वरूप हैं। इनकी सेवा प्रमाद रहित हो कर करनी चाहिये । हे राजन् ! देवता, पितर, अतिथि, भिक्षुक और मनुष्यों का यथाविधि सरकार करने से संसार में यश मिलता है। देखिये, यह पाँच प्रकार के मनुष्य कभी पीछा नहीं छोड़ते चाहे जहाँ जावें आपके यह सदा अनुचर ही रहेंगे । एक तो मित्र, • दूसरा शत्रु, तीसरा मध्यस्थ, चौथा पालन करने हारा, पाँचवाँ सेवक समुदाय । मनुष्य के पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं उनमें से यदि एक भी विषयों में फँस जाती है सो उसके द्वारा मनुष्य की बुद्धि का वैसे ही नाश हो जाता है जैसे चर्मपात्र में ज़रा सा भी छेद हो जावे तो सब पानी निकल जाता है हे राजन् ! संसार में ऐश्वर्य और सुख की लालसा रखने वाले मनुष्य को इन छः दोषों को सर्वथा त्याग देना चाहिये - १ निन्दा, २ तन्द्रा,
३ भय, ४ क्रोध, ५ आलस्य, और ६ दीर्घसूत्रता, (शीघ्र करने योग्य कार्य का देर से करना) । जैसे टूटी हुई नाव को छोड़ देते हैं, वैसे ही मनुष्य को उचित है कि, वह उपदेश न करने वाले आचर्य और मूर्ख ऋत्विज को त्याग देवे तथा प्रजा का पालन न करने वाले राजा को, कठोर वचन कहने वाली स्त्री को, गाँव में रहने की इच्छा करने वाले ग्वाले को, वन में रहने वाले नाई को भी त्याग देवे । किन्तु सत्य, दान, पुरुषार्थ, स्नेह, क्षमा, धैर्य, इन छः गुणों का परित्याग मनुष्य को कभी न करना चाहिये । नित्य धनागम, सर्वदा नीरोगता, स्नेहपात्री एवं प्रियवादिनी स्त्री, स्वाधीन पुत्र, धनोपार्जन करने योग्य विद्या, संसार में यही छः वास्तविक सुख हैं। हे राजन् ! जिस मनुष्य ने काम, क्रोध, शोक, मोह, मद, मान, इन छः दोषों पर विजय प्राप्त कर लिया है, वह जितेन्द्रिय कहाता है। उसके पास कोई पाप फटकने नहीं पाता। इसी कारण उसका कभी विनाश नहीं हो सकता । हे राजन् ! चोरों की गुज़र असावधानों से, वैद्यों की रोगियों से, दुराचारिणी स्त्रियों की दुराचारी पुरुषों से, पुरोहितों की यजमानों से, राजा की झगड़ालुओं से और विद्वानों की मूर्खों से होती है और कोई अन्य उपाय इनकी आजीविका का नहीं हैं। गौ सेवक, कृषि विद्या स्त्री और शूद्र के साथ संगति इन छः बातों पर सदा ध्यान रखना चाहिये । यदि क्षण भर के लिये भी इनसे दृष्टि हटायी तो बस इनका नाश हो जाता है ।
संसार में इन छः प्रकार के मनुष्यों ही से पुरुषों का अपमान होता है। व्युत्पन्न विद्यार्थी पहिले उपकार करने वाले गुरु का अपमान करता है । विवाहित पुत्र माता की निन्दा करता है। काम वन जाने पर स्वार्थी उस काम में सफलता प्राप्त कराने वाले की निन्दा करता है। कामवासना पूरी हो जाने पर मनुष्य स्त्री का अपमान करता है । सागर पार हो जाने पर नाव की निन्दा की जाती है और रोगी चंगा हो कर वैद्यराज की निन्दा करता है। महाराज ! स्वस्थ रहना, ऋणी न होना, स्वदेश में रहना, सज्जनों का समागम, अनुकूल श्राजीविका, भयरहित निवास मन्दिर, यह संसार
के छः परम सुख हैं। दूसरों से द्वेष रखने वाला, दयालु, असन्तोषी, क्रोधी, नित्य शक्ति रहने वाला, दूसरों के भाग्य से जीने वाला मनुष्य सदा दुःखी ही रहता है। स्त्री, जुश्रा, शिकार, सुरापान, कठोर वाणी, भयङ्कर दण्ड, सम्पत्ति-नाशक काम यह दोष राजाओं को त्याग देने चाहिये । हे राजन् ! जिनका सर्वनाश होने को होता है उनमें ये आठ दोष पहिले से ही श्रा जाते हैं - १ विद्वानों से द्वेष, २ ब्राह्मणों से लड़ाई, ३ ब्राह्मणों का धनहरण, ४ ब्राह्मणों को मारने की इच्छा, ५ ब्राह्मणों की निन्दा करना ६, ब्राह्मणों की प्रशंसा को न सहना, ७ किसी भी काम में ब्राह्मणों का स्मरण न करना, सुख चाहने ८ भिक्षुक ब्राह्मण के अवगुण निकालना। अतएव संसार में वालों को इन दोषों से बचे रहना चाहिये ।
हे कौरवेश्वर ! मित्रों का संग, अधिक धनागम, पुत्र मिलन, विषय सुखों की प्राप्ति, समयानुकूल मधुर वचन, अपनी उन्नति, मनोरथों की सफलता, साधुओं के समाज में सत्कार - यह आठ गुण अपने हर्ष के सार
। बुद्धि, कुलीनता, जितेन्द्रियता, शास्त्र - विज्ञान, पराक्रम, मितभाषिता यथाशक्ति दान करना और कृतज्ञता, इन श्राठ गुणों ही से मनुष्य की शोभा है । हे राजन् ! यह शरीर एक मन्दिर है जैसे घर में दरवाज़े होते हैं, वैसे इसमें भी दो आँखें, दो कान, दो नासिका - छिद्र, मुख, गुदा, मूत्रेन्द्रिय यह नौ दरवाजे हैं। जैसे मकान में मकान का भार सहने के लिये स्तम्भ ( खम्भे ) होते हैं, वैसे ही इस शरीर रूपी मकान में भी अविद्या, काम, कर्म यह तीन स्तम्भ हैं। जैसे घर की देखरेख रखने वाला कोई न कोई अवश्य होता है, वैसे ही इसमें भी शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध पाँचः द्रष्टा हैं। जिस प्रकार मकान में उसका मालिक रहता है, उसी प्रकार इस शरीर रूपी मकान में रहने वाला जीव है। इस प्रकार इस स्थूल शरीर का विज्ञान जानने वाला ही ज्ञानी कहलाता है । मतवाला, विषयी, क्रोधी, भूखा, उतावला, लोभी, डरपोंक और कामी, इन दस मनुष्यों पर धर्म का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः बुद्धिमान् मनुष्य, इनसे सदा बचता
रहे । जो राजा काम क्रोध रहित हो कर सत्पात्र को धन दान देता है, भले बुरे की पहिचान रखता है, जो शास्त्रज्ञ है और जो शीघ्रता से काम करता है, उसे समस्त राजमण्डल सिर नवाता है। जो राजा प्रजा का विश्वासपात्र है, अपराधी के अपराध पर निष्पक्ष विचार कर दण्ड की च्यवस्था करता है, दण्ड की व्यवस्था के साथ साथ जिसका मन कठोर नहीं है, उस राजा पर महालक्ष्मी सर्वदा प्रसन्न रहती है। जो राजा दुर्बलों का नहीं करता, सावधानी से शत्रुओं के दोषों को जान कर अपने राज्य का शासन करता है, बलवानों से विरोध करना नहीं जानता और समय पड़ने पर अपने पराक्रम से संसार को चकित कर देता है, वही धीर वीर और राजाओं में श्रेष्ठ है । जो राजा के सहन करने की
शक्ति रखता है, सर्वदा सावधानी से पुरुषार्थ करता है और दुःख के समय को सहर्ष सहन कर लेता है वह सच्चा महात्मा है और उसका कोई भी शत्रु नहीं रहता। जो राजा व्यर्थ विदेशों में नहीं घूमते, परस्त्रीसंसर्ग और पाखण्ड से सदा बचते रहते हैं, जो पापियों से मित्रता नहीं करते, चोरी और चुगलखोरी का नाम नहीं लेते तथा सुरापान से कोसों दूर भागते हैं, वे ही स्वर्गीय जीवन का आनन्द लूटते हैं। हे राजन् ! जिसके धर्मार्थ काम का प्रारम्भ क्रोधपूर्वक नहीं होता, जो पूछने पर अपनी यथार्थं और स्पष्ट सम्मति प्रदान करता है, जो मित्र और स्नेहियों से व्यर्थ विवाद नहीं करना तथा जो अपमानित होने पर क्रुद्ध नहीं होता, वही बुद्धिमान है। ईर्ष्या रहित, दयावान, शक्तिशाली होने पर भी द्वेष भाव रहित, लड़ाई झगड़ों से दूर रहने वाला मनुष्य सब जगह आदर पाता है । साधारणरीत्या जीवन व्यतीत करने वाला, बलवान् होता हुआ भी, किसी की निन्दा नहीं करता, आत्मश्लाघा रहित दुःखों को सहन करने वाला तथा मधुरभाषी मनुष्य सब का कृपापात्र होता है । जो दबे हुए दबे हुए बैर को उभारने की कोशिश नहीं करता, पराक्रमी हो कर भी गर्व नहीं करता, कठिन से कठिन आपत्ति आने पर भी अनुचित कार्य नहीं करता, वही मनुष्य सुन्दर स्वभाव वाला
कहलाता है। जो अपने सुख में अधिक प्रसन्न नहीं होता और परायी आपत्ति को देख कर, हर्षित नहीं होता, तथा किसी वस्तु का दान दे कर पाश्चत्ताप नहीं करता, वह सत्पुरुष कहलाता है। देश देश के प्राचारों विचारों को, (रीति रिवाज) तथा विविध भाषाओं को और ब्राह्मण क्षत्रियादि वर्णों के धर्मों को जानता हुआ जो ऊँच नीच का विवेक रखता है, वह मनुष्य जिधर निकल जाता है, वहीं सब पर अपना प्रभाव जमा लेता है । जिसने मोह, मस्सर, ढोंग, पापकर्म, राजशत्रुता, चुग़लखोरी, बहुत जनों से बैर, मत्त, उन्मत्त, दुष्टों से विवाद आदि अवगुणों को स्याग दिया है, वह सब का प्रधान नायक बन जाता है। जो मनुष्य दान, होम, देवपूजन, प्रायश्चित्त आदि आत्मसुधारक मङ्गल कार्यों को सदा सर्वदा करता है वह देवताओं का भी प्यारा होता है तथा वे उसकी सदा वृद्धि चाहते हैं । जिसने विवाह, मित्रता, व्यवहार, तथा बातचीत में अपने से बराबर वालों का साथ किया है तथा अपने से नीच मनुष्यों से उपरोक्त प्रकार का सम्बन्ध न रख गुणों में श्रेष्ठ महानुभावों को अपना श्राचार्य, गुरु और पुरोहित बनाया है; वही नीतिज्ञ और विद्वान् कहलाता है। हे राजन् ! उस मनुष्य के क्लेश उसे सदा के लिये छोड़ जाते हैं, जो अपने अधीन रहने वाले कुटुम्बियों का भली भाँति पालन करता हुआ, स्वयं कम खा कर, समय बिना देता है तथा जो दिन भर अत्यन्त परिश्रम कर रात को भी कम सोता है तथा शत्रुओं की भी याचनाओं को पूर्ण करता है । जिस मनुष्य के मन के विचार काम काज और अपमान सदा गुप्त रहते हैं उस मनुष्य के सावधान हो कर किये हुए विचारों को कभी हानि नहीं पहुँचती । जैसे शुद्ध कोमल उत्तम खान से निकाला हुआ सच्चा माणिक अन्य अनेक मणियों में सब से अधिक जगमगाता है; उसी भाँति दूसरों के दुःखों को दूर करने में लगा हुआ निर्मल सच्चा शुद्ध स्वभाव वाला मनुष्य भी अपनी जाति में शोभित होता है । जिसे अपने गुप्त दुष्ट कर्मों पर लज्जा आती है तथा उन पर पश्चात्ताप करता है, वही सब का गुरु बन सकता है। सावधान प्रसन्नचित्त अत्यन्त तेजस्वी |
358a06395fc5730e4b766d84080db9a74c2faf050c831a3ec15284832d3f81d6 | pdf | Wild Life (Protection)
Amdt. Bill 368 को नहीं देखेंगे और उनके अनुरूप कानून नहीं बनाएंगे, प्राचरण नहीं करेंगे तब तक आप उन लोगों के अपने से विमुख करते जाएंगे । उनको आप विमुख कर लेते हैं तो आप कानून किस के लिए बना रहे हैं ? मानव के लिए ही तो बना रहे हैं। आप फैसिंग लगाइये ताकि जानवर निकल कर बाहर न जा सकें और किसान की फसलों को बरबाद न कर सकें । दो तीन किलोमीटर बाहर आ कर जंगली जानवर फसल का नुकस न कर दें, एक दो हजार के बैल को खत्म कर दें, तीन हजार की भैंस को मार डालें और उनको बचाने के लिए किसान अगर जानवरों पर हमला करते हैं, टाइगर पर, लंगूर पर हमला करते हैं और अपने मवेशियों को छुड़ाते हैं तो वे क्या अन्याय करते हैं और क्यों रोजाना उनका चालान आपके अधिकारी करते हैं, क्यों उनके खिलाफ केसिस चलाते हैं। क्यों आप जानवरों को खला छोड़ते हैं, पांच दस किलोमीटर बाहर जाने देते हैं। टाइगर प्राजेक्ट सरिसका के चारों तरफ फैसिंग करवाएं, दीवार बनाएं ।
[ श्री राम सिंह यादव]
का युग नहीं है, आम आदमी का युग है । आबादी बढ़ रही है । आप इकोलोजिकल एटमसफीयर बनाए रखने की भी दुहाई देते हैं। बहुत सी स्पीसीज ऐसी हैं जो एक्सटिंक्ट होने जा रही है। आपको यह भी सोचना चाहिये कि जो मानव सृष्टि पर पैदा हुआ है, जिस क्षेत्र में वह रहता है, वहां उसकी परवरिश करना, उसकी रक्षा करना, उसको सुविधायें देना, आबादी के लिए उसको जमीन देना यह भी हमारा कर्त्तव्य है, वैलफेयर स्टेट का कर्त्तव्य है। सरिसका के आसपास जो बसे हुए लोग हैं उनकी आबादी बढ़ती है, गांवों की आबादी बढ़ती है तो उसके लिए भी आपको कोई प्रावधान करना चाहिये । आपने गत वर्ष फारेस्ट एक्ट एमेंड करके यह प्रावधान कर दिया कि जब तक केन्द्र से स्वीकृति नहीं ली जाएगी तब तक आप आबादी का एक्सटेंशन नहीं कर सकते हैं। आप लाज को रिगोरस करते आ रहे हैं। आपको ह्यूमैनिटी के लिए भी सोचना चाहिये। जानवरों के लिए आप सोचें, खूब सोचें, लेकिन आदमी को भी आप न भूलें । इंसान को आप भूल जाते हैं तो आपका जो प्रमुख कर्त्तव्य है उससे प्राप विमुख हो जाते हैं । उससे सब का नुकसान होगा। जितनी प्राजेक्ट्स हैं, जितनी सैक्चुरीज बनी हुई हैं उनके चारों तरफ न तो कोई दीवार बनाई गई हैं और न फैसिंग ही की गई है। मेरे निर्वाचन क्षेत्र में कुछ किसानों के खेतों को आपकी वाइल्ड लाइफ ने, लंगूरों, बन्दरों ने पूरी तरह से बरबाद कर दिया और जब उन्होंने उनको रोकना चाहा तो आपके अधिकारियों ने उनके ऊपर मुकदमे बना दिए और अखबारों में दे दिया कि लंगूर मार दिए गए हैं, बन्दर मार दिए गए हैं । तालाब गांव के रहने वाले लोगों पर इस कारण से मुकदमे चल रहे हैं । ज्यूडिशियल केसिस हैं इसलिए मैं उनके बारे में कुछ नहीं कहूंगा । कम से कम आपको संवेदनशील ) तो होता ही चाहिये। जब तक आप स्थानीय लोगों की इच्छाओं, उनकी आवश्यकताओं
वहां पर रहने वाले किसानों, मजदूरों, लकड़हारों और दूसरे लोगों के पास अगर जमीन नहीं है तो उनको आप आबादी के लिए और काश्त के लिए जमीन दें। कुछ लोग हैं वहां जो पीड़ियों से बास्केट, छबड़ी बनाने का धंधा करते आ रहे हैं। इनकी हमारे यहां एक कम्युनिटी है जो केवल बास्केट बनाने का काम करती है। ये लोग वहां से हरी लकड़ी, पेड़ों की टहनियां लाते थे और बास्केट बनाते थे । हजारों साल से वे ला रहे थे । सरिसका के चारों तरफ कई गांव बसे हुए हैं। उन पर आपने पाबन्दी लगा दी है कि हरी टहनियां वे ला नहीं सकते हैं। जो लोग पीढ़ियों से बसे हुए हैं, जिनका पेशा ही यही है और वे हरी टहनियां भी नहीं ला सकते हैं तो आपने जो उनका हैण्डटरी काम है, वह सारा ही खत्म कर दिया है। तो आप क्या इसके बारे में सोचेंगे ? उनको लाइसेंस दीजिए या और
369 Wild Life
कोई व्यवस्था कीजिये । आज आपके फौरेस्ट ऐक्ट, वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट में कोई ऐसा प्रावीजन नहीं है। इसलिए जो लोगों के फोरेस्ट या सैक्चुअरी में अधिकार थे उनको रेस्टोर कीजिये । और मैं उम्मीद करता हूं कि जिस उद्देश्य से इस बिल को आप लाये हैं उसके साथ-साथ यह भी भावना रहनी चाहिये कि लोगों के अधिकारों को भी सुरक्षित रखें। इस तरह से पीसमील ये लेजिस्लेशन लाने से कोई लाभ नहीं होगा। आप काम्प्रीहेंसिव तरीके से अमेंडमेंट लायें तो ज्यादा अच्छा होगा ।
VAISAKHA 8, 1904 (SAKA)
इन शब्दों के साथ में आपके बिल का समर्थन करता हूं ।
(Protection) । 370 Amdt, Bill
होता 1 आज जंगल की सीमा आपने गांव के नजदीक तक कर दी है। अगर मवेशी जंगल में जाएगा तो उसका आरोप किसी पर लगाते हैं कि किसान सारे जंगल को बरबाद कर रहा है। लेकिन मैं कहता हूं कि जंगल का अगर कोई दुशमन है तो जंगल के अधिकारी हैं, ठेकेदार हैं। आप ब्यूरोक्रेसी की राय पर गांव वालों को न मारिए, बल्कि उनकी सुरक्षा कीजिए गांव का संबंध जंगल से है। आप इस कानून के द्वारा उनका अहित करने जा रहे हैं । आज शेरों की किस्मों के अन्दर जो कमी आई है यह गांव के किसान की वजह से नहीं
है। कितने भी किस्म के शेर थे अगर छापे डाले जायें तो वन विभाग के बड़े बड़े अधिकारियों के घरों में आपको उनकी खालें मिलेंगी। गांव के किसान के छप्पर में आपको शेर, गेंडा, हाथी, मगर मच्छ की छाल नहीं मिलेगी। आप ब्यूरोक्रेसी के कहने पर इस बिल को ला रहे हैं। जब यह आर्डिनेंस लाया गया था मैंने उस समय भी विरोध किया था कि आर्डिनेस जल्दी में लाया गया है इसकी व्यापक रूप से लाना चाहिए। आज भी यह विधेयक व्यापक रूप से नहीं लाया गया है, इसलिए मैं उसका विरोध करता हूं ।
श्री चतुर्भुज (झालावाड़ ) : मान्यवर, मैं इस बिल का कुछ सुझावों के साथ समर्थन करता हूं अभी हमारे माननीय राम सिंह यादव ने जो सुझाव और व्यवहारिक सुझाव दिए हैं उम पर गंभीरता से विचार करना चाहिए । मंत्री महोदय को तो जंगल का अनुभव नहीं होगा, लेकिन हम लोग जो गांवों में रहते हैं और जंगल के आधा किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं हमें अनुभव है कि गांव और जंगल का क्या संबंध होता है। इस बिल से हमारे जानवरों का संरक्षण नहीं होगा। यह तो हमारी भारतीय संस्कृति और दर्शन में हैं जीव जन्तुओं और प्राणीमात्र की रक्षा करना। यह हमारा दर्शनिक सिद्धांत है । लेकिन बिना सोचे समझे जो कानूनी बन्धन बढ़ाते जा रहे हैं उसका गांव की जनता पर क्या प्रभाव होगा यह आपने कभी सोचा ? गांव हमेशा जंगल से सटे हुए हैं। वहां अनेक समस्यायें हैं। उनके पास गैस सिलेंडर नहीं होता, कोयला नहीं होता, जलाने के लिए और कोई चीज नहीं होती सिवाय लकड़ी के मवेशी चुराने का सिवाय जंगलों के और कोई स्थान नहीं
हम जानते हैं जंगल का क्या महत्व है। जंगल का विश्व के अन्दर काफी महत्व है। अगर उसकी रक्षा नहीं की तो प्रकृति का सौंदर्य नष्ट हो जाएगा और साथ ही मानव भी नष्ट हो जाएगा । इसलिए मानव और प्रकृति का निकट संबंध है, अभिन्न संबंध है, इस बात को हमें ध्यान में रखना चाहिए ।
1972 का जो ऐक्ट था...
1972 के ऐक्ट में आपने क्या किया ? श्राज 10 साल के बाद उसमें ज्यादा
Wild Life
nody) [ श्री चतुर्भुज ]
(Protection) APRIL 28, 1982
छूट दी गई है शिकार करने वगैरह की । कौन और किस किस्म का शिकार करेगा, क्या करेगा ?
आज मोर पक्षी को मार रहे हैं, कौन मार रहे हैं ? यह राष्ट्रीय पक्षी है इसे कौन कम कर रहा है । के मेमने जो 40 घंटे का भी नहीं हो पाता है, उसे विदेशों में भेज रहे हैं, क्या कर रहे हैं ? सारी की सारी हत्याएं आप कर रहे हैं। गवर्नमेंट की जो ब्यूरोक्रेसी है, वह हत्या कर रही है । गो-हत्या का मामला है, गाय के बच्चों को देख लीजिए, 30 दिन के भी नहीं होते कि उनको विदेशों में बेचा जा रहा है ।
सभापति महोदय :
का बिल है।
वाइल्ड लाइफ
श्री चतुर्भुज मैं इसको उस से अलग नहीं कर सकता । (व्यवधान)
श्री चतुर्भुज मैं भटका नहीं हूं : यह आपको थोड़ा अखर गया होगा ।
सभापति महोदयः वाइल्ड लाइफ पर पर बात कीजिए।
श्री चतुर्भुज : हमारा सारा देश अक्तूबर के महीने में वन संरक्षण सप्ताह मनाता है। एक हमारी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है, वन संरक्षण संस्था, हमारी भारतीय शाखा की कुमारी रत्नाकर हैं, उन्होंने अपने शब्दों में कहा है कि इस देश में 5 करोड़ जीव जन्तु की हत्या हर वक्त होती है। उनकी हत्या कौन करता है।
Amdt. Bill 372
कमी है, चरित्र की कमी है, अगर सारे व्यक्तियों में हो, वन अधिकारियों में हो, हमारी गवर्नमेंट में हो, अगर राष्ट्रीय महत्व के रूप में इसको लिया जाये तो इन वनों की सुरक्षा भी हो सकती है. और जीव-जन्तुओं की रक्षा भी हो सकती है।
मैं समझ नहीं पाता कि सारे देश में यह क्यों हो रहा है ? राष्ट्रीयता की
हमारे जंगलों का जो राष्ट्रीय महत्व है, उसके मुताबिक हमारी प्रकृति की तीन ऋतुएं चलती जाती हैं। आज जिस तरह से जंगलों की अवहेलना की जा रही रही है, अगर इस देश की वन सम्पदा समाप्त हो गई तो वर्षा नहीं होगी, वर्षा नहीं होगी तो खेती नहीं होगी । इस वर्षा न होने की वैज्ञानिक घोषणा कर रहे हैं ।
पिछले दिनों एक कांड यू०पी० में हुआ। शंकरगढ़ के महाराजा जंगल में जा रहे थे शिकार खेलने के लिए। उनको वहां गोली मार दी गई, वह जज थे और वहीं मर गए। में पूछता हूं कि क्यों जा रहे थे शिकार खेलने के लिए ? किसी से परमिट लिया था। इतने बड़े व्यक्ति थे, यू० पी० के मुख्यमंत्री के भाई थे, शंकरगढ़ के महाराजा थे। यह सारा क्या हो रहा है और कौन कर रहा है ? आप इस तरह के पहलू पर कोई विचार नहीं करते ।
मेरे विचार में जितने सामन्तवादी, जागीरदार इस देश में हैं, वह जंगलों के सब से बड़े दुश्मन हैं और इसके बारे में आपको विचार करना पड़ेगा ।
मेरा निवेदन है कि जंगल का, जीव-जन्तु का संबंध है। वन रहेंगे तो जीव-जन्तु रहेंगे, जीव-जन्तु रहेंगे तो वन रहेंगे । अगर वन रहेंगे तो प्रकृति रहेगी, प्रकृति रहेगी तो मानव की रक्षा होगी। अगर वन
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a7ed87b3a1271d3263662f9e271b7971a439a618 | pdf | कोविड मरीजों की संख्या फिर से बढ़ रही है
इसलिए सभी श्रोताओं से अपील है कि कोई भी कोताही न बरतें
सभी सुरक्षा उपायों का पालन करें और अट्ठारह वर्ष से ऊपर के सभी लोग बेहिचक टीका लगवाएं
सुरक्षित रहें और इन आसान उपायों का पालन करें
मास्क पहनें दो गज दूरी है जरूरी सुरक्षित दूरी बनाये रखें हाथ और मुंह साफ रखें मुख्य समाचार मंडला डिंडोरी बालाघाट सिवनी और नरसिंहपुर में कोविड कैयर सेंटर बनाए जाएंगे
मुख्यमंत्री ने कहाप्रदेश में लगातार कम हो रहा है कोरोना संक्रमण
देश में अब तक सत्रह करोड से अधिक लोगों को लगाए जा चुके हैं कोविड टीके
कोविड केयर सेंटर केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि मध्यप्रदेश के मंडला डिंडौरी बालाघाट सिवनी और नरसिंहपुर जिले में सर्वसुविधायुक्त कोविड केयर सेंटर बनाए जाएंगे जिनमें ऑक्सीजन लाइन ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर के साथ वेंटीलेटर्स की भी सुविधा होगी
वे कल सागर जिले के बीना में बीओआरएल के निकट नवनिर्मित अस्थाई एक हज़ार बिस्तर के अस्थायी कोविड अस्पताल के निरीक्षण के बाद एक बैठक में बोल रहे थे
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि साथ ही मध्यप्रदेश में ग्यारह पीएसए ऑक्सीजन प्लांट शीघ्र लगाए जाएंगे
प्रदेश को अतिरिक्त क्राइयोजैनिक ऑक्सीजन टैंकर भी प्रदान किए जाएंगे
केन्द्रीय मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि बीना में बॉटलिंग प्लांट भी शुरू किया जाएगा
पेश है एक रिपोर्ट बीना रिफाईनरी की इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को मेडिकल ऑक्सीजन में कन्वर्ट कर मरीजों के लिए उपयोग में लिया जाएगा
यह एक बड़ा प्रोजेक्ट है जो सागर विदिशा अशोकनगर और गुना सहित आसपास के जिलों के कोविड मरीजों के लिए बड़ी सौगात साबित होगा
उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य है कि आने वाले समय में मध्यप्रदेश ऑक्सीजन की उपलब्धता के मामले में भी आत्मनिर्भर बनकर उभरे
उन्होंने बताया कि ऑक्सीजन प्लांट लगाये जाने की दिशा में गेल आयनॉक्स जैसी संस्थाओं से भी बातचीत चल रही है
प्रदेश कोविड प्रदेश में कोरोना संक्रमण लगातार कम हो रहा है
नए पॉजिटिव मरीजों की संख्या ग्यारह हजार इक्यावन है और इनका ग्रोथरेट एक दशमलव नौ प्रतिशत है
ये जानकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दी
वे कल राजधानी भोपाल स्थित मंत्रालय में केन्द्रीय इस्पात पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान की मौजूदगी में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोरोना नियंत्रण कोर ग्रुप के सभी जिलों के प्रभारी मंत्री और अधिकारियों के साथ कोरोना की स्थिति एवं व्यवस्थाओं की समीक्षा बैठक में बोल रहे थे
बैठक में बताया गया कि मुख्यमंत्री कोविड उपचार योजना के माध्यम से हर गरीब एवं मध्यम वर्गीय व्यक्ति को हर जिले में निशुल्क उपचार की सुविधा दी जा रही है
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए गाँवगाँव शहरशहर में किल कोरोना अभियान चलाया जा रहा है
इसके अंतर्गत गाँवों में घरघर सर्वे कर मरीजों की पहचान कर तुरंत उपचार चालू किया जा रहा है
मंख्यमंत्री ने कहा कि हम शीघ्र ही कोरोना को पूरी तरह नियंत्रित कर लेंगे
प्रदेश कोरोना संक्रमण प्रदेश में पिछले चौबिस घंटों के दौरान ग्यारह हज़ार इक्यावन नये कोरोना संक्रमित मिले हैं
इन्हें मिलाकर कुल पॉजिटिव की संख्या छः लाख इकहत्तर हजार सात सौ तिरेसठ हो गई है
दूसरी ओर कल चार हजार पाँच सौ अड़तीस कोरोना संक्रमित स्वस्थ हुए इन्हें मिलाकर अब तक प्रदेश में पाँच लाख छप्पन हजार चार सौ तीस संक्रमित स्वस्थ होकर अपने घरों को जा चुके हैं
अभी भी प्रदेश में एक लाख आठ हजार नौ सौ तेरह सक्रिय मामले हैं
अधिक संक्रमण वाले जिलों में इंदौर भोपाल जबलपुर ग्वालियर शामिल हैं
कल इंदौर में एक हजार छः सौ उन्यासी और भोपाल में एक हजार पाँच सौ छप्पन नये मामले सामने आये
वहीं जबलपुर में नौ सौ छियालीस और ग्वालियर में आठ सौ इकसठ नये कोरोना संक्रमित मिले
जन आंदोलन सिवनी जिले के बंडोल थाना में पदस्थ कांस्टेबल राजेश सरेयाम ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमित होकर वापस लौटे और अब लोगों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने की अपील कर रहे हैं
भारतटीकाकरण देश में अब तक सत्रह करोड से अधिक कोविड टीके लगाए जा चुके हैं
इनमें पचानवे लाख छियालीस हजार स्वास्थ्य कर्मियों को वैक्सीन की पहली डोज और चौंसठ लाख से अधिक को दूसरी डोज शामिल है
एक करोड उनतालीस लाख से अधिक अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को पहली डोज और सतहत्तर लाख से अधिक को दूसरी डोज भी मिल चुकी है
देश में इस वर्ष सोलह जनवरी को विश्व के सबसे बडे टीकाकरण अभियान की शुरूआत हुई थी
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि कल छः लाख इकहत्तर हजार से अधिक लोगों को कोविड टीका लगाया गया
इनमें तीन लाख सत्तानवे हजार को पहली डोज और दो लाख चौहत्तर हजार से अधिक को वैक्सीन की दूसरी डोज लगायी गई
अट्ठारह से चौंतालीस वर्ष आयु वर्ग के दो लाख तैंतालीस हजार नौ सौ अट्ठावन लोगों ने कल टीके की पहली डोज ली
देश के तीस राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में अब तक इस आयु वर्ग के बीस लाख उनतीस हजार से अधिक लोगों को कोविड वैक्सीन लग चुकी है
टीकाकरण अभियान का तीसरा चरण इस महीने की पहली तारीख को शुरू हुआ था
वैश्विक मददकोविड भारत देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर में कोविड संक्रमण तेजी से बढ़ने के बीच भारत को विश्व समुदाय से सहयोग मिल रहा है
केन्द्र सरकार इस विदेशी मदद को तेजी से राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को वितरित और आवंटित करने के लिए प्रभावी व्यवस्था कर रही है
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कल तक छह हजार सात सौ अड़तीस ऑक्सीजन कंसंट्रेटर तीन हजार आठ सौ छप्पन ऑक्सीजन सिलेण्डर सोलह ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र चार हजार छह सौ अड़सठ वेंटीलेटर और तीन लाख से अधिक रेमेडेसिविर टीके भेजे जा चुके हैं
इससे चिकित्सा सुविधाओं को मजबूती मिलेगी
एम्बुलेंस स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभुराम चौधरी ने बताया कि कोविड संक्रमित मरीजों को अस्पताल ले जाने में किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो इसके लिए दो सौ अतिरिक्त एम्बुलेंस वाहन किराये पर लेने की स्वीकृति दी गई है
उन्होंने बताया कि पूर्व में कोविड उन्नीस मरीजों के परिवहन के लिए प्रदेश के जिलों में एक सौ अड़तालीस वाहन की स्वीकृति दी गई थी
इस प्रकार अब प्रदेश के जिलों में कोविड संक्रमित मरीजों के लिए तीन सौ अड़तालीस एम्बुलेंस वाहन से अस्पताल ले जाने के लिए उपलब्ध रहेंगे
रेलवेऑक्सीजन रेल विभाग अभी तक विभिन्न राज्यों को तकरीबन चार हजार दो सौ टन तरल चिकित्सा ऑक्सीजन की आपूर्ति कर चुका है
रेल मंत्रालय ने कहा है कि अड़सठ एक्सप्रेस रेलगाड़ी अपनी यात्राएं पूरी कर चुकी हैं
विभिन्न राज्यों को तरल चिकित्सा ऑक्सीजन पहुंचा कर रेल विभाग लोगों को राहत पहुंचा रहा है
रेल विभाग अब कानपुर जैसे नए शहरों में ऑक्सीजन पहुंचा रहा है
इनको अस्सी टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की गई है
मंत्रालय ने कहा है कि रेल विभाग अभी तक महाराष्ट्र को दो सौ तिरानवे टन उत्तरप्रदेश को एक हजार दो सौ तीस टन मध्यप्रदेश को दो सौ इकहत्तर टन दिल्ली को एक हजार छह सौ उन्यासी टन हरियाणा को पांच सौ पचपन टन तेलंगाना को एक सौ तेईस टन और राजस्थान को चालीस टन तरल चिकित्सा ऑक्सीजन की आपूर्ति की गई है
समाचार संक्षेप में एक उज्जैन के पिपली नाका चौराहे पर नगर निगम जोन आफिस के एक गोदाम कल आग लग गई
अग्निशमन विभाग ने आग पर काबू पा लिया है
दो रतलाम जिला कलेक्टर ने कोरोना कफ्यू के उल्लंघन के मामले में रतलाम औद्योगिक थाना क्षेत्र में एक विवाह समारोह आयोजित होने पर मामला दर्ज करने के निर्देश दिये
तीन एक निजी कंपनी ने रतलाम जिले के जावारा अस्पताल को बीस लाख रूपये के ऑक्सीजन कंसनट्रेटर भेंट किये हैं
चार निवाड़ी जिले में मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद के सदस्य ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को कोरोना से बचाव की जानकारी दे रहे हैं
पाँच सतना जिले के रामपुर बाघेलान में जमीन पर गिरे बिजली के हाईटेंशन तार के संपर्क में आ जाने से सात गायों की मृत्यु हो गई
छः महात्मागांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में कोविड19 विषाणु के आयुर्वेदिक समाधान विषय पर आज वर्चुअल राष्ट्रीय संगोष्ठि आयोजित की जा रही है |
d40427417b9be344f43303a31f02625593e6c165 | web | भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी)
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI), भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम (Securities and Exchange Board of India Act), 1992 के प्रावधानों के तहत 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) है।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की उद्देशिका में सेबी के मूल कार्यों में प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज़) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण, प्रतिभूति बाज़ार (सिक्योरिटीज़ मार्केट) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना शामिल है।
- सेबी के अस्तित्त्व में आने से पहले, पूंजीगत मुद्दों का नियंत्रक (Controller of Capital Issues) नियामक प्राधिकरण था; इसे पूंजी मुद्दे (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 से अधिकार प्राप्त थे।
- अप्रैल 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत सेबी का गठन भारत में पूंजी बाज़ार के नियामक के रूप में किया गया था।
- प्रारंभ में सेबी एक गैर-वैधानिक निकाय था जिसे किसी भी तरह की वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं थी।
- सेबी अधिनियम, 1992 के माध्यम से यह एक स्वायत्त निकाय बना तथा इसे वैधानिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
- इसका मुख्यालय मुंबई में तथा क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में स्थित हैं।
- सेबी बोर्ड में एक अध्यक्ष तथा कई अन्य पूर्णकालिक एवं अंशकालिक सदस्य होते हैं।
- यह समयनुसार तत्कालीन महत्त्वपूर्ण मुद्दों की जाँच हेतु विभिन्न समितियाँ भी नियुक्त करता है।
- इसके अलावा सेबी के निर्णय से असंतुष्ट संस्थाओं के हितों की रक्षा के लिये एक प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण-सैट (Securities Appellate Tribunal- SAT) का गठन भी किया गया है।
- SAT में एक पीठासीन अधिकारी तथा दो अन्य सदस्य शामिल होते हैं।
- इसे दीवानी न्यायालय के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति SAT के निर्णय अथवा आदेश से असंतुष्ट है तो वह सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
Securities Appellate Tribunal (SAT)
- SAT, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
- यह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड या अधिनियम के तहत एक सहायक अधिकारी द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई कर सकता है तथा उस पर निर्णय दे सकता है; और अधिनियम या तत्समय लागू किसी अन्य कानून के तहत न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र, इसको प्रदत्त शक्तियों और अधिकारों का प्रयोग कर सकता है।
- 27 मई, 2014 को जारी सरकारी अधिसूचना के परिणामस्वरूप SAT ने PFRDA अधिनियम, 2013 के तहत पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (Pension Fund Regulatory and Development Authority- PFRDA) द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई की और उसका निपटान किया।
- इसके अलावा 23 मार्च, 2015 को जारी सरकारी अधिसूचना के संदर्भ में, SAT ने बीमा अधिनियम 1938, जनरल इंश्योरेंस बिज़नेस (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1972 तथा बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 एवं इनके अंतर्गत दिये गए नियमों एवं विनियमों तहत भारतीय बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण (IRDAI) द्वारा पारित आदेशों के विरुद्ध अपील पर सुनवाई की।
सेबी की शक्तियाँ एवं कार्यः
- सेबी एक अर्ध-विधायी और अर्ध-न्यायिक निकाय है जो विनियमों का मसौदा तैयार कर सकता है, पूछताछ कर सकता है, नियम पारित कर सकता है तथा ज़ुर्माना लगा सकता है।
- जारीकर्त्ता- एक बाज़ार उपलब्ध कराके जिसमें जारीकर्त्ता अपना वित्त बढ़ा सकते हैं।
- निवेशक- सही और सटीक जानकारी की आपूर्ति एवं सुरक्षा सुनिश्चित करके।
- मध्यवर्ती/बिचौलिये- बिचौलियों के लिये एक प्रतिस्पर्द्धी पेशेवर बाज़ार को सक्षम करके।
- प्रतिभूति कानून (संशोधन) अधिनियम, 2014 द्वारा सेबी अब 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक राशि की किसी भी मनी पूलिंग योजना को विनियमित करने तथा गैर-अनुपालन के मामलों में संपत्ति को संलग्न करने में सक्षम है।
- सेबी के अध्यक्ष के पास "तलाशी/जाँच और ज़ब्ती संबंधी ऑपरेशन" का आदेश देने का अधिकार है। सेबी बोर्ड किसी भी प्रकार के प्रतिभूति लेन-देन के संबंध में किसी भी व्यक्ति या संस्थाओं से टेलीफोन कॉल डेटा रिकॉर्ड जैसी जानकारी भी मांग सकता है।
- सेबी उद्यम पूंजी कोषों और म्यूचुअल फंड सहित सामूहिक निवेश योजनाओं के कामकाज के पंजीकरण तथा विनियमन का कार्य करता है।
- यह स्व-नियामक संगठनों को बढ़ावा देने उन्हें विनियमित करने और प्रतिभूति बाज़ारों से संबंधित धोखाधड़ी एवं अनुचित व्यापार प्रथाओं को प्रतिबंधित करने के लिये भी कार्य करता है।
- हाल के वर्षों में सेबी की भूमिका और अधिक जटिल हो गई है।
- बाज़ार के आचरण के नियमन पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है जबकि विवेकपूर्ण नियमन पर कम।
- सेबी की वैधानिक प्रवर्तन शक्तियाँ अमेरिका और ब्रिटेन में इसके समकक्षों की तुलना में अधिक हैं क्योंकि गंभीर आर्थिक क्षति के लिये दंड देने के मामले में यह तुलनात्मक रूप से अधिक शक्तिशाली है।
- यह आर्थिक गतिविधि पर गंभीर प्रतिबंध लगा सकता है, ऐसा निवारक निरोध की तरह संदेह के आधार पर किया जाता है।
- अधीनस्थ कानून बनाने के लिये सेबी अधिनियम के व्यापक विवेकाधिकार के रूप में इसकी विधायी शक्तियाँ निरपेक्ष हैं।
- बाज़ार के साथ पूर्व परामर्श का घटक और विनियमों की समीक्षा की एक प्रणाली (जो यह देखने के लिये तैयार की गई है कि क्या विनियम व्यक्त किये गए उदेश्यों को पूरा करते हैं) काफी हद तक अनुपस्थित है। परिणामस्वरूप नियामक का डर व्यापक है।
- विनियमन, चाहे वे नियम हों या प्रवर्तन, विशेष रूप से इनसाइडर ट्रेडिंग जैसे क्षेत्रों में, परिपूर्णता से बहुत दूर है।
- वास्तव में एक अभिवृत्तिक परिवर्तन की आवश्यकता है क्योंकि बाज़ार के बारे में सैकड़ों की संख्या में ऐसी जानकारियाँ उपलब्ध हैं जो दर्शाती हैं कि बाज़ार अपराधियों से भरा हुआ है जिसके चलते सख्त कार्रवाई और गंभीर हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
- बाज़ार को और बेहतर कैसे बनाया जाए इस संदर्भ में सेबी को गहन समीक्षा और शोध करने की आवश्यकता है। फंड्स के आकार में वृद्धि कभी भी सफलता का मानक नहीं हो सकती और न ही यह प्रदर्शित कर सकती है कि बाज़ार विनियमन के इस खंड/क्षेत्र में कैसा प्रदर्शन हो रहा है।
- सेबी का सबसे बड़ा लक्ष्य बाज़ार के इस क्षेत्र में नीति-समष्टि संबंधी परिशोधन होना चाहिये।
- सेबी को अपने संगठन के अंतर्गत मानव संसाधन और इससे संबंधी मामलों पर विशेष ध्यान देना चाहिये। सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिये सेबी को पार्श्व प्रविष्टि को प्रोत्साहित करना चाहिये। इसका कारण यह है कि सेबी में अग्रिम बाज़ार आयोग (Forward Markets Commission) के विलय के बाद वरिष्ठ कर्मचारियों का संरेखण और निर्धारण एक खुला कार्यक्षेत्र बना हुआ है।
- निरंतर निगरानी और बाज़ार बुद्धिमत्ता में सुधार के साथ प्रवर्तन को मज़बूत किया जा सकता है। इसके लिये एक प्रतिभा समृद्ध पूल की आवश्यकता है।
- भारत के वित्तीय बाज़ार एक दूसरे से विभाजित हैं। वित्तीय उत्पादों की ओवरलैपिंग के मामले में एक नियामक को दूसरे की विफलता के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इस संदर्भ में एक एकीकृत वित्तीय नियामक, ओवरलैप तथा अपवर्जित सीमाओं दोनों के विषय में उत्पन्न गतिरोध को दूर करने के प्रयास कर सकता है।
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b6684f593bc8cafb24e1ca5f2b2d48d625a61591582a575832e2dad04238a777 | pdf | आदर्श भापरणकला
श्यों को छोड़ देना; सम्भव शंकाओं को अपनी ओर से प्रस्तुत करके उनका सही-सही निराकरण करने का प्रयास करना, इस यही वह चन्द बातें हैं जिनका ध्यान रखकर जनवक्ता को मंत्र पर कदम बढ़ाना चाहिए । इतनी जानकारी के बिना भाषण देने से प्रोत्साहन की अपेक्षा प्रोत्साहन ही प्राप्त होगा; तथा जनता की सहानुभूति न मिलकर भ्रामक विचारधारा का ही प्रसार होगा । शब्द चयन : एक सफल वक्ता के सामने उक्त तीन प्रधान आवश्य के पश्चात् जो चौथी आवश्यकता है वह है भाषणोपयुक्त शब्द चयन करने की । जिस वक्ता का जितने भी अच्छे-से-अच्छे और प्रभावशाली शब्दों और उनके प्रयोग पर अधिकार होगा, वह उतना ही सफल वक्ता बन सकेगा और उसके भाषण में उतना ही दम भी रहेगा । एक सफल वक्ता के शब्दों को श्रोता के कानों में बज उठना चाहिए और उनकी भंकार उनके हृदय में एक प्रभावशाली गूँज बन कर उतर जानी चाहिए । जिस प्रकार एक दूकानदार के पास जितना भी अच्छा संग्रह अपने सामान का होगा उतनी ही अच्छी दूकानदारी वह कर सकेगा । इसी प्रकार एक वक्ता के पास जितने भी उपयुक्त शब्दों का भण्डार होगा उतने ही सुन्दर से सुन्दर और प्रभावशाली से प्रभावशाली शब्दों में गूंथकर वह अपने भावों और विचारों की माला बना सकेगा । ताजे-से-ताजे और सुन्दर-से-सुन्दर फूलों से गुथी यह विचार - मालाएँ ग्राप-से-आप उसके श्रोताओं के गलों का हार बनकर उन्हें वक्ता के चन्धन में बाँध रुकेगी । सुन्दर शब्द चयन से वक्ता के भाषण की प्रभावात्मकता को बल मिलेगा ।
शब्द ही वक्ता के पास वह
हैं जिनके जरिये से वह
के मस्तिष्क की नाड़ियों को हिला हिला कर उनमें अपनी आवाज भरता है और उनके दिल के पदों में अपनी भावना को संजोता है। यह शब्द वक्ता की वह कलातमक तूलिकाएँ हैं कि जिनसे वह पाटकों के सामने अपनी भावनाओं, कल्पनाओं और विचारों का आकर्षक चित्र प्रस्तुत करता है । श्रोताओं के निराश्रित हृदयों को शा पूरा कर देना और उनमें कर्त्तव्य की ज्वाला सुलगा देने का कार्य वक्ता शब्दों की ही सहायता से करता है। सहाय पड़ी भारत की जनता में आजादी की भावना भरने को लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, सुभाष और जवाहर ने जो कुछ भी किया, क्या वह कभी सम्भव था, यदि इनके पास अपने भावों को श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए प्रभावशाली शब्दों का प्रभाव होता ? यह नितान्त ग्रसम्भव था । कार्य और कारण की सत्यता को व्यापक रूप देना शब्दों का ही काम है। सुन्दर और प्रभावशाली शब्द ही इसके सफल साधन हैं । एक सफल वक्ता को चाहिए कि उसके अनुशासन में शब्दों की कतारें हर समय हाथ बांधे खड़ी रहें और मिलते ही वह उसके विचारों को अपने में भरकर वक्ता के श्रोताओं पर एक कलात्मक ढंग से बरस पड़ें, - एक उतार-चढ़ाव के साथ, एक प्रवाह और शक्ति८
के साथ ।
वक्ता को शब्द चयन में दो बातों की ओर विशेष रूप से ध्यान देकर
उनका प्रयोग करना चाहिए, - एक तो किसी भी शब्द का प्रयोग करने से पूर्व उसका सही अर्थ उसे ज्ञात होना चाहिए और दूसरे उस शब्द का ठीक-ठीक उच्चारण उसे आना चाहिए । गलत अर्थ में शब्द प्रयोग करने से तो अर्थ का अनर्थ हो ही जाता है परन्तु उच्चारण की शुद्धता भी श्रोताओं के कानों में बहुत खटकती है। शब्दों के गलत प्रयोग औौर उच्चारण की शुद्धता का श्रोताओं पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और इसी के आधार पर वह कभी-कभी वक्ता की योग्यता का मूल्याङ्कन कर बैठते हैं ।
गलत शब्द के प्रयोग से कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि वक्ता जो कुछ कह रहा है वह सत्र मूर्खतापूर्ण है, परन्तु यदि केवल उस शब्द के प्रयोग मात्र की भूल को सुधार दिया जाय तो पता चलता है कि वह कुछ पते की बात कह रहा था। इस प्रकार वक्ता की महत्त्व पूर्ण बात भी कभी-कभी उसके गलत शब्द प्रयोग से मूर्खतापूर्ण बन जाती है। शब्दों के इस गलत प्रयोग से बचने के लिए वक्ता को चाहिए कि वह अपने नपे-तुले और जाने-पहचाने तथा परखे हुए शब्दों का ही प्रयोग करे; केवल पांडिल्य-प्रदर्शन की ठरक में ग्राकर निराधार और व्यर्थ शब्दों की झड़ी लगाता न चला जाय । भाप फटकारते समय शब्दों का प्रयोग उसे सोच-समझ कर संयत रूप से करने की को चाहिए कि वह अपने भाषण आवश्यकता । वक्ता में जिन शब्दों का प्रयोग करे उनके सही प्रयोग, उच्चारण और अर्थ तथा विभिन्न प्रयोगों से परिचित हो । अन्यथा कहीं पर भी ऐसी भूल होने की सम्भावना बनी रहेगी कि जिसके कारण वक्ता का विषय और उसकी विचारधारा ही खतरे में पड़ जाय और उसका मंतव्य उसके श्रोताओं तक सही माने में न पहुँच सके । एक सफल वक्ता बनने के लिए यह आवश्यक है कि शब्दचयन का कार्य बहुत ही सावधानी और उत्तरदायित्व के साथ किया जाय क्योंकि शब्दों के ही ऊपर वास्तव में भाषण के ढाँचे को खड़ा होना होता है और यदि वक्ता का यही ढाँचा मजबूत और स्थायी न बन सका तो भाषण में बल नहीं प्रासकता और वक्ता को उसके लक्ष की प्राप्ति सम्भव हो जाती है । वक्ता को चाहिए कि वह एक नोटबुक में अपने विशेष रूप प्रयोग में आने वाले शब्दों को लिख डाले और प्रति सप्ताह उनकी संख्या में श्रावश्यकता या प्रयोग के अनुसार वृद्धि करता चला जाय। इस दिशा में सफलता की यही एक कुटुंजी है ।
इस प्रकार हमने देखा कि एक सफल वक्ता बनने के लिए उसकी प्रधान आवश्यकताएँः उसका मजबूत इरादा, भाषण देने का अनथक अभ्यास, निष्कपटता, विषय का ज्ञान और शब्दों का सही चयन तथा उनका प्रयोग । इन सभी दिशाओं में जागरूक रहकर वक्तव्य क्षेत्र में होने वाला वक्ता व एक
दिन कुशल वक्ता बन सकता है । भाषण कला की यही प्रधान आवश्यकताएँ हैं कि जिनके बिना भाषण न तो प्रभावात्म्म्क ही बन सकता है और न ही श्रोताओं के मस्तिष्क को डुला देने की शक्ति ही उसमें आ सकती है। इन शक्तियों के सही संकलन और प्रसार पर ही वक्ता की सफलता आधारित है और इनका जितना भी कलात्मक-से-कलात्मक स्पष्टीकरण और प्रदर्शन करने में जो कलाकार सफल होगा, उतना ही सफल वक्ता वह बन सकेगा ।
अध्याय २
गत श्रध्याय में हमने वक्ता की आवश्यकताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए यह बतलाने का प्रयत्न किया कि किन गुणों से सम्पन्न होकर किसी भी व्यक्ति को जन-वक्ता बनने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए । इस अध्याय में हम भाषण के उन प्रधान गुणों का विवेचन करेंगे कि जिनके द्वारा कोई भी भाषण प्रभावशाली वन सकता है और श्रोताओं की विचारधारा को अपने साथ बहता हुआ अपने में विलीन कर सकता है ।
यहाँ भाषण-कला के विद्यार्थियों का ध्यान में एक मूल सत्य की ओर दिला देना उचित समझता हूँ कि भाषण देने के इच्छा रखने और इस विषय की पुस्तकें पढ़लेने से ही कोई व्यक्ति एक सफल वक्ता नहीं बन सकता । इसका प्रधान कारण यही है कि यह पुस्तकें पाटकों के सम्मुख केवल यही प्रस्तुत करने का प्रयास मात्र हैं कि जो कुछापको कहना है वह किस ढंग और किस प्रकार की भाषा में तथा किस तरह कहना चाहिए, जिससे कि वह श्रोताओं के लिए अधिक से अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो सके । यह पुस्तकें विचार न होकर विचार का साधन और मार्ग प्रदर्शन की योजना हैं जिनके सहयोग से कोई भी व्यक्ति ठीक दिशा में प्रगति कर सकता है । परन्तु इस प्रगति के मूल में वक्ता के अपने विचार और उसकी अपनी प्रेरणा सम्मिलित रहनी आवश्यक है। वक्ता का यही विचार और उसकी यही प्रेरणा इस पुस्तक द्वारा सही मार्ग प्रदर्शन पाकर उसे एक सफल वक्ता बनाने में लाभकर सिद्ध होगी। यदि वक्ता में अपने विचार और अपनी प्रेरणा का भाव है तो उसके लिए कोई विशेष लाभ होगा, ऐसा हमारा विचार नहीं ।
स्पष्टता, सरलता और स्वाभाविकता
स्पष्टता : स्पष्टता से यहाँ हमारा तात्पर्य उस वृक्तव्य से है जिसमें बात को गुत्थियाँ बनाकर श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास न करके वक्ता खोल |
167a1de330d5a492639b9241a4a739592b4a0f934fdf256f431910e30ea08443 | pdf | देता ? चन्द्रमणि तथा रामेश्वर इस बातसे चिन्तित रहने लगे । माता और बड़े भाईकी इस चिन्ताका कारण जब रामकृष्णको मालूम हुआ तो उन्होंने कहा कि 'इस कामारपूकर ग्रामसे तीन मील दूर जयरामवटी गाँवमें रामचन्द्र मुखोपाध्याय की कन्या मेरी 'धर्मपत्नी होगी, वहीं जाओ ।' रामेश्वर जयरामटी गाँव में गये और वहाँ जानेपर रामचन्द्र मुखोपाध्यायने अपनी पञ्चवर्षीया कन्याका विवाह रामकृष्णके साथ करना स्वीकार कर लिया । बहुत साधारण रीतिसे विवाहोत्सव समाप्त हुआ । धनाभावके कारण चन्द्रमणिके पास अपने गहने तो थे नहीं, उन्होंने एक धनसम्पन्न पड़ोसीसे गहने माँगकर वधूको पहना दिये थे । अत्र चन्द्रमणिको यह चिन्ता हुई कि ऐसी सुकुमार बालिकाके शरीरसे गहने उतारकर किस प्रकार पड़ोसीको वापस दिये जायँ । इस कार्यका भार ठाकुरने 'स्वयं अपने ऊपर लिया और रात्रिमें सोती हुई वधूके शरीर परसे धीरे-धीरे एक-एक कर सारे गहने उतार लिये । प्रातःकाल उठनेपर वहूने जब अपने अङ्गोंपर गहनोंको न देखा तो वह सिसक - सिसककर रोने लगी । सासने बड़ी कठिनाईसे बहूको यह कहकर शान्त किया कि गदाधर ( ठाकुर ) तुम्हें बहुत से गहने देंगे । । बाल्यावस्था में वस्त्राभूषणों में रुचि रहना स्वाभाविक है, परन्तु शारदामणि ( रामकृष्णकी धर्मपत्नी ) की यह लालसा आगे चलकर सर्वथा नष्ट हो गयी थी । वह स्वयं कहा करतीं कि 'ठाकुरके ऐसे कितने ही मारवाड़ी भक्त थे जो कभी-कभी दाल-चावल आदि बहुत से खाद्य पदार्थ लाया करते थे। एक दिन एक मारवाड़ी
• सज्जन कपड़े में बाँधकर तीन हजार रुपये लाये और उन्हें ठाकुरको भेंट करना चाहा । ठाकुरने उन रुपयोंको यह कहकर लौटा दिया
ले कि मुझे इनकी आवश्यकता नहीं । 'माँ' शारदामणिके पास जाओ । वह रुपये लेकर मेरे पास आये और उसे स्वीकार करनेके लिये प्रार्थना करने लगे । ठाकुर भी साथ आये थे । वह भी कहने लगे कि यह धन क्यों नहीं ले लेती ? इससे गहने कपड़े वनवा सकती हो । उनका यह कहना केवल मेरी परीक्षाके लिये ही था । मैंने उत्तर दिया कि 'मुझे अब वस्त्राभूषणोंकी आवश्यकता नहीं । मैं रुपये लेकर क्या करूँगी ?"
श्रीरामकृष्णका विवाह शास्त्रानुसार केवल एक संस्कारमात्र ही था । प्रत्येक द्विजको गर्भाधानसे लेकर मरणपर्यन्त दश संस्कार करने होते हैं और धर्मशास्त्र के आज्ञानुसार विवाह-संस्कार भी उनमेंसे एक है । ठाकुरने भी इन नियमोंका पालन किया था । गीतामें भी भगवान् कहते हैंयद्यदाचरति
जनः ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ।। प्राचीन ऋषियोंने हिन्दूमात्रके लिये इन संस्कारोंकी स्थापना करके वास्तव में बड़ा ही उपकार किया है । यथाविधि इन नियमोंसे संस्कृत होकर मनुष्यका जीवन परम धार्मिक बन जाता है, मानो गर्भाधानसे ही हमारे अङ्गोंमें धर्म विद्युत् भरी जाती है और वही शेष अवस्था में परिपूर्ण होकर जगत्के दिगूदिगन्तोंमें अपनी ज्योति छिटकाती रहती है । जबसे हमारे यहाँ इन संस्कारोंका लोप होना प्रारम्भ हुआ तभीसे मनुष्य . जीवन धर्म-विरोधी बनता जा रहा है और शारीरिक एवं
मानसिक कष्टोंकी वृद्धिका यह भी एक कारण बन गया है । ठाकुरने अपना विवाह कर हमारे सम्मुख यह आदर्श उपस्थित किया है कि संस्कारोंके नियम बड़े महत्त्वके हैं । यद्यपि विवाहसे उन्हें कुछ भी प्रयोजन न था, कामवासनाकी तृप्तिकी किञ्चिन्मात्र भी आवश्यकता न थी, फिर भी मनुष्योंके कल्याणकी बात ध्यान में रखकर यह सत्र कुछ करना उन्होंने उचित समझा । काम- चेष्टाके वशीभूत होकर ठाकुरका अपनी धर्मपत्नीसे जीवनपर्यन्त कभी भी सहवास नहीं हुआ । वह स्रोमात्रको 'माँ' हीका रूप मानते थे । एक बार ठाकुरके कतिपय मित्रोंने उनसे पूछा कि तुम भार्यासे पति-पत्नी-भावका व्यवहार क्यों नहीं करते ? सन्तानोत्पादन करके ब्राह्मणधर्मका पालन करो । रामकृष्णने उत्तर दिया कि - 'यदि में अपने वीर्यसे सन्तान उत्पन्न करूँ तो स्वभावतः ही उनपर मेरा ममत्व होगा। मैं चाहता हूँ कि बिना किसी भेदभावके समस्त संसारके बच्चोंको अपने ही बच्चे समझें ।'
गृहस्थाश्रमका आदर्श बड़ा ऊँचा है । गृहस्थियोंको अपना जीवन जगत्-सेवा में अर्पण कर देना चाहिये, जिससे हृदय विस्तृत होकर समस्त संसार में अपने ही आत्माका दर्शन होने लगे । भारतके सद्गृहस्थवृन्द ! श्रीरामकृष्णको अपना आदर्श बनाकर यथाशक्ति उनके सन्मार्गका अनुसरण करो । विवाहको केवल कामपिपासाकी तृप्तिका साधन मानकर जीवन नष्ट करना बुद्धिमानी नहीं है । अपने जीवनप्रवाहको महान् आदर्शकी ओर मोड़ दो । इससे तुम्हारे आत्माका विकास होगा । आहार, निद्रा और मैथुनादिमें ही इस अमूल्य जीवनको नष्ट-भ्रष्ट कर देनेसे न तो तुम्हारा ही कल्याण होगा और न जगत्का ही। चारों आश्रमोंको
शास्त्रानुकूल रीतिसे निभा ले जाना ही मनुष्योंके कल्याणकी कुञ्जी है । ठाकुरने तुम्हें शिक्षा देनेके ही अभिप्रायसे चारों आश्रमोंके नियम यथाविधि पालन किये और अपने पवित्र जीवनसे भक्ति, ज्ञान और वैराग्यके जीते-जागते रत्न संसारके उपकारार्थ छोड़ गये ।
शारदामणिको ठाकुरने वड़ी सावधानीके साथ स्वयं शिक्षा दी थी, जिसके फलस्वरूप उनका जीवन इतना उन्नत बना कि वह वास्तव में ठाकुरकी सहधर्मिणी और जीवन-सहचरीका यथार्थ पद प्राप्त कर सकीं । इन पति-पत्नीका महान् आदर्श गङ्गायमुनाके सङ्गमकी भाँति अनेक जीवोंका उद्धार करनेवाला है । यद्यपि इन दोनों पति-पत्नी के प्राकृत संसर्गसे कोई सन्तान न थी, परन्तु जगत्के सब बच्चोंको अपनी ही सन्तान समझकर ये सदैव उनके कल्याणके इच्छुक थे । विवाहित होते हुए भी उनकी तरह नैष्ठिक ब्रह्मचर्यका पालन करना इस समय असम्भव प्रतीत होता है, किन्तु शास्त्रानुसार नियमपूर्वक व्यवहार करनेसे धीरे-धीरे काम-वासनाका निरोध किया जा सकता है । यही गृहस्थका आदर्श है। ठाकुरके देहावसानके बाद भी देवी शारदामणि जीवनपर्यन्त भक्त - समुदायको शान्ति प्रदान करती रहीं। यही नहीं, वरं उन्होंने कितने ही मुमुक्षु स्त्री-पुरुषोंको स्वयं दीक्षित कर कृतार्थ किया ।
(७) कलकते में
विवाहके बाद श्रीरामकृष्ण लगभग डेढ़ वर्पतक कामारपूकुरमें रहकर फिर दक्षिणेश्वर चले गये । वहाँ पहुँचकर उन्होंने कालो-मन्दिरका पूजा कार्य आरम्भ किया। पहले वह खूत्र स्वस्थ हो गये थे, किन्तु पूजा कार्य आरम्भ करते ही चित्तविहलता और प्रेमोन्मादने उन्हें फिर आ घेरा । उनके मनमें निरन्तर भगवतीके दर्शनकी ही अभिलापा बनी रहती और वह आर्त्तचित्त हो कहा करते - 'माँ' ! मुझे सुख या धन-सम्पत्तिको कुछ भी लालसा नहीं, केवल तुझसे ही मिलनेको उत्कण्ठा है । तू दया कर अपने इस बच्चेको दर्शन दे । इस प्रेमाभक्तिकी तीव्रताके कारण वह निरन्तर ध्यानावस्थित रहते और रात-दिन इसी प्रकारकी प्रार्थनाएँ किया करते । माँके विरहजन्य दुःखका कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि उनके अङ्ग-प्रत्यङ्ग में जलन उत्पन्न होने लगी । पहलेकी भाँति फिर अनिद्रा-रोगने घर दवाया । शरीरकी जलन और दाहकी शान्तिके लिये जब वह घंटों जलमें खड़े रहते अथवा सम्पूर्ण शरीरमें चन्दनका लेप करते, तब कहीं उन्हें कुछ चैन मिलता था । यह अवस्था देखकर मथुरावाबूने फिर वैद्यसे उनकी चिकित्सा करानी शुरू की किन्तु उससे कुछ भी लाभ न हुआ । उन्हीं दिनों २९ फरवरी सन् १८६१ ई० को रानी राशमणिका देहान्त हो गया और भगवती में अत्यन्त प्रेम होनेके कारण उन्हें माँ भगवतीका साक्षात् दर्शन भी अन्तसमयमें हो गया । रानी राशमणिने प्रेमानन्दका अनुभव करते हुए इस जगत्को छोड़ दिया ।
रानीके देहावसानके वाद मथुरावाबू ही समस्त सम्पत्तिके उत्तराधिकारी बने । ठाकुरमें उनकी श्रद्धा दिनोंदिन बढ़ती गयी । वह सब तरहसे उनकी सेवामें तत्पर रहा करते थे । ठाकुरके सरल स्वभाव और हृदयकी पवित्रताका उनपर वड़ा प्रभाव पड़ता था और यही कारण था कि ठाकुरकी आज्ञाका पालन करनेमें मथुराबाबू अपना सौभाग्य मानते थे । एक दिन प्रातःकाल श्रीरामकृष्ण भगवतीकी पूजाके लिये बगीचेमें फूल चुन रहे थे। उनकी दृष्टि गङ्गा-तटको एक नौकापर जा पड़ी, जिसपरसे एक स्त्री उतर रही थी । स्त्रीके पैर नंगे थे । शरीरपर गेरुआ वस्त्र था । खुले हुए केश पीठपर लहरा रहे थे । उसका शरीर सुडौल तथा उसकी मुखाकृति बड़ी ही सुन्दर थी । स्त्रीको देखते ही ठाकुरने फूल तोड़ना छोड़ दिया और अपने कमरेमें जा बैठे । कमरेमें 'हृदय' को बुलाकर कहा - देखो, गङ्गाकिनारे एक संन्यासिनी आयी है, उसे मेरे पास ले आओ। उस स्त्रोको अपने बुलाये जानेपर तनिक भी सन्देह या आश्चर्य न हुआ । वह तुरन्त 'हृदय' के साथ आयी और कमरेमें प्रवेश करते ही वह रामकृष्णसे कहने लगी - - - 'बच्चा ! तू यहाँ है ? मैं तुझे गङ्गाके किनारे ढूँढ़ती - ढूँढ़ती थक गयी । इतना तो मुझे मालूम था कि तू कहीं गङ्गाके किनारे रहता है, किन्तु किस स्थानविशेष में रहता है यह न जान पायी थी । इतने दिनोंके बाद आज तू यहाँ मिला ।' ठाकुरने कहा, 'माँ ! तू मुझे कैसे जानती है ?' ( बात यह थी कि ब्राह्मणीका घर भी दक्षिणेश्वर में ही था । उसका नाम तो योगेश्वरी था, किन्तु दक्षिणेश्वर में लोग उसे 'ब्राह्मणी' कहकर
पुकारा करते थे । ) ब्रामणीने कहा-'वेटा ! महामायाकी कृपासे मुझे तीन व्यक्तियोंसे मिलने के लिये आदेश प्राप्त हुआ था । उनमें दोसे तो मैं मिल चुकी हैं, आज तुझ तीसरेसे मिलनेका अवसर भी प्राप्त हो गया । ब्राह्मणी और रामकृष्णका व्यवहार परस्परमें माँ-बेटेका-ता हो गया । एक दिन रामकृष्ण ने अपनी साधनाका विस्तृत वर्णन सुनाते हुए ब्राह्मणीसे पूछा---'माँ ! मुझे लोग पागल समझते हैं। क्या मैं सचमुच पागल हूँ ?' हूँ ब्राह्मणीने कहा- 'तुझे कौन पागल कहता है ? तू तो महामायाके प्रेममें पागल है । इस अवस्थाका नाम पागलपन नहीं । यह तो 'महाभाव' की अवस्था है।' ब्राह्मणी बड़ी विदुषी थी । उसने शास्त्रोंके कितने ही इलोक सुनाकर अपने कयनको पुष्टि की और रामकृष्णको सान्त्वना दी। तबसे वह सन्तुष्ट रहने लगे। इससे पूर्व उन्हें अपने ही व्यवहारोंसे शङ्का होने लगी थी कि कहीं सचमुच यह पागलपन ही तो नहीं है, किन्तु ब्राह्मणीके वाक्योंसे उनका पूरा समाधान हो गया ।
दक्षिणेश्वरम त्राह्मणी भैरवी नामसे भी पुकारी जाती थी । एक दिन सन्ध्या समयकी बात है, भैरवीने अपने इष्टदेव श्रीरघुवीरको भोग लगाने के लिये भोजन बनाया और उन्हें भोग लगाकर उनकी मूर्तिके ध्यानमें निमग्न हो गयी । इतनेमें ही ठाकुर भी अपने भावमें विभोर हुए वहाँ आ पहुँचे और भैरवीद्वारा अर्पित भोग पाने लगे। भैरवीने जब आँख खोली तो रामकृष्णको भोजन करते देखा । भैरवीकी प्रसन्नताकी सीमा न रही, क्योंकि जो दृश्य वह ध्यानमें अनुभव कर रही थी, आँख खोलनेपर साक्षात् वही सामने दीख पड़ा । इधर महाभावमें मस्त ठाकुरको जब कुछ बाह्यज्ञान हुआ तो वह अपने इस व्यवहारपर लज्जित |
191bda0f0773dbbfb3073106d2a3297537f986d2 | web | Chandra Grahan 2023 Live Updates: साल का दूसरा ग्रहण और पहला चंद्रग्रहण लग गया है. इस बार ये ग्रहण बुद्ध पूर्णिमा और वैशाख पूर्णिमा के दिन लगा है. चंद्रग्रहण से जुड़े अपडेट्स के लिए यहां बने रहें.
साल का पहला चंद्रग्रहण आज लगने जा रहा है. देश की राजधानी दिल्ली के हिसाब से रात 8 बजकर 45 मिनट पर चंद्रग्रहण शुरू होगा और रात 1 बजे तक रहेगा. बताया गया है कि उपच्छाया से पहला स्पर्श 8:45 पर है और परमग्रास 10:53 मिनट पर रहेगा. उपच्छाया की कुल अवधि 4 घंटे, 15 मिनट, 34 सेकंड है. हालांकि इस बार सूतक शुरू होने का समय नहीं है. Chandra Grahan के समय नए काम करने से बचना चाहिए और भगवान के भजन यानि ॐ और गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए. कहा गया है कि चंद्रग्रहण शुरू होने से पहले ही भोजन प्राप्त कर लेना चाहिए.
चंद्रग्रहण के दौरान गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जा सकता है. इसके अलावा मां बगलामुखी के मंत्र, चंद्रमा देव के मंत्र और शिव चालिसा का पाठ भी किया जा सकता है.
चंद्र ग्रहण के दौरान कुछ भी खाना नहीं चाहिए. गर्भवती महिलाओं को भूलकर भी घर के बाहर नहीं निकलना चाहिए. गर्भवती महिलाओं को इस दौरान सोना भी नहीं चाहिए. इसके अलावा चंद्र ग्रहण के दौरान पूजा करनी चाहिए.
चंद्रग्रहण पर कुछ इस तरह दिखाई दे रहा है चांद. तस्वीर गुजरात के भुज की है.
Chandra Grahan 2023: इस साल टोटल 4 ग्रहण लगेंगे. 20 अप्रैल को सूर्य ग्रहण लगा था. पहला चंद्रग्रहण आज लगा है. दूसरा सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर को लगेगा और दूसरा चंद्रग्रहण 29 अक्टूबर को लगने वाला है.
भारत में चंद्रग्रहण की शुरुआत हो गई है. 8 बजकर 44 मिनट पर चांद को ग्रहण लगा है. देर रात 01:01 बजे चंद्रग्रहण खत्म हो जाएगा.
साल के पहले चंद्र ग्रहण की शुरुआत हो गई है. गुजरात के भुज में कुछ इस तरह दिख रहा चांद.
Chandra Grahan 2023: 8 बजकर 44 मिनट से चंद्र ग्रहण की शुरुआत हो जाएगी. रात में 10 बजकर 52 मिनट पर यह अपने पीक पर होगा. इसके बाद इसका प्रभाव घटने लगेगा. वहीं, देर रात 1 बजकर दो मिनट पर खत्म हो जाएगा.
कहां दिखेगा साल का पहला चंद्र ग्रहण?
Chandra Grahan 2023: साल का पहला चंद्र ग्रहण यूरोप, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत, अटलांटिक, अंटार्कटिका, हिंद महासागर और एशिया के अधिकांश हिस्से में दिखाई देगा.
Chandra Grahan 2023: आज बुद्ध पूर्णिमा भी है और चंद्र ग्रहण भी. वैशाख महीने में इस चंद्र ग्रहण पर ऐसा दुर्लभ संयोग 130 साल बाद बन रहा है.
Chandra Grahan 2023: कब होता है चंद्रग्रहण ?
Chandra Grahan 2023 Live Updates: सूर्य, चंद्रमा और धरती जब एक ही रेखा में आ जाते हैं तो चंद्रग्रहण होता है.
- चंद्र ग्रहण के दौरान कुछ भी खाना नहीं चाहिए.
- गर्भवती महिलाओं को भूलकर भी घर के बाहर नहीं निकलना चाहिए.
- ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को सोना भी नहीं चाहिए.
- चंद्र ग्रहण के दौरान पूजा करनी चाहिए.
- ग्रहण खत्म होने के बाद स्नान अवश्य करें.
- पूरे घर में गंगा जल का छिड़काव करें.
- धार्मिक मान्यता के मुताबिक, गाय को रोटी खिलाएं.
- मन में गलत भाव न लाएं और न ही किसी की बुराई करें.
- मन को उत्तेजित करने वाली चीजों से दूर रहें.
- ग्रहण के दौरान ॐ अथवा गायत्री मंत्र का जप करें.
चंद्र ग्रहण का मुहूर्त रात्रि 8.46 से शुरू हो जाएगा, जो 06 मई 2023 की रात्रि 1. 05 मिनट पर समाप्त होगा. यह चंद्र ग्रहण दक्षिण पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में देखा जा सकेगा.
आज साल का पहला चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है. इस उपच्छाया चंद्र ग्रहण का क्या महत्व है और इसके दोष से बचने और शुभ फल की प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए. पढ़िए इससे जुड़ी 5 बड़ी बातें.
क्या होता है उपच्छाया चंद्र ग्रहण ?
ज्योतिषविद् के मुताबिक, उपच्छाया चंद्र ग्रहण में चंद्रमा के आकार में कोई परिवर्तन नहीं होता है और यह आम दिनों में नजर आने वाले आकार का ही नजर आता है.
किन मंत्रों का करें जाप?चंद्रग्रहण के दौरान गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जा सकता है. इसके अलावा मां बगलामुखी के मंत्र, चंद्रमा देव के मंत्र और शिव चालिसा का पाठ भी किया जा सकता है.
क्या भारत में दिखेगा चंद्रग्रहण?भारत में चंद्रग्रहण नहीं दिखने वाला है. हालांकि, कुछ हद तक चंद्रग्रहण देखा जा सकता है. अगर बादल नहीं हुए तो चंद्रग्रहण देखे जाने की संभावना है. इसे नंगी आंखों से देखा जा सकेगा.
चंद्रग्रहण की शुरुआत कब होगी?
चंद्रग्रहण की शुरुआत आज रात 8.45 बजे से होगी, जो रात के करीब 1 बजे तक चलने वाला है. इस दौरान लोगों को खास ख्याल रखना होगा.
पंचांग में कितने चंद्रग्रहण का हुआ जिक्र?
पंचांग के मुताबिक, इस साल कुल मिलाकर दो चंद्रग्रहण लगने वाले हैं. इसमें पहला चंद्रग्रहण आज यानी 5 मई को लग रहा है. ये भारत में दिखाई नहीं देने वाला है. वहीं, दूसरा और साल का आखिरी चंद्रग्रहण 28 अक्टूबर को लगेगा. इस चंद्रग्रहण को भारत में देखा जा सकेगा.
2023 में कितने ग्रहण लगेंगे?
साल 2023 में कुल मिलाकर 4 ग्रहण लगेंगे. सबसे पहले 20 अप्रैल को सूर्य ग्रहण लगा. पहला चंद्रग्रहण आज लग रहा है. दूसरा सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर को लगेगा और दूसरा चंद्रग्रहण 29 अक्टूबर को लगने वाला है.
किन राशियों पर क्या पड़ेगा असर?
क्या भारत में दिखेगा चंद्रग्रहण?
भारत में चंद्रग्रहण दिखाई नहीं देगा. ऐसे में अगर आपको इसे देखना है, तो आपको काफी बारीकी से नजर रखनी पड़ेगी. ऐसे में हम आपको लाइव स्ट्रीम के जरिए इसे देखने की सलाह देंगे.
राशियों पर क्या होगा चंद्रग्रहण का असर?
ज्योतिषियों की मानें, तो इस साल का पहला चंद्रग्रहण कुछ राशियों के लिए अच्छा रहने वाला है. मगर कुछ ऐसी भी राशियां जिन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. मेष, वृषभ, कन्या, तुला एवं वृश्चिक राशि चंद्रग्रहण ठीक नहीं है. सिंह और धनु राशि के जातकों के लिए चंद्रग्रहण शुभ रहेगा.
अगर आपको स्पेस की घटनाओं में दिलचस्पी है, तो आपके लिए ये वीकेंड बहुत मजेदार रहने वाला है. सबसे पहला इवेंट साल का पहला चंद्रग्रहण है. इसके बाद लोगों को इसी हफ्ते उल्का बौछार भी देखने को मिलेगा. फिर नंबर आएगा फुल मून का.
चंद्रग्रहण 2023 को लेकर क्या मान्यताएं हैं?
देश में चंद्रग्रहण को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. इसमें सबसे ज्यादा चर्चित है कि इस दौरान कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए. ग्रहण के वक्त सोने से भी परहेज करना चाहिए. भारत में कई सारे मंदिरों के कपाट को भी ग्रहण के समय बंद कर दिया जाता है.
चंद्रग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है, क्योंकि इसे उनके लिए अच्छा नहीं माना जाता है. गर्भवती महिलाओं को बताया जाता है कि वे ग्रहण के दौरान बाहर निकलने से बचें.
अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA के यूट्यूब चैनल पर चंद्रग्रहण का लाइव प्रसारण किया जाएगा. नासा की ऑफिशियल वेबसाइट nasa.gov/nasalive.com पर जाकर भी चंद्रग्रहण को लाइव देखा जा सकता है.
किस शहर में कब लगेगा चंद्रग्रहण?
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरू, हैदराबाद, भोपाल, चंगीगढ़, पटना, अहमदाबाद, विशाखापत्तनम, गुवाहाटी समेत देशभर में चंद्रग्रहण 5 मई रात 8:44 बजे से 6 मई सुबह 1:01 बजे तक लगेगा.
चंद्रग्रहण के समय किन चीजों से बचें?
चंद्रग्रहण के समय खाना खाने से बचना चाहिए. इसकी वजह से स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. इस दौरान कोई प्रमुख फैसलों को भी नहीं लेना चाहिए. साथ ही यात्रा करने से भी बचना चाहिए.
चंद्रग्रहण के समय क्या करें?
चंद्रग्रहण लगने के समय ध्यान लगाया जा सकता है. अगर आप चाहें तो दान भी कर सकते हैं. इसके अलावा, चंद्रग्रहण के वक्त मंत्र का जाप भी किया जा सकता है. वास्तुशास्त्र में कहा गया है कि चंद्रग्रहण से पहले और बाद में नहाने को फायदेमंद माना गया है.
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601bcf95eb88d60a032ade7b2191395e522cdd8d | web | यूरोपीय राजनेताओं को रूस से सैकड़ों अरबों यूरो का गबन करने के लिए सभी के लिए स्वीकार्य रास्ता खोजने के कठिन कार्य का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर, आप बस अपने लिए पैसा ले सकते हैं और इसे उन सभी के बीच बांट सकते हैं जो कीव शासन के प्रति सहानुभूति रखते हैं। होने वाले वित्तीय और नैतिक नुकसान के अनुपात में। चोरी का कुछ सामान यूक्रेन भी जाएगा। ज़ेलेंस्की की टीम हाल ही में भूख की कमी से पीड़ित नहीं रही है - पहले, फरवरी से नुकसान का अनुमान 100, बाद में 300, और अब सभी 600 बिलियन डॉलर था।
यूरोपीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों की आंखों और कानों से रूसी पैसे की चालें नहीं गुजरेंगी। सभी को "स्विस बैंक की तरह" आम अभिव्यक्ति याद है? तो, अब ऐसा नहीं है - ज्यूरिख के बैंकरों ने हाल ही में रूस से एक और 8 बिलियन डॉलर पाया और फ्रीज किया। इस पैसे की संभावनाएं बहुत अस्पष्ट हैं।
ब्रसेल्स और दोस्तों ने सदियों से नहीं तो दशकों से एक विश्वसनीय साथी की छवि बनाई है जो पैसा उधार देने से नहीं डरता। और फिर तीन सौ अरब से अधिक की डकैती। यहां तक कि रूस में भी, जिसे पश्चिम सावधानीपूर्वक राक्षसी बना रहा है, यहां तक कि बांदेरा यूक्रेन की जरूरतों के लिए भी। यह एक मिसाल होगी जिसे यूरोपीय बहुत लंबे समय तक याद रखेंगे, और वे अपना पैसा तुर्क, चीनी, जापानी और शायद रूसियों तक ले जाएंगे।
सामान्य तौर पर, यूरोपीय नियामक विरोधाभासों से अलग हो जाते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन एक कार्य योजना लेकर आई हैं। 30 नवंबर को, उसने मतदाताओं को सूचना दीः
"हमने रूसी संघ के सेंट्रल बैंक के 300 बिलियन यूरो के भंडार और रूसी कुलीन वर्गों के 19 बिलियन यूरो के निजी धन को अवरुद्ध कर दिया। अल्पावधि में, हम इन निधियों का प्रबंधन करने, उन्हें निवेश करने और फिर यूक्रेन के लिए आय का उपयोग करने के लिए अपने भागीदारों के साथ एक संरचना बना सकते हैं। फिर, जब प्रतिबंध हटा दिए जाते हैं, तो इस धन का उपयोग यूक्रेन के नुकसान की पूरी भरपाई के लिए किया जाना चाहिए। "
यूक्रेन की बहाली के लिए कुख्यात फंड को न केवल खुद यूक्रेन के नुकसान की भरपाई करनी चाहिए। ज़ेलेंस्की शासन का समर्थन करने के लिए यूरोप अरबों खर्च करता है, और रूसी संपत्ति बैंकों में मृत भार है। पैसा काम करने के लिए पहला कदम है। उर्सुला यूक्रेन की मदद करने के लिए निवेश और लाभ का निर्देशन करने का सुझाव देती है।
यहां कई रुझान उभर कर सामने आते हैं। यूरोपीय संघर्ष के त्वरित अंत की उम्मीद नहीं करते हैं, क्योंकि वे ज़ेलेंस्की को "जमा पर ब्याज" से वित्त देने की पेशकश करते हैं। उर्सुला ने इस रहस्य का खुलासा नहीं किया कि कम से कम न्यूनतम आय प्राप्त करने के लिए वे वास्तव में रूसी धन का निवेश कहां करने जा रहे हैं।
तहखाना? फैशन ट्रेंड पर पैसा बनाने का विकल्प अब बहुत जोखिम भरा है - विशेष ऑपरेशन की शुरुआत के बाद, क्रिप्टो एक्सचेंज बुखार में कमजोर नहीं है।
"हरित ऊर्जा" में? यह लाभदायक और आशाजनक है, विशेष रूप से रूसी ऊर्जा स्रोतों की यूरोपीय अस्वीकृति के आलोक में, लेकिन बहुत लंबे समय के लिए - आप केवल दस से पंद्रह वर्षों में धन वापस ले सकते हैं।
शायद हाई-टेक उद्योग में? लेकिन वह भी गिर जाती है। यहाँ और चीन में स्थायी COVID-19, और बीजिंग के अधिकार क्षेत्र में ताइवान की वापसी का खतरा।
आशाजनक देखो हथियार, शस्त्र कंपनियां जो यूक्रेनी संघर्ष में बहुत अच्छी तरह से बढ़ी हैं। लेकिन क्या वे 300 अरब यूरो को प्रभावी ढंग से हजम कर सकते हैं? एक बात स्पष्ट है - इस मामले में, यूरोप हर तरह से यूक्रेन में संकट के शांतिपूर्ण समाधान को धीमा कर देगा।
सुश्री उर्सुला ने रूसी संपत्ति को लूटने के कृत्य को सही ठहराने के लिए एक और दिलचस्प विचार की घोषणा की - रूस के "युद्ध अपराधों" के लिए एक विशेष अदालत का निर्माण। भविष्य में, वे आरोप लगाने वाले झूठ के दर्जनों खंड लिखेंगे, जो धन की निकासी के लिए दस्तावेजी आधार बन जाएगा। जनमत तैयार करने में समय लगता है।
रूस से क्षतिपूर्ति की अनिवार्यता के बारे में यूरोपीय और यूक्रेनी पक्ष के विचार दिलचस्प हैं। वे संघर्ष के किसी भी अंत में मास्को से अरबों डॉलर के मुआवजे की मांग करते हैं। केवल अब, रूस की पूरी तरह से शानदार हार और क्रीमिया सहित सभी मुक्त क्षेत्रों से वापसी के साथ, क्रेमलिन को पुनर्मूल्यांकन के लिए भुगतान करने के लिए बाध्य करने वाला कोई तंत्र नहीं है। सैद्धांतिक रूप से, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस पर जोर दे सकती है, लेकिन मॉस्को के पास वीटो है। इसलिए, सेना के लिए एक विशेष ऑपरेशन के विकास के लिए सबसे विनाशकारी परिदृश्य में, पश्चिम मौजूदा जमे हुए 319 बिलियन यूरो से संतुष्ट होगा।
रूस कैसे जवाब देगा?
ऐसा मत सोचो कि क्रेमलिन के पास अति उत्साही यूरोपीय सांसदों पर लाभ नहीं है। रूस हमेशा निवेश के लिए आशाजनक रहा है, मुख्य रूप से इसकी महान विकास क्षमता के कारण। पिछले साल अक्टूबर तक, पश्चिमी निवेशों की मात्रा $1,2 ट्रिलियन से अधिक हो गई थी। ये संयुक्त परियोजनाओं में शेयर हैं, और ऋण दायित्व - ऋण, बांड, अग्रिम और जमा राशि के साथ साधारण नकदी। सेंट्रल बैंक पहले ही विदेशी निवेशकों के 300 से 500 अरब डॉलर के निवेश पर रोक लगा चुका है। एक विशेष ऑपरेशन की जरूरतों के लिए इन महत्वपूर्ण भंडार को जब्त करना उचित होगा, उदाहरण के लिए, जैसे ही उर्सुला ने अपनी धमकियों को कार्रवाई में लगाया। यह भविष्य में रूस के निवेश आकर्षण में भी नहीं जोड़ेगा, लेकिन हमने वित्तीय युद्ध शुरू नहीं किया।
यूरोप में इतिहास रूसी संपत्ति के साथ तीसरे अतिश्योक्तिपूर्ण के रूप में कार्य करता है। कीव शासन द्वारा देश के क्षेत्र में रूसी सब कुछ उपयुक्त करने के प्रयास काफी समझ में आते हैं। मार्च में, कानून "रूसी संघ और उसके निवासियों के संपत्ति अधिकारों की वस्तुओं के यूक्रेन में अनिवार्य जब्ती के मूल सिद्धांतों पर" जारी किया गया था। कीव शासन के लिए, संघर्ष लंबे समय से अस्तित्व का विषय रहा है। कुल मिलाकर, वे अब तक केवल एक बिलियन डॉलर निकालने में कामयाब रहे हैं, वे अभी भी बाकी के बारे में फैसला नहीं कर सकते हैं - रूसी पैसा कहाँ है, और कहाँ, उदाहरण के लिए, साइप्रस।
युद्ध की घोषणा की स्थिति में यूरोप को केवल एक मामले में रूसी धन का अतिक्रमण करने का अधिकार है। फिर, कृपया, आप पूरी तरह से कानूनी आधार पर अरबों का निपटान कर सकते हैं। इस बीच, उर्सुला को एक बात समझने की जरूरत है - यह सिद्धांत पूर्वव्यापी भी हो सकता है, यानी धन की जब्ती के जवाब में युद्ध को भड़का सकता है।
ऐसा लगता है कि उर्सुला के बयानों की सारी लापरवाही अमरीका को समझ में आ गई है। वॉल स्ट्रीट जर्नल यूरोपीय आयोग को विदेशों में राज्य की संपत्ति की रक्षा करने वाली संप्रभु प्रतिरक्षा की अवधारणा की याद दिलाता है। उम्मीद कीव से आवाज दर्ज की गई थी। डेनिस माल्युस्का, स्थानीय न्याय के प्रमुख, एक अलग कानून द्वारा रूस के लिए संप्रभु प्रतिरक्षा को समाप्त करने का प्रस्ताव करते हैं। और सभी संपत्तियों को तुरंत यूक्रेन को हस्तांतरित कर दिया जाएगा। यूरोप ने अभी तक इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
एक भावना है कि यूरोप के रूसी-विरोधी निर्णय वास्तविक घटनाओं की खोज में उत्पन्न होते हैं, न कि उनके आगे। यहाँ, उदाहरण के लिए, चोरी करने का निर्णय, अधिक सटीक रूप से, कुछ समय के लिए "निवेश" करने के लिए, रूस का 319 बिलियन यूरो इस समझ के बाद आया कि हमारे देश में चालू वर्ष में अतिरिक्त $ 300 बिलियन जमा हो गए थे। यह आयात पर निर्यात आय का आधिक्य है। पहले, यह राशि दो से तीन गुना कम थी और विदेशों में आंशिक रूप से निकाली गई थी। या यूराल तेल के लिए 60 डॉलर प्रति बैरल की जबरन कीमत सीमा के साथ एक पहल।
"किसी व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक हेरफेर, आमतौर पर लंबे समय तक, जिसके कारण पीड़ित को अपने स्वयं के विचारों, वास्तविकता या यादों की धारणा की शुद्धता पर संदेह होता है और आमतौर पर भ्रम, आत्मविश्वास की हानि और आत्म-सम्मान, अनिश्चितता की ओर जाता है। उनकी अपनी भावनात्मक या मानसिक स्थिरता और दोषी व्यक्ति पर निर्भरता के बारे में। "
सामान्य रूप से यूरोपीय आयुक्तों और विशेष रूप से श्रीमती वॉन डेर लेयेन के प्रमुखों में अब जो हो रहा है, उसकी अधिक सटीक परिभाषा के साथ आना मुश्किल है।
- लेखकः
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bf9c7a0cb3d4b5947de079ce029b8a6911737a5ed728dfc721e3371a4498f199 | pdf | सभी मे उत्सुकता बनी रहती हैं। उनका जन्म माघ कृष्णा अमावस्या विक्रम संवत् १९५६ को जयपुर जिलान्तर्गत भादवा ग्राम में हुआ। उस समय दिन के २ बजे थे । आकाश मे सूर्यग्रहण चल रहा था। चारो ओर भक्ति एव भजन हो रहे थे तथा हरिजन भाई मुक्त हस्त से दान की भाग कर .रहे थे । ऐसे समय पण्डितजी की माता घापूबाई ने पुत्ररत्न को जन्म देकर अपने गृहस्थी के कर्त्तव्य से मुक्ति मागी । बालक की जब जन्म कुण्डली बनाई गई तो उसमे प्रताप, प्रभाव एव विद्याबुद्धि तीनो का असाधारण योग निकला । माता-पिता यह 'जानकर फूले नहीं समाये । बालक चैनसुखदास एक वर्ष के हुये, दो वर्ष के हुये और तीन वर्ष को पार करके जब चौथे वर्ष मे प्रवेश किया तो विपत्ति ने 'आं दबाया और बायें पैर मे लकवा मार गया । लकवा होने की भी विचित्र घटना रही । बालक चैनसुखदास अपनी वडी वहिन की गोद मे थे । बहिन दरवाजे पर खडी खडी ककडी खा रही थी । उसी समय वहा लकडी को टेकते- टेकते एक वृद्धा
'आगयी और बालिका से ककडी मागने लगी । ' तथा अपनी भूख का रोना रोने लगी । वालिका ' को वृद्धा का मागना अच्छा नही लगा । उसने वृद्धा को लात मारी जिसको वह सह न सकी और वही गिर पडी । थोडी देर मे वह वृद्धा तो वहा से चली गयी किन्तु अकस्मात् ही पण्डितजी को गोद मे • लिये हुए वही बालिका ( गोद मे अपने भाई को "लिये हुये ) वहा गिर पड़ी और फिर अपने आप बह उठ भी नही सको । `माता दौडी हुई आयी और दोनो भाई बहिन को वहा से उठाकर अलगअलग शैय्या पर सुला दिया। पण्डितजी के पिताजी जवाहरलाल जी तत्काल स्थानीय वैद्य जी को ले आये । उनको देखने से पता चला कि दोनो को ही लकवा मार गया है । चारो घोर निराशा छा गयी । एक ४ वर्ष का पुत्र एव एक ६-७ वर्ष की नन्ही बालिका । माता-पिता के सामने भविष्य
मुह फाड कर खड़ा हो गया और उनके सुनहले स्वप्न ताश के पत्तो के महल के समान टूटते दिखायी देने लगे । पर्याप्त इलाज कराया गया लेकिन सब व्यर्थ रहा ।
बहिन को रोग मुक्ति
कुछ दिनो पश्चात् पडित जी ने गाव भादवा मे नटो की पूरी पार्टी आयी और गाँव के बाजार मे अपने कोतूहल पूर्ण खेल दिखलाने लगी। पूरा गाव नटो का खेल देखने के लिये उमड पड़ा । पण्डितजी के भी सभी घर वाले खेल देखने के लिये गये । रह गये घर मे दोनो भाई-वहिन जो पैर से लाचार थे। बहिन ने अपने माता-पिता से बहुत अनुनय विनय किया लेकिन सब व्यर्थ रहा। सबके चले जाने के पश्चात् उनकी बहिन लाली मे क्या देवी चमत्कार आया कि वह स्वयमेव ही उठ खडो हुई और भाग कर नटो का जहाँ खेल हो रहा था वही पहुच गयी । बहिन का लकवा दूर हो गया और वह स्वस्थ हो गयी । लोगो के आश्चय का ठिकाना नही रहा । लेकिन बालक चैनमुखदास वही बैठे रहे । धीरे-धीरे बालिका पूर्ण स्वस्थ हो गयी । वडी होने पर उसका विवाह जोबनेर के एक प्रतिष्ठित परिवार के श्री नेमिचन्द पाटनी से हो गया जिसके सुपुत्र श्री सुगनचन्द पाटनी जोबनेर म्युनिसिपैलिटी के वर्षों तक चैयरमैन रहे तथा आजकल वहा के प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता माने जाते हैं।
बड़े भाइयों का दुखद निधन
भादवा गाव मे ही एक पाठशाला थी । उसके अध्यापक थे श्री मगनमलजी शर्मा । उस समय अधिकाश गावो मे एक अध्यापकीय शालिए चलती । थी । पाठशाला वही के जैन मन्दिर मे लगती थी और उसमे उच्च वर्ग के ही बालक पढ़ने आते थे । शाला प्रातं और साय दो बार लगती थी। पण्डितजी के बड़े भाई मागीलाल और चचेरे भाई
केशरीमल भी उसी पाठशाला मे पढते थे । वे दोनो ही वहा के मेधावी छात्र माने जाते थे। उस समय विद्यार्थियों को लघु कौमुदी एव रत्नकरण्डश्रावकावार पढाया जाता था। लेकिन गांव मे पाठशाला
की आलोचना करने वाले भी कुछ व्यक्ति थे । ऐसे लोगो के कारण वह पाठशाला कुछ समय बाद बन्द हो गयी और गांव के विद्यार्थी उधर - इधर घूमने लगे । काम तो कुछ रहा नही इसलिये एक दिन १०-१२ विद्यार्थी गाव से मील की दूरी पर स्थित गुदली नामक तर्लया मे नहाने के लिये चले गये । उन विद्यार्थियों मे पंडितजी के दोनों भाई भी थे । वे दोनो ही तैरना जानते थे । इसलिये दोनो ने तलैया की एक दूसरी छोर से तैरते हुये बीच में मिलने का निश्चय किया और तलैया मे कूद पडे । तलैया के बीच मे कुवा था । दोनो बच्चे ही तो थे । वीच मे आते-आते वे दम तोड बैठे और बीच के कुवे मे डूब गये। उनके साथियों ने उन्हें निकालने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन वे उसमे सफल नही हो सके । उस घटना से चारो और हाहाकार मच गया तथा गाव के एव आस-पास के सैकडो व्यक्ति वहा एकत्रित हो गये । उस दिन गांव भर मे किसी के खाना नहीं बना । वहा का जागीरदार भी रात भर वही रहा और पुलिस थानेदार के आने पर जब बच्चो को तलैया मे से निकाला गया तो उन दोनो सुन्दर एव भोले-भाले बच्चों को देखकर सारे व्यक्ति जोर-शोर से रोने लगे । पण्डितजी के पिताजी एवं परिवार के लोगो के दुःख का तो कहना ही क्या ? उस दर्दनाक दृश्य का वर्णन करना भी कठिन है । जब थानेदार ने शेप वालकों को गिरफ्तार करने पर जोर दिया तो पण्डितजी के पिताजो ने विनम्र शब्दों मे मना किया और कहा कि उनका और हमारा ऐसा ही भाग्य था ।
प्लेग का प्रकोप
सवत् १९६९ मे भादवा गांव में प्रथम बार प्लेग का प्रकोप वडे भयकर रूप में हुआ । पहिले यह महामारी चूहो पर आायी । वे नाच-नाच कर मरने लगे इसके पश्चात् मनुष्यो पर पर महामारी ने अपना असर जमाना प्रारम्भ किया । पहिले जोरदार बुखार आता। फिर उसके गले मे, कान के नीचे अथवा जाघ के बगल मे गाठ होती । इस गाठ के प्रकोप से लोग तीन-चार दिन मे ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते । बडी भयानक बीमारी थी, डाक्टर और् वैद्य गांव मे थे ही नहीं। छोटे से गाव मे १५ - २० व्यक्ति प्रतिदिन मरने लगे। चारों ओर भय और आतक छा गया । पण्डितजी के घर मे भी महामारी ने प्रवेश किया और सर्वप्रथम पंडित के बाबाजी की लडको गगली को उसने अपना शिकार बनाया। गुगली बहुत तेज थी इसलिये वह घोड़ी के नाम से प्रसिद्ध थी। इसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पिताजी चन्द्रलालजी मर गए और तीन दिन बाद ही पंडितजी की दादी और चन्द्रलालजी की पत्नी मर गयी । फिर पडितजी के छोटे बाबा महामारी के शिकार हो गये। घर मे कोई परिचर्या करने वाला भी नही रहा। परिवार के एक के बाद एक सदस्य भरने लगे । छोटे बाबा के लड़के गंगालाल को भी प्लेग ने घर दबाया । उससे भयभीत होकर इनके बाबाजी गेरुलालजी गांव छोड़कर कही चले गये । अब पडितजी के पिताजी का नम्बर आया। घर नही बचा । इसलिये उन्हें मकान मे ही एक खाट सूनसान हो गया । उनका उपचार करने वाला कोई पर लिटा दिया। सारा गांव खाली हो गया और लोगों के सामने मृत्यु मुंहबाये खडी रही । लेकिन उनकी आयु शेष थी इसलिये वे स्वतः ही बिना किसी उपचार के ही अच्छे हो गये ।
पिताजी की मृत्यु
पंडितजी जब १०-१२ वर्ष के थे तभी उनके
पिताजी की मृत्यु हो गयी । बीमारी कोई खास नहीं थी। केवल मुह मे छाले थे । लेकिन गांव के वैद्य ने उन्हे रसकपूर दे दिया जिससे वे अत्यधिक परेशान हो गये। रसकपूर शरीर में फूट-फूटकर निकलने लगा। घर की आर्थिक स्थिति विशेष अच्छी नही थी और उनकी खर्चीली तबियत थी यद्यपि वे गाव के कामदार थे किन्तु खर्चीले होने से कुछ बचता नही था पडितजी ने स्वय ने लिखा है कि वे गरीबो की बहुत सहायता किया करते थे । दान देने की शक्ति नही होने पर भी वे राजा हरिश्चन्द्र बने हुये थे। एक बार पडितजी के सामने ही एक गरीब आदमी ने कहा कि उसके पास पहिनने को कुछ नही है तो उनके पिताजी ने अपनी अंगरखी खोल कर उसे दे दी। इसी तरह एक बार तो उन्होने अपनी पगडी भी उतार कर दे दी थी । इस कारण गाव मे उनका पूरा सम्मान था । उन्हे दादूपथी साधुओ के जमात को जिमाने का बहुत शौक था । कभी-कभी तो २० - २५ दादूपथी साधू पंडितजी के घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किये जाते थे । भोजन के पहले वे गाना गाते और फिर भोजन करते । दोनो ही कार्यों मे जवाहरलालजी की बहुत रुचि थी । वे अपने घर से किसी को निराश नहीं लौटाते थे ।
पंडितजी ने अपने सस्मरण मे लिखा है कि उस समय गावो मे किसानो की बहुत स्थिति खराब थी। सब जो खाते थे और गेहू की रोटी तो तब बनती थी जब कभी कोई मेहमान घर आ जाता । बच्चो को जब गेहू की की रोटी मिलती तो बड़े खुश होते । कभी तो एक गेहू कि रोटी के टुकडे करके बच्चो को मिठाई के समान दिया जाता था । चावल के तो दर्शन ही होली दीवाली होते थे । और जब चावल का भोजन बनता तो उस दिन त्योहार माना जाता था। पडितजी के वाबाजी चन्दूलालजी की की स्थिति और भी कमजोर थी । महीने मे कई ।
बार तो घर मे चूल्हा भी नही जलता था । लेकिन उनकी पत्नी बडी समझदार थी और जब कभी घर मे अन्न नहीं होता तो वह घुवा करके अपने यहा भोजन बनने का प्रदर्शन कर लेती थी। कोई रोजगारथा नही । नमक बेच कर कैसे गुजर हो सकती । था। वैसे किसी के पास भी अच्छा धन्धा नही था। यदि २ ) रुपये महीने की भी किसी को नौकरी मिल जाती तो उसे अच्छा माना जाता था ।
पिताजी की मृत्यु के पश्चात् घर की हालत और भी खराब हो गयी । घर मे केवल तीन प्राणी थे। स्वयं पंडितजी, उनका छोटा भाई सरदारमल एवं वृद्धा मा । मा कातने का काम करने लगी। दिन भर कातती और रात्रि को भी वही काम
करती । फिर भी तीनो का पेट भरना कठिन हो गया था । इसलिये पंडितजी ने कपास लोढने का कार्य प्रारम्भ किया । एक चर्खा मगाया गया । चैनसुखदासजी प्रतिदिन ५ सेर कपास लोढ लेते थे और इससे उनको एक आना रोज का मिलने लगा । पढने मे वे चतुर थे । कक्षा मे सब विद्यार्थियों से आगे रहते थे इसलिये इनके अन्य साथी भी जब घर परते तो वे पडितजी की सहायता करते । अब २) रु महीना पंडितजी औौर २) रु. महीना उसकी मा कमाने लगी और ४) रु महीने मे तीन प्राणियो का जैसे तैसे खर्च चलने लगा। पंडितजी के मामा मीठडी (जोधपुर) ठिकाने के कामदार थे । वे घर से सम्पन्न भी थे । जब उन्होंने इन तीनो को अपने यहा ले जाना चाहा तो उनकी मा ने मना कर दिया। और अपने द्वारा उपार्जित आाय से ही अपना काम चलाना चाहा ।
पडितजी प्रारम्भ से ही पढने मे चतुर थे । इसलिये गाव के सारे बच्चो को वे पढाया करते थे । एक बार जब वे अपनी मां के साथ अपने ननिहाल ज जाने को तैयार हुए तो सारे गांव के लोग इकठ्ठे होकर उनकी माता के पास आये और उन्हें वही
( १७ छोड कर जाने का प्राग्रह करने लगे । क्योंकि उनके बिना विद्यार्थियो का श्रावारा होने का डर था । पडितजी की मा को आखिर गाँव वालो की बात माननी पडी और अश्रु पूरित नेत्रो से अपने लाडले को छोड़कर जाना पड़ा ।
पडितजी ने अपने सस्मरण मे लिखा है कि पं० गोपालदासजी का प्रभाव आश्चर्यजनक था । उनके तर्फ प्रकाट्य होते थे और सहज ही अपने विरोधी को जीत लेते थे । वे शरीर मे बहुत दुबलेपतले थे उनको बहुमूत्र का रोग भी था इसलिये शास्त्रार्थ के बीच-बीच मे उन्हे उठकर जाना पडता था। जोबनेर में उन्होंने पडितजी के बहनोई श्री नेमीचन्द पाटनी के यहां एक समय भोजन भी किया था इसलिये उस समय पंडितजी को उन्हे समीप से ही देखने का अवसर मिला था। किसी बढे विद्वान से, पडितजी की यह प्रथम भेट थी ।
जब वे १२ वर्ष के थे तो जोवनेर पढने के लिये चले गये। वहां वे २ वर्ष तक पढते रहे । वहा जैन पाठशाला थी । पडित सूरजमलजी वहा के अध्यापक थे। उसी समय जोबनेर मे एक विशाल जैन मेले का आयोजन किया गया । गाव के बाहर एक विशाल मडप बनाया गया । उसमे जैन समाज के बडे-बढे विद्वान् भी सम्मिलित हुए थे उसी समय समाज के प्रसिद्ध विद्वान् प. गोपालदासजी बरैया एवं आर्य समाज के प्रसिद्ध विद्वान् स्वामी दर्शनानन्दजी के मध्य शास्त्रार्थ हुआ । विषय था "ईश्वर कर्तृत्व" । शास्त्रार्थ कई घण्टो तक चला। इसमे जैनो की जीत हुई। पं. गोपालदास ने अपने पाडित्य से आर्य समाज को बुरी तरह हराया। इस शास्त्र मे विधुपुरा (इटाबा ) के कुवर दिग्विजयसिंह भी सम्मिलत हुए थे । वे पहिले आर्य समाजी थे लेकिन बाद में वही पर जैन हो गये । अन्य विद्वानो मे जयपुर के प्रसिद्ध देश एव समाज सेवी श्री अर्जुनलाल सेठी, इटावा के चन्द्रसैन जैन वैध एव प. पुट्ट लाल के नाम उल्लेखनीय हैं । इन विद्वानो ने भी शास्त्रार्थ मे भाग लिया था । आर्य समाज की हार का जोबनेर के ठाकुर कर्णसिंहजी के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा और - वे कुछ ही दिनो पश्चात् मृत्यु को प्राप्त हो गये । पडित चैनसुखदास के जीवन में इस प्रकार के बड़े समारोह को देखने का प्रथम अवसर था । पंडितजी प्रारम्भ मे अच्छे गायक भी थे । ज़ब भजन गाते श्रोताओ को अपनी ओर सहज ही आकृष्ट कर लेते थे । मेले मे पण्डितजी ने एक भजन गाया था । इससे प्रसन्न होकर एक सेठ ने उन्हे १) ६. और पुस्तक पुरस्कार मे दी थी ।
दो वर्ष जोबनेर विद्याध्ययन करने के पश्चात्
वे पुन. अपने गाव आ गये। उन दिनो सेठ केशरीमलजी सेठी गयाजी से भादवा आते रहते थे । गाव की पाठशाला भी उन्ही की प्रेरणा से चलती थी । जब कभी वे भादवा नाते तो पाठशाला मे भी निरीक्षण के लिये जाते । उनकी दृष्टि मे पंडितजी अच्छे एव कुशाग्र बुद्धि के छात्र लगे इसलिये उनकी इच्छा उन्हे गयाजी ले जाने की होने लगी ।
एक बार उन्होने गयाजी से ही पडितजी के काकाजी नाथूलालजी को पत्र लिखा जिसमे उन्होंने पडितजी को गयाजी भेजने का आग्रह किया । पडितजी के हृदय में अध्ययन की तीव्र लालमा थी । इसलिये उन्होने शीघ्र ही अपनी माताजी एवं बाबाजी का आर्शीवाद लेकर गयाजी के लिये प्रस्थान कर दिया। उस समय उनकी प्रायु १६ वर्ष की थी । गाव मे यातायात का साधन नही था । वहा से १३ मील प्रासलपुर का स्टेशन था । वही से रेल गाड़ी पकड़नी पड़ती थी । गाव से स्टेशन तक ऊंट पर जाना पड़ता था । पडित जी भादवा से आगे कुछ ही दूर पहुचे होगे कि प्रकाश में बादल छा गये और घोर वर्षा होने लगी । रेगिस्तान मे कही ठहरने का स्थान नही था। लेकिन आप जरा भी नही घबरा
और अपने लक्ष्य पर चलते ही रहे । यह मानो इन्द्रदेव द्वारा आपका पहिला स्वागत था और सरस्वती द्वारा प्रथम परीक्षा ।
गयाजी मे पडितजी का मन नहीं लगा और वे वहा से और कही जाने की सोचने लगे । उसी समय महाविद्यालय में पढ़ने वाला एक विद्यार्थी सेठजी की दुकान पर आाया । वह वहा से भाग कर आया था । वह विद्यार्थी कलकत्ता के किसी सेठ का लडका था । स्वभाव से ही वह तेज था । इसलिये विद्यालय से लड झगड कर आया था । उसने आते ही केशरीमलजी सेठी के सामने विद्यालय की निन्दा करना प्रारम्भ कर - दिया। सेठीजी विद्यालय की कार्यकारिणी के सदस्य " थे तथा उसे आर्थिक सहायता भी देते रहते थे । कमेटी मे उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी । किन्तु वह 'विद्यार्थी काफी समय तक जब विद्यालय की बुराइया करता ही रहा तब सेठीजी ने उसे भला बुरा कह कर उसे वही जाकर अध्ययन करने का आग्रह किया। पडितजी वही बैठे थे और बड़े ध्यान पूर्वक उनकी बात सुन रहे थे । तत्काल उनके मन मे बनारस जाकर पढ़ने की इच्छा हुई और उन्होने • अपने विचार सेठीजी के सामने रख दिये। सर्व । प्रथम तो सेठीजी ने उन्हें जाने की सलाह नही दी लेकिन कुछ समय पश्चात् पंडितजी के पुन प्राग्रह करने पर वे सहमत हो गये । और स्माद्वाद महा• विद्यालय मे पढाने को राजी हो गये । पडितजी की खुशी का पारावार नही रहा । उनके लिये • तत्काल कुर्ता एव कोट सिलाया गया और उस । लड़के के साथ एक पत्र लिखकर उन्हें भी वाराणसी । पढने के लिये भिजवा दिया । स्वय सेठीजी उन दोनो विद्यार्थियों को स्टेशन पर छोड़ने के लिये
गये । 'फिर विपत्ति
रेल से चलकर वे दोनो वाराणसी आ गये ।
पंडितजी तो प्रथम बार वाराणसी आये थे इसलिये उन्हें तो विद्यालय का कुछ पता ही नही था । वह विद्यार्थी उन्हे सर्व प्रथम श्वेताम्बर मन्दिर मे ले गया जो स्याद्वाद महाविद्यालय के समीप ही था । उसने वहा जाकर कहा कि "विद्यालय तो प्रातः होने पर चलेंगे। अभी अपने कपडे खोल कर सो जावो ।" पडितजी ने ऐसा ही किया । गर्मियो का समय था इसलिये सोते ही गहरी नींद था गयी और आख खुली तो मालूम पड़ा कि न तो वह विद्यार्थी ही है और न उनके कपडे एवं पैसे । पहिलें तो उन्होने इधर उधर देखा और जब कही दिखायी नहीं दिया तो वे जोर-जोर से रोने लगे । और कोई उनके पास चारा भी क्या था । बनारस मे उन्हें कोई नही जानता था और न वे विद्यालय को ही जानते थे । शरीर से अलग लाचार । कही जाने-आने मे अत्यधिक कष्ट होता था। आयु भी १६ वर्ष मे अधिक नही । रोने की आवाज सुनकर मन्दिर का पुजारी उन्हें डाटने फटकारने लगा । और तत्काल मन्दिर से चले जाने के लिये कहने लगा । लेकिन भाग्य को यह स्वीकार नहीं था । अनायास ही स्याद्वाद महाविद्यालय के तत्कालीन अधिष्ठाता श्री नन्दकिशोरजी जैन वहा श्रा गये
और उन्हे रोता हुआ देखकर पूछताछ करने लगे । वे पंडितजी को पूछने लगे कि वे क्यो रो रहे हैं और वे कहा से आये हैं। पडितजी ने उन्हें अपने पर बीती पूरी घटना सुना दी तथा कहा कि उन्हे सेठ केशरीमलजी सेठी ने विद्यालय में पढने के लिये भेजा है। लेकिन उन्होंने जो पत्र अधिष्ठाता महोदय को लिखा था वह भी कोट मे रखा था जो वह लडका लेकर चला गया। पंडितजी ने अपना पूरा वृत्तान्त रोते-रोते कहा । अधिष्ठाताजी को बालक पर दया आ गयी और वे उसे विद्यालय मे अपने साथ ले गये। उन्होंने तार द्वारा पहिले केसरीमलजी से पडितजी के बारे में पूछताछ की और जब उन्हे
सन्तोष हो गया तो पंडितजी को विद्यालय में प्रवेश दे दिया । तत्काल दर्जी को बुलाया गया और उनके लिये कपडे सिलाये गये । पडितजी ने लिखा है कि "जब तक वे विद्यालय के अधिष्ठाता रहे उनके साथ उनका बर्ताव अत्यधिक सौहार्दपूर्ण रहा ।", महाविद्यालय के स्नातक
पडितजी ने अपना अध्ययन पूरे मनोयोग से प्रारम्भ किया। जो कुछ वे पढते थे उसे पूरा याद कर लेते इसलिये वे शीघ्र ही विद्यालय के प्रिय छात्र बन गये। पहले वे स्वयं पढ़ते और फिर वे अपने साथियों को भी पढाया करते । पडितजी के साथी उनका काम सहज ही मे कर देते थे । वे वहाँ अनपेड छात्र थे । १) रु० मासिक उन्हे हाथ खर्च का मिलता था । वे उसी मे अपना काम • चला लेते थे । पडित कैलाशचन्द जी शास्त्री प० चैनसुखदास जी के साथी थे। उन्होंने एक स्थान पर लिखा है कि मेरे बाल्यकाल में विद्यालय मे तीन छात्र प्रमुख थे । "पं० चैनसुखदासजी जयपुर, प. जीवन्धरजी इन्दौर और पं. रमानाथजी इन्दौर । मैं प० चैनसुखदासजी के ग्रुप मे था । और मेरे परम मित्र प० राजेन्द्रकुमारजी न्यायतीर्थं प० जीवधरजी के ग्रूप मे थे । तीनो मे जब कभी बात छिड़ जाती थी तो ग्रानन्द श्रा जाता था । फिर तो संस्कृत वाग्धारा की सरिता बहने लगती । प० चैनसुखदासजी अवस्था की दृष्टि से तीनों मे छोटे थे किन्तु बोलने मे विशेष पटु थे । विद्यालय जोभी विद्वान् पधारते उससे संस्कृत मे जमकर चर्चा छिडती और हम लोग उसका रसास्वादन करते । एक बार एक दण्डी साधु हाथ मे दण्ड लिये विद्यालय के तट से जा रहा था। ऊपर हम लोग खड़े थे। प० चैनसुखदासजी ने उसे छेड दिया। वह भी विद्वान् था । फिर तो सस्कृत मे वाग्युद्ध छिड़ गया और बहुत ही आनन्द आया । "
अध्ययन की समाप्ति
पडितजी पाँच वर्ष तक स्याद्वाद महाविद्यालय के छात्र रहे और इस बीच में उन्होंने बगाल संस्कृत एसोसियेशन की न्यायतीर्थं एवं काशी विद्यापीठ के प्राचार्य का " प्रथम खण्ड" पास किया । जैन शास्त्रों का आपने गम्भीर ज्ञान प्राप्त किया । आपकी । तार्किक शक्ति बडी तेज थी इसलिये विद्यार्थी अवस्था मे आपको तर्कचन्द के नाम से पुकारा जाता था । वहा आपका एक अलग ही ग्रुप था और आपके ग्रुप मे अच्छे विद्यार्थी थे । विद्यार्थियों में आप सदा ही लोकप्रिय रहे । वहा पढते भी रहे और दूसरो को पढाते भी रहे । छात्रों की ओर से संस्कृत मे एक पत्र निकाला जाता था उसके भी श्राप सम्पादक रहते थे । विद्यार्थी अवस्था मे ही वे आप्तपरीक्षा एवं प्रमेयरत्नमाला को अच्छी तरह पढाते । विद्यार्थियो को संस्कृत में अनुवाद कराते और उनको संस्कृत मे बोलना सिखाते ।
स्थाद्वाद विद्यालय आपके जीवन निर्माण का स्थल रहा । वहा रह कर संस्कृत एव जैन दर्शन का उच्च अध्ययन किया । वास्तव मे स्याद्वाद महाविद्यालय श्राप जैसे मेधावी छात्रों के कारण स्वय गोरवान्वित हो गया । और आपके नाम के साथ सदा ही उसका नाम जुड़ गया । पाच वर्ष तक पंडित जी का व्यक्तित्व विद्यालय के छात्रो पर ही नही अपितु वहा के अधिकारियों पर छाये रहा और वे अपनी विद्वत्ता, वाग्पटुता तथा सादगी से विद्यालय मे सर्वाधिक लोकप्रिय रहे । पाच वर्ष के अल्प जीवन मे ही वे समाज के मूर्द्धन्य विद्वान् बन गये और अपनी अलौकिक सूझबूझ से सब पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया ।
स्वदेश को
सन् १९१९ मे वे स्वदेश लौट आये । उस समय उनकी आयु २१ वर्ष की थी। विद्याध्ययन पूर्ण कर जब वे गाव लौटे तो उनका भव्य स्वागत
किया गया । वृद्धो ने उन्हें आर्शीवाद दिया तो साथियो ने उन जैसा साथी पाकर अपने आपको गौरवशाली समझा । माता ने स्नेहमय प्रासुओ मे अपने पुत्र को छाती से लगाया तो छोटे भाई प्रसन्नता से फूला नहीं समाया और सारे गाव मे घूम-घूम कर अपने भाई के आगमन की सूचना दी। प० चैनसुखदासजी भी अपने गाव मे अपने परिवार एव इष्ट मित्रों के मध्य मे अपने श्रापको पाकर अत्यधिक प्रसन्नता व्यक्त की एवं स्नेह के लिये सबके प्रति आभार व्यक्त किया । पहिले वे केवल चैनसुग्वदास थे किन्तु बाद मे वे प० चैनसुखदास न्यायतीर्थ कहलाने लगे । सबने मिलकर यह निश्चय किया कि आज शाम को मन्दिर मे प० चैनमुखदाभजी शास्त्र पढेंगे । गाव के प्रत्येक घर भे बुलावा भेजा गया। बालक, वृद्ध एव महिलायें सभी सायकाल की प्रतीक्षा करने लगी जब वे बनारस से पढ़कर भाये हुए अपने ही गाव के पण्डितजी से शास्त्र सुनेंगी । पूरा मन्दिर भर गया । युवा पंडितजी ने जब शास्त्र पढा तो उनकी प्रवचन शक्ति को देखकर सब लोग मंत्र मुग्ध हो गये और ऐसे 'पडित' को पाकर अपने आपको भाग्यशाली मानने लगे । गाव के सभी निवासी आपकी सादगी तथा नम्रता तथा विद्वत्ता की प्रशसा करने लगे । मन्दिर का गन शाम को प्रतिदिन भरने लगा और लोगो मे !! प्रभुत उत्साह दिखाई देने लगा । कुछ दिन इस प्रकार व्यतीत हो गये । आपके विवाह के प्रस्ताव भाने लगे। उस समय मे लडकिया कम थी और लडके अधिक थे । पडितजी पैर से लाचार होने पर भी उनके कुछ लोग अपनी लडकी देने को F तैयार हो गये । लेकिन अपने विवाह करना स्वीकार नहीं किया और आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने का निश्चय किया ।
। एक बार आपको विवाह में सम्मिलित होने के लिये कुचामन ( मारवाड) जाना पडा । वहा भी
आपका भव्य स्वागत हुआ। नगर मे जैन समाज के द्वारा एक सभा बुलायी गयी और आपको प्रमुख अतिथि के रूप मे ग्रामनित किया गया। आपके व्याख्यान का विषय था "जैन धर्म का महत्व" । इस सभा मैं कुचामन नगर के प्रसिद्ध पडित मघदत्त जी शास्त्री भी सम्मिलित हुए। वे आपके भाषण से अत्यधिक प्रभावित हुए। इन्होने पंडितजी के भाषण के पश्चात् कहा कि "उन्हे कितने ही विद्वानो के भाषण सुनने का अवसर मिला किन्तु आज एक युवा विद्वान् के मुख से जितना प्रभावशाली भाषरण सुनने को मिला उतना इसके पूर्व कभी नहीं मिला।" कुचामन के निवासी भी पडितजी का भाषण सुन कर भूम उठे और अपने ही प्रान्त के युवा विद्वान् को पाकर अत्यधिक प्रसन्नता व्यक्त की। तथा उन्होंने अपनी हार्दिक इच्छा व्यक्त की कि पडितजी यही कुचामन मे रहे । उस समय कुचामन मे सेठ गम्भीरमलजी पाड्या की और से एक विद्यालय चलता था सेठजी भी एक योग्यविद्वान् की तलाश मे थे । फिर क्या था उनके घर बैठे गंगा प्रा गई थी इसलिये वे भी उनसे लाभ लेने को आतुर हो उठे । जब सेठजी ने आपने विद्यालय मे सेवा करने के लिये अत्यधिक आग्रह किया तो आपने उसे स्वीकार कर लिया और वे उस विद्यालय के प्रधानाध्यापक नियुक्त किये गए ।
समाज सेवा करने का प्रथम अवसर
दिगम्बर जैन विद्यालय कुचामन के प्रधानामोर फैलने लगी । पैर से लाचार होने पर भी ध्यापक के पद नियुक्ति होते ही आपकी कीर्ति चारों स्वस्थ एव सुन्दर वदन, श्रौजपूर्ण वारणी, सयमी जीवन एव स्वाभिमानी स्वभाव इन सब गुरणो ने आपके व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने मे पूर्ण सहयोग दिया। जिस विद्यालय मे पहिले विद्यार्थियो का प्रभाव रहता था वहा अब आस-पास के ग्रामो के विद्यार्थी आने लगे और एक-दो वर्ष में ही वहा
विद्यार्थियों की अच्छी संख्या हो गयी। पं सत्यन्धर - कुमारजी सेठी, प. चान्दमलजी काला, गुलाबचन्दजी गंगवाल रेनवाल ग्रादि ने कुचामन मे ही विद्या ने प्राप्त की थी । कुचामन विद्यालय में आपने १२ वर्ष तक सेवा की और उसे प्रान्त का आदर्श विद्यालय बना दिया।
शिक्षण कार्य के अतिरिक्त जो भी आपको समय मिलता उसे आप सामाजिक कार्यों में लगाने लगे। भादवा, जोबनेर एव बनारस के विद्यालयों मे अध्ययन करते समय भी आपसे जितनी अधिक सेवा हो सकती थी करते रहे थे। पंडितजी प्रारम्भ से ही उदार विचारो के रहे। समाज के विकास मे उनकी क्रान्तिकारी विचारधारा रही । उन्होने सदा ही समाज को झकझोरना चाहा और उसे जाग्रत करके विकास को ओर लगाने का प्रयास किया । वे रूढ़ियों का सदा ही विरोध करते रहे । चौका-चूल्हा एवं छुआछूत के सदा हो विरुद्ध बोलते रहे और उस समय भी अपने साहस का परिचय दिया जब समाज मे कट्टरपथियो का बोलबाला था तथा सारा समाज उनकी मुट्ठी मे था ।
जब आप कुचामन मे थे तो खण्डेलवाल महासभा का पूरा प्रभाव था। लेकिन पंडितजी सा० की दिगम्बर जैन खण्डेलवाल महासभा से अधिक नही पटी क्योंकि उसके सभी कर्णधार पुरानी विचारधारा के थे और सुधार का उन्हें नाम भी नही सुहाता था । इसलिये पंडितजी ने राजावाटी गोडावाटी दिगम्बर जैन महासभा के नाम से एक संस्था की स्थापना की थी जिसका प्रमुख उद्देश्य समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने एव परस्पर के विवादो को निपटाना था। उन्होंने इस महासभा के माध्यम से उस प्रदेश मे वृद्ध विवाह, दहेज एव कन्या विक्रय जैसी कुरीतियों में काफी सुधार किया । पडितजी सामाजिक समस्याओ को सुलझाने के लिये पच (जज) का कार्य करते थे । वादी एव प्रतिवादी
की दलीलें सुनते, पक्ष विपक्ष मे तर्क दिये जाते और अन्त मे पडितजी द्वारा फैसला सुनाया जाता जो सबको मान्य होता। कहते हैं कुछ लोग अपने पक्ष मे फैसला देने के लिये पंडितजी को लोभ लालच भी देने का प्रयास करते लेकिन वे अपने पद से विचलित नहीं होते और जो उचित प्रतीत होता वही फैसला सुनाते । पडितजी के इस बढते हुए प्रभाव से बडे-बडे मठाधीशो के सिंहासन हिल गये और वे भी पडितजी की इच्छा के विरुद्ध कार्य करने मे डरने लगे ।
एक बार बरसात के दिनो में भादवा से कुचामन जाते समय बाजन नदी की तेज धारा तथा गहरे पानी मे मना करने पर भी ऊंट वाला आपको ले गया। उसने सोचा था कि नदी मे अधिक पानी नहीं है और ऊंट को वह आसानी से निकाल ले जावेगा। लेकिन नदी का बहाव तेज था तथा पानी भी गहरा हो गया था। ऊंट जब नदी के मध्य में पहुंचा तो उसकी गर्दन के अतिरिक्त वह पूरा डूब गया था । बडी मुश्किल हो गई । न श्रागे जाया जा सकता था और न पीछे मुडा जा सकता । ऊंट वाला भी घबरा गया और पंडितजी ने तो जान लिया कि उनके जीवन का अन्त सन्निकट है । वे णमोकार मंत्र का जाप करने लगे । धीरे-धीरे ऊट ने जब बडी सावधानी से नदी पार की तभी दोनो के ज्ञान में जान आयी ।
जयपुर आगमन
१२ वर्ष कुचामन विद्यालय में कार्य करने के पश्चात् दिनाक ३० अक्टूबर सन् १९३१ की शुभ एव पावन वेला मे पंडितजी सा० ने दिगम्बर जैन महापाठशाला जयपुर के प्रधानाध्यापक पद का कार्यभार सम्हाला । यहा से उनके जीवन का नया मोड प्रारम्भ हुआ। अब तक उनकी गतिविधिया प्रमुख रूप से कुचामन एवं उसके आस-पास के
प्रदेश तक ही सीमित रही थी लेकिन जयपुर मे भाजाने के पश्चात् उनका क्षेत्र सारा देश हो गया और उनके जीवन विकास का नया अध्याय प्रारम्भ हुआ । उनकी आयु भी उस समय ३३ वर्ष की थी । उनका शरीर पूर्ण योवनत्व को प्राप्त था । शरीर से यद्यपि अशक्त थे । डडे के सहारे चलते थे । लेकिन उनका उन्नत भाल, चमकता हुआ आकर्षक चेहरा तथा भोजस्वी वाणी किसी भी व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करने में पर्याप्त थी ।
पडितजी सीधे-सादे वेश मे रहते। मारवाडी ढंग की पगडी बाधते । खद्दर की घोती और कुर्ता अथवा कमीज पहिनते 1 हाथ मे डडा रखते और अपनी उपस्थिति का सबको ज्ञान करा देते ।
पडितजी जयपुर भाकर पाठशाला के प्रवन्ध को देखने लगे । पढाई की स्थिति देखी। विद्याथियो की जब सख्या देखी तो मालूम पडा किं ऊची कक्षाओ मे विद्यार्थी ही नही हैं। अधिकाश विद्यार्थी प्रवेशिका पास करके पाठशाला छोड देते थे । इसलिये उच्च कक्षाओ मे विद्यार्थी कैसे आते । वे एक दूसरे को देखकर वापिस चले जाते महापाठशाला को स्थापित हुए ३० वर्ष से भी अधिक समय हो गया था लेकिन इतने वर्षों मे ४-५ शास्त्री से अधिक नहीं निकल सके । वास्तव में यह एक प्रकार से पडितजी को चुनौती थी जिसको उन्होने सहर्ष स्वीकार किया। इसके अतिरिक्त महापाठशाला की भ्रान्तरिक व्यवस्था भी एकदम बिगड चुकी थी । समाज का प्रबन्धको पर विश्वास नही रहा था इसलिये मंत्री और प्रधानाध्यापको मे बराबर परिवर्तन होता रहता । इस प्रकार पडितजी को जयपुर आने पर अनेक समस्याश्रो का सामना करना
पडा ।
१. प० चैनसुखदास जयन्ती विशेषाक पृष्ठ सङ्ख्या ७७ ।
सर्व प्रथम उन्होंने विद्यार्थियों पर ध्यान दिया। उस समय उपाध्याय कक्षा मे पढने वालो मे प० भवरलालजी न्यायतीर्थ, पडित श्रीप्रकाश शास्त्री, पडित मिलापचन्दजी शास्त्री, पडित भैरूलालजी शास्त्री एवं पडित मानन्दीलालजी न्यायतीर्थं के नाम विशेषत. उल्लेखनीय हैं। पडितजी ने ३० अक्टूबर को महा पाठशाला का चार्ज लिया और २ नवम्बर को उन्होंने पडित भंवरलालजी को अपने पास बुलाया । इस प्रथम भेट का०प० भवरलालजी ने अपने एक लेख मे जो वर्णन उपस्थित किया है वह निम्न प्रकार है
मैं विद्यालय गया। मैंने देखा - एक पगडीवध, छोटे से कद के, डडा हाथ मे लिये मारवाडी व्यक्ति खढे हैं दीवार के पास । मुझे कहा गया कि ये नये पडितजी हैं। रजिस्टर मे तुम्हारी गैरहाजरी होने से बुलाया है। मैं नमस्कार करके उनके समीप खड़ा हो गया ।
उन्होने पूछा तुम्हारा क्या नाम है ? मैंने अपना नाम बतलाया । उनका दूसरा प्रश्न था तुमने विद्यालय मे पढना क्यो छोड दिया ? मैंने उत्तर दिया कि संस्कृत मुझे समझ मे नही आती । मैं अग्रेजी पढना चाहता हूँ । तीसरी बार उन्होने कहा कि यदि सस्कृत तुम्हारी समझ मे आने लगे और अग्रेजी भी तुम्हे पढाया जाय तो पढ़ोगे ? मेरे पास उसका उत्तर सिवाय हा करने के कुछ नही था । वह था सर्व प्रथम पूज्य पण्डितजी साहब के दर्शन । पहली बातचीत और पहली मुलाकात । १
प० भैरवलाल सेठी को भी पण्डितजी ने बुलवाया और उनको भी अषना अध्ययन प्रारम्भ करने का परामर्श दिया। इसी घटना को उन्होने
भी अपने एक लेख "मेरे निर्माता" मे निम्न प्रकार प्रस्तुत किया है - "सन् १९३६ मे मैंने प्रवेशिका परीक्षा उत्र्तीण कर अपनी शिक्षा लगभग समाप्त कर दी थी और अपने चाचाजी के कार्य में सहायक हो चुका था । गुरुजी इन्ही दिनों जयपुर पधारे थे । उन्हें मालूम हुआ और उन्होने बुलाया। तथा पढाई बन्द करने के कारणो को सुना। मेरी स्थिति का परिचय पाकर कहा कि तुम दिन में अपना काम करो और रात के ८ बजे पश्चात् मेरे पास पढने भाभो । मेरे परम सखा श्री भवरलालजी न्यायतीर्थ तथा मे दोनो रात को पढ़ने आने लगे । पण्डितजी शास्त्र प्रवचन करके आते और रात को २ - ३ घंटे हम दोनो को बगाल संस्कृत एशोसियेशन की प्रथम परीक्षा की तैयारी कराते । फरवरी मे प्रथमा परीक्षा दी और सफलता प्राप्त की । इसी बीच मेरे ट्य शनों की व्यवस्था भी बैठा दी ।"१
जैन दर्शन के प्रमुख सम्पादक बनाये गये । यह पत्र श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रार्थ सघ का प्रमुख पत्र था तथा एक वर्ष पूर्व ही पण्डित प्रजितकुमारजी शास्त्री एव पण्डित कैलाशचन्दजी शास्त्री के सम्पादकत्व मे निकल रहा था । दूसरे वर्ष के प्रथम श्रक से (१ अगस्त, १९३४) आपने इसके सम्पादन कार्य को अपने हाथ से लिया तथा पण्डितजी के पास ही जैन दर्शन में प्रकाशनार्थ लेख एव कविताये भेजे जाने के लिये विद्वानो से निवेदन किया गया। इसके पश्चात् जैन दर्शन पत्र का " स्याद्वाद विशेषांक" का आपने जिस योग्यता एव पाडित्य से सम्पादन किया उसकी उन दिनो सारे समाज मे अत्यधिक प्रशसा हुई । आपके पाडित्य की चारो ओर प्रशसा होने लगी और कुछ ही समय मे 'जैन दर्शन समाज का लोकप्रिय पत्र बॅन गया । इस पत्र के माध्यम से जयपुर के जैन युवको
इस प्रकार पण्डितजी सा० ने जयपुर आते ही 'को लेख, कविता एव कहानी लिखने का अच्छा
विद्यार्थियों से अपना सम्पर्क बढाया और उन्हे उसमे पर्याप्त सफलता मिली । एक के पश्चात् दूसरे विद्यार्थी आने लगे और इस तरह प्रवेशिका, उपाध्याय एव शास्त्री कक्षाओ मे जो पहिले प्रायः खाली पडी रहती थी फिर विद्यार्थियों से भरने लगी। पण्डितजी दिन भर विद्यार्थियों को पढाते और रात्रि को बड़े दीवानजी के मंदिर मे शास्त्र प्रवचन करते । इस तरह शनै-शनै उनकी विद्यार्थियो मे एव समाज मे लोकप्रियता बढ़ने लगी ।
अभ्यास हो गया । जिन नवयुवक विद्वानो की जैन दर्शन में विशेष लेख एव कवितायें प्रकाशित हुई थी उनमे पं० मंत्ररलालजी न्यायतीर्थ, पं० मिलाप चन्दजी शास्त्री पं० कैलाशचन्द जी शास्त्री न्यायतीर्थ, प० आनन्दीलालजी न्यायतीर्थ, प० श्री प्रकाश जी शास्त्री, पं० चान्दमलजी शशि के नाम विशेषत. उल्लेखनीय हैं ।
जैन दर्शन का सम्पादन
तीन वर्ष मे जयपुर जैन समाज मे लोकप्रियता प्राप्त करने तथा दिगम्बर जैन महापाठशाला की व्यवस्था मे पर्याप्त सुधार करने के पश्चात् पण्डित जी विजनौर से प्रकाशित होने वाले पाक्षिक पत्र
१. १० चैनसुखदास जयन्ती विशेषाक पृष्ठ संख्या ८३ ।
जुलाई १९३४ मे लेखक अपने छोटे भाई ( वंद्य प्रभुदयाल भिषगाचार्य) के साथ पंडितजी सा० के चरणो मे सैथल ग्राम से पढ़ने के लिये आये । लेखक का यह परम सौभाग्य रहा कि उनके पिताजी स्वर्गीय श्री गैदीलालजी ने उन्हें ऐसे महापुरुष के चरणो मे समर्पित किया जिनके कारण हम दोनो भाइयो का जीवन निर्माण हो |
fb9400d88f41d6a57bf7b142198fa9a5d02f0ca2 | web | 30 मई, 2023 मंगलवार के दिन चंद्रमा कन्या राशि में स्थित है। आपकी राशि से चंद्रमा छठे भाव में होगा। आर्थिक और व्यावसायिक दृष्टि से आज का दिन बहुत अच्छा है। कार्यस्थल पर आपके सभी काम आसानी से पूरे होंगे। आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकेंगे। बहुत लंबे समय के लिए निवेश की योजना बनाएंगे। आपका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। मित्रों और परिजनों के साथ समय अच्छा गुजरेगा। नए लोगों के साथ आपका संपर्क बढ़ेगा। व्यापारी अपने व्यापार को बढ़ाने का प्रयास करेंगे। दान-धर्म में आपकी रुचि बढ़ेगी।
यह सप्ताह आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होने जा रहा है। विवाहित लोग अपने गृहस्थ जीवन को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे, फिर भी बात बनने में समय लग सकता है। प्रेम जीवन बिता रहे लोग सप्ताह की शुरुआत में काफी रोमांटिक और क्रिएटिव नजर आएंगे। जैसे-जैसे सप्ताह बीतेगा, आपकी व्यस्तता आपके रिश्ते को प्रभावित करेगी, लेकिन सप्ताह के अंतिम दिनों में आपके रिश्ते में प्रेम बढ़ेगा। आपको अपने प्रिय के साथ कहीं घूमने जाने का अवसर भी मिलेगा। आप उन्हें अपने परिवार वालों से इंट्रोड्यूस भी करवा सकते हैं। आप अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर अनेकों लाभ प्राप्त कर पाएंगे। गवर्नमेंट सेक्टर से कोई बड़ी सुविधा आपका इंतजार कर रही है। उसको अपनाने की कोशिश करें। बिजनेस के लिए यह सप्ताह अच्छा रहेगा। आपने पूर्व में जो प्रयास किए हैं और जो अब करने वाले हैं, उनसे आपको जबरदस्त लाभ होगा। आपके काम की तारीफ भी होगी। नौकरीपेशा लोग अपने काम में थोड़ा कंट्रोवर्सी और गर्म मिजाजी से बचकर रहेंगे, तो सब कुछ अच्छी चरह चलेगा और काम भी बेहतर रहेगा। विद्यार्थियों की बात करें तो उनके लिए सप्ताह अच्छा है। आपकी पढ़ाई और मेहनत के अच्छे नतीजे आपके सामने आएंगे। स्वास्थ्य के लिहाज से देखें तो यह सप्ताह आपके लिए अच्छा रहने वाला है। कोई बड़ी शारीरिक समस्या भी नजर नहीं आती। यात्रा के लिए सप्ताह के अंतिम 2 दिन अनुकूल रहेंगे।
महीने की शुरुआत बहुत अच्छी होगी। विवाहितों को अपने गृहस्थ जीवन में उतार चढ़ाव महसूस होगा। अपने अहं को दूर ही रखें, अन्यथा यह आपके रिश्ते को खराब कर सकती है। अपने जीवनसाथी के साथ अच्छी तरह पेश आएं, ताकि आपके बीच कोई दूरी ना आए। प्रेम जीवन बिता रहे लोग अच्छे पलों का आनंद लेंगे। प्रिय के साथ आपकी ट्यूनिंग भी बेहतर होगी। आपके प्रिय भी आपको आगे बढ़ने के लिए कुछ न कुछ प्रेरणा देते रहेंगे। आप अपनी क्रिएटिविटी के दम पर कुछ नया करने की सोचेंगे। आप अपनी किसी हॉबी को भी आगे बढ़ाएंगे, जिससे आपको अच्छा सम्मान प्राप्त होगा। आपकी इनकम में निरंतरता रहेगी, जिससे आप अपने खर्चों को पूरा कर पाने में कामयाब रहेंगे। हालांकि, अभी आपके मन में क्रोध की भावना बनी रहेगी, जो महीने की शुरुआत में आपको परेशान कर सकती है। इसका विपरीत असर आपकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ पर पड़ सकता है, इसलिए सावधानी रखें। कार्य क्षेत्र में आपकी स्थिति मजबूत बनेगी, जबकि बिजनेस करने वाले लोगों को कुछ कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है। आपकी वाणी में आकर्षण रहेगा, जो लोगों को अट्रैक्ट करेगा। नौकरीपेशा लोगों के लिए यह महीना उत्तम रहेगा। विद्यार्थियों की बात करें तो अभी पढ़ाई में रुकावट के बावजूद उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। स्वास्थ्य के लिहाज से भी कोई खास परेशानी नजर नहीं आती। हालांकि, अभी आपको अपने खानपान पर ध्यान देना होगा। यात्रा के लिए महीने का दूसरा और तीसरा सप्ताह उत्तम रहेगा।
मेष राशि वाले लोगों की बात करें तो वर्ष की शुरुआत में वे अपने काम में मजबूती से डटे रहेंगे। वाणी में कड़वाहट से बचना बहुत जरूरी होगा, क्योंकि वर्ष की शुरुआत में इसकी वजह से कुछ बढ़िया मौका आपके हाथ से निकल सकता है। खुद पर निरंकुशता का टैग लगाने से अच्छा है कि आप सही और गलत का फर्क करके आगे बढ़ें, तभी आपको इस साल आगे बढ़ने में फायदा मिलेगा। धार्मिक तौर पर आप काफी पक्की तरह से आगे बढ़ेंगे। धार्मिक मामलों में और आध्यात्मिक गतिविधियों में आपको खूब आनंद आएगा। आप किसी मंदिर में डोनेशन दे सकते हैं या किसी एनजीओ के साथ जुड़कर समाज सेवा कर सकते हैं। वर्ष की शुरुआत में सूर्य और बुध आपके नवम भाव में होंगे, जिससे पिता से संबंध सुधरेंगे और उनसे आपको कोई बड़ा लाभ मिल सकता है। मार्च से मई के बीच का समय अच्छा रहेगा। इस समय आप अपनी मजबूत ऊर्जा शक्ति के सहारे बहुत से कार्यों में सफलता प्राप्त करेंगे और किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटेंगे। मई से लेकर जुलाई के बीच का समय उतार-चढ़ाव से भरा रहेगा, क्योंकि इस समय में परिवारिक जीवन में कलह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आपकी मां का स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। हालांकि, इस समय आपको कोई बड़ी प्रॉपर्टी खरीदने का फायदा मिल सकता है और जमीन जायदाद से जुड़े मामलों में अच्छी सफलता के योग बनेंगे। अगस्त से अक्टूबर के बीच आपकी राशि का स्वामी मंगल छठे भाव में होगा, जिसकी वजह से कानून से जुड़े मामलों में आपको पूरी सफलता मिलेगी और कोर्ट केस का नतीजा भी आपके पक्ष में आएगा। इस दौरान आप अपने विरोधियों को चारों खाने चित कर देंगे। यह समय आपको मजबूती प्रदान करेगा। नवंबर से दिसंबर के बीच थोड़ा सावधान रहना जरूरी होगा, क्योंकि इस समय कार्य में उतार-चढ़ाव और रूकावट आ सकती है। बेकार में व्यस्त रखने वाले बेवजह के क्रियाकलापों से दूर रहें। वर्ष के अंतिम दो दिनों में आपको कोई बहुत अच्छा समाचार सुनने को मिल सकता है। आपको किसी प्रकार का पुरस्कार मिलने की भी संभावना रहेगी। यात्रा के दृष्टिकोण से देखें, तो वर्ष की शुरुआत अनुकूल रहेगी। आपको किसी तीर्थ यात्रा पर जाने का मौका मिल सकता है, जिससे परिवार में खुशियां भी आएंगी और आप भी संतुष्ट रहेंगे। वर्ष का मध्य लगभग सामान्य रहेगा। उस दौरान बहुत ज्यादा यात्रा के योग तो नहीं बनेंगे, लेकिन आप अपने परिवार के साथ छोटी-मोटी यात्राओं पर घूमने-फिरने जा सकते हैं। इससे पारिवारिक जीवन में भी खुशी आएगी। नवंबर के महीने से वर्ष के अंत तक का समय आप यात्रा में व्यस्त हो सकते हैं। अभी आपको विदेश जाने का मौका और काम के सिलसिले में भी लंबी यात्रा के योग बनेंगे। इस प्रकार यह समय आपके लिए आनंददायक रहेगा, लेकिन उसकी वजह से आपके काफी खर्चे भी होंगे।
इस साल आपके प्रेम संबंधों काफी बेहतर रहेंगे। आपके रिश्ते में एक-दूसरे के प्रति समझदारी का भाव विकसित होगा और एक-दूसरे के साथ आप काफी कंफर्टेबल महसूस करेंगे। यही वह साल होगा, जब आपकी एक-दूसरे के साथ विवाह करने की इच्छा होगी और आप इस बात को आगे बढ़ाएंगे। यदि आपने प्रयास किया, तो इसमें आपको सफलता मिल सकती है और आप विवाह करने में सफल हो सकते हैं। इस साल विवाहितों का गृहस्थ जीवन काफी अच्छा रहेगा। आप अपने जीवनसाथी के साथ किसी डेस्टिनेशन वेकेशन पर घूमने जा सकते हैं। आप साथ में अच्छा समय बिताएंगे, जिससे रिश्ते में नयापन आएगा। एक-दूसरे को बेहतरीन तरीके से समझ पाएंगे। रिश्ते में निकटता बढ़ेगी। संतान से संबंधित सुखद समाचार मिलेंगे। विवाहितों के लिए यह साल उतार-चढ़ाव से भरा रहेगा। सप्तम भाव में केतु की उपस्थिति आपके दांपत्य जीवन में तनाव बनाए रखेगी। यह स्थिति जनवरी से लेकर फरवरी के बीच तक बनी रहेगी। एक दूसरे को पूरी तवज्जो दें। बृहस्पति के द्वादश भाव में होने से आपको एक-दूसरे को समझने में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन अप्रैल के बाद से जब बृहस्पति सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे, तो आप सही निर्णय लेंगे। एक-दूसरे से आपकी अंडरस्टैंडिंग भी सुधरेगी और दांपत्य जीवन में अपने लाइफ पार्टनर के साथ आप बहुत अच्छा बर्ताव करेंगे। आप साथ में कुछ धार्मिक काम भी करेंगे। किसी तीर्थ दर्शन के लिए भी जा सकते हैं। संतान प्राप्ति के इच्छुक लोगों के लिए यह समय अनुकूल रहेगा। अप्रैल के बाद का समय आपके जीवन में किसी नन्हे मेहमान के आगमन की शुभ सूचना भी दे सकता है।
यदि आपकी हेल्थ की बात करें, तो आपकी राशि में वर्ष की शुरुआत में राहु और दूसरे भाव में मंगल स्थित होंगे तथा सप्तम भाव में केतु की उपस्थिति होगी और उस पर शनि की दृष्टि होगी और द्वादश भाव में बृहस्पति होंगे। यह समय शारीरिक तौर पर थोड़ा बहुत तनाव देने वाला हो सकता है, लेकिन फिर भी कोई बड़ी समस्या नहीं दिखाई देती, लेकिन आपको अपने शेड्यूल को ठीक करने की जरूरत पड़ेगी, जिमिंग और एक्सरसाइज करने से पीछे ना हटें। शनि के आप के 11वें भाव में जाने और बृहस्पति के लग्न भाव में आ जाने से सेहत में हल्का फुल्का उतार-चढ़ाव आएगा, लेकिन इस समय में आपको ज्यादा तेल मसाले के भोजन से बचना होगा, नहीं तो मोटापा आ सकता है और ओबेसिटी को दूर करने के लिए आपको योगा एरोबिक्स का सहारा लेना पड़ सकता है। वर्ष के अंतिम महीनों में आप अपनी सेहत के लिए केयरलेस हो सकते हैं और बाहर की चीजें खाने और घर का बाहर का खाने से आप बीमार पड़ सकते हैं, सावधानी रखें।
वर्ष की शुरुआत में आपकी राशि में राहु की उपस्थिति आपको थोड़ा निरंकुश बनाएगी और आप रिस्क लेने में पीछे नहीं हटेंगे, लेकिन जल्दबाजी में आकर अपने कुछ काम बिगाड़ सकते हैं। शनिदेव की उपस्थिति दशम भाव में होने से आप कर्मठ होंगे और अपने काम को तवज्जो देंगे, फिर जनवरी के मध्य से शनिदेव आपके एकादश भाव में जाएंगे, जिससे कार्यक्षेत्र में आपकी मजबूती बढ़ेगी और आपकी मेहनत से आपको नौकरी में अच्छे अवसर मिलेंगे। इस प्रकार गौर से देखें, तो यह पूरा वर्ष ही आपके लिए अनुकूल रहेगा और नौकरी में अच्छी पदोन्नति के योग बनेंगे। मई से जुलाई के बीच का समय आपके कार्यक्षेत्र में आपको उन्नति प्रदान कर सकता है और आपकी सैलेरी में भी बढ़ोतरी के सुंदर योग बनेंगे। नवंबर, दिसंबर में आपको विदेश जाने का मौका मिल सकता है। बिजनेस करने वालों के लिए वर्ष की शुरुआत कमजोर रहेगी। आपको बहुत मेहनत के बाद भी पूरे फल नहीं मिलेंगे। कोई नया निवेश करने से शुरुआत में बचना चाहिए। उसके बाद शनि की उपस्थिति ग्यारहवें भाव में होने और वर्ष के मध्य में बृहस्पति भी आप के पहले भाव में आ जाने से बिजनेस के लिए बढ़िया समय शुरू हो जाएगा। आपकी योजनाएं फलीभूत होंगी। आपके रुके हुए काम भी पूरे होने लगेंगे और आर्थिक तौर पर भी आप मजबूती महसूस करेंगे। यह समय बिजनेस में विस्तार करने वाला समय रहेगा। इस प्रकार आप काफी सफल हो जाएंगे। वर्ष के अंतिम महीनों में मतलब नवंबर और दिसंबर में विदेश से लाभ मिलेगा।
आर्थिक मामलों को देखें, तो इस साल की शुरुआत में 12वेंभाव में वर्ष की शुरुआत में बृहस्पति की उपस्थिति और दूसरे भाव में मंगल की स्थिति जहां एक तरफ धार्मिक कामों पर आपका खर्च करवाएगी, तो वहीं दूसरी तरफ आपकी आर्थिक स्थिति को मजबूत भी बनाएगी। आप बैंक बैलेंस बनाए रखने में कामयाब रहेंगे, उसके बाद जनवरी के मध्य से जब शनिदेव आप के एकादश भाव में जाएंगे, तो वह समय आपके लिए अनुकूल रहेगा और वह धीरे धीरे आपके लिए स्थायी आमदनी का कोई बढ़िया स्रोत उत्पन्न कर ही देंगे, जिससे आपकी आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे इस पूरे मजबूत होती चली जाएगी। 22 अप्रैल के बाद से बृहस्पति भी आपकी राशि में आ जाएंगे, जिससे खर्चों में कमी आएगी और आप आर्थिक तौर पर मजबूती हासिल करेंगे। बिजनेस से भी इस समय में अच्छे लाभ मिलने की संभावना रहेगी, लेकिन नवंबर के महीने से राहु के आपके द्वादश भाव में जाने से खर्चों में बढ़ोतरी होगी, जो आपका सिरदर्द बन सकती है। यह इतनी तेजी से होंगे और आपको करने भी पड़ेंगे। इससे आपकी आर्थिक स्थिति पर बोझ पड़ सकता है, इसलिए सावधान रहें क्योंकि यदि आपने ध्यान नहीं दिया, तो आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो सकती है।
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c30b83b6414d003e4f9368870c7982fdbb2701ebc43644a622d66b30e9856b86 | pdf | फसल में यदि जड़ में कीटाणु लग गये हैं तो ऊपर के पत्तों का कितना भी सिंचन करो, कितनी खाद दे दें, पर यदि जड़ को नहीं संभाला तो पौधा नहीं पनपेगा, समाप्त हो जावेगा। वैसे ही हम कितनी ही तपस्या कर लें किन्तु पौध, नहीं फूटेगी, क्योंकि जमीन बहुत सख्त है। वहां पौध तो आ गई पर कीटाणु लग गये हैं। या दूसरे रूप में लें कि जैसे आपके मकान में पक्का फर्श है, उसमें बीज डाल दें तो अंकुर नहीं फूटेगा । वैसे ही हमारे राग-द्वेष की फर्श इतनी सख्त है कि कितने ही तप के बीज डाल दें, पर अंकुर नहीं फूटेगा, पौध नहीं पनपेगी, अतः फल नहीं मिल पाएंगे। इसलिए आवश्यक है कि पहले उस ग्रंथि को भेदन किया जाय ।
भगवान् से पूछा गया -
संवेगेणं भंते जीवे किं जणयइ...
संवेग से किस फल की प्राप्ति होती है? तो उत्तर मिला- अनुत्तर धर्मश्रद्धा प्राप्त होती है और अनुत्तर धर्मश्रद्धा से शीघ्र ही संवेग की प्राप्ति होती है। क्योंकि जैसे-जैसे धर्मश्रद्धा बढ़ेगी, व्यक्ति को संसार में आनंद आना कम होता जायेगा फिर एक समय ऐसा भी आयेगा जब वह संसार से उदासीन हो जाएगा। मेघकुमार ने भगवान् की वाणी सुनी और उनके मुंह से निकलाआलित्तेणं भंते लोए, पलित्तेण भंते लोए...
भगवान् यह संसार जल रहा है। लोग कहेंगे पागल हो गया क्या? पागल कौन है? औरों को दिखने में वह पागल लगता है किन्तु उन्हें मालूम नहीं कि पागल तो हम स्वयं बने हुए हैं। वह तो संवेग को उपलब्ध हो गया है। हम समझ नहीं पाते हैं किन्तु अंदर की ग्रन्थि का जब भेदन होता है तब लगता है कि संसार में आग लग रही है । उस आग पर क्या कोई आनंद मना सकता है? किन्तु अभी हमें मालूम ही नहीं हो रहा है। जब हमको स्वयं को लगेगी तब अनुभव होगा। अभी तक तो हमें लगता है कि हम वातानुकूलित कक्ष में बैठे हैं, बड़ी ठंडक लग रही है । मेघकुमार भगवान् की वाणी सुनकर कहता हैआलित्तेण भंते लोए... ।
उसे लगने लगा- आग जल रही है, नीचे चड़का लग रहा है, मैं बैठ नहीं सकता । मेघ के माता-पिता ने उसे बहुत समझाया होगा, पर क्या समझा वह? वह क्या समझता ! उसकी तो एक ही रट लग गई थी -
लेऊं लेऊं संयम भार माता मोरी ए आज्ञा तो देओनी म्हाने मोद सूं...
कितने माता-पिता होंगे जो कहेंगे कि जाओ, मैं आज्ञा देता हूं। चाहे पहले घर में रहते हुए उसे कष्ट भी दिया होगा पर दीक्षा की बात आएगी तो उनके मुंह से निकलगा- ले ली दीक्षा । और घर में व्यवहार कुछ ठीक नहीं रहा हो तो कहेंगे- वहां क्या पातरे फोड़ने हैं? मेघ की माता कहती है- अभी तू ने जाना क्या है? यह बात अलग है कि उसे पता ही न था कि उसने क्या जान लिया था ? बाल चाहे काले के सफेद हो गए हों और वे भले न समझ पाये हों, पर दुध - मुंहा बालक बात समझ सकता है । वह ऐसा समझा कि माता-पिता ने कितना भी समझाया, पर उनकी बात नहीं समझा, क्योंकि वह गणित अलग है, यह गणित अलग है । एक ही नाप से प्रत्येक को नापने का प्रयत्न करे तो वह लागू कैसे होगा? अनाज का तराजू है, कोई सोचे सोना इसी से तोल लूं, है तो तराजू ही। लेकिन अनाज के लिये अनाज का तराजू चाहिये और स्वर्ण तोलने
लिए स्वर्ण तोलने का कांटा चाहिए । जैसे लोहा तोलने के लिए लोहे का कांटा होता है वैसे ही सोना तोलने के लिए सोने का कांटा होता है। सोने का व्यापारी यह नहीं सोच सकता कि लोहे के तराजू या कांटे से ही सोना तोल लूं, न ही वह उस तोल से व्यापार करना चाहेगा, क्योंकि सोने की तोल में तो एक-एक रत्ती का हिसाव होता है किन्तु लोहे की तोल में यह बात नहीं होती । यदि कोई सोचे कि क्या फर्क पड़ता है, हैं तो दोनों धातु ही । धातु होते हुए भी कांटा एक नहीं होता। वैसे ही मनुष्य-रूप में एक होते हुए भी यदि एक के भीतर आवेग है और दूसरे के भीतर संवेग है, तो दोनों का तोल एक कैसे होगा ? संसार में रहने वालों के पास लोहे का कांटा है, तो वे उसी पर तोलना चाहते हैं किन्तु उस पर तोल हो नहीं सकता । यह तो जिसके भीतर संवेग जगा है, वही जान सकता है कि उसके भीतर की क्या स्थिति है । उसे आग की तपन महसूस होती है, उस विषय - कषाय की आग की जो आत्मा को संतप्त करती है। जब वह अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ का क्षय करता है तब राग-द्वेष की जो ग्रंथि है, उसका भी छेदन हो जाता जाता है। ग्रंथि - छेदन आदि प्रक्रियाएं कर्म-ग्रन्थ पढ़ने वाले जानते हैं। यह सारा अध्यवसायों का खेल है। जैसे विद्यार्थी प्रयोगशाला में प्रेक्टिकल करते हैं, वैसे ही हमारे भीतर की प्रयोगशाला में अध्यवसायों का खेल
होता है। फिर वहां स्थितिघात, रसघात, गुण-श्रेणी, गुण-संक्रमण आदि की स्थितियां बनने लगती हैं। वे सारी स्थितियां अध्यवसायों के आधार पर चलती हैं। यथाप्रवृत्तिकरण होता है और जोश आ जाता है । एक धक्का और लगा और अपूर्वकरण की स्थिति बन जाती है। अपूर्वकरण अर्थात् जैसा पहले नहीं हुआ, वैसे अध्यवसायों की स्थिति बनती है; अनिवृत्तिकरण में प्रवेश करने पर फिर निश्चय बन जाता है कि अब तो वह आत्मा आत्म-साक्षात्कार, आत्मा का अनुभव या संवेदन किये बिना लौटने का नाम नहीं ले सकती । मदभेद भी बहुत सारे होते हैं और अलग-अलग आचार्यों की अलग-अलग चर्चाएं भी होती हैं, परन्तु तत्त्व की बात एक ही है ।
आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थ सूत्र के स्वोपज्ञ भाष्य में स्पष्ट किया है कि अनादिकाल का मिथ्यादृष्टि अपूर्वकरण से क्षयोपशम सम्यक्त्व प्राप्त कर लेता है, किन्तु कर्म-ग्रन्थिकों की मान्यता भिन्न है । उनका मत है कि अनादि मिथ्यादृष्टि अपूर्वकरण में स्थितिघात करता है और अनिवृत्तिकरण में पहुंच कर उसके अन्तर्गत अन्तरकरण करता है और उसके पश्चात् उसे उपशान्त अद्धा की प्राप्ति होती है । उपशान्त अद्धा का तात्पर्य है कि जिस समय मिथ्यात्व एवं अनन्तानुबन्धी कषाय के दलिये उदय में नहीं हों, इसलिये आत्मा के लिये वह समय शान्त - प्रशान्त आत्मानुभव का होता है। इससे उस काल को उपशान्त अद्धा कहा गया है। उस समय अनादि मिथ्यादृष्टि उपशम सम्यक्त्व प्राप्त करता
। उपशान्त अद्धा पूर्ण होनेपर पुनः मिथ्यात्व में भी जा सकता है । मिश्र अवस्था में भी उसका प्रवेश हो सकता है अथवा क्षयोपक्षमिक सम्यक्त्वी बन जाता 1 यदि संपूर्ण मिथ्यात्व के दलिकों का क्षय करता है और उसी के साथ अनन्तानुबंधी चतुष्क का क्षय करता है तब क्षायिक सम्यक्त्वी बन जाता है। अंनतानुबंधी चतुष्क का स्वरूप कितना जटिल है, इसे भी समझें ।
जैसे एक बहिन के दो भाई हैं। रक्षाबंधन का प्रसंग आया । बहिन ने अच्छी राखियां मंगाई । सोचा, छोटा भाई नजदीक रहता है, इसलिए पहले उसे बांध दी जाय, फिर बड़े भाई के बांध दूंगी । उसने छोटे भाई को बुलाया । वह आ गया । उसे राखी बांध दी । फिर वह वड़े भाई के घर के लिये चली । बड़े भाई को यह सूचना मिल गई कि वह छोटे भाई को राखी बांध कर आ रही है । बस, वह चिढ़ गया। बोला- जा, जा, रहने दे । नहीं वंधानी मुझे । तुम्हारे विना
राखी बंधेगी नहीं क्या? और न जाने क्या-क्या कहता चला गया। यह हकीकत है, कपोल-कल्पित बात नहीं । वर्षों बीत गये और एक राखी का निमित्त वर्षों तक वैर-वैमनस्य के रूप में चलता रहा- पहले छोटे के क्यों बांधी? बड़ा में हूं। विचार कीजिये कि यही बड़प्पन है क्या? वर्षों बीत गये पर वह निमित्त समाप्त नहीं हुआ। अभी भी दुःखदायी बना हुआ है - " मैं बड़ा हूं, पहले मेरी पृष्ठ होनी चाहिये।" ऐसे प्रसंग संसार में रहते हुए कई बार बनते हैं। ऐसी बातें देखने में सामान्य लगती हैं, पर इन्हें अपने साथ जोड़ लिया तो ये ही गहरी हो जाती हैं और दुर्भेष बन जाती हैं । जब तक ये टूट न जायें तब तक जीवन में आनंद नहीं आ सकता । तब तक जीवन में रूखापन लगता रहेगा। संबंधों में स्निग्धता भी नहीं आएगी। ऐसी स्थिति में सुख नहीं आयेगा और जीवन बोझिल बना रहेगा।
है तो उसकी तुलना उदार हृदय से कैसे हो पायेगी और तोलें तो वह बात सही है भी नहीं। जिसके हृदय में संवेग भाव जगा है, उसे तो दुनिया निस्सार लगेगी। वह ऊपरी तौर से संसार में रहता है, पर उसके भोगों को भोगता नहीं है ।
आप लोग कैसे कर रहे हैं, इसे भी समझें । पोते की शादी हुई और पड़पोते का जन्म हो गया तो मन में क्या उमंग आएगी? सोने की निसरणी चढ़ जाऊं सोचिये भावों से चढ़ते हैं या ऊपरी मन से ? मन से चढ़ते हैं तो फिर समझो कि हमने अभी संसार को असार माना नहीं है । किन्तु वस्तुतः भीतर में वैसी गुदगुदी नहीं है - पोता हो गया, पड़पोता हो गया तो भी निर्वेग का भाव नहीं आया । हम अपना कर्तव्य-कर्म कर रहे हैं तो वहां संसार के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदला हुआ है। जब तक ऐसा भाव नहीं बनाते तब तक संवेग भी प्रगाढ़ नहीं बनता ।
मेघकुमार की दृष्टि बदली, चाहे राजसुख में रह रहे थे, पर उस सुख में भी कांटे चुभने लगे। आपको बंगलों के सुख में भी कांटे नहीं चुभते। पहले तो मखमली गद्दे होते थे पर आज डनलप के होते हैं। पहले कहा जाता था, मखमली गद्दे-तकिये और हिंगलू के ढोलिये, किन्तु अब तो वे नहीं रहे, अब तो पलंग पर सोते हैं। उस पर सोकर भी क्या कभी लगता है कि कांटे चुभते हैं? एक हालत होती है सम्राटों की जिनके लिये चाहे ५-५ या ७-७ गादी-तकिये लगा दिये जायं किन्तु यदि उस आसन में भी कहीं सल रहे तो उन्हें लगेगा कि सेज ठीक से नहीं बिछाई गई है और उन्हें नींद नहीं आएगी ।
एक दासी ने सम्राट्टू के लिए फूलों की सेज बिछाई । मन में विचार आया, जरा सोकर तो देखूं, कैसी नींद आती है ! बेचारी थकी हुई थी, लेट गई, नींद आ गई। इतने में सम्राट् आ गये, देखा । अरे! गजब हो गया । हमारी शय्या पर यह सो रही है, इसकी इतनी हिम्मत ! अनुचरों को आदेश दिया, लगाओ इसको कोड़े। कोड़े पड़ने लगे । वह सोचने लगी- बात क्या है? फिर ध्यान आया कि ओहो! मैं पलंग पर सो गई थी! फिर संवेग जाग्रत हो गया । वह हंसने लगी, रोई नहीं, प्रार्थना नहीं की कि मुझे मत मारो । वह हंसती रही । लोग सोचने लगे- यह कैसा पागलपन है । सम्राट् ने पूछा- क्यों हंस रही है? उसने कहायह मत पूछिये। सम्राट् ने कहा- नहीं नहीं, पूछना तो पड़ेगा, हंस क्यों रही है? उसने फिर कहा- राजन् मत पूछिये । पर राजहठ भी क्या कम होता है ! सम्राट्
ने कहा- नहीं, बताना पड़ेगा । जो भी हो निःसंकोच भाव से कहो । तब उसने कहा- राजन्! मुझे विचार आ गया कि मैं फूलों की सेज पर एक ही घंटे सोई तब इतने कोड़े लगे। हालांकि मुझे वेदना हो रही है, पर मेरा ज्ञान कह रहा है - तू क्या वेदना का अनुभव कर रही है? जो सम्राट् रात-रात भर सोता है, उसे कितने कोड़े सहने पड़ेंगे, यह सोच । ज्योंही मेरे मन में यह चिन्तन जगा, त्यों ही मेरे मन ने कहा- तू क्यों दुःखी होती है, राजा का स्थिति का विचार कर । उसे कितनी वेदना सहन करनी पड़ेगी? राजन् ! मेरी तो इस चिन्तन से आंख खुल गई है।
दासी की तो आंख खुल गई पर हमारी तो पता नहीं कब आंख खुलेगी? कभी खुल भी जाय तो लगता है, अभी तो दिन नहीं निकला, थोड़ी देर और सो जाऊं । और फिर कितने घंटे सोये रह जाते हैं? जागने को तैयार ही नहीं होते। थोड़ा-बहुत जागरण होता भी है किन्तु फिर हवा का झोंका ऐसा लगता है कि सारा वैराग्य उड़ जाता है। जैसे कपूर की टिकिया उड़ जाती है वैसे ही हमारा संवेग भी उड़ जाता है। जैसे इत्र की शीशी खोल कर रखें तो खुशबू उड़ जाती है वैसे ही हमारे भीतर की संवेग की खुशबू भी उड़ जाती है। किन्तु घासलेट इतनी जल्दी नहीं उड़ता और उड़ भी गया तो उसकी गंध बची रहती है इसीलिए आत्मगुण प्रकट नहीं होते। इसीलिए कहा जाता है - संवेग प्राप्त करो । संवेग प्राप्त हो गया तो फिर उसके लिए बताया गया है कि वह "णवं कम्मं न बंधई" अर्थात् नये कर्म का वन्धन नहीं करता ।
बात आगे से आगे बढ़ती जा रही है और बात में बात आ जाती है। आचारांग सूत्र में कहा गया है- "सम्मतदंसी ण करेइ पावं"। सम्यकूदृष्टि पाप नहीं करता है। फिर क्या करता है? क्या उसके कर्म का वन्ध होता ही नहीं ? साधु के कर्म-बंध होता है क्या ? बात बहुत महत्त्वपूर्ण है। सम्यक्दृष्टि पापकर्म का बंधन नहीं करता, यह नहीं कहा, किन्तु वह पाप नहीं करता। आप पापकर्म करते तो नहीं हो ? सम्यकदृष्टि के साथ संबंध जोड़ा है और यह भी बताया है, श्रावक के लिए कि
"धम्मट्टिया धम्मेणचेव वित्तिकप्पमाणा विहरंति"
जो धर्म से वृत्ति करने वाला होता है उसका लक्ष्य पाप का नहीं होता है। जो पाप हो रहा है वह आरंभजा क्रिया है। उससे कर्म भले दंघ जाय, पर
करने का लक्ष्य नहीं है। उसने उस दुर्भेद्य ग्रंथि को तोड़ दिया है, वह बंध कितना करता है? अन्तः कोड़ाकोड़ी सागर से ज्यादा दीर्घस्थिति का बंध नहीं करता है। इस अपेक्षा से कह सकते हैं कि वह पापबंध नहीं करता । दूसरे शब्दों में कहें कि- हालांकि वह ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अंतराय व मोहनीय कर्म का भी बन्धन करता है, पर बंध करता हुआ भी मूल हेतु उन कर्मों के बंध का नहीं होता । पर यह न मान लें कि वह पापकर्म का बंध करता ही नहीं होना और करना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। संसार में जी रहा है, पर निर्लेप भाव से ।
भरत छः खण्ड के बीच में रह रहे हैं पर दृष्टि केन्द्र पर गड़ी है। ऐसी गड़ी रहे तो वह अनन्तानुबंधी चौकड़ी को समाप्त कर देती है। मैं पहले कह गया हूं कि उस बड़े भाई ने यह विचार कर कि पहले मेरे क्यों नहीं बांधी, वैर का अनुबंध कर लिया । यदि इस प्रकार का विचार नहीं है तो अनन्तानुबंधी चतुष्क का क्षय हो गया । ऐसी ग्रंथि खुल गई तो फिर जो बट हैं वे थोड़े-से प्रयत्न से निकल जाएंगे। यदि हम शांत जीवन जीना चाहते हैं, तीर्थंकर देवों की वाणी सुनते हैं तो अपने जीवन-व्यवहार में ऐसी कोई गांठ बांधने का प्रयत्न न करें। उसमें निमित्त डालने का प्रयत्न न करें। यदि गांठ पड़ गई तो भले ही वर्तमान में बोध हो-न- हो, पर आने वाले समय में वह भारी दुःख देगी । विचार कीजिये कि जो गांठें पीछे की हैं वे तो खोल नहीं पा रहे हैं और नई-नई बांधते चले जायेंगे तो कब खोल पायेंगे?
भगवान् महावीर की आत्मा ने गांठ-भेदन का प्रयत्न किया, उस नयसार के भव में । सारे व्यक्ति कह रहे हैं- आइये, भोजन कर लीजिये पर वे कहते हैं- पहले किसी अतिथि को, संत को भोजन करवा दूं । और आपसे कह दें कि आज भोजन से पूर्व एक मिनट भावना भानी है तो कितनी बार नजर घड़ी पर चली जाएगी और सोचेंगे- एक मिनट कब पूरा होगा ? वह प्रतिज्ञा कर रहा है कि पहले अतिथि को खिला दूं, फिर भोजन करूं । इतने में उसने मुनि को देखा । बहुत ही भक्ति-भाव से उसका हृदयकमल प्रफुल्लित हो गया। उसने उन्हें श्रद्धापूर्वक आमंत्रित किया और प्रतिलाभित किया ।
कई बार गांवों में जाते हैं तो बहिनों का भाव बढ़ने लगता है और उनके मुंह से स्वर निकलते हैंश्री राम उवाच
म्हारी पुण्यवानी लगा थोड़ो जोर, संतां ने लाईजे पावणा... ।
संत भी अतिथि के रूप में हैं। पावणे की तो फिर भी पहले से सूचना हो सकती है, पर संत गोचरी हेतु कब आएंगे, पता नहीं होता । तिथि बंधी होती है क्या ? भगवान् ने कहा है - तिथि बांध कर गोचरी नहीं जाना, और कोई जाता है तो वह वस्तुतः संयम जीवन से उतर रहा होता है। संतों का योग विना पुण्य के नहीं मिलता। जब पुण्यवानी जोर खाती है तो संतों के दर्शन मिलते हैं। कहा है - साधुनां दर्शनं पुण्य, तीर्थभूताहि साधवः । संत अपने आप में तीर्थभूत हैं, सन्तदर्शन पुण्य उपार्जन कराने वाले हैं। पुण्य के संयोग से ही होता है संत-दर्शन । आप सुबाहुकुमार का वर्णन सुन रहे हैं। सुपात्रदान देने में, दान की ही बात नहीं, उससे भी महत्वपूर्ण है कि किस मुनि से आर्यवचन सुना । एक वचन भी यदि हृदय में उतार लिया तो वह जिन्दगी बदलने वाला बन जाता है। । रोहिणेय चोर के पिता ने कहा था- बेटे! और जो करना है वह करना, किन्तु भगवान् महावीर की वाणी मत सुनना । उसके पिता को डर था कि यदि सुन लेगा तो मेरा धन्धा चौपट हो जायेगा । भृगु पुरोहित ने क्या किया था ? जब मालूम पड़ गया कि जवानी में आते ही उसके पुत्र साधु बन जाएंगे तो उन्हें ले कर जंगल में चला गया ताकि उन्हें योग मिले ही नहीं। किन्तु उनका पुण्य वहां भी खिल गया। जिसका पुण्य होता है वह खिलता ही है, वह कहीं भी क्यों न चला जाये । भृगु उन्हें जंगल में ले गया, किन्तु संत वहां भी आगये। माता-पिता ने अपने बच्चों को कितनी - कितनी बातें बताई थी किन्तु संत-दर्शन से उनके द्वारा बताई गई सारी बातों का प्रभाव समाप्त हो गया। आपके घर में कोई दीक्षा लेने को तैयार हो जाये तो कहेंगे, नहीं जाना है महाराज के। क्या पड़ा है महाराज में? और ऐसा भी कह देंगे कि एक चांटा जड़ दूंगा तो याद आ जायेगा महाराज बनना! पर जिनमें वैराग्य जग चुका हो, उनका ये थप्पड़ें क्या करेंगी? ये जितनी लगेंगी उसकी भावना और पक्की होगी। प्रतिकूल परीषह जितनी मजबूती लाता है उतना अनुकूल परीषह नहीं । प्रतिकूल परीषह से इतनी मजबूती आ सकती है कि फिर उस पर प्रभाव नहीं पड़े। भावना बनने के बाद मुझे असम ले गये । कुछ दिनों बाद मैंने कहा- मुझे संतों के पास जाना है, तो कहने लगे- कोई रोकेगा नहीं, ४-५ दिन बाद चले जाना। और ये होता तो फिर लगता कि कोई
बात नहीं, रोक तो नहीं रहे हैं । और जैसे ही दो दिन बीते कि फिर कहता कि मुझे जाना है तो कहते हैं- अभी नहीं। हम नहीं चाहते कि तुम संसार में रहो, पर इतनी जल्दी क्या है? हम आश्रम बनवा देते हैं, वहां रहना । हजारों लोग आएंगे। इस प्रकार अनुकूल बातों से परीषह देने वाले व्यक्ति बहुत कम होते हैं। अधिकांशतः प्रतिकूल उपसर्ग दिये जाते हैं। बहुत-सा दूसरा साहित्य दिया गया कि इन्हें पढ़ो । पढ़ा भी सही, पर विचार लौट - लौट कर वहीं आ टिकते । रात्रि १२ बजे तक नींद नहीं आती, पर घूम-फिर कर न जाने क्या बनता ? पारा वहीं आता। भगवान् महावीर का दर्शन ही सही है । मठ, आश्रम से साधु का क्या वास्ता जब घर छोड़ दिया तो नये आश्रम क्यों बनाना ! कहने का मतलब यह कि अनुकूल परीषह देने वाले कम मिलते हैं।
मैं बता रहा था कि उस समय नयसार ने भक्तिभाव से आहार बहराया, फिर उन्हें मार्ग बताया और संतों से कहा- मेरे आत्मकल्याण के लिये उपदेश दें। संतों ने कहा- संसार में विषय - कषाय बहुत हैं, किन्तु जो जितना निर्लिप्त रहता है वह जीवन को उतना ही पवित्र बनाता है । मन छाने कोई बात नहीं करना चाहिये। उसकी भक्ति, धर्म के प्रति निरन्तर बढ़ती गई । सुपात्र दान देकर जीवन को धन्य बनाया ।
हम भगवान् महावीर के जीवन को ध्यान से सुनें और उनकी आत्मा के साथ अपनी आत्मा को तोलने का प्रयत्न करें। हमारे जीवन में कैसी-कैसी घटनाएं घटती हैं और हम कैसी- कैसी गांठ बांध लेते हैं, इस पर भी विचार करें । ये गांठें कई बार विवेकहीनता का परिणाम होती हैं और कई बार अज्ञान अथवा नासमझी के कारण बंध जाती हैं परन्तु हमेशा राग-द्वेष इनसे जुड़े होते हैं और गांठों को खींच - खींच कर मजबूत करते रहने का कार्य करते हैं । होना तो यह चाहिये कि पहले तो गांठें लगने ही न दें, यदि असावधानीवश लग भी जायें तो उन्हें जल्दी से जल्दी ढीला करने का प्रयास करें। कई बार इस प्रयास मात्र में विवेक का सहारा लग जाता है और गांठ स्वतः ही ढीली होकर खुल जाती है, यदि ऐसा नहीं होता तो भी वह ढीली पड़ी रहती है और अनुकूल अवसर आते ही सरक जाती है। जीवन - प्रवाह में भाग्य के तत्त्व को किसी-न-किसी रूप में स्वीकार करने की स्थितियां बनती ही हैं। हम उसे संयोग भी कह सकते हैं । जब संयोग या भाग्य का विवेक के साथ तालमेल बैठ जाता है तब चमत्कारिक
स्थितियों की रचना हो जाती है। हमारी दृष्टि तो यही होनी चाहिये कि हम जाग्रत् रहें, अपनी वृत्तियों पर नियंत्रण रखें, अध्यवसायों के प्रति ईमानदार रहें, सत्कर्म में आस्था रखें तथा विवेक की लगाम ढीली न छोड़ें । यदि इतना ही हम कर सकें तो कोई कारण नहीं कि अनुकूल समय न आये, संयोग न बने और इष्ट की प्राप्ति का अवसर न मिले। तीर्थंकर देवों के चरित के श्रवण, धर्मग्रन्थों के पारायण और साधु-संतों के मार्गदर्शन की मनोवल को दृढ़ बनाये रखने में महती भूमिका होती है। अतः इनका सहारा न छोड़ें और आश्वस्त रहें कि सब कुछ शुभ होगा । निश्चिन्त रहिए, तब सब शुभ ही होगा ।
निर्वेद की महिमा
संभव देव ते धुर सेवो सवे रे........ ।
विषय और कषाय, ये दो शत्रु आत्मा के साथ जुड़े हुए हैं । विषय क्या हैं और कषाय क्या है, इन्हें भी समझें । विषय हमें विभ्रम में डालते हैं और कषाय हमें बांधने का काम करते हैं । विषय हमें बहकाते हैं, और जैसे ही हमारा बहकना होता है, कषाय झट बांधने के लिए तैयार हो जाते हैं। इन्हीं विषयों-कषायों में आत्मा के निमग्न होने के कारण उसके भ्रमण की स्थितियां बनती हैं। इस भ्रमण की अवस्था को काटना - छोड़ना है और विश्राम में पहुँचना है तो निवेद की अवस्था प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है। निर्वेद का स्वरूप स्पष्ट करते हुए बताया गया है कि वह देव-मनुष्य - तिर्यंच सम्बन्धी काम-भोगों के प्रति उदासीन होता है। निर्वेद में उन विषयों में विरक्ति होती है।
विषय के दो भेद कर सकते हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष वह, जिसका आत्मा से संबंध हो, किन्तु यहां उसे प्रत्यक्ष कहा गया है- जिसे आंखों से देख सकते हैं। इसके विपरीत आंखों एवं अन्य इन्द्रियों से जो न जाना जाय वह परोक्ष । बहुत-सा विषय है जिसे हम देख रहे हैं वह प्रत्यक्ष है, पर जिसे देख नहीं रहे हैं, पर कानों से सुनते हैं अथवा जिसके बारे में पढ़ते हैं, वह परोक्ष है, जैसे- देवलोक का सुख । यह ठीक है कि देवलोक का सुख अभी देख नहीं रहे हैं, पर सुना है कि वहां ऐसी विपुल सुख-साधन-सामग्री उपलब्ध होती है, जिसमें देव आकंठ डूबे रहते हैं। हम मन में चिंतन करके ही जान पाते हैं कि कैसे-कैसे भोग देवलोक में उपलब्ध होते हैं। आराम इतना कि कोई काम नहीं करना पड़ता। न दुकान, न माल वेचना, न कृषि, न ही और कोई काम । केवल आनन्द का और सुख का उपभोग । ऐसी बातें हम कानों से सुनते हैं, उन पर विचार करते हैं कि अभी आंखों से नहीं देख रहे हैं, इसलिए ये सभी अभी हमारे
लिए परोक्ष हैं, किन्तु उनके प्रति भी लालसा जग सकती है। सकती ही नहीं, जग जाती है। अभवी जीव भी साधु बनता है । साधना की कठोरता को स्वीकार करता है और अपनाता है, किन्तु उसकी साधना के पीछे लालसा यही होती है कि जितना - जितना आगे के देवलोक में जाऊंगा, उतना उतना अधिक सुख पाऊंगा । इसी भाव से वह कठोर साधना करता है । यदि यही भाव हमारे भीतर या श्रावक जीवन की आराधना करते बन जाय कि यहां साधु-जीवन में थोड़ी कठिनाई सह लूं तो कोई बात नहीं, परन्तु वहां पहुँचकर तो खूब सुख भोगूंगा, आनन्द प्राप्त करूंगा और मौज-मस्ती करूंगा, तो समझलो साधना बेमानी है। ऐसे भावों के साथ यदि साधु - पोशाक धारण करें या श्रावक-व्रत अंगीकार करें तो समझें कि ये निर्वेद के भाव नहीं हैं, अपितु विषय की कामना के अंग हैं। अभवी आत्मा ऐसे ही भोगों की कामना लिए हुए ऊपर से पोशाक पहनती है, पर असलियत में वहां निर्वेद नहीं होता । थोड़ा दुःख भी वह इसलिए सहता है कि बाद में देवों का सुख विशेष रूप से मिल जाएगा । उसका चिन्तन होता है कि यहां के भोग तो क्षणिक हैं, यहां शरीर बूढ़ा हो जावेगा फिर वह रौनक नहीं रह पाएगी, झुर्रियां पड़ जायेंगी और यहां का सब कुछ विनाशशील है, इसलिए यहां थोड़ी साधना और कर लूं, देवलोक में चला जाऊं, वहां बुढ़ापा नहीं आयेगा और हर समय जवानी रहेगी तब आंकठ भोग भोगूंगा । यह पूरी तरह से चालाकीभरा भौतिकवादी चिन्तन होता है। इस प्रकार के भावों से साधु या श्रावक बनें तो वे निर्वेद के भाव नहीं हैं। इस संदर्भ में बुद्धदास का प्रसंग आंख खोलने वाला बन सकता है।
बुद्धदास ने सुभद्रा को देख लिया था। पूछा था - यह कौन है? ज्ञात हुआ कि यह यहां के श्रेष्ठी जिनदास की पुत्री है। पूछा- क्या इसकी शादी हो गई है? उत्तर मिला- नहीं । इनके पिता चाहते हैं कि जिनेश्वर देव के उपासक, योग्य वर के साथ इसका संबंध करूं । बस, बुद्धदास की वासना के पंख लग गये। उसने छल का आश्रय लिया । उसी दिन से उसका धर्मस्थान में पहुँचना प्रारंभ हो गया। उसने सामायिक प्रतिक्रमण शुरू कर दिये। अभी आता कुछ नहीं धा, पर थोड़ी-बहुत जानकारी लोगों से प्राप्त कर ली। गुरु चरणों में पहुँचा, वंदन करके निवेदन किया- गुरुदेव! मैं कुछ सोखना चाहता हूँ। संत के पास
सामायिक, प्रतिक्रमण, थोकड़े सीखे । पाखण्ड का पूरा बाना पहन लिया । अब वह संसार से उदासीनता की बातें करता, तत्त्वज्ञान की बातें करता । देखने वाले कहते- ओहो ! छोटी उम्र से ही कितना तत्त्वज्ञान है ! किन्तु वह सब किसलिए था, आप जानते हैं। उसकी उदासीनता में निर्वेद का भाव कहां था, वह तो आकांक्षा की पूर्ति के लिए थी । अभिलाषा की पूर्ति के लिए कितना भी तप-त्याग क्यों न किया जाय, वह निर्वेद की कोटि में नहीं आता। वैसी ही स्थिति उसकी थी । सुभद्रा के पिता उसे घर लेकर आये, वे उसके पाखण्ड से प्रभावित थे । दुनिया की यही रीति है यथार्थ क्या है, कौन जानता है? हमारे अन्दर की अवस्था हम स्वयं ही जान सकते हैं ।
बुद्धदास को वे भोजन के लिए लेकर गये । वह कहने लगा- मेरे तो द्रव्य की मर्यादा है । श्रेष्ठी देखते रह गये । अहो! इतनी छोटी उमग्र में इतना त्याग - वैराग्य ! वे आग्रह करने लगे- मेरी भावना है अतः मेरा आतिथ्य तो स्वीकार करना होगा । बात चीत के दौरान उन्होंने अपनी आंतरिक इच्छा जाहिर कर दी कि मैं अपनी पुत्री का संबंध जोड़ना चाहता हूँ । बुद्धदास ने देखा कि उसकी योजना सफल हो रही थी । बोला- मैं अपरिचित हूँ, आप मुझे जानते तक नहीं। क्या अपरिचित से संबंध करेंगे? श्रेष्ठी और प्रभावित हो गये । कहने लगेपूत के लक्षण पालने में ही नजर आ जाते हैं । आपसे बढ़कर मुझे और कौन मिलेगा? शादी हो गई। सुभद्रा ससुराल पहुँची और दूसरे दिन ही उसे कहा गया - ये मुँहपत्ती हटाओ, यहां ये नहीं चलेगा । सुभद्रा एक क्षण के लिए हक्की-बक्की रह गई । सासू कहने लगी- ये तुम्हारे ढकोसले यहां नहीं चलने वाले हैं। सुभद्रा सन्न रह गई, किन्तु उसके जीवन में सच्चा त्याग - वैराग्य था । यदि त्याग के साथ वैराग्य नहीं हो तो क्या कल्याण हो सकता है? निर्वेद के साथ संसार के प्रति जो उदासीनता का भाव जुड़ा हुआ होता है वह आत्मा का कल्याण करने वाला होता है । उस पर बहुत दबाव डाला गया, किन्तु उसका निर्वेदभाव नहीं जा सका। जहां निर्वेद नहीं हो वहां त्याग भी सही रूप में फल देने वाला नहीं बनता । उसकी यदि भोगेच्छा होती तो वह धर्म को एक किनारे रखकर ससुराल के रंग में ही रंग जाती, पर उसने वैसा नहीं किया। संसार सुख उसे प्रलोभित नहीं कर सके । उसको त्याग के साथ निर्वेद का भाव था, वैराग्य था । त्याग के साथ
उत्कृष्ट वैराग्य भाव नहीं हो तो वह जीवन की खेती को तहस-नहस कर डालता है। खेती में बीज तो डाल दिये जायं पर उन्हें यदि पानी नहीं मिले तो वह खेती पनप नहीं सकती। पानी के साथ समय-समय अच्छी खाद भी मिले तो फसल भरपूर होती है।
पूज्य गुरुदेव जब दिल्ली में विराज रहे थे तब जंगल के लिए यमुना पार जाना पड़ता था । जव चातुर्मास के दिन आ गये तब उन्होंने देखा कि यमुना के किनारे, जहां गटर के पानी के साथ मल-मूत्र की खाद पहुंच गई थी और जहां मक्की बोई गई थी, थोड़े ही दिन में वहां मक्के के बड़े-बड़े भुट्टे लग गये । मल-मूत्र एवं गटर का पानी वैसे तो उच्छिष्ट पदार्थ हैं, किन्तु वे अच्छी खाद भी है इसलिए बीज बड़े-बड़े मक्के के दानों में परिणत हो गये थे। वैसे है हम यदि मल-मूत्र का गटर देख लें तो सहसा हाथ नाक पर चला जाता है, किन्तु वही जब खाद के रूप में परिणत हो गया तो उसने मक्का के पौधों को पुष्ट कर फसल को सरसब्ज कर दिया । वैसे ही 'त्याग' बीज है, 'वैराग्य' खाद । 'वीतराग वाणी' रूपी पानी जब उसे सिंचन देता है तब वह वीज पनपता है और अंकुर फूट पड़ते हैं किन्तु यदि सिंचन व खाद न मिले तो फूट हुआ वीज भी समाप्त हो जाता है ।
हम विचार करें कि क्या कारण है कि हम आज त्याग-प्रत्याख्यान तो करते हैं, किन्तु उससे अपनी आत्मा को तृप्त नहीं कर पाते हैं। ऐसा क्यों होता है कि तपस्या में भी रात में स्वप्न आ जाते हैं? ऐसी घटनाएं भी सुनी जाती हैं कि रात में देखा - उकाली वन गई है, मेरे लिए हलवा बनाया जा रहा है। ऐसे स्वप्न क्यों आते हैं? कारण ढूंढ़ने के लिए दूर जाने की जरूरत नहीं है। कारण है कि उपवास तो करते हैं, पर जो निर्वेद का भाव बनना चाहिये वह पूरा वन नहीं पाता है और किसी न किसी रूप में वैसे भाव जागते रहते हैं। दिन के वे भाव ही रात में स्वप्न में रील की तरह सामने आते रहते हैं। यदि निवेद को सही रूप में स्वीकार कर लिया जाय तो फिर सारे विषयों से विरक्ति की अवस्था बन जानी चाहिये! कहीं भी लगाव नहीं रहना चाहिये। परन्तु यथार्य में ऐसा हो नहीं पाता है। हम त्याग तो करते हैं किन्तु लगाव बना रहता है। तमी वैसी स्थिति बनती है। गाय बंबी हुई है, इसलिए मजबूर जरूर है, पर जैसे ही रखूंटै
से छूटी कि तुरंत हरी घास पर टूट पड़ती है। उधर ही भागने की कोशिश करती है । यदि मजबूरी में हम बंधे हुए हैं, किन्तु मन विषयों की ओर दौड़ रहा है अथवा उधर भाग रहा है तो भगवान ने स्पष्ट बताया कि यह अकाम निर्जरा का रूप है। उससे पुण्य संचय जरूर हो जायेगा, पर सोचना यह भी है कि क्या इतना ही अपेक्षित है?
एक कुलवधू है जो बाल - विधवा हो जाती है। विधवा होने के बाद कुल की मर्यादा है कि दूसरे पुरुष के साथ संबंध नहीं कर सकती । कुल मर्यादा के कारण वह घर में रह तो रही है पर मन में विषयों के भाव भरे हुए हैं। मन नहीं करता पर अकाम भाव से ब्रह्मचर्य का पालन करती है। हो सकता है कि उससे वह ६४००० वर्षों की देवगति का आयुष्यबंध कर ले क्योंकि उस पुण्य • से देवलोक के भोग मिल जायेंगे । एक दूसरी बाला है, जिसने छोटी उम्र में ही जीवनपर्यन्त के लिए ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर लिया है और निवेद भाव से बिना किसी प्रकार के ऊहापोह के उस व्रत का पालन कर रही है, तो वह देवगति का दीर्घ आयुष्यबंध कर लेगी । यही बात शील व्रत के संबंध में भी है। यदि कोई इस प्रकार का व्रत ग्रहण कर फिर त्याग - वैराग्य भाव से, निर्वेद भाव से, उसका पालन किया जाता है तो ऐसा व्रत उसे देवगति की लंबी आयुष्य का और ज्यादा सुख-सुविधा की प्राप्ति कराने वाला होता है। जो अपनी मर्जी से प्राप्त काम-भोगों को पीठ दे देते हैं, "जेय कंते पिए भोए, लद्धे वि पिटिठ कुव्वई" के भाव से उन्हें पीठ दे देते हैं कि मुझे इनका सेवन नहीं करना है और त्याग - वैराग्य के साथ चलते हैं, वे अनुत्तर अवस्था को प्राप्त करते हैं और देवलोक से जब चलते हैं तो यहां भी उत्तम कुल आदि को प्राप्त करते हैं ।
उत्तराध्ययन सूत्र के तीसरे अध्ययन में इस स्थिति विवेचना की गई है । हम सोचते हैं, यह पुण्यवानी थोड़े ही है, पर यह सम्पत्ति पुण्य का प्रतिफल है या नहीं? उत्तराध्ययन सूत्र के तीसरे अध्ययन की समीक्षा की जाय तो वहां बताया गया है कि उसने व्रतादि का किन भावों से पालन किया है। यदि शुभ भावों से पालन किया है तो उन शुभ भावों से पुण्य संचय कर देवलोक में जाता है और वहां से निकलता है तो उसे चार काम स्कंध मिलते हैं- अच्छे मित्र, माता-पिता, सम्पत्ति व भोग के साधन । ये पुण्य से प्राप्त होते हैं । उसने देवभव
से पूर्वजीवन में त्याग-नियम का शुभ भाव से पालन किया है । वह जो संवर की अवस्था बनी थी, वह तो आश्रव को रोकने वाली थी किन्तु वहां जो शुभ योग, शुभ भाव थे वे उसके पुण्यार्जन का कारण बने । उनके आधार पर उसे वह अवस्य प्राप्त होती है। इसलिए एकान्त रूप में ऐसा नहीं कह सकते कि सम्पत्ति पुण्य से नहीं, बल्कि पुरुषार्थ से मिलती है। यदि सिर्फ पुरुषार्थ से मिलती होती तो ऐसा क्यों होता कि एक व्यक्ति सुबह से शाम तक एड़ी से चोटी तक पसीना बहाये और एक टाइम के भोजन का भी जुगाड़ नहीं कर पाये जबकि दूसरी तरफ केवल दो घंटे पेढ़ी पर जाकर बैठने वाला लाखों का व्यापार कर ले और उसे कोई विशेष पुरुषार्थ नहीं करना पड़े । यह भी पूछा जा सकता है कि पुण्य से संपत्ति मिलती है और संपत्ति तो परिग्रह है, और परिग्रह तो पाप है, तो क्या पुण्य का फल पाप के रूप में मिलता है ? उत्तर और समाधान इस प्रश्न और उसके उत्तर में निहित है। साधु को दान देने से क्या होता है? सुपात्र - दान का फल क्या है? सुख-विपाक सूत्र साक्षी है, वहां स्पष्ट रूप से बताया गया है - 'गिहंसी य से इमाइं पंच दिव्वाई पाउटभूवाई'
५ दिव्य प्रकट होते हैं। वहां सोने की वृष्टि हुई या नहीं? सुमुख गाधापति ने उत्कृष्ट भाव से दान दिया। उसके फलस्वरूप यह प्राप्त हुआ। वह यदि परिग्रह है तो परिग्रह तो पाप होता है। लेकिन ध्यान रखिये, सोना पाप नहीं है, चादी, हीरे, माणक, मोती पाप नहीं हैं। यदि पाप कहें तो सुपात्र - दान का फल क्या पाप-रूप में आया? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। जो प्राप्त हुआ, वह पुण्य के प्रभाव से प्राप्त हुआ, किन्तु यदि उस पर आसक्ति बन जाय तो वह पाप होगा। पाप क्या है? सम्पत्ति को पकड़ कर रखने की भावना बने तो वह पाप है। मम्मण सेठ के यहां बहुत सम्पत्ति धी किन्तु उसनेकृपण धन खर्चे नहीं, जीवत जस नहिं लेत।
जैसे अड़वो खेत को, खावे न खावा देत।।
जैसा व्यवहार किया। कितना धन धा! किन्तु लोभ और चाह की कोई सीमा नहीं होती। सुना होगा कि रत्नजड़ित एक बैल तो मिल गया तो भी चैन नहीं। चाह हुई कि दूसरा बैल भी होना चाहिये। यदि दो बन गये होते तो लगता कि बैल सूने अच्छे नहीं लगते, एक गाड़ी भी होनी चाहिये। गाड़ी भी बन जाती
तब भी क्या तृप्ति हो जाती? तब सोचता गाड़ी बिना गाड़ीवान के अच्छी नहीं लगेगी और गाड़ीवान भी बन जाता तो फिर चाह जगेगी कि खाली गाड़ी क्या शोभती है? इस प्रकार चाह आगे से आगे बढ़ती जाती। जहां निर्वेद के भाव नहीं हैं, वहां परिग्रह की अभिलाषा बढ़ती जाती है। ऐसा परिग्रह पाप का कारण बन सकता है । पदार्थ-मात्र पाप नहीं है, उसके प्रति जो लगाव का भाव रहता है, वह पाप का कारण है। परिग्रह है, पर यदि निर्वेद भाव मौजूद है तो वह पाप का कारण नहीं बनेगा । भले ही कितना ही इकट्ठा हो जाये, पर यदि लगाव नहीं है और वह उसका उपभोग करता रहे तो वहां पाप का कारण नहीं बनेगा । एक होता है पापानुबंधी पुण्य, और एक होता है पुण्यानुबंधी पुण्य । इसे समझें ।
एक व्यक्ति शक्कर, की गाड़ी भरकर लाता है और बेचकर वापिस अपनी ट्रक भरकर ले जाता है । शक्कर बेच कर वापिस शक्कर भर लेता है यह है तो पुण्यानुबंधी पुण्य का खेल । पापानुबंधी पुण्य है जैसे शक्कर भर कर लाता है किन्तु या तो कोयला भर लेता है या लकड़ियां भर लेता है, किन्तु शक्कर भर कर नहीं ले जाता । वर्तमान में पुण्य लाया पर उसका उपयोग गलत कर लिया । नन्दन मणियार ने तेले की तपस्या में विचार कर लिया - यह कैसी तपस्या? इसके बजाय तो मैं बावड़ी बनवाऊं, ऐसा करूं, वैसा करूं, और न जाने कितनी-सारी कल्पनाएं कर ली । इतने सारे विचार आये पर अपेक्षित फल मिला क्या? नहीं। क्यों? खाद-पानी नहीं मिला। बीज तो था, पर बीज को सिंचन नहीं मिल पाया । बीज था व्रतों का, पर उसे लगा इसमें क्या पड़ा है? बीजों को क्रिया. का, भावना का खाद-पानी नहीं मिला । परिणामस्वरूप दोनों में रस नहीं आ पाया । फसल हो भी जाये, पर वैराग्य की खाद के बिना रस नहीं आयेगा । नन्दन भणियार को लग रहा है कि अब इसमें रस नहीं है। दूसरे दिन उसने काम शुरू करवा दिया। बावड़ी, बगीचे, धर्मशालाएं बनवाईं। अब तो जिधर देखो उधर प्रशंसा और यश- अहो ! देखो, कितना परोपकारी है ! बावड़ी बनवा दी, कितने लोग अपनी प्यास शांत करेंगे! कितने लोग वृक्षों की विश्रांति प्राप्त करेंगे! नन्दन मणियार कीर्ति के इस मीठे जहर को पी रहा था। इस संसार की यही स्थिति है कि व्यक्ति मीठे जहर को आसानी से उतार लेता है । कड़वा जहर भले व्यक्ति सहन नहीं कर पाता हो, पर मीठा जहर तो वह गटागट नीचे उतार लेता है ।
आप दान देते हैं, किन्तु उसके पीछे भाव होता है- मेरा नाम होना चाहिये और जब चारों ओर प्रशंसा होने लगती है- सेठजी का तो क्या कहना ! यह प्रशंसा ही मीठे जहर का काम करती है। आप शास्त्र उठाकर देखिये, आपको विवरण है मिल जायेंगे। इन मीठी-मीठी बातों को सुनकर नन्दन मणियार गर्व - गौरव के भाव से फूल जाता है। ओहो! मैंने कैसे काम किये हैं!! और वह तिर्यंच आयु का बंध कर लेता है। क्या १२ व्रत उसे मेढ़क के भव में ले गये? नहीं। कारण १२ व्रत नहीं हैं। कारण है- मीठे-मीठे जहर का पान । वह पान करने से ही वह मनुष्य - तन हार कर तिर्यंच में चला गया। इन दृष्टांतों को सुन कर हम हृदय के पट खोलें। हम चिंतन करें कि निर्वेद में जी रहे हैं या पापानुबंधी पुण्य बांध रहे हैं? लोग कहें- सेठजी तो बहुत दानवीर हैं, ये तो गरीबों के मसीहा हैं! प्रशंसा का यह मीठा-मीठा जहर पीते रहे तो क्या स्थिति वनेगी, यह सोचें । यदि हकीकत में वैसे गुण हैं और प्रशंसा की जाती है तो सोचें कि मेरे भीतर अनेक गुणों की कमी है, जिसे मुझे दूर करना है किन्तु मीठा जहर भीतर नहीं उतारें। जैसे पानी छान कर पीते हैं, वैसे ही वाणी को भी छानकर पीयें। जो कुछ भी आये उस सभी को भीतर नहीं उतारें, तो जीवन नष्ट नहीं होगा।
बंधुओं, यदि हम इस मानव-भव को सार्थक करना चाहते हैं तो हमें यतनापूर्वक चलना होगा । हमें चिन्तन, आचरण और परिणाम के बीच तालमेल बैठाना होगा । हम वीतराग वाणी सुनते जरूर है, पर निर्वेद के भाव भीतर जगते हैं या नहीं, इसका भी हमें ध्यान रखना होगा। हम कहीं विषयों की तरफ वैसे ही तो नहीं दौड़ रहे हैं जैसे गाय चारे-वांटे की तरफ दौड़ती है? इसका निर्णय हमें और आपको स्वयं करना है। आप सामायिक करते हैं, पौषध करते हैं, उनसे अंतर में तृप्ति और वृत्ति में संतोष आना चाहिये क्योंकि ये व्रत-नियम आत्म-शांति देने वाले हैं। अगर आपको लगे कि मैं बहुत करता हूं पर संतोष प्राप्त नहीं होता, तो आपको खोज करनी चाहिये कि मैं लम्बे समय से त्याग-प्रत्याख्यान कर रहा हूं फिर भी मेरी आत्मा में शांति संतोष-निर्वेद क्यों नहीं आ रहा है? खोज करेंगे तो कारण पता चलेगा ।
जिन खोजा ति पाइयां, गहरे पानी पैठा
तब बात गहरे उतरने की है, जितना गहरा कोई उत्तरेगा, उतना उसे
मिलेगा। नहीं मिले, ऐसा हो नहीं सकता। इस पूरी प्रक्रिया को समझें। हो सकता है कि समुद्र में कोई एक बार डुबकी लगाये तो कुछ न मिले। दूसरी बार, तीसरी बार और सौ बार डुबकी लगा ले, किन्तु यदि एक बार भी एक रत्न मिल गया तो सारी मेहनत सफल हो जाती है । कौन-सा क्षण सफलता देने वाला बन जायेगा, यह बता पाना कठिन है । परन्तु खोज नहीं करें और सोचलें कि मन ही नहीं लगता, तो बात नहीं बनेगी। मन को लगाना पड़ता है। सुनते-सुनते ही बात समझ में आती है । दूध को स्थिर करने के लिए उसे रड़ाना पड़ता है। आंच लगती है तब मावा बनता है। वैसे ही निरन्तर सुनते रहें, तो सुनते-सुनते संस्कार जगेंगे, तो हमारे भीतर भी दूध का मावा बनेगा ।
त्याग से निर्वेद के भावों की उत्पति हो सकती है, पर इसके लिए आवश्यक है कि इन भावों को प्राप्त करने का लक्ष्य बनाया जावे । संवेग की चर्चा कितनी ही करते जायें, उससे लाभ नहीं । उसे आचरण में उतारें। उसके माध् यम से निर्वेद प्राप्त करने का लक्ष्य बनायें, तब बात बन सकती है। यह निर्वेद ही उदासीनता के उस भाव को विकसित करेगा और प्राप्ति को भी अपरिग्रह में बदल देगा । इस प्रकार जब इच्छाओं का, अपेक्षाओं का और कामनाओं का अंत हो जायेगा तब विषयों के विभ्रम और कषायों के बंधन से मुक्ति की स्थिति बनेगी। यह स्थिति ही साधना की सफलता की स्थिति होगी जिसमें शुभ भावों से पुण्य का संचय सुनिश्चित होगा और परमसिद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा । अतः निर्वेद की प्राप्ति का हम लक्ष्य बनायें और अपना कल्याण करें । निर्वेद का भाव जगेगा तो देव, मनुष्य और तिर्यंच संबंधी विषयों से भी विरक्ति होगी । इस संबंध में यह भी समझ लें कि मनुष्य संबंधी विषयों में अहं का प्रमुख स्थान है। व्यक्ति स्वयं के प्रति बहुत लगाव रखता है और यही लगाव जब शरीर के प्रति हो जाता है तब व्यक्ति तप - मार्ग पर नहीं चल पाता । यह लगाव जब भावनाओं और कामनाओं के प्रति होता है तब व्यक्ति भोगों के प्रति उन्मुख हो जाता है है और स्वयं की तुष्टि के सभी उपाय करता है । परन्तु जब संवेग जाग्रत हो जाता है तब उसमें अनुत्तर धर्मश्रृद्धा उत्पन्न हो जाती है । तब मनुष्य उस स्थिति में भी पहुँच जाता है जिसमें वह अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ आदि का क्षय कर पाता है। परिणामस्वरूप नये कर्मों का बंध करने से वह बच जाता है। वह
मोल-सुख का अभिलाषी बन जाता है तथा धर्म के प्रति, धार्मिक पुरुषों के प्रति और पंचपरमेष्ठि के प्रति उसमें प्रीति उत्पन्न हो जाती है। यह उत्कृष्ट धर्म की स्थिति होती है जो निवेद की अवस्था तक पहुंचा देती है। इस प्रकार संसार मार्ग का विच्छेद तो प्रारंभ हो ही जाता है, सिद्ध मार्ग की और गति भी प्रारंभ हो जाती है। और सायक यदि अध्यवसाय में लगा रहे तो सिद्धि-मार्ग प्राप्त कर लेता है। इस मार्ग पर चलने के लिए भौतिक सम्पन्नता की आवश्यकता नहीं होती। भौतिकवादी मानसिकता से तो इसका पैर ही होता है। इसके लिए तो भौतिकता से विति की मानसिकता अपेक्षित होती है।
भावनाओं की पवित्रता और आभक्त की सम्पत्ति हर किसी को यों ही उपलब्ध नहीं होती ! हो सकता है कि अयंत हीन, दीन, दुर्बत मनुष्य को यह सहज ही उपलब्ध हो और धन, वैभव, बल, शक्ति आदि से सम्पन्न व्यक्ति प्रयास करने के बाद भी इसे उपलब्ध न कर सके। यह आन्तरिक व्योम का परिणाम है। और ऐसा परिमान किसी में भी, कहीं भी और कभी भी हो सकता है। उस पर ऊ या स्तर का कोई वंदन नहीं होता। इसलिए वे हमें दिखाई दे कि किसी में ऐसा परिकार है, उसमें निर्देद्र के भाव अंतर तक भरा हुआ है, तो उसके मार्ग में बाधक नहीं बनना चाहिये, क्योंकि वैराग्य के मार्ग पर चलता हुआ वह स्वयं के को उद्धार करता ही है, अपने से संबद्ध सोों के भी त्याग क का सबक बनता है। कमेत तो यह है कि ऐसे बति के साथ सहयोग कर उसे उसके तक के कोरे बढ़ाने में सहायक बना जाय। इसमें उसका हित में होगा ही, महत्यक बनने वालों के ही पुलाम हो
कल्याण का मार्ग
सूयगडांग सूत्र में कर्मबंध का हेतु आरंभ को माना गया है। आरंभ और परिग्रह- ये दोनों कर्मबंध के प्रमुख हेतु कहे गये हैं। वैसे मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग - इन्हें भी कर्मबंध का हेतु माना गया है, किन्तु आरंभ और परिग्रह में सभी सम्मिलित हैं। लगभग सभी संसारी प्राणी आरंभ - परिग्रह में निमज्जित मिलते हैं। संसार में रहते हुए आरंभ से निवृत्त हो पाना, अथवा स्वयं को परिग्रह से मुक्त कर पाना बहुत कठिन है। तब देखना यह है कि आरंभ - परिग्रह का कारण क्या है। जब हम जानते हैं कि आरंभ - परिग्रह बंध का हेतु होता है तब फिर क्यों हम उसमें उलझते चले जाते हैं? हमारा मन क्यों उनके प्रति आकर्षित हो जाता है?
प्रभु महावीर ने इसकी स्पष्ट विवेचना की है। उन्होंने कहा है कि जैसे-जैसे हम विषयों में आसक्त होते जाते हैं अथवा विषयों में जैसे-जैसे हमारा रुझान बनता जाता है, वैसे-वैसे आरंभ - परिग्रह से हम अपना जीवन जोड़ते चले जाते हैं। इस प्रकार विषयों में आसक्ति ही आरंभ परिग्रह का कारण है। हमें स्वादिष्ट भोजन चाहिये, तो उसके लिए हम अनेक प्रकार के साधनों का उपयोग करते हैं और परिग्रह जुटाते हैं। परिग्रह के साथ आरंभ की स्थिति जुड़ी हुई होती है । यदि पास में कुछ हो ही नहीं तो आरंभ कैसे होगा ? परिग्रह के भी दो रूप हैं - द्रव्य परिग्रह और भाव परिग्रह । धन-संपत्ति, मकान आदि को द्रव्य परिग्रह माना जाता है जबकि आसिक्ति युक्त अध्यवसाय और विचार भाव परिग्रह हैं। निर्वेद की परिभाषा करते हुए, उसकी जड़ को टटोलते हुए आरंभ - परिग्रह से ऊपर उठने के लिए कहा गया है। वहां निर्वेद का फल बताते हुए यह भी कहा गया है कि पहले देव-मनुष्य - तिर्यंच संबंधी भोगों से उपरत हों, उनसे अपने आप को अलग करने का प्रयत्न करें। जब इनसे वैराग्य आता है तब
श्री राम स्वाच
इन्द्रिय संबंधी विषयों से व्यक्ति विरक्त हो जाता है। विषय को ग्रहण नहीं करतायह बात नहीं है। विषय को ग्रहण तो करता है, पर विषयों के प्रति शुभाशुभ के जो भाव बनते थे, उन पर अंकुश लगा लेता है, रोक लगा लेता है। उसे लगता है कि विषयों में जो स्वाद हैं वही मेरी विमति के, दुर्गति के कारण हैं। ऐसा सोचकर वह उनसे निवृत्त होता है। शास्त्रों में हम पढ़ते हैं कि आनंद भगवान् महावीर की सेवा में उपस्थित हुआ और उनका उपदेश सुना। उसे लगा कि यह वाणी वस्तुतः जीवन को मांजने वाली है और उसमें परिवर्तन करने वाली है। फिर उसने अपनी क्षमताओं का अनुमान कर निवेदन किया- "भगवन्! मुझमें इतना सामर्थ्य नहीं है कि आगार धर्म को छोड़कर में अणगार वन जाऊं । यद्यपि आपकी वाणी सुन कर में इस निर्णय पर पहुँचा हूं कि वस्तुतः अणगार जीवन ही सुखकर है, वही आनंद देने वाला है तथा कषाय - संतप्त आत्मा को सुख-समाधि देने वाला है, तथापि में अपने भीतर इतना शीर्य नहीं जगा पाता हूँ कि आगार धर्म को छोड़कर अणगार जीवन स्वीकार कर लूं। यद्यपि में अणगार जीवन स्वीकार नहीं कर सकता, तथापि में आपके मुखारविंद से ५ अणुव्रत, ७ शिक्षाव्रत, इस प्रकार १२ प्रकार के व्रत स्वीकार करना चाहता हूँ ।" हम भी बारह व्रत कह देते हैं किन्तु 'वहां गिहिधम्मं' कहा गया है। गृहस्थ में रहते हुए पूर्ण निर्वेद नहीं तो आंशिक रूप से तो उसे स्वीकार किया ही जा सकता है। घर में रहते हुए भी बहुत-सी चीजें टाल सकते हैं, पर व्यक्ति लापरवाही के कारण टाल नहीं पाता है। पूरे विश्व का संबंध हमारी आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है। एक बच्चा करोड़पति के घर जन्म लेता है तो वह भी उस करोड़पति फर्म का अधिकारी बन जाता है। उसका भी उससे संबंध जुड़ जाता है, हालांकि वह उसके संबंध में तब कुछ जानता नहीं है, फिर भी संबंध जुड़ जाता है। वैसे ही, जय एम विश्व में आंखें खोलते हैं तभी पूरे विश्व में जो आरंभ परिग्रह का खेल हो रहा है, उससे हमारा संबंध जुड़ जाता है।
एक व्यक्ति कलखाने का त्याग नहीं करता है तो उसको तत्सम्बन्धी किया भी लगती है। कितना फालतू का आरंभ है, पर उससे वह दल नहीं गहनावारीक विज्ञान है, जिसे हमारा शास्त्र बता रहा है। पूर्व में हमने जितने शरीर छोडे हैं, उनके द्वारा जो आरंभ हुए है, उनका भी हमसे संबंध सुरता है। आमरण के लिए एक व्यक्तिक खरीदता है, और उसका के
लायसेन्स भी प्राप्त कर लेता है । वह बंदूक घर में पड़ी रहती है, वह उसका उपयोग नहीं करता परन्तु कोई अन्य व्यक्ति उसका उपयोग कर यदि हत्याएं कर डालता है तो प्रथम दृष्टि से अपराधी वही बनता है, जिसके नाम से लायसेन्स है। किसी ने नई मारुति कार खरीदी, लायसेन्स सेठ के नाम का है । ड्राइवर मारुति लेकर जा रहा है, अचानक कोई एक्सीडेन्ट हो जाता है तो कौन पकड़ा जायेगा? सेठ भले कहे कि मैंने तो चलाई नहीं थी किन्तु लाइसेन्स सेठ के नाम का है अतः आरोप तो उसी पर लगेगा ।
इसी प्रकार हमने पिछले जन्मों में कई शरीर, कई मकान छोड़े पर लाइसेन्स अर्थात् ममत्वभाव अपने साथ रख लिया तो उनसे किये गये कर्मों का दायित्व हमारा ही रहा । यदि संथारा कर लें, तो सारे ममत्वभाव का त्याग हो जाता है । इस प्रकार जब शरीर के प्रति परिवार के प्रति ममत्वभाव का त्याग हो जाता है तो फिर उनकी क्रिया भी आत्मा के साथ नहीं आती, परन्तु पिछले जन्मों में जिनका त्याग नहीं किया हो तो फिर चाहे वह शरीर हो, या मकान हो, उसका ममत्वरूपी लाइसेंस रख लिया हो तो क्रिया आएगी। बड़े-बड़े राजाओं ने किले बनाये, महल बनवाये, एक समय तक उनका रजवाड़ा चलता रहा, आज वे किले और महल बड़े-बड़े होटलों में परिवर्तित हो रहे हैं। वहां कितने पापकर्मों का प्रसंग जुड़ने की संभावना है? मुझे नहीं पता, पर सुनते जरूर हैं कि बड़े होटलों में अनाचार चलता है, वहां कॉल गर्ल्स आदि की व्यवस्थाएं होती हैं । कितना पापाचार पनप रहा है, कह नहीं सकते। वे किले बनाने वाले चले गये, पर उनकी मूर्च्छा नहीं हटी तो वहां जो पापाचार चल रहा है, उन सारी क्रियाओं का योग उनकी आत्माओं से जुड़ेगा। हमें ज्ञात नहीं है कि कितने जन्मों का पाप हम ढोये जा रहे हैं, किन्तु उसका त्याग किया जा सकता है। यदि हमारा वैराग्य जाग्रत् है तो ममत्वभाव के कारण जो क्रियाएं आ रही हैं उन्हें रोका जा सकता है। वर्तमान में बहुत सारे कार्य ऐसे हैं जिनसे हमारा लेना-देना नहीं, हम उनके बारे में जानते भी नहीं, पर त्याग नहीं है तो उनकी भी क्रिया लगती रहती है ।
इसलिए कहा जाता है कि जब आप सामायिक के प्रत्याख्यान कर लेते हैं, तो उतने समय के लिए आपकी आत्मा को अभय प्राप्त हो जाता है, करने कराने संबंधी सारा पाप टल जाता है, किन्तु हम इतना भी समझ नहीं पाते हैं। यदि इतना अवकाश नहीं है तो ज्ञानीजनों ने उसका भी स्वरूप प्रकट किया है |
033271c7f37736dc85b0a1500b95b095e7a23351d002d69decb71de6b994b79c | web | सर्व शिक्षा अभियान जिला आधारित एक विशिष्ट विकेन्द्रित योजना है। इसके माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण करने की योजना है। इसके लिए स्कूल प्रणाली को सामुदायिक स्वामित्व में विकसित करने रणनीति अपनाकर कार्य किया जा रहा है। यह योजना पूरे देश में लागू की गई है और इसमें सभी प्रमुख सरकारी शैक्षिक पहल को शामिल किया गया है। इस अभियान के अंतर्गत राज्यों की भागीदारी से 6-14 आयुवर्ग के सभी बच्चों को 2010 तक प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था।
सभी व्यक्ति को अपने जीवन की बेहतरी का अधिकार है। लेकिन दुनियाभर के बहुत सारे बच्चे इस अवसर के अभाव में ही जी रहे हैं क्योंकि उन्हें प्राथमिक शिक्षा जैसे अनिवार्य मूलभूत अधिकार भी मुहैया नहीं कराई जा रही है।
भारत में बच्चों को साक्षर करने की दिशा में चलाये जा रहे कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप वर्ष 2000 के अन्त तक भारत में 94 प्रतिशत ग्रामीण बच्चों को उनके आवास से 1 किमी की दूरी पर प्राथमिक विद्यालय एवं 3 किमी की दूरी पर उच्च प्राथमिक विद्यालय की सुविधाएँ उपलब्ध थीं। अनुसूचित जाति व जनजाति वर्गों के बच्चों तथा बालिकाओं का अधिक से अधिक संख्या में स्कूलों में नामांकन कराने के उद्देश्य से विशेष प्रयास किये गये। प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर अब तक प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन लेने वाले बच्चों की संख्या एवं स्कूलों की संख्या मे निरंतर वृद्धि हुई है। 1950-51 में जहाँ प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए 3.1 मिलियन बच्चों ने नामांकन लिया था वहीं 1997-98 में इसकी संख्या बढ़कर 39.5 मिलियन हो गई। उसी प्रकार 1950-51 में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 0.223 मिलियन थी जिसकी संख्या 1996-97 में बढ़कर 0.775 मिलियन हो गई। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2002-03 में 6-14 आयु वर्ग के 82 प्रतिशत बच्चों ने विभिन्न विद्यालयों में नामांकन लिया था। भारत सरकार का लक्ष्य इस संख्या को इस दशक के अंत तक 100 प्रतिशत तक पहुँचाना है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि विश्व से स्थायी रूप से गरीबी को दूर करने और शांति एवं सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करने के लिए जरूरी है कि दुनिया के सभी देशों के नागरिकों एवं उसके परिवारों को अपनी पसंद के जीवन जीने का विकल्प चुनने में सक्षम बनाया जाए। इस लक्ष्य को पाना तभी संभव है जब दुनियाभर के बच्चों को कम से कम प्राथमिक विद्यालय के माध्यम से उच्च स्तरीय स्कूली सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।
- सार्वभौमिक प्रारंभिक शिक्षा के लिए एक स्पष्ट समय-सीमा के साथ कार्यक्रम।
- पूरे देश के लिए गुणवत्तायुक्त आधारभूत शिक्षा की माँग का जवाब,
- आधारभूत शिक्षा के माध्यम से सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का अवसर,
- प्रारंभिक शिक्षा के प्रबंधन में - पंचायती राज संस्थाओं, स्कूल प्रबंधन समिति, ग्रामीण व शहरी गंदी बस्ती स्तरीय शिक्षा समिति, अभिभावक-शिक्षक संगठन, माता-शिक्षक संगठन, जनजातीय स्वायतशासी परिषद् और अन्य जमीन से जुड़े संस्थाओं को, प्रभावी रूप से शामिल करने का प्रयास,
- पूरे देश में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा के लिए राजनीतिक इच्छा-शक्ति की अभिव्यक्ति,
- राज्यों के लिए प्रारंभिक शिक्षा का अपना दृष्टि विकसित करने का सुनहरा अवसर।
सर्व शिक्षा अभियान, एक निश्चित समयावधि के भीतर प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। 86 वें संविधान संशोधन द्वारा 6-14 आयु वर्ष वाले बच्चों के लिए, प्राथमिक शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में, निःशुल्क और अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना अनिवार्य बना दिया गया है। सर्व शिक्षा अभियान पूरे देश में राज्य सरकार की सहभागिता से चलाया जा रहा है ताकि देश के 11 लाख गाँवों के 19.2 लाख बच्चों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत वैसे गाँवों में, जहाँ अभी स्कूली सुविधा नहीं है, वहाँ नये स्कूल खोलना और विद्यमान स्कूलों में अतिरिक्त क्लास रूम (अध्ययन कक्ष), शौचालय, पीने का पानी, मरम्मत निधि, स्कूल सुधार निधि प्रदान कर उसे सशक्त बनाये जाने की भी योजना है। वर्तमान में कार्यरत वैसे स्कूल जहाँ शिक्षकों की संख्या अपर्याप्त है वहाँ अतिरिक्त शिक्षकों की व्यवस्था की जाएगी जबकि वर्तमान में कार्यरत शिक्षकों को गहन प्रशिक्षण प्रदान कर, शिक्षण-प्रवीणता सामग्री के विकास के लिए निधि प्रदान कर एवं टोला, प्रखंड, जिला स्तर पर अकादमिक सहायता संरचना को मजबूत किया जाएगा। सर्व शिक्षा अभियान जीवन-कौशल के साथ गुणवत्तायुक्त प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने की इच्छा रखता है। सर्व शिक्षा अभियान का बालिका शिक्षा और जरूरतमंद बच्चों पर खास जोर है। साथ ही, सर्व शिक्षा अभियान का देश में व्याप्त डिजिटल दूरी को समाप्त करने के लिए कंप्यूटर शिक्षा प्रदान करने की भी योजना है।
- सभी बच्चों के लिए वर्ष 2005 तक प्रारंभिक विद्यालय, शिक्षा गारंटी केन्द्र, वैकल्पिक विद्यालय, "बैक टू स्कूल" शिविर की उपलब्धता।
- सभी बच्चे 2007 तक 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लें।
- सभी बच्चे 2010 तक 8 वर्षों की स्कूली शिक्षा पूरी कर लें।
- संतोषजनक कोटि की प्रारंभिक शिक्षा, जिसमें जीवनोपयोगी शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया गया हो, पर बल देना।
- स्त्री-पुरुष असमानता तथा सामाजिक वर्ग-भेद को 2007 तक प्राथमिक स्तर तथा 2010 तक प्रारंभिक स्तर पर समाप्त करना।
- वर्ष 2010 तक सभी बच्चों को विद्यालय में बनाए रखना।
केन्द्रित क्षेत्र (फोकस एरिया)
संस्थागत सुधार - सर्व शिक्षा अभियान के एक भाग के रूप में राज्यों में संस्थागत सुधार किए जाएंगे। राज्यों को अपनी मौजूदा शैक्षिक पद्धति का वस्तुपरक मूल्यांकन करना होगा जिसमें शैक्षिक प्रशासन, स्कूलों में उपलब्धि स्तर, वित्तीय मामले, विकेन्द्रीकरण तथा सामुदायिक स्वामित्व, राज्य शिक्षा अधिनियम की समीक्षा, शिक्षकों की नियुक्ति तथा शिक्षकों की तैनाती को तर्कसम्मत बनाना, मॉनीटरिंग तथा मूल्यांकन, लड़कियों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा सुविधाविहीन वर्गो के लिए शिक्षा, निजी स्कूलों तथा ई.सी.सी.ई. संबंधी मामले शामिल होगें। कई राज्यों में प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था में सुधार के लिए संस्थागत सुधार भी किए गए हैं।
सतत वित्त पोषण - सर्व शिक्षा अभियान इस तथ्य पर आधारित है कि प्रारंभिक शिक्षा कार्यक्रम का वित्त पोषण सतत् जारी रखा जाए। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सहभागिता पर दीर्धकालीन परिप्रेक्ष्य की अपेक्षा है।
सामुदायिक स्वामित्व - इस कार्यक्रम के लिए प्रभावी विकेन्द्रीकरण के जरिए स्कूल आधारित कार्यक्रमों में सामुदायिक स्वामित्व की अपेक्षा है। महिला समूह, ग्राम शिक्षा समिति के सदस्यों और पंचायतीराज संस्थाओं के सदस्यों को शामिल करके इस कार्यक्रम को बढ़ाया जाएगा।
संस्थागत क्षमता निर्माण - सर्व शिक्षा अभियान द्वारा राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान/ राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद्/राज्य शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद्/सीमेट (एस.आई.ई.एम.ए.टी.) जैसी राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय संस्थाओं के लिए क्षमता निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका की परिकल्पना की गयी है। गुणवत्ता में सुधार के लिए विशषज्ञों के स्थायी सहयोग वाली प्रणाली की आवश्यकता है।
शैक्षिक प्रशासन की प्रमुख धारा में सुधार - इसमें संस्थागत विकास, नयी पहल को शामिल करके और लागत प्रभावी और कुशल पद्धतियां अपनाकर शैक्षिक प्रशासन की मुख्य धारा में सुधार करने की अपेक्षा है।
पूर्ण पारदर्शिता युक्त सामुदायिक निरीक्षण - इस कार्यक्रम में समुदाय आधारित पद्धति अपनायी जायेगी। शैक्षिक प्रबंध सूचना पद्धति, माइक्रो योजना और सर्वेक्षण से समुदाय आधारित सूचना के साथ स्कूल स्तरीय आंकड़ों का संबंध स्थापित करेगा। इसके अतिरिक्त प्रत्येक स्कूल एक नोटिस बोर्ड रखेगा जिसमें स्कूल द्वारा प्राप्त किये गए सारे अनुदान और अन्य ब्यौरे दर्शाए जाएंगे।
योजना इकाई के रूप में बस्ती - सर्व शिक्षा अभियान आयोजना की इकाई के रूप में बस्ती के साथ योजना बनाते हुए समुदाय आधारित दृष्टिकोण पर कार्य करता है। बस्ती योजनाएं जिला की योजनाएं तैयार करने का आधार होंगी।
समुदाय के प्रति जवाबदेही - सर्व शिक्षा अभियान में शिक्षकों, अभिभावकों और पंचायतीराज संस्थाओं के बीच सहयोग तथा जवाबदेही एवं पारदर्शिता की परिकल्पना की गयी है।
लड़कियों की शिक्षा - लड़कियों विशेषकर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की लड़कियों की शिक्षा, सर्व शिक्षा अभियान का एक प्रमुख लक्ष्य होगा।
विशेष समूहों पर ध्यान - अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों, वंचित वर्गो के बच्चों और विकलांग बच्चों की शैक्षिक सहभागिता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
परियोजना पूर्व चरण - सर्व शिक्षा अभियान पूरे देश में सुनियोजित रूप से परियोजनापूर्व चरण प्रारम्भ करेगा जो वितरण और निरीक्षण (मॉनीटरिंग) पद्धति को सुधार कर क्षमता विकास के कार्यक्रम चलाएगा।
गुणवत्ता पर बल देना - सर्व शिक्षा अभियान पाठ्यचर्या में सुधार करके तथा बाल केन्द्रित कार्यकलापों और प्रभावी शिक्षण पद्धतियों को अपनाकर प्रारंभिक स्तर तक शिक्षा को उपयोगी और प्रासंगिक बनाने पर विशेष बल देता है।
शिक्षकों की भूमिका - सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है और उनकी विकास संबंधी आवश्यकताओं पर ध्यान देने का समर्थन करता है। प्रखंड संसाधन केन्द्र/सामूहिक संसाधन केन्द्र की स्थापना, योग्य शिक्षकों की नियुक्ति, पाठ्यचर्या से संबंधित सामग्री के विकास में सहयोग के जरिये शिक्षक विकास के अवसर, शिक्षा संबंधी प्रक्रियाओं पर ध्यान देना और शिक्षकों के एक्सपोजर दौरे, शिक्षकों के बीच मानव संसाधन को विकसित करने के उद्देश्य से तैयार किए जाते हैं।
जिला प्रारम्भिक शिक्षा योजनाएँ - सर्व शिक्षा अभियान के कार्य ढाँचे के अनुसार प्रत्येक जिला एक जिला प्रारम्भिक शिक्षा योजना तैयार करेगा जो संकेद्रित और समग्र दृष्टिकोण से युक्त प्रारम्भिक शिक्षा के क्षेत्र में किए गए सभी निवेशों को दर्शाएगा।
जिला प्रारंभिक शिक्षा योजना - सर्व शिक्षा अभियान ढाँचा के अनुसार प्रत्येक जिला प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में समग्र एवं केन्द्रित दृष्टिकोण के साथ, निवेश किये जाने वाले और उसके लिए जरूरी राशि को प्रदर्शित करने वाली एक जिला प्रारंभिक शिक्षा योजना तैयार करेगी। यहाँ एक प्रत्यक्ष योजना होगी जो दीर्घावधि तक सार्वभौमिक प्रारंभिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने की गतिविधियों को ढ़ाँचा प्रदान करेगा। उसमें एक वार्षिक कार्ययोजना एवं बजट भी होगा जिसमें सालभर में प्राथमिकता के आधार पर संपादित की जाने वाली गतिविधियों की सूची होंगी। प्रत्यक्ष योजना एक प्रामाणिक दस्तावेज होगा जिसमें कार्यक्रम कार्यान्वयन के मध्य में निरन्तर सुधार भी होगा।
- सर्व शिक्षा अभियान के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय भागीदारी नौवीं योजना अवधि के दौरान 85:15; दसवीं योजना में 75:25 तथा उसके बाद यह 50:50 की होगी। लागत को वहन करने की वचनबद्धता राज्य सरकारों से लिखित रूप में ली जाएगी। राज्य सरकारों को वर्ष 1999-2000 में प्रारम्भिक शिक्षा में किए जा रहे निवेश को बरकरार रखना होगा तथा सर्व शिक्षा अभियान में राज्यांश इस निवेश के अतिरिक्त होगा।
- भारत सरकार, राज्य कार्यान्वयन सोसाइटी को ही सीधे निधियां जारी करेगी तथा राज्य सरकार के हिस्से की कम से कम 50% राशि राज्य कार्यान्वयन सोसाइटियों को अंतरित करने तथा इस राशि के व्यय के बाद ही केन्द्र सरकार अगली किश्त जारी करेगी।
- सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत नियुक्त किए गए शिक्षकों के वेतन में केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की भागीदारी नौवीं योजना अवधि के दौरान 85:15 के अनुपात में, दसवीं योजना अवधि के दौरान 75:25 के अनुपात में तथा इसके बाद 50:50 के अनुपात में होगी।
- बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाओं के संबंध में किए गए सभी विधिक समझौते लागू रहेंगे, जबतक कि विदेशी निधियां प्रदान करने वाली एजेंसी से विचार-विमर्श करके इसमें कोई विशिष्ट संशोधन करने पर सहमति नहीं हो जाती।
- विभाग की मौजूदा योजनाएं राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् के अलावा नौवीं योजना में मिला दी जाएंगी। प्राथमिक शिक्षा की राष्ट्रीय पोषाहार सहायता कार्यक्रम योजना (मध्याह्न भोजन योजना) एक विशिष्ट योजना के रूप में कायम रहेगी जिसमें खाद्यान्न एवं यातायात की लागत केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाएगी तथा भोजन पकाने की लागत राज्य सरकारों द्वारा वहन की जाएगी।
- जिला शिक्षा योजना अन्य बातों के साथ-साथ यह स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जवाहर रोजगार योजना, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, सुनिश्चित रोजगार योजना, सांसद/विधायक के लिए क्षेत्रीय निधियां, राज्य योजना जैसी योजनाएं तथा विदेशी निधियां तथा गैर सरकारी क्षेत्र में जुटाए गए संसाधन के अन्तर्गत विभिन्न घटकों से निधि / संसाधन उपलब्ध किए जाते हैं।
- स्कूलों के स्तर में वृद्धि, रखरखाव, मरम्मत तथा अध्ययन-अध्यापन उपस्करों तथा स्थानीय प्रबंधन के लिए प्रयोग की जाने वाली सभी निधियां ग्रामीण शिक्षा समिति /स्कूल प्रबंधन समिति को हस्तांतरित कर दी जाएंगी।
- अन्य प्रोत्साहन योजनाओं, जैसे छात्रवृतियां तथा वर्दियां (स्कूल ड्रेस) प्रदान करने के लिए राज्य योजना के अन्तर्गत निधियां जारी की जाती रहेंगी। इन्हें सर्व शिक्षा अभियान से निधियां नहीं दी जाएंगी।
- प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रत्यक 40 बच्चों पर एक शिक्षक।
- प्राथमिक विद्यालय में कम से कम दो शिक्षक।
- उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रत्येक वर्ग के लिए एक शिक्षक।
- प्रत्येक निवास स्थान / घर से एक किलोमीटर के भीतर ।
- राज्य मानक के अनुसार और नये स्कूल खोलने या उन गाँवों या अधिवास क्षेत्रों में ईजीएस के समान स्कूल की स्थापना का प्रावधान।
- आवश्यकता के अनुरूप, प्राथमिक शिक्षा पूरी कर रहे बच्चों की संख्या के आधार पर, प्रत्येक दो प्राथमिक विद्यालय पर एक उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना।
4. अध्ययन कक्ष (क्लास रूम)
- प्रत्येक शिक्षक या प्रत्येक वर्ग या श्रेणी के लिए एक कक्ष, जो भी प्राथमिक या उच्च प्राथमिक स्कूल में नीचे हों, वहाँ इस प्रावधान के साथ कि प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में बरामदा सहित दो कक्ष के साथ दो शिक्षक का प्रावधान हों।
- उच्च प्राथमिक विद्यालय या वर्ग में हेड मास्टर के लिए एक अलग कक्ष का प्रावधान।
- प्रति बच्चे की अधिकतम सीमा के अंतर्गत प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले सभी लड़कियों /अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के सभी बच्चों को निःशुल्क पुस्तकें।
- निःशुल्क पाठ्यपुस्तक के लिए राज्यों द्वारा दी जा रही निधि वर्तमान में राज्य योजना के द्वारा प्रदान की जाती है।
- यदि कोई राज्य प्रारंभिक वर्गों में बच्चों की दी जाने वाली पाठ्यपुस्तक के मूल्य पर आंशिक रूप से वित्तीय सहायता दे रही है तो ऐसी स्थिति में सर्व शिक्षा अभियान के तहत बच्चों द्वारा वहन की जा रही राशि का भाग, राज्यों को आर्थिक सहायता के रूप में देय नहीं होगा।
- पीएबी द्वारा प्रत्यक्ष परियोजना के आधार पर, पूरी परियोजना अवधि वर्ष 2010 तक के लिए स्वीकृत निधि के अनुसार, सिविल कार्य के लिए कार्यक्रम निधि पूरी परियोजना लागत के 33 प्रतिशत की सीमा से अधिक नहीं होगा।
- 33 प्रतिशत की इस सीमा में, भवन के मरम्मत व देखभाल पर होने वाला खर्च शामिल नहीं होगा।
- हालांकि, किसी खास वर्ष में वार्षिक योजना के 40 प्रतिशत तक सिविल कार्य के लिए स्वीकार किया जा सकता, बशर्ते कि उस वर्ष कार्यक्रम के विभिन्न घटक को पूरा करने के लिए खर्च निर्धारित किया गया हो। लेकिन यह खर्च पूरी परियोजना के 33 प्रतिशत के सीमा के अंतर्गत होगी।
- स्कूली सुविधा में सुधार, प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र के निर्माण के लिए।
- टोला संसाधन केन्द्र का उपयोग अतिरिक्त कक्ष के रूप में किया जा सकता है।
- कार्यालय भवन के निर्माण पर होने वाले किसी खर्च का वहन नहीं किया जायेगा।
- जिला, आधारभूत संरचना का योजना तैयार करेगी।
- केवल स्कूल प्रबंधन समिति/ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से।
- स्कूल समिति के विशिष्ट प्रस्ताव के अनुसार प्रति वर्ष 5 हजार रुपये तक।
- सामुदायिक सहायता के तत्व अवश्य शामिल हों।
- भवन की देखभाल और मरम्मत पर की गई खर्च को, सिविल कार्य के लिए निर्धारित 33 प्रतिशत की सीमा रेखा के भीतर गणना करते समय, शामिल नहीं की जाएगी।
- निधि केवल उन स्कूलों के लिए उपलब्ध होगी जिनका तत्समय अपना भवन उपलब्ध हों।
- प्रति स्कूल 10 हजार रुपये की दर से टीएलई का प्रावधान।
- स्थानीय संदर्भ एवं जरूरत के अनुसार टीएलई।
- टीएलई का चयन एवं अर्जन में शिक्षक एवं अभिभावक की संलग्नता जरूरी।
- अर्जन के सर्वश्रेष्ठ तरीका का निर्णय ग्राम शिक्षा समिति/स्कूल-ग्राम स्तरीय वैध निकाय निर्णय लेगी।
- ईजीएस केन्द्र के उन्नयन से पहले उसका दो वर्ष तक सफलतापूर्वक कार्य संचालन जरूरी।
- शिक्षक और कक्ष के लिए प्रावधान।
- अनाच्छादित स्कूल के लिए, 50 हजार रुपये प्रति स्कूल की दर से।
- स्थान विशेष के जरूरत के अनुरूप, जिसका निर्धारण शिक्षक/स्कूल समिति करेगी।
- विद्यालय समिति, शिक्षकों के परामर्श से अर्जन के सर्वश्रेष्ठ तरीकों का निर्णय करेगी।
- यदि वित्तीय लाभ हो तो स्कूल समिति, जिला स्तरीय अर्जन की सिफारिश कर सकती है।
- अकार्यशील स्कूल उपकरण को बदलने के लिए, प्रति वर्ष 2 हजार रुपये की दर से प्रत्येक प्राथमिक /उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए।
- उपयोग में पारदर्शिता।
- केवल ग्राम शिक्षा समिति / एस.एम.सी. के द्वारा खर्च।
- प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रतिवर्ष, प्रति शिक्षक 500 रुपये।
- उपयोग में पारदर्शिता।
- प्रत्येक वर्ष सभी शिक्षक के लिए 20 दिन का सेवाकाल पाठ्यक्रम का प्रावधान, पहले से ही नियुक्त अप्रशिक्षित शिक्षक के लिए 60 दिन का रिफ्रेशर पाठ्यक्रम और नये प्रशिक्षित नियुक्त शिक्षक के लिए 30 दिन का 70 रुपये की दर से अभिसंस्करण (ओरिएंटेशन) कार्यक्रम।
- इकाई लागत सूचक है, जो गैर आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में कम होगा।
- सभी प्रशिक्षण लागत शामिल होगा।
- मूल्य निरूपण के दौरान प्रभावी प्रशिक्षण के लिए क्षमता का मूल्यांकन, विस्तार के सीमा का निर्धारण करेगी।
- वर्तमान शिक्षक शिक्षा योजना के तहत एस.सी.ई.आर.टी/डी.आई.ई.टी के लिए सहायता।
- प्रबंधन एवं प्रशिक्षण (एस.आई.ई.एम.ए.टी)।
- 3 करोड़ रुपये तक एक बार सहायता।
- राज्यों का, संस्थान को बनाये रखने/उसे सुस्थिर रखने पर, सहमत होना जरूरी।
- विषय शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया/शर्तें कठोर होंगी।
- साल में 2 दिन गाँव के अधिकतम 8 लोगों (महिलाओं को प्राथमिकता) को।
- प्रति व्यक्ति 30 रुपये प्रति दिन की दर से।
- विशेष प्रस्ताव के अनुसार, विकलांग बच्चों को शामिल करने के लिए प्रति वर्ष 1200 रुपये तक प्रति बच्चे।
- 1200 रुपये प्रति बच्चे के प्रतिमानक के तहत, विशेष रूप से जरूरतमंद बच्चों के लिए जिला योजना।
- संसाधन संस्थान की संलग्नता को बढ़ावा दिया जायेगा।
- प्रति वर्ष, प्रत्येक स्कूल को 1500 रुपये तक।
- शोध एवं संसाधन संस्थान के साथ सहभागिता, राज्य विशेष पर जोर के साथ संसाधन टीम का संघ निर्माण।
- संसाधन/शोध संस्थान के माध्यम से मूल्य निर्धारण और निरीक्षण के लिए और प्रभावी ई.एम.आई.एस. के लिए क्षमता विकास को प्राथमिकता।
- परिवार संबंधी आँकड़ों को अद्यतन करने के लिए नियमित स्कूल चित्रण/ लघु आयोजना का प्रावधान।
- संसाधन व्यक्ति का संघ का निर्माण कर, संसाधन व्यक्ति द्वारा किये गये निरीक्षण (मॉनिटरींग), समुदाय आधारित आँकड़े का निर्माण, शोध अध्ययन, मूल्याँकन लागत और मूल्य निर्धारण की शर्ते, उनके क्षेत्र गतिविधियाँ और कक्षा निरीक्षण के लिए यात्रा भत्ता और मानदेय का प्रावधान।
- संपूर्ण रूप से प्रति स्कूल के लिए आवंटित बजट के आधार पर, राष्ट्रीय, राज्य, जिला, उप जिला एवं स्कूल स्तरीय खर्च किया जायेगा।
- राष्ट्रीय स्तर पर प्रति स्कूल प्रत्येक वर्ष 100 रुपये खर्च किया जायेगा।
- राज्य/जिला/प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र/विद्यालय स्तरीय खर्च का निर्धारण राज्य/केन्द्र शासित क्षेत्र द्वारा किया जायेगा। इसमें मूल्य के निर्धारण, निरीक्षण, एम.आई.एस. , कक्षा निरीक्षण आदि का खर्च भी शामिल होगा। शिक्षक शिक्षा योजना के तहत, एस.सी.ई.आर.टी को प्रस्ताव के बराबर और अधिक सहायता भी प्रदान किया जा सकता है।
- राज्य विशेष में जिम्मेदारी लेने को तैयार संसाधन संस्थान को शामिल करना।
- जिला योजना के बजट के 6 प्रतिशत से अधिक नहीं।
- इसमें कार्यालय खर्च, कार्यरत मानवशक्ति, पी.ओ.एल. आदि के मूल्यांकन के बाद विभिन्न स्तर पर विशेषज्ञों की भर्ती आदि का खर्च शामिल।
- एम.आई.एस., सामुदायिक योजना प्रक्रिया, सिविल कार्य, लिंग आदि के विशेषज्ञों को प्राथमिकता।
- प्रबंधन लागत का उपयोग राज्य/जिला/प्रखंड/टोला स्तर पर प्रभावी टीम के विकास पर किया जाना चाहिए।
- पूर्व परियोजना चरण में ही प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र के लिए कार्मिकों के पहचान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि वृहद् प्रक्रिया आधारित आयोजना के लिए टीम उपलब्ध हो।
अनुसूचित जाति /जनजाति समुदाय के बच्चों के लिए मध्यस्थता, विशेष रूप से उच्च प्राथमिक स्तर पर सामुदायिक कंप्यूटर शिक्षा के लिए नवीन गतिविधि/कार्य।
- प्रत्येक नवीन परियोजना के लिए 15 लाख रुपये तक और जिला के लिए प्रत्येक वर्ष 50 लाख रुपये का प्रावधान सर्व शिक्षक्षा अभियान पर लागू होगा।
- ई.सी.सी.ई. और बालिका शिक्षा मध्यस्थता के लिए ईकाई लागत पहले से ही चल रही योजना के अंतर्गत स्वीकृत है।
- सामान्यतया प्रत्येक सामुदायिक विकास प्रखंड में एक प्रखंड संसाधन केन्द्र होगा। फिर भी, ऐसे राज्य जहाँ शैक्षिक प्रखंड या अंचल के समान उप जिला शैक्षिक प्रशासनिक संरचना के क्षेत्राधिकार की सीमा, सामुदायिक विकास प्रखंड से मेल नहीं खाती हो, तो राज्य उस उप जिला शैक्षिक प्रशासन इकाई में प्रखंड संसाधन केन्द्र का प्रावधान कर सकता है। हालाँकि, वैसी स्थिति में, सामुदायिक विकास प्रखंड में प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र पर होने वाले पूरे खर्च, आवर्तक एवं अनावर्तक दोनों, उस सामुदायिक विकास प्रखंड में एक प्रखंड संसाधन केन्द्र खोले जाने के लिए स्वीकृत बजट से अधिक नहीं होगा।
- जहाँ तक संभव हो प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र स्कूल प्रांगण में स्थित होंगे।
- जहाँ जरूरी हो प्रखंड संसाधन केन्द्र भवन निर्माण के लिए 6 लाख की सहायता।
- जहाँ जरूरी हो टोला संसाधन केन्द्र भवन निर्माण के लिए 2 लाख रुपये। इस भवन का उपयोग विद्यालय में अतिरिक्त कक्ष के रूप में किया जाना चाहिए।
- किसी भी वर्ष में, किसी भी जिले में, कार्यक्रम के अंतर्गत पूरे प्रस्तावित खर्च का 5 प्रतिशत से अधिक, गैर विद्यालय (प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र) निर्माण पर खर्च नहीं होना चाहिए।
- प्रखंड के 100 से अधिक स्कूलों में 20 शिक्षकों की तैनाती, छोटे प्रखंड के प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र में 10 शिक्षक एक साथ रखे जायेंगे।
- प्रत्येक प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए कुर्सी आदि के लिए 1 लाख रुपये तथा टोला संसाधन केन्द्र के लिए 10 हजार रुपये का प्रावधान।
- प्रतिवर्ष प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए 12,500 रुपये तथा टोला संसाधन केन्द्र के लिए 2500 रुपये की आकस्मिक निधि।
- बैठक व यात्रा भत्ता हेतु प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए 500 रुपये व टोला संसाधन केन्द्र के लिए 200 रुपये प्रतिमाह।
- प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए 5 हजार रुपये व टोला संसाधन केन्द्र के लिए 1 हजार रुपये प्रति वर्ष टी.एल.एम. निधि।
- प्रारंभिक चरण में ही गहन चयन प्रक्रिया के बाद प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र कार्मिक की पहचान।
- दूर-दराज में स्थित निवासों या क्षेत्रों में शिक्षा गारंटी केन्द्र की स्थापना।
- अन्य वैकल्पिक स्कूली ढाँचा की स्थापना।
- स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चे को नियमित विद्यालय की ओर लाने का मुख्य लक्ष्य बनाकर ब्रिज पाठ्यक्रम, उपचारी पाठ्यक्रम, बैक टू स्कूल कैम्प का आयोजन।
21. लघु आयोजन, घर सर्वेक्षण, अध्ययन, सामुदायिक गतिशीलता, स्कूल आधारित गतिविधियाँ, कार्यालय उपकरण, प्रशिक्षण एवं ओरिएंटेशन कार्य के लिए सभी स्तर पर प्रारंभिक गतिविधियाँ।
जिला के विशेष प्रस्ताव के अनुसार, उसके लिए राज्य सिफारिश भेजेगी। शहरी क्षेत्र में, जिला के भीतर या महानगरीय क्षेत्र को जरूरत के मुताबिक आयोजना के लिए एक अलग ईकाई के रूप में माना जायेगा।
सर्व शिक्षा अभियान सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। सर्व शिक्षा अभियान के घोषित लक्ष्य के अनुसार एक निश्चित समय सीमा के अन्दर सभी बच्चों का शत-प्रतिशत नामांकन, ठहराव तथा गुणवत्तता युक्त प्रांरभिक शिक्षा सुनिश्चित करना है। साथ ही सामाजिक विषमता तथा लिंग भेद को भी दूर करना है।
उक्त सभी मुद्दे समुदाय से जुड़ें है। यानी समुदाय को उस बारे बताये बिना तथा उन्हें कार्यक्रम से जोड़े बिना लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। इसलिए सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत सामुदायिक सहभागिता की अनिवार्यता को जोरदार ढंग से रखा गया है। इसमें ऐसी व्यवस्था की गई है जिसमें प्राथमिक तथा मध्य विद्यालयों का स्वामित्व समुदाय के पास हो तथा इन विद्यालयों को कुछ हद तक पंचायतों के प्रति जिम्मेदार बनाया जाये। सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए भी इसमें कई व्यवस्था की गई है। प्रत्येक विद्यालय में ग्राम शिक्षा समिति का गठन एक ऐसी ही व्यवस्था है। सर्व शिक्षा अभियान में कार्यक्रम कार्यान्वयन के प्रबंधकीय ढाँचा के अन्तर्गत ग्राम शिक्षा समिति को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और इस विकेन्द्रीकृत प्रबंधकीय व्यवस्था के अन्तर्गत ग्राम समिति को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है।
ग्राम शिक्षा समिति ग्राम स्तर पर गठित एक छोटा संगठनात्मक ईकाई है जो खासकर प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के प्रति समर्पित है। यह समिति 15 या 21 सदस्यों का एक संगठन है जिसका गठन प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय एवं प्राथमिक कक्षा युक्त मध्य विद्यालय के लिए किया जाता है। सम्बन्धित विद्यालय के प्रधानाध्यापक ही इस समिति के पदेन सचिव होते हैं।
(कुल सदस्यों का कम से कम आधा अनु.ज.जा )
(कुल सदस्यों का कम आधा से कम एक तिहाई महिला)
(कुल सदस्यों का कम आधा से कम एक तिहाई अन्य)
महिला-5 (अनुसूचित जनजाति वर्ग की 3 महिला सदस्य मिलाकर)
महिला-7 (अनुसूचित जनजाति वर्ग की 5 महिला सदस्य मिलाकर)
ग्राम शिक्षा समिति का उद्देश्यः
- गाँव में प्राथमिक शिक्षा के विकास से अभिरुचि रखने वाले समर्पित एवं समय देने वाले व्यक्तियों को इसमें शामिल होने का अवसर देना।
- सम्बन्धित विद्यालय के संस्थागत चरित्र को उभारकर शत-प्रतिशत नामांकन, ठहराव एवं उपलब्धि स्तर को अनवरत बनाए रखना।
- समुदाय के अभिवंचित वर्गो, यथा- महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मजदूर, किसान, पिछड़ों को समुचित प्रतिनिधित्व देकर समाज के मुख्य धारा से जोड़ना ताकि साझा हितों की रक्षा के लिये उन्हें भी निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त हो।
ग्राम शिक्षा समिति का कार्यकालः
- अगर ग्राम शिक्षा समिति के कार्यों से / निष्क्रियता से अभिभावक असन्तुष्ट हो तो विद्यालय में नांमाकित कम से कम 50 प्रतिशत बच्चों के अभिभावक की शिकायत पर आम सभा / ग्राम सभा द्वारा समिति को बीच में ही भंग कर नई समिति का गठन किया जा सकता है। एक सफल आम सभा में 80 प्रतिशत अभिभावकों की उपस्थिति होनी चाहिये।
- तीसरे वर्ष के अंतिम तीन महीने में आम सभा द्वारा नई समिति का गठन नियमानुसार अनिवार्य रुप से करा लिया जाये।
- 6 से 11 वर्ष के सभी बच्चे - बच्चियों का नामांकन विद्यालय में करना।
- उपलब्धि स्तर में वृद्धि हेतु प्रयास करना।
- बच्चे नियमित रूप से स्कूल आ रहें हैं या नहीं, इसका देखभाल नियमित रूप से करना। इसके लिए प्रति दिन ग्राम शिक्षा समिति के दो अलग अलग सदस्यों को जिम्मेवारी सौंपना अच्छा है। उसके ऊपर भी अध्यक्ष एवं सचिव निगरानी रखें और अनुपस्थिति के कारणों का पता लगाकर उसका निदान खोजें।
- माता शिक्षक समिति / अभिवाक शिक्षक समिति का गठन किया जाए ताकि ग्राम शिक्षा समिति के कार्यो में मदद मिल सके।
- विद्यालय प्रबंधन में भागीदारी निभाना।
- मुफ्त पाठ्य-पुस्तक के वितरण की अच्छी तरह देखभाल करना।
- ग्राम शिक्षा योजना का निर्माण एवं इसका क्रियान्वयन करना आदि।
- कार्यवाही पुस्तिका लिखना एवं प्रत्येक बैठक की कार्यवाही का अगले बैठक में सम्पुष्टि करवाना।
- ग्राम शिक्षा योजना का क्रियान्वयन का अनुश्रवन (देख - रेख) एवं अनुगमन करना।
- बच्चों का शत-प्रतिशत नामांकन एवं उपस्थिति सुनिश्चित करना एवं ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से क्रियान्वित करना।
- ग्राम शिक्षा समिति के नाम से बैंक- खाता खुलवाना एवं अध्यक्ष एवं सचिव सह प्रभारी अध्यापक के संयुक्त हस्ताक्षर से खाता संचालन हो, इसे सुनिश्चित करना।
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58b601453b2679dd4681aba7b8c89d868a60dd89 | pdf | मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सभी लोगों से लॉकडाउन को गंभीरता से लेने की अपील कीकहा कि सुरक्षा और बचाव के लिए नियमों का पालन नहीं करेंगे तो लॉकडाउन से बचा नहीं जा सकता
ईद और रक्षाबंधन को देखते हुए रायपुर सहित प्रदेश के कई शहरों में लॉकडाउन के दौरान भी अगले दो दिन किराना और राशन दुकानों को सीमित समय के लिए खोलने की अनुमति दी गई
प्रदेश में लॉकडाउन के कारण जो राशन कार्डधारी जुलाई में खाद्यान्न नहीं ले पाए हैं वे अगस्त में जुलाई का भी खाद्यान्न ले सकेंगे
धमतरी जिले के नगरी इलाके में आज शाम दो मोटर साइकिलों की भिंड़त में पितापुत्र सहित तीन लोगों की मौत हो गई
मुख्यमंत्रीसंदेश मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए शहरों में लॉकडाउन का निर्णय लेना पड़ा है
उन्होंने सभी लोगों से लॉकडाउन को गंभीरता से लेने की अपील की है
उन्होंने कहा है कि लॉकडाउन से लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है लेकिन सुरक्षा और बचाव के लिए नियमों का पालन नहीं करेंगे तो लॉकडाउन से बचा नहीं जा सकता
श्री बघेल ने कहा कि राज्य में फिलहाल प्रतिदिन पांच हजार से अधिक सैंपलों की जांच हो रही है
इसे बढ़ाकर जल्द ही दस हजार तक करने का लक्ष्य है
मुख्यमंत्री आज प्रदेश की जनता को संबोधित कर रहे थे
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण अन्य राज्यों के मुकाबले नियंत्रण में जरूर है लेकिन पिछले कुछ दिनों से संक्रमित मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है
यह सब अनलॉक के दौरान सावधानी और बचाव के उपाय नहीं अपनाने के कारण हुआ है
श्री बघेल ने कहा कि प्रदेश में कोरोना पीड़ितों की रिकवरी दर बेहतर होने के साथ ही मृत्युदर भी काफी कम है
उन्होंने कहा कि आम जनता के सहयोग से कोरोना संक्रमण से बचाव की दिशा में और बेहतर काम किया जाएगा
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के चिकित्सक पूरे समर्पण के साथ कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे हैं
राज्य के आठ क्षेत्रीय और बाईस जिला अस्पतालों में कोरोना मरीजों के इलाज की व्यवस्था की गई है
सभी अस्पतालों में मास्क पीपीई किट ट्रिपल लेयर मास्क वीटीएम और जरूरी दवाइयों के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं
मुख्यमंत्री ने ईद और रक्षाबंधन की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि त्यौहार मनाते समय लॉकडाउन के नियमों का ध्यान रखें
घरपरिवार के लोगों के साथ ही यह पर्व मनाएं
लॉकडाउन लॉकडाउन के दौरान रायपुर में ईद और रक्षाबंधन के त्यौहार को देखते हुए राशन और किराना दुकानें अब कल और परसों यानि इकतीस जुलाई और एक अगस्त को भी खोली जाएंगी
इन दुकानों को सिर्फ सुबह छह बजे से दस बजे तक ही खोलने की अनुमति रहेगी
उधर कोंडागांव जिले में कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए लॉकडाउन छह अगस्त तक बढ़ा दिया गया है
इस दौरान अंतर जिला और अंतर्राज्यीय आवागमन के लिए ईपास लेना अनिवार्य होगा
वहीं तीन जुलाई तक किराना मिठाई और सब्जी की दुकानों को सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक खोलने की छूट दी गई है
चार अगस्त से जिले में पूर्ण लॉकडाउन रहेगा
शासकीय कर्मचारियों को घर में रहकर ही काम करने को कहा गया है
पेयजल बिजली मेडिकल और दूरसंचार की सेवाएं जारी रहेगी
बैंक भी सोशल डिस्टेंसिग का पालन करते हुए संचालित किए जाएंगे
इसी तरह संभागीय मुख्यालय जगदलपुर में भी कल से छह अगस्त तक संपूर्ण लॉकडाउन रहेगा
कलेक्टर रजत बंसल ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान नगर पालिक निगम जगदलपुर और नगर पंचायत बस्तर क्षेत्र की सभी दुकानें व्यावसायिक प्रतिष्ठान और साप्ताहिक बाजार हाट बंद रहेंगे इस बीच जांजगीरचांपा जिले के शहरी क्षेत्रों में चौबीस जुलाई से जारी लॉकडाउन को आगामी छह अगस्त तक बढ़ा दिया गया है
उधर राजनांदगांव नगरीय निकाय क्षेत्र को बढ़ते कोरोना संक्रमण के कारण आगामी छह अगस्त तक कंटेमेन्ट जोन घोषित कर दिया गया है
इस दौरान सभी व्यावसायिक संस्थान सुबह छह बजे से दोपहर बारह बजे तक संचालित किए जा सकेंगे
वहीं मुंगेली में कलेक्टर ने छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स के आग्रह पर लॉकडाउन में छूट देते हुए मिठाई किराना राखी और कपड़े की दुकानों को कल से तीन अगस्त तक सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक खोलने की अनुमति दी है
इसी तरह बालोद में भी दो दिनों के लिए राखी सहित सभी दुकानों को खोलने की अनुमति दी गई है
ये दुकानें सुबह सात से शाम सात बजे तक खोली जा सकेगी
ईद रक्षाबंधनअपील इस बीच राज्य सरकार ने लोगों से ईद और रक्षाबंधन का पर्व घरों में रहकर लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए मनाने की अपील की है
रायपुर कलेक्टर एस भारतीदासन और पुलिस अधीक्षक अजय यादव ने इस संबंध में संयुक्त अपील जारी की है
उन्होंने कहा है कि जिस तरह से जिले में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है उसे नियंत्रित करने के लिए सभी ऐहतियाती उपाय अमल में लाया जाना जरूरी है
ऐसे में ईद और रक्षाबंधन का पर्व सादगी से मनाया जाए
उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा जारी अपने पत्र में लॉकडाउन के चलते नियमों का पालन करते हुए ईद का त्यौहार सादगी से मनाए जाने की अपील की गई है
वक्फ बोर्ड के पत्र के अनुसार इस बार ईद पर ईदगाहों में नमाज नहीं पढ़ी जाएगी
वहीं फजर के तुरंत बाद ईदउलअजहा अदा कर ली जाएगी
मस्जिदों में मुतवल्ली समेत अधिकतम पांच लोगों को ही नमाज अदा करने की इजाजत होगी
बेवजह घूमने वालों पर कार्रवाई की जाएगी
उन्होंने कहा कि ईद मिलन के कार्यक्रम नहीं होंगे
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए जारी लॉकडाउन के नियमों का पूरा पालन करना होगा
वक्फ बोर्ड द्वारा जारी अपील प्रदेश की सभी मस्जिदों ईदगाह और मदरसों के लिए है
मुख्य सचिव कोरोना समीक्षा मुख्य सचिव आरपी मंडल ने आज वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए सभी संभागीय आयुक्तों कलेक्टरों और जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों से चर्चा कर प्रदेश में कोरोना संक्रमण की स्थिति जांच और इलाज की व्यवस्था की समीक्षा की
इस दौरान उन्होंने कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए सभी जिलों के कोविडकेयर सेंटर्स में बिस्तरों की संख्या बढ़ाने के निर्देश दिए
साथ ही राजनांदगांव बिलासपुर और अंबिकापुर मेडिकल कॉलेजों में आरटीपीसीआर जांच की सुविधा जल्द ही शुरू करने के निर्देश दिए
मुख्य सचिव ने लॉकडाउन का कड़ाई से पालन सुनिश्चित कराने के भी निर्देश दिए
वहीं मुख्य सचिव ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के दौरान गोधन न्याय योजना की भी समीक्षा की
उन्होंने एक कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि गोबर बेचने वाले और अन्य हितग्राहियों को पन्द्रह दिन के भीतर अनिवार्य रूप से भुगतान सुनिश्चित किया जाए और पांच अगस्त को पहला भुगतान कर दिया जाए
गौरतलब है कि गोबर बेचने वालो को बैंक खाता खोलने के निर्देश दिए गए हैं
साथ ही सभी गौठान समितियों को भी सहकारी बैंक में अनिवार्य रूप से खाता खोलने के लिए कहा गया है
कोरोनामरीज प्रदेश में आज भी विभिन्न जिलों से कोरोना संक्रमित नये मरीजों के मिलने की पुष्टि हुई है
कबीरधाम जिले में आज पांच नये कोरोना संक्रमित मरीज मिले हैं
इन्हें मिलाकर जिले में अब सक्रिय मरीजों की संख्या बढ़कर इक्यावन हो गई है
वहीं बलौदाबाजारभाटापारा जिले में आज तीन नये कोरोना संक्रमित मरीजों की पहचान की गई है जिनमें से दो मरीज अर्जुनी और एक मरीज पलारी से है
इधर महासमुंद जिले में आज दो कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले हैं
ये मरीज बसना और सरायपाली के रहने वाले हैं
एक उधर राजनांदगांव जिले में कल चौव्वन नये कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले हैं
इनमें छियालीस आईटीबीपी के जवान शामिल हैं
सभी मरीजों को कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया है
वहीं कोंडागांव जिले में कल रात दो नये कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पहचान हुई है
दोनों ही मरीज सीआरपीएफ के जवान है
इसी तरह बस्तर जिले में बीती रात पांच नये कोरोना संक्रमित मरीज मिले हैं
इनमें से तीन मरीज मेडिकल कॉलेज जगदलपुर के स्वास्थ्य कर्मचारी है
जबकि दो अन्य मरीज कलेक्टोरेट कार्यालय में पदस्थ है
कलेक्टर कार्यालय के कर्मचारियों के कोरोना पॉजिटिव आने पर संपूर्ण परिसर को कंटेमेन्ट जोन घोषित कर सील कर दिया गया है
उधर दुर्ग जिले में बीती रात उनतीस नये कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पुष्टि हुई है
इनमें छह बीएसएफ के और तीन बटालियन के जवान शामिल हैं
वहीं बीते चौबीस घंटों के दौरान अंबिकापुर में चार नये कोरोना मरीजों की पुष्टि हुई है
इसके अलावा कोरिया जिले की मनेन्द्रगढ़ उपजेल में तैनात प्रहरी कोरोना पॉजिटिव मिला है
इसके बाद जेल के एक सौ नब्बे कैदियों की कोरोना जांच के लिए सैंपल लिया जा रहा है
केन्द्रीय मंत्रीदौरा केन्द्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी दो दिवसीय प्रवास पर आज शाम रायपुर पहुंच रहे हैं
श्री जोशी कल सुबह रेलवे के उच्च अधिकारियों की बैठक लेंगे
इसके बाद वे साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेडएसईसीएल के सीएमडी और निदेशकों के साथ बैठक कर कोयला उत्पादन बढ़ाने लिए किए जा रहे उपायों की समीक्षा करेंगे
केन्द्रीय मंत्री कल दोपहर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भी मुलाकात करेंगे
रायपुर प्रवास के दौरान श्री जोशी का स्पंज आयरन और स्टील उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ भेंट मुलाकात का भी कार्यक्रम है
राशन कार्डखाद्यान्न वितरण प्रदेश में कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन होने से जो राशन कार्डधारी जुलाई में खाद्यान्न नहीं ले पाए हैं वे अगस्त में जुलाई का भी खाद्यान्न ले सकेंगे
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत शासकीय उचित मूल्य की दुकानों से शक्कर चना नमक आदि का वितरण अगस्त माह की राशन सामाग्रियों के साथ किया जाएगा
रेल इंजनट्रायल कांकेर जिला के अंतागढ़ में आज केवंटी से अंतागढ़ तक रेल लाइन का कार्य पूरा होने के बाद पहली बार रेल इंजन का ट्रायल किया गया
गौरतलब है कि दल्लीराजहरारावघाटजगदलपुर परियोजना के तहत कुल दो सौ पैंतीस किलोमीटर तक रेल लाइन बिछाने का कार्य रेलवे सेल और एनएमडीसी के संयुक्त प्रयास से हो रहा है
वर्तमान में दल्लीराजहरा से केवंटी तक लगभग बयालीस किलोमीटर की दूरी में यात्रियों को रेल सुविधा दी जा रही है
अब इसी रेललाइन का विस्तार सत्रह किलोमीटर और अंतागढ़ तक कर दिया गया है
सोंढूर बांधगेट धमतरी जिले में नगरी ब्लॉक के सोंढूर बांध में पानी की आवक को देखते हुए बांध के पांचों गेट खोल दिए गए हैं
क्षेत्र में अच्छी बारिश होने की वजह से बांध भर गया है जिसके कारण कल सुबह बांध के सभी गेट खोल दिए गए
इससे पहले बांध के किनारे बसे सभी गांवों को अलर्ट कर दिया गया था
सड़क दुर्घटना धमतरी जिले में आज शाम दो मोटर साइकिलों की भिंड़त में तीन लोगों की मौत हो गई
वहीं चार लोग गंभीर रूप से घायल हो गए हैं
यह दुर्घटना नगरी क्षेत्र के आमगांव वन और बहीगांव के बीच हुई है
दुर्घटना में मरने वालों में एक पितापुत्र भी शामिल हैं
पुलिस के अनुसार इनमें से एक मोटर सायकल में चार लोग तो वहीं दूसरी मोटर साइकिल में तीन लोग सवार थे
मंडावी हत्याकांडगिरफ्तारी केन्द्रीय जांच एजेंसीएनआईए की टीम ने पूर्व विधायक भीमा मंडावी की हत्या मामले में तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है
इन आरोपियों में लक्ष्मण साव रमेश कुमार कश्यप और कुमारी लिंगे शामिल हैं
इन पर माओवादियों को सहयोग करने का आरोप है
इससे पहले अप्रैल दो हजार बीस में एनआईए की टीम ने दंतेवाड़ा से भीमा ताती और मड़का राम ताती को गिरफ्तार किया था
गौरतलब है कि नौ अप्रैल दो हजार उन्नीस को माओवादियों द्वारा किए गए बारूदी सुरंग विस्फोट में दंतेवाड़ा के तत्कालीन विधायक भीमा मंडावी सहित चार जवान शहीद हो गए थे
इस घटना की जांच अब एनआईए कर रही है
माओवादी गतिविधियां बीजापुर जिले में सुरक्षा बलों की टीम ने माओवादियों द्वारा लगाया गया पांच किलो का आईईडी बरामद किया है
पुलिस अधीक्षक कमलोचन कश्यप ने बताया कि जांगला थाना क्षेत्र से सुरक्षा बलों की टीम तलाशी अभियान के लिए निकली थी
इस दौरान जवानों ने ग्राम कोतरापाल के पास सड़क के अंदर लगाए गए पांच किलो के आईईडी को बरामद किया जिसे बम निरोधक दस्ते ने मौके पर ही निष्क्रिय कर दिया
वहीं इसी जिले के बासागुड़ा थाना क्षेत्र के तहत सुरनार के जंगल से आज सुरक्षा बलों की टीम ने एक लाख रूपए के एक इनामी माओवादी को गिरफ्तार किया है
इसी तरह कुटुर थाना क्षेत्र के टुगेली के जंगल में तलाशी अभियान के दौरान जिला पुलिस बल की टीम ने बैनर पोस्टर लगाते हुए माओवादियों के चार सहयोगियों को गिरफ्तार किया है
इधर दंतेवाड़ा जिले में सुरक्षा बलों की टीम ने एक इनामी महिला माओवादी को गिरफ्तार किया है
मिली जानकारी के मुताबिक अरनपुर थाना क्षेत्र से सुरक्षा बलों की टीम सचिंग के लिए निकली थी
इस दौरान पोटाली के जंगल से पोदियो मंडावी नामक महिला माओवादी को गिरफ्तार किया गया
इस पर एक लाख रूपए का इनाम घोषित था
मौसम मौसम विभाग ने आगामी चौबीस घंटों के दौरान प्रदेश में कुछ स्थानों पर भारी बारिश होने और एकदो जगहों पर गरजचमक के साथ आकाशीय बिजली गिरने की चेतावनी दी है
मौसम विभाग के अनुसार एक द्रोणिका उत्तरपूर्व उत्तरप्रदेश से दक्षिणपश्चिम मध्यप्रदेश तक बनी हुई है
इसके कारण प्रदेश के कई इलाकों में हल्की से मध्यम बारिश हो रही है
संक्षिप्त समाचार रायगढ़ पुलिस ने आगामी तीन अगस्त को रक्षाबंधन के दिन पांच लाख मास्क बांटने का निर्णय लिया है
इस अभियान को एक रक्षा सूत्र मास्क का नाम दिया गया है
राजनांदगांव जिले के छुरिया क्षेत्र के शिक्षकों ने पढ़ई तुहर पारा अभियान की शुरूआत की है
इसके तहत बच्चों को सामाजिक भवनों और वृक्षों के नीचे पढ़ाया जा रहा है
बिलासपुर पुलिस ने अवैध हथियार रखने के आरोप में उत्तरप्रदेश के पांच आरोपी सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया है
उनके पास से छह नग देशी कट्टा और तीन नग जिंदा कारतूस बरामद किया गया है
कोरिया जिले के बैकुंठपुर में लॉकडाउन का पालन नहीं करने वाले दुकानदारों और बिना मास्क के घूमने वाले छिहत्तर लोगों से आठ हजार चार सौ रूपए का जुर्माना वसूला गया
विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर चरणदास महंत की अनुशंसा पर नगर पालिका जांजगीरनैला को जिला खनिज न्यास मद के तहत उनसठ लाख रूपए की स्वीकृति दी गई है
इससे एक जेसीबी और पांच मिनी ऑटो टिपर की खरीदी की जाएगी
महासमुंद पुलिस अधीक्षक प्रफुल्ल ठाकुर ने ड्यूटी के दौरान लापरवाही के आरोप में एक आरक्षक को बर्खास्त कर दिया है
वहीं तीन अन्य आरक्षकों को निलंबित किया गया है
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत बिलासपुर शहर में पांच सौ पच्यासी कैमरे लगाए जाएंगे
मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी ने इसकी मंजूरी दे दी है
महासमुंद जिले की कोमाखान पुलिस ने नेशनल हाइवे के टेमरी नाका के पास तीन वाहनों से नौ लाख रूपए का गांजा बरामद किया है
जांजगीरचांपा जिले में सक्ती वन परिक्षेत्र के बहेरा में आज भालू के हमले से एक चरवाहा घायल हो गया है
घायल चरवाहे को अस्पताल में भर्ती कराया है
जगदलपुर के गोलबाजार इलाके में स्थित एक मेडिकल स्टोर्स में आज शाम आग लग गई
आग के कारणों का पता नहीं चल सका है
जांजगीरचांपा जिले के ग्राम कथा में जैजेपुर के तहसीलदार ने छापा मारकर एक व्यवसायी के तीन अलगअलग ठिकानों से अवैध रूप से संग्रहण कर रखी गई अंठावन बोरी यूरिया खाद को जब्त किया है |
bec487a28ee7d7c4734299dd7affdc7822f72284754a465e80c77512dfa8a571 | pdf | मस्तकपर सैंकडों सूर्योंके समान प्रकाश करनेवाला रत्न जड़ित सुन्दर सुवर्ण-मुकुट शोभित हो रहा हैं ॥ २ ॥ जो कानोंमें कुण्डल पहिने, भालपर तिलक लगाये, अत्यन्त सुन्दर भ्रकुटि तथा लाल कमलके समान बड़े बड़े नेत्रोंवाले, तिरछी चितवनसे देखते हुए तीनों लोकोंका शोक हरनेवाले, और कामारि श्रीशिवजीके हृदय-रूपी मान-सरोवरमें विहार करनेवाले हंस रूप हैं ॥ ३ ॥ जिनकी नासिका बड़ी सुन्दर हैं, मनोहर कपोल है, दांत हीरे जैसे चमकदार हैं, होठ लाल लाल बिम्बाफलके समान हैं, मधुर मुसकान है, शंखके समान कण्ठ और परम सुन्दर ठोढ़ी है। जिनके वचन बड़े ही गंभीर होते हैं, जो सत्य-संकल्प और देवताओंके दुःखोंका नाश करनेवाले हैं ॥ ४ ॥ रंग-बिरंगे फूलों और नये तुलसी-पत्रोंकी कोमल वनमाला जिनके हृदयपर सुशोभित हो रही है। उस मालापर सुगन्धके वश मतवाले भौंरोंका समूह मधुर गुजार करता हुआ उड़ ॥ ५ ॥ जिनके हृदय पर सुन्दर श्रीवत्सका चिन्ह है, बाहुओं पर बाजूबन्द, हाथोंमें कंकण और गलेमैं मनोहर हार शोभित हो रहा है, कटि-देशमें सुन्दर तागड़ीका मधुर शब्द हो रहा है। सिंहासनपर वाम भागमें श्रीजानकीजी विराजमान हैं, जो तमाल वृक्षके समीप कोमल सुवर्ण-लतासी शोभित हो रही हैं ॥ ६ ॥ जिनके भुजदण्ड घुटनों तक लम्बे हैं, बायें हाथमें धनुष और दाहिने हाथमें एक बाण है; जिनको सम्पूर्ण मुनिमंडल, देवता, सिद्ध, श्रेष्ठ गन्धर्व, मनुष्य, नाग और अनेक राजा महाराजागण प्रणाम करते हैं ॥ ७ ॥ जो पापरहित, अखंड, सर्वज्ञ, सबके स्वामी और निश्चयपूर्वक हम लोगोंको कल्याण प्रदान करनेवाले हैं, जो शरणागत भक्तोंके कष्ट मिटानेकी कलामें सर्वथा निपुण हैं, ऐसे लक्ष्मणहै
जी सहित श्रीरामचन्द्रजीको मैं प्रणाम करता हूं ॥८॥ जिनके दोनों चरण कमल आनन्दके धाम और कमला लक्ष्मीजीके निवास स्थान हैं अर्थात् लक्ष्मीजी सदा उन चरणोंकी सेवामें लगी रहती हैं। वज्र आदि ४८ चिन्होंसे जो अत्यन्त शोभा पारहे हैं, और जिन्होंने भक्तवर श्रीहनुमानजीके निर्मल हृदयको अपना श्रेष्ठ मन्दिर बना रक्खा है यानी श्रीहनुमानजीके हृदयमें यह चरणकमल सदा बसते हैं, ऐसे शोक हरनेवाले श्रीरामके चरणोंको शरणमें यह तुलसीदास है ॥ ६ ॥
कौसलाधीस जगदीस जगदेकहित, अमितगुन बिपुल विस्तार लीला । गायन्ति तव चरित सुपवित्र स्रुति सेष सुक संभु सनकादि, मुनि मननसीला वारिचर-चपुष धरि भक्त - निस्तारपर, धरनिकृत नाव महिमातिगुर्वी । सकल जग्यांसमय उग्र विग्रह क्रोड़, मर्दि दनुजेस उद्धरन उर्वी ।।२।। कमठ अति बिकट तनु कठिन पृष्ठोपरी, भ्रमत मंदर कंडु-सुख मुरारी । प्रगटकृत अमृत, गो, इन्दिरा, इन्दु, वृंदारकावृन्द - आनन्दकारी ॥३॥ मनुज-मुनि- सिद्ध-सुर नाग-त्रासक दुष्ट, दनुज द्विजधर्म-मरजाद-हर्ता । अतुल मृगराज-बपुधरित, विहरित अरि, भक्त प्रहलाद - अहलाद-कर्त्ता ।। छलन बलि कपट बटुरूप बामन ब्रह्म, भुवन पर्जत पद तीन करनं । चरन-नख-नीर त्रैलोक-पावन परम, चिबुध-जननी-दुसह-सोक हरनं ।।५।। छत्रियाधीस करि निकर-नर-केसरी, परसुधर बिप्र-ससि-जलदरूपं । बीस भुजदंड दससीस खंडन चंड वेग सायक नौमि राम भूपं ॥६॥
भूमिभर-भार हर प्रगट परमातमा ब्रह्म नररूपधर भक्तहेतू । वृष्णि-कुल- कुमुद - राकेस राधारमन कंस-धंसाटवी धूमकेतू ।।७।। प्रबल पाखंड महि-मंडलाकुल देखि निंद्यकृत अखिल मख कर्म-जालं । सुद्ध बोधैक घनग्यान गुनधाम अज बौध-अवतार बंदे कृपालं ।।८।। कालकलिजनित मलमलिन मन सर्वनर मोह-निसि-निबिड़जमनांधकारं । विष्णुजस पुत्र कलकी दिवाकर उदित दासतुलसी हरन बिपतिभारं ।।९।।
भावार्थ- हे कोसलपति ! हे जगदीश्वर ! आप जगत् के एकमात्र हितकारी हैं, आपने अपने अपार गुणोंकी बड़ी लीला फैलायी है। आपके परम पवित्र चरित्रको चारों वेद, शेषजी, शुकदेव, शिव सनकादि और मनन-शील मुनि गाते हैं ॥ १ ॥ आपने मत्स्य-रूप धारणकर अपने भक्तोंको पार करनेके लिये ( महाप्रलयके समय ) पृथ्वोकी नौका बनायी; आपकी अपार महिमा है। आप समस्त यज्ञोंके अंशोंसे पूर्ण हैं, आपने बड़े भयङ्कर शरीरवाले हिरण्याक्ष दानवका मर्दन करके शकररूपसे पृथ्वीका उद्धार किया ॥ २ ॥ हे मुरारे ! आपने अति भयानक कछुएका रूप धारण करके, समुद्र मन्थनके समय रसातलमें जाते हुए मंदराचल पहाड़को अपनी कठिन पीठपर रख लिया, उस समय उसपर पर्वतके घूमनेसे आपको खुजलाहटकासा सुख प्रतीत हुआ था। समुद्र मथनेपर आपने उसमेंसे अमृत, कामधेनु, लक्ष्मी और चन्द्रमाको उत्पन्न किया, इससे आपने देवताओंको बहुत आनन्द दिया ॥ ३ ॥ आपने नृसिंहरूप धारण करके मनुष्य, मुनि, सिद्ध, देवता और नागोंको दुःख
देनेवाले, ब्राह्मण और धर्मको मर्यादा नाश करनेवाले दुष्ट दानव हिरण्यकशिपुरूप शत्रुको विदीर्णकर भक्तवर प्रह्लादको आह्लादित कर दिया ॥ ४ ॥ आपने चामन ब्रह्मचारीका रूप धारणकर राजा बलिको छलनेके लिये पहिले तीन पैर पृथ्वी मांगी, पर नापते समय तीन पैरसे सारा ब्रह्माण्ड तक नाप लिया । ( नापने के समय ) आपके चरण-नस्वसे तीनों लोकोंको पवित्र करनेवाला ( गंगा ) जल निकला । आपने बलिको पातालमें भेज, और वह राज्य इन्द्रको देकर देवमाता अदितिका दुःसह शोक हर लिया ॥ ५ ॥ आपने सहस्रबाहु आदि अभिमानी क्षत्रिय राजारूपी हाथियोंके समूहको विदीर्ण करनेके लिये सिंह-रूप और ब्राह्मण-रूपी धान्यको हराभरा करने लिये मेघरूप, ऐसा परशुराम अवतार धारण किया। और रामरूपसे दस सिर तथा बीस भुजदण्डवाले रावणको प्रचण्ड बाणसे खण्ड खण्ड कर दिया, ऐसे राजराजेश्वर श्रीरामचन्द्रजीको मैं प्रणाम करता हूं ॥ ६ ॥ भूमिके भारी भारको हरनेके लिये आप परमात्मा शुद्ध ब्रह्म होकर भी भक्तोंके लिये मनुष्यरूप धारण करके प्रकट हुए, जो वृष्णिवंश-रूपी कुमुदिनीको प्रफुल्लित करनेवाले चन्द्रमा, राधाजीके पति और कंसादिके वंशरूपी वनको जलानेके लिये अग्निस्वरूप थे ॥ ७ ॥ प्रबल पाखण्ड-दंभसे पृथ्वीमण्डलको व्याकुल देखकर आपने यज्ञादि सम्पूर्ण कर्मकाण्डरूपी जालका खण्डन किया, ऐसे शुद्ध बोधस्वरूप विज्ञानघन सर्व दिव्य-गुण-सम्पन्न अजन्मा कृपालु बुद्ध भगवानकी मैं वन्दना करता हूं ॥ ८ ॥ कलिकाल जनित पापोंसे सभी मनुष्योंके मन मलिन हो रहे हैं। आप मोहरूपी रात्रि म्लेच्छरूपी घने अन्धकारके नाश करने के लिये सूर्योदयकी तरह विष्णु-यश नामक ब्राह्मणके यहां पुत्र८८
रूपसे कल्कि अवतार धारण करेंगे। हे नाथ ! आप तुलसीदासकी विपत्तिके भारको दूर करें ॥६॥
सकल सौभाग्य - प्रद सर्वतोभद्र निधि, सर्व, सर्वे, सर्वाभिरामं । शर्व-हृदि कंज-मकरंद मधुकर रुचिर रूप, भूपालमान नौमि रामं ॥१॥ सर्वसुख-धाम, गुनग्राम, विस्रामपद, नाम सर्वांसपदमति पुनीतं । निर्मलं, सान्त, सुविसुद्ध, बोधायतन, क्रोध-मद हरन, करुना - निकेतं ।। अजित, निरुपाधि, गोतीतमव्यक्त, विभुमेकमनवद्यमजमद्वितीयं । प्राकृतं प्रगट परमातमा परमहित, प्रेरकानन्त वन्दे तुरीयं ।। ३ ।। भूधरं सुन्दरं श्रीवरं, मदन-मद- मथनं सौन्दर्य सीमातिरम्यं । दुष्प्राप्य, दुष्प्रेक्ष्य, दुस्तर्क्स, दुष्पार, संसारहर सुलभ मृदुभाव गम्यं ।। सत्यकृत, सत्यरत, सत्यव्रत, सर्वदा, पुष्ट संतुष्ट संकष्टहारी । धर्मवर्मनि ब्रह्मकर्म बोधैक, विप्रपूज्य ब्रह्मन्यजनप्रिय मुरारी ।।५।। नित्य, निर्मम, नित्यमुक्त, निर्मान, हरि, ग्यानघन, सच्चिदानंद मूलं । सर्वरच्छक सर्वभच्छकाध्यच्छ, कूटस्थ, गूढ़ाचि भक्तानुकूलं ।।६।। सिद्ध- साधक-साध्य, वाच्य वाचकरूप मंत्र जापक जाप्य, सृष्टि स्रष्टा । परम कारन, कंजनाभ, जलदाभतनु, सगुन निर्गुन सकल दृश्य द्रष्टा ॥७॥ व्योम-व्यापक, विरज ब्रह्म वरदेस बैकुंठ, वामन बिमल ब्रह्मचारी । सिद्ध-वृन्दारकावृन्दवंदित सदा खंडि पाखंड - निर्मूलकारी ॥८॥ |
c01da04ca1c0c23c92e717816be20fe1d0991f97 | web | भारत में एक माह पहले से होली की तैयारी चलती हैं सभी खुशी खुशी होली का त्यौहार मनाते हैं होली के एक सप्ताह पहले ऑफिसों, कॉलेजों, स्कूलों में होली के चर्चे होने लगते हैं। सड़क पर बच्चे गुब्बारे मारते हैं लेकिन शाहाबाद डेरी बंगाली बस्ती के कबाड़ी वालों के लिये यह सप्ताह भय में बीत रहा है कि वह होली खेल पायेंगे या नहीं। रंजित रविदास को भय है कि कहीं इस बार की होली कहीं बंगाली बस्ती में रहने वालों के लिए कही खून की होली न बन जाये।
शाहबाद डेरी की दूसरी तरफ बंगाली बस्ती है। इस बस्ती में 99 प्रतिशत पश्चिम बंगाल से हैं और कूड़े का काम (घरों से कूड़े उठाना, रास्ते, इंडस्ट्रियल एरिया से कूड़े चुनना) करते हैं। सरकार 'स्वच्छता अभियान' का नारे देकर या कुछ फोटो-सोटो खिंचवा कर भूल गई उसको यह कूड़े वाले अपने रोजी-रोटी के लिये ही सही इस अभियान को फ्री में लागू कर रहे हैं। इनको कूड़े उठाने के लिये कोई पैसा नहीं मिलता (घरों से कूड़ा उठाने का जो पैसा मिलता है वह भी इनके जेब में नहीं जाता है)। सड़क पर, इंडस्ट्रियल एरिया और इधर-उधर जो कूड़ा बिखरा होता है उसके लिये इनको कोई मजदूरी नहीं मिलती अगर कुछ मिलता है तो 'गंदे लोग' की उपाधि। इन कूड़ा उठाने/बिनने वाले के साथ सभी जाति और धर्म के लोगों द्वारा भेद-भाव किया जाता है। यह अपने रिक्शों से या पीठ पर कूड़े को लाद कर घर ले जाते हुये दिख जाते हैं अगर यह थके हो और बस या कोई पब्लिक वाहन (खाली भी हो तो) से अपने कूड़े के साथ घर जाना चाहे तो उनको इन वाहनों में यात्रा नहीं करने दिया जाता है। कूड़े के ढेर में ही इनकी जिन्दगी का गुजारा होता है।
इस तरह कि जिन्दगी के बाद भी इन लोगों का किसी से कोई शिकायत नहीं है। वह अपने परिवार के साथ अपनी जिन्दगी में खुश हैं लेकिन उनकी यह खुशी भी कुछ धनपिपाशुओं द्वारा छिनने की कोशिश की जा रही है। इनके बस्ती के आस-पास फैक्ट्री, गोदाम बने हैं तो कुछ ऐसे ही खाली चारदीवारी बना कर छोड़ दिये गये हैं। इनकी झुग्गी बस्ती को नरेन्द्र राणा ने 10 साल पहले बसाया था जब से वह इस जमीन पर रहते आ रहे हैं। इन्ही बस्ती में स्माईल शेख, मेहरूद्दीन, चुमकी, कबरू, रंजित रविदास, राजेन्द्र आदि की झुग्गियां हैं जिसके सामने फैक्ट्री हैं। फैक्ट्री मालिक कौन है,इस फैक्ट्री में क्या बनता है इन बस्ती वालों को नहीं पता लेकिन यह फैक्ट्री मालिक लगातार फैक्ट्री के सामने की जमीन पर अपना दावा करता आया है। बस्ती वालों द्वारा जमीन का कागज दिखाने के कहने पर कभी कागज दिखाया नहीं गया। बस्ती में 18 तारीख को सुबह 4 बजे आग लगा दिया गया। इसमें कई घर आग में स्वाहा हो गये।
समई जो कि अपने परिवार के साथ रहते हैं बताते हैं कि सुबह वह नित्यकर्म करने के लिये गये थे तभी बस्ती में आग लग गई। समई घर के परिवार तो बाहर सुरक्षित निकल गये लेकिन उनके घर का सभी समान आग में स्वाहा हो गया और इकट्ठा किया हुआ कबाड़ जल कर खाक हो गया। घर में किस्त पर लिये फ्रीज और टीवी भी जल कर स्वाहा हो गये।
चुमकी अपने बच्चे कुसुम, रेशमा, अशरफ के साथ रहती है। वह अपने बच्चों की पालन-पोषण के लिये रोहणी सेक्टर 13 के घरों में काम करती है और अपने बच्चों और अपने लिये दो जून की रोटी की व्यवस्था करती है। चुमकी का रो रो के गले बैठ गया हैं। उसके घर का कोई भी समान नहीं बचा है जो कपड़े उसके शरीर पर है वही बचा हुआ है। कुसुम और रेशमा चौथी कक्षा में पढ़ती है जिनकी परीक्षा चल रही है उनके किताब, कॉपी जल गये हैं वह परीक्षा देने नहीं गई। पास में बैठी रेशमा बताती है कि मैंने "मैडम को खबर भेजा था लेकिन उन्होंने कोई खबर नहीं दिया। " चुमकी को चिंता है कि कैसे वह अपने बच्चों के लिये फिर से कपड़े, किताब खरीद पायेगी। उसको बस एक ही सहारा दिखाई दे रहा है कि जिन घरों में काम करती है शायद वहां से कोई सहायता मिल जाये।
रहीमा के पिता मेहरूद्दीन और भाई कूड़े का काम करते हैं। पिता घर (बंगाल) गये हुये हैं वह 19 को ट्रेन में थे लेकिन आग के बारे में उनको जानकारी नही दी गई है। रहीमा बताती है कि एक साल का कबाड़ इक्ट्ठा करके रखा हुआ था ताकि इसको एक साथ बेचकर बहन की शादी करना था। एक साल से कबाड़े कि किमत कम हो गई है आशा था कि जब कबाड़े का थोड़ा दाम अच्छा होगा तो इसको बेचा जायेगा। घर के खर्च चलाने के लिये वह सुखी रोटी और कुछ थोड़े बहुत कबाड़ी बेच कर अपना काम चलाते थे लेकिन अब वह सारे कबाड़ जल कर खाक हो गये। रहीमा बताती है कि 8-10 बकरी और 8-10 मुर्गे भी जल गये हैं जो कि होली में बेचने वाले थे। घर में एक भी समान नहीं बचा है कि वह लोग खाना बना सकें। इतने नुकसान होने के कारण ही रहीमा ने आग की जानकारी पिता को नहीं दी कि पता नहीं वो इस नुकसान को बर्दास्त कर पायेंगे या नहीं।
राजेन्द्र और उनकी पत्नी फैक्ट्री में काम करते हैं वे लोग सुबह-सुबह जाकर सड़क से कबाड़ इक्ट्ठा करते थे। काम करने से जो पैसा मिलता था उससे परिवार चलता था और दो साल से कबाड़ इक्ट्ठा किये थे कि इसको एक साथ बेच कर कुछ काम कर सकते हैं लेकिन उनकी यह आशा उस आग में जलकर खाक हो गई।
रंजित रविदास 7-8 माह से इस बस्ती में रहने आये थे इसके पहले वह 20 साल से जहांगीरपुरी में रहते थे जहां उनको बेटा नशे का शिकार हो गया था। रंजित को आशा था कि यहां रहकर वह अपने बेटे को सुधार सकते है और अपने रिश्तेदार के कहने पर जहांगीरपुरी से शहाबाद बंगाली बस्ती में आ गये। उनके घर का सारा समान जल कर खाक हो गया।
इतने नुकसान सहने के बाद भी बस्ती वालों ने कोई शिकायत नहीं किया किसी से और उसे प्राकृतिक आपदा समझ भुला देने की कोशिश की और अपनी जले हुई झोपड़ी को ठीक करने लगे। उनके पास कोई नेता या किसी तरह की सरकारी सहायता नहीं पहुंची। बस्ती के लोगों ने ही मिल कर आग को बुझाया और आपस में चंदा इक्ट्ठा कर खाने की व्यवस्था कि और रिश्तेदारों, मुहल्ले वालों की मद्द से कुछ कपड़े पैसे इक्ट्ठे कर बल्ली,बांस लाये। जब वह जले हुये राख को हटा कर बल्ली, बांस से अपने लिये झोपड़ी तैयार कर रहे थे उस समय चार गाड़ी और बाईक पर कुछ गुंडे आये और मार-पीट शुरू कर दिया। शकीकुल शेख जो कि उसी बस्ती में रहते हैं अपने साली चुमकी को कपड़ा देने आये थे उन पर गुंडों ने बल्ली से हमला किया जिससे उनकी हाथ टूट गया। जिनको लेकर वे लोग खुद डॉ. अम्बेडकर अस्पातल रोेहणी में गये जहां प्लास्टर चढ़ा है और आगे डॉ ने कहा है कि इसमें राड डालना पड़ेगा।
शकीकुल के चार छोटे बच्चे हैं घर में वे और उनका एक बड़ा बेटा कमाता था। शकीकुल को अब अपनी अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है कि वह इस टूटे हुये हाथ से कैसे काम कर पायेंगे उनके बच्चों का क्या होगा। शकीकुल रोते हुये पूछते हैं कि आपका हाथ तोड़ देगा तो आप बोझ उठा पाओगे?
जब वह गुंडे और लोगों पर हमला किया तो पूरे बस्ती के लोग इकट्ठा होकर गुंडों का प्रतिकार किया जिसके बाद वह फायरिंग करते हुये भाग खड़े हुये। यह सभी घटना दो पुलिस वाले की मौजूदगी में हुई। बाद में काफी संख्या में पुलिस वालों ने पहुंच कर इन बस्ती वालों को मारना-पीटना शुरू कर दिया। घरों से महिलाओं को खिंचा और थाने ले जाने कि कोशिश की। बबलू शेख जो अपने रिश्तेदार के लिये कपड़े लेकर आये थे उनको जबरदस्ती गाड़ी में बैठा लिया लेकिन बस्ती वालों की एकजुटता के सामने पुलिस को उन्हें छोड़ना पड़ा। जो दो पुलिस वाले वहां मौजूद थे वे उन महिलाओं और पुरुषों को खोज-खोज कर निशाना बनाना शुय किया जो उन गुंडों के प्रतिकार में आगे थे, महिलाओं को भद्दी गालियां दे रहे थे। हनिफा बिबि बताती है कि पुलिस वाले महिलाओं को "रन्डी की औलाद, ....... में लात घुसा देंगे, फिल्म बनायेंगे" इस तरह की भद्दी भद्दी गालियां दे रहे थे। पुलिस डंडो और किल्ली (विकेट) से इन बस्ती वालों पर हमला कर रहे थे। बस्ती वालों ने बताया कि गुंडे गोली चला रहे थे तो वहां मौजुद पुलिस वालों ने कहा कि हमने तुमको पत्थर चलाते देखा है और कुछ नहीं देखा। जब पुलिस को 4 गोली के खोखे दिये गये तो बोला कि "क्या हुआ कोई मरा तो नहीं"।
बाद में दस लोगों (5 महिला, 5 पुरुष) का मेडिकल कराया गया। गुंडे जाते हुये धमकी देकर गये कि हम तुमको यहां रहने नहीं देंगे। डर के कारण लोग घरों में नहीं सो रहे हैं। खुले मैदान में या एक छत हैं वहां उस पर बैठ कर रात को बस्ती वाले पहरा देते हैं।
इस कांड में अभी तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है और न ही इनको किसी तरह की मुआवजा मिला है। इनको झूठी आश्वासन देने के लिए भी कोई नेता और ना ही कोई प्रशासनिक अधिकारी इनके पास गया। आज भी बंगाली बस्ती के लोग डरे सहमे हुये घरों से बाहर सो रहे हैं उनको डर है कि कहीं ये होली उनके लिये कोई अनहोनी न कर दे। रंजित रविदास के शब्दों में होली खेलेंगे या खून की होली खेलेंगे। क्या इन बस्ती वालों को रहने का अधिकार नहीं है क्या इनके लिये भी कोई कानून संविधान, कोई भारत माता के रखवाले हैं? अपने गंदे में रहकर दुसरे को स्वच्छ रखने वालों पर हुये अत्याचार की सुनवाई की जायेगी? इनके जान-माल की सुरक्षा की गारंटी और इंसाफ मिल पायेगा?
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f604ae36dc19f42995dbca8473a772bcc0451e367b68628ce9cb1b08a3181e93 | pdf | स्वर्ण किरक्ष
ग़र्जन मंथित नभ से बरस धरा पर शतमुख जीवन प्राणों की हरियाली से रोमांचित करता जन-मन !
आज उदधि के नीलांचल में बँधे निखिल देशान्तर, वायु वर्त्म से, पंख खोल, आने को नव्य युगांतर ! आज तड़ित के पद नपुर में ध्वनित विश्व संभाषण, लो, विद्युत् कटाक्ष से संभव अब दूरागत दर्शन ! आज वाप विद्युत् विश्व किरण मानव के वाहन भूत शक्ति का मूल स्रोत भी अणु ने किया समर्पण ; मातृ प्रकृति ने सौंप दिया मानव को विभव अपरिमित हरित नील जव भी भविष्य में कर लेगा वह संचित ! आज वनस्पति पशु जग को कर सकता मानव वर्धित, गर्भाशय में जीवन अणु को ऊर्जित, विद्युत् गर्भित ! भूत रसायन प्राणि वनस्पति शास्त्र विविध अब विकसित । दिशा काल के परिणयं का रे मानव आज पुरोहित !
आओ, सोचें द्विपद जीव कैसे बन सकता मानव शक्ति-मत्त होकर भूदेव न बन जाए भू-दानव ! मानव संस्कृति का क्या स्वर्ग वसाएगा वह भू पर, भीषण अणु का भू प्रकंप या छोड़ेगा प्रलयंकर ! तव मनुष्यता होगी भू संगठित कि राष्ट्र विभाजित अंतर्देवों से प्रेरित या भूत दैत्य से शासित ? : धरा वनेगी शांति धाम या रक्त क्षेत्र रण जर्जर, अमृत व्योम से बरसेगा ? विष वह्नि विनाश भयंकर ?
वर्य किरण
आओ, लोक समस्याओं पर मिल कर करें विवेचन विश्व सभ्यता के मुख पर से हटा मृत्यु अवगुंठन ! सर्व प्रथम, जठराग्नि के लिए हवि दें श्रम की पावन गत पद हो, सहस्र कर, यंत्रों से कर संधोत्पादन ! नग्न क्षुधातुर जीवन्मृत भू के असंख्य शोषित जन मानव तन को गोभाऽवृत कर नव युग करे पदार्पण ! आज यंत्र कौशल अर्जित, औ' विश्व योजना कल्पित, जीव नियति मनुजों पशुओं की भी कृतार्थ हो निश्चित ! युग्म प्रीति के लिए प्राण आहुति फिर करें निरूपित अजित पंचार के हित मोहक ज्योति व्यूह रच विस्तृत ! फूलों के वाणों से जीवन का मधु हो चिर संचित जीवन के शोभा तोरण में युवति युवक विचरें स्मित ! शोभा का मुख काम लाज के पट से कर तमसावृत इति मानव देह मोह ओ' देह द्रोह से कवलित !! स्वस्थ हृदय तारुण्य प्रणय को करें युग्म निज अर्पित, भावी संतति को दें जीवन हव्य प्रीति का दीपित ! द्वारा प्रतीति के पुष्पों से हो पूजित प्राणों के स्वप्नों से जीवन की डाली हो मुकुलित ! सर्वाधिक रे जन शिक्षा का प्रश्न महत्, आवश्यक मानव के अंतर्जीवन का गन इतिहास भयानक ! जनताप उर अंधकार की कथा करुण ममीतक शिक्षा की बहिरंतर जनमंगल की मात्र विधायक ! अर्थ जगत अवगंधित, नमसावृत रे लोक असंख्यक असभ्य व विशेष जो जाति वर्ग के पोषक !
तर्को वादों सिद्धांतों से बुद्धिप्राण जन पीड़ित, नीति रीति शाखा पंथों में धर्मप्राण अति सीमित; द्रव्य मान पद के अर्जन में रत स्त्री प्रिय नव शिक्षित, महामृत्यु के पूजन में वैज्ञानिक, राज्य नियोजित ! शिलान्यास मानव शिक्षा का करना हमको नूतन आत्म ऐक्य औ' व्यक्ति मुक्ति का स्वर्ग सौध रच शोभन ! वाग् यंत्र से वाक् चित्र से वाहित कर संचित मन जनगण में भर सकते हम चेतना रुधिर का प्लावन ! ललित कलाओं से धरती का रूप बने मनुजोचित शोभा के स्रष्टा हों जन, जीवन के शिल्पी जीवित ! भावी स्वप्न दृगों में, उर में हो सौन्दर्य अपरिमित काव्य चित्र संगीत नृत्य से जन जीवन सुख स्पंदित । हमें विश्व संस्कृति रे भू पर करनी आज प्रतिष्ठित, मनुष्यत्व के नव द्रव्यों से मानव उर कर निर्मित; मानवीय एकता जातिगत मन में करनी स्थापित मनःस्वर्ग की किरणों से मानव मुख श्री कर मंडित ।
बहिर्चेतना जाग्रत जग में, अंतर्मानव निद्रित, बाह्य परिस्थितियाँ जीवित, अंतर्जीवन मूछित, मृत ! भौतिक वैभव औ' आत्मिक ऐश्वर्य नहीं संयोजित दर्शन श्री विज्ञान विश्व जीवन में नहीं समन्वित ! खोई सी है मानवता, खोई वसुधा प्रतिबंधित जाति पाँति हैं, रूढ़ि रीति हैं, देश प्रदेश विभाजित !
शर्ण किरछ
एकत्रित कर मनःशक्ति चेतन मानव को निश्चय .ग्लानि पराभव मृत्यु अमङ्गल पर पानी शाश्वत जय ! भेद भाव, दुर्मति, असफलता युग गति में हों मज्जित, जीवन के रथ चक्रों से अणु लोक-सृजन में योजित !
ऊध्वं संचरण में रे व्यक्ति, निखिल समाज का नायक, समदिग् गति में सामाजिकता जनगण भाग्य विधायक ऊर्ध्व चेतना को चलना भू पर धर जीवन के पग समदिक मन को पंख खोल चिद् नभ में उठना व्यापक ! प्राणि शास्त्र को मानवीय बनना पीकर आत्माऽमृत ; मनःशास्त्र को ऊर्ध्वं तथा नव भौतिक दिशि में विस्तृत; आदनको रुढ़ि रीति पाशों से होना विरहित, सदाचार नैतिकता को नव युग आकृति में विकसित !
अंतर्जीवन के वैभव से आज अपरिचित भू-जन, मध्यम अयम वृत्तियों से कल्पित उनका भव जीवन; सत्य-ज्योति से वंचित भेदों से कुंठित मानव मन ३. अंतसंग प्रेरित हो उसको पाना जीवन दर्शन ! पाओं में भी हीन, रेंगता कृमियों सा, अह्, मानव, २ गया का अंतर होता आत्म पराभव ! आणि वर्ग का ईश्वर आर्त विमूह निरावृत भय वैभव से ओतप्रोत मानव गौरव भू-तुंठित ! निमितपेश्वरी उसे श्रम तप से करना जागृत किसी से विवीर्ण मानव को बनना फिर महिमान्वित !
देखो है, ऐश्वर्य प्रकृति का उसका प्रति अणु जीवित उसका श्री सौन्दर्य अमित, वह सृजन हर्ष आंदोलित ! नाच रही भू हरित यौवना ज्योति ग्रहों से वेष्टित बाहु पाश में बाँध धरा को वारिधि चिर उद्वेलित ! सायं प्रातः गाकर खग करते जीवन अभिनंदन सुख से सर्पित मुखर स्रोत नित, प्रीति स्रवित पिक कूजन ! संध्या ऊषा स्वर्णिम जीवन वैभव से चिर शोभन, ज्योत्स्ना में सोई भू को नभ तकता अपलक लोचन !
हिमशिखरों का आत्मोल्लास स्वयं ज्यों विस्मय स्तंभित, षड् ऋतुओं का छायातप शत ध्वनि वर्णो से विरचित; रंग प्राण रे रंग जगत यह श्री सुषमा का जीवित रूप स्पर्श रस गंध शब्द तन्मात्राओं से भंकृत !
नील गगन में सुरधनु घन, घन उर में चपला कंपित १ तरुओं पर कलि कुसुम, कुसुम में मधु, मधु पर अलि गुंजित सरसी में जल, जल में लहर, लहर किरणों से चुंवित केवल मानव उर अन्तर- सौरभ से आज न सुरभित ! ज्योति चूड़ लहरें उठ उठ करतीं नित गोपन इंगित निखिल प्रकृति कहती रे उसमें अमृत सत्य अंतर्हित ! यह प्रकाश, सौन्दर्य, प्रेम, उल्लास, रंग सम्मोहन मानव उर में इन्द्रजाल बुनते रहते हैं मोहन ! अंतर्बाह्य प्रकृति उपकरणों को संचित कर प्रतिक्षण आओ, हम जन लोक रचें, देवों को दें आमंत्रण !
महाप्राण रे विश्व चेतना हमें चाहिए केवल भू मंगल के साथ आज परिणीत व्यक्ति का मंगल ! नव चेतन मनुजों से हो जग जीवन का संचालन, आत्मोन्नति के लिए मिले अवसर, श्रम - प्रिय हों भू-जन ! मानव हो संयुक्त प्रकृति से, स्वर्ग बने भू पावन निखिल भव जीवन !
शशि मंगल लोकों को छूते
आज कल्पना के पर
शशि दे जन को स्वप्न, भौम मन में साहस बल दे भर ! शशिप्रभ स्वप्नों से मंगलमय स्वर्ग रचें हम सुंदर, मानव जीवन में अवतरित पुनः हो मानव ईश्वर !
मृत्युहीन रे यह पुकार मानव आत्मा की निश्चय, सत्य ज्योति अमरत्व और वह बढ़े अनागस निर्भय ! वैदिक ऋषि के अमृत निण्य वचनों की जग में हो जय ये उपनिषत्, समीप बैठ रे, ग्रहण करें हम आशय ! अंधं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते । ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः ।। विद्यांचाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह । अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते ।।
अंध तमस में गिरते वे जो मात्र अविद्या में रत उससे भूरि तमस में वे जो विद्या में रत संतत । विद्या 5 विद्या उभय एक में, भेद जिन्हें यह अवगत, विद्यामृत पी, मृत्यु अविद्या से वे तरते अविरत ! |
f8015750c5429ad8a2845da196978ce5ef22f0e5 | web | 20 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एक लिखित आदेश जारी कर 16 राज्यों को लगभग 12 लाख जनजातीय और वन निवासियों को 27 जुलाई से पहले जंगल से बाहर निकालने को कहा है। इस आदेश के मुताबिक, जिन परिवारों के वन भूमि स्वामित्व के दावों को खारिज कर दिया गया था, उन्हें राज्यों द्वारा इस मामले की अगली सुनवाई से पहले तक बेदखल कर देना है। सुप्रीम कोर्ट ने वन अधिकार अधिनियम 2006 (Forest Rights Act 2006) के तहत दिये गए अपने आदेश में वन क्षेत्र पर वनवासियों के अधिकार के दावे को खारिज कर दिया। इस अधिनियम का पूरा नाम अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
तीन जजों की बेंच ने उन राज्यों के मुख्य सचिवों को इन वनवासियों को 24 जुलाई, 2019 तक या उससे पहले ही वनों से बेदखल करने का आदेश दिया है, जिनके दावों को खारिज किया गया है। जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने 16 राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश जारी कर कहा कि वे ऐसी लाखों हेक्टेयर ज़मीन को कब्ज़े से मुक्त कराकर अदालत को इसकी जानकारी दें। जंगलों और अभयारण्यों में अतिक्रमण की समस्या बेहद जटिल है और कई मामलों में कब्ज़ाधारक अपने मालिकाना हक को साबित करने में असफल रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि अवैध घुसपैठियों को अब तक निकाला क्यों नहीं गया...ऐसे लोगों को तत्काल वहाँ से निकाला जाए।
गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 29 जनवरी, 2016 और 7 मार्च, 2018 को दिये अपने आदेशों में भी अवैध रूप से रहने वाले वन/आदिवासियों को जंगलों से बेदखल करने को कहा था।
मामला क्या है?
एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में देश के जंगलों में लगभग 10 करोड़ आदिवासी हैं। इनमें से लगभग 40 लाख सुरक्षित जंगलों (Reserved Forests) में रहते हैं, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 5% है। जिन 17 राज्यों को ज़मीन खाली कराने के आदेश दिये गए हैं, उन्होंने 40 लाख परिवारों का 3-स्तरीय वेरिफिकेशन ग्राम सभाओं के माध्यम से कराया गया था, जिसके बाद यह जानकारी सामने आई कि इन 11.8 लाख आदिवासियों का जंगल की ज़मीन पर मालिकाना हक नहीं है। इस वेरिफिकेशन प्रक्रिया में सरकार द्वारा मान्य 13 दस्तावेज़ों में से कोई एक दिखाने को कहा गया था।
क्या होगा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर?
देश के 21 राज्यों में अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes-STs) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (Other Traditional Forest Dwellers-OTFDs) से संबंधित लाखों लोगों को वनों से बेदखल किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India-FSI) को एक सैटेलाइट सर्वेक्षण करने और जहाँ पर बेदखली हो चुकी है, वहाँ की 'अतिक्रमणकारी स्थिति' पर आँकड़े तैयार करने का भी आदेश दिया है।
भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत सरकार और वन विभाग को वनों के किसी भी क्षेत्र को रक्षित (Reserved) व संरक्षित करने के लिये अधिसूचित करने का अधिकार है। इसी कानून के तहत रक्षित वनों को छोड़कर राज्य सरकार किसी भी वन भूमि को संरक्षित वन (Protected Forests) घोषित कर सकती है।
इन वनों के संसाधनों का इस्तेमाल राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित है और जो वन ग्रामीण समुदाय के नियंत्रण में हैं, उन्हें इस कानून के तहत ग्राम वन (Village Forest) माना गया है। वनों के संरक्षण को लेकर 1980 तक वन अधिनयम, 1927 ही चलन में था, लेकिन जब वनों की अंधाधुंध कटान होने लगी तब वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का मसौदा तैयार हुआ। लेकिन 2005 तक यह मसौदा संसद में पेश नहीं हो सका। बाद में इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया तथा मई 2006 में समिति की रिपोर्ट आने के बाद इस अधिनियम में अनेक संशोधन कर दिसंबर 2006 में इसे 'अनसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता)' कानून नाम से पारित किया गया। 1 जनवरी, 2008 से यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर भारत के सभी राज्यों में लागू हो गया।
अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 की धारा-6 में राज्यों में अपीलीय समितियों के साथ-साथ ग्राम सभा के स्तर पर वन निवासियों के दावों की स्वीकृति या अस्वीकृति के लिये बहुस्तरीय एवं श्रेणीबद्ध प्रक्रिया को शामिल किया गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य ऐसे वनवासियों के वन भूमि पर अधिकार और कब्ज़े को सुनिश्चित करना है, जो कई पीढ़ियों से जंगलों में रह रहे हैं, लेकिन इनके अधिकार दर्ज नहीं किये जा सके हैं।
- इस अधिनियम में न केवल आजीविका के लिये स्व-कृषि या निवास के लिये व्यक्ति विशेष या समान पेशा के तहत वन भूमि में रहने के अधिकार का प्रावधान है बल्कि यह वन संसाधनों पर उनका नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिये कई अन्य अधिकार भी देता है।
- इनमें स्वामित्व का अधिकार, संग्रह तक पहुँच, लघु वन उपज का उपयोग व निपटान, निस्तार जैसे सामुदायिक अधिकार; आदिम जनजातीय समूहों तथा कृषि-पूर्व समुदायों के लिये निवास का अधिकार; ऐसे किसी सामुदायिक वन संसाधन जिसकी वे ठोस उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से सुरक्षा या संरक्षण करते रहे हैं, विरोध, पुनर्निर्माण या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है।
- इस अधिनियम में ग्राम सभाओं की अनुशंसा के साथ विद्यालयों, चिकित्सालयों, उचित दर की दुकानों, बिजली तथा दूरसंचार लाइनों, पानी की टंकियों आदि जैसे सरकार द्वारा प्रबंधित जन उपयोग सुविधाओं के लिये वन जीवन के उपयोग का भी प्रावधान है।
- इसके अतिरिक्त जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा आदिवासी लोगों के लाभ के लिये कई योजनाएँ भी क्रियान्वित की गई हैं। इनमें वन क्षेत्रों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य के ज़रिये लघु वन उपज के विपणन हेतु तंत्र तथा वैल्यू चेन के विकास जैसी योजनाएँ भी शामिल हैं।
- वन ग्रामों के विकास के लिये संपर्क, सड़कों, स्वास्थ्य देखभाल, प्राथमिक शिक्षा, लघु सिंचाई, वर्षा जल खेती, पीने के पानी, स्वच्छता, समुदाय हॉल जैसी बुनियादी सेवाओं तथा सुविधाओं से संबंधित ढाँचागत कार्यों के लिये जनजातीय उप-योजना के लिये विशेष केंद्रीय सहायता से फंड जारी किया जाता है।
- इस अधिनियम की धारा 3 (1)(h) के तहत वन्य गाँव, पुराने आबादी वाले क्षेत्रों, बिना सर्वेक्षण वाले गाँव तथा वन क्षेत्र के अन्य गाँवों (चाहे वह राजस्व गाँव के रूप में अधिसूचित हों या नहीं) के स्थापन एवं परिवर्तन का अधिकार यहाँ रहने वाले सभी अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पारंपरिक वन निवासियों को प्राप्त है।
- अधिनियम के प्रावधानों और बनाए गए नियमों के मुताबिक अन्य कानूनों की तरह ही वन्य गाँवों को राजस्व गाँवों में परिवर्तित करने के वन अधिकार ग्राम सभा, उप मंडल स्तरीय समिति और ज़िला स्तरीय समिति के क्षेत्राधिकार में आते हैं।
ओडिशा के लांजीगढ़, क़ालाहांडी और रायगढ़ ज़िलों में नियमगिरि पहाड़ी पर ओडिशा खनन निगम लिमिटेड और स्टरलाइट बॉक्साइट की संयुक्त खनन परियोजना लगाना चाहते थे। लेकिन पर्यावरण और वन मंत्रालय ने ओड़िशा की नियमगिरि पहाड़ी पर ब्रिटेन की वेदांता कंपनी (स्टरलाइट) की बॉक्साइट खनन परियोजना को 2010 में नामंज़ूर कर दिया था। जब यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा तो अपने देवता की उपासना करने के नियमगिरि के डोंगरिया कोंध आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा किये जाने का समर्थन करते हुए इस खनन परियोजना पर जंगलों में रहने वाले मूल निवासियों से रायशुमारी (जनमत संग्रह) करवाने का आदेश दिया था। इस रायशुमारी के लिये चुनी गई सभी 12 ग्राम सभाओं (पल्ली) ने इस परियोजना को खारिज कर दिया था।
दरअसल, कालाहांडी ज़िले में नियमगिरि और इसके आसपास रहने वाले डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय की श्रद्धा इस पहाड़ के साथ जुड़ी है। डोंगरिया कोंध उन विरली जनजातियों में है, जिन्हें सबसे आदिम माना जाता है। इनकी आबादी अब तकरीबन 8,000 रह गई है। विकास की मुख्यधारा से दूर यह जनजाति ओडिशा के कालाहांडी और रायगढ़ के इलाके में नियमगिरि पहाड़ी पर बसी हुई है। वन उपज पर आश्रित इस जनजाति के लिये नियमगिरि ही सब कुछ है, जीने के संसाधन से लेकर सांस्कृतिक अनुष्ठान और मोक्ष की प्रार्थना तक। नियमगिरि उनके लिये इष्ट देवता हैं, वह उन्हें नियमगिरि राजा भी कहते हैं।
इसमें कोई संशय नहीं कि पिछले कई दशकों में विकास के लिये आदिवासियों को मुख्यधारा में शामिल करने के नाम पर उनके साथ छल किया गया है। उन्हें उनके जंगल-ज़मीन से विस्थापित कर उनकी प्रकृति और पर्यावरण का विनाश किया गया है। उनके जंगलों में मौजूद संसाधनों का फायदा चाहे किसी को भी मिला हो, आदिवासियों को नहीं मिला है। यही कारण है कि मुख्यधारा में शामिल करने के वादों को आदिवासी समाज एक फरेब के तौर पर देखता है। विकास ज़रूरी है, लेकिन यह स्थानीय समुदायों की सहभागिता से ही संभव है। इसके लिये ज़रूरी है कि आदिवासियों को विकास का लाभ प्राप्त करने वालों की जगह विकास के साझीदार के तौर पर देखा जाए।
अनुसूचित जनजातियों के समुदाय देश के लगभग 15 प्रतिशत क्षेत्र में रहते हैं। ये विभिन्न पारिस्थितिकीय और भू-जलवायु वाले पर्यावरण वाले क्षेत्र हैं, जिनमें मैदानी इलाकों के अलावा दुर्गम वन क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र भी शामिल हैं। जनजातीय कार्य मंत्रालय इन समुदायों के लिये जन धन, वन धन तथा गोवर्धन योजनाओं को मिलाकर देश के जनजातीय जिलों में वन धन विकास केंद्र बनाने की योजना चला रहा है।
- 14 अप्रैल, 2018 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में वन धन पायलट परियोजना की शुरुआत हुई थी।
- यह योजना केंद्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण विभाग के तौर पर जनजातीय कार्य मंत्रालय और राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण एजेंसी के रूप में ट्राइफेड के माध्यम से लागू की जा रही है।
- इस पहल का उद्देश्य जनजातीय समुदाय के वनोत्पाद एकत्रित करने वालों और कारीगरों के आजीविका आधारित विकास को बढ़ावा देना है।
- गौरतलब है कि गैर-लकड़ी वनोत्पाद देश के लगभग 5 करोड़ जनजातीय लोगों की आय और आजीविका का प्राथमिक स्रोत है।
- देश में अधिकतर जनजातीय ज़िले वन क्षेत्रों में हैं और जनजातीय समुदाय पारंपरिक प्रक्रियाओं से गैर-लकड़ी वनोत्पाद एकत्रित करने और उनके मूल्यवर्द्धन में पारंगत होते हैं।
- इस पहल के अंतर्गत कवर किये जाने वाले प्रमुख गौण वनोत्पादों की सूची में इमली, महुआ के फूल, महुआ के बीज, पहाड़ी झाड़ू, चिरौंजी, शहद, साल के बीज, साल की पत्तियाँ, बाँस, आम (अमचूर), आँवला (चूरन/कैंडी), तेज़पात, इलायची, काली मिर्च, हल्दी, सौंठ, दालचीनी, आदि शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला वन अधिकार अधिनियम, 2006 के खिलाफ दायर याचिका के पक्ष में आया है। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल को अवैध रूप से जंगलों में रहने वालों को बेदखल करने का आदेश दिया है। जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा एकत्रित दिसंबर 2018 तक के आँकड़ों के अनुसार जनजातीय व वनवासियों द्वारा दाखिल 42.19 लाख दावों में से केवल 18.89 लाख ही स्वीकार किये गए थे।
स्रोतः The Hindu, The Indian Express और PIB से मिली जानकारी पर आधारित।
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3a06c215026d7a9ab24306c5fdd031068835197f | web | कश्मीर के विवादित इलाके गिलगित-बाल्टिस्तान को अब पाकिस्तान अपना पांचवां प्रांत बनाने जा रहा है. पाकिस्तान के कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान मामलों के केंद्रीय मंत्री अली आमिन गंदापुर ने ये ऐलान किया है. केंद्रीय मंत्री अली आमिन ने कहा है कि इमरान खान जल्द ही कश्मीर इलाके का दौरा करेंगे और इस संबंध में औपचारिक ऐलान करेंगे. पाकिस्तान सरकार के इस कदम को लेकर हलचल तेज हो गई है और इस कदम के तमाम मायने निकाले जा रहे हैं.
गिलगित-बाल्टिस्तान के पत्रकारों के एक प्रतिनिधि दल से बातचीत में केंद्रीय मंत्री ने कहा, सभी संबंधित पक्षों से बातचीत करने के बाद केंद्र सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों को संवैधानिक अधिकार देने का फैसला किया है. हमारी सरकार ने यहां के लोगों से जो वादा किया है, वो उसे पूरा कर रही है.
ऊपरी तौर पर, भले ही पाकिस्तान की सरकार इस प्रक्रिया को पूरा करते नजर आ रही है लेकिन पर्दे के पीछे पाकिस्तानी सेना इस बदलाव के लिए दबाव डाल रही है और ये बात तब खुलकर और जाहिर हो गई जब पाकिस्तानी मीडिया में रिपोर्ट छपी कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने विपक्ष के अन्य नेताओं के साथ डिनर पर मुलाकात की. इस मुलाकात का मकसद गिलगित-बाल्टिस्तान में आगामी चुनाव और बदलाव की प्रक्रिया को लेकर चर्चा करना था. हालांकि, कुछ पाकिस्तानी नेता ही इस मुलाकात को लेकर विरोध कर रहे हैं. विपक्षी दल के कुछ नेता इसे देश की राजनीति में सैन्य हस्तक्षेप करार दे रहे हैं.
विपक्षी दल की नेता और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरयम नवाज ने सेना और राजनेताओं के बीच हुई इस मुलाकात की वैधता को लेकर सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा, मुझे डिनर के बारे में नहीं पता है लेकिन मुझे ये जरूर पता है कि ये सिर्फ डिनर नहीं था बल्कि बैठक थी. जहां तक मैं समझ रही हूं ये बैठक गिलगित-बाल्टिस्तान पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी जोकि पूरी तरह से एक राजनीतिक मुद्दा है. ऐसे फैसले तो संसद में लिए जाने चाहिए, ना कि सेना के हेडक्वॉर्टर में.
मरियम ने कहा, राजनीतिक दलों के नेताओं को ना तो इस तरह की बैठकों के लिए बुलाया जाना चाहिए और ना ही उन्हें जाना चाहिए. जो भी उन मुद्दों पर चर्चा करना चाहता है, उसे संसद आना चाहिए. मरियम की आलोचना के बाद पाकिस्तान में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है.
गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान में लंबे वक्त से नजरअंदाज किया जाता रहा है. गिलगित-बाल्टिस्तान के दर्जे को लेकर अस्पष्टता की वजह से स्थानीय अपने मूल अधिकारों से भी वंचित रहे हैं. जब 1947 में कश्मीर विवाद शुरू हुआ तो गिलगित-बाल्टिस्तान को कश्मीर का ही हिस्सा माना जाता था लेकिन 1970 में पाकिस्तान की सरकार ने इसे कश्मीर इलाके से अलग करके एक अलग प्रशासनिक इकाई बनाने का फैसला किया. इस प्रशासनिक इकाई पर पाकिस्तान की सरकार का सीधा नियंत्रण था. उसी वक्त से क्षेत्र के लोग हाशिए पर आना शुरू हो गए. पाकिस्तान की सरकार हमेशा से गिलगित-बाल्टिस्तान पर अपना नियंत्रण मजबूत करना चाहती थी हालांकि, पहले सेना अनिच्छुक थी.
एक स्थानीय पत्रकार इमान शाह ने कहा, गिलगित-बाल्टिस्तान में हम आज जो भी प्रशासनिक और कानूनी बदलाव देखते हैं, वे सारे फैसले इस्लामाबाद में किए गए और हम पर थोप दिए गए. शाह ने कहा कि यहां की स्थानीय पार्टियों को बैन कर दिया गया और पाकिस्तान आधारित पार्टियां ही अब क्षेत्र में बची हैं. पाकिस्तान की सरकार ने बलवरिस्तान नेशनल फ्रंट को बैन किया और जो कोई भी स्थानीय लोगों के लिए काम कर रहा था, उसे विदेशी एजेंट घोषित कर दिया. इस रणनीति से किसी भी विरोधी को शांत किया जा सकता है.
स्थानीय पॉलिटिकल ऐक्टिविस्ट बाबा जान को गिलगित-बाल्टिस्तान के एक शख्स और उसके बेटे की मौत को लेकर प्रदर्शन करने पर पाकिस्तान के आतंक-विरोधी कानून के तहत जेल भेज दिया गया था. बाप-बेटे लैंडस्लाइड के बाद गांव तबाह होने के बाद मुआवजे की मांग कर रहे थे और कथित तौर पर पुलिस ने दोनों को गोली मार दी थी.
पाकिस्तान की सरकार गिलगित-बाल्टिस्तान की राजनीति को ही नहीं सख्ती से नियंत्रित नहीं कर रही है बल्कि कश्मीरी राजनीतिक दलों को भी इस इलाके में प्रतिबंधित कर रखा है. शाह कहते हैं, गिलगित-बाल्टिस्तान की डेमोग्राफी बदलने के लिए सरकार बाहर से यहां लोगों को बसा रही है. पश्तूनों को यहां बसाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इस्लाम के सुन्नी संप्रदाय के लोगों को भी यहां भेजा जा रहा है.
हालांकि, कृत्रिम रूप से इलाके की जनसांख्यिकी बदलने की वजह से इलाके में सांप्रदायिक और नस्लीय हिंसा की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं. पिछले कुछ सालों में इस इलाके में शिया मुस्लिमों की हत्याएं बढ़ीं हैं. कई लोगों को ये शक है कि इन अपराधों में सरकार की भी भूमिका है.
गिलगित-बाल्टिस्तान के निर्वासित ऐक्टिविस्ट सेंग हसनान सेरिंग ने बताया, 70 के दशक में जब पहली बार शिया-सुन्नी के बीच तनाव हुआ था तो उसमें पाकिस्तान की सरकार का ही हाथ था. ये वही वक्त था जब कराकोरम हाईवे बनाया जा रहा था जो पाकिस्तान और चीन को जोड़ता है. सरकार ने लोगों के बीच फूट डालने की कोशिश की ताकि वह सुरक्षा के नाम पर यहां कदम आगे बढ़ा सके. एक ऑनलाइन वीडियो इंटरव्यू में सेंग हसनान सेरिंग बताते हैं कि पाकिस्तान के तानाशाह जनरल जिया उल-हक ने भी 80 के दशक में शिया विरोधी भावनाएं भड़काईं क्योंकि उस वक्त की सैन्य सरकार हाईवे के पास से कुछ गांवों को हटाना चाहती थी.
वह कहते हैं, इन गांवों में ज्यादातर शिया बसे हुए थे लेकिन वे यहां से जाने के लिए तैयार नहीं थे इसलिए सुन्नी चरमपंथियों ने आकर उन पर हमला कर दिया और गांवों में लूट-पाट की. उसके बाद से शिया-सुन्नी के बीच तनाव बढ़ता ही गया. साल 2012 में 20 शियाओं को लेकर जा रही एक बस पर सुन्नी कट्टरपंथियों ने हमला कर दिया था. सभी शियाओं की पहचान करने के बाद सुन्नी कट्टरपंथियों ने गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया.
हालांकि, स्थानीय इंटेलिजेंस अधिकारी इन घटनाओं को दबाने की कोशिश करते हैं ताकि चीन परेशान ना हो. चीन ने इस इलाके में भारी-भरकम निवेश किया है. इस इलाके में तैनात एक सैन्य अधिकारी कहते हैं, शिया-सुन्नी के बीच तनाव अब अतीत की बात है. अब ये इलाका ज्यादा शांतिपूर्ण हो गया है. हमें पता है कि यहां शिया-सुन्नी के बीच कुछ मतभेद हैं लेकिन हम उनसे निपटने की कोशिश कर रहे हैं.
कुछ समय पहले, चीन गिलगित-बाल्टिस्तान में सिर्फ खदानों और यातायात के ढांचे का विकास में निवेश तक सीमित था लेकिन अब चीन के कदम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) जिसे कई विश्लेषक पाकिस्तान के लिए कर्ज का जाल मान रहे हैं, उसका अधिकतर हिस्सा गिलगित-बाल्टिस्तान से ही होकर गुजरता है. इसीलिए कई लोगों का मानना है कि चीन अपने निवेश की सुरक्षा के लिए क्षेत्र को स्थिर करना चाहता है और इसके लिए वह पाकिस्तान के साथ काम कर रहा है.
पाकिस्तानी स्कॉलर डॉ. आयशा सिद्दीकी कहती हैं, सीपीईसी का पश्चिमी हिस्सा गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है और चीन पाकिस्तान को सलाह दे रहा है कि वह यहां मजबूती से कदम आगे बढ़ाएं और कश्मीर संघर्ष की यथास्थिति को स्वीकार कर ले. चीन सीपीईसी के तहत आने वाले सभी इलाकों को सुरक्षित करना चाहता है ताकि उसके किसी भी प्रोजेक्ट में कोई बाधा ना आए.
डॉ. सिद्दीकी का मानना है कि पाकिस्तानी सेना अब कश्मीर मुद्दे का सैन्य तरीके से समाधान नहीं करने में सक्षम नहीं है जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान भी शामिल है. वह कहती हैं, अगर पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांत बना लेता है तो फिर वो भारत के कश्मीर को अपने नियंत्रण में लेने और उसका दर्जा बदलने को लेकर विरोध करने की स्थिति में भी नहीं रह जाएगा. यही वजह रही है कि पाकिस्तान की सेना गिलगित-बाल्टिस्तान को पूरी तरह से पाकिस्तान के सरकार में नियंत्रण में लाने का विरोध करती रही. हालांकि, अब सीपीईसी की बागडोर चीन ने पाकिस्तान की सेना को ही सौंपी है और कश्मीर पर भारत के कदम के बाद उसके पास बहुत विकल्प रह नहीं गए हैं.
(ताहा सिद्दीकी की रिपोर्ट)
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4756dc9d1c63f4a7bf954690c4be4410700de2e85aec05dde3a4643c21a4f083 | pdf | इन दो महीनो मे तेलगाना की यात्रा मे देहात-देहात की जो हवा देखी, उससे हमारे हृदय मे बड़ी आशा निर्माण होती है। हम समझते है कि लोगो का मन इस बात के लिए तैयार है कि जहाँ तक भूमि का ताल्लुक है, शान्तिमय क्रान्ति हो सकती है ।
शान्तिवादी और क्रान्तिवादी
जो लोग शान्ति की बात करते थे, और कोई तो ग्राज भी करते है, वे समाज को बदलने में डरते है । वे कचूल करते है कि कुछ फर्क तो होना ही चाहिए, लेकिन वह ग्राहिस्ता-आहिस्ता हो । इसलिए वे शान्ति का नाम तो लेते है, लेकिन क्रान्ति का नहीं। इससे उल्टे कुछ लोग चाहते है कि समाज मे जल्द-सेजल्ट बदल हो। इस तरह जो त्वरित बदल चाहते हैं, वे 'क्रान्तिवादी' कहलाते है। अभी तक क्रान्तिवादी शान्ति का नाम न लेते थे । यह नहीं कि शान्ति से कोई बात बने, तो वे करना नहीं चाहते थे, लेकिन समाज-रचना पूरी तरह बदलने का काम शान्ति से हो सकेगा, ऐसा विश्वास उन्हे न था और शायद
भी नहीं है। इसीलिए वे शान्तिमय तरीके का उपयोग करना पड़े, तो उसे भी करने की गुजाइश अपने मन में रखते थे। इस तरह "शान्तिवाढी" और "क्रान्तिवादी" ऐसे दो परस्परविरोधी पक्ष बन गये है। लेकिन हमे जो भारतीय -सस्कृति की तालीम मिली और जिसकी पूर्णता गाधी की तालीम से होती है, उसमे क्रान्ति र शान्ति, दोनो का सयोग हो सकता है। इन दो महीनो मे हमने जो दृश्य और वातावरण देखा, उससे हम इस नतीजे पर आये है कि तेलगाना को देहात देहात की जनता शान्तिमय क्रान्ति के लिए तैयार हो गयी है । यह हिन्दुस्तान और हिंसा के लिए बड़ी ही ग्राशा की चीज है । यह तो कहना चाहता था और कहता भी था कि इसमें सारी दुनिया के लिए आशा भरी है, लेकिन आज वह कहने मे सकोच मालूम होता है। देहात के लोग कितने उत्साह
छोटी हिंसा का मुकावला कैसे हो ?
से रोज शान्तिमय क्रान्ति का सन्देश मुनते हैं, फिर भी जो हवा तैयार हो रही है, उसमे इतनी सामर्थ्य नहीं कि उसके परिणामस्वरूप शहर की हवा भी हम बदल दें । यह बात मैंने इन दिनों बार बार दुहरायी है।
छोटी हिंसा मे श्रद्धा
शहरों में दूसरी ही हवा चल रही है। अभी तो भाषावार प्रान्तरचना का एक निमित्त बन गया, किन्तु हम समझते है कि यह तो केवल बाहरी चीज है, जिसके कारण अन्दर की मलिनता बाहर प्रकट हो रही है । हिन्दुस्तान मे तरह तरह के असतोप हैं और उनके कारण भी पर्याप्त हैं, यह हम जानते है । लेकिन आज दुनिया और भारत की जो स्थिति है, उसे देखते हुए हम नहीं मानते कि उसके हल के लिए अशान्तिमय तरीके का उपयोग किया जा सके । मेरी तो ग्रान्तरिक निष्ठा कहती है कि दुनिया के कोई भी मसले शान्तिमय तरीके मे न इल हुए है, न होते है और न होनेवाले ही हैं, किन्तु अभी वह श्रद्धा में आपके सामने न रखूँगा । पुराने जमाने मे औौर भिन्न भिन्न परिस्थिति में प्रशान्तिमय त्तरीके का भी उपयोग हुआ है। उसके बारे मे मुझे कुछ नहीं कहना है । मैंने इतना ही कहा है कि दुनिया और हिन्दुस्तान की आज की हालत में अशान्तिम तरीके की कल्पना करना मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं है । इस बात का जितना चिन्तन शहर में होना चाहिए, उतना नहीं हो रहा है। दुनिया में बड़ी बड़ी हिंसाएँ हो रही है, उनके साथ हिन्दुस्तान टिक नहीं सकता । इसीलिए यहाँ उन बड़ी डी हिंसाग्रो के लिए कुछ घृणा और रुचि है, फिर भी छोटी-छोटी हिंमा शानद कुछ काम कर ले, ऐसा कुछ लोगों को भ्रम ग्राज भी बना हुआ है ।
हिंसा के पडितो की अक्ल कुठित
मे नहीं मानता कि हिन्दुस्तान मे ऐसे लोग हैं, जो गभीरतापूर्वक कहते है कि यहाँ के और दुनिया के बड़े-बड़े मसले हिंसा और शस्त्र के बल पर हल हो सकते हैं और होगे। क्योंकि यहाँ के शिक्षितों के दिमाग पर जिन गुरुयों का अमर है, वे पाश्चात्य गुरु भी ग्राज शस्त्रास्त्रों पर श्रद्धा नहीं रखते। इन दिनों रूम बार-बार दुहरा रहा है कि अगर सामनेवाले तैयार हो, तो हम
शस्त्रास्त्र कम करने और आदि महास्त्र छोड़ने को राजी हैं। दुःख को बात है कि सामनेवाले उस पर विश्वास रखने के लिए तैयार नहीं हैं। हम नहीं कहते कि जैसे सत्पुरुषों के वचन पर पूर्ण विश्वास रखा जाता है, वैसा रूस पर भी रखें। लेकिन परिस्थिति खयाल मे रखकर यह क्यो न हो कि जब वे एक बात सामने लाते हैं, तो उस पर विश्वास रखकर आगे बढे । कम-से-कम एक पक्ष तो इस तरह की बात कहने के लिए राजी हुआ, यह भी प्रगति का एक लक्षण के है । धीरे-धीरे सामनेवाले पक्ष भी सुनने के लिए तैयार हो जायेंगे। हमारी श्रद्धा है कि यह होते-होते दुनिया के सभी लोग इस नतीजे पर या जायेगे कि कुछन कुछ इस पर नियन्त्रण करना चाहिए ।
कहा जाता है कि रूस के पास ऐसे शस्त्र तैयार हैं, जो आधे घंटे मे हानि पहुँचा सकते हैं। दूसरे भी उतनी ही जल्दी जवाब देने की तैयारी कर रहे है । इस तरह धीरे-धीरे ऐसे तरीके ढूँढने मे प्रगति हो जायगी कि चन्द मिनटों मे ही हमला हो । इस तरह जितनी ही- जितनी प्रगति होगी, उतना ही उतना हिसा के लिए पूर्ण मौका मिलेगा । इसलिए यद्यपि यह खेदजनक बात है, तो भी हमे इसका कोई डर मालूम नहीं होता । कोई रास्ता न सूझने के कारण ही यह सन हो रहा है। अक्ल स्थगित और कुण्ठित हो गयी है । जहाँ हिंसा के महान् पण्डितो की मति कुण्ठित है, वहाँ हिन्दुस्तान की स्थिति डॉवाडोल हो, तो आश्चर्य की बात नहीं। यही कारण है कि यहाँ के कम्युनिस्ट भी विश्वशान्ति की बात कहने लगे हैं ।
हमारे देश के कई शिक्षितों को यह भ्रम है कि छोटी छोटी हिंसा कारगर नहीं होती। इसमे हिंसा का टोप नहीं, उसके छोटेपन का दोष है । इसीलिए बडे-बडे औजार बनाये जाते हैं। किन्तु हिंसा के लिए शायद छोटीछोटी हिंसा भी कारगर हो । वे समझते है कि मोटरो को आग लगाने, रेल उखाड़ने या स्टेशन जलाने से हमारी आवाज बुलद होगी। किन्तु इस पर जैसे-जैसे हम सोचते हैं, हमारा निश्चय होता है कि यह १९४२ के आन्दोलन का ही प्रभाव है । अहिंसा के उत्तम आन्दोलन मे जो गलत बातें हुई, उसके परिणामस्वरूप यह विपरीत रूपाया है। कुछ लोग मानते हैं कि हिंसा से स्वराज्य मिला ।
छोटी हिंसा का मुनाबला कैसे हो ?
बहुत-से लोग यह मानते हैं कि हिंसा और हिंसा मिली, इसलिए स्वरान मिला और कुछ लोग यह भी मानते हैं कि हिंसा से ही अग्रेजों को हिन्दुस्तान छोडना पड़ा । इस तरह जब कोई गलत बात हो जाती है, तो उसका कितना बुग परि गाम होता है, इसका दृश्य हमें देखने को मिलता है ।
विश्वयुद्ध का भय नहीं
हम यह नहीं कहना चाहते कि जो चर्चा ग्राज शहरों में हो रही है, उसके पीछे कोई चीज नहीं है। प्रान्त रचना म भाषा का विचार काफी महत्व रखता है, यह हम भी कबूल करते हैं । जनता की भाषा में जनता का कारोबार चले, यह बुनियादी बात है। किन्तु इसकी चर्चा शान्ति से भी हो सकती है। यह ऐसा विचार नहीं कि दूसरा कुछ करने से लाभ होगा । करीब-करीब यह मसला हल हो रहा है और बहुत कुछ हल हो भी गया है। यत्रपि बडी हिंसा की श्रद्धा डगमगा रहो है, तो भी छोटी हिंसा की श्रद्धा बनी है और वह दृढ हो रही है। यह हिन्दुस्तान
लिए बहुत बुरा है, इससे हिन्दुस्तान की प्रगति हर्गिज नहीं हो मक्ती । इसीलिए सेवाग्राम मे 'विश्वशान्ति परिषद् के समय हमने सटेशा भेजा था कि मुझे "वर्ल्ड वार" का इतना डर नहीं, जितना छोटी-छोटी लडाई या और झगडा का है। इसलिए सत्र पक्षों के विचारको के लिए यह सोचने का विषय है कि हमारे मस्तिष्क मे से छोटी हिंसा की श्रद्धा कैसे मिटेगी ।
शहरों पर असर डाले
इसीलिए हम चाहते है कि देहातों मे भूदान के परिणामस्वरूप जो हवा तैयार हो रही है, उसे हम शहरों में ले जायँ । शहरो मे इस विचार पर चर्चा चले । शहर में काफी विचारशील समाज है, वह इन बातों पर ध्यान देने के लिए उत्सुक है । इसलिए भुदान यज्ञ और सर्वोदय की हवा जितनी जोर से शहरों में ल जा सकेंगे, उतनी ही ग्रहिसा की श्रद्धा वढेगी । हम जानते है कि शान्तिमय क्रान्ति करनेवाले देहात के लोग है और वे ही क्रान्ति करेंगे। इसके लिए हम सभी पक्षों के कार्यकर्ताओं से सहयोग चाहते है। विभिन्न पक्षों के बीच हमे काम करना चाहिए । यह काम इस ढंग से करेंगे, तो उनके बीच का भेदभाव भी कम होगा ।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब कोई भी मसला खडा होता है, तत्र विभिन्न पार्टियों चुनाव मे उससे लाभ उठाने की सोचती हैं । चुनाव जिन्दगी की ऐसी घटना है, जिसके इर्दगिर्द राजनैतिक पुरुषों का सारा जीवन सड़ा है । इसलिए हमे आनेवाले चुनाव में इससे लाभ न लेकर इससे होनेवाली हानि मिटाने की ही योजना करनी चाहिए । हम यह सत्र राजनैतिक चिन्तन करना होगा और सत्र पक्षों के बीच रहकर सबकी मार खानी होगी । पक्षातीत भी कोई राजनीति हो सकती है, जिसे 'लोकनीति' कहते है, इसका भान शहरो को कराना होगा । हमे उन्हें समझाना होगा कि एक पक्ष की कमजोरी के कारण दूसरे पक्षवाले समर्थ साबित होते है, किन्तु इन दोनो पक्षो से भी उन्नत कोई पक्ष हो सकता है। क्योंकि दोनों में से एक सत्ताधारी होता है, तो दूसरा सत्ताभिलाषी । से याने दोनो सत्ता चाहते है। इस हालत में किसी एक पक्ष की शुद्धि दूसरे के दोष चुनने से नहीं हो सकती । शुद्धि तो तब होगी, जब कि दोनो के ऊपर कोई पक्षातीत समाज रहे । हमे सबसे परे और सबके बीच रहकर सीधी बात लोगों के सामने रखनी होगी। अगर इतना पूरक काम शहर में जारी रहे, तो हमारा विश्वास है कि चन्द दिनो मे हिन्दुस्तान की सारी हवा बदल जायगी ।
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छोटी हिसा कैसे मिटे ?
इतने दिनो से हम देख रहे हैं कि देहात के लोग बडे प्रेम और इजन से पनी जमीन देते हैं, तरी जमीन भी दे देते है । यही बता रहा है कि लोगो का मानस कितना तैयार हुआ है । अब हमे इसी पुण्यशक्ति को प्रबल बनाना होगा । इसे हम 'जनशक्ति' भी कट सकते है, लेकिन यह पुण्यशक्ति है । इसे बढाकर उसका असर शहर पर ले जाना चाहिए । हमे उम्मीद है कि यह काम हिन्दुस्तान मे किया जा सकता है ।
यह भाषावाली बात तो चन्द दिनों मे साफ हो जायगी । हमे उसकी चिन्ता नहीं। हमारे सामने यही सवाल है कि लोगों के हृदय में जो छोटी हिंसा पर श्रद्धा बैठी है, वह कैसे खतम हो ? इसका प्रारम्भ शिक्षक और माता-पिता को ही करना चाहिए । बच्चे को पीटेंगे तो उस पर अच्छा असर होगा, यह भ्रम उन्हें मन से
निकाल देना चाहिए । भर से कोई भी सद्गुण पैदा नहीं होता । निर्भयता के साथ बुराइयाँ चलेगी, लेकिन भीरुता के साथ कोई गुग्ण हों, तो भी वे कारगर न होंगे। इसलिए माता-पिता और गुरु को नया नीतिशास्त्र मीना और निर्माण करना चाहिए ।
जो बात कानून के भर से की जाती है, वह जनमत से लोग करें, ऐसी स्थिति निर्माण करनी चाहिए । चोरी कानून से बन्द नहीं, वह तो इसीलिए कि उसके खिलाफ जनमत है। ग्राज कानून के बावजूद भी जो चोरी होती है, उसके लिए ग्राज की समाज रचना ही कारण है । यदि समाज रचना सुधरे, तो चोरियॉ करीब-करीब मिट ही जायें, क्योंकि उसके खिलाफ पूर्ण लोक्त तैयार है। इसी तरह सग्रह के खिलाफ लोकमत तैयार होना चाहिए । ऐना करेंगे, तो उत्तरोत्तर कानून की आवश्यकता कम होती चली जायगी और जो भी कानून रहेगा, वह सफल होगा। ग्राज की हालत बिलकुल उल्टी है। ग्राज हर बात में कानून की आवश्यकता महसूम होती है और वह सरगर होने के कले कमजोर ही साबित होता है। होना तो यह चाहिए कि कानून की यात्र श्यकता दिन-च-दिन कम होती जाय और जो भी वानून बने, वह लोकमन के अनुमार हो । समाज मे यही अवस्था लानी होगी ।
मेरी कोशिश है कि हिन्दुस्तान में ऐसा समाज निर्माण हो, जो पक्षातीत लोकनीति द्वारा समाज को ठीक रास्ते पर रखने के लिए काया, वाचा, मनमा लगा रहे । वद्द समाज-व्यवहार और समाज के बहुत से काया के लिए उदासीन नहीं, बल्कि दक्ष एव सदा सावधान रहेगा और हर बात को तत्थ बुद्धि से ढेलेगा । लोक्नीति का एक-एक विचार पक्का करने में हम अपना सारा बुद्धिवल सर्च रेगे । आज जो सशय की स्थिति है, वह देश के लिए बडी ही सतरनाक है । अगर इससे भारत को मुक्त करना हो, तो प्रतिक्षण सोचना और काम पूरा चरना होगा ।
प्रेम से धूप भी "चाँदनी "
हमे बड़ी खुशी है कि आप लोग बडे प्रेम से यहाॅ और इस बात से खुशी हो रही है कि इतनी कड़ी धूप मे बैठे है । हमारे हिन्दुस्तान की यह धूप बडी पाक धूप है। इससे हमारे खेतो मे फसल होती है । यद्यपि खेती के लिए बारिश की बहुत जरूरत है, फिर भी केवल बारिश से खेती नहीं होती । जब धूप से जमीन खूत्र तप जाती और उसके बाद बारिश होती है, तभी फसल ाती है ।
बाहर से धूप, अन्दर से पानी
ईश्वर की दुनिया की खूबी है कि इतनी कडी धूप मे भी बडे-बडे पेड चिलकुल हरे-भरे है । ग्राप देख ही रहे हैं कि इन दिनों भी ग्राम के पेड़ कितने हरे भरे है । वे चौबीसों घंटे खुली हवा में रहते है। हिन्दुस्तान की इतनी कड़ी गर्मी मे भी ये पेड इसीलिए हरे-भरे दीखते है कि उनकी जड़े जमीन के अन्दर गहराई मे गयी है और वहाँ उन्हें पानी मिलता है। उन्हे अन्दर से पानी औौर ऊपर से धूप नलत है, इसीलिए वे हरे-भरे दीखते और इसीलिए आपको सुन्दर मीठे-मीठे आम खाने को मिलते है। अगर ऊपर से खून धूप मिले और नीचे से पानी न मिला, तो ये जल जायेंगे । इसी तरह अगर नीचे जमीन में पानी खूच हो और ऊपर बिलकुल धूप न हो - सूर्यनारायण ही न हो - तो सारे पेड सड जायेंगे । इसी तरह हमारा जीवन हरा-भरा होने के लिए दो बातो की आवश्यकता हैः ( १ ) जिस तरह पेड धूप मे तपते है, वैसे ही बाहर से हमे खूब तपना चाहिए और ( २ ) जैसे पेडो के नीचे पानी होता है, वैसे ही हमारा हृदय प्रेम और भक्ति से खूब भरा होना चाहिए । इस तरह जन हृदय के अन्दर भक्ति का स्रोत बहता और बाहर से तपश्चर्या होती है, तभी जिन्दगी हरी-भरी होगी ।
प्रेम की ठंढक और मेहनत की गर्मी
भूदान यज्ञ मे ये दोनो बातें है । हम लोगों को समझाते है कि जमीन भगवान् की देन है, इसलिए सबके लिए है । सबको जमीन दोगे, तो हृदय मे खूब प्रेम
प्रेम से धूप मी "चाँदनी"
पैदा होगा और अपना काम बनेगा । यह जनम्ती से नहीं, बल्कि प्रेम और भक्ति से करने की बात है। हृदय में प्रेम ग्रौर मक्ति हो, तो सूत्र भूदान होगा। जिन्हे जमीन मिलेगी, उन्हें भी खूब तप करना चाहिए, आलस न करना चाहिए । अपने घरवालों के साथ काम करना चाहिए । दान दने म प्रेम की जरुरत रहेगी और दान का उपयोग करने में तप की । इस तरह देनेवाली का प्रेम योर लेनेचालों का तप, टोनो प्रक्ट होगे, तभी पेड़ो के समान समाज भी हरा-भग होगा ।
मनुष्य-जीवन के लिए प्रेम योर मेहनत, दोनो चीजें बहुत जरूरी है । नेहनत या श्रम को संस्कृत में 'तप' करते हैं, क्योंकि उसने ताप होता है। मेहनन से शरीर की गर्मी बढ़ती और तब खाना हजम होता है। इसलिए जाना जन करने और पैदावार बढ़ाने के लिए मेहनत करनी चाहिए। प्रेम की उटक और नेहनत की गर्मी, दोनों इकट्ठा होते हैं, तो फिर जीवन में ग्रानन्द ही ग्रानन्द रहता है । फिर तो सूरज की यह चूप भी टटी होकर चॉटनी बन जायगी । भाप इतनी धूप में प्रेम से बैठे है, तो क्या आपको गमी मालूम होती है ? जिन्हें लगता है कि यह चॉदनी है, वे हाथ उठायें । ( सारे हाथ ऊपर टके ) आप लोग इस चूप को चॉटनी कहते हैं, क्याकि ग्राम प्रेम मे यहाँ बेटे हैं। जिन्हें जबरन यहाँ लाकर बिठाया जान, उन्हें यह वृप मालूम होगी। यान जो धूप में बैठे है, उनके पास है, राम औौर छाना में बैठनेवालो के पास है, आराम । जो मेहनत करते हैं, उनके पास राम होता है। राम बेहतर है
म लोग कहते हैं कि बावा पाँच साल से सूत्र घूम रहा है, लेकिन बाग मे इन पाँच सालों में कोई तकलीफ नहीं हुई । जन भगवान रामचन्द्र १४ माल घमे, तो हमारा क्या ठिकाना ? हम घूमते हैं, तो लोग प्रेम से जमीन देते हैं और घर गरीबो को मिलती है। अभी ग्राप लोगो ने प्रम से धूप को चॉडनी। नहाँ प्रेम होता है, वहाँ धूप भी चाँदनी बन जाती है । जहर 'मृत न जाना । और दुख 'सुख' बन जाता है।
माधवरावपली ( महत्र्वनगर )
भूदान यज्ञ से कुल-धर्म की दीक्षा
स्थितप्रज्ञ के लक्षणों में हमने सुना कि हम अपनी मामे सबको देखें । जब हम आत्मा मे समग्र विश्व का दर्शन करते है, तब मानव-बुद्धि स्थिर होती है है यह बात हिन्दुस्तान में कितने ही लोगो ने कितनी ही बार कही है। परिणाम यह है कि इस विचार को सब लोग कबूल करते हैं। फिर भी वे समझते है कि यह चीज हमारे जीवन के लिए कम-से-कम आज तो काम की नहीं है, बहुत बड़ी ऊँची
है। वास्तव में यही एक चीज है, जिसके कारण हमारा जीवन आगे नहीं चढ़ रहा है । हम ऐसी सभी अच्छी चीजो को ऊँचे ताक पर रख लेते और कहते है कि वह हमारे काम की नहीं है । परिणाम यह होता है कि की चीज का भी लोगो को भान नहीं होता।
परस्पर प्यार की आवश्यकता
देखने की बात झट कबूल कर प्रेम करने को कहा जाता है, तो कहते है कि भाई, हमसे यह नहीं बनेगा । यह समझाने पर कि एक-दूसरे के टोप ब्यान मे न ले, कहते है कि हमसे यह नहीं बनेगा। इसके अतिरिक्त कुछ लोग इसे पडोसी-पडोसी का एक-दूसरे पर प्रेम करने की बात समझते है, तो कुछ लोग इसे बहुत ऊँची बात समझते है । निस्सन्देह जो ऊँचा तत्त्व होता है, वह हमारी आज की योग्यता से परे है। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि उन तत्त्वो का जउपयोग ही नहीं है। आज के जीवन में भी उनका उपयोग होता है और क्ल के जीवन मे तो है ही। कम से कम इतना तो हो ही सकता है कि हम अपनी आत्मा मे उन लोगो की आत्मा देखे, जो हमारे काम मे लगे हैं। हम इससे भी और छोटी बात कह सकते है, यानत्मा मे चाहे दूसरे को न देखे, लेकिन कम से कम एक-दूसरे पर प्यार रखना तो सीखें । अगर यह छोटी-सी चीज हम समझ लेगे, तो भूदान यज्ञ का काम बिलकुल आसान हो जायगा ।
भृदान यज्ञ से कुल- धर्म की दीक्षा मेरा कुल निरीक्षण यही रहा है कि ग्रापसी प्रेम के प्रभाव में ही हमारी शीघ्र प्रगति नहीं हो रही है। फिर भी इस हालत में हमें काम करना है, तो यही उपाय है कि हम इन तच्चो को बार बार दुहराये, इनका स्मरण, चिंतन तथा मनन करें और अपने पर ग्राविधिक काबू पाना मीलें । अपना विकासियम रखे और दूसरे को क्षमा करते चले जायॅ । ग्रगर हम क्षमा की दृष्टि से दूसरे की ओर देखें, तो कभी-न-कभी वह दर्शन होगा, जिसका जिक स्थितप्रज्ञ के लक्षण में याता है ।
कठिन कार्य के लिए ही हमारा जन्म
कल एक भाई ने सवाल पूछा कि 'ग्राप बहुत बड़े लोगो से जमीन लेते हैं, यह तो ठीक है, लेकिन बड़े आश्चर्य की बात है कि गाँव म जाते ही छोट छोटे लोग भी देने को राजी हो जाते है । वे ही पहले सामने या जाते है। तो, उनका दान लेने से क्रान्ति हो सकती है ? दस एकड़वाले से दो एनड ले लें, तो उसके पास ग्राठ ही एकड़ रह जायगी। इससे उसे भी तक्लीफ होगी और दो एड पानेवाले को भी कोई खास फायदा न होगा। इस तरह दो एकड़ मे क्या क्रान्ति होगी ?" हमने उसे समझाया कि बडे बडे लोगों से जो जमीन मिलेगी, उससे क्रान्ति तो होगी, पर वह छोटी क्रान्ति होगी। यह जो गरीब से दान मिलता है, उससे बड़ी भारी क्रान्ति होती है। यगर छोटे लोग अपनी मालकिनन फेंकने को राजी हो जायँ, तो स्वामित्व ही खतम हो जाता है। क्योंकि बडे लोगों का स्वामित्व छोटो ने ही टिका रखा है । ये छोटे मालिक अपनी मालकिरत छोड दें, तो माल कित ही खतम हो मस्ती है। क्योंकि उससे जो प्रेम-रसायन पैदा होगा, उसन मत्रके दिल पिघल जायेंगे । उमसे नैतिक ताक्त पैदा होगी योर एक नवी चीज बनेगी ।
कार्यकर्ताओं को यही जान में रखना है कि हम देश म एक नैतिक ताक्त ना रहे हे। फलाना काग्रेसवाला है ओर फलाना पी० एस० पी० वाला, उस त सोचते चले जायेंगे, तो बिलकुल निक्म्मे सानित होगे। फिर तो यह भी मोचा जायगा कि फलाना कार्यकर्ता ब्राह्मण है या ब्राह्मणेतर, तेलुगु है कि कन्नड, मुसलमान
है कि हिन्दू ? अगर हम इस तरह भेटदृष्टि से देखा करेंगे, तो भूटान-यज्ञ हमसे नहीं होगा। यह काम स्वामित्व के निरसन का काम है। इसलिए हमने कहा कि यह एक नैतिक कार्य है और इसलिए स्थितप्रज्ञ को हम तक्लीफ दे रहे है कि हम पर उसका कुछ आशीर्वाद हो, नहीं तो स्थितप्रज्ञ के ही लक्षण रोज क्यो बोलते ? अपना पुराना गीत "झंडा ऊँचा रहे हमारा" गा सकते थे। आखिर कौन-सा झडा ऊँचा रहेगा ? अभिमान, मत्सर और चमड का ? इसलिए वे सारे गीत हम नहीं गाते । यह नहीं कि उन गीतों में अच्छे भाव नहीं है, ग्रन्छे भाव जरूर हैं, लेकिन हम जो काम करने जा रहे हैं, उसका स्तर ही ऊँचा है । वह तो दुनिया का याज का प्रवाह बिलकुल ही बदल देने का काम है । निःसशय यह कठिन काम है, लेकिन हम कहना चाहते है कि यह काम अगर आसान होता, तो हमे दिलचस्पी ही न रहती । आसान काम को दुनिया के लोग कर ही रहे हैं। हमारा और कठिन काम करने के लिए ही है । यह मानव-जन्म है । इसकी भी कोई सार्थकता है। हमे सारा-का-सारा नैतिक स्तर ऊँचा उठाना है। कठिन है, इसीलिए तो दिलचस्पी है ।
नैतिक स्तर ऊपर उठाने का कार्य
कल महबूबनगर के कार्यकर्ताओ ने सकल्प किया कि इस जिले से छठा हिस्सा यानी दो लाख एकड जमीन हासिल करेगे । मान लीजिये कि कल सरकार कानून कर ले कि जमीन का छठा हिस्सा छीन लेना है और लोग गरीव हैं, इसलिए छीन लेते हैं, तो क्या इससे हमारा काम बनता है ? कुछ मूर्ख सोचते हैं कि सरकार से काम जल्दी होगा । पर यह ऐसा हो हुआ, जैसे कोई कहे कि मकान बनाने में कितना समय लगता है ? ग्राग लगायेगे, तो जल्दी हो जायगा । लेकिन आग लगाना और मकान बनाना एक बात नहीं । लोगो के हृदय की भावना बदलने और नैतिक स्तर ऊँचा उठाने का काम कानून से नहीं होता। जिसने इस काम को भूमि के बॅटवारे का काम माना, वे ही इसकी कानून के साथ तुलना करते हैं, पर इसकी तुलना कानून के साथ हो ही नहीं सकती। इसकी तुलना सतो के साथ हो सकती है। जिन्होने जनता का नैतिक स्तर ऊँचा उठाने की
भूटान-यज्ञ से कुल वर्म की दीक्षा
ठानी थी, लेकिन समाज-सुधार का, समाज के ऐहिक स्तर को ऊँचा उठाने का चाम नहीं जोडा था । उन्हीं के काम के साथ तुलना करो और फिर बतायो कि नाहक क्यों भूदान प्राप्त करते हो ?
इस पर ग्राप कह सकते हैं कि फिर गाँव गाँव जाइये, भजन करिये और कराइये, तो जनता का स्तर ऊपर उठेगा । हम पृछते हैं कि दुनिया का अहम् सवाल हाथ में लेकर जनता का नैतिक स्तर ऊपर उठाना ग्रासान है या कोई मामूली काम लेकर ? हमारा दावा है कि जनता का ग्रहम् सवाल हाथ में लेकर ही नैतिक स्तर ऊँचा उठाना आसान है। सिर्फ सान ही नहीं, उसमे सचमुच नैतिक स्तर ऊँचा उठता है। नहीं तो आभास हो जायगा कि कोई सत्पुरुष या गया, प्रेम से भजन कर लिया, दो मिनट के लिए हम वैकुठ मे पहुँच गये, काम, कोव, मोह, लोभ छूट गये, लेकिन उसके चले जाने पर काम, कोव, मोद्दादि फिर से जाग जायेंगे । सत्पुरुप की याद रह जायगी कि फलाने दिन वे ग्राये, लेकिन कुछ जीवन परिवर्तन नहीं होगा। अगर टस एकड मे मे दो एकड़ जमीन द डालते हैं, तो जिस घर से वह दान मिलेगा, उस घर के बाल-बच्चे उदार बन जायेंगे । वे जीवनभर अभिमानपूर्वक कहेंगे कि हमारे माता-पिता ने गरीबी म भी दो एकड जमीन का दान किया था । उससे कुल धर्म बढेगा । मनुष्य के जीवन को पावन करनेवाली चुल-धर्म से बेहतर कोई चीज नहीं होती ।
कुल-धर्म की दीक्षा
उपनिषद् में एक कहानी है । एक ब्राह्मण का लडका बारह साल तक गुरु के वर जाने की बात ही नहीं निकालता था । उन दिनो माता-पिता मोचते थे कि लडके को स्वाभाविक इन्छा होगी, तत्र भेजेगे । दूसरे लड़के ग्राश्रम चले गये । एक दिन उसके पिताजी ने उसे प्रेम से बुलाकर कहा कि ग्राज तक अपने कुल ជុំ नाममात्र का एक भी ब्राहारण नहीं बना है । निरक्षर, निरम्यास, यज्ञरशून्य कोई भी ब्राह्मण नहीं हुआ । हमारे कुल में नामवारी ब्रह्मभन्नु याने ब्राह्मण नहीं हुया : "न वै सौम्य स्मद्कुले नामाव सुरेव भवति ।" पिता को इसमे ज्यादा नहीं कहना पड़ा और वह उठा और गुरु के घर पढने चला गया। किसी बेटे मे
कहा जाय कि तेरा बाप लड़ाई में प्रहार सहकर मर गया, तो पचासों उपाय या ग्रन्थों से जो परिवर्तन न होगा, वह उस बात से होगा ।
मनुष्य के चरित्र को प्रेरणा देनेवाली सबसे बलवान् कोई चीज है, तो वह कुलधर्म है। लोगों को समझाया गया कि प्रेम से दे दो, तो पॉच लाख लोगों ने दान द दिया। इसका मतलब यह है कि उनके घर के कुल लोगों की तरफ से वह दान मिला है । पाँच लाख घरो मे उदारता का कुल धर्म बन गया । उन लोगो ने ने के लिए सर्वोत्तम विरासत दे दी । ही बताइये, इससे नैतिक स्तर ऊँचा उठना ग्रासान है या वैसे ही कोरा नैतिक उपदेश देने से ? यह तो साक्षात् अपने घर से लाग हुआ । पाँच लाख घरो मे कुल-धर्म जाग्रत हो गया। जितने परिवारों में जमीने वॅटेगी, उन परिवारों के बच्चे भी समझेंगे कि समाज ने हम पर प्रेम किया । हमारी कोई भी जमीन नहीं थी, समाज ने हमे प्रेम से जमीन दी । इसलिए हमे भी समाज को सेवा करनी चाहिए, ऐसी भावना उनके कुल धर्म में मिल गयी । इस तरह जिन्हे जमीन मिली, उनके लड़को की भी उन्नति हुई । अगर छीनकर जमीन दी जाती, तो ऐसा न होता । लेकिन प्रेम से दी गयी, इसलिए उन्हें प्रेम की दीक्षा मिली । साराश, जितने कुलो मे जमीन बॅटेगी और जितने कुलों की तरफ से वह दो जायगी, उतने सभी कुलो मे प्रेम-धर्म पहुँच जायगा ।
इससे कार्यकर्ताग्रो का भी कुलधर्म बढेगा । ग्राज हजारो कार्यकर्ता गाँव-गाँव रहे हैं । उनके बच्चे याद करेंगे कि जब सारी दुनिया लोभवश थी, उस हालत मे भी हमारे पिताजी गरीदों के लिए गॉव गॉव, घर-घर धूप मे घूमे। इस तरह जमीन दिलानेवाले के घर मे भी कुलधर्म जाग्रत हो जायगा ।
रूसियो ने भूदान की फिल्म ली
साराश, भूदान यज्ञ की तुलना करनी हो, तो उन सन्तो के कार्यों से करनी चाहिए, जिन्होने समाज के उत्थान के लिए काम किये थे। इस काम की तुलना रूस और चीन के छीन लेने के कार्यक्रम के साथ नहीं हो सकती। यह बिलकुल ही दूसरी वस्तु है। इसमें त्मिक उत्थान की बात है। इसलिए कार्यक्र्ता
छोटी नजर न रखे, जरा बडी नजर से देखे ।
भूदान यज्ञ से कुल धर्म की दीक्षा
भी के सामने एक घटना हो गयी । वह छोटी घटना नहीं है। ग्राउ तक इस आन्दोलन को देखने के लिए दुनियाभर के लोग ग्राये, लेकिन मी लोग नहीं थाये । परन्तु अभी-अभी रूम से एक भाई फिल्म लेने के लिए ये, दो दिन रहे और चले गये । जो स्स कानून के लिए प्रसिद्ध है, उस देश के लोग यहाँ ग्राये और यहाँ कुछ प्रेम से हो रहा है, ऐसी भावना से फिल्म ले जायँ, यह कोई छोटी घटना नहीं । अगर कानून या मारपीट से जमीन छीनी जाय, तो उसकी फिल्म लेने को कौन ग्रायेगा ? हिन्दुस्तान में यह एक काम ऐसा मे हो रहा है, जिसकी ओर दुनिया याशा से देख रही है ।
हमाग नम्र दावा है कि इस काम के कारण हिन्दुस्तान का सिर दुनिया म ऊँचा हुआ है। कार्यकर्ता और बाकी के सारे लोग इस काम की दिल मे इज्जन महसूम करें और प्रेम से इसम लगे । वे इसका फल यात्मशुद्धि मानें । इसमे कितनी प्रतिष्ठा मिली, हमारा नाम ज्यादा हुआ या दूसरे का ? ऐसी दृष्टि से इस आन्दोलन को देखेगे, तो कोई लाभ न होगा । इमसे चित्तशुद्धि होती है या नहीं, इसी दृष्टि से टेर्से और जिसने जितना काम किया, उतना हरिप्रसाद समझ कर त्वीकार करे । साथ ही जितना काम ग्राज नहीं बना, उतना क्ल बनेगा, ऐसी ग्राशा रसे, तो यह काम तीव्रगति से फैलेगा । ईश्वर चाहता है कि यह काम फैले ।
गुमडम ( महबूबनगर )
सर्वोत्तम धर्मः सर्वोदय
धर्म- विचार खूब फैले
हम बार-बार इस बात पर जोर देते रहते है कि हमारे काम के साथ-साथ विचार का जोरो से प्रचार हो । कोई भी आन्दोलन, जो सारे जीवन का ढाँचा बदलने की हिम्मत करता है, विचार की बुनियाद पर ही खड़ा हो सकता है । जितने स्थूल कार्य किये जायँ, चाहे वे भूदान यज्ञ ग्रान्दोलन जैसे हो या और कोई खादी ग्रामोद्योग ग्रादि, सभी विचार के प्रचार के लिए ही होने चाहिए। याने विचार समझे बिना कोई स्थूल कार्य किया जाय, तो उसमे से मुख्य वस्तु न निकलेगी । भले ही अच्छा काम होने पर उससे अच्छे परिणाम मिले । इसलिए बुनियादी विचार यही है कि धर्म - विचार खूत्र फैले और धर्म - विचार का साहित्य घर-घर पहुॅचे। वह जबानी और पुस्तक के रूप में लोगो के पास पहुँचाना चाहिए । 'धर्मग्रन्थ' की परिभाषा
लेकिन सवाल यह उठता है कि हम धर्म - साहित्य किसे कहे ? हम समझते हैं कि हमारे 'धर्म-साहित्य' शब्द से कुछ गलतफहमी हो सकती है। बहुत लोगो को लगता है कि हम किन्हीं धर्मग्रन्थो का प्रचार करते है, तो धर्म- विचार का प्रचार हो जाता है। अगर दूसरे व्यवहार के विषयों के विचार का प्रचार होता है, तो समते है कि उसका धर्म- विचार के साथ कोई सबध नहीं, किन्तु दोनो बाते गलत है । हमे कहना पड़ता है कि जिन्हें हम 'धर्म-ग्रन्थ' कहते है, वे पूरे के पूरे धर्म- विचार मे भरे हैं, ऐसी बात नहीं है, भले ही वे हिन्दू धर्म के हों, मुसलिम-धर्म के, ईसाई - वर्मया और किसी धर्म के । बडे-बडे धर्म ग्रथो मे भी ऐसे ग्रश होते है, जिन्हे हम धर्म- विचार या सद्विचार के तौर पर आज की कसौटी से कसने पर मान्य नहीं कर सकते । नहीं कह सकते कि महाभारत मे जो कुछ भी लिखा है, वह कुल का कुल धर्म- विचार है । यही हाल मनुस्मृति, श्रोल्ड टेस्टामेण्ट, न्यू टेस्टा मेट भी कई ग्रन्थो का है । वास्तव मे हममे सार ग्रहण करने की
न्हा होता है, सेहत औौ रुचि के लिए वह उत्तम-से-उत्तम फल है । लेकिन हम उसको पूरा का पूरा नहीं खा सकते । उसका छिलका फेकना पड़ेगा, बीज निकाल देना होगा औौर जो साररूप यश है, उतना ही ग्रहण करना होगा । यह नियम वर्म-ग्रयो पर भी लागू होता है। हम नहीं कह सकते कि महाभारत और पुराण - ग्रथो का प्रचार हो जाने से धर्म का प्रचार हो जाता है। इसलिए वर्म- विचार याने क्या, इसका हमें बारीकी से परीक्षण करना चाहिए ।
इसके विपरीत यह भी कह सकते है कि व्यावहारिक प्रश्नों की चर्चा करनेवाले ग्रन्थ भी वडे धर्म ग्रन्थ है । सर्व-सेवा-सघ ने "मल-मूत्र - सफाई"" नामक एक ग्रन्थ प्रकाशित किया है। गॉव गॉव मे मल-मूत्र का बडा दुरुपयोग होता है, रास्ते पर सन चीजें पड़ी रहती है, गन्दगी फैलती है। मनुष्य के मल-मूत्र का किस तरह इन्तजाम करना चाहिए, इसका वर्णन इस ग्रन्थ में है। कुल का कुल मल-मूत्र खेत म जाना चाहिए, ऊपर मिट्टी, घास-फूस डालना चाहिए और उसका भी इन्तजाम किस तरह करना चाहिए, ये सत्र वाते चित्रों के साथ उस ग्रन्थ में दिखायी गयी है। हम कहना चाहते है कि वह वर्म-ग्रन्थ है ग्रोर खालिम धर्म-ग्रन्थ है। याने उसमें अधर्म का कोई ग्रग मिला हुआ नहीं है। अगर मानव जीवन को पवित्र र उन्नत बनाना है, तो उसमें बतानी गयी तरकीन के मुतानिक काम के करना होगा। यह नहीं कि उसमे जो तरकीब बतायी है, उसमे भिन्न और बेहतर तरकीचे नहीं हो सकतीं। किन्तु उसमे जिस विषय की चर्चा है, वह विपन वर्म है, यही हमारा करना है। इसीलिए अपने पुराने धर्म ग्रन्थों में शोच-विचार, प्रात. स्नान ग्रादि सारा भाग वर्म का हिस्सा माना जाता था । हम समझते ह कि गाँव गाँव मे ग्रामोद्योग किस तरह जारी किये जानें, इसकी चर्चा जिस ग्रन्थ मे हो, वह धर्म गथ है । इस तरह धर्म नन्न वह है, जिससे चित्त की शुद्धि होती है और समाज का अच्छी तरह धारण होता है ।
नया सस्करण 'सफाई : विज्ञान और कला' नाम से निकला है । मृत्य
पचहत्तर पैसे ।
भूदान, शुद्ध धर्म कार्य
इसलिए धर्म विचार या धर्म-साहित्य का सकुचित अर्थ नहीं करना चाहिए । हमारा दावा है कि भूदान यज्ञ एक शुद्ध धर्म-कार्य है। अगर यह जमीन छीनने का आन्दोलन होता, तो यह शुद्ध धर्म कार्य नहीं रहता । किन्तु प्रेम के तरीके से जमीन के बॅटवारे की बात जहाँ होती है, वहाँ वह विचार शुद्ध, निर्मल धर्म-विचार है । जो उसके मुताबिक अमल करेगा, उसके हृदय की शुद्धि हुए बिना नहीं रहेगी। भूदान यज्ञ मे हरएक व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए मौका मिलेगा । उसमे समाज की धारणा होगी, समाज निर्वैर बनेगा और समाज मे अन्न उत्पादन बढेगा । इसलिए भूदान यज्ञ का विचार एक धर्मं विचार है । जो सर्वोत्तम धर्मग्रन्थ कहे जाते है, उनमे भी अन्न उत्पादन की बात कही गयी है । उपनिषद् का प्रसिद्ध वाक्य है : "अन्नम् बहु कुर्वीत ।" उपनिषद् को क्या गरज थी कि वह न बढ़ाने की बात करे ? वह इसलिए अन्न बढाने की बात करती है कि अगर अन्न न बढ़ेगा, तो परस्पर वैर बढेगा । आपके सामने दो ही रास्ते है - या तो वैर बढाओ या अन्न । इसीलिए उन्होने अन्न बढ़ाने की बात बतायी । अन्न इतना बढ़ाना चाहिए कि कोई भी शख्स किसीके घर मे जाय, तो उसे वह मिले । प्यासा मनुष्य पानी माँगता है, तो हर घर से उसे पानी मिलता है, इसी तरह भूखे मनुष्य को हर घर मे खाना मिले, इतना अन्न - सग्रह समाज मे परिपूर्णता से होना चाहिए ।
धन समाज का बढ़े
एक भाई ने बाबा पर टीका की है कि 'बाबा काचनमुक्ति की और अपरिग्रह की बात करता है, तो समाज मे अन्न-उत्पादन कम करेगा। किसी तरह शरीर का वियोग न होने देगा। पर वह शख्स बाबा के विचार को समझा ही नहीं। बाबा तो कहता है कि नौका के लिए पानी तो खून चाहिए, लेकिन र नहीं, बाहर, नीचे चाहिए । बाबा इतना ही कहता है कि समाज मे खूत्र अन्न ग्रह और धन संग्रह हो, पर वह घर मे न हो । नौका के अन्दर पानी आ जायगा, तो नौका डूब जायगी। इसी तरह घर के बढ़
तो घर का खात्मा हो जायगा । किंतु समाज में धन न पढना चाहिए । चढ़ना चाहिए, यह बावा कभी नहीं कहता । इस तरह ग्रन्न बढ़ाने की धर्म काश है।
या कम
बात भी
क्या अन्न बढ़ाने में नये-नये तरीके इस्तेमाल कर सकते है ? इस सवाल जवाब में हम कहते है कि अगर वह तरीका किसीको बेकार नहीं बनाता, तो किसी भी तरीके का उत्पादन में उपयोग कर सकते है । उपनिषद् ने भी यह वह रखा हैं कि "यया क्या च विवया ग्रन्न बहुप्राप्नुयात् " यानी जिस किसी भी विवि मे यन्न बढाओ । लेकिन ग्रन्न बढाने की प्रक्रिया में ही बैलो को खतम करो या मनुष्य को बेरोजगार करो, यह नहीं चलेगा । उत्पादन बढाने में पुराने श्रौजार ही इस्तेमाल करने चाहिए, सो नहीं । नये समाज में नया ग्रौजार भी हो सकता है, यह सारा धर्म का विचार है ।
मैंने कहा कि स्वच्छता भी वर्म का विचार है । भूदान यज्ञ, ग्रामोद्रोग, उपज बटाना, ये सभी धर्म - विचार है । लेकिन मुख्य वस्तु यह है कि जिससे समाज में प्रेम बटे, समाज निवर बने, वही धर्म है। इसलिए धर्म- विचार का मकुचित अर्थ हम न करें और समझें कि सबसे श्रेष्ठ और सबसे निर्दोष कोई वर्म है, तो वह "सर्वोदय-वर्म" है । जिसमे हरएक के उदय की बात है, हरएक को पूरा पोपण-विकास का पूरा मौका मिले, एक के हित के विरुद्ध मे दूसरे का हित हो ही नहीं सकता, सबके हित एक दूसरे के अविरुद्ध है - ये सारे सर्वोदय विचार है और यही मुख्य वर्म है । इस सर्वोदय के विरुद्ध जो चीज होगी, वह निग वर्म है।
सर्वोदय- धर्म में तरण और तारण
याप पूछेंगे कि यह शख्स कौन सा नना धर्म बता रहा है ? हिन्दू-वर्म, उमलिम- वर्म, ईसाई धर्म हो गये । अन यह एक नना 'सर्वोदय-वर्म' शुरू कर रहा है । अरे, ये जो अलग-अलग वर्म के नाम लिये, वे तो नदियाँ है । पर पर्यादय वर्ग कोई नदी नहीं, वह तो समुद्र है। यहाँ तक कि वह नाली को भी अपने ग्रन्दर लेने को राजी है। इस तरह सत्रका स्वीकार करनेवाला यह सवोदय१८४
धर्म है। जैसे नार मे छोटे-छोटे बीज होते हैं, वैसे सर्वोदय भी सुन्दर अनार है । इसके अन्दर एक बीज हिन्दू धर्म है, तो दूसरा बीज इसलाम धर्म । और भी कई बीज है । ये सारे अलग-अलग रखे हैं। किसीका किसी के साथ कोई विरोध नहीं । किसी भी एक दाने में इतना रस नहीं, जितना अनार में है। सर्वोदय की तुलना अनार के साथ ही हो सकती है। सर्वोदय के अन्दर दुनिया के सच-के-सच धर्म आ जाते हैं। यह कोई नया वर्म स्थापित नहीं कर रहा हूँ। यह तो 'सर्वधर्म का समन्वय' हो रहा है - हरएक धर्म में जो-जो अच्छाइयाँ हैं, वे सक खौचकर ले लेगे ।
इम पर फौरन कोई पूछेगा कि क्या दूसरे धर्मों मे नम्रता के साथ कहता हूँ कि जी हाँ, हैं। जहाँ पथ होता है, भीतही है। किन्तु जो समुद्ररूप चीन है, उसमे क्या दोप हो सकता है ? सर्वोदय मे दोप ही नहीं है। यह ठीक है कि सर्वोदय को अमल में मे दोष हो सकता है, लेकिन सर्वोदय मे कोई दोष नहीं है । तीर्थम् ।" सर्वोदय वडा तीर्थ है, याने इसमे तारण भी है और तरण भी है । इसमे मनुष्य खुद भी तैर सकता है और दूसरों के तैरने की भी व्यवस्था कर सकता है । इसलिए सर्वोदय-धर्म मे जीवनव्यापी कुल विचार आते हैं।
क्याथुर ( महबूवनगर ) ६-३-'५६ |
291e1b81bb516d9da04492c201eca624104b5a3c8ffaef971fcadc28734da482 | pdf | इन सच तथ्यो का निचोड़ सर हैरोल्ड के अपने शब्दों में यह है ; "We cannot resist the conclusion that life, though rare, is scattered throughout the Universe. It may be compared to a rare plant which can flourish only when the temperature, the humidity, the soil, the altitude and the amount of sun-shine are favourable. Given these appropriate conditions, then here, there or elsewhere the plant may be found". अर्थात् ; हम इस निष्कर्षको टाल ही नहीं सकते कि जीवन, दुष्प्राप्य होने पर भी, विश्व में कई जगहों पर विखरा हुआ है। इसकी तुलना ऐसे एक दुष्प्राप्य पौधे से की जा सकती है जो तापमान, आर्द्रता, जमीन, सतह की ऊँचाई और धूप की मात्राओं के अनुकूल होने पर ही उग और पनप सकता है । यदि यह उपयुक्त परिस्थितियाँ जुटा दी जाँय तो यहाँ, वहीं और अन्यत्र भी वह पौधा पाया जा सकेगा ।
सम्भव है, दूसरे ग्रहों पर रहनेवाले प्राणियों से हम कभी प्रत्यक्ष सम्पर्क न बना पावें; क्योंकि हमारे और उनके वीच भयावह दूरियाँ हैं। चाहे जो हो, सिर उठाकर तारों की ओर देखते समय हम यह तो जान ही सकेंगे कि विज्ञान आज हमारी पीठ ठोक कर कह रहा है :' 'विश्व में तुम अकेले तो नहीं हो।"
बारहवाँ परिच्छेद दूर-दूर फैलता हुआ विश्व
पिछले परिच्छेदों में हम विश्व की बनावट का एक मोटासा ख़ाका, जैसा कि आज तक उसे जान पाये है, खींच चुके हैं। अब हम इसके कुछ ऐसे पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिशें करेगे जो अत्यन्त दुरूह, जटिल और मुश्किल से समझ में आनेवाले और उलझन भरे है। इनको जाने बिना विश्व का हमारा अध्ययन अधूरा और बेजान ही रहेगा।
जिन पिण्डों ने मिलकर इस विश्व के शरीर का निर्माण किया है उनको एक बार और हम, अपने अध्ययन को ताजा बनाए रखने के लिये, दुहरा देना चाहते हैं । सूर्य और उसके परिवार के 8 ग्रह जिनमें एक हमारी पृथ्वी है; करोड़ों और अरबों तारों का एक विशाल जमाव जिसे हम अपने आकाश की गंगा कहते हैं; इस गंगा से अति दूर की नीहारिकाएँ या आकाश-गंगाएँ जिन प्रत्येक के अपने-अपने करोड़ों विशाल-काय तारे हैं ; धूल और गैसों के भारी-भरकम बादल जो सुदूर अनन्त में सर्वत्र फैले हुए है ; विशाल आकारों के "काले तारे" जो हम से लुका-छिपी का खेल खेल रहे हैं; - यह है एक संक्षिप्त-सी
सूची उन पिण्डो की जिन्होने मिलकर इस विश्वको उसका अपना रूप दिया है ।
यह सच पिण्ड यदि अपनी-अपनी जगहों पर, एक दूसरे से चाहे जितनी दूर, स्थिर जमे बैठे रहते तो हम बड़ी आसानी के साथ विश्व के आकार विस्तार की एक समझ में आने लायक कल्पना कर सकते थे। परन्तु हमारी आसानियों और मुश्किलों से तो उनको कोई सरोकार नहीं। उस महान् निर्माता और निर्देशक ईश्वर ने विश्व के चल - चित्र में खेलने के लिये उनको जो जो भूमिकाएँ दी हैं, उन-उनको वह, उस निर्देशक के इशारों पर, पूरी निभा देना चाहते हैं ; भले ही, उनकी यह गतिविधियाँ हम मनुष्यों के लिये समझने और बोधगम्य करने में दुरूह हों ।
विश्व के चित्र में उनको तो भाग-दौड़ ही करनी है; एक दूसरे की अपेक्षा दूर-दूर, सभी ओर । यों भागते हुए संयोगवश वह एक दूसरे के मार्ग में भी कुछ देर के लिये आ पड़ते हैं; परन्तु शीघ्र ही एक दूसरे को पार कर, वह आगे बढ़ जाते हैं । यह भी सम्भव है कि यह बात हमारे देखने का भ्रम ही हो; ऐसी दोनों नीहारिकाएँ उस समय हमारी दृष्टि की एक ही सीधी रेखा में हों और इस कारण, एक दूसरी से लाखों करोड़ो मील दूर रह कर ही उस रेखा को पार करती हों।
बात का सिलसिला अव यहाँ आकर रुकता है कि विश्व का समूचा आकार विस्तार एक अति विशाल वृत्त या गोल चक्कर के रूप में है और इस वृत्त की परिधि ( इसके घिराब की
अन्तिम सीमा रेखा ) निरन्तर फैलती जाती है। इस समूची परिधि का प्रत्येक बिन्दु आगे की ओर बढ़ता चलता है और यों विश्व का आकार निरन्तर बढ़ता जाता है ।
यह तो हुई विश्व में देखे गये एक तथ्य की, एक सत्य की, जानकारी । अब हमें यह देखना है कि कैसे और क्योंकर हम इस सत्य की झलक पा सके ।
यह तो हम पहिले ही, नौवें परिच्छेद में, लिख आये है कि स्लीफर ने वर्णपट - दर्शक यन्त्र की सहायता से लिए गये इन पिण्डों के प्रकाश के वर्णपटों में उनकी रेखाओं को लाल या कम फड़कनों के छोर की ओर मुड़ते देखा था । इस बात को पूरी समझ पाने के लिए हम यह याद दिला देना चाहते हैं कि प्रकाश की किरणें अपने सम्पूर्ण रूप में सफेद रङ्ग की दिखने पर भी वास्तव में अनेक रङ्गों की लहरों के मिश्रण से बनी हुई हैं । भिन्न-भिन्न रङ्गों की इन लहरों की अपनी अलग-अलग फड़कनों Frequencies की एक निश्चित संख्या होती है। एक सीधी रेखा में चलती हुई प्रकाश किरणें उस रेखा पर, अपनी लहरो की लम्बाइयों को लेकर जितने कम्पन करती हैं, उन कम्पनो की संख्या को ही "फड़कनें" Frequency कहते हैं । वर्णपट-दर्शक यन्त्र में जो एक त्रिफलक काँच लगा रहता है उसमें होकर जब यह किरणें निकलती है तो यह काँच उन्हें भिन्न-भिन्न रङ्गों की लहरों के रूप में तोड़ देता है। यह लहरे तब एक चौड़ी पट्टी या एक छोटी झाड़ू के रूप में फैल जाती है,
जिसके एक छोर पर तो कम फड़कनों की लाल रङ्ग की लहरें होती हैं और दूसरे छोर पर होती हैं ऊँची या अधिक संख्या की फड़कनें जो बैंगनी रङ्ग की लहरें हैं । इन दोनों छोरों के बीच बाकी रङ्ग की लहरें होती हैं। लहरों की लम्बाइयाँ जितनी बड़ी होती हैं उनकी पड़कनों की संख्या भी उतनी ही कम होती हैं और वह लाल रङ्ग की लम्बी लहरों के छोर की ओर उतनी ही झुकती चली जाती हैं। इसी प्रकार जिन लहरों की लम्बाइयाँ छोटी होती चली जाती हैं, उनकी फड़कनों की संख्या भी उतनी ही अधिक होती जाती है और उतनी ही अधिक वह बैंगनी रङ्ग की छोटी लहरों के छोर की ओर झुकती जाती हैं।
यही वह कसौटी है जो हमें यह बतलाती है कि विश्वब्रह्माण्ड का कोई एक तारा हमारी ओर दौड़ा चला आ रहा है या वह हमसे दूर-दूर आगे की ओर भागा जा रहा है। इसे वर्णपट के लाल छोर की ओर का मुड़ाव या संक्षेप में लालमुड़ाव Red Shift कहते हैं। स्लीफर ने जिन नीहारिकाओं के प्रकाश की किरणों के वर्णपट लिए थे। उनकी रेखाओं को उसने वर्णपट के लाल रङ्ग के छोर की ओर ही मुड़ते देखा था। यह मुड़ाव बताते थे कि यह नीहारिकाएं हमसे दूर, आगे की ओर भागी जा रही हैं। उनके यों दूर भागने के वेग उस समय ११२५ मील प्रति सेकन्ड तक कूते गए थे !
सन् १९२४ ई० में एडविन हब्बल Edwin Hubble ने अपने आकाशीय अध्ययन के सिलसिले में, माउन्ट विल्सन
वेधशाला की १०० इञ्च व्यास की दूरबीन से लिए गये फोटोचित्र जब प्रकाशित किए तो नक्षत्र विज्ञान के जगत् में एक नये ही युग का आरम्भ हुआ। इसके पहिले वैज्ञानिकों का यही मत था कि दूर अनन्त में प्रकाश के विथड़ों से दिख पडनेवाली नीहारिकाएं गैसों और धूल के बादल ही थी और यह बादल सृष्टि रचना के आरम्भ मे ही पैदा हुए थे। हव्वल के फोटोचित्रों ने यह सिद्ध कर दिया कि बात यह नहीं है ; वास्तव में यह नीहारिकाऍ तारों के बहुत बड़े-बड़े जमाव हैं, ठीक वैसे ही जैसा कि हमारा "दुवैला मार्ग" या आकाश-गंगा । उसने इन नीहारिकाओं का काफी गहरा अध्ययन किया ।
पहिले तो उसने सिर्फ नीहारिकाओं के गुच्छकों की जाँच की ; क्योंकि यह जानना अत्यन्त आवश्यक था कि मुड़ावों की राशियों और उन नीहारिकाओं की दूरियों में कोई एक सुयोजित सम्बन्ध है या नहीं। जैसा कि हम पहिले स्पष्ट कर आये हैं (दशवें परिच्छेद में ), एक विचारपूर्ण मान्यता के आधार पर इन नीहारिका गुच्छकों की परस्पर सापेक्ष दूरिऍ जान ली गईं। कुछ गुच्छकों की दूरियें तो बहुत ही बड़ी थीं। इसलिए सोचा गया कि इनके वर्णग्टों की रेखाओं के "लाल छोर" की ओर के झुकावों या मुड़ावों की राशियों और उन नीहारिकाओं की दूरियों में यदि कोई ऐसा सुयोजित सम्बन्ध हो तो उनकी यह दूरियाँ अवश्य ही उस सम्बन्ध को, थोड़े- बहुत अनिश्चित या बिल्कुल निश्चित रूप में, झलकावेंगी ।
हव्वल ने जहाँ इन नीहारिकाओं और इनके गुच्छकों की दूरिऍ आँकी, वहाँ उसने यह भी पता लगाया कि अनन्त में वह किस प्रकार बिछी हुई हैं। उसने एक और भी महत्वपूर्ण काम किया; उसने इनकी गतियों का भी विश्लेषण किया। उसीने पहिले-पहल यह पता लगाया कि इन गतियों का एक अनोखा पहलू यह है कि यह गतियाँ बेतरतीब-सी नहीं मालूम होतीं, जैसी कि गैसों में निरुद्देश्य इधर-उधर भटकनेवाले द्वयणुकों की गतियाँ होती हैं; अपितु इनमें एक ऊँचे दर्जे की सुव्यवस्था और सुघड़पन है ।
हब्बल के इन अध्ययनों ने ही वर्णपटों के लाल छोर की ओर के मुड़ावों या झुकावों की यह कसौटी खोज निकाली । मजे की बात तो यह कि सबसे पहिला जो "लाल-मुड़ाव" Red shift पकड़ा गया था, वह बड़े गुच्छकों में से एक गुच्छक का ही था । इस मुड़ाव की मात्रा उस गुच्छक के २४०० मील प्रति सेकन्ड वेग से दूर भागे जाने की कहानी कह रही थी । बहुत शीघ्र और भी अनेक छोटे और धुँधले नीहारिका-गुच्छकों के विषय में ऐसे ही परिणाम निकाल लिए गये । जब तक १०० इञ्च व्यास की दूरबीन अपनी सामर्थ्य की अन्तिम सीमा तक जा पहुॅची थी, तब तक यह दूरबीन २६००० मील प्रति सेकन्ड दूर भागने के वेग को झलकानेवाले एक "लाल मुड़ाव" को पकड़ चुकी थी । वेग की यह राशि प्रकाश के वेग की सिर्फ ७वाँ भाग ही थी । "लाल- मुड़ाव " की इस कसौटी ने
दूर दूर फैलता हुआ विश्व
हमें यह बता दिया कि प्रत्येक नीहारिका, अनन्त में जहाँ कहीं भी थी, हमारे सौर-परिवार से दूर-दूर आगे की ओर भागी चली जा रही सी दिखती थी ।
"लाल मुड़ाव" की राशि, जिसका वेग के रूप में भी उल्लेख किया जाता है, अपनी नीहारिका या तारा-गुच्छक की दूरी के सीधे समानुपातों में ही पाई गई है । सम्भवतः यह सबसे सरल सम्बन्ध है और सरल-से- सरल शब्दों में यों व्यक्त किया जाता है - गुच्छक जितना ही दूर होगा, "लाल-मुड़ाव" भी उतना ही बड़ा होगा । दूसरे शब्दों में हम यों भी कह सकते हैं : किसी एक दूर भागनेवाली नीहारिका की हमसे दूरी ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती है, त्यो त्यों उसकी अपनी गति का वेग भी बढ़ता जाता है।
हब्बल और उसके साथ काम करनेवाले मिल्टन एल. ह्यूमेसन Milton L. Humason ने आगे जाकर इस अनुपात को भी ढूँढ़ निकाला और सन् १९२६ ई० में इन दोनों विद्वानों ने मिलकर नक्षत्र - विज्ञान को अपना वह प्रसिद्ध समीकरण equ-tion दिया जो सृष्टि-विज्ञान में अत्यन्त ही महत्व - पूर्ण हों उठा । आज इसको "हब्बल-ह्य मेसन- नियम" HubbleHumason Law कहते हैं । यह समीकरण है - "ह्री. एम्. = ३८ आर. (V. M.=38 r. ) । वैज्ञानिक संकेतों में "ह्वी. एम्." का मतलब है, दूर भागनेवाली नीहारिका या तारा- गंगा का प्रति सेकन्ड मीलों में वेग; और "आर" का मतलब है उस
नीहारिका या तारा-गंगा की पृथ्वी से, १० लाख प्रकाश-वर्षों की ईकाई में, आज के दिन की दूरी । इस नियम के अनुसार पृथ्वी से १० करोड़ प्रकाश वर्ष दूर की कोई नीहारिका आज दिन ( ३८x१०० ) अर्थात् ३८०० मील प्रति सेकन्ड के वेग से हमारी पृथ्वी से दूर भागी जा रही होगी । १ अरब प्रकाशवर्ष दूर की कोई नीहारिका ( ३८x१००० ) अथवा ३८००० मील प्रति सेकण्ड के वेग से बाहर की ओर दूर भागती दिख पड़ेगी। यह वेग प्रकाश के वेग का करीब ५व भाग होगा।
पाँचवें परिच्छेद में, हमारी अपनी आकाश-गंगा के तारों के विषय में लिखते समय, हनने उनके प्रकाश के वर्णपटों में देखे गये रेखाओं के झुकावों या मुड़ावों का, बिना किसी हिचकिचाहट के, यही अर्थ लगाया था कि हमारी दृष्टि की सीधी रेखा में आगे की ओर होनेवाली उनकी गतियों के कारण ही यह झुकाव या मुड़ाव होते हैं। यह निष्कर्ष प्रत्येक बार सही और ठीक सिद्ध हुआ; इसलिए उस अर्थ पर हमारा विश्वास भी बढता चला गया। परन्तु वहाँ एक बात जरूर थी; यह मुड़ाव परिमाण या मात्रा में छोटे होते थे और इस कारण वर्णपटों में उनको देख पाने के लिए एक सूक्ष्म दर्शक microscope की जरूरत पड़ जाती थी । नीहारिकाओं के प्रकाश के की राशियाँ इनसे भिन्न होती है ।
से हमारी नंगी आँखों से भी देख सकते है । जो नीहारिकाएँ
अपने प्रकाश के वर्णपटों में बड़े मुडावों को दिखलाती हैं, बह अपने दिख पड़ने वाले आकारों में छोटी और धुँधली होती हैं। इनके वर्णपटों में जो शोषणरेखाएँ देखी गई हैं वह सिर्फ चूने की ही हैं। यह दो रेखाएँ हैं जिनको क्रम से "एच-रेखा" और "के-रेखा" कहते हैं । यह दोनों ही रेखाएँ वर्णपटों के अत्यन्त घने बैंगनी रङ्ग के छोर की ओर ही देखी जाती हैं। वर्णपटों का यह भाग हमारी आँखों से बिल्कुल ओझल रहता है, यद्यपि हम आसानी से इनके फोटो- चित्र तो ले सकते हैं। युवकों की आँखें तेज होने के कारण वह सूर्य के प्रकाश के वर्णपट में दोनों ही "एच्" और "के" रेखाओं को अलग अलग देख सकते हैं, परन्तु अघेड़ अवस्था के या और भी अधिक उम्र के व्यक्ति इनको नहीं देख पाते ।
सप्तर्षि तारा-मण्डल the great Bear में एक नीहारिकागुच्छक है। उसकी नीहारिकाओं के वर्णपटों में यह दोनों ही रेखाएँ उन वर्णपटों के नीले और बैंगनी रड्डों के भागों के ठीक बीच में मुडी हुई देखी जाती हैं। यह एक ऐसी बात है जो बिल्कुल अनोखी है ; रङ्ग का यह एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है । जो रेखाएँ साधारणतया वर्णपट के हरे भागों में पाई जाती हैं उनको यदि हम इन वर्णपटों में अलग से देख पावें तो मालूम होगा कि वह उनके लाल रङ्ग के भागों में जा पहुॅची है।
ज्यों-ज्यों अधिक वर्णपट प्राप्त किये गये और उनकी रेखाओं के मुड़ाव नापे गये यह स्पष्ट होता गया कि सभी जगह
एक ही नियम काम कर रहा है। ऊपर हमने एक नियम का वर्णन किया है; यदि कोई एक नीहारिका बहुत दूर है तो उसके प्रकाश के वर्णपट का मुड़ाव भी बड़ा है । यह तो हम कह ही चुके है कि "लाल-मुड़ाव" का अर्थ हम यही लगाते हैं कि किसी एक पिण्ड के प्रकाश के वर्णपट में कैलसियम या चूने की दोनों रेखाऍ चलते. चलते उस वर्णपट के लाल रङ्ग के छोर की ओर मुड़ गई हैं । यदि यह नियम नीहारिकाओं और नीहारिका-गुच्छकों की काफी बड़ी संख्याओं पर बार-बार सही उतरे तो निश्चय ही हम "लाल-मुडाव" को सभी नीहारिकाओं और गुच्छकों की दूरियों को नापने के एक माप-दण्ड के रूप में ग्रहण कर सकते हैं।
इस पुस्तक में हमने आकाश के पिण्डों कीं दूरियों को नापने के कई तरीकों का जिक्र किया है। उन तरीकों की तहों में जो नियम रहते हैं ठीक वैसा ही यह ऊपर का नियम भी है। एक बार जहाँ हम जानी हुई दूरियों के पिण्डों में एक ही रूप के कुछ पहलू पकड़ पावें तो उन्हीं पहलुओं को हम आगे चलकर उन पिण्डो पर भी लागू कर सकेंगे जिन की दूरियें जानी नहीं जा चुकी हैं। यह बात कहाँ तक सङ्गत और सत्य है, यह तो इसको सर्वत्र मिली सफलता और परिणामों के शुद्ध होने के कारण स्पष्ट ही है ।
अनन्त के पिण्डों की दूरियें आँकने के जिन नये-नये और अधिकाधिक शक्तिशाली तरीकों पर हम धीरे-धीरे जिस क्रम से पहुँचते गये हैं उनकी ओर एक बार मुड़कर दृष्टि डालना बड़ा
फैलता हुआ विश्व
ही रुचिकर है। हमने पहिले सूर्य और तारों के लम्बनों से आरम्भ किया था । आगे जाकर दूर "देश" में लम्बन जहाँ लड़खड़ाने लगे तो हमारे हाथ लगा वह सम्बन्ध जो सेफीड तारोंकी घट-बढों के समय के अन्तरों और उनकी दीप्तियों में है। इसने हमारा हाथ पकड़ कर एक ही झटके में हमें लम्बनों के संकीर्ण दायरे से बाहर निकाल लिया । प्राप्त परिणामों ने हमारे साहस को दाद दी । सेफीड तारों का यह सम्बन्ध भी जब आगे जाकर हार मान बैठा तो प्रकाश के वर्ण-पों के "लाल-मुड़ावों" ने हमारी लाठी थामी और हमें आगे बढाये ले चले। दूरियें नापने की इन कसौटियों को हम जहाँ कहीं भी लगावें वह वहीं लगी दूसरी कसौटियो से मेल खा जाती है और इनमें की प्रत्येक कसौटी दूसरी को सहारा और पुष्टि देती चलती है।
इस तरह, ऐसा मालूम होता है, जैसे कि यह विश्व - ब्रह्माण्ड अपने वृत्त की परिधि पर, हमारे सभी ओर, दूर-दूर आगे फैलता चला जा रहा है। इसका यह मतलब तो हर्गिज़ नहीं है कि विश्व वैज्ञानिक घूम फिर कर फिर उसी पुरानी धारणा पर लौट आये हैं जिसके अनुसार हमारी पृथ्वी ही अखिल विश्व का केन्द्र थी । यह धारणा तो कब की मर चुकी, जैसा कि हम पहिले परिच्छेद में विस्तार के साथ लिख आये हैं ।
यहाँ पर यह कह देना आवश्यक है कि प्रकाश किरणों के लाल छोर की ओर के मुड़ाव यदि दूर भागने की गतियों के ही सूचक हैं तो यह कहना कि यह सब करोड़ों और अरबों पिण्ड
हमसे दूर भागे चले जा रहे हैं, एक अर्ध-सत्य ही होगा । सत्य का दूसरा आवाभाग यह है कि उनमें के प्रत्येक पिण्ड से हम भी दूर भागे भागे चले जा रहे हैं। इन दोनों ही अर्ध सत्यों को मिलाकर पूरा सत्य तो यह है कि हम सत्र एक दूसरे से दूर भागे चले जा रहे हैं - वास्तव में, दूर और अधिक दूर होते चले जा रहे हैं । पृथ्वी और सूर्य की तो बिसात ही क्या ; हमारी आकाश गंगा भी अब विश्व का केन्द्र नहीं रह पाई है। उन विशालकाय तारा-झुण्डों में यह सिर्फ एक झुण्ड ही है । यदि किसी भी एक नीहारिका का अपना कोई एक ग्रह हो और उस पर भी कहीं कोई एक बुद्धिशील दर्शक रहता हो तो वह भी ठीक वही बात, वही दृश्य, देखेगा जो हम आज हमारी पृथ्वी से देख रहे हैं । अनन्त के पिण्डों के प्रकाश के वह जो वर्णपट लेगा, (हमारी आकाश-गंगा के जमाव के वर्णपट भी जिनमें होंगे) उनमें प्रकाश किरणों के "लाल-मुडाव" उसको भी यही बतलावेंगे कि वह सब पिण्ड उसके अपने ग्रह से दूर भागे चले जा रहे हैं । ठीक हमारी तरह वह भी एक अर्ध-सत्य का ही प्रयोग करते हुए कहेगा कि सभी नीहारिकाएँ, जिनमें हमारी पृथ्वी को लिए हुए आकाश गंगा भी होगी, उससे दूर-दूर आगे की ओर भागी जा रही हैं ।
प्रायः ही ऐसा होता है कि अर्ध-सत्य आपस में टकरा जाते हैं और जब पूर्ण सत्य उनकी जगह स्थापित कर दिए जाते हैं तब जाकर ही यह कशमकश खत्म हो पाती है । |
e6349984e4066c6ef3bafa30e38361123bc892d2d058b8407af9ed78419161ec | pdf | 10 / श्री वल्लभाचार्य
के समय उनकी भेंट अंबाला निवासी सेठ पूरनमल खत्री से हुई जिसने श्रीनाथ जी का मंदिर बनाने की योजना तैयार की थी । वल्लभाचार्य जी के गोवर्धन आने पर संवत् 1559 वैशाख कृष्णा तृतीया को इस मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ । यह मंदिर संवत् 1564 में बनकर तैयार हुआ जिसमें वल्लभाचार्य जी ने श्रीनाथ जी के स्वरूप की विधिवत् प्रतिष्ठा की । विग्रह की स्थापना के बाद सेवा-पूजा की अपनी नवीन पद्धति से मंदिर में भक्तों का आगमन और दर्शन आदि का क्रम जारी हुआ ।
अपनी इस तीसरी यात्रा में उन्होंने पुनः विद्याननर जाने का कार्यक्रम बनाया । विद्यानगर की यह यात्रा उनके शास्त्रार्थ के कारण महत्वपूर्ण है । विद्यानगर के विद्वान् पंडित वल्लभाचार्य के दार्शनिक विचारों को स्वीकार नहीं करते थे । उनके मत में अद्वैत वेदांत की विचारधारा ही पूर्ण थी किंतु शास्त्रार्थ होने पर वल्लभाचार्य जी ने अपने शुद्धाद्वैत मत की तर्क-प्रमाण पुरस्सर स्थापना द्वारा पंडितों को परास्त किया और विजयी होकर राजा कृष्णदेव राय से सम्मान प्राप्त किया। इस सम्मान को संप्रदाय के वार्ता साहित्य में 'कनकाभिषेक' के नाम से जाना जाता है । यह शास्त्रार्थ संवत् 1565-66 में हुआ था। इसके बाद आचार्य जी यात्रा समाप्त कर संवत् 1566 में वापस काशी आ गए । कनकाभिषेक होने के बाद श्री वल्लभ को आचार्य रूप में स्वीकार किया गया और उनके उपदेश, प्रवचन, ग्रंथ लेखन आदि को भक्त समाज में समादृत समझकर व्यवस्था के रूप में ग्रहण किया जाने लगा ।
इन तीनों यात्राओं द्वारा श्री वल्लभाचार्य जी ने जीवन के विविध पहलुओं का साक्षात्कार किया । नाना प्रकार के अनुभव, ज्ञान-विज्ञान के विलक्षण पक्ष, शास्त्रार्थ आदि द्वारा पांडित्य का प्रभाव समाज पर डालकर गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया । विवाह तो उनका संवत् 1558 में ही हो गया था किंतु पत्नी की अल्पायु होने से आठ वर्ष का समय उन्होंने यात्रा में व्यतीत किया। गोवर्धन में श्रीनाथ जी के मंदिर का निर्माण पूरा कराया और विग्रह की स्थापना के बाद सेवा-पूजा की पद्धति प्रचलित की ।
ब्रज प्रदेश को आचार्य जी को देन
श्री वल्लभाचार्य जी ने मध्ययुग में ब्रज प्रदेश को अपनी सांप्रदायिक, दार्शनिक, भक्ति विषयक, धार्मिक विचारधारा से नव जीवन प्रदान किया। उनके ब्रज में आगमन से पूर्व वृंदावन में तो भक्ति की लहर व्याप्त थी किन्तु ब्रजवासी समाज ब्रज मंडल श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों से न तो परिचित था और न ब्रज में कृष्ण भक्ति की कोई विशिष्ट पद्धति ही प्रचलित थी । आचार्य जी ने सबसे पहले गोकुल और गोवर्धन जैसे स्थानों का प्राकट्य किया और जनता को इनका महत्त्व
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बताया । ये दोनों पवित्र स्थान श्रीकृष्ण की लीला भूमि रहे हैं । श्रीकृष्ण की बाललीलाएं गोकुल में और किशोर लीलाएं गोवर्धन में संपन्न हुई थीं। पुराणों में इन विविध लीलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है । वल्लभाचार्य जी ने पुराणों के आधार पर ही इन स्थानों के महत्त्व को आंका और इनका महत्त्व प्रदर्शित किया ।
मथुरा नगर में भी आचार्य जी ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन किया । विश्राम घाट के उद्धार का श्रेय तो आचार्य जी को ही है । सुलतान सिकन्दर लोदी तथा अन्य मुगल सरदारों ने मथुरा नगर को ध्वंस करने में कोई कसर उठा न रखी थी। इनके आतंक और भय के कारण हिन्दू जनता ने अपने धार्मिक कृत्य भी बंद कर दिए थे। सेवा-पूजा के समय शंख घंटे आदि बजाना वर्जित था । तिलक आदि लगाकर नगर में घमना मना था । जनता भयभीत रहती थी। ऐसे संकट के समय श्री वल्लभाचार्य ने सुलतान के पास अपना प्रेम संदेश भेजा और मानवीय स्तर पर जनता को अपनी सुविधानुसार धार्मिक कृत्य करने की छूट दिलवाई। यह बड़ा काम था जो यन्त्र या युद्ध के द्वारा उस समय संभव नहीं था । इसे आचार्य जी ने अपनी स्नेहमयी वाणी के प्रभाव से पूरा किया ।
गोवर्धन में सेठ पूरनमल खत्री द्वारा श्रीनाथ जी के मंदिर का निर्माण भी ब्रज को आचार्य जी की देन है। गोवर्धन जैने उपेक्षित स्थान के प्रति जन मानस को केवल आकृष्ट ही नहीं किया वरन् उस पावन भूमि को परिक्रमा के योग्य बनाकर पूजा स्थली ही बना दिया। गोवर्धन ब्रजवासियों के लिए आज इतना पूजनीय स्थान बन गया है कि मास की प्रत्येक पूर्णिमा के दिन हजारों की संख्या में भक्तगण गोवर्धन में परिक्रमा करने जाते हैं। वर्ष में कई पर्व-उत्सव गोवर्धन में मनाए जाते हैं । भरतपुर राज्य के नरेशों का तो गोवर्धन इष्टदेव ही है । गोवर्धन में एक नहर है जिसे मानसी गंगा के नाम से पुकारा जाता है । भक्तगण इसमें श्रद्धापूर्वक पर्व के दिन स्नान करते हैं।
ब्रजमंडल में भक्ति का नवोन्मेष
श्री वल्लभाचार्य जी की मातृभाषा तो तेलुगु थी, शिक्षा द्वारा अर्जित भाषा संस्कृत थी । बोलचाल की हिंदी भाषा उन्होंने काशी और प्रयाग में रहकर सीखी थी । ब्रज भाषा का अभ्यास अपने शिष्य सेवकों के संपर्क से किया था किंतु अपने शिष्यों द्वारा ब्रजभाषा की जैसी सेवा और समृद्धि आचार्य जी ने की वैसी किसी अन्य आचार्य द्वारा संभव नहीं हुई । सूरदास आदि ब्रजभाषा के मूर्धन्य कवि आचार्य जी के हो शिष्य थे जिन्हें अष्टछाप के नाम से जाना जाता है। उनकी ब्रजभाषा तथा पुष्टिमार्ग की सेवा का वर्णन आगे किया जाएगा ।
ब्रजमंडल में भक्ति का वातावरण जिस रूप में था उसे परिवर्तित करने में
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चल्लभाचार्य जी के योगदान का मूल्यांकन करने के लिए ब्रज में बौद्ध, जैन, शैव, शाक्त आदि मतों के साथ वाममार्गी लोगों का भी जमघट था जो प्रच्छन्न रूप से अपने क्रियाकलाप को जनता में फैलाते थे । मथुरा तो जैन धर्म का प्रधान केंद्र था । शक कुषाण काल से जैन धर्मावलंबी मथुरा में स्थायी रूप से निवास कर रहे थे और मथुरा के आस-पास उनके मंदिर स्थानक आदि बने हुए थे । जंबू स्वामी का प्राचीन मंदिर आज भी मथुरा शहर से बाहर दो मील की दूरी पर अवस्थित है। मथुरा के पुरातत्व विभागीय संग्रहालय में अनेक जैन एवं बौद्ध मूर्तियां एकत्र करके रखी गई हैं जिनके आधार पर इन धर्मों का प्रभाव मथुरा तथा ब्रजक्षेत्र में आंका जा सकता है । शैव और शाक्त मतावलंबी विपुल संख्या में मौजूद थे। ब्रजमंडल में नाना धार्मिक विचारधाराओं के कारण भक्ति का मार्ग प्रशस्त नहीं था । रामानंदी साधु भी ब्रज में विद्यमान थे और रामोपासना भी प्रचलित थी । इस स्थिति में श्री वल्लभाचार्य ने कृष्ण भक्ति का नवीन मार्ग और भक्ति में सेवा पूजा की नवीन पद्धति को प्रश्रय देकर व्रजभूमि को कृष्णमय बना दिया। इस भक्ति मार्ग को कृष्णमय बनाने में चैतन्य संप्रदाय के प्रवर्तक श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और उनके बंगाली शिष्यों का भी योगदान अविस्मरणीय है । ब्रजमंडल में प्रेम-भक्ति की लहर इन्हीं भक्तों की वाणी से प्रवाहित हुई थी । ब्रजमंडल का प्रामाणिक इतिहास साक्षी है कि चैतन्य महाप्रभु और वल्लभाचार्य के ब्रज आगमन से पूर्व वृंदावन, गोकुल, गोवर्धन, राधाकुंड, आदि स्थानों के विषय में कोई सही जानकारी नहीं थी । वृंदावन जैसा स्थान भी वन के रूप में ही था । चैतन्य महाप्रभु के गोस्वामी शिष्यों ने इसे आवास योग्य बना कर तीर्थ का सुंदर रूप दिया। उन्होंने सबसे पहले मदनमोहन जी के मंदिर का निर्माण कराया और -कृष्ण भक्ति की सेवा पूजा पद्धति को इसमें स्थान दिया । तदनंतर गोविन्द जी का मंदिर राजा मानसिंह ने बनवाया ।
गोवर्धन में श्रीनाथ जी का मंदिर निर्माण
श्री वल्लभाचार्य अपनी दूसरी यात्रा के समय जब ब्रजभूमि में आए तब उनके एक भक्त सेठ पूरनमल खत्री ने मंदिर निर्माण की योजना आचार्य जी के समक्ष प्रस्तुत की थी जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर मंदिर निर्माण की अनुमति दे दी थी । गोवर्धन में उस समय निवास योग्य न तो कोई भवन था और न पूजा करने योग्य कोई मंदिर । बियावान जंगल के रूप में गोवर्धन पर्वत के चारों ओर पेड-पौधे फैले हुए थे, उन्हीं की छाया में लोग विश्राम करते थे। श्री वल्लभाचार्य जी भी जब गोवर्धन पहुंचे तो उनके रहने के लिए कोई उपयुक्त स्थान नहीं मिला । एक साधु जिसे वार्ता साहित्य में सद्दू पांडे कहा गया है, एक चबूतरा बनाकर रहता था । वल्लभाचार्य जी ने भी इसी चबूतरे पर विश्राम किया था । सद्दू पांडे गो
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पालन का काम करता था और गिरिराज पर्वत की कंदरा में लीन भगवत् स्वरूप की बात करता था किंतु उस विग्रह का प्राकट्य तब तक नहीं हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि वल्लभाचार्य से पहले उस भगवद् विग्रह की जानकारी होते हुए भी विधिवत् सेवा-पूजा नहीं होती थी। सुलतानी शासन के आतंक से ब्रजवासी प्रकट रूप में उस स्वरूप की आरती भी नहीं करते थे। श्री वल्लभाचार्य ने कंदरा में से देवविग्रह को बाहर निकाल कर उसकी पूजा को ओर उसे गोवर्धन नाथ या श्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध किया । ब्रजवासियों के मन में सुलतान के क्रूर शासन का जो आतंक था उसे भी आचार्य जी ने कृष्णाश्रय मंत्र देकर दूर किया। श्रीकृष्ण की बाल-किशोर पूजा का प्रारंभ यहीं से हुआ । मूर्ति की स्थापना के लिए कोई उपयुक्त स्थान तक नहीं बना था अतः उन्होंने गिरिराज की पहाड़ी पर एक कच्चा भवन बनवा कर उसी में मूर्ति को प्रतिष्ठित कर दिया। यह भवन कुछ काल में मंदिर की तरह पूजनीय बन गया और उनके शिष्य -सेवकों ने इसमें सेवा-पूजा की विधि से उपासना-प्रार्थना आदि शुरू कर दी । इसी बीच अंबाला निवासी सेठ पूरनमल खत्री ने मंदिर निर्माण की इच्छा व्यक्त की और मंदिर का सारा व्यय भी उठाने का दायित्व अपने ऊपर ले लिया। मंदिर का मानचित्र ( नक्शा ) आगरा के सुप्रसिद्ध शिल्पी होरामन ने तैयार किया और हिन्दू स्थापत्य के अनुरूप शिखरदार मंदिर बनाया गया ।
इस मंदिर के देव-विग्रह श्रीनाथ जी के विषय में वार्ता साहित्य में कई प्रसंगों का उल्लेख है। यह कहा जाता है कि मुगलों के आक्रमण और आतंक के कारण श्रीनाथ के विग्रह को कुंभनदास आदि ब्रजवासी टोड़काधना में तथा गांठोलीवन में ले गए थे। उनका उद्देश्य विग्रह को मुगलों के प्रहार से छिपाना ही था । जंगल में सेवा-पूजा में कठिनाई आने पर भी इन भक्तों ने अपने शारीरिक कष्टों की तनिक भी परवाह नहीं की और श्रीनाथ जी के विग्रह को तब तक सुरक्षित बनाए रखा जब तक सुंदर एवं सुरुचिपूर्ण भव्य भवन का निर्माण नहीं हो गया। इस मंदिर के पूरे निर्माण में लगभग बीस वर्ष का समय लगा किंतु अधूरे भवन में ही श्रीनाथ जी की सेवा पूजा प्रारंभ हो गई थी। संवत् 1576 वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया ) को श्री आचार्य जी ने धूमधाम से श्रीनाथ जी का पाटोत्सव संपन्न किया । आज अक्षय तृतीया का उत्सव गोवर्धन में बड़े समारोहपूर्वक मनाया जाता है, यह उत्सव श्रीनाथ जी के मंदिर में विधिवत् प्रतिष्ठा (पाटोत्सव ) का ही सूचक है। मंदिर निर्माण में लंबी बीस वर्ष की अवधि के कई कारण वार्ता साहित्य में मिलते हैं । धनाभाव भी एक कारण बताया जाता है किंतु वास्तविक कारण तो सुलतान का भय ही था। उसकी संवत् 1574 में मृत्यु हो गई। उसके मरने के बाद दो वर्ष के भीतर मंदिर बनकर तैयार हो गया और पाटोत्सव भी संपन्न हो
सका ।
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गृहस्थाश्रम और घर-परिवार
जैसाकि पहले लिखा जा चुका है कि अपनी दूसरी यात्रा समाप्त करने के बाद वल्लभाचार्य जी जपनी माता जी के साथ काशी वापस आ गए थे और माता जी की आज्ञा से उन्होंने काशी के प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वान् देवभट्ट की कन्या में विवाह किया था किंतु विवाह के समय नववधू की आयु केवल आठ वर्ष की थी, अतः वल्लभाचार्य ने विवाह हो जाने पर भी वास्तविक रूप से गृहस्थाश्रम में प्रवेश नहीं किया वरन् वे तीसरी यात्रा के लिए सुदूर दक्षिण तथा ब्रज प्रदेश में चले गए । इस यात्रा में उन्होंने पूरे आठ वर्ष का समय लगाया। आठ वर्ष बाद जब यात्रा से लौटे तो उनकी पत्नी अक्का जी षोडशी युवती हो गई थीं। काशी आने पर सर्वप्रथम वल्लभाचार्य ने भागवत पारायण सप्ताह का आयोजन किया। इस आयोजन में काशी के अनेक पंडितों ने भाग लिया किंतु कुछ पंडित ईर्ष्यावश इसमें शामिल नहीं हुए और वल्लभाचार्य के भागवत पाठ को विधि-विधान के विरुद्ध ठहराने का प्रयास करने लगे । वल्लभाचार्य ने पंडितों को शास्त्रार्थ के लिए निमंत्रित किया किंतु किसी पंडित का साहस उनसे शास्त्रार्थं करने का नहीं हुआ । फलतः उनका भागवत पारायण सप्ताह निर्विघ्न समाप्त हुआ ।
गृहस्थाश्रम में विधिवत् प्रवेश करने के बाद संवत् 1568 को आश्विन कृष्ण द्वादशी को अड़ैल नामक स्थान में उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री गोपीनाथ का जन्म हुआ। अपने पुत्र की शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध आचार्य जी ने स्वयं किया। गोपीनाथ जो स्वभाव से शांत प्रकृति के थे । भगवद् भक्ति में लीन रहकर जीवनयापन करने में उन्हें सुख-संतोष प्राप्त होता था। सांसारिक कृत्यों में उनकी अपेक्षाकृत कम रुचि थी । अतः प्रायः तीर्थाटन के लिए जगदीशपुरी, द्वारका आदि चले जाते थे । जगन्नाथ जी का इष्ट होने से जगदीशपुरी की यात्रा पर प्रायः निकल जाते थे ।
श्री वल्लभाचार्य जी ने अपने जीवन के उत्तरार्ध में प्रयाग में संगम तट के समीप अड़ैल नामक स्थान को अपना निवास स्थान बना लिया था। वहीं उनके ज्येष्ठ पुत्र गोपीनाथ रहते थे। दूसरा स्थान काशी के समीप चुनार ( चरणाट) था । वहां उनके द्वितीय पुत्र विट्ठलनाथ जी अपनी माता के साथ निवास करते थे । गोवर्धन के श्रीनाथ जी के मंदिर की प्रबंध व्यवस्था कृष्णदास अधिकारी के पास थी और सेवा-पूजा का दायित्व बंगाली वैष्णव पुजारियों के पास था। कृष्णदास अघि कारी और बंगाली वैष्णवों में कुछ मन-मुटाव हो गया था। कृष्णदास नहीं चाहते थे कि बंगाली पुजारी श्रीनाथ जी के मंदिर में सेवा पूजा का काम करें। उनका आरोप था कि बंगालियों को पुष्टिमार्गीय सेवा पूजा की विधि नहीं माती अतः मंदिर में भक्तगण संतुष्ट होकर नहीं लौटते। कुछ और भी पूजा संबंधी आरोप थे अतः कृष्णदास उन्हें सेवा निवृत्त करना चाहते थे। इस झंझट के कारण गोपीनाथ जी और विटठलनाथ जी को गोवर्धन आना पड़ा । सारी परिस्थिति को समझ
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लेने के बाद भी गोपीनाथ जी बंगालियों को पृथक् नहीं करना चाहते थे क्योंकि उनकी नियुक्ति उनके पिता श्री वल्लभाचार्य ने की थी । श्रीवल्लभाचार्य के परलोकवास के बाद यह विवाद और बढ़ा और अंत में कृष्णदास अधिकारी की बात ही स्वीकृत हुई ।
श्री वल्लभाचार्य के द्वितीय पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ जी का जन्म संवत् 1572 वि० पौष कृष्णा नवमी को काशी के निकटवर्ती चरणाट / चुनार ) नामक स्थान में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा काशी में हुई। वे अत्यंत मेधावी, प्रतिभाशाली, कुशाग्र बुद्धि थे । शैशव में ही उन्होंने वेद-वेदांग का अध्ययन कर दर्शन और साहित्य में भी प्रवीणता प्राप्त कर ली थी । साहित्य- व्याकरणादि का अध्ययन करने के बाद उन्होंने सांप्रदायिक ग्रंथों का विधिवत् अनुशीलन किया । वास्तव में श्री वल्लभाचार्य के सांप्रदायिक सिद्धांतों, दार्शनिक मंतव्यों और कर्मकांड विषयक भक्तिमार्गीय सेवा-पूजा के विधानों को व्यापक आयाम पर प्रतिष्ठित करने का श्रेय विट्ठलनाथ जी को ही है। विट्ठलनाथ जी ने अपनी आयु का प्रथम चरण अर्थात् 28 वर्ष का समय तो काशी के निकट ही व्यतीत किया किंतु बीच-बीच में ब्रज प्रदेश में आते रहे । अपने ज्येष्ठ भ्राता गोपीनाथ जी की मृत्यु के बाद संवत् : 600 वि० में विट्ठलनाथ जी ब्रज में आ गए और श्रीनाथ जी के मंदिर की व्यवस्था में हाथ बंटाने लगे। उनके ज्येष्ठ भ्राता ने तो सेवा-पूजा में कोई परिवर्तन नहीं किया था किंतु विट्ठलनाथ और कृष्णदास अधिकारी ने मिलकर श्रीनाथ जी की सेवा पूजा में आमूल परिवर्तन किया । संप्रदाय को वैभव संपन्न और यश- सम्मान संपन्न बनाने के लिए उन्होंने देशाटन का कार्यक्रम बनाया। वे अर्डल गए, वहां की सारी व्यवस्था ठीक किया । शिष्य-सेवकों को वहां का दायित्व सौंप कर गुजरात की यात्रा पर निकल पड़े । इस यात्रा में उन्होंने पुष्टि मार्ग का सैद्धांतिक स्तर पर जमकर प्रचार किया । शिष्ट मंडली तैयार की। अपार धन-संपत्ति श्रीनाथ जी के लिए एकत्र की और यशस्वी अवतारी पुरुष की भांति लौटकर ब्रज में आए । गुजरात की यात्रा से संप्रदाय को दो लाभ हुए। पहला लाभ तो सांप्रदायिक सिद्धांतों का व्यापक प्रचार हुआ और पुष्टिमार्ग उत्तर भारत से पश्चिम भारत तक फैल गया। दूसरा लाभ यह हुआ कि विट्ठलनाथ जी की शिष्य परंपरा का विस्तार हुआ और उनके द्वारा श्रीनाथ जी के लिए विपुल धन-संपत्ति प्राप्त हो सकी। इस संपत्ति से मंदिर की नवीन व्यवस्था में बहुत सहयोग मिला ।
संप्रदाय की गद्दी का विवाद
गो० विट्ठलनाथ जी के अग्रज गोपीनाथ जी का परलोकवास संवत् 1599 में उस समय हुआ जब वे जगदीशपुरी को यात्रा पर गए हुए थे। उनकी मृत्यु के
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बाद उनके पुत्र पुरुषोत्तम का आचार्य की गद्दी पर बिठाने का विवादास्पद प्रसग संप्रदाय में और परिवार में उठ खड़ा हुआ । गोपीनाथ जी की पत्नी और कृष्णदास अधिकारी की इच्छा थी कि पुरुषोत्तम आचार्य की गद्दी पर बैठे। पुरुषोत्तम की आयु उस समय अठारह वर्ष की थी । वह श्रीनाथ जी के प्रबंध आदि के विषय में ठीक तरह जानकारी भी नहीं रखता था। चूंकि यह प्रश्न पारिवारिक विवाद का था अतः शिष्य-सेवक गण कुछ समय तक मौन रहे किंतु उनकी इच्छा थी कि आचार्य की गद्दी पर गोस्वामी विट्ठलनाथ जी बैठें क्योंकि उन्होंने अपनी योग्यता, कार्यकुशलता और सांप्रदायिक सिद्धांत ज्ञान से सबको प्रभावित कर दिया था। इस विवाद में कृष्णदास अधिकारी ने कलह बढ़ाने वाली भूमिका निबाही और एक ऐसा भी समय आया जब विट्ठलनाथ जी के लिए श्रीनाथ जी के कपाट भी बंद करा दिये । इस प्रपंच के पीछे कृष्णदास अधिकारी की बुद्धि ही काम कर रही थी किंतु भक्त जन में इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ रहा था । विट्ठलनाथ जी की प्रबंध पटुता, पांडित्य, सांप्रदायिक सिद्धांत ज्ञान और शिष्य मंडली पर व्यापक प्रभाव ने ऐसा वातावरण बना दिया था कि आचार्य गद्दी के लिए उनसे योग्य कोई दूसरा व्यक्ति परिवार में खड़ा नहीं हो सकता था । गद्दी के उत्तराधिकार का यह विवाद परिवार में चल ही रहा था कि पुरुषोत्तम जी की गोवर्धन में असमय में आकस्मिक रूप से मृत्यु हो गई और गृहकलह का यह दुखद प्रसंग स्वयं समाप्त हो गया। विट्ठलनाथ जी को सर्वसम्मति से आचार्य की गद्दी के लिए स्वीकार कर लिया गया ।
वार्ता साहित्य में यह प्रसंग कृष्णदास की वार्ता के अंतर्गत वर्णित है । उसमें यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि कृष्णदास ने जिन बंगाली पुजारियों से श्रीनाथ जी की सेवा पूजा का अधिकार छीना था उन्होंने अकबर के दरबार में अपने पक्ष में गुहार की थी। राजा टोडरमल और बीरबल ने इस विवाद को सुलझाने में सहायता की थी ।
श्रीनाथ जी की गद्दी पर विट्ठलनाथ जी के बठने के बाद सेवा-पूजा पद्धति में तो विराट परिवर्तन आया, साथ ही मंदिर की प्रबंध व्यवस्था भी सुधर गई । गोपीनाथ जी के समय श्रीनाथ जी के मंदिर में बंगाली पुजारियों ने काली पूजा का भी प्रचलन कर रखा था जो असंगत था किंतु गोपीनाथ जी उसे रोक नहीं सके थे क्योंकि वे प्रायः बाहर ही यात्रा पर रहते थे। उनकी निष्ठा भी जगन्नाथ में अधिक हो गई थी और वे श्रीनाथ जी की पूजा सेवा पर ध्यान नहीं दे पाते थे । गोपीनाथ जी के समय से ही कृष्णदास अधिकारी का वर्चस्व बढ़ने लगा था । वह मंदिर के प्रबंध में किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहता था । जब विट्ठलनाथ जी ने इस विषय में छानबीन की तो उन्हें मंदिर के सेवकों ने बताया कि कृष्णदास अधिकारी गंगाबाई नाम की एक धनाढ्य महिला को श्रीनाथ जी के भोग के
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समय भी हटाता नहीं है । इस महिला के संबंध में कुछ प्रवाद भी फैलने लगे थे, अतः विट्ठलनाथ जी ने कृष्णदास अधिकारी को बुलाकर सारी स्थिति से अवगत कराया और गंगाबाई का मंदिर में प्रवेश निषिद्ध कर दिया । यह एक ऐसी घटना थी जो कृष्णदास के अधिकार को चुनौती देने वाली होने के साथ मंदिर के सेवकों में भी उसकी प्रतिष्ठा पर आंच आने वाली थी । कृष्णदास ने अपने अहंकार और अभिमान में आकर विट्ठलनाथ के मंदिर प्रवेश पर पाबंदी लगा दी । इस प्रकार गृहकलह के साथ गद्दी के अधिकार का प्रश्न जुड़ गया ।
श्री विठ्ठलनाथ जी ने कृष्णदास अधिकारी द्वारा मंदिर प्रवेश की निषेधाज्ञा को चुपचाप स्वीकार कर लिया और वे गोवर्धन से कुछ दूर परासोली गांव के निकट चंद्रसरोवर पर रहने लगे। श्रीनाथ जी के दर्शन से वंचित होने के कारण उनका मन उदास रहता था । उन दिनों वे कुछ श्लोक बनाकर मंदिर में भेजते रहते थे। उन इलोकों को संप्रदाय में विज्ञप्ति के नाम से जाना जाता है । इन श्लोकों में अपने दैन्य और कार्पण्य के साथ भगवान् से विनयपूर्वक अज्ञात अपराध के लिए क्षमा याचना का भाव रहता था । विट्ठलनाथ जी ने यह समय पूर्ण धैर्य और शांति के साथ व्यतीत किया । उन्होंने क्षमाशीलता का भी अच्छा परिचय दिया। ऐसी प्रसिद्धि है कि विट्ठलनाथ जी के पुत्र गिरिधर ने मथुरा के हाकिम द्वारा कृष्णदास अधिकारी को कारावास की सजा करा दी थी किंतु विट्ठलनाथ जी ने अपनी ओर से क्षमा प्रदान करते हुए उसे कारावास से मुक्त कराया । इस प्रकरण से कृष्णदास पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा और उसने विट्ठलनाथ जी से क्षमा मांग कर इस दुखद प्रसंग को समाप्त किया । यह प्रसंग संप्रदाय के इतिहास में कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । पारिवारिक कलह, गद्दी का अधिकार, कृष्णदास की भूमिका, विट्ठलनाथ जी की उदारता आदि सब बातें इस प्रसंग से जुड़ी हैं। वार्ता साहित्य में इसे बहुत विस्तारपूर्वक लिखा गया है ।
श्री विट्ठलनाथ जी का आचार्यत्व
श्री वल्लभाचार्य जी ने अपने जीवन काल में अपने प्रमुख शिष्य दामोदर दास हरसानी को पुष्टिमार्गीय भक्ति तत्त्व की शिक्षा-दीक्षा देकर सेवा-पूजा की विधि में पारंगत बनाया था किंतु उसी समय अपने द्वितीय पुत्र विट्ठलनाथ जी को भी दार्शनिक मंतव्यों से परिचित करा दिया था । सेवा पूजा और लीला भावना का व्यावहारिक ज्ञान उन्होंने अपने पिता के प्रमुख शिष्य हरसानी और अच्युतदास से प्राप्त किया । श्री विट्ठलनाथ जी ने संवत् 1607वि० में विधिपूर्वक आचार्य पद ग्रहण किया और संप्रदाय की सर्वांगीण उन्नति को योजना बनाने में तत्पर हो गए । श्रद्धालु भक्त जन को वल्लभ संप्रदाय की ओर आकृष्ट करने के लिए सर्वप्रथम उन्होंने पुष्टिमार्गीय सेवा-पूजा विधि को व्यापक स्तर पर लोकप्रिय, रंजक एवं
18 / श्री वल्लभाचार्य
कर्मकांडपूर्ण बनाया । श्रीनाथ जी के मंदिर में शृंगार, मोग और राग का जो विस्तार आज लक्षित होता है इसका श्रेय विट्ठलनाथ जी को ही है। राग के अंतर्गत कीर्तन, पदगायन, भजन आदि को प्रमुख रूप से स्थान मिला। अष्टछाप के सुप्रसिद्ध कवि सूरदास आदि कीर्तन के लिए नियुक्त थे और प्रतिदिन अष्टयाम सेवा-पूजा के लिए नूतन पद रचना द्वारा कीर्तन करते थे ।
संप्रदाय की आचार्य गद्दी पर बैठने के बाद विट्ठलनाथ जी ने अपना स्थायी निवास स्थान ब्रजभूमि को बनाना चाहा और तदनुसार अड़ैल को छोड़कर ब्रजभूमि की तरफ चल पड़े । मार्ग में कुछ समय तक रानी दुर्गावती के अनुरोध पर गढ़ा ( म० प्र० ) में रहे । रामचंद्र बघेला के आग्रह पर उनके यहाँ भी कुछ दिन टिके रहे । बघेला के यहां सुप्रसिद्ध संगीत-मर्मज्ञ तानसेन भी किसी समय रहे थे । विट्ठलनाथ जी की पहली पत्नी का परलोक तभी हो चुका था जब वे अड़ैल में थे। रानी दुर्गावती के विशेष आग्रह और परामर्श पर उन्होंने दूसरा विवाह करना स्वीकार किया। यह द्वितीय विवाह तैलंग भट्ट की सुपुत्री पद्मावती के साथ संवत् 1620 वि० की वैशाख शुक्ल तृतीया को संपन्न हुआ था ।
श्री विट्ठलनाथ जी स्थायी रूप से ब्रज निवास के लिए अड़ैल से चले थे । संवत् 1623 में मथुरा आए थे। उनके निवास के लिए रानी दुर्गावती ने सात घर बनवाये थे जिन्हें सतघरा नाम से जाना जाता है। विट्ठलनाथ जी के छह पुत्र और वे स्वयं इन सातों घरों में रहते थे। इन्हीं दिनों विट्ठलनाथ जी ने पुनः गुजरात यात्रा का कार्यक्रम बनाया और यात्रा के लिए गुजरात चले गए । उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री गिरिधर ने गोवर्धन में विराजमान श्रीनाथ जी के विग्रह को सेवापूजा के निमित्त मथुरा लाने का निश्चय किया और सतधरा-भवन में उन्हें प्रतिष्ठित किया । लगभग तीन मास तक श्रीनाथ जी की मूर्ति मथुरा में रही । बाद में पुनः उसे गोवर्धन के मंदिर में पधराया गया ।
गुजरात की यह यात्रा श्री विट्ठलनाथ जी की उज्ज्वल कीर्ति में चार चांद लगाने वाली सिद्ध हुई । वल्लभ संप्रदाय के संबंध में तो सम्राट अकबर ने पहले से हो सुन रखा था और उसका प्रभाव जजिया कर आदि को हटाना था । अकबर पहले शासकों की अपेक्षा उदारवादी था । धार्मिक असहिष्णुता उसे पसंद नहीं थी । उसने सर्वधर्म समभाव की दृष्टि से अनेक अच्छे काम किए थे । हिन्दुओं के मन में समाया हुआ आतंक समाप्त हो गया था । हिन्दू अपने मंदिरों, देव-स्थानों और तीर्थों में पूजा-पाठ करने लगे थे। ऐसे भयरहित शांतिपूर्ण वातावरण बनाने में सम्राट् अकबर का सर्वाधिक योग था । अकबर ने जब यह सुना कि गोस्वामी विट्ठलनाथ स्थायी रूप से ब्रजभूमि में निवास करने आ गए हैं तब उसने अपने राज्य के अधिकारियों द्वारा ब्रजभूमि की सुरक्षा के लिए किए गए कार्यों की सूचना विट्ठलनाथ जी के पास भेजी। इस सूचना से भी ब्रजवासी आश्वस्त हुए |
a611c370801d9c91331e25e7361bc53af4c62d42 | web | जैव विविधता ने हमारी पृथ्वी को एक जीवंत ग्रह बनाया है। जिस हवा से हम सांस लेते हैं और जो खाना हम खाते हैं,वह सब जैव विविधता पर निर्भर हैं। जैव विविधता दरअसल पृथ्वी के जीवन की संपूर्ण तस्वीर है। पृथ्वी की मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मतम बैक्टीरिया से लेकर समुद्र में पाई जाने वाली वेल मछली तक हर जीव पृथ्वी की जैव विविधता का हिस्सा है। लेकिन जैव विविधता का संबंध सिर्फ प्रजातियों से नहीं है। यह समस्त जीव रूपों और उनके पर्यावास के बीच संबंधों को भी अभिव्यक्त करती है। इसमें समुद्र के सूक्ष्मतम जीव प्लैंक्टन और विशालकाय व्हेल का रिश्ता भी शामिल है जो वायुमंडल में ऑक्सीजन उत्पन्न करने में मदद करते हैं। इसमें बीजों और गैंडों का रिश्ता शामिल है जो जंगल लगाने में मदद करते हैं। इसमें बैक्टीरिया और पौधों का रिश्ता शामिल है जो मिट्टी की रासायनिक संरचना को बदलते हैं। जैव विविधता में प्रत्येक प्रजाति में आनुवंशिक अंतरों के अलावा जंगलों,नदियों,तालाबों, नदियों,रेगिस्तानों और खेतों की विविधता भी शामिल है। जैविक विविधता वाले संसाधन ऐसे मजबूत खंभें हैं जिन पर हम अपनी सभ्यताएं निर्मित करते हैं। करीब 80 प्रतिशत मानव आहार की व्यवस्था पेड़-पौधे करते हैं। विकासशील देशों के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 80 प्रतिशत से अधिक लोग अपनी बुनियादी स्वास्थ्य जरूरतों के लिए वनस्पति आधारित दवाओं पर निर्भर हैं। दुनिया के 3 अरब लोगों को 20 प्रतिशत पशु प्रोटीन मछलियों से मिलता है।
मनुष्य जैव विविधता समुदाय का अंग है और हमारी अपनी सांस्कृतिक विविधता को स्थानीय जैव विविधता का उत्पाद माना जाता है। संस्कृति का संबंध उस प्रकृति से है जहां से मानव समुदायों का उदय हुआ है। जब हम जैविक-सांस्कृतिक विविधता की बात करते हैं तो उसका अभिप्राय मानव संस्कृति और आसपास की पारिस्थितिकी से होता है। यह देखा गया है कि ठंडे और ध्रुवीय क्षेत्रों की तुलना में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जैव विविधता अधिक है क्योंकि वहां प्रजातियों की संख्या अधिक है और आनुवंशिक डेटा भी अधिक है। पारिस्थितिकी के आधार पर वहां ज्यादा जटिल अंतर-क्रियाएं होती हैं। दूसरी तरफ हम जैव विविधता में ठंडे प्रदेशों की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते। ध्रुवीय समुद्रों से लेकर सबसे गहरी गुफाओं तक ठंडी और अंधेरे वाली जगहों पर भी प्रचुर जीव रूप मौजूद हैं। इनमें से प्रत्येक जीव रूप हमारे पर्यावरण के लिए कुछ न कुछ योगदान करता है। हमारी मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जैव विविधता उन रासायनिक परिस्थितियों को उत्पन्न करती हैं जो स्वस्थ, संधारणीय और भरपूर फसल के लिए आवश्यक हैं।
जैव विविधता से मिलने वाली जीवनदायक सेवाओं को मानव टेक्नोलॉजी के स्तर पर दोहराया नहीं जा सकता और न ही आर्थिक स्तर पर उनका मूल्यांकन किया जा सकता है। फिर भी एक मोटे अनुमान के अनुसार जैव विविधता से मिलने वाली सेवाओं का मूल्य विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से दुगना है। पृथ्वी की जैव विविधता हमारा सबसे बहुमूल्य और सर्वाधिक आवश्यक संसाधन है। यह पृथ्वी के जीवमंडल अथवा बायोस्फीयर की प्राथमिक स्रोत है। हवा,पानी और भोजन जैसी मनुष्य की हर जरूरत यह जीवमंडल पूरी करता है। ऐसे कई ग्रह हो सकते हैं जहां पृथ्वी से ज्यादा बहुमूल्य खनिज मौजूद हों,लेकिन हम ऐसे दूसरे ग्रह को नहीं जानते जहां मानव सभ्यताओं के लिए आवश्यक परिस्थितियां मौजूद हों। हमारी पृथ्वी जैव विविधता से संपन्न है,हालांकि अनेक प्रजातियों की खोज अभी बाकी है। लेकिन मनुष्य की गतिविधियों के कारण अनेक मौजूदा प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है।
पृथ्वी की शानदार जैव विविधता इस समय संकट में है। मनुष्य की अनियंत्रित गतिविधियों के अलावा अब जलवायु परिवर्तन ने भी जैव विविधता के खिलाफ एक नया मोर्चा खोल दिया है। जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले पर्यावरणीय परिवर्तन से प्रजातियों के प्राकृतिक आवास अस्त-व्यस्त हो रहे हैं। इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि बढ़ता हुआ तापमान जैव विविधता को प्रभावित कर रहा है जबकि वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन,विषम मौसमीय घटनाओं और समुद्रों के अम्लीकरण से उन प्रजातियों पर दबाव पड़ रहा है जो पहले से मनुष्य की गतिविधियों की वजह से संकट में हैं। आने वाले समय में जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ेगा,हालांकि फलती-फूलती जैव प्रणालियों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की समुचित क्षमता है। यदि पृथ्वी के गर्म होने का वर्तमान सिलसिला जारी रहा तो 2030 तक वैश्विक तापमान औद्योगिक क्रांति से पूर्व की अवधि की तुलना में 1.5 सेल्सियस से ज्यादा बढ़ सकता है। जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव आग,तूफानों की तीव्रता और अकालों की अवधि में वृद्धि के रूप में सामने आ रहे हैं। आस्ट्रेलिया में 2019 के अंत में और 2020 के आरंभ में भीषण आग से 97000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले जंगल और आसपास के पर्यावास नष्ट हो गए थे। समझा जाता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से यह संकट ज्यादा विकराल हुआ। जाहिर है कि जंगलों की आग ने जैव विविधता के लिए भी खतरा उत्पन्न किया। समझा जाता है कि आग की घटनाओं की वजह से इस क्षेत्र में उन प्रजातियों की संख्या 14 प्रतिशत घट गई होगी जो पहले से ही खतरे में हैं।
आग और जंगलों के विनाश से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में ब्राजील के अमेजॉन के घने जंगलों का उल्लेख किया जा सकता है। 2020 में वहां आग लगने की 2500 से अधिक घटनाएं हुईं। इनमें 41 प्रतिशत से अधिक घटनाएं जंगलों में हुईं। अमेजॉन के जंगल विश्व के ऑक्सीजन और कार्बन चक्र को नियमित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये जंगल दुनिया की करीब 6 प्रतिशत ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं। इन जंगलों को 'कार्बन सिंक' भी माना जाता है क्योंकि ये वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड की बहुत बड़ी मात्रा सोख लेते हैं। दुनिया में पेड़-पौधों और जानवरों की आधी से अधिक प्रजातियां ब्राजील के अमेजॉन जैसे वर्षा-वनों में रहती हैं। ये वर्षा-वन दुनिया के फेफड़े माने जाते हैं। दुनिया की करीब 20 प्रतिशत ऑक्सीजन इन वनों द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। इन जंगलों के पेड़ वायु प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
विश्व में जैव-विविधता के बारे में वर्तमान पूर्वानुमान विचलित करने वाले हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि अगले 80 वर्षों में हम दस लाख से अधिक प्रजातियों को खो सकते हैं। मतलब आठ में से एक प्रजाति। इनके अलावा कई जानवरों की प्रजातियां पहले से ही कम हो चुकी हैं। बाघों ने अपनी 97 प्रतिशत आबादी खो दी है। घुमंतू पक्षी अपनी 70 प्रतिशत आबादी खो चुके हैं। जैव विविधता को सबसे बड़ा खतरा पर्यावास छिनने से है जिसका संबंध धरती पर और समुद्र में खाद्य उत्पादन से है। जैव विविधता को अस्तित्व बनाये रखने के लिए जगह चाहिए। हर जानवर को घर चाहिए। वह घर जंगल में होता है। जब हम जंगलों को हटा कर वहां कारखाने लगाते हैं तो हम एक तरह से उस लैंडस्केप को हटा देते हैं जो हमारे अपने जीवन के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। जब हम जैव विविधता को खो देते हैं तब हम जलवायु परिवर्तन से लड़ने,स्वस्थ और संधारणीय फसलें उगाने,स्वच्छ जल प्राप्त करने,महामारियों से लड़ने और अपने बच्चों के लिए अच्छा भविष्य बनाने की क्षमता भी खो देते हैं। जैव विविधता खोने से जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाले रोगों का खतरा बढ़ता है। यदि हम अपनी जैव विविधता को बनाए रखते हैं तो हम कोरोना जैसे वायरसों से होने वाली महामारियों को रोकने की बेहतर स्थिति में होंगे। मनुष्यों को जैव विविधता की आवश्यकता है। चूंकि जैव विविधता में गिरावट मनुष्य की वजह से हो रही है,जैव विविधता भी हम से अपेक्षा रखती है कि हम अपना व्यवहार सुधारें। यह उचित ही है कि संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर 'समस्त जीवन के लिए एक साझा भविष्य के निर्माण' का नारा दिया है। पृथ्वी की जैव विविधता बचाने के लिए हमें इसी नारे को लेकर आगे बढ़ना होगा।
भारत दुनिया का आठवां सर्वाधिक जैव विविध क्षेत्र है। विविधता सूचकांक पर भारत का स्कोर 0.46 बायोडी है। यहां पशु-पक्षियों की 102,718 प्रजातियां हैं। 2020 में देश के भौगोलिक क्षेत्र के 23.39 प्रतिशत हिस्सों में वनों और वृक्षों का आवरण था। भारत में विस्तृत जैव क्षेत्र हैं। इनमें ऊंचे पहाड़,रेगिस्तान,उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण वन,दलदली भूमि,मैदानी क्षेत्र,घास भूमि,नदियों के आसपास के क्षेत्र और द्वीपों के समूह शामिल हैं। भारत में जैव विविधता के चार हॉटस्पॉट हैं। ये हैं हिमालय,पश्चिमी घाट,हिंद-बर्मा क्षेत्र और निकोबार द्वीप सहित संडलैंड। दक्षिण-पूर्वी एशिया के एक खास जैव-भौगोलिक क्षेत्र को संडलैंड कहा जाता है। इन हॉट स्पॉट्स में अनेकों स्थानिक प्रजातियां हैं। भारत के कुल क्षेत्र के करीब 5 प्रतिशत क्षेत्र को औपचारिक रूप से संरक्षित क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
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5d285d9d286e7d9e4cd8cb46e651835a6a8ad7c482542af63fe73c51837c97d3 | pdf | अन्तराय कर्म के नाश होने से अनंत वीर्य प्रगट हो जाता है, आयु कर्म के अभाव होने से अवगाहन गुण प्रगट हो जाता है, नाम कर्म के नाश होने से सूक्ष्मत्व गुण प्रगट हो जाता है, गोत्र कर्म के अभाव से भगुरुलघु गुण प्रगट हो जाता है और वेदनीय कर्म के प्रभाव से अव्यावाध गुण प्रगट हो जाता है इस प्रकार आठों कर्मों के नाश हो जाने से सिद्धों में ऊपर लिखे आठ गुण प्रगट हो जाते हैं।
जागइपिच्छा संपलं लोयालोयं च एकहेलाए । सुक्खं सहाव जायं अवमं अंतरिही ।।६६५॥ जानाति पश्यति सकलं लोकालोकं च एक हेलया । सुखं स्वभाव जातं अनुपमं अन्तपरिहीनम् ।।६६५।।
एक ही समय में समस्त लोकाकाश और समस्त अलोका काश को जानते हैं तथा सबको एक हो साथ एक ही समय में देखते हैं। उन समस्त सिद्धों का सुख शुद्ध यात्म जन्य स्वाभाविक है, संसार उनके सुख की तथा उनकी कोई उपमा नहीं है और न कभी इन सिद्धों का अन्त होता है। वे सदा काल विराजमान रहते हैं ।
रवि मेरु चंदसायरगयखाईयं तु यत्थिं जह लोए । उaमाणं सिद्धाणं यत्थिं तदा सुक्खसंघाए ।।६६६॥ रवि मेरुचन्द्र सागर गगनादिकं तु नास्ति यथा. लोके । उपमानं सिद्धानां नास्ति तथा सुख संभाते ।।६६६॥
: अर्थ - सूर्य, चन्द्रमा, मेरु पर्वत समुद्र धाकाश आदि इस लोक संबंधी समस्त पदार्थ सिद्धों के उपमान नहीं हो सकते, अर्थात् संसार में ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जिसको उपमा सिद्धों को दे सकें। इसी प्रकार उनके अनन्त सुखका भी कोई उपमान नहीं है। •
चलणं वलणं चिंता करणीयं कि पिणत्थि सिद्धांणं । जम्हा दियतं कम्माभावे समुप्पणं ।।६६७।। चलन वलनं चिन्ता करणीयं किमपि नास्ति सिद्धानाम् । यस्मादतीन्द्रियत्वं कर्माभावेन समुत्पन्नम् ।।६६७।।
अर्थ- उन सिद्ध परमेष्टी को. न कहीं गमन करना पड़ता है, न अन्य कोई क्रिया करनी पड़ती है और न किसी प्रकार की चिंता करनी पड़ती है । इसका भी कारण यह है कि उनके समस्त कर्मों का अभाव हो गया है इसीलिये उनके अतीन्द्रियत्व प्राप्त हो गया है। भावार्थ - संसार में जितनी क्रियायें हैं वे सव इन्द्रियों के द्वारा होती हैं। सिद्ध परमेष्ठी के शरीर और इन्द्रियां सभी नष्ट हो गई हैं। इसलिये उनको कोई भी क्रिया कभी भी नहीं करनी पड़ती है।
आगे आचार्य अन्तिम मंगल करते हैं
रागृह कम्मवंधण नाइ जरामरण विप्पमुकाणं ।
अद्ववरिगुणाणं णमोणमो सच्च सिद्धाणं ।।६६८ ।।
नष्टाष्टकर्मबन्धनजातिजरा मरण विप्रमुक्तेभ्यः । अष्टवरिष्ठ गुणेभ्यो नमो नमः सर्वसिद्धेभ्यः ।।६६८।।
अर्थ - जिनके आठों कर्मों का बंधन नष्ट हो गया है, जन्म मरण बुढापा आदि सांसारिक समस्त दोष जिनके नष्ट हो गये हैं और ऊपर लिखे सर्व श्रेष्ठ श्राठ गुण प्रगट हो गये हैं ऐसे सिद्ध परमेष्ठी को मैं श्री देवसेन आचार्य बार बार नमस्कार करता हूँ ।
जिगवर सासण मतुलं जयउ चिरं सूरि सपर उवयारी । पाढय सौहृवि तहा जयंतु भव्वा वि भुवणयले ।।६६६॥ जिनवर शासन मतुलं जयतुं चिरं सूरिः स्वपरोपकारी । पाठकः साधु रपि तथा जयन्तु भव्या अपि भुवन तले ॥६६६॥
अर्थ संसार में जिसकी कोई उपमा नहीं ऐसा यह भगवान जिनेन्द्र देव का कहा हुआ शासन सदाकाल जयशील रहें । इसी प्रकार अपने आत्मा कल्याण करने वालें और अन्य अनेक भव्य जीवों का कल्याण करने वाले आचार्य परमेष्ठी सदा काल जयशील रहें। इसी प्रकार उपाध्याय परमेष्ठी तथा साधु परमेष्ठी सदा काल जयवंत रहे तथा तीनों लोकों में रहने वाले भव्य जीव भी सदा जयवंत रहें ।
जो पढइ सुगह छावखह असं भाव संग सुतं । सहयह णियय कम्मं कमेण सिद्धालयं जाइ ।।७००।
यः पठति श्र णोति कथयति अन्येषां भाव संग्रह सूत्रम् । सन्ति निजकर्म क्रमेण सिद्धालयं याति ॥७००।।
अर्थ - इस प्रकार कहे हुए इस भाव संग्रह के सूत्रों को जो पढ़ता है सुनता है अथवा अन्य भव्यजीवों को सुनाता है वह पुरुष अनुक्रम से अपने कर्मों को नाश कर सिद्ध अवस्था को प्राप्त करता है ।
मिरिविमलसेण गणहर सिस्सो णामेण देवसेणोत्ति । बुद्ध जण वोहणत्थं तेणेयं विरइयं सुतं ॥७०१।। श्री त्रिमलेसनगणघर शिष्यो नाम्ना देवसेन इति । शबुवजन बोधनार्थं तेनें विरचितं सूत्रम् ।। १०१ ।।
अर्थ - श्री विमलसेन गणघर वा आचार्य के शिष्य श्री देवसेन आचार्य ने अज्ञानी लोगों को समझाने के लिये इस भावसंग्रह सूत्र की रचना की है।
इस प्रकार अयोग केवली गुणस्थान का स्वरूप कहा।
इस प्रकार आचार्य श्री देवसेन विरचित भाष संग्रह ग्रंथ को धर्मरत्न, सरस्वती
दिवाकर, पंडित लालाराम शास्त्री
द्वारा निर्मित यह भाषा टीका
इस भावसंग्रह ग्रन्थ में चौदह गुणस्थानों का स्वरूप है । उस स्वरूप में सब गुणस्थानों की क्रियाएं भाव आदि बतलाये हैं, तथापि थोड़ासा स्वरूप और लिखा जाता है जिससे उनका पूर्ण ज्ञान हो जाय ।
गुणों के स्थानों को गुणस्थान कहते हैं, मोह और योग के निमित्त से सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र रूप आत्मा के गुणों की तारतम्यरूप अवस्था विशेष को गुणस्थान
44% are what you and I
" कहते हैं।
वे सब गुणस्थान चौदह हैं 1- मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, अविरत सम्यग्दृष्टी, देश विरत, प्रमत्त विरत, अप्रमत्त विरत, अपूर्व करण, अनिवृत्ति करण, सूक्ष्मसांपराय, उपशान्तमोह, क्षीणमोद्द, योगिकेवली, प्रयोग केवली ।
इनमें से पहला गुणस्थान दर्शन मोहनीय के उदय से होता है, इसमें आत्मा के परिणाम मिथ्यात्व रूप होते हैं, चौथा गुणस्थान दर्शन मोहनीय कर्म के उपशम क्षय अथवा क्षयोपशम से होता है । इस गुणस्थान में आत्मा के सम्यग्दर्शन गुण का प्रादुर्भाव हो जाता है। तीसरा गुणस्यान सम्यग्मिथ्यात्वरूप दर्शनमोहमोहनीय कर्म के उदय से होता है । इस गुणस्थान में
घात्मा के परिणाम सम्यग्मिथ्यात्व अर्थात् उभय रूप होते हैं । पहले गुणस्थान में औौदयिकभात्र, चौथे गुणस्थान में औपशमिक क्षायिक अथवा क्षायोपशमिक भाव और तीसरे गुणस्थान में
भाव होते हैं । परन्तु दूसरा गुणस्थान दर्शनमोहनीय कर्म का उदय उपशम क्षय और क्षयोपशम इन चार अवस्थाओं में से किसी भी अवस्था की अपेक्षा नहीं रखता है। इसलिये यहां पर दर्शनमोह कर्म की अपेक्षा से पारिणामिक भाव हैं किन्तु अनंतानुबन्धी रूप चारित्रमोहनीय कर्म की अपेक्षा से औदयिक भाव भी कहे जा सकते हैं । इस गुग्णस्थान में अनुवन्धी के से सम्यक्स्क घात हो गया है इसलिये वहां सम्यक्त्व नहीं' है. और मिथ्यात्व का भी उदय नहीं आया है इसलिये मिथ्यात्व परिणाम भी नहीं है । अतएव यह गुणस्थान मिथ्यात्व और सम्यक्त्व की अपेक्षा से अनुदय रूप है। पांचवें गुणस्थान से दशवें गुणस्थान तक छह गुणस्थान चारित्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशंम से होते हैं इसलिये इन गुणस्थानों में क्षायोपशभिक भाव होते हैं। इन गुणस्थानों में सम्यक्चारित्र गुण की क्रम से वृद्धि होती जाती है । ग्यारहवां गुणस्थान चारित्र मोहनीय कर्म के उपशम से होता है इसलिये ग्यारहवें गुणस्थान में औपशामिक भाव होते हैं । यद्यपि यहां पर चारित्रः मोहनीय कर्मका पूर्णतया उपशम हो गया है तथापि योग का सद्भाव होने से पूर्ण चारित्र नहीं है । क्योंकि सम्यक चारित्र के लक्षण में योग और कषाय के अभाव से सम्यक् चारित्र होता है। ऐसा लिखा है। वारहवांः गुणस्थानः चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय से होता है इसलिये
यहां क्षायिक भाव होते हैं । इस गुणस्थान में भी ग्यारहवें गुणस्थान की तरह सम्यक् चारित्र की पूर्णता नहीं है। सम्यग्ज्ञान गुण यद्यपि चौथा गुणस्थान में ही प्रगट हो चुका था । भावार्थ - यद्यपि आत्मा का ज्ञान गुण अनादिकाल से प्रवाह रूप चला आ रहा है तथापि दर्शन मोहनीयत्रर्म उदय होने से वह ज्ञान मिथ्यारूप था परन्तु चौथ गुणस्थान में जब दर्शनमोहनीय कर्म के उदय का अभाव हो गया तब वही आत्मा का ज्ञान गुण सम्यग्ज्ञान कहलाने लगा । पंचमादि गुणस्थानों में तपश्चरणादिक के निमित्त से अवधिज्ञान और मनः पर्यय ज्ञान भी किसी किसी जीव के प्रगट हो जाते हैं तथापि केवल ज्ञान के हुए बिना सम्यग्ज्ञान की पूर्णता नहीं हो सकती। इसलिये बारहवें गुणस्थान तक यद्यपि सम्यग्दर्शन की पूर्णता हो गई है ( क्योंकि क्षायिक सम्यक्त्व के बिना क्षपक श्रेणी नहीं चढ़ता और क्षपक श्रेणी के विना वारहवां गुणस्थान नहीं होता ) तथापि सम्यग्ज्ञान और सम्यक् 'चारित्र अभीतक अपूर्ण हैं । इसलिये अभी तक मोक्ष नहीं होता । तेरहवां गुणस्थान योगों के सद्भाव की अपेक्षा से होता है। इसलिये इसका नाम सयोग और केवलज्ञान के निमित्त से सयोग केवली है । इस गुणस्थान में सम्यग्ज्ञान की पूर्णता हो जाती है परन्तु चारित्र गुण की पूर्णता न होने से मोक्ष नहीं होता । चौदहवां गुणस्थान योगों के अभाव की अपेक्षा से हैं इसलिये इसका नाम प्रयोग केवली है । इस गुणस्थान में सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र इन तीनों गुणों की पूर्णता हो जाती है अतएव मोक्ष भी अब दूर नहीं रहा, अर्थात्
अ इ उ ऋ ऌ इन पांच ह्रस्व स्वरों के उच्चारण करने में जितना काल लगता है उतने ही काल में मोक्ष हो जाता है ।
आगे संक्षेप से सब गुणस्थानों का स्वरूप कहते हैं।
मिथ्यात्व गुणस्थान - मिथ्यात्व प्रकृति के उदयसे अतत्त्वार्थ श्रद्धा न रूप आत्मा के परिणाम विशेष को मिथ्यात्व गुणस्थान . कहते हैं । इस मिथ्यात्व गुणस्थान में रहने वाला जीव विपरीत श्रद्धान करता है और सच्चे धर्म की ओर इसकी रुचि नहीं होती। जैसे पित्तज्वर वाले रोगी को दुग्ध आदि मीठे रस कड़वे लगते हैं उसी प्रकार इसको भी समीचीन धर्म अच्छा नहीं
लगता ।
इस गुणस्थान में कर्मों की एकसौ अड़तीस प्रकृतियों में से स्पर्शादिक, बीस प्रकृतियों का अभेद विवक्षा से स्पर्शादिक चार में और बंधन पांच संघात पांच का अभेद विवक्षा से पांच शरीरों में अन्तर्भाव होता है इस कारण भेद विरक्षा से सब एकसौ अडतालीस और अभेद विवक्षा से एकसौ वाईस प्रकृति है । सम्बग्मिथ्यात्व और सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व इन दो प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता है । क्योंकि इन दोनों प्रकृतियों की सत्ता सम्यक्त्व परिणामों से मिथ्यात्व प्रकृति के तीन खंड करने से होती है । इस कारण अनादि मिथ्या दृष्टी जीव की बन्ध योग्य प्रकृति एकसौ बीस और सत्व योग्य प्रकृति एकसौ छयालीस हैं । मिथ्यात्व गुणस्थान में तीर्थंकर प्रकृति आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग इन तीन प्रकृतियों का बंध सम्यग्दृष्टिी के ही
होता है । इसलिये इस गुणस्थान में एकसौ बीस में से तीन घटाने पर एकसौ सत्रह प्रकृतियों का बन्ध होता है।
सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व आहारक शरीर आहारक आंगोपांग और तीर्थंकर प्रकृति इन पांच प्रकृतियों का इस गुणस्थान में उदय नहीं होता । इसलिये एकसौ वाईस में से पांच घटाने पर एकसौ सत्रह प्रकृतियों का उदय होता है । तथा एकसौ अडतालीस प्रकृतियों का सत्त्व रहता है।
सासादन गुणस्थान - प्रथमोपशम सम्यम्व के काल में जब अधिक से अधिक छह आवली और कम से कम एक समय शेष रहता है तब अनंतानुबंधी कपाय की किसी एक प्रकृति का उदय होने से सम्यक्त्व ॐ का नाश हो जाता है तथा मिथ्यात्वादि होता नहीं इसलिये उस समय वह जीव सासादन गुणस्थान वाला कहलाता है।
६ सम्पक्त्व के तीन भेद हैं। दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृति और अनन्तानुबंधी की चार प्रकृति इस प्रकार इन सात प्रकृतियों के उपशम होने स उपशम सम्पक्त्व होता है। इन सातों प्रकृतियों क्षय होने से जो सम्पक्त्व होता है वह क्षायिक है तथा छह प्रकृतियों के अनुदय और सम्यक् प्रकृति नाम की प्रकृति के उदय होने से जो सम्यक्त्व होता है उसको क्षयो पशमिक सम्यक्त्व कहते हैं । उपशम सम्पकत्व के दो भेद हैं एक प्रथमोपशम सम्यक्त्व और दूसरा द्वितीयोपशम सम्यक्त्व । अनादि मिथ्या दृष्टि
मिथ्यात्व गुणस्थान में एक सौ सत्रह प्रकृतियों का बंध होता था उनमें से उसी मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्यात्व, हुडक संस्थान, नपुंसक वेद, नरकगति नरकगत्यनुपूर्वी, नरकायु असंप्राप्ताष्टपाटक संहनन, एकेन्द्रिय जाति विकलत्रय तोन स्थावर आताप सूक्ष्म अपर्यात और साधारण इन सोलह प्रकृतियों की व्युच्छित्ति हो जाती है इसलिये एक सौ सत्रह में से सोलह घटाने पर एक सौ एक प्रकृतियों का बंध इस गुणस्थान में होता है। पहले गुणस्थान में एक सौ सत्रह प्रकृतियों का उदय होता है उसमें से मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म अपर्याप्त और साधारण इन पांच प्रकृतियों की व्युच्छित्ति हो जाती है अतएव पांच घटाने पर एक सौ बारह प्रकृतियां रहीं। परन्तु नरक गत्यानुपूर्वी का उदय इस गुणस्थान में नहीं होता इसलिये इस गुणस्थान में एक सौ ग्यारह प्रकृतियों का उदय होता है तथा सत्व एक सौ ४५ प्रकृतियों का होता है। यहां पर तीर्थंकर
के पांच और सादि मिथ्या दृष्टी के सात प्रकृतियों के उपराम होने से जो सम्पकत्व होता है उसको प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते हैं ।
सातवें गुणस्थान में क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव श्रेणी चढ़ने के सन्मुख अवस्था में अनंतानुबंधी चतुष्टय का विसंयोजन (अप्रत्याख्यानादि रूप) करके दर्शन मोहनीय की तीनों प्रकृतियों का उपशम करके जो संम्पक्त्व को प्राप्त होता है उसको द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहते हैं ।
प्रकृति आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग इन तीन प्रकृतियों की सत्ता नहीं रहती ।
मिश्र गुणस्थान - सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से जीव के न तो केवल सम्यक्त्व परिणाम होते हैं और न केवल मिथ्यात्व रूप परिणाम होते हैं किन्तु मिले हुए दही गुड के स्वाद के समान एक भिन्न जाति के मिश्र परिणाम होते हैं इसको मिश्र गुण स्थान कहते हैं ।
दूसरे गुण स्थान में बन्ध प्रकृति एक सौ एक थी। उनमें से अनंतानुबंधी क्रोध मान माया लोभ स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचला प्रचला, दुर्भाग दुःस्वर धनादेय, यग्रोध संस्थान, स्वाति - संस्थान, कुब्जक संस्थान, वामन संस्थान, वज्रनाराच संहनन नाराच संहनन अर्द्धनाराच संहनन, कीलित संहनन, अप्रशस्त विंायो गति, स्लोवेद, नीच गोत्र, तिर्यग्गति तिर्यग्गत्यानुपूर्वी तियंगायु, उद्योत, इन पच्चीस प्रकृतियों की व्युग्च्छत्ति होने से शेष छिहत्तरि, प्रकृतियां रहती हैं। इस गुण स्थान में किसी भी आयु फर्म का वंध नहीं होता इसलिये इन छिहतरि में से मनुष्यायु. और देवायु इन दो के घटाने पर चौहत्तरि प्रकृतियों का बंध होता है। नरकायु की पहले गुण स्थान में और तिर्यगायु की दूसरे गुण स्थान में व्युच्छित्ति हो चुकी है।
इस गुण स्थान में एक सौ प्रकृतियों का उदय होता है। क्योंकि दूसरे गुरंण स्थान में एक सौ ग्यारह प्रकृतियों का उदय था उनमें से अनंतानुषंधी चार, एकेन्द्रियादिक चार, स्थावर एक
इस प्रकार नौ प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होने पर एकसौ दो प्रकृतियां रह जाती हैं। इनमें से नरकगत्यानु पूर्वी दूसरे गुण स्थान में घट चुकी है और देवगत्यानुपूर्वी मनुष्यगत्यनु पूर्वी तिर्यग्गत्यानुपूर्वी इन प्रकृतियों का उदय इस गुण स्थान में नहीं होता क्योंकि इस गुण स्थान में मरण नहीं होता। इस प्रकार शेप निन्यानवे प्रकृति रह जाती है । तथा सम्बग्मिथ्यात्व प्रकृति का उदय इस गुण स्थान में रहता है। इस प्रकार इस गुण स्थान में सौ प्रकृतियों का उदय रहता है । इस गुण स्थान में तीर्थ कर प्रकृति के बिना एक सौ सेंतालीस प्रकृतियों का सत्व रहता है ।
अविरत सम्यग्डष्टी गुणस्थान - दर्शनमोहनीच की तीन और अनन्तानुबंधी की चार इन सात प्रकृतियों के उपशम तथा क्षय अथवा क्षयोपशम होने से और प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ के हृदय से व्रत रहित सम्बन्ष्टी पुरुष चौथे गुणस्थान वर्ती कहलाता है।
तीसरे गुणस्थान में चौहत्तरि प्रकृतियों का बंध होता है उनमें मनुष्यायु देवायु और तीर्थ कर प्रकृति इन प्रकृतियों सहित सतत्तरि प्रकृतियों का बंध होता है।
तीसरे गुणस्थान में सौ प्रकृतियों का उदय होता है, उनमें से सम्यग्मिध्यात्व की व्युच्छित्ति हो जाती है तथा चार आनुपूर्वी
जिस गुणस्थान में कर्म प्रकृतियों के बंध उदय अथवा सत्व की व्युच्छित्ति कही हो उस गुणस्थान तक ही उन प्रकृतियों. का बंघ उदय अथवा सत्त्व माना जाता है आगे के किसी भी
और सम्यक् प्रकृति मित्यात्व इन पांच प्रकृतियों के मिलाने से एक सौ चार प्रकृतियों का उदय होता है ।
इस गुण स्थान में एक सौ अढतालीस प्रकृतियों का सत्त्व रहता है किन्तु क्षायिक सय के एक सौ इकतालीस प्रकृतियों का ही सत्त्व रहता है।
पांचवां देश विरत गुण स्थान - प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ के उद्घ से यद्यपि संयम भाव नहीं होता तथापि अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ के उपशम से श्रावक व्रत रूप देश चारित्र होता है। इसी को देश विरत नामक पांचवां गुण स्थान कहते हैं। पांचवें आदि ऊपर के समस्त गुण स्थानों में सम्यग्दर्शन और सम्यग्दर्शन का अधिनाभावी सम्यग्ज्ञान अवश्य होता है। इनके बिना पांचवें छट्टे आदि गुण स्थान नहीं होते।
चौथे गुण स्थान में जो सतत्तरि प्रकृतियों का बंध कहा है उनमें से अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ मनुष्यगति मनुष्यगत्यानुपूर्वी मनुष्यायु औदारिक शरीर औदारिक अंगो पांग वजनृपभनाराच संहनन इन दश प्रकृतियों की व्युच्छत्ति इस गुरण स्थान में हो जाती है। इसलिये सतत्तर में से दश घटाने पर शेप सडसठ प्रकृतियों का वंध इस गुण स्थान में होता है।
गुण स्थान में उन प्रकृतियों का बंध उदय अथवा सत्व नहीं होता है इसीको व्युच्छित्ति कहते हैं।
चौथे गुण स्थान में एक सौ चार प्रकृतियों का उदय कहा है उनमें से अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान गाया लोभ, देवगति देवगत्यानु पूर्वी, देवायु, नरकायु, नरक गति नरक गत्यांनुपूर्वी, वैक्रियक शरीर वैक्रिथिक अौंगोपांग, मनुष्य गत्यानुपूर्वी, तिर्थग्गत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय, अयशस्कीर्ति इन सत्रह प्रकृतियों की व्युछत्ति इस गुरण स्थान में हो जाती है इसलिये एक सौ चार में से सत्रहं घटाने पर सत्तासी प्रकृतियों का उदय होता है।
चौथे गुण स्थान में एक सौ अडतालीस प्रकृतियों का सत्त्व रहता है उनमें से व्युच्छिन्न प्रकृति एक नरकायु के बिना एक खौ सेंतालीस का सत्त्व रहता है। किन्तु चायिक सम्यग्दृष्टी को अपेक्षा से एक सौ चालीस का ही सत्त्व रहता है ।
छठा प्रमत्तत्रिरत गुण स्थान-संज्वलन और नोकषाय के तीव्र उदय से संयम भाव तथा मल जनक प्रसाद ये दोनों ही युगपत् एक साथ होते हैं इसलिये इस गुणस्थानवर्ती मुनि को प्रमत्तविरत व्यथवा चित्रलाचरणी कहते हैं ।
यद्यपि संज्वलन और नो कषाय का उदय चारित्र गुण का विरोधी है. तथापि प्रत्याख्यानावरण कपाय का उपशम होने प्रादुर्भूत सकल संयम के घात करने में समर्थ नहीं है। इस कारण उपचार से संयम का उत्पादक कहा है ।
पांचवें गुण स्थान में सडसठ प्रकृतियों का बंध होता है उनमें से प्रत्याख्यांनावरण क्रोध मान माया लोभ इन चार
प्रकृतियों की व्युच्छित्ति हो जाती है इसलिये इन चार के घटाने पर शेप त्रेसठ प्रकृतियों का वंध होता है ।
पांचवें गुण स्थान में सतासी प्रकृतियों का उदय कहा है उनमें से प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ तिर्यग्गति तिर्थ गायु उद्योत और नीच गोत्र इन आठ प्रकृतियों की व्युच्छित्ति हो जाती है इसलिये इन आठ प्रकृतियों के घटाने पर शेप उनासी प्रकृतियां रह जाती हैं। उनमें आहारक शरीर और आहारक गोपांग मिलाने से इक्यासी प्रकृतियों का उदय रहता है।
पांचवें गुण स्थान में एक सौ सेंतालीस प्रकृतियों की सत्ता कही है उनमें से तिर्यगायु की व्युच्छित्ति हो जाती है इसलिये शेप एक सौ छयालीस प्रकृतियों का सत्त्व रहता है। किन्तु क्षायिक सम्यग्दृप्टी की अपेक्षा से एक सौ उन्तालीस का सत्त्व रहता है।
सातवां अगमत्त विरत गुण स्थान--संज्वलन और नो कषाय के मंद उदय होने से प्रमाद रहित संयम भाव होते है। इस कारण इस गुण स्थानवर्ती मुनि को अप्रमत्त विरत कहते हैं । इस गुण स्थान के स्वस्थान अप्रमत्त विरत और सातिशय अप्रमत्त विरत ऐसे दो भेद हैं । जो मुनि हजारों बार छठे से सातवें में और सातवें से छठे गुण स्थान में आयें जायं उसको स्वस्थान अप्रमत्त विरत कहते हैं तथा जो श्रेणी चढ़ने के सम्मुख होते हैं उनको सातिशय अप्रमत्त विरत कहते हैं ।
इसमें इतना और समझ लेना चाहिये कि क्षायिक सम्यग्दृष्टी और द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टी ही श्रेणी चढते हैं । प्रथमोपशम सम्यग्दृष्टी जीव प्रथमोपशम सम्यक्त्व को छोड़कर क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टी होकर प्रथम ही अनंतानुबंधी क्रोध मान माया लोभ का विसंयोजन करके दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृतियों का. उपशम करके यातो द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टी हो जाय अथवा तीनों प्रकृतियों का क्षय करके क्षायिक सम्यग्दृष्टी हो जाय तंव श्रेणी चढ़ सकता है ।
जहां चारित्र मोहनीय की शेप रही इक्कीस प्रकृतियों का क्रम से उपशम तथा क्षय किया जाय उसको श्रेणी कहते हैं । उस श्रेणी के दो भेद हैं । उपशम श्रेणी और चपक श्रेणी । जिसमें चारित्र मोहनीय की इकईस प्रकृतियों का उपशम किया जाय उसको उपशम श्रेणी कहते हैं और जिसमें उन इकईस प्रकृतियों का क्षय किया जाय उसको क्षपक श्रेणी कहते हैं । क्षायिक सम्यग्दृष्टी दोनों ही श्रेणी चढ़ सकता है। द्वितीयपशम सम्यग्दृष्टी जीव उपशम श्रेणी ही चढता है । क्षपक श्रेणी नहीं चढता। उपशम श्रेणी के आठवां नौवां दशवां और ग्यारहवां गुण स्थान हैं तथा उपक श्रेणी के आठवां नौवां दसवां और वारहवां गुरण स्थान हैं ।
चारित्र मोहनीय कर्म की इकईस प्रकृतियों को उपशम करने के लिये अथवा क्षय करने के लिये अधः करण अपूर्व करण और अनिवृत्ति करण ये तीन प्रकार के परिणाम निमित्त कारण
इनमें से जिस करण में परिणामों के समूह ऊपर के समय वर्ती तथा नीचे के समयवर्ती जीवों के परिणाम सदृश भी हों और विसदृश भी हों। उसको अधः करण कहते हैं। यह अधः करण सातवें गुण स्थान में ही होता है। इसका उदाहरण इस प्रकार है ।
किसी राजा के यहां ३०७२ तीन हजार वहत्तर आदमी काम करते हैं वे सब सोलह महकमों में भी बटे हुए हैं। पहलेमहकमें में एक सौ १६२ आदमी हैं दूसरे में एक सो छयासठ, तीसरे में एक सौ सत्तर, चौथे में एक सौ चौहत्तर, पांचवें में एक सौ अठत्तर, छठे में एक सौ व्यासी सातवें में एक सौ छियासी, आठवें में एक सौ नव्वे, नौवें में एक सौ चौरानवे, दशवें में एक सौ काठानवें ग्यारहवें में दो सौ दो, बारहवें में दो सौ छह, तेरहवें में दो सौ दस, चौदहरों में दो सौ चौदह, पन्द्रहवें में दो सौ अठारह और सोलहवें में दो सौ वाईस आदमी काम करते हैं।
पहले महकमेके एकसौ बासठ आदमियों में से पहले आदमी का वेतन एक रुयपा दूसरे का दो रुपया तीसरे का तीन रुपया इस प्रकार एक एक बढते हुए एकसौ वासठवें आदमी का वेतन एकसौ वासठ रुपया है। दूसरे महकमे में एक सौ छयासठ आदमी काम करते हैं उनमें से पहले आदमी का वेतन चालीस रुपया है। दूसरे तीसरे आदि आदमियों का वेतन क्रमसे एक एक रुपया वढता हुआ एकसौ छयासठवें आदमी का वेतन दो सौ पांच रुपया है । तीसरे महकमेमें एकसौ सत्तरि आदमी काम करते हैं इनमें से पहले आदमी का वेतन अस्सी रुपया है फिर |
4f20d9272b3e9950d48aaf5da83acce7484ee6caf259e9387d9f53c51e0846f7 | pdf | को आक्रमण का समाचार सुनते ही रणथम्भौर को जा घेरा। भूख और प्यास से व्याकुल होकर लगभग तीन महीनो के बाद मुसलमान दुर्ग छोड़कर भाग गये। वाग्भट रणथम्भौर का स्वामी हुआ और उसने 12 वर्ष तक राज्य किया।
वाग्भट के बाद उसका पुत्र जैत्रसिह गद्दी पर बैठा । हम्मीरदेव उसकी रानी हीरादेवी का पुत्र था। जैत्रसिह के पुत्र और थे जिनमें एक का नाम सुरत्राण और दूसरे का नाम वीरम था।
कुमार हम्मीर देव को सर्वथा राज्य योग्य देखकर जैत्रसिह ने उसे अभिषिक्त करने का विचार किया। हम्मीर देव जैत्रसिह का ज्येष्ठ पुत्र न था, इसलिए उसने राज्य लेने से आना कानी की, किन्तु राजा के यह कहने पर कि यह भगवान विष्णु की आज्ञा है, उसने पिता की आज्ञा मानी और संवत् 1339 माघ शुक्ल पुर्णिमा रविवार के दिन वृश्चिक लग्न एवं पुष्य नक्षत्र में हम्मीर का राज्याभिषेक हुआ। रोग के कारणअपना देहावसान निकट जान कर जैत्रसिह ने हम्मीर को नीति पूर्ण शिक्षा दी और स्वयं चम्बल नदी पर स्थित पत्तन तीर्थ के लिए प्रस्थान किया। यहाॅ जंबूपथ में सार्थवाही भगवान का मन्दिर था। रास्ते में ही पल्लीनामक ग्राम में राजा का देहावसान हो गया। हम्मीरदेव को अत्यन्त शोक हुआ, किन्तु वीजादित्यादि विद्वानों के समझाने पर उसने धैर्य धारण किया ।
सुर्जन चरित्र के इसी प्रसंग को देखने से ज्ञात होता है कि तीर्थ का नाम पत्तन था, श्री आश्रम नही ।
समसामयिक इतिहास ग्रन्थों और शिलालेखों से तुलना करने पर ज्ञात होता है कि हम्मीर महाकाव्य के उपरिलिखित वर्णन में सत्य की पर्याप्त मात्रा है। गोविन्द ने मुसलमानों की अधीनता स्वीकार कर वास्तव में रणथम्भौर में अनेक वर्षों तक राज्य किया। उसका पुत्र वाल्हण शमसुद्दीन अल्तमश के' अधीन था। इसी सुल्तान ने सन् 1226 ई० में रणथम्भौर पर अधिकार कर लिया। यही नयचन्द्र का शकधिराज 'जल्लालदीन है। बहुत सम्भव है कि सुलतान ने किला लेने में छल का प्रयोग किया हो। वीरनारायण का विरोधी वक्षःस्थलपुर का विग्रह कौन था ? यह बतलाना कठिन
वाग्भट ने जिस मालवेश का वध किया वह सम्भवतः देवपाल हो सकता है। संवत् 1292 के बाद उसका कोई लेख नहीं मिलता, किन्तु यह कहना कि वाग्भट ने उसके सम्पूर्ण राज्य पर अधिकार कर लिया अतिशयोक्ति पूर्ण है। मालवे पर परमार ही राज्य करते रहे यद्यपि उसके कुछ अंश आस-पास के राजाओं ने दबा लिये। वाग्भट के पुत्र जैत्रसिंह को मालवराज परमार जयसिंह से युद्ध करना पड़ा था ।
रणथम्भौर विजय की कथा प्रायः सत्य है । नयचन्द्र ने षर्पर शब्द का प्रयोग अनेकशः मुगलों
के लिये प्रयोग किया है । सं0 1290 के आस-पास मुगल - तुर्क, ख्वारिज्मी आदि भारत में अवश्य
आ चुके थे, किन्तु इनमें शायद ही कोई रणम्थभौर तक पहुंचा हो । अतः इस दुर्ग की विजय का वास्तविक श्रेय स्वयं वाग्भट्ट को है। मुसलमान इतिहासकार स्वीकार करते हैं कि बुरी तरह से घिर जाने के कारण रजिया के राज्य के आरम्भ में मुसलमानों को रणथम्भौर छोड़ना पड़ा । 1
जैत्रसिंह की कथा में कोई ऐसी बात ही नहीं है जिसे अनैतिहासिक कहा जा सके । हम्मीरदेव के प्रति जैत्रसिंह की शिक्षा अवश्य ही कुछ कवि-कल्पना प्रसूत है।
हम्मीर महाकाव्य के अंतिम सर्गो में हम्मीरदेव की कथा है। इसका कितना भाग ऐतिहासिक है और कितना अनैतिहासिक, यह बतलाने के लिये यहाँ इन सर्गों का विषय विश्लेषण किया जाता
सर्ग श्लोक - 9. 1-98
राज्यारोहण के कुछ समय बाद हम्मीरदेव ने चतुरंगसेना सहित दिग्विजय के लिये प्रयाण किया। भीमरस नगर पहुँच कर उसने अर्जुन राजा को वशीभूत किया, इसके बाद मण्डलकृत (मण्डलगढ़) से कर लेकर वह धारा गया। वहाँ उसने परमारराज भोज को हराया और फिर उज्जयिनी होता हुआ वह चित्तौड़ पहुँचा। तदनंतर उसने अर्बुदा चल में निष्पक्षभाव से अनेक तीर्थो में अवगाहन किया और अनेक देवी देवताओं की पूजा की। अभिमानी अर्बुदेश्वर ने उसे खूब धन दिया। फिर वर्धनपुर और चंगा को लूटता हुआ, वह पुष्कर पहुँचा। वहाँ स्नान कर वह शाकम्भरी को गया। उसने महाराष्ट्र, खंडिल्ल और चम्पा को लूटा और ककराल में त्रिभुवनाद्रि के अधिपति ने उसकी अधीनता स्वीकार की। इस प्रकार दिग्विजय कर वह वापिस आया और कुछ दिन वाद पुरोहित विश्वरूप के कहने पर उसने कोटि यज्ञ किया ।
सर्ग श्लोक - 9 99-150
कोटि यज्ञ के बाद हम्मीर ने एक मास का मुनिव्रत स्वीकार किया। इसी समय अलाउददीन ने अपने भाई उल्लूखान (उलूगखाँ) को रणथम्भौर देश नष्ट-भ्रष्ट करने के लिये भेजा। उसने बनास नही के किनारे डेरा डाला और देश को लूटना आरम्भ किया। राजा मौन था । अतः प्रधान धर्मसिंह की सलाह से सेनापति भीमसिंह ने मुसलमानों पर आक्रमण किया। मुसलमानो को हराकर भीमसिंह वापस लौटा। उलूगखाँ ने छिपकर उसका पीछा किया। धर्मसिंह को यह पता न था। अतः भीमसिंह को अकेला छोड और लूट का सारा सामान लेकर वह रणथम्भौर चला गया। घाटी में घुसते ही समय भीमसिंह ने खुशी के मारे मुसलमानों से छीने हुये बाजे बजवा दिये। मुसलमान इसे अपनी जय का संकेत समझकर एकत्र हो गये और भीमसिंह युद्ध मे काम आया। इसके बाद उलूगखाँ दिल्ली वापिस चला गया।
सर्ग श्लोक - 151-188 धर्मसिंह भीमसिंह को पीछे छोड़कर आगे बढ़ गया था। इससे अप्रसन्न होकर "तू हिजड़ा है" ऐसा कहकर राजा ने उसे वास्तव में हिजड़ा करवा दिया और उसका पद अपने दासी जात भाई खड्गग्राही भोज को दे दिया, किन्तु भोज अच्छा अर्थ मंत्री न था। वह राजा के धन और घोड़ो की मांग को न पूर्ण कर सका । इसलिये धर्मसिंह की शिष्या नर्तकी धारादेवी की सिफारिश से धर्मसिंह फिर राजमंत्री बना दिया गया। उसने प्रजा पर अनेक कर लगाकर कोश भर दिया, पर प्रजा इससे असन्तुष्ट हुई। सिखा -बुझाकर उसने राजा को भोज के विरुद्ध भी कर दिया राजा ने उसका प्रायः सबधन जब्त कर लिया । अन्त में राज - तिरस्कार से दुःखी होकर उसने काशीयात्रा के बहाने अपने भाई पीथसिह सहित रणथम्भौर छोड़ दिया। राजा ने प्रसन्नता पूर्वक दण्डनायक के पद पर रतिपाल को अभिषिक्त किया ।
सर्ग श्लोक - 10. 1-88
तिरस्कृत भोज सिरोह होता हुआ दिल्ली पहुँचा। अलाउद्दीन ने उसका अच्छी तरह स्वागत किया और जगरा नाम के स्थान जागीर दी। भोज की सलाह से फसल कटने से पूर्व ही उलूग खाँ बड़ी सेना सहित भेजा गया। मुसलमान सैन्य हिन्दूवाट पहुँच चुका था चारो ओर अंधकार ही अंधकार था। उस समय वीरम, जाजदेव, रतिपाल, रणमल्ल, महिमासाहि ( मुहम्मद शाह ) और उसके भाइयो ने मुसलमान-शिविर पर आक्रमण किया । मुसलमान हारकर भाग गये, कुछ समय बाद मुहम्मद शाह और उसके भाइयों ने जगरा पर छापा मारा और भोज के भाई और कुटुम्ब को कैद कर रणथम्भौर ले आये । इन बातों से कुद्ध होकर अलाउद्दीन ने शीघ्र ही हम्मीर को नष्ट करने की प्रतिज्ञा की ।
सर्ग श्लोक - 11-103
मुसलमान सम्राट ने चारो तरफ से फौजे इकट्ठी की और उन्हे उल्लूखाँ ( उलूग खाँ) और निसुरतखाँ (नसरत खाँ) की अध्यक्षता मे हम्मीर को जीतने के लिये भेजी । घाटियों में प्रवेश करना आसान न था। उलूग खाँ को अपना पहला अनुभव याद था, इसलिये उसने मोल्हण को संधि के बहाने हम्मीर के पास भेजा, हम्मीर के सैनिको ने भी यह सोचकर उसकी उपेक्षा की कि घाटी में घुसने पर यह सुख साध्य होगा। मुसलमान सेनापतियों ने घाटियाँ पार कर ली और जैत्रसर आदि पर अपने डेरे डाले। मोल्हण ने हम्मीर के सामने ये शर्ते पेश की- "हे हम्मीर ! यदि तुम्हे राज्य करने की इच्छा हो तो लाख मोहर, चार हाँथी, तीन घोड़े और अपनी बेटी देकर हमारी आज्ञा स्वीकार करो या चाहो तो केवल मेरी आज्ञा भंग करने वाले चार मुगलो को मुझे सौप सकते हो। हम्मीर ने इन शर्तो को अत्यन्त तिरस्कार पूर्ण उत्तर दिया और किले की रक्षा की तैयारी की । मुसलमान तीन महीने तक घेरा डाले युद्ध करते रहे । एक दिन एक गोले का टुकडा चटककर नसरत खाँ के मस्तक पर लगा और वह मर गया उलूग खाँ नसरत खाँ का मृत शरीर दिल्ली
भिजवाया और साथ ही अपनी स्थिति भी कहला भेजी। क्रोध और शोक से झल्ला कर अलाउद्दीन स्वयं हम्मीर से लड़ने के लिये आया ।
सर्ग श्लोक - 12.1-6
अलाउद्दीन को आया हुआ सुनकर हम्मीर ने किले पर सूप बंधवा दिये और अलाउद्दीन के पूंछने पर उसने कहला दिया कि भरी गाड़ी में सूप का भार कुछ विशेष नही होता । तुम्हारा आकर सेना में मिलना भी वैसा ही है। अलाउद्दीन ने प्रसन्न होकर - हम्मीर से जो इच्छा आये माँगने के लिये कहा किन्तु वीर हम्मीर ने केवल दो दिन के लिये युद्ध ही माँगा । सर्ग श्लोक - 12.759
दूसरे दिन शाम तक दोनो सेनाओं में अत्यन्त भयंकर युद्ध हुआ।
प्रातःकाल फिर युद्ध आरम्भ हुआ और इस समर में 85000 मुसलमान योद्धा काम आये । इसके बाद दोनो पक्षो ने कुछ दिनो तक युद्ध बन्द किया ।
सर्ग श्लोक - 13. 1-38
एक दिन हम्मीर ने नाच और गान का प्रबन्ध किया उसमें सभी सामन्तादि सम्मिलित हुए। धारा देवी नाचने लगी। उसकी तिरस्कार पूर्ण चेष्टाओं से कुद्ध होकर अलाउद्दीन ने अपने आदमियों को उस पर निशाना लगाने की आज्ञा दी और उड्डान सिंह नाम के एक धनुर्धर ने अपने बाण से उसे किले की दीवार से उपत्यका मे गिरा दिया। महिमासाहि (मुहम्मद शाह) ने अलउद्दीन को बाण का निशाना बनाकर इसका बदला लेना चाहा किन्तु हम्मीर ने "यदि तुम इसे मार दोगे तो मै किससे लडूंगा" ऐसा कहकर उसे रोक दिया। उड्डान सिंह को मारकर ही मुहम्मद शाह को सन्तोष करना पड़ा । इस जबरदस्त निशानेबाजी से डरकर मुसलमान तालाब की दूसरी ओर अपना शिविर ले गये।
इसके बाद मुसलमानो ने सुरंग लगाई और खाई को पूलो से, मिट्टी से और पत्थरो से भरना शुरू किया । जब ये दोनो काम पूरे हो गये तो मुसलमानो ने फिर युद्ध के लिये तैयारी की । हम्मीर ने यह सुनते ही खाँई को अग्नि के गोलो से जला डाला और सुरंग में गर्म लाख और तेल फेकवाया। मुसलमान योद्धा बुरी तरह से जल गये। शकाधीश ने जिन शको से सुरंग खुदवायी थी, उन्ही के कलेवरों से हम्मीर ने उसे भर दिया। अलाद्दीन के अनेक प्रयत्न विफल हुए । ग्रीष्म ऋतु बीत गई और वर्षा आ गई। यथा तथा संधि करने की इच्छा से अलाउद्दीन ने हम्मीर के दण्डनायक रतिपाल को बुला भेजा और हम्मीर ने कौतुकवश उसे जाने की आज्ञा प्रदान की।
अलाउद्दीन ने मान और दान दोनो से ही रतिपाल को वशीभूत किया । सभासदो में से अपने भाई के शिवाय सब को दूर कर सुल्तान ने रतिपाल के सामने पल्ला पसार कर केवल जय की याचना की । अन्तःपुर में ले जाकर उसने रतिपाल को भोजन कराया और अपनी बहिन के हाँथ से मदिरा पिलाई । इस आशा में कि शकेश जय के बाद अपने वचनानुसार उसे किला दे देगा, रतिपाल हम्मीर के पास पहुँचा और उसे झूठ - झूठ कहा हे देव ! शकेश ने कहा है - मूर्ख हम्मीर मुझे अपनी पुत्री नही देता है । यदि मै उसकी रानियों को भी न लूं तो मुझे उलाउद्दीन न समझना। रणमल्ल हम्मीर का अच्छा योद्धा था । वह इस बात से नाराज था कि शकेश से संधि की बात हो रही है। हम्मीर को रणमल्ल से लड़ाने कि लिए रतिपाल ने कहा, "आज रणमल्ल किसी कारण से अप्रशन्न हो गया है । आप पाँच-सात आदमियों सहित उसे मनावें"।
रतिपाल हम्मीरदेव के भाई वीरम के पास से होकर जब निकला तब शराव की दुर्गन्ध से वीरम समझ गया कि दुष्ट रतिपाल शुत्र से मिल गया है। हम्मीर को भी संशय हुआ किन्तु उसकी इच्छा न हुई कि रतिपाल के वध के कारण उसे अपयश का भागी बनना पडे -
इधर, जब रानियो को मालुम हुआ कि शकेश केवल पुत्री ही माँगता है। तो उन्होने शिखा-बुझाकर देवल्लदेवी को हम्मीर के पास भेजा। उसने पिता से प्रार्थना की कि वह उसे शकेश को देकर कुल की रक्षा करे। अपने कुल और धर्म के विरुद्ध इस बात का कोध एवं ओज पूर्ण शब्दों मे हम्मीर ने तिरस्कार किया ।
उधर रतिपाल ने रणमल्ल को कहा "भाई! भागने की तैयारी करो। हम्मीर तुम्हे पकड़ने के लिये आ रहा है। जब रणमल्ल नेयह बात न मानी तब उसने कहा, "यदि सायंकाल पाँच-सात आदमियो सहित हम्मीर इधर आये तो मेरा विश्वास करना।" राजा को उसी तरह आता हुआ देखकर रणमल्ल डर गया और शुत्र से जा मिला ।
रतिपाल भी दुर्ग से उतर कर शत्रु से जा मिला। इन बातों से खिन्न होकर राजा ने जाहड़ से पूछा, "कोश में अन्न कितना हैं? यदि मैं कहूँ कि अन्न नही हैं, तो अवश्य सन्धि हो जायेगी" यह सोचकर जाहड़ ने उत्तर दिया अन्न है ही नही। हम्मीर खिन्न होने लगा था। चारों तरफ धोखे बाजी से उसे मुगल (मुहम्मद शाह आदि) भाइयों पर संदेह होने लगा, इसलिये दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही उसने मुहम्मद शाह से कहा, "तुम विदेशी हो, अपत्ति के समय तुम्हारा यहाँ रहना ठीक नही
है। तुम जहाँ जानो चाहो नैं तुम्हे वही पहुँचा दूँ। "इन वचनों को से मर्मविद्ध होकर मुहम्मद शाह
घर पहुँचा और उसने अपने सब कुटुम्ब का कत्ल कर दिया। फिर आकर वह राजा से कहने लगा, "तुम्हारी भाभी जाने से पूर्व तुम्हारे दर्शन करना चाहती है, जिसकी कृपा से हम इतने दिन आनन्द से रहे, उसके दर्शन किये बिना जाने से उसे सदैव दुःख होगा। राजा मुहम्मद शाह के घर पहुँचा। चारों तरफ खून की नदी में स्त्रियों और बच्चों के सिर तैरते हुये देखकर वह मूर्छित हो गया और पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसे अत्यन्त पश्चाताप हुआ, पर अब हो ही क्या सकता था ?
सर्ग श्लोक - 13. 169-189 वहाँ से वापिस आकर हम्मीर ने कोश को अन्न से परिपूर्ण देखा। उसे जाहड़ की बुद्धि पर अत्यन्त क्रोध आया और खजाने को पद्मसर तालाब में डलवाने के बाद वीरम ने जाहड़ को प्राण - दण्ड दिया । स्थिति गम्भीर थी । इसलिये नगरवासियो के लिये मुक्ति द्वार खोल दिया गया। रंगदेवी आदि रानियों ने और हम्मीर की परमप्रिय पुत्री देवल्लदेवी ने अग्नि- प्रवेश किया।
वीरम ने जनापवाद के भय से राज्य ग्रहण नही किया । इसलिये राजा ने जाजदेव को गद्दी दी और नौ वीरों सहित युद्ध में प्रवेश किया। हम्मीर आ गया, यह सुनकर शकराज भी युद्ध के लिये आ पहुँचा। राजा से पूर्व वीरम ने स्वर्ग को प्रस्थान किया। मुहम्मद शाह के मूर्च्छित होने पर स्वयं हम्मीर ने वीरता पूर्वक युद्ध किया और अन्त मे शत्रुओं के बाणों से जर्जर होकर उसने स्वयं अपने हाँथो अपना प्राणांत किया। उसे यह सह्य न था कि वह जीवित ही शत्रु के हाथ आये । सर्ग श्लोक - 14.1-21
राजा की मृत्यु के बाद जाज ने दो दिन तक और युद्ध किया । मुहम्मद शाह अलाउद्दीन की सभा मे (सिर झुका कर नही, वल्कि) पदतल दिखाता हुआ घुसा। जब अलाउद्दीन ने पूछा "यदि तुम जीवित रहो तो तुम मेरे साथ कैसा व्यवहार करोगे"? उसने उत्तर दिया, "वही जो तुमने हम्मीर से किया है।" रतिपाल ने संग्राम-भूमि में अपने पदतल से हम्मीर का शिर दिखाया। पूंछने पर उसने हम्मीर की अनेक कृपायें भी स्वीकार की। अलाउद्दीन ने उसकी खाल निकलवा कर उचित ही किया, अन्यथा कौन स्वामी से द्रोह न करेगा?
हम्मीर की जीवनी के लिये हमें अनेक अन्य साधन भी प्राप्त है। हम्मीर महाकाव्य की कथा उनसे कही मिलान खाती है और कही-कही नही । कौन किस स्थान पर ठीक है, हम इस बात का यहाँ विचार करेगे।
नयचन्द्र ने हम्मीर की दिग्विजय का काफी अच्छा वर्णन किया है। किन्तु इसकी पूर्ण सत्यता में हमे सन्देह है। दिग्विजय के अन्त मे एक कोटि-यज्ञ किया गया था ।
इसका जिक्र हम्मीर के पौराणिक एवं मंत्री बैजादित्य द्वारा रचित सं० 1345 के एक शिला लेख मे
भी है। उसमें लिखा है कि हम्मीर ने दो कोटि - होम किये, मालवा के राजा अर्जुन को युद्ध मे हराया, अनेक हाँथी छीने और रणथम्भौर मे पुष्पक नाम का महल बनाया शिलालेख मे कोटि- होमों का जिक्र होने से यह निश्चित है कि यह हम्मीर की तथाकथित दिग्विजय के बाद लिखा गया था; किन्तु इसमें केवल मालवा के राजा अर्जुन पर विजय का वर्णन है, किसी दिग्विजय का नहीं। अतः क्या यह मानना उचित नही होगा कि या तो हम्मीर ने कोई दिग्विजय ही नही या संवत 1345 के बाद मालव-विजय के अतिरिक्त समय-समय पर अन्य कुछ विजय प्राप्त की जिन्हें कवि ने अपनी कल्पना से एक स्थान पर ग्रथित कर दिया है; किन्तु इस बात का ध्यान देते हुए कि न केवल हम्मीर - महाकाव्य का दिग्विजयान्त कोटि होम सं० 1345 से पूर्व हो चुका था, अपितु नयचन्द्र ने मालव-राज के अतिरिक्त किसी राजा का नाम ही नही दिया है, हमे दूसरे विकल्प की संभावना अधिक युक्तियुक्त प्रतीत नही होती ।
नयचन्द्र ने अलाउद्दीन के अनेक आक्रमणों का वर्णन किया है। इनमे पहले दो आक्रमणों का वर्णन मुसलमान इतिहासों मे नही है; किन्तु उनका कथा से इतना अधिक सम्बन्ध है और उनका सब वर्णन इतना व्यवरेवार है कि उन्हे असत्य मानना सम्भवतः केवल धृष्टता - मात्र या हिन्दू इतिहासकारों के प्रति व्यर्थ अश्रद्धा का सूचक होगा। हाँ यह बहुत सम्भव है कि भीमसिंह की मृत्यु अकस्मात् या केवल मुसलमानी बाजे बजाने से न हुई हो । मुसलमानी सेना पतियों की अनेक बार यह नीति रही है कि वे शत्रु के आक्रमण करते ही या तो पीछे हटते है या बिखर जाते है और फिर शत्रु के असावधान होने पर उस पर आक्रमण करते है । तरावड़ी के युद्ध मे मुहम्मद गोरी ने इस नीति का अनुसरण किया था। बहुत सम्भव है कि उलूग खॉ भी इसी नीति द्वारा भीमसिंह का वध करने मे समर्थ हुआ हो। दूसरा खिल्जी आक्रमण मुसलमानों के लिये कोई विशेष कीर्ति की चीज नही थी। सम्भव है, इसी कारण मुसलमान इतिहासकारों ने उसका जिक्र न किया हो अमीर खुसरो ने केवल एक आक्रमण चार या उससे भी अधिक हुये थे।
हम्मीर के अंतिम दिनों में प्रजो किस तरह दुःखी हुई और किस प्रकार क्रोध और लोभ प्रतिहिंसा की मूर्ति धर्मसिंह के वशीभूत होकर हम्मीर ने अनेक अनुचित कार्य किये इन सबके ज्ञान का एक मात्र साधन तो केवल हम्मीर महाकाव्य ही है इसके अभाव में हम्मीर के पतन के वास्तविक एवं आभ्यन्तरिक पतन के कारणों का संभवतः कभी पता न चलता। खड्गधारी भोज की सत्यता या असत्यता जाँचने के लिये हमारे पास कोई बाह्य साधन नहीं है किन्तु उसमें कही असत्यता प्रतीत नहीं होती है।
अलाउद्दीन के तीसरे और चौथे आक्रमणों के वर्णन का मिलान मुसलमान इतिहासकारों के वर्णन से किया जा सकता है। दोनों में प्रायः एक सा ही वर्णन है। नसरत खाँ की मृत्यु और मुसलमानों की अस्थायी पराजय का जिक्र फरिश्ता, बर्नी आदि के पृष्ठों में भी उतना ही स्पष्ट है।
जितना हम्मीर महाकाव्य में। चौहानों ने सुरंगों में मुसलमानों को किस प्रकार जला दिया यह खजाइन उलफुतूह में पढ़ा जा सकता है।
धारादेवी की कथा के बारे में कुछ नहीं का जा सकता, यद्यपि यह असम्भव प्रतीत नहीं होती है। रतिपाल के षड़यंत्र का वर्णन अन्यत्र नहीं मिलता, किन्तु यह असंदिग्ध रूप में कहा जा सकता है कि ऐसा षड़यंत्र अवश्य हुआ था । फरिश्ता को इस बात का ज्ञान था। उसने लिखा है कि "राजा का मंत्री रणमल एक मजबूत दल सहित सुल्तान से जा मिला था । सुल्तान ने यह कहते हुए "जिन आदमियों ने अपने सच्चे स्वामी को धोखादिया है वे किसी के लिये सच्चे नहीं हो सकते" ।
रणमल और उसके आदमियों को मरवा डाले । रतिपाल इन्ही साथियों के अन्तर्गत था । सुल्तान उसे अंतःपुर में ले गया, उसके सामने अंचल पसार कर याचना की आदि कथाएं सर्वथा कल्पित प्रतीत होती है। यदि ऐसा हुआ भी हो, तो भी नयचन्द्र के पास कौन सा साधन था जिससे वह यह मालूम कर सके ?
जौहर की कथा भी सर्वथा सत्य है। मुसलमान सिपाहियों तक ने चिताग्नि की ज्वालाओं को दूर से देखा था। अंतिम युद्ध में नयचन्द्र के कथनानुसार हम्मीर के साथ जो साथी थे उनके सम्बन्ध में अमीर खुसरों ने केवल "एक या दो काफिर लिखा है"।
मुहम्मदशाह की वीर मृत्यु का वर्णननयचन्द्र ने जानकर छोड़ दिया है। केवल उत्तर का ही वर्णन किया है। हिन्दू और मुसलमान केवल सच्ची वीरता का ही सम्मान करते है और उसको नही भुलाते, तब काते अकबरी के निम्नलिखित उद्वरण से सुस्पष्ट एवं प्रतीत हो सकेगा
"मुहम्मदशाह घायल पडा था, सुल्तान की दृष्टि उस पर पडी और उसने दयार्द्र होकर कहा, "यदि मै तुम्हे इस खतरे से बचा लूँ तो तुम क्या करोगे और उसके बाद तुम्हारा व्यवहार कैसा होगा 'उसने उत्तर दिया, यदि मैं घावों से ठीक हो जाऊ तो, मैं तुम्हें मारकर हम्मीर देव के पुत्र को सिंहासन पर बैठाऊँगा ।
जो स्वभाव से ही दुष्ट होता है वह किसी के लिये सच्चा नही होता । जो कुजात है वह सदा बुरा ही करता है।
सुल्तान उसे मस्त हाँथी के नीचे डलवाकर कुचलवा दिया। कुछ समय बाद जब उसे याद आया कि "मुहम्मद शाह अपने शरणदाता के प्रति कितना सच्चा व वफादार निकला तो उसने मुहम्मद को विधिवत दफनाने की आज्ञा दी"।
हिन्दू पक्ष से मुहम्मद शाह की स्मृति को सजीव रखकर नयचन्द्र ने यह महान कार्य किया । हम्मीर महाकाव्य के अनुसार दुर्ग का पतन श्रावण कृष्णा 6 रविवार सन् 1358 को हुआ । अमीर खुसरो की की तिथि इसके दो दिन पूर्व है। यह भेद नगण्य है। चाहमान जाज ने हम्मीर के मृत्यु के बाद दो दिन तक युद्ध किया। नयचन्द्र ने सम्भवतः उसकी मृत्यु का पतन माना है।
रम्भामञ्जरी नाटिका के लेखक का नाम भी नयचन्द्र है ये भी अच्छे कवि होने का दावा करते है, किन्तु न उनकी रचना में गाम्भीर्य है और न ऐतिहासिक तथ्य । सम्भवतः वे जैन भी न थे, उन्होने रम्भामञ्जरी का आरम्भ किया बाराहावतार, सरस्वती कटाक्षादि की स्तुति से किया है। शब्दाडम्बर का भी इन्होने कुछ अधिक प्रयोग किया है इसलिये उन्हें हम्मीर महाकाव्य के रचयिता नयनचन्द्र से भिन्न मानना ही संम्भवतः उचित होगा ।
निष्कर्ष - अतः उपर्युक्त तथ्यों के अवलोकन से यह पूर्ण सुस्पष्ट है कि हम्मीर महाकाव्य ऐतिहा सामाग्री की दृष्टि से श्रेष्ठ है। इसकी अधिकांश घटनायें तिथियां एवं पात्र मुसलमान इतिहासकारों की घटनाओं तिथियों एवं पात्रों से मिलान खाते है। इनकी घटनाये एवं वर्णन सत्य है । कवि कल्पित मात्र नहीं है। हम्मीर एवं उसके वंशावली से संबंधित इतिहास पर आधरित केवल हम्मीर महाकाव्य ही प्रभाविक ग्रन्थ है। ऐसा वर्णन एवं सत्य ऐतिहासिक तथ्य अन्यत्र दुर्लभ है। सच्चे एवं वफादार पात्रों के चरित्र वर्णन को इस ग्रन्थ में प्रधानता दी गयी है । चाहे वह पात्र हिन्दू हो या मुसलमान । क्योकिं स्वामी से द्रोह करने पर रतिपाल एवं रणमल को अन्त में अलाउदीन ही मरवा देता हैं। दूसरी हम्मीर के प्रति सच्ची वफादारी करने वाले महिमाशाह (मुहम्मद शाह ) को मृत्यु के उपरान्त उसका अच्छे ढंग से दाह संस्कार करता है।
अतः यह एक ऐतिहासिक दृष्टि से उत्कृष्ट महाकाव्य है। |
797213b50f167c0756782e2f4f1e3921e51c99b8a17b063362d5ac3fa21db5f0 | pdf | कार्यविधि (Procedure) :- प्रो० एसपेचोरियन (Aspaturian) के कुछनानुसार सर्वोच्च सोवियत "एक विचार करने वाली संस्था नहीं है. न ही यह कोई चाद-विवाद करने वाली सभा है...... न ही यह कोई नीति निर्धाण करती है। उसका मुख्य कार्य केवल एक श्रोता परिषद ( Listening assembly ) के समान है अधिकतर इसका कार्य मंत्रियों द्वारा तैयार की हुई विभिन्न सरकारी नीतिओं के सम्बन्ध में रिर्पोट्स को सुनना ही होता है। विवाद की स्थिति के विषय में प्रो० स्कॉट (Scott ) भी कहता है "विवाद में भाग लेने वाले लोगों की गिनती बहुत कम होती है और जो भाषण दिये जाते हैं उनमें बहुत कम मतभेद होता है । इस स्थिति का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि आज तक सर्वोच्च सोवियत में किसी भी नीति पर कोई मतभेद प्रकट नहीं किया गया है और न ही कोई व्यक्ति अनुपस्थित हुआ है । साधारण कानूनों में भी कई बार केवल आयोग बड़े मामूली से संशोधन ही करता है । परन्तु इससे अलग सब कुछ सर्वोच्च सोवियत में सर्व सम्मति से ही पास हो जाता है। इस स्थिति को वांशिसकी (Vyshinshy ) भी स्वीकार करता है। परन्तु वह इसके पक्ष में कहता है "सर्वोच्च सोवियत का प्रतिनिधि राजनैतिक को अपना धर्म नहीं समझता और न ही वह अपने आपको विधायक (legislator) समझता है वह समाजवादी उत्पादन, विज्ञान इत्यादि से सम्बन्ध रखने वाला एक अनुभवी व्यक्ति है और समाजवाद का उग्र समर्थक है । "3 इसलिए उसे पूजीवादी देशों के प्रतिनिधियों की तरह धुआंवार भाषण देने की कोई आवश्यकता नहीं होती ।
शक्तियां (Powers and Functions ) :- सर्वोच्च सोवियत, सोवियत संघ (U.S.SR.) की सर्वोच्च विधानपालिका तथा संस्था है। सोवियत संविधान पृथककरण के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता और इसे केवल एक बुजवा (Bourgeoisie) या पूजीवाद सिद्धान्त मानता है। इसलिए सर्वोच्च सोवियत को शक्तियों में विवानपालिका, कार्यपालिका तथा न्यायिक शक्तियां मिली जुली हैं ।
( 1 ) विधायक शक्ति (Legislative power ) :- संविधान के अनुच्छेद 32 के अनुमार सोवियत संघ की पूर्ण विधाविक शक्तियें सर्वोच्च सोवियत के पास हैं।
1. Vernon V. Aspaturian. op. cit -----p. 573 "The Sup eme Sovict is not a delcorating body : a debating assemblyIt functions crentially as a listening assembly.'
2. Scott, Derek. J. K. op. cit-"Participation in debate is relatively poor. and the speeches never give any indication of difference of opinion."
3. Vyshinsky Andrew. op. cit -- p. 353.
"A deputy of the Supreme Soviet is no professional politician or Jegislature. He is a person connected with Socialist production, Science and so forth - man of lively experience and work. a champion of socialism."
अर्थात् सर्वोच्च सोवियत संघ में देश के लिए कानूनों को पास करती है या उनमें • सुधार कर सकती है अथवा पुराने कानूनों को समाप्त कर सकती है। परन्तु व्यवहार में कानून बनाने का मुख्य कार्य प्रेज़ोडियम के हाथ में होता है । प्रेज़ीडियम ऐसे आदेश जारी करती है जिन को सर्वोच्च सोवियत बाद में कानून का रूप दे देती हैं । - सर्वोच्व सोवियत द्वारा बनाये गये कानूनों को सोवियत न्यायालय अमेरिका के न्यायालयों की तरह अवैध घोषित नहीं कर सकते ।
2. संशोधन की शक्ति (Power of amendment) :- संविधान के अनुच्छेद 146 के अनुसार संविधान में संशोधन करने का अधिकार सर्वोच्च सोवियत को प्रदान किया गया है । इस अनुच्छेद के अनुसार यदि कोई भी संशोधन सर्वोच्च सोवियत के दोनों सदनों में 2 / 3 बहुमत से पास हो जाये तो वह संविधान का भाग बन जाता है। परन्तु प्रो० स्कॉट (Scott ) के कथनानुसार "साधारणतः संशोधन पहले लागू होता है और सर्वोच्च सोवियत उसका बाद में अनुमोदन करती है । 1 जैसे संविधान के अनुच्छेद 121 के विरुद्ध 1940 में उच्च शिक्षा के लिए फीस लागू की गई तथा और क्षेत्रों में भी लगातार परिवर्तन किये गये । फरवरी 1944 में यूनियन गणराज्यों को विदेशों के साथ सम्पर्क रखने तथा स्वतन्त्र प्रतिरक्षा विभाग बनाने का अधिकार दिया गया । सन् 1945 में इसी तरह सर्वोच्च के सदस्यों की आयु को बढ़ा दिया । परन्तु इन सव परिवर्तनों को फरवरी 1947 में एक संवैधानिक संशोधन के रूप में पास किया गया ।
3. संवैधानिक शक्तियां (Constitutional powers ) :- सोवियत संविधान अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय की तरह, रूसी न्यायालयों की • संविधानको व्याख्या करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है । इसलिए यह कार्य सर्वोच्च सोवियत की चुनी हुई प्रो जीडियम हो करती है । सर्वोच्च सोवियत संविधान की रक्षक है, और इसका यह अधिकार है कि यह इस बात का ध्यान रखें कि यूनियन गणराज्यों के संविधान संघीय संविधान तथा कानूनों के अनुकूल हों। यह किसी नये गणराज्य को रूसी संघ में शामिल कर सकती है तथा यूनियन गणराज्यों के क्षेत्र तथा सीमाओं को भी बदल सकती है या किसी स्वायत्त गणराज्य को यूनियन गणराज्य में बदल सकती है ।
4. आर्थिक शक्तियां ( Economic powers) : सर्वोच्च सोवियत कोविशाल सोवियत आर्थिक या वित्तीय शक्तियां प्राप्त हैं जिनमें सोवियत संघ तथा यूनियन गणराज्य के सांझे वजट को पास करना, राष्ट्रीय आर्थिक योजना (National Economic Plan) को मान्यता देना, प्राकृतिक साधनों, बैंकों, उद्योगों, वीमा तथा रूसी अनेकों वित्तीय संस्थाओं पर नियन्त्रण रखना है। इनमें वे सब कार्य शामिल होते हैं जो समस्त सोवियत संघ के आर्थिक ढांचे की व्यवस्था में योगदान देते हैं ।
5. कार्यपालिका शक्तियां ( Executive powers ) :- सर्वोच्च सोवियत को व्यापक, कार्यपालिका तथा नियुक्ति की शक्तियें प्राप्त हैं । अनुच्छेद 48 के अनुसार सर्वोच्च सोवियत रूस की बहुत महत्त्वपूर्ण संस्था प्रेज़ीडियम को चुनती है । इसी तरह अनुच्छेद 70 के अनुसार सर्वोच्च सोवियन रूस के मन्त्रिमण्डल या सरकार की नियुक्त करती है जो देश की सर्वोच्च कार्यपालिका है । प्रेजीडियम तथा मन्त्रिमण्डल दोनों सर्वोच्च सोवियत के प्रति उत्तरदायी हैं । अनुच्छेद 105 के अनुसार सर्वोच्च सोवियत सर्वोच्च न्यायालय तथा विशेष न्यायालयों के न्यायधीशों को 5 वर्ष के लिए चुनती है । इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 114 के अनुसार सर्वोच्च सोवियत रूस के अद्वितिय न्यायिक अधिकारी प्रोक्यूरेटर जनरल ( The Procurator General) को सात वर्ष के लिए नियुक्त करती है । इस प्रकार सर्वोच्च सोवियत इंगलैंड की संसद से भी अधिक कार्यपालिका तथा नियुक्तियों के अधिकारों का प्रयोग करती है ।
6. विदेशी मामलों सम्बन्धी शक्तियां (Powers regarding Foreign affairs) :- संविधान के अनुच्छेद 14 (a ) के अनुसार सर्वोच्च सोवियत अर्न्तराष्ट्रीय क्षेत्र में रूस का प्रतिनिधित्व करना, समझौते करना, उनका समर्थन है, उनको समाप्त करना तथा ऐसे नियमों का निर्माण करना जिसके अनुसार रूस के दूसरे देशों से सम्बन्धों को नियन्त्रित किया जा सके । सर्वोच्च सोवियत ही युद्ध तथा शांति के प्रश्न पर विचार कर सकती है तथा विदेशी व्यापार की व्यवस्था करने के लिए नियम बनाती । इस प्रकार सर्वोच्च सोवियत अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में, रूस की एक मात्र प्रति निधि संस्था है ।
7. शिक्षा और सार्वजनिक कल्याण ( Education and welfare ) :सर्वोच्च सोवियत शिक्षा के मूलभूत आधारों को निश्चित करती तथा स्वास्थ्य रक्षा सम्बन्धी अनेकों नियम बनाती है । यह श्रमिकों के सम्बन्ध में निश्चित नियम तथा विधियों का निर्माण करती है ताकि श्रमिकों के हितों की रक्षा की जा सके ।
स्थिति (Position) : - सोवियत लेखकों के अनुसार सोवियत संघ की सर्वोच्च सोवियत के दोनों सदन "एक समस्त- संघीय राज्यों की शक्ति की सर्वोच्च संस्था बनाते हैं तथा सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ ( U. S. S, R.) की सर्वोच्च सोवियत जनता की इच्छा की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति है । " I उनके विचार में पश्चिमी 1
Karpinsky V.
op. cit |
470cccff5b02bd429b68c64f7bc3f0072d08c34f89f8099188979444ab6accc1 | pdf | 4817 Delhi Development
11 DECEMBER 1957 Delhi Development Bill
श्री बाजपेयी और इस के फलस्वरूप हजारों लोग जो दिल्ली में स्थायी रूप से बस गये है और यहा अपने मकान बनाना चाहते है, वे मकान नहीं बना सके है इस का सब से बड़ा कारण यह था कि प्राविजनल मथारिटी ने निर्माण के लिये - कंस्ट्रक्शन के लिये - जो शर्तें लगाई जिन्हें ऐमेनीटीज कहा जाता है मौर जिन का उल्लेख इस बिल मे भी है, वे शर्तें पूरी नहीं हो सकी । साफ पानी पाहिये, बिजली चाहिये, पंडरग्राउंड सिउएज चाहिये, सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है लेकिन इसके लिये जितने धन की आवश्यकता है, सर्वसाधारण मादमी के पास वह नही है । नई दिल्ली में जिस तरह के मकान बन रहे है, क्या हम प्राशा करते हैं कि उसी तरह के मकान. जा दिल्ली झाज बीमियो मोल तक फैल रही है, उस में बनेंगे ? बने, यह इच्छा तो ठीक है, मगर उस के लिये साधन कहा से आयेंगे दफ्तर के कर्मचारी बाबू लागऔर मध्यम वर्ग के लोग जो तीन, चार, पाच में अपना हजार रुपये मकान चाहते है बिजली अगर नही रही, तो तेल का दिया या लाल्टन जना सवते हं और अगर फ्लश का लंदिन नहीं रहा, तो उन वा जीवन कार्ड दूमर होने वाला नहीं है। लेकिन आज कहा जाता है कि जब तक य सुविधायें नहीं होगा, निर्माण नही होगा। जिन के पास सिर छिराने के लिये जगह नहीं है उन में यह कहना कि वे इन सुविधाओं के लिये माधन जुटायें, एक बड़ा मजाक मालूम होता है। और दिल्ली में ऐसा ही हुआ है । डी० डी० पी० ए० न यही किया है और मुझे डर है कि यही इतिहास फिर से दोहराया जायेगा ।
इस का एक और नतीजा हुआ है । हम चाह यह है कि लोग बिना किसी अधिकार के मजान न बनाये, लेकिन मकानों की जब अनुमति नहीं दी गई, तो मन-एथाराइज्ड कंस्ट्रक्शन हुए और मेरा दावा है कि पियले दो तीन साल में दिल्ली में पच्चीस हजार से अधिक ऐसे मकान बने हूं, जिन के लिये
अनुमति नहीं ली गई, जिन के लिये अधिकार नहीं दिया गया । लोग मकान बना कर बैड गये है । आप अब उन्हें तोड़ेगे और तोड़ कर उन्हें दूसरे मकान देंगे या उन्हें दूसरे मकान मिल जायेगे, ऐसी स्थिति नहीं है। मेरा सुझाव यह है कि हम दिल्ली की सुन्दरता की चिंता करें, यह तो ठीक है, मगर उस के साथ इस का भी विचार होना चाहिये कि हर एक छोटा मादमी, जो भाज मंहगाई और टैक्सों के पाटो में पिसा जा रहा है, सिर छिपाने के लिये अपना एक घर पा सके, जिसे वह अपना कह सके, इस बात की आवश्यकता है और इस श्रावश्यकता को पूरा करने के लिये प्राविजनस भयारिटी पूर्णतया प्रमफल रही है भोर जिस तरह का विधेयक बनाया गया है, जो उस की धाराये हूं, उन को देखने से पता लगता है कि यह कठिनाई दूर नहीं होगी । इस कठिनाई को दूर करने के दो ही रास्ते है : या तो सरकार रस्य मकान बनाय, मस्ते मकान बनाये और जिन के पास मकान नही हं, उन्हें दे या वजे के रूप में उन को कुछ धन दे और धीरे धीरे उन से वह धन ले लिया जाये । लेकिन इस सम्बन्ध में यह आवश्यक है कि के मकान तो प्राफिट नो लास के बेनिग पर दिये जाने चाहिये । मेरा आरोप है अथारिटी ने दिल्ली के विकास को चिन्ता कितनी को उसके बारे में तो मुझे सन्देह है ही, मगर उसने मुनाफाखोरी बाफी की है । मरने दामों पर जमीन प्राप्त कर लो-एक्यावर कर ली और कम्पेन्मेशन देने की जा व्यवस्था है .
श्री नवल मनक्कर (बाह्य दिल्लीरक्षित - मनुसूचित जातिया) : अभी तो कुछ किया ही नहीं गया ।
श्री बाजपेयी ऐसी बात नहीं है ।
श्री नवल प्रभाकर : भाप की जानकारी भरी है ।
श्री मेरी जानकारी पूरी है धौर में प्राप को बनाऊंगा कि अजमेरी गे
4819 Delhi Development
एक्सटेंशन में जो मकान बनाये गये है, वह जमीन क्या प्राप्त नहीं की गई है और क्या यह गलत है कि वहां जो जमीन प्राप्त की गई, यह सस्ते भाव पर की गई और बाद में उसे महंगे भाव पर बेचा गया । २०० रुपये बीघा पर जमीन ली गई और ३०० रुपये गज पर बह दी गई। यह मैं ने नही दी - जिन के हाथ में देने का अधिकार है, उन्हों ने ही दी ।
श्री नवल प्रभाकर यह अथारिटी ने नहीं दी ।
11 DECEMBER 1957
भी वाजपेयी : प्राविजनल प्रथारिटी ने अगर नहीं दी, तो भी यह सब दिल्ली में हुआ और इस के लिये सरकार उत्तरदायी है और प्राप इस से बच नहीं सकते है । क्या यह फिर से दोहराया नहीं जायेगा ? जिस तरह से प्राज जमीन को विकसित करने का खर्चा लगाया जा रहा है, उसका मे एक उदाहरण दूंगा ।
Raja Mahendra Pratap: On a point of order. There is no quorum in the House.
Mr. Deputy-Speaker: The bell is being rung.... Now there is quorum. अब मानीय सदस्य, प्रपना भाषण जारी
रखें ।
श्री बाजपेयी : उपाध्यक्ष महोदय, में यह निवेदन कर रहा था कि भूमि के एक गज के टुकड़े को डेवेलप करने के लिये ६ या ७ रुपये चाहियें । लेकिन जिन्हें सरकारी कालोनीज कहा जाता है और जिन की संख्या २६ या २७ बतायी जाती है उन में जिस भमि को विकसित किया गया है उस की कीमत २५ रुपये गज वसूल की जा रही है । जब विकास करने में ६ या ७ रुपये प्रति गज लगते हैं तो उस जमीन के टुकड़े को ग्राम सादमी को देने में उस की कीमत २५ रुपये गज किस गणित के अनुसार हो जाती है यह समझने में में अपने को असमर्थ पाता हूं।
Delhi Development 4820 Bill
दिल्ली के प्रासपास जिन किसानों की जमीन ली गई है, जिन्हों में यहां संसद् भवन के सामने और प्रधान मंत्री की कोठी पर प्रदर्शन किया था, उन की भी यह शिकायत है कि उन की जमीन बहुत कम दामों पर ली गई है और जो कम दामों पर ले रहे हैं वे भगर यह समझते हों कि इस ढंग के विकास से वे दिल्ली की जनता को सन्तुष्ट कर देंगे तो यह उन की भूल है ।
कीर्ति नगर की एक कालोनी है जिस में ८० फीसदी रुपया जनता का है गौर २० प्रतिशत बैंक का है। लेकिन उस के सम्बन्ध में भी यही नीति अपनाई जा रही है। राजेन्द्र नगर में २५ रुपये गज पर जमीन मिल रही है जब कि राजोरी गार्डन्स में ८ या १० रुपये गज पर जमीन मिल रही है। ऐसा भेद क्यों है ? इस का एक ही उत्तर है कि हम डेवेनमेंट प्रथारिटी अलग बनाते हैं। तो उस में यह महोत है कि जो भी काम किया जायेगा बढ़े खर्च के साथ कार्य किया जायेगा और ऐसा हो भी रहा है। लेकिन सरकार यह बात स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं है कि अलग से डेवलपमेंट प्रथारिटी की जरूरत नहीं है। मेरा निवेदन है, मगर माप कोरपोरेशन पर इस बात के लिये विश्वास करने को तैयार नही हैं । कि वह दिल्ली का विकास ठीक ढंग से कर सकेगा भौर उस के उत्तरदायित्व को निभा सकेगा, यद्यपि बम्बई कारपोरेशन यह काम कर रहा है, तो कम से कम हम ने अथारिटी का जो स्वरूप बनाया है उस में हमें परिवर्तन करना चाहिये ।
माननीय मंत्री महोदय ने डेवलपमेंट अथारिटी किस तरह से बनेगी. उस के कौन कौन सदस्य होंगे, इस का भी वर्णन किया है। उस से स्पष्ट है कि वह एक मनोनीत बाडी होगी । उस में नियक्त मादमी होंगे भोर अब कहा जा रहा है कि वह कारपोरेशन से कंसल्टेशन करेगी। कारपोरेशन जनता द्वारा चुना जायेगा, डेवेलपमेंट प्रथारिटी सरकार द्वारा बनाई जायेगी, और दोनों में विचार विनिमय
4831 Delhi Development
[श्री बाजपेयी
होगा । विचार विनिमय में मतभेद भी हो सकता है। मतभेद मे किस की बात चलेगी ? क्या डेवलपमेंट प्रथारिटी कारपोरेशन की बात सुन लेगी, और सुनने का यह पर्व है कि कसल्टेशन करेगी और फिर उस को ताक पर रख देगी । जो भाज धारायें है इस विधेयक की उन से यह स्पष्ट है कि विचार विनिमय किया जायेगा । भगर कारपोरेशन की बात प्रथारिटी की समझ में भा गयी तो उसे मान लिया जायेगा अन्यथा प्रथारिटी को जो कुछ दिखायी देगा वह करेगी। अथारिटी में कारपोरेशन के सदस्यों की संख्या बढ़ायी जा सकती है । क्यो नही बढ़ायी गयी । जो एडवाइजरी काउंसिल होगी उस मे दिल्ली से पालियामेट के लिये निर्वाचित सभी सदस्य लिये जा सकते है। लेकिन सब नहीं लिये गये । बुछ छोड दिये गये है । क्यो छोड दिये गये है ? वे तो जनता के प्रतिनिधि है । या शायद छोड देने का यह कारण है कि वे दिल्ली डेवेलपमेंट प्रथारिटो को अलग रखने का विचार से सहमत नहीं है ? में नहीं समझता कि इस का क्या कारण है । ममी म समय है डेवेलपमेट प्रचारिटी के स्वरूप को बदला जा सकता है। उस में चुने हुए प्रतिनिधियों को अधिक स्थान दिया जा सकता है ।
11 DECH BER 1967
जो एडवाइजरी काउन्सिल बनायी गई है उस का कामसलाह देना होगा। क्या डवेलपमेंट भया टी उस सलाह को मानने के लिये बाध्य होगी। क्या दोनो मे मतभेद न होगा ? मतभेद होगा तो उस का निर्णय कौन करेगा ? कारपोरेशन और डेवेलपमेंट प्रथारिटी में अगर गतिरोध पैदा हो गया तो उस गतिरोध में से कौन रास्ता निकालेगा ? किस का निर्णय मन्तिम होगा ? अगर उस का निर्णय अन्तिम होगा जो सरकार द्वारा नियुक्त होगा, तो फिर कारपोरेशन में जो जनता द्वारा चुने हुए है और डेवेलपमेंट प्रथारिटी उन में मघयं होगा, और मगर सङ्घर्ष होगा तो दिल्ली का विकास रुक जायेगा ।
Dethi Development 4823 Bill
विधेयक में एक मास्टर प्लान का भी उल्लेख किया गया है। बहुत दिनों से चर्चा की जा रही है उस मास्टर प्लान की, और दिल्ली वालों की मांखें तरस रही है उस मास्टर प्लान का दर्शन करने के लिये कब तक वह बनेगा, कब प्रकाश में पायेगा, इस के सम्बन्ध में कोई प्रवधि निर्धारित नहीं की गयी है । कोई समय ते नहीं किया गया है। मास्टर प्लान न बना इसलिये दिल्ली का निर्माण रुका हुआ है। इस विधेयक में इस बात को स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिये कि इतने समय के भीतर मास्टर प्लान बन जायेगा। लेकिन इस सम्बन्ध में भी विधेयक मौन है +
उपाध्यक्ष महोदय माननीय सदस्य को बीस मिनट होने वाले हुए। उन्हें समाप्त जल्दी ही करना चाहिये ।
श्री बाजपेयी जी हा, आाप वानिंग बेल बजाये तो में खत्म कर दूंगा ।
उपाध्यक्ष महोदय मेरी जवान को ही वानिंग बल समझ लीजिये ।
श्री बाजपेयो में अभी दो मिनट में वन्म करता है ।
जो भी इस विधेयक के सम्बन्ध मे मशोधन रखे गये है उन में अनेक सशोधन जो विरोधी पक्ष की ओर से रखे गये है महत्वपूर्ण है, जैसे कारपोरेशन के जो प्रतिनिधि प्राने वाले है उन में एक प्रतिनिधि रूरल एरिया का भी होना चाहिये, इस तरह का सशोधन रखा गया है । और किमी की अगर भूमि ली जायेगी तो उस को कम्पेन्सेशन कैसे दिया जाये इस के सम्बन्ध में भी मशोधन है। बिडला कमेटी की रिपोर्ट है कि जो जमीन एक्वायर की गई उस में से बहुत सी सट्टेबाजों के हाथ में चली गयी । जो गरीब किसान है जिन को भूमि ली जाती है विकास के नाम पर वे उस के बदले में उचित मुभावजा प्राप्त कर सकें इस सम्बन्ध में माननीय दातार साहब ने अभी जो संशोधन रखा है मैं उसे पर्याप्त नहीं समझता
11 DECEMBER 1957 Delhi Development 4834 Bill
4833 Delhi Development
उसे और भागे बढ़ाने की जरूरत है। इस दृष्टि से भी यहां कुछ संशोधन रखे गये हैं और में माशा करता हूं कि उन संशोधनों को स्वीकार किया जायेगा ।
कारपोरेशन विधेयक पर सरकार की भोर से एक भी संशोधन मान्य नहीं किया गया। में समझता हूं कि इस विधेयक के बारे में उस नीति में थोड़ा सा परिवर्तन होगा मौर दिल्ली डेवलपमेंट प्रयारिटी का इस सदन में से ऐसा रूप निकलेगा जिसे सभी लोग स्वीकार कर सकेंगे, इस प्रकार की प्राशा प्रकट करते हुए में अपना स्थान ग्रहण करता 霞
Shri C. R. Pattabhi Raman (Kumbakonam): I crave your indulgence to make a few general remarks before I attempt to point out important things modifications could be considered by the Government
The twin legislation that we are now having satisfies a long-felt need Our minds go back to the late lamented Asaf Ali who moved the famous resolution in 1938 wanting a separate municipal corporation for Deihi Thereafter there was a Delhi Municipal Enquiry Committee-two committees, I should say, one in 1938 and the other in 1946 Then we had the Bhore Committee also in 1946. Finally, there was the Local Finance Enquiry Committee of 1951 to which I referred In the meantime, Delhi State was formed in 1951 and abolished in 1956
Now, there was a vacuum, as it were created and we had to grapple with what is now called the Old Delhi area and the New Delhi area. When the Delhi State was abolished, just at that time, we had the famous Jaundice Enquiry Committee Report. I am just saying this historically to remind the House as to what has been happening during the last 20 years vis-a-vis Delhi. As a result of all these and promises made from time to time, the Government have very wisely come forward with the
twin legislation one dealing with the Old Delhi area and the other, what is called the Metropolitan area the Rajadhani of the Indian Union.
Quite often, with regard to popular movement for municipal Gorernment, an analogy was drawn Bombay, Tokyo and London. With great respect, I say they wholly inapt. The whole of UK is much smaller than many States in India. London is a great city but then it forms the capital of a small State, speaking in Indian terms. Tokyo is a very well administered there city and the Corporation is more or less a model for the world. It is usual for the people to talk about local administration to refer to less Tokyo as more or the prime example of good municipal administration. There too the analogy falls. great Japan is a very important and the country but alongside Indian Union, it is equivalent to a When you talk about Japan, you really talk about Tokyo without meaning any disrespect to the other important cities in Japan.
The analogy, if any, that we
have is Canberra ог Washington. There you will never have any semblance of municipal administration where more or less federal or quasifederal as it should be called-in India States exist Indian Union is rightly said to be quasi-federal. We
not strictly a federation. In quasi-federal conditions, you do not have a capital with a large municipal administration. Actually, Sir, Washington - it is called Washington DC. (District Columbia)-where the capital functions is surrounded by five States, but it is always possible for you to go into a road and say at any time which State you are entering, you can say that you are now entering so and so State, now Washington and then again in some other State. That is a very good thing to note, for example, when you go to Washington. You can always have this analogy so far as the Delhi Development Board is concerned.
4825 Delhi Development 11 DECEMBER 1957
[Shri C. R. Pattabhi Raman]
So far as New Delhi is concerned, if I may say so, the Government have rightly said that for the time being, at any rate, it is not as though they have closed the door for all time to come, they feel that party politics or municipal politics have not got much scope so far as the metropolis is concerned. Delhi does not belong to the State of Delhi. Actually, when Asaf Ali's resolution was passed in 1946, Delhi was in the Punjab State. We had a tussle with the old undivided Punjab. That is not the case today. Now Delhi is not the capital of Punjab, or United Provinces or any other State. It is the capital of the whole of India. Here you have a texture of all the people of the Indian sub-continent. Everyone has a right to claim Delhi as his own. Therefore, I visualise a time may come when there may be some scope for some sort of municipal administration and elections.
Even with regard to elections the better opinion in the world today is that, so far as municipal administration is concerned that should be far as possible above party politics. The man on the spot, a qualified man who is fit enough to do educational activities, social activities, sewage activities, he is the man to deal with a Municipal Corporation and not merely a party labelled man. It is always better in all these municipal administrations to have the administration above party politics. That has been the end and aim in all good municipal administrations.
Now, Sir, so far as this capital city is concerned, it concerns not only the area where most of the offices are situated, and most of the clerks are working. It also includes the Diplomatic Enclave. Just imagine what will happen if there is a big party election tussle. How is the Government to carry on the work of the Indian Union? I can only imagine that it will result in a catastrophe, unless you are banning government
Delhi Development 4826 Bill
servants from even taking part in municipal elections, which you cannot do. Suppose one branch of the office of my good friend the Minister of States votes for A and another branch for B, one holding very strong views on A and the other section on B? That will be catastrophic. The capital does not want to be encumbered by municipal politics, and personal politics.
Therefore, it is for very good reasons that they have decided to take it out of the municipal administration. They have not taken the whole, they have not been so greedy. It is not as if they have taken all the area, they have only confined themselves to what is called the crux or the core as far as Delhi City is concerned. They wish to administer it by various bodies, ad hoc bodies.
I am glad to see that the Delhi Municipal Corporation that is going to come into being will have representation in many of these bodies which are forming part of the Delhi Development Board.
So far as this Bill is concerned, there are certain aspects of it that strike me, and which I hope will appeal to my good friend, the Minisof State in the Ministry of Home Affairs. Firstly, I feel that SO far as acquisition proceedings are concerned-I am not talking as a mere lawyer-the provision there is 15 as it now stands. quite agree, as I have myself pleaded, that the various aspects of the Delhi Administration should be Sui generis and not on the analogy of any other Municipal Corporation. But is not the Government taking too much on itself when it says that with regard to acquisition it will have separate proceedings?
The Land Acquisition Act is a wellestablished Act. There are a number of cases decided under that Act. For example, the word "owner" is not defined in this Act. Supposing a man says, "I am the owner" and some other
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86c76d0eab310fbad41a377e42b560aa39c4d72a745c645ba2afa03d02f5af53 | pdf | ( ६ ) भारतवर्ष के कतिपय प्राचीन देवालयों पर भोगासनों की प्रतिमाएँ
[ लेखक -- श्री शिवदत्त शर्मा, देहली ]
य तो मुसलमान शासकों की धर्मधता के कारण भारतवर्ष में असंख्य देवालय नष्ट हो गए किंतु जो प्राचीन देवालय पूर्ण अथवा अपूर्ण रूप में अभी तक विद्यमान हैं वे इस देश की प्राचीन कारीगरी की साक्षी देते हुए देशी और विदेशी गुणग्राहकों के चित्त को चमत्कृत करते हैं। देखनेवाले अचंभे में रह जाते हैं कि उस समय, जब पत्थरों को सुदूर ले जानेवाले, काटने-क्रॉटनेवाले, ऊँचे चढ़ानेवाले अच्छे यंत्रों के विद्यमान होने का पता नहीं चलता तब, ऐसे ऐसे मोटे लंबे चौड़े पत्थर कोसों की दूरी से कैसे लाए गए, कैसे ऐसे काटे-छाँटे गए तथा कैसे बड़ी ऊँचाई पर पहुँचाए गए। फिर खुदाई गढ़ाई के काम का क्या कहना है । क्या कारीगरों ने जादू से उस समय पत्थर को मोम बना दिया था ? तनिक सी भी जगह खाली न रहने दी जहाँ फूल, पत्ती, पशु, पक्षी, देव, दानव या मानव का चित्र न दिखाया गया हो। कई स्थानों में छत की कारीगरी इस कमाल की है कि देखते ही बनता है। ऐसी सजीव कारीगरी के सामने से, जो कहीं कहों तो ऐसी दिखाई देती है मानो कारीगर ने अपनी टाँकी अभी अभी बंद की है, मनुष्य को भागे बढ़ना कठिन हो जाता है ।
ऐसी उत्तम और उत्कृष्ट कारीगरी के कई प्राचीन देवालयों पर कुछ ऐसी चित्रकारी के दर्शन होते हैं जो उन स्थानों के लिये असंगत प्रतीत होती है । इस देश के कवि-कोविदों और धर्मोपदेशकों ने काम, क्रोध, लोभ, मोह को दबाने के लिये कितने गहरे, कितने अधिक और कितने विस्तृत प्रदेश तथा उपदेश किये हैं यह लोक विदित है। ऐसी स्थिति में जिसका प्रबल निषेध हो उसका प्रदर्शन, जो प्रचार के तुल्य
हो और वह भी धर्म-स्थानों में, कैसे संभव है ? अधिक से अधिक इतना संगत माना जा सकता है कि चित्रकार मनुष्य को पूर्ण स्वाभाविक प्राकृतिक सौंदर्य से देखे और वैसा ही प्रकृत्रिम रूप में चित्रित कर दे । अतः नग्न बालक, बालिका, पुरुष अथवा स्त्रो की प्रतिमा प्रदर्शित करने में किसी सीमा तक आक्षेप समीचीन नहीं गिना जा सकता, क्योंकि इस नियम को तो किसी न किसी रूप में सब समय के और सब देशों के कारीगरों ने माना है। ऐसी विमुक्तभूषा निर्व्याज मनोहरांगी चित्रकारी सरकारार्ह है किंतु भोगासनों की प्रतिमाएँ आजकल प्रायः दुराशय को उत्पन्न करनेवाली गिनी जाती हैं। जिन्होंने भारतवर्ष में अधिक भ्रमण किया है और बहुत से प्राचीन देवालय देखे हैं उन्होंने कई ऐसे देवालय देखे होंगे जिनमें दो चार या कुछ अधिक ऐसी प्रतिमाएँ प्रदर्शित की हुई हैं। ये प्रतिमाएँ प्रायः कोनों में दिखाई हुई होती हैं और प्रायः जगमोहन को, जिसमें मुख्य देव प्रतिमा विराजती है, छोड़कर आगे के मंडप में - जो सभामंडप या नृत्यमंडप कहलाता है उसकेबाहर की तरफ बनाई हुई होती हैं ।
यात्री को पेशावर से चलकर कलकत्ते तक यद्यपि हरद्वार, पुष्कर, कुरुक्षेत्र, मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, प्रयाग, काशी, वैद्यनाथधाम जैसे महत्व के तीर्थ और पुण्य स्थान मिलते हैं किंतु इनमें कोई बहुत प्राचीन देवालय अच्छे स्वरूप में विद्यमान नहीं मिलता। बुंदेलखंड में जी० आई० पी० रेलवे के हरपालपुर स्टेशन से ६६ मील की दूरी पर, छत्रपुर राज्य में, खजराहो प्राम में शिव, विष्णु और जैनियों के देवताओं के कई प्राचीन मंदिर अभी तक अच्छी अवस्था में विद्यमान हैं। ये देवालय चंदेल राजाओं के शासन काल में ९५० ई० से लेकर १०५० के बीच में बनाए गए। ये सुमेरु के आकार पर बनाए गए हैं। कंडेरिया महादेव, विश्वनाथ, रामचंद्र, नेमीनाथ, पार्श्वनाथ आदि के देवालय उत्कृष्ट कारीगरी से परिपूर्ण हैं । यहाँ पर जो भोगासनों की प्रतिमाए प्रदर्शित की हुई हैं उनके विषय में लोकोक्कि है कि हेमवती नामक ● एक लो ने चंद्रमा से कुछ दुर्व्यसन कर लिया जिसके प्रायश्चित्त रूप
भारतवर्ष के कतिपय प्राचीन देवालयों पर भोगासनों की प्रतिमाएँ १८१ एक यज्ञ किया और उसी संबंध में अपने दुष्कर्म को लोक में प्रदर्शित करनेवाली प्रतिमाएँ देवालय पर बनवाई परंतु इसमें कोई यथार्थ तथ्य प्रतीत नहीं होता; क्योंकि यह घटना अन्यत्र लागू नहीं होती। उड़ीसा में पुरी, भुवनेश्वर और कोणार्क में महत्वपूर्ण देवालय हैं। पुरी का भगवान जगन्नाथजी का देवालय विख्यात है । उत्तर भारत में इस धाम का बड़ा मान है। वहाँ हर समय भक्ति भाव से श्रोत प्रोत यात्री दूर दूर से आते जाते रहते हैं। वे नृत्य मंडप के बाहर असा धारण, असामान्य और प्रायः अदृष्टपूर्व प्रतिमाओं को देखते हैं और यद्यपि उनके चित्त में कुछ संशय का समुत्थान होता है किंतु वह विचार वहीं रह जाता है। उनके लिये इतना सुन लेना कि ये आलेख्य कलियुग में होनेवाले व्यवहार का प्रदर्शन कराने के लिये बनाए गए हैं अथवा यह कि यदि किसी स्त्री का नग्न स्वरूप में देखने का पातक हुआ हो तो इनके दर्शन से उसकी निवृत्ति होती है पर्याप्त हो जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों वांछनीय है । रामेश्वर धर्म के लिये, द्वारका अर्थ के लिये, जगन्नाथ काम के लिये और बदरिकाश्रम मोक्ष के लिये मुख्य रूप से आराधना करने के धाम हैं। किसी किसी की सम्मति में यं वाम मार्ग के अवशिष्ट चिह्न है ।
भुवनेश्वर में लिंगराज, ब्रह्मेश्वर, परशुरामेश्वर, कपिलेश्वर, केदारेश्वर, मेघेश्वर, भास्करेश्वर, राजरानी, वासुदेव आदि के कई महत्त्वपूर्ण देवालय हैं इस स्थान पर भी ऐसी चित्रकारी मिलती है किंतु कोणार्क में, जो पुरी से उत्तर-पूर्व कोण में २४ मील पर है, ऐसे आलेख्ये की भरमार है। कुछ लोग कहते हैं कि ये प्रतिमाएँ देवालय के बाहर इसलिये बनाई गई हैं कि इनके दर्शन से देवालय पर राक्षसों की कुदृष्टि न पड़े।
बहुत संभव है, ऐसी प्रतिमाओं के बनाने की शैली उस समय प्रारंभ हुई हो जब संसार में सरलता, भार्जव, निर्व्याजता, निष्कपटता, और मायाहीनता का साम्राज्य था । विवाह पद्धति में कुछ मंत्र ऐसे भाते हैं जिनका अक्षरशः अनुवाद कदाचित् आजकल कितने ही लोगों को
न लगे; किंतु वे शुद्ध समय के शुद्ध मंत्र हैं जिनमें शुद्ध विचार हैं और वस्तुतः अश्लीलता का छींटा भी नहीं। प्रारंभ में जगदुत्पादक का उत्पत्ति के लाक्षणिक संकेत से जगत् में पूजा जाना भाश्चर्य की बात नहीं। ऐसा विधान भारतवर्ष में ही नहीं किंतु संसार की बहुत सी प्राचीन जातियों में था । उस प्राचीन काल में जननेंद्रिय को शरीर का बहुत पवित्र भाग मानने की प्रथा थी । जैसे शपथ करते समय आजकल हृदय पर हाथ रखते हैं वैसे ही घरब देश में उस अंग पर, शपथ करते हुए, हाथ रखने की रीति थी। इस विषय में श्रीयुक्त राजेंद्रलाल मित्र रचित Antiquities of Orissa का तृतीय अध्याय पढ़ने योग्य है। उसमें उन्होंने बतलाया है कि ऐसी प्रतिमाएँ, जो आजकल आक्षेप के योग्य गिनी जाती हैं, पूर्वकाल में विदेशों में भी थींAccording to Dulaure the Symbolic figure carried in procession during the festival of Osiris, and Isis (I'svara - शिव and his consort ईशा ) was a representation of the phallus of the bull.
पूर्वकाल में जब लोक में संसार के प्रति घृणा और त्याग का अत्यधिक प्रचार नहीं था तब धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों ही वांछनीय और उपादेय गिने जाते थे । देवालयों में इन चारों का ही प्रदर्शन कराया जाना इस दृष्टिकोण से बुरा नहीं गिना जाता था । देवालयों के रथों पर भी इसी नियम के अनुसार प्रदर्शन कराते थे । देवालयों की दीवारों तथा रथों के चार विभाग माने जाते हैं । सबसे नीचे का विभाग धर्म पुरुषार्थ के लिये निश्चित किया हुआ होता है। दूसरे भाग में अर्थ पुरुषार्थ दिखाते हैं। इसके ऊपर तोसरा भाग काम पुरुषार्थ के लिये और सबसे ऊपर का भाग मोच पुरुषार्थ के लिये निश्चित किया हुआ होता है। इसी के अनुसार कई स्थानों में नीचे के
१ - धर्मार्थकामाः सममेव सेव्या यो ह्य कसक्तः स नरो जघन्यः । द्वयोस्तु दादयं प्रवदन्ति मध्यं सं उत्तमो यो निरतस्त्रिवर्गे ॥
भारतवर्ष के कतिपय प्राचीन देवालयों पर भोगासनों की प्रतिमाएँ १८३ भाग में आदि शेष के दर्शन प्राप्त होते हैं और उसके ऊपर विवाह तथा युद्ध के दर्शन, उसके ऊपर नृत्य करती हुई अप्सराओं के अथवा कामकला की चित्रकारी और अंत में सबसे ऊपर साधुओं, सिद्धों, संन्यासियों एवं योगियों की प्रतिमाएँ बनाई हुई होती हैं। शिल्प-ग्रंथों में ऐसा विधान निर्दिष्ट है । यथादक्षिणेन गणेशानं उत्तरे नृत्तरूपिणम् । क्षेत्रेशं चैव चेशानां द्वारे तद्वारपालकान ।। ईशावतार क्रीडादिकथारूपाणि चैव हि । मूलभित्तौ च परितो विन्यसे दुक्तलक्षणम् ।।
देवानां च द्विजानां च वासयोग्यं सनातनम् । बहिरंतश्च सर्वेषां छत्रं युञ्जीत बुद्धिमान् ॥ सुमंगलकथोपेत श्रद्धानृत्तक्रियान्वितम् ।
पुरुषार्थयुतं एवं कर्णमानमुदीरितं । त्रिचतुश्पषट्सप्तचाष्ट नाट्यकनाडिका 11 एकं तु मारयुक्तं स्यात् क्षुद्रे तु द्वयमेव वा । मुखे पृष्ठे नाधबिम्बं कुर्यादुक्तं विशालधीः ॥
देवालयों में इन प्रतिमाओं के मौचित्य के विषय में एक और भी विचार उपस्थित किया जाता है । वह यह कि ये प्रतिमाएं उस मंडप में तो बनाई नहीं जातीं जिसमें मुख्य देव दर्शन है, और मंडपों में
१ -- देखो Significance of temple architecture by Dr. R. Shamasastry, B.A. Ph. D. पृष्ठ ७८१ Proceedings and Transactions of the Seventh All India Oriental Conference Baroda 1933.
बनाई जाती हैं जिसका उद्देश्य यह हो सकता है कि भक्तजन उनको देखकर अपने मन से पूछ लें कि कहीं ऐसे दर्शनों से उनके मन में विकार तो नहीं उत्पन्न होता, क्योंकि यदि विकार उत्पन्न होता है तो वह अभी देव-दर्शन का अधिकारी नहीं हुआ । इसलिये जैसे वस्त्र को खार में उसको अधिक मैला करने के लिये नहीं कि तु साफ करने के लिये डालते हैं वैसे ही ये प्रतिमाएँ मन के मैल को दूर करने के लिये, न कि उत्पन्न करने के लिये बनाई गई । यह अवश्य सत्य है कि एक शैली एक समय में उचित और संगत गिनी जाती है कि तु वही परिस्थिति विपरिग्राम से अन्य समय में प्राक्षेपावह हो जाती है ।
They say it is to ward off evil spirits and protect structure against lightning, cyclone or dire visitations of nature. A pilgrim whose mind does not become affected at the sight of these obscure figures is spiritually fitted to enter into the sanctum and to see the image of the deity. Orissa and her remains by Manmohan Ganguli.
(१०) उर्दू की हिंदुस्तानी
[ लेखक - श्री चंद्रबली पांडे, एम० ए० ]
हिंदी-उर्दू विवाद को शांत करने के लिये जो 'हिंदुस्तानी' नाम का मंत्र निकाला गया है उसके विषय में मौन रहना ही मंगलप्रद जान पड़ता है। परंतु पाठकों से इतना निवेदन कर देना उचित प्रतीत होता है कि हिंदुस्तानी को अपनाने के पहले कम से कम वे एक बार उसके इतिहास और स्वरूप को समझ लेने का कष्ट करें और फिर देखें कि उनकी हिंदुस्तानी का सञ्चा रूप क्या है। किस प्रकार वह संस्कृत के प्रचलित तथा ठेठ शब्दों का बहिष्कार कर अरबी-फारसी के अजीब शब्दों को अपनाती जा रही है। अच्छा होगा यदि हम पाठकों के सामने कुछ ' उर्दू" की 'ठेठ हिंदुस्तानी' का नमूना पेश करें और उनसे यह जान लेने की इच्छा प्रकट करें कि आखिर आज हमारी अवस्था में क्या परिवर्त्तन हो गया है कि हमारी राष्ट्रभाषा यानी 'हिंदुस्तानी' से उन शब्दों को भी निकालकर बाहर दफनाया जा रहा है जो देश के कोने कोने में न जाने कय से प्रचलित तथा टकसाली रूप में चालू रहे हैं। यही नहीं, मुसलमानों के प्रधान केंद्र 'उर्दू', अथवा उचित होगा 'उर्दू-ए-मुअल्ला' में भी बराबर व्यवहृत होते रहे हैं ।
'उर्दू" अथवा 'उर्दू-ए-मुअल्ला' के अर्थ को ठीक ठीक ग्रहण करने के लिये यह आवश्यक है कि हम मीर अमन देहलवी के उस के कथन को उद्धृत करें जिसमें उन्होंने 'उर्दू की ज़बान' की चर्चा की है और 'उर्दू-ए-मुअल्ला' की सीमा भी बहुत कुछ निर्धारित कर दी है । उनका कथन है
१ - मीर अमन के सभी अवतरण 'बाग़-वो-बहार' नामक उनकी प्रसिद्ध पुस्तक से लिए गए हैं । इस पुस्तक का एक दूसरा नाम 'क़िस्सः चार दरवेश ' १३ |
e31270dadad0815c5cf004ecae9630dac0834f1e | web | यह एडिटोरियल 17/01/2022 को 'द हिंदू' में प्रकाशित "Storm Warnings of A Megacity Collapse" पर आधारित है। इसमें भारत के शहरों में खराब आपदा प्रबंधन से संबद्ध समस्याओं के बारे में चर्चा की गई है।
चेन्नई में हाल ही में हुई अप्रत्याशित भारी बारिश की घटनाओं ने बार-बार मानसूनी बाढ़ और शहर के बंद होने (Urban Paralysis) जैसी समस्याओं को जन्म दिया। इसके साथ ही इसने चरम मौसमी घटनाओं के कारण शहरी व्यवस्था के पतन के जोखिमों को भी उजागर किया। अतीत में चेन्नई में वर्ष वर्ष 2015 में आई विनाशकारी बाढ़ और मुंबई में वर्ष 2005 में उत्पन्न हुई भीषण बाढ़ की स्थिति के बाद उम्मीद थी कि शहरी विकास के संबंध में प्राथमिकताओं में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा।
किंतु भारी सामुदायिक समर्थन और परिवर्तन के लिये सक्रिय लामबंदी के बावजूद, कानून बस दिखावे भर के लिये बने रहे और शहरी वातावरण में असंवहनीय परिवर्तन होते रहे। पारिस्थितिकी की कीमत पर स्थायी, अभिजात निर्माणों को समर्थन दिया गया। यह उपयुक्त समय है सरकार समझे कि शहरी भारत को वर्तमान में आकर्षक रेट्रोफिटेड 'स्मार्ट' एन्क्लेव की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उसे आवश्यकता सुदृढ़, कार्यात्मक महानगरीय शहरों की है।
- भारत की आपदा संवेदनशीलताः राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) के अनुसार, भारत में कुल भूमि का लगभग 12% बाढ़ के खतरे से युक्त है, 68% सूखा, भूस्खलन एवं हिमस्खलन के प्रति संवेदनशील है और 58.6% भूभाग भूकंप-प्रवण है।
- भारत की 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा के 5,700 किमी. हिस्से के लिये सुनामी और चक्रवात एक नियमित घटना है।
- इस तरह की संवेदनशील परिस्थितियों के कारण भारत विश्व के प्रमुख आपदा-प्रवण देशों में शामिल है।
- शहरों के लिये नीति आयोग की रिपोर्टः नीति आयोग ने 'भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधार' विषय पर अपनी रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी को एक भविष्यसूचक क्षण के रूप में उद्धृत किया है जो वर्ष 2030 तक सभी शहरों के स्वस्थ शहर में परिणत होने की अनिवार्य आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- जलवायु प्रभावों द्वारा शहरों को अधिक मौलिक और स्थायी रूप से प्रभावित किया जाना तय है।
- यह नागरिकों की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं का आकलन करने के लिये भागीदारी योजना उपकरण, सर्वेक्षण और फोकस समूह चर्चा को अपनाने के साथ 500 प्राथमिकता शहरों को एक प्रतिस्पर्द्धी ढाँचे में शामिल करने की सिफारिश करता है।
- जलवायु प्रभावों द्वारा शहरों को अधिक मौलिक और स्थायी रूप से प्रभावित किया जाना तय है।
- प्रभावः
- चक्रवातों के कारण वृक्षों के बड़े पैमाने पर उखड़ने से शहरी क्षेत्रों में पहले से ही घट रहे हरित आवरण प्रभावित होते हैं।
- भारी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में आपदाओं के कारण बड़ी संख्या में मानव जीवन की हानि हो सकती है।
- असुरक्षित/कमज़ोर बुनियादी संरचनाएँ, जो भूकंप या सुनामी में ढह जाती हैं, किसी भी अन्य प्रकार के प्राकृतिक खतरे (जैसे बवंडर या तूफान) की तुलना में अधिक लोगों की जान लेती हैं।
- आपदाएँ आधारभूत संरचनाओं को तबाह कर देती हैं और इनसे व्यापक आर्थिक क्षति होती है।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि वार्षिक आपदा क्षति 520 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुकी है और ये आपदाएँ प्रति वर्ष 24 मिलियन लोगों को निर्धनता की ओर धकेलती हैं।
- नियोजन और स्थानीय शासन की समस्याएँः सभी शहरों में से आधे से भी कम में 'मास्टर प्लान' मौजूद हैं और इन पर भी अनौपचारिक रूप से ही अमल होता है क्योंकि प्रभावशाली अभिजात वर्ग और गरीब वर्ग दोनों ही आर्द्रभूमि और नदी तटों जैसी सार्वजनिक भूमियों का अतिक्रमण करते हैं।
- नगर परिषदों की उपेक्षा, सशक्तीकरण की कमी और नगरपालिका प्राधिकारों में क्षमता निर्माण की विफलता ने चरम मौसम के दौरान बार-बार शहरी पक्षाघात की स्थिति उत्पन्न की है।
- प्राकृतिक स्थानों का अतिक्रमणः देश में आर्द्रभूमि की संख्या वर्ष 1956 में 644 से घटकर वर्ष 2018 में 123 रह गई और हरित आवरण महज 9% है, जो आदर्श रूप से कम से कम 33% होना चाहिये था।
- महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक संपत्तियों का अतिक्रमण किफायती शहरी आवासों की आपूर्ति हेतु बाज़ार की शक्तियों पर अत्यधिक निर्भरता को प्रकट करता है।
- आवास क्षेत्र में अधिकांश उपनगरीय निवेश उनके वास्तविक मूल्य को नहीं दर्शाते, भले ही वे सरकार द्वारा 'अनुमोदित' हों, क्योंकि नगर से दूर स्थित इन नगर पंचायतों के पास जल आपूर्ति, स्वच्छता और सड़कों जैसी बुनियादी संरचनाओं के निर्माण की भी पर्याप्त क्षमता या धन का अभाव होता है।
- अपर्याप्त निकासी अवसंरचनाः जल निकासी तंत्र पर अत्यधिक दबाव, अनियमित निर्माण, प्राकृतिक स्थलाकृति एवं 'हाइड्रो-जियोमॉर्फोलॉजी' की अवहेलना आदि शहरी बाढ़ को एक मानव निर्मित आपदा बनाते हैं।
- हैदराबाद, मुंबई जैसे शहर एक सदी पुरानी जल निकासी प्रणाली पर निर्भर हैं, जो मुख्य शहर के केवल एक छोटे से हिस्से को ही दायरे में लेती है।
- शहरों के विस्तार के साथ उपयुक्त जल निकासी व्यवस्था के अभाव को दूर करने के लिये अधिक प्रयास नहीं किया गया।
- हैदराबाद, मुंबई जैसे शहर एक सदी पुरानी जल निकासी प्रणाली पर निर्भर हैं, जो मुख्य शहर के केवल एक छोटे से हिस्से को ही दायरे में लेती है।
- कार्यान्वयन में शिथिलताः पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment- EIA) जैसे नियामक तंत्रों में वर्षा जल संचयन, संवहनीय शहरी जल निकासी प्रणाली आदि के प्रावधानों के बावजूद उपयोगकर्ता के साथ-साथ प्रवर्तन एजेंसियों के स्तर पर इनके अंगीकरण की गति शिथिल रही है।
- स्थानीय स्वशासन की भूमिकाः वृहत समावेशन और समुदाय की भावना को सुनिश्चित करने के लिये लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई स्थानीय सरकारों को केंद्रीय भूमिका सौंपे जाने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिये एक शीर्ष-स्तरीय विभाग का निर्माण करना उपयुक्त होगा जो आवास एवं शहरी विकास, परिवहन, जल आपूर्ति, ऊर्जा, भूमि उपयोग, लोक कार्य और सिंचाई जैसे राज्य के सभी संबंधित विभागों का समन्वय करेगा और उन्हें निर्वाचित स्थानीय सरकार के साथ मिलकर कार्य करने में सक्षम बनाएगा। प्राथमिकताओं के निर्धारण और उत्तरदायित्व के वहन में इस शीर्ष विभाग की प्रमुख भूमिका होगी।
- समग्र संलग्नताः ऊर्जा एवं संसाधनों के ठोस और केंद्रित निवेश के बिना वृहत स्तरीय शहरी बाढ़ को अकेले नगरपालिका अधिकारियों द्वारा नियंत्रित करना संभव नहीं होगा।
- नगर निगमों के साथ-साथ महानगर विकास प्राधिकरण, NDMA और राज्य के राजस्व एवं सिंचाई विभागों को इस तरह के कार्य के लिये एक साथ संलग्न करना होगा।
- बेहतर शहर नियोजनः सस्ते आवास सहित शहर के विकास के सभी आयाम भविष्य के जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल होने में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
- वे आधारभूत संरचना निर्माण के दौरान भी कार्बन उत्सर्जन वृद्धि को कम कर सकते हैं यदि बायोफिलिक डिज़ाइन (biophilic design) और हरित सामग्री का उपयोग किया जाए।
- नियोजित शहरीकरण आपदाओं का सामना कर सकता है। इसका आदर्श उदाहरण जापान है जो नियमित रूप से भूकंप का सामना करता रहता है।
- भारत आपदा संसाधन नेटवर्क (India Disaster Resource Network ) को व्यवस्थित सूचना और साधन एकत्रीकरण (Equipment Gathering) के लिये एक निधान (Repository) के रूप में संस्थागत किया जाना चाहिये।
- 'ड्रेनेज प्लानिंग': नीति और कानून में वाटरशेड प्रबंधन और आपातकालीन निकासी योजना/ड्रेनेज प्लानिंग को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया जाना चाहिए।
- अर्बन वाटरशेड सूक्ष्म पारिस्थितिक जल निकासी प्रणाली (Micro Ecological Drainage Systems) हैं, जो भूभाग की आकृति के अनुरूप आकार ग्रहण करते हैं।
- इनका विस्तृत दस्तावेज उन एजेंसियों के पास होना चाहिये जो नगरपालिका के अधिकार क्षेत्र से बंधे नहीं हैं। वास्तव में निकासी योजना को आकार देने के लिये चुनावी वार्ड जैसे शासनिक सीमाओं के बजाय वाटरशेड जैसी प्राकृतिक सीमाओं पर विचार किया जाना अधिक उपयुक्त होगा।
भारत के शहर उत्पादन और उपभोग के उल्लेखनीय स्तर के साथ देश के आर्थिक विकास के चालक हैं, लेकिन इस विकास कथा को जलवायु परिवर्तन के युग में असंवहनीय शहरी विकास से खतरा है। आवश्यकता ऐसे सुदृढ़, कार्यात्मक महानगरीय शहरों का विकास करने की है जो अर्थव्यवस्था के इंजनों को चालू रखने के लिये बाढ़, ग्रीष्म लहर, प्रदूषण और जन गतिशीलता को संभाल सकें। ऐसा नहीं हुआ तो शहरी भारत एक सबप्राइम निवेश भर बनकर रह जाएगा।
अभ्यास प्रश्नः भारत के शहर उत्पादन और उपभोग के उल्लेखनीय स्तर के साथ देश के आर्थिक विकास के चालक हैं, लेकिन इस विकास कथा को जलवायु परिवर्तन के युग में असंवहनीय शहरी विकास से खतरा है। टिप्पणी कीजिये।
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d13e627a85a74744fe2456ee36b0d11c28aca458 | web | क़तर में खेले जा रहे वर्ल्ड कप फ़ुटबॉल में उलटफेर का सिलसिला बना हुआ है. शुक्रवार की देर रात इस बार की फेवरिट मानी जा रही ब्राज़ीली टीम को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा.
कैमरून ने ब्राज़ील को 1-0 से हराया. कैमरून की ओर से विंसेंट अबूबाकर ने मैच के 92वें मिनट में गोलकर अपनी टीम को ऐतिहासिक जीत दिलाई. इस जीत के साथ क़तर वर्ल्ड कप में भले कैमरून को कोई फ़ायदा नहीं हुआ हो लेकिन ब्राज़ील को हराने वाली वह पहली अफ्रीकी टीम ज़रूर बन गई है.
ब्राज़ील की टीम क़तर वर्ल्ड कप ग्रुप स्टेज में आगे बढ़ चुकी है लिहाज़ा इस हार से उसे कोई नुक़सान तो नहीं हुआ है लेकिन इसने ख़तरे की घंटी ज़रूर बजा दी है. इसने एक ओर जहां पांच बार की चैंपियन ब्राज़ील के खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को डिगाया होगा, वहीं दूसरी ओर दूसरी टीमों के मनोबल को बढ़ाया भी है कि ब्राज़ील को हराया जा सकता है.
ब्राज़ील वर्ल्ड कप फुटबॉल की अब तक की सबसे कामयाब टीम ज़रूर है लेकिन समय-समय पर उसे अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा है. लेकिन इन अप्रत्याशित हारों में एक हार ऐसी भी है जिसका दर्द ब्राज़ील के फ़ुटबॉल प्रेमियों को सालों या कहें दशकों से टीस मारता आया है. इस दर्द की तुलना ब्राज़ील के फैन्स किसी दूसरी हार से नहीं करना चाहते.
दरअसल ये मैच था 1950 के वर्ल्ड कप का ख़िताबी मुक़ाबला, जहां फेवरिट मानी जाने वाली मेजबान ब्राजील को उरुग्वे ने हराकर वर्ल्ड कप जीत लिया था. 1950 का ये वही वर्ल्ड कप था जहां द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियों के चलते कई देशों ने खेलने से इनकार कर दिया था और भारत के सामने इस वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने का मौक़ा था.
लेकिन ऐन मौक़े पर भारतीय फुटबॉल टीम भी इसमें हिस्सा नहीं ले पायी थी. भारत के अलावा स्कॉटलैंड और यूगोस्लाविया की टीमों ने भी टूर्नामेंट से पहले नाम वापस ले लिया था. लेकिन यही वो वर्ल्ड कप था जिसमें पहली बार खिलाड़ियों के जर्सी पर नंबर लिखे हुए थे.
ब्राज़ील में इस टूर्नामेंट को लेकर काफ़ी उत्साह था. ये 1950 का वह साल था जब इससे पहले फ़ुटबॉल की दुनिया में ब्राज़ील का जलवा कभी नहीं दिखा था, लेकिन घरेलू दर्शकों के सामने टीम फेवरिट मानी जा रही थी.
यह वह समय था जब ब्राज़ील की आधी जनता के सामने खाने का संकट था, एक-तिहाई जनता साक्षर थी लेकिन इस वर्ल्ड कप के दौरान फ़ुटबॉल ने इन सबको आपस में जोड़ दिया था. दूसरी ओर ब्राज़ील की सरकार का अनुमान था कि इस वर्ल्ड कप के साथ ही दुनिया को ब्राज़ील की ताक़त का अंदाज़ा होगा. लिहाज़ा टीम पर हर हाल में वर्ल्ड कप जीतने का दबाव था.
इसकी तैयारी के लिए ब्राज़ील ने एक बेहतरीन टीम चुनी थी. ब्राज़ील की टीम का प्रदर्शन भी शानदार रहा था. उरुग्वे के ख़िलाफ़ अंतिम मुक़ाबले से पहले खेले गए दो मुक़ाबले में ब्राज़ील ने स्वीडन को 7-1 से और स्पेन को 6-1 से हराया था. ऐसे में उरुग्वे के ख़िलाफ़ भी टीम का पलड़ा भारी माना जा रहा था. इस मैच को ड्रॉ कराने की सूरत में भी ब्राज़ील चैंपियन बन जाता.
उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.
यही वजह थी पूरा रियो डि जेनेरियो उत्साह से भरा हुआ था. हर किसी को ब्राज़ील के वर्ल्ड चैंपियन बनने का भरोसा था. इस भरोसे की वजह से मैच की साइडलाइन पर सांबा बैंड को तैनात किया गया था. इस बैंड को एक ख़ास गीत को गाना था- ब्राज़ील द विनर्स. स्थानीय अख़बारों में मैच की सुबह ही हेडलाइन थी- 'चैंपियंस ऑफ़ द वर्ल्ड'.
इस उत्साह का पता मैच के दिन तब चला जब मरकाना स्टेडियम में देखते-देखते हज़ारों लोग जमा हो गए. आधिकारिक रूप से टिकट लेकर मैच देखने वाले दर्शकों की संख्या 1 लाख 75 हज़ार थी, जबकि 25 हज़ार वैसे लोग थे जो या तो आमंत्रित मेहमान थे या फिर किसी तरह से दरवाज़ा फांद कर अंदर आए थे. यानी स्टेडियम में ठीक दो लाख लोग मौजूद थे. किसी एक मैच में इससे ज़्यादा दर्शक कभी जमा नहीं हुए. आज तक ये किसी भी मैच में दर्शकों की सबसे बड़ी संख्या का रिकॉर्ड है. ये दर्शक मैच के शुरू होते ही जश्न मनाने लगे थे.
फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप को लेकर सैम बेर्केले की संपादित पुस्तक 'इवरीथिंग यू एवर वॉन्टेड टू नो अबाउट द वर्ल्ड कप' के पहले वॉल्यूम में इस वर्ल्ड कप का दिलचस्प विवरण मिलता है. इसके मुताबिक़ इस मैच को लेकर उरुग्वे की टीम पर इतना दबाव था कि टीम के मिड फ़िल्डर जूलियो पेरेज का मैच से पहले राष्ट्रीय गान सुनते वक्त पेशाब निकल आया था. मैच के बाद उन्होंने कहा था, "इस बात को लेकर मुझे कोई शर्म महसूस नहीं हुई. "
हालांकि मीडिया के सामने उन्होंने जब स्वीकार किया होगा तब उनकी टीम इतिहास रच चुकी थी. बहरहाल इससे ये पता चलता है कि सामने वाली टीम कितने दबाव में खेल रही थी. ब्राज़ील के फॉरवर्ड एडिमिर टूर्नामेंट में नौ गोल दाग़ चुके थे और टीम में ज़िज़िन्हो के तौर पर बेमिसाल खिलाड़ी मौजूद था.
मैच के शुरू होते ही दर्शकों का शोर ब्राज़ीली टीम के पक्ष में गूंजने लगा था. लेकिन पहले हॉफ़ में कोई टीम गोल नहीं कर सकी. मैच के 47वें मिनट में ज़िज़िन्हों के पास पर फ्रिका ने गोल कर ब्राज़ील को बढ़त दिला दी. पूरा मरकाना स्टेडियम सांबा संगीत पर थिरकने लगा. लेकिन उरुग्वे के कप्तान ओबडूलो वारेला का इरादा कुछ और था. उन्होंने गोल पर एतराज़ जताते हुए रेफ़री से बहस करना शुरू कर दिया. रेफ़री को उनकी बात समझ में नहीं आ रही थी तो एक ट्रांसलेटर मैदान में लाया गया. वारेला आठ मिनटों तक रेफ़री से गोल पर बहस करते रहे हालांकि वे जान रहे थे कि फ्रिका का गोल एकदम सही है.
लेकिन आठ मिनटों तक चली उनकी बहस ने एक ओर स्टेडियम के दर्शकों को शांत कर दिया. हर कोई ये जानने की कोशिश कर रहा था कि आख़िर हुआ क्या. वहीं दूसरी ओर इसने उरुग्वे की टीम को एकजुट करने में कामयाबी हासिल कर ली.
उस गोल का दबाव खिलाड़ियों पर से जाता रहा. कई खेल विश्लेषकों ने उरुग्वे के कप्तान के इस काम को ट्रिक माना, जिसके ज़रिए उन्होंने ब्राज़ील के खिलाड़ियों ही नहीं, बल्कि दर्शकों तक को फ्रस्टेट कर दिया था.
और अचानक से मैच के दूसरे हॉफ़ में एक ऐसा खिलाड़ी उभरकर सामने आया जिसे आज भी 72 सालों के बाद, ब्राज़ील में किसी विलेन की तरह देखा जाता है. उरुग्वे के राइट विंगर अल्सीडेस घिग्गिया इस मैच से पहले इसी वर्ल्ड कप में अपनी टीम के लिए तीन मैचों में तीन गोल जमा चुके थे. लेकिन यहां दबाव के पलों में उन्होंने पहले तो अपने साथी की मदद की. उन्होंने अपने साथी खिलाड़ी जुआन स्केयफ़िनो को सटीक पास दिया और इस गोल की बदौलत उरुग्वे ने बराबरी कर ली.
अगर ये मैच बराबरी पर भी छूटता तो भी बेहतर गोल औसत के चलते ब्राज़ील चैंपियन बनने वाली थी. 79वें मिनट में घिग्गिया फिर से ब्राज़ील की गोलपोस्ट की ओर बढ़े, उनको बढ़ते देख ब्राज़ील के डिफ़ेंडरों ने स्केयफ़िनो को मार्क करना शुरू किया और घिग्गिया ने ब्राज़ीली डिफ़ेंडरों और गोलकीपर बारबोसा को छकाते हुए बाएं पैर से झनझनाटा शॉट लगाया जो सीधे गोलपोस्ट में जा उलझा.
मरकाना स्टेडियम में सन्नाटा फैल गया और इसके बाद खेल के बाक़ी समय में ब्राज़ील की टीम पूरी ताक़त लगाने के बाद भी बराबरी हासिल नहीं कर सकी.
घिग्गिया ने बीबीसी के विटनेस प्रोग्राम में दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था, "ब्राज़ीली गोलकीपर और गोलपोस्ट के बीच बहुच जगह नहीं थी. मैंने पलभर के लिए सोचा कि क्या कर सकता हूं, फिर मैंने शॉट् खेला, वह गोलकीपर के बाईं ओर गया. वो नहीं रोक सके और गेंद गोलपोस्ट में गई. यह मेरी ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन गोल था. हमारा दूसरा गोल. जब मैं इस गोल का जश्न मना रहा था तब पूरा स्टेडियम शांति में डूबा था. केवल तीन लोग ही अपने एक मूव से मरकाना स्टेडियम को शांत कर सकते हैं, फ्रैंक सिनात्रा, पोप जॉन पॉल द्वितीय और मैं. "
फ्रैंक सिनात्रा मशहूर अमेरिकी गायक रहे हैं और जब घिग्गिया ने ये इंटरव्यू दिया था तब पोप जॉन पॉल द्वितीय रोमन कैथोलिक पोप थे. इसी इंटरव्यू में घिग्गिया ने एक दिलचस्प वाक़या सुनाया था.
उन्होंने बताया, "एक बार मैं ब्राज़ील गया था. पासपोर्ट चेक करने वाली खिड़की पर 23-24 साल की लड़की थी. उसने कागज़ात चेक करने के बाद कहा- आप घिग्गिया हैं, मरकाना वाले? मैंने कहा- हां, लेकिन वह तो बहुत पहले की बात है. तो उसने कहा- नहीं, नहीं. वह वाक़या हमारे दिलों को आज भी दुख पहुंचाता है. "
ब्राज़ील के नाटककार और स्पोर्ट्स राइटर नेल्सन रोड्रिगेज़ ने 1950 की हार पर कहा था, "1950 की हार के साथ हमने पिछली 45 पीढ़ियों का पाप चुकाया है. "
इस मैच के बारे में ब्राज़ील के जानेमाने फुटबॉल पेले ने भी कई बार कहा कि उन्होंने इस हार से अपने पिता को पहली बार रोते हुए देखा था. तब पेले की उम्र नौ साल की थी. उन्होंने अपनी पुस्तक 'व्हाई सॉकर मैटर्स' में लिखा है, "उस दिन लाखों ब्राज़ीली लोगों के साथ मैंने भी जीवन का मुश्किल सबक सीखा था. जब तक अंतिम सीटी ना बजे तब तक जीवन और फ़ुटबॉल में कुछ भी निश्चित नहीं है. "
पेले ने ये भी लिखा है कि इस हार ने ब्राज़ील को एकजुट किया था. उन्होंने लिखा है, "ये 16 जुलाई, 1950 का ही दिन था जब हमारा देश एकजुट हुआ था सेलिब्रेट करने के लिए, लेकिन हमें हार का सामना करना पड़ा और हमने ये दुख भी एक देश के तौर पर झेला था. यह पहला मौक़ा था जब हम एकजुट थे. "
वर्ल्ड कप आयोजन समिति के लिए भी ये नतीज़ा इतना अप्रत्याशित था कि उरुग्वे को बिना किसी सेलिब्रेशन और संबोधन के वर्ल्ड कप की ट्रॉफ़ी पकड़ा दी गई और दर्शकों से डर के चलते उरुग्वे के खिलाड़ी भी इसका बखूबी जश्न नहीं मना सके थे. इस मैच को मरकानाज़ो भी कहते हैं, जिसका मतलब ग्रेट मरकाना ब्लो यानी मरकाना की करारी हार, जिसे हर ब्राज़ीलियाई नागरिक आज भी महसूस करता है.
इस टूर्नामेंट में ब्राज़ीली टीम को ट्रेनिंग देने के लिए फ्लावियो कोस्टा को कोच नियुक्त किया गया था,उन्हें उस वक्त प्रति महीने एक हज़ार पाउंड की सैलेरी दी जा रही थी. जो बहुत ही आकर्षक वेतन था, लिहाज़ा हार के बाद उन पर लोगों का गुस्सा निकल सकता था. उन्हें मरकाना स्टेडियम के ड्रेसिंग रूम में 48 घंटे तक बंद रखा गया. इसके बाद उन्हें महिलाओं के कपड़ों में स्टेडियम से बाहर ले जाया गया.
इस हार की सबसे बड़ी क़ीमत टीम के कोच मोआसिर बारबोसा को चुकानी पड़ी. वे इस टूर्नामेंट से पहले देश में आदर्श गोलकीपर माने जाते थे लेकिन हार के बाद वे ऐसे गोलकीपर के तौर पर उभरे जिन्हें ब्राज़ील में घृणा की नज़र से देखा जाने लगा था. उन्हें इस भाव के साथ पूरा जीवन बिताना पड़ा.
1993 में वे जब ब्राज़ीली टीम अमेरिका में होने वाले वर्ल्ड कप की तैयारी कर रही थी तो वे खिलाड़ियों से मिलने कैंप में पहुंचे थे. आपको ये जानकार आश्चर्य हो सकता है कि टीम के एक डायरेक्टर ने सुरक्षा गार्ड्स को बुलाकर कहा कि इस आदमी को बाहर निकालो, ये हमेशा बैड लक लेकर आता है.
ऐसी ही कई दिलचस्प बातों का पता लुसियानो वैरिंके की लिखी पुस्तक 'द मोस्ट इनक्रेडिबल वर्ल्ड कप स्टोरीज़' में 1950 के वर्ल्ड कप पर लिखे चैप्टर में है.
8 अप्रैल, 2000 को बारबोसा का निधन हुआ और वे अपने निधन से पहले लोगों को हमेशा कहते रहे, "हमारे देश में किसी अपराध की अधिकतम सज़ा 30 साल है. लेकिन मैं 50 साल की सज़ा भुगत चुका हूं, उस अपराध के लिए जो मैंने किया ही नहीं. "
इस पुस्तक के मुताबिक़ उरुग्वे की जीत वहां के लोगों के लिए भी इतनी अप्रत्याशित थी कि आठ लोगों का हर्ट अटैक से निधन हो गया. मैच के दौरान पांच लोगों की मौत हुई जबकि अंतिम सिटी बजने के बाद तीन लोगों की.
वहीं दूसरी ओर मरकाना स्टेडियम के डॉक्टरों के मुताबिक़ अलग-अलग वजहों से बेहोश हुए कुल 169 लोगों का इलाज मैच के दौरान किया गया. इनमें छह लोगों की गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वैसे इसे रियो डि जेनेरियो के इतिहास का सबसे दुखद दिन माना जाता है.
लुसियानो वैरिंके की पुस्तक में ब्राज़ील के पुलिस विभाग के पास मिली रिपोर्टों के आधार पर कहा गया है कि क़रीब सौ फैन्स ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी. हालांकि इस जानकारी की पुष्टि दूसरी स्रोतों से नहीं होती है.
इस वर्ल्ड कप में हार के बाद ब्राज़ील ने अपनी फ़ुटबॉल की टीम के लिए पीली जर्सी की शुरुआत की थी.
वैसे ब्राज़ील की फ़ुटबॉल संस्कृति की ख़ासियत है कि जिस घिग्गिया ने उन्हें खेल इतिहास का सबसे बड़ा दुख दिया, उन्हीं घिग्गिया को उन्होंने 2014 में वर्ल्ड कप आयोजन का ड्रॉ निकालने के लिए बुलाया गया, लेकिन ब्राज़ीली अधिकारियों ने उस दौरान भी उनसे हार का ज़िक्र किया.
घिग्गिया का निधन 88 साल की उम्र में 16 जुलाई, 2015 को उरुग्वे के एक अस्पताल में हुआ. ये भी दिलचस्प संयोग था कि ये मरकाना में जीत का गोल दागने की 65वीं वर्षगांठ का दिन था.
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dc0e27019d38c064e3e7c7300e5e421d2da808d646cfd5b566a1aeea7d21cd01 | pdf | १३. "गधोदक ललाट में लगाना चाहिए नेत्र आदि मे नही" यह भी आपका उपदेश ठीक नहीं अभिषेक पाठ में ही "नेत्र ललाटटयोश्च" वाक्य दिया है, जिसका अर्थ है नेत्र और ललाट मे गंधोदक लगावें । नेत्र में गंधोदक लगाना आप महापाप बताते है । परमात्मने के स्थान में परमात्माय लिखते हैं ।
१४. ह्रीं, संवोषट् निर्वपामीति, अभिषेक, भावपूजा, श्रावक, अर्घ, मंदिर आदि के अर्थ ठीक नहीं हैं। निर्वपामि में भिकोअम् लिखने से यह ज्ञात होता है कि लेखक को संस्कृत व्याकरण का प्रवेशिका ज्ञान तक नही है। पूजा में पू धातु बताते हैं ।
१५. बड़े-कलश से अभिषेक का निषेध करने से बाहुवली आदि की बड़ी प्रतिमा का अभिषेक कैसे होगा ? विचारणीय है । पुस्तक मे प्रतिमा पर जलक्षेपण करने का निषेध दो बार किया है।
१६. इस पुस्तक के पृष्ठ ६९ पर प्रतिमा की वीतराग छवि को देशनालब्धि माना सो यह कहाँ है? प्रमाण देना चाहिए। सर्वार्थसिद्धि आदि में तो सम्यकदर्शन की उत्पत्ति में साधन के अंतर्गत प्रतिमा दर्शन और धर्म-श्रवण पृथक्-पृथक् बताये हैं।
१७. ये लोग दीपक जलाना और धूपदान, जिन्हे शांतिजप, विवाह, गृह प्रवेश आदि में सर्वत्र निषेध करते है। हवने (शातियज्ञ) भी पीले चावल में धूप का सकल्प कर स्थडल (आठ ईट) मे यज्ञ करने की नई प्रथा निकाल ली है क्या यह सकल्पी हिसा नही है ? दीपक व धूपदान का उल्लेख तो पूजा मे "विद्वज्जनबोधक" पृष्ठ ३५७ - ३६० मे भी है। श्री जयसेनायार्य के प्रतिष्ठा पाठ, आदिपुराण आदि में अग्नि से हवन बताया है। तेरह पथ शुद्धाम्नाय के शास्त्रो को भी नहीं मानते।
१८. सिद्धचक्र विधान मे ये लोग आठ दिन मे प्रारंभ के चार दिनों में सात पूजा कर लेते हैं और आठवी पूजा अतिम चार दिनों में करते है। जबकि उस विधान मे आठवी पूजा को एक ही माना है। १०२४ अर्घ को चार हिस्सों में करना अधूरी पूजा है, इसे समझना चाहिये ।
१९. मदिरो मे से आचार्य शातिसागरजी आदि की फोटो अभी भी हटा देते हैं । यह कदम अनुचित है। मुझसे कुछ बधु आकर पूछते है कि क्या आचार्य शातिसागरजी दि मुनि नही थे ? उनकी फोटो मंदिर से क्यो निकाली गयी?
२०. इसी प्रकार हमारे यहाँ के मंदिर मे एक भाई वेदी में प्रतिमा का अभिषेक न कर केवल गीले वस्त्र से प्रोक्षण कर देता था और वह दूसरे को अभिषेक नहीं करने देता था। वहीं पर उनका साथी एक ही स्थान की पचीसों पुस्तकें व अखबार लाकर अलमारी मे जमा देता था । ज्ञान न होने पर भी उसने एक बड़ी मडली एकत्रित कर ली और मंदिर में चर्चा के माध्यम से हल्ला होने लगा जिससे अन्य बन्धुओं को अशांति का अनुभव होने लगा। ऐसी प्रवृत्ति जब मदिर में होने लगे तब क्या किया जाए ?
समाज में तेरह पंथ और बीसपथ दोनों के मंदिर अलग-अलग है, पूजा पद्धति भी अलग-अलग है। जहां ऐसा होता है उसमें विरोध कोई नहीं करता परन्तु इन दोनों के सिवाय तीसरे पंथ का गुप्त रूप से निर्माण कर अशाति या विवाद उत्पन्न किया जाए तो विरोध होना स्वाभाविक है। मुस्लिम राजाओ के आक्रमण मे एक विशेषता यह थी कि वे गायों को सेना के आगे खड़ी कर देते थे और हिन्दू राजाओ से युद्ध करते थे। उसी प्रकार हमारे आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के ग्रथो को प्रकाशित कर उनकी टीका व प्रवचनो मे अपना मन्तव्य जोड़ देने पर अन्य बधुओ को क्षोभ होना स्वाभाविक है। आचार्य के नाम पर कुछ भी करना उनका अविनय कहलायेगा इसलिए शात रहना पड़ता है। इसी प्रकार मदिरो मे प्रवचन एवं शिविर के मध्यम से अपना प्रचार किया जाता है। इस पर समाज के प्रत्येक परिवार में मतभेद बढ़ रहा है जो मनभेद का कारण है। ऐसी स्थिति मे जो समाज मे एकता चाहते है उन्हें सफलता किस प्रकार मिलेगी ? विचारणीय है। उक्त पुस्तको के संबंध में जो कुछ मैंने लिखा है, उसमें मुझे विरोधी मानना उचित नहीं । मैं बावन वर्ष से मुमुक्षु बंधुओ के संपर्क में हूँ और आज भी आपको प्रतिष्ठा संबधी परामर्श देता रहता हूँ।
आपने इन पुस्तको के प्राक्कथनों को अपने मन्तव्य के अनुसार तोड़मरोड़ कर बदल दिया और मुझे छपी पुस्तक पहले नहीं बताई तथा मुझे समर्थक बता दिया, यह मेरे साथ छलकपट करके मुझे समाज के सामने हमेशा के लिए बदनाम कर दिया, इसलिये यह लिखने को मजबूर होना पड़ा है।
- मोतीमहल, सर हुकमचंद मार्ग, इन्दौर
श्रुत, समय पाहुड़ और नय
तत्त्वार्थ सूत्र का एक सूत्र है- श्रुत मति पूर्व द्वयनेक द्वादश भेदम् १ / २ ( श्रुतज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होता है, उसके दो, अनेक और बारह भेद है )
इसकी सर्वार्थ सिद्धि टीकां मे पूज्यपाद लिखते है कि श्रुतज्ञान के ये भेद ये वक्ता विशेष कृत है और वक्ता तीन प्रकार के है- १ केवली, २ श्रुतकेवली और ३. आरातीय । केवली ने आगम का अर्थरूप से उपदेश दिया, गणधर है श्रुत केवली जिनने अर्थ रूप आगम का स्मरण कर अग और पूर्व ग्रंथों की रचना की तथा आरातीय आचार्यों ने अपने शिष्यो के उपकार के लिए दशवैकालिक आदि ग्रथ रचे ।
इस श्रुतज्ञान के दो भेद ये है, अग बाह्य और अग प्रविष्ठ । अग बाह्य के दशवैकालिक और उत्तराध्ययन आदि अनेक भेद है तथा अग प्रविष्ठ के अधोलिखित बारह भेद है१ आचार २ सूत्रकृत ३ स्थान ४ समवाय ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति ६ जातृ धर्म कथा ७ उपासकाध्ययन ८ अन्तकृद्दश ९ अनुत्तरो पपादिक दश १० प्रश्न व्याकरण ११ विपाक सूत्र और १२ दृष्टिवाद ।
इनमे से दृष्टिवाद के पाच भेद है१ परिकर्म सूत्र २ प्रथमानुयोग ३ पूर्वगत और ४ चूलिका ।
इसी दृष्टिवाद के चौरह भेद भी है१ उत्पादपूर्व २ अग्रायणीय ३ वीर्यानुवाद ४ अस्तिनास्ति प्रवाद ५ ज्ञान प्रवाद ६ सत्यप्रवाद ७ आत्मप्रवाद ८ कर्म प्रवाद ९ प्रत्याख्यान १० विद्यानुवाद ११ कल्याण नामधेय १२ प्राणावाय १३ क्रिया विशाल और १४ लोक बिन्दुसार ।
इस समस्त श्रुत के अक्षरो का प्रमाण हैअनेकान्त / ३१
१८४४, ६७, ४४०, ७, ३७०९५५, १६१५ अर्थात् एक लाख चौरासी हजार चार सौ सड़सठ कोड़ा कोड़ी चबालीस लाख सात हजार तीन सौ सत्तर करोड़ पचानवे लाख इक्यावन हजार छह सौ पन्द्रह ।
यह बात श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनो शाखाओ को मान्य है कि चौदह ही पूर्वो के अतिम ज्ञाता थे भद्रबाहु किन्तु दिगम्बर परम्परा मे यह माना जाता है। कि वीर निर्वाण सम्वत् ६८३ के पश्चात् पूर्व ज्ञान व अग ज्ञान की आशिक रूप से धारण करने वाले मुनि धरसेन हुए जिन्हे अग्रायणीय पूर्व के पाचवे वस्तु का महाप्रकृति नाम के चौथे प्राभृत का ज्ञान था। उनके बाद पुष्पदन्त और भूतबलि आचार्यो ने अग्रायणीय पूर्व के आशिक आधार पर षद् खण्डागम की रचना की। आचार्य गुणधर ने जिनको ज्ञान प्रवाद के दशम वस्तु के तीसरे प्राभृत का ज्ञान था कषाय पाहुड़ की रचना की, आचार्य भूतबलि ने महाबन्ध की रचना की । पूज्यपाद (६ - ७ वी सदी) ने न तो षट् खण्डागम का ही जिक्र किया और न कषाय पाहुड़ का ही । इस बात का भी कोई जिक्र नही किया कि बाकी आगम का क्या हुआ। इससे यह नतीजा निकलता है कि ५-७ शताब्दी ई० तक ये आगम उपलब्ध थे और इसके बाद विच्छिन्न हुए है। खैर हमारे पास अब रह गए है दृष्टिवाद अग के अग्रायणीय और ज्ञानप्रवाद नामक पूर्वो के भी केवल कुछ अश। अग्रायणीय पूर्व मे आते है सात तत्त्वो और नौ पदार्थों के वर्णन तथा ज्ञान प्रवाद मे शामिल है पाँचो ज्ञानो का वर्णन ।
इसके विपरीत श्वेताम्बर शाखा मे पूज्यपाद के बताए हुए नाम के आगम वर्तमान है यद्यपि वीर नि० स० ५८४ मे आर्यवज्र स्थविर के देहावसान के साथ ही दशम पूर्व या विद्यानुवाद पूर्व विच्छिन्न हो गया । बाकी आगम ग्रथ लगभग ४५, चार-चार वाचनाओ मे काफी छानबीन के बाद सर्व सम्मति से वीर नि० स० ८४३ मे वल्लभी (सौराष्ट्र) मे स्थिर किए गए। कुछ दिगम्बर विद्वानो का मत है कि मौजूदा श्वेताम्बर आगम बहुचर्चित बारह साला दुर्भिक्ष के बाद श्वेताम्बर साधुओ द्वारा निर्मित किए हुए है परन्तु यह प्रश्न तो फिर भी उचित समाधान का मुहताज है कि दिगम्बर परम्परा के शेष आगम विच्छिन्न क्यो होने दिए गए और समय रहते समस्त श्रुत को लिपिबद्ध क्यो नही किया गया ।
हरिवश पुराण के सर्ग २ व १० मे श्रुतज्ञान के अन्य बीस भेद भी इस तरह बताए गए हैअनेकान्त / ३२
१. पर्याय २ पर्याय समास ३ अक्षर ४ अक्षर समास ५. पद ६ पद समास ७. संघात ८ सघात समास ९ प्रतिपत्ति १० प्रतिपत्ति समास ११. अनुयोग १२. अनुयोग समास १३ प्राभृत प्राभृत १४ प्राभृत प्राभृत समास १५. प्राभृत १६ प्राभृत समास १७ वास्तु १८ वास्तु समास १९ पूर्व २०. पूर्व समास ।
श्रुतज्ञान के अनेक विकल्पो में एक विकल्प एक हस्व अक्षर रूप भी है। इसके अनन्तानन्त भाग किए जाए तो उसमे एक भाग पर्याय नाम का श्रुत ज्ञान होता है। यह पर्याय ज्ञान सब जीवो के होता है, इस पर कभी आवरण नही पड़ता । जब यही पर्याय ज्ञान के अनन्तवें भाग के साथ मिल जाता है तो वह पर्याय समास कहलाता है । इसके बाद अक्षर ज्ञान प्रारम्भ होता है। उसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर अक्षर समास ज्ञान होता है। अक्षर समास के बाद पद ज्ञान होता है। इसके बाद एक अक्षर की वृद्धि करके पद समास होता है। पद समास में एक अक्षर की वृद्धि से सघात होता है । संघात मे एक अक्षर की वृद्धि से होता है सघात समास में एक अक्षर की वृद्धि से प्रतिपत्ति होता है उसमे एक अक्षर जोड़ने पर प्रतिपत्ति समास होता है उसमे एक अक्षर की वृद्धि करने पर अनुयोग बनता है। अनुयोग में एक अक्षर रूप ज्ञान की वृद्धि से बनता है अनुयोग समास । अनुयोग समास ज्ञान मे एक अक्षर रूप श्रुत ज्ञान की वृद्धि होने से होता है प्राभृत प्राभूत । प्राभृत प्राभृत मे एक अक्षर रूप श्रुतज्ञान बढ़ने से होता है प्राभृत प्राभृत समास । प्राभृत प्राभृत समास मे एक अक्षर रूप श्रुतज्ञान बढ़ने पर होता है प्राभृत श्रुतज्ञान । यह है प्राभृत का असली मतलब । प्राभृत के जो अन्य अर्थ लगाये जाते हैं उसका कारण है शब्द प्राभृत का अनेकार्थी होना । प्राभृत में एक अक्षर की वृद्धि से होता है प्राभृत समास । उसमें एक अक्षर जोड़ने पर होता है वास्तु । उसमें एक अक्षर जोड़ने पर होता है वास्तु समास उसमे एक अक्षर जोड़ने पर बनता है पूर्व और उसमें भी एक अक्षर की वृद्धि होने पर होता है पूर्व समास । पद समास से लेकर पूर्व समास पर्यन्त समस्त द्वादशांग श्रुत स्थित है। पूर्व में होते हैं कई वस्तु अधिकार में होते हैं बीस-बीस प्राभृत।
जयचंद जी ने समय प्राभृत की वचनिका में लिखा है कि 'चौदह पूर्वी में ज्ञान प्रवाद नामक छठा (पूज्यपाद के अनुसार पाचवां) पूर्व है तामें बारह वस्तु अधिकार हैं तिनि में एक एक वस्तु में बीस बीस प्राभृत अधिकार हैं तिनि मे दशमावस्तु मे समय नामा प्राभृत के मूल सूत्रनिका शब्दनिका ज्ञान तो पहले बड़े
आचार्यनि को था अर तिस के अर्थ का ज्ञान आचार्यानि की परिपाटी के अनुसार श्री कुन्दकुन्द आचार्य को भी था, सो तिनि ने यह समय प्राभृत के सूत्र बाधे हैं। 'यह समय जो सर्व पदार्थ जीव नाम पदार्थ है ताका प्रकाशक है ।'
दृष्टिवाद के भेद सूत्रो मे अनेक भेद है, उनमे से एक भेद का नाम है पर समय अर्थात् जैनेतर दर्शनों का निरूपण । इस दृष्टि से समय का अर्थ होता है द्वाद्वशाग वाणी याने जैन दर्शन ।
कुन्दकुन्द ने स्वयं अपने ग्रथ का नाम समय पाहुड़ ही दिया था और पञ्चास्तिकाय तथा प्रवचनसार कृतियों के नामो मे प्राभृत (पाहुड़) शब्द नही जोड़ा । जहा उनको अभीष्ट था वहा स्वय उनने अपनी रचना के नाम में सार शब्द भी जोड़ा है, यथा पवयण सार, मूलाचार के दसवे अध्याय का नाम
समयसार ।
समय पाहुड़ अपर नाम समयसार से बहुधा जाना जाने लगा इसकी वजह एक चलन मात्र है जैसे चारित्रलब्धि का नाम लब्धिसार और गोम्मट सगह सुत्त का नाम चल पड़ा गोम्मट सार । उमा स्वाति के सूत्रो के भी तो तीन नाम हैं तत्त्वार्थाधिगम, तत्त्वार्थसूत्र और मोक्ष शास्त्र और अपनी टीका तत्त्वार्थ वृत्ति को स्वय पूज्यपाद ने अमृत सार होना बताया है। आरातीय शास्त्रो के नाम परिवर्तन के इस रिवाज मे मूल आगम में बदलाव लाने की कोई प्रवृत्ति नही रही है । दरअसल मतलब तो अर्थ श्रुत से है । विषय वस्तु व नाम को सरलता से सूक्ष्म रूप मे समझने के लिए अपर नाम, उपनाम दिए जाते ही रहे है, और यही तो है व्यवहार नय जो आशिक सत्य से पूर्ण सत्य की ओर ले जाता है । कुन्द कुन्द कहते है कि
ववहारो भूदत्थो भूदत्थो देसिदो दु सुद्धणओ भूदत्थमस्सिदो सम्मादिट्ठी हवदि जीवो।
यहा पर टीकाकारो ने ववहारो भूदत्थो के स्थान पर पढ़ा है ववहारोऽभूदत्थो, तो भी अमृतचन्द्र ने अभूदत्थो का अर्थ असत्यार्थ नही किया। उनने तो व्यवहार को कीचड़ मिले जल से और निश्चय को कीचड़ रहित जल से उपमा दी है चूकि प्राकृत व्याकरण के अनुसार पदान्त में ओ के बाद अ का पूर्वरूप करने का कोई स्वर संधि सूत्र नही है और प्राकृत मे अ के विलीन होने का कोई निशान ऽ सर्वत्र नही देखा जाता, इसलिए कुछ मनीषी मानते हैं कि मूलपाठ मे अभूदत्थो नही था न हो ही सकता था, कुछ प्रतियो मे यह निशान है भी नहीं । कुन्दकुन्द ने तो व्यवहार और निश्चय दोनो को भूतार्थ माना है। बाद मे टीकाकारो ने भूतार्थ का अर्थ सत्यार्थ किया और अभूतार्थ का असत्यार्थ ।
इस विचार का प्राकृत व्याकरण के अलावा एक कारण और भी है। दृष्टिवाद के सत्यप्रवाद नामक पूर्व के दस भेद है - नाम सत्य, रूप सत्य, प्रतीत सत्य, सवृति सत्य, सयोजना सत्य, जनपद सत्य, देश सत्य, भाव सत्य और समय सत्य । द्रव्य और पर्याय के भेदो की यथार्थता बतलाने वाला तथा आगम के अर्थ को पोषण करने वाला वचन समयसत्य कहा जाता है। इस दृष्टि से व्यवहार भी सत्यार्थ ही है। प्रत्येक नय अशग्राही ही होता है। निश्चय नय सामान्य कहा जाता है। इस दृष्टि से व्यवहार भी सत्यार्थ ही है। प्रत्येक नय अंशग्राही ही होता है। निश्चय नय सामान्य अश (गुण) को ग्रहण करता है, व्यवहार नय विशेष अश (पर्याय) को ग्रहण करता है। दोनो अशो के जानने के लिए निश्चय और व्यवहार दोनों ही समान रूप से प्रयोजन वान है, अत एक द्रव्य के आश्रय से व्यवहार नय का जितना भी विषय है वह सबका सब याथर्थ ही है ।
जो व्यवहार को असत्यार्थ कहते है वे उसे पूर्ण असत्य नही कहते । दि० आचार्य ज्ञान सागर की भाति श्वे० आचार्य महाप्रज्ञ भी अभूतार्थ का अर्थ ईषत् (आशिक ) सत्य करते है। आचार्य जयसेन ने समय पाहुड़ की गाथा (२५२) की तात्पर्य वृत्ति मे लिखा है कि सुवर्ण और सुवर्ण-पाषाण के समान निश्चय और व्यवहार मे साध्य-साधक भाव है। अमृतचन्द्र भी व्यवहार नय को हस्तावलम्ब कहते है। अन्यत्र भी कहा गया है। जेइ जिण समई पउजह तामा ववहार णिच्चय मुचह। एक्केण विणा दिज्जइ तित्थ अण्णेव उण तच्च अर्थात् यदि जिन समय (जैन सिद्धान्त) जानना चाहते हो तो व्यवहार और निश्चय दोनो मे से किसी एक को मत छोड़ो (क्योकि) एक के बिना तीर्थ (तीर्थकरो का उपदेश, छूट जाता है और दूसरे के बिना तत्त्व (आत्मा) का स्वरूप दरअसल आत्मतत्त्व का ज्ञान व अनुभूति हो जाना ही मजिल है और मजिल पर पहुच जाने पर रास्तो (नयो) की जरूरत नही रहती यही है नय-निरपेक्ष अवस्था । वही है समयसार, पक्खातिक्कतो भवदि जो सो समयसारो, जो पक्षातिक्रात कहलाता है वही समयसार है। जयचद जी ने इसको यो कहा है
'जो पहिली अवस्था मे यह व्यवहार नय उपरि चढ़ने कू पैडी रूप है, ताते कथचिद् कार्यकारी है, इसकू गौण करने ते ऐसा मत जानियो जो आचार्य व्यवहार को सर्वथा ही छुड़ावे है। आचार्य तो उपरि चढ़ने कू नीचली पैडी छुड़ावै है, अर जब अपना स्वरूप की प्राप्ति हो गयी तब तो शुद्ध अशुद्ध दोऊ ही नय का आलम्बन छूटेगा।'
इसको यो समझने की कोशिश करे। सौ फीसदी याने २४ केरट खरा सोना ही सुवर्ण है किन्तु मिलावट वाला खोटा सोना याने अशुद्ध स्वर्ण भी सोना ही तो कहलाता है। इसी अशुद्ध स्वर्ण को तपा कर शुद्ध सुवर्ण बनाया जाता है। अत पूर्ण शुद्ध और नितान्त अशुद्ध अवस्थाओं को क्या नाम दिए जाए? उनको अध्यात्म की दृष्टि से अशुद्ध ही कहा जाएगा। यो है अभूतार्थ का अर्थ असत्यार्थ, जैसा कि जयसेन ने किया है। इसका मतलब यह नहीं है कि व्यवहार नय कतई मिथ्या है या झूठा है। कहा भी हैतत्त्वं वागतिवर्ति व्यवहृतमासाद्य जायते वाच्यम् गुणपर्यायादिविवृत्तः प्रसरति तच्यापि शतशाखम् मुख्योपचार विवृतिं व्यवहारोपायतो यतः सन्तः ज्ञात्वा श्रयन्ति शुद्धं तत्त्वमिति व्यवहृतिः पूज्या
- तत्त्व, वचन से अतिवर्ति है, व्यवहृत का आश्रय लेकर वाच्य हो जाता है, गुणपर्यायादि के विस्तार से उसकी सैकड़ो शाखाए फैलती जाती है। इस तरह व्यवहार के उपाय से ही सन्त मुख्य और उपचार कथन को जानकर शुद्ध तत्त्व को अपनाते है, अत. व्यवहृति पूज्य है।
प० आशाधर व्यवहार को अभूतार्थ कहते हुए भी लिखते है - व्यवहार पराचीनो निश्चयं यश्चिकीर्षति बीजादि बिना मूढः स सस्यानि सिसृक्षति
जो व्यवहार से विमुख होकर निश्चय को करना चाहता है, वह मूढ़ बीज आदि (खेत, पानी) के बिना धान (सम्य) को उत्पन्न करना चाहता है। इसलिए -
भूतार्थ रज्जुवत्स्वैरं विहर्तु वंशवन्मुहुः
श्रेयो धीरैरभूतार्थो हेय स्तद् विहृतीश्वरैः
जैसे (नट) रस्सी पर स्वेच्छा से विहार करने के लिए बार-बार बास का सहारा लेते है (और उसमे दक्ष हो जाने पर बास का सहारा छोड़ देते है) वैसे ही धीर (मुमुक्षु) के लिए अभूतार्थ श्रेय है और भूतार्थ पाने पर व्यवहार को छोड़ देते
जयचद जी ने अपनी वचनिका मे बड़े ही खूबसूरत तरीके से इस बात को यो समझाया है
'जिन वचन स्याद्वाद रूप है, सो जहा दोय नय कै विषय का विरोध है, जैसे सद्रूप होय सो असद्रूप न होय, एक होय सो अनेक न होय, नित्य होय सो
अनित्य न होय, भेद रूप होय सो अभेद रूप न होय, इत्यादि नयनि के विषयनि विषै विरोध हे, तहां जिन वचन विवक्षा तैं सत् असत् रूप, एक अनेक रूप, नित्य अनित्य रूप, भूद अभेद रूप, शुद्ध अशुद्ध रूप जैसे विद्यमान वस्तु है जैसे कहि करि विरोध मिटे है, झूठी कल्पना नाहीं करे है। तातैं द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक दोय नय में प्रयोजन वशते शुद्ध पर्यायार्थिक मुख्य करि निश्चय कहे हैं पर अशुद्ध द्रव्यार्थिक रूप पर्यायार्थिक कू गौण करि व्यवहार कहिए है ऐसे जिन वचन विषै जो पुरूष रमे है इस आत्मा कू यथार्थ पावे हैं । '
आत्मा प्राप्ति की इस अवस्था को भाषा के द्वारा सही प्रगट करना असभव है। वह तो केवल प्रकाश है, अनन्त अनिर्वचनीय प्रकाश, शब्दातीत नयातीत । वह तो 'अखण्डितमनाकुल ज्वलदनन्तमत बहिर्मह ' है, अनुभव किया जा सकता है, पूरी तरह बताया नही जा सकता। इसलिए साधारण जन के लिए जिन वचन को प्रमाण कहा गया है जिसमे अकल लगाने की न जरूरत न इजाजत । हा, जो ज्ञान नय द्वारा अर्जित किया जाए, उसमे सवाद-परिसवाद, तर्क-वितर्क व परीक्षण किया जा सकता है। नय का अर्थ ही होता है ले जाने वाला । यह नयार्जित ज्ञान चाहे निश्चय नय द्वारा ही हो व्यवहार जन्य ही होता है और कोई भी भाषा या वचन व्यवहार पूर्ण नही होता । शायद यही कारण है कि केवल ज्ञान होने पर तीर्थकर मौन हो जाते है, केवल ओम् यह दिव्यध्वनि ही प्रगट करते हैं । यह वह ध्वनि है जो सब ध्वनिया नि शेष हो जाने पर सुनाई देती है, बिना बजाया स्वर, अनाहत नाद !
इसको किसी उदाहरण द्वारा कथन करना संभव नही है और जो भी लक्षण किया जाएगा वह निषेध परक ही होगा 'एव ववहारणओ पडिसिज्जे जाण णिच्छयणएण ।'
व्यवहार की भाषा या व्यवहार नय के बिना किसी भी तत्त्व का निश्चय नही किया या कराया जा सकता। जब हम यह कहते हैं कि आत्मा शरीर नहीं है, आत्मा वर्ण या स्पर्श नही है तो प्रतिषेधात्मक व्यवहार की भाषा ही बोल रहे है । जब हम यह कहते हैं कि आत्मा, शुद्ध, अमूर्त, अरूप, ज्ञायक है, ज्ञाता है तब भी हम व्यवहार का ही प्रयोग करते होते हैं। अनन्त ज्ञानवान आत्मा के न इन्द्रिया है, न वहा विचार है न शब्द न क्रिया । इसलिए निश्चय नय का व्यवहार से अतीत मानवीय मस्तिष्क के लिए कोई चिन्तन सभव नही है और कुन्दकुन्द ने शुरू मे ही कह दिया कि व्यवहार मे ही जी रहा है। व्यवहार के बिना काम कैसे
चलेगा इस सच्चाई से वे परिचित थे । व्यवहार को छोड़कर सच्चाई को पाना बिना आधार ही उड़ान है। कदाचिद् यही वजह हो कि उमास्वाति ने और पूज्यवाद ने भी निश्चय नय की नयो में गिनती नही की। निश्चय की नय के रूप में अवधारणा शायद पूज्यपाद के बाद की है। में
मोक्षमार्ग (रत्नत्राय) भी व्यवहार मोक्ष मार्ग व निश्चय मोक्षमार्ग बताया गया । व्यवहार मोक्षमार्ग साधन है और निश्चय मोक्ष मार्ग साध्य । व्यवहार रत्नत्राय तो अपूर्ण रहता है और १४वें गुणस्थान के अंत में जाकर संपूर्ण निश्चय रत्नत्रय होता है।
निश्चय और व्यवहार नयो की व्याख्या करते समय शास्त्रो ने नेय, नय और नेतव्य की भेद रेखाओ को ही मिटा दिया लगता है जबकि नेय (सांसारिक जीव) को नय के द्वारा नेतव्य (शुद्ध आत्मानुभाव) की ओर ले जाया जाना चाहिए।दरअसल शास्त्र कुछ नही जानते क्योकि ज्ञान और शास्त्र अलग-अलग है। कहा भी है
सत्यं णाणं न हवदि जम्हा सत्थं ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सत्यं जिणाविंति।।
प्रवचन सार की टीका के अत मे ४७ की संख्या तक नय गिनाकर भी अमृतचन्द्र ने लिखा कि आत्मा एक द्रव्य है जो अनत धर्मात्मक है। वे अनत धर्म अनत नयो से जाने जाते है।
जितने वचन उतने ही नय है । यदि यह कहे कि आत्मा बंध मोक्ष अवस्था को पुद्गल के साथ धारण करता है तो यह हुआ व्यवहार नय के कथन और यदि यह कहे कि आत्मा केवल अपने ही परिणाम से बंध मोक्ष अवस्था को धारण करता है। तो यह हुआ निश्चय नय के कथन । यदि एक नय को ही सर्वथा माने तो मिथ्यावाद होता है जो कथंचिद् माना जाए तो यथार्थ अनेकता रूप सर्व वचन होता है। स्यात् पद से गार्भित नयो के स्वरूप से अनेकान्त रूप प्रमाण से अनत धर्म संयुक्त शुद्धचिन्मात्र वस्तु को जो निश्चय श्रद्धान करते हैं वे साक्षात् आत्म स्वरूप के अनुभवी होते हैं। परमात्म तत्त्व वचन से नहीं कहा जा सकता केवल अनुभव गम्य है। जो महाबुद्धिवन्त हुए है वे भी तत्त्व के कथन समुद्र के पारगामी नही हुए है और जो थोड़ा बहुत तत्त्व का कथन मैने किया है वह सब तत्त्व की अनंतता मे इस तरह समा गया है मानो कुछ कहा ही नही जैसे आग मे होम करने की वस्तु कितनी ही डालो, कुछ नही रहती ।'
अनेकान्त / ३८
अत सन्मतिसूत्र मे सिद्धसेन ने भी यो लिखा कि 'अत्थगइ उण णयवाय गहण लीणा दुरभिगम्मा'
अर्थात् नयवाद एक गहन वन है जिसमे अर्थ की गति विलीन हो जाती है। सरल तरीके से समझने के लिए अन्यत्र कहा किभद्दं मिच्छा दंसण समूहमइयस्स अमय सारस्स जिणवयणस्स भगवओ संविग्न सुखाहि गम्मस्स
जिन भगवान के वचन मिथ्या दर्शन समूह मय हैं दुःखो से उद्विग्न लोगो के से के लिए आसानी से समझ में आ सकते हैं और अमृत के मानिन्द है।
अजीब सी है यह बात । यदि एकाश मिथ्या है तो सर्वाश भी मिथ्या ही होना
चाहिए किन्तु ऐसा क्यो नही है इसके लिए समन्तभद्र पहले ही कह चुके है किमिथ्या समूहो मिथ्याचेन्न मिथ्यैकान्तताऽस्ति नः
निरपेक्षा नया मिथ्याः
सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृत् - ( देवागम, १०८ )
(हे प्रभो, हमारा मिथ्या समूह मिथ्या होते हुए भी मिथ्या एकान्तता नही है क्योकि मिथ्या होते है निरपेक्ष नय (किन्तु) आपके (नय) तो सापेक्ष है (इसलिए) द्रव्य का अर्थ समझाने में सक्षम है।
श्वेताम्बर आचार्य हरिभद्र सूरि के षड्दर्शन समुच्चय की गुणरत्न सूरि द्वारा रचित टीका तत्त्वरहस्य दीपिका मे मगलाचरण की व्याख्या करते हुए बताया है कि
स्यात् कथंयित् सर्वदर्शनसंमत सद्भूत वस्त्वंशानां मिथः सापेक्षतया वदनं स्याद्वादः सदसन्नित्यानित्य सामान्य विशेषाभिलाप्यान मिलाप्योभयात्मानेकान्तः उत्यर्थः यद्यपि दर्शनानि निज निज मतमेदेन परस्परं विरोधं भजन्ते तथापि तैरुच्यमानाः सन्ति ते ऽपिवस्त्वंशाये मिथः सापेक्षाः सन्तः समीचीनतामञ्चन्ति ।
अनेकान्त / ३९
सभी दर्शनो द्वारा माने गए वस्तु के सद्भूत अशों का परस्पर सापेक्ष कथन करना स्याद्वाद है अर्थात् सत् असत् उभय रूप, नित्य अनित्य उभय रूप, सामान्य विशेष उभय रूप, वाच्य आवाच्य उभयरूप अनेकान्त है । यद्यपि सभी दर्शन अपने अपने मतभेद के कारण परस्पर विरोध करते हैं तथापि उनके द्वारा कहे हुए वस्तु - अश परस्पर सापेक्ष होने पर समीचीनता प्राप्त कर लेते हैं।
अन्यत्र इसी ग्रथ की कारिका ५७ की टीका के पैरा ३७० का अनुवाद करते हुए महेन्द्र कुमार शास्त्री ने अर्थ को इस प्रकार स्पष्ट किया है ।
अनेकान्त सच्चे एकान्त का अविनाभावी होता है। यदि सम्यक् एकान्त न हो तो उनका समुदाय रूप अनेकान्त ही नही बन सकेगा । नय की दृष्टि से एकान्त और प्रमाण की दृष्टि से अनेकान्त माना जाता है। जो एकान्त एक धर्म वस्तु के दूसरे धर्मों की अपेक्षा करता है उनका निराकरण नही करता वह सच्चा एकान्त है यह सुनय का विषय होता है। जो एकान्त अन्य धर्मों का निराकरण करता है वह मिथ्या एकान्त है यह दुर्नय का विषय होता है। सम्यक् एकान्तों के समुदाय को ही अनेकान्त अनेक धर्मवाली वस्तु कहते हैं। -
इसलिए हमें भूतार्थ का अर्थ पूर्ण सत्यार्थ और अभूतार्थ का, असत्यार्थ का, मिथ्यादर्शन का अर्थ करना चाहिए कि सच तो है मगर तनिक सच, सत्याभास । यही है सम्यक् मिथ्यात्व, दही गुड़ का स्वाद ।
तलाश है सत्य की, सपूर्ण सत्य की आत्म तत्त्व के अपने रूप की, स्व रूप की, तो फिर उसको समझने समझाने के लिए आवश्यकता है सापेक्ष नयवाद की, व्यापक दृष्टि की, समग्रता और समन्वयता की याने स्याद्वाद और अनेकान्त की । अनन्त आत्म तत्त्व के स्व रूप को अनेकान्त के दर्शन द्वारा ही जाना जा सकता है, वही है सम्यग्दर्शन । इसे यो कह ले कि विचार के वातायन सदा खुले रहने चाहिए, नवीन और नवीनतर विचारो, नए दर्शन का स्वागत करते रहना ' चाहिए और तभी सर्वज्ञ का मार्ग प्रशस्त होगा। दर्शन का अर्थ ही होता है जो है उसे देखना और ऋषि होता है दृष्टा-भूतार्थ को यथार्थ को देखने वाला। सत्याश भ्रम पैदा करता है, सत्याभास व्यामोह पैदा करता है और वही है आत्मा पर आवरण-दर्पण पर धूल- मोहनीय कर्म और वही है सत्य का घोर शत्रु - आत्मघाती-घातिया कर्म ।
२१५ मंदाकिनी एन्क्लेव अलकनन्दा, नई दिल्ली- ११००१९
अबेकान्त ४०
आजीवन सदस्यता शुल्क १०१००रु वार्षिक मूल्य ६ रु. इस अक का मूल्य १ रुपया ५० पैसे यह अक स्वाध्याय शालाओ एव मदिरो की माग पर नि शुल्क
विद्वान लेखक अपने विचारो के लिए स्वतन्त्र है । यह आवश्यक नही कि सम्पादक-मण्डल लेखक के विचारो से सहमत हो । पत्र मे विज्ञापन एव समाचार प्राय नही लिए जाते।
सपादन परामर्शदाता श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन, सपादक श्री पद्मचन्द्र शास्त्री प्रकाशक श्री भारत भूषण जैन एडवोकेट, वीर सेवा मदिर, नई दिल्ली - २ मुद्रक मास्टर प्रिटर्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली - ३२ |
e091c5b804382d274e335ce7196edf86d946366e | pdf | मुकेश सहनी के नेतृत्व वाला विकासशील इंसान पार्टी आज एनडीए में हुआ शामिल
भाजपा ने अपने कोटे से वीआईपी को ग्यारह सीटें दीं
दो जदयू ने अपने सभी एक सौ पंद्रह उम्मीदवारों के नामों की सूची जारी की
राजद ने भी बयालीस उम्मीदवारों को दिया सिम्बल
तीन अठाईस अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के मतदान के लिये नामांकन पत्र दाखिल करने का कल अंतिम दिन
चार और प्रदेश में कोविडउन्नीस से स्वस्थ होने वालों की संख्या बढ़कर एक लाख उनासी हजार तीन सौ इक्यावन हुई
पहले ये संकल्प कोविडउन्नीस महामारी के खिलाफ देश एकजुट होकर लड़ रहा है
आप भी हमारे साथ सुरक्षा और बचाव के तीन आसान एहतियाती उपायों का संकल्प लें
मास्क पहने दो गज की दूरी है जरूरी सुरक्षित दूरी बनाए रखें हाथ और मुंह साफ रखें
विकासशील इंसान पार्टी वीआईपी आधिकारिक रूप से आज एनडीए में शामिल हो गया
पटना में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल ने कहा कि पार्टी ने अपने कोटे से ग्यारह सीट विकासशील इंसान पार्टी को दी है
वीआईपी को ब्रह्मपुर बोचहां गौराबोराम सिमरी बख्तियारपुर सुगौली मधुबनी केवटी साहेबगंज बलरामपुर अलीनगर और बनियापुर विधानसभा सीटें दी गयी हैं
वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने वीआईपी को विधान परिषद् की एक सीट देने का भी आश्वासन दिया है
साउंड बाईटइस मौके पर वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने कहा कि एनडीए के उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिये उनके कार्यकर्ता काम करेंगे
साउंड बाईट भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि नये दलों के जुड़ने से एनडीए और मजबूत हो रहा है
साउंड बाईटपत्रकारों के एक सवाल के जवाब में पार्टी के बिहार चुनाव प्रभारी देवेन्द्र फड़णवीस ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए के नेता हैं और गठबंधन में सिर्फ चार दल हैं
उन्होंने लोजपा की ओर इशारा करते हुए कहा कि गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ रहे दल बिहार में एनडीए का हिस्सा नहीं हैं
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि कल चेहल्लुम के बावजूद भी नामांकन पत्र भरने की प्रक्रिया जारी रहेगी
अपर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी संजय कुमार ने बताया कि सोशल मीडिया के माध्यम से यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि चेहल्लुम के कारण सामान्य अवकाश की वजह से कल नामांकन पत्र नहीं भरे जायेंगे जो बिल्कुल गलत है
उन्होंने कहा कि चेहल्लुम के मद्देनजर बिहार में अवकाश घोषित नहीं है इसलिए इस दिन सभी कार्य पूर्ववत चलते रहेंगे
विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण में अठाईस अक्टूबर को होने वाले मतदान के लिये कल नामांकन पत्र दाखिल करने का अंतिम दिन है
इस चरण में सोलह जिलों के इकहत्तर विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है
हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने इमामगंज से नामांकन पत्र दाखिल किया है
मंत्री प्रेम कुमार ने गया शहर से बांका से राम नारायण मंडल और पूर्व मंत्री दामोदर रावत ने झाझा से अपना पर्चा दाखिल किया है
लोजपा टिकट पर राजेन्द्र सिंह ने दिनारा से और अंतर्राष्ट्रीय शूटर श्रेयसी सिंह ने भाजपा के टिकट पर जमुई विधानसभा सीट से अपना नामांकन पत्र भरा
वहीं राष्ट्रीय जनता दल की ओर से अनंत सिंह ने मोकामा विधानसभा क्षेत्र से आज अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है
इस सीट पर ही अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन पत्र दाखिल किया है
अनंत सिंह का मुकाबला इस क्षेत्र के जदयू प्रत्याशी राजीव लोचन सिंह से होगा
दूसरी तरफ वजीरगंज विधानसभा सीट से भाजपा के वीरेन्द्र सिंह ने बाढ़ से भाजपा नेता ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू ने भभुआ से राजद प्रत्याशी भरत बिंद ने शेखपुरा से राजद के विजय सम्राट ने रोहतास के चेनारी सीट से कांग्रेस प्रत्याशी मुरारी प्रसाद गौतम डियरी विधानसभा सीट से भाजपा विधायक सत्य नारायण यादव सासाराम विधानसभा क्षेत्र से एनडीए प्रत्याशी अशोक कुमार काराकाट विधानसभा सीट से पूर्व विधायक राजेश्वर राज और बरबीघा विधानसभा सीट से कांग्रेस के गजानंद शाही ने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया
| जनता दल यूनाईटेड ने आज अपने सभी एक सौ पंद्रह प्रत्याशियों के नामों की सूची जारी कर दी है
वहीं राष्ट्रीय जनता दल ने बयालीस उम्मीदवारों को पार्टी का सिम्बल सौंपा है
जदयू ने बीस महिलाओं को टिकट दिया है
मंजू कुमारी वर्मा को चेरिया बरियारपुर पूनम देवी यादव को खगड़िया रंजू गीता को बाजपट्टी बीमा भारती को रूपौली लेसी सिंह को धमदाहा और पूर्व मंत्री इलियास हुसैन की पुत्री आसमा परवीन को महुआ से टिकट दिया गया है
विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी को सरायरंजन से टिकट दिया गया है
मंत्री विजेन्द्र प्रसाद यादव को सुपौल से मोहम्मद खुर्शीद को सिकटा नरेन्द्र नारायण यादव को आलमनगर शैलेश कुमार को जमालपुर और चंद्रिका राय को परसा से पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है
राष्ट्रीय जनता दल ने सुरेन्द्र यादव को वेलागंज से गोह से भीम सिंह दिनारा से विजय मंडल रजौली से प्रकाश वीर और भभुआ से भरत बिंद को उम्मीदवार बनाया है
बोधगया से सरबजीत कुमार शेखपुरा से विजय सम्राट जमुई से विजय प्रकाश झाझा से राजेन्द्र यादव सूर्यगढ़ा से प्रहलाद यादव और मसौढ़ी से रेखा पासवान इस बार राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे
भाजपा की वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक उषा विद्यार्थी आज लोक जनशक्ति पार्टी में शामिल हो गयीं
पार्टी ने उन्हें पाली विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है
इधर लोजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सुनील पांडेय ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है
हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष धीरेन्द्र मुन्ना ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है
साथ ही उन्होंने नवादा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की है
दूसरी तरफ जदयू नेता भगवान सिंह कुशवाहा ने पार्टी से इस्तीफा देते हुए लोजपा के टिकट पर जगदीशपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा की है
पूर्व विधान पार्षद हुलास पांडेय भी लोजपा के टिकट पर तरारी विधानसभा सीट से नामांकन पत्र भरेंगे
हालांकि उन्होंने आज निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल कर दिया है
सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मीडिया से आग्रह किया है कि वह टीआरपी आधारित पत्रकारिता के जाल में न फंसे
एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री जावड़ेकर ने कहा कि सरकार देश में प्रेस की आजादी बनाए रखने के लिए पूरी तरह दृढ़ प्रतिज्ञ है
उन्होंने मीडिया से कहा कि वह आत्मनियंत्रण की व्यवस्था का पालन करें और भड़काऊ समाचारों के प्रचारप्रसार से बचे ताकि समाज में शांति और सौहार्द न बिगड़े
प्रदेश में अब तक एक लाख उनासी हजार तीन सौ इक्यावन कोविड रोगी स्वस्थ हो चुके हैं
स्वस्थ होने की दर तिरानवे दशमलव छहनौ प्रतिशत है
स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि एक दिन में एक हजार चार सौ बाईस रोगियों को उपचार के बाद छुट्टी दी गयी
वहीं इसी अवधि में दो मरीजों की मौत के साथ ही कोरोना के कारण जान गंवाने वालों की संख्या बढ़कर नौ सौ सताईस हो गयी है
आज कोविड उन्नीस के एक हजार तीन सौ चार नये मामलों की पुष्टि के साथ ही संक्रमितों की संख्या बढ़कर एक लाख इक्यानवे हजार चार सौ सताईस हो गयी है
स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक आज पटना में दो सौ तिरसठ नये मामलों की पुष्टि हुई है
मधेपुरा से साठ पूर्णिया से अंठावन मुजफ्फरपुर से संतावन कटिहार से इक्यावन पश्चिम चंपारण से अड़तालीस और गोपालगंज से सैंतालीस पॉजिटिव मामले आये हैं
इसके अलावा अन्य जिलों से भी पॉजिटिव मामलों की पुष्टि हुई है
राज्य में है सक्रिय मरीजों की संख्या ग्यारह हजार एक सौ अड़तालीस है
देश में कोविडउन्नीस महामारी से स्वस्थ होने की दर पचासी प्रतिशत को पार कर गई है
पिछले चौबीस घंटों में देश भर में बयासी हजार से अधिक लोग महामारी
से स्वस्थ हुए हैं
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि भारत में अब तक संतावन लाख चौवालीस हजार से अधिक रोगी स्वस्थ हो चुके हैं
इसी अवधि में महामारी से नौ सौ छियासी मौतें हुई हैं जिससे मृतकों की कुल संख्या एक लाख चार हजार पांच सौ पचपन हो गई है
देश में मृत्यु दर एक दशमलव पांचपांच प्रतिशत है जो दुनिया में सबसे कम दर में से एक है
वहीं एक दिन में कोविडउन्नीस के बहत्तर हजार से अधिक नये मामले सामने आए हैं जिससे संक्रमितों की संख्या सड़सठ लाख से अधिक हो गई है
भारतीय जनस्वास्थ्य प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉक्टर के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा है कि कोविडउन्नीस संक्रमण के उपचार का टीका विकसित करने में अभी कुछ समय लगेगा
उन्होंने संक्रमण के सामुदायिक फैलाव को रोकने के लिए लोगों से ऐहतियाती उपाय करने की अपील की है
साउंड बाईट एक सामुदायिक रूप में इस वायरस को फैलने से रोक लगाए
दूसरा खुद की आत्मरक्षा करने और दूसरों को भी ये संक्रमण से बचा कर रखें
इसके लिए हमें ये करना जरूरी है हम जब बाहर जाते हैं मास्क पहन और एकदूसरे से दो मीटर का फासला जिस हद तक हो सके उस हद तक रखें और तीसरा हाथ को अक्सर पानी और साबुन के साथ साफ रखें
साबुन भी नहीं मिलता है तो कम से कम पानी के साथ साफ कर लें या हैंड सेनिटाइजर का इस्तेमाल कर लें अगर वो उपलब्ध हो तो
ओलंपिक रजत पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार ने कोविडउन्नीस से बचाव के लिए लोगों से मास्क पहनने और सुरक्षित दूरी का पालन करने का अपील की है
आकाशवाणी समाचार से विशेष बातचीत में उन्होंने लोगों से कोविड से बचाव के लिए सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करने को कहा है
साउंड बाईट मैं सुशील कुमार रेस्लर ओलंपिक मेडलिस्ट आप सबसे अपील करता हूं कि आप जब भी घरों बाहर निकलें मास्क लगा के रखें और उचित दूरी बनाके रखें तो कोविड में गाइडलाइन्स भारत सरकार से मिली बारबार हाथ धोएं और एकदूसरे की मदद करें
मेरी आप सबसे गुजारिश है कि अपनी सोसाइटी को ठीकठाक रखें
स्वास्थ्य मंत्रालय ने आगामी त्योहारों के मौसम में कोविड महामारी की रोकथाम के उपायों के सिलसिले में मानक संचालन प्रक्रिया जारी कर दी है
भारत में अक्टूबर से दिसंबर तक अनेक त्योहार मनाए जाते हैं
इस अवसर पर लोग सामूहिक पूजा मेले रैली प्रदर्शनी और सांस्कृतिक उत्सवों का भी आयोजन करते हैं
एक रिपोर्ट साउंड बाईट केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कोविड महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए इस तरह के कार्यक्रमों के दौरान रोकथाम के उपाय पर अमल करना जरुरी है
पैंसठ साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग रोगी गर्भवती महिलाओं और दस साल से कम उम्र के बच्चों को इस दौरान घर पर ही बने रहने की सलाह दी गई है
रैलियों और प्रतिमा विसर्जन समारोह के दौरान एकत्रित होने वाले लोगों की संख्या निर्धारित सीमा से अधिक न होने का ध्यान रखने एकदूसरे से सुरक्षित दूरी बनाए रखने और आवश्यक रूप से मास्क पहनने को भी कहा गया है
मंत्रालय के अनुसार ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे लोग आयोजन स्थलों पर एकसाथ पहुंचने की बजाय कुछ अंतराल पर पहुंचें
दिशानिर्देशों के अनुसार केवल कंटेनमेंट जोन के बाहर ही उत्सवों का आयोजन करने की इजाजत होगी
कंटेनमेंट जोन में रहने वाले लोग अपने घरों पर ही रहकर त्यौहार मनायें
लोगों को सलाह दी गई है कि वे एकदूसरे के संपर्क में आते समय जहां तक संभव हो कम से कम छह फुट की दूरी बनाए रखें
धार्मिक स्थानों में प्रतिमाओं और पवित्र धर्म ग्रंथों को छूने की इजाजत नहीं होगी
समाचार कक्ष से श्रीराम शर्मा
पूर्वी चंपारण पुलिस ने कई मामलों में आरोपित कुख्यात और इनामी अपराधी राजन सहनी को दिल्ली के महिपालपुर से गिरफ्तार किया है
पुलिस सूत्रों ने बताया कि गिरफ्तार अपराधी पर पचास हजार रूपये का इनाम घोषित था
और अब अंत में मुख्य समाचार एक बार फिर एक मुकेश सहनी के नेतृत्व वाला विकासशील इंसान पार्टी आज एनडीए में हुआ शामिल
भाजपा ने अपने कोटे से वीआईपी को ग्यारह सीटें दीं
दो जदयू ने अपने सभी एक सौ पंद्रह उम्मीदवारों के नामों की सूची जारी की
राजद ने भी बयालीस उम्मीदवारों को दिया सिम्बल
तीन अठाईस अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के मतदान के लिये नामांकन पत्र दाखिल करने का कल अंतिम दिन
चार और प्रदेश में कोविडउन्नीस से स्वस्थ होने वालों की संख्या बढ़कर एक लाख उनासी हजार तीन सौ इक्यावन हुई
इसके साथ ही आकाशवाणी पटना से प्रसारित प्रादेशिक समाचार का ये अंक समाप्त हुआ
घर में रहिये सुरक्षित रहिये और सुनते रहिये आकाशवाणी |
13e90bc4da44453d0e7296a5f5bae27b4f0421122408def4c9d5e5507d363629 | web | किसी एकल नीलामी से अब तक का सर्वाधिक नीलामी राजस्व मिला। 51,236 मेगाहर्ट्ज (कुल का 71%) 1,50,173 करोड़ रुपये की बोली में बेचा गया।
को राष्ट्र को समर्पित किया गया।
1.64 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज के साथ मंजूरी।
ग्रामीण टेली-घनत्व मार्च 2014 में 44% से बढ़कर अक्टूबर 2022 में 58% हो गया।
ब्रॉडबैंड कनेक्शन मार्च 2014 में61 मिलियन से बढ़कर1238 प्रतिशत की वृद्धिके साथ सितंबर 2022 में816 मिलियन हो गए।
दूरसंचार क्षेत्र में एफडीआई (इक्विटी प्रवाह) 2021-22 के 668 मिलियन अमेरिकी डॉलरकी तुलना में2022-23 (अप्रैल से सितंबर) के दौरान 694 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
मोबाइल बेस ट्रांसीवर स्टेशनों (बीटीएस) की संख्या 09.12.2022 तक 23.98 लाख है। मोबाइल टावरों की संख्या 09.12.2022 को 7.4 लाख है।
भारत नेटः 1.90 लाख ग्राम पंचायतें जुड़ीं; 31 अक्टूबर 2022 तक 6,00,898 किमी ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) बिछाई गई।
पीएम-वाणी योजनाः 22.9.2022 तक पीएम-वाणी के तहत कुल 114069 हॉटस्पॉट हैं।
भारत ने नेटवर्क रेडीनेस इंडेक्स में 2021 में 67 से 2022 में 61 रैंक की छलांग लगाई।
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जुलाई 2022 में आयोजित 8वीं स्पेक्ट्रम नीलामी के साथ भारत में 5जी सेवाओं की शुरुआत की नींव रखी गई थी। भारत सरकार ने नीलामी के लिए 72,098 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम रखा था, जिसमें से 51,236 मेगाहर्ट्ज (कुल का 71%) 1,50,173 करोड़ रुपये की बोली राशि के साथ बेचा गया। यह किसी एक नीलामी से अब तक की सर्वाधिक नीलामी आय है। इसके अलावा, इस नीलामी में सबसे अधिक बैंड यानी 22 एलएसए (लाइसेंस सेवा क्षेत्रों) में 10 अलग-अलग बैंड एक साथ नीलामी के लिए रखे गए (यानी, 600 मेगाहर्ट्ज, 700 मेगाहर्ट्ज, 800 मेगाहर्ट्ज, 900 मेगाहर्ट्ज, 1800 मेगाहर्ट्ज, 2100 मेगाहर्ट्ज, 2300 मेगाहर्ट्ज), 2500 मेगाहर्ट्ज, 3300 मेगाहर्ट्ज और 26 गीगाहर्ट्ज)।
दूरसंचार सुधारों और स्पष्ट नीति दिशा के कारण 2022 की स्पेक्ट्रम नीलामी में अब तक की सबसे अधिक बोली लगी। 8वीं नीलामी से प्राप्त स्पेक्ट्रम पर शून्य स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क जैसे हालिया सुधार, अनिवार्य अग्रिम भुगतानों को हट देना, न्यूनतम सीमा अवधि (10 वर्ष) के बाद स्पेक्ट्रम को सरेंडर करने की क्षमता, आसान भुगतान विकल्प जैसे वार्षिक किश्तों की संख्या में वृद्धि (20वार्षिक किस्त), पिछले बकाया पर अधिस्थगन के विकल्प आदि ने सफल स्पेक्ट्रम नीलामी में योगदान दिया।टेलीकॉम कनेक्टिविटी के लिए स्पेक्ट्रम बहुत महत्वपूर्ण है और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के लिए स्पेक्ट्रम की बेहतर उपलब्धता से सेवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार की उम्मीद है।
माननीय प्रधान मंत्री द्वारा 1 अक्टूबर 2022 को भारत में 5जी सेवाओं की शुरुआत की गई थी। शिक्षा, स्वास्थ्य, श्रमिक सुरक्षा, स्मार्ट कृषि आदि के लिये दूरसंचार सेवा प्रदाताओं तथा स्टार्ट-अप द्वारा विकसित 5जी उपयोग के मामले अब पूरे देश में तैनात किए जा रहे हैं।
भारत की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए और 5जी लागू करने के लिए, दूरसंचार विभाग ने आगे बढ़ कर पांच स्थानों सीआईआईटी/ मद्रास, आईआईटीदिल्ली, आईआईटीहैदराबाद, आईआईटीनपुर और आईआईएससी बैंगलोर में 'स्वदेशी 5जी टेस्ट बेड' स्थापित करने की बहु-संस्थान सहयोगी परियोजना के लिए वित्तीय अनुदान को मंजूरी दी।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वदेशी 5G टेस्ट बेड 17 मई 2022 कोराष्ट्र को समर्पित किया गया।
भारतीय शिक्षा जगत और उद्योग उत्पादों, प्रोटोटाइप, एल्गोरिदम और सेवाओं को मान्य करने के लिए स्वदेशी 5G टेस्ट बेड का उपयोग कर सकते हैं। चूंकि भारत 5जी प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर हो गया है, इस स्वदेशी टेस्ट बेड का विकास 5जी आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
टेलीफोन सदस्यता में वृद्धिः
- कुल टेलीफोन कनेक्शन मार्च 2014 में 93.30 करोड़ से बढ़कर अक्टूबर 2022 में 117.02 करोड़ हो गए, जो उक्त अवधि में 25.42 प्रतिशत की वृद्धि थी। अक्टूबर 2022 में मोबाइल कनेक्शन की संख्या 114.4 करोड़ पर पहुंच गई। टेली-घनत्व जो मार्च 2014 में 75.23 प्रतिशत था वह अक्टूबर 2022 में 84.67 प्रतिशत हो गया।
- शहरी टेलीफोन कनेक्शन मार्च 2014 में 55.52 करोड़ से बढ़कर अक्टूबर 2022 में 64.99 करोड़ हो गए जो 17.06 प्रतिशत की वृद्धि थी। ग्रामीण टेलीफोन कनेक्शन में वृद्धि 37.69 प्रतिशत थी, जो शहरी वृद्धि से दोगुनी है। ये कनेक्शन मार्च 2014 में 37.78 करोड़ से बढ़कर अक्टूबर 2022 में52.02 करोड़ हो गये। ग्रामीण टेली-घनत्व मार्च 2014 में 44 प्रतिशत से बढ़कर अक्टूबर 2022 में 57.91 प्रतिशत हो गया।
इंटरनेट और ब्रॉडबैंड पैठ में छलांगः
- इंटरनेट कनेक्शन मार्च 2014 में 25.15 करोड़ से बढ़कर जून 2022 में 83.69 करोड़ हो गया, जिसमें 232 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
- मार्च 2014 में ब्रॉडबैंड कनेक्शन 6.1 करोड़ थे जो सितंबर, 2022 में बढ़कर 81.62 करोड़ हो गये, जिसमें 1238 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- प्रति ग्राहक प्रति जीबी वायरलेस डेटा औसत राजस्व प्राप्ति दिसंबर 2014 में 268.97 रुपये से घटकर जून, 2022 में 10.29 रुपये हो गई जो 96.17 प्रतिशत से अधिक की कमी थी।
- प्रति वायरलेस डेटा सब्सक्राइबर की औसत मासिक डेटा खपत जून, 2022 में 266 गुना बढ़कर 16.40 जीबी हो गई। यह मार्च 2014 में 61.66 एमबी थी।
बीटीएस और टावर्सः
- मोबाइल बेस ट्रांसीवर स्टेशनों (बीटीएस) की संख्या 09.12.2022 तक 23.98 लाख है।
- मोबाइल टावरों की संख्या09.12.2022 को 7.4 लाख है।
एफडीआई में वृद्धिः
दूरसंचार क्षेत्र में एफडीआई (इक्विटी प्रवाह) 2021-22 के दौरान 668 मिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 2022-23 (अप्रैल से सितंबर) के दौरान 694 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
5जी रोल-आउट को तेजी से सक्षम करने के लिए इंडियन टेलीग्राफ राइट ऑफ वे (संशोधन) नियम, 2022 टेलीग्राफ इंफ्रास्ट्रक्चर की तेज और आसान तैनाती की सुविधा प्रदान करेगा। इन संशोधित नियमों में अन्य बातों के साथ-साथ छोटे सेल और टेलीग्राफ लाइन की स्थापना के लिए स्ट्रीट फर्नीचर के उपयोग के प्रावधान शामिल हैं। देश भर में एकरूपता लाने के लिए दूरसंचार सेवा प्रदाताओं और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदाताओं द्वारा आरओडब्ल्यू की अनुमति लेने के शुल्क को एक समान और युक्तिसंगत बनाया गया है।
सरकार ने वायरलेस लाइसेंसिंग पर निम्नलिखित प्रक्रियात्मक सुधार किए हैंः
- नवाचार, विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न फ्रीक्वेंसी बैंडों को लाइसेंस मुक्त करना निम्नानुसार हैः
- 865-868 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम को आईओटी और एम2एम, आरएफआईडी आदि अनुप्रयोगों की सुविधा के लिए लाइसेंसमुक्त किया गया।
- 9 KHz से 30 MHz बैंड को कॉन्टैक्टलेस इंडक्टिव चार्जिंग आदि के लिए लाइसेंस मुक्त किया गया।
- 433-434.79 मेगाहर्ट्ज बैंड को विभिन्न शॉर्ट-रेंज डिवाइसेस (एसआरडी) अनुप्रयोगों के लिए लाइसेंसमुक्त किया गया।
- सरकार ने नेशनल फ्रीक्वेंसी एलोकेशन प्लान 2022 भी जारी किया है, जो स्पेक्ट्रम के उपयोगकर्ताओं को प्रासंगिक फ्रीक्वेंसी और उसमें दिए गए मापदंडों के अनुसार अपने नेटवर्क की योजना बनाने के लिए मार्गदर्शन देगा।
उपग्रह आधारित सेवाओं के तेजी से उभरते क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने और नागरिकों के लिए सस्ती सेवाओं के प्रावधान में तेजी लाने के लिए, रोल आउट के विभिन्न चरणों में शुल्कों की बहुलता को सीमित करके ईज-ऑफ-डूइंग-बिजनेस में मदद के लिए उपग्रह आधारित संचार सेवाओं में सुधार किए गए हैं।
अब तक, उपग्रह का उपयोग ज्यादातर स्थिर-उपयोग तक ही सीमित रहा है। सरकार ने चलती प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ता टर्मिनल स्टेशन (स्टेशनों) के प्रावधान को सक्षम करने के लिए वाणिज्यिक वीएसएटी लाइसेंस के दायरे में वृद्धि की है। ये टर्मिनल हो सकते हैंः
- वाहन पर लगे "पूरी तरह से मोबाइल" या,
- केवल ब्रीफ़केस आकार पोर्टेबल "रोकें और ले जाएं जैसे।
मौजूदा प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए, उपग्रह से संबंधित निकासी प्रक्रियाओं को कारगर बनाने के वास्ते महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। यह स्पेक्ट्रम आवंटन और संबंधित मंजूरी में मौजूदा समय लेने वाली प्रक्रिया को काफी कम कर देगा। नेटवर्क के संचालन में समय बचाने के लिए स्व-प्रमाणन की शुरुआत की गई है।
माननीय प्रधान मंत्री के सबसे महत्वपूर्ण दृष्टिकोणों में से एक है देश भर में ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए सार्वभौमिक और समान पहुंच, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में, बनाना। इस दृष्टि को पूरा करने के लिए, यह अनिवार्य है कि देश भर में डिजिटल संचार अवसंरचना की सुचारू और कुशल तैनाती की सुविधा के द्वारा बुनियादी ढांचे की रीढ़ तैयार की जाए।
सेंट्रलाइज्ड राइट ऑफ वे (आरओडब्ल्यू) अनुमोदन के लिए "गतिशक्ति संचार" पोर्टल अब सभी 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ काम कर रहा है और रेलवे मंत्रालय, सड़क परिवहन मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय-डीजीएमओ से भी जुड़ा है।
यह पोर्टल दूरसंचार अवसंरचना कार्यों के लिए "व्यवसाय करने में आसानी" के लिए एक सक्षमकर्ता के रूप में कार्य करता है। विभिन्न सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदाताओं के आरओडब्ल्यू अनुप्रयोगों का समय पर निपटान विशेष रूप से 5जी नेटवर्क के समय पर रोलआउट के लिए भी तेजी से बुनियादी ढांचा तैयार करने में सक्षम होगा। यह पोर्टल विभिन्न दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदाताओं के आवेदकों को ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने और मोबाइल टावर लगाने के लिए राइट ऑफ वे अनुमति के लिए एक सामान्य एकल पोर्टल पर आवेदन करने में सक्षम करेगा। चूंकि यह आरओडब्ल्यू अनुमतियों के साथ-साथ तेजी से अनुमोदन की प्रक्रिया को आसान बनाता है; यह 5जी सेवाओं के आसान रोलआउट की सुविधा प्रदान करेगा। देश भर में आरओडब्ल्यू अनुप्रयोगों की प्रभावी निगरानी के लिए, पोर्टल राज्य और जिलेवार पेंडेंसी स्थिति दिखाने वाले एक शक्तिशाली डैशबोर्ड के साथ काम करता है।
टेलीकॉम संपत्तियों को पीएम गतिशक्ति (नेशनल मास्टर प्लान) प्लेटफॉर्म पर मैप किया जा रहा है। अब तक कोई 10 लाख रूट किलोमीटर ओएफसी का सार्वजनिक क्षेत्र संस्थानों द्वारा बिछाया गया है। बीएसएनएल, बीबीएनएल, रेलटेल, गेल, पावरग्रिड को मैप किया गया है। सभी दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के लगभग 20 लाख टेलीकॉम टावरों को 'फाइबराइज्ड' और 'नॉन फाइबराइज्ड' जैसे विवरणों के साथ मैप किया गया है।
पीएम गतिशक्ति एनएमपी पर बीआईएसएजी द्वारा विकसित टूल एक विशेष अनफाइबराइज्ड टावर के लिए आवश्यक लंबाई और निकटतम ओएफसी के मार्ग की गणना करता है। इससे मदद मिलती हैः
- बिक्री योग्य ओएफसी रखने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान अपने ओएफसी को आसानी से प्रदर्शित और बेच सकते हैं।
- जो कंपनियां अपने अनफाइबराइज्ड टावरों को जोड़ने के लिए उपलब्ध ओएफसी खरीदने का विकल्प तलाशना चाहती हैं, वे बिना अधिक प्रयास के ऐसा कर सकती हैं।
इसके अलावा, राज्य सरकारों द्वारा बिछाए गए स्ट्रीट फर्नीचर (जैसे बिजली के खंभे, बस शेल्टर, ट्रैफिक लाइट आदि) का उत्तरोत्तर मानचित्रण किया जा रहा है। दूर संचार विभाग एनएमपी प्लेटफॉर्म को राज्य एनएमपीप्लेटफॉर्म के साथ एकीकृत किया जा रहा है ताकि राज्यों की विभिन्न संपत्तियां जैसे स्ट्रीट फर्नीचर, सरकारी भूमि आदि एनएमपीडीओटी प्लेटफॉर्म पर दिखाई दें। एनएमपीप्लेटफॉर्म पर विभिन्न उपकरण विकसित किए गए हैं जो टीएसपी के लिए 5जी रोलआउट को आसान बनाएंगे। उदाहरण के लिएः
सबसे छोटी दूरी का उपकरणः यह उपकरण जरूरत के बिंदु से निकटतम ओएफसी की दूरी दिखाता है जो एक गैर-फाइबरीकृत मोबाइल टावर या 5जी सेल/पोल के लिए एक नई साइट हो सकती है।
5जी योजना उपकरणः यह उपकरण रुचि के शहर में अनुकूलन योग्य आकार के ग्रिड बनाता है। स्ट्रीट फ़र्नीचर और मोबाइल टावरों की परत को ओवरलैप करके, एक टीएसपी देख सकता है कि किस ग्रिड में 5जी पोल लगाने के लिए कोई संपत्ति नहीं है और एक नए पोल/बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है।
आरओडब्ल्यू (मार्ग का अधिकार) टूलः इस टूल का उपयोग करके, एक टीएसपी यह देख सकता है कि ओएफसी बिछाने या मोबाइल टावर स्थापना के मार्ग के अंतर्गत आने वाली राज्य स्थानीय निकाय जैसी कौन सी एजेंसियां हैं।
1. भारतनेट के माध्यम से गांवों में सेवा वितरण - 2022 में प्रगतिः
- देश में सभी ग्राम पंचायतों (लगभग 2.6 लाख) को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए फ्लैगशिप भारतनेट परियोजना को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा है। चरण-I दिसंबर 2017 में 1 लाख ग्राम पंचायतों को कवर करते हुए पूरा हो गया है।
- परियोजना के तहत, 31.10.2022 तक, 6,00,898 किलोमीटर ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाई जा चुकी है, कुल 1,90,364 जीपी ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) से जुड़े हुए हैं और 1,77,665 जीपी ओएफसी पर सेवा के लिए तैयार हैं। इसके अलावा, 4466 ग्राम पंचायतों को सैटेलाइट मीडिया से जोड़ा गया है। कुल ग्राम 1,82,131 पंचायतेंसेवा के लिये तैयार हैं।
2. कवर न किए गए गांवों में मोबाइल सेवाएंः
(i) वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल टावरों की स्थापनाः 20.08.2014 को वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में 2199 स्थानों में मोबाइल सेवाओं (2जी आधारित) के प्रावधान के लिए एक परियोजना को मंजूरी दी गई थी। इसके बाद जून 2016 में अतिरिक्त 156 साइटों के लिए मोबाइल सेवाओं के प्रावधान को मंजूरी दी गई। वामपंथी उग्रवाद-I के तहत स्वीकृत 2355 स्थलों में से 2343 स्थल विकिरण कर रहे हैं। मौजूदा 2जी साइट्स को 4जी में अपग्रेड करने की मंजूरी दे दी गई है। वामपंथी उग्रवाद-II के तहत, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्य में 232 स्थानों को कवर करते हुए 224 मोबाइल टावर और संबंधित बुनियादी ढांचे को स्थापित और चालू किया गया है।
(ii) मोबाइल सेवाओं से आच्छादित 354 में से 275 गांवः जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में गांवों को कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए सरकार ने 354 गांवों को जोड़ने की मंजूरी दी। अक्टूबर 2022 तक 354 अछूते गांवों में से 275 को 254 मोबाइल टावर लगाकर कवरेज प्रदान किया जा चुका है। इस योजना के तहत '55 कवर नहीं किए गए गांवों' को कवर करने के लिए अतिरिक्त मंजूरी के आदेश दिए गये हैं। अक्टूबर 2022 तक, इन 55 गांवों में से 19 गाँवों को 19 मोबाइल टावर और संबंधित बुनियादी ढांचे लगाकर कवर किया गया है।
(iii) एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट स्कीम के तहत 502 कवर नहीं किए गए गांवों में 4जी आधारित मोबाइल सेवाः चार राज्यों-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान के एस्पिरेशनल जिलों के 502 कवर नहीं किए गए गांवों में 4जी आधारित मोबाइल सेवा के प्रावधान के लिए इसमें योजना बनाई गई है। अक्टूबर 2022 तक इस परियोजना के तहत 106 मोबाइल टावर लगाकर 132 गांवों को कवर किया जा चुका है।
नवंबर 2021 में सरकार ने आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे 5 राज्यों के आकांक्षी जिलों के 7287 कवर नहीं किए गए गांवों में 4जी मोबाइल सेवा प्रदान करने के लिए और मंजूरी दे दी है।
देश भर के कवर न किए गए गांवों में 4जी मोबाइल सेवाओं की संतृप्ति के लिए परियोजना को मंजूरी दे दी गई है। यह परियोजना दूर-दराज और दुर्गम क्षेत्रों में 24,680 गांवों में 4जी मोबाइल सेवाएं उपलब्ध कराएगी। परियोजना में पुनर्वास, नई बस्तियां, मौजूदा ऑपरेटरों द्वारा सेवाओं की वापसी आदि के कारण अतिरिक्त गांवों को शामिल करने का प्रावधान है। इसके अलावा, केवल 2जी/3जी कनेक्टिविटी वाले 6,279 गांवों को 4जी में अपग्रेड किया जाएगा।
इस परियोजना को बीएसएनएल द्वारा आत्मनिर्भर भारत के 4जी प्रौद्योगिकी स्टैक का उपयोग करके निष्पादित किया जा रहा है और इसे यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड के माध्यम से वित्त पोषित किया गया है। दिसंबर 2023 तक इस परियोजना को पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया है।
भारत सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए एक व्यापक दूरसंचार विकास योजना लागू कर रही है। इस योजना के तहत, राष्ट्रीय राजमार्ग से लगते असम, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम, और उत्तर-पूर्व के अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्रों के कवर न किए गए गांवों में 2004 टावर स्थापित करके 2जी पर मोबाइल कनेक्टिविटी प्रदान की जानी है।
मेघालय के कवर न किए गए गांवों में मोबाइल सेवा और राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ निर्बाध कवरेज की परियोजना को 23.05.2018 को मंजूरी दी गई थी और 4जी मोबाइल सेवा के प्रावधान के लिए 04.09.2020 को 1,164 कवर न किए गए गांवों और राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ 11 साइटों के लिए दूरसंचार सेवा प्रदाता को काम दिया गया था। कुल 1094 टावर लगाकर 1,481 अछूते गांवों को कवर करने का दायरा बढ़ाया गया है। अक्टूबर, 2022 तक 475 गांवों को कवर करते हुए कुल 316 टावर लगाए जा चुके हैं।
अरुणाचल प्रदेश के 2,374 कवर न किए गए गांवों और असम के दो जिलों (कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ) में 4जी मोबाइल सेवाओं के प्रावधान के लिए एक अन्य परियोजना को मंजूरी दी गई। इसका सर्वे पूरा हो चुका है। अरुणाचल प्रदेश में, 27 गांवों को कवर करते हुए 19 टावर चालू किए गए हैं, जबकि असम में 67 गांवों को कवर करते हुए 54 साइटों को चालू किया गया है।
देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्र के राज्यों को उच्च गुणवत्ता और उच्च गति का इंटरनेट उपलब्ध कराने के लिए यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड ने भारत संचार निगम लिमिटेड ने 18.08.2021 को बांग्लादेश के साथ बांग्लादेश सबमरीन केबल कंपनी लिमिटेड, बांग्लादेश से अगरतला के लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए 10 जीबीपीएस इंटरनेशनल बैंडविड्थहायरिंग के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। पहला 10 जीबीपीएस का लिंक 26.11.2021 को और दूसरा 10 जीबीपीएस लिंक 21.04.2022 को चालू किया गया।
(अ) अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (82+42 एनएच टावर) में राष्ट्रीय राजमार्ग-4 (पूर्ववर्ती एनएच 223) के साथ 85 कवर न किए गए गांवों में 4जी मोबाइल सेवाओं का प्रावधान और निर्बाध मोबाइल कवरेज।
चिन्हित 85 गैर जनसंख्या वाले गांवों में 4जी प्रौद्योगिकी पर मोबाइल सेवाएं प्रदान करने के लिए दस या उनसे अधिक और 42 टावरों को खुले राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ मोबाइल कनेक्टिविटी में अंतराल को पाटने के लिए 4जी मोबाइल सेवाएं प्रदान करने के वास्ते 82 टावरों की स्थापना के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। आज तक, 124 टावर साइटों की सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुकाबले 105 टावर साइटों [गांवः 58, राजमार्गः 47] को मंजूरी दी गई है। परियोजना का समापन 14.05.2023 को होना है।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूहः बीएसएनएल द्वारा 09.09.2021 को सैटेलाइट बैंडविड्थ को 4 जीबीपीएस तक सफलतापूर्वक लागू किया गया।
लक्षद्वीप द्वीपः 14.08.2021 को सैटेलाइट बैंडविड्थ को 1.71 जीबीपीएस तक बढ़ाने का काम सफलतापूर्वक लागू कर दिया गया है।
(स) कोच्चि और लक्षद्वीप द्वीप समूह के बीच पनडुब्बी ओएफसी कनेक्टिविटी (1869 किलो मीटर)
मंत्रीमंडल की मंजूरी दिनांक 09.12.2020 के अनुसार, कोच्चि और लक्षद्वीप द्वीप समूह (केएलआई परियोजना) के बीच सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर केबल कनेक्टिविटी प्रदान की जानी है, जिसमें कवारती और दस अन्य द्वीप शामिल हैं, अर्थात् कल्पेनी, अगत्ती, अमिनी, एंड्रोथ, मिनिकॉय, बंगाराम, बित्रा, चेतलत, किलतान और कदमत। इस परियोजना को मई 2023 तक यानी 15 अगस्त 2020 को माननीय प्रधानमंत्री की घोषणा की तारीख से 1000 दिनों के भीतर लागू करने का लक्ष्य है। पूरा होने का लक्ष्यः मई 2023।
4. पीएम-वाणी के तहत लगाए गए एक्सेस पॉइंटः सरकार ने 09.12.2020 को प्रधानमंत्री के वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (पीएम-वानी) के ढांचे के तहत सार्वजनिक वाई-फाई नेटवर्क के माध्यम से ब्रॉडबैंड के प्रसार के प्रस्ताव को मंजूरी दी।
पीएम-वाणी ढांचे के तहत, 22.9.22 तक हॉटस्पॉट की कुल संख्या 114069 तक पहुंच गई है।
5. दूरसंचार पीएलआई योजना के तहत डिजाइन-आधारित विनिर्माणः 17.02.2021 को "दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना" को पांच साल की अवधि के लिए 12,195 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ मंजूरी दी गई थी। योजना निर्दिष्ट उत्पादों की बिक्री पर 4 से7 प्रतिशत प्रोत्साहन प्रदान करती है। यह योजना "मेक इन इंडिया" को प्रोत्साहित करने के लिए दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों के लक्षित क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करते हुए घरेलू विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए "आत्मनिर्भर भारत अभियान" के तहत उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के आधार पर तैयार की गई है।
केंद्रीय बजट 2022-23 में 5जी उत्पादों के लिए डिजाइन आधारित निर्माण की घोषणा की गई। इसने भारत में डिजाइन और निर्मित उत्पादों के लिए मौजूदा प्रोत्साहनों के ऊपर एक प्रतिशत का अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान किया। तदनुसार, दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों के लिए पीएलआई योजना के तहत 5जी उत्पादों के डिजाइन आधारित निर्माण की सुविधा के लिए दूरसंचार विभाग ने 28 एमएसएमई सहित कुल 42 कंपनियों को मंजूरी दी है। जिनमें से 17 कंपनियों को डिजाइन-आधारित विनिर्माण मानदंड के तहत एक प्रतिशत के अतिरिक्त प्रोत्साहन के लिए मंजूरी दी गई है। इन 42 कंपनियों ने योजना अवधि के दौरान 4,115 करोड़ रुपए के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है। इससे दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों की 2.45 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त बिक्री होने और योजना अवधि के दौरान 44,000 से अधिक अतिरिक्त रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।
6. दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीटीडीएफ) योजनाः टीटीडीएफ का उद्देश्य ग्रामीण-विशिष्ट संचार प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों में अनुसंधान एवं विकास को वित्तपोषित करना और दूरसंचार पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण और विकास के लिए शिक्षाविदों, स्टार्ट-अप्स, अनुसंधान संस्थानों और उद्योग के बीच तालमेल बनाना है। इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी स्वामित्व और स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देना, प्रौद्योगिकी सह-नवाचार की संस्कृति बनाना, आयात कम करना, निर्यात के अवसरों को बढ़ावा देना और बौद्धिक संपदा का निर्माण करना भी है। यह अनुसंधान, डिजाइन, प्रोटोटाइप, उपयोग के मामलों, पायलटों और अवधारणा परीक्षण के प्रमाण सहित अन्य के लिए पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद करेगी। यह योजना भारतीय संस्थाओं को घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वदेशी तकनीकों को प्रोत्साहित करने और शामिल करने के लिए अनुदान देती है।
(ध) वैश्विक सूचकांकों में भारत की रैंकिंगः
नेटवर्क रेडीनेस इंडेक्स 2022 (15-11-2022 को जारी)
एनआरआई-2022 में भारत 2021 में 67वें स्थान से 2022 में 61वें स्थान पर पहुंच गया। भारत के लिए एनआरआई स्कोर भी 2021 में 49.74 से बढ़कर 2022 में 51.19 हो गया। यह रिपोर्ट 15-11-2022 को जारी हुई है।
(i) दूरसंचार विधेयक-दूरसंचार क्षेत्र में नया कानूनी ढांचाः दूरसंचार क्षेत्र के लिए मौजूदा नियामक ढांचा भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 पर आधारित है। "टेलीग्राफ" के युग के बाद से दूरसंचार की प्रकृति, इसके उपयोग और प्रौद्योगिकियों में भारी बदलाव आया है। अब हम 4जी और 5जी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, इंडस्ट्री 4.0, एम2एम कम्युनिकेशंस, मोबाइल एज कंप्यूटिंग आदि जैसी नई तकनीकों के युग में जी रहे हैं। ये तकनीकें भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए नए अवसर पैदा कर रही हैं। इसलिए, भारत को 21वीं सदी की वास्तविकताओं के अनुरूप एक कानूनी ढांचे की आवश्यकता है। संचार मंत्रालय ने एक आधुनिक और भविष्य के लिए तैयार कानूनी ढांचा विकसित करने के लिए एक सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया शुरू की। जुलाई 2022 में, 'भारत में दूरसंचार को नियंत्रित करने वाले एक नए कानूनी ढांचे की आवश्यकता' पर एक परामर्श पत्र प्रकाशित किया गया था और टिप्पणियों को आमंत्रित किया गया था।
परामर्श और विचार-विमर्श के आधार पर, संचार मंत्रालय ने अब भारतीय दूरसंचार विधेयक, 2022 का एक मसौदा तैयार किया है, जिसे आगे के परामर्श के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखा गया है। मसौदा तैयार करते समय, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम, सिंगापुर, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका में संबंधित विधानों की भी गहराई से जांच की गई है। विधेयक का उद्देश्य भारत में दूरसंचार को नियंत्रित करने वाले मौजूदा कानूनी ढांचे को बदलना है, जिसमें भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885, वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम, 1933 और टेलीग्राफ तार (गैरकानूनी कब्ज़ा) अधिनियम, 1950 शामिल हैं।
(ii) उपग्रह ब्रॉडबैंड सेवाओं का प्रक्षेपणः उन क्षेत्रों में जहां स्थलीय कनेक्टिविटी उपलब्ध नहीं है, उपग्रह ही एकमात्र बैकहॉल तकनीक उपलब्ध हो सकती है। सैटेलाइट बैकहॉल सबसे दूरस्थ समुदायों को जोड़ने के लिए उपग्रह-आधारित बैंडविड्थ प्रदाताओं पर निर्भर करता है। उपयोग की जाने वाली तकनीक के सटीक प्रकार के आधार पर, अन्य बैकहॉल प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक महंगी और तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण बुनियादी ढांचे के निर्माण की आवश्यकता के बिना, उपग्रह बैकहॉल को जल्दी से तैनात किया जा सकता है।
अग्रणी वीएसएटी ऑपरेटर स्वदेशी हाई थ्रूपुट उपग्रहों का उपयोग करके उपग्रह प्रौद्योगिकी में प्रगति का प्रभावी ढंग से लाभ उठा रहे हैं और वे उत्तर-पूर्व, जम्मू-कश्मीर और अन्य क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करेंगे। बीबीएनएल और बीएसएनएल इसरो के एचटीएस उपग्रहों जीसैट-11 और जीसैट-19 का उपयोग भारतनेट परियोजना के तहत लगभग 6700 ग्राम पंचायत/क्षेत्रों को कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए काम कर रहे हैं जो अन्य माध्यमों से सुलभ नहीं थे। दूरस्थ और पर्वतीय क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए निकट भविष्य में लियो/मेओ उपग्रहों से ब्रॉडबैंड सेवाओं के शुरू होने की उम्मीद है।
(iii) दूरसंचार सुरक्षा संचालन केंद्र (टीएसओसी) के माध्यम से साइबर सुरक्षाः दूरसंचार विभाग ने राष्ट्रीय दूरसंचार बुनियादी ढांचे पर हमलों की भविष्यवाणी और पहचान करने के उद्देश्य से दूरसंचार सुरक्षा संचालन केंद्र की स्थापना के लिए एक योजना को मंजूरी दी है। इसका उपयोग दूरसंचार नेटवर्क पर साइबर हमलों और उन मशीनों की पहचान करने के लिए किया जाता है जो इस तरह के हमलों की शुरुआत कर रही हैं या हमले झेल रही हैं। अवरुद्ध एप्लिकेशन, कुछ एप्लिकेशन द्वारा प्रदान किए गए दुर्भावनापूर्ण संचार आदि की उपस्थिति की पहचान करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। यह टेलीकॉम कंप्यूटर सिक्योरिटी इंसिडेंट रिस्पांस टीम को इनपुट प्रदान करने का मुख्य स्रोत भी है, जो राष्ट्रीय दूरसंचार अवसंरचना की रक्षा के लिए दूरसंचारविभाग द्वारा स्थापित एक ढांचा है।
(iv) धोखाधड़ी प्रबंधन और उपभोक्ता संरक्षण पोर्टल के लिए टेलीकॉम एनालिटिक्स के माध्यम से उपभोक्ता संरक्षणः दूरसंचार विभाग ने दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा ग्राहकों को दूरसंचार संसाधनों का उचित आवंटन सुनिश्चित करने और उनके हितों की रक्षा करने के लिए कई उपाय किए हैं। धोखाधड़ी में कमी सुनिश्चित करना। मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार, व्यक्तिगत मोबाइल ग्राहक अपने नाम पर अधिकतम नौ मोबाइल कनेक्शन पंजीकृत कर सकते हैं। इस पोर्टल को ग्राहकों की मदद करने, उनके नाम पर काम कर रहे मोबाइल कनेक्शनों की संख्या की जांच करने और उनके अतिरिक्त मोबाइल कनेक्शन, यदि कोई हो, को नियमित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने के लिए विकसित किया गया है। हालाँकि, ग्राहक अधिग्रहण फॉर्मको संभालने की प्राथमिक जिम्मेदारी सेवा प्रदाताओं की है।
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146d40a05aedd4ce2b83dec92e8e6a5c17ba4303 | web | नई दिल्ली। Weekly Horoscope 30 Jan-5 Fab 2023 30 जनवरी से 5 फरवरी 2023 अर्थात विक्रम संवत 2079 ई शक संवत 1944 के माघ शुक्ल पक्ष की नवमी से माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक के सप्ताह में आपका भाग्य आपको कहां ले जाएगा। ये जानने की कोशिश करते हैं पंडित अनिल पाण्डेय से।
इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा मेष राशि में रहेगा फिर वृष और मिथुन से होता हुआ दिनांक 3 फरवरी को 2:57 रात से कर्क राशि में प्रवेश करेगा। यहां पर 3 फरवरी का आशय 3 और 4 के बीच की रात का है। इस पूरे सप्ताह सूर्य मकर राशि में मंगल वृष राशि में, बुध धनु राशि में, गुरु मीन राशि में, शनि और शुक्र कुंभ राशि में तथा राहु मेष राशि में गोचर करेंगे। आइए हम राशि वार राशिफल की चर्चा करते हैं।
इस सप्ताह आप के पास धन का योग है। आप कोई बड़ी प्लानिंग भी कर सकते हैं। आपको अपनी सन्तान का सहयोग कम प्राप्त होगा। कार्यालय में आपको कम सफलताएं प्राप्त होगी। अधिकारियों से आपका वाद विवाद चलता रहेगा भाग्य भी कम साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 4 और 5 जनवरी उत्तम है। चार और पांच को किए गए अधिकांश कार्य सफल होंगे। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
आपके जीवन साथी के लिए यह सप्ताह ठीक रहेगा। कार्यालय में आपको अपने अधिकारियों और साथियों का सहयोग प्राप्त होगा। आप अगर शासकीय कर्मचारी हैं तो आपके लिए यह सप्ताह उत्तम है। भाग्य के स्थान पर आप अपने परिश्रम पर विश्वास करें। इस सप्ताह आपके लिए 30, 31 और 1 तारीख उत्तम और लाभप्रद है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रातः काल स्नान के उपरांत तांबे के पात्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
इस सप्ताह आपको भाग्य का अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कार्यालय में आपको अच्छा सहयोग मिलेगा। इस सप्ताह आपके पास धन आने में बाधाएं आएंगी। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 2 और 3 फरवरी उत्तम है। 2 और 3 फरवरी को आपके बहुत सारे कार्य संपन्न हो सकते हैं। 30, 31 और 1 जनवरी को आपको कई कार्यों में असफलता प्राप्त होगी। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या होगी। भाग्य आपका अति उत्तम है। कार्यालय में आपकी लड़ाई दूसरों से हो सकती है। वाद विवाद व्यर्थ में न करें। इस सप्ताह आपकी संतान आपका सहयोग करेगी। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप आपने शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए उत्तम है। 4 और 5 तारीख को आप जो भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता प्राप्त होगी। 2 और 3 फरवरी को आपको सोच समझकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंध आगे बढ़ेंगे। यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए अत्यंत उत्तम है। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना चाहिए। भाग्य पर नहीं। आपको अपनी संतान से मामूली सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई में थोड़ी बहुत बाधा आएगी। इस सप्ताह आपके लिए 31 और 31 जनवरी तथा 1 फरवरी अत्यंत उत्तम है। आप द्वारा किए जा रहे सभी कार्य इन तीनों तारीखों में संपन्न हो जाएंगे। 4 और 5 फरवरी को आपको बहुत सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।
इस वर्ष अगर आप अविवाहित हैं तो आपका विवाह संबंध हो सकता है। आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य अत्यंत उत्तम रहेगा। पुराने शत्रु समाप्त होंगे परंतु नए शत्रु पैदा होंगे। कचहरी के कार्यों में सफलता की उम्मीद कम है। आपको अपने संतान से सहयोग नहीं प्राप्त होगा। भाग्य का सहयोग कम मिलेगा। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है। आपके सुख में कमी आएगी। भाई बहनों से संबंध उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 2 और 3 फरवरी उत्तम और लाभप्रद है। आपको चाहिए कि इस सप्ताह आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
इस सप्ताह आपके पास धन आने की थोड़ी बहुत संभावना है। खर्चों में वृद्धि चलती रहेगी। धन आने में बहुत बाधाएं हैं। गलत रास्ते से अगर आपके पास धन आ रहा है तो कृपया अत्यंत सतर्क रहें। संतान से आपको उत्तम सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों से सामान्य संबंध रहेंगे। आपकी प्रतिष्ठा में गिरावट हो सकती है। आप धन के मामले में अत्यंत सतर्क रहें। इस सप्ताह आपके लिए 4 और 5 फरवरी उत्तम और कार्य सिद्धि के लिए उचित तिथि है 30 और 31 जनवरी तथा 1 फरवरी को आपके कई कार्य सफल हो सकते हैं। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का कम से कम 3 बार जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।
इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि हो सकती है। आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट आएगी। संतान से उत्तम सहयोग प्राप्त होगा। व्यापार ठीक ठाक चलेगा। भाइयों से संबंध में गतिरोध आ सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति मजबूत होगी। भाग्य आपका ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 जनवरी तथा 1 फरवरी उत्तम फलदायक है। 2 और 3 फरवरी को आपको सतर्क रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार को हनुमान मंदिर या किसी भी मंदिर पर जाकर गरीबों के बीच में चावल का वितरण करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।
इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंध उत्तम रहेंगे। धन आ सकता है परंतु उसकी मात्रा में कमी आएगी। शत्रुओं के साथ आपका संबंध ठीक-ठाक रहेगा। भाग्य से आपको कम फायदा होगा। परिश्रम पर ज्यादा भरोसा करें। कचहरी के कार्यों में सफलता हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 2 और 3 फरवरी उत्तम फलदायक हैं। बाकी दिनों में आपको सतर्क रहने की अत्यंत आवश्यकता है। बाकी दिनों में कोई भी काम करने के पहले पूरी तरह से छानबीन कर ले। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने बच्चों को संकट से बचाने के लिए काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।
इस सप्ताह आपके पास धन आने की अच्छी उम्मीद है। यह भी संभव है कि आप अच्छे धन लाभ के लिए कोई योजना बनाएं,जो बाद में सफल हो। आपके माताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट आ सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहने की उम्मीद है। भाग्य सामान्य है। आप अपने परिश्रम पर भरोसा करें। अपनी संतान से आपको कम सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की परीक्षाएं में बाधा आ सकती है। इस सप्ताह 4 और 5 फरवरी आपके सभी कार्य सफल हो सकते हैं। ठीक से योजना बनाकर अपने कार्यों को 4 और 5 फरवरी को करने का प्रयास करें। 2 और 3 फरवरी को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं। आपको चाहिए कि 2 और 3 फरवरी को आप कोई भी कार्य सावधानीपूर्वक करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप अपने व्यापार में वृद्धि के लिए गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।
इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य थोड़ी परेशानी आएगी। प्रेम संबंधों में बाधाएं आ सकती हैं। इस बात की ज्यादा संभावना है कि प्रेम संबंधों में वृद्धि हो। विवाह की बात करने के लिए यह समय अनुकूल है। भाग्य आपका साथ देगा। धन आ सकता है। कचहरी के कार्यों में असफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 जनवरी तथा 1 फरवरी उत्तम फलदायक है। इन तारीखों में कार्यों में सफलता की उम्मीद ज्यादा है। 4 और 5 फरवरी को आपको कार्यों में सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार को मंगल देव या हनुमान जी के मंदिर में जाएं तथा वहां पर बैठ कर के कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
आपका स्वास्थ्य उत्तम रहने की उम्मीद है। भाई और बहनों से तकरार हो सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक रहेगी। भाग्य आपका साथ देगा। धन आएगा। कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। शत्रुओं पर आपको विजय प्राप्त होगी। संतान से सामान्य सहयोग प्राप्त हो सकता है। 2 और 3 फरवरी आपके लिए अच्छे हैं। इन दोनों तारीखों में आप जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता की उम्मीद काफी है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप कार्यालय में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ स्वयं करें या किसी विद्वान ब्राह्मण से कराएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।
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eaa0c7f6f34047ec2f18a5e4d173c153cc0bfc28 | web | हाइपेरिक शॉक। रूसी पनडुब्बियों में से कौन सी ज़िक्रों को प्राप्त करेगी?
В पहले सामग्री का हिस्सा, हमने पुराने सोवियत मिसाइलों से नए ज़िरकॉन हाइपरसोनिक मिसाइल तक रूसी नौसेना के कई सतह के जहाजों के पुनरुद्धार पर छुआ। जो, पत्रकारों के अनुसार, सैन्य और राज्य के प्रमुख, अब परीक्षण के दौर से गुजर रहा है और जल्द ही इसे सेवा में लाया जा सकता है।
स्मरण करो, हम एक ऐसे उत्पाद के बारे में बात कर रहे हैं जो (फिर से, खुले स्रोतों के अनुसार) एक्सएनयूएमएक्स एम तक की गति तक पहुंच सकता है और एक्सएनयूएमएक्स-एक्सएनयूएमएक्स किलोमीटर तक के लक्ष्य पर हिट कर सकता है। इतनी विशाल गति से, सबसे उन्नत वायु रक्षा प्रणाली के लिए भी, मिसाइलों को रोकना बहुत मुश्किल होगा। और घोषित सीमा हमें यह कहने की अनुमति देती है कि हमारे सामने है हथियार, जो, सिद्धांत रूप में, समुद्र में बलों के संतुलन को बदल सकता है, हालांकि यह रूसी बेड़े को पृथ्वी पर सबसे मजबूत नहीं बनाता है। विमान वाहक के बिना, यह असंभव है।
USSR में दुश्मन के विमान वाहक संरचनाओं को नष्ट करने के लिए, P-700 ग्रेनाइट एंटी-शिप मिसाइल को बुलाया गया था। यह एक वास्तविक विशालकाय है, जिसमें सात टन का शुरुआती द्रव्यमान है और 500-600 किलोमीटर तक सुपरसोनिक गति से यात्रा करने में सक्षम है। "ग्रेनाइट" का उपयोग कभी भी युद्ध में नहीं किया गया था, इसलिए इसकी प्रभावशीलता को थोड़ा पारंपरिकता के साथ तर्क दिया जा सकता है। सामान्य तौर पर, यह एक दुर्जेय हथियार है, जो कि आज नैतिक और शारीरिक रूप से पुराना है और इसे बदलने की आवश्यकता है। इसे पहले से ही एक हाइपरसोनिक मिसाइल द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है।
TASS के अनुसार, Zircons से लैस पहली पनडुब्बी 949A इरकुत्स्क परियोजना की बहुउद्देशीय पनडुब्बी होगी। एजेंसी रक्षा उप मंत्री अलेक्सई क्रिवोरोचको को संदर्भित करती हैः अपने आधुनिकीकरण के दौरान, नाव को सार्वभौमिक लांचर 3С14 प्राप्त होगा, जो कि Zircons के अलावा, पहले से ही सेवा में कैलिबर और ओनेक्सा मिसाइलों के उपयोग की अनुमति देगा। यह कहने योग्य है कि ये लांचर कई सतह जहाजों द्वारा भी सक्रिय रूप से उपयोग किए जाते हैं, जो सिद्धांत रूप में, उन सभी को नई मिसाइलों के वाहक बनने की अनुमति देगा।
स्मरण करो, 2017 के रूप में, 3С14 का उपयोग 22350 प्रोजेक्ट के फ्रिगेट पर, 11356 प्रोजेक्ट के फ्रिगेट, 20385 प्रोजेक्ट के कोरवेट, 11661 प्रोजेक्ट के मिसाइल जहाजों, 21631 प्रोजेक्ट के छोटे मिसाइल पोतों और 22800 प्रोजेक्ट के छोटे मिसाइल पोतों पर किया गया। जैसा कि हमने पिछले लेख में लिखा था, होनहार परमाणु विध्वंसक नेता को जिरकोन के वाहक के रूप में भी देखा जाता है, लेकिन अभी तक इसकी संभावनाएँ अस्पष्ट से अधिक हैं।
हालांकि, अब हम पनडुब्बियों में रुचि रखते हैं। जैसा कि आप जानते हैं, K-132 इरकुत्स्क एक रूसी परमाणु पनडुब्बी मिसाइल-ले जाने वाली क्रूजर है जो कुख्यात कुर्स्क के समान परियोजना से संबंधित है। यही है, 949A Antey प्रोजेक्ट के लिए। मौजूदा वर्गीकरण के अनुसार, यह एक पनडुब्बी (क्रूज मिसाइलों के साथ परमाणु पनडुब्बी) है, लेकिन सुविधा के लिए, आधुनिकीकरण के बाद, इसे "बहुउद्देशीय" कहा जा सकता है।
पहले घोषित आंकड़ों के अनुसार, K-132 2022 से पहले Zvezda में आधुनिकीकरण से गुजरेगा। और 2020 में उन्हें K-442 चेल्याबिंस्क के आधुनिकीकरण को पूरा करना चाहिए - 949A Antey परियोजना की एक और पनडुब्बी। उनके अलावा, बेड़े में छह और Anteys हैं, जिनमें से प्रत्येक को जिक्रोन मिसाइल का उपयोग करने के लिए सिद्धांत रूप में उन्नत किया जा सकता है।
वैसे, एक दिलचस्प विवरणः जिरकोन मिसाइल की पहली पनडुब्बी वाहक अंशकालिक और एक्सएनयूएमएक्स परियोजना की सबसे पुरानी पनडुब्बी हैः इसे एक्सएनयूएमएक्स द्वारा अपनाया गया था। वास्तव में, इसका मतलब यह है कि भविष्य में भी Antei को मुख्य रूसी परमाणु पनडुब्बियों में से एक के रूप में देखा जाता है। जाहिर है, वे पिछली, चौथी पीढ़ी की पनडुब्बियों के साथ इसका फायदा उठाने का इरादा रखते हैं।
पनडुब्बियों की चौथी पीढ़ी वह है जिसमें केवल अमेरिकी बहुउद्देश्यीय सिवल्फ और वर्जीनिया अब संबंधित हैं, साथ ही परियोजना 955 बोरे की रूसी रणनीतिक पनडुब्बियां और परियोजना 885 राख की नवीनतम बहुउद्देश्यीय पनडुब्बियां हैं। यह उत्तरार्द्ध है जो वास्तव में पानी के नीचे Zircons का मुख्य वाहक बनना चाहिए नौसेना। स्मरण करो, "ऐश" परियोजनाओं के आधार पर विकसित किया गया था 705 (के) "लीरा", 971 "पाइक-बी": यहां तक कि एक शुद्ध रूप से बाह्य पनडुब्बी भी अपने पूर्वजों के समान है।
ज़ीरकॉन से लैस रूसी बेड़े में चौथी पीढ़ी की पहली पनडुब्बी K-561 कज़ान जहाज होनी चाहिए। "2020M कज़ान परियोजना की बहुउद्देशीय परमाणु पनडुब्बी, इस मिसाइल के परीक्षण के हिस्से के रूप में, जिरकोन द्वारा फायरिंग के 885 वर्ष में, 2019M कज़ान परियोजना की बहुउद्देशीय परमाणु पनडुब्बी शुरू हो जाएगी," मार्च XNUMX में सैन्य-औद्योगिक परिसर में TASS ने कहा।
हालांकि, एक "लेकिन" है। यह पनडुब्बी खुद अभी तक बेड़े में नहीं हैः पहले से घोषित योजनाओं के अनुसार, नौसेना इसे 2020 वर्ष के अंत से पहले नहीं स्थानांतरित करना चाहती है। स्मरण करो, हम ऐश परियोजना की दूसरी पनडुब्बी और इस परियोजना की दूसरी पनडुब्बी के बारे में बात कर रहे हैं, जिसे ऐश-एम के बेहतर संस्करण के अनुसार बनाया गया है। यह मानना तर्कसंगत है कि जिरकोन अंततः एक्सएनयूएमएक्सएम परियोजना के सभी आठ नावों को प्राप्त करेगा।
रूस पांचवीं पीढ़ी की पनडुब्बी प्राप्त करने वाला दुनिया का पहला देश बन सकता है। कम से कम अब कई वर्षों के लिए, मीडिया सक्रिय रूप से एक नई परमाणु पनडुब्बी विकसित करने की थीम को "अतिरंजित" कर रहा है। अप्रैल में, एक साल बीत गया, यह ज्ञात हो गया कि सेंट पीटर्सबर्ग मैरिटाइम ब्यूरो ऑफ़ इंजीनियरिंग "मैलाकाइट" ने "हस्की" कोड के तहत शोध कार्य पूरा किया, जिसे पाँचवीं पीढ़ी की बहुउद्देशीय परमाणु पनडुब्बी की उपस्थिति निर्धारित करने के लिए डिज़ाइन किया गया और एक नाव बनाने के लिए "लाइका" कोड के तहत काम शुरू किया। पांचवीं पीढ़ी।
नाव को घरेलू जहाज निर्माण के लिए सामान्य दो-पतले आर्किटेक्चर प्रथागत के अनुसार बनाया जाएगाः एक हल्का बाहरी पतवार और एक ठोस आंतरिक। यह 885 प्रोजेक्ट पनडुब्बी से छोटा होगा, और वे इसके लिए नवीनतम सामग्रियों का उपयोग करने का इरादा रखते हैं। "ये मल्टी-लेयर कम्पोजिट मटीरियल्स से बने जहाज होंगे," वेलेन्ट पोलोविंकिन, संघीय राज्य एकात्मक उद्यम क्रायलोव्स्की स्टेट साइंटिफिक सेंटर (केएससीसी) के सामान्य निदेशक के सलाहकार, ने 2016 वर्ष में इज़वेस्टिया को बताया। "समग्र सामग्री का उपयोग पतवार कवर, धनुष और स्टर्न पतवार, स्टेबलाइजर्स, व्हीलहाउस गार्ड, यहां तक कि प्रोपेलर और शाफ्ट लाइनों को बनाने के लिए किया जाएगा। "
तथ्य यह है कि होनहार पनडुब्बी को जिरकोन मिसाइलों का वाहक बनना चाहिए, लंबे समय से ज्ञात है। इसके बारे में अलग-अलग समय पर, विभिन्न स्रोतों ने सूचना दी। एक और सवाल यह है कि वास्तव में रूसी संघ के पास एक नई पनडुब्बी कब होगी। सबसे आशावादी पूर्वानुमान के अनुसार, 2020 के अंत तक नाव पूरी हो जाएगी। शायद, उस समय तक, जिरकोन पहले से ही रूसी बेड़े में अच्छी तरह से स्थापित है। अधिकारियों द्वारा नवीनतम बयानों को देखते हुए, इसे खारिज नहीं किया जा सकता है। हालांकि, कोई इस तथ्य को बाहर नहीं कर सकता है कि वे (ये बहुत ही बयान) वास्तविकता के अनुरूप नहीं हैं।
डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के रूप में, उन्होंने स्पष्ट रूप से उन पर बचत करने का फैसला किया। और अगर वे Zircons से लैस हैं, तो आखिरी मोड़ में हैं। "लाडा वर्ग की ये पनडुब्बियाँ बिना हवा-रहित बिजली संयंत्र के बनाई जाएंगी, क्योंकि यह अभी तक नहीं बनी हैं। नवीनतम ज़िरकॉन हाइपरसोनिक मिसाइलों को इन नावों से लैस नहीं किया जाएगा, "जुलाई एक्सएनयूएमएक्स में एडमिरल्टी शिपयार्ड के महा निदेशक अलेक्जेंडर बुजाकोव ने दो एलएनए एक्सएनयूएमएक्स प्रोजेक्ट डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के लिए एक अनुबंध पर टिप्पणी करते हुए कहा।
इससे पहले, हालांकि, यूनाइटेड शिपबिल्डिंग कॉरपोरेशन के प्रमुख, अलेक्सी राखमनोव ने कहा कि होनहार गैर-परमाणु पनडुब्बी कलिना को कई फायदे प्राप्त होंगे, विशेष रूप से, यह जिरकोन हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली से लैस होगा। लेकिन यह कहना मुश्किल है कि यह पनडुब्बी कब दिखाई देगी (और क्या यह दिखाई देगी)। हाल ही में, समाचार इस नाव के बारे में वहाँ लगभग है।
- लेखकः
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81b20a50ce5adf20dee0b0d419362912ff918c09 | web | New Delhi: दिनांक 18 अप्रैल 2023, मंगलवार को त्रयोदशी, 13:30 तक रहेगा। नक्षत्रः उत्तरभाद्रपदा, 24:54 तक रहेगा। योगः इंद्र, 18:03 तक रहेगा। प्रथम करणः वणिजा, 13:30 तक रहेगा और द्वितीय करणः विष्टि, 24:26 तक रहेगा।
आप आशावादी रहेंगे एवं संसाधनो तथा उनके उपयोग में आपका विश्वास बना रहेगा। आप अपनी भावनाएं स्पष्ट रुप से व्यक्त कर पाएंगे। आज घर पर या काम पर आपसे की गयी मांगो को लेकर थकावट महसूस कर सकते हैं। आपको कुछ समय इससे बाहर निकलकर सोचना होगा और काम के लिये योजना बनानी होगी। जैसे की आप जानते है, आप मुश्किल तरीके से काम करते हैं। कामकाजी महिलाओं के लिए एक अनुकूल दिनऐसी महिलाएँ जिन्हें स्वतंत्र रूप से निर्भीक निर्णय लेने की आदत है उनकी ताकत के लिए उनका विरोध हो सकता हैं। उन्हें इसके बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह केवल इतनी सी बात है कि लोग उनके प्रति ईर्ष्यालु हैं।
बच्चों या निजी जिंदगी के बारें में कोई कुछ गलत बाते करने पर आपको दृढ़ रहना होगा। आपके निजी जीवन में किसी का अनावश्यक हस्तक्षेप नही होना चाहिये। आज यदि आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अकेले जाते हैं, तो बेहतर होगा। संभवतः आप अपने सहकर्मियों को बहुत विश्वसनीय या सहयोगी भी नहीं पाएंगे । आज आपके तार्किक विचार मार्गदर्शक साबित होंगे। उन पर पूरी तरह से विश्वास करें क्योंकि वे कभी गलत नही हो सकते। और आज इससे आपको अच्छा परिणाम प्राप्त होगा।
आपके हृदय के घाव भरने में थोड़ा और समय लगेगा। परंतु आपके अपने लोगों से आपको करुणा एवं सहानुभूति प्राप्त होगी। जल्द ही यह समय भी निकल जाएगा। आज आप निष्क्रियता एवं थकावट महसूस करेंगे। यह आपके सक्रिय स्वभाव के विपरीत होगा। सहजता से क्षुब्ध भी हो जायेंगे। महत्वपूर्ण और बड़ी परियोजनाओं पर कार्य करने वाली महिलाओं की उनके समर्पण और मेहनत के लिए प्रशंसा की जाएगी। यदि आपकी सजग होने की प्रवृत्ति है तो आप लोगों के प्रति, उनके उद्देश्यों, परिस्थितियों, इत्यादी के प्रति बहुत शंकालु बनती हैं। ऐसा कोई भी वायदा, जो कार्य को आज आपके पक्ष में कर सकता है, उसे करने के पूर्व आप प्रत्येक चीज को विश्लेषण करके समाप्त करेंगे।
आज आप अपने निकट के किसी व्यक्ति कि गलती को माफ करने का हक अपने पास रखते हैं । इससे आप उनके और निकट हो जाएँगे। कोई अप्रत्याशित रूप से आप के करीब आने की संभावना है। इससे आपके जीवन तथा जीवनशैली में बहुत से सकारात्मक बदलाव आयेगा। आपकी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद आज आप कुछ पल के लिये एकांत की तलाश करेंगे । परंतु आप इस समय जिस तनाव और दबाव से गुजर रहे हैं , उससे ज्यादा देर दूर रहना आप के लिये मुश्किल होगा।
पिताओं को अपने परिवार और बच्चों के साथ अधिक समय बिताने की आवश्यकता है। उनके पास उस प्रेम और देखभाल की कमी है जिसे केवल एक पिता ही प्रदान कर सकता है। आपके पति या पत्नी, बच्चों या निजी जिंदगी के बारें में कोई कुछ गलत बाते करने पर आपको दृढ़ रहना होगा। आपके निजी जीवन में किसी का अनावश्यक हस्तक्षेप नही होना चाहिये। आप स्वयं ही कार्य करना पसंद करेंगे क्योंकि आप अधिकार का विरोध करते हैं। आप उन लोगों को पसंद नहीं करते हैं जो आपको बताते हैं कि क्या करना है और कैसे करना है।
आज आपको हर उस प्रोत्साहन और प्रेरणा की आवश्यकता होगी जिसे आप प्राप्त कर सकते हैं। किंतु दुर्भाग्यवश आपके सितारे अनुकूल नहीं हैं और आपको संभवतः वह सहायता प्राप्त न होगा जिसकी आपको आज आवश्यकता है। आपमें स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता हैं। महत्वपूर्ण निर्णय लेते वक्त यह आज आपके लिये फायदेमंद साबित होगा। ध्यान से आपको उस तनाव और दबाव से निपटने में सहायता मिलेगी जिससे आप पीड़ित होते हैं। तनाव आपकी शारीरिक मजबूती और ताकत को समाप्त करेगा।
आपको सलाह दी जाती है कि आज कुछ भी अलग कार्य न करें। आपके अच्छे इरादे भी आपके प्रेमी द्वारा गलत समझे जा सकते हैं। आपकी जीवनशैली में सुधार लाने हेतू चल रही आपकी कोशिश में आपके परिवार के सदस्य आपको मदद करेंगे। अपना जीवन अधिक सुरक्षित करने के प्रयास में वे आपको मार्गदर्शन करेंगे। आपने आपके परिवार के साथ छोटी सी यात्रा की जो योजना बनाई है वो बहुत आनंदमय एवं रोमांचक होगी। आप सब को बहुत मज़ा आयेगा।
आप उनकी समस्याएं सुलझानें में भी सक्षम हो सकते है। आप एक असफल परियोजना पर समय बर्बाद कर हारा हुआ महसूस कर सकते हैं। समय एवं ऊर्जा का अपव्यय न करें एवं आपको तरोताज़ा करने वाले किसी परियोजना पर काम करें। महिलाएँ आज जिन पार्टियों या फंक्शनों में उपस्थित होंगी उनमें वे आकर्षक और लोकप्रिय होंगी। ऐसी महिलाएँ जो अधिक ऊर्जा का प्रदर्शन करती हैं और जो उत्साही हैं और जो जोश के साथ कार्य करती हैं उन्हें इन अतिगुणों के लिए नाराज किया जाएगा। कुछ लोग यह भी टिप्पणी कर हो सकते हैं कि वे नाजुक नहीं हो रही हैं। महिलाओं को ऐसी नकारात्मक टिप्पणियों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए ।
आप किसी ज्ञानी डॉक्टर या उसी प्रकार के समान ज्ञानी व्यक्ती से मिलोगे जो आपको अपने भ्रामक दुनिया से बाहर आने में मदद करेंगे । यह आपको असली दुनिया से दूर ले जा रहा था । आप किसी के प्रति आकर्षित हो सकते हैं। किंतु आपको अपनी भावनाओं पर आने वाले समय तक के लिए नियंत्रण रखने की सलाह दी जाती है। आप अपने तरीके के प्रति सुनिश्चित हों अन्यथा आपको ठुकराया जा सकता है। आज किसी महत्वपूर्ण समस्या पर आपके प्रिय व्यक्ति द्वारा चर्चा होने की संभावना है। चिंता का विषय होने पर अपना पूरा ध्यान और प्राथमिकता दें।
आज आप में छाई निराशा, उदासी की अवस्था को कोई बाहर नहीं लाएगा जिसे आपने धारण किया है। संगीत या कोई ऐसी चीज जो सुंदर हो आपकी रुचि को आकर्षित करेगी। आज आप नकारात्मक मनोदशा में होंगे। इसकी वजह सें छोटी बातों पर जीवनसाथी से तकरार होगी। शांत रहें, अपने आपे से बाहर ना जाये। अन्यथा इन छोटी तकरारो से बड़े झग़ड़े हो सकते है। आज आप अपने निकट के किसी व्यक्ति कि गलती को माफ करने का हक अपने पास रखते हैं । इससे आप उनके और निकट हो जाएँगे। कोई अप्रत्याशित रूप से आप के करीब आने की संभावना है।
आपके पति या पत्नी, बच्चों या निजी जिंदगी के बारें में कोई कुछ गलत बाते करने पर आपको दृढ़ रहना होगा। आपके निजी जीवन में किसी का अनावश्यक हस्तक्षेप नही होना चाहिये। अपने घर या कार्यालय में कोई भी बदलाव करने के पूर्व अपने निकट संबंधियों के साथ-साथ विशेषज्ञों के साथ चर्चा करें। आज आपके तार्किक विचार मार्गदर्शक साबित होंगे। उन पर पूरी तरह से विश्वास करें क्योंकि वे कभी गलत नही हो सकते। और आज इससे आपको अच्छा परिणाम प्राप्त होगा।
आप अपने पति/पत्नी के साथ घर के बने कैंडललाइट रात्रिभोज का आनंद ले सकते/सकती हैं। यह उनके प्रति आपकी प्रतिबद्धता को भी सुनिश्चित करेगा। आपकी इच्छाओं में आपके सहकर्मी, आपके दोस्त या अन्य पारिवारिक सदस्यों का हस्तक्षेप न होने दें। संभावना बनती है कि आपके विचार या कल्पनाओं को वे पसंद नही करेंगे परंतु आपको जो सही लगे वो करना चाहिये। आपके सपने एवं इच्छाएं आपकी है जिसे आपको पूरा करना होगा। आपका आलसीपन आपको दूसरों के साथ संवाद करने से रोकेगा। आप अपनी बुद्धिमत्ता और चतुराई का उपयोग उन परियोजनाओं को संभालने में भी नहीं करेंगे जिनका आपने उत्तरदायित्व उठाया है। आज आप अपने प्रियजनों के प्रति बहुत दयालु होंगे।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। यहां यह बताना जरूरी है कि Bebaknews. in किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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d67edcc584b87969806f5758f2e22be462237a70 | web | जम्मू और कश्मीर भारत के सबसे उत्तर में स्थित राज्य है। पाकिस्तान इसके उत्तरी इलाके ("पाक अधिकृत कश्मीर") या तथाकथित "आज़ाद कश्मीर" के हिस्सों पर क़ाबिज़ है, जबकि चीन ने अक्साई चिन पर कब्ज़ा किया हुआ है। भारत इन कब्ज़ों को अवैध मानता है जबकि पाकिस्तान भारतीय जम्मू और कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र मानता है। राज्य की आधिकारिक भाषा उर्दू है। जम्मू नगर जम्मू प्रांत का सबसे बड़ा नगर तथा जम्मू-कश्मीर राज्य की जाड़े की राजधानी है। वहीं कश्मीर में स्थित श्रीनगर गर्मी के मौसम में राज्य की राजधानी रहती है। जम्मू और कश्मीर में जम्मू (पूंछ सहित), कश्मीर, लद्दाख, बल्तिस्तान एवं गिलगित के क्षेत्र सम्मिलित हैं। इस राज्य का पाकिस्तान अधिकृत भाग को लेकर क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग कि॰मी॰ एवं उसे 1,38,124 वर्ग कि॰मी॰ है। यहाँ के निवासियों अधिकांश मुसलमान हैं, किंतु उनकी रहन-सहन, रीति-रिवाज एवं संस्कृति पर हिंदू धर्म की पर्याप्त छाप है। कश्मीर के सीमांत क्षेत्र पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सिंक्यांग तथा तिब्बत से मिले हुए हैं। कश्मीर भारत का महत्वपूर्ण राज्य है। .
चिनाब नदी या चंद्रभागा नदी भारत के हिमाचल प्रदेश के लाहौल एवं स्पीति जिला में दो नदियों चंद्र नदी एवं भागा नदी के संगम से बनी है। यह आगे जम्मू व कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान में सिंधु नदी से जाकर मिलती है। .
---- right चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो एशियाई महाद्वीप के पूर्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। चीन की लिखित भाषा प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी है जो आज तक उपयोग में लायी जा रही है और जो कई आविष्कारों का स्रोत भी है। ब्रिटिश विद्वान और जीव-रसायन शास्त्री जोसफ नीधम ने प्राचीन चीन के चार महान अविष्कार बताये जो हैंः- कागज़, कम्पास, बारूद और मुद्रण। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशों में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन में प्रथम मानवीय उपस्थिति के प्रमाण झोऊ कोऊ दियन गुफा के समीप मिलते हैं और जो होमो इरेक्टस के प्रथम नमूने भी है जिसे हम 'पेकिंग मानव' के नाम से जानते हैं। अनुमान है कि ये इस क्षेत्र में ३,००,००० से ५,००,००० वर्ष पूर्व यहाँ रहते थे और कुछ शोधों से ये महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली है कि पेकिंग मानव आग जलाने की और उसे नियंत्रित करने की कला जानते थे। चीन के गृह युद्ध के कारण इसके दो भाग हो गये - (१) जनवादी गणराज्य चीन जो मुख्य चीनी भूभाग पर स्थापित समाजवादी सरकार द्वारा शासित क्षेत्रों को कहते हैं। इसके अन्तर्गत चीन का बहुतायत भाग आता है। (२) चीनी गणराज्य - जो मुख्य भूमि से हटकर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों से बना देश है। इसका मुख्यालय ताइवान है। चीन की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है। प्राचीन चीन मानव सभ्यता के सबसे पुरानी शरणस्थलियों में से एक है। वैज्ञानिक कार्बन डेटिंग के अनुसार यहाँ पर मानव २२ लाख से २५ लाख वर्ष पहले आये थे। .
320px झेलम उत्तरी भारत में बहनेवाली एक नदी है। वितस्ता झेलम नदी का वास्तविक नाम है। कश्मीरी भाषा में इसे व्यथ कहते हैं। इसका उद्भव वेरीनाग नामी नगर में है। .
डल झील श्रीनगर, कश्मीर में एक प्रसिद्ध झील है। १८ किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई यह झील तीन दिशाओं से पहाड़ियों से घिरी हुई है। जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी झील है। इसमें सोतों से तो जल आता है साथ ही कश्मीर घाटी की अनेक झीलें आकर इसमें जुड़ती हैं। इसके चार प्रमुख जलाशय हैं गगरीबल, लोकुट डल, बोड डल तथा नागिन। लोकुट डल के मध्य में रूपलंक द्वीप स्थित है तथा बोड डल जलधारा के मध्य में सोनालंक द्वीप स्थित है। भारत की सबसे सुंदर झीलों में इसका नाम लिया जाता है। पास ही स्थित मुगल वाटिका से डल झील का सौंदर्य अप्रतिम नज़र आता है। पर्यटक जम्मू-कश्मीर आएँ और डल झील देखने न जाएँ ऐसा हो ही नहीं सकता। डल झील के मुख्य आकर्षण का केन्द्र है यहाँ के शिकारे या हाउसबोट। सैलानी इन हाउसबोटों में रहकर झील का आनंद उठा सकते हैं। नेहरू पार्क, कानुटुर खाना, चारचीनारी आदि द्वीपों तथा हज़रत बल की सैर भी इन शिकारों में की जा सकती है। इसके अतिरिक्त दुकानें भी शिकारों पर ही लगी होती हैं और शिकारे पर सवार होकर विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ भी खरीदी जा सकती हैं। तरह तरह की वनस्पति झील की सुंदरता को और निखार देती है। कमल के फूल, पानी में बहती कुमुदनी, झील की सुंदरता में चार चाँद लगा देती है। सैलानियों के लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधन जैसे कायाकिंग (एक प्रकार का नौका विहार), केनोइंग (डोंगी), पानी पर सर्फिंग करना तथा ऐंगलिंग (मछली पकड़ना) यहाँ पर उपलब्ध कराए गए हैं। डल झील में पर्यटन के अतिरिक्त मुख्य रूप से मछली पकड़ने का काम होता है। .
डोडा भारत के जम्मू एवं कश्मीर प्रान्त का एक जिला है। इस ज़िले का प्रमुख नगर। श्रेणीःशहर.
डोडा जिला भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय डोडा है।.
यह सिद्ध करने के लिये कि किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया है, जो प्रक्रिया अपनायी जाती है (या, अपनायी जानी चाहिये) उस प्रक्रिया को दण्ड प्रक्रिया (Criminal procedure) कहते हैं। भारत में इसके लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ प्रयुक्त होती है। .
नरिंदर नाथ वोहरा (जन्म 5 मई 1936) भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी एवं जम्मू और कश्मीर राज्य के वर्तमान राज्यपाल हैं। वोहरा 28 जून 2008 से इस पद पर हैं और इन्होने यह पदभार एस के सिन्हा के परवर्ती के रूप में ग्रहण किया था। वोहरा, के कार्यकाल के दौरान गुलाम नबी आजाद, उमर अब्दुल्ला, मुफ़्ती मुहम्मद सईद तथा महबूबा मुफ़्ती (वर्तमान) के रूप में जम्मू कश्मीर में चार मुख्यमंत्री बदल चुके हैं। .
नगीन कश्मीर में एक रमणीय सरोवर है। श्रेणीःकश्मीर.
पठानकोट भारत के पंजाब राज्य का एक शहर है। 2011 में यह पठानकोट जिले की राजधानी बन गया। 1849 से पहले यह नूरपुर की राजधानी था। सामरिक दृष्टि से पठानकोट भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण ठिकानों में से एक है। यहां पर वायुसेना स्टेशन, सेना गोला-बारूद डिपो एवं दो बख्तरबंद ब्रिगेड एवं बख्तरबंद इकाइयां हैं। जनवरी २०१६ में पठानकोट वायुसेना स्टेशन पर आतंकवादी हमला हुआ। यह टपरवेयर के बरतनों के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। .
पामीर (अंग्रेजीः Pamir Mountains, फ़ारसी), मध्य एशिया में स्थित एक प्रमुख पठार एवं पर्वत शृंखला है, जिसकी रचना हिमालय, तियन शान, काराकोरम, कुनलुन और हिन्दू कुश शृंखलाओं के संगम से हुआ है। पामीर विश्व के सबसे ऊँचे पहाड़ों में से हैं और १८वीं सदी से इन्हें 'विश्व की छत' कहा जाता है। इसके अलावा इन्हें इनके चीनी नाम 'कोंगलिंग' के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ उगने वाले जंगली प्याज़ के नाम पर इन्हें प्याज़ी पर्वत भी कहा जाता था।, John Navazio, pp.
भारतीय कश्मीर है और अकसाई चिन चीन के अधिकार में है। इस क्षेत्र का अधिकार चीन को पाकिस्तान द्वारा सौंपा गया था। पाक अधिकृत कश्मीर मूल कश्मीर का वह भाग है, जिस पर पाकिस्तान ने १९४७ में हमला कर अधिकार कर लिया था। यह भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र है। इसकी सीमाएं पाकिस्तानी पंजाब एवं उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत से पश्चिम में, उत्तर पश्चिम में अफ़गानिस्तान के वाखान गलियारे से, चीन के ज़िन्जियांग उयघूर स्वायत्त क्षेत्र से उत्तर और भारतीय कश्मीर से पूर्व में लगती हैं। इस क्षेत्र के पूर्व कश्मीर राज्य के कुछ भाग, ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट को पाकिस्तान द्वारा चीन को दे दिया गया था व शेष क्षेत्र को दो भागों में विलय किया गया थाः उत्तरी क्षेत्र एवं आजाद कश्मीर। इस विषय पर पाकिस्तान और भारत के बीच १९४७ में युद्ध भी हुआ था। भारत द्वारा इस क्षेत्र को पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के) कहा जाता है।रीडिफ, २३ मई २००६ संयुक्त राष्ट्र सहित अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं एम.एस.एफ़, एवं रेड क्रॉस द्वारा इस क्षेत्र को पाक-अधिकृत कश्मीर ही कहा जाता है। .
इस्लामी जम्हूरिया पाकिस्तान या पाकिस्तान इस्लामी गणतंत्र या सिर्फ़ पाकिस्तान भारत के पश्चिम में स्थित एक इस्लामी गणराज्य है। 20 करोड़ की आबादी के साथ ये दुनिया का छठा बड़ी आबादी वाला देश है। यहाँ की प्रमुख भाषाएँ उर्दू, पंजाबी, सिंधी, बलूची और पश्तो हैं। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और अन्य महत्वपूर्ण नगर कराची व लाहौर रावलपिंडी हैं। पाकिस्तान के चार सूबे हैंः पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा। क़बाइली इलाक़े और इस्लामाबाद भी पाकिस्तान में शामिल हैं। इन के अलावा पाक अधिकृत कश्मीर (तथाकथित आज़ाद कश्मीर) और गिलगित-बल्तिस्तान भी पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित हैं हालाँकि भारत इन्हें अपना भाग मानता है। पाकिस्तान का जन्म सन् 1947 में भारत के विभाजन के फलस्वरूप हुआ था। सर्वप्रथम सन् 1930 में कवि (शायर) मुहम्मद इक़बाल ने द्विराष्ट्र सिद्धान्त का ज़िक्र किया था। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद) को मिलाकर एक नया राष्ट्र बनाने की बात की थी। सन् 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, सिन्ध, कश्मीर तथा बलोचिस्तान के लोगों के लिए पाक्स्तान (जो बाद में पाकिस्तान बना) शब्द का सृजन किया। सन् 1947 से 1970 तक पाकिस्तान दो भागों में बंटा रहा - पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। दिसम्बर, सन् 1971 में भारत के साथ हुई लड़ाई के फलस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना और पश्चिमी पाकिस्तान पाकिस्तान रह गया। .
पंजाब दक्षिण एशिया का क्षेत्र है जिसका फ़ारसी में मतलब पांच नदियों का क्षेत्र है। पंजाब ने भारतीय इतिहास को कई मोड़ दिये हैं। अतीत में शकों, हूणों, पठानों व मुगलों ने इसी पंजाब के रास्ते भारत में प्रवेश किया था। आर्यो का आगमन भी हिन्दुकुश पार कर इसी पंजाब के रास्ते ही हुआ था। पंजाब की सिन्धु नदी की घाटी में आर्यो की सभ्यता का विकास हुआ। उस समय इस भूख़ड का नाम सप्त सिन्धु अर्थात सात सागरों का देश था। समय के साथ सरस्वती जलस्रोत सूख् गया। अब रह गयीं पाँच नदियाँ-झेलम, चेनाब, राबी, व्यास और सतलज इन्हीं पाँच नदियों का प्रांत पंजाब हुआ। पंजाब का नामाकरण फारसी के दो शब्दों से हुआ है। पंज का अर्थ है पाँच और आब का अर्थ होता है जल। .
कश्मीर का नगर है। यह ज़िले का केन्द्र भी है। श्रेणीःजम्मू कश्मीर के शहर.
पुलवामा भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय पुलवामा है। क्षेत्रफल - 1,398 वर्ग कि.मी.
पुंछ नगर पुंछ जिले में स्थित एक नगर परिषद है, जो कि भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर में स्थित है। इस नगर का उल्लेख महाभारत में मिलता है तथा चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस नगर का उल्लेख किया है। .
पुंछ जिला (ضلع پونچ) भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। यह जिला नियंत्रण रेखा से सटा हुआ है। जिले का मुख्यालय पुंछ है। .
प्रजा परिषद् भारत का एक राजनैतिक दल था जिसने जम्मू तथा कश्मीर को भारत के संविधान में विशेष दर्जा (धारा ३७०) देने के विरुद्ध संघर्ष किया। पंडित प्रेम नाथ डोगरा ने बलराज मधोक के साथ मिल कर प्रजा परिषद का गठन किया था। प्रजा परिषद ने नारा दिया, देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशानः नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। १९७० में इस दल का भारतीय जनसंघ में विलय हो गया। .
बड़गांव भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के कटंगी तहसील का गांव है। जिला - बालाघाट तहसील - कटंगी पिन कोड - ४८१४४५ क्षेत्रफल - ३.५६३ वर्ग कि.मी.
बड़गांव भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय है। क्षेत्रफल - 1,371 वर्ग कि.मी.
बल्तिस्तान (गहरा नीला एवं हल्का नीला) स्कर्दू नगर कारगिल की बलती बालिकायें बल्तिस्तानतान (बलती, लद्दाख़ी व तिब्बतीः སྦལ་ཏི་སྟཱན) राजनैतिक रूप से विवादित क्षेत्र है जो काराकोरम के दक्षिण तथा सिन्धु नदी के उत्तर में स्थित है। यह अत्यन्त पर्वतीय क्षेत्र है और इस क्षेत्र की औसत ऊँचाई ३३५० मीटर से अधिक है। इसे 'लघु तिब्बत' भी कहते हैं। इसका क्षेत्रफल लगभग 27,400 किमी2 है। इस क्षेत्र में बलती भाषा बोली जाती है जो तिब्बती लिपि में लिखी जाती है। इस क्षेत्र के अधिकांश लोग मुसलमान हैं। स्कर्दू तथा कारगिल यहाँ के मुख्य कस्बे हैं। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग पाकिस्तान के अधीन (गिलगित-बल्तिस्तान) है और कुछ भाग भारत के अधीन (जम्मू और कश्मीर)। यह क्षेत्र सिन्धु नदी की घाटियों से बना है। बल्तिस्तान के दक्षिण-पूर्व में भारत और पाकिस्तान के बीच की नियन्त्रण रेखा है। .
बारामूला, जिसे कश्मीरी भाषा में वरमूल कहते हैं, भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का एक शहर है। यह बारामूला ज़िले में स्थित है और उस ज़िले का मुख्यालय है। भारत के विभाजन से पहले कश्मीर घाटी में दाख़िल होने का प्रमुख मार्ग यहीं से होकर जाता था और इस कारण से इसे कश्मीर का द्वार भी कहा जाता है। बारामूला झेलम नदी के किनारे बसा हुआ है, जिसे स्थानीय रूप से नदी के संस्कृत नाम (वितस्ता नदी) के अनुसरण में कश्मीरी में "व्यथ नदी" कहा जाता है। .
बारामूला ज़िला, जिसे कश्मीरी भाषा में वरमूल कहते हैं, भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का एक ज़िला है। इसका मुख्यालय बारामूला शहर है और गुलमर्ग का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी इसी ज़िले मे स्थित है। .
भारत (आधिकारिक नामः भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायोंः हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .
भारतीय सशस्त्र सेनाएँ भारत की तथा इसके प्रत्येक भाग की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी हैं। भारतीय शस्त्र सेनाओं की सर्वोच्च कमान भारत के राष्ट्रपति के पास है। राष्ट्र की रक्षा का दायित्व मंत्रिमंडल के पास होता है। इसका निर्वहन रक्षा मंत्रालय द्वारा किया जाता है, जो सशस्त्र बलों को देश की रक्षा के संदर्भ में उनके दायित्व के निर्वहन के लिए नीतिगत रूपरेखा और जानकारियां प्रदान करता है। भारतीय शस्त्र सेना में तीन प्रभाग हैं भारतीय थलसेना, भारतीय जलसेना, भारतीय वायुसेना और इसके अतिरिक्त, भारतीय सशस्त्र बलों भारतीय तटरक्षक बल और अर्धसैनिक संगठनों (असम राइफल्स, और स्पेशल फ्रंटियर फोर्स) और विभिन्न अंतर-सेवा आदेशों और संस्थानों में इस तरह के सामरिक बल कमान अंडमान निकोबार कमान और समन्वित रूप से समर्थन कर रहे हैं डिफेंस स्टाफ। भारत के राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर है। भारतीय सशस्त्र बलों भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय (रक्षा मंत्रालय) के प्रबंधन के तहत कर रहे हैं। 14 लाख से अधिक सक्रिय कर्मियों की ताकत के साथ,यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सैन्य बल है। अन्य कई स्वतंत्र और आनुषांगिक इकाइयाँ जैसेः भारतीय सीमा सुरक्षा बल, असम राइफल्स, राष्ट्रीय राइफल्स, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, भारत तिब्बत सीमा पुलिस इत्यादि। भारतीय सेना के प्रमुख कमांडर भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द हैं। यह दुनिया के सबसे बड़ी और प्रमुख सेनाओं में से एक है। सँख्या की दृष्टि से भारतीय थलसेना के जवानों की सँख्या दुनिया में चीन के बाद सबसे अधिक है। जबसे भारतीय सेना का गठन हुआ है, भारत ने दोनों विश्वयुद्ध में भाग लिया है। भारत की आजादी के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ तीन युद्ध 1948, 1965, तथा 1971 में लड़े हैं जबकि एक बार चीन से 1962 में भी युद्ध हुआ है। इसके अलावा 1999 में एक छोटा युद्ध कारगिल युद्ध पाकिस्तान के साथ दुबारा लड़ा गया। भारतीय सेना परमाणु हथियार, उन्नत अस्त्र-शस्त्र से लैस है और उनके पास उचित मिसाइल तकनीक भी उपलब्ध है। हलांकि भारत ने पहले परमाणु हमले न करने का संकल्प लिया हुआ है। भारतीय सेना की ओर से दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र है। .
"'दीपक"' या "'दीया"' - भारतीय जनसंघ का चुनावचिह्न था। भारतीय जनसंघ के संस्थापक "'डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ भारत का एक पुराना राजनैतिक दल था जिससे १९८० में भारतीय जनता पार्टी बनी। इस दल का आरम्भ श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में की गयी थी। इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था। इसने 1952 के संसदीय चुनाव में २ सीटें प्राप्त की थी जिसमे डाक्टर मुखर्जी स्वयं भी शामिल थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल (1975-1976) के बाद जनसंघ सहित भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय कर के एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया। आपातकाल से पहले बिहार विधानसभा के भारतीय जनसंघ के विधायक दल के नेता लालमुनि चौबे ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बिहार विधानसभा से अपना त्यागपत्र दे दिया। जनता पार्टी 1980 में टूट गयी और जनसंघ की विचारधारा के नेताओं नें भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। भारतीय जनता पार्टी 1998 से 2004 तक राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार की सबसे बड़ी पार्टी रही थी। 2014 के आम चुनाव में इसने अकेले अपने दम पर सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। .
महा राजा हरि सिंह महाराज हरि सिंह (जन्मः 21 सितंबर 1895, जम्मू; निधनः 26 अप्रैल 1961 मुंबई) जम्मू और कश्मीर रियासत के अंतिम शासक महाराज थे। वे महाराज रणबीर सिंह के पुत्र और पूर्व महाराज प्रताप सिंह के भाई, राजा अमर सिंह के सबसे छोटे पुत्र थे। इन्हें जम्मू-कश्मीर की राजगद्दी अपने चाचा, महाराज प्रताप सिंह से वीरासत में मिली थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में चार विवाह किये। उनकी चौथी पत्नी, महारानी तारा देवी से उन्हें एक बेटा था जिसका नाम कर्ण सिंह है। हरि सिंह, डोगरा शासन के अन्तिम राजा थे जिन्होंने जम्मु के रज्य को एक सदी तक जोड़े रखा।जम्मु राज्य ने 1947 तक स्वायत्ता और आंतरिक सपृभुता का मज़ा उठाया। यह राज्य न केवल बहुसांस्कृतिक और बहुधमी॔ था, इसकी दूरगामी सीमाएँ इसके दुर्जेय सैन्य शक्ति तथा अनोखे इतिहास का सबूत हैं। .
मोहम्मद अली जिन्ना (उर्दूः, जन्मः 25 दिसम्बर 1876 मृत्युः 11 सितम्बर 1948) बीसवीं सदी के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे जिन्हें पाकिस्तान के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। वे मुस्लिम लीग के नेता थे जो आगे चलकर पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल बने। पाकिस्तान में, उन्हें आधिकारिक रूप से क़ायदे-आज़म यानी महान नेता और बाबा-ए-क़ौम यानी राष्ट्र पिता के नाम से नवाजा जाता है। उनके जन्म दिन पर पाकिस्तान में अवकाश रहता है। भारतीय राजनीति में जिन्ना का उदय 1916 में कांग्रेस के एक नेता के रूप में हुआ था, जिन्होने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देते हुए मुस्लिम लीग के साथ लखनऊ समझौता करवाया था। वे अखिल भारतीय होम रूल लीग के प्रमुख नेताओं में गिने जाते थे। काकोरी काण्ड के चारो मृत्यु-दण्ड प्राप्त कैदियों की सजायें कम करके आजीवन कारावास (उम्र-कैद) में बदलने हेतु सेण्ट्रल कौन्सिल के ७८ सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिण्डले वुड को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया था जिस पर प्रमुख रूप से पं॰ मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, एन॰ सी॰ केलकर, लाला लाजपत राय व गोविन्द वल्लभ पन्त आदि ने हस्ताक्षर किये थे। भारतीय मुसलमानों के प्रति कांग्रेस के उदासीन रवैये को देखते हुए जिन्ना ने कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने देश में मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा और स्वशासन के लिए चौदह सूत्रीय संवैधानिक सुधार का प्रस्ताव रखा। लाहौर प्रस्ताव के तहत उन्होंने मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र का लक्ष्य निर्धारित किया। 1946 में ज्यादातर मुस्लिम सीटों पर मुस्लिम लीग की जीत हुई और जिन्ना ने पाकिस्तान की आजादी के लिए त्वरित कार्रवाई का अभियान शुरू किया। कांग्रेस की कड़ी प्रतिक्रिया के कारण भारत में व्यापक पैमाने पर हिंसा हुई। मुस्लिम लीग और कांग्रेस पार्टी, गठबन्धन की सरकार बनाने में असफल रहे, इसलिए अंग्रेजों ने भारत विभाजन को मंजूरी दे दी। पाकिस्तान के गवर्नर जनरल के रूप में जिन्ना ने लाखों शरणार्थियो के पुनर्वास के लिए प्रयास किया। साथ ही, उन्होंने अपने देश की विदेश नीति, सुरक्षा नीति और आर्थिक नीति बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। गौरतलब है कि पाकिस्तान और भारत का बटवारा जिन्ना और नेहरू के राजनीतिक लालच की वजह से हुआ है ! .
कैंपिंग एवं ट्रेकिंग की तरह राफ्टिंग भी एक रोमांचकारी गतिविधि है। ऊँची-नीची लहरो से एक छोटी सी नाव में जूझना भी एक अलग तरह का अनुभव है। मनोरंजन के साथ-साथ यह हमें साहसी, एवं जूझारु भी बनाती है। इसके अलावा एक साथ काम करने के कारण आपस में सहयोग की भावना भी बढ़ती है। बड़ी-ड़ी लहरे जब वेग के साथ व्यक्ति की ओर आती हैं, तो कुछ क्षणों के लिए सब कुछ भूल जाता है। उसे केवल परस्पर सहयोग से इन लहरों को जीतनें की इच्छा होती है। यात्रा पूरी करने पर उस जीत की जो खुशी होती है, उसका वर्णन शब्दों में करना असम्भव ही है। राफ्टिंग और व्हाइटवाटर राफ्टिंग एक आउटडोर मनोरंजक गतिविधि हैं जिसमे एक हवा वाली बेड़े का उपयोग कर नदी या पानी के अन्य प्रकारों पर नेविगेट करते हैं। यह अक्सर किसी न किसी तरह साफ़ पानी की या फिर उथले पानी के विभिन्न डिग्री पर किया जाता है और आम तौर पर भाग लेने वालों के लिए एक नया और चुनौतीपूर्ण वातावरण का प्रतिनिधित्व करता है। जोखिम से निपटने और टीम वर्क की जरूरत इस अनुभव (राफ्टिंग) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक अवकाश खेल के रूप में इस गतिविधि का विकास के १९७० के मध्य लोकप्रिय हो गया है। यह एक जोखिम भरा खेल के रूप में जाना जाता है एवं यह काफी खतरनाक भी हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय राफ्टिंग संघ, जो आईआरएफ के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है एवं जो खेल के सभी पहलुओं की देखरेख करता है। .
रामबन (رام بن.) भारत के जम्मू और कश्मीर प्रान्त का एक नगर है। यह रामबन ज़िले का मुख्यालय है। .
रामबन (अंग्रेज़ीः Ramban, उर्दुः رام بن) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में एक नगर और ज़िला है। यह महान पीर पंजाल पर्वतमाला में स्थित है और राज्य के जम्मू विभाग का हिस्सा है। बनिहाल इसी ज़िले में आता है और कश्मीर घाटी में प्रवेश करने से पहले अंतिम पड़ाव है। यहाँ से रेल और जवाहर सड़क सुरंग बनने से पहले भी पास के बनिहाल दर्रे से यातायात कश्मीर जाया करता था। .
राष्ट्र संघ (लंदन) पेरिस शांति सम्मेलन के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्ववर्ती के रूप में गठित एक अंतर्शासकीय संगठन था। 28 सितम्बर 1934 से 23 फ़रवरी 1935 तक अपने सबसे बड़े प्रसार के समय इसके सदस्यों की संख्या 58 थी। इसके प्रतिज्ञा-पत्र में जैसा कहा गया है, इसके प्राथमिक लक्ष्यों में सामूहिक सुरक्षा द्वारा युद्ध को रोकना, निःशस्त्रीकरण, तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों का बातचीत एवं मध्यस्थता द्वारा समाधान करना शामिल थे। इस तथा अन्य संबंधित संधियों में शामिल अन्य लक्ष्यों में श्रम दशाएं, मूल निवासियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार, मानव एवं दवाओं का अवैध व्यापार, शस्त्र व्यपार, वैश्विक स्वास्थ्य, युद्धबंदी तथा यूरोप में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा थे। संघ के पीछे कूटनीतिक दर्शन ने पूर्ववर्ती सौ साल के विचारों में एक बुनियादी बदलाव का प्रतिनिधित्व किया। चूंकि संघ के पास अपना कोई बल नहीं था, इसलिए इसे अपने किसी संकल्प का प्रवर्तन करने, संघ द्वारा आदेशित आर्थिक प्रतिबंध लगाने या आवश्यकता पड़ने पर संघ के उपयोग के लिए सेना प्रदान करने के लिए महाशक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता था। हालांकि, वे अक्सर ऐसा करने के लिए अनिच्छुक रहते थे। प्रतिबंधों से संघ के सदस्यों को हानि हो सकती थी, अतः वे उनका पालन करने के लिए अनिच्छुक रहते थे। जब द्वित्तीय इटली-अबीसीनिया युद्ध के दौरान संघ ने इटली के सैनिकों पर रेडक्रॉस के मेडिकल तंबू को लक्ष्य बनाने का आरोप लगाया था, तो बेनिटो मुसोलिनी ने पलट कर जवाब दिया था कि "संघ तभी तक अच्छा है जब गोरैया चिल्लाती हैं, लेकिन जब चीलें झगड़ती हैं तो संघ बिलकुल भी अच्छा नहीं है".
राजतरंगिणी, कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है। 'राजतरंगिणी' का शाब्दिक अर्थ है - राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है - 'राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह'। यह कविता के रूप में है। इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होता है। इसका रचना काल सन ११४७ से ११४९ तक बताया जाता है। भारतीय इतिहास-लेखन में कल्हण की राजतरंगिणी पहली प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है। इस पुस्तक के अनुसार कश्मीर का नाम "कश्यपमेरु" था जो ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि के पुत्र थे। राजतरंगिणी के प्रथम तरंग में बताया गया है कि सबसे पहले कश्मीर में पांडवों के सबसे छोटे भाई सहदेव ने राज्य की स्थापना की थी और उस समय कश्मीर में केवल वैदिक धर्म ही प्रचलित था। फिर सन 273 ईसा पूर्व कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में औरेल स्टीन (Aurel Stein) ने पण्डित गोविन्द कौल के सहयोग से राजतरंगिणी का अंग्रेजी अनुवाद कराया। राजतरंगिणी एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। स्वयं कल्हण ने राजतरंगिणी में कहा है कि एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वेष-विनिर्मुक्त होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती है- .
राजधानी वह नगरपालिका होती है, जिसे किसी देश, प्रदेश, प्रान्त या अन्य प्रशासनिक ईकाई अथवा क्षेत्र में सरकार की गद्दी होने का प्राथमिक दर्जा हासिल होता है। राजधानी मिसाली तौर पर एक शहर होता है, जहाँ संबंधित सरकार के दफ़्तर और सम्मेलन -टिकाने स्थित होते हैं और आम तौर पर अपने क़ानून या संविधान द्वारा निर्धारित होती है। .
राजौर भारत के जम्मू एवं कश्मीर प्रान्त का शहर है। श्रेणीःजम्मू कश्मीर के शहर.
राजौरी भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। इसका मुख्यालय राजौरी है। क्षेत्रफल - 2,630 वर्ग कि.मी.
रूस (रूसीः Росси́йская Федера́ция / रोस्सिज्स्काया फ़ेदेरात्सिया, Росси́я / रोस्सिया) पूर्वी यूरोप और उत्तर एशिया में स्थित एक विशाल आकार वाला देश। कुल १,७०,७५,४०० किमी२ के साथ यह विश्व का सब्से बड़ा देश है। आकार की दृष्टि से यह भारत से पाँच गुणा से भी अधिक है। इतना विशाल देश होने के बाद भी रूस की जनसंख्या विश्व में सातवें स्थान पर है जिसके कारण रूस का जनसंख्या घनत्व विश्व में सब्से कम में से है। रूस की अधिकान्श जनसंख्या इसके यूरोपीय भाग में बसी हुई है। इसकी राजधानी मॉस्को है। रूस की मुख्य और राजभाषा रूसी है। रूस के साथ जिन देशों की सीमाएँ मिलती हैं उनके नाम हैं - (वामावर्त) - नार्वे, फ़िनलैण्ड, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैण्ड, बेलारूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, अज़रबैजान, कजाकिस्तान, चीन, मंगोलिया और उत्तर कोरिया। रूसी साम्राज्य के दिनों से रूस ने विश्व में अपना स्थान एक प्रमुख शक्ति के रूप में किया था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ विश्व का सबसे बड़ा साम्यवादी देश बना। यहाँ के लेखकों ने साम्यवादी विचारधारा को विश्व भर में फैलाया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ एक प्रमुख सामरिक और राजनीतिक शक्ति बनकर उभरा। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ इसकी वर्षों तक प्रतिस्पर्धा चली जिसमें सामरिक, आर्थिक, राजनैतिक और तकनीकी क्षेत्रों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ थी। १९८० के दशक से यह आर्थिक रूप से क्षीण होता चला गया और १९९१ में इसका विघटन हो गया जिसके फलस्वरूप रूस, सोवियत संघ का सबसे बड़ा राज्य बना। वर्तमान में रूस अपने सोवियत संघ काल के महाशक्ति पद को पुनः प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है। यद्यपि रूस अभी भी एक प्रमुख देश है लेकिन यह सोवियत काल के पद से भी बहुत दूर है। .
नेपाल में लद्दाख़ का स्थान ।- style.
लेह जम्मू कश्मीर राज्य का के लद्दाख जिले का मुख्यालय एवं प्रमुख नगर है। यह समुद्र तल से 11,500 फुट की ऊँचाई पर, श्रीनगर से 160 मील पूर्व तथा यारकंद से लगभग 300 मील दक्षिण, लद्दाख पर्वत श्रेणी के आँचल में, ऊपरी सिंध के दाहिने तट से 4 मील दूर स्थित है। यहाँ एशिया की सर्वाधिक ऊँची मौसमी वेधशाला (meteorological observatory) है। नगर तिब्बत, सिकीयांग तथा भारत के मध्य का महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र है। लेह में, 19वीं एवं 20वीं शताब्दी के डोगरावंशी राजाओं के पूर्व के राजाओं का एक राजप्रासाद भी है। यूरोपवासियों में से एक ने 1715 ई. में, सर्वप्रथम लेह की यात्रा की थी। लेह से, श्रीनगर एवं कुल्लू घाटी होती हुई, सड़कें भारत के आंतरिक भाग में आती हैं तथा एक मार्ग कराकोरम दर्रे की ओर जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या १ द इसे उत्तर पश्चिम में श्रीनगर से जोडता है। शान्ति स्तूप श्रेणीःजम्मू कश्मीर के शहर श्रेणीःमध्य एशिया के शहर श्रेणीःलद्दाख़.
जम्मू एवं कश्मीर राज्य में लेह जिले की स्थिति। लद्दाख भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। यह भारत का सबसे वड़ा जिला है। लद्दाख जिले का मुख्यालय लेह है। क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.
श्रीनगर भारत के जम्मू एवं कश्मीर प्रान्त की राजधानी है। कश्मीर घाटी के मध्य में बसा श्रीनगर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक हैं। श्रीनगर एक ओर जहां डल झील के लिए प्रसिद्ध है वहीं दूसरी ओर विभिन्न मंदिरों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। 1700 मीटर ऊंचाई पर बसा श्रीनगर विशेष रूप से झीलों और हाऊसबोट के लिए जाना जाता है। इसके अलावा श्रीनगर परम्परागत कश्मीरी हस्तशिल्प और सूखे मेवों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। श्रीनगर का इतिहास काफी पुराना है। माना जाता है कि इस जगह की स्थापना प्रवरसेन द्वितीय ने 2,000 वर्ष पूर्व की थी। इस जिले के चारों ओर पांच अन्य जिले स्थित है। श्रीनगर जिला कारगिल के उत्तर, पुलवामा के दक्षिण, बुद्धगम के उत्तर-पश्चिम के बगल में स्थित है। .
श्रीनगर भारत के जम्मू और कश्मीर प्रान्त की राजधानी है। कश्मीर घाटी के मध्य में बसा यह नगर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से हैं। श्रीनगर एक ओर जहां डल झील के लिए प्रसिद्ध है वहीं दूसरी ओर विभिन्न मंदिरों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। 1700 मीटर ऊंचाई पर बसा श्रीनगर विशेष रूप से झीलों और हाऊसबोट के लिए जाना जाता है। इसके अलावा श्रीनगर परम्परागत कश्मीरी हस्तशिल्प और सूखे मेवों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। श्रीनगर का इतिहास काफी पुराना है। माना जाता है कि इस जगह की स्थापना प्रवरसेन द्वितीय ने 2,000 वर्ष पूर्व की थी। इस जिले के चारों ओर पांच अन्य जिले स्थित है। श्रीनगर जिला कारगिल के उत्तर, पुलवामा के दक्षिण, बुद्धगम के उत्तर-पश्चिम के बगल में स्थित है। श्रीनगर जम्मू और कश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। ये शहर और उसके आस-पार के क्षेत्र एक ज़माने में दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल माने जाते थे -- जैसे डल झील, शालिमार और निशात बाग़, गुलमर्ग, पहलग़ाम, चश्माशाही, आदि। यहाँ हिन्दी सिनेमा की कई फ़िल्मों की शूटिंग हुआ करती थी। श्रीनगर की हज़रत बल मस्जिद में माना जाता है कि वहाँ हजरत मुहम्मद की दाढ़ी का एक बाल रखा है। श्रीनगर में ही शंकराचार्य पर्वत है जहाँ विख्यात हिन्दू धर्मसुधारक और अद्वैत वेदान्त के प्रतिपादक आदि शंकराचार्य सर्वज्ञानपीठ के आसन पर विराजमान हुए थे। डल झील और झेलम नदी (संस्कृतः वितस्ता, कश्मीरीः व्यथ) में आने जाने, घूमने और बाज़ार और ख़रीददारी का ज़रिया ख़ास तौर पर शिकारा नाम की नावें हैं। कमल के फूलों से सजी रहने वाली डल झील पर कई ख़ूबसूरत नावों पर तैरते घर भी हैं जिनको हाउसबोट कहा जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि श्रीनगर मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बसाया गया था। डल झील में एक शिकारा श्रीनगर से कुछ दूर एक बहुत पुराना मार्तण्ड (सूर्य) मन्दिर है। कुछ और दूर अनन्तनाग ज़िले में शिव को समर्पित अमरनाथ की गुफ़ा है जहाँ हज़ारों तीर्थयात्री जाते हैं। श्रीनगर से तीस किलोमीटर दूर मुस्लिम सूफ़ी संत शेख़ नूरुद्दिन वली की दरगाह चरार-ए-शरीफ़ है, जिसे कुछ वर्ष पहले इस्लामी आतंकवादियों ने ही जला दिया था, पर बाद में इसकी वापिस मरम्मत हुई। .
शेख अब्दुल्ला (१९०५-१९८२) जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री दो विभिन्न अवसरों पर रहे। उनके बेटे फारूक और पोते उमर भी मुख्य मन्त्री रहे हैं। .
शोपियां भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। हेफ शीरमाल इलाके चिल्लीपोरा आर्मी कैंप है। .
सांबा जम्मू-कश्मीर राज्य का एक प्रमुख नगर है जो कि भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित है और भारत के लिए अत्यधिक सामरिक महत्व रखता है। .
पाकिस्तान में बहती सिन्घु सिन्धु नदी (Indus River) एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। यह पाकिस्तान, भारत (जम्मू और कश्मीर) और चीन (पश्चिमी तिब्बत) के माध्यम से बहती है। सिन्धु नदी का उद्गम स्थल, तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा माना जाता है। इस नदी की लंबाई प्रायः 2880 किलोमीटर है। यहां से यह नदी तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर अरब सागर में मिलती है। इस नदी का ज्यादातर अंश पाकिस्तान में प्रवाहित होता है। यह पाकिस्तान की सबसे लंबी नदी और राष्ट्रीय नदी है। सिंधु की पांच उपनदियां हैं। इनके नाम हैंः वितस्ता, चन्द्रभागा, ईरावती, विपासा एंव शतद्रु.
सियाचिन हिमनद के लिये देखें सियाचिन हिमनद सियाचिन ग्लेशियर या सियाचिन हिमनद हिमालय पूर्वी कराकोरम रेंज में भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास लगभग देशान्तरः ७७.१० पूर्व, अक्षांशः ३५.४२ उत्तर पर स्थित है। यह काराकोरम के पांच बड़े हिमनदों में सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा हिमनद है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई इसके स्रोत्र इंदिरा कोल पर लगभग 5753 मीटर और अंतिम छोर पर 3620 मीटर है। यह लगभग ७० किमी लम्बा है। निकटवर्ती क्षेत्र बाल्टिस्तान की बोली बाल्टी में "सिया" का अर्थ है एक प्रकार का "जंगली गुलाब" और "चुन" का अर्थ है "बहुतायत", इसी से यह नाम प्रचलित हुआ। सामरिक रूप से यह भारत और पाकिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विश्व का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र है। इस पर सेनाएँ तैनात रखना दोनों ही देशों के लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि सियाचिन में भारत के १० हजार सैनिक तैनात हैं और इनके रखरखाव पर प्रतिदिन ५ करोड़ रुपये का खर्च आता है। सियाचीन समुद्र तल से करीब 5,753 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। कश्मीर क्षेत्र में स्थित इस ग्लेशियर पर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद है। सियाचिन विवाद को लेकर पाकिस्तान, भारत पर आरोप लगाता है कि 1989 में दोनों देशों के बीच यह सहमति हुई थी कि भारत अपनी पुरानी स्थिति पर वापस लौट जाए लेकिन भारत ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। पाकिस्तान का कहना है कि सियाचिन ग्लेशियर में जहां पाकिस्तानी सेना हुआ करती थी वहां भारतीय सेना ने 1984 में कब्जा कर लिया था। उस समय पाकिस्तान में जनरल जियाउल हक का शासन था। पाकिस्तान तभी से कहता रहा है कि भारतीय सेना ने 1972 के शिमला समझौते और उससे पहले 1949 में हुए करांची समझौते का उलंघन किया है। पाकिस्तान की मांग रही है कि भारतीय सेना 1972 की स्थिति पर वापस जाए और वे इलाके खाली करे जिन पर उसने कब्जा कर रखा है। क़रीब 18000 फुट की ऊँचाई पर स्थित दुनिया के सबसे ऊँचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर सैन्य गतिविधियाँ बंद करने के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच क़रीब सात साल बाद एक बार फिर बातचीत हुई है। इस बातचीत में भारतीय रक्षा सचिव अजय विक्रम सिंह भारतीय दल के मुखिया थे जबकि पाकिस्तानी शिष्टमंडल का नेतृत्व वहाँ के रक्षा सचिव सेवानिवृत्त लैफ़्टिनेंट जनरल हामिद नवाज़ ख़ान ने किया। उजाड़, वीरान और बर्फ़ से ढका यह ग्लेशियर यानी हिमनद सामरिक रूप से दोनों ही देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन इस पर सेनाएँ तैनात रखना दोनों ही देशों के लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है। इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच 1989 तक सात दौर की वार्ता हुई थी लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। पिछले सात सालों में सियाचिन पर यह पहली बातचीत है जिसे सकारात्मक कहा जा रहा है। गुरूवार को बातचीत के पहले दौर के बाद पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी से भी मुलाक़ात भी की है। .
स्वर्ग लोक या देवलोक हिन्दू मान्यता के अनुसार ब्रह्माण्ड के उस स्थान को कहते हैं जहाँ हिन्दू देवी-देवताओं का वास है। रघुवंशम् महाकाव्य में महाकवि कालिदास स्मृद्धिशाली राज्य को ही स्वर्ग की उपमा देते हैं। तद्रक्ष कल्याणपरम्पराणां भोक्तारमूर्जस्वलमात्मदेहम्। महीतलस्पर्शनमात्रभिन्नमृद्धं हि राज्यं पदमैन्यमाहुः।। अर्थात् हे राजन्! तुम उत्तरोत्तर सुखों का भोग करने वाले अत्यन्त बल से युक्त अपने शरीर की रक्षा करो, क्योंकि विद्वान् लोग समृद्धिशाली राज्यो को केवल पृथ्वीतल के सम्बन्ध होने से अलग हुआ इन्द्रसम्बन्धी स्थान (स्वर्ग) कहते हैं। हिन्दू धर्म में विष्णु पुराण के अनुसार, कृतक त्रैलोक्य -- भूः, भुवः और स्वः - ये तीनों लोक मिलकर कृतक त्रैलोक्य कहलाते हैं। सूर्य और ध्रुव के बीच जो चौदह लाख योजन का अन्तर है, उसे स्वर्लोक कहते हैं। हिंदु धर्म में, संस्कृत शब्द स्वर्ग को मेरु पर्वत के ऊपर के लोकों हेतु प्रयुक्त होता है। यह वह स्थान है, जहाँ पुण्य करने वाला, अपने पुण्य क्षीण होने तक, अगले जन्म लेने से पहले तक रहता है। यह स्थान उन आत्माओं हेतु नियत है, जिन्होंने पुण्य तो किए हैं, परंतु उन्में अभी मोक्ष या मुक्ति नहीं मिलनी है। यहाँ सब प्रकार के आनंद हैं, एवं पापों से परे रहते हैं। इसकी राजधानी है अमरावती, जिसका द्वारपाल है, इंद्र का वाहन ऐरावत। यहाँ के राजा हैं, इंद्र, देवताओं के प्रधान। श्रेणीःहिन्दू धर्म.
हिमालय पर्वत की अवस्थिति का एक सरलीकृत निरूपण हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत पाँच देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन। अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है। हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज। भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीताः10.25)। .
जम्मू (جموں, पंजाबीः ਜੰਮੂ), भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर में तीन में से एक प्रशासनिक खण्ड है। यह क्षेत्र अपने आप में एक राज्य नहीं वरन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक भाग है। क्षेत्र के प्रमुख जिलों में डोडा, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, रामबन, रियासी, सांबा, किश्तवार एवं पुंछ आते हैं। क्षेत्र की अधिकांश भूमि पहाड़ी या पथरीली है। इसमें ही पीर पंजाल रेंज भी आता है जो कश्मीर घाटी को वृहत हिमालय से पूर्वी जिलों डोडा और किश्तवार में पृथक करता है। यहाम की प्रधान नदी चेनाब (चंद्रभागा) है। जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मू-तवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को "मन्दिरों का शहर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी हैं, जैसे वैष्णो देवी, आदि जिनके कारण जम्मू हिन्दू तीर्थ नगरों में गिना जाता है। यहाम की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू ही है। हालांकि दूसरे स्थान पर यहां सिख धर्म ही आता है। वृहत अवसंरचना के कारण जम्मू इस राज्य का प्रमुख आर्थिक केन्द्र बनकर उभरा है। .
जम्मू भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय जम्मू है। क्षेत्रफल - 3,097 वर्ग कि.मी.
कश्मीर में उग्रवाद (इनसर्जन्सी) विभिन्न रूपों में मौजूद है। वर्ष 1989 के बाद से उग्रवाद और उसके दमन की प्रक्रिया, दोनों की वजह से हजारों लोग मारे गए। 1987 के एक विवादित चुनाव के साथ कश्मीर में बड़े पैमाने पर सशस्त्र उग्रवाद की शुरूआत हुई, जिसमें राज्य विधानसभा के कुछ तत्वों ने एक आतंकवादी खेमे का गठन किया, जिसने इस क्षेत्र में सशस्त्र विद्रोह में एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाई.
यह सूची जम्मू एवं कश्मीर राज्य के जिलों की हैः-.
जवाहरलाल नेहरू (नवंबर १४, १८८९ - मई २७, १९६४) भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पूर्व और पश्चात् की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व थे। महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने १९४७ में भारत के एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर १९६४ तक अपने निधन तक, भारत का शासन किया। वे आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य - एक सम्प्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतान्त्रिक गणतन्त्र - के वास्तुकार मानें जाते हैं। कश्मीरी पण्डित समुदाय के साथ उनके मूल की वजह से वे पण्डित नेहरू भी बुलाएँ जाते थे, जबकि भारतीय बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में जानते हैं। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री का पद सँभालने के लिए कांग्रेस द्वारा नेहरू निर्वाचित हुएँ, यद्यपि नेतृत्व का प्रश्न बहुत पहले 1941 में ही सुलझ चुका था, जब गांधीजी ने नेहरू को उनके राजनीतिक वारिस और उत्तराधिकारी के रूप में अभिस्वीकार किया। प्रधानमन्त्री के रूप में, वे भारत के सपने को साकार करने के लिए चल पड़े। भारत का संविधान 1950 में अधिनियमित हुआ, जिसके बाद उन्होंने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के एक महत्त्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की। मुख्यतः, एक बहुवचनी, बहु-दलीय लोकतन्त्र को पोषित करते हुएँ, उन्होंने भारत के एक उपनिवेश से गणराज्य में परिवर्तन होने का पर्यवेक्षण किया। विदेश नीति में, भारत को दक्षिण एशिया में एक क्षेत्रीय नायक के रूप में प्रदर्शित करते हुएँ, उन्होंने गैर-निरपेक्ष आन्दोलन में एक अग्रणी भूमिका निभाई। नेहरू के नेतृत्व में, कांग्रेस राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय चुनावों में प्रभुत्व दिखाते हुएँ और 1951, 1957, और 1962 के लगातार चुनाव जीतते हुएँ, एक सर्व-ग्रहण पार्टी के रूप में उभरी। उनके अन्तिम वर्षों में राजनीतिक मुसीबतों और 1962 के चीनी-भारत युद्ध में उनके नेतृत्व की असफलता के बावजूद, वे भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहें। भारत में, उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। .
वुलर झील जम्मू व कश्मीर राज्य के बांडीपोरा ज़िले में स्थित एक झील है। यह भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है। यह झेलम नदी के मार्ग में आती है और झेलम इसमें पानी डालती भी है और फिर आगे निकाल भी लेती है। मौसम के अनुसार इस झील के आकार में बहुत विस्तार-सिकोड़ होता रहता है - इसका अकार ३० वर्ग किमी से २६० वर्ग किमी के बीच बदलता है। अपने बड़े अकार के कारण इस झील में बड़ी लहरें आती हैं। .
प्राचीन भारत वैदिक सभ्यता प्राचीन भारत की सभ्यता है जिसमें वेदों की रचना हुई। भारतीय विद्वान् तो इस सभ्यता को अनादि परम्परा आया हुआ मानते हैं । पश्चिमी विद्वानो के अनुसार आर्यों का एक समुदाय भारत मे लगभग 1500 इस्वी ईसा पूर्व आया और उनके आगमन के साथ ही यह सभ्यता आरंभ हुई थी। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल 1500 इस्वी ईसा पूर्व से 500 इस्वी ईसा पूर्व के बीच मे मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननो से मिले अवशेषों मे वैदिक सभ्यता के कई अवशेष मिले हैं जिससे आधुनिक विद्वान जैसे डेविड फ्राले, तेलगिरी, बी बी लाल, एस र राव, सुभाष काक, अरविन्दो यह मानने लगे है कि वैदिक सभ्यता भारत मे ही शुरु हुई थी और ऋग्वेद का रचना शुंग काल में हुयी, क्योंकि आर्यो के भारत मे आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननो से प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानो से कोई प्रमाण मिला है इस काल में वर्तमान हिंदू धर्म के स्वरूप की नींव पड़ी थी जो आज भी अस्तित्व में है। वेदों के अतिरिक्त संस्कृत के अन्य कई ग्रंथो की रचना भी इसी काल में हुई थी। वेदांगसूत्रौं की रचना मन्त्र ब्राह्मणग्रंथ और उपनिषद इन वैदिकग्रन्थौं को व्यवस्थित करने मे हुआ है । अनन्तर रामायण, महाभारत,और पुराणौंकी रचना हुआ जो इस काल के ज्ञानप्रदायी स्रोत मानागया हैं। अनन्तर चार्वाक, तान्त्रिकौं,बौद्ध और जैन धर्म का उदय भी हुआ । इतिहासकारों का मानना है कि आर्य मुख्यतः उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में रहते थे इस कारण आर्य सभ्यता का केन्द्र मुख्यतः उत्तरी भारत था। इस काल में उत्तरी भारत (आधुनिक पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा नेपाल समेत) कई महाजनपदों में बंटा था। .
गान्दरबल ज़िला भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य का एक ज़िला है। यह पहले श्रीनगर ज़िले का हिस्सा हुआ करता था जिसकी दो तहसीलों (गान्दरबल और कंगन) को लेकर ६ जुलाई २००६ को इस ज़िले का गठन किया गया।, Mohan C. Bhandari, pp.
कारगाह में बुद्ध की तस्वीर गिलगित (अंग्रेजीः Gilgit, उर्दू) पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बलतिस्तान क्षेत्र की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। गिलगित शहर, गिलगित जिले के अंतर्गत गिलगित की एक तहसील है। इसका प्राचीन नाम सर्गिन था जो बाद में गिलित हो गया। स्थानीय लोगों आज भी इसे गिलित या सर्गिन-गिलित पुकारते हैं। बुरुशस्की भाषा में, इसे गील्त और वाख़ी और खोवार में इसे गिल्त कहा जाता है। प्राचीन संस्कृत साहित्य में इसे घल्लाता नाम से जाना जाता है। स्कर्दू के साथ साथ गिलगित शहर काराकोरम और हिमालय की अन्य पर्वतमालाओं के पर्वतारोही अभियानों के लिए उत्तरी क्षेत्रों के दो प्रमुख केन्द्रों में से एक है। .
आज़ाद जम्मू व कश्मीर का नक़्शा आज़ाद कश्मीर का झण्डा आज़ाद कश्मीर (उर्दू), आधिकारिक रूप से आज़ाद जम्मू और कश्मीर पाकिस्तान के प्रशासनिक प्रभागों में से एक है। यह पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर का एक हिस्सा है और पाक-प्रशासित कश्मीर को दो हिस्सों में बांटा गया है, पहला हिस्सा यह आज़ाद जम्मू-ओ-कश्मीर हैऔर दूसरा हिस्सा गिलगित-बल्तिस्तान है। गिलगित-बल्तिस्तान रहित आज़ाद कश्मीर का इलाक़ा 13,300 वर्ग किलोमीटर (5,135 वर्ग मील) पर फैला है और इसकी आबादी अंदाज़न 40 लाख है। आज़ाद कश्मीर की राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद है और इसमें 8 ज़िले, 19 तहसीलें और 182 संघीय काउन्सिलें हैं। आज़ाद कश्मीर के मीरपुर डवीज़न में भिम्बेर ज़िला, कोटली ज़िला और मीरपुर ज़िला, मुज़फ़्फ़राबाद डवीज़न में बाग़ ज़िला, मुज़फ़्फ़राबाद ज़िला और नीलम ज़िला जबकि पुंछ रावलाकोट डवीज़न में पूंछ ज़िला, रावला कोट और सुधनोती ज़िला शामिल हैं। .
युवा इन्दिरा नेहरू औरमहात्मा गांधी एक अनशन के दौरान इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनामः नेहरू) (19 नवंबर 1917-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। .
कठुआ जम्मू व कश्मीर का एक नगर है। कठुआ' शब्द डोगरी भाषा के ठुआं' से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ 'बिच्छू' है। कुछ लोगों का मत है कि कठुआ शब्द 'कश्यप' ऋषि के नाम से उत्पन्न हुआ है। यह नगर जम्मू काश्मीर का 'प्रवेश द्वार' तथा औद्योगिक नगर भी है। कठुआ, जम्मू से 87 किलोमीटर और पठानकोट से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहले इसे 'कठुई' के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर कठुआ रख दिया गया। ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाने वाला यह जिला लगभग 2000 वर्ष पुराना माना जाता है। यह स्थान जहां एक ओर मंदिरों, जैसे धौला वाली माता, जोदि-दी-माता, आशापूर्णी मंदिर आदि के लिए जाना जाता है वहीं दूसरी ओर यह बर्फ से ढ़के पर्वतों, प्राकृतिक सुंदरता और घाटियों के लिए भी प्रसिद्ध है। .
कठुआ भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय कठुआ है। क्षेत्रफल - 2,651 वर्ग कि.मी.
ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायेंः जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरीः (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .
आंध्र प्रदेश में कश्यप प्रतिमा वामन अवतार, ऋषि कश्यप एवं अदिति के पुत्र, महाराज बलि के दरबार में। कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिन्दू मान्यता अनुसार इनके वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। .
काराकोरम एक विशाल पर्वत श्रृंखला है जिसका विस्तार पाकिस्तान, भारत और चीन के क्रमशः गिलगित-बल्तिस्तान, लद्दाख़ और शिन्जियांग क्षेत्रों तक है। यह एशिया की विशाल पर्वतमालाओं में से एक है और हिमालय पर्वतमाला का एक हिस्सा है। काराकोरम किर्गिज़ भाषा का शब्द है जिस का मतलब है 'काली भुरभुरी मिट्टी'। विश्व के किसी भी स्थान की अपेक्षा, काराकोरम पर्वतमाला में पाँच मील से भी ऊँची सबसे अधिक चोटियों स्थित हैं (60 से ज़्यादा), जिनमें दुनिया की दूसरी सबसे ऊँची चोटी के2, (8611 मी / 28251 फुट) भी शामिल है। के2 की ऊँचाई विश्व के सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट पर्वत (8848 मी / 29029 फुट) से सिर्फ 237 मीटर (778 फीट) कम है। काराकोरम श्रृंखला का विस्तार 500 किमी (311 मील) तक है और ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर दुनिया के सबसे अधिक हिमनद इसी इलाके में हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों से बाहर सियाचिन ग्लेशियर 70 किमी और बिआफो ग्लेशियर 63 किमी की लंबाई के साथ दुनिया के दूसरे और तीसरे सबसे लंबे हिमनद हैं। काराकोरम, पूर्वोत्तर में तिब्बती पठार के किनारे और उत्तर में पामीर पर्वतों से घिरा है। काराकोरम की दक्षिणी सीमा, पश्चिम से पूर्व, गिलगित, सिंधु और श्योक नदियों से बनती है, जो इसे पश्चिमोत्तर हिमालय श्रृंखला के अंतिम किनारे से अलग कर दक्षिणपश्चिम दिशा में पाकिस्तान के मैदानी इलाकों की ओर बहती हैं। काराकोरम श्रृंखला का सब से ऊंचा पहाड़ के टू .
कारगिल भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय कारगिल है। यह द्रास से 58 किमी, श्रीनगर से 220 किमी, लेह से 234 किमी, पादुम से 240 किमी तथा दिल्ली से 1067 किमी की दूरी पर स्थित है। क्षेत्रफल - 14,036 वर्ग कि॰मी॰ जनसंख्या - (2001 जनगणना) साक्षरता - एस॰टी॰डी॰ कोड - 01985 जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में) समुद्र तल से उचाई - अक्षांश - उत्तर देशांतर - पूर्व औसत वर्षा - मि.मि.
कुपवाड़ा जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक नगर है। यह कुपवाड़ा जिला का केन्द्र भी है। बर्फ की सफेद चादर ओढे कुपवाड़ा जिला पीरपंचाल और शम्सबरी पर्वत के मध्य स्थित है। समुद्र तल से 5,300 मीटर ऊंचाई पर स्थित कुपवाड़ा जम्मू व कश्मीर राज्य का एक जिला है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी स्थान काफी प्रसिद्ध है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता अधिक संख्या में पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। कुपवाड़ा जिले में कई पर्यटन स्थल जैसे मां काली भद्रकाली मंदिर, शारदा मंदिर, जेत्ती नाग शाह आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध है। .
जम्मू एवं कश्मीर राज्य में कुपवाड़ा जिले की स्थिति। कुपवाड़ा भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय कुपवाड़ा है। बर्फ की सफेद चादर ओढे कुपवाड़ा जिला पीरपंचाल और शम्सबरी पर्वत के मध्य स्थित है। समुद्र तल से 5,300 मीटर ऊंचाई पर स्थित कुपवाड़ा जम्मू व कश्मीर राज्य का एक जिला है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी स्थान काफी प्रसिद्ध है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता अधिक संख्या में पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। कुपवाड़ा जिले में कई पर्यटन स्थल जैसे मां काली भद्रकाली मंदिर, शारदा मंदिर, जेत्ती नाग शाह आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध है। क्षेत्रफल - 2,379 वर्ग कि.मी.
अनन्तनाग जम्मू कश्मीर प्रान्त का एक शहर है। यह कश्मीर घाटी का एक बड़ा व्यापारीक केंद्र है। श्रेणीःजम्मू कश्मीर के शहर श्रेणीःचित्र जोड़ें.
अनन्तनाग भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय अनन्तनाग है। क्षेत्रफल - 3984 वर्ग कि॰मी॰ जनसंख्या - 11,70,000 (2001 जनगणना) साक्षरता - 44.10% एस॰टी॰डी॰ कोड - जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में) समुद्र तल से उचाई -1700 m अक्षांश - 33-20' - 34-15' N देशांतर - 74-30' - 75-35' E औसत वर्षा - .
भारतीय संविधान का राष्ट्रचिन्ह धारा ३७० भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद (धारा) है जिसके द्वारा जम्मू एवं कश्मीर राज्य को सम्पूर्ण भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार अथवा (विशेष दर्ज़ा) प्राप्त है। देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक यह धारा भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रही है। भारतीय जनता पार्टी एवं कई राष्ट्रवादी दल इसे जम्मू एवं कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के लिये जिम्मेदार मानते हैं तथा इसे समाप्त करने की माँग करते रहे हैं। भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग २१ का अनुच्छेद ३७० जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था। स्वतन्त्र भारत के लिये कश्मीर का मुद्दा आज तक समस्या बना हुआ है। .
अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी गणराज्य दक्षिणी मध्य एशिया में अवस्थित देश है, जो चारो ओर से जमीन से घिरा हुआ है। प्रायः इसकी गिनती मध्य एशिया के देशों में होती है पर देश में लगातार चल रहे संघर्षों ने इसे कभी मध्य पूर्व तो कभी दक्षिण एशिया से जोड़ दिया है। इसके पूर्व में पाकिस्तान, उत्तर पूर्व में भारत तथा चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान, कज़ाकस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान तथा पश्चिम में ईरान है। अफ़ग़ानिस्तान रेशम मार्ग और मानव प्रवास का8 एक प्राचीन केन्द्र बिन्दु रहा है। पुरातत्वविदों को मध्य पाषाण काल के मानव बस्ती के साक्ष्य मिले हैं। इस क्षेत्र में नगरीय सभ्यता की शुरुआत 3000 से 2,000 ई.पू.
चक्रवर्ती सम्राट अशोक (ईसा पूर्व ३०४ से ईसा पूर्व २३२) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था। उनका राजकाल ईसा पूर्व २६९ से २३२ प्राचीन भारत में था। मौर्य राजवंश के चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अखंड भारत पर राज्य किया है तथा उनका मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान, ईरान तक पहुँच गया था। सम्राट अशोक का साम्राज्य आज का संपूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यान्मार के अधिकांश भूभाग पर था, यह विशाल साम्राज्य उस समय तक से आज तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य रहा है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शिर्ष स्थान पर ही रहे हैं। सम्राट अशोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट है। सम्राट अशोक को 'चक्रवर्ती सम्राट अशोक' कहाँ जाता है, जिसका अर्थ है - 'सम्राटों का सम्राट', और यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को मिला है। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है। सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया में तथा अन्य आज के सभी महाद्विपों में भी बौद्ध धर्म धर्म का प्रचार किया। सम्राट अशोक के संदर्भ के स्तंभ एवं शिलालेख आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते है। इसलिए सम्राट अशोक की ऐतिहासिक जानकारी एन्य किसी भी सम्राट या राजा से बहूत व्यापक रूप में मिल जाती है। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णूता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे, इसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में ही दर्ज हो चुका है। जीवन के उत्तरार्ध में सम्राट अशोक भगवान बुद्ध की मानवतावादी शिक्षाओं से प्रभावित होकर बौद्ध हो गये और उन्ही की स्मृति में उन्होने कई स्तम्भ खड़े कर दिये जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी - में मायादेवी मन्दिर के पास, सारनाथ, बोधगया, कुशीनगर एवं आदी श्रीलंका, थाईलैंड, चीन इन देशों में आज भी अशोक स्तम्भ के रूप में देखे जा सकते है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। सम्राट अशोक अपने पूरे जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारे। सम्राट अशोक के ही समय में २३ विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिसमें तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, कंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे। ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृट विश्वविद्यालय थे। शिलालेख सुरु करने वाला पहला शासक अशोक ही था, .
अक्साई चिन या अक्सेचिन (उईग़ुरः, सरलीकृत चीनीः 阿克赛钦, आकेसैचिन) चीन, पाकिस्तान और भारत के संयोजन में तिब्बती पठार के उत्तरपश्चिम में स्थित एक विवादित क्षेत्र है। यह कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे स्थित है। ऐतिहासिक रूप से अक्साई चिन भारत को रेशम मार्ग से जोड़ने का ज़रिया था और भारत और हज़ारों साल से मध्य एशिया के पूर्वी इलाकों (जिन्हें तुर्किस्तान भी कहा जाता है) और भारत के बीच संस्कृति, भाषा और व्यापार का रास्ता रहा है। भारत से तुर्किस्तान का व्यापार मार्ग लद्दाख़ और अक्साई चिन के रास्ते से होते हुए काश्गर शहर जाया करता था।, Prakash Charan Prasad, Abhinav Publications, 1977, ISBN 978-81-7017-053-2 १९५० के दशक से यह क्षेत्र चीन क़ब्ज़े में है पर भारत इस पर अपना दावा जताता है और इसे जम्मू और कश्मीर राज्य का उत्तर पूर्वी हिस्सा मानता है। अक्साई चिन जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है। चीन ने इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक ज़िले का हिस्सा बनाया है। .
उधमपुर भारत के जम्मू और कश्मीर प्रदेश का एक नगर है। यह उधमपुर जिले का मुख्यालय भी है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 1ए पर जम्मू और श्रीनगर के बीच स्थित है। हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल वैष्णो देवी उधमपुर के निकट है। .
उधमपुर भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय उधमपुर है। क्षेत्रफल - 4,550 वर्ग कि.मी.
उर्दू भाषा हिन्द आर्य भाषा है। उर्दू भाषा हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप मानी जाती है। उर्दू में संस्कृत के तत्सम शब्द न्यून हैं और अरबी-फ़ारसी और संस्कृत से तद्भव शब्द अधिक हैं। ये मुख्यतः दक्षिण एशिया में बोली जाती है। यह भारत की शासकीय भाषाओं में से एक है, तथा पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है। इस के अतिरिक्त भारत के राज्य तेलंगाना, दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त शासकीय भाषा है। .
यहां पुनर्निर्देश करता हैः
जम्मू एवं कश्मीर, जम्मू एवं काश्मीर, जम्मू तथा कश्मीर, जम्मू व कश्मीर, जम्मू व कश्मीर राज्य, जम्मू और कश्मीर राज्य, जम्मू कश्मीर, जम्मू-कश्मीर, जम्मू और कश्मीर, जम्मू कश्मीर।
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f28f28f6646896c4e4559f173163ddac77c4b177a884b53cbe07b02494cff12d | pdf | था । किन्तु प्रियमिन्न का उन दोनों पर प्रेम न था । उसका प्रियसुन्दरी पर ही पूर्ण प्रेम था । बस इसी कारण प्रियमित्र, प्रियसुन्दरी के साथ रुद्रा एवं भद्रा का क्लेश रहता था। यह क्लेश उसके घर मे निरन्तर होता था । प्रियमित्र का एक मदनप्रिय नामक मित्र था वह प्रियसुन्दरी को प्रेम की नजर से देखता था । सदैव आने-जाने के विशेष परिचय से वह प्रियसुन्दरी पर आसक्त होगया । हमेशा वह प्रियसुन्दरी के साथ बड़े प्रेम से वार्तालाप करता। एक दिन एकान्त में रही हुई प्रियसुन्दरी के रूप में मुग्ध होकर मदनप्रिय ने उसे अपनी विषय-वासना पूरी करने का अभिप्राय बताया । प्रियसुन्दरी का हृदय सरल और पवित्र था । वह पति पर पूर्ण प्रेम और भक्ति रखती थी, उसके पति का भी उसका अनन्य प्रेम था। प्रियसुन्दरी ने मदनप्रिय के अभिप्राय को तिरस्कार के साथ ठुकरा दिया और कहा, फिर से मेरे समक्ष न आवे और आप ऐसा अभिप्राय प्रकट न करे, यह भी उसे साम्यभाव से समझा दिया परन्तु मदनप्रिय मदन के आधीन होने से
अपने दुराग्रह से पीछे न हटा । वह जब कभी समय पाता तब प्रियसुन्दरी से वही बात छेड़ता प्रियसुन्दरी उसे समझाने का प्रयत्न करती, परंतु मदन की ऋतुरता में और भी वृद्धि होती रही ।
एक दिन प्रियसुन्दरी के अलावा घर में अन्य कोई न था । मदन ने आकर प्रियसुन्दरी से फ़िर वही प्रार्थना की तब वह उसे साम दामादि नोति के वचनों से समझा रही थी, कि दैववशात् उसी समय बाहर से वहां पर प्रियमित्र श्रा पहुँचा । उसने दोनोंका वार्तालाप सुनकर एकान्त में छिपकर उनकी बातें सुनली । क्रोधातुर होकर प्रियमित्र ने यह सारा वृत्तान्त मदनप्रिय के कुटुम्बियों से कहा । कुलीन होने के कारण उन लोगो को बड़ा शर्मिन्दा होना पड़ा । उन्होंने मदन को बुला कर उसका बड़ा तिरस्कार किया, और कह दिया, कि यदि तू कुलीन है, और कुछ शरम रखता है, तो हमें मुंह न दिखाना । यह सुनकर वह नगर छोड़ कर चला गया ।
इस बात से प्रभु श्री चंद्रयशा केवली महाराज के
मुखारविंद से पूर्वोक्त बाते सुनकर सभा में बैठे कईएक वृद्ध मनुष्य बोल उठे - गुरुदेव ! आप बिल्कुल सत्य फरमाते है । हम स्वयं पृथ्वीस्थानपुर के ही रहने वाले है । हम खुद इस बात को जानते है । यह घटना हमारे स्मरण में है । मदनप्रिय आज तक अपने घर नहीं आया और प्रियमित्र का घर अभी तक उसके नाम से पहचाना जाता है । उस घर में आज भी उसके निकट सम्बन्धी रहते है । अहो ! ज्ञान की कैसी महिमा है ! ज्ञानी पुरुष ज्ञानबल से ही पूर्व में बीती हुई सर्व घटनाओं को जानते है ।
राजा सूरपाल - शहर छोड़ने बाद मदनप्रिय की क्या दशा हुई ? भगवन् !
श्री चन्द्रयशा केवली - मदनप्रिय घर से निकल कर अपने कृत्य के लिए पश्चात्ताप करता हुआ देशान्तर को चल दिया । चलते-चलते उसको दो दिन तक निराहार रहना पड़ा; तीसरे दिन जब वह एक टी में जा रहा था तब वहां पर उसे बहुत-सी गोएँ घास चरती दिखाई दी । क्षुधातुर मदन ने चरवाहे से दूध
की प्रार्थना की । तीन दिन से भूखे मदन को देख कर चरवाहे को दया आगई । उसके गोकुल में उस समय एक बिनादूही भैसथी, उसने उस भैसको दूह कर मदन को बहुत सा दूध दे दिया । मदन बोला - यह नजदीक में जो तालाब दीख पड़ता है वहां जाकर मुँह हाथ धोकर वहाँ ही मैं दूध पोऊँगा । चरवाहे ने खुशी से वहाँ पर दूध का घड़ा लेजाने की सम्मति देदी । मदन दूध के घड़े को लेकर तालाब के किनारे आया । शुभ भावना से वह सोचने लगा मुझे आज अन्न-जल ग्रहरण किये दो दिन हो गये, यदि इस समय कोई अतिथि म हात्मा तपस्वी आदि उत्तम पात्र मिल जाय तो उसे बहरा कर ( देकर ) फिर पारणा करू तो जन्म सफ़ल हो जाय । मैंने अपने जीवन में कुछ भी सुकृत नहीं किया । इसी से मेरी यह दुर्दशा हुई है इस समय मेरे खाने पीने तक के लिए भी कुछ साधन नही रहा । ऐसी बिषम स्थिति में भी अगर कोई महात्मा दर्शन दे तो मैं उन्हें इस दूध को देकर कुछ सुकृत उपार्जन करूं ।
जिस समय मदन इस प्रकार विचार कर रहा था ठीक उसी समय सद्भाग्य से वहां पर एक मासोपवासी महात्मा पधारे। वह तपस्वी मासोपवास के पारणे के लिये नजदीक गाव की तरफ जा रहे थे । तपस्वी साधु को देख कर मदन के विशुद्ध परिणामों में और भी वृद्धि हुई । वह हर्षित होकर विचारने लगा- अहो ! मेरा सद्भाग्योदय है जिससे मनोरथ करते ही इन महापुरुष के दर्शन होगये । मैं इन्हें दूध बहरा दूँ, यह निश्चय कर उसने मुनि के रास्ते की तरफ जाकर भक्तिपूर्वक हाथ जोड़ कर कहा - हे महात्मन् ! कृपालू मुनिराज ! यह निर्दोष दूध ग्रहरण करके मेरा कल्याण करो । मदन के शुभ परिणामो को देख कर द्रव्य, क्षेत्र, कालभाव - से उस द्रव्य को विशुद्ध समझ कर तपस्वी ने इच्छानुसार उसमे से कुछ दूध ग्रहण किया। मदन ने भी शुभ परिणाम से उस महातपस्वी को दूध का दान देकर विशेष पुण्य उपार्जन किया ।
सचमुच ही ऐसी गरीब स्थिति में और दो दिन की सहन की हुई भूख प्यास में भी खाद्य या पेय पदार्थ
प्राप्त करके प्रतिथिमहात्मा को दान देने की जो भावना पैदा होती है यही भावी शुभ दिनों को सूचना के लक्षण हैं । ऐसी परिस्थिति में योग्य पात्र को दिया हुआ थोड़ा सा भी दान महान फलदायक होता है । भरे को कौन नही भरता ? सुखी और धनाढ्यों का
कौन सत्कार नहीं करता ? परन्तु जो त्यागी संयमी
साधु -पुरुष हैं उन्हें दान देने में कितना महान् लाभ
होता है इस बात को समझने वाले बहुत कम व्यक्ति होते है ।
मुनिराज अन्यत्र विहार कर गये । मदन भी उन तपस्वी - मुनिराज को नमस्कार कर वापस उस तालाब को पाल पर आगया, और मुनिदान से अपने आपको कृतार्थ मानते हुए उसने शेष बचा हुआ दूध पी लिया।
जंगल में मनुष्यों के विशेष उपयोग में न आने के कारण इस जंगलो तालाब के किनारे ईंटोसे या पत्थर से बँधे हुए नही थे । एवं मदन भी अनजान होने से उस तालाब की गहराई या उसके अन्दर उतरने का सरल मार्ग न जानता था । वह उसके किनारे पर बैठ
कर नोचे झुक कर तालाब से पानी पीने लगा । इतने में ही उसका पाँव फिसल जाने से वह तुरन्त ही तालाब में जा गिरा, तालाब के किनारों पर ही अगांध जल था । मदन तैरना नही जानता था । अतः वह तालाब से बाहर न निकल सका । उसे निकालने वाला भी उस जंगल में नजदीक कोई नही धा इसलिये उस बिचारे मदन को तालाब में ही अपने प्राण त्यागने पडे ।
शुभ-भावना पूर्वक मुनिदान के प्रभाव से मदन मृत्यु पाकर इसी सागर-तिलक शहर के राजा विजय के घर पुत्र रूप में पैदा हुआ । उसका नाम कंदर्प रखा गया । विजयराजा की मृत्यु के बाद कदर्प ही इस शहर
का राजा बना ।
इधर प्रियमित्र भी सुन्दरी के साथ विलास करता हुआ आनन्द में अपने दिन बिता रहा था। परन्तु इस विषयानन्द में उसने अपनी दूसरी रुद्रा और भद्रा दोनों पत्नियो के साथ अनेक प्रकार की दुश्मनी पैदा करली । एक दिन प्रियमित्र सुन्दरी को साथ लेकर धनञ्जय यक्ष
के दर्शन करने जारहा था। रास्ते में चलते हुए वे एक बड़े वृक्ष के विस्तार से अलंकृत प्रदेश के पास आये, वहीं पर उन दोनों ने अपने सन्मुख आते हुए मुनि को देखा । मुनि के दर्शन से प्रियसुन्दरी के मन में अपशकुन को भावना पैदा हुई । वह सोचने लगी कि यात्रा के लिए जाते हुए हमें सबसे पहले यह मोड़ा नङ्ग सिर वाला मिला है, इस अपशकुन से हमारी यात्रा सफल न होगी, बल्कि और भी कुछ उपद्रव होगा । इत्यादि बोलती हुई सुन्दरी ने अपनी गाड़ी व परिवार को आगे न बढ़ने देकर वहीं पर ठहरा लिया ।
संसार को विचित्रता का पार नहीं है । जो महापुरुष विषय कषायादि महान् अपमङ्गलो से दूर है, जिनके हृदय मे से सांसारिक मलीन वासनाएँ निकल गई हैं, जो सदैव ज्ञान-ध्यान और आत्मिक विचारों में ही लीन रहते है, जो संसार के विषय लंपट मनुष्यों को हितोपदेश देकर दुष्कर्मजन्य पापों से रक्षरण करते हैं, जो हमेशा दूसरों का कल्यारण करने की चिन्ता किया
करते हैं। जिनके दर्शन मात्र से मनुष्यो के सकट दूर हो जाते हैं - ऐसे मगलमय महात्मा महापुरुषों को देख कर अपशकुन या संकट आने का विचार करना यह कितनी भयंकर अज्ञानता है ? शुभकार्य के लिये घर से निकले मनुष्यों को यदि सद्भाग्य से सन्मुख किसी महात्मा पुरुष का दर्शन हो जाय तो इससे बढ़ कर और क्या शुभ शकुन हो सकता है ? यह बात याद रखनी चाहिये कि शकुन को देख कर जैसी मनुष्य की भावना होती है वैसा ही उसे फल मिलता है ।
पशु की बुद्धि से मार्ग चलते बन्द हो जाना ही सुन्दरी के लिए अच्छा न हुआ । वह अनेक प्रकार से उस महात्मा को उपसर्ग करने लगी। क्योंकि क्रोधाधीन स्त्री के लिए ससार में कोई भी कार्य अक र्त्तव्य नही होता ।
मुनी ने अपने ऊपर कष्ट को देखकर विचार किया कि मेरी परीक्षा का समय आया है। जिस प्रकार ताप ताड़न द्वारा सच्चे स्वर्ण की परीक्षा होती है वैसे ही संकटो द्वारा उत्तम पुरुषो की कसौटी होती
है । इन नियों के किये हुए उपद्रव से अज्ञानता में पड़कर सुके अपने स्वभाव या स्वरूप से विचलित न होना चाहिये । ऐसे ही समय अज्ञानी और ज्ञानवानों का भेद मालूम होता है । यदि संकट के समय ज्ञानवान मनुष्य भी अज्ञानी प्राणियों के समान अपने रूप को भूलें तो फिर उन दोनों में कुछ भी भेद नही रहता । उपद्रव के समय समभाव रखने से प्राचीन कर्मों को भोग लेने के उपरति नवीन कर्मबन्धन भी नहीं होता। इसलिए मुझे अब अपने स्वभाव में रहना चाहिये । यह विचार कर मानसिक वृत्ति को निर्मल रख कर आत्मोपयोग में दत्तचित्त हो वह मुनिराज ध्यानस्थ ( कायोत्सर्ग) में खड़े रहे । मुनि को सामने खड़ा देख सुन्दरी का क्रोध और अधिक भड़क उठा। वह उन्हें श्रहंकारी, पाखण्डी कहकर निष्ठुरता से उन मुनिराज की कदर्थना करने लगी । वह अपने सुन्दर नामक नौकर से बोली- सुन्दर ! यह जो पास में ईंटों का आवा पक रहा है, जा और वहां से आग लें आ मैं इस पाखण्डी वेशंघारी को दांग दूंगी, जिससे
इसके द्वारा उत्पन्न अपशकुन का दोष दूर हो जायगा और इसका अहंकार भी मिट जायगा ।
सुन्दर बोला - स्वामिनी ! मेरे पैरो में जूते नही है वहा जाने में रास्ते में कांटे बहुत हैं, व्यर्थ ही काटो में कौन जाय ? और साधु को दागने से अपने को क्या फायदा होगा ? इन निकम्मे विचारों को छोड़ो और गाड़ी हाकने दो अभी हमें बहुत दूर जाना है ।
स्त्री के हुक्म का अनादर होता हुआ देख पत्नी के प्रदेश में चलने वाला प्रियमित्र दूसरे नौकर की तरफ देख कर क्रोधावेश मे बोला - अरे ! इस सुन्दर के दोनों पैर इस वटवृक्ष की शाखा से बांध दो, जिससे इसके पैर में जमीन पर पड़े हुए काटे न लगने पावे । अपने विचारों में पति की सहानुभूति मिलजाने पर प्रियसुन्दरी को और जोश आ गया । वह गाड़ी से नीचे उतर कर बोलने लगी- अरे पाखण्डी ! तेरे मुण्डित रूप के दर्शन से हमारी पति-पत्नी रूप इस जोड़ी में कदापि वियोग न हो । तेरा प्रपशकुन तुझे ही हानिकारक हो । तेरे बन्धुवर्ग से तेरा सदैव वियोग
हो । तू सचमुच राक्षस जैसा है, इसी कारण तुझे देख कर हमें डर लगता है । इस प्रकार अनेक विध कटु वचनों से मुनि का तिरस्कार करती हुई निष्ठुर हृदया सुन्दरी ने मानों अपने ही सुख पर प्रहार करती हो इस तरह मुनि पर तीन बार पत्थर से प्रहार किया । इतना करने पर भी उसे सन्तोष न हुआ । उसने मुनि के पास आ कर उनके हाथ में से रजोहरण ( जैनमुनियों का चिन्ह ) छीन लिया और उसे अपनी गाड़ी में रख दिया। ऐसा करने पर उसने कुछ सन्तोष माना, बाद में वह नौकरों से बोली- चलो, अब हमारा अपशकुन दूर हो गया । अब हमें कोई भी अनिष्ट नही होगा । चलो अब निर्भय होकर आगे चलो ! धनंजय यक्ष की पूजा करेगे सुन्दरी की आज्ञा पा कर सब चल और रास्ता पार कर धनंजय यक्ष के मन्दिर के समीप पहुँचे ।
यक्ष की पूजा कर यात्रा सफ़ल हुई मान कर परि वार सहित प्रियमित्र और प्रियसुन्दरी एक स्वच्छ
स्थान में भोजन करने के लिए बैठे । इस समय प्रिय(४८१)
सुन्दरी को प्रसन्न देख जैन धर्म में विशेष प्रेम रखने वाली एक दासी ने अपने मालिक और मालकिन से नम्रता से कहा- आप लोगों ने उस क्षमाशील महाव्रत धारक और त्याग की मूर्ति महामुनि को कष्ट देकर, तिरस्कार और कदर्थना करके महान पाप उपार्जन किया है। संसार से विरक्त हुए महात्माओं की हँसी और मजाक करने वाला इस जन्म मे और अगले जन्म मे अनेक दुःखो का अनुभव करता है। जिसमें आप लोगो ने तो उनका बहुतसा तिरस्कार कर, उन्हें पत्थरो से मार कर, अनेक तरह क्रोध पूर्ण वचनों से कदर्थना कर उनका रजोहरण भी छीन लिया है । इससे आप लोगों ने बड़ा भयंकर दुःख भोगने का कर्म उपार्जन कर लिया है। आपको शान्त - चित्त से इस पर स्वयं विचार करना चाहिये । ऐसे महात्मा अनेक प्राणियों का उद्धार करने वाले होने के कारण संसार में जीवो के श्राधारभूत होते है । संसार विषयो में तपे हुए मनुष्य समाज के लिए ऐसे महापुरुषों का समागम मेघ के समान शान्ति देने वाला होता है। ऐसे
ज्ञानी साधु रात दिन अपने और पराये जीवों के हितचिन्तन में ही लीन रहते हैं, इसलिये वैराग्य और मंगलमूर्ति महात्माओं को दुःख देना अपने सुख को नाश करने के समान है ।
दासी के इन उपदेश-भरे वचनों को सुन कर उन दोनो के हृदय पश्चात्ताप करने लगे और अपने किये हुए दुष्कर्मजन्य पाप के भय से थर थर कांपने लगे । दुर्गति के डर से वे दीनमन होकर अत्यन्त पश्चात्ताप करते हुए अपने कृत्यो की निन्दा करने लगे । दुर्गति से बचाने वाला उपदेश देने वाली उस दासी की बुद्धि की उन्होंने बहुत प्रशंसा की । उस दासी को अनेक अनेक धन्यवाद देते हुए दोनों ने जैनधर्म को समझने की तीव्र जिज्ञासा प्रकट की ।
मुनिका रजोहरण वापिस देने और अपने दुष्कृत्यों की क्षमायाचना करने के आशय से वे शीघ्र ही उस यक्षमन्दिर से वापस लौटे । वे मुनि भी अभी तक ध्यानमुद्रा में उसी जगह खड़े थे। उनका रजोहरण छिन जाने पर उनने यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि जब(४८३)
तक मेरा रजोहरण मुझे वापस न मिलेगा तब तक मैं अन्यत्र न जाकर यहां ही खड़ा रहूंगा ।
प्रिय और प्रियसुन्दरी मुनि के पास आ पहुचे । सुन्दरी ने मुनि का रजोहररण वापस दे दिया अपने ज्ञानपूर्ण कृत्यों के लिए पश्चात्ताप करते हुए उनकीभर । वे क्षमायाचना करते हुए मुनिराज के चरणों में लिपट गये और दीनता पूर्वक प्रार्थना करने लगे कि हे कृपासिन्धु ! अज्ञानता के वश हो, हमने आप जैसे जगत्पूज्य महामुनि की विराधना कदर्थना की । इस विराधना के पाप से कुम्भकार की चाक पर चढ़े हुए मिट्टी के पिण्ड के समान हमें संसार चक्र में परिभ्रमरण करना पड़ेगा। अनेक दुर्गतियो में घोर दुःख सहने पर भी हमारा इस पाप कर्म से छुटकारा न होगा । हे दया के सिन्धो ! क्षमासागर ! भगवन् ! प्रसन्न होकर हम अज्ञान पामर प्राणियों को क्षमा करो । हे दीनबन्धो ! करुणा कर हम अनीतात्मा का यह अपरात्र क्षमा करो, और इस पाप से मुक्त होने का हमें कोई उपाय बताओ ।
भिक्षा की गवेषणा करते हुए मुनिराज अकस्मात् स्वभाव से ही प्रियमित्र के घर आ पहुँचे। मूनि का दर्शन करते ही अपने जन्म को सफल मानते हुए दम्पत्ती ने बड़े हर्ष पूर्वक मुनिजी को विशुद्ध आहार पानी का लाभ दिया आहार लेकर मुनिराज अन्यत्र विहार कर गये ।
परस्पर प्रेम धारण करते हुए प्रियसुन्दरी और प्रियमित्र सम्यक् श्रद्धान पूर्वक मनुष्य जन्म के सारभूत गृहस्थ धर्म की आराधना करने लगे । आपस में स्नेह रखती हुई रुद्रा और भद्रा भी एक पृथक घर में रह कर अपने माने हुए धर्मानुसार यथाशक्ति दानादि से पुण्य उपार्जन करने लगीं । परस्पर प्रेम होने पर भी एक दिन ऐसा कारण बन गया जिससे उन दोनों में भी खूब क्लेश हुआ । परन्तु कुछ देर बाद शान्त होने पर उन्हें बड़ा पश्चात्ताप हुआ, इससे वे दोनों एक जगह बैठ कर विचार करने लगी कि - धिक्कार है, हमारे जीवन को जिसमें जरा भी सुख नही । हमारा जन्म बिल्कुल निरर्थक है । इस घरमें सदैव क्लेश रहता है ।
पति की ओर से तो हमें सर्वथा सुख नही, क्यों कि उसे तो प्रियसुन्दरी ने ही अपने आधीन कर रक्खा है । वे दोनों पति-पत्नी हमारे सामने देखते तक नही हैं, प्रेम से बोलने की तो बात ही क्या ? हम दोनों में प्रेम है सही पर कभी-कभी हममें भी क्लेश हो ही जाता है । इस तरह क्लेशमय जीवन बिताने की अपेक्षा मरजाना अच्छा है । हमसे जितना बन सका उतना दान पुण्य कर लिया है, अब देह का त्याग करना ठीक है । इस प्रकार प्राण - त्याग का निश्चय कर एक हृदय हो कर किसी को मालूम न हो इस तरह दोनों ने किसी एक कुए में गिर कर आत्महत्या कर अपने प्राण त्याग दिये। |
ab20969be320309b4f0ae7e225449a36dbc05127 | web | फ्रेडी जेम्स प्रिंस जूनियर का जन्म 8 मार्च, 1 9 76 को हुआ थालॉस एंजिल्स में वर्ष। जब बच्चा एक साल का था, तो परिवार में एक त्रासदी हुई, उसके पिता ने आत्महत्या की। मां, कैथी इलेन कोचरन, रियल एस्टेट एजेंसी में काम करते थे, काफी अच्छी कमाई की, और फ्रेडी बहुतायत में बढ़ी। वे अल्बुकर्क शहर में रहते थे, जो रियो ग्रांडे की घाटी में स्थित है। एक बच्चे के रूप में, फ्रेडडी अक्सर अपनी दादी के घर में प्वेर्टो रिको में गर्मी बिताती थी, जिसने लड़के को बहुत कुछ सिखाया था। उन्होंने देशी भाषाओं के अलावा दो भाषाओं में एक बार बोलना शुरू कियाः स्पेनिश और इतालवी।
उनके सलाहकार फ्रेडी प्रिंस जूनियर के लिए धन्यवाद,उस समय की जीवनी ने अपना पहला पृष्ठ खोला, प्राचीन और आधुनिक स्पेनिश संस्कृति सीखी, और जब समय आया, तो वह आसानी से अल्बुकर्क में ला क्यूवा हाई स्कूल में प्रवेश कर गया। उन्होंने अच्छी तरह से अध्ययन किया, एक आदर्श छात्र था और उनकी मां ने कभी भी निदेशक को बुलाया नहीं, हालांकि वह नियमित रूप से अपने बेटे की प्रगति के बारे में परामर्श करने आईं।
स्नातक होने के बाद, फ्रेड चले गएलॉस एंजिल्स। वह हॉलीवुड स्टार बनने की उम्मीद नहीं करता था, हालांकि उसकी आत्मा की गहराई में यह सपना था, और उसने अपनी तस्वीरों को कास्टिंग एजेंसियों में भी पोस्ट किया। फ्रेडी प्रिंस जूनियर लगातार थे और "द फैमिली ऑफ मैटर्स" श्रृंखला के लिए कास्टिंग में हिस्सा लिया। उसके पास कोई विशेष उम्मीद नहीं थी। कास्टिंग के अलावा, उनके अलावा, कुछ आवेदक थे। हालांकि, "फैमिली मैटर्स" श्रृंखला में बड़ी संख्या में पात्र शामिल थे। इस युवा करिश्माई फ्रेडी प्रिंस जूनियर के लिए धन्यवाद, जिसका विकास भी 185 सेमी है, को सुकीकी सिंगर के चरित्र के रूप में एक छोटी भूमिका मिली है।
शुरुआत सफल रही, और फ्रेडी को प्राप्त करना शुरू हो गयायुवा फिल्मों में एपिसोडिक भूमिकाओं के प्रदर्शन के लिए प्रस्ताव। 1997 के चित्र, "मुझे पता है क्या तुम पिछली गर्मियों में," जिम गिलेस्पी द्वारा निर्देशित अभिनेता का पहला बड़ा काम बन गया है, तथ्य यह है कि यह एक काफी आसान तरीके से फिल्माया गया था के बावजूद, और श्रेणी slasher, कि है, डरावनी फिल्में के थे।
अगले साल स्क्रीन बाहर चला गया"मुझे अभी भी पता है कि आपने पिछले गर्मियों में क्या किया था।" इस तस्वीर को एक और निर्देशक, डैनी कैनन द्वारा फिल्माया गया था, लेकिन पुरानी कलाकारों के साथ। चूंकि दोनों फिल्में तुरंत लोकप्रिय हो गईं, फ्रेडी प्रिंस जूनियर ने युवा मंडलियों में प्रसिद्धि प्राप्त की और अपने आगे के कैरियर में युवाओं की थीम पर फिल्म परियोजनाओं में भाग लेने की कोशिश की।
"यह सब वह है"
एक साल बाद, फ्रेड ने अपने अगले भाग में अभिनय कियारॉबर्ट इस्कोव द्वारा निर्देशित फिल्म "इट्स ऑल शी" शीर्षक है। तस्वीर सिंड्रेला के क्लासिक विषय को दोहराती है और उसी समय बर्नार्ड शॉ के "पैग्मेलियन" को गूँजती है। इस फिल्म के बाद, जिसमें फ्रेडी ने मुख्य भूमिका निभाई, वह न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में, बल्कि दुनिया भर में एक प्रसिद्ध अभिनेता बन गए।
तस्वीर की सफलता के बाद "यह सब वह है" फ्रेडीप्रिंस जूनियर को केवल मुख्य भूमिकाओं में हटा दिया गया था। और चूंकि अभिनेता की भूमिका काफी व्यापक थी, इसलिए उनकी भागीदारी के साथ विभिन्न विषयों पर फिल्मों की एक लंबी श्रृंखला का अनुसरण किया गयाः "समर गेम्स," मैकला टोलिन द्वारा निर्देशित, "जस्ट यू एंड मी", क्रिस इसाकसन द्वारा निर्देशित, "एस-वाटर्स द्वारा" अपसाइड-डाउन "। लड़कों और लड़कियों "रॉबर्ट इस्कोव द्वारा निर्देशित," स्क्वाड्रन कमांडर "(क्रिस रॉबर्ट्स द्वारा निर्देशित)। फ्रेडी प्रिंस जूनियर के साथ फिल्में तेजी से लोकप्रिय हुईं और बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई कीं।
"ग्रीष्मकालीन खेल"
"समर गेम्स" - युवा फिल्म, कथानक के केंद्र मेंजो - दो अमेरिकी मूल्यः बेसबॉल और प्यार। महत्वाकांक्षी नौसिखिया बेसबॉल खिलाड़ी रयान डन, हाल ही में प्रतिष्ठित केप कॉड पेनिनसुला टीम में स्वीकार किए जाते हैं, एक करियर के सपने देखते हैं। प्रशिक्षण के स्थान पर बेसबॉल खिलाड़ियों को टेकली पारिश आना शुरू हुआ, जिसे अमीर माता-पिता द्वारा आराम करने के लिए भेजा गया था।
लड़की को खूबसूरत युवा से डेटिंग करने में कोई आपत्ति नहीं हैआदमी, और रयान डन पहल करता है। पारस्परिक प्रेम में एक्यूपंक्चर विकसित होता है, और यह सब टेकली के माता-पिता को पसंद नहीं है। हालांकि, उन बाधाओं के कारण जिन्हें प्रेमियों को दूर करना था, उनकी भावना केवल मजबूत हुई। अंत में, सब कुछ शांत हो गया, और रयान टेकली के साथ मिलना जारी रखा। लेकिन एक ही समय में, इन बैठकों में अधिक से अधिक समय लगने लगा और यह रायन को लगने लगा कि बेसबॉल खिलाड़ी के रूप में उसका करियर प्रभावित हो सकता है।
"लड़के और लड़कियां"
फिल्म "केवल तुम और मैं" - प्यार की तस्वीर और के बारे मेंएक युवा लड़की Imogen और उसके नए दोस्त अल की असहज रिश्ते। वह प्यार करना पसंद करती है, वह अपना सारा खाली समय रसोई में हाथों में रसोई की किताब के साथ बिताती है। जब कोई सामान्य हित नहीं होते हैं, तो भावनाएं धीरे-धीरे शांत हो जाती हैं, इसलिए इस बार ऐसा हुआ।
युवा फिल्म "बॉयज़ एंड" के कथानक के केंद्र मेंलड़कियों "- रयान और जेनिफर के बीच का रिश्ता जो आपसी दुश्मनी से शुरू होता है। स्कूल की वर्षों की गलतफहमी के संकेत से गुजरते हैं, और कॉलेज में प्रवेश करने के बाद ही रयान को समझ में आने लगता है कि सब कुछ इतना सरल नहीं है कि लड़कियां बुराई नहीं हैं, बल्कि एक आशीर्वाद है दयालुता के वाहक, और जब उनके साथ व्यवहार करते हैं, तो रोमांचक भावनाएं होती हैं। धीरे-धीरे, जेनिफर और रयान का रिश्ता दूसरे चरण में चला जाता है।
"स्क्वाड्रन कमांडर" - एक विज्ञान कथा फिल्म,जहां अंतरिक्ष यान के पायलटों ने किलथि एलियंस का सामना किया। संघर्ष को आगे बढ़ाया जाता है, जिसके दौरान किल्रती एक के बाद एक जीत हासिल करती है। उन्होंने पेगासस ग्राउंड बेस पर हमला किया और सौर प्रणाली के दूरदराज के क्षेत्रों में पृथ्वी के स्थानिक आंदोलनों के डेटाबेस के साथ एक कंप्यूटर पर कब्जा कर लिया। इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के बाद, पृथ्वी के हमले के लिए किलारी की तैयारी शुरू हो जाती है।
ये योजनाएं पायलट का सफलतापूर्वक विरोध करती हैंक्रिस्टोफर ब्लेयर (फ्रेडी प्रिंस जूनियर), हाल ही में उड़ान स्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। ब्लेयर के लड़ाकू एक टोही उड़ान भरते हैं और पृथ्वी को किलाथिक जहाजों की दिशा में पहुंचाते हैं। वह लड़ाई जारी रखने के लिए तैयार है, लेकिन वह ईंधन से बाहर निकलता है, और ब्लेयर बाहरी अंतरिक्ष में बहाव शुरू कर देता है।
"स्कूबी डू"
2000 में, पत्रिका "पीपुल" अभिनेता की पहल परफ्रेडी प्रिंस जूनियर को दुनिया के 50 सबसे खूबसूरत लोगों की सूची में शामिल किया गया था। और दो साल बाद, उन्होंने राजी गोस्नेल द्वारा निर्देशित फिल्म "स्कूबी डू" में फ्रेड जोन्स की भूमिका निभाई। चित्र स्प्रिंग ब्रेक में होने वाली हास्य-रहस्यमय घटनाओं पर आधारित है। मुख्य महिला भूमिका ने अभिनेता सारा मिशेल गेलर की पत्नी की भूमिका निभाई।
ब्लॉकबस्टर "स्कूबी डू" एक शानदार सफलता थीबॉक्स ऑफिस एक रिकॉर्ड था। निर्माता, उन्हें आश्रय नहीं दे रहे हैं, उन्होंने "स्कूबी डू 2: मॉन्स्टर्स ऑन फ्रीडम" नामक फिल्म की अगली कड़ी का निर्माण किया। फिल्म का बजट एक उदाहरण के रूप में अधिक नहीं था; फिल्म में 13 साउंडट्रैक का उपयोग किया गया था, और यह बहुत महंगा आनंद है, लेखक की फीस के समेकित परिणामों को ध्यान में रखते हुए, संगीतकारों और संगीतकारों के साथ।
सीक्वल "स्कूबी डू 2" को 2004 के वसंत में रिलीज़ किया गया थालेकिन पहली फिल्म की सफलता अधिक नहीं थी, हालांकि इसने आत्मविश्वास से रेटिंग में उच्च स्थान लिया। उसी समय, कंप्यूटर प्रौद्योगिकियों पर आधारित एक एनिमेटेड फिल्म "द न्यू एडवेंचर्स ऑफ सिंड्रेला" जारी की गई, और फ्रेडी प्रिंस जूनियर, जिनकी उस समय की फिल्मोग्राफी में पहले से ही 30 से अधिक चित्र थे, एक बदलाव के लिए एक कार्टून आवाज अभिनय कर सकते थे, जो उन्होंने सारा गेलर की कंपनी में किया ।
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d88a56e1ce1fd72bffdef3941cb589d8631a5157 | web | यह लंबे समय से मनुष्य के लिए चेरी के उपचारात्मक गुणों के लिए जाना जाता है। लेकिन उसके शरीर के लिए उपयोगी चेरी के पेड़ के केवल फल नहीं हैं। लोक चिकित्सा में, यह भी व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है पत्ते, टहनियाँ, डंठल और बीज। यह उपेक्षा पर अंतिम बार मनुष्य के लिए खतरनाक हो सकता है। जीव के लिए चेरी पत्थर, नुकसान और लाभ का उपयोग कैसे करें और अन्य मुद्दों इस लेख में विस्तार से चर्चा की जाती है। हमें विस्तार से विचार करना उनमें से प्रत्येक के हैं।
चेरी के सभी लाभों के बावजूद, यह शरीर अपूरणीय नुकसान हो सकता है। सबसे पहले, यह चेरी पत्थरों पर लागू होता है। खतरा यह है कि वे amygdalin की सामग्री के साथ जुड़े हुए व्यक्ति हैं। यह इस ग्लाइकोसाइड, जो कई पौधों की हड्डियों, उन्हें एक कड़वा स्वाद देने में मौजूद है। आमाशय रस की कार्रवाई के तहत ग्लूकोज और hydrocyanic एसिड में amygdalin विघटित हो जाता है। अंतिम और विषाक्तता उपकेन्द्रक चेरी का कारण बनता है।
चेरी वुड की हड्डियों लगभग 0. 8% amygdalin शामिल हैं। निगल कई उपकेन्द्रक है पदार्थ की मात्रा शरीर को नुकसान नहीं कर सकते हैं। मनुष्य के लिए जोखिम थोक में बीज की जानबूझकर इस्तेमाल होता है। यह बच्चों के लिए विशेष रूप से सच है। माता-पिता को लगता है कि वे चेरी पत्थरों निगल नहीं कर रहे हैं सुनिश्चित करने के लिए की जरूरत है।
नुकसान और जीव के लिए उपकेन्द्रक लाभ संतुलित किया जा सकता, खाते में तथ्य यह है कि, hydrocyanic एसिड के अलावा, वे बहुमूल्य पदार्थों और औषधीय तेल होता है ले रही है। क्या मनुष्य के लिए उनके उपयोग, नीचे चर्चा की है।
घूस चेरी बीज एक वयस्क की गंभीर विषाक्तता को जन्म दे सकता। घातक खुराक 50 सेवन उपकेन्द्रक है। एक बच्चे के लिए एक खतरनाक खुराक भी कम हो जाएगा।
prussic एसिड विषाक्तता चेरी गड्ढे की घूस से उत्पन्न के लक्षण क्या हैं, शरीर को नुकसान जो पहले से ही जाना जाता है? वे इस प्रकार हैंः
- त्वचा और मानव शरीर कवर की श्लेष्मा झिल्ली एक उज्ज्वल गुलाबी रंग में रंगा जाता है, और बादाम कड़वाहट के मुंह गंध।
- धातु के साथ मुंह में मौजूद कड़वा स्वाद।
- वहाँ मुंह का सूखापन, प्रचुर लार के साथ है।
- मतली और उल्टी करने के लिए आग्रह करता हूं।
- नाड़ी और सांस लेने quickens।
- विद्यार्थियों फ़ैल जाती, भाषण बेतुका हो जाता है।
जब विषाक्तता का पहला लक्षण (डॉक्टर के आने के लिए), एक क्षैतिज स्थिति लेने के लिए इतना है कि जहर, पूरे शरीर में फैल नहीं किया उल्टी और पानी का खूब साथ पेट धोने कारण की जरूरत है।
अधिकांश लोगों को राय है कि जीव hydrocyanic एसिड के लिए खतरा चेरी गड्ढे में लगातार, चाहे एक ताजा बेर की परवाह किए बिना निहित या एक जाम या मुरब्बा में पकाया गया था के हैं। वैज्ञानिकों ने अध्ययन, जो अन्यथा साबित परिणामस्वरूप का आयोजन किया।
hydrocyanic एसिड सामग्री मुरब्बा और मिलावट ताजा जामुन के आधार पर तैयार में चेक किया गया है। खतरनाक पदार्थ के पहले मामले में, पता लगाया नहीं जा सका क्योंकि खाना पकाने का मुरब्बा उबलते की आवश्यकता है। hydrocyanic एसिड की मिलावट, बड़ी संख्या में पाया जाता है यहां, क्योंकि यह सबसे अनुकूल परिस्थितियों को विकसित करने के।
इस प्रकार, चेरी गड्ढ़े, नुकसान और लाभ चिकित्सकों ने साबित कर दिया जाता है, अगर वे एक जाम या मुरब्बा में हैं, शरीर के लिए सुरक्षित हैं। कारण यह है कि amygdalin नष्ट हो जाता है और prussic एसिड उच्च तापमान (75 डिग्री) के तहत गठित नहीं है।
इतना ही नहीं हानिकारक, लेकिन यह भी शरीर कोर चेरी के लिए काफी लाभदायक लाने के लिए। यह क्या है?
सबसे पहले, चेरी से गड्ढ़े औषधीय तेल, जो व्यापक रूप से सौंदर्य प्रसाधन में प्रयोग किया जाता है तैयारी कर रहे हैं। इसकी नियमित रूप से इस्तेमाल में त्वचा फिर से, एक जवान कोमल और हाइड्रेटेड हो जाता है।
दूसरे, चेरी के आधार पर उपकेन्द्रक विशेष तकिए, हीटिंग पैड, जो बच्चों और वयस्कों (आम सर्दी, कम पीठ दर्द, गठिया) के कई रोगों के उपचार में किया जाता है सीना।
तीसरा, कुचल चेरी कर्नेल गठिया के उपचार में किया जाता है। इसके अलावा, सुरक्षा और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए और भी पूरे सूखे चेरी गड्ढे प्रदान करते हैं। इस संयंत्र के लाभ उपकेन्द्रक व्यापक रूप से लोक चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। कई पुराने रोगों के उपचार में उनके उपयोग के आधार पर मिलावट।
चेरी गड्ढे से औषधीय तेल जो जहरीले पदार्थ शामिल नहीं है तैयारी। इसकी संरचना में कई विटामिन और खनिज मानव त्वचा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है कि देखते हैं। लेकिन इस तेल है, जो चेरी पत्थर के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है के सभी उपयोगी गुण नहीं है।
शरीर के लिए लाभ इस प्रकार हैः
- युवाओं की त्वचा की वापसी;
- सूरज की रोशनी से त्वचा की सुरक्षा (पराबैंगनी विकिरण अवशोषण को रोकता है);
- नरम, मॉइस्चराइजिंग, पोषण सेल त्वचा;
- त्वचा का रंग हल्का हो जाता है;
- बाहर सूखने से होठों की सतह की रक्षा करता है;
- त्वचा लोच को बेहतर बनाता है;
- यह प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट है, जो कैंसर कोशिकाओं के निर्माण का विरोध होता है।
अन्य प्रकार के बीच में अद्वितीय मक्खन चेरी पत्थर, बिल्कुल सारे शरीर में उचित चयापचय के लिए आवश्यक विटामिन युक्त। यह शुद्ध रूप में या चेहरे और शरीर की देखभाल के लिए अन्य कॉस्मेटिक उत्पादों के हिस्से के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
चेरी कोर सिलाई तकिए और बच्चों के लिए खिलौने के लिए एक पूरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता। प्राप्त उत्पादों जीव के लिए उपचारात्मक गुण होते हैं।
चेरी पत्थर, नुकसान और जो के उपयोग चिकित्सा, व्यापक रूप से विशेष तकिए, वयस्क और बच्चों के लिए warmers के निर्माण में इस्तेमाल साबित कर दिया। संभव बीज सड़ांध जो अंदर हाइड्रोजन साइनाइड के गठन की सुविधा न हो, इसके निर्माण सिरका के योग के साथ उबलते पानी में उबला हुआ और एक ओवन में सूखे तकिये से पहले उपकेन्द्रक।
गड्ढों के साथ कुशन ठंडा या गर्म संपीड़ित रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह बुखार, दर्द और ऐंठन राहत मिलती है या सुखद गर्मी चला। यह पूरी तरह से hypoallergenic और सुरक्षित रूप में एक पूरक जलता का कारण नहीं है है।
बच्चे तकिया गरम प्रयोग किया हैः
- पेट का दर्द के साथ दर्द शिशुओं के लिए;
- एक गर्म संपीड़ित जब खाँसी की तैयारी के लिए;
- एक ठंडा संपीड़ित शोफ दर्द और खरोंच को दूर के रूप में;
- मांसपेशियों में दर्द और ऐंठन को हटाने के लिए;
- एक त्वरित नींद बच्चे (थकान, सुखदायक) के लिए;
- ठीक मोटर कौशल के विकास के लिए।
वयस्क एक तकिया का उपयोग करेंः
- उन मामलों में जब यह आवश्यक है दर्द और ऐंठन को राहत देने के में ठंड और गर्म compresses के लिए;
- बैठे स्थिति में गर्भाशय ग्रीवा और काठ का रीढ़ की हड्डी को स्थिर करने के लिए;
- सोने के लिए एक आर्थोपेडिक तकिया के रूप में।
गरम तकिया गर्म करने के लिए संपीड़ित निम्न तरीकों से तैयार किया जाता हैः
- नाभिक के बैग 150 डिग्री के तापमान पर 5 मिनट के लिए ओवन में गरम किया जाता है;
- आप एक माइक्रोवेव ओवन में गर्म किया जा सकता है - सत्ता के 600 वाट पर 3 मिनट;
- 40 मिनट के लिए बैटरी पर डाल दिया।
गर्म तकिया स्थान है जहाँ आप दर्द या ऐंठन को राहत देने के लिए चाहते हैं के लिए लागू किया जाना चाहिए।
हड्डियों के साथ एक ठंडा संपीड़ित तकिया की तैयारी के लिए फ्रीजर में रखा जाना चाहिए। चेरी कोर के साथ शीतकालीन बैग बालकनी पर बाहर ले जाया जा सकता है।
आप देख सकते हैं, यह एक रामबाण है। गठिया के उपचार में, घुटने के जोड़ों में दर्द को दूर भी चेरी गड्ढे में मदद मिलेगी। प्राकृतिक भरने के साथ तकिए के उपयोग के निम्नलिखित शामिल हैंः हड्डियों का एक बैग 30 मिनट पर डाल करने के लिए आवश्यक है - फ्रीजर में 1 घंटे, और फिर पीड़ादायक स्थान के लिए इसे लागू होते हैं।
शीत - सूजन और जोड़ों की सूजन के इलाज के लिए एक महान उपकरण। यह रक्त परिसंचरण को तेज करता है और एक अच्छा एनाल्जेसिक प्रभाव पड़ता है। संयुक्त पर ठंड जोखिम समय 10 मिनट से अधिक नहीं होना चाहिए।
गाउट - कि नमक के बयान के कारण होता है जोड़ों का एक रोग। इससे पीड़ित बिल्कुल सब पैर की उंगलियों के उंगलियों से जोड़ों। Hydrocyanic एसिड, जो बड़ी मात्रा में खतरनाक हो सकता है, गठिया जोड़ों का दर्द दूर करने के लिए मदद करता है। यह कैसे प्राप्त करने के लिए?
गाउट mahleb के उपचार के पूर्व पीसने की जरूरत के लिए, तो ठीक है, जाली में लिपटे और प्रभावित क्षेत्र के लिए लागू पीस लें। कई उपचार के बाद दर्द गायब हो जाएगा।
भड़काऊ शोरबा का इस्तेमाल किया और बीज लुगदी चेरी की तीव्र पुराने रोगों से उत्पन्न प्रक्रियाओं में। इसके बाद के नियमित सेवन का मतलब दर्दनाक लक्षण गायब हो जाएगा, और शरीर की हालत में सुधार होगा। चेरी पत्थर, लाभ और नुकसान जिनमें से सही गर्मी उपचार पर निर्भर करते हैं, शोरबा की संरचना में खतरनाक नहीं हो सकता। रखें यह फ्रिज में हो सकता है लेकिन महीने के तैयार करने के बाद 1 से अधिक।
चेरी गड्ढों का उपयोग कर दैनिक पैरों की मालिश करने के लिए पर्याप्त प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए। ऐसा करने के लिए, वे फर्श पर तौलिया, पूर्व प्रसार पर छिड़के और 10 मिनट के लिए यह माध्यम से चलने के लिए की जरूरत है। यह "स्वास्थ्य पथ" उपयोगी होगा के लिए वयस्कों और बच्चों दोनों अक्सर जुकाम से पीड़ित हैं।
यदि एक बच्चा या एक वयस्क चेरी के कुछ बीज निगल लिया है चिंतित न। amygdalin hydrocyanic एसिड में बदल करने के लिए, यह कुछ समय लगेगा। आमतौर पर यह अपने आप को शरीर से बाहर गड्ढे के लिए पर्याप्त है, उस पर एक हानिकारक प्रभाव नहीं है। Hydrocyanic एसिड घूस चेरी गिरी के बाद 4-5 घंटे के भीतर अलग करने के लिए शुरू होता है।
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0f742fb60617920a079542c4d555c9fb14637d263cc311225a8add0e2649e04f | pdf | ( १८९० - १९२५) बत्तीसवाँ अध्याय
परिवर्तन-कालिक हिंदी
यों तो प्रौढ़ माध्यमिक काल ही में हिंदी भाषा परिपक्क हो चुकी थी, पर अलंकृत काल में उसे हमारे कविजनों ने श्राभूषणों से सुसज्जित कर ऐसी मनमोहिनी बना दी कि उसमें किसी प्रकार की कमी न रह गई, बरन् यों कहना चाहिए कि उत्तरालंकृत काज में भूषणों की ऐसी भरमार मच गई कि उसके कोमल कलेवर पर उनका बोझ प्रायः असा प्रतीत होने लगा । हम स्वीकार करते हैं कि कोई शशिबदनी चाहे जितनी स्वरूपवती हो, पर कुछ आभूषण पिन्हा देने से उसकी शोभा बढ़ जाती है। फिर भी कहना ही पड़ता है कि जैसे अंग-प्रत्यंगों को श्राभरणों से आच्छादित कर देने से कुछ ग्रामीणता एवं भद्दापन बोध होने लगता है, उसी प्रकार कविता को भी विशेष रूप से अलंकृत करने पर उसकी नैसर्गिक सुघराई में बट्टा लग जाना स्वाभाविक ही है । अन्य भाषाओं में प्रायः माध्यमिक काल के पीछे ही परिवर्तन समय श्रा जाता, और कुछ ही दिनों के बाद उनकी वर्तमान दशा का वर्णन होने लगता है, पर हिंदी में यह विलक्षण विशेषता है कि माध्यमिक और परिवर्तन काज के बीच में दो शताब्दियों से भी कुछ अधिक समय तक हमारे कविजन भाषा को अलंकृत करने ही में लगे रहे। इसका परिणाम यह अवश्य हुआ कि हिंदी-जैसी मधुर एवं अलंकारयुक्त
दूसरी भाषा का ढूँढ़ना कठिन है, और इस अंग की प्रौढ़ता हमारी भाषा में प्रायः एकदम अद्वितीय और अभूतपूर्व है, तो भी मानना ही पड़ेगा कि कम-से-कम उत्तरालंकृत काल में इस अंग की पूर्ति में आवश्यकता से कहीं अधिक श्रम कर डाला गया । इसके अतिरिक्त उस समय कवियों का झुकाव शृंगार रस की ओर इतना अधिक रहा कि उनमें से अधिकांश का रुझान दूसरे विषयों पर न हो सका । हमारी समझ में पूर्वालंकृत काल तक हिंदी को जितने आभूषण पिन्हाए जा चुके थे, उन पर यदि हमारे कविजन संतोष कर लेते, और शृंगार रस को छोड़ उपकारी बातों का उचित आदर करते, तो आजदिन हमें अपने भाषा-भंडार में नूतन विषयों की न्यूनता पर शोक न प्रकट करना पड़ता । स्मरण रखना चाहिए कि उत्तरालंकृत काल में, जब कि हमारे यहाँ लोग भाषा को बाह्याडंबरों से ही सुसजित करने में विशेष रूप से बद्धपरिकर थे । अन्य देशी भाषाएँ और ही छटा दिखलाने लगी थीं। बँगला में भी हमारे पूर्वालंकृत काल एवं उत्तरालंकृत काल के विशेषांश में भाषा अलंकृत रही, परंतु वहाँ संवत् १८७५ में ही श्रीरामपुर के पादरियों द्वारा एक समाचार-पत्र निकला और इसी समय से गद्य का प्रचार बढ़ने लगा। संवत् १८८५ के लगभग मृत्युंजय-नामक लेखक ने बँगला का प्रबोधचंद्रिका-नामक प्रथम गद्य-ग्रंथ लिखा। इसी कवि ने पुरुष परीक्षा- नामक एक द्वितीय गद्यग्रंथ रचा । इसी समय ईश्वरचंद्र गुप्त ने संवाद - प्रभाकर - नामक एक उत्कृष्ट पत्र निकाला, और राजा राममोहन राय ने सुधावर्षिणी लेखनी से संसार को पवित्र किया । ईश्वरचंद्र विद्यासागर और अक्षयकुमार दत्त बंगाली गद्य के मुख्य उन्नायक हो गए हैं। इनका रचनाकाल १६१० के लगभग था। इन्होंने बहुत ही उत्कृष्ट गद्यग्रंथ रचे, और इनके समय से प्रायः सभी विषयों में बँगला भाषा ने बहुत अच्छी उन्नति की । इसी समय के बंकिमचंद्र चटर्जी, मधुसूदन१०१६
दत्त और दीनबंधु बड़े भारी लेखक और कवि थे । रमेशचंद्रदत्त ने भी अच्छे ग्रंथ रचे । आजकल रवींद्रनाथ टैगोर बहुत बड़े कवि हैं, और उनके भाई द्विजेंद्रनाथ तथा यतींद्रनाथ परमोत्कृष्ट गद्य-लेखक तथा नाटक-रचयिता हैं। बँगला ने वर्तमान उन्नत विषयों में बड़ी अच्छी उन्नति कर ली है। गुजराती एवं मराठी भाषाएँ भी उन्नत दशा में हैं । अस्तु ।
चंद के समय से उन्नति करते-करते इतने दिनों में हिंदी ने वह उत्कर्ष प्राप्त कर लिया था कि जिसके सहारे अन्य भाषाओं की अपेक्षा उसके काव्यांग इतने दृढ़तर हैं कि प्रायः उन सभों को इसके सामने सिर झुकाना पड़ता है। पर नवीन उपयोगी विषयों की अब तक कुछ भी संतोषदायक उन्नति नहीं हो पाई थी। इस परिवर्तन काल में अनेक लेखकों का ध्यान इस ओर आकर्पित हुआ, और विविध विषयों पर लेखनी चंचल करने की प्रथा पढ़ने लगी । यों तो आजदिन तक अन्य भाषाओं को देखते हिंदी में इस विभाग की न्यूनता अगत्या स्वीकार करनी ही पड़ती है। पर जो प्रथा परिवर्तन-काल के कतिपय विचारशील हिंदी - हितैषियों ने चलाई, उस पर क्रमशः उन्नति होती ही आई है। उत्तरालंकृत काल में कथा-प्रासंगिक ग्रंथों के लिखने की रीति प्रायः जैसी-की-तैसी जोरों पर रही थी। पर परिवर्तन काल में उसका कुछ हास हो चला । शृंगार रस एवं रीति-ग्रंथों का प्राधान्य भी श्रब घटने लगा, पर उसी के साथ काव्योत्कर्ष में भी विशेष न्यूनता श्रा गई, और ठाकुर, दूलह, सूदन, बोधा, रामचंद्र, सीतल, थान, बेनीप्रवीन और परताप के जोड़वाले प्रायः कोई भी कवि इस परिवर्तनकाल में दृष्टिगोचर नहीं होते। इतना ही नहीं, बरनू यों कहना चाहिए कि लेखराज, ललितकिशोरी, पजनेस आदि को छोड़ प्रायः कोई भी वास्तव में बढ़िया कवि इस समय में न हुआ। इसी के साथ इतना अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि यह परिवर्तन काल केवल ३६ वर्ष का है और उत्तरालंकृत काल प्रायः एक सौ वर्ष पर विस्तृत है।
भक्ति- पक्ष की कविता प्रौद-माध्यमिक काल में पूरे जोरों पर थी, और तत्पश्चात् उसमें कमी हो चली । पूर्वालंकृत समय की अपेक्षा उत्तरालंकृत काल में उसने फिर कुछ-कुछ उन्नति की, पर परिवर्तन काल में सिवा महाराजा रघुराजसिंहजी, लेखराज और ललितकिशोरी के और किसी भी नामी कवि ने उसकी ओर ध्यान न दिया। इस काल में ललितकिशोरी ( साह कुंदनलालजी ) ने उस ढंग की कविता की, जो प्रायः तीन सौ वर्ष पहले प्रचलित थी । वीर-काव्य अब बंद-सा हो गया, और गद्य लिखने की प्रथा पहले पहल ज़ोरों के साथ चली । टीका लिखने की रीति सबसे पहले प्रसिद्ध महाराणा कुंभकर्ण ने चलाई थी, और उनके बहुत दिनों पीछे अलंकृत काल में इस पर कतिपय लोगों ने ध्यान दिया था । कृष्ण और सूरति मिश्र ने बिहारी सतसई पर अनेक प्रकार से टीकाएँ कीं, पर अब तक दो-चार को छोड़ किसी दूसरे भाषा - कवि को उत्कृष्ट टीकाकार बनने का गौरव नहीं प्राप्त हुआ था । इस परिवर्तन काल में सरदार कवि ने सूर, केशव आदि अन्य नामी कवियों के उत्तमोत्तम ग्रंथों पर भी टीकाएँ बनाई, और अन्य अनेक लेखकों ने भी टीकाओं पर श्रम किया ।
इस काल में सबसे बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि हिंदी-साहित्य से चार-पाँच सौ वर्ष के बाद व्रजभाषा और पद्य विभाग का आधिपत्य हटने लगा । जहाँ तक हमको विदित है, सबसे पहले सारंगघर ने संवत् १३५० के लगभग व्रजभाषा का हिंदी कविता में प्रयोग किया । प्रायः तीस वर्ष पीछे अमीर खुसरो ने भी इसे अपनाया, पर वे पहलेपहल खड़ी बोली में भी कविता करते थे । १४५० के आसपास नारायण देव ने व्रजभाषा ही में हरिश्चंद्रपुराण-नामक ग्रंथ रचा, और १४८० में नामदेव ने उसमें अनेक ग्रंथ निर्माण किए । इनके पश्चात् चरणदास और वल्लभाचार्यजी ने ब्रजभाषा को ही प्रधानता दी और तदनंतर सूरदास और अष्टछाप के अन्य कवीश्वरों ने
उसका सिक्का हमारी भाषा पर मानो अटल कर दिया। अवश्य ही बीचबीच में कोई-कोई लेखक अवधी, खड़ी बोली और अन्य प्रकार की भाषाओं में कविता करते रहे, और स्वयं गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपनी अधिकांश रचनाओं में अवधी भाषा को ही विशेष आदर दिया, तो भी प्रायः ६० सैकड़े कविजन बराबर ब्रजभाषा ही से अनुरक्त रहे । उत्तरालंकृत काल में लल्लूलाल ने प्रेमसागर की रचना व्रजभाषामिश्रित खड़ी बोली में की, पर उसमें भी उन्होंने छंद ब्रजभाषा ही के रक्खे । उन्हीं के साथ सदल मिश्र ने खड़ी बोली में उत्तम रचना की । परिवर्तन-काल में गणेशप्रसाद, राजा शिवप्रसाद, राजा लघमणसिंह, स्वामी दयानंद, बालकृष्ण भट्ट आदि महानुभावों के प्रयत्न से लोगों को समझ पड़ने लगा कि हिंदी गद्य एवं पद्य तक में यह आवश्यकता नहीं कि व्रजभाषा का ही सहारा लिया जाय । पद्य में तो कुछ-कुछ आजदिन तक ब्रजभाषा का प्रभुत्व कई अंशों में वर्तमान है, और अभी कुछ समय तक हमारे पुरानी प्रथा के कविजन इसकी ममता छोड़ते नहीं दिखाई पड़ते। पर गद्य में इसी परिवर्तनकाल से खड़ी बोली का पूर्ण प्रभुत्व जम गया और पद्य में भी उसका यथेष्ट आदर होने लगा है ।
अँगरेजी साम्राज्य स्थापित होने से जहाँ देश को अन्य अनेक लाभ हुए, वहाँ साहित्य ही कैसे विमुख रह जाता। जीवन-होड़ के प्रादुर्भाव से ही उन्नति का सुविशाल द्वार खुला करता है। जब तक किसी को विना हाथ-पैर हिलाए मिलता जाता है, तब तक विशेष उन्नति की ओर उसका चित्त नहीं आकर्षित होता, पर जब मनुष्य देखता है कि अब तो विना परिश्रम के काम नहीं चलता और आलसी बने रहने से अन्य उन्नत पुरुषों के सामने उसे नित्यप्रति नीचे ही खिसकना पड़ेगा, तभी उसमें उन्नति के विचार जागृत होते हैं, और जातीय एवं व्यक्तिगत होड़ में उसे क्रमशः सफलता प्राप्त होने लगती
है। जब हम लोगों में अँगरेज़ी राज्य स्थापित होने पर अन्य प्रकार के उन्नत विचार श्राने लगे, तभी अपनी भाषा की उपयोगी उन्नति की इच्छा भी अंकुरित हुई। बस, भाषा में परिवर्तन काल उपस्थित हो जाने का यही एक प्रधान कारण था ।
इस समय में महाराजा मानसिंह, शंकर दरियाबादी, नवीन, पज़नेस, सेवक, लेखराज, ललितकिशोरी, गदाधर भट्ट, श्रोध, लछिराम, बलदेव प्रभृति प्राचीन प्रथा के सत्कवियों में हुए, तथा उमादास, निहाल, जीवनलाल, सूरजमल, माधव, क़ासिम, गिरिधरदास, प्रतापकुँअरि, महाराजा रघुराजसिंह, शंभुनाथ मिश्र और रघुनाथदास रामसनेही ने कथा - प्रासंगिक कविता की । ललितकिशोरीजी ने एक बार सौर काल की छटा फिर से दिखला दी, और क़ासिम ने अपने हंस जवाहिर में जायसी के पैरों पर पैर रखना चाहा, पर क़ासिम की रचना तादृश प्रशंसनीय नहीं है। महाराजा रघुराजसिंहजी ने अनेक विषयों पर अनेक भारी ग्रंथ निर्माण करके हिंदी का अच्छा उपकार किया । स्वामी काष्ठजिह्वा, बाबा रघुनाथदास और महंत सीतारामशरण इस समय के उन महात्माओं में हैं, जिन्होंने हिंदी को अपनी लेखनी द्वारा पुनीत किया । कृष्णानंद व्यास ने पदों का एक संग्रह ग्रंथ बनाया । गणेशप्रसाद फर्रुखाबादी के खड़ी बोलीवाले पद और लावनियाँ प्रसिद्ध हैं, और उनका एतद्देश में अच्छा प्रचार है। टीकाकारों में सरदार और गुलाबसिंह का श्रम विशेषतया प्रशंसनीय है। ये दोनों महाशय अच्छे कवि भी थे। राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद, महर्षि दयानंद सरस्वती, डॉक्टर रुडाल्फ़ हार्नली, नवीनचंद्रराय और बालकृष्ण भट्ट नवीन प्रकार के लेखकों में हैं, और सच पूछिए, तो विशेषतया ऐसे ही महानुभावों के श्रम का यह फल हुआ कि हिंदी में प्राचीन अलंकृत काल दूर होकर परिवर्तन होते-होते वर्तमान उन्नति का समय हम लोगों को नसीब हुआ।
राजा शिवप्रसाद का हिंदी पर यह ऋण सदा बना रहेगा कि यदि वह समुचित उद्योग न करते, तो संभव है कि शिक्षा विभाग में हिंदी बिलकुल स्थान ही न पाती, और नितांत आधुनिक भाषा उर्दू ही उत्तरीय भारतवर्ष की एक मात्र देशी भाषा बन बैठती। महर्षि दयानंद सरस्वती ने देश और जाति का जो महान् उपकार किया, उसे यहाँ पर लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है। अनेक भूलों और पाखंडों में फसे हुए लोगों को सीधा मार्ग दिखलाकर उन्होंने वह काम किया है, जो अपने-अपने समय में महात्मा गौतम बुद्ध, स्वामी शंकराचार्य, रामानंद, कबीरदास, बाबा नानक, बल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु और राजा राममोहन राय समय-समय कर गए । हम प्रार्यसमाजी नहीं हैं, तो भी हमारी समझ में ऐसा आता है कि हम लोगों का जो वास्तविक हित इस ऋषि के प्रयत्नों द्वारा हुआ और होना संभव है, उतना उपर्युक्त महात्माओं में से बहुतों ने नहीं कर पाया । दयानंदजी ने हिंदी में सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, इत्यादि अनुपम ग्रंथ साधु और सरल भाषा में लिखकर उसकी भारी सहायता की और उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज से उसका दिनोंदिन हित हो रहा है।
तैंतीसवाँ अध्याय
( १७८३ ) महाराजा मानसिंह, उपनाम द्विजदेव ये महाराजा अयोध्या नरेश तथा अवध-प्रदेशांतर्गत ताल्लुक्केदारों की एसोसिएशन ( सभा ) के सभापति थे । इनका स्वर्गवास संवत् १९३० में संभवतः पचास वर्ष की अवस्था में हुआ था । ये महाशय कवियों के कल्पवृत्त थे । इनके आश्रय में बहुत-से
कारण बहुतेरे द्वेषी मनुष्यों ने उड़ा दिया था कि ये महाराज स्वयं कवि न थे, बरन् लछिराम कवि से बनवाकर अपने नाम से कविता प्रकाशित करते थे। यह बात सर्वथा अशुद्ध थी और इससे ऐसी बातें उड़ानेवालों की चुद्रता प्रकट होती है। वास्तव में इनकी कविता के बराबर लछिराम का कोई भी ग्रंथ या छंद नहीं पहुँचता । ये महाराज शाकद्वीपी ब्राह्मण थे । अपने मरण-काल में ये अपने दौहित्र महामहोपाध्याय महाराजा सर प्रतापनारायणसिंह के० सी० आई० ईं० उपनाम ददुआ साहब' को अपना उत्तराधिकारी नियत कर गए थे। कुछ समय बीता, जब महाराज ददुआ साहब ने 'रसकुसुमाकर' नामक एक भाषा-साहित्य का मनोरंजक सचित्र संग्रह प्रकाशित किया था। इसमें द्विजदेवजी के बहुत से छंद हैं। इनके भतीजे भुवनेशजी ने लिखा है कि इन्होंने शृंगार-बत्तीसी और शृंगारलतिका नामक दो ग्रंथ बनाए । इनका द्वितीय ग्रंथ हमारे पास वर्तमान है, जिसमें १०५ पृष्ठ हैं । ये महाराज व्रजभाषा में ही कविता करते थे । इनकी भाषा बड़ी ललित और कविता परममनोहर होती थी । इन्होंने अनुप्रास का अच्छा प्रयोग किया है। इनका षट्ऋतु बहुत ही बढ़िया बना है, और शेष ग्रंथ में शृंगार रस के स्फुट छंद हैं। इनकी कविता में बहुत से परमोत्तम छंद हैं, जिनके बराबर बड़े-बड़े कवियों के अतिरिक्त साधारण कवियों के छंद नहीं पहुँचते । इनके शेष छंद भी बुरे नहीं हैं। हम इनको पद्माकर की श्रेणी में रखते हैं । उदाहरण लीजिएसौंधे समीरन को सरदार, मलिंदन को मनसा फलदायक; किंसुक-जालन को कलपद्रुम, मानिनी बालन हूँ को मनायक । कंत इकंत अनंत कलीन को, दीनन के मन को सुखदायक; साँचो मनोभव राज को साज, सु श्रावत श्राजु इतै ऋतुनायक । |
1d6d32572de6803007fa6be454d3ae0df55a141a | web | UP Ke Sarkari School: बच्चों का निजी स्कूलों में नामांकन 2018 में 32. 5 फ़ीसदी से घटकर, 2021 में 24. 4 फ़ीसदी हो गया है। यह बदलाव सभी कक्षाओं के बच्चों और लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए दिख रहा है।
UP Ke Sarkari School: सरकारी स्कूलों (Government School in Uttar Pradesh) से अभिभावकों का मोहभंग हो रहा है। लड़कियों की तुलना में निजी स्कूलों में लड़कों को तालीम दिलाने को ज़्यादा तरजीह दी जा रही है। हालाँकि की उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों में नामांकन में बीते तीन सालों में तेरह फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। केरल को छोड़ सभी राज्यों में ट्यूशन में काफ़ी बढ़ोतरी देखी गयी है। जिन बच्चों के माता पिता कक्षा नौ से अधिक पढ़े लिखे हैं ऐसे अस्सी फ़ीसदी बच्चों के पास स्मार्ट फ़ोन उपलब्ध हैं।
बच्चों का निजी स्कूलों में नामांकन 2018 में 32. 5 फ़ीसदी से घटकर, 2021 में 24. 4 फ़ीसदी हो गया है। यह बदलाव सभी कक्षाओं के बच्चों और लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए दिख रहा है। 2018 में अनामांकित बच्चों का अनुपात 1. 4फीसदी था, जो कि 2020 में बढ़कर 4. 6 फ़ीसदी हो गया था। यह अनुपात 2021 में अपरिवर्तित रहा। 15-16 आयु वर्ग के बच्चों का सरकारी स्कूल में नामांकन का आंकड़ा 2018 में 57. 4 फ़ीसदी से बढ़कर 2021 में 67. 4 फ़ीसदी हो गया है। इस बदलाव के दो मुख्या कारण है - पहला कि इस आयु वर्ग के अनामांकित बच्चों का अनुपात 2018 में 12. फीसदी से घटकर 2021 में 6. 6 प्रतिशत ही रह गया। दूसरा कि निजी स्कूलों के नामांकन में भी गिरावट दर्ज हुई है।
इसके विपरीत, कई उत्तर-पूर्वी राज्यों में, सरकारी स्कूलों के नामांकन में गिरावट आई है। अनामांकित बच्चों के अनुपात में वृद्धि हुई है। हालाँकि उत्तर प्रदेश में 6-14 आयु वर्ग के बच्चों का सरकारी स्कूल में नामांकन 2018में 43. 1 फ़ीसदी से बढ़कर 2021 में 56. 3 फ़ीसदी हो गया। अन्य राज्यों की तुलना में यह बड़ा बदलाव हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर, 2018 में, 30 प्रतिशत से कम बच्चे निजी ट्यूशन कक्षाएं लेते थे। 2021 में यह अनुपात बढ़कर लगभग 40 हो गया है। प्राथमिक शिक्षा या कम तालीम पाये माता-पिता के बच्चों में ट्यूशन लेने के अनुपात में 12. 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि अधिक पढ़े-लिखे यानी कक्षा 9 या अधिक पास माता-पिता के बच्चों में यह वृद्धि 7. 2 प्रतिशत की है। केरल को छोड़कर सभी राज्यों में ट्यूशन में वृद्धि हुई है। उत्तर प्रदेश में 2018 में 20 फ़ीसदी 2021 में यह अनुपात बढ़ कर 38. 7 हो गया है। राष्ट्रीय स्तर पर अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश और नागा लैंड का दूसरा स्थान है। जहां यह बढ़ोतरी सबसे ज़्यादा 19. 1 फ़ीसदी हुईं है।
पिछले वर्ष स्कूल बंद होने के बाद जब सभी शैक्षिक प्रक्रियाएं ऑनलाइन होने लगी, तब स्मार्टफ़ोन शिक्षण का प्रमुख स्त्रोत बन गया। इससे सबसे वंचित वर्ग के बच्चों के पीछे छूट जाने की संभावना दिखने लगी। लिहाज़ा स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि 2018 में 36. 5 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 67. 6 हो गई है। लेकिन सरकारी विद्यालय जाने वाले बच्चों की अपेक्षा 63. 7 फ़ीसदी निजी विद्यालय के 79 फ़ीसदी से ज़्यादा बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उबलब्ध हैं।
2021 में ऐसे 80 फ़ीसदी बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपलब्ध है जिनके माता-पिता कक्षा 9 से अधिक पढ़े-लिखे हैं। इसकी तुलना में केवल 50 प्रतिशत ऐसे बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपलब्ध है जिनके माता-पिता कक्षा 5 से कम पढ़े-लिखे हैं। लेकिन जिन बच्चों के माता-पिता कम पढ़े-लिखे हैं, उनमें भी लगभग एक चौथाई से अधिक बच्चों की पढ़ाई के लिए मार्च 2020 के बाद एक नया स्मार्टफोन खरीदा गया।
हालाँकि नामांकित सभी बच्चों में से दो तिहाई से अधिक यानी 67. 6 फ़ीसदी बच्चों के पास घर पर स्मार्टफ़ोन हैं, इनमें से लगभग एक चौथाई यानी तक़रीबन 26. 1 फ़ीसदी ऐसे बच्चे हैं, जिनके लिए यह स्मार्टफ़ोन उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं है। इसमें कक्षावार देखने पर यह स्पष्ट होता है कि छोटी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की अपेक्षा उच्च कक्षा में पढ़ने वाले ज़्यादा बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपयोग के लिए उपलब्ध हैं। उत्तर प्रदेश में स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि 2018 में 30. 4 फ़ीसदी से बढ़कर 2021 में लगभग दोगुनी होकर 58. 9 फ़ीसदी हो गई है। हालाँकि उत्तर प्रदेश में नामांकित सभी बच्चों में से 58. 9 फ़ीसदी बच्चों के पास घर पर स्मार्टफोन उपलब्ध है, इनमें से लगभग 34 फ़ीसदी ऐसे बच्चे हैं जिनके लिए यह स्मार्टफ़ोन पढ़ाई के लिए उपलब्ध नहीं है।
घर पर पढ़ने में सहयोग मिलने वाले नामांकित बच्चों का अनुपात 2020 में तीन चौथाई से घटकर 2021 में दो तिहाई हो गया है। सहयोग में सबसे ज़्यादा गिरावट उच्च कक्षा यानी कक्षा 9 या अधिक के बच्चों के लिए आई है। दोनों सरकारी और निजी विद्यालय जाने वाले बच्चों में, जिन बच्चों के विद्यालय खुल गए है, उनको घर से कम सहयोग मिल रहा है। उदाहरण के लिए, जो निजी विद्यालय नहीं खुले है, उनमें जाने वाले 75. 6 फ़ीसदी बच्चों को पढ़ने में सहयोग मिलता है। इसकी तुलना में खुले हुए निजी विद्यालयों में जाने वाले 70. 4 प्रतिशत बच्चों को यह मदद मिलती है। असर 2021 के अनुसार उत्तर प्रदेश में 68. 7 फ़ीसदी नामांकित बच्चों ,सरकारी और प्राइवेट, को घर से पढ़ाई में सहयोग मिला ।
लगभग सभी तक़रीबन 91. 9 फ़ीसदी नामांकित बच्चों के पास अपनी वर्तमान कक्षा की पाठ्यपुस्तकें हैं। दोनों सरकारी और निजी विद्यालयों के बच्चों के लिए यह अनुपात पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा असर 2020 में 79. 6 फ़ीसदी से बढ़कर 91. 3 फ़ीसदी हो गया है ।
जिन नामांकित बच्चों के विद्यालय नहीं खुले हैं, उनमें से 39. 8 फ़ीसदी बच्चों को सर्वेक्षण के पिछले सप्ताह में अपने शिक्षक द्वारा किसी प्रकार की शैक्षिक सामग्री या गतिविधियाँ, पाठ्यपुस्तकों के अलावा, प्राप्त हुई। इसमें पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है, जब यह अनुपात 35. 6 फ़ीसदी था।
पिछले एक सप्ताह में, जिन बच्चों के विद्यालय खुल गए है, उनमें से 46. 4 प्रतिशत को शैक्षिक सामग्री मिली थी। जिन बच्चों के विद्यालय नहीं खुले थे, उनमें यह अनुपात 39. 8 फ़ीसदी है। यह मुख्य रूप से खुले हुए विद्यालयों में गृहकार्य मिलने के कारण है।
सरकारी विद्यालयों के नामांकन में पिछले दो वर्षों में बढ़ोतरी हुई है। इसके लिए सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों को तैयार करने की आवश्यकता हैं। विद्यालय खुलने के साथ बच्चों को मिलने वाला पारिवारिक सहयोग 2020 से कम हो गया है। लेकिन यह विशेष रूप से प्राथमिक कक्षाओं के लिए अभी भी महत्वपूर्ण है। शिक्षा की योजनाएँ बनाते समय बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी को ध्यान में रखना चाहिए, जैसा की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित है।
माता-पिता के साथ विचार-विमर्श यह समझने के लिए आवश्यक है कि वे अपने बच्चों की कैसे मदद करे। हाइब्रिड लर्निंग के प्रभावी तरीकों को विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को पढ़ाने के आम और नए तरीकों को साथ में लागू किया जा सकें। असर 2021 की सोलहवीं वार्षिक रिपोर्ट यह भी कहती है कि परिवार में स्मार्टफ़ोन होने पर भी वह अक्सर बच्चों के उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं होता। भविष्य में बनाई जाने वाली डिजिटल सामग्री और रिमोट लर्निंग की योजनाओं में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए।
यह सर्वेक्षण फ़ोन से पहले लॉकडाउन के अठारह महीने बाद, सितंबर-अक्टूबर 2021 में यह पता लगाने के लिए किया गया कि महामारी की शुरुआत के बाद से 5-16 आयु वर्ग के बच्चे घर पर कैसे पढ़ रहे हैं, और विभिन्न राज्यों में अब विद्यालय खुलने पर परिवारों और विद्यालयों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हैं। असर 2021 25 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में संचालित किया गया। यह सर्वेक्षण कुल 76,706 घरों और 5-16 आयु वर्ग के 75,234 बच्चों तक पहुंच पाया। साथ ही, असर ने 7,299 प्राथमिक कक्षाओं वाले सरकारी स्कूलों के शिक्षकों या मुख्य अध्यापकों का सर्वेक्षण किया।
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e56adb1e4a9d449bf8ce9fe59413b08fd37d73be1bb9d24a9f1d9cdfb6fed401 | pdf | इर्दगिर्दके पदार्थोंका भी कुछ भाग दिखाई पड़ता है । ( २ ) जब हम कोई पदार्थ दोनो नेत्रोसे देखते है तब, यदि दाहिने नेत्रको बंद करके बांये नेत्रसे पदार्थको देखने लगे, और यदि वह पदार्थ ज्यादह नज़दीक हो तो ऐसा भासमान होगा, कि वह बांई ओरको यानी विरुद्ध दिशाको हट गया है । और यदि वह पदार्थ दूर हो, तो वह ज्यादह दाहिनी ओरको हटता हुआसा भासमान होता है। इसी तरह बाये नेत्रको बंद करके दाहिने नेत्रसे देखे तो नजदीक का पदार्थ दाहिनी ओरको और दूरका पदार्थ बाई ओरको हटता हुआसा भासमान होगा । दोनो नेत्रोसे देखा हुआ पदार्थ बराबर बीचमे दिखाई देगा। यानी एकही पदार्थ तीन अलग अलग जगहमे दिखाई पडता है; दोनो नेत्रोसे देखाहुआ पदार्थ एक खास जगहमें दिखाई पडता है और प्रत्येक नेत्रसे देखा हुआ, अलग अलग जगह दिखाई पडता है । ( ३ ) एक नेत्रगोलक को अगली से उपर या नीचे की ओरको दबानेसे उस नेत्रकी कनीनिका ऊपर या नीचेकी ओरको जायेगी और दोनों नेत्रोसे जो पदार्थ एकसा दिखाई पडताथा वह अब दो पदार्थों जैसा भासमान होगा। इसका कारण यह है, कि पहले दोनो नेत्रोकी दृग्रेषाएँ एकही पृष्ठपर एकही जगहमे मिलती थी । लेकिन एक नेत्रको ऊपर या नीचे की ओरको दबाने से दोनोकी दग्रेषा एक जगह नहीं मिलती बल्कि वे अलग अलग हो जाती है । ऊपर ढकेले हुए नेत्रकी दृग्रेषा ऊपर जायेगी और पदार्थ ऊपर दिग्वाई देगा । अर्थात कोई भी पदार्थ दोनो नेत्रोसे एकहीसा मालूम होने के लिये दोनोकी दृग्रेषाएँ एक पृष्ठमे होना आवश्यक है । युक्लिडका यह सिद्धात है, की जब दो सीधी रेपाऍ एक दूसरी को काटके पार जाती हैं, तब दोनो रेपाऍ, तथा उनसे बने हुए कोण और त्रिकोण एकही पृष्ठमे रहते है ।
अपनी दोनों दृष्टिरज्जुऍ और उनकी नालियां मस्तिष्क में एक बिन्दुपर मिलती है । जो ऊपरके सिद्धान्त के अनुसार एकही पृष्ठमे होती हैं । दोनो दृष्टिरज्जुएँ और उनकी नालीया जब नेत्रगोलक में जाती है, तब उनके जाले बन जाते है। इन जालोका अग्रभाग स्फटिकमणिके परिधि भागके चारोओरको फैल जाता है । इससे यह स्पष्ट है, कि कनीनिका, दृष्टिरज्जुओका मूल और मस्तिष्कके सामनेकी ओरका बिन्दु ( जहा ढोनो दृष्टिरज्जुएँ एक दूसरीसे मिलती है ) ये तीनो एकही पृष्ठम होते है । मस्तिष्क के सामनेसे दोनो दृष्टिरज्जुएँ एकही पृष्ठमेंसे आगे जाती है, और पूरा नेत्रेन्द्रियव्यूह एकपृष्ठमे होता है । अर्थात दोनो कनीनिकाये नीचे ऊपर नही होती, बल्कि एकही पृष्ठमे होती है और इसी है कारणसे दोनो नेत्रोकी सज्ञावहां दृष्टिरज्जुओसे कोई पदार्थ द्विधा न दिखाई पडे इसलिये मस्तिष्क के सामने से एकही विन्दुसे वे निकले ऐसी योजना की गई है ।
दोनो नेत्रोकी दृष्टिरज्जुएँ मस्तिष्कके स्वतंत्र भागोसे निकलती है । लेकिन आगे बढ कर पहले भीतरी ओरको घुमकर परस्परसे मिलती है और फिर अपने अपने क्षेत्रकी तरफ जाती है। यदि भीतरी ओरको न घुमकर परस्परसे मिले विना सींधी वे नेत्रको जाती तो उनकी दो रज्जुएँ हो जाती । सिवाय इसके मस्तिष्क की रज्जुमेसे दोनों नेत्रोंकी तरफ बहनेवाली सारी वातशक्ति, एक नालीपर चोट आने से, या एक नेत्र बद करनेसे या उसका नाश होने से दूसरे नेत्रमे जायेगी । ग्यालनके मतानुसार उसको दुगुनी
वातशक्ति मिलनेसे दृकशक्तिकी तीव्रताभी बढजाती है यह इस रचनाका दूसरा फायदा है । ईश्वरनिर्मित कुछ वस्तुओके असली और गौण ऐसे दो कार्य होते है । दृष्टिरज्जु की नालीयोके पारस्परीक मिलनेसे पदार्थ द्विधा दिखाई न पड़े यह उसका असली कार्य है
ग्यालनने नेत्रगोलकके शरीरज्ञान की प्रगति की थी। इतनाही नहीं, बल्कि नेत्रगोलकके विकृत शरीर का संशोधन, और नेत्ररोगोकी चिकित्सा ये दोनो भाग उसके पूर्ववर्ती किसिभी लेखकसे प्रगतिपर थे ।
ग्यालनका नेत्ररोगका विकृत शरीरः- (Pathology of the Exe ) ग्यालनका यह मत था, कि अनेक प्रकारके नेत्रविभ्रम सिर्फ नेत्ररोगोंसे ही नहीं पैदा होते । लेकिन मस्तिष्ककी विकृत अवस्था, आमाशय की ओर अन्नमार्ग नलिकाके मुखकी विकृत अवस्था होने से भी दृष्टिविभ्रम होता है । इन विकृत अवस्थाओमे पैदा होनेवाले दृष्टिविभ्रमका अपक्व मोतीयाबिन्दुम होनेवाले दृष्टिविभ्रमसे अलग निदान करना आवश्यक है। मोतीयाबिन्दुसे होनेवाला दृष्टिविभ्रम एक ही नेत्रमें जबतक विकृत अवस्था रहती है तबतक होता है। इसके विपरित मस्तिष्ककी विकृत अवस्था, या आमाशय की विकृत अवस्थामे पैदा होनेवाले दृष्टिविभ्रम दोनो नेत्रोमें होते है । मोतीयाबिन्दुकी वृद्धि के साथ कनीनिकामे अनेक रग दिखाई पड़ते है । और तीसरी बात यह होती है, कि मोतीबिन्दुमं दृष्टिविभ्रम एकदम नष्ट नहीं हो जाता ।
ग्यालनकी सर्व साधारण विकृत शरीर संबंधी की कल्पना उनकी शरीर की विविध द्रव कल्पनामे मिलती जुलती नहीं है। लेकिन खास इन्द्रियके विकृत शरीर संबंधी की उनकी कल्पना बहुत प्रगतीपर मालूम होती है। क्योंकि उन्होंने प्राणियोंका शवच्छेदन किया था। और भिन्न भिन्न प्रयोगोके शवच्छेदनसे प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया था। ग्रैवेयिक पाचवी सुषुम्ना मज्जारज्जुको काटनेसे ऊपरकी तथा नीचेको स्पायनेटस स्नायूओंका स्तभ होता है यह बात उनको ज्ञात थी ।
ग्यालनने नेत्ररोगोंके तीन वर्ग किये हैः-- (१) स्फटिकमणि की यानेन्द्रिय अ भागकी विकृतिः (२) मस्तिष्क और दृष्टिज्जु की याने दृकशक्तिको विकृति ( दुकशक्ति मस्तिष्कमे दृष्टिरज्जु द्वारा नेत्र में जाती हैः ) (३) स्फटिकमणि के सिवाय नेयके अन्य घटकोंकी विकृति ।
१) स्फटिकमणिकी विकृति आठ होती है ( इनका वर्णन जिके वर्णनसे मिलता है ) स्फटिकमणि स्थानभ्रष्ट हो जाता है तब वह ऊपर या नीचे की ओरको विच जानेसे द्विधा दर्शन पैदा होता है। मोतीयाविन्दुकी प्राथमिक अवस्था में उसको भीतर ढकेल सकते है ।
( २ ) मस्तिष्क और दृष्टिरज्जुकी विकृति भी आठ प्रकारकी होती है । और वे एक दूसरीसे अलग अलग होना सभाव्य है ।
( ३ ) कनीनिका, तथा कनीनिका, और स्फटिकमणि के बीचके अवकाश में के वात और चाक्षुषजल की रचनामें फर्क होनेसे स्फटिकमणिको बाह्य पदार्थोंका ज्ञान नहीं होता ।
चाक्षुषजल पूरी तौरसे जमजाय तो ( मोतीयाबिन्दु, हायपोक्लायमा, क्याटराक्ट ) दृष्टि पूरी नष्ट हो जाती है । कनीनिकाका चाक्षुषजलं पूरा न जमजाय तो दृष्टिमाद्य और स्व दृष्टित्व पैदा होता है । कनीनिकाके कुछ भागका • चाक्षुषजल पूरी तरह न जमजानेसे रोगीको दृष्टिविभ्रम होता है और उसके नेत्रोंके सामने मच्छर निशान आदि जैसे आकार भासमान होते है । नेत्रगोलकके नैसर्गिक वातमे फरक होनेसे दृक्शक्तिमें फरक होता है। वात स्वच्छ हो लेकिन उसका परिणाम ज्यादह हो तो उसको सिर्फ दूरका स्पष्ट दिखाई पड़ता है । वात स्वच्छ हो लेकिन उसका प्रमाण कम हो तो रोगीको सिर्फ नजदीकही दिखाई पडता है । दूरका नही दिखाई पडता । वात ज्यादह हो लेकिन वात ज्यादह द्रवरूप हो तो रोगीको दूर दिखाई पड़ता है लेकिन अस्पष्ट मालूम होता है । यदि वह कम हो तथा ज्यादहद्रवरूप हो तो कुछ दिखाई नही पडता । इनके सिवाय नेत्रच्छदोके पक्ष्म गिर जाना, नेत्रो में के शल्य, शुक्लास्तरका दाह, पोथकी, अर्म, तारकापिधान के क्षत, आदिरोग और उनकी चिकित्सा आदि सबका वर्णन दूसरे भागमें दिया है ।
ग्यालनकी कुछ नेत्ररोगोंकी चिकित्साः- शुक्लास्तर ( शुक्लपटलके आस्तर ) के दाहके लिये दाहशामक सौम्य दवाओका उपयोग करना । माके दूधकी पट्टी रखनेको कहा है । ताम्बा, केशर, कथ्था और शहदका इस्तेमाल बताया है । तारकापिधानके क्षतके लिये जस्तके फूलका उपयोग लिखा है । इसकी चिकित्सामे ध्यान मे रखनेकी असली बात यह है कि क्षत को सफा रखना चाहिये जिससे नष्ट हुआ भाग आपीआप भर जाय । अर्म शल्य जैसा होता है इसलिये उसको निकाल डाले । नेत्रच्छदको उलटके पोथकीको खुरचना ।
ग्यालनका नेत्रविज्ञानशास्त्र कितनाही सदोष क्यों न हो, और ग्यालन हिपोक्रिटीज जैसा कल्पक नही था तो भी वह उमदा वैद्य था इसमें कुछ संशय नही । मध्ययुग कालतक उसको सबसे अच्छा वैद्य मानते थे यह निश्चित है ।
बायजेनटाईन ग्रीक नेत्रवैद्यक
ग्यालनके मृत्यु के बाद बायजेनटाईन ग्रीक वैद्यक का उदय हुआ। इस कालमे ग्रीक वैद्यक का रक्षण हुआ था । इस कालमें बायजेनटाईन ग्रीक वैद्यकमे मशहूर लेखक बहुत कम हुये थे। उनके लेख साधारणतया हिपोक्रिटीज और ग्यालन के ग्रंथो की नकल थी । यद्यपि उन्हो ने वैद्यक शास्त्रकी प्रगतिमे कुछ ज्यादह काम नहीं किया था तो भी उन्होंने ग्रीक वैद्यकको कायम रखा यह उनका महत्वपूर्ण कार्य था ।
ग्यालनके पश्चात मशहूर तीन वैद्य हुए. - अॅन्टीलस, मारसेलस एम्पीरिकस और आरबेसियस ये उनके नाम थे ।
अॅन्टीलसः -- तीसरी सदीमे हुए और उनके ग्रथ बहुत थे । एन्युरिझम की उनकी शस्त्रक्रिया मशहूर है । मोतीयाबिन्दुको बाहर निकालने की क्रियाकी शोध उन्होंने सबसे पहले लगायी ऐसा कोई कोई मानते है । |
9e90d6a2aaad7cc72d460c434506f5c4a5f0a089f61c383b7c2d57444bc381d5 | pdf | धर्मशालाम अपिकुल
मुक्तेसरसे हम काठगोदामके अपने पुराने रास्ते पर आये । भीमतालके फिर दर्शन किये, और हिमालयके पहाड़से अंतरकर मानवी सृष्टिमें प्रवेश किया। रास्ते में पूर्व परिचित स्थान देखकर मनमें कुछ और ही भाव अत्पन्न होते थे। अलमोड़ा जाते समय हिमालयका प्रथम दर्शन हुआ था। अितनी विशालता और भुत्तुंगता पहली बार ही देखी थी । लौटते वक्त यह सब परिचित-सा लगता था। फिर भी असका रस कुछ कम नहीं हुआ था। पहलेका रस अपूर्वताका था, अबका रस परिचयका था । जाते समय जिन-जिन झरनों और वृक्षोंने हमारा सत्कार किया था, अनसे फिर मिलते समय हृदय में कृतज्ञताको अमंग अठे बिना कैसे रहती में परिचित वृक्षोंसे मिला। परिचित झरनोंका, स्वाभाविक तृष्णासे नही, किन्तु प्रेमतृष्णासे, पान किया। जाते वक्त जिन पुलों पर बैठकर हमने थकावट दूर को थी, अन पुलोंके फिर आने पर भुन पर अंक-दो मिनट न बैठते, तो अपनेको कृतघ्नता दोपके पात्र समझते ।
रास्ते में स्वामीके साथ संस्कृत साहित्यको चर्चा शुरू हुआ। मैने गगनचुम्बी पेड़ोंके झुंडोंकी यह घनी झाड़ी देखकर मुझे बाणभट्टको साहित्य-दौलीका स्मरण हो आता है। हर स्थानमें अपूर्वता और अदारता भरी हुआ है। परन्तु वह अतिशयताके कारण अपना सौन्दर्य छिपानेमें ही सप जाती है । " जिसके बाद संस्कृत कवि और राजाश्रयका सवाल छिड़ा । कालिदास राजाश्रयी कवि था, परन्तु भवभूति लोकाश्रयी यदि हुआ। कालिदास पुष्पक विमानमें बैठकर अथवा मेघका वाहन बनाकर विहंगम दृष्टिसे भारतवर्षका अवलोकन करता है। लेकिन भवभूति घरकलधारी राम, लक्ष्मण और जनक-तनया के साथ दण्डकारण्य और पंचवटीके अरण्योंमें मे रास्ता निकालता हुआ धीरे-धीरे पैदल चलता है। दोनोंको शैलीमें यही भेद है। भवभूतिको शैली राजकुमारकी तरह
'धीरोद्धता नमयतीय गतिधंरित्रीम्' है, जब कि कालिदासको नशैली शकुन्तलाके भावकी नाओं 'न विवृतो मदनो न च संवृतः' जैसी है। वनश्रीको देखकर संस्कृत कवियों की याद आयी। और अस प्रसंगसे लोकाश्रयका विचार करते हुये राजाश्रयकी निन्द्य रीतिसे निन्दा करनेवाले बिल्हणकी याद आयी। परन्तु असी क्षण स्मरण हुआ कि संसार में विक् साघकोंको सस्कृतका जैसा काव्यरग शोभा नहीं देता। दोपहर हो गयी थी । सूर्यनारायणने और क आप सोल दी थी । बाबाजीने महा पिपासितं काव्यरसो न पीयते । नीचे घाटीमें रामगंगा प्रचण्ड गड़गड़ाहट करती हुभी दौड़ रही थी। परन्तु असका पानी हमारे लिये तो दशरत्कालके मेघके समान दुष्प्राप्य ही था । स्वामी बोले - "जिम जंगलको शोभा देखकर मुझे बाणभट्टकी कादम्बरीका स्मरण नहीं होता, बल्कि मुझे तो रामगंगाको यह गर्जना सुनकर कुलाया स्टेशनके दग-श्रीम अँजिनोंका कोलाहल याद आता है।
एजिनका नाम निकलते हो तुरन्त स्मरण हुआ कि प्राकृतिक सृष्टि छोड़कर हम मानवी सृष्टिकी तरफ अग्रसर हो रहे है। यदि यहा अग्निरथ के समयका ध्यान न रमा तो काम न चलेगा। मैंने अण्टीसे पड़ी निकालकर देखी और बांबाजीसे कहा "बाबाजी दौड़ लगाओ, नहीं तो हम समय पर काठगोदाम नहीं पहुंच पायंगे।" तीनो दौड़े, और मुश्किलसे स्टेशन पहुंचे ही थे कि जिसने में रेलगाड़ीने सीटी दी और वह हमारे देखते हंसती-हंसती निकल गयी। जरा-मी देरके लिये गाड़ी चूक गये । हमें रेलगाडीके निकल जानेका कुछ भी बुरा न लगा। लेकिन हमें परेशानीगे बचाने के विचारसे हमारा जो कुलो आगे दौड़ता आया था युसका मुह अंतरा देगकर हमें दु.स हुआ । फिर भी हम हंस पड़े, और धुमसे "चलो भाओ, अभी तो काफी दिन है। यहां पड़े रहनेसे तो बेहतर है कि हल्द्वानी चलकर रात वहीं बितायें ।" हेलदानी पाउगोदामगे पहला स्टेशन है। व्यापारको अंक छोटी-सी गण्डी है। यहां पैदल जा पहुंचे। 'माया-पिया और ( स्वप्नसृष्टि पर) राज किया। '
स्वप्नसृष्टिमें जानेंगे पहले कल्पना गृष्टि में जानेदा अंक प्रसंग आया। हम धर्मशाला में जगह प्राप्त करके गोजी बना रहे थे। धर्मशाला
धर्मशालामें अषिकुल
यानी विविध जन-समाज । वहां तीनों लोकोको चर्चा चलती है। धर्मशाला में वैरागी आते हैं, व्यापारी आते हैं, सरकारी अफसर आते है, वे पुराने जमींदार घोड़े पर पुराना जीन कसकर तीर्थयात्रा करने आते हैं जिन्हें यह सुध नहीं कि पुराना जमाना बीत चुका है; असे नौजवान भी आते हैं, जो जानते तक नहीं कि पुराने जमाने जैसी कोओ चीज थी भी या नहीं; भिखारी भी आते हैं, और भिखारियोंसे भी गये चीते पुलिसवाले आते है। मुसाफिर आपसमें अथवा अपने कुलियोसे, ग्राहक दुकानदारोंसे, दुकानदारकी स्त्री अपने लड़कोसे, पुलिसके जवान भिखारियोसे, और कुत्ते अंकदूसरेसे आठ बजे तक लड़ लेते है । आठ बजने पर पहले क्षुधा शान्त होती है, बादमें चूल्हे शान्त होते हैं। अधिकांश दीये भी शान्त होते है; (क्योंकि अंक पैसेमें दीया, बत्ती और तेल देनेवाले दुकानदारके पास आठ बजे तकका ही बजट होता है।) और जिसके पश्चात् विरोध शान्त होकर वार्तालाप शुरू होता है। धर्मशालाका यह आन्तर राष्ट्रीय कानून है कि आठ बजेके बाद अंक बार सुलह हो जाने पर कोओ किसीके साथ न लड़े।
तुरन्त ही मुसाफिर मुसाफिरमें वार्तालाप शुरू हो जाता है। बावा लोग देश-देशान्तरका हाल और असके साथ अपनी टीका-टिप्पणियां पेश करते है। जहां लड़के हों, वहां बादशाह और बीरबल तो जरूर होंगे हो । स्त्रिया हमेशा यात्राकी ही बातें करेगी, और अगर अंक हो गांव की हों, तो सास-बहके सनातन संग्रामकी बातें करेगी । हिन्दुस्तान के किसी भी प्रान्तकी स्त्रियां दूसरे किसी भी प्रान्तकी स्त्रियोसे धर्मशालाम बातचीत कर सकती हैं। भाषाफी अड़चन तो सुशिक्षित लोगोंके लिये होती है। स्त्रियां यानी पुरानी दुनिया। यहां विचार, भावनायें, बहम, रोतिरिवाज और आदर्श सच अंक ही होते है। फिर बातचीतमे कोनमी बाधा हो सकती है ? जब दो अंग्रेज मिलते हैं, तो वे अग दिनकी हवाके बारेमें चर्चा करने लगते हैं; अिसी प्रकार जब दो स्त्रिया मिलती है, तो तुम्हारे बालवच्चे कितने हैं, लड़किया कहा कहां व्याही है, अन्हें ममुरालमें मुख है या दुः, परकी पुरसिनने तीर्थयात्रा को है या नहीं, आदि बातें होने लगती है। दुकानदारको स्त्री जिस चर्चामें शामिल होकर अपने दु.सको बहानी पांच हजार छह मौ बारहवी वार गजल आंखों सविस्तर,
ज्योंकी त्यों सुनाती है। और अधिकतर भुसका वर्णन अकारथ नहीं जाता। प्रेमल यात्री - दुष्ट दुकानदार द्वारा ठगे गये यात्री -- दुकानदारको स्वोरा दुःख देखकर और मनमें जिस बातका सन्तीय मानकर कि वह भी अन्होंकी तरह दुकानदारसे द्वेष करती है, विदा होते समय असे कुछ-न-कुछ दे जाते है। दुकानदारोकी भी हरञेक प्रान्तके विषय में अपनी राय बनी होती है, और वे भी असे ठीक बाबा वैरागियों की तरह ही स्पष्टता से प्रकट कर देते हैं; क्योंकि पीनल कोडकी कोओी भी धारा बाबा-चैरागियों तया दुकानदारोंके लिये नही है।
जब देशी रियासतोके रखीस धर्मशालामें टिकते हैं, तो रियासतोंके तारतम्यको चर्चा छिड़ती है, और दरबारके भीतरी षड्यंत्र तथा प्रपनोश भेद वे 'सिर्फ आपसे' कहते हैं । ये तिने वेवफा नहीं होते कि चाहे जिससे अपने दरवारकी किम्वदन्तियां फंहते फिरें, लेकिन 'आप' तो खानदानी आदमी ठहरे। 'आपसे' असी बातें कहने में भला गया हर्ज हो सकता है ? हमें अंक देशाभिमानी और सनातन धर्माभिमानी व्यापारी पड़ा। हस्तिनापुरकी तरफ अनका अपना अक 'गुरुकुल' या 'गुरुकुल' नही 'अपिकुल'। 'गुरुकुल' तो आयसमाजियोंके होते है। मतञेव रानातनियोंके तो अषिकुल ही हो सकते हैं, और वैयोंके आचार्यकुल । बाबा-वैरागी हों तो अनके 'मुनि-मण्डल' या 'साधु-आश्रम' होते हैं। और गंगापुत्रोकी संस्था हो, तो वह होगी 'पण्डाकुमार महा विद्यालय' । परन्तु यह सब शान मुझे हरद्वार जाने पर हुआ। हस्तिनापुरके व्यापारीने कहापार साल ही हमारा भूषिकुल स्थापित हुआ था। पर अब तक हमें कोभी अध्यापक नहीं मिला है। अंक ब्राह्मण शिवाल काम चला रहे है; परन्तु लड़के असे हैं कि अनके कान काट । आपके जैगा कोअी अग्रेजी पढ़ा-लिखा -- प्रेज्युञेट - साधु यहां आवे तो लोगों पर अगर पड़े और प्रचारके लिये जाने पर फण्ड भी अच्छा फिट्ठा हो । आप आ जायं तो हमें रोज आपके दर्शनोंका लाम हो, 'भवन्चन्य' कढ जाये, और गिड़ी आर्यसमाजी अदरक सापे हुये चूहेकी तरह चुप हो जाएं। हमने सृषिकुल मिलिये स्थापित किया है। हमारे यहां दो आरामाजी प्रचारक आये थे। वृन्होंने सनातन धर्मको निन्दा करना शुरू किया । |
839ad7acb3e78ccf4885a65c2e9df4015d22c6de50978e360a9298f0e4e9094e | pdf | मेरे इस कामसे उसकी बड़ा क्रोध आया और मैंने सुना कि उसने इसमें अपनी बड़ी मानहानि समझी। उसने यहांतक कहा कि क्या मैं भिक्षा थोड़े ही मांगता था ? इत्यादि । उसने रोष में आकर जो रुपया मैंने भेजा था सब लौटा दिया। मैं समझता हूँ कि उसने यह समझकर लौटाया होगा कि मैं उसकी अप्रसन्नताका ध्यान करके जितना उसने मांगा था वह सब भेज दूंगा। कुछ दिनों पीछे उसकी एक चिट्ठी मेरे पास फिर आई जिसमें फिर उतना ही रुपया मांगा था। मैं पहले केसे झगड़ेसे बचना चाहता था अतएव जितना रुपया उसने मांगा था उसके पास भेज दिया। जैसे मालिक होते हैं वैसे हो उनके नौकर भी हुआ करते हैं। नौकरने कहीं अपने मालिकसे सुना होगा कि मैं जापानी हूं अतरव वह भी मेरे पास आया और उसने भी पचास येन मुझसे माँगे । उसको भी मैंने पचास येन दे दिये और समझा कि अब बारम्बार ये लोग मुझे तंग न करेंगे ।
इस समय मैं पढ़नेसे जो समय बचता था उसमें पुस्तकें इकट्ठा किया करता था क्योंकि मेरे पास इस समय रुपया बहुत हो गया था। यह पुस्तकें किसी पुस्तक बिक्रेताके पास नहीं मिलतीं। इन पुस्तकोंके ब्लाक किसी न किसी विहार में रखे रहते हैं और जिसको उनके छापनेका अधिकार है उसको पुस्तकका मूल्य देनेपर उन्हीं ब्लाकोंसे वह छापकर दे दिया जाता है। इस पुस्तकोंकी छपाईमें कुछ तो भेंट दो जाती है जो कि बहुधा टसरी रेशम होता है। इसके अतिरिक्त पुस्तकोंकी छपाई दी
सिक्का और छापनेके ब्लाक
जाती है जो कि सौ तख्तोंके लिये पच्चीस सेनसे एक येन और बीससेनतक हुआ करती है। छपवानेकी आशा मिल जानेपर छपवानेवालेको ही छापनेवाले भी लाने पड़ते हैं। छापनेवालोंका प्रतिदिनका वेतन प्रायः पचास सेन हुआ करता है।
इन लोगोंका काम कुछ ऐसा बेढंगा हुआ करता है कि उसमें बहुत देर लगा करती है। कागज जो इन पुस्तकोंके छापनेके काममें लाया जाता है वह वहींके वृक्षसे बनाया जाता है जिसकी जड़ और पत्तं विषैले होते हैं। यह कागज़ बहुत मजबूत होता है परन्तु रंगका कुछ साफ नहीं होता ।
पुस्तकें बेचनेवाले तिब्बतमें अपने घरपर नहीं बेचते हैं वे शाक्य मुनिके मन्दिरके पश्चिम द्वारके सामने के मैदान में रखकर बचते हैं। मैंने लासा में ऐसे पुस्तकें बेचनेके दस स्थान देखे । शिगात्जेमें दो अथवा तीन हैं। और २ देशोंमें पुस्तकविक्रेता अपनी पुस्तकों को खोलकर रखते हैं कि जिससे उनके खरीदार देखते ही पहचान लें परन्तु यहां उनको ढेर करके रक्खे रहते हैं।
जो पुस्तकें मैंने मोल ली थीं अथवा मूल्य देकर छपाई थीं वह पहले मेरे उस मकान में रक्खी थीं जो कि मुझे सेरा विहार में मिला था। परन्तु मेरे कमरेके पासवाले विद्यार्थी मेरी पुस्तकोंका ढेर देखकर विस्मित होकर कहते थे कि जितनी पुस्तकें तुम्हारे पास है इनकी तिहाई पुस्तकें भी तिब्बतके बड़ेसे बड़े आचार्य पदवी धारी पण्डितके पास भी नहीं देखीं। तुम इनको अपने घर कैसे ले जावोगे १. मैं उन सबको अपने मित्र अर्ध३५०
सचिवके घरपर उठा लाया जिससे उन लोगोंको शंका करनेका कोई अवसर न मिले ।
छियासठवां परिच्छेद ।
४ जनवरी १६०२ को यहां एक उत्सव था। यह दिन एक बड़े भारी लामा सुधारकका मृत्युदिवस था । उनका नाम जीत्सांग खापा था । इस उत्सवको दीपोत्सव कहा जा सकता
। इस उत्सवकी रातमें लासा और और नगरोंमें सब छतोंपर दीपक जलाये जाते हैं। विहारोंके ऊपर सहस्रों घीके दीपक उस रातको जलते दिखलाई देते हैं यह सांगजोका दीपमाला उत्सव दो सप्ताहतक रहता है । इस उत्सवमें क्या लामा और क्या गृहस्थ सब ही आनन्द मनाते हैं। नाच रङ्ग होता है और भोज होते हैं। ऐसा कदाचित् ही किसी देशमें देखा जा सके ।
इस उत्सव में एक और भी नई रीति प्रचलित है वह यह है कि जो मनुष्य किसी दूसरेसे पदवीमें छोटा है वह अपने बड़ेसे शिक्षा मांग सकता है। बड़े बड़े पदाधिकारी भी इस समयपर. भेटको भिक्षा मांगनेमें लज्जित नहीं होते। मेरे यहां भी बहुतसे लोग मिलनेको आये थे और मुझे भी प्रायः पांच येन खर्च करने पड़े थे। मेरे एक मित्रने मुझसे कहा कि पर साल इसी उत्सव
पर तुमको इससे तिगुना खर्च करना पड़ेगा क्योंकि तुम्हारी जान पहचान बहुत बढ़ती जाती है।
विहार में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्तिको रातको बारह बजेसे सबेरे तक जागरण करके धर्मपुस्तक पढ़नी पड़ती है।
सेरा विहार में इस उत्सवमें मुझपर वस्तुतः बड़ा प्रभाव पड़ा, लामा लोगों की गम्भीर मन्त्रपाठकी ध्वनिका मुझपर बड़ा ही प्रभाव हुआ । प्रायः सभी बातें गम्भीरता लिये होती है । ऊंचे विशाल भवनमें फिलमिल २ करते हुए सुन्दर २ पर्दे लटकते होते हैं। थम्भोंपर लाल ऊनकी पट्टियां लिपटी होती हैं। जिनपर सफ़ेद और लाल फल कढ़ने होते हैं। दिवारों और थर्मोपरके ऊपरके भागोंपर तिब्बती ढंगके सुन्दर चित्र बने होते है। इन सबको सहस्त्रों घृत दीपकोंसे उज्ज्वल किया जाता है। दीपक शुद्ध उज्ज्वल किरणोंसे चमकते होते हैं। उनको देखकर गैस लैम्पोंकी याद आजाती है।
ऐसीशुभ पवित्र परिस्थिति में बैठकर पवित्र धर्मग्रन्थका श्रवण करते हुए हृदय में पवित्र भावोंका उदय होने लगता है । ऐसा प्रतीत होता था मानों मैं बुद्धलोकको चला गया ।
यह सांगजोका उत्सव दान पुण्यका भी उत्तम अवसर है। छोटे २ पुरोहित और शिष्य सबेरे ही उठकर भिक्षाके लिये निकलते हैं। इस समय लोग श्रद्धापूर्वक खुले हाथों भिक्षा देते हैं। परन्तु पुरोहित इस अवसरका बड़ा दुरुपयोग करते. है यह उनके लिये लजा जनक बात है। कोई २ एक ही दिनमें
दो दो और तीन तीन बार भिक्षा मांगने निकलते हैं। एक और अचभ्भेकी बात है कि जो लामा अनुचित कामोंक रोकके लिये नियत है वह ही उन अनुचित भिक्षाओंको ग्रहण करते हैं। यदि कोई शिष्य दूसरी बार इस प्रकारकी भिक्षाके लिये जानेसे इन्कार करे तो उसको दण्ड दिया जाता है और कोड़ेतक लगाये जाते हैं ।
यह काम बहुधा योद्धा लामा ही किया करते हैं जिनका वर्णन पहले किया जा चुका है। इन लोगोंका फैशन और लामाअसे विभिन्न होता है। कोई तो शिरको मुँडा हुआ रखते हैं और कोई कनपट्टियोंपर दोनों ओर पट्टे रखवाते हैं। विहार के लामा गुरु इन पट्टोंको बहुत बुरी दृष्टि से देखते हैं और यदि उनकी दृष्टि पड़ जावे तो तुरन्त ही पकड़ २ कर उन बालोंको खींच लेते हैं जिसके कारण उस योद्धा लामाकी कनपट्टियोंसे रक्त बहने लगता है और कनपट्टी सूज जाती है। परन्तु इस दण्डको भी वे लोग गर्वकी दृष्टि से देखते हैं और बाजार में सूजी हुई कनपट्टियां दिखलाकर अपनी दृढ़ताका परि चय देते हैं। तथापि वे लोग उन बालोंको अपने गुरु इत्यादिकी दृष्टिसे बचाये रखते हैं। इन लम्बे २ वालोंको वे कानोंके पीछे कर लेते हैं अथवा काजलको धीमें मिलाकर मुखपर पोत लेते हैं। पहले तो मैं यह तमाशा देखकर बड़ा विस्मित हुआ समझ में आ गया।
मुझे यह कहते
बड़ा शोक है कि योद्धा लामाका रूप हो
गुण्डोंका सा नहीं होता बल्कि वे बड़े अपराध भी किया करते है। पवित्र उत्सवोंकी रातोंमें ही ये भयङ्कर पाप किया करते हैं। शायद भूत प्रेत पिशाचों की येही सन्तानें हैं।
ये छोटी २ बातों में बड़े सचेत रहते हैं। वे छोटेसे छोटे कीड़ेकी हत्या से भय खाते हैं। वे विहारकी टूटी हुई ईंटपर भी पैर धरते हुए कांपते हैं। मार्गमें यदि उनको विहारकी टूटी खपरैल या ठीकरा भी मिल जाय तो उसकी प्रदक्षिणा करते हैं और उसको बायें करके कभी नहीं निकलते। इतनेपर भी वे और उनके गुरु भो बड़े पाप कमाया करते हैं जिनका उनको तिलभर भी पश्चात्ताप नहीं होता। सचमुच वे मच्छरोंपर दया करते और हाथी तकको पचा सकते हैं ।
एक डुकनायन नामका बड़ा ही विनोदी लामा था । यह एक बार मार्ग में एक नये सम्प्रदायके पुरोहितसे मिला । डुकनायन एक ईंटका टुकड़ा चुनकर उसकी प्रदक्षिणा करने लगा।
उसके बाद वे एक बड़े पत्थर के पास आये जिसके ऊपर गुजर कर जाना कठिन था। डुकनायन कुछ पीछेको भुका अ तुरत उसके ऊपरसे कूद गया । डुकनायनके इस व्यवहारक देखकर उसका साथी हैरान हो गया । वह सोचने लगा कि डुकनायनने छोटेसे पत्थरकी तो प्रदक्षिणा की, बड़े पत्थरसे कूद गया। इसका उसने कारण पूछा। डुकनायनने उत्तर दिया कि "मैं नये सम्प्रदायवालोंको एक पाठ पढ़ा रहा हूं। वे छोटी छोटी बातोंपर तो बड़ा ध्यान रखते हैं और महा पातकोंके करनेमें
तिलभर नहीं हिचकते। ¨ यह सुनकर उसका साथी बड़ा शर्माया । यह कथा प्रायः सर्वत्र सत्य मानी जाती है। ठीक इसी प्रकार सांगजोका उत्सव भी ऊपरसे तो बड़ा शानदार होता है परन्तु इसकी आड़में बड़े घोर कर्म होते हैं। इस उत्सवमें योद्धा लामा और अन्य नोची जातिके लोग अपनी धोर इच्छाएं पूरी किया करते हैं ।
सरसठवां परिच्छेद
देशकी उन्नति और समृद्धिका स्त्रियोंकी स्थिति के साथ बड़ा भारी सम्बन्ध है। मैं इसपर भी एक परिच्छेद लिखना चाहता हूं। लासाकी स्त्रियोंको तिब्बत देशकी आदर्श महिला माना जाता है। यहां की स्त्रियों की पोशाक में एक अद्भुत बात है कि उनके पहननेके कपड़ों और पुरुषोंके कपड़ों में कुछ भेद नहीं है। जैसे कपड़े पुरुष है वैसे स्त्रियां भी पहनती है। केवल भेद है तो इतना
कि स्त्रियां पुरुषसे कुछ अच्छे चटकदार कपड़े पहनती हैं । दूसरा भेद यह है कि स्त्रियां अपनी कमरमें एक पट्टी बांधती है जो कि प्रायः १॥ इंच चौड़ी होती है। कोई कोई एक रेशमी पट्टीको तीन चक्कर देकर लपेट लेती हैं।
लासाको स्त्रियां अपने केश पाशको मंगोलियन स्त्रियोंकी भांति रखती हैं ।
परन्तु शिगात्जे और तिब्बतके और नगरोंमें वैसी चाल नहीं है। स्त्रियोंके शिरपर बाल थोड़े होते हैं अतः वे चीनसे आये हुए कृत्रिम वालोंको शिरपर लगा लेती हैं। शिरके बालोंको आगेसे दो भाग करके उनको गूंथ पट्टियां सवार लेती है और पीछे घोटोसी बनाकर छोड़ देती है। गुर्थी लट्टोंके शिरोंमें लाल अथवा हरा फीता बांधती हैं जिनमें गांठोंकी झालर लगी रहती है। इन फीतोंमें हीरे, मोती अथवा और कोई घटिया दानों की माला भी डाल लेती है ।
मूंगे या लाल मणिका शिरोभूषण भी पहनती हैं जिनमें एक दाना सबसे बड़ा होता है। शिरके बीचमें वे मोतियोंकी एक चन्दुआ पहनती हैं। कानों में सोनेकी बालियां और छातीपर मणिहा पहनती है जोकि प्रायः तीन चार हजार येनका होता है। हाथों में चुड़ियां पहनती हैं। दायें हाथमें सुन्दर शंखकी बनी चुड़ियां और बाये में चांदीकी नकाशीदार चुड़ियाँ होती हैं। यहां की सब स्त्रियां ऊपरसे एक कपड़ा ओढ़ लेती हैं। वह बढ़िया ऊनका बना होता है। उंगलियों में चांदी की अंगूठी पहनती हैं। यदि अमीर हैं तो सोनेकी भी पहनती हैं। जूते भी बहुत सुन्दर लाल अथवा हरे ऊनसे मढ़ हुए पहने जाते हैं।
जैसीकी संसारके और देशोंमें चाल है कि स्त्रियां अपने मुखपर श्वेत पाउडर मला करती हैं यहांकी चाल उससे विपरीत
है। यहांकी स्त्रियां भूरे काले रंगको पाउडर लगाती हैं। उनका विचार है कि उसके नीचेसे असली रंगका
सुन्दरता है।
तिब्बतकी स्त्रियोंके मुखका रंग बहुत अधिक नहीं होता । उनका रौंग प्रायः जापानी स्त्रियों के समान होता है। भेद केवल इतना ही है कि तिब्बतकी स्त्रियां कुछ लम्बी और दृढ़ होती है । जापानी स्त्रियां साधारण कदकी होती है। छोटे कदकी स्त्रियां तिब्बत में बहुत कम मिलेंगी। तिब्बती स्त्रियां अपनी लम्बी चौड़ी खुली पोशाक पहन कर बड़ी प्रभावशाली मालूम होती हैं। अमीर तथा उच्च वंशकी स्त्रियोंके वर्ण जापानी स्त्रियोंके समान ही गोर होते हैं ।
खाम की स्त्रियोंका रंग अवश्य कुछ गोरा होता है परन्तु उनके मुखपर मनोहरता नहीं होती है। वे बातचीत बहुत उदासीनतासे करती हैं। इसके विपरीत लासाकी स्त्रियोंका सौन्दर्य और उनकी बातचीत का ढंग मनोमोहक और चित्ताकर्षक होता है । यह सब होनेपर भी उनमें कोई गौरव और आदरणीय शिष्टता नहीं होती। वे सड़क पर चलते हुए खाते जाने में कोई अस भ्यता नहीं समझतीं। तनिकसी बातपर कुपित होजाना, कोपकी माया करना उनका स्वभाव है । यदि कोई मनुष्य उनकी कड़ी समालोचना करे तो यही कह सकता है कि वे भले घरकी न मालूम होकर चकला घरकी लड़कियां मालूम होती है। अतएव उनको आदर तथा मानकी दृष्टि से देखने की अपेक्षा उनपर दया आती
है। इसके अतिरिक्त वे चरित्रमें भी निर्बल होती है इसका कारण सम्भव है वहांको बहुपतित्व होनेकी प्रथाही हो । यद्यपि तिब्बतकी स्त्रियों में बहुत दोष हैं परन्तु यहांपर मैं दोहीका वर्णन करता हूँ । एक मदिरापान और दूसरा मैला रहना। मैला रहनेकी आदत प्रायः तिब्बत भरमें सर्वत्र है । बहुतसी तो केवल मुंह हाग धोकर ही सन्तुष्ट रहती हैं, शेष शरीरपर तो कभी पानी छूना हो नहीं । उच्च अमीर घरानेकी औरतोंमें यह दोष कम होता है। उनको दिनभर में अपने 'गारका समय भी बहुत मिलता है। ·
यहांकी स्त्रियों में एक विषेश गुण है कि वे घरके काम तथा व्यापार करने में बड़ी चुस्त होती है। मध्यम और निम्न श्रेणी की स्त्रियां व्यापारको अपना पेशा समझती है। यदि वे, विवाह करती है तो स्वामी भी वैसा ही खोजती है जो उनके कामत्रन्धोंमें सहायता दे सके ।
बड़े घरानेकी स्त्रियोंको हाथसे काम काज नहीं करना पड़ता । वह अपने स्वामियोंको सलाह देनेमें बड़ी चतुर होतो हैं और चाहे उनसे सलाह ली जावे या नहीं ली जावे वह सदैव उसे देनेको तत्पर रहती हैं। इन स्त्रियोंका अपने स्वामियोंपर बड़ा प्रभाव होता है केवल इसी कारणसे नहीं कि उनको सम्मति प्रकाश करनेकी छुट्टी है वर वर वह बड़े बड़े मामलोंमें उचित सम्मति दे सकती हैं।
मेरी समझमें संसार में और कोई देश ऐसा न होगा जहांकी स्त्रियोंको इतना कम काम करना पड़ता हो। उनके लिये निय
मित रूपसे कोई काम नहीं है। वह कभी कपड़ा भी नहीं सोतीं। सीना वहां पुरुषोंका काम समझा जाता है। कपड़े की थोड़ी सीभी मरम्मत के लिये दर्जीकी आवश्यकता होती है । बड़े घरकी स्त्रियां कातती और बुनती भी नहीं है।
हां छोटी २ जातियोंमें स्त्रियां प्रायः दोनोंही काम करती है। कातनेकी रीति यहांकी बड़ीही भद्दी है। यहां कातनेके लट्टू महीन सूत तथ्यार नहीं कर सकते ।
स्त्रो पुरुषके पद-सम्बन्धी विषय में यहां की स्त्रियां यूरोपकी स्त्रियोंसे भी बढ़ी हुई है। बाहरका मनुष्य जिस आदरकी दृष्टिसे पुरुषोंको देखेगा उसी आदरकी दृष्टिसे लोको भी देखेगा । जितनी मजदूरी पुरुष पाता है उतनी स्त्रीको भी मिलेगी। इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं है क्योंकि यहांकी स्त्रियां बहुत दृढ़ होती
। जितना परिश्रम पुरुष कर सकता है उतना वह भी कर सकती हैं अतएव उनको उतनीही मजदूरी मिलनी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। यद्यपि स्त्रियां लज्जाशील और सुन्दरी होती हैं परन्तु ऐसी साहसी होती है कि यदि कोध आजावे तो उनका स्वामी भी उन्हें बसमें नहीं रख सकता है। क्रोध आजानेपर वे साक्षात चण्डी हो जाती है। उस समय कितनीही कोई क्षमा प्रार्थना करे परन्तु चण्डोका कोप शान्त होना बड़ा कठिन है। मैंने ऐसे भी उदाहरण देखे हैं कि स्वामी घुटने टेककर पैरोंमें पड़कर स्त्रीके सामने क्षमा मांगता होता है। प्रसन्न दशामें वह बिल्लीसे भी गरीब है और आवेश आनेपर शेरनीसे भी बढ़कर भयानक हो
जाती है। यह बड़ीही स्वार्थी होती है और घरकी वास्तविक मालिकिनी यही होती हैं। उनमें सबसे बड़ा दोष यह है कि वे कभी पतिव्रता नहीं होतीं। वे बहुधा अपने पतियोंपर यह दोषारोपण किया करती हैं कि उनके स्वामी उनका भरणपोषण नहीं कर सकते हैं ।
तिब्बती स्त्रियोंका ध्यान सदैव अपने स्वार्थकी ओर लगा रहता है। स्वामीके दुःख सुखका तबतक वे तृणभर भी विचार नहीं करतीं जबतक उनका अपना स्वार्थ पूरा न हो जाय । क्या बड़े घरकी और क्या छोटे घरकी सब अपना रुपया अपनेही पास रखती हैं और स्वामीको छोड़ देने में : उनको कुछ भी संकोच नहीं होता। वे वैमनस्य होनेपर तुरत सब अपना सामान बांधकर स्वामीका द्वार छोड़ देती हैं ।
इसके विपरीत जिस स्वामीको वह चाहती है उसके साथ प्रेमकी भी कोई सीमा नहीं। अपने प्यारे स्वामीके ऊपर वह अपना तनमन धन सबही न्योछावर कर देती है। उसको प्रसन्न रखने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। अतएव यह कहना चाहिए कि तिब्बती स्त्रियों में जो विरोध गुण अथवा अवगुण हैं वे परा. काष्ठा तक पहुंचे हुए हैं।
सम्भव है कि यह अवगुण तिब्बतकी स्त्रियों में कई स्वामी करनेके कारण उत्पन्न हो गये हों । यद्यपि वह अपना मतलब साध नेमें बड़ी चतुर होती है परन्तु फिर भी किसी न किसी पुरुषकी सहायताको आवश्यकता उनको सदैव रहा करती हैं चाहे उनके
पास कितनाही धन क्यों न हो । यदि किसी स्त्रीका पति मर जाय और पीछे बच्चे भी छोड़ जाय तो भी वह स्त्री बिना विवाह किये नहीं रह सकती हैं । यदि कुरूपा और बूढ़ी हो तो चाहे विधवा बनी रहे नहीं तो एक पति मरतेही वह विवाह कर लेती है । मरे हुए पतिके लिये प्रेम करनेका विचार भी उनके हृदय में नहीं आता है। पातिव्रतकी कहानियां जो प्रायः समस्त संसार में सुनी जाती है वहां उनका कहीं पता भी नहीं है ।
मध्यम और निम्न श्रोणीकी स्त्रियां खेती करती है और भेंड़ वकरी पालती हैं। वे साधारणतः दूधको दूहना, उसको जमाना और दही बनाकर उसमेंसे निलोकर मक्खन निकालने आदि काम बहुत करती है। मक्खन निकालनेकी रीति वहां सर्वथा भारतवासियोंकी रीतिसे मिलती है। मक्खन निकालने के बाद वे शेष लस्सीमेंसे पनीर निकालकर सुखा लेती हैं और शेष पानी पीनेके काममें ले आती है ।
अरसठवां परिच्छेद ।
लड़के और लड़कियां ।
लड़कों को जन्मसे लड़कियोंसे कुछ अधिक अधिकार प्राप्तः हैं। जैसे नामकरणकी विधि लड़कोंकी की जाती है लड़कियोंकी नहीं। कहीं २ पर कुछ परिवर्तन भी है परन्तु बहुधा जन्म
लड़के और लड़कियां
नामकरण किया जाता है। एक और भी अद्भुत रीति है कि बच्चोंको कभी नहलाया नहीं जाता और न यहां विशेष धायी रखते हैं। नहलानेके बदले बच्चेके शरीर में विशेष करके शिरमें घी दिनमें दो २ बार लगाया जाता है। इसको हम बालक घृत स्नान कह सकते हैं ।
नामकरणके दिन पुरोहित इस काम को करनेके लिये बुलाया जाता है। यह रीति ऐसे आरम्भ होती है कि पहले थोड़ा सा आमन्त्रित जल बच्चेके शिरके ऊपर छिड़का जाता है। आमत्रित करने के समय जलमें केशर घोल दिया जाता है।
नाम बहुधा जन्मदिनका जो नाम होता है उसके अनुसार रख दिया जाता है। यदि लड़का या लड़की आदित्यवारको उत्पन्न हुआ है तो उसका नाम 'नीमा' रखा जावेगा । नीमा तिब्बतकी भाषा में सूर्यको कहते हैं। सोमवारको उत्पन्न होनेवाले का नाम 'डावा' होगा। शनैश्चरको पेनवा, शुक्रवारको पसंग इत्यादि । परन्तु यही नाम नगरभरमें बहुतोंका होनेसे गड़बड़ उत्पन्न हो सकती है अतएव उस नामके साथ में एक उपनाम भी रख दिया जाता है I यह उपनाम साधारण नामके आगे या पीछे रख दिया जाता है। सप्ताहके दिनोंके अतिरिक्त जानवरों के नाम भी रखे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति के नाम पुरोहित या भविष्यवाणी के कथनानुसार रख दिये जाते हैं ।
नामकरणके दिन बड़ा भोज दिया जाता है। उसमें कुटुम्बी और मित्रवर्ग बुलाये जाते हैं। मित्रवर्ग और कुटुम्बी अपने |
a847a5f628ac5259f0efa449a6d1f8bbfba4c971a8f97aee2a686d94d0d66242 | pdf | और शिबभागवताः अर्थात् शिव के पुजारियों का भी ( ५. २. ७६ ) । इस शैव उपासना का प्रवर्त्तक पुराण के अनुसार लाट देश ( सूरत-भरुच ) का लकुलीश नामक पुरुष था जिसका काल अनुमान से दूसरी शताब्दी ई० पू० है । इन शैवो का एक पन्थ पाशुपत भी था ।
हमने देखा है कि बृहत्तर भारत के पहले उपनिवेशक प्रायः शैत्र थे । विदिशा में भागवत हेलिउदोर के वासुदेव की पूजार्थ बनवाये गरुडध्वज का उल्लेख हो चुका है । उससे प्रकट है कि वासुदेव की पूजा सात्वतों के बाहर भी चल गई थी ।
किन्तु इसके बाद से सातवाहन युग के अन्त तक किसी पौराणिक मूर्ति या मन्दिर का कोईवशेष नहीं मिला । क्यों ? प्रतीत होता है कि वैदिक कर्मकाण्ड को फिर से जगाने की चेष्टा ने इन भक्तिप्रधान धर्मों को भी दबा दिया था । स्मृतियों में देवकों अर्थात् मन्दिरों के पुजारी ब्राह्मणों की स्पष्ट निन्दा है। इसी से इस युग में बड़े और टिकाऊ मन्दिर बनने नहीं पाये ।
तो भी पौराणिक धर्म के कुछ और पहलू थे ही ओर देवमूर्तियाँ भी थोड़ी बहुत थीं ही । स्वयं मनुस्मृति ( ८ ६२ ) में गंगा और कुरु की तीर्थयात्रा की बात है। उपवदात के अभिलेख में प्रभात र पुष्कर तीर्थों की चर्चा है ।
हेलिउदोर के गरुडध्वज से सूचित है कि उस काल तक वासुदेव की गरुड - चाहन विष्णु से अनन्यता मानी जा चुकी थी। अमरकोश में भी वही बात है और वहाँ संकण प्रद्युम्न और अनिरुद्ध के नाम भी हैं जो कि वासुदेव के व्यूह माने जाते थे । पतञ्जलि और ननाघाट अभिलेख के काल तक वासुदेव के दो ही व्यूह थे, पहली शताब्दी ई० पू० तक यों चार हो गये थे । योधेय गण अपने सिक्कों पर स्कन्द को मूरत छापा और विम कफ्स शिव की । कनिष्क के सिक्कों पर स्कन्द ईश ( शिव ) और वात ( वायु ) की मूरतें भी हैं। तमिळ संवम् के ग्रन्थों में बौद्ध विहारों के अतिरिक्त कल्पवृक्ष, ऐरावत हाथी,
वज्रायुध ( इन्द्र के वज्र ), बलदेव, सूर्य, चन्द्र, शिव, सुब्रह्मण्य, सातवाहन, जिन, काम और यम के मन्दिरों का उल्लेख है। यों बौद्ध जैन शैव भागवत पूजा के साथ जड-जन्तु-पूजाएँ भी थीं। सातवाहन या ऐयनार के मन्दिर में शायद सातवाहनों के कुल देवता की पूजा होती हो । पट्टिनीदेवी नाम की सती की पूजा भी प्रचलित थी, जो सिंहल में है। सूर्य मूर्ति की पूजा भी शायद कनिष्क के प्रशासन में भारत भी में ईरान से आई । मूलस्थानपुर (मुलतान) तथा पच्छिम भारत के अन्य स्थानों में सूर्य मन्दिर थे। उनके पुजारी शाकद्वीपी या मग अर्थात् ईरानी ब्राह्मण होते थे । सूर्य की जो मूर्तियाँ यहाँ मिली हैं उनमें घुटनों तक ईरानी ढंग से जूता पहनाया रहता है । याज्ञवल्क्य ( १. २७१, २६५ प्र० ) में गणपति विनायक की पूजा और ग्रहों की पूजा का विधान है । गृह्य सूत्रों में चार विनायक थे, इसमें एक है, पर है वह अब भी अमंगलकारी ही, जिससे पीछा छुड़ाना ही पूजा का उद्देश था ।
शान्तिपर्व के नारायणीय प्रकरण ( ० ३४४ - ६१ ) में वासुदेव-पूजाधर्म का विवेचन है जो इस युग के अन्त का है। उसमें नारायण के में राम दाशरथि का नाम भो है, पर उसकी पूजा का नहीं लिंगपूजा का उल्लेख पहले पहल अनुशासनपर्व के उपमन्यु-संवाद ( ० ४५ ) में है। भीष्मपर्व ( ऋ० २३ ) में दुर्गा स्तुति भी है, पर वह इस युग के बाद की वस्तु जान पड़ती है। कृष्ण की गोपी-लीला की बात महाभारत में नहीं है ।
वैदिक मार्ग से जैसे पोराणिक मार्ग का विकास हुआ वैसे ही पुराने बौद्ध मार्ग से महायान का । पौराणिक मार्ग में महापुरुषों को जैसे अवतार माना गया, वैसे ही इसमें बोधिसत्त्व । बुद्धत्व प्राप्ति के तीन मार्ग कहे गये थे, एक अत्यान, दूसरा प्रत्यक् ( पच्चेक ) बुद्ध यान और तीसरा सम्यक् सम्बुद्ध यान । प्रत्यक् बुद्ध वह जिसे केवल अपने लिए बोध हो । नागार्जुन ने तीसरे मार्ग को महायान ( बड़ा रास्ता ) नाम दिया और उसके मुकाबले में पहले दोनों को हीनयान कहा ।
१४. सातवाहन युग का समाज और आचार क. चातुर्वर्ण्य
स्मृतियों में चार वर्णों और उनके कर्त्तव्यों का बहुत विचार है । सो क्या इस युग में जाति-भेद ( जात-पाँत ) स्थापित हो गया था ?
हमने देखा है कि आर्य और दास इन दो जातियों का भेद आरम्भ से था । शूद्र वे दास थे जो आर्यों के समाज का निचला दर्जा बन गये, इसलिए द्विज और शूद्र का अन्तर भी जातिभेद था । धर्मशास्त्रियों
समाज-विषयक विचारकों ने भारतीय समाज को मोटे तौर से चार दर्जों में बाँटा । उनमें से चौथा दर्जा - शुद्र - वस्तुतः पृथक् जाति था । पूर्व नन्द युग से क्षत्रियों के बड़े बड़े कुल भी अपने को क्षत्रिय जाति कहने लगे और उनकी देखादेखी कुछ ऐसे कुल जिनमें ब्राह्मण का धन्धा से होता तथा को ब्राह्मण जाति कहने लगे । पिछले मौर्यों के बाद देश को बचाने वाले शुंग और सातवाहन दोनों वंश ब्राह्मणों के थे, इसलिए इस युग में ब्राह्मणों का गौरव विशेष दिखाई दिया । धर्मशास्त्रियों ने बर्यावर्त्ती समाज को चार वर्णों में बाँटने और वर्गों के कार्य नियत करने का यत्न किया ।
किन्तु आर्यावर्त्ती समाज में अनेक ऐसे समूह थे जिन्हें उनके कार्यो और हैसियत को देखते स्पष्टतः ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य या शूद्र कहना कठिन था । वर्गों के संकर की बात धर्मसूत्रों और अर्थशास्त्र में भी थी, 'मनु' ने संकर की तथा वैसी अन्य कल्पना से उन सच समूहों की व्याख्या की । " ब्राह्मण से वैश्य कन्या में अम्बष्ठ पैदा होता है, वैश्य से क्षत्रिया में मागध और ब्राह्मणी में वैदेह, ब्राह्मण से अम्बष्ठ कन्या में भी। व्रात्य ब्राह्मण से ( व्रात्य ब्राह्मणी में ) श्रावन्त्य, व्रात्य क्षत्रिय से झल्ल, मल्ल, निच्छिवि (लिच्छवि ) .. खस, द्रविड़, वैश्य व्रात्य से सात्वत ( १०. ८ - २३ ) । " " ये सब क्षत्रिय जातियाँ क्रियाओं के लोप से और ब्राह्मणों के प्रदर्शन से धीरे धीरे वृषल बन गई " द्रविड, काम्बोज,
यवन, शक, पहव किरात, दरद, खश ( १०.४३-४४) ।" अष्ठों का गणराज्य लक्सान्दर की चढ़ाई के समय सतलजसिन्ध-संगम पर था । कुछ लोग मध्यदेश में आकर ऐसे धन्धे करते हों जिनमें ब्राह्मणपन और वैश्यपन मिला हो यह सम्भव है । का देश के निकट दक्खिन था, यही उनके अम्बष्ठ कन्याओं से उत्पन्न होने की कल्पना का आधार होगा । वैदेह का अर्थ विदेह का वासी, पर कौटलीय में बड़े व्यापारियों का नाम वैदेहक है, जैसे आजकल 'मारवाड़ी । इसलिए उनमें भी वैश्य ब्राह्मण-रक्त मिश्रण माना गया । मल्ल र लिच्छवि व्रात्य थे इसमें सन्देह नहीं, पर व्रात्य क्षत्रिय कौन सा वर्ण हुआ ? द्रविड काम्बोज आदि के क्षत्रिय से शुद्ध बनने की कल्पना भी मनोरञ्जक है । पर इन कल्पना से ही सिद्ध होता है कि चार वर्गों में समूचा भारतीय समाज ठीक न एटता, तो भी उसे ठोक पीटकरा जाता था । वास्तव में चातुर्वर्य स्मृतिकारो का
भारतीय समाज के वर्गीकरण का प्रयत्न मात्र था ।
स्मृतियों के चातुर्वर्ण्य और बाद की जातपात में कितना अन्तर था, सो इन प्रश्नों की विवेचना से प्रकट होगा । (१) क्या वर्णों के पेशे थे ? बेशक 'मनु' बतलाता है कि कौन वर्ण क्या पेशा
करे, पर जब वह बताता है कि श्राद्ध में किन ब्राह्मणों को न जिमाया जाय, तब पता चलता है कि उस युग में कुत्ते और ब्राज पालने, मेढ़ों और भैंसों का रोजगार करने, हाथी बैल घोड़े और ऊँट सधाने, विष
तथा मुर्दे ढोने वाले ब्राह्मण भी थे ( ३.१५० - १७८) । (२) क्या विभिन्न वर्गों में विवाह न होते थे ? 'मनु' बहुत चाहता है कि विवाह सवर्ण ही हों, पर उसके विवाह और दायभाग प्रकरणों से पता लगता है कि विवाहों की चाल भी बहुत थी, ब्राह्मणो शुद्धों में भी काफी सम्बन्ध होते थे । (३) क्या विभिन्न वर्गों में खान-पान न चलता था ? स्मृतियों में इसकी गन्ध भी नहीं है । तो भी कुछ शुद्ध जातियों से पहरेज़ का रिवाज था । पतंजलि के महाभाष्य ( २,४.१० ) से प्रकट
होता है कि कुछ शुद्ध जातियाँ पात्र से निरवसित थीं, जिन्हें आर्य लोग अपने बर्त्तनों में न खिलाते थे, किन्तु शकों यवनों की गिनती उनमें न थी । (४) जो ब्राह्मण या क्षत्रिय तुच्छ धन्धों में लगे हुए थे, उनके भी ब्राह्मण या क्षत्रिय कहलाने से क्या यह प्रकट नहीं होता कि जात-पाँत थी ? इसका उत्तर यह है कि पुराने ब्राह्मण क्षत्रिय कुलों के लोग जब अपने पद के प्रतिकूल धन्धों में लग जायॅ तब कुछ काल के लिए उनका ब्राह्मणपन या क्षत्रियान लोगों को याद रहता, पीछे मिट जाता था । बस यहीं तक इस युग में वर्णों का विकास हुआ था । इसीलिए 'मनु' स्वयं कहता है ( १०.६५ ) "शूद्र ब्राह्मण बन जाता है और ब्राह्मण शूद्र; ऐसे ही क्षत्रिय से पैदा हुए को समझे और वैश्य से भी ।"
इस प्रसंग में यह भी जानना चाहिए कि इस युग तक दासों में काफी संकर हो चुकने के बावजूद भी पुराने ब्राह्मण (और क्षत्रिय वैश्य) कुलों का आर्य रंग-रूप बहुत कुछ बना हुआ था । पतंजलि कहता है ( २.२.६ ) - "और गोरा रंग, शुचि आचार, पिंगल (हलके रंग की ) कपिल ( भूरे ) केश ये भी ब्राह्मण के अन्दरून गुण होते हैं।" इस वास्तविक नस्ल-भेद की नींव के ऊपर स्मृतिकारों का समाज के वर्गीकरण का प्रयत्न था । पर न तो उस मूल भेद से और न उस वर्गीकरण से समाज की तरलता रुकने पाई थी । सातवाहन युग के भारतीयों ने दूर और दुर्गम देशों में उपनिवेश बसाये और चीन से जर्मनी तक के समुद्रों को लॉघा इसी से प्रकट है कि वे जात-पात और चौके-चूल्हे के बन्धनों से जकड़े हुए न थे ।
शक आदि जातियाँ जो मध्य एशिया से इस युग में भारत आई, उनका समाज जन-मूलक था। उनके लेखों में उनके जनों की खाँपों का बराबर उल्लेख रहता है। भारतीय समाज से, जो जन दशा को लाँघ चुका और जिसमें ग्राम श्रेणि पूग आदि संस्थाओं का विकास हो चुका था, उन जन-जातियों का सम्पर्क होने पर एक दूसरे पर कैसा प्रभाव हुआ, यह समाजशास्त्रीय इतिहास की बड़ी समस्या है। गौतमीपुत्र
सातकरिंग के विषय में उसकी माँ जब अपने लेख में कहती है कि उसने चातुर्वर्ण्य का संकर रोक दिया, तब उसका यही अर्थ है कि उसने पुराने भारतीय समाज में इन नई जातियों के मिलने की रोकथाम की । ख. स्त्री-पुरुष - धर्म
स्मृतिकारों ने नियोग, मोक्ष और स्त्रियों के पुनर्विवाह पर रोकें लगाने के प्रयत्न किये, तो भी इस युग में वे प्रथाएँ जारी रहीं यह स्मृतियों से ही सूचित होता है। ध्यान रहे कि इससे पहले स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में शिथिलता बहुत थी और उसी को रोकने का यह प्रयत्न था । पुरानी शिथिलता का सब दोष तथा बन्धन स्त्रियों पर हीं लगाना आज हमें ठीक नहीं लगता, पर इस अंश में 'मनु' पिछले स्मृतिकारों की अपेक्षा उदार है । और उसके इन कथनों में विवाह का उच्चतम आदर्श है कि " पति के लिए भार्या देवताओं की देन है, एक दूसरे के तई मरते दम तक सच्चा बर्ताव यही संक्षेप से स्त्री-पुरुष का परम धर्म है (६. ६५, १०१ )"
भारत में जननशास्त्र का अध्ययन उपनिषद् काल से चला आ रहा था । 'मनु' के सपिण्ड गोत्र विवाह के नियम और ऋतुकाल - विषयक उपदेश ( ३. ५ - १०, ४५ - ५० ) सुजनन की दृष्टि से ही हैं। पच्छिमी देशों ने निकट विवाह के बुरे परिणामों को अब जा कर पहचाना है ।
ग. आश्रम-धर्म
संन्यास आश्रम पहले केवल ब्राह्मण पुरुषों के लिए था; बुद्ध ने उसे सब के लिए खोल दिया था । बौद्ध मार्ग की प्रेरणा से बहुत लोग संन्यासी बन कर्त्तव्यों से भागने लगे, जिसका कुपरिणाम मौर्य युग के अन्त में दिखाई दिया। इस युग में उसकी प्रतिक्रिया हुई । 'मनु' गृहस्थ आश्रम के गुण गाता नहीं थकता । महाभारत के व्यंग्य और उद्गार और भी जोरदार हैं - "आपकाल में संन्यास लेना चाहिए बुढ़ापा श्रा जाने पर या शत्रुओं से दुर्गति किये जाने पर ।... मौन धार
कर केवल अपना भरण करते हुए धर्म का ढोंग रच गिरा जा सकता है, जिया नहीं । जंगलों में यों सुख से जिया जा सकता है यह सोच कर कुछ मन्द कुलीन अजातश्मश्रु (जिनकी दाढ़ी मूँछ नहीं उगी ऐसे) द्विज घर-बार छोड़ संन्यासी हो गये ( शान्ति० १०. १७ प्र०, ११. १-२ ) ।"
इससे भी बढ़ कर पते की दो कहानियाँ हैं । जाजलि मुनि ने समुद्र के किनारे बड़ा तप किया । उसे सिद्धि हो गई और वह समुद्र में जहाँ चाहे तैरने लगा। उसके बाद उसने एक जगह बैठ और तप किया । उसके केशों में गौरैया के जोड़े ने घोंसला बना लिया ।। वे उड़ कर
ती जातीं, पर जाजलि हिलता नहीं । उन्होंने वहाँडेदिये, फिर बच्चे जने । उन बच्चों के पंख निकले, फिर वे भी उड़ने जाने आने लगे । जाजलि उनकी सबष्टको अनुभव करता, पर हिलता नहीं । अन्त में वे वह घांसला छोड़ चली गई । तत्र जाजलि भी उठा और बोला - मैंने धर्म पा लिया ! आकाश से पक्षी बोले- वाराणसी का तुलाधार धर्म को तुमसे अधिक जानता है ! जाजलि चकित हो वाराणसी चला । तुलाधार एक पंसारी था। उसने जाजलि को देख पूछा - जाजलि, तुम्हारे केशों में गौरैया ने घोंसला बना लिया था, तुम धर्म की जिज्ञासा करने आये हो ? जाजलि और भी चकित हुआ । तुलाधार ने उसे धर्म का उपदेश देते हुए कहा कि मेरी यह तराजू सब लोगों के लिए समान टिकी रहती है। मैं कभी इसकी डंडी नहीं मारता, ईमानदारी से अपना धन्धा करता हूँ, यही मेरी धर्म की सिद्धि है ( शान्ति०] [अ० २६७-७० )।
एक और ब्राह्मण कौशिक था जिसने पेड़ तले तप किया । एक दिन पेड़ पर बैठी बगली ने उसपर वीठ कर दी । कौशिक ने आँख उठा कर देखा तो बगली भस्म हो गिर पड़ी। कौशिक को दुःख हुआ, पर अपनी सिद्धि पर अभिमान भी । उस दिन भिक्षा करते वह एक घर पहुँचा। वहाँ स्त्री ने कहा - ठहरो, कुटुम्बिनी बर्त्तन माँज कराती है। इतने में उस कुटुम्बिनी का पति भूखा घर लौटा और वह उसे खिलाने और
मधुर वाक्यों से बहलाने लग गई । उस बीच उसे ब्राह्मण की याद आई तो वह भिक्षा ले बाहर । उसने कौशिक से क्षमा माँगी, पर कौशिक बिगड़ने लगा । वह बोली - "तुमने क्रोध से बगली को जला डाला सो मैं जानती हूँ, पर, द्विजोत्तम, क्रोध मनुष्यों का शरीर में टिका शत्रु है, जो क्रोध और मोह को छोड़ दे उसे देवता ब्राह्मण जानते हैं।" कौशिक ने चकित हो स्त्री से पूछा- तुम्हें धर्म की सिद्धि कैसे हुई ? - स्त्री ने कहा - मैं एकपत्नी ( एक पतिव्रता ) हूँ, बड़ों कुटुम्बियों देवों पितरों अतिथियों की सेवा करती हूँ , और तुम्हें अधिक जानना हो तो मिथिला में रहने वाला व्याध तुम्हें धर्म का तत्व बतलायगा । कौशिक ने उसी दिन मिथिला की राह ली । वहाँ पहुँच एक सूना ( कसाईघर ) में उसने व्याध को मृगों भैंसों और सूअरों के मांस बेचते देखा । व्याध ने उसे देख कहा - एकपत्नी ने तुम्हें मेरे पास क्यों भेजा है सो मैं जानता हूँ, चलो घर चलें । कौशिक और भी चकित हो व्याध के पीछे-पीछे गया । घर जा कर उसका आतिथ्य कर व्याध ने उसके प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया, जिसका सार यह था कि साधुचर और दम ( इन्द्रिय-निग्रह ) यही धर्म है । हिंसा हंसा की विवेचना करते हुए व्याध ने कहा - क्या खेती में धरती के कीड़ों की हत्या नहीं होती, क्या पानी पीते हुए कीटाणुओं की हत्या नहीं होती, "क्या मनुष्य मनुष्यों को दास-भोग से ( दास या मजदूर रूप में उनके खून-पसीने का फल खा कर ) नहीं खाते ?" कौशिक ने व्याध से पूछासिद्धि कैसी हुई यह तो कृपा कर बताइए । व्याध ने कहा - चलो भीतर तो बताऊँ । घर के भीतर ले जा कर व्याध ने उसे अपने माता-पिता का परिचय कराया और कहा, ये मेरे देवता हैं, इन्हीं की पूजा से मुझे सिद्धि हुई है। वृद्धों से असीस दिला कर वह उसे बाहर लाया और बोला - देखो ब्राह्मण, तुम अपने माता-पिता की अनुमति विना उन्हें छोड़ वेद पढ़ने को भाग आये, इसी से तुम्हारा तप सफल नहीं हुआ, अब जा कर उनकी सेवा करो । कौशिक धर्मव्याध के उपदेश
भारतीय कृष्टि का कल
से पूरी तरह तृप्त हो अपने माता-पिता के पास लौटा और उनकी सेवा जुट गया ( वन० ऋ० २०६ - १६ ) । ६५. सातवाहन युग की कला
क. महाराष्ट्र और उड़ीसा की लेणें
पहाड़ की चट्टान काट कर चैत्य और विहार बनाने की जो कला मौर्य युग में चली थी उसका शुंग सातवाहन युग में बड़ा उत्कर्ष हुआ । उन गुहाओं को उनमें खुदे लेखों में लेण ( लयन ) या सेलघर ( शैलगृह ) कहा है । वे महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के पहाड़ों में हैं । मराठी में उन्हें भी लेगी तथा उड़ीसा में गुम्फा कहते हैं ।
महाराष्ट्र में भाजा कोंडाना, पितलखोरा, अजिंठा, बेडसा, नासिक, कार्ले, जुन्नर में वैसी लेगें हैं । ये सब बौद्ध विहार हैं। इनमें से कालें वाली प्रायः सच से पीछे की, लग० ६५ ई० पू० की है। अजिंठा की केवल दो लेगें सं० १० और ६ - इस युग की हैं, बाकी बाद की । बौद्धों में सामूहिक पूजा की प्रथा थी, जो कि जैनों में न थी । इसलिए इन लेगों में उपस्थान ( हॉल ) बने हैं। कार्ले विहार के दाता श्रेष्ठी भूतपाल का कहना है कि उसका सेलघर जंबुदिपम्हि उत्तमं - भारत में श्रेष्ठ - था, र सो बात ठीक है। कार में वह किसी बड़े भवन के बराबर है, औौर उसके मुकाबले में अशोक और दशरथ मौर्य की खुदवाई गुफाएँ नमूने मात्र लगती हैं। पर इन बड़ी लेगों की शैली में भी फूस के छाजनों की अनुकृति है। प्रत्येक लेण एक ही चट्टान में से काटी गई है। दो एक लेखों में मूर्तियाँ भी कटी हैं। भाजा लेण की भीत पर चिपटे उभार में सूर्य और इन्द्र की मूर्तियाँ खुदी हैं । वैसी उभारदार* मूर्त्तियाँ इस युग की विशिष्ट वस्तु हैं ।
* अर्थात् जो किसी भौत पर उभरी हो, 'कोरी हुई' मूर्ति की तरह भीत से अलग न हो सके = 'बास्सो रिलिएवो' ( इतालवी परिभाषा जो अंग्रेजी में चलती है। ) |
521b99ab84ce96ed5460a215b3a054082f9daed082d977296740240529838156 | pdf | पृथ्वीपिण्ड पर इतने गरम पानीकी जब वर्षा हुई तो पानी चाप्प में परिणत होकर फिर वायुमंडल में जा मिला और पृथ्वी तलपर बड़े बड़े तूफ़ान और अंधड़ पैदा कर गया। इसी भांति पानीको उलट फेर लगभग १०० वर्ष तक जारी रहा। ( लार्ड केल्विनका यही अनुमान है, पर अरिनियसका कहना है कि किसी सूरत में भी १००० से अधिक वर्ष इस परिवर्तनमें नहीं लगे हैं।गे) अन्त में सब वाष्प जल में परिणत हो पृथ्वीपर एकत्रित हो गई। इससे यह न समझ लेना चाहिये कि वायु मंडल में बिल्कुल ही बाध्य न रही, सब पृथ्वीपर आगिरी वास्तव में पानीका वाष्पमें परिणत हो बादलोंका बनना और बारिश होना, उसी भांति जारी रहा जैसे पहले था और अब भी है। परन्तु पहिले पृथ्वीतल पर जल ठहरता ही न था पर इस ज़माने में ही अधिकांश जल पृथ्वी तलपर ही एकत्रित हो गया। उस समय वर्तमान समयसे हज़ारा गुनी ज्यादा बारिश हर रोज़ हुआ करती थी । सम्भवतः आर म्भमें यह जल पृथ्वी तलपर फैल गया और हर जगह इसकी गहराई समान हो रही; पर पृथ्वी के ठंडे होने के कारण इसका आयतन कम होता गया और इसका पृष्ठ तल कहींसे ऊंचा और कहींसे नीचा हो गया। जहां जहां यह निचान आ गये वहां अधिक पानी जमा हो गया और समुद्र और सागर उत्पन्न हो गये। पृथ्वी के आन्तरिक भयङ्कर परिवर्त न से भी पृष्ठ तलमें अनेक परिवर्तन होते रहते हैं इस कारण भी पृष्ठ तलकी असमानता पैदा हो सकती है ।
सूर्य से हुई है और चन्द्रमाकी पृथ्वीसे। जिस समय पृथ्वी सूर्यसे अलग होकर उसकी परिक्रमा देने लगी, उस समय यह बिल्कुल वायवीय रूपमें थी । धीरे धीरे यह ठंडी होने लगी और एक ऐसा समय आया जब धातुओं और चट्टानोंकी वर्षा उसी भांति होती थी, जिस भांति आजकल पानी की होती है । इस जमाने में वायुमंडलका दबाव इतना ज़्यादा था कि आजकल उसका अन्दाज़ा करना भी कठिन है । प्रति वर्ग इञ्चपर लगभग २८० मनका दबाव था । नीहारिकार्मे जो श्रोषजन और उज्जन विद्यमान थीं, उनके संयोगसे जल उत्पन्न हुआ और यह पृथ्वीके उत्तप्त पिण्डको वाष्पकी अवस्था में घेरे हुआ था । जब पृथ्वीका तापक्रम ३७०° श हो गया तो यह वाप्प जलका रूप धारण करके पृथ्वीपर बड़े वेगसे गिरने लगी। स्मरण रहे कि गैस्रोंका यह नियम है कि वह एक विशेष तापक्रमसे ऊपर कितना ही दबाव उनपर क्यों न डाला जाय, द्रवावस्था में परिणत नहीं होती । इस विशेष तापक्रमको संकट तापक्रम ( Critical Temperature ) कहते हैं । यह जुदा जुदा गैसके लिए जुदा जुदा होता है जल वाष्य के लिए यह ३७०° श है । अव २८० मन प्रति इंचका दबाव रहते हुए भी जल बाप्प जलमें नहीं परिणत हुई थी । परन्तु जब पृथ्वीका तापक्रम ३७०° श हो गया तो सब जल-वाप्य सहसा जल रूप धारण कर सहस्रोधाराओं के वेगसे पृथ्वी की ओर चली । उस समय ऐसा प्रतीत होता होगा कि प्रलय कालके मेघ जल रूपी अग्निकी वर्षा कर रहे हैं। परन्तु पृथ्वी तलका तापक्रम बहुत ऊंचा था, इसीसे उस पर जल पड़ते ही बड़े बड़े विस्फो टन होने लगे और बड़ा भयङ्कर नाद उत्पन्न हुआ। खाना पक चुकनेपर, आग निकाल कर चूल्हेमें पानी डाल दीजिये, फिर देखिये चूल्हे की गति क्या होती है। या गरम तवे पर पानी छोड़ दीजिये, फिर तमाशा देखिये कि पानी कैसा नृत्य दिखाता है। यही कैफियत उस समय हुई थी । उत्तत
इस प्रकार ग्राजसे करोड़ों अरबों वर्ष पहले बरुण लोक समुद्रा और सागरोंकी उत्पत्ति हुई थी । समुद्रके तट पर खड़ा होकर जब मनुष्य अपनी दृष्टि दौड़ाता है और उसके ओर छोरका पता लगानेका मानसिक प्रयास करता है तो उसके अनन्त विस्तार, असीम गम्भीरता और अज्ञेय प्राचीनताका विचार कर बुद्धि थक जाती है। जब
उसके गर्भस्थ गूढ़ रहस्यों और उसकी पर्वताकार तरङ्ग मालाओंकी शक्तिका मनन कर मन अकर्मण्य हो जाता है, तब मनुष्य ईश्वर अथवा प्रकृतिका गुण गान करके गदगद हो जाता है। काल तू बड़ा बली है ! तू संसारकी समस्त चीज़ोंको बनाता बिगाड़ता रहता है परन्तु समुद्रके श्रागे तेरी भी कुछ पेश नहीं जाती। भूगर्भ शास्त्रके किसी समयका भी विचार कीजिये, तब भी तरङ्ग मालाधारी हमारा यह बन माली अपनी बंसी बजाता और कभी कभी सुदर्शन चक्र नचाता नज़र पड़ता हो रहा है। उसकी सदा वही मस्ताना चाल, वही टेढ़ी चितवन, बद्दी निर्मल नीलिमा युक्त आभा मनको लुभाती नजर आती रही है, परन्तु तूफान रूपी शिशुपालके सामने आने पर वह भयङ्कर रूप धारण कर बातकी बातमें बड़े २ परिवर्तन कर डालता है।
Time writes no wrinkles on thy azuie brow "Such as creation's dawn beheld, thon rollest now. - Byron
पृथ्वी के इतिहास में यदि कुछ परिवर्तन हुए हैं तो पृथ्वी में, समुद्र में नहीं। जिन किनारोंसे समुद्र की लहरें टकरा टकरा कर किलोलें किया करती हैं, वह अनेक बार बदल चुके । धन धान्य सम्पन्न द्वीप और महाद्वीप अनेक बार द्वारकापुरीकी तरह जल मग्न हो चुके और उनके स्थान पर आज भी समुद्र सिंहनाद कर रहा है। टेनीसनने कैसा अच्छा कहा हैः"There rolls the deep where grew the tree, O Earth, what changes hast thou seen ! There where the long streets roars hath been The still ness of the central Sea
समुद्रकी उत्पत्तिके अनन्तर, वर्तमान समयतक सृष्टिका सारा क्रम ही बदल गया । मीलोतक फैलनेवाले बड़ पांचसौ हाथ ऊँचे यूकिलिप्टस, कीड़ोंकी शिकार खेलनेवाले सनड्यू तथा डंक
मारनेवाले बिच्छू पेड़, आदि आश्चर्यजनक वानस्पत्तिक सृष्टि सूक्ष्मातिसूक्ष्म, डाइण्टम से ही
इस अनन्तकालमें हुई है। इसी कालमें अणुवीक्षणीय कीटाणुओंसे, व्हेल जैसे महाकाय, अजगर जैसे भयानक और मनुष्य जैसे बुद्धिमान जन्तुओंकी उत्पत्ति हो गई। पर समुद्र जैसे पहले था, वैसा अब भी है।
२- समुद्रकी श्रायु
हम पहिलेही कह चुके हैं कि इसका ठीक ठीक पता चलाना कठिन है। परन्तु वैज्ञानिक लोग अपनी बुद्धिसे काम लिए बिना नहीं रहते। प्रोफेसर जोली ( Prof Joly ) महोदयने इसका कुछ अन्दाज़ा लगाया है। जितना नमक प्रतिवर्ष समुद्र में जाकर गिरता है और जितना अब उसमें विद्यमान है, इन दोनोंकी तुलना करनेसे पता चलता है कि कमसे कम दस किरोड़ वर्षसे नमक घुल घुलकर समुद्र में पहुंच रहा है। अतएव स्पष्ट है कि समुद्रकी उत्पत्ति दस किरोड़ वर्षसे बहुत पहले हुई होगी।
३ - पृथ्वीपर कितना जल है ?
पृथ्वी तलपर पानीकी मात्रा क्या है आइये पहिले इसपर ही विचार करें। पृथ्वी तलका लग भग पौन भाग जलमग्न है। शेष एक चौथाई सूखी ज़मीन है। समुद्रकी श्रौसत गहराई १४६४० फुट या लगभग तीन मील है। सबसे ज़्यादा गहराई जो अभीतक नापी गई है वह ३१७०० फुट या लगभग ६ मील है। इन बातोंपर विचार कर यह अन्दाज़ा लगाया गया है कि समुद्रका जल यदि इकट्ठा कर लियां जाय तो उसका ८५० मील व्यासका एक गोला बन जायगा । * अगर मनोमें आप हिसाब पूछें तो यों समझ लीजिये कि सब समुद्रोंके पानीका भार ७० संख अर्थात् ७ अरब करोड़ मन है !!
४- जीवोंमें कितना जल है ?
समुद्रके अतिरिक्त पानी समस्त जीवोंके श्रङ्ग प्रत्यङ्ग में रमा हुआ है। प्रत्येक प्राणी के रोम रोम में
* वे ननी (Bonney) ने अपनी 'The story of our planet' नामक पुस्तक में ऐसा लिखा है।
होता है। बहुतसी नदियां तो ऐसी हैं, जिन्होंने सूर्यका दर्शन आज तक किया ही नहीं है। पर्वतों की कन्दराओं में ही वह योगियों की तरह विचर कर अपना अनहद नाद जगाया करती है।
करण कण में पानी मौजूद है। खुश्कीके पौदों में ५०७० प्रतिशत पानी रहता है। जलीय पौदोंमें यह मात्रा ६५-६६ तक बढ़ जाती है। पशु पक्षियों और मनुष्यों में भी उनके भारका लगभग ८० प्रति शत पानी होता है। इस सम्बन्ध में (Stream of life) नामक पुस्तक में लिखा हैः- 'सूखीसे सूखी बुढ़िया भी, जिसे देखकर शायद लोग डाकिन ( जादूगरनी) समझ, को लेकर किसी विधिसे उसके शरीरका सब जल निकाल लिया जाय, तो उसकी जर्जरीभूत (लटी दूबरी) देह भी बहु कुछ पिचक जायगी। किसी साधारण मनुष्यकी देहमेंस यदि सब पानी निकाल दिया जाय तो वह खासा ममी ( पुराने ज़मानेका रक्षित शव ) बन जायगा और कदाचित कोई मनुष्य दानियाल लेम्बर्ट सरीका दानव देहधारी मिल जाय (जिसका कि वज़न मरते समय ५३ स्टोन अर्थात् सवा नौ मन था, शरीरका घेर नौ फुट ४ इंच था, पिंडली १ गज़ मोटी थी, और वह सात मन बोझ उठाकर ले जा सकता था) और उसकी देहका पानी सुखा दिया जाय तो वह एक इक हरे बदनके बालकके समान हो जाय "प्रतिदिन मनुष्य अपने फेंफड़ों और त्वचा द्वारा सेरभर पानी निकाल देता है। यदि देहमें पानी न हो तो वह अपने पट्टों और नर्सोंको हिला डुला भी नहीं सकता। पानीमें ही रस पहिले घुलते हैं और तब कहीं हाड़ और मांस बनाने योग्य होते हैं । "
समुद्रोंमें जल अनन्त परिमाण में भरा हुआ है। प्रत्येक प्राणीके रोम रोम में पानी व्याप रहा है। पर पानीकी व्यापकता यहां ही समाप्त नहीं होती। मट्टीके कण कण में (सहारा जैसे मरु भूमि के कुछ अत्यन्त उत्तप्त विभागको छोड़कर) पानी मौजूद है। रत्नगर्भा के गर्भस्थ समस्त खनिजोंमें पानी पाया जाता है। पृथ्वी के पृष्ठतलके नीचे जलकी अनन्त धाराएँ इधर उधर बह रही हैं। जो कहीं कुओं में और कहीं सातों में आ निकलती है। नदियोका जन्म भी इन्हीं अदृश्य धाराओंसे
सारांश यह कि पानीकी वास्तविक मात्रा ७० संप मनसे हज़ारों गुती ज्यादा है, और उसका ठीक ठीक अन्दाज़ा लगाना अत्यन्त कठिन है।
क्या समुद्रके पैदेमें से पानी रिसता नहीं हैं ? मामूली तौर पर श्राप गड्ढा खोदकर पानी भर दीजिये, देखिये पानी कितनी जलदी धरती में प्रवेश कर जाता है। तो अप प्रश्न उठता है कि क्या नदी, नालों, और समुद्रकी तलैटीकी धरतीमें पानी प्रवेश नहीं करता। साधारण तौरपर जो पानी कुण्डॉ; तालाबों, झीलों और नदियों में से धरती सोख लेती है उसपर जो कुछ गुज़रती है, उसका सब हाल तहतोड़ कुएं नामक लेख में विज्ञान भाग ४ संख्या ४ पृष्ठ १४८) दिया हुआ है। परन्तु यहां पर हम समुद्र के जलके पृथ्वी पर समा जाने पर विचार करेंगे। पहले यह प्रश्न उपस्थित होता है कि पानी किन किन चीज़ोंमें प्रवेश कर सकता है। सुनिये इस विषय में मिलटन महोदय अपने ग्रन्थ (Stream of Life) जीवन प्रवाहमें क्या लिखते हैंः"जल प्रायः सभी चीजों में प्रवेश कर जाता है। प्रायः सब प्रकारकी मट्टियां (पद) पथरी, चूना, फिटकिरी, मेग्नीसिया और चिकन मट्टीमें इसका अंश मौजूद रहता है। सख्त से सख्त धरतीमें भी पानी प्रचुर परिमाण में विद्यमान रहता है किसी किसीमें लगभग ग्यारहवां अंश जलका रहता है और किसी किसीमें लगभग आधा; सभी तरह की चट्टानों में पानी घुस जाता है। पत्थर ( रेतीले) की तहों में इतना पानी निकलता है कि कुओं में से १० या २० लाख गैलन पानी रोज़ मर्रा निर्भय होकर निकाला जा सकता है । खरियाकी में और भी अधिक पानी
जलकी मनोरञ्जक गाथा
पाया जाता है। ग्रेनाइटके प्रत्येक घन गजमें २ गैलन पानी पाया जाता है ।
अब बतलाइये ऐसी कौनसी चीज बची जिसमें पानी प्रवेश नहीं कर पाता ? इसीसे यह हमारी दृढ़ विश्वास है कि सृष्टिके आदिमें जितना पानी पृथ्वी तलपर मौजूद था, उससे बहुय कम अब मौजूद है। समुद्रोंका आयतन बराबर घटता चला जा रहा है। प्रतिवर्ष करोड़ों मन पानी वाष्प बनकर समुद्रकी सतहसे वायुमण्डल में पहुंचता है। वहां जाकर बादलमें बदल जाता है। जब बादल बरसते हैं तो यही जल समस्त पृथ्वीतल पर गिरता है और उसका सोषण प्रारम्भ हो जाता है। इसका बहुत कुछ अंशतो नदी नालों, झरने, आदि द्वारा समुद्र में जा मिलता है परन्तु कुछ अंश सदाकेलिए पृथ्वी के कठोर पृष्ठ के अव यवोंके साथ मिल जाता है। इस प्रकार बेचारे समुद्राँकी सम्पत्तिका हरण प्रतिवर्ष होता रहता
। अनन्त काल से समुद्रका जल इस भांति बरा बर घट रहा है। अनुमानतः समुद्रौका एक तिहाई जल अबतक ग़ायब हो चुका है और बहुत सम्भव है कि भविष्य में एक ऐसा समय आय, जब समुद्र खाली हो जाय और उनकी वही दशा होजाय जो ग्रीष्ममें छोटे छोटे पोरवारोंकी हुआ करती है।
समुद्रकी तलहटीमें कितना पानी रम जाता है उसमें प्रवेश कर और कहां पहुंचता है और उसका क्या परिमाण होता है ? यह प्रश्न बड़े महत्वके हैं और इनके समझ लेनेसे प्रकृति के गूढ़ रहस्यांका पता चलता है।
क्या काँच में पानी प्रवेश कर सकता है ? यदि समुद्र का पैदा कांचका बना होता तो क्या पानी उसमें जज्ब न होता ? साधारणतया पानी केवल मसामदार ( Porous ) पदार्थों में ही प्रवेश कर पाता है, परन्तु यदि पानी का दबाव ज्यादा बढ़ा दिया जाय तो पानी उन चीज़ोंमें भी प्रवेश कर जाता है, जो प्रायः मसामदार नहीं मानी जाती, जैसे काँच आदि । कई वर्ष हुए संयुक्त राज्य
अमेरिकाके जहाजी बेड़ेके कुछ अफसर समुद्र की पैमाइश कर रहे थे। उन्होंने यह देखा कि यदि मोटी दीवालों वाली खोखली कांच की गेंद पानीमें फांस दी जाती हैं, तो बाहर निकालनेपर उनके भीतर पानी भरा मिलता है। कांच न कहींसे चटकता है न टूटता है, पर पानी कांचकी मोटी तह भेदकर अन्दर पहुंच जाता है। उन्होंने यह भी देखा कि जितनी अधिक नीचे तक यह गै उतारी जाती है, उतना ही अधिक जल गेंदों में भर जाता है। इन गेंदोंकी अणुवीक्षण यंत्रों से परीक्षाकी गई । पर कहीं किसी भाँतिका छेद दिखाई नहीं दिया। यही मानना पड़ता
है कि पानोके दबाव के कारण, जो १५००० पौण्ड प्रतिवर्ग इश्चसे शायद ही कुछ कम होगा पानी काँचको भेदकर घंटे भरमें गेंद के अन्दर पहुंच गया। इस परीक्षासे यह सिद्ध हुना कि कांच जैसे पदार्थ में भी पानी, दबाव अधिक होने पर प्रवेश कर जाता है। अब सोचिये कि समुद्रकी तलहटीपर कितना अधिक दबाव रहता है। स्पष्ट है कि यह दबाव गहराई के अनुपात में होगा । जितना अधिक गहरा समुद्र होगा उतना ही अधिक दबाव होगा। एक मीलकी गहराई पर पानीका दबाव २८ मन प्रति इञ्च होता है। अर्थात् यदि आप एक मीलकी गहराईपर एक पैसा हाथमें थामकर ऊपर की ओर उठाना चाहेंगे तो आपको इतना बल लगाना पड़ेगा जितना २८ मन बोझ उठाने में लगता है। जहां छः मोल गहराई हैं वहां तो आपको इतना बल लगाना पड़ेगा जितना १७० मन बोझके उठाने में लगाना पड़ता है। अब सोचिये कि यदि समुद्रका पैदा क़ांचका भी बना देते तो क्या पानी उसमें ठहरता ? फिर मंट्टी और कंकड़की क्या हैसियत है ? उनमें होकर लाखों करोड़ों मन पानी रिसकर Har की ओर बड़े वेगसे जा रहा है। फिर यह कहां जाकर ठहरता है ?
पृथ्वीका ऊपरी पृष्ठ तो ठंडा होकर कठोर हो. |
76639ca6ca9d40b68fd591d634814dfab3c0f313b0dff11dd55feb557c1a7007 | pdf | अनुभव को सर्वप्रथम संभव बनाता है, और इस अनुभव में यह स्त्रयं सर्वदा पूर्वतः माना. हुआ होना चाहिये ।
अब यदि, शुद्ध बुद्धि के चिन्तनात्मक विनियोग में, अन्तर्विष्ट विषय की दृष्टि से भी कोई राद्धान्त विलकुल भी न हो, तो समस्त यौक्तिक पद्धतियाँ चाहे तो वे गणिततनों से ज्वार ली गई हों, अथवा विशेष प्रकार से आविष्कृत की हुई हों, एक समान रूप से अनुपयुक्त होती हैं। क्योंकि वे केवल दोपों और गलतियों को छिपाने के काम आती हैं, और दर्शनशास्त्र को प्रतारित करती हैं, जिस ( दर्शनशास्त्र ) का वास्तविक उद्देश्य है बुद्धि के प्रत्येक पग को स्पष्टतम प्रकाश में उपस्थित करना । पर फिर भी इसकी पद्धति सर्वदा सुव्यवस्थित तो हो हो सकती है। क्योंकि विपयिगततया हमारी बुद्धि स्वयं ही एक संस्थान है, यद्यपि संबोधों के द्वारा, अपने शुद्ध विनियोग में यह ऐसा संस्थान है जो एकता के सिद्धान्त के अनुसार अनुसंधान करने के लिये उदृष्ट है, जिसके लिये ( अनुसंधान का) उपादान केवल अनुभव के द्वारा प्रदान किया जाता है । अनु भवातीत दर्शनशास्त्र की विशिष्ट पद्धति के संबंध में यहाँ कुछ भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हमारा वास्ता केवल अपनी शक्तियों के संबंध में यह आलोचनात्मक पड़ताल करने से है कि उनसे क्या आशा को जा सकती है - हमको यह पता लगाना है कि क्या हम निर्माण कर भी सकते हैं, तथा जो सामग्री (प्रागनुभवात्मक शुद्ध संवोवों के रूप में) हमारे पास है उसके द्वारा हमारा भवन कितनी ऊँचाई तक उठाया जा सकता है।
प्रथम अध्याय द्वितीय खंड
शुद्ध बुद्धि के वादविवाद संबंधी विनियोग के संबंध में उसका अनुशासन
बुद्धि को अपने समस्त उपक्रमों में आलोचना के अधीन रहना पड़ेगा, और यदि वह किसी निषेय द्वारा आलोचना की स्वतंत्रता को सीमित (या मर्यादित ) कर सकी तो, यह अपने ऊपर हानिकारक संदेह को आकृष्ट करके, बिना अपने को हानि पहुँचाये हुए ऐसा नहीं कर सकेंगी। कोई भी वस्तु अपनी उपयोगिता की दृष्टि से इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है, कोई इतनी पवित्र नहीं है कि जो इस परीक्षणात्मक एवं निरीक्षणात्मक जो किसी व्यक्ति के समादर को नहीं जानता, अपने से (वरी या ) मुक्त रख सके। इस स्वतंत्रता के कार तो बुद्धि का अस्तित्व तक निर्भर है, क्योंकि बुद्धि का अधिकार अविनायकवादी अधिकार तो है नहीं, प्रत्युत उसका निर्णय तो सर्वदा स्वतंत्र नागरिकों के सर्तत्रय की ओक्षा और अधिक कुछ भी नहीं है, जिनमें से प्रत्येक को न
में हमने इस प्रकार के प्रातिभासिक विरोध का वर्णन किया था, परन्तु वहाँ तो ऐसा प्रतीत हुआ कि वह भ्रान्ति पर आश्रित था, क्योंकि सामान्य पूर्वग्रह के अनुसार अवके भासों को स्वरूपतः सत् वस्तु ( या स्वलक्षण ) मान लिया गया, और तदुपरान्त एक प्रकार से अथवा दूसरे प्रकार से उनके संश्लेपण की निरतिशय पूर्णता की माँग की गई ( किन्तु जो उमय प्रकार से ही एक समान असंभव वात थी ) -- जो ऐसी मांग है कि जिसकी प्रत्याशा अवभासों के संबंध में विलकुल भी नहीं की जा सकती । अतएव उस समय निम्नलिखित इन वाक्यों में बुद्धि का अपने विरुद्ध कोई वास्तविक विसंवाद (या विरोव) नहीं था कि ( १ ) अपने आप में दी हुई अवभासों की शृंखला का आत्यन्तिक आद्यआरंभ हुआ करता है और ( २ ) यह शृंखला ऐकान्तिकतया और अपने ) आप में विना आरंभ के होती है, क्योंकि यह दोनों प्रस्थापनाएँ परस्पर भले प्रकार ( या पूर्णतया ) संगत हैं, इसलिये कि अवभास अपनी सत्ता की दृष्टि से ( अवभास रूप में) अपने आप में स्वरूपतः कुछ भी नहीं है अर्थात् ( इस प्रकार देखे जाने पर ) कुछ आत्मविरोधी जैसे हैं, और इसलिये यह मान्यता (कि वे अवभास भी हैं और स्वरूपतः सत् या स्वलक्षण भी हैं) स्वाभाविकतया परस्पर विरोधी अनुमानों की ओर ले जाने वाली होगी ।
परन्तु इस प्रकार की मिथ्या भ्रान्ति का बहाना उस समय नहीं किया जा सकता और उसके द्वारा बुद्धि के विवाद को उपर्युक्त प्रकार से दूर नहीं किया जा सकता, जव कि उदाहरण के लिये एक ओर आस्तिकतया यह दावा किया जाए कि परमसत्ता ( या सत्त्व ) है और इसके विपरीत दूसरी ओर नास्तिकतया यह कहा जाए कि कोई परमसत्ता नहीं है, अथवा जब मनोविज्ञान में एक और यह कहा जाता है कि ऐसी प्रत्येक यस्तु जो चिन्तन करती है आत्यन्तिक और स्थायी एकता से समन्वित होती है, ओर इस कारण क्षणिक भौतिक एकता से पृथक् होती है, और दूसरी ओर यह दावा किया जाता है कि आत्मा अभौतिक एकता नहीं है और इसलिये क्षणिकता से वरी ( या मुक्त ) नहीं हो सकता। क्योंकि यहाँ पर प्रश्नगत (या विवादग्रस्त ) विषय ऐसे विजातीय तत्व से, जो उनकी प्रकृति से असंगत हो, मुक्त है और बोधवृत्ति का वास्ता यहाँ स्वरूपतः सत् वस्तुओं से है न कि अवभागों से । इसलिये यहाँ पर वास्तविक विवाद उपस्थित होगा, वकिशुद्ध बुद्धि को निषेधात्मक (या नाकारात्मक) पक्ष में कोई ऐसी बात कहनी हो जो लगभग किसी दावे के आधारगृत हेतु के स्वरूप के समीप पहुंचती हो; क्योंकि जो लोग अयोक्तिकतया सकारात्मक दावे करते हैं उनको उपपत्ति के आवारत हेतुओं की आलोचना का जहां तक संबंब है उसको मली मांति अंगीकार किया जा सकता है, पर ऐसा इन दावों की बिना त्यागे हुए किया जा सकता है, जिन
सकारात्मक दावों के पक्ष में वृद्धि का हित है, जिस हित की दुहाई विरोधी पक्ष बिलकुल भी नहीं दे सकता ।
मैं निश्चय ही उस सम्मति के साथ बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ जिसको कतिपय श्रेष्ठ और विचारवान् पुरुषों ने (जैसे उदाहरण के लिये जुल्त्सर ने ) अद्याववि प्रयुक्त युक्तियों की दुर्वलता को दृष्टि में रखते हुए बहुवा प्रकट किया है, कि यह आशा की जा सकती है कि कभी भविष्य में हमारी शुद्ध बुद्धि की दो प्रमुख प्रस्थापनाओं का स्पष्ट प्रत्यक्षण आविष्कृत कर लिया जाएगा- कि ईश्वर की सत्ता है और भावी जीवन भी है । इसके विपरीत में इस विषय में निश्चिन्त हूँ कि ऐसा कभी घटित नहीं होगा । क्योंकि बुद्धि ऐसे सांश्लेषिक दावों के लिये, जिनका संबंध अनुभव के विषयों और उनकी आन्तरिक संभाव्यता से नहीं है, आवारभूत हेतु कहाँ पाएगी ? परन्तु यह भी स्वयंसिद्ध रूप से निश्चित है कि कभी कोई ऐसा आदमी प्रकट नहीं होगा जो इनकी विरोधी प्रस्थापना का ( उपपत्ति के ) लेशमात्र आमास के साथ - अयौक्तिकता के साथ तो और भी~-दावा कर सकेगा । इसका कारण यह है, कि क्योंकि वह इसको भी शुद्ध बुद्धि के द्वारा ही सिद्ध कर सकेगा, अतः उसको यह सिद्ध करने का उपक्रम करना होगा कि परमसत्ता ( या सत्त्व ) तथा हममें पाया जाने वाला विषयी, (शुद्ध बुद्धिमत्ता के रूप में) असंभव है। किन्तु वह उस ज्ञान को कहाँ से पाएगा, जो उसको इस प्रकार उन वस्तुओं के संबंध में सांश्लेपिकतया निर्णय करने में जो समस्त संभाव्य अनुभव से परे हैं, उचित ठहरा सके ? इसलिये हम इस विषय में पूर्णतया अनवहित ( या निश्चिन्त ) हो सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति कभी भी इसके प्रतिकूल प्रस्थापना को सिद्ध कर सकेगा, यहाँ तक कि इस विषय में बड़े विद्वत्तापूर्ण तकों को प्रस्तुत करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है; प्रत्युत हम इन प्रस्थापनाओं को, जो हमारी बुद्धि आनुभविक विनियोग में उसके चिन्तात्मक हितों के साथ भले प्रकार पूर्णतया मेल खाती है और इसके अतिरिक्त उन हितों को हमारे व्यावहारिक हितों से समन्वित करने का एकमात्र उपाय है, सर्वदा ही स्वीकार कर ले सकते हैं। जहां तक हमारे विरोधी का प्रश्न है (जो यहां केवल आलोचक ही नहीं माना जाना चाहिये) हम उससे लिये (सर्वदा) अपने ( नोन् लिवचट् ) "स्पष्ट नहीं है" (अथवा अनुज्ञात नहीं है) को तैयार रखते हैं, जो निश्चयमेव उनको निरुत्तर किये बिना नहीं ह
जब इसी बीच में हमको उसके प्रत्याक्षेप को अस्वीकार नहीं करना चाहिये कि हमारे बुद्धि का विषविगत सिद्धान्तसूत्र तो छिपा हुआ सुरक्षित
है, जिसका हमारे विरोधी के पास निश्चय ही अनिवार्यता अनाया
रक्षा में उनकी हलकी हवार्ट-पोटों को हम मान्ति और उदासीनता के साथ देश करते।
इस प्रकार से शुद्ध बुद्धि का कोई वास्तविक विरोधी पक्ष नहीं है। क्योंकि इस विरोधी पक्ष के लिये युद्धस्थल तो शुद्ध देवविद्या और मनोविज्ञान के प्रदेश में ही खोजा जा सकता है, किन्तु यह वरती तो किसी भी योद्धा का भी पूर्ण कवच और युद्ध सज्जा में भरण पोषण नहीं कर सकती और उसको ऐसे शस्त्रास्त्र प्रदान नहीं कर सकती जिनसे हमको नयमीत होना पड़े । वह ( योद्धा) उपहान और दक्तियों के हथियारों को लेकर युद्ध स्थल में आगे बढ़ सकता है और इन दोनों का तो बच्चों के खिलवाड़ के समान परिहास किया जा सकता है। यह एक सान्त्वना प्रदान करने वाला विचार है जो बुद्धि को पुनः नया साहस देता है, क्योंकि, यदि वह बुद्धि, जिस अकेली का ही समस्त गलतियों को दूर करने के लिये आह्वान किया गया है, स्वयं अपने आप में ही अस्तव्यस्त हो, और शान्ति तथा निराकुल स्वत्वाधिकार की आशा से रहित हो तो वह स्वयं और (किसके ऊपर) निर्भर रह सकती है ?
प्रत्येक वस्तु जिसको प्रकृति ने स्वयं संस्थापित किया है वह किसी न किसी प्रयोजन के लिये सदुपयोगी होती है । स्वयं विप तक हमारे शारीरिक दोपों ( या रसों) में उत्पन्न होने वाले विपों का प्रतिकार करने के लिये उपयोगी होते हैं और इसलिये वो किसी भी औषधियों के परिपूर्ण निवण्ड में अनिविष्ट नहीं रहने चाहिये । हमारी केवल विस्तात्मक बुद्धि (या विवेक) के अनुनयों और ज्ञानाभिमानों के विरुद्ध जो आपत्तियां हैं, वे भी स्वयंबुद्धि के स्वभाव से ही उत्पन्न होती हैं, और इसलिये उनका भी कोई सदुपयोग और प्रयोजन होना चाहिये, जिसका तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिये । क्या कारण है कि विधाता ने बहुत से ऐसे विषयों को जो हमारे सर्वोच्च दिनों के साथ अत्यन्त निकटतया आवद्ध हैं, इतने ऊँचे पर हमारी पहुँचने पर स्थापित किया है कि हम को लगगग केवल इतनी अगुजा है कि हम उनको एक अस्पष्ट और अपने प्रति नंदिन प्रत्यक्ष में ही पा सकते हैं, जिससे कि हमारी जिज्ञासापूर्ण दृष्टि संतुष्ट होने की अपेक्षा उत्तेजित ही अधिक होती है और कम से कम यह सन्देह होने लगता है के ऐसे अनिश्चित और अस्पष्ट प्रश्नों पर नाहमपर्ण निर्णयों का कथन कुछ उपयोगी है या नहीं या यह कहीं बिलकुल हानिकारक ही तो नहीं होगा । परन्तु यह बात नवंदा और बिना किसी भी सन्देह के लाभदायक (या उपयोगी) है कि बुद्धि (या विवेक) की जिज्ञासा करने वाले तथा आलोचना करने वाले दोनों ही रूपों में एक नमान पूर्ण स्वतंत्रता की स्थिति में स्थापित किया जाए, जिससे कि वह बिना किसी विघ्न-बाबा के अपने हित के प्रति ध्यान दे सके जोहित उनकी अपनी अन्तर्दृष्टि के संकोनन से भी उतनी ही उन्नति (या प्रगति) को प्राप्त होते हैं, जितने कि उसके विस्तार से, और यदि बाहरी हस्तक्षेप बीच में पड़कर इसको इसके सनुचित मार्ग |
96b02e3074bad0052619a9fa3288f1c08cb88a239c5157b11aee20a0c23eb9d1 | pdf | क्या हम स्वतंत्र हैं ?
इस दुनिया में सब प्रकार के लोग जन्म लेते हैं । सब लोग नहीं होते तो सब लोग क्रूर भी नहीं होते। जहां पर महावीर, कृष्ण जैसे व्यक्ति उत्पन्न हुए है, अशोक जैसे महान व्यक्ति उत्पन्न हुए हैं तो दूसरी ओर उनसे उल्टे व्यक्ति भी उत्पन्न हुए हैं। हिटलर इसी दुनिया में पैदा हुआ था जिसने पांच लाख यहूदियों को मरवा डाला। केवल दोष के आधार पर नहीं, किन्तु यहूदी को मारना है, जाति को समाप्त करना है, उस जाति-विद्वेष के आधार पर इतना क्रूर कर्म किया। नादिरगाह भी इसी दुनिया में पैदा हुआ और वर्तमान में याह्या मां भी इसी दुनिया के रंगपट्ट पर उत्पन्न हुआ।
महान् सोरियस जो आस्ट्रिया का राजा था, इसी दुनिया में उत्पन्न हुमा । उसने जहां यह लिखा, में गया और गुलामों को मुक्त कराया। यहूदी धर्म को बसाया दुनिया का भला किया। वन्दियों को छोड़ा । सेतों को सींचने की सुविधा दीं। जनता के कष्टों को दूर किया। पच्चीस सौ वर्ष पहले हुए महान् सीरियस ने जो यह लिसा साइप्रेस में, तो दूसरी ओर असुर क्या लिखता है कि मैंने अमुक गांव को उजाड़ा, मैंने तीन हजार सैनिकों को जिन्दा जला डाला।
इस प्रकार ये दोनों धाराएं दुनिया में चलती है-- एक क्रूरता की ओर एक करुणा को एक उदारता की और एक संकुचितता की। इस स्थिति में मानवीय स्वतन्त्रता का इतिहास इतना दयनीय, इतना करुण और
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इतना निर्मम रहा कि मनुष्य को बहुत कम स्वतन्त्रता मिली है । सारी दुनिया के इतिहास को देखें तो हमें मालूम होगा कि पौने सोलह आना परतन्त्रता की जकड़न रही है, मुश्किल से एक पैसा मनुष्य को स्वतन्त्रता मिली है ।
फिर हम क्यों स्वतन्त्रता की बात करें ? मानवीय व्यथा की करुण कहानी को इस पर तोलें तो ऐसा लगता है कि यह दुनिया जीने के लायक नहीं है। यहां वही आदमी जी सकता है, जिसके पास हृदय नहीं है, कामना नहीं है, जो व्यथा को समझने की क्षमता नहीं रखता । अन्यथा इतनी गुलामी, इतनी परतन्त्रता, इतनी जकड़न और मनुष्यों को पशु से भी गया-बीता मानने की इतनी तीव्र मनोवृत्ति कि जिसका चित्रण करना भी एक सहृदय व्यक्ति के हृदय में भय पैदा कर देता है ।
मैंने एक पैसा स्वतन्त्रता की बात कही, परन्तु वह भी कहां है ? यह भी मुझे खोजने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। इस परतन्त्रता का आवरण मनुष्य पर क्यों डाला जाता है ? कौन डालता है ? वह व्यक्ति डालता है, जो स्वयं स्वतन्त्र नहीं है। और मैं समझता हूं कि हमारी सबसे बड़ी कठिनाई यही तो है कि किस व्यक्ति को स्वतन्त्र माना जाए ? केवल शासन थोपना और जेल के सोंकचों में बन्द कर देना, इतनी ही परतन्त्रता की गाथा, व्याख्या और अर्थ नहीं है। वे लोग जो कि अपनी मानसिक वृत्तियों के अधीन होकर ऐसा काम करते हैं, वे स्वतन्त्र कहा है ? यदि मानसिक गुलामी, मानसिक परतन्त्रता मिट जाए तो मानना चाहिए कि एक पैसा हो स्वतन्त्रता हमें प्राप्त है, या एक पैसे भर ही लोग दुनिया में स्वतन्त्र हुए है, किन्तु वे भी शायद पूरे नहीं उतरते
यह मानसिक जकड़न, यह संस्कारों की जरूड़, उसने कौन, कहां, कैसे छूट रहा है ? छूट नहीं पा रहा है। मदारी लोग बन्दर को पकड़ने के लिए एक छोटे से बर्तन में चना डाल देते हैं। बन्दर चनों के शौकीन होते हैं। चने खाने के लिए वे वर्तन में हाथ डालते हैं। भुट्टी में घने भरकर वे हाथ बाहर निकालने का प्रयत्न करते हैं। मुट्ठी बन्द होने पर
११६ : विचार का अनुबंध
बाहर नहीं निकलता, क्योंकि वर्तन का मुंह इतना संकरा है कि बन्द मुट्ठी निकालना सरल नहीं और चनों का छोड़ना उन्हें स्वीकार्य नहीं और मुट्टी को खोले बिना निकालना सकोरे को मान्य नही। दोनों ओर कठिनाई है । वे सोचते हैं कि अन्दर से किसी ने हाथ पकड़ लिया। वहीं के वहीं खड़े रह जाते हैं और पकड़ने वाला आकर तत्काल पकड़ लेता है। यह पकड़ किसकी पकड़ है ? अपनी वृत्ति की, परतन्त्रता की पकड़ है। ऐसी पकड़ न जाने कितने लोगों में होती है। कौन व्यक्ति यह कह सकता है कि में स्वतन्त्र हूं । स्वतन्त्र होना बहुत कठिन काम है। स्वतन्त्र वह होता है, जो प्रतिक्रिया का जीवन नहीं जीता, किन्तु किया का जीवन जीता है, स्वतन्त्रता का जीवन जीता है। आप देखिए, थोड़ी-सी बात किसी ने अप्रिय कही और मुझे को आ जाता है। क्या मेरा यह क्रिया का जीवन है ? क्रिया का नहीं है, किन्तु प्रतिक्रिया का है। मैं प्रतिविम्य का जीवन जी रहा हूं। सामने जैसा आता है वैसा मैं बन जाता हूं ।
सारी दुनिया प्रतिक्रिया का जीवन जी रही है और प्रतिक्रिया का जीवन जीने वाला कोई भी व्यक्ति स्वतन्त्र हो सकता है ? स्वतन्त्रता का समर्थन कर सकता है ? या स्वतन्त्रता का दावा कर सकता है ? जो जितना करता है उतना ही झूठ है। हमारे यहां अध्यात्म की गाथा गायी गयी। उसे इसलिए महत्त्व दिया गया है कि अध्यात्म को समझने वाला व्यक्ति प्रतिक्रिया का जीवन नहीं जीता। कोई सामने गाली देता है तो यह हंसता है, मुसकराता है, क्योंकि यह प्रतिक्रिया का जीवन नहीं जीता। अन्यथा गाली दे तो उसे भी गाली देना चाहिए। पीटे तो उसे भी पोटना चाहिए और मारे तो उसे भी मारना चाहिए। ईंट से मारे तो पत्थर से जवाब देना चाहिए । उस स्थिति में आध्यात्मिक व्यक्ति क्या करता है ? गाली नहीं देता, मारता-पीटता नहीं। प्रधानमंत्री श्री इन्दिरा गाधी ने अभी कहा था कि कुछ लोग हमें धमकियां देते हैं, परन्तु चे धमकियां अब कोई काम की नहीं होंगी। हम लोग धमकियों से डरेंगे नही और साथ-साथ भारत धमकियां देना भी नहीं चाहता। धमकी को
क्या हम स्वतंत्र हैं ? : ११७
धमकी देना भारत नहीं जानता। यह भारत की अपनी प्रकृति की विशेषता है। धमकी के सामने वह झुकता भी नहीं है, किन्तु धमकी देना भी नहीं चाहता। यह है स्वतन्त्रता, यह है क्रिया का जीवन । अगर धमकी का जवाब धमकी से दिया जाए तो वह होगा प्रतिक्रिया का जीवन । यानी परतन्त्रता का जीवन । हमारा जीवन ऐसा बन जाता है, जैसे बच्चे का खिलौना । बच्चा खिलौने को चाहे जैसे इधर-उधर कर देता है। हमारा जीवन वैसा ही बन जाता है कि कोई रुलाना चाहे तो हम रो सकते हैं, हंसाना चाहे तो हंस सकते हैं, खिलाना चाहे तो खिल सकते हैं, मुरझाना चाहे तो मुरझा जाते हैं । दो बात प्रशंसा को कहता है, हम खिल जाते हैं। दो गोलियां देता है, हम मुरझा जाते हैं । थोड़ा-सा कुछ दिया, हम खुश हो जाते है और थोड़ी-सी कोई अप्रिय घटना घटी. हम रोने लग जाते हैं। यह हमारा परतन्त्रता का जीवन होता है।
हमें केवल शारीरिक, भौतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टि से ही स्वतन्त्रता पर विचार नहीं करना है और भारत ने कभी ऐसा नहीं किया। जो केवल इन बातों पर हो विचार करते हैं, उनका अधूरा दर्शन, अधूरा दृष्टिकोण और अधूरी वात रहती है ।
बहुत बड़ी कठिनाई है हमारे चरित्र निर्माण को । या तो हमारे धरित का निर्माण होता है भय के आधार पर या हमारे चरित्र का निर्माण होता है प्रशंसा या दण्ड के आधार पर । किन्तु इनसे व्यक्ति का कोई स्वतन्त्र व्यक्तित्व नही बनता । चरित्र का कोई मौलिक आधार नहीं बनता, कोई पृष्ठभूमि नहीं बनती । वे धर्म करते है तो भय के आधार पर । ये सोचते है कि धर्म नहीं करेंगे तो नरक में चले जाएंगे। नरक में जाने का भय है, इसलिए धर्म करते हैं। धर्म का कोई स्वतन्त्र मूल्य नहीं है। अगर आज कोई कह दे कि तुम हिमा करो- नरक में नहीं जाओगे तो वे हिंसा करने के लिए तैयार हो जाएंगे। इसलिए शायद यह कहा गया कि युद्ध जीतोगे तो लक्ष्मी मिलेगी। युद्ध में मरोगे तो देवांगना मिलेगी। यह देवांगना का प्रलोभन भी शायद युद्ध-स्थान में भरने में सहायक रहा 1
११८ : विचार का अनुबंध
यदि प्रलोभन के आधार पर हमारे चरित्र का निर्माण नहीं होता, शुद्ध कर्तव्य की भावना और आदर्श की निष्ठा के आधार पर हमारे चरित्र का निर्माण होता तो शायद ऐसी बातें नहीं कही जातीं। बहुत सारी बातें यही कही जाती हैं महा कि यह करोगे तो नरक में जाओगे और बढ़ करोगे तो स्वर्ग में जाओगे। तो ये दोनों हमारे धर्म करने के कोण बन गए है-~-एक भय का और एक प्रलोभन का। एक हाथ में भय का पलड़ा है और एक हाथ मे प्रलोभन का पलड़ा है। अगर ये दोनों पलड़े टूट जाएं तो धर्म भी हमारा टूट जाता है और इसीलिए धर्म टूट रहा है। आज के वैज्ञानिकों ने और बौद्धिक व्यक्तियों ने जब इस स्वर्ग और नरक की बात को थोड़ा-सा कुठला दिया तो आज लोगों की धर्म की आस्था भो जरा धुंधली-सी हो गयी, क्योंकि जो आधार था वह टूटने लगा तो फिर ऊपर की बात कहां रहती है ? अगर किसी का मूल उखड़ जाएगा तो फूल और पत्ती कहां टिकेंगे ? धर्म का आधार होना चाहिए या व्यक्ति का स्वतन्त्र चिन्तन, व्यक्ति का स्वतन्त्र आदर्श और स्वतंत्र निष्ठा । जब हम स्वतन्त्रता की बात करें तो बहुत गम्भीर बात है कि हमारा मस्तिष्क, हमारा मन, हमारा हृदय, हमारी आस्थाएं स्वतन्त्र हो । उसी परिस्थिति मे व्यक्ति स्वतन्त्र हो सकता है जब कि वह बाहर के वातावरण से प्रभावित न हो। ऐसा कोई वातानुकूलित स्थान दुनिया में नहीं है, जहां सब लोग बैठ जाएं और चाहर का असर न हो । साधारण आदमी इतना भावुक होता है कि उस पर हर परिस्थिति का असर हो जाता है और उस असर के कारण वह प्रतिक्रिया का जीवन जीता चला जाता है। जिस व्यक्ति ने मेरा कुछ विगाड दिया, जब तक में प्रतिशोध नहीं ले लेता हूं तब तक मुझे चैन नहीं पड़ता। दस-बीस वर्ष तक भी मैं उस प्रतिशोध की भावना को भुला नहीं पाता, जब तक मैं प्रतिशोधन ले लूं । यह प्रतिशोध की तीव्र भावना, प्रतिक्रिया को तीव्र भावना होते हुए क्या हम यह कह सकते हैं कि हम स्वतन्त्र है ? हम स्वतन्त्रता का जीवन जीते हैं ? हम स्वतन्त्रता को समझें और अपने स्वतन्त्र जीवन का निर्माण करें। जब
क्या हम स्वतंत्र है ? : ११६
भौगोलिक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती, नागरिक अपने देश का स्वामी स्वयं नहीं होता, तो वह अपने देश का निर्माण नहीं कर सकता । पूर्व बंगाल की जटिलता क्यों बढ़ो ? बंगाल इतना उत्पादक देश जहां से कि अरबों रुपयों का जूट निर्यात होता था, फिर भी इतना गरीव क्यों रहा ? वास्तव में वह सही अर्थ मे स्वतन्त्र नहीं था। उसकी सारी आमदनी का उपयोग दूसरे स्थान पर हो रहा था, पश्चिमी पाकिस्तान में हो रहा था। इसी प्रतिक्रिया ने बंगाल के मन में, बंगलादेश के निवासियों के मन में एक भावना पैदा की और उस भावना का यह परिणाम आया कि आज वंगला देश स्वतन्त्र हो गया । भौगोलिक स्वतन्त्रता, राजनैतिक स्वतन्त्रता न होने पर व्यक्ति अपने अस्तित्व का, अपने देश का निर्माण नहीं कर पाता। जहां हमारी चारित्रिक स्वतन्त्रता नहीं है, चरित्र का स्वतन्त्र मूल्य नहीं है, वहां व्यक्ति अपने जीवन का निर्माण कैसे कर पाएगा ? इसलिए हमें इस विषय पर बहुत गहराई से विचार करना चाहिए और यह सोचना भी बहुत जरूरी है कि हम अपने कर्तव्य का चरित्र और निष्ठा का निर्धारण सिद्धान्त के आधार पर करें, दूसरी चीज के आधार पर नहीं ।
आचार्यश्री बहुत वार उपदेश देते हैं कि समाज को थोड़ा बदलना चाहिए, सामाजिक रूढ़ियों में परिवर्तन आना चाहिए, वैवाहिक प्रदर्शनों में परिवर्तन आना चाहिए - ज़माने के अनुसार कुछ बातें परिवर्तित होनी चाहिए। लोग यह अनुभव भी करते हैं कि वर्तमान की परिस्थिति में ऐसा होना चाहिए। परन्तु जब दूसरी ओर मुड़ते हैं, देखते हैं तो मोचते हैं कि यह नहीं करेंगे तो पड़ोसो क्या कहेंगे ? सगे-सम्बन्धी क्या कहेंगे ? गांव क्या कहेंगा ? इतना धन कमाया और शादी पर भोज भी नहीं दिया ?
अब गांव क्या कहेगा, सगे-सम्बन्धी क्या कहेंगे, यह सब सोचते हैं तब सारे मिद्धान्त कही के कही चले जाते हैं। दो चीजें हैं- एक सिद्धान्त और एक व्यवहार । इनमें दूरी रहती है। मैंने पाई यार मोचा कि इस दूरी का कारण क्या है ? मैंने समझा कि सिद्धान्त का निर्धारण होता है हमारी बुद्धि के द्वारा और व्यवहार का निर्धारण होता है हमारी रागात्मक
१२० : विचार का अनुबंध
भावनाओं के द्वारा । बुद्धि द्वारा होने वाला निर्णय और रागात्मक भावनाओं द्वारा होने वाला निर्णय पूरा मिल नहीं पाता। जब तक हम रागात्मक भावनाओं पर तथा भय, क्रोध आदि आवेगों पर विजय नहीं पाएंगे तब तक बुद्धि और कर्तव्य का सामंजस्य होगा नहीं। उनमें वह साई या विरोध बना का बना रहेगा । धार्मिक वह होता है जो रागात्मक वृत्तियों पर भी नियंत्रण पाता है। रागात्मक भावनाओं पर नियंत्रण और सैद्धान्तिक दृढ़ता, दोनों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए जरूरी है स्वतन्त्रता का विकास और स्वतन्त्र होने के लिए जरूरी है रागात्मक भावनाओं पर विजय । अगर ऐसा योग मिलता है तो सचमुच हमारे जीवन में स्वतन्त्रता की नयी किरण फूटेगी और हम अपने जीवन में स्वतन्त्रता का नया अनुभव कर सकेंगे और उसी स्थिति में स्वतन्त्रता हमारे लिए भौतिक और आध्यात्मिक- दोनों क्षेत्रों में वरदान बन पाएगी।
सृजनात्मक स्वतंत्रता
अन्तर्जगत् में हर वस्तु का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है। उसमें किसी दूसरे का कोई हस्तक्षेप नही है । वह स्वतंत्रता निर्वाध श्रंखलाविहीन, अप्रतिचद्ध और निरकुंश है। स्वतंत्रता का नियमन बाह्य विस्तार में होता है । अन्तर्जगत् में समग्र एकता होती है। इसलिए वहां स्वतंत्रता निर्मर्याद होतो है। घर में अकेला आदमी है । वह जहां चाहे बैठ सकता है, सो सकता है। उसी घर में दो आदमी हो जाते हैं तब उस व्यक्ति की स्वतंत्रता मर्यादित हो जाती है। फिर वह अमुक स्थान में बैठ सकता है, सो सकता है, अमुक में नहीं बैठ सकता, नही सो सकता । स्वतंत्रता को मर्यादा हैव्यक्ति का द्वन्द्वीकरण या समाजीकरण । कोई भी सामाजिक व्यक्ति पूर्ण स्वतंत्र नहीं हो सकता। वाह्य जगत् मे अनेकता है और जहां अनेकता है वहां स्वतंत्रता सीमित हो जाती है ।
स्वतंत्रता का नियमन देश, काल, वातावरण और दृश्य सृष्टि के द्वारा होता है। एक दृश्य को देख कर व्यक्ति कामुक बन जाता है। यह उसको स्वतंत्रता नही, किन्तु दृश्य की अधीनता का वरण है। देश, काल और परिस्थिति से अप्रभावित आचरण स्वतंत्रता के सूचक हो सकते हैं, किन्तु उनके प्रभाव से प्रतिवद्ध आचरण स्वतंत्र नहीं हो सकते । वह अपनी दृश्याधीनता की स्वतंत्रता का विकृत परिधान देने का कृत्रिम उपाय है।
बाह्य विस्तार से प्रभावित नहीं होना अस्तित्व की नकारात्मक स्वतंनता है। अस्तित्व में बाह्य क्षमताओं को अनावृत करना उसकी सृजनात्मक
१२२ : विचार का अनुबंध
स्वतंत्रता है। आधुनिक भारतीय साहित्य के रंगमंच पर एकांगी धाराओं का अभिनय हो रहा है। वास्तविकता धाराओं की समन्विति है। यथार्थ एकागी दृष्टि से गृहीत नहीं होता। इसीलिए हमारा साहित्य अपनी प्रगतिवादिता के उद्घोष के उपरान्त भी वस्तु-स्पर्धी नहीं है । यह वस्तु-स्पर्शी नहीं है इसीलिए वह मानवीय समस्याओं की व्यंजना में पर्याप्त सक्षम भी नही है।
मनुष्य का जीवन द्वंद्वात्मक है। उसमें प्रकाश भी है और अन्धकार भी है । स्वतंत्रता भी है और नियंत्रण भी है। अनुराग भी है और विराग भी है। हम इनका एकपक्षीय लोप या समारोप नहीं कर सकते ।
सृजन और ध्वंस में परस्पर अनुबन्ध है। पूर्वावस्या का ध्वंस होता है और उत्तरावस्था का सृजन । फिर ध्वंस और सृजन - इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है। किन्तु सृजन की प्रेरणा वहां से प्राप्त होती है जो सूजन और ध्वंस के अन्तराल में अनुस्यूत है। भारतीय साहित्यकार इस अनुस्यूति से कितना परिचित है, मैं नहीं कह सकता।
हम शाश्वत और मशाश्वत दोनों की सत्ता को हृदयगम किए बिना सृजनात्मक साहित्य की प्रतिपत्ति नहीं कर सकते।
क्या हम अंतश्चेतना द्वारा सृष्ट परिवर्तनों की उपेक्षा कर परिस्थति को बदलने में सक्षम हो सकते हैं ? सक्षम होकर भी क्या उससे बहुत लाभान्वित हो सकते हैं ?
समस्याओं का सर्वांगीण अध्ययन, सापेक्ष स्वीकार और सांपेक्ष समाधान प्रस्तुत कर हम सर्वेसमाहारी साहित्यिक परम्परा का सूत्रपात कर सकते हैं । सृजनात्मक साहित्य की एकांगी धारणा के कारण उसके मूल्य भी एकांगी हो गए हैं। अनावरण, कामुकता, स्वतंत्रता, आस्थाभंग आदि मूल्यों की स्थापना को सर्वथा त्रुटिपूर्ण नहीं जा सकता तो क्या आवरण, विराग, नियन्त्रण, आस्था आदि मूल्यों के विघटन को सर्वथा उचित कहा जा सकता है ?
आज जो हो रहा है उसके पीछे प्रकृत कम है, अनुकृति ज्यादा है। |
ced21f553b05fff5a55114532b51152671185c4de4d190ca444cdaad6af581d2 | pdf | या तुम्हें सबके अंदर कोई एक सामान्य बात दिखाई देती है ? तुम स्वयं इसे जानने की कोशिश करो ।
स्कूल के वार्षिकोत्सव के एक महीने पहले से ही स्कूल में बड़ी चहल पहल थी । इस दिन पाठशाला में अभिभावकों और मित्रों के लिए शाम को एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन था । इस दिन बच्चे विशिष्ट योग्यता का प्रमाणपत्र पाने वाले थे । उन सभी बच्चों को प्रमाण पत्र मिलने वाला था जिन्हें किसी विषय मे 65% या इससे अधिक अंक मिले थे, जिन्होंने खेलकूद, संगीत, कला, वाद-विवाद, नाटक या किसी विशेष विषय में योग्यता प्राप्त की थी । इस पाठशाला में किसी कक्षा के केवल प्रथम तीन बच्चों को ही पुरस्कार नहीं दिया जाता था । वे उन सब बच्चों को पुरस्कृत करना चाहते थे जिनमें प्रतिभा थी या जिन्होंने प्रयत्न किया था। इसका परिणाम यह था कि छात्रों में शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने की पूरी उमंग थी क्योंकि यहाँ प्रतिस्पर्धा नहीं थी और अधिक से अधिक छात्र इसके प्रतिभागी हो सकते थे। सब छात्र बड़ी उत्सुकता से इस दिन की प्रतीक्षा में थे ।
जो शिक्षक साधारण रूप से कार्यक्रमों का आयोजन करते थे उन्होंने यह निश्चय किया कि मुख्य रूप से तीन कार्यक्रम लिए जाएँ और अधिक से अधिक बच्चों को अवसर दिया जाए । उन्होंने अंग्रेजी में एक ऐतिहासिक नाटक चुना जिसका संबंध महारानी एलिजाबेथ तथा सर वाल्टर रेले के समय से था, हिंदी में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से एक महत्वपूर्ण घटना नमक सत्याग्रह के प्रदर्शन का निश्चय किया जब गांधी जी ने डांडी यात्रा का नेतृत्व किया था । कक्षा आठ के बच्चों ने इस विषय को पढ़ने के बाद स्वयं ही इसे लिखा था, इसके । बाद विभिन्न प्रांतों के लोक नृत्यों का संबंध वर्षा ऋतु के आगमन और उनके स्वागत के लिए उत्सुक नर-नारियों से था । ये नृत्य बंगाल, पंजाब, कश्मीर, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, उड़ीसा के प्रांतों से लिए गए थे। गीतो का चयन बहुत सोच समझकर किया गया था और नृत्यों को बड़ी ही विशिष्ट शैली में तैयार किया गया था। वेशभूषा के औचित्य पर भी बहुत अधिक ध्यान दिया गया था । यह ध्यान रखा गया कि किसी भी गीत या नृत्य पर फिल्मी प्रभाव न हो ।
प्रतिदिन कक्षा के बाद एक घंटा अभ्यास के लिए निश्चित किया गया था किंतु जमा होने में बच्चे काफी अधिक समय लगाते थे । कुमारी चित्रा गोखले पर इन सब सांस्कृतिक कार्यक्रमों की जिम्मेदारी थी । शायद और कोई होता तो यह काम न कर पाता । लेकिन उनमें करने की शक्ति तथा धैर्य और सब पर उनका पूर्ण नियंत्रण था । वे हर कार्यक्रम के लिए स्थान और शिक्षिकाओं का चुनाव बराबर करती थीं। लेकिन एक समस्या जो स्कूल के सामने थी वह यह कि अधिकांश बच्चे समय के पाबंद न थे । कक्षा के बाद बच्चे निकलते तो ऐसा लगता कि वे किसी बंधन से बाहर निकले हों और उन्हें अपने मन की बातें कहने और फिर से जमा होने में समय लगता । इसलिए रिहर्सल को समय पर प्रारंभ करने की जिम्मेदारी के प्रश्न को लेकर विद्यार्थियों की परिषद् बुलाई गई। स्वाभाविक था कि जैसे-जैसे दिन नजदीक आता गया हर कोई अपने उत्तरदायित्व के प्रति सचेत होता गया। क्या यह तय नहीं है कि हममें गंभीरता तथा जागरूकता लाने के लिए एक चुनौती की आवश्यकता पड़ती है ?
स्कूल दिवस के दिन मंच के पीछे तरह-तरह के भाव देखने को मिले जैसे घबराहट, उत्साह, ईर्ष्या, निराशा, क्रोध, सहयोग की भावना इत्यादि । शिक्षक और अभिभावक मेकप कर रहे थे । "रानी" इतनी सुंदर लग रही थी कि उस लड़की को ईर्ष्या हुई जिसे दासी के कपड़े पहनने थे । लोक नर्तकों के बीच लोक आभूषण और फूलों की खोज जारी थी । हर कोई सुंदर दिखना चाहता था । शिक्षकों को अब बच्चों के अलग भावों को संभालना कठिन प्रतीत हो रहा था परंतु साधारण रूप से प्रत्येक के मन में उमंग और उत्साह की भावना थी। जैसे-जैसे हर चरित्र सजीव होता गया वैसे-वैसे तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उनकी सराहना हुई । सज्जा कक्ष एक मंच जैसा प्रतीत हो रहा था जहाँ लगता था कि जीवन का नाटक हर साल सफलता के साथ खेला जाता है ।
शामियाने का दृश्य बिलकुल अलग था। कुछ शिक्षक और छात्र कुर्सियाँ लगा रहे थे और परख रहे थे कि हर तरफ से दृश्य दिखाई देगा या नहीं । प्रधानाचार्य इधर- उधर घूम रही थीं और बैठने की व्यवस्था, स्वयंसेवक तथा माइक्रोफोन की व्यवस्था की निगरानी कर रही थीं।
निमंत्रण पत्र पर छपे समय के दस मिनट पहले प्रधानाचार्य, शिक्षक और कुछ वरिष्ठ छात्र प्रवेश द्वार पर अतिथियों का स्वागत करने के लिए तैयार खड़े थे । सब अपने मन में गर्व का अनुभव कर रहे थे । स्कूल की ओर से उन्हें निमंत्रण मिला था, ताकि वे भी अपनी
राजनीतिक चिंताओं को भूलकर फिर से अपने बचपन के दिनों की याद ताजा कर सकें । प्रार्थना के पश्चात एक छात्र ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया और उसके बाद ठीक समय पर कार्यक्रम प्रारंभ हुआ । शायद मंत्री महोदय इसके आदी न थे । मंच सीधा सादा-सा था केवल पीछे एक गहरे सुनहले रंग का परदा था और कुछ कामचलाऊ वस्तुएँ थीं जो बच्चे स्वयं ही बना सकते थे । यह ऐसी उन्नतिशील पाठशाला थी जहाँ निर्जीव मंच सज्जा से अधिक बच्चों की प्रतिभा पर बल दिया जाता था ।
आजकल देश में अंग्रेजी के गिरते हुए स्तर को देखते हुए अंग्रेजी नाटक बहुत ही अच्छा था । एक स्थान पर इस नाटक की निर्देशिका शिक्षिका को यह सोचकर घबराहट हो रही थी कि शायद रानी उस एलिज़ाबेथ युगीन वस्त्र को पहनकर ठीक प्रकार से अभिनय न कर पाएगी परंतु रानी ने अपने आपको इस तरह प्रस्तुत किया कि मानो वही महारानी एलिज़ाबेथ है। बच्चे समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं। यह प्रशिक्षण की वह अवस्था होती है जब वे कठिनाइयाँ पैदा करते हैं ।
नमक सत्याग्रह आंदोलन का दृश्य बड़ा की मर्मस्पर्शी था जिसे देखकर श्रोताओं में बैठे छोटे-बड़े सब की आँखों में आंसू आ गए । महात्मा गांधी का अभिनय करने बाला लड़का एकदम महात्मा गांधी लग रहा था और उसका अभिनय गांधी जी पर बनी फिल्म के अभिनेता बने किंग्सले से किसी भी दृष्टि से कम न था । वास्तव में उसने यह फिल्म कई बार देखी थी ताकि गांधी जी की चाल, मुस्कुराहट, कमर का झुकाव, पोशाक आदि के बारे में बारीकी से जान सके । वह अपने स्कूल का सबसे अच्छा लड़का था और अपना हर काम बड़ा मन लगाकर किया करता था। संवाद बहुत ही सरल और सीधे थे क्योंकि वह बच्चों के ही द्वारा लिखे गए थे और इसलिए सारा दृश्य बड़ा ही स्वाभाविक लग रहा था। हर एक बच्चा अपनी भूमिका को समझ कर और जी लगाकर कर रहा था । कुल मिलाकर अस्सी विद्यार्थी इसमें भाग ले रहे थे। संगीत भी बहुत ही मधुर था । श्रोताओं पर बड़ा ही गहरा प्रभाव पड़ा। माता-पिता अपने बच्चों को मंच पर देखकर काफी प्रसन्न थे । माता-पिता के लिए स्कूल दिवस बड़ा ही महत्वपूर्ण होता है और वे बड़ी उत्सुकता से इसकी प्रतीक्षा करते हैं । वे अन्य बच्चों को भी पहचानने की कोशिश कर रहे थे क्योंकि उनके बच्चों ने कई छोटी-छोटी घटनाएँ उन्हें सुनाई थीं ।
इसके पश्चात एक ताज़ी हवा के झोंके समान आए लोक नृत्य । वर्षा का अभिनंदन
करते हुए और मुसकुराहट लिए पूरे उल्लास से नृत्य करते हुए उन बच्चों की प्रसन्नता से श्रोताओं पर भी छा गई । वास्तव में उस शहर में पिछले दो वर्षों में वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ा था और इसी कारण वर्षा ऋतु के इस नृत्य ने बच्चे और बूढ़ो के मन में वर्षा ऋतु के स्वागत करने की उमंग जगा दी । यह गीत विभिन्न भारतीय भाषाओं जैसे मराठी, गुजराती, बंगाली, मलयालम में थे और बच्चों ने भी बड़े मनोयोग से उन्हें सीखा था। भारत की भाषाएँ सीखना कितना सरल है और इन्हें बोलने में कितना आनंद मिलता है । हर भाषा अपने आप में मूल्यवान और सुंदर है, हरेक का अपना अलग स्वरूप है । इससे दिमाग में एक प्रश्न उभरता है कि हम भाषा को लेकर इसे जटिल बनाकर क्यों एक समस्या का रूप दे देते हैं कि बच्चे स्कूल में कौन-सी भाषा सीखें और कौन-सी न सीखें ।
उस शाम के सभी कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हुए। मंच के पीछे बच्चे एक दूसरे को गले लगा रहे थे । शिक्षकों ने आराम की सांस ली। वे थक तो गए थे किंतु प्रसन्न थे ।
शामियाने में मुख्य अतिथि को मंच पर ले जाया गया। उन्होंने बच्चों को बधाई देते हुए एक सुंदर भाषण दिया। इसमें उन्होंने बच्चों से आग्रह किया कि स्कूल में रहते हुए भविष्य के लिए उत्साहपूर्वक, नित नई खोज करने वाले जीवन के लिए अपने आपको तैयार करना चाहिए। मुख्य अतिथि की पत्नी ने सबको प्रमाण पत्र दिए। इस प्रमाण पत्र को बड़े ही सुंदर रूप से गुलाबी फीतों में बांधकर कुमारी गोखले ने मेज पर रखा था । कुमारी गोखले स्कूल में तीस वर्षों से थीं और प्रतिवर्ष उन्हें यह करने में बड़ा आनंद मिलता था । शामियाने में अपूर्व शांति थी और श्रोता काफी अच्छे थे । प्रधानाचार्य ने सबको धन्यवाद दिया खास कर बच्चों को शिक्षकों को तथा स्कूल के अन्य कार्यकर्ताओं को । स्कूल के लिए भावनाओं से भरे अपूर्व अनुभव के ये क्षण थे।
क्या तुमने अनुभव किया है कि स्कूल दिवस मनाते समय कितनी प्रकार की भावनाओं से पाला पड़ता है और कभी-कभी हमारा व्यवहार कितना बेवकूफी भरा होता है ? क्या तुमने देखा है कि दूसरे दिन कितने साधारण होते हैं ? इसका कारण क्या है ? जरा सोचो।
क्या तुम अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता प्राप्ति के संग्राम की इस देश की कहानी से परिचित हो ? अब यह एक कहानी के रूप में, इतिहास के पृष्ठों का एक अंग बन गई है। इसे पढ़ो और इस विषय पर चर्चा करो और यह जान लो कि समय तथा चुनौती का सामना करने पर मानव उत्साह कैसे जागृत होता है जैसे कि हमारे मन में सामूहिक रूप से गुलामी के
विरुद्ध उठ खड़े होने की भावना जागी थी ।
भाषाओं को सीखने के विषय में भी ज़रा सोचकर देखो। तुम कितनी भाषाएँ जानते हो ? क्या कई भाषाओं को जानने का अपना अलग मज़ा नहीं ? क्या तुम किसी अन्य प्रांत की भाषा सीखने के लिए थोड़ा समय नहीं लगाना चाहोगे ताकि तुम वहाँ जा सको और वहाँ अपने आपको उन लोगों से अलग न अनुभव कर सको ? तुम उस भाषा में सरल किताबें पढ़ सकते हो और अगर तुमने वह भाषा अच्छी तरह से सीख ली तो वहाँ का साहित्य भी पढ़ सकते हो । अगर तुम उत्तर भारत में रहते हो तो अच्छी हिंदी सीखने का प्रयत्न करो और कोई एक दक्षिण भारत की भाषा जैसे तमिल भी सीखो । तमिल भाषा संसार की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है और उसका साहित्य विपुल है अथवा तुम कन्नड़, मलयालम या तेलुगु सीख सकते हो । अगर तुम दक्षिण भारतीय हो तो हिंदी के अतिरिक्त बंगाली, उड़िया, असमिया सीखने का प्रयत्न कर सकते हो और इस तरह भावात्मक एकता द्वारा पूरे देश में एकता ला सकते हो । एक देश की संपदा उसकी भाषाएँ, उसका साहित्य, उसकी संस्कृति और उसकी भावना है। क्या तुम इससे सहमत हो ? |
28dca0762b1523cf8c8e89c16be85fbc7aade0f9 | web | इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में त्रिपुरा, असम और मणिपुर के प्रमुख समाचार.
अगरतला/नई दिल्ली/गुवाहाटी/इम्फालः त्रिपुरा के गोमती जिले में दक्षिणपंथी समूहोंऔर पुलिस के बीच 21 अक्टूबर को हुई झड़प में तीन पुलिसकर्मियों सहित 12 से अधिक लोग घायल हो गए.
पुलिस ने दक्षिणपंथी समूहों को बांग्लादेश में कथित तौर पर सांप्रदायिक हमलों के खिलाफ विरोध रैली निकालने की मंजूरी नहीं दी थी.
पुलिस का कहना है कि कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की खबरों के बाद दक्षिणपंथी समूहों को विरोध रैली की मंजूरी नहीं दी गई. यह रैली गोमती जिले के उदयपुर सब डिविजन के फोटामती और हीरापुर इलाकों में होने वाली थी.
द वायर से बातचीत में महानिरीक्षक (कानून एवं व्यवस्था) अरिंदम नाथ ने कहा कि यह रैली विश्व हिंदू परिषद (विहिप) द्वारा फुटामती, महारानी और हीरापुर इलाकों में होने वाली थी, जहां अल्पसंख्यक बहुसंख्या में रहते हैं.
रैली में शामिल आरएसएस के स्थानीय नेता अभिजीत चक्रबर्ती ने दावा किया कि उन्होंने रैली के लिए पहले मंजूरी ले ली थी लेकिन जब वे रैली के लिए इकट्ठा हुए तो सुरक्षा कारणों का हवाला देकर उन्हें रोक दिया गया.
हालांकि, विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष का कहना है कि उनके संगठन द्वारा ऐसी कोई रैली का आयोजन नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि रैली का आयोजन एक अन्य हिंदूवादी संगठन हिंदू जागरण मंच ने किया था.
पश्चिम त्रिपुरा के अगरतला और उत्तरी त्रिपुरा के धर्मनगर में 21 अक्टूबर को इसी तरह की रैलियां हुईं.
इस दौरान अगरतला में लगभग 13 संगठनों ने व्यापक विरोध रैली निकाली और बांग्लादेश के सहायक उच्चायुक्त के कार्यालय में डेप्यूटेशन सौंपकर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों में शामिल लोगों की पहचान कर उन्हें दंडित करने की मांग की.
उत्तरी त्रिपुरा जिले के धर्मनगर में 21 अक्टूबर को हुई रैली में लगभग 10,000 लोग शामिल हुए.
उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एक केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने असम सरकार को काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में पशु गलियारों के आसपास अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा है.
सीईसी ने असम के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा कि की गई कार्रवाई की रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर समिति को सौंपी जानी चाहिए.
हजारिका का पत्र वन्यजीव गलियारे का निरीक्षण करने के बाद वन उप महानिरीक्षक (मध्य) के एलजे सिएमियोनग द्वारा दाखिल एक रिपोर्ट पर आधारित था. रिपोर्ट पर्यावरण कार्यकर्ता रोहित चौधरी की शिकायत के जवाब में सौंपी गई थी, जिन्होंने उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना करते हुए पशु गलियारों में अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध किया था.
उच्चतम न्यायालय ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और असम में कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों से निकलने वाली नदियों के जलग्रहण क्षेत्र के साथ सभी खनन गतिविधियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया था.
त्रिपुरा में शुक्रवार को कुछ अज्ञात लोगों ने तृणमूल कांग्रेस सासंद सुष्मिता देव की कार पर हमला कर, तोड़-फोड़ की. इस हमले में तृणमूल कांग्रेस का चुनावी कैंपेन देख रही एक निजी कंपनी के कुछ कर्मचारी घायल हो गए.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस की गतिविधियों पर नजर रख रही सुष्मिता देव का आरोप है कि इस हमले में भाजपा का हाथ है.
जिस समय यह हमला हुआ देव इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आईपैक) के कर्मचारियों के साथ थीं.
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर और आई-पैक ने इस साल की शुरुआत में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी के साथ काम किया था.
People of #Tripura will give a befitting response to this BARBARIC ATTACK!
सोशल मीडिया पर वायरल इस घटना के वीडियो में नीले रंग की एक एसयूवी देखी जा सकती है, जिस पर टीएमस का चुनाव चिह्म और छत पर लाउडस्पीकर लगा है.
वहीं, तृणमूल कांग्रेस के महासचिव और सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा कि भाजपा त्रिपुरा की बिप्लब देव सरकार के तहत विरोधियों पर हमला कर नए रिकॉर्ड बना रही हैं.
असम भाजपा के अध्यक्ष भावेश कलिता ने शुक्रवार को कहा कि पेट्रोल के दाम 200 प्रति लीटर होने पर पार्टी राज्य सरकार से दोपहिया वाहनों पर ट्रिपलिंग की मंजूरी लेगी.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, पेट्रोल, डीजल की कीमतें 100 रुपये का स्तर पार करने पर भावेश कलिता ने गुवाहाटी में स्थानीय मीडिया को बताया, जब पेट्रोल की कीमतें 200 रुपये प्रति लीटर होगी तो हम राज्य सरकार से दोपहिया वाहनों पर ट्रिपलिंग की छूट की मंजूरी लेंगे या फिर हम तीन सीट वाली बाइकों का उत्पादन करेंगे.
उन्होंने कहा कि राज्य में सरसो की कटाई के बाद खाद्यान्न तेल की कीमतों में गिरावट आएगी.
उनका यह बयान ऐसे समय पर सामने आया है, जब पेट्रोल, डीजल की कीमतें 100 रुपये प्रति लीटर को पार कर गई है. शुक्रवार को गुवाहाटी में पेट्रोल की कीमत 102. 11 प्रति लीटर और डीजल की 95. 39 रुपये प्रति लीटर थी.
असम के बक्सा जिले के तामुलपुर इलाके में 18 अक्टूबर को आयोजित कार्यक्रम के दौरान असम भजापा अध्यक्ष ने लोगों से ईंधन बचाने के लिए लग्जरी कारों के इस्तेमाल से बचने और इसके बजाय दोपहिया वाहनों का इस्तेमाल करने की सलाह दी.
इससे पहले पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा कोविड-19 का निशुल्क टीका मुहैया कराने से पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ी हैं.
अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस (एलपीजी) एवं आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में हो रही बढोत्तरी के खिलाफ शुक्रवार को पूरे असम प्रदेश में विरोध प्रदर्शन करते हुये 'सत्याग्रह' किया.
आसू के सदस्यों ने अपने हाथों में बैनर, तख्तियां एवं रसोई गैस सिलेंडर का कटआउट लेकर नारेबाजी की और आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में हो रही बेतहाशा वृद्धि पर लगाम लगाये जाने की मांग की.
आसू के मुख्य सलाहकार डॉ. समुज्ज्वल भट्टाचार्य ने संगठन के मुख्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन के दौरान कहा, असम और केंद्र सरकारें बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने में विफल साबित हुई हैं.
आसू के मुख्य सलाहकार ने दावा किया कि रसोई गैस, पेट्रोल एवं डीजल की हो रही बढ़ोत्तरी से सभी वर्ग के लोग प्रभावित हैं लेकिन सरकार को इसकी चिंता नहीं है.
प्रदेश के सभी जिला मुख्यलयों में संगठन की ओर से इस तरह का प्रदर्शन किया गया. बता दें कि इससे पहले विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने 21 अक्टूबर को पूरे प्रदेश में महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया था.
असम प्रदेश कांग्रेस समिति के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने हाथ में बैनर और तख्तियां लिए नारेबाजी की.
उन्होंने तामूलपुर, मरियानी, थौरा, गोसाईगांव और भबानीपुर निर्वाचन क्षेत्रों के अलावा पूरे राज्य में प्रदर्शन किया, क्योंकि इन सभी जगह 30 अक्टूबर को उपचुनाव होने हैं.
पार्टी के सदस्यों ने पेट्रोल, डीज़ल, रसोई गैस के सिलेंडर और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि को रोकने के अपने चुनावी वादे को पूरा करने में कथित तौर पर विफल रही भाजपा की आलोचना की.
असम के नागांव जिले में छह वर्षीय अपनी दोस्त की कथित तौर पर पीट-पीटकर हत्या करने के मामले में तीन बच्चों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें से एक बच्चे की उम्र आठ और दो अन्य बच्चों की 11 साल है.
पुलिस ने शुक्रवार को बताया कि बच्ची ने लड़कों के साथ मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देखने से इनकार कर दिया था जिसके बाद उन्होंने कथित तौर पर उसकी हत्या कर दी.
पुलिस ने बताया कि एक आरोपी के पिता को कथित तौर पर साक्ष्य छिपाने के कारण गिरफ्तार किया गया है.
नागांव पुलिस अधीक्षक आनंद मिश्रा ने बताया कि यह घटना 18अक्टूबर की शाम को हुई थी. कालियाबोर उपमंडल के निजोरी स्थित पत्थर तोड़ने की एक मील के शौचालय से बच्ची का शव बरामद किया गया.
उन्होंने बताया गया कि बच्ची के शव पर चोट के निशान पाए गए हैं और पुलिस ने बच्ची की कथित तौर पर हत्या में शामिल होने के मामले में 11-11 साल के दो लड़कों और आठ वर्ष के एक लड़के को 20 अक्टूबर को हिरासत में लिया.
मिश्रा ने कहा कि एक आरोपी के पिता को कथित तौर पर साक्ष्य छिपाने और पुलिस के साथ सहयोग नहीं करने के कारण गिरफ्तार किया गया है.
मणिपुर की पुलिस अधिकारी थोउनाओजम बृंदा (टी. बृंदा) का कहना है कि वह आगामी विधानसभा चुनाव इम्फाल के यास्कुल निर्वाचन क्षेत्र से लड़ेंगी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि उन्होंने अभी यह घोषणा नहीं की है कि वह किस पार्टी में शामिल हो रही हैं. ऐसी अफवाहें हैं कि वह भाजपा में शामिल हो सकती हैं.
बृंदा ने कहा कि उन्होंने मौजूदा व्यवस्था को बदलने के लिए राजनीति में जाने का फैसला किया है.
गौरतलब है कि बृंदा ने अभी तक अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है. मालूम हो कि रविवार को बृंदा के समर्थन में एक चुनावी रैली को पुलिस द्वारा रोकने के बाद यास्कुल में उनके आवास के पास झड़प हुई थी.
पुलिसकर्मियों का कहना है कि रैली के लिए मिली आवश्यक मंजूरी के कागजात दिखाने में असफल रहने पर यह हुआ.
बता दें कि वह राज्य के नारकोटिक्स एंड अफेयर्स ऑफ बॉर्डर ब्यूरो (एनएबी) की पहली अधिकारी थीं, जिन्हें राज्य वीरता पुरस्कार दिया गया था.
सीमावर्ती राज्य में ड्रग्स की तस्करी और बिक्री के खिलाफ उनके निरंतर प्रयास के लिए अगस्त 2018 में भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया गया था और उन्हें अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर भी पदोन्नत किया गया था.
हालांकि, 2018 के हाईप्रोफाइल ड्रग्स मामले में एडीसी के पूर्व अध्यक्ष चंदेल लुखाउसी जू को मणिपुर की विशेष नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) अदालत द्वारा बरी करने के बाद विरोधस्वरूप बृंदा ने यह वीरता पदक लौटा दिया था.
बृंदा द्वारा 18 दिसंबर को राज्य पुलिस का वीरता पुरस्कार वापस किए जाने से एक दिन पहले इम्फाल में विशेष नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थ अधिनियम (एनडीपीएसए) अदालत ने उस शख्स (चंदेल ऑटोनॉमस जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष लुखाउसी जू) को रिहा कर दिया, जिसे बचाने का आरोप उन्होंने मुख्यमंत्री पर लगाया था.
जब उन्होंने चंदेल में लुखाउसी जू को 20 जून, 2018 को उनके आधिकारिक आवास पर छह अन्य लोगों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में 27 करोड़ रुपये की कीमत के ड्रग्स के साथ गिरफ्तार किया था, तब वह भाजपा के सदस्य थे.
हालांकि, इस मामले के संबंध में बृंदा ने मणिपुर हाईकोर्ट में दाखिल किए गए 16 पेज के हलफनामे का हिस्सा रहे दस्तावेजों में कहा था कि खासतौर पर लुखाउसी को बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप किया था.
राज्य पुलिस द्वारा चार्जशीट दायर किए जाने के चार दिन बाद लुखाउसी को एनडीपीएस अदालत ने जमानत दे दी, जिसके बाद वह फरार हो गया. हालांकि, पिछले साल फरवरी में उसने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन एनडीपीएसए अदालत ने 21 मई को फिर से जमानत दे दी.
असम सरकार के होजई के दबाका में साल के लगभग 5,000 पेड़ों को काटने के प्रस्ताव का इलाके के स्थानीय लोग कड़ा विरोध कर रहे हैं. विशेष रूप से ऐसे समय में जब क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दिखना शुरू हो गया है.
ईस्टमोजो की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल असम में अनुमान से कम बारिश हुई है और ऐसे समय में वनों की कटाई इस क्षेत्र के लिए विनाशकारी हो सकती है.
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के शोधकर्ताओं के हालिया विश्लेषण के मुताबिक, असम में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और बीते 20 सालों में वन संसाधनों की बर्बादी की वजह से 14. 1 फीसदी वन क्षेत्र समाप्त हो गया है.
सूत्रों के मुताबिक, असम सरकार ने चार लेन सड़क निर्माण के लिए वनों की कटाई के प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया है. हालांकि, वन विभाग ने अभी तक पेटों की कटाई की मंजूरी नहीं दी है.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि कटाई के लिए क्षेत्र के पेड़ों का चिह्नित किया गया है.
बता दें कि यह वन लगभग 600 स्थानीय लोगों का घर है. ये लोग इस तथ्य से नाराज हैं कि विभाग ने पर्यावरण को नष्ट करने से पहले उनसे पूछने की जरूरत महसूस नहीं की.
यह परियोजना अभी अपने शुरुआती चरण में है औऱ इसे अभी तक असम वन विभाग ने मंजूरी नहीं दी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
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13b5483f8b6ce584905b6967745f76e767a8eef1 | web | हथेली Livistona - यह विभाजन शीट के साथ एक उष्णकटिबंधीय संयंत्र, किसी भी इंटीरियर के लिए उत्साह जोड़ देगा है। कांटों, जो जीनस Livistona की एक विशेषता के साथ हथेली रेशेदार स्टेम में। यह संयंत्र विदेशी के सभी प्रशंसकों के द्वारा आनंद उठाया जा जाएगा।
Livistona - परिवार पाम का एक बारहमासी संयंत्र। नाम लिविंगस्टन, जहां वे रहते थे के शहर से, स्कॉटिश वनस्पतिशास्त्री पत्रिका Myurreya की स्मृति के सम्मान में आता है। अपने संक्षिप्त जीवन के दौरान P मुरे पौधों के हजारों के एक संग्रह को इकट्ठा करने में कामयाब रहे। मामलों में जहां सुंदर चमकदार प्रशंसक पत्तियों के साथ बड़े पेड़ थे की विविधता के बीच, 50-100 सेमी की एक व्यास तक पहुँचता है। पाम Livistona यह तथ्य यह है कि पेड़ धीरे धीरे बढ़ता है, वे पूरी तरह से घर में इस्तेमाल के लिए उपयुक्त हैं के कारण दलदली मिट्टी पसंद करते हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से यह उष्णकटिबंधीय जंगलों में और नदियों, जहां यह एक प्रभावशाली 25 मीटर की दूरी के लिए बढ़ सकता है के साथ पाया जा सकता है। । बर्तन अक्सर Livistona दक्षिण और चीनी बढ़ता है। पाल्मे अंतरिक्ष के एक बहुत जरूरत है, तो यह होटल लॉबी और कार्यालयों में देखने के लिए आम बात है।
घर में विकसित करने के लिए Livistona के कई प्रकार हो सकता है, के रूप में वे सरल कर रहे हैं और बहुत ध्यान देने की जरूरत नहीं है। पसंद करते हैं गर्मी सर्दियों में गर्मियों में और 15 डिग्री पर सी 20 डिग्री सेल्सियस पर पलते। घर में, खिलते नहीं है। फूल केवल जंगली में संभव है। वहाँ पौधों की 30 से अधिक प्रजातियां हैं। निम्न में से सबसे आम किस्मोंः
- Livistona भ्रामक। जंगली में 12 मीटर ऊंचाई में अप करने के लिए बढ़ता है। एकल हथेली, धीरे-धीरे गठन किया था। पत्तियां कई हरी नसों के साथ खंडों 50-60 से बनी हैं।
- Livistona नेफ्रैटिस। घर में, यह तीन मीटर तक बढ़ सकता है। यह खिलने नहीं है। हथेली चमकीले हरे रंग शीट में, एक प्रशंसक के आकार की तरह।
- Livistona रोटनडिफोलिया - संयंत्र, जहां हरी पत्तियों का व्यास लगभग आधा मीटर है फैल गया। पत्ते प्रशंसक विभाजित खंडों में कर रहे हैं। पीले फूलों के साथ लाल फूलना।
- पाम Livistona चीनी। जंगली, 25 मीटर ऊंचाई में अप करने के लिए में। तो सही की हथेली देखभाल करने के लिए, घर छत से बढ़ सकता है। बैरल हथेली टुकड़े वर्ष के पत्तों, जो एक दूसरे के साथ फ्लश कर रहे हैं से बनता है। अच्छा विकास के लिए हथेली जगह का एक बहुत जरूरत है।
- में ऊंचाई आठ मीटर तक 30 मी। लक्जरी ताज व्यास को बढ़ता Livistona मैरी सबसे बड़ा पेड़ से एक है। घर में, विकास धीमा हो रहा है। के बारे में दो मीटर की डंठल, पत्ते खंडों में विभाजित कर रहे हैं। लाल फूलना। ट्रंक भूरा रंग है। जंगली पीले फूलों में। फ्लैट खिलते नहीं है।
- Livistona rotundifoliya उत्कृष्ट प्रशंसक पत्ती चरण है। घर में, 2 मीटर करने के लिए बढ़ रही है। इस श्रेणी हथेलियों साफ करने के लिए उदार।
- Livistona सुंदर। अन्य प्रजातियों की तुलना में थोड़ा कम की ऊंचाई पर। जंगल में, ऊंचाई लगभग 10 मीटर है। कठोर पत्ते आधा खंडों में विभाजित है और उनके सुझावों परिष्कृत वापस मुड़े कर रहे हैं।
होम हथेली Livistona यह माली के बीच बहुत लोकप्रिय है। इससे पहले कि आप एक ताड़ का पेड़ खरीदने के लिए, आप पत्तियों पर ध्यान देना चाहिए - वे चमकीले हरे रंग का होना चाहिए। हथेली धब्बों के साथ छोड़ देता है, और सुझावों मुरझाया तो यह इस खरीदने के लिए नहीं बेहतर है। एडल्ट हथेलियों महंगे हैं। एक बार जब आप सही हथेली खरीदा है, यह प्रतिरोपित किया जाना चाहिए। कुछ माली का मानना है कि यह एक ही बार में एक ताड़ का पेड़ प्रत्यारोपित करने के लिए, जबकि दूसरों को यह अनुकूलन की अवधि के बाद सिर्फ एक महीने के करने की सलाह देते आवश्यक है।
विशेष ध्यान क्षमता है, जो आपकी हथेली में वृद्धि होगी दिया जाता है। पॉट पौधों प्राकृतिक सामग्री के माध्यम से जो जड़ों बेहतर साँस लेने जाएगा से चुनने के लिए बेहतर है। कंटेनर थोड़ा बड़ा जड़ प्रणाली होनी चाहिए। पॉट सबसे अच्छा एक छोटे से स्टैंड, जहां यह गर्म नहीं है पर स्थित है। कंटेनर हल्के रंग है कि प्रकाश को प्रतिबिंबित करने में सक्षम हैं चुनने के लिए सिफारिश की है।
ताड़ के पेड़ प्रकाश, तो खिड़की पर कुछ महान अनुभवों, जो पश्चिम या पूर्व की ओर का नजारा दिखता है प्यार करता है। यह एक ताड़ के पेड़ के लिए सीधे धूप के लिए लंबे समय तक प्रदर्शन से बचने के लिए, अन्यथा यह दिखाई जलता और पत्तियों पीले रंग के हो करने के लिए शुरू बेहतर है। सर्दियों में, यह एक बहुत ही उज्ज्वल जगह में डाल करने के लिए आवश्यक है। हथेली Livistona प्रकाश के लिए अलग-अलग पार्टियों को उलटने के लिए ताज सुंदर और सममित वृद्धि हुई। अगर फ्लैट अंधेरा है, यह Livistona चीनी खरीदने के लिए बेहतर है। यह बेहतर की तुलना में अन्य प्रकाश की कमी किया जाता है। और तुम भी अतिरिक्त प्रकाश व्यवस्था कर सकते हैं। पत्ते दीवारों और फर्नीचर नहीं छूना चाहिए। यह बेहतर हवा विनिमय करने के लिए योगदान देता है।
हथेली Livistona सूखे पत्ते पर कम नमी की वजह से है, तो यह हमेशा छिड़काव किया जाना चाहिए, और पत्ते धूल के साफ किया जाता है। की सिफारिश की आर्द्रता 60% से ऊपर है। पीला दूर करने के लिए वांछनीय छोड़ देता है। केवल पूरी तरह से सूखे पत्ते ध्यान से स्टेम से अलग किया जाना चाहिए, अन्यथा प्रक्रिया अन्य पत्रक पर आ जाएगा। छोटे कद की हथेली है, यह एक शॉवर के नीचे धोया जा सकता है। सर्दियों में, जरूरत के बीच समय अंतराल sprinkles को बढ़ाने के लिए।
बसे गर्म पानी की हथेली पानी। वसंत और गर्मियों प्रक्रिया में पानी में जैसे ही मिट्टी बाहर सूख जाता है के रूप में किया जाता है और सर्दियों में - बहुत कम। समय-समय पर यह ट्रे से पानी डालना करने के लिए, जड़ें सड़ने के लिए नहीं आवश्यक है।
मई से सितंबर तक हथेली महीने में दो बार जैव उर्वरक खिलाया, और अवधि के बाकी महीने में एक बार। गुणवत्ता की देखभाल खजूर के पेड़ के विकास को प्रभावित करता है। हर साल, तीन नए पत्ती बढ़ता है।
आप देखते हैं कि पॉट जड़ों से भर जाता है, तो यह पेड़ प्रत्यारोपित करने के लिए समय है। यह दिन के वसंत गर्मी में इस कार्रवाई को बाहर ले जाने के लिए सबसे अच्छा है। इस आपरेशन चालें संयंत्र, बहुत मुश्किल है क्योंकि की जड़ों घायल हो गए। तीन साल में एक बार - वयस्क हथेली हर पांच साल में repot है, युवा आवश्यक है। यदि जड़ों का हिस्सा सड़, तो प्रत्यारोपण वे ध्यान से कटौती की जानी चाहिए। हथेली और गहरी भारी बर्तन कि वह संयंत्र के वजन के तहत खत्म कर दिया नहीं किया गया है फिट करने के लिए। यह भी बहुत ढीली की सिफारिश नहीं है, क्योंकि स्थिर पानी का कारण बनता है जड़ प्रणाली के सड़। संभव अच्छा जल निकासी के ठहराव रोकें।
यह खजूर के पेड़ का एक विशेष मिश्रण का उपयोग करने की सिफारिश की है। तुम भी अपने स्वयं के सब्सट्रेट तैयार कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए, रेत, लकड़ी का कोयला के बराबर भागों मिश्रण, खाद धरण और पीट भूमि सड़।
Livistona बीज है, जो लगभग किसी भी फूलों की दुकान में खरीदा जा सकता है, और पार्श्व अंकुर द्वारा प्रचारित। हथेली Livistona के बीज बोने वसंत ऋतु में किया जाता है। बीज जल्दी से उन लोगों के साथ चढ़ा, कठिन खोल, तो दो दिनों के लिए पानी में भिगो को हटा दें। फिर बीज एक सेंटीमीटर की गहराई तक एक उथले कंटेनर में लगाया है और इस फिल्म को बंद कर रहे हैं। बीज के बारे में तीन महीने के लिए उगना। जब अंकुर एक छोटे से बड़े हैं, यह एक विशेष मिट्टी है, जो जमीन शीट, धरण और घास भी शामिल है के साथ एक बर्तन में प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए। एक साल के बारे में बाद में मजबूती से स्थापित हथेली बड़ा बर्तन में प्रत्यारोपित किया। समय-गठन शूटिंग वयस्क पेड़ है, जो प्रत्यारोपण के लिए अलग किया जा सकता है, और कोयला पाउडर की कटौती की प्रक्रिया में समय के लिए। प्रजनन प्रक्रियाओं का सबसे अच्छा तरीका है, क्योंकि वे बहुत मुश्किल से ही उत्पादित कर रहे हैं नहीं कर रहे हैं।
पाम हड़ताल निम्नलिखित कीटः जोस पैमाने पर, मकड़ी के कण, mealybug। एक बार जब कीट की खोज की, ताड़ के साबुन और पानी से तुरंत इलाज किया जाना चाहिए। आगे में गर्म पानी और स्प्रे कीटनाशकों के साथ धोने के लिए सिफारिश की है। रोगों के अलावा मुख्य रूप से सड़ांध के सभी प्रकार हैं। fungicides और मिटटी के जीवाणुओं के आवेदन है कि मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करेंगे के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। यदि संयंत्र मजबूत और स्वस्थ है, पर्याप्त पानी और पोषक तत्वों हो रही है, यह शायद ही कभी रोग से पीड़ित होगा, और यदि आप अभी भी बीमार, बहुत जल्द ही बहाल किया।
Livistona में सूखा और पीले पत्ते हथेलियों। कारण शुष्क हवा और कमरे में उच्च हवा के तापमान, साथ ही दुर्लभ पानी हो सकता है।
ताड़ के पत्तों गिर रहे हैं पर, जड़ों सड़। कारण बार-बार पानी के बर्तन या करीब है।
पत्ते लंगड़ा, बेरंग, नया नहीं उगता हो जाते हैं। यह तथ्य यह है कि पौधे को मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी का सामना कर रहा है के कारण है।
विदेशी पौधों की प्रजातियों की प्रजनन शौकिया माली विख्यात निम्न लाभ हथेली Livistona:
- प्रतिनिधि उपस्थिति।
- यह मुसीबत की देखभाल के लिए कारण नहीं है।
- Nekapriznoe संयंत्र।
- नौसिखिया माली के लिए उपयुक्त।
- बहुत सुंदर पौधे।
- इंटीरियर शानदार लग रहा है।
कमियों और समस्याओं घर पर Livistona खेती माली को पेश आ रहीः
- कमरे में हवा का सूखापन के कारण पत्तियों की सूखी सुझाव।
- बीमारी के लिए अतिसंवेदनशील। ग्रीष्मकालीन - लाल मकड़ी के कण, सर्दियों - एफिड्स और जोस पैमाने।
- और एक लंबे समय के लिए विजेता को एक लॉरेल पुष्पांजलि के साथ एक सममूल्य पर मैं एक हथेली शाखा दिया गया था।
- खजूर के पेड़ कई संस्कृतियों में शांति और जीत का प्रतीक थे।
- हथेली के बने कपड़े और टोपी छोड़ देता है।
- पाल्मा गर्म मौसम में रात में बढ़ता है।
पाम Livistona, घर पर देखभाल जिनमें से सरल है - यह एक बहुत अच्छा संयंत्र है, हवा साफ, microclimate में सुधार लाने और रहने की जगह और अधिक आरामदायक बना रही है।
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31737a8500aad0365dc844dc6374beda41eea1da3133901315aeb21bb12b0fb2 | pdf | प्रस्ताव के अन्तिम अंदशा में यह कहा गया था कि यदि राष्ट्र की मांग को नहीं माना जाता है, तो जनता अमहयोग करे । प्रस्ताव में कहा गया था :
"इसलिए समिति तं करती है कि भारत की स्वतंत्रता तथा स्वाधीनता के अधिकार को मनवाने के लिए अधिक से अधिक व्यापक पैमाने पर जन-संघर्ष आरम्भ किया जाय ताकि पिछले २२ वर्षों में देश ने शान्तिपूर्ण संघर्ष चलाकर जितनी भी अहिंसक शक्ति संचित की है, उसका वह उपयोग कर सके।"
अगस्त प्रस्ताव को लेकर बहुत तीखी बहस चली है। उसकी कोई भी आलोचना करने से पहले यह समझना आवश्यक है कि कांग्रेसी नेता स्वतंत्रता के आधार पर सहयोग करने की हरेक कोशिश करके हार गये थे और उन्होंने निराश और विवश होकर यह रास्ता अपनाया था। फिर भी, यदि यह देखा जाय कि अगस्त प्रस्ताव का भारत के अन्दर और दुनिया के जनवादी लोकमत पर क्या प्रभाव पड़ा, तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि दोनों ही दृष्टि से यह प्रस्ताव अविवेकपूर्ण था । राजनीतिक दृष्टि से प्रस्ताव में एक ऐसी घातक असंगति थी जिससे जाहिर होता था कि प्रस्ताव तैयार करने वालों के मन में उद्देश्य स्पष्ट नहीं था। प्रस्ताव की भूमिका कुछ कहती थी और निष्कर्ष कुछ कहता था; और दोनों के बीच ऐसा विरोध था जिस पर किसी तरह की ब्याख्या से लीपापोती नहीं की जा सकती थी। एक तरफ तो प्रस्ताव यह मानना था कि १६४१ से युद्ध का स्वरूप साम्राज्यवादी नहीं रह गया है । वह कहता था कि अब इस युद्ध को दो प्रतिद्वन्द्वी साम्राज्यवादी गुटों का ऐसा युद्ध नहीं माना जा सकता जिसके परिणाम के प्रति कांग्रेस उदासीन रह सकती हो । प्रस्ताव ने साफ-साफ कहा था कि अब यह ऐसा युद्ध बन गया है जिसमें कांग्रे संयुक्त राष्ट्रों की विजय चाहती है । प्रस्ताव का यह उद्देश्य बताया गया था कि "संयुक्त राष्ट्रों के पक्ष की जीत हो" और "भारत उनका सहयोगी बने । " उसमें यह खास तौर पर ऐलान किया गया था कि कांग्रेस को इस बात की बड़ी चिन्ता है कि "चीन या रूस की हिफाजत का इन्तजाम किसी तरह कम जोर न होने पाये" और "संयुक्त राष्ट्रों की हिफाजत करने की शक्ति किसी तरह खतरे में न पड़े।" मगर प्रस्ताव के अन्त में जो कार्यक्रम पेश किया गया था, वह ऐसा था जिसे कार्यान्वित करने पर संयुक्त राष्ट्रों के पक्ष के एक बड़े देश में भयानक अन्दरूनी कलह और अव्यवस्था शुरू हो जाती; और इससे अमल में संयुक्त राष्ट्रों की हिफाजत करने की शक्ति निस्संदेह खतरे में पड़ जाती और फासिस्ट ताकतों की जीत होने में मदद मिलती । और ध्यान रहे कि यह एक ऐसा कार्यक्रम था जिसे १९३६-४० में तब गलत समझा गया था, जब युद्ध (कांग्रेस के शब्दों में) "साम्राज्यवादी उद्देश्यों के लिए" लड़ा जा रहा
था । उस वक्त जन-आन्दोलन या आम सत्याग्रह के हर प्रस्ताव का सख्ती से विरोध किया जाता था और दलील दी जाती थी कि उससे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के युद्ध प्रयत्नों में बाधा पड़ेगी ।
यह सच है कि इस तरह का संघर्ष छेड़ने का कोई गम्भीर इरादा नहीं था। न ही उसके लिए नेताओं ने कोई तैयारी की थी। उन्होंने तो सिर्फ समझौते की बातचीत छेड़ने के लिए संघर्ष की धमकी दी थी । अपनी नीति के समर्थन में नेताओं ने बार-बार यह दलील पेश की है जिससे सिर्फ यही प्रकट होता है कि उनका दृष्टिकोण कितना अगम्भीर और दिवालिया था । युद्ध की नाजुक परिस्थिति में वे कोरी गोदड़भभकी की नीति पर चलना चाहते थे । इसे दाव लगाना ही कहा जा सकता है ।
दावपेंच की दृष्टि से भी प्रस्ताव अत्यन्त प्रविवेकपूर्ण था । उससे साम्राज्य बादी प्रतिक्रियावादियों को हमला करने के लिए वह बहाना मिल गया जिसके लिए वे बहुत दिनों से इन्तजार कर रहे थे। कांग्रेस की पुरानी फासिस्टविरोधी परम्परा बेदाग थी । उधर साम्राज्यवाद का पुराना इतिहास फासिस्टों का साथ देने का था। इसलिए जब तक कांग्रेस भारत की ऐसी निर्णायक राजनीतिक शक्ति के रूप में दुनिया के सामने आती रही, जो फासिज्म के खिलाफ सारे संसार की जनता के युद्ध में भाग लेने के लिए भारत की जनता को भी संगठित करना चाहती थी, तब तक साम्राज्यवाद का हथकंडा नहीं चल पाया । लेकिन जैसे ही अगस्त प्रस्ताव पास हुआ, वैसे ही साम्राज्यवाद को यह कहने का मौका मिल गया कि वह तो जापानी फासिज्म के हमले से भारत की हिफाजत करना चाहता हैं, लेकिन कांग्रेस हिफाजत की कोशिशों में गड़बड़ी पंदा कर रही है। उसे भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को फासिस्टप रस्त, जापानपरस्त भौर संयुक्त राष्ट्रों की जनता के युद्ध-उद्योग में तोड़फोड़ करने वाला आन्दोलन बताकर बदनाम करने का मौका मिल गया । और इस आरोप को अपना राजनीतिक आधार बनाकर साम्राज्यवाद ने राष्ट्रीय आन्दोलन का दमन करने की अपनी प्रतिक्रियावादी नीति चालू कर दी । अतएव, अगस्त प्रस्ताव स्वतंत्रता प्राप्त करने का हथियार नहीं, बल्कि साम्राज्यवादियों के उकसावे में आ जाने और उनके बिछाये हुए जाल में फंस जाने का तरीका था ।
कांग्रेस के जिस अल्पसंख्यक भाग ( भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, वह बराबर नेताओं को यह चेतावनी देता आ रहा था कि इस प्रस्ताव का क्या फल होगा । राष्ट्रीय आन्दोलन के जिन फासिस्टविरोधी मजदूर-वर्गीय हिस्सों का प्रतिनिधित्व कम्युनिस्ट पार्टी करती थी, वे शुरू से ही स्वतंत्रता संग्राम के विषय में एक स्पष्ट तथा सुसंगत नीति देश के
सामने रख रहे थे । उनका कहना था कि इस युद्ध से जो नये काम और जिम्मेदारियां पैदा हुई हैं, उनको आगे बढ़कर संभाला जाय । उस नाजुक स्थिति में असहयोग के बदले उन्होंने एक ठोस कार्यक्रम देश के सामने रखा :
१. फासिज्म का मिलकर मुकाबला करने के एक समान कार्यक्रम के आधार पर कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों को मिलाकर भारत में संयुक्त राष्ट्रीय मोर्चा बनाना ।
२. इस तरह के राष्ट्रीय मोर्चे के आधार पर, सभी हिस्सों के समर्थन से अंग्रेजी सरकार पर यह दबाव डालना कि वह समझौता करे और राष्ट्रीय सरकार बनने दे ।
३. इस न्यायोचित राजनीतिक मांग पर जोर देने के साथ-साथ युद्ध • उद्योग में पूरे जोश से भाग लेना, जनता को गोलबन्द करना और जनता के युद्ध उद्योग को मजबूत करने के लिए तथा फासिज्म के खिलाफ - के राष्ट्रीय प्रतिरोध को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन के नेतृत्व में गैरसरकारी तौर पर जनता को जत्थेबन्द करना ।
४. असहयोग की नीति को भारतीय जनता के हितों के लिए घातक समझकर दृढ़तापूर्वक अस्वीकार करना ।
लेकिन उस वक्त देश में चूंकि बहुत गुस्सा था और ब्रिटेन का शासक वर्ग राष्ट्रीय सरकार की मांग को पूरा करने के लिए तैयार नहीं था इसलिए यह नीति राष्ट्रीय आन्दोलन के अधिकांश भाग का समर्थन न प्राप्त कर सकी ।
कांग्रेस का प्रस्ताव ८ अगस्त को पास हुआ । ६ अगस्त की सुबह सभी प्रमुख कांग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिये गये । इस पर देश भर में प्रदर्शन और असंगठित एवं आंशिक रूप से जहां-तहां मुठभेड़ें और टक्करें हुईं, जिनका पुलिस और फौज ने अत्यन्त क्रूरतापूर्वक दमन किया। बहुत से लोग मारे गये । हजारों जख्मी हुए ।
६ अगस्त १९४२ और ३१ दिसम्बर १९४२ के बीच, सरकारी बयानों के अनुसार ६२,२२९ आदमी गिरफ्तार किये गये; १८००० भारत रक्षा कानून के मातहत बिना मुकदमा जेलों में बन्द कर दिये गये; ६४० आदमी पुलिस या फौज की गोलियों से मारे गये; और १,६३० जख्मी हुए ।
राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी के बाद देश में जो गुस्सा फैला और जनता ने जो प्रदर्शन किये, वे अत्यन्त व्यापक और स्वयं स्फूर्त थे । लेकिन इस तरह जो छिट-पुट टक्करें हुईं, बेचनी फैली या अलग-अलग गुटों और दलों की तरफ से जो परस्पर विरोधी हिदायतें जारी हुईं, वे कांग्रेस के किसी संगठित आन्दोलन का प्रतिनिधित्व नहीं करती थीं । कांग्रेस ने उनके लिए कभी अनुमति नहीं दी थी । आन्दोलन छेड़ने का अधिकार केवल गांधी जी को दिया गया था;
लेकिन उन्होंने खुलेआम ऐलान किया था कि इन झगड़ों का कांग्रेस से कोई सम्बंध नहीं है। यह तो बाद की बात है कि एक अस्थायी और संकीर्ण राज नीतिक मकसद के लिए अगस्त १९४२ और उसके बाद के महीनों की नेताविहीन उलझी हुई घटनाओं को "अगस्त संग्राम" का नाम देने की कोशिश की गयी, जो बहुत चतुराई की कोशिश नहीं थी ।
अगस्त की घटनाओं के बाद राष्ट्रीय आन्दोलन अव्यवस्थित हो गया । कोई संगठित नेतृत्व और स्पष्ट नीति नहीं रह गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि आने वाले वर्षों में राजनीतिक गतिरोध के साथ-साथ निराशा और उलझन का दौर दौरा रहा । मुस्लिम लीग की ताकत इसी दौर में तेजी से बढ़ी ।
६ मई १९४४ को अस्वस्थ हो जाने के कारण गांधी जी रिहा कर दिये गये । उन्होंने बाहर आते ही ऐलान किया कि ८ अगस्त १९४२ के प्रस्ताव का जन- सत्याग्रह सम्बंधी भाग स्वयं रद्द हो गया है, क्योंकि १९४४ में वह १९४२ की तरफ लौटकर नहीं जा सकते । लेकिन गतिरोध कायम रहा ।
१९४५ की गर्मियों में गतिरोध दूर करने की फिर एक कोशिश की गयी । केन्द्रीय धारासभा में कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग पार्टी के दो नेताओं के बीच एक अस्थायी समझौता हो गया । समझौते का आधार यह था कि सर कार में कांग्रेस और लीग के बराबर-बराबर सदस्य रहें। यह प्रस्ताव वायसराय लार्ड वेवेल के सामने रखा गया । वह सलाह लेने उड़कर लन्दन गये और वहां से अंग्रेजी सरकार का एक नया ऐलान लेकर लौटे । कांग्रेस और लीग के प्रतिनिधियों ने जिस शर्त को मंजूर किया था, उसमें इस ऐलान ने बहुत होशियारी से एक तब्दीली कर दी । उनके समझौते में कांग्रेस और लोग की बराबरी की बात थी। सरकारी ऐलान में उसे "स्वर्ण हिन्दू और मुसलमानों की बराबरी" में बदल दिया गया। यानी अब समस्या साम्प्रदायिक बन गयी और इस तब्दीली की वजह से समझौते की बातचीत का टूट जाना निश्चित • हो गया । कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अन्य पार्टियों के प्रतिनिधियों का सम्मेजो जून १९४५ में शिमला में बुलाया गया था, असफल रहा ।
इस तरह, युद्ध समाप्त होने पर जब सारी दुनिया की कौमें आजादी को ओर बढ़ रही थीं, भारत वैसा ही गुलाम बना रहा, जैसा कि वह युद्ध के पहले था । लेकिन भारतीय जनता के एक ऐसे नये और विराट उभार के लिए परिस्थितियां परिपक्व हो गयी थीं, जो भारत में अंग्रेजी शासन की नींव को चकनाचूर कर देने वाला था ।
अध्याय १५
भारत में अंग्रेजी शासन का अन्त
स्वातंत्र्य युद्ध में फासिज्म पर विजय के फलस्वरूप सारी दुनिया में जनता की शक्तियां प्रगति के मार्ग पर बढ़ चलीं ।
योरप में नाजी कब्जा खत्म हो जाने के बाद प्रगतिशील जनवादी सरकारें बनीं, जिनका आधार फासिज्म से लोहा लेने वाली लड़ाकू शक्तियां थीं, और जिनमें कम्युनिस्ट पार्टियां भी शामिल थीं। ब्रिटेन का विकास अपेक्षाकृत धीरे-धीरे हो रहा था। मगर वहां भी मतदाताओं ने टोरी पार्टी को सरकार से निकाल बाहर किया और पार्लियामेंट का पूर्ण बहुमत पहली बार लेबर पार्टी को सौंप दिया। १९४७ तक पश्चिमी योरप में अमरीकी हस्तक्षेप मार्शल योजना और आर्थिक सहायता के जरिये इस जनवादी विकास को रोकने में कामयाब हो गया; मगर पूर्वी योरप के नये जनवादी राज्यों में जनता आगे बढ़ती गयी; उसने जनता के सच्चे जनतंत्र की स्थापना की जिसमें मेहनतकशों का राज कायम हुआ और जमीदारी प्रथा तथा बड़े पूंजीपतियों के प्रभुत्व का खात्मा कर दिया गया; और फिर वह समाजवाद के निर्माण की ओर आगे बढ़ चली ।
एशिया में राष्ट्रीय स्वतंत्रता के क्रांतिकारी संग्रामों की लहर इस तरह उठी, जैसो भाज तक इतिहास में कभी नहीं देखी गयी थी । १६४९ में चीनी क्रान्ति ने अन्तिम रूप से और पूर्ण विजय प्राप्त कर ली और साम्राज्यवादियों तथा उनके दलालों को चीन की भूमि से साफ कर दिया। दक्षिण-पूर्वी एशिया में स्वतंत्रता आंदोलनों तथा उनकी सेनाओं ने नये आजाद राज्य कायम कर दिये । इन सेनाओं ने पश्चिमी ताकतों की साम्राज्यवादी फौजों के पहुंचने के पहले ही जापानी फौजों को अपने देशों से मार भगाया था। पर बाद में पश्चिमी ताकतों की फौजों ने वहां पहुंचकर लम्बे औपनिवेशिक युद्ध प्रारम्भ कर दिये । उनका उद्देश्य यह था कि इन देशों की जनता ने जो नयी आजादी हासिल की थी, उसे खतम कर दिया जाय और या तो सीधे तौर पर, या फिर अपनी कठपुतलियों की आड़ में इन मुल्कों पर फिर से औपनिवेशिक शासन थोप दिया जाय। लेकिन वियतनाम, मलाया और बर्मा में साम्राज्यवादियों तथा उनकी कठपुतलियों की सेनाओं के हमले के मुकाबले में जनता के स्वातंत्र्य मोर्चे ने मैदान नहीं छोड़ा। कोरिया पर अमरीका के नेतृत्व में सभी साम्राज्यवादियों ने मिलकर हमला किया। वे पूरे कोरिया को अमरीकी
उपनिवेश बना देना चाहते थे । यह युद्ध तीन वर्ष तक चलता रहा । अमरीकी सेना ने पूरे देश को तबाह कर दिया और साधारण नागरिकों का कत्लेआम किया; मगर साम्राज्यवादी कामयाब नहीं हुए।
भारत अधिक पेचीदा रास्तों से आजादी की ओर आगे बढ़ा। चीन और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों की तरह 'भारत पर न तो जापानियों का कब्जा हुआ था और न ही वहां आजादी के लिए जनता का हथियार वन्द आन्दोलन चला था । युद्ध समाप्त होने पर सब देशों की तरह यहां भी राष्ट्रीय विद्रोह की जबर्दस्त लहर उठी। लेकिन, दूसरी तरफ, यहां चूंकि लड़ाई के जमाने में साम्राज्यवादी मशीन ज्यों की त्यों बनी रही थी, और राष्ट्रीय आंदोलन पर बड़े पूंजीपतियों के उन नेतानों का प्रभुत्व अब भी कायम था जिन्होंने युद्ध के बाद जनता के क्रांतिकारी उभार का सक्रिय विरोध किया और यहां तक कि उसके खिलाफ साम्राज्यवाद के सेनानायकों और गवर्नरों के साथ सहयोग किया, इसलिए भारत में एक खास तरह के समझौते को सम्भावना पैदा हो गयी । १९४७ के समझौते से भारत में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन का अन्त हो गया, लेकिन साथ ही उससे भारत में जन क्रान्ति के बढ़ाव को रोकने के लिए दोनों पक्षों के ऊपरी वर्गों की शक्तियों का एक संयुक्त मोर्चा भी कायम हो गया ।
१. १९४५-४६ का राष्ट्रीय उभार
१९४५ में शिमला सम्मेलन की असफलता से यह स्पष्ट हो गया था कि 'ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति किस दलदल में फंस गयी है। लेकिन, साथ ही उससे यह बात भी जाहिर हो गयी थी कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के बीच एक बहुत ही गहरी खाई है जो ऊपर से देखने में लगती है कि कभी नहीं भरेगी। परन्तु जनता में साम्राज्यवाद के खिलाफ एक होकर लड़ने की जबर्दस्त इच्छा थी । यह बात कलकत्ता, बम्बई और अन्य बड़े शहरों के प्रदर्शनों से स्पष्ट हो गयी थी । इन प्रदर्शनों में जनता कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों के झंडों को साथ लेकर चलती थी और बहुत से शहरों में तो उसके हाथ में कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे भी देखे गये थे । दुर्भाग्य से जनता की इस एकता को देखकर भी ऊपरी नेताओं ने एकता कायम नहीं की।
फिर भी, आंदोलन आगे बढ़ता ही गया - न केवल नागरिक बल्कि फौज के लोग भी उसमें खिच प्राये । यह भारत के लिए एक नयी घटना थी । उसके क्रांतिकारी महत्व को समझने में न तो साम्राज्यवादी शासकों ने भूल
की और न राष्ट्रीय आन्दोलन के उच्चवर्गीय नेताओं ने। इसके पहले, १९३० में गढ़वाली सिपाहियों ने गोली चलाने से इंकार किया था । पर अब तो फौजों में और खासकर हवाई सेना तथा समुद्री बेड़े में बड़े पैमाने की हड़ताल हो रही थीं, जिनसे यह पता चलता था कि अंग्रेजी ताकत का आधार और उसका यंत्र ही छिन्न भिन्न हो रहा है ।
१९४६ में भारत की समुद्री सेना की बगावत ने मानो बिजली की तरह चमक कर भारतीय क्रांति की परिपक्व होती हुई समस्त शक्तियों को खोलकर सामने रख दिया । १९०५ में रूस के पोते म्किन जहाज के नाविकों ने विद्रोह किया था । १९१७ में वहां क्रोंसतात के मल्लाहों ने बगावत का झंडा बुलन्द किया था । १९१८ में जर्मनी में कील के जहाजियों ने विद्रोह किया था। इन सब विद्रोहों की स्मृति बताती है कि समुद्री सेनाओं के विद्रोह महान बन क्रांतियों के लिए अग्रदूत का काम करते आये हैं । १९४६ में भारत के समुद्री बेड़े में जो विद्रोह हुआ, उसके समर्थन में देश में जो जन आन्दोलन उठा और बम्बई के मेहनतकशों ने जिस बहादुरी के साथ उनका साथ दिया - ये सारी घटनाएं भारत के इतिहास में एक नये युग के आरम्भ की सूचना दे रही थीं। फरवरी के उन ऐतिहासिक दिनों में यह बात स्पष्ट हो गयी कि भारत में जनता की प्रगति के मित्र कौन हैं और शत्रु कौन हैं ।
विद्रोही जहाजियों ने शुरू से ही कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं से सम्पर्क बना रखा था । लेकिन उनसे उन्हें कोई मदद नहीं मिली। जहाजियों ने एक केन्द्रीय हड़ताल कमेटी बना ली और पूर्ण अनुशासन कायम रखा । इस विद्रोह का केन्द्र बम्बई था । बम्बई की जनता ने दिल खोलकर विद्रोहियों की मदद की ओर जहाजों में खाना पहुंचाया। अंग्रेज अधिकारी आंदोलन के विस्तार को देखकर हबके-बक्के रह गये। घबराकर उन्होंने क्रूर दमन का सहारा लिया । जल्दी-जल्दी फोजें और जंगी जहाज बम्बई ओर करांची भेजे गये । जब भारतीय सिपाहियों ने गोली चलाने से इंकार कर दिया, तो अंग्रेज फौजों को बुलाया गया और २१ फरवरी को कैसिल बारिक के बाहर सात घंटे तक लडाई चलती रही । २१ तारीख को तीसरे पहर ऐडमिरल गौडफे ने रेडियो पर विद्रोहियों को धमकी दी कि "सरकार के पास जबर्दस्त ताकत है; वह उसका पूरा पूरा इस्तेमाल करेगी... भले ही समुद्री बेड़ा नेस्तनाबूद क्यों न हो जाय ।" इसके जवाब में केन्द्रीय जहाजी हड़ताल कमेटी ने शहर की जनता से शान्तिपूर्ण हड़ताल करने की अपील की। हालांकि उस वक्त यह जरूरी था कि गोरे ऐडमिरल की इस धमकी को चलने न दिया जाय और विद्रोही जहा जियों की जान बचायी जाय, मगर कांग्रेस के नेतृत्व की ओर से सरदार वल्लभभाई पटेल ने हड़ताल का समर्थन करने से इंकार किया और उसके
खिलाफ हिदायतें जारी कर दीं । बम्बई की ट्रेड यूनियनों ने श्रीर कम्युनिस्ट पार्टी ने हड़ताल का समर्थन किया और सरदार पटेल की हिदायतों के बावजूद बम्बई की मेहनतकश जनता ने केन्द्रीय जहाजी हड़ताल कमेटी की अपील पर २२ फरवरी को जबर्दस्त हड़ताल की । अंग्रेज अधिकारियों ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर आंदोलन का दमन करने की कोशिश की । सरकारी आंकड़े के अनुसार २१ से २३ फरवरी तक, ३ दिन के भीतर २५० नर-नारी मारे गये ।
अन्त में, २३ फरवरी को सरदार पटेल के दबाव से केन्द्रीय हड़तालकमेटी ने आत्मसमर्पण का निश्चय कर लिया । सरदार पटेल ने जहाजियों को आत्म समर्पण कर देने की सलाह दी थी और आश्वासन दिया था कि " कांग्रेस इस बात की भरसक कोशिश करेगी कि हड़तालियों से बदला न लिया जाय।" इसी तरह का आश्वासन मुस्लिम लीग ने भी दिया था। लेकिन दो दिन के भीतर ही हड़ताल के नेता पकड़ लिये गये । हड़ताल - कमेटी के अध्यक्ष ने अपने आखिरी बयान में कहा था : "हम भारत के सामने आत्मसमर्पण कर रहे हैं, ब्रिटेन के सामने नहीं।"
फरवरी के दिनों में जहाजियों की बगावत और बम्बई की जनता के संघर्ष से यह बात एकदम स्पष्ट हो गयी कि १९४६ के शुरू में भारत में जो विस्फोटक स्थिति पैदा हो रही थी, उसमें कौन सी शक्तियां किधर थीं । उससे एक तरफ आन्दोलन का ऊंचा स्तर, जनता का साहस और दृढ़ निश्चय, और हिन्दू मुस्लिम एकता तथा कांग्रेस-लीग एकता के लिए जनता की जबर्दस्त भावना प्रकट हुई थी । उससे मालूम होता था कि यह आंदोलन फौजों तक में पहुंच गया है और इसलिए अब अंग्रेजी शासन का आधार सुरक्षित नहीं रह गया है । मगर दूसरी तरफ, इन घटनाओं से यह भी प्रकट हुआ था कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के उच्चवर्गीय नेता जन-आंदोलन के खिलाफ थे और कानून भोर व्यवस्था के प्रतिनिधि के रूप में जनता के खिलाफ अंग्रेजी साम्राज्यवाद के साथ मिले थे। उनकी तरफ से बयान पर बयान निकाले गये जिनमें उन साम्राज्यवादी अधिकारियों की हिंसा की निन्दा नहीं की गयी थी जिन्होंने तीन दिन के भीतर सैकड़ों को गोलियों से भून दिया था, बल्कि उस निहत्थी जनता की "हिंसा" की निंदा की गयी थी जो गोरी फौज की गोलियों का शिकार हुई थी। कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना आजाद ने ऐलान किया था :
"मजदूरों या शहरियों की हड़तालों का और देश की अस्थायी हुकूमत की हुक्म उदली का अब कोई मौका नहीं है । इस वक्त विदेशी
शासक अस्थायी तौर पर देश की रखवाली कर रहे हैं। उनसे लड़ने की अभी हाल में कोई वजह नहीं पैदा हुई है ।"
गांधी जी ने भी एक महत्वपूर्ण बयान में हिन्दुओं और मुसलमानों को "अपवित्र एकता" की निंदा की क्योंकि वह अहिंसा के सिद्धान्त को ठुकराकर स्थापित हुई थी !
इस प्रकार, जन-आन्दोलन और बड़े पूंजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले उस राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच की वह खाई, जो चौरीचौरा कांड के बाद १६२२ में और गांधी-इरविन समझौते के समय १६३१ में पहले भी प्रकट हो चुकी थी, इस बार और भी ऊंचे स्तर पर प्रकट हुई ।
अंग्रेज शासकों को राष्ट्रीय मोर्चे की इस कमजोरी को समझने में देर न लगी और उन्होंने उससे पूरा-पूरा फायदा उठाया। जैसा कि बाद में कैबिनेट मिशन की कार्रवाइयों से पता चला, अब ब्रिटिश साम्राज्यवाद की पूरी नीति कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं को इस्तेमाल करने की हो गयी । अंग्रेज शासक एक तरफ उनको यह आशा बंधाते थे कि शासन की बागडोर शान्तिपूर्ण ढंग से उनके हाथों में आ जायगी और दूसरी तरफ उनको जनता का डर दिखाते थे और साथ ही उनके आपसी मतभेद और विरोध से फायदा उठाते थे।
१८ फरवरी को बम्बई में जहाजियों की हड़ताल शुरू हुई ।
१६ फरवरी को मि. एटली ने कामंस सभा में ऐलान किया कि ब्रिटिस मंत्रिमंडल का एक प्रतिनिधि मंडल भारत भेजा जायगा ।
२. कैबिनेट मिशन और माउंटबेटन समझौता
१९४६ के उत्तराधं तथा १९४७ के महीनों में साम्राज्यवाद के प्रतिनि धियों तथा कांग्रेस और लीग के नेताओं के बीच बातचीत चलती रही (कैबिनेट मिशन के लौट जाने के बाद साम्राज्यवाद की तरफ से वायसराय लार्ड वेवेल बातचीत चलाने लगे ) । एक तरफ यह कभी खत्म न होने वाली बातचीत चल रही थी; दूसरी तरफ भारत में संकट अधिकाधिक गहरा होता जा रहा था ।
कल-कारखानों के मजदूरों की हड़तालों की लहर बराबर ऊपर उठती जा रही थी । १६४५ में कुल ७४७,००० मजदूरों ने हड़तालों में हिस्सा लिया था और उनमें ४,०५४,००० काम के दिन जाम हुए थे । १९४६ में १,९५१,००० मजदूरों ने हड़ताल में हिस्सा लिया और उनमें १२,६७८,००० यानी १६४५ के तिगुने दिन जाम हुए । १९४७ के पहले आठ महीनों में १, ३२३,००० मजअंग्रेजी शासन का अंत
दूरों ने हड़तालों में हिस्सा लिया और उनमें ११,१९५,८६३, यानी १९४६ के लगभग बराबर, काम के दिन जाम हुए। इस प्रकार जब साम्राज्यवाद से समझौते की बातचीत में लगे हुए नेताओं की नीति के कारण राष्ट्रीय आन्दोलन का बड़ा हिस्सा असंगठित और पंगु होकर पड़ा हुआ था, तब मजदूर वर्ग का संघर्ष बराबर जोर पकड़ रहा था ।
इसके साथ-साथ, देशी राजाओं के शासन के खिलाफ रियासती जनता का आन्दोलन नयी ऊंचाइयों पर पहुंच गया था। खास तौर पर त्रावणकोर और हैदराबाद में, और सबसे अधिक तो कश्मीर में यह बात प्रकट हुई, जहां महाराजा के शासन को खत्म करने के लिए शेख अब्दुल्ला तथा नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व में चलने वाले "कश्मीर छोड़ो" आन्दोलन का जवाब क्रूर दमन, जेल, लाठी-गोली और प्रातंक - राज से दिया गया ।
दूसरी ओर, साम्राज्यवादी साजिश के सामने नेताओं के आत्म-समर्पण से आन्दोलन में जो अव्यवस्था पैदा हो गयी थी, उसका प्रभाव भी दिखायी देने लगा था । मजदूर वर्ग तथा रियासती जनता के आन्दोलन के साथ-साथ प्रतिक्रियावादी तथा फूटपरस्त ताकतों का हमला भी बढ़ रहा था । १६४५ के अन्त में और कैबिनेट मिशन के आने से पहले १९४६ के शुरू में देश में जो महान राष्ट्रीय उभार आया था, साम्प्रदायिक एकता उसकी एक खास विशेषता थी । कैबिनेट मिशन ने फूट डालने की नीति अपनायी और लगातार हिन्दुओं और मुसलमानों के मतभेदों को बढ़ाने की कोशिश की। उनको मदद मिली कांग्रेस और लीग के उन नेताओं से जो अंग्रेज साम्राज्यवादियों से समझौता करने और एक-दूसरे को किसी भी तरह नीचा दिखाने की नीति पर चल रहे थे । नतीजा यह हुआ कि एक बार फिर से देश में साम्प्रदायिक कलह की आग भड़क उठी । जून १९४६ में साम्प्रदायिक झगड़े फिर शुरू हो गये जिससे पता चलता है कि कैबिनेट मिशन भारत में क्या काम कर गया था । १६४६ का पतझड़ आते-आते साम्प्रदायिक कलह ने खून-खराबे और हत्याकांडों का रूप धारण कर लिया। अगस्त में मुस्लिम लीग ने कलकत्ते में "सीधी कारंवाई" का दिन मनाया, तो वहां ऐसा भयंकर दंगा हुआ जैसा पहले कभी नहीं हुआ था और फिर तो ऐसे दंगों का तांता लग गया। कलकत्ते के बाद अक्तूबर में पूर्वी बंगाल में दंगे हुए । फिर बिहार में मुस्लिम विरोधी दंगे हुए । इन साम्प्रदायिक दंगों में हजारों लोग मौत की घाट उतार दिये गये, दसियों हजार जख्मी और बेघरबार हो गये, अनेक जगहों में बड़े पैमाने पर हत्याकांड रचे गये और आगजनी, लूटपाट और तरह-तरह के अत्याचारों की तो कोई सीमा ही न रही ।
"अहिंसा" के सिद्धान्त ने जनता की क्रांतिकारी शक्ति को कुंठित और पंगु
किया था और साम्राज्यशाही के खिलाफ उसे उभरने से रोका था। अब इस भयानक हिंसा और खून-खराबे के रूप में उसका बदला मिल रहा था । प्रतिक्रियावादी नेताओं ने जनता की शक्तियों को विकृत और पथभ्रष्ट करके, असली दुश्मनों की तरफ से उनका ध्यान हटाकर, उन्हें भाई-भाई की लड़ाई तथा एकदूसरे के विनाश में लगा दिया था। साम्प्रदायिक भावना का जोर पहले मुस्लिम लीग में था। अब हिन्दू महासभा तथा अन्य सम्प्रदायवादी हिन्दू संगठनों के तेजी से बढ़ने के साथ-साथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में भी साम्प्रदायिक विष फैल गया और उसका कांग्रेस के मेरठ अधिवेशन पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ा। वहां सरदार पटेल ने जोरदार तालियों की आवाज के बीच ऐलान किया : "तलवार का जवाब तलवार से दिया जायगा !" यह साम्राज्यवाद से लड़ने का आवाहन नहीं था, बल्कि मुसलमानों से लड़ने की गुहार थी ।
साम्राज्यवाद के सामने बड़ा भयानक संकट था, जो दिन-ब-दिन और ज्यादा गहरा होता जा रहा था। एक तरफ मजदूर वर्ग तथा किसानों के संघर्ष और देशी राजाओं के शासन के खिलाफ जनता के विद्रोह बढ़ रहे थे, तो दूसरी तरफ राजनीतिक विश्रंखलता और प्रतिक्रियावादी साम्प्रदायिक कलह तथा अराजकता भी बढ़ रही थी । इन दोनों ही बातों से यह प्रकट हो रहा था कि संकट गहरा हो रहा था। अतएव, साम्राज्यवाद ने राजनीतिक समझौते की क्रिया को तेज करने की कोशिश की। अगस्त १९४६ में कांग्रेसी और सिख नेताओं को शामिल करके एक नयी अन्तरिम सरकार बनायी गयो । नेहरू उसके प्रमुख थे । इस सरकार को अब भी वायसराय की कार्यकारिणी काउंसिल के रस्मी ढांचे के अन्दर ही काम करना था। अक्तूबर में उसमें मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि भी शामिल कर लिये गये। लेकिन यह अन्तरिम सरकार संयुक्त मंत्रिमंडल के रूप में काम न कर सकी। दोनों दलों के नेताओं के बीच खुलेआम विरोध चलता रहा और और केन्द्रीय सरकार के पूर्णतया निष्क्रिय हो जाने का खतरा पैदा हो गया ।
दिसम्बर १९४६ में अंग्रेजी सरकार तथा भारतीय नेताओं का एक सम्मेलन लन्दन में बुलाया गया । उसमें एटली, वेवेल, नेहरू और जिन्ना शरीक हुए । इस सम्मेलन से भी गतिरोध का कोई हल न निकला । लेकिन सम्मेलन के निष्कर्ष की घोषणा करते हुए अंग्रेजी सरकार ने जो बयान जारी किया, उसके अन्त में एक अर्थभरी धारा जोड़ दी गयी :
"यदि ऐसी विधान परिषद ने, जिसमें भारत की आबादी के एक बड़े भाग के प्रतिनिधि शरीक न हों, कोई विधान बनाया तो जाहिर है कि बादशाह सलामत की सरकार ऐसे विधान को देश के उन भागों पर लादने की बात नहीं सोच सकतो जो उससे असहमत हों।"
ऐलान का मतलब साफ था । "भारत की आबादी के एक बड़े भाग" से यहां देश की उस तीन-चौथाई आबादी से मतलब नहीं था जिसे अंग्रेजी सरकार ने वोट देने का हक भी नहीं दिया था और जिसने उन प्रान्तीय धारासभाओं के चुनाव में कोई भाग नहीं लिया था जिनको प्रस्तावित "विधान परिषद" के सदस्यों को चुनना था । उसका मतलब केवल मुस्लिम लीग से था जिसने विधान परिषद के बहुमत के फैसलों को मानने से इंकार कर दिया था। और सबने उसका यही मतलब लगाया भी । इस बयान में पहली बार इस बात की साफ झलक मिली कि अंग्रेजी सरकार भारत की समस्या को उसका बंटवारा करके "हल" करने जा रही है। इस बयान से मुस्लिम लीग को मुकम्मिल वीटो करने का अधिकार मिल जाता था, और पहले से इस बात की गारंटी हो जाती थी कि यदि मुस्लिम लीग ने इस वीटो का इस्तेमाल किया, तो अंग्रेजी सरकार जबर्दस्ती देश का बंटवारा कर देगी ।
१९४७ के शुरू के महीनों में संकट बराबर गहरा होता गया और उसके साथ सरकारी दमन भी तेज होता गया । जनवरी १९४७ में कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तरों पर सारे देश में एक साथ छापे मारे गये और सैकड़ों कम्युनिस्ट नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। ये गिरफ्तारियां साम्राज्यवाद की साधारण पुलिस ने की थी, मगर थोड़ा हील हवाला करने के बाद अन्त में उनकी जिम्मेदारी केन्द्रीय सरकार की तरफ से गृह मंत्री सरदार पटेल ने अपने ऊपर ले ली । २१ फरवरी को उन्होंने केन्द्रीय धारासभा के सामने बयान देते हुए स्वीकार किया कि १,९५० कम्युनिस्ट गिरफ्तार हुए हैं। ब्रिटिश प्रतिनिधियों ने लन्दन भेजी जाने वाली रिपोर्टों में इस बात पर जोर दिया कि परिस्थिति हाथ से निकली जा रही है और सरकारी महकमों में अव्यवस्था फैल जाने का खतरा पैदा हो गया है, इसलिए जल्द से जल्द राजनीतिक समझौता हो जाना चाहिए।
फरवरी १६४७ में अंग्रेजी सरकार ने जल्दी समझौता कराने के उद्देश्य से कुछ नये कदम उठाये । वायसराय लार्ड वेवेल को वापस बुला लिया गया और उनकी जगह लार्ड माउंटबॅटन को नियुक्त किया गया। वह लड़ाई के जमाने में दक्षिण-पूर्वी एशिया में मित्र राष्ट्रों की सेनाओं के प्रधान सेनापति थे ( अपनी युवावस्था में वह १९२१ में ब्रिटिश युवराज के साथ भारत का दौरा भी कर चुके थे) । लार्ड माउंटबेटन को जल्दी से समझौता कराने के लिए नयी हिदायतें दी गयीं जिनका अमली मतलब यह था कि भारत का बंटवारा कर दिया जाय। इसके साथ-साथ प्रधान मंत्री मि. एटली ने २० फरवरी को कामंससभा में एक नया ऐलान किया। उसमें कहा गया था :
"बादशाह सलामत की सरकार यह बात साफ कर देना चाहती है कि जून १९४६ के पहले पहले जिम्मेदार भारतीय हाथों में सत्ता सौंप देने के लिए जरूरी कदम उठाने का उसका पक्का इरादा है।"
साथ ही, इस ऐलान में यह चेतावनी दी गयी थी कि बर्तानवी सरकार किसी विधान सभा द्वारा बनाये गये ऐसे किसी विधान को स्वीकार नहीं करेगी जो कैबिनेट मिशन योजना के सुझावों के अनुसार" न हो मोर "एक पूर्णतया प्रतिनिधि विधान सभा द्वारा न बनाया गया हो," यानी, मुस्लिम लीग की सहमति से न बनाया गया हो; और यह कि यदि मुस्लिम लीग ने मंजूरी नहीं दी, या भारतीय विधान सभा के बहुमत प्रतिनिधियों ने एक ऐसा विधान बनाया जिसे बर्तानिया का अनुमोदन प्राप्त न हो, तो :
"बादशाह सलामत की सरकार को यह तय करना होगा कि निश्चित तिथि पर ब्रिटिश भारत में केन्द्रीय सरकार की सत्ता किसके हाथों में सौंपी जाय; पूर्ण रूप से ब्रिटिश भारत के लिए किसी प्रकार की केन्द्रीय सरकार को दे दी जाय, या कुछ इलाकों में वर्तमान प्रान्तीय सर कारों को सौंप दी जाय अथवा किसी ऐसे तरीके से हस्तांतरित की जाय जो सबसे अधिक युक्तिसंगत और भारतीय जनता के श्रेष्ठतम हित में हो ।'
देशी राज्यों से सम्बन्धित ऐलान में कहा गया था :
"देशी राज्यों के बारे में बादशाह सलामत की सरकार सर्वोच्च सत्ता के अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को ब्रिटिश भारत की किसी भी सरकार को सौंपना नहीं चाहती । सत्ता हस्तांतरित होने की अन्तिम तारीख के पहले सर्वोच्च सत्ता की व्यवस्था को खतम करने का कोई इरादा नहीं है; लेकिन यह इरादा जरूर है कि बीच के काल के लिए अलग-अलग रियासतों के साथ अंग्रेजी सत्ता के सम्बंधों में समझौते के जरिये, जरूरी रद्दोबदल कर लिये जायें ।"
३. १९४७ के समझौते का स्वरूप
फरवरी १९४७ का यह ऐलान उन शर्तों को समझने की कुंजी है जिनके अनुसार नयी शासन व्यवस्था का श्रीगणेश होने वाला था। इसलिए इस पर अच्छी तरह गौर कर लेना जरूरी है। भारत की जनता को अपनी इच्छा के अनुसार नयी सरकार का स्वरूप तय करने का कतई कोई अधिकार नहीं दिया गया था। इस बात का भी कोई सवाल नहीं था कि बालिग मताधिकार के
आधार पर भारत की जनता द्वारा स्वतंत्रतापूर्वक चुनी हुई किसी स्वतंत्र विधान परिषद को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के जनता की तरफ से विधान बनाने का पूर्ण अधिकार रहेगा । सही माने में प्रभुसत्ता सम्पन्न जनवादी राज्य सदा इसी प्रकार स्थापित होता है। मगर यहां ऐसी कोई बात नहीं थी ।
इसके विपरीत, अंग्रेजी सरकार ने पहले से ही इसके बहुत ही सख्त और साफ नियम बना दिये थे कि वह किस प्रकार के विधान की इजाजत देगी । यह बात भी साफ कर दी गयी थी कि अगर साम्राज्यवादी सरकार द्वारा एकदम एकतरफा ढंग से बनाये गये इन नियमों और शर्तों को नहीं माना गया, तो फैसला केवल साम्राज्यवादी सरकार के हाथों में रहेगा और वही एकतरफा ढंग से फैसला करेगी कि वह "सत्ता" को किन "जिम्मेदार भारतीय हाथों में " " हस्तांतरित" करेगी। दूसरे शब्दों में, इस प्रारम्भिक अवस्था में अभी कोई स्वतंत्र प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य नहीं कायम हो रहा था, बल्कि साम्राज्यवाद ऐसे अधिकारियों के हाथों में ताकत सौंप रहा था जो उसे अपने लिए हितकारी प्रतीत होते थे । यानी, माउंटबंटन समझौते के द्वारा अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन के खात्मे से स्वतंत्रता की ओर भारत की प्रगति केवल प्रारम्भ हो रही थी।
कैबिनेट मिशन की पुरानी योजना की जगह पर जो नयी माउंटबेटन योजना बनायी गयी, वह बहुत तेजी से तैयार की गयी और जून में प्रकाशित कर दी गयी। और अगस्त १९४७ तक वह अमल में भी प्रा गयी, हालांकि इसके लिए पहले जून १९४८ की तारीख तय की गयी थी । इतनी जल्दी इसलिए की गयी क्योंकि संकट बहुत गहरा हो गया था और सरकारी अधिकारी भी यह मानते थे कि यदि भारत में साम्राज्यवाद की सत्ता को भरभराकर गिर पढ़ने से बचाना है और संकट का कोई क्रान्तिकारी हल निकलने से रोकना है, तो जरूरी है कि समझौता जल्द से जल्द हो जाय । जैसा कि संडे टाइम्स के संवाददाता ने ४ मई १९४७ को लिखा था कि ब्रिटिश अधिकारी यह देख रहे थे कि "सम्भव है कि जून १९४८ आने के पहले ही भारत में अराजकता फैल जाय ।"
माउंटबेटन योजना में इस बात की पूरी तफसील मौजूद थी कि भारत का बंटवारा किस तरह होगा और बंटे हुए भारत के दो अलग-अलग हिस्सों की अलग-अलग सरकारों को डोमीनियन स्टेटस के रूप में जिम्मेदारी किसी तरह बहुत जल्दी से सौंप दी जायगी।
भारत के बड़े राजनीतिक संगठनों के नेताओं ने माउंटबेटन योजना को स्वीकार किया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के राजनीतिक नेताओं को योजना के बारे में काफी सन्देह थे, पर उन्होंने उसे मंजूर कर लिया ।
भारत के वामपक्षियों ने, जिनमें सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट और उग्र राष्ट्रवादी सभी शामिल थे, इस योजना को सख्त आलोचना की, क्योंकि वह देश के टुकड़े करने की योजना थी और उससे सचमुच जनता के हाथों में सत्ता नहीं पहुंचती थी। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा :
"स्वतन्त्रता आन्दोलन पूरे देश की मुकम्मिल आजादी चाहता है । भारत के बंटवारे की नयी अंग्रजी योजना के जरिये उस पर हताश हमला किया गया है।... माउंटबॅटन योजना 'भारत छोड़ो' की योजना नहीं है; वह तो वास्तव में एक ऐसी योजना जिसके जरिये ज्यादा से ज्यादा आर्थिक तथा फौजी नियंत्रण अंग्रेजों के हाथों में रखने की कोशिश की गयी है। "
ब्रिटेन में टोरी और लेबर पार्टी, दोनों ने योजना का समर्थन किया ।
अंतर्राष्ट्रीय दुनिया में अमरीकी सरकार का मत प्रकट करने वाले अखबारों ने योजना की बड़ी तारीफें कीं। अधिकतर देशों के दक्षिणपंथी अख बारों का भी यही रुख रहा। मगर, रायटर के शब्दों में, "वामपंथी अखबारों ने सभी देशों में योजना की आलोचना की।" सोवियत आलोचना जुकोव के शब्दों में इस प्रकार प्रकट हुई :
"ब्रिटेन को मजबूर होकर अमरीका से सबक सीखना पड़ा है और फिलीपाइंस के विषय में उसकी इस नीति की नकल करनी पड़ी है कि नाममात्र की झूठी आजादी दे दो। यानी भारत से इस तरह हटो कि वहीं बने रहो ।"
माउंटबेटन योजना की नयी और केन्द्रीय विशेषता भारत का बंटवारा कर देना था । अन्य सब बातों में वह केवल भारत के बड़े पूंजीपति वर्ग के -साथ साम्राज्यवाद के संयुक्त मोर्चे के उस सिद्धांत को ही और आगे ले जाती थी, जो कैबिनेट मिशन की योजना के रूप में पहले ही सामने आ चुका था ।
कई पीढ़ियों से अग्र जी सरकार इस बात की खास तौर पर शेखी बघारती आयी थी कि उसने भारत को एकता के सूत्र में बांधा है। पर वही भारत जो दो हजार वर्ष पहले अशोक और चन्द्रगुप्त के काल में और साढ़े तीन सौ वर्ष पहले अकबर के काल में एकताबद्ध हो चुका था, अंग्रेजों के दो सौ वर्ष के राज के बाद अन्त में दो विरोधी टुकड़ों में खंडित होकर पराश्रित भारतीय शासकों को सौंप दिया गया। भारत के लिए जरूरी बना दिया गया कि वह "फूट डालो और राज करो" कि इस घातक साम्राज्यवादी विरासत को दूर करने के लिए एक लम्बा और तकलीफदेह रास्ता तय करे ।
माउंटबॅटन योजना के अनुसार भारत का बंटवारा हो जाने से बहुत बड़ी खराबियां पैदा हो गयीं ।
एक तो इस योजना के मातहत राज्यों की सीमाएं भाषा, संस्कृति या जाति के आधार पर नहीं तय की गयीं, बल्कि धर्म के आधार पर तय की गयीं । इसका सिर्फ यही मतलब नहीं हुआ कि सीमाएं मनमाने ढंग से बनायी गयीं, जिनको लेकर और झगड़े बढ़ गये, बल्कि इसका यह भी नतीजा हुआ कि जिन राज्यों को एक विशेष धर्म का बहुमत होने के आधार पर बनाया गया था, उनमें दूसरे धर्म के बहुत बड़े अल्पमत को भी शामिल कर लिया गया । इससे न सिर्फ धर्म के भेद पर अधारित दो अलग-अलग राज्यों में भारत खंडित हो गया; बल्कि राजनीतिक बंटवारे का आधार चूंकि धार्मिक भेदों को बनाया गया था, इसलिए भारत के हर शहर और गांव में, हर क्षेत्र में ये भेद पैदा हो गये और पहले से कई गुना बढ़ गये। भारत में अन्दरूनी झगड़ों को स्थायी बना देने का इससे अच्छा कोई तरीका नहीं हो सकता था। माउंटबेटन योजना के अमल में आते ही बहुत खौफनाक दंगे और कत्लेआम शुरू हो गये भोर करोड़ों शरणार्थी घर-द्वार छोड़कर एक देश से दूसरे देश को भागने लगे । भारत के इतिहास में यह सब पहले कभी नहीं हुआ था ।
दूसरे, एक संयुक्त भारतीय सरकार के बदले, एक-दूसरे के मुकाबले में खड़ी हुई दो भारतीय सरकारों को ताकत सौंपने का परिणाम यह हुआ कि दोनों सरकारों के बीच हमेशा कलह रहने लगी और बराबर झगड़े होने लगे । देशी रियासतों ने इस परिस्थिति में और पेचीदगी पैदा कर दी, क्योंकि हर सरकार चाहती थी कि रियासतें उसके साथ आयें और उनको साथ लेने के लिए दोनों सरकारों में होड़ चलती थी । एक बरस के अन्दर दोनों राज्य सीधेसीधे एक-दूसरे के खिलाफ फौजी कार्रवाई करने लगे। साथ ही, हर राज्य इस कोशिश में लग गया कि उसे संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिये दूसरे राज्य के खिलाफ साम्राज्यवादी अधिकारियों की मदद मिल जाय । इस बात से झगड़ा कम नहीं हुआ कि दोनों डोमीनियनों की सेनाओं के प्रधान सेनापति अंग्रेज थे, और दोनों बहुत से अंग्रेज अफसर थे, बल्कि इससे पेचीदगियां और बढ़ गयीं । जैसा कि ३ अगस्त १९४८ को मेंचेस्टर गाजियन ने लिखा था :
"कश्मीर की लड़ाई में पाकिस्तान के सरकारी तौर पर भाग लेने से पूरे ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के लिए गम्भीर समस्याएं पैदा हो गयी हैं। यह पहला मौका है कि दोनों डोमीनियनों की फौजों ने आपस में जंग की है...।
"इसके अलावा, पाकिस्तानी तथा भारतीय दोनों ही सेनाओं के प्रधान सेनापति अंग्रेज हैं, दोनों के सलाहकार अंग्रेज हैं, और भारतीय फौज में हालांकि बहुत थोड़े अंग्रेज अफसर हैं, मगर पाकिस्तानी फौज में कई सौ अग्रेज अफसर हैं । इस तरह अंग्रेज ही परस्पर विरोधी पांतों में खड़े हैं । "
तीसरे, भारत का बंटवारा इस तरह किया गया कि आर्थिक तथा राजनीतिक सम्बन्ध तोड़ डाले गये, एक-दूसरे पर निर्भर करने वाले उद्योग - प्रधान तथा कृषिप्रधान क्षेत्रों को काट दिया गया, रेल और नहरों की व्यवस्थाओं को अंधाधुंध ढंग से छिन्न-भिन्न कर दिया गया, और इससे अखिल भारतीय आर्थिक विकास के रास्ते में और विकास की एक अखिल भारतीय योजना बनाने के रास्ते में, जो भारत की भावी समृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक है, एक बड़ी भारी रुकावट खड़ी हो गयी । इस प्रकार, बंटवारे से जनवादी आंदोलन और मजदूर किसान आंदोलन के विकास के रास्ते में ज्यादा से ज्यादा कठिनाइयां पैदा हो गयीं । इन सारे आंदोलनों और उनके संगठनों का अखिल भारतीय आधार पर विकास हुआ था। पर अब नये राज्यों के बन जाने के परिणामस्वरूप एक तो इन आंदोलनों औौर संगठनों के दो टुकड़े हो गये; और दूसरे अब उनके लिए साम्प्रदायिक कलह के उस शैतान से लड़ना जरूरी हो गया जिसे साम्राज्यवादी योजना ने पैदा किया था ।
माउंटबेटन योजना को बहुत ही तेजी के साथ अमल १५ अगस्त १९४७ को भारत और पाकिस्तान के दो नये घोषणा हो गयी ।
में लाया गया । डोमीनियनों की
१९४७ का समझौता निस्सन्देह स्वतंत्रत के मार्ग पर प्रगति में एक ऐतिहासिक मंजिल का प्रतिनिधित्व करता है। उससे भारत में ब्रिटेन का दो सौ वर्ष पुराना औपनिवेशिक शासन समाप्त हो गया - और यह चीज अंग्रेज शासकों की दया से नहीं, बल्कि भारतीय जनता के संघर्षों की शक्ति से हुई। फिर भी, इस समझौते में अनेक भारी-भरकम दुर्गुण थे। उससे भारत का बंटवारा हो गया था, शासन सत्ता भारत के उन ऊपरी वर्गों को सौंप दी गयी थी जिनका साम्राज्यवाद से सम्बंध था, और उससे भारत पर साम्राज्यवाद का आर्थिक तथा सामरिक प्रभुत्व बना रहता था । अतः पूर्ण स्वतंत्रता के मार्ग पर भारतीय जनता की प्रगति को बाद के वर्षों में और भी अनेक महान परिवर्तनों से गुजरना था ।
अध्याय १६ नवीनतम चरण
साम्राज्यवाद की हर प्रकार की दासता का अन्त करने तथा राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक स्वतंत्रता की समस्याओं को हल करने के लिए भारतीय जनता की आजादी की लड़ाई १९४७ के बाद और आगे बढ़ी है और नयी परिस्थितियों में लड़ी जा रही है।
पिछले कुछ वर्षों की घटनाओं से यह बात भलीभांति स्पष्ट हो गयी है कि ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर भारत तथा पाकिस्तान के डोमीनियनों की स्थापना के रूप में अंग्रेजी साम्राज्यवाद और भारत के ऊपरी वर्गों के बीच १९४७ में जो समझौता हुआ था, उससे भारत की आजादी की लड़ाई समाप्त नहीं हो गयी थी, बल्कि इसके विपरीत, वह समझौता एक अस्थायी परिवर्तनकालीन अवस्था का प्रतिनिधित्व करता था जिसके बाद भारत की आजादी की लड़ाई एक नयी और पहले से ऊंची अवस्था में प्रवेश करने वाली थी । यह वह अवस्था है जिसमें भारत का मजदूर वर्ग, कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में अधिकाधिक आगे आता है और बड़े पूंजीपति वर्ग तथा उसके सहयोगियों से राष्ट्र का नेतृत्व अपने हाथ में लेता है और अन्तिम विजय की ओर अग्रसर होता है ।
अंग्रेजी साम्राज्य के भीतर भारत तथा पाकिस्तान के डोमीनियनों की स्थापना रस्मी तौर पर स्वतंत्र तथा सर्वसत्ता सम्पन्न राज्यों के रूप में हुई थी । १९५० के आते- प्राते भारत का डोमीनियन भारत का प्रजातंत्र बन गया और ब्रिटेन के राजा को "कामनवेल्थ के प्रमुख" के रूप में मानने लगा । लेकिन, व्यवहार में अभी भारत तथा पाकिस्तान पर साम्राज्यवाद का आर्थिक और सैनिक शिकंजा टूटा नहीं था। भारत के आर्थिक साधन तथा उसकी जनता की मेहनत अभी भी अंग्रेजी बंक - पूंजी के नागफांस में फंसी हुई थी; बौर ऊपर से अमरीकी बंक- पूंजी भी भारत में घुस रही थी; मोर जनता का जीवन स्तर औपनिवेशिक शोषण के निम्नतम स्तर पर पड़ा हुआ था ।
भारत अभी साम्राज्यवाद से पूर्णतया स्वतंत्र नहीं हुआ था। उसकी स्वतं त्रता की अनेक सीमाएं थीं। उसको ध्यान में रखते हुए ही भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने १९५१ में प्रकाशित अपने कार्यक्रम में भारत को १९४७ के बाद भी एक "अर्ध-उपनिवेश" कहा था ("एशिया के सबसे बड़े देशों में अन्तिम, पराधीन अधं-औपनिवेशिक देश") और उसके विधान को, जिससे जनता को कुछ आंशिक जनवादी अधिकार ही प्राप्त हुए थे, "विदेशी साम्राज्यवादी हितों,
मुख्यतया अंग्रेजी साम्राज्यवादी हितों से बंधे हुए एक जमीदार पूंजीपति राज्य" का विधान बताया था। पाकिस्तान के लिए तो यह वर्णन और भी अधिक उपयुक्त था। वहां अत्यंत सीमित ढंग के जनवादी अधिकारों को भी मनमाने तानाशाही फरमानों के जरिये कुचला जा रहा था । और १९५४ में पाकिस्तान तथा अमरीका के बीच जो फोजी समझौता हुआ, उसने तो पाकिस्तान को सीधे अमरीको साम्राज्यवाद के दायरे में लाकर पटक दिया ।
लेकिन, इस सबके बावजूद, अंग्रेजी और अमरीकी दोनों साम्राज्यों से आजाद होने की जनता की लड़ाई और बहुत ही प्राथमिक ढंग की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक मांगों को प्राप्त करने का संघर्ष तथा शान्ति की रक्षा का आन्दोलन बराबर आगे बढ़ते गये । १६४६ में चीनी जन क्रान्ति की अन्तिम विजय के बाद, जनता का यह संघर्ष खास तौर पर तेजी से आगे बढ़ा । संसार की राजनीति में भारत नया रुख अपनाने लगा । वह शान्ति की रक्षा के लिए अधिकाधिक सक्रिय भूमिका अदा करने लगा । देश की अन्दरूनी राजनीतिक स्थिति में भी नयी धाराएं नजर आने लगीं। पुराना कांग्रेसी नेतृत्व कमजोर पड़ने लगा और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में जनता की जनवादी शक्तियां आगे आने लगीं। पाकिस्तान में भी जनवादी शक्तियों का बल बढ़ा, जैसा कि १९५४ में पूर्वी पाकिस्तान के आम चुनावों में प्रकट हुआ, हालांकि वहां उन्हें प्रत्यंत क्रूर दमन का सामना करना पड़ा ।
१. नयी सरकारें
१९४७ के माउंटबंटन समझौते के जरिये जो नयी सरकारें स्थापित हुई थों, शुरू में उनकी खास बात यह थी कि पुरानी साम्राज्यवादी शासन व्यवस्था से उनकी शासन व्यवस्था में कोई खास अन्तर नहीं पड़ा था । साम्राज्यवाद के पुराने शासन यंत्र को ज्यों का त्यों अपना लिया गया था। वही नौकरशाही 'थी; वे ही अदालतें थी; वही पुलिस थी; और दमन के तरीके भी वही थे । निहत्थी जनता पर पुलिस अब भी पहले की तरह ही गोली चलाती थी, लाठी चार्ज करती थी। अब भी पहले की तरह ही सभा पर रोक लगायी जाती थी, अखबार बन्द किये जाते थे, लोगों को बिना मुकदमा जेलों में बन्द किया जाता था, मजदूर यूनियनों और किसान संगठनों का दमन किया जाता था; और खेलों में हजारों उग्रवादी राजनीतिक कार्यकर्ता भरे हुए थे । भारत में साम्राज्यवाद के आर्थिक हितों की, उसकी पूंजी की, उसकी अतुलित सम्पति की बड़ी वफादारी के साथ रक्षा की जाती थी; और साम्राज्यवादी शोषण का चक्र अबाध गति से घूम रहा था । सैनिक नियंत्रण अब भी व्यवहार में
साम्राज्यवादियों की फौजी कमान के हाथों में था। शुरू-शुरू में तो अंग्रेज गवर्नर जनरल को ही संघ राज्य के सर्वोच्च अधिकारी के रूप में कायम रखा गया। दोनों डोमीनियनों के खास-खास प्रान्तों में अंग्रेज गवर्नर रखे गये । दोनों राज्यों की सेनाओं के प्रधान सेनापति, सैनिक सलाहकार और ऊंचे अफसर भी अंग्रेज थे ।
नयी शासन व्यवस्था के शुरू के सालों में जन-आन्दोलन का, और विशेष कर मजदूर आन्दोलन का दमन चरम सीमा पर पहुंच गया । १९४८ में कम्युनिस्ट पार्टी और अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के खिलाफ, किसानों तथा विद्यार्थियों के संगठनों के खिलाफ और उग्रवादी अखबारों के खिलाफ भी एक आम हमला बोल दिया गया। पश्चिमी बंगाल में, और उसके बाद मद्रास में भी, कम्युनिस्ट पार्टी गैर कानूनी करार दे दी गयी। दूसरे प्रान्तों में पार्टी का खुलकर काम करना असम्भव बना दिया गया। मजदूर वर्ग के लगभग सभी प्रमुख नेता या तो गिरफ्तार कर लिये गये या उनके नाम वारंट जारी हो गये । जेलों के बाहर निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर और जेलों के अन्दर राजनीतिक कैदियों पर पुलिस ने गोलियां चलायीं जिससे बहुत से लोग मारे गये । साम्राज्यवाद ने जनता का दमन करने के लिए जितने कानून बनाये थे, नयी सरकारें उन सबका उपयोग कर रही थीं। दूसरे नये कानून बनाकर उन्होंने दमन के हथियारों को और तेज बना लिया था । १९४६ में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने बताया कि उस वक्त कुछ नहीं तो २५,००० मजदूर और किसान नेता जेलों में बन्द थे, जिनमें से अधिकतर बिना मुकदमा नजरबन्द थे । नयी भारत सरकार द्वारा प्रकाशित सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उसके शासन के पहले तीन वर्षों में, यानी १५ अगस्त १९४७ से १ अगस्त १९५० तक, उसकी पुलिस और फौज ने जनता पर १,६८२ बार गोली चलायी, ३,७८४ श्रादमियों को जान से मारा, लगभग १०,००० को जख्मी किया, ५०,००० को जेल में बन्द किया और जेलों के अन्दर ८२ राजबन्दियों को गोली से उड़ा दिया ।
भयानक दमन के इस प्रारम्भिक काल के बाद ही कहीं भारत में एक नया परिवर्तन आया । और १९५० के नये विधान के द्वारा (उसकी कुछ गैरजनवादी बातों के बावजूद ) जनता को कुछ जनवादी अधिकार दिये गये और के जनवरी १९५२ में बालिग मताधिकार के आधार पर पहला आम चुनाव हुआ । लेकिन इसके बाद भी जनवादी अधिकारों के लिए सदा संकट बना रहा। इसके बाद भी अक्सर सरकार संकटकालीन अधिकारों का प्रयोग करती रही, दमनकारी कानूनों को काम में लाती रही और लाठी-गोली का इस्तेमाल करती रही ।
पाकिस्तान में तानाशाही तरीके अमल में कायम रहे, और जनवादी राजनीतिक एवं मजदूर संगठनों का क्रूर दमन जारी रहा। एक गुप्त " षड्यंत्र" केस के बहाने प्रमुख कम्युनिस्ट, मजदूर तथा जनवादी नेताओं को जेल में डाल दिया गया और लम्बी-लम्बी सजाएं सुना दो गयीं । १९५४ में पूर्वी पाकिस्तान में आम चुनाव हुए और उसमें क्रुद्ध जनता ने बदनाम मुस्लिम लीगी नेताओं को उठाकर पटक दिया और ६३% वोट उस संयुक्त मोर्चे को दिये जिसने एक प्रगतिशील कार्यक्रम के आधार पर चुनाव लड़ा था । मगर इस चुनाव के आधार पर जो मंत्रिमंडल बना, उसे ऊपर से ( बाल्डविन की टोरी सरकार के बनाये हुए १६३५ के भारत सरकार कानून की ह२वीं धारा के तहत ) एक तानाशाही फरमान निकालकर बर्खास्त कर दिया गया और पूर्वी पाकिस्तान में फौजी तानाशाही कायम कर दी गयी ।
आर्थिक नीति का ढर्रा भी कम महत्वपूर्ण नहीं था। कांग्रेस के पुराने कार्यक्रम में सभी प्रमुख आर्थिक साधनों तथा उद्योगों के राष्ट्रीयकरण की बात थी । कांग्रेस यह बात मानती थी कि इस प्रकार बड़े पैमाने पर राष्ट्रीयकरण करना न सिर्फ प्रगतिशील पुर्नानर्माण के लिए आवश्यक है, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी के प्रभुत्व से मुक्त करने के लिए भी जरूरी है । लेकिन डोमीनियन सरकार की स्थापना के बाद यह कार्यक्रम दाखिल दफ्तर कर दिया गया ।
१७ फरवरी १९४८ को प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने ऐलान किया :
"आर्थिक व्यवस्था में कोई आकस्मिक परिवर्तन नहीं होगा । जहां तक सम्भव होगा, मौजूदा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण नहीं कियाः जायगा ।"
रॉयटर की व्यापारिक समाचार सर्विस के आर्थिक विभाग ने १ अप्रैल को नयी दिल्ली से समाचार भेजा :
"भारत सरकार की अगले दस वर्षों की औद्योगिक एवं आर्थिक नीति में मौजूदा उद्योगों का बड़े पैमाने पर राष्ट्रीयकरण करने का कोई स्थान नहीं होगा ।"
६ अप्रैल १९४८ को आर्थिक नीति के सम्बंध में सरकार का प्रस्ताव प्रकाशित हुआ, जिससे ये सारी भविष्यवाणियां सही साबित हुईं। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि उद्योगों पर सरकार का स्वामित्व केवल तीन क्षेत्रों तक सोमित रहेगा : अस्त्र-शस्त्र, एटम शक्ति और रेलवे ( इन क्षेत्रों में पहले से ही सरकार का स्वामित्व था ) । कोयला, लोहा, इस्पात तथा अन्य प्रमुख उद्योगों
के बारे में सरकार ने ऐलान किया कि उसने " इन क्षेत्रों में मौजूदा कम्पनियों को अगले दस वर्ष तक विकसित होने देने का निश्चय किया है;" बिजली पर सरकार का नियंत्रण रहेगा और "बाकी सारा प्रौद्योगिक क्षेत्र सामान्यतया निजी व्यवसाय के लिए खुला रहेगा।" इस प्रकार, पहले से जमी हुई बड़ी इजारेदारियों के हित में, जिनमें साम्राज्यवादी इजारेदारियां भी शामिल थीं, राष्ट्रीयकरण के कार्यक्रम की बलि चढ़ा दी गयी ।
आर्थिक नीति सम्बंधी इस प्रस्ताव के साथ-साथ उसकी एक व्याख्या भी प्रकाशित हुई थी । वह विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उसमें कहा गया थाः
"भारतीय बाजारों में हाल में यह डर पैदा हुआ था कि सरकार अनेक उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करने का प्रयोग करने वाली है, और इस प्रकार इन उद्योगों की कार्यक्षमता और साख को खतरे में डालने वाली है। अब यह डर एकदम दूर हो गया है। यह आशा की जाती है कि सरकारी नीति के ऐलान से, सरकारी हुंडियों के दाम फिर अपने पुराने स्तर पर पहुंच जायेंगे ।
"जानकार हलकों में उम्मीद की जा रही है कि अब चूंकि सरकारी नीति में पुनः विश्वास कायम हो गया है, इसलिए अब पुननिर्माण के लिए बड़े-बड़े कर्जे जुटाने के लिए सरकार का रास्ता साफ हो गया है।"
आगे इस व्याख्या में यह आश्वासन दिया गया था कि मुनाफों की हदबंदी या नियंत्रण का कोई डर नहीं है :
" बाजारों में इस बात की बड़ी आशंका थी कि कहीं सरकार निजी व्यवसायों के मुनाफों की हदबंदी या नियंत्रण न करने लगे। मगर सर कारी नीति का जो ऐलान हुआ है, उसमें इस बात का कोई संकेत नहीं है और इसलिए अब कम्पनियों के हिस्सों की कीमतों में लाजमी तौर पर वृद्धि होगी। इससे निजी व्यवसाय को प्रोत्साहन मिलेगा ।"
इस बात में भी कोई सन्देह नहीं रहा कि किस प्रकार के "निजी व्यवसाय" को यह प्रोत्साहन खास तौर पर दिया जा रहा था । यह प्रोत्साहन खास तौर पर साम्राज्यवाद की, यानी अंग्र जी- अमरीकी पूंजी को दिया जा रहा था । सरकारी प्रस्ताव के साथ जो सरकारी व्याख्या प्रकाशित हुई थी, उसके अन्तिम अंश में सरकारी नीति का यह उद्देश्य बताया गया था :
"प्रस्ताव भारतीय उद्योगों में विदेशी पूंजी तथा विदेशी व्यवसाय को पूर्ण स्वतंत्रता देना चाहता है और साथ ही राष्ट्रीय हित में उस पर नियंभारत : वर्तमान और भावो
त्रण भी रखना चाहता है । प्रस्ताव के इस अंग से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सरकार प्रौद्योगिक प्रबंध एवं टेक्निकल शिक्षा और पूंजी दोनों ही क्षेत्रों में विदेशी मदद की आवश्यकता महसूस करती है और इसलिए यह जरूरी समझती है कि भारतीय व्यवसाय की मदद के लिए विदेशी पूंजी तथा विदेशी कौशल का भारत में स्वागत किया जाय ।" "विदेशी पूंजी को पूर्ण स्वतंत्रता" - माउंटबेटन समझौते से साम्राज्यवाद को सचमुच बड़ा ठाठदार मुनाफा हो रहा था !
इसलिए कोई आश्चर्य नहीं यदि ब्रिटिश पत्र इकानमिस्ट ने माउंट समझौते के समय ही यह लिखा था :
"यदि डोमीनियन स्टेट्स को तिलांजलि नहीं दे दी जाती, तो हो सकता है कि कुछ रस्मी नाता भी कायम रह जाय; और अगर कोई नया राजनीतिक रूप अपनाया गया तो भी ब्रिटेन और भारत के बुनियादी सामरिक तथा आर्थिक सम्बंध तो हर हालत में बने रहेंगे ।" (७ जून १९४७)
भारत का साम्राज्यवाद के साथ सम्बंध अब भी किस हद तक कायम था, यह बात सैनिक, सामरिक एवं वैदेशिक नीति के क्षेत्र में और साफ हो गयी, हालांकि बाद की घटनाओं से उसमें कुछ अन्तर पड़ने वाला था ।
भारत, पाकिस्तान और लंका के डोमीनियनों के सैनिक संगठन तथा सामरिक योजनाओं का नियंत्रण तथा नेतृत्व अंग्रेजों के हाथ में था । यहां तक कि शुरू के काल में उनकी सेनाओं के प्रधान सेनापति भी अंग्रेज थे । उनके अलावा भारतीय तथा पाकिस्तानी सेनाओ में सैकड़ों अंग्रेज अफसर काम कर रहे थे । भारतीय समुद्री बेड़े तथा हवाई फौज पर अंग्रेजों का खास तौर पर मजबूत नियंत्रण था । समुद्री बेड़े के अफसरों की शिक्षा संचालन और प्रस्त्रशस्त्रों की व्यवस्था सब ब्रिटेन के साथ जुड़ी हुई थी और हवाई फौज के अड्डों का संचालन अंग्रेजी हवाई बेड़े के सहयोग से होता था । लंका की त्रिकोमाली की समुद्री चौकी को अब भी अंग्रेजी साम्राज्य की एक मुख्य फौजी चौकी के रूप में बढ़ाया और फैलाया जा रहा था। भारत की धरती पर अब भी अंग्रेजी फौज के भर्ती के दफ्तर काम कर रहे थे, जहां मलाया की जनता के खिलाफ लड़ाई चलाने के लिए गोरखा सिपाही भर्ती किये जाते थे ।
वैदेशिक नीति के मामले में भारत के बड़े पूंजीपतियों ने साम्राज्यवाद के साथ गठबंधन कर लिया था। भारतीय पूंजीपतियों के प्रमुख पत्र ईस्टर्न इकानमिस्ट ने ३१ दिसम्बर १९४८ को स्पष्ट रूप में लिखा था :
" बाल की खाल निकालने वाले राजनीतिज्ञ कुछ भी कहें, व्यवहार में हमारी वैदेशिक नीति ने अब एक निश्चित दिशा पकड़ ली है । अब हम एक ऐसी वैदेशिक नीति अपना रहे हैं जो प्रधानतया कॉमनवेल्थ के साथ हमारी मित्रता बनाये रहेगी ।... सोवियत संघ के मुकाबले अमरीका से कॉमनवेल्थ की ज्यादा दोस्ती है। इसलिए उसके साथ सहयोग रखने का मतलब यह होगा कि हम असल में अमरीका की तरफ झुकेंगे । इस राजनीतिक तथ्य से क्या तार्किक परिणाम निकलेगा, यह अभी से स्पष्ट हो जाना चाहिए । इसका मतलब यह है कि किसी छोटे-मोटे सवाल को छोड़कर हम राष्ट्र संघ में या कहीं और कॉमनवेल्थ और अमरीका के रुख के विपरीत रुख नहीं अपना सकते । "
अप्रैल १९४६ में लन्दन में डोमीनियनों के प्रधानमंत्रियों का एक सम्मेलन हुआ । उसकी ओर से एक घोषणापत्र प्रकाशित हुआ । उसमें भारत को ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के भीतर एक स्वतंत्र प्रजातंत्र माम लिया गया । ऐलान किया गया कि भारतीय प्रजातंत्र ब्रिटेन के राजा को भारत के शासक के रूप में नहीं, बल्कि "कॉमनवेल्थ के प्रमुख" के रूप में मानेगा । ऐलान में कहा गया था :
"भारत सरकार ने घोषणा की है कि भारत कॉमनवेल्थ को अपनी पूर्ण सदस्यता बनाये रखना चाहता है और बादशाह को, कॉमनवेल्थ के सदस्य स्वतंत्र राष्ट्रों के स्वतंत्र सहयोग के प्रतीक के रूप में और इसलिए कामनवेल्थ के प्रमुख के रूप में मानता है ।"
लन्दन के इस घोषणापत्र का साम्राज्यवादियों ने स्वागत किया क्योंकि उससे अमली शक्ल में अंग्रेजी साम्राज्य के साथ भारत का सम्बंध बना रहता था। अंग्रेज और अमरीकी साम्राज्यवादियों को भारत से क्या आशाएं थीं, यह बात १९४६ के पतझड़ में और स्पष्ट हो गयी जब पंडित नेहरू अमरीका गये । अक्तूबर १९४९ में न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा :
"एशिया में जनवादी शक्तियों के केन्द्र बिन्दु के रूप में वाशिंगटन की आशाएं भारत पर केन्द्रित हैं, जो एशिया का दूसरे नम्बर का राष्ट्र है, और उस व्यक्ति पर केन्द्रित हैं जो भारत की नीति को निश्चित करता है । हमारा मतलब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से है । " और अगस्त १९५० में उसने फिर लिखा था :
"एक अर्थ में वह (नेहरू) जनवादी पक्ष के लिए माओ त्से तुंग का जवाब है; एशिया का समर्थन प्राप्त करने के संघर्ष में पंडित नेहरू को अपने मददगार के रूप बराबर है।"
अंग्रेज अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ भारत का सहयोग १६५० की गर्मियों में तब चरम सीमा पर पहुंच गया, जब राष्ट्रसंघ में अमरीका ने कोरिया पर अपने फौजी हमले को उचित ठहराते हुए एक गैर कानूनी प्रस्ताव पेश किया और भारत सरकार ने उसका समर्थन किया। लेकिन एशियाई देशों पर पश्चिमी साम्राज्यवादी जो हमले कर रहे थे और जैसी बर्बादी ढा रहे थे, उसमें उनको भारत का किसी भी प्रकार का सहयोग मिले - इसके खिलाफ भारतीय जनता में बहुत जबर्दस्त भावना थी। दूसरी ओर, चीनी जनतंत्र की विजय से एशिया में एक नया शक्ति संतुलन पैदा हो गया था। इन दोनों बातों के कारण इसी समय से नये विरोध पैदा होने लगे और भारत की वैदेशिक नीति में एक नया, महत्त्वपूर्ण परिवर्तन दिखायी देने लगा ।
इस आधार पर शुरू में कुछ अस्थायी सफलता प्राप्त कर लेने के कारण अंग्रेज और अमरीकी साम्राज्यवादियों की हिम्मत बढ़ी और वे भारत, पाकिस्तान, और लंका को अपने मुख्य अड्डो के रूप में और एशिया में क्रांति-विरोधी शक्तियों के केन्द्र के रूप में इस्तेमाल करने की योजनाएं बनाने लगे । वे चाहते थे कि इन देशों को आधार बनाकर दूसरे एशियाई देशों की जनता के स्वतंत्रता आन्दोलनों पर हमला बोलें ।
भारत के बड़े पूंजीपतियों के कुछ खास-खास हलकों से भी इन योजनाओं को समर्थन मिला । ये लोग एशिया में जन क्रान्ति के बढ़ाव को देखकर बदहवास थे । इसके साथ ही कुछ उनके अपने आर्थिक हितों का भी सवाल था । वे भारत के बाहर एशिया के अन्य देशों तक फैला हुआ कैसा खुला क्रान्तिविरोधी मोर्चा बनाना चाहते थे, इसकी एक झलक उप प्रधान मंत्री स्वर्गीय सरदार पटेल के उस रेडियो भाषण में मिली, जो उन्होंने १५ अगस्त १९४८ को दिया था :
"एक समय समझा जाता था कि एशिया का नेतृत्व चीन करेगा। मगर वह भयानक घरेलू झगड़ों में फंसा हुआ है ।... मलाया, हिन्द-चीन और वर्मा में भी परिस्थिति चिन्ताजनक है... यदि भारत में अवांछित तत्वों को तुरंत सख्ती से नहीं दबाया गया तो निश्चय ही वे यहां भी वंसी ही अराजकता पैदा कर देंगे जैसी उन्होंने एशिया के कुछ अन्य देशों में पैदा कर दी है ।"
"अवांछित तत्व" - "सख्ती से दबाना" - इतिहास का चक्र मानो - - एकदम घूम गया था। भारत की पूंजीवादी राष्ट्रवादिता का दक्षिणपंथी नेतृत्व भारतीय नव-साम्राज्यवाद के रूप में प्रस्फुटित हो रहा था और अंग्रेजअमरीकी साम्राज्यवाद का छोटा साझीदार बनने की कोशिश कर रहा था ।
मगर वह आधार गायब था जिसके सहारे यह बात हो सकती । शीघ्र ही,
घटना चक्र यह बात स्पष्ट कर देने वाला था । अगली अवस्था में भारत एक नये तथा भिन्न पथ पर अग्रसर होने की तैयारी कर रहा था ।
२. भारत में अंग्रज-अमरीको साम्राज्यवाद
भारत पर आज भी अंग्रेजी साम्राज्यवाद का प्रभुत्व बहुत हद तक कायम है। अमरीकी साम्राज्यवाद का प्रभुत्व, हालांकि, उससे कम है, मगर वह बढ़ रहा है ।
राजनीतिक परिवर्तन के बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था पर अंग्रेजी बंक-पूंजी का प्रभुत्व आज भी सबसे अधिक है। भारत की कोयला खानों पर, चाय और रबड़ के बागानों पर, तेल के कुओं और तेल साफ करने के कारखानों पर और बहुत से इंजीनियरिंग के कारखानों पर आज भी मुख्यतया अंग्रेज पूंजीपतियों का स्वामित्व अथवा नियंत्रण है। भारत के विदेशी व्यापार और भारतीय बैंकों के नियंत्रण में निर्णयकारी भूमिका अंग्रेजी पूंजी की है । जिन कम्पनियों के मालिक नाम के लिए भारतीय हैं, उनमें से भी अनेक वास्तव में अंग्रेज मैनेजिंग एजेंसियों की मातहती में हैं । अंग्रेज और अमरीकी इजारेदारों ने भारतीय इजारेदारों के साथ मिलकर मिली-जुली कम्पनियां खोली हैं, जो नाम के लिए तो भारतीय हैं, मगर उन पर असल में विदेशी पूंजी का नियंत्रण है । इन मिली-जुली कम्पनियों के जरिये अंग्रेज और अमरीकी इजारेदारों ने भारतीय इजारेदारों को अपने छोटे साझीदारों के रूप में अपने आधीन कर रखा है।
भारत के रिजर्व बैंक ने हिसाब लगाया है कि ३० जून १९४८ को भारत में ५९६ करोड़ रुपये की निजी विदेशी पूंजी लगो हुई थी । इसमें से ५१६ करोड़ की दीर्घकालीन पूंजी थी। असल में, यह संख्या भी वास्तविक संख्या से कम है क्योंकि उसमें केवल वही व्यापारिक पूंजी शामिल है जो सरकारी कागजों में दर्ज है, और उसमें न सिर्फ सरकारी तथा म्युनिसिपल कर्जों के रूप में लगी हुई निजी पूंजी शामिल नहीं है, बल्कि विदेशी बैंकों की सारी पूंजी भी उसमें से छोड़ दी गयी है । विदेशी बैंकों की पूंजी भारत में बहुत ताकतवर है और देश का अधिकतर वैदेशिक व्यापार उसी की सहायता से चलता है ।
भारत सरकार के अर्थमंत्री श्री चिन्तामण देशमुख ने १६ जून १६५२ को पार्लामेंट में बताया था कि जुलाई १९४७ से दिसम्बर १९५१ तक ५२ करोड़ ६० लाख रुपये की विदेशी पूंजी भारत से वापस चली गयी और ११
करोड़ की नयी विदेशी पूंजी यहां लगायी गयी । इसका मतलब यह हुआ कि " इस काल में भारत में लगी हुई विदेशी पूंजी में ४२ करोड़ ६० लाख रुपये की कमी आ गयी । इस बयान में अर्थमंत्री ने रिजर्व बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए यह भी बताया था कि जून १९४८ में भारत में कुल ६१३ करोड १० लाख रुपये की दीर्घकालीन विदेशी पूंजी लगी हुई थी, जिसमें से २६२ करोड़ ६० लाख रुपये की पूजी सरकारी इंडियों की शक्ल में थी ( इसमें में २५० करोड़ ५० लाख रुपये की पूंजी ब्रिटेन की थी और ३२० करोड़ ४० लाख रुपये की पूंजी व्यवसाय में लगी हुई थी। इसमें से २३० करोड़ १० लाख की पूंजी ब्रिटेन की थी; जिसकी बाजार में कीमत ३७५ करोड़ ६० लाख रुपये होती थी ) ।
इन आंकड़ों में भारत में लगी नयी विदेशी पूंजी को कम करके आंका गया है। फिर भी, उनके अनुसार, माउंटबैटन समझौते के बाद साढ़े चार वर्ष बाद कुल विदेशी पूंजी का केवल पन्द्रहवां हिस्सा भारत से वापिस गया । भारत सरकार की हुंडियों में जो विदेशी पूंजी लगी हुई थी, उसका ८५ प्रतिशत भाग, यानी १८ करोड़ ८० लाख पौंड ब्रिटेन का था, और भारत में लगी हुई दीर्घकालीन विदेशी पूंजी का ७० प्रतिशत भाग, यानी बाजार भाव के अनुसार, २८ करोड़ २० लाख पौंड की पूंजी अंग्रेजी पूंजी थी। यानी, वास्तविकता को कम करके आंकने वाले इन आंकड़ों के अनुसार भी, भारत में कुल ४७ करोड़ पौंड की दीर्घकालीन अ ग्रेजी पूंजी लगी हुई थी। १९४८ में ब्रिटेन के बाहर कुल १६६ करोड़ पौंड की अंग्रेजी पूंजी लगी हुई थी। उसका एक-चौथाई भारत में लगा हुआ था। ब्रिटिश साम्राज्य में कुल ११९ करोड़ १० लाख पौंड की पूंजी लगी हुई थी । उसका ४० प्रतिशत से अधिक भाग भारत में लगा हुआ था । निश्चय ही सत्ता परिवर्तन से अंग्रेजी पूंजीवाद के लिए भारत के महत्व में कोई कमी नहीं आयी थी ।
१९४७-४८ में भारत में कुल जितनी भारतीय ज्वाइंट स्टाक कम्पनियां रजिस्टर्ड थीं, उनमें कुल ५६६ करोड़ ५० लाख की पूंजी लगी हुई थी। इसमें १४५ करोड़ ८० लाख की वह विदेशी पूंजी और जोड़नी चाहिए जो विदेशों में रजिस्टर्ड मगर भारत में काम करने वाली कम्पनियों की शाखाओं में लगी हुई थी । इस प्रकार, भारत की विभिन्न कम्पनियों में लगी हुई निजी पूंजी कुल मिलाकर ७१५ करोड़ ३० लाख की होती थी। इसका मतलब यह हुआ कि भारत में लगी कुल पूंजी का ४४.७ प्रतिशत भाग विदेशी पूंजी का था ।
लेकिन यह ४४ प्रतिशत भाग भारत की अर्थव्यवस्था पर कितना जबदस्त नियंत्रण रखता है, यह बात भौर भी महत्वपूर्ण है। भारत में जो ३८. |
40d5fd3f691e94467ced543aec58fcf8ebaaa4b371510594f5d843edf0188746 | pdf | राज्य सरकार के अधीन कानून की विशेष जानकारी रखने वाले पद पर 10 वर्ष तक कार्य कर चुका हो। लेकिन 44 वे संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को न्यायाधीश नियुक्त नहीं कर सकता, जो उसकी दृष्टि में प्रसिद्ध न्यायशास्त्री हो, जब तक कि वह व्यक्ति ऊपरलिखित अन्य योग्यताओं को पूरा न करता हो ।
न्यायाधीशों की नियुक्ति (Appointment of the Judges)
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित राज्य के राज्यपाल की सलाह से करता है। अन्य न्यायाधीशों (मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर) की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति को उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की भी सलाह लेनी पड़ती है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति प्रायः वरिष्ठता (Seniority) के आधार पर की जाती है। लेकिन 10 मई, 1974 को पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी. के. महाजन (D.K. Mahajan) के सेवा-निवृत्त होने पर जस्टिस नरूला को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जिस पर उनसे सीनियर न्यायाधीश प्रेमचन्द पंडित ने अपना त्यागपत्र दे दिया। 27 जनवरी, 1983 को केन्द्रीय सरकार ने यह घोषणा की कि देश के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश राज्य के बाहर से लिए जाएँगे तथा यह भी निर्णय लिया गया कि भविष्य में सब राज्यों के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश दूसरे राज्यों के उच्च न्यायालयों से वहाँ पर उनकी वरिष्ठता (Seniority) तथा योग्यता (Ability) के आधार पर लिए जाएँगे। 15 जुलाई, 1986 को सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को यह आदेश दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश के अन्य राज्यों में से नियुक्त करने की नीति को लागू करे। कार्यकाल (Term of Office) - उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर काम करता है। परन्तु वह इससे पूर्व अपने पद से त्याग-पत्र देकर अलग हो सकता है। अपनी अवधि के समाप्त होने के पश्चात् वह किसी स्थान पर सरकार की स्वीकृति के बिना कोई भी कार्य नहीं कर सकता।
पदच्युति (Removal)- यदि संसद के दोनों सदन अपने-अपने सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत से और सदन की बैठक के उपस्थित सदस्यों के 2/3 बहुमत से किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सदाचार या अयोग्यता (Misbehaviour or Incapacity) के अपराध में अपराधी ठहराए और इस विषय में राष्ट्रपति को सम्बोधित करे, तो राष्ट्रपति उस न्यायाधीश को पद से हटा देता है।
वेतन (Salary)-उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को अस्सी हजार रुपये मासिक तथा अन्य न्यायाधीशों को सत्तर हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है। वेतन के अतिरिक्त उन्हें कई प्रकार के भत्ते मिलते हैं। वित्तीय संकटकालीन की स्थिति को छोड़कर अन्य किसी भी परिस्थिति में उनके वेतन तथा भत्तों में कमी नहीं की जा सकती। मार्च, 1976 में संसद कानून पास करके उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए रिटायर होने के पश्चात् पेंशन की भी व्यवस्था की गई।
शपथ (Oath) - धारा 219 के अन्तर्गत प्रत्येक न्यायाधीश को अपना पद ग्रहण करते समय राज्य के राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त अन्य पदाधिकारी के समक्ष अपने पद की शपथ लेनी पड़ती है कि वह संविधान में आस्था रखेगा, अपने कर्त्तव्यों का ईमानदारी से पालन करेगा व संविधान तथा कानून की रक्षा करेगा।
न्यायाधीशों का स्थानान्तरण (Transfer of Judges) - राष्ट्रपति न्यायाधीशों का एक राज्य से दूसरे राज्य में तबादला कर सकता है। आन्तरिक आपातकाल के दौरान सात न्यायाधीशों को एक उच्च न्यायालय ने अपने महत्त्वपूर्ण निर्णय में उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा अन्य न्यायाधीशों के अन्तर्राज्यीय तबादले को वैध करार दिया। केन्द्रीय सरकार ने 27 जनवरी, 1983 को एक महत्त्वपूर्ण घोषणा की थी कि ऐसे मुख्य न्यायाधीश को, जिसके सेवा-निवृत्त होने में एक वर्ष अथवा कम समय रह गया हो तो उसे दूसरे राज्य के उच्च न्यायालय में स्थानान्तरित नहीं किया जाएगा।
सामान्य व्यवस्थाएँ-उच्च न्यायालय का न्यायाधीश सेवानिवृत्त होने के पश्चात् सर्वोच्च न्यायालय तथा अन्य राज्यों के सिवाय किसी दूसरे न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता। इसका अभिप्राय यह है कि सेवा से निवृत्त होने वाला न्यायाधीश उस न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता, जहाँ से वह सेवानिवृत्त हुआ हो।
शक्तियाँ तथा कार्य (Powers and Functions) - उच्च न्यायालयों के अधिकार और उनके क्षेत्राधिकार लगभग वैसा ही है जैसे कि संविधान लागू होने से पहले थे । उच्च न्यायालय का मुख्य काम मुकदमों का निर्णय करना है। परन्तु इसे न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति भी प्राप्त है। इसके अतिरिक्त इसे अपने अधीनस्थ न्यायालयों की देख-रेख करने का प्रशासकीय कार्य भी करना होता है। अतः इसकी शक्तियों तथा कार्यों का अध्ययन इस प्रकार किया जा सकता है(i) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction)-(i) कलकत्ता, बंबई और मद्रास उच्च न्यायालयों में कुछ दीवानी व फौजदारी मुकदमे प्रथम बार में ही सीधे पेश किए जा सकते हैं। उनके लिए यह आवश्यक नहीं कि वे पहले अधीन न्यायालयों में पेश किए जायें जैसा कि अन्य राज्यों में पाया जाता है।
(ii) नौकाधिकरण (Admiralty), इच्छा-पत्र अर्थात् वसीयत (Probate), विवाह विधि, कम्पनी विधि तथा विवाह-विच्छेद आदि के मुकदमे भी सीधे उच्च न्यायालयों के पास जा सकते हैं। उच्च न्यायालयों के अपमान के विषय में भी सभी उच्च न्यायालयों को प्रारंभिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
(iii) उच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी रक्षक है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों पर आघात होता है, तो वह नागरिक सीधा सर्वोच्च न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दे सकता है अथवा उच्च न्यायालय में। उच्च न्यायालय कई लेखों (Writs), जैसे- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Writ of Habeas Corpus), परमादेश (Writ of Mandamus), प्रतिषेध (Writ of Prohibition), उत्प्रेक्षण (Writ of Certiorari), पृच्छा लेख (Writ of Quo-Warranto) के द्वारा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। इन लेखों (Writs) को जारी करने का अधिकार अन्य सब कार्यों के लिए भी है।
42 वें संशोधन द्वारा उच्च न्यायालयों को कुछ शक्तियों से वंचित किया गया था, लेकिन अब 44वें संशोधन के अन्तर्गत 42 वें संशोधन से पूर्व की स्थिति को पुनः स्थापित करने की व्यवस्था की गई है।
2. अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction) - सभी उच्च न्यायालयों को अपने अधीन न्यायालयों के फैसलों के विरूद्ध अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है, जिन्हें दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
(i) दीवानी (Civil) तथा
(ii) फौजदारी (Criminal)।
(i) दीवानी (Civil) - दीवानी मामलों में उच्च न्यायालयों में कोई भी अपील या पहली अपील होगी अथवा दूसरी अपील। पहली अपील का अर्थ यह है कि जिला न्यायालयों के निर्णयों के विरूद्ध सीधे उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। ऐसा तभी हो सकता है जब उस मुकदमे में कानून का कोई गहरा प्रश्न उलझा हुआ हो। दूसरे, जब एक अपील जिले का न्यायालय सुन चुका है तो उसके निर्णय के विरूद्ध भी अपील उच्च न्यायालय में हो सकती है परन्तु उसमें कोई कानूनी प्रश्न उलझा होना चाहिए। उच्च न्यायालय में पहली तथा दूसरी अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंर्तगत यदि उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने अपील सुनी है तो उसके निर्णय के न्यायालय में फिर अपील हो सकती है। ऐसी स्थिति में कई न्यायाधीश अपील सुनते हैं।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 9 जनवरी, 1980 को पंजाब न्यायालय (संशोधन) अध्यादेश (Punjab Courts [(Amendment Ordinance, 1979)] लागू हुआ था। इस अध्यादेश के अनुसार जिस अभियोग का संबंध 20,000 रुपये से 5 लाख रुपये तक की रकम के साथ है, इस अभियोग संबंधी पहली अपील जिला न्यायाधीश के पास और जिला न्यायाधीश के निर्णय विरुद्ध अन्य अपील राज्य के उच्च न्यायालय (High Court) के पास होगी।
(ii) फौजदारी (Criminal) - फौजदारी मुकदमों में निम्नलिखित मामलों में निचले न्यायालयों के निर्णय के विरूद्ध अपील उच्च न्यायालय में हो सकती है(a) यदि सेशन जज ने किसी अपराधी को मृत्यु-दण्ड दिया हो तो उसकी पुष्टि उच्च न्यायालय से होनी चाहिए। वह अपराधी स्वयं भी उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
(b) यदि निचले न्यायालय ने किसी अपराधी को 4 वर्ष या इससे अधिक की सजा दी हो।
(c) किसी प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट के निर्णय के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में होगी।
(d) उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में अपील की जा सकती है। ऐसी अपील प्रत्येक मुकदमे में नहीं हो सकती । कानूनानुसार जिन अभियोगों में अपील की जा सकती है, उनके लिए यह अनिवार्य है कि संबंधित उच्च न्यायालय (High Court) अपील करने की आज्ञा दे । उच्च न्यायालयों की आज्ञा के बिना उसके निर्णयों के विरुद्ध न्यायालय अपनी इच्छा के अनुसार भी किसी मुकदमे संबंधी अनुच्छेद 136 के अन्तर्गत विशेष अपील करने की आज्ञा दे सकता है।
3. प्रशासकीय शक्तियाँ (Administrative Powers)- राज्य की न्याय व्यवस्था में उच्च न्यायालय का स्थान सबसे ऊँचा होता है। वह सभी अधीनस्थ न्यायालयों के काम की देखभाल करता है और उनके कार्य संचालन के नियम व विनिमय बनाता है। इसकी प्रशासकीय शक्तियाँ निम्नलिखित हैं(i) वह न्यायालय अपने राज्य की सीमा में स्थित सभी न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों (Tribunals) का निरीक्षण कर सकता है, परंतु सैनिक न्यायालय इसके एक प्रशासनिक क्षेत्र से बाहर हैं।
(ii) इसे अधीनस्थ न्यायालयों के लिए कार्यवाही के नियम (Rules of Procedure) बनाने का भी अधिकार
(iii) यह निम्न न्यायालयों के लिए अपनी कार्यवाही का रिकार्ड रखने, हिसाब-किताब तथा कागज-पत्रों को सुरक्षित रखने की विधि के बारे में नियम बना सकता है।
(iv) इसे यह अधिकार प्राप्त है कि किसी भी न्यायालय से कोई कागज-पत्र अथवा रिकार्ड आदि मँगवाकर उसका स्वयं निरीक्षण कर सके।
(v) यह किसी मुकदमे को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में भी बदल सकता है।
(vi) उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय (Court of Record) है। इसका भाव यह है कि इसके निर्णय और कार्य-पद्धति को दूसरी अदालतों में उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है।
(vii) इसे राज्य के किसी न्यायालय से किसी मुकदमे को अपने पास मँगवाने अथवा यह आदेश देने का भी अधिकार है कि वह उस मुकदमे का निर्णय शीघ्र करें।
(viii) इसे यह देखने का अधिकार है कि इसके अधीनस्थ न्यायालय अपनी सीमा का उल्लंघन तो नहीं करते तथा अपने कर्त्तव्यों का पालन निश्चित विधि के अनुसार करते हैं कि नहीं।
(ix) इसे अपने अधीनस्थ न्यायालयों के कर्मचारियों के वेतन, भत्ते तथा सेवा की शर्तों आदि को निश्चित करने का भी अधिकार है। इन न्यायालयों के न्यायाधीशों की पदोन्नति, अवनति, पेंशन इत्यादि के बारे में नियम बनाने की शक्ति भी इसे प्राप्त है।
(x) संविधान के अनुच्छेद 229 के अन्तर्गत मुख्य न्यायाधीश इस न्यायालय के अपने कर्मचारियों तथा अधिकारियों की नियुक्ति करता है तथा उनकी सेवा की शर्तें आदि निश्चित करता है। ऐसा करते समय वह राज्य लोक सेवा आयोग से परामर्श करता है। यह नियम राज्यपाल की स्वीकृति मिलने पर ही लागू होते हैं। यदि उच्च न्यायालय केन्द्रीय क्षेत्र में स्थित है तो इन बातों के लिए स्वीकृति राष्ट्रपति से लेनी होती है।
4. मुकदमों को तब्दील करने का अधिकार (Right to Transfer Cases)-यदि उच्च न्यायालय को यह पता चले कि किसी अधीनस्थ न्यायालय में कोई ऐसी मुकदमा चल रहा है जिस का संबंध कानून की व्याख्या (Interpretation of Law) से है तो वह ऐसे मुकदमे को अपने पास मँगवा सकता है। वह या तो उसी मुकदमे का स्वयं निर्माण करता है या उससे संबंधित कानूनी प्रश्न की व्याख्या करके उसे अधीनस्थ न्यायालय द्वारा निर्णय करने लिए वापस भेज देता है। उच्च न्यायालय किसी एक अधीनस्थ न्यायालय में चल रहे मुकदमे को दूसरे अधीनस्थ न्यायालय में तब्दील करने का अधिकार भी रखता है।
5. अभिलेख न्यायालय (Court of Record) - उच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है। इसके सभी निर्णय और अन्तिम आदेश प्रकाशित किए जाते हैं। ये भविष्य के लिए न्याय- दृष्टान्त बन जाते हैं। वकील लोग निचले न्यायालय में बहस के समय इनका हवाला देते हैं। उच्च न्यायालय को अपना अपमान करने वाले व्यक्तियों को दण्ड देने का अधिकार है ।
6. मौलिक अधिकारों का संरक्षक (Guardian of Fundamental Rights ) - उच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा करता है। यदि कोई व्यक्ति या संस्था संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करे तो उनके विरुद्ध उच्च न्यायालय में कार्यवाही की जा सकती है। उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए कई प्रकार के लेख जारी कर सकता है। मौलिक अधिकारों से संबंधित मुकदमे सीधे सर्वोच्च न्यायालय में भी ले जाए जा सकते हैं।
7. संविधान की व्याख्या करने का अधिकार (Right to Interpret the Constitution)-उच्च न्यायलय कुछ मामलों में संविधान की व्याख्या करने का अधिकार भी रखता है। यह संवैधानिक मुकदमों को सुनता है तथा उन पर अपना निर्णय देता है। परन्तु इसके निर्णय अन्तिम नहीं होते। उनके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
यदि राज्य विधानमण्डल कोई ऐसा कानून पास करे या राज्य कार्यपालिका ऐसा आदेश जारी करे जो संविधान का उल्लंघन करता हो तो चुनौती दिए जाने पर, उच्च न्यायालय उन्हें अवैध करार दे सकता है।
42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा इस बात की व्यवस्था की गई है किा उच्च न्यायालय ऐसे मुकदमों पर विचार नहीं करेगा जिसमें किसी केन्द्रीय कानून की संवैधानिक वैधता का प्रश्न निहित हो । ऐसे मुकदमे केवल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही सुने और निपटाए जाएंगे।
8. मुकदमों को प्रमाणित करने का अधिकार (Right to Certify Cases) - उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में तभी अपील की जा सकती है जब उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करे कि अपील करने के लिए संविधान में निश्चित की गई शर्ते पूरी होती हैं, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह उच्च न्यायालय के प्रमाणित न करने पर भी अपील करने की विशेष अनुमति प्रदान कर सकता है। क्षेत्राधिकार (Extension of Jurisdiction)- संविधान की धारा 230 के अनुसार संसद कानून द्वारा किसी राज्य के उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में न्यायिक कार्यों के लिए किसी केन्द्र शासित क्षेत्र (Union Territory) को शामिल कर सकता है या उसके क्षेत्राधिकार से बाहर निकाल सकता है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की स्वतंत्रता
(Provisions for the Independence of High Court Judges)
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्वतंत्रता के लिए संविधान के द्वारा वैसे ही उपबन्धों की व्यवस्था की गई है जैसे उपबन्धों की व्यवस्था सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए हैं। संक्षेप में, ये उपबन्ध निम्नलिखित हैंः
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है और यह नियुक्ति न्यायिक योग्यता वाले व्यक्तियों के परामर्श के आधार पर की जाती है।
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8ebe1791866589f2da14014cd14e0f4e42c77695 | web | जहाँपनाह नंबर दो से पौने दो बन गए ,.... कांग्रेस में फीलगुड मचा है ,...मानो लूट के फरिश्तों ने लुटेरों का छप्पर फाड़ दिया हो ,...गुलाम मंत्री प्रधानमंत्री दलाल कार्यकर्ता सब बधाई के बोझ से दंडवत हैं ,...लेकिन डाकू मम्मी के बेशकीमती आंसू .... . उफ़ ! .... . इससे पहले आतंकवादी की मौत पर निकले थे ,....... बच्चे के प्रमोशन पर भी खुश नहीं हुई ,.... बेचारी गधे को झाड़पोंछ कर घोड़ा बनाना चाहती थी ,... लूट के करोड़ों डालर खर्च करके खच्चर भी नहीं बना ,....... खैर ! .... . दुखदर्द भूलकर ढोल तमाशे फुलझड़ी अनार मिठाई शैम्पेन वाली खुशी पर आता हूँ ,......मूरख लोग जहाँपनाह को तोहफा देना चाहते हैं ,...अब वो ठहरे चमाचम आलीशान इंडिया के एकछत्र जहाँपनाह ,....... . हम मिट्टी में सने तुच्छ भिखारी मूरख .... उनको कुछ देना गंभीर हिमाकत है ,. . लेकिन मूरख कहाँ मानते तो सबको ह्रदय से प्रणाम करते हुए पेश है मूरख तोहफा .
कांग्रेसी जहाँपनाह उर्फ रौल विन्ची उर्फ राहुल गांधी को अज्ञानी मूरखों की राम राम ! ....... लेकिन तुमको राम से का लेना देना ,.... उनका नाम मिटाना तुम्हारी जाब डायरी में है ,.........लेकिन भैय्या जी यह क्या ,...जिसकी जेब में पार्टी हो .... लुटेरा सरदार चौखट पर नाक रगड़े ...डाकू मंतरी संतरी इशारे का इन्तजार करें ...ऊ केवल उपाध्यक्ष बनकर भावुक हो गया ,.... हंसी के साथ हमारे आंसू भी निकल गए ,.... . महालूट राक्षसी अत्याचार व्यभिचार पर तुम्हारा शातिर मौन बहुत बता गया ,. . तुम जालिम लुटेरे से कम ज्यादा कुछ भी नही हो ! ....... खैर ,. . तुमने जयपुर में मुह खोल ही दिया . . वाह . . क्या सीन था ! ....... . भाषण लिखने वाले की पगार जरा बढ़वा देना ! .... झूठ फरेब साजिश का शातिराना संगम देखकर मूरखों का कलेजा बैठ गया ,...डाकू मम्मी की शराफत देख सुनकर शब्द नहीं मिले . हाय हा हा हाय ....... पालतू गुलामों से ओहदा लेकर जख्मी हिन्दुस्तान पर नमक मिर्च लगाना तुम जैसे भारतद्रोहियों को ही शोभा देता है .
और मम्मी का बोली . . सत्ता जहर है ,.... सच बात है ,...सत्ता खातिर तुम्हारे बाप दादाओं ने भारत को जहर ही जहर दिया है ,.... नेहरू चच्चा ने भगत आजाद सुभाष मुखर्जी जैसे भारतपुत्रों को कैसे मिटाया ,.... उस महान भारतद्रोही ने केवल सत्ता के लिए भारत के टुकड़े करवा दिए ,...भयानक कत्लोगारत का गुनाह तुम्हारे सिर है ...तुम कभी कभी खुद को कश्मीरी पंडित भी कहते हो ! ... कांग्रेसी कुकर्मों से वो बेचारे नर्क भोगते हैं ,. . स्वर्ग से मारकाट कर भगाए गए मासूम इंसानों पर तुम जैसे शातिर अमरीकी गुलाम का दिल नहीं धड़केगा ,....... . तुमने अपनी दादी की मौत का लड्डू भी उछाला है ,...... भैय्या जी उस भ्रष्ट नारी गांधी के कारनामे कैसे भूल गए ,...जिसने अदालत संविधान लोकतंत्र सबकी मैय्यत निकाल दी ,. . आतंकी माता का यही होना था ,. . किसी चेले चमचे से पूछ लेना कि जहरीली गांधी सत्ता ने का का किया ,.... शास्त्री जी को किसने मरवाया ? ...शिमला समझौता किसने किया ? . . आपातकाल किसने लगाया ? ......आजादी का गला किसने घोंटा ? . . पंजाब में जहर किसने फैलाया ? ...... साधु संतों को बार बार किसने छला ? ......किसी की हत्या अमानुषी काम है ,...तुम्हारे बाप ने हजारों निर्मम हत्याओं को जायज बताया था ,.... निर्दोषों के छुट्टा हत्यारे तुम्हारे गले में माला डालते हैं ,......तुम्हे अपने खून का दर्द ही दिखता है ,...हिन्दुस्तानी जवानों की शाहदत भी तुम्हारे लिए मजाक है ,...नेहरू से सोनियागुलाम मनमोहन तक ने निर्ममता से भारतीय सिर कटाए ,......तुमने बार बार हमारे रक्त से अपनी यशगाथा लिखने का भद्दा मजाक किया है ,....... पैंसठ सालों के साजिशी लूटराज में कितने हिन्दुस्तानी कीड़े मकोडों की तरह मर गए ,. . करोड़ों भारतपुत्रों की जिंदगी भारी हो गयी ,.... लेकिन तुम कहते हो कि पप्पा कम्प्यूटर लाये ,...मोबाइल लाये ,.... बैंक सरकारी बनाए ! ......हम कब न करते हैं ,...पूरी दुनिया में कम्प्यूटर मोबाईल बैंक नहीं हैं ,...लेकिन हर सड़क पर वसूली नहीं है ,......वैसे गांधियों के आविष्कार को मूरखों का सलाम है ,....... लेकिन यह भी बता देते कि सोने की चिड़िया देश काहे गरीबी भुखमरी की जलालत झेलता है ,. मंहगाई किसकी देन है ,. . विदेशी दलाल कौन हैं ...आतंकवाद नक्सलवाद कौन लाया ,...रिश्वतखोरी मिलावटखोरी कौन लाया ,...गाँव किसान किसने उजाड़े ...एक ईस्ट इंडिया कंपनी की जगह पांच हजार विदेशी कंपनी कौन लाया ! .... लाखों करोड़ों महान शहीदों का अपमान कौन करता है ,.... . महान राष्ट्र ,महान धर्म, महान संस्कृति ,महान संस्कृत का दुश्मन कौन है ,.... . चलो हम बताते हैं ,...तुम और तुम्हारे बाप दादे हैं .... कांग्रेस का काम देश लूटकर गुलाम बनाना है ,.......... तुम तो वालमार्ट के दलाल भी हो ,... फिरी में राक्षसी पूँजीवाद की हिमायत नहीं होती ,......सीधे हिस्सेदारी हो तो बता देना ,.... तुम्हारे लिए इस देश के किसान मजदूर व्यापारी उद्दमी कुर्बान हो जायेंगे ,.........और हाँ ! . . कांग्रेसी गुणसूत्र पूरी दुनिया जानती है ,...तुम अपना शोध करा लेते तो भी अच्छा होगा .... .
वैसे तुम्हारी एक बात जमी .... . आशा विश्वास संकल्प जैसे जुमले और परिवर्तन की बात सुनकर मजा आया ,... हंसी का दौरा भी पड़ा ,.... . टोपी घुमा बदलकर लूट के संकल्प को भी सलाम है ,.... भ्रष्टाचार से लड़ते लड़ते आधा देश तो खा गए ,.... . बाकी बचा भी पचा लोगे तो क्या बिगडेगा ,.... . जबतक सत्ता तुम्हारे हाथ है तब तक तुम्हारी तिजोरियां महफूज हैं ,. . तुम्हारा कुछ नहीं बिगडेगा ,...जांच कानून अदालत संविधान सब तुम्हारा गुलाम है . .
भैय्या ,. तुमको आम आवाज की बडी परवाह है ,.... भैय्या जरा मैय्या से पूछना ... हमारे हक की आवाज उठाने वाले स्वामीजी को मारने का पिलान किस किसका था ,. तुम भी तो रहे होगे .... . वैसे तुम्हारी शातिर मासूमियत पर हम कुर्बान है ,...लुटेरे बापों की डाकू औलादें व्यवस्था परिवर्तन लाएंगी ...हा हा हा हा हा हा ,....... आम आदमी तुम्हारे इशारे पर फिर डुग्गी बजायेगा ,.... अपने गुनाहगारों को हम मालिक बनायेंगे ... तुम जैसे राक्षसी रजवाड़े हमारे खूनमांस की दावत उडायेंगे ...कांग्रेसी नाली में मूरख देश गिरा तो विषैले दलदल को गंगा से गहरा बता दिया ! ......वाह भई ,. . तुम्हारी शैतानियत पर शैतान भी साल्सा नाचेगा .
अब हमारी बात ध्यान से सुनो ! ....... वैसे तो तुम्हारे गुणसूत्र पर कौनो शक सुबहा नही है ,.... अगर एकै है तो सही सही बताओ ,.... तुम्हारे नामी बेनामी खातों में हमारी कितनी संपदा जमा है ,...चलो तुमको इतनी गिनती कहाँ आती होगी ,. . अच्छा जून ग्यारह में मैय्या दीदी जीजा निजी लेखाकारों के साथ कहाँ गए थे ,. कितना माल स्विट्जरलैंड में इधर उधर किया ,.... . तुम्हारी अमरीका से का सेटिंग है ,...मैय्या ने इलाज के नाम पर क्या गुल खिलाया ,. . बेकार रहने वाले गांधी कैसे दुनिया की अमीरी चोटी छू गए .... तुम्हारा असली मालिक सामंतवादी वेटिकन चर्च का चाहता है ,.... . कितने आतंकी तुम्हारे बाप दादा हैं ,...काहे तुम्हारे चेले चमचे उनको पिता समान इज्ज़त देते हैं ,....... भारतपुत्रों से निर्ममता करने वाली कांग्रेस कितने पाकिस्तान बनाना चाहती है ,... हिंदुत्व को बदनाम करके तुम क्या करना चाहते हो ,.... देशद्रोही लुटेरी कांग्रेस किस मुह से संघ जैसे महानतम राष्ट्रभक्त संगठन पर ऊँगली उठाने का साहस करती है ,...आतंक के साथी क्यों बेक़सूर साध्वी पर शैतानी जुल्मोसितम करवाते हैं .... . तुम्हारे दो कौड़ी के गुलाम मंत्री पवित्र भगवा पर कीचड क्यों उछालते हैं ,...तुम्हारी क्या क्या साजिशें हैं ,. .
चलो सीधा सीधा कहते हैं ,. . अगर एक बाप की औलाद हो यही बतादो ... गुलाममोहन कुत्ते बिल्ली के नाम से विदेशीपूंजी कहकर निवेश लाये हैं . . ऊ किस किसका है ,...कितनी दाऊद इब्राहीम की .... हाफिज सईद की ,.... कितनी तुम्हारे खानदान की है ... और कितने पक्षी विपक्षी गुलाम भेडिये तुम्हारे साथ हैं ,. . कितने पालतू आदमखोर बुद्धिजीवी अधिकारी दलाल हैं ,. . तुम्हारा गिरोह कितना बड़ा है जो पूरे भारत का धन धर्म सुख शान्ति सुरक्षा खा गया है .
वैसे तो हम सब जानते हैं ,...सच बोलना तुम्हारी औकात से बाहर है ,. . तुम शराफत के लबादे तले भयानक राक्षस हो ! .... . हम अपने शब्द तुम पर नहीं खर्चना चाहते थे ,.... . लेकिन का करें भैय्या,. आदत जल्दी छूटती नहीं .... तो फिर सुन लो ...तुम हिंदी हिन्दू हिदुस्तान के दुश्मन हो ! ...तुम मुसलमान के अस्तीनी सांप भी हो .... . तुम हमारे बीच झगडा करवाकर हमारा रक्तपान चाहते हो .... तुम सत्ता और हमारे माल के चाहवान भारतद्रोही राक्षस हो ! ....... . हिन्दुस्तान तुम्हारी जागीर नहीं है ,...जो बलात्कार करके बचते रहोगे ! ......तुमने हमारी भावनाओं से खेलकर हमको मूरख बनाया है ,...पिछवाड़े गांधी लटकाकर हमें लूटा है .... कभी बैल कभी गाय बछड़ा चुनाव निशान लेकर अनपढ़ किसानों को मूरख बनाया ,. . कभी अपने खूनी कारनामों पर हुई मौतों को भुनाया ,. . तुमने सत्ता के लिए अपनों का खून भी बहाया है ,.... अब खूनी कांग्रेसी पंजे से हमारा गला घोंटा .... तुम इस देश के गुनहगार गद्दार हो ,......हम मूरख सही लेकिन हमारे बीज बहुतै बलशाली हैं ,...हमारी अनपढ़ माताएं ध्रुव प्रहलाद की कथाएं ऐसे नहीं सुनाती हैं ,.... . पालतू जयचंदों के बल पर गजनवी का राक्षस राज नहीं चलेगा ,....... . तुम्हारे साथ धन दौलत सत्ता पुलिस अदालत जयचंद और विदेशी हैं तो हमारे पास हम हैं ,. . हमारी दृढ नैतिक सभ्यता संस्कार हैं ,. . हमारी भारतमाता है,. . हमारी मातशक्ति है ,...हमारा प्रेममयी स्वर्णिम अतीत है ,...हमारे अनेकों महापुरुषों की अथाह प्रेरणा है ,.... हमारा अटूट विश्वास है ,...हमारा संकल्प है .... ,...सर्वत्र हमारे भगवान हैं ! ....
फिरी की नेक सलाह है . . भाग ही लो ... मजे में रहोगे ,...वर्ना देश लुटेरों को लालकिले पर उल्टा लटकाना चाहता है ,....... गांधियों की मगरमच्छी शराफत से इंसानियत कब से शर्मशार है ... फिर रावण की जगह तुम्हारे पुतला दहन का फैशन जरूर आएगा .... . क्षमा दया जैसे महान शब्द बहुत छोटे हो जायेंगे .
राम ! ......वन्देमातरम !
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570b364ac40656382112982fdc972068c6a06a5a1c349141bc3660ee3adcb643 | web | (पिछले 24 घंटों के दौरान कोविड-19 पर जारी की गईं प्रेस विज्ञप्तियां, पीआईबी के क्षेत्रीय कार्यालय से मिली जानकारी, पीआईबी द्वारा जांचे गए तथ्य)
भारत में कोविड के कुल एक्टिव मामलों की संख्या लगातार कम हो रही है। देश में इस समय कोविड के कुल एक्टिव मामले 3,78,909 हैं। कुल पॉजिटिव मामलों में सक्रिय मामलों की हिस्सेदारी 3.89 प्रतिशत पर सीमित हो गई है। कोविड के रोजाना आ रहे नए मामलों की तुलना में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है ऐसे में कुल कोरोना संक्रमितों की तुलना में सक्रिय मामलों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। पिछले 24 घंटों के दौरान सक्रिय मामलों में 4,957 की कमी आई है। देश में रोज सामने आ रहे कोविड के नए मामलों की तुलना में ठीक होने वालों की संख्या अधिक है। पिछले 24 घंटों के दौरान जहां 32,080 लोग संक्रमित हुए वहीं इस अवधि में 36,635 लोग स्वस्थ हुए। देश में कोरोना जांच की संख्या 15 करोड़ के करीब (14,98,36,767) पहुंच चुकी है। रोजाना दस लाख से अधिक जांच का लक्ष्य प्राप्त करने के प्रयास के तहत पिछले चौबीस घंटों के दौरान देश में कुल 10,22,712 नमूनों की जांच की गई। देश में रोजाना कारोना जांच की क्षमता 15 लाख के करीब पहुंच चुकी है। देश में जांच की आधारभूत सुविधाओं में काफी इजाफा हो चुका है। देश भर में इस समय कोरोना जांच के लिए 2,222 प्रयोगशालाएं मौजूद हैं। रोजाना दस लाख से अधिक नमूनों की जांच के कारण पॉजिटिव मामलों में लगातार कमी आ रही है। इस समय पॉजिटिव मामलों की कुल दर 6.50% पर ठहरी हुई है। रोजाना सामने आ रहे पॉजिटिव मामलों की दर महज 3.14% है। बड़े पैमाने पर जांच होने से कोरोना के पॉजिटिव मामले लगातार घट रहे हैं। 19 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में साप्ताहिक पॉजिटिव मामलों की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 2 करोड़ से अधिक लोगों की कोरोना जांच की जा चुकी है। बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, और आंध्रप्रदेश उन राज्यों में से हैं जहां एक करोड़ से अधिक कोरोना जांच की जा चुकी है। इन राज्यों में संक्रमण से ठीक होने वालों की दर भी आज 94.66 प्रतिशत बढ़कर 92 लाख (92,15,581) पर पहुंच गई। कोरोना के कुल 76.37 प्रतिशत नए मामले दस राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से हैं। पिछले 24 घंटो के दौरान कोरोना से एक दिन में सबसे ज्यादा 6,365 लोग ठीक हुए। इसके साथ ही केरल में यह संख्या 4,735 जबकि दिल्ली में 3,307 रही। 75.11 प्रतिशत नए मामले दस राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से रहे। केरल में कोविड के रोजाना नए मामलों की संख्या सबसे ज्यादा 5,032 रही। इसके बाद 4,026 मामलों के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर रहा। पिछले 24 घंटों के दौरान देश में कोरोना से 402 लोगों की मौत हुई है। इसमें से 76.37 प्रतिशत नए मामले दस राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से रहे हैं।
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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी 10 दिसंबर, 2020 को नई दिल्ली के संसद मार्ग पर नई संसद भवन की आधारशिला रखेंगे। नया भवन 'आत्मनिर्भर भारत' का एक आंतरिक हिस्सा है और आजादी के बाद पहली बार लोगों की संसद बनाने का एक शानदार अवसर होगा, जो स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर 'न्यू इंडिया' की आकांक्षाओं को पूरा करेगा। संसद की नई इमारत आधुनिक, अत्याधुनिक और ऊर्जा कुशल होगी, जिसका मौजूदा संसद से सटे त्रिकोणीय आकार की इमारत के रूप में निर्णाण किया जाएगा जो तमाम सुविधाओं से लैस होगी। लोकसभा मौजूदा आकार का तीन गुना बड़ी होगी और राज्यसभा पर्याप्त रूप से बड़ी होगी। नए भवन के अंदरूनी हिस्से में भारतीय संस्कृति और हमारे क्षेत्रीय कला, शिल्प, वस्त्र और वास्तुकला की विविधता का समृद्ध मिश्रण नजर आएंगे।
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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में भारत सरकार और सूरीनाम सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालयों के बीच स्वास्थ्य और औषधि के क्षेत्र में समझौता ज्ञापन को मंजूरी दी गई। इस द्विपक्षीय समझौता ज्ञापन से भारत और सूरीनाम के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालयों के बीच स्वास्थ्य क्षेत्र में संयुक्त पहल और प्रौद्योगिकी विकास के जरिए सहयोग को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे भारत और सूरीनाम के बीच द्विपक्षीय संबंध सुदृढ़ होंगे। इससे जन स्वास्थ्य प्रणाली में विशेषज्ञता की भागीदारी को बढ़ाकर और विभिन्न प्रासंगिक क्षेत्रों में परस्पर अनुसंधान गतिविधियों का विकास कर आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा।
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वित्तीय संसाधनों को जुटाने के लिए कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण पैदा हुई चुनौतियों के मद्देनजर भारत सरकार ने विभिन्न उपायों के जरिये राज्यों को मजबूत किया है। इनमें वर्ष 2020-21 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 2 प्रतिशत की अतिरिक्त उधारी की अनुमति भी शामिल है। इसने राज्यों को कोविड वैश्विक महामारी से लड़ने और लोगों तक सेवाओं की डिलिवरी के मानकों को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने में समर्थ किया है। हालांकि, दीर्घकालिक ऋण स्थिरता सुनिश्चित करने और भविष्य में किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के लिए अतिरिक्त उधारी के एक हिस्से को नागरिकों तक सेवाओं की डिलिवरी के लिए इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार करने वाले राज्यों से संबद्ध किया गया था। सुधारों के लिए जिन क्षेत्रों की पहचान की गई थी उनमें से एक सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी है। जीएसडीपी के 2 प्रतिशत की अतिरिक्त उधारी सीमा में से 0.25 प्रतिशत को 'वन नेशन वन राशन कार्ड सिस्टम' के कार्यान्वयन से जोड़ा गया है। सुधारों के लिए जिन क्षेत्रों की पहचान की गई थी उनमें से एक सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी है। जीएसडीपी के 2 प्रतिशत की अतिरिक्त उधारी सीमा में से 0.25 प्रतिशत को 'वन नेशन वन राशन कार्ड सिस्टम' के कार्यान्वयन से जोड़ा गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं, विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों एवं उनके परिवारों, के लाभार्थियों को देश भर में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (एफपीएस) से राशन उपलब्ध हो सके। इस लक्षित सुधार के अन्य उद्देश्यों में लाभार्थियों को बेहतर तरीके से लक्षित करना, फर्जी/ डुप्लिकेट/ अयोग्य राशन कार्डों को समाप्त करना और इस प्रकार जनकल्याण को बढ़ावा देना एवं खामियों को कम करना शामिल हैं।
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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज 3.0 के तहत कोविड रिकवरी फेज में औपचारिक क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा देने और नए रोजगार अवसरों को प्रोत्साहित किए जाने को मंजूरी दी है। मंत्रिमंडल ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए 1,584 करोड़ रुपये की धनराशि और पूरी योजना अवधि 2020-2023 के लिए 22,810 करोड़ रुपये के व्यय को अनुमति दी है।
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केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कल जनसंख्या और विकास (पीपीडी) में भागीदारों द्वारा आयोजित अंतर-मंत्रालयी सम्मेलन को डिजिटली संबोधित किया।
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डॉ. हर्ष वर्धन ने भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव-2020 के उद्घाटन कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित किया केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि इस साल कोविड-19 के कारण भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव-2020 का आयोजन ऑनलाइन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के सभी हितधारकों के बीच वैज्ञानिक स्वभाव, पोषण और जश्न की अदम्य भावना का द्योतक है। उन्होंने रक्षा विकास और विकास संगठन (डीआरडीओ) के डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च (डीआईएचएआर), लद्दाख के अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव-2020 के उद्धाटन कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के तौर पर वर्चुअली संबोधित किया था।
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आयुष मंत्रालय और एम्स ने साथ मिलकर एम्स में इन्टेग्रेटिव (समग्र) मेडिसिन विभाग स्थापित करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा तथा एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया द्वारा सेंटर फॉर इन्टेग्रेटिव मेडिसिन एंड रिसर्च (सीआईएमआर) के संयुक्त दौरा और समीक्षा बैठक में लिया गया। सीआईएमआर आयुष मंत्रालय की उत्कृष्ट केन्द्र योजना से समर्थन प्राप्त करता है।
इस मौके पर सीआईएमआर के प्रमुख डॉ. गौतम शर्मा तथा आयुष मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। आईसीएमआर द्वारा योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में जारी आधुनिक शोध गतिविधियों की समीक्षा की गई और शोध परिणाम आकर्षक लगे। आयुष मंत्रालय तथा एम्स ने सीआईएमआर में शोध सहयोग की अवधि बढ़ाने तथा सहयोग गतिविधियों का दायरा बढ़ाने का निर्णय लिया। सीआईएमआर के शोध कार्य तथा अन्य गतिविधियों और उपलब्धियों पर विचार करते हुए यह महसूस किया गया कि सीआईएमआर के विकास लिए अगले कदम के रूप में समर्पित ओपीडी तथा आईपीडी विस्तर बनाए जाने चाहिए। आयुष सचिव और एम्स के निदेशक इस बात पर सहमत हुए कि एम्स स्थित सीआईएमआर में रोगियों की बढ़ती दिलचस्पी तथा केन्द्र के शोध कार्य को देखते हुए अल्प अवधि में अकेला इन्टेग्रेटिव मेडिकल विभाग विकसित करना संभव है। यह विभाग समर्पित फैकल्टी और स्टाफ के साथ विकसित किया जा सकता है ताकि इसे एम्स में एक स्थायी विभाग बनाया जा सके। आयुष सचिव ने आश्वासन दिया कि समर्पित विभाग विकसित होने तक सीआईएमआर को आयुष मंत्रालय का समर्थन जारी रहेगा।
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दुनिया के विभिन्न देशों में योग को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त प्रयास को और प्रभावी बनाने के क्रम में आज नई दिल्ली में आयुष मंत्रालय और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के बीच एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक आयोजित की गई। यह बैठक आईसीसीआर के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे और आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा के बीच हुई। प्रामाणिक योग को विश्व भर में प्रोत्साहित करने के क्रम में योग प्रमाणन बोर्ड (वाईसीबी) के लिए प्रमाणन ढांचे के इस्तेमाल का भी फैसला किया गया। योग प्रमाणन बोर्ड (वाईसीबी) और मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान (एमडीएनआईवाई) दो ऐसे संस्थान हैं जिन्होंने विश्व स्तर पर योग को प्रचारित और प्रसारित करने के उद्देश्य से आईसीसीआर के साथ अलग-अलग साझेदारी की है। वाईसीबी ने आईसीसीआर के साथ साझेदारी कर उसे वाईसीबी की व्यक्तिगत प्रमाणन संस्था के रूप में मान्यता दी है। आईसीसीआर, भारत के सांस्कृतिक कार्यक्रमों और नीतियों के क्रियान्वयन में सक्रियता से साझेदारी करता है, अतः वाईसीबी का यह स्वाभाविक साझेदार बन कर उभरा।
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श्रम और रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), श्री संतोष कुमार गंगवार की अध्यक्षता में कल कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) की आयोजित 183वीं बैठक के दौरान कामगारों के लिए चिकित्सा सेवाओं और अन्य लाभों के वितरण में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। ईएसआई योजना के तहत बीमित श्रमिकों और उनके आश्रितों को चिकित्सा सेवाएं मुख्य रूप से राज्य सरकारों द्वारा संचालित अस्पतालों और औषधालयों के माध्यम से प्रदान की जाती हैं। वर्तमान में, देश भर में लगभग 1520 ईएसआई डिस्पेंसरी और 159 अस्पताल हैं, जिनमें से 45 डिस्पेंसरी और 49 अस्पताल सीधे ईएसआईसी द्वारा संचालित हैं जबकि शेष डिस्पेंसरी और अस्पताल संबंधित राज्य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे हैं। खराब उपकरणों और डॉक्टरों की कमी के कारण राज्य सरकारों द्वारा संचालित ईएसआई अस्पतालों के बारे में कई प्रतिरूप प्राप्त हुए हैं।
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असमः असम में 19,955 टेस्ट किए जिनमें 047 फीसदी पॉजिटिविटी रेट के साथ 94 मामले मिले, जबकि 102 मरीजों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। राज्य में अब तक कुल 2,14,019 मामले मिले हैं जिनमें 97.86 प्रतिशत मरीज ठीक हो चुके हैं। फिलहाल राज्य में 1.67 प्रतिशत एक्टिव केस हैं।
सिक्किमः सिक्किम में बीते 24 घंटे में 13 नए मामले मिले हैं। इसके साथ ही राज्य में संक्रमितों का आंकड़ा 5,215 हो चुका है।
केरलः राज्य में कल होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव के दूसरे चरण को लेकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि कल आयोजित होने वाले पहले चरण के मतदान में कोविड प्रोटोकॉल को बनाए रखने में खामियों को ठीक किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मतदाताओं की तरफ से होने वाली गलतियों की वजह से राज्य में महामारी का संकट बढ़ सकता है और इससे कोरोना के मामलों के बढ़ने की आशंका बढ़ेगी। हालांकि राज्य चुनाव आयोग ने सोशल डिस्टेंसिंग को अनिवार्य कर दिया था और जहां गड़बड़ी देखने को मिली वहां भीड़ को रोक दिया क्योंकि कई स्थानों पर इनका खुलेआम उल्लंघन किया गया। कल 72.67 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था। इस बीच, महीने में ऐसा तीसरी बार देखने को मिल जब एक दिन में कोविड से होने वाली मौतों का आंकड़ा मंगलवार को 30 के स्तर को पार कर गया। कुल 5,032 ताजा मामले सामने आए जबकि 4735 मरीज इलाज के बाद ठीक हुए जिन्हें अस्पताल से छुट्टी दे गई। नवीनतम टेस्ट पॉजिटिवी रेट 8.31 प्रतिशत है।
तमिलनाडुः तमिलनाडु में मंगलवार को कोविड-19 के 1,236 नए मामले मिले, इसके साथ ही राज्य में संक्रमितों का आंकड़ा बढ़कर 7,92,788 हो गया है जबकि 13 मरीजों की मौत हो गई। इसके साथ राज्य में कोरोना से मरने वालों की संख्या बढ़कर 11,822 हो चुकी है। स्वास्थ्य विभाग के बुलेटिन में कहा गया है किराज्य में नए मामले जितने मिल रहे हैं उससे ज्यादा मरीज ठीक हो रहे हैं। स्वास्थ्य केंद्रों से 1,330 मरीजों को ठीक होने के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया। राज्य में अब तक 7,70,378 कोरोना संक्रमित मरीज ठीक हो चुके हैं।
कर्नाटकः कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक महामारी रोग अधिनियम 2020 में संशोधन किया है जिसमें अधिनियम के उल्लंघन पर दंड लगाने का प्रावधान किया गया है। संशोधित कानून के अनुसार स्थानीय अधिकारी गैर एसी पार्टी हॉल, डिपार्टमेंटल स्टोर के लिए 5000 और एसी हॉल पार्टी और संगठनों के लिए 10000 का जुर्माना लगा सकते हैं। इसके अलावा राज्य सरकार ने कोरोना टेस्ट के दाम घटा दिए हैं। निजी अस्पताल में कोरोना टेस्ट के लिए 800 रुपये तय कर दिया गया है।
आंध्र प्रदेशः 583 लोग बीमारी के कारण अभी तक अस्पतालों में भर्ती गए हैं जिनमें 470 को डिस्चार्ज कर दिया गया है जबकि 20 मरीजों को बेहतर इलाज के लिए विजयवाड़ा और गुंटुर के अस्पतालों में शिफ्ट किया गया है। अभी तक एक मौत की सूचना मिली है। स्वास्थ्य अधिकारियों को भोजन या पानी के दूषित होने का संदेह है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली की एक टीम की प्रारंभिक रिपोर्ट में कुछ रक्त नमूनों में लेड और निकल के संकेत मिले हैं।
तेलंगानाः कोविड-19 के वैक्सीन के लिए सरगर्मी बढ़ती जा रही है। सरकार ने बायोटेक कंपनियों के लिए विदेशियों के एक टूर का आयोजन किया, जिसने भारत को वायरस से बचाव का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। विदेश मंत्रालय 9 दिसंबर को 60 मिशन के प्रमुखों को भारत बायोटेक और बोयोलॉजिकल ई हैदाराबाद लेकर आया। इस बीच राज्य में बीते 24 घंटे में 721 नए मामले में मिले हैं जबकि 753 मरीज ठीक हुए हैं और तीन मरीजों ने दम तोड़ दिया। राज्य में संक्रमितों का आंकड़ा 2,75,261 हो गया है जबकि अभी 7,661 एक्टिव केस हैं। राज्य में अब तक कोरोना से 1480 मौत हो चुकी है वहीं 2,66,120 मरीज ठीक हो चुके हैं। राज्य में ठीक होने वाले मरीजों की दर 96.67 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 94.6 फीसदी है।
महाराष्ट्रः औरंगाबाद में विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कल से आगंतुकों के लिए फिर से खोल दिए जाएंगे। जिला कलेक्टर सुनील चव्हाण ने संबंधित एजेंसियों को निर्देश दिया है कि वे इस संबंध में निवारक उपाय करें, जिसमें संबंधित पर्यटन स्थलों पर गाइड, दुकानदार, स्थानीय कारीगर, होटल व्यवसायी और परिवहन पेशेवरों के लिए कोविड टेस्ट करने की सुविधा शामिल है। बहरहाल, मुंबई में संक्रमित मरीजों की संख्या हजार से नीचे आ रही है। मुंबई में बीते 24 घंटे में 585 नए केस मिले हैं जबकि 565 मरीज ठीक हुए हैं और 7 की मौत हो गई। पुणे सर्किल में 749 नए केस मिले हैं और 20 की मौत हो गई।
गुजरातः अहमदाबाद में 294 नए केस मिले जबकि सूरत में 214 नए मामले सामने आए हैं। राज्य में रिकवरी रेट सुधरकर 91.70 फीसदी हो गया है।
राजस्थानः राज्य में ठीक होने वाले मरीजों की दर बढ़कर 91.78 प्रतिशत हो गई है। मंगलवार को केवल चार जिलों में 100 से अधिक मामले सामने आए हैं। जयपुर में कुल 465 नए संक्रमण हुए हैं, जोधपुर में 187, अजमेर में 140 और उदयपुर में 134 केस मिले हैं। जयपुर में सक्रिय मामलों की संख्या घटकर 9,000 रह गई है। 9 जिलों में नए रोगियों की संख्या 10 से कम रही है।
मध्य प्रदेशः बुधवार को अधिकतम मामले इंदौर जिले (509 नए मामले), उसके बाद भोपाल जिले (317 नए मामले) और फिर ग्वालियर (74 मामले) पाए गए।
छत्तीसगढ़ः बुधवार को अधिकतम मामले रायपुर जिले (179 नए मामले), उसके बाद दुर्ग जिले (135 नए मामले) और फिर जांजगीर-चांपा जिले (109 नए मामले) पाए गए।
गोवाः राज्य में रिकवरी दर 95.89 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
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c77b4e445ffa48725e80bad2157967622c1389276b467b6335d8c5a62533ae01 | pdf | नामक पर्वत पर तपस्या प्रारम्भ कर दी । यह धार वर्तमान रेणुका झील के ऊपर स्थित है । जमदग्नि ने भगवान विष्णु की तपस्या शुरू की थी क्योंकि उन्हें पता था कि सहस्त्रबाहु को केवल भगवान विष्णु की सहायता से ही मारा जा सकता है। विष्णु भगवान जब उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए तो जमदग्नि से वर मांगने के लिए कहा । इस पर उन्होंने भगवान विष्णु से सारी घटना कही और उनसे अपने पिता द्वारा लिए गए सहस्त्रबाहु को समाप्त करने के व्रत के बारे में कहा । बताया जाता है कि कुछ दिनों बाद समय पूर्ण होने पर स्वयं भगवान विष्णु ने ऋषि जमदग्नि के घर पुत्र रूप में जन्म लिया जो भगवान श्री परशुराम कहलाए । यह जन्म वैशाख शुक्लपक्ष को हुआ । इस दिन श्री रेणुका में मेला लगता चला आया है और माना जाता है कि भगवान परशुराम इस दिन यहां अपनी मां से मिलने आया करते हैं । इस मेले को राज्य स्तर पर आयोजित किया जाता है। हजारों लोग इस मेले में आते हैं और पवित्र झील में स्नान करते हैं !
ऋषि जमदग्नि सदैव गंगा का पवित्र जल ही पीते थे और रेणुका जी कच्चे घड़े में प्रतिदिन जल लाया करती थीं। ऋषि सदैव भगवान के ध्यान में रहते और श्री रेणुका जी उनकी एक पतिव्रता के रूप में सेवा किया करती थीं। लोग यह भी मानते हैं कि इस क्षेत्र में बहने वाली गिरी हो ये नदी है जिसे गंगा जैसा पवित्र माना जाता है । एक दिन गंगाजल लाते हुए श्री रेणुका जी ने नदी तट पर एक प्रेमी जोड़े को नग्नावस्था में देखा। उनका मन स्नेह से भर गया । आश्रम आई तो ऋषि से यह बात कह दी । ऋषि को श्री रेणुका जी पर शक हो गया और उन्होंने तत्काल श्री परशुराम को श्री रेणुका का बध करने का आदेश दे दिया। एक पल के लिए परशुराम स्तब्ध रह गए लेकिन पितृभक्त होने के कारण उन्होंने ऐसा ही किया और अपनी मां का सर काट दिया। उनके पिता बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पुत्र से वर मांगने को कहा। इस पर श्री परशुराम ने पुनः अपनी माता को जीवित होने का वर मांग लिया । ऋषि के लिए ऐसा करना कठिन हो गया लेकिन उन्होंने पुत्र को वचन दे दिया था इसलिए वे अपनी पत्नी को जीवित तो न कर पाए लेकिन उन्होंने झील के रूप में श्री रेणुका जी को सदा के लिए अमर कर दिया। तभी से इस झील का नाम रेणुका झील पड़ा है।
एक अन्य किवदन्ती के अनुसार श्री परशुराम के आग्रह पर ऋषि जमदग्नि ने पुनः श्री रेणुका जी को जीवित कर दिया था। इसके बाद वे आश्रम में रहने लग गए । लेकिन श्री परशुराम जी माता-पिता की आज्ञा लेकर श्री बद्रिका आश्रम तपस्या के लिए चले गए और अपने माता-पिता को यह कहा कि जब भी वे याद करेंगे वह उनकी सेवा में उपस्थित हो जाएंगे। इसी बीच सहस्त्रबाहु का अत्याचार बढ़ता गया और उसने अपना राज्य वर्तमान रेणुका तक फैला दिया और अपनी सेना के साथ वहां अस्थाई तौर पर रहने लग गया। श्री रेणुका जी पहले की तरह गंगा से पानी लाने जाया करती थी। एक दिन उसकी अचानक सहस्त्रबाहु से भेंट हो गई और वह उस
पर मुग्ध हो गया। लेकिन परिचय जानने के बाद उसे पता चला कि वह रिश्ते में उसकी साली लगती है क्योंकि राजा प्रसेनजित की दूसरी पुत्री का विवाह सहस्त्रबाहु से हुआ था । अब सहस्त्रबाहु रेणुका जी को रोज मिलता और उसे कहता कि उसे अपनी बहिन सहित कभी अपने आश्रम खाने पर बुलाए । एक दिन जब रेणुका जी ने यह बात ऋषि से कही तो वे उसकी चाल को भांप गया । लेकिन ऋषि ने रेणुका जी को उन्हें खाने पर अपनी सेना सहित बुलाने के लिए कह दिया और उसी अनुसार रेणुका जी ने सहस्त्रबाहु को निमन्त्रण दे दिया।
जिस दिन उन्होंने भोजन पर आना था ऋषि ने इन्द्रदेव से आग्रह किया कि वे कामधेनु गाय और कुबेर को उनकी सहायतार्थ दे दें । भगवान इन्द्र ने उन्हें यह सहायता प्रदान कर दो। राजा सेना सहित जब आश्रम आया तो वहां का प्रबन्ध देखकर चकित रह गया । उसने तो यह निमन्त्रण देने का आग्रह रेणुका से ऋषि के अपमान हेतु किया था लेकिन यहां उसके मोचने के विपरीत हो गया। जब सहस्त्राबाहु को कामधेनु का पता चला तो उसने धोखे से दान में ऋषि से उस गाय को मांग लिया लेकिन ऋषि ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। सहस्त्रबाहु के लिए तो यह मौका उपयुक्त था क्योंकि वह ऋषि का वध करके श्री रेणुका जी का अपहरण करना चाहता था । उसने जैसे ही बलपूर्वक कामधेनु को पकड़ना चाहा तो वह आकाश में उड़ गई । इस पर ऋषि जमदग्नि और सहस्त्रबाहु का आपस में घोर युद्ध हो गया और ऋषि जमदग्नि को राजा ने मार दिया। अब श्री रेणुका को ले जाना उसके लिए आसान हो गया। लेकिन वह तो पतिव्रता थी जैसे ही उसने रेणुका को पकड़ना चाहा वह राम कुण्ड में कूद पड़ी। इस अवसर पर ही उन्होंने अपने पुत्र को याद किया। स्मरण करते ही श्री परशुराम की तपस्या टूट पड़ी और वह तत्काल वहां पहुंच गए। सहस्त्रबाहु द्वारा यह अत्याचार देखकर श्री परशुराम बौखला गए और उन्होंने सेना सहित सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। उसके बाद अपनी माता को जीबित ही राम कुण्ड से वाहर निकाल दिया । लोग यह भी मानते हैं कि यही रामकुण्ड श्री रेणुका झील है ।
श्री परशुराम जी जब वापिस अपने आश्रम जाने लगे तो श्री रेणुका ने उनसे अनुरोध किया कि वे अपनी मां से और यहां की जनता से कभी मिलने अवश्य आया करें। इस पर उन्होंने वचन दिया कि वे वर्ष में एक बार कार्तिक मास में शुक्ल पन की एकादशी को यहां अवश्य आया करेंगे और द्वादशी की सायं वापिस जाया करेंगे । इसीलिए ही इस दिन परशुराम जी के यहां आने पर श्री रेणुका जी पर्व आयोजित किया जाता है ।
इसी तरह की सहस्त्रबाहु और ऋषि जमदग्नि के युद्ध से सम्बन्धित घटना •ततापानी तीर्थ से भी जोड़ी जाती है ।
सहस्त्रबाहु जैसे शक्तिशाली राजा के वध पर अनेक राजाओं तथा ऋषि-मुनियों ने झील के किनारे महा यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ का जहां आयोजन हुआ यह स्थान माज श्री परशुराम ताल के रूप में दर्शनीय है। यहीं पर श्री रेणुका जी
मन्दिर, पुरानी देवठी मन्दिर, भगवान शिव मन्दिर अवलोकनीय हैं। शिव का यह मन्दिर पूर्ण भारतवर्ष में केवल एक ही ऐसा है जिसे शिवलिंगाकार रूप में निर्मित किया गया है। यहां से लगभग 6 किलोमीटर दूर श्री भृगु आश्रम स्थित है।
यह स्थान आज सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रसिद्ध हो चुका है । एक धार्मिक स्थान के साथ-साथ यह प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी है जहां भ्रमण और तीर्थ स्थल दोनों एक साथ हैं। इस झील में नौका विहार की सुविधा भी मौजूद है । झील की सुन्दरता देखते ही बनती है। चारों तरफ की हरियाली जैसे झील के अमूल्य आभूषण हों। लोग श्री रेणुका जी की एक शक्तिशाली देवी के रूप में पूजा करते हैं और इसी दृष्टि से यहां भ्रमण और स्नान करने का बहुत बड़ा महत्व माना गया है ।
बाला सुन्दरी मन्दिर
त्रिलोकपुर गांव नाहन से 24 किलोमीटर की दूरी पर ऐतिहासिक मां बाला सुन्दरी मन्दिर के लिए प्रख्यात है। इस देवी के तीन रूप माने गए हैं। पहला ललिता देवी, दूसरा बाला सुन्दरी और तीसरा त्रिभवानी । ललिता देवी का प्राचीन मन्दिर इस गांव से लगभग चार किलोमीटर पूर्व की ओर एक पहाड़ी पर स्थित है। मांत्रिभवानी का मन्दिर यहां से पश्चिम उत्तर दिशा की ओर स्थित है। और इन दोनों मन्दिरों के बोच है मां बाला सुन्दरी का भव्य प्राचीन मन्दिर । इन तीन देवियों का त्रिमूर्ति रूप हो त्रिलोकपुर गांव के नामकरण की आधारशिला मानी जाती है।
लोक मान्यता है कि यह देवी यहां लगभग 450 वर्ष पूर्व आई थी । त्रिलोकपुर गांव में एक व्यापारी ( बनिया) रामदास रहा करता था, जिसने यहां अपनी दूकान चला रखी थी । यह बनिया अपना सारा माल सहागपुर से लाया करता था। एक दिन उसने सहारपुर से नमक की एक बोरी लाई जिसमें एक पिडी अपने आप चली गई । इस तरह यह पिंडी सहारपुर से त्रिलोकपुर बनिए की बोरी में पहुच गई। दूकान के समीप एक पोपल का वृक्ष था जिस पर बनिया नियमित जल चढ़ाया करता था । बनिए ने कुछ दिनों के बाद यह आभास किया कि जो नमक वह लाया था वह बिकने से बाद भी कम नहीं हो रहा है। इस पर वह आश्चर्य चकित हो गया ।
कहा जाता है कि एक दिन बनिए को देवी ने स्वप्न में दर्शन दे दिए कि जिस जगह वह जल चढ़ाता है उससे नियमित मेरे स्नान होते हैं। माता ने उसे कहा कि वह वहां एक मन्दिर बनाए । लेकिन बनिया इतना धनी नहीं था जिससे वह मन्दिर का निर्माण कर पाता । उसके कई दिनों बाद वह पीपल एक तूफान से उखड़ कर गिर गया जिसको जड़ों से वह पिंडी प्रकट हो गई। उस बनिए ने उसे श्रद्धापूर्वक उठाया और साफ जगह पर रखकर नियमित अराधना करने लग गया। कई दिनों बाद उस देवी ने. उसको मन्दिर की बात स्मरण करवा दी लेकिन बनिए ने मां के आगे हाथ जोड़ कर फिर धनाभाव की बात दोहराई। इसके बाद वह देवी तत्कालीन राजा दीप प्रकाश के स्वप्न में प्रकट हुई और राजा को मन्दिर बनाने को कहा। राजा ने उसके बाद
मन्दिर का निर्माण शुरू कर दिया। यह मन्दिर 1753 ई० में बनाया गया और माता की पिंडी को मन्दिर में स्थापित किया गया। राजा ने इस मन्दिर में 84 घण्टियां भी लगवाई जिसे लोग इसे चौरासी घण्टियों वाली मां भी कहते हैं। माता की पिंडी के साथ संगमरमर की मूर्ति स्थापित की गई है जो अष्टभुज है । मन्दिर में कई अन्य मूर्तियां भी शोभायमान हैं। मन्दिर के पूर्व की ओर मां मनसादेवी की प्रतिमा स्थापित है। साथ ही दो पहरेदारों की मूर्तियां हैं। मन्दिर के दरवाजे के सामने जो दक्षिण की और है हवन कुण्ड, सन्तोषी माता, हनुमान जी, शिव भगवान तथा भैरव के मन्दिर एवं उनमें लघु मूर्तियां स्थापित हैं। माता की सवारी के लिए शेर भी मन्दिर के बाहर बनाया गया है । मन्दिर का प्रांगण संगमरमर से सुसज्जित है। इस परिसर के इर्द-गिर्द पीपल के वृक्ष हैं। इन पीपल की टहनियों ने मन्दिर को सुन्दर ढंग से ढांप रखा है। मन्दिर के ऊपर गुम्बद पर कलश लगा है ।
सिरमौर रियासत पर जिन राजाओं ने भी शासन किया उनकी इस मन्दिर के प्रति गहन आस्था रही है । वे सदैव बाहर मां का आशीर्वाद लेकर हो जाते थे। नवरात्रों में यहां विशाल मेलों का आयोजन होता है ।
श्रीगुलदेव और चूड़ेश्वर मन्दिर
श्रीगुल का निवास स्थल चूड़धार माना जाता है। सिरमौर जनपद में श्रीगुल को अत्यन्त शक्तिशाली देव के रूप में पूजा जाता है। जिले में स्थान-स्थान पर इस देवता के मन्दिर और देहरियां निर्मित हैं। इनमें कई मन्दिर वास्तुकला की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । इससे पूर्व को यहां के कुछ प्रसिद्ध एवं प्राचीन मन्दिरों पर प्रकाश डाला जाए सबसे पहले श्रीगुल देव के जन्म सम्बन्धी आस्था का वर्णन करना आवश्यक हो जाता है ।
सिरमौर क्षेत्र में श्रीगुल देवता के सन्दर्भ में कथा कही जाती है वह अति रोचक है। कहा जाता है कि बहुत समय पूर्व 'शाया' रियासत में भकड़ नामक राणा का शासन था । 'शाय।' को उस समय एक छोटी रियासत के रूप में जाना जाता था जो अब सिरमौर जिले की तहसील राजगढ़ में एक छोटा-सा ग्राम है। कुछ लोगों का यह भी मत रहा है कि भकड़ केवल एक साधारण परिवार का राजपूत था। इस राजपूत के कोई भी सन्तान नहीं थी। यह राजपूत विद्वान और तन्त्रविद्या में भी निपुण बताया गया है। किसी ने भकड़ को बताया कि सन्तान न होने के कारणों का पता लगाने हेतु उसे काश्मीर में जाना चाहिए जहां एक पण्डित पूर्व जन्म से लेकर वर्तमान तक की बातें बता देता है । वह राजपूत सन्तान की इच्छा मन में संजोए काश्मीर चला गया। वहां पहुंचते-पहुंचते उसे कई महीने बीत गए । जब उसने उस पण्डित का निवास स्थान ढूंढा तो पण्डित के परिवार ने बताया कि वह अभी सोए हैं। वह राजपूत अधिक इन्तजार न कर सका और उसने अपना शरीर बदलकर बिल्ली का रूप धारण कर लिया और पण्डित के कक्ष में प्रवेश हो गया। बहुत प्रयास करने पर उसने उस पण्डित को जगा
लिया और आने का कारण बताया । पण्डित ने उसका परिचय जानकर उसे बताया कि पूर्व जन्म में उसने किमी ब्राह्मण की हत्या की है जिसके कारण उसके सन्तान नहीं हो सकती । यदि वह किसी ब्राह्मण की कन्या से पुनः विवाह करे तो उसके सन्तान हो सकती है ।
भक इस स्थिति को जानकर वापिस लौट आया और तत्काल एक कन्या से विवाह कर लिया। कुछ दिनों के बाद उस राजपूत की पहली पत्नी स्वर्ग सिधार गई । लेकिन परिवार में दुख का साया अधिक दिनों तक न रहा और भकड़ के दो पुत्र रत्न पैदा हो गए। उनमें एक का नाम श्रीगुल तथा दूसरे का दुधेश्वर रखा गया । बड़ा पुत्र श्रीगुल था जो बचपन से ही हर विद्या में निपुण था। पिता ने उसे धीरे-धीरे स्वयं भी हर बात में अग्रणी कर दिया था। लेकिन माता-पिता का साया उन दोनों बालकों पर अधिक देर न रह सका और कुछ दिनों के पश्चात् उनके माता-पिता का देहान्त हो गया । अब दोनों भाई अकेले रह गए थे । उन दोनों को उनके मामा आकर ननिहाल ले गए । उनकी मामी काफी ईर्ष्यालू औरत थी। कुछ दिनों तक तो वह उन बच्चों को ठीक तरह पालती रही लेकिन धीरे-धीरे उनके प्रति उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया । और उसने दोनों को सताना शुरू कर दिया ।
लेकिन यहां कुछ विद्वानों और लोगों के दो मत रहे हैं। कुछ उपरोक्त बात को स्वीकारते हैं तथा कुछेक का यह मानना है कि भकड़ की पहली पत्नी के वे दोनों बालक थे । उसके देहान्त के उपरान्त उसने दूसरी स्त्री से विवाह किया था लेकिन विवाह के कुछ महीनों बाद वह स्वयं मर गया जिससे दोनों बालकों का पालन-पोषण उनकी सौतेली मां करने लगी। अपनी संतान न होने पर उसने वास्तव में उन बच्चों से सौतेली मां का व्यवहार किया। यह बात काफी हद तक उचित भी लगती है और इसे बहुत लोग स्वीकारते भी हैं। इसलिए इसी तथ्य पर इस कथा को मैं आगे बढ़ाना चाहूंगा ।
सौतेली मां ने उन दोनों बालकों से घर का सारा काम कराना आरम्भ करवा दिया और खुद वह कुछ भी नहीं करती थी। श्रीगुल बचपन से काफी चमत्कारी था । उन्हें अक्सर खेतों में काफी मेहनत करनी पड़ती। श्रीगुल यदि एक बार किसी खेत में बीज डाल देता तो वह बिना हल चलाए ही उग जाया करते थे। इसके कार्य में बराबर चमत्कार भरा रहता जिससे जहां गांव वाले हतप्रद थे वहां उनकी सौतेली मां ईर्ष्या से भीतर ही भीतर जल रही थी ।
एक दिन खेतों में काम करते हुए श्रीगुल और उसके छोटे भाई को बहुत भूख लग गई । वे काम समाप्त किए बिना घर भी वापिस नहीं लौट सकते थे । इसलिए श्रीगुल ने अपनी मां के लिए रोटी खेत में लाने हेतु सन्देशा भेजा। काफी समय बाद उनकी मां खेत में आई तो उसके पास मात्र एक कटोरा सत्तू था । श्रीगुल ने जब देखा कि मां उनके लिए पानी तो लाई ही नहीं, उसने विनम्र भाव से माता को पानी के लिए पूछा । वह तमतमा गई और बोली कि यदि वह इतना चमत्कारी है तो खुद पानी क्यों नहीं पैदा कर लेता । श्रीगुल के हृदय पर सौतेली मां का यह ताना बच्च की तरह पड़ा |
9756e8180c29fa10b37dcb2ba59434b9b04fd81f1b62f909f4f77f392adc0e91 | pdf | रहेगा उसे ही जीवन में परम शांति की प्राप्ति होगी । श्री रामरहस साहेब ने कहा है -
जो जिव परख विलास में, लहै सदा सुख चैन ।
तिन्ह के त्रास न काल के, और कहे को बैन ॥ पंचग्रन्थी, टकसार 224 ॥ काल का प्रसिद्ध अर्थ समय एवं मृत्यु तो है ही । सद्गुरु कहते हैं कि हे माया - मोह में डूबा हुआ आदमी, सावधान हो जा । तेरे सिर पर काल मंडरा रहा है। जो काल के रास्ते में हो उसे लापरवाह नहीं होना चाहिए । 'बिराने मीत' का अर्थ दो ढंग से समझा जा सकता है। एक ढंग से अर्थ किया जा चुका है कि बिराने का मीत, पराये का प्रेमी । पराया है माया । जीव उसका मोही हो गया है। दूसरे ढंग से मीत शब्द संबोधन है । अर्थात हे मित्र ! तू अपने आप में पराया हो गया । जैसे कोई अपने गलत आचरण के कारण अपने घर में रहकर भी सबसे उपेक्षित रहने के कारण पराया-सा बना रहे, वैसे हम अपने आप में पूर्ण होते हुए भी अपने अज्ञान एवं विषय-वासनावश स्वयं से ही उपेक्षित होकर पराये हो गये हैं ।
हमें अपने आप में जागना चाहिए। सब समय सब कुछ काल के गाल में जा रहा है। यहां सब कुछ नश्वर है। इन नश्वर प्राणी-पदार्थों में अपना मन आबद्ध नहीं करना चाहिए। हमें शरीर की नश्वरता, काम-वासनाओं एवं कल्पनाओं की बन्धनरूपता दृष्टिगत रखते हुए अपने उद्धार के लिए सतत सावधान रहना चाहिए।
कल काठी कालू घुना, जतन जतन घुन खाय ।। काया मध्ये काल बसत है, मर्म न काहू पाय॥ 103॥ शब्दार्थ - कल= कोमल, कमजोर । काठी= काठ का बना हुआ, जड़ देह, देह की गठन । कालू = काल, समय, काम, कल्पना । घुनघुन, काठ को खाने वाला एक कीड़ा। जतन - जतन = धीरे-धीरे ।
भावार्थ - जड़ तत्त्वों से बना यह शरीर एवं शरीर की गठन बहुत कमजोर है। इसमें काल का घुन लगा है और वह धीरे - धीरे इसे खाकर निकम्मा बना रहा है । कोई यह रहस्य नहीं जानता कि शरीर के अन्दर ही काल रहता है ॥ 103 ॥
व्याख्या - काठ की चीजों में जब घुन-कीड़े लग जाते हैं तब उन्हें वे भीतर- ही - भीतर चालकर निकम्मा बना देते हैं । काठ तो ऊपर चिकना तथा ठोस दिखता है, परन्तु भीतर-भीतर खोखला एवं कमजोर हो जाता है। हमारे शरीर की यही दशा है। यह तो स्वभाव ही से 'कल' है। अर्थात कोमल एवं कमजोर है। एक लकड़ी तथा पत्थर की बनी चीज की तो वैज्ञानिकों द्वारा आयु निर्धारित की जा सकती है और यह विश्वास किया जा सकता है कि यह
षष्टमइतने वर्षों तक रहेगी; परन्तु इस शरीर के लिए ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता । यह तो हाड़, मांस, नस, चाम जैसे कमजोर पदार्थों से हजारों जोड़ों के द्वारा बना है। इसके टिके रहने में ही आश्चर्य होता है मिटने में क्या आश्चर्य है ! इतना कमजोर शरीर पचास-पचास तथा सौ-सौ वर्ष तक टिका रहता है यही अचंभा लगता है। इसके तो 'रहबे को अचरज है, जात अचम्भौ कौन !" शरीर का साज वैसे ही कमजोर है। दूसरे इसके भीतर काल का घुन लगा है। हर आदमी का शरीर हर समय बदलता है । यह निरन्तर धीरे-धीरे काल के मुख में जा रहा है। काल तो काया के बीच में ही रहता है, परन्तु इसका रहस्य बिरला ही समझता है । स्थूल बुद्धि वाले समझते हैं कि हमारी आयु बड़ी हो रही है, परन्तु वस्तुतः आयु निरन्तर घट रही है। पानी से भरी हुई टंकी जैसे मोरी द्वारा पानी के धीरे-धीरे निकलते निकलते एक दिन खाली हो जाती है, वैसे यह शरीर श्वास निकलते-निकलते एक दिन खाली हो जाता है।
काल के दूसरे अर्थ में काम तथा कल्पनाएं हैं, जो मनुष्य के दुर्बल शरीर के घुन के समान लगकर उसको निस्तेज बनाते हैं। आदमी ऊपर-ऊपर चिकना-चुपड़ा लगता है, परन्तु भीतर वह मलिन वासनाओं का गुलाम होता है। वासनाएं एवं कल्पनाएं मनुष्य के भीतर ही बसती हैं। यदि मनुष्य चाहे तो विवेक द्वारा उनका संहार कर सकता है । परन्तु वह इस रहस्य को नहीं समझ पाता। काम, कल्पना एवं वासना पर विजय ही काल को जीत लेना है । मृत्यु काल नहीं है जो केवल शरीर को मारती है । कामनाएं एवं वासनाएं काल जो जीव को अंधकार में भटकाती हैं । अतएव हमें कामनाओं को जीतना चाहिए।
माया का स्वरूप
मन माया की
कोठरी, तन संशय का कोट ॥
विषहर मन्त्र माने नहीं, काल सर्प की चोट ॥ 104॥ शब्दार्थ - माया = धोखा, अध्यास, वासना, आसक्ति । संशय दुविधा, अनिश्चय, संदेह, भ्रम। कोट = किला, गढ़, दुर्ग । काल सर्प = काम, अहंकार, अज्ञान, कल्पना । विषहर मंत्र = अज्ञान - विष को दूर करने वाला सत्योपदेश ।
भावार्थ - यह मन माया की कोठरी है और शरीर संदेहों एवं भ्रांतियों का किला है। अज्ञानरूपी सांप ने मनुष्य को डसकर उसके अंग में ऐसा घाव बना दिया है कि उस पर सत्योपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जिससे उसका विष दूर हो ॥ 104 ॥
व्याख्या - जैसे कपड़ों से भरी कोठरी, बरतनों से भरी कोठरी या किसी
वस्तु से भरी कोठरी होती है, वैसे माया से भरी एक कोठरी है और वह मन है । मन माया की कोठरी है । साधारण मनुष्यों के मन में माया - ही - माया भरी होती है। माया है धोखा। रात में पेड़ का ठूंठ देखकर चोर का धोखा होता है । रस्सी में सांप का धोखा होता है। इसी प्रकार सांसारिक विषयों में स्थायी सुख प्राप्ति का धोखा होता है। मनुष्य के मन में अनेक प्रकार के अध्यास, कुसंस्कार, कुवासनाएं एवं आसक्तियां भरी हैं। ये ही माया हैं ।
कुछ लोग समझते हैं कि माया की स्वतन्त्र सत्ता है या किसी प्रभु के द्वारा प्रेरित है और जीव के न चाहने पर भी वह उस पर कूदकर चढ़ लेती है और उसे परेशान करती है। सद्गुरु कबीर कहते हैं कि ऐसी कोई माया नहीं है जो मनुष्य के मन से कहीं बाहर अपनी सत्ता रखती हो और जीव के अलावा किसी दूसरे द्वारा प्रेरित होती हो । बस, मन के अन्दर पांचों विषयों का मोह बना रहता है, वही माया है। इसलिए यह मानना कि हमें कोई अन्य माया में बांध देता है, निपट अज्ञान है । यह हमारा मन ही माया की कोठरी है। इसी में से माया निकलती है और हमें परेशान करती है । और यह भी समझ लो कि यह माया हमारी ही बनायी है। हमने ही इसको सृजा है। अपने चेतनस्वरूप के अलावा जो कुछ दृश्य - विषय है उसमें अहंता - ममता एवं राग कर लेना यही माया है। और यह हम ही तो करते हैं ! हमें अपने वास्तविक स्वरूप का भान नहीं रहता, इसलिए हम जो कुछ देखते-सुनते हैं उसमें राग करते हैं या द्वेष करते हैं । यह हमारे बनाये राग-द्वेष ही हमें बांधने के लिए माया बन जाते हैं।
मान लो, किसी कोठरी में गायें हैं तो कोठरी खुलने पर उसमें से गायें निकलती हैं, किसी कोठरी में बकरियां हैं तो उसके खुलने पर उसमें से बकरियां निकलती हैं। इसी प्रकार मनुष्य की जैसे नींद खुलती है तुरन्त ही मन की कोठरी खुल जाती है और उसमें से माया निकलने लगती है। कहीं किसी के लिए ममता - मोह की याद होती है तो किसी के प्रति द्वेष और घृणा की, कभी मन से काम-संकल्प उठते हैं तो कभी क्रोध, कभी लोभ तो कभी ईर्ष्या, कभी चिन्ता तो कभी ग्लानि के संकल्प । अर्थ यह कि आदमी जब तक जागता है तब तक उसके मन में किसी-न-किसी प्रकार की मलिनता ही आती रहती है, यही माया है । और जाग्रत अवस्था ही क्या, सोते समय में भी जब तक आदमी गाढ़ी नींद में नहीं रहता तब तक तो अर्ध सुषुप्ति ही रहती है, यही स्वप्न की अवस्था है । स्वप्न में भी जीव माया के द्वंद्व में पड़ा रहता है। उसे स्वप्न में आभास होता है कि हमें मानो हाथी खदेड़ रहा है, सांप पीछा कर रहा है, शत्रु से हम घिर गये हैं, नदी में डूब रहे हैं, कामभोग में प्रवृत्त हो रहे हैं, क्रोध तथा ईर्ष्या में जल रहे हैं । जीव स्वप्न में भी चैन से
[षष्टमनहीं रहता है। गाढ़ी नींद एवं प्रगाढ़ सुषुप्ति में तो कुछ भान नहीं रहता, परन्तु जागृति तथा स्वप्न के बीज सुषुप्ति में भी रहते हैं इसलिए अज्ञानी मनुष्य के मन में सुषुप्ति में भी माया बीजरूप में बनी रहती है। इसलिए जागृति, स्वप्न तथा सुषुप्ति - तीनों अवस्थाओं में मनुष्य के मन में माया ही व्याप्त रहती है ।
"तन संशय का कोट" शरीर संदेहों, दुविधाओं एवं भ्रांतियों का मानो किला है। मनुष्य के जीवन में संशय का अंबार है । व्यापार रुक न जाये, नौकरी छूट न जाये, खेती डूब न जाये, प्रियजन बिछुड़ न जायें या विमुख न हो जायें, शरीर रोगी न हो जाये, शरीर छूट न जाये, जीवन लक्ष्य क्या है, परमात्मा आत्मा ही है या कहीं बाहर है, मोक्ष जीवन रहते ही मिलता है कि मरने के बाद, साधना क्षेत्र में मैं सफल हो सकता हूं कि नहीं, यदि साधु बन जाऊं तो गुजर होगा कि नहीं, ऐसे-ऐसे अनेक संशय मनुष्य के चित्त को चालते रहते हैं। जो आदमी संशयग्रसित होता है, वह अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सकता। संशय अनिश्चय और भ्रम है जो मनुष्य को सदैव चंचल रखता है।
"विषहर मंत्र माने नहीं, काल सर्प की चोट" काल रूपी सर्प ने मनुष्य के मन में ऐसी चोट कर दी है, उसने ऐसा घाव बना दिया है, इस तरह डस लिया है कि मनुष्य विषहर - मंत्र नहीं मानता । जो विष का हरण कर ले वह विषहर - मंत्र है । विषहर - मंत्र स्वरूपज्ञान है, सत्योपदेश है। मनुष्य उसे नहीं मानता; क्योंकि काल-सर्प ने उसे अपने विष से अत्यन्त प्रभावित कर दिया है। काल-सर्प अज्ञान है, काम-वासना है, अहंता- ममता है और नाना मानसिक कल्पनाएं हैं। खानी - जाल का मुख्य अध्यास है काम-वासना तथा वाणी- जाल का मुख्य अध्यास है अपने चेतनस्वरूप से अलग अपना लक्ष्य खोजना, और दोनों का समवेत रूप है अज्ञान । इस अज्ञान से ही विषयों के लिए नाना कल्पनाएं उठती हैं तथा बाहर से देवी-देवता और ईश्वर - ब्रह्म पाने की कल्पनाएं उठती हैं। इन सारी कल्पनाओं में जो अत्यन्त जकड़ा है, उस पर स्वरूपज्ञान की बातों का प्रभाव नहीं पड़ता । परन्तु यह भी कथन का एक प्रकार ही है। सद्गुरु ने 29वीं रमैनी में कहा है - 'गारुड़ सो जो मरत जियावै"। औषधि तो वही है जो विष से प्रभावित मरते हुए आदमी को जिला दे। बातें दोनों हैं। अधिक तो यही है कि अज्ञान में अत्यन्त जकड़े आदमियों को उपदेश नहीं लगता; परन्तु कहीं-कहीं देखा जाता है कि अत्यन्त व्यामोहित आदमी भी सत्योपदेश पाकर एकदम जग जाते हैं। इसलिए गुरुजन सदैव यही प्रयत्न करते हैं कि लोग माया - मोह से जगकर अपना कल्याण करें ।
मन माया तो एक है, माया मनहिं समाय ।
तीन लोक संशय परी, मैं काहि कहौं समुझाय ॥ 105 ॥
शब्दार्थ - तीन लोक = पृथ्वी, पृथ्वी के नीचे तथा पृथ्वी से ऊपर, समस्त संसार; त्रिगुणी जीवजगत ।
भावार्थ - जल - तरंग न्याय मन और माया एक ही है। माया मन में ही लीन है। परंतु संसार के लोगों के हृदय में यह भ्रम है कि माया मनुष्य के मन से अलग एक निरपेक्ष तत्त्व है जो किसी ईश्वर या ब्रह्म से चालित है और उसके द्वारा वह जीवों पर दौड़ा दी जाती है । सद्गुरु कहते हैं कि मैं किसकोकिसको समझाकर कहूं कि ऐसी बातें नहीं हैं, किन्तु माया मनुष्य के मन की कल्पना ही है ॥ 105 ॥
व्याख्या - "मन माया तो एक है, माया मनहिं समाय" जैसे पानी और उसमें उठने वाली तरंगें दो होते हुए भी अन्ततः एक है, वैसे मन तथा उसमें उठती हुई कल्पनाएं दो होते हुए अन्ततः एक है। पानी को हटा देने पर तरंगों का अस्तित्व नहीं हो सकता, इसी प्रकार मन के लीन हो जाने पर कल्पनाओं एवं संकल्पों का अस्तित्व नहीं हो सकता ।
"मन माया तो एक है" इस बात को हमें ठीक से समझ लेना चाहिए। यदि मन और माया एक है तो यह प्रश्न उठता है कि ज्ञानी पुरुष का भी जब तक शरीर रहता है तब तक मन रहता ही है और तब तक फिर उसके पास माया भी रहेगी ही, क्योंकि मन-माया एक है। इसलिए ज्ञानी पुरुष भी जीवनभर माया से मुक्त नहीं हो सकता । फिर उसका ज्ञानी होना कहना निरर्थक हो जाता है। वस्तुतः शुद्ध मन भी माया ही है, क्योंकि मन अपना चेतनस्वरूप तो नहीं है, किन्तु शुद्ध मन बन्धन नहीं मोक्ष में सहायक है। जो माया बंधन करती है वह है अज्ञान, काम, क्रोधादि एवं कल्पनाएं, जिनकी चर्चा पिछली साखी में विस्तारपूर्वक हो चुकी है। वह माया भी मन ही में लीन है। मन से अलग उसका अस्तित्व नहीं है । जैसे पानी में लहर तथा हवा में आंधी उठती है, परन्तु लहर और आंधी के न रहने पर भी पानी और हवा रहते हैं वैसे मन में ही कामादि विकाररूपी माया उठती है, परन्तु कामादि विकाररूपी माया के न रहने पर भी मन रहता है। विकारों का न रहना ही माया से मुक्ति है। मन तो जीवनपर्यन्त रहता ही है। शुद्ध मन मोक्ष का कारण बनता है, बंधन का नहीं । माया मन में रहती है यह कहने का अर्थ यही है कि मनुष्य के मन को छोड़कर माया की कहीं अलग सत्ता नहीं है। यदि साधक विकारहीन मन वाला हो गया, तो वह माया से मुक्त है ।
"तीन लोक संशय परी, मैं काहि कहौं समुझाय" संसार के प्रायः सभी लोगों को यह भ्रम है कि माया मनुष्य के मन से अलग कोई बलवान सत्ता है। ईश्वरवादी तथा ब्रह्मवादी दोनों ने माया की विचित्र व्याख्या कर डाली है । हिन्दू-ईश्वरवादियों ने मान रखा है कि माया तो ईश्वर की शक्ति है । उसी ने
षष्टमजगत-जीवों को फंसा रखा है। ईश्वर ने अपने माया- जाल में सबको फंसाया है। "हरि माया अति दुस्तर, तरि न जाय बिहंगेश" तथा "उमा दारु जोषित की नाईं। सबहिं नचावत राम गोसाई ।"" लोगों की जुबान पर रहती है "प्रभु माया बलीयसी"। कुछ लोगों के मतानुसार सत्पुरुष तथा ईश्वर से भी बलवान कालनिरंजन है जो ईश्वर के राज्य में गड़बड़ी मचाता है और जीवों को भटकाकर ईश्वर से विमुख करता रहता है । सामी मजहब वाले प्रायः एक ऐसा शैतान मानते हैं, जो जीवों को भ्रम में डालकर अल्लाह से विमुख कर देता है। अद्वैत ब्रह्मवादी कहते हैं कि माया अघटित घटना पटीयसी, दुरत्यया तथा अनिर्वचनीया है। स्वामी शंकर कहते हैं - "माया को सत कहूं तो ठीक नहीं, असत कहूं तो ठीक नहीं तथा उभयात्मक कहूं तो ठीक नहीं, इसी प्रकार माया को ब्रह्म से भिन्न, अभिन्न तथा उभयात्मक और अंग-सहित, अंगरहित एवं उभयात्मक कहते नहीं बनता । वस्तुतः माया महान अद्भुत और अनिर्वचनीया - कहने में न आने वाली है । " ब्रह्मवादी लोग प्रत्यक्ष जगत को, जो जड़तत्त्वों के स्वभावसिद्ध क्रियावान कणों का फल है किसी अकथनीय माया का फल होने की कल्पना करते हैं, इसलिए माया की व्याख्या और उलझ जाती है। इस प्रकार ईश्वरवादियों तथा ब्रह्मवादियों ने माया की परिभाषा ऐसी उलझा रखी है जो मनुष्य के समझने में न आवे। बल्कि उससे यही भ्रम हो कि माया ईश्वर की एक ऐसी शक्ति है, या ऐसी स्वतन्त्र सत्ता है जो जीव को जैसा चाहे नचाती रहे और जीव का उसमें कोई वश न चले। ऐसी अवस्था में मनुष्य माया के सामने केवल लाचार बनकर रह जाता है। वह केवल ईश्वर का नाम लेकर रात दिन विनती किया करे, गिड़गिड़ाया करे, जब ईश्वर की मर्जी हो तो जीव को माया से मुक्त कर दे और जब चाहे उसे माया में पुनः डाल दे।
सद्गुरु कबीर कहते हैं कि मैं किसको किसको समझाकर कहूं कि मनुष्य के मन में रहे हुए मोह के अलावा कहीं कोई माया नहीं है और मोह के बनता है व्यक्ति के अपने स्वरूप के अज्ञान से । अतएव माया के निर्माण में जीव की अपनी भूल ही कारण है । वह यदि अपनी भूल छोड़ दे तो माया अपने आप मर जाये। मनुष्य जब तक बीड़ी - तम्बाकू का सेवन नहीं करता तब तक उसके सम्बन्ध में कोई माया नहीं है और जब वह उनका सेवन करने लगता है और उनकी आदत बन जाती है, उनमें मोह हो जाता है, तब बस,
1. रामचरित मानस ।
अरब, असीरिया, बेबिलोन आदि के क्षेत्र के निवासियों को सामी कहते हैं । सन्नाप्यसन्नाप्युभयात्मिका नो भिन्नाप्यभिन्नाप्युभयात्मिका नो ।
साङ्गाप्यनङ्गाप्युभयात्मिका नो महद्भुतानिर्वचनीयरूपा ॥ (विवेकचूड़ामणि, श्लोक 111 ) |
94607a10e4d3865bc1dc61d92d5ed2ec090b3780 | web | पंडित नरेन्द्र उपाध्याय (ज्योतिर्विद्)। Weekly Horoscope in Hindi 26 Dec 2021 To 1 Jan 2022: Saptahik Rashifal 2021: मेष (Aries - 21 Mar - 20 Apr): इस सप्ताह आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी. आय के नवीन श्रोत बनेंगे. आपके स्वास्थ में सुधार होगा. आपके प्रेम एवं व्यापार की स्थिति काफी अच्छी हो गई है. जीवन में शुभता बनी रहेगी. सप्ताह की शुरूआत में भावनाओं में बहकर कोई निर्णय ना लें. संतान के स्वास्थ पर ध्यान दें. प्रेम में कलह से बचें. सप्ताह के मध्य में आप अपने शत्रुओं पर भारी पड़ेंगे. रुका हुआ कार्य चल पड़ेगा. सप्ताह के अन्त में जीवनसाथी का सानिध्य मिलेगा. रोजी रोजगार में आप तरक्की करेंगे. सूर्य को जल दें और लाल वस्तु अपने पास रखें.
वृष (Taurus - 21 Apr - 21 May): इस सप्ताह पिछले सप्ताह की अपेक्षा आपकी स्थिति ठीक रहेगी. भाग्य आपका साथ देगा. रोजी-रोजगार में आप तरक्की करेंगे. सप्ताह के शुरुआत में गृह कलह के संकेत हैं, लेकिन भूमि, भवन, वाहन की खरीदारी भी संभव है. सप्ताह के मध्य में विद्यार्थियों के लिए अच्छा समय है, लेकिन भावनाओं में बहकर कोई निर्णय ना लें. सप्ताह के अन्त में आपके शत्रु परेशान करने की कोशिश करेंगे, लेकिन अंत में वह हारकर आपके आगे नत्मस्तक होंगे और जीत आपकी होगी. काली जी को प्रणाम करें और पीली वस्तु किसी जरूरतमंद को दान करें.
मिथुन (Gemini - 22 May - 21 Jun): इस सप्ताह आपका स्वास्थ थोड़ा मध्यम रहेगा, लेकिन प्रेम अच्छा रहेगा. शुभता में वृद्धि हो रही है. रोजी रोजगार में आप तरक्की करेंगे. सप्ताह के शुरुआत में आप काफी पराक्रमी बने रहेंगे, जिससे आप द्वारा किया गया यह पराक्रम आपको सफलता दिलाएगा. भाइयों और मित्रों का साथ मिलेगा. सप्ताह के मध्य में मां के स्वास्थ पर ध्यान दें. आपके भौतिक सुख सम्पदा में वृद्धि होगी, लेकिन गृह कलह संभव है. सप्ताह के अन्त में आपकी निर्णय लेने की क्षमता अच्छी रहेगी. किसी जरूरतमंद को लाल वस्तु का दान करें और काली जी को प्रणाम करें, लाभ होगा.
कर्क (Cancer - 22 Jun - 22 Jul): इस सप्ताह आपकी स्थिति में काफी सुधार आ गया है, लेकिन शुभता में थोड़ी कमी रहेगी. मांगलिक कार्यों में परेशानी आ सकती है. सप्ताह के शुरुआत में धनागमन होगा. साथ ही कुटुम्बों में वृद्धि होगी, लेकिन पूंजी का निवेश रोककर रखें और जुबान पर नियंत्रण रखें. सप्ताह के मध्य में आपकी व्यवसायिक स्थिति अच्छी रहेगी. भाइयों और मित्रों का साथ मिलेगा. सप्ताह के अन्त में आपके भौतिक सुख सम्पदा में वृद्धि होगी, लेकिन कुटुम्बों में कलह से बचें. बजरंग बली को प्रणाम करें और कोई लाल वस्तु अपने पास रखें.
सिंह (Leo - 23 Jul - 22 Aug): पिछले सप्ताह आपको जो भी शारीरिक परेशानी थी, उससे अब आप उबर चुके हैं. जीवनसाथी का सानिध्य मिलेगा. बच्चों का साथ मिलेगा. विद्यार्थियों के लिए यह अच्छा समय है. अविवाहितों का विवाह तय होने की संभावना है. सप्ताह के शुरुआत में आप सितारों की तरह चमकेंगे. आपका सामाजिक व आर्थिक कद बढ़ेगा. सप्ताह के मध्य में धनागमन होगा और आशातीत आय में वृद्धि होगी. सप्ताह के अंत में जो कार्य करने की सोच रहे हैं, उसे पूरा करें. विष्णु जी को प्रणाम करें, पीली वस्तु पास रखें.
कन्या (Virgo - 23 Aug - 23 Sep): इस सप्ताह आपके निर्णय लेने की क्षमता में काफी सुधार आ गया है. प्रेम एवं संतान की स्थिति अच्छी हो गई है. स्वास्थ पहले से बेहतर रहेगा. सप्ताह की शुरुआत में आपके लिए चिंताकारी सृष्टी का सृजन होगा. खर्च की अधिकता से मन परेशान रहेगा. सप्ताह के मध्य में आप सितारों की तरह चमकेंगे, जिस चीज की आपको जरूरत होगी, उसकी उपलब्धता होगी. सप्ताह के अन्त में आपके उलझे हुए आर्थिक मामले सुलझेंगे, लेकिन आप अपनी जुबान पर नियंत्रण रखें. शनि देव को प्रणाम करें और गणेश जी पर दूब अर्पित करें.
तुला (Libra - 24 Sep - 23 Oct): इस सप्ताह आपकी शारीरिक स्थिति में सुधार होगा. आपके प्रेम की स्थिति भी काफी अच्छी रहेगी. भाग्यवश धनागमन होगा. आपके निर्णय लेने की क्षमता में काफी सुधार आ गया है. सप्ताह के शुरुआत में उलझे हुए आर्थिक मामले सुलझेंगे. रुका हुआ धन वापस मिलेगा. सप्ताह के मध्य में आपके लिए चिंताकारी सृष्टी का सृजन होगा, जिससे मन परेशान रहेगा, अज्ञात भय सताएगा. सप्ताह के अन्त में आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा और शुभता बनी रहेगी. शनि देव को प्रणाम करें और लाल वस्तु का दान करें.
वृश्चिक (Scorpio - 24 Oct - 22 Nov): इस सप्ताह आपको शासन सत्ता पक्ष का सहयोग मिलेगा. राजनीतिक लाभ मिलेगा. कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय की संभावना है. व्यवसायिक सफलता मिलेगी. सप्ताह के शुरुआत में नौकरी में सफलता मिलेगी या नए व्यवसाय की शुरुआत होगी. उच्चाधिकारी आपसे प्रसन्न होंगे. रुका हुआ कार्य चल पड़ेगा. सप्ताह के मध्य में आर्थिक मामले सुलझेंगे. रुका हुआ धन वापस मिलेगा. यात्रा से लाभ होगा. सप्ताह के अंत में अनायास ही मन परेशान रहेगा. सूर्य देव को जल अर्पित करें और किसी जरूरतमंद को सफेद वस्तु का दान करें.
धनु (Sagittarius - 23 Nov - 21 Dec): इस सप्ताह आपकी शारीरिक स्थिति में सुधार होगा. आप शासन सत्ता पक्ष के क्रोध का शिकार हो सकते हैं, राजनीतिक परेशानी दिखाई पड़ रही है. आपके प्रेम एवं व्यापार की स्थिति काफी अच्छी है. सप्ताह की शुरुआत में आपके उलझे हुए आर्थिक मामले सुलझेंगे. आय के नवीन श्रोत बनेंगे. यात्रा में लाभ मिलेगा. सप्ताह के मध्य में आपको व्यवसायिक लाभ होगा. पिता के स्वास्थ में सुधार होगा. सप्ताह के अन्त में संतान की स्थिति ठीक रहेगी. बजरंग बली को प्रणाम करें व केसर का तिलक लगाएं और हरी वस्तु का दान करें.
मकर (Capricorn - 22 Dec - 20 Jan): इस सप्ताह आपकी शारीरिक स्थिति ठीक हो गई है, लेकिन अभी प्रेम एवं व्यापार की स्थिति मध्यम ही रहेगी. सप्ताह के शुरुआत में चोट-चपेट लग सकती है या किसी परेशानी में पड़ सकते हैं. परिस्थितियां प्रतिकूल रहेंगी,बचकर इसे पार करें. सप्ताह के मध्य में जोखिम से उबर जाएंगे. आपका रुका हुआ कार्य चल पड़ेगा. सप्ताह के अन्त में कोर्ट-कचहरी के मामलों में विजय मिलने की संभावना है. शासन सत्ता पक्ष का सहयोग मिलता रहेगा. आप सेउच्चाधिकारी प्रसन्न होंगे. काली जी को प्रणाम करें और सफेद वस्तु पास रखें.
कुंभ (Aquarius - 21 Jan - 19 Feb): इस सप्ताह आपकी शारीरिक स्थिति नरम रहेगी. आप खुद में ऊर्जा की कमी महसूस करेंगे, लेकिन जीवन में शुभता बनी रहेगी और भाग्य साथ देता रहेगा. मधुमेह के रोगी अपने स्वास्थ पर विशेष ध्यान दें. सप्ताह के शुरुआत में जीवन साथी का सानिध्य मिलेगा. रोजी-रोजगार में आप तरक्की करेंगे. सप्ताह का मध्य थोड़ा जोखिम भरा रहेगा, चोट-चपेट लग सकती है या आप किसी परेशानी में पड़ सकते हैं, बचकर पार करें. सप्ताह के अन्त में अच्छी स्थिति बनी रहेगी. सूर्य देव को जल अर्पित करें और ताम्बे की वस्तु का दान करें.
मीन (Pisces - 20 Feb - 20 Mar): इस सप्ताह भाग्यवश कुछ काम बनेंगे. रोजी रोजगार में आप तरक्की करेंगे. आपको सरकारी तंत्र का साथ मिलेगा, जिससे राजनीतिक लाभ मिल सकता है. प्रेम एवं व्यापार की स्थिति काफी अच्छी है. सप्ताह के शुरुआत में शत्रुओं पर विजय मिलेगी. बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलेगा. सप्ताह के मध्य में आप आनन्दमय जीवन व्यतित करेंगे. सप्ताह के अन्त में ध्यान दें, चोट-चपेट लग सकती है या किसी परेशानी में पड़ सकते हैं. समय अनुकूल नहीं है, इसलिए कोई नई शुरुआत ना करें. काली जी को प्रणाम करें और लाल वस्तु अपने पास रखें.
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fc231d8d84e64af87de936230f926c41d907728932e64caaccf5cadf19d926dc | pdf | ( बम्बई), पगियार (केरल), शोलायार (केरल), पम्बा (केरल) तथा बीरसिंहपुर थर्मल विद्युत् केन्द्र (मध्य प्रदेश ) ।
निजी क्षेत्र की मुख्य विद्युत् उत्पादन योजनाएँ हैंः अहमदाबाद इलेक्ट्रिसिटी कं० लि० (बम्बई), टाटा पॉवर सिस्टम (बम्बई), ट्रॉम्बे थर्मल विद्युत् केन्द्र, शोलापुर ( बम्बई), प्रागरा विद्युत् उपलब्धि कं० ( उ० प्रदेश ), बनारस इलेक्ट्रिक लाइट एण्ड पॉवर कं० लि० ( उ० प्रदेश ), यूनाइटेड प्राविन्सेज विद्युत् उपलब्धि कं० ( उ० प्रदेश ) तथा भावनगर विद्युत् कं० लि० ( बम्बई ) ।
नदी घाटी योजनाकार्य
भारत के प्राकृतिक जलमार्ग बहुत कुछ बड़े बेढंगे ढंग से स्थित हैं । सिंचाई के विकास के लिए अन्तिम लक्ष्य १५-२० वर्षों में सिंचित क्षेत्र को अब से दुगुना करने का रखा गया है। प्रथम योजनाकाल में लगभग २.२० करोड़ एकड़ भूमि में सिंचाई की सुविधाओं की व्यवस्था करने के लिए ३०० छोटी तथा बड़ी योजनाओं को कार्यान्वित किए जाने की व्यवस्था की गई थी ।
देश के निम्न बड़े नदी-घाटी योजनाकार्य उल्लेखनीय हैंः भाखड़ा नंगल योजनाकार्य, हीराकुड बाँध योजनाकार्य, राजस्थान नहर योजनाकार्य, दामोदर घाटी योजनाकार्य, तुंगभद्रा योजनाकार्य, कोसी योजनाकार्य, चम्बल योजनाकार्य, नागार्जुनसागर योजनाकार्य, कोयना योजनाकार्य, रिहन्द बाँध योजनाकार्य, भद्रा जलाशय योजनाकार्य, काकरापार योजनाकार्य, मचकुण्ड योजनाकार्य तथा मयूराक्षी योजनाकार्य ।
प्रथम योजनाकाल में बड़े तथा मध्यम योजनाकार्यों से लगभग ३० लाख एकड़ अतिरिक्त भूमि में सिंचाई होने लगी तथा द्वितीय योजनाकाल में 2 करोड़ एकड़ प्रतिरिक्त भूमि की सिंचाई के लिए सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। इन नये योजनाकार्यों से प्रन्ततोगत्वा १.६८ करोड़ एकड़ भूमि की सिंचाई हो सकेगी। प्रथम योजनाकाल में छोटी योजनाओं से १ करोड़ एकड़ भूमि में सिंचाई प्रारम्भ हो जाने तथा द्वितीय योजनाकाल में ऐसी योजनाओं से ६० लाख एकड़ भूमि में सिंचाई प्रारम्भ करने का लक्ष्य निर्धारित किए जाने के फलस्वरूप १६६१ तक देश में कुल ८.३५ करोड़ एकड़ भूमि सींची जाने लगेगी ।
प्रथम योजना के प्रारम्भ में विद्युत् उत्पादन संयन्त्रों की कुल प्रस्थापित क्षमता केवल २३ लाख किलोवाट थी । प्रथम योजनाकाल में इसमें ११ लाख किलोवाट की वृद्धि हुई ।
यह अनुमान लगाया गया है कि अगले १० वर्षों में प्रस्थापित क्षमता में प्रति वर्ष २० प्रतिशत की वृद्धि करने की आवश्यकता होगी। इसका अर्थ यह हुआ कि १६६६ तक के लिए १.५० करोड़ किलोवाट का लक्ष्य रखा जाना चाहिए । तदनुसार, द्वितीय योजनाकाल में प्रस्थापित क्षमता को ६६ किलोवाट तक बढ़ाने का कार्यक्रम निर्धारित किया गया
है । द्वितीय योजनाकाल में कुल मिलाकर ४२ विद्युत् उत्पादन योजनाएँ प्रारम्भ की जाएंगी जिनमें से २३ जलविद्युत् योजनाएँ तथा १६ वाष्पशक्ति योजनाएँ होंगी। इस अवधि में बिजली का प्रति व्यक्ति उपभोग दुगुना हो जाने की प्राशा है ।
राष्ट्रीय योजनाकार्य निर्माण निगम प्राइवेट लिमिटेड
उपलब्ध प्रशिक्षित कर्मचारियों तथा पूरे होने वाले योजनाकार्यों में आवश्यकता से अधिक पाए जाने वाले उपकरणों का पूरा-पूरा उपयोग करने तथा ऐसी राज्य सरकारों को सहायता देने के लिए जिनके पास बड़े योजनाकायों को कार्यान्वित करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, कम्पनी अधिनियम के अधीन ६ जनवरी, १६५७ को 'राष्ट्रीय योजनाकार्य निर्मारण निगम प्राइवेट लिमिटेड' स्थापित किया गया ।
केन्द्रीय सरकार और केरल, जम्मू तथा कश्मीर, बिहार, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान सरकारों ने इसकी हिस्सा-पूंजी में योगदान दिया है। असम तथा पंजाब सरकारों ने भी योजना में भाग लेना स्वीकार कर लिया है ।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना के मुख्य सिंचाई योजनाकार्य हैंः भाखड़ा नंगल (पंजाब तथा राजस्थान), दामोदर घाटी (प० बंगाल तथा बिहार ), हीराकुड (महानदी का मुहाना सहित ) -- प्रथम चरण ( उड़ीसा ) , चम्बल - - प्रथम चरण (मध्य प्रदेश तथा राजस्थान), तुंगभद्रा ( श्रा० प्रदेश तथा मैसूर ), मयूराक्षो ( प० बंगाल ), भद्रा ( मंसूर ), कोसी ( बिहार ), नागार्जुनसागर - प्रथम चरण ( प्रा० प्रदेश ) तथा काकरापार नहर (निचली तापी ) ( बम्बई ) । इन योजनाओं का काम जारी है ।
नयी योजनाओं में तुंगभद्रा उच्चस्तरीय नहर (प्रान्ध्र प्रदेश तथा मंसुर ), उकई ( बम्बई ), तावा ( म० प्रदेश ), पूर्णा ( बम्बई ), वंशधारा ( प्रा० प्रदेश ), नर्मदा ( बम्बई), बनास ( बम्बई), मूला ( बम्बई), गिरना ( बम्बई), खडकवासला ( बम्बई), नवकट्टलई ( मद्रास ), सलन्दी ( उड़ीसा ), गुड़गाँव नहर ( पंजाब ), कंसवटी ( प० बंगाल ), चन्द्रकेशर ( म० प्रदेश ), काबिनी ( मैसूर ), बनास ( राजस्थान ), भादर (बम्बई ), भुततन्केतु (केरल), लिद्दर नहर (जम्मू तथा कश्मीर), बरना ( म० प्रदेश ), लक्षमणतीर्थ ( मैसूर ), ऊपरी केरी ( म० प्रदेश ) तथा विदुर (पाण्डिचेरी तथा मद्रास) योजनाएँ आदि आती हैं ।
चौबीसवाँ अध्याय उद्योग
१६५४ में हुई 'भारतीय उद्योग गरगना के अनुसार भारत में ७,०६७ पंजीकृत कारखाने थे। इनमें से ६,६३७ कारखानों में कुल ७ अर्ब ८७ करोड़ ८० लाख रुपये की पूँजी लगी हुई थी । इन कारखानों में काम करने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या १७,१४,७७० थी जिनमें से १५,३३,६८६ व्यक्ति मजदूर थे। इन उद्योगों में कुल १२.८८ अर्ब रुपये के मूल्य का उत्पादन हुआ । वेतन तथा मजदूरी के रूप में कारखाना-कर्मचारियों को २ अर्ब १८ करोड़ ६० लाख रुपये दिए गए।
एक अन्य प्राक्कलन के अनुसार १६५५ में ३१८ ज्वाइण्ट स्टाक कम्पनियों को ४१. ८१ करोड़ रुपये का कुल लाभ हुआ । १६३६ को आधार वर्ष मानते हुए सभी उद्योगों के लिए १६५५ में प्रौद्योगिक लाभ का सूचनांक ३३४.३ था । इसी वर्ष कुछ महत्वपूर्ण उद्योगों के औद्योगिक लाभ के सूचनांक थे : कपास ५३५.०; कागज ७४७.८४ कोयला २००.०; चाय १८२.१; चीनी ४१३.५; पटसन २७७.५; लोहा तथा इस्पात ३०७.६ और सीमेण्ट ४०६.७ । १६५६ में श्रौद्योगिक लाभ का संशोधित सूचनांक ( आधार वर्ष १६५० १०० ) १४६.१ था । कुछ उद्योगों के सूचनांक ये थे इंजीनियरिंग ३६८.२; कपास १३३.१; कागज २०६.०; कोयला १०३.२; चाय ११४.५; चीनी १७८.७; पटसन ५५.३; लोहा तथा इस्पात १२०.८ र सीमेण्ट १२८.२॥
औद्योगिक नीति
स्वतन्त्र भारत की प्रौद्योगिक नीति की घोषरणा सर्वप्रथम १६४८ में की गई । इस घोषणा में एक ऐसी मिलीजुली अर्थव्यवस्था का उद्देश्य रखा गया जिसमें उद्योगों के प्रायोजित विकास का तथा राष्ट्र के हित में उनके नियमन का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व सरकार पर हो । इस घोषणा में जबकि सरकार के इस अधिकार की पुनराभिव्यक्ति की गई कि वह सार्वजनिक हित में किसी भी प्रौद्योगिक संस्था को अपने अधिकार में ले सकती है, इसके द्वारा निजी उद्यमों के लिए भी यथोचित क्षेत्र सुरक्षित कर दिया गया ।
देश में समाजवादी समाज की स्थापना करने का उद्देश्य स्वीकार किए जाने के फलस्वरूप आवश्यक हुए श्रौद्योगिक नीति सम्बन्धी दूसरे वक्तव्य को घोषणा ३० अप्रैल, १६५६ को की गई। इसके अनुसार सरकार पर उद्योगों के भावी विकास का उत्तरदायित्व पहले की अपेक्षा प्रब अधिक प्रा गया ।
उद्योगों का नियमन
१६४८ में घोषित श्रौद्योगिक नीति के अनुसार संविधान में संशोधन किया गया और उद्योग विकास तथा नियमन) अधिनियम, १६५२' लागू हुआ । इस अधिनियम के अनुसार सभी वर्तमान तथा नयी श्रौद्योगिक संस्थाओं के लिए लाइसेंस लेना श्रावश्यक कर दिया गया। सरकार को किसी भी प्रौद्योगिक संस्था के कार्य संचालन की जाँचपड़ताल करने तथा प्रावश्यकतानुसार निर्देश देने का अधिकार प्राप्त हो गया । किसी भी अव्यवस्थित संस्था का प्रबन्ध अपने अधीन कर लेने का अधिकार भी सरकार को दे दिया गया । उद्योगों के विकास तथा नियमन सम्बन्धी मामलों पर सरकार को परामर्श देने के लिए एक 'केन्द्रीय परामर्श परिषद्' और भिन्न-भिन्न उद्योगों के लिए अलग-अलग विकास परिषदें स्थापित की जानी थी।
इन् अधिकारों के द्वारा सरकार का उद्देश्य देश के संसाधनों का उचित उपयोग कराना, बड़े तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का सन्तुलित विकास कराना तथा विभिन्न उद्योगों का प्रादेशिक रूप से उचित विभाजन कराना है। इस अधिनियम के अन्तर्गत १६२ उद्योग प्राते है । 'केन्द्रीय उद्योग परामर्श परिषद्' के अतिरिक्त अन्य कुछ उद्योगों के लिए विकास परिषदे स्थापित की जा चुकी हैं। जनवरी- सितम्बर, १६५८ में इस अधिनियम के अन्तर्गत ५५४ नये उद्योगों को लाइसेंस दिए जाने के लिए स्वीकृति दो गई ।
उन महत्वपूर्ण उद्योगों के विकास के सम्बन्ध में, जिनके लिए निजी क्षेत्र में पर्याप्त पूँजी प्राप्त नहीं हो रही है, सरकार ने विशेष शर्तों पर ऋण देकर अथवा पूँजी लगा कर उनको वित्तीय सहायता दी ।
एक उत्पादन क्षमता प्रतिनिधिमण्डल की सिफारिश के अनुसार, जो अक्तूबरनवम्बर, १६५६ में जापान गया था, स्वतन्त्र संस्था के रूप में फरवरी, १६५८ में एक 'राष्ट्रीय उत्पादन क्षमता परिषद्' स्थापित की गई जिसमें सरकार, मिलमालिकों, मज़दूरों आदि के प्रतिनिधि है । इस परिषद् का उद्देश्य देश में उत्पादन बढ़ाने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देना है ।
औद्योगिक वित्त
जुलाई, १६४८ में स्थापित 'औद्योगिक वित्त निगम दीर्घकालीन ऋरण तथा ग्रिम धन के रूप में औद्योगिक संस्थानों को वित्तीय सहायता देता आ रहा है। मार्च, १६५८ तक निगम ने ५७.४२ करोड़ रुपये के ऋणों के लिए स्वीकृति दो । द्वितीय योजना में निगम को केन्द्रीय सरकार से १३.५० करोड़ रुपये प्राप्त होने की व्यवस्था की गई थी । अब यह राशि बढ़ाकर २२.२५ करोड़ रुपये कर दी गई है ।
'औद्योगिक वित्त निगम (संशोधन) अधिनियम, १६५७ का उद्देश्य निगम की संसाधन सम्बन्धी स्थिति को सुदृढ़ करना तथा उसके कार्यक्षेत्र का विस्तार करना है ।
अब उन उद्योगों को (नये उद्योग सहित ) जिन्हें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की दृष्टि से प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, निगम से ऋरण प्राप्त हो सकता है बशर्ते कि केन्द्रीय सरकार प्रथवा कोई राज्य सरकार अथवा एक अनुसूचित बैंक अथवा कोई राज्यीय सहकारी बैंक कुछ प्रत्याभूति (गारण्टी) दे । 'राज्यीय वित्त निगम' मध्यम तथा छोटे पैमाने के उन उद्योगों को वित्तीय सहायता देते हैं जो अखिल भारतीय निगम के क्षेत्र में नहीं आते ।
निजी क्षेत्र के प्रौद्योगिक उद्यमों की सहायता के लिए जनवरी, १९५५ में स्थापित 'भारतीय प्रौद्योगिक ऋरण तथा विनियोग निगम ने १६५७ के अन्त तक कई उद्योगों के लिए ११.६५ करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता को स्वीकृति दी ।
योजना में सम्मिलित उद्योगों के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए श्रौद्योगिक संस्थानों को बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों के आधार पर फिर से ऋण लेने की सुविधाएँ देने के उद्देश्य से जून, १६५८ में 'उद्योग पुर्नवत्त निगम प्राइवेट लिमिटेड' स्थापित किया गया। ये सुविधाएँ केवल उन्हीं प्रौद्योगिक संस्थानों को प्राप्त होंगी जिनकी चुकता पूँजी तथा जिनका सुरक्षित धन २.५० करोड़ से अधिक नहीं है ।
१६५४ में स्थापित 'राष्ट्रीय उद्योग विकास निगम' सूतोवस्त्र तथा पटसन उद्योगों के प्राधुनिकीकरण तथा पुनस्संस्थापन के लिए सरकार की ओर से विशेष ऋरण देने का भी कार्य करता है । इस निगम को इस कार्य के लिए अब तक २.२६ करोड़ रुपये प्राप्त हो चुके हैं ।
सरकार आवश्यक कच्चे माल तथा वस्तुओं के प्रायात के लिए सुविधाएँ देकर, कर सम्बन्धी रियायतें देकर तथा नये उद्योगों को संरक्षण प्रदान करके निजी क्षेत्र को सहायता करती है । जनवरी, १६५२ में स्थापित विहित तटकर प्रयोग संरक्षण प्राप्त उद्योगों की प्रगति की समीक्षा करता रहता है और नये उद्योगों को संरक्षरण प्रदान करने के मामलों की जाँच करता है । औद्योगिक दृष्टि से विकसित देशों से प्राविधिक सहायता प्राप्त करने के लिए भी प्रयास किए गए हैं ।
विदेशी पूँजी
दूत श्रौद्योगिक विकास के लिए पूँजीगत संसाधनों की कमी की पूर्ति करने के उद्देश्य से सरकार ने उन उद्योगों के लिए विदेशी सहायता का स्वागत करने का निश्चय किया है जिनमें किसी प्रमुक वस्तु के उत्पादन की पर्याप्त क्षमता नहीं है । विदेशी पूँजी सम्बन्धी नीति, अप्रैल, १६४८ के औद्योगिक नीति विषयक प्रस्ताव तथा १६४६ में संविधान सभा में प्रधानमन्त्री द्वारा दिए गए वक्तव्य में स्पष्ट कर दी गई थी। इसके अनुसार :
(१) विदेशी पूंजी का उपयोग तथा विदेशी उद्यमों का नियमन राष्ट्र के हित को ध्यान में रखते हुए सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि केवल कुछ अपवादों को छोड़कर स्वामित्व तथा प्रभावकारी नियन्त्ररण भारतीयों के ही हाथों में रहे.
(२) सामान्य प्रौद्योगिक नीति लागू किए जाने के सम्बन्ध में विदेशी तथा भारतीय उद्यमों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं वरता जाएगा, |
a97509a2b2c7696eb52a53336b75a39df225a8036649db4afda8015ad5257405 | pdf | करता है उसे एवभूत नय कहते है। इस नय की दृष्टि से पदो का समास नही हो सकता, क्योकि भिन्न भिन्न काल वर्ती और भिन्न अर्थवाले शब्दों में एक पने का विरोध है। इसी प्रकार शब्दों में परस्पर सापेक्षता भी नही है । क्योकि, वर्ण अर्थ, सख्या और कालादिकके भेद सेभेद को प्राप्त हुए पदोंके दूसरे पदों की अपेक्षा नहीं बन सकती है । जबकि एक पद दूसरे पद की अपेक्षा नही रखता है तो इस नय की दृष्टि मे वाक्य भी नहीं बन सकता है यह बात सिद्ध हो जाती है ।
२. क पा ।पु १।१ २४२।१ "एवम्भवनादेवभूत । अस्मिन्नये न पदानॉसमासोऽस्ति, स्वरूपत कालभेदेन च भिन्नानामेकत्वविरोधात् । न पादानामेककालवृत्ति समास, क्रमोत्पनाना क्षणक्षयिणा तदनुपपत्ते । नेकार्थे वृत्ति समास, भिन्नपदानामेकार्थे वृत्त्यनुपपत्ते । न वर्णसमासोत्यस्ति, तत्रापि पदसमासोक्तदोषप्रसगात् । तत् एक एववर्ण एकार्थ वाचक इति पदगतर्णमात्रार्थ एकथं इत्येवम्भूताभिप्रायवान् एवम्भूतनय ।"
अर्थ -- 'एवम्भूतात्' अर्थात जिस शब्द का जिस क्रियारूप अर्थ है, तद्रूप क्रिया से परिणत समय में ही उस शब्द का प्रयोग करना युक्त है, अन्य समयो मे नही, ऐसा जिस नय का अभिप्राय है उसे एवभूत कहते है । इस नय मे पदो का समास नही होता है, क्योकि जो पद स्वरूप और काल की अपेक्षा भिन्न है, उन्हें एक मानने में विरोध आता है । यदि कहा जाहे कि पदो मे एककालवृत्तिरूप समास पाया जाता है, सो कहना भी ठीक नहीं है, क्योकि पद ऋमसे से ही उत्पन्न होते है और वे जिस क्षण में उत्पन्न होते है उसी क्षणमे विनष्ट हो जाते है, इसलिये अनेक पदो का एक१५ शब्दादि तीन नय
११ एवभूत नय के कारण व प्रयोजन
कालमे रहना नही बन सकता है, पदो मे एकार्थ वृत्ति समास पाया जाता है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योकि भिन्न पदो का एक अर्थ मे रहना बन नही सकता है ।
तथा इस नय मे जिसप्रकार पदो का समास नहीं बन सकता है, उसी प्रकार घ, ट आदि अनेक वर्गों का भी समास नहीं बन सकता है, क्योकि, अनेक पदो के समास मानने में जो दोष कह आये है वे वे सब दोष अनेक बर्णो के समास मानने में भी प्राप्त होते है । इसलिये एवभूत नय की दृष्टि में एक ही वर्ण एक अर्थ का वाचक है । अत घट आदि पदो में रहने वाले घ्, ट्, और अ, अ, आदि वर्णमात्र अर्थ ही एकार्थ है, इसप्रकारके अभिप्राय वाला एवभूत नय समझना चाहिये ।
एक समय में देखने पर वस्तु वैसी ही दिखाई देती है इसलिये ११ एवभूत नय उसका नाम भी वैसा ही होना चाहिये । समय बदल के कारण व जाने पर वस्तु भी बदल जाती है । अत समय बदल जाने प्रयोजन पर उसका वाचक शब्द भी अवश्य वदला जाना चाहिये । जो वस्तु इस समय है वह अन्य समय नहीं रहती, यायो कहिये कि इस समयकी वस्तु वही है अन्य नही, इसीलिये उसके वाचक एक शब्द का अर्थ भी वही है अन्य नही । और इस प्रकार एक अर्थ का वाचक शब्द और एक शब्द का वाच्य अर्थ एक ही होना चाहिये अनेक नही । वाच्य वाचक सम्बन्ध मे क्षण प्रतिक्षण दीखने वाला यह एकत्व ही इस नय का कारण है ।
यदि एक शब्द के अनेक अर्थ माने जायेगे तो उस शब्द को सुन कर श्रोता के ज्ञान में किसी निश्चित अर्थकी सिद्धि न हो सकेगी । इसी प्रकार एक ही पदार्थ के लिए भी यदि भिन्न भिन्न समयो में एक ही शवद का प्रयोग करेगे तो भी श्रोता को भ्रम उत्पन्न हुए बिना नहीं रह
सकता । यदृच्छा से कभी इन्द्र को 'इन्द्र' और 'पुरन्दर' कह देने से भी श्रोता को उस समय वह शब्द सुन कर भ्रम हो सकता है कि सम्भवत इस समय इन्द्र के सम्बन्ध में कहा जा रहा है, वह नगर विदारण करता हुआ फिर रहा है, भले ही उस समय वह भगवान की पूजा ही कर रहा हो । इस प्रकार के भ्रम की सम्भावना को दूर करके समभिरूढ के विषय को और भी सूक्ष्म व शुद्ध बनादेना इस नय का प्रयोजन है ।
१२ तीनो का
अब इन तीनो के विषय मे उठने वाली कुछ शकाओ का सामाधान कर लेना योग्य है ।
१ प्रश्न - - ऋजुसूत्र नय व शब्द नय मे क्या अन्तर है ?
उत्तर - इन दोनो मे सर्वथा भेद हो ऐसा नहीं है, किन्ही अपेक्षाऔ से इनमे अभेद भी है और किन्ही अपेक्षाओं से भेद भी ।
( i ) ऋजुसूत्र नय का विषय भी एक समयवर्ती पर्याय है ओर शब्द नय का विषय भी । वहा भी एकत्व का ग्रहण है और यहा भी ।
( 11 ) ऋजुसूत्र नय भी किसी वस्तु को जिस किस नाम से कह देता है और शब्द नय भी । दोनो मे वाचक शब्दो सम्बन्धी विवेक का अभाव है ।
( i11 ) ऋजुसूत्र भी अनेको अन्वर्थक व काल्पनिक शब्दो को एकार्थ वाची स्वीकार करता है और शब्द नय भी ।
इस प्रकार तो इन दोनो मे अभेद है, अब भेद देखिये ।
१२ तीनो का समन्वय
( 1 ) ऋजुसूत्र का विषय अर्थ व शब्द दोनो पर्याय है, परन्तु शब्द नय का विषय केवल शब्द पर्याय है, अतः उसकी अपेक्षा स्वल्प विषय वाला है ।
( 11 ) ऋजुसूत्र नय अर्थ प्रधान है और शब्द नय शब्द प्रधान है अर्थात ऋजुसूत्र तो प्रमुखतः पर्याय को ही सूक्ष्म दृष्टि से जानने में प्रवृत होता है और शब्द नय उस ही पर्याय का सज्ञा करण करने मे । इसका यह अर्थ न समझना कि ऋजुसूत्र नय बिल्कुल गूगा है और शब्द नय अन्धा । यहां केवल प्रमुखता की बात है ।
(iii) ऋजुसूत्र भी अपने विषय भूत पर्याय का प्रतिपादन करता अवश्य है पर शब्द गम्य व वाक्य गम्य दोपो की पर्वाह
करता हुआ । शब्द नय भी उसके विषय को जानकर या ग्रहण करके उसका प्रतिपादन करता है, पर शब्द गम्य दोपो को दूर करके । ऋजुसूत्र तो लौकिक व्याकरण के नियमो का अनुसरण करता हुआ उसके द्वारा स्त्रीकृत सर्व अपवादो को स्वीकार कर लेता है, पर शब्द नय व्यवहार के लोप की परवाह न करता हुआ किसी प्रकार के भी शब्द गम्य अपवाद को स्वीकार नहीं करता । अर्थात ऋजुसूत्र के वक्तव्य मे भिन्न लिङ्ग व सख्या आदि के वाचक पर्याय वाची शब्दो का अर्थ एक समझा जा सकता है पर शब्द नय के वक्तत्व्य में ऐसा नही हो सकता । वह समान लिग आदि के वाचक पर्याय वाची शब्दो मे ही एकार्थता स्वीकार करता है पर भिन्न लिगादि वालों मे नही ।
( iv) अत विषय भूत पदार्थ की अपेक्षा तो इन दोनो मे कोई अन्तर नही, वह भी पर्याय को विषय करता है और यह
भी । शब्द की अपेक्षा शब्द नय अपना एक स्वतंत्र विषय रखता है, जिसके साथ द्रव्यार्थिक या पर्यायिार्थिक किसी भी अन्य नय का कोई प्रयोजन नही ।
२ प्रश्न - शब्द नय और समभिरूढ नय मे क्या अन्तर है ?
उत्तर - विषय की अपेक्षा इन में कोई भेद नही पर शब्द की अपेक्षा भेद अवश्य है ।
( i ) शब्द नय का विषय भी एक अभेद शब्द पर्याय है और इसका विषय भी वही शब्द पर्याय है ।
( ii ) वह भी अर्थ प्रधान नहीं है और यह भी अर्थ प्रधान नही है ।
(iii ) वह भी एकत्व का ग्रहण करके कार्य कारण आदि भावो को स्वीकार नहीं करता, और यह भी नहीं करता ।
यह तो इन दोनो मे अभेद है अब भेद सुनिये ।
( i ) शब्द नय तो समान लिग आदि के वाचक शब्दो मे व्युत्पत्ति अर्थ की अपेक्षा भेद किये बिना उन्हे सर्वथा एकार्थ वाचक स्वीकार करता है, परन्तु समभिरूढ नय उनमे व्युत्पत्ति अर्थ की अपेक्षा अर्थ भेद मानता है ।
(ii) यद्यपि दोनो ही नय एक पदार्थ को अनेको नामो से पुकारते है अर्थात एक अर्थ के अनेक वाचक शब्द स्वीकार करते है परन्तु इनकी स्वीकृति के क्षेत्र में महान अन्तर है । शब्द नय तो उन्हे वास्तव मे एकार्थवाचक मानता है पर समभिरूढ़ नय केवल रूढ़ि वश ।
(iii) शब्द नय मे एक शब्द के अनेक वाच्य अर्थ होने सम्भव है पर समभिरूढ नय में एक शब्द का कोई एक रूढ या प्रसिद्ध अर्थ ही ग्राह्य है, इसलिये यहा एक शब्द का एक ही अर्थ होता है, जैसे 'गो' शब्द का अर्थ यहा पशु विशेष ही है, और शब्द नय मे इसी का अर्थ वाणी व पृथिवी भी स्वीकृत है ।
( iv) ऋजुसूत्र के विषय में लिङ्गादि के विषय भेद से भेद करने वाला शब्द नय है और शब्द नय से स्वीकृत समान लिङ्ग कारकादि वचन वाले उन शब्दो मे व्युत्पत्ति भेद से अर्थ भेद करने वाला समभिरूढ है । जैस परम ऐश्वर्य का भोग करने के कारण इसे इन्द्र कहते है केवल नाम मात्र से नही । यद्यपि शब्द नय भी इसी शब्द का प्रयोग देवराज के लिए करता है पर उपरोक्त व्युत्पत्ति के भेद रखे विना नाम निक्षेप मात्र से या रूढ़ि मात्र से कर देता है, परन्तु समभिरूढ नय इसमें निरूक्ति गम्य विवेक जागृत करके इसे सार्थक बना देता है, काल्पनिक रहने नही देता । शब्द भले बदले न बदले पर भाव आवश्य बदल जाता है ।
३ प्रश्न - ऋजु सूत्र नय व समभिरूढ नय मे क्या अन्तर है ?
उत्तर - विषय की अपेक्षा कोई अन्तर नही क्योकि उसकी विषय भूत व्यञ्जन पर्याय ही इसका वाच्य है । अन्तर केवल इतना है कि ऋजुसूत्र अर्थ प्रधान है और समभिरूढ नय शब्द प्रधान । अर्थात वह तो अपने विषय भूत पर्याय का सज्ञाकरण करते समय सार्थक व अनर्थक पने की अपेक्षा से रहित प्रवृति करता है, पर यह नय उसको केवल अन्वर्थक ही नाम देता है। |
e305050ab4253d280a78693192fac36d43a3f335 | web | कांच की आवाज़ सुनकर सभी हड़बड़ा गए और सभी का ध्यान कायरा पर चला गया । गनीमत ये थी , कि म्यूजिक थोड़ा लाउड था , इस लिए उसकी आवाज सिर्फ वहां खड़े लोगों के कानो तक ही पहुंची , दूर डांस कर रहे लोगों , मिस्टर मेहरा और मिसेज मेहरा तक ये आवाज़ नहीं पहुंच पाई ।
आरव और कायरा अपनी सीट से उठ गए और आरव गुस्से से सौम्या की तरफ बढ़ा और उसने कहा ।
आरव - व्हाट इज दिस सौम्या...???? मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी । लग जाती अभी कायरा या किसी और को तो...., क्या कर लेती फिर तुम..???
सौम्या बस नजरें झुकाए खड़ी रही और राहुल उसके पास आकर बोला, जो कि वहीं पास में खड़ा था और कांच की आवाज़ सुनकर इन लोगों के पास आ गया था ।
राहुल - कामडाउन आरव...., सौम्या ने ये सब जानबूझकर नहीं किया होगा और अगर किया भी है , तो उसके पीछे जरूर कोई रीजन होगा । तू खुद को शांत रख ......।
तब तक नील , शिवानी और आदित्य भी वहां आ गए । अनिकेत दूर से ही ये सारा तमाशा देख रहा था । राहुल की बात पर आरव ने कहा ।
आरव - मुझे ये सब नहीं पता राहुल , लेकिन अगर किसी को भी वो कांच लग जाता , तो शायद आज सौम्या और मेरी बात खत्म हो जाती , हमेशा - हमेशा के लिए ।
कायरा ( परेशान होकर ) - प्लीज आरव...., आप बिना बात के इतना इशू क्रिएट कर रहे हैं । सब ठीक है । गलती से गिर गया ग्लास , बस...., इससे ज्यादा और कुछ नहीं हुआ है ....।
आरव गुस्से से उसकी ओर पलटा और कुछ कहने ही वाला था , कि मिशा तुरंत बोली ।
मिशा - कैसे कुछ नहीं हुआ है कायरा...!!! मेरी ड्रेस का नुकसान हो गया , अगर उस ग्लास का कांच मुझे लग जाता तो ...???
मिशा की बात सुनकर सभी ने मिशा की तरफ देखा और सौम्या जलती हुई नजरों से उसे देखने लगी । मिशा आरव के सामने आकर ड्रामा करते हुए बोली ।
मिशा - देखो आरव...., इसकी गलती की वजह से मेरी सारी ड्रेस खराब हो गई , अब मैं क्या करूं ..., कैसे घर जाऊंगी और ऐसे मैं यहां भी नहीं रुक सकती ।
सौम्या ( तुरंत बोली ) - ये तुम्हारे फ्रेंड का घर है न...!!!! बेस्ट फ्रेंड का...!!! तो क्यों इतना ड्रामा कर रही हो , ईजिली तुम तो यहां रुक भी सकती हो और चेंज भी कर सकती हो...!!!!
आरव ( गुस्से से ) - सौम्या.....!!!!! से सॉरी टू हर ....।
सौम्या - नो....., नेवर ।
आरव - सौम्या...., तुम ऐसा क्यों कर रही हो ..???
मिशा ( बीच में ही ) - हां..., सौम्या ...!! क्यों कर रही हो तुम ऐसा..????
इस बात पर सौम्या उसके थोड़ा नजदीक आई और उसे गुस्से से देखते हुए धीरे से बोली ।
सौम्या - अपना ये ढोंग बंद कर दो मिशा , वरना अभी तो सिर्फ जूस गिरा है तुम्हारे ऊपर , अगली बार पूरी कांच की बॉटल तुम्हारे सिर पर फोड़ दूंगी ।
मिशा ( गुस्से से ) - यू....!!!?
सौम्या ( उसे टोकते हुए ) - अभी जो भी किया है तुमने , अगर वो सब मैंने यहां उपस्थित सारे लोगों को बता दिया , तो तुम्हारा क्या होगा सोचा है..????
मिशा - तुम्हारी बातों पर यकीन कौन करेगा..???
सौम्या - सीसीटीवी फुटेज नाम की चीज आजकल बहुत प्रचलन में हैं , न हो ट्रस्ट तो नज़र उठाकर देख लो इस वेन्यू की सारी दीवारों और खम्बो में , साथ में वीडियो शूटिंग भी हो रही है । रीविल करवाऊं सारी चीजें, तुम्हारे खिलाफ...????
सौम्या की बात सुनकर मिशा शांत पड़ गई और अब वह गुस्से से दांत भींचने लगी । आरव ने उन्हें बातें करते देखा , तो कहा ।
आरव - हो गई तुम लोगों की बातें..??? सौम्या ...!! से सॉरी टू हर , क्विकली ।
आरव की बात पर सौम्या ने मिशा की तरफ देखा , तो वह तुरंत बोली ।
मिशा - फॉरगेट दिस आरव , आई एम ओके । जरूरत नहीं है उसे सॉरी कहने की ।
आरव ( हैरानी से ) - लेकिन अभी तो तुम खुद सवाल कर रही थी उससे..???
मिशा - जाने दो न आरव , जो हुआ उसे सौम्या की गलती समझ कर माफ कर देते हैं इसे और भूल जाते हैं । बेवजह पार्टी का माहौल खराब हो रहा है , फॉरगेट इट .....।
आरव ने अब कुछ नहीं कहा और सभी अब पार्टी इंजॉय करने लगे । सारे दोस्त वहां से जाने लगे , और साथ में कायरा भी आरव का मूड ठीक करने के लिए वहां से उसे ले जाने लगी , और वह मिशा के सामने से निकली , कि तभी मिशा ने उसके सामने आते ही उसकी साड़ी पर अपना पैर रख दिया और अगले ही पल कायरा की साड़ी कमर से थोड़ा खुल गई । कायरा रुक गई और उसने अपनी कमर की साड़ी पकड़ ली । मिशा तुरंत शरारती मुस्कान लिए वहां से चली गई और दूर से मिशा की हरकतें देख रहा अनिकेत भी मुस्कुरा दिया । कायरा के रुकते ही आरव रुक गया और उसने तुरंत कायरा से कहा ।
आरव - क्या हुआ कायरा..??? तुम रुक क्यों गई ..??
कायरा परेशान सी नजरें जमीन में गड़ाए खड़ी रही । क्या कहे आरव से , क्या न कहे..., उसे समझ नहीं आ रहा था । उसे बहुत ज्यादा बेज्जती महसूस हो रही थी, वह बस साड़ी के पल्लू से अपनी कमर छुपाए खड़ी थी । आरव की बात सुनकर बाकी के दोस्त भी रुक गए । आरव कायरा के पास आया और उसे परेशान सा देखा , तो बोला ।
आरव - क्या हुआ कायरा..??? तुम इतनी परेशान क्यों हो ...???? जवाब दो....!!!
कायरा ( नजरें जमीन में गड़ाए अटक - अटक कर बोली ) - आरव वो..., वो....!!!
आरव - वो ....., वो .......क्या कर रही हो , साफ - साफ बताओ न ।
कायरा ( अपनी नजरें भींच कर दबी हुई आवाज़ में बोली ) - मेरी साड़ी ......।
आगे वह बोल ही नहीं पाई । और आरव ने उसकी तरफ ध्यान से देखा , तो उसे माजरा समझ में आया । उसने तुरंत अपना पहना हुआ ब्लेजर उतारा और कायरा के ऊपर डाल दिया , जो कि उसकी कमर तक आया और उसकी कमर ब्लेजर के कारण ढक गई । सारे दोस्त भी माजरा समझ गए थे । अब आगे क्या होने वाला है , उसका अंदाजा सारे दोस्तों को हो चुका था । सभी ने एक दूसरे की तरफ देखा , और आखों ही आंखों में कुछ इशारा किया । आरव ने पलटकर सारे दोस्तों की तरफ देखा और फिर सौम्या और शिवानी को कायरा को ले जाने का इशारा किया । तो सौम्या ने तुरंत आदित्य से रुआसी होने का नाटक करते हुए कहा ।
सौम्या - आजके तमाशे के बाद , मेरा यहां रुकना ठीक नहीं हैं। प्लीज मुझे घर छोड़ दो ।
आदित्य - ठीक है , चलो .....।
दोनों बाकी दोस्तों को इशारा करते हुए हॉल से बाहर चले गए । आरव ने शिवानी की तरफ देखा , तो वह तुरंत हड़बड़ाते हुए बोली ।
शिवानी ( नील से ) - नील...., मुझे भी घर छोड़ दो , आते वक्त मौसम कुछ ठीक नहीं लग रहा था । कहीं अगर पानी चालू हो गया , तो मेरा घर पहुंचना मुश्किल हो जायेगा । तुम्हें तो पता है , कितना दूर पड़ता है इस वेन्यू से मेरा घर ।
नील ने बेचारगी से आरव की तरफ देखा , तो उसने उसे जाने का इशारा किया । उनके जाते ही राहुल भी नजरें बचा कर चला गया । ये सारे दोस्तों का प्लान था , ताकि आगे जो उन्होंने सोचा है, वो हो सके । इसकी वजह से आदित्य को अलग से दिमाग लगाने की भी जरूरत नहीं होगी ।
आरव अब परेशान हो गया । और कोई उसकी पहचान का था नहीं । मिशा पहले ही चली गई थी और मिसेज मेहरा से हेल्प लेने में उसे संकोच हो रहा था । कायरा को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था । आरव ने वहां के एक वेटर से एक रूम के बारे में पूछा , ताकि कायरा वहां अपनी साड़ी ठीक कर सके । उसने वही रूम सजेस्ट किया , जो मिशा और अनिकेत ने डिसाइड किया था । आरव कायरा को लेकर उस ओर बढ़ गया । कायरा धीरे - धीरे अपनी साड़ी संभाले आरव के साथ चल दी ।
इधर सारे दोस्त पार्किंग एरिया में आकर एक जगह जमा हो गए और सभी हंसने लगे । ये सोचकर कि उन्हें अब ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी । दोनों अकेले होंगे और सौम्या शिवानी जानती थी , कि कायरा को साड़ी पहननी नहीं आती , इस लिए उन्हें उम्मीद थी कि दोनों साथ होंगे तो शायद अपने दिल की बात कह दें । सभी शांत हुए , फिर सबने सौम्या से ग्लास वाली बात पूंछी, तो उसने बताया ।
सौम्या - बहुत देर तक तुम चारों मुझे पार्टी में कहीं नज़र नहीं आए, तो मैं तुम लोगों को पार्टी हॉल में सब जगह ढूंढने लगी । जब मैं तुम लोगों को ढूंढने के लिए उस ओर गई , तब..........।
जब मिशा ऑरेंज जूस में कुछ मिला रही थी , उसी वक्त सौम्या वहां पहुंची । उसकी नजर जब मिशा पर गई , और उसने ऑरेंज जूस में मिशा को कुछ मिलाते देखा , तो उसके कदम ठिठक गए । उसके दिमाग में ये चलने लगा , कि " ये क्या मिला रही है और किसके लिए ...???? " , तभी जूस काउंटर का आदमी , वो जूस मिशा से ले गया और उसे ले जाकर कायरा और आरव के सामने रख दिया । ये देखकर सौम्या को आभास हुआ , कि हो न हो ये सब कायरा के लिए किया गया है । तभी कायरा द्वारा ग्लास को अपने होठों के करीब लाते देख, सौम्या सहम गई । उसने तुरंत फुर्ती दिखाई और बिना सोचे - समझे ग्लास झटक दिया , जिससे ग्लास नीचे गिरकर टूट गया । और कायरा जूस नहीं पी पाई ।
जब सौम्या कायरा की तरफ भागी , तब उसे मिशा ने देख लिया । उसे इस तरह हड़बड़ी में कायरा की ओर बढ़ते देख मिशा समझ गई थी , कि सौम्या जान गई है कि उसने कायरा के जूस में कुछ मिलाया है । वह भी तुरंत इन तीनो के पास गई , और जैसे ही वह वहां पहुंचकर खड़ी हुई वैसे ही सौम्या के झटके हुए ग्लास का जूस मिशा की ड्रेस पर गिर गया और ग्लास उनसे दूर जाकर गिरा ।
सौम्या - यही वजह थी कि आरव मुझे ब्लेम कर रहा था , लेकिन उसे असलियत तो पता ही नहीं थी ।
आदित्य ( सौम्या को साइड हग करके बोला ) - आज तुमने बहुत कुछ बुरा होने से बचा लिया । कायरा की जान बचा ली तुमने , थैंक्स सौम्या ।
राहुल - हां सौम्या...!!!! पता नहीं क्या मिलाया था मिशा ने उसमें और क्यों , लेकिन तुमने उसे बचा लिया ।
शिवानी - आरव गुस्से में था और सच्चाई उसे दिखी नहीं , इस लिए वो भड़क गया । वरना वो ऐसा नहीं है, उसे जो दिखा वह उसने कह दिया ।
नील - छोड़ो ये सारी बातें और ये ध्यान रखो , कि सौम्या ने आज बहुत अच्छा काम किया है । चलो इसी बात पर आज ट्रीट हो जाए ।
सौम्या - ऐसा भी कोई खास काम नहीं किया है मैंने और ट्रीट तो मैं ऐसे भी दे सकती हूं , क्या खाओगे बस वो बता दो । लेकिन आरव और कायरा अंदर अकेले हैं , उन्हें छोड़ कर हम कैसे ट्रीट पर जा सकते हैं ।
नील - डोंट वरी , दोनों बच्चे नहीं है और मुझे लगता है कि दोनों को अभी टाइम लगेगा । और हम यहीं कहीं आस पास ही चलेंगे , जिससे जल्दी आ सकें ।
राहुल - हां ये सही रहेगा । लेकिन हम सब डिनर तो कर चुके हैं , अंदर पार्टी में , तो अब क्या खायेंगे..???
शिवानी ( अपने होठों पर जीभ फिराते हुए ) - आइस क्रीम ...!!!!
आदित्य - लेकिन ट्रीट मेरी तरफ से होगी ।
सौम्या - भला वो क्यों..???
आदित्य ( प्यार से सौम्या की तरफ देखकर ) - आखिर तुमने इतना बड़ा कारनामा किया है आज , वो भी मिशा से बिना माफी मांगे । और तुम हो मेरी , तो तुम्हारे हिस्से की ट्रीट देना तो बनाता है न .....।
आदित्य की बात सुनकर सौम्या ने शर्माकर नजरें नीची कर लीं और बाकी तीनों जोर - जोर से हूटिंग करने लगे , जिससे आदित्य झेंप गया । फिर पांचों , पास के ही आइस क्रीम पार्लर में, आइस क्रीम खाने पैदल ही चले गए ।आइस क्रीम खाते हुए शिवानी ने पूछा ।
शिवानी - बाकी सब तो ठीक है , पर क्या लगता है तुम सबको ..??? क्या कायरा और आरव एक रूम में अकेले होंगे और सबसे बड़ी बात , दोनों लव कन्फेशन कर पाएंगे...???
राहुल - उससे भी बड़ी बात ये , जब दोनों पार्टी से बाहर आएंगे , हमें और हमारी गाड़ी को पार्किंग में देखेंगे , तो क्या सोचेंगे ...???
सौम्या - कहीं आरव इस बात के लिए भी नाराज़ न हो जाए....???!!!
नील और आदित्य ने कुछ कहा तो नहीं , लेकिन तीनों की बात सुनकर दोनों अपने मुंह में चम्मच दबाए एक दूसरे को देखने लगे । अगले ही पल सभी आइस क्रीम खाना छोड़ , अपना - अपना दिमाग चलाने लगे , कि आरव और कायरा को क्या सफाई देंगे , जब दोनों पार्टी से वापिस आयेंगे ।
इधर मिशा और अनिकेत खुश थे , कि उनका प्लान काफी हद तक सक्सेस हो रहा था । दोनों ही कायरा और आरव को जाते हुए देख रहे थे । रूम के बाहर पहुंच कर आरव ने कायरा से कहा ।
आरव - तुम अंदर जाओ और अपनी साड़ी ठीक कर लो , मैं यहीं बाहर खड़ा हूं , किसी भी तरह की हेल्प की जरूरत हो तो बुला लेना ।
कायरा चुप - चाप अंदर चली गई और आरव रूम के बाहर खड़ा हो गया । ये देख मिशा और अनिकेत की त्यौरियां चढ़ गई और अनिकेत ने बार टेबल में अपना हाथ पटकते हुए गुस्से से कहा ।
अनिकेत - फिर....., एक बार फिर फेल हो गए हम ।
मिशा ( उसकी तरफ पलटकर ) - डोंट डू दिस अनिकेत ..!! कई लोग है यहां , जो हमें फॉलो कर रहे हैं। ( मिशा का आशय आस पास खड़े, उन्हें घूर रहे लोगों से था ) और हम तब तक हार नहीं मान सकते , जब तक कायरा रूम से बाहर नहीं आ जाती । मुझे पूरा ट्रस्ट है अपने प्लान पर , जो वर्क जरूर करेगा , भले ही देर से ही सही ।
अनिकेत - तुम कह रही हो तो मान लेता हूं ।
दोनों दोबारा उसी ओर देखने लगे और ऊपर कॉरिडोर पर खड़ा आरव बेसब्री से कायरा का इंतजार कर रहा था । बीस मिनट से ज्यादा हो चुके थे , पर न ही कायरा अब तक बाहर आई थी और न उसका कोई रिस्पॉन्स । आरव ने आवाज़ देना चाहा, लेकिन फिर उसे आभाष हुआ कि पार्टी में म्यूजिक का वॉल्यूम कम हो चुका है , अगर आरव तेज़ आवाज़ में चिल्लाया तो जरूर नीचे पार्टी में लोगों को उसकी आवाज़ सुनाई दे जाएगी और अगर नहीं चिल्लाया , तो कायरा को उसकी आवाज़ ही मालूम नहीं पड़ेगी । आरव ने बहुत सोचा, पर उसे कोई आइडिया नहीं सूझा । फिर उसने एक गहरी सांस ली और दरवाजा ओपन कर रूम में इंटर हो गया । उसे देखते ही कायरा तुरंत पलट गई और उसकी तरफ पीठ कर खड़ी हो गई । आरव ने जब उसे देखा , तो पाया कि वह अभी भी वैसे ही खड़ी है , जैसे उसे आरव ने भेजा था । बस ब्लेजर रूम के बेड पर पड़ा है । आरव ने दरवाजा लॉक किया । और उसे रूम के अंदर जाते देख , मिशा और अनिकेत फटाफट उस रूम में चले गए, जहां पर सारे सीसीटीवी कैमरे को ऑपरेट किया जाता है ।
आरव को दरवाज़ा लॉक करते देख , न जाने क्यों कायरा ने अपना सिर घुमाकर अजीब निगाहों से उसे देखा , तो आरव ने झट से लॉक दरवाजे को अनलॉक कर दिया और दरवाज़ा बंद तो रहा , लेकिन अंदर से लॉक नहीं । न जाने क्यों आज आरव की धड़कन तेज़ चल रही थी । उसने बड़ी हिम्मत की और पलटी हुई कायरा को देख कहा ।
आरव - तुमने अब तक अपने कपड़े ठीक नहीं किए..!!!???
इधर मिशा और अनिकेत ऑपरेटर रूम में पहुंच चुके थे और वो उन दोनों को देखने के साथ ही सुन भी सकते थे । कायरा ने जब आरव का सवाल सुना , तो उससे कुछ कहते ही नहीं बना । क्या कहे आरव से , ये बात दिमाग में उसके एक बार फिर घूमने लगी । उसे खामोश देख आरव ने कहा ।
आरव - कुछ पूछ रहा हूं तुमसे कायरा , जवाब दो प्लीज । हम ऐसे ही रात भर यहां नहीं रह सकते । घर भी जाना है हमें ।
कायरा ( हिचकिचाते हुए बोली ) - मुझसे......, मुझसे साड़ी पहननी नहीं आती आरव ।
आरव ( भौचक्का सा ) - ये बात तुमने पहले क्यों नहीं कही ...??? अब कैसे तुम्हारी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकलेगा ...???? सौम्या और शिवानी भी अब तक जा चुके होंगे ।
कायरा - आई एम सॉरी आरव .....। उस वक्त मेरे दिमाग में ये आया ही नहीं । और अब मैं ट्राय कर रही हूं , तो बन नहीं रहा । नेट पर भी मैंने सर्च किया , साड़ी पहनने की वीडियो देखे और खुद से ट्राय भी किया , लेकिन तब भी मुझसे ये नहीं बन रहा ।
आरव - तुम्हें साड़ी पहनाई किसने...????
कायरा ( मासूमियत से ) - मम्मा ने ...!!!! मैंने उनसे कहा था , मैं नहीं संभाल पाऊंगी , लेकिन उन्होंने तब भी पहना दी , क्योंकि उन्हें मैं इस साड़ी में अच्छी दिख रही थी ।
आरव ( मुस्कुराकर ) - अच्छी तो तुम दिख रही हो इस साड़ी में आज...। ( कायरा ने सवालिया निगाह उस पर डाली , तो आरव तुरंत हड़बड़ा गया और अपनी बात संभालते हुए बोला ) ये....., ये साड़ी काफी अच्छी है , बहुत प्यारी है । लेकिन अब क्या करोगी तुम , कैसे पहनोगी ...??
कायरा ( सिर पर हाथ रखकर ) - यही मुझे समझ नहीं आ रहा ।
आरव को कुछ समझ नहीं आ रहा था , कि इस साड़ी वाली प्रॉब्लम से कैसे निकला जाए , ऊपर से एक पोजिशन में बहुत देर से हील्स में खड़े होने के कारण कायरा के पैर भी दुखने लगे थे । उसे तो इस सिचुएशन में कुछ सूझ ही नहीं रहा था । सारे दोस्त जा चुके हैं , सोचकर उन्हें हेल्प के लिए भी नहीं बुलाया जा सकता था । तभी आरव ने कायरा की इजाजत से उसका मोबाइल लिया और साड़ी कैसे पहनते हैं और पहनाते हैं , दोनों के तीन चार वीडियो नेट पर उसने देखे । फिर मोबाइल साइड में रखकर उसने सहमे और झिझक भरे शब्दों में कहा ।
आरव - अगर तुम कहो तो , मैं तुम्हारी हेल्प कर दूं...??? ( कायरा ने उसकी तरफ देखा , तो उसने अपने शब्दों को सही तरह से जमाते हुए कहा ) नहीं....., मेरा मतलब था कि इस वक्त कोई नहीं है तुम्हारी हेल्प करने के लिए और मैं ही हूं एक जो कुछ मदद कर सकता हूं इस वक्त तुम्हारी ( कायरा ने उसे गुस्से से घूरा ) नहीं...., बार - बार सिर को पीछे कर मुझे मत देखो , वरना गर्दन की नस खिंच जायेगी , फिर तुम्हें इस प्रॉब्लम के साथ - साथ नेक की प्रॉब्लम भी फेस करनी पड़ेगी ( आरव की बात सुनकर कायरा ने उसकी तरफ देखना बंद कर दिया और आरव मन ही मन खुद से बोला ) और मुझे डर भी लग रहा है तुम्हारे ऐसे देखने से , ओह गॉड...., प्लीज हेल्प । ( फिर कायरा से ) देखो कायरा....., तुम मुझे गलत मत समझना । मैं सिर्फ तुम्हारी हेल्प करूंगा , विडियोज देखकर मुझे थोड़ा - थोड़ा समझ आ गया है , कि साड़ी कैसे पहनाते हैं । एटलिस्ट मैं ट्राय तो कर ही सकता हूं , तुम्हें इस प्रॉब्लम से बाहर निकालने के लिए । अगर तुम मुझे इजाजत दो , तब ही मैं तुम्हारी हेल्प करूंगा । नहीं तो......!!!!
कायरा ( बिना उसे देखे ) - नहीं तो.....?????
आरव ( गर्दन में हाथ रखकर ) - नहीं तो तुम्हें ऐसे ही खड़े रहना पड़ेगा , जब तक कोई हेल्प के लिए नहीं आ जाता ।
आरव की बात सुनकर कायरा का मुंह उतर गया , जिसे आरव ने महसूस तो किया पर देख नहीं पाया । कायरा वैसे ही आरव की तरफ पीठ किए , उसकी कही बात के बारे में सोचने लगी । अगर वो ऐसे ही खड़ी रही , तो डेफिनेटली उसके पैर काम करना बंद कर देंगे और फिर उसे घर भी तो जाना है , और कायरा ये भी जानती थी , जब तक उसकी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन नहीं निकलता , तब तक आरव भी यहां से कहीं नहीं जायेगा , उसकी देखभाल के लिए यहीं खड़ा रहेगा । इस वक्त कायरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था । बहुत सोचने के बाद उसने बिना पीछे मुड़े आरव से कहा ।
कायरा - आपको जो ठीक लगे आप कीजिए , क्योंकि इस वक्त आपकी बात मानने के अलावा मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं है ।
कायरा की बात सुनकर आरव ने कुछ नहीं कहा , और उसने मोबाइल उठाकर दोबारा वीडियो देखा और फिर उसने कायरा की तरफ कदम बढ़ाए । दिल में एक घबराहट सी हो रही थी और हाथ कांप रहे थे उसके । लेकिन इस वक्त कोई और रास्ता नहीं बचा था उसके और कायरा के पास , इस लिए उसे ये करना था । आरव ने एक कदम और कायरा की तरफ बढ़ाया , साथ में अपना हाथ भी , तभी अचानक से लाइट चली गई और चारों तरफ अंधेरा छा गया । कमरे में कहीं से भी रोशनी नहीं आ रही थी और ये देख कायरा घबरा गई और हल्की सी उसकी चीख निकल गई , साथ में वह लड़खड़ाई हिल्स की वजह से , पर फिर खुद को संभाल लिया ।
इधर लाइट जाते ही मिशा गुस्से से जोर सी चीखी और उसने की - बोर्ड में तेज़ आवाज़ के साथ अपना हाथ पटक दिया , जिससे की - बोर्ड जमीन में गिरकर टूट गया । उसके गुस्से से ऑपरेटर रूम में उपस्थित सभी लोग डर गए और सहमे हुए से अपनी जगह पर ऐसे चिपक गए , जैसे कोई फेविकोल से चिपका स्टेच्यू हो । मिशा को जब आभास हुआ , कि सब वहीं है , तो उसने जोर से चीख कर कहा ।
मिशा - खड़े - खड़े मेरा मुंह क्या ताक रहे हो , जाकर फ्यूज चेक करो , जेनरेटर चालू करो....., बास्टर्ड कहीं के ।
मिशा की बात सुनकर सभी अपने - अपने मोबाइल की टॉर्च ऑन कर , फ्यूज चेक करने चले गए । अनिकेत ने उसे गुस्से से उबलते देखा , तो कहा ।
अनिकेत - रिलेक्स मिशा , लाइट आ जायेगी ।
मिशा ( गुस्से से उसे उंगली दिखाकर ) - तुम तो चुप ही रहो । कितना घटिया अरेंजमेंट किया है तुमने । तुम तो आज की पार्टी की शान कहलाने के लायक भी नहीं रहे अनिकेत मेहरा , उर्फ बर्थडे ब्वॉय ।
इतना कहकर उसने अनिकेत को हिराकत भरी नजरों से देखा और रूम से बाहर चली गई । जबकि अनिकेत वहीं जम गया था , उसके कानों में अब भी मिशा की कही बात किसी घटिया संगीत की तरह गूंज रही थी ।
कायरा के चींखते ही , आरव ने उसके सामने आकर उसके होठों पर अपनी उंगली रख दी और तुरंत कहा ।
आरव - स्टॉप...., मैं हूं कायरा यहां । तुम्हें मुझपर भरोसा है न ...???
कायरा ( दबी सी आवाज़ में ) - हम्मम ।
आरव - तो ये भरोसा मुझपर बनाए रखो और प्लीज....., न ही डरना और न ही अब शाउट करना । हमें तुम्हारी प्रॉब्लम सॉल्व कर जल्दी ही यहां से निकलना है , रात गहरी हो रही है , वक्त पर निकलेंगे तो वक्त पर घर पहुंच भी जायेंगे । और अपनी हील्स उतार दो , वरना दोबारा लड़खड़ा जाओगी ।
कायरा ( दबी आवाज़ में ) - मुझसे नहीं बनेगी..., फंस कर गिर जाऊंगी मैं ।
आरव - ओके..., मैं उतार देता हूं हील्स ।
कायरा ने सहमी हुई आवाज़ में " हम्मम " कहा और फिर आरव ने लाइट की रोशनी जलानी चाही , तो कायरा ने न जाने क्या सोचकर मना कर दिया । आरव ने भी कुछ नहीं कहा और धीरे से जमीन की तरफ झुका और सबसे पहले हल्के हाथों से कायरा के पैर से हील्स निकाली, जिससे कायरा अपने पैरों पर उसके हाथ का स्पर्श महसूस कर पा रही थी और इस सिचुएशन को फेस करना उसे बहुत अजीब लग रहा था । फिर आरव ने अंदाजे से कायरा की बिखरी हुई साड़ी को उठा लिया । इन सबमें आरव कब कायरा के सामने आ गया था , इसका आभाष दोनों को ही नहीं था । आरव के हाथ बुरी तरह कांप रहे थे और कायरा बस चुप - चाप इस वक्त के जल्दी से जल्दी कट जाने की राह देख रही थी । लाइट अभी भी नहीं आई थी । आरव साड़ी पकड़ कर खड़ा हुआ और वीडियो में बताए अनुसार साड़ी की प्लेट्स बनाने लगा , इन सबमें आरव ने अपनी आंखें बंद कर रखी थी , जबकि उस कमरे में अंधेरा था , पर खुद को शायद श्योर करने के लिए उसने आखों को भींचा हुआ था । सामने से प्लेट्स बनाने में आरव को कठिनाई जा रही थी , जिसका आभास कायरा को भी हो रहा था । आरव से जब नहीं बना , तो उसने कांपती आवाज़ में कहा ।
आरव - कायरा मुझसे ये ऐसे सामने से नहीं बन रहा है , क्या तुम ......।
आरव की बात खत्म होने से पहले ही कायरा पलट गई , और आरव के हाथ में पकड़ी हुई साड़ी , दोबारा छूट गई । आरव परेशान हो गया । लेकिन उसने अपने आपको शांत किया और कायरा से साड़ी उसके हाथ में पकड़ाने को कहा । कायरा ने साड़ी उसके हाथ में पकड़ा दी और आरव धीरे से पीछे से कायरा के करीब आया , लेकिन उसने कायरा से एक उचित दूरी बनाए रखी , पर धड़कने अब दोनों की सामान्य से तेज़ चलने लगी थी । साथ में आरव की सांसें कायरा को अपने कंधे पर महसूस हो रही थी , जिससे वह पिघली जा रही थी । उसने खुद को बड़ी मुश्किल से संभाला हुआ था , आरव का भी कुछ ऐसा ही हाल था । आरव ने जब साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ा , तो आरव का बायां हाथ कायरा की बांह से जा लगा । आरव ने अपना हाथ खींच लिया । कुछ पल बाद उसने हिम्मत करके दोबारा , दोनों हाथो से साड़ी पकड़ी और नेट में देखी वीडियो क्लिप याद करके वह साड़ी की प्लेट्स बनाता गया । कुछ पल बाद साड़ी की प्लेट्स बन गई , तो आरव ने उसे कायरा के हाथो मे पकड़ा दिया , जिससे एक बार फिर दोनों की हथेली और उंगलियां आपस में छू गई । कायरा ने तुरंत साड़ी अपने हाथ में थामी और आरव उससे तुरंत दूर हो गया । कायरा ने साड़ी पहन ली और आरव ने कुछ पल बाद आंखें बंद किए ही कायरा से पूछा ।
आरव - हो गया क्या कायरा...?? मैं आइस ओपन कर लूं ।
कायरा ( धीमी आवाज में बोली ) - हम्मम ।
आरव ने आखें खोली और कुछ पल बाद लाइट भी आ गई । शायद ये भगवान का कारनामा था , दोनों को लोगों की साजिशों से बचाने के लिए । लाइट आई देख , कायरा ने राहत की सांस ली और आरव ने उसकी तरफ देखा , तो कायरा अब भी उसकी तरफ पीठ किए खड़ी थी , बस फर्क इतना था अब कायरा दरवाजे के पास थी और आरव दरवाजे से दूर । आरव ने जैसे ही कायरा की तरफ नजरें की , कायरा की कमर में बंधी हुई साड़ी से ऊपर की, खुली हुई कमर पर, उसकी नज़र पड़ी और उसने तुरंत अपनी नजरें नीची की और कायरा के थोड़ा करीब आकर, उसके पल्लू को एक हाथ से पकड़कर उसके दूसरे कंधे पर डालते हुए कहा ।
आरव - अब हमें चलना चाहिए ।
इतना कहकर वह रूम से बाहर निकल गया , और कायरा बस उसकी पहनाई हुई साड़ी को देखती ही रही और उसके अभी - अभी पल्लू को कंधे पर रखने के स्पर्श को महसूस करती रही । जब उसे होश आया , तो उसने अपनी हील्स पहनी , फोन उठाया और नजरें उसकी बेड पर चली गई, जहां आरव का ब्लेजर रखा था। आरव ले जाना भूल गया था । उसने ब्लेजर उठाया और अपनी साड़ी संभाले वह रूम से बाहर आ गई ।
यहां लाइट आ जाने की बात सुनकर मिशा वापस ऑपरेटर रूम में आ चुकी थी , लेकिन जब तब कैमरा और कंप्यूटर की स्क्रीन ऑन हुई , तब तक आरव और कायरा उस रूम से जा चुके थे । मिशा ने घूरकर अनिकेत को देखा , अनिकेत ने अपना सिर झुका लिया । मिशा पैर पटकते हुए वहां से चली गई और बिना किसी को इनफॉर्म किए वह सीधे अपनी कार में बैठी और उसने अपनी कार अपने घर की तरफ मोड़ दी । दोबारा उसके फेल हुए प्लान का असर, बखूबी उसकी हरकतों में नज़र आ रहा था ।
आरव और कायरा नीचे आ चुके थे । आरव जब कायरा को कुछ कदमों की दूरी पर दिखा , तो उसने उसे रोका और आरव को उसका ब्लेजर लौटाया । बदले में आरव ने उसे थैंक्स कहा और ब्लेजर पहन लिया । आरव और कायरा मिस्टर और मिसेज मेहरा से मिले , फिर एग्जिट गेट की तरफ बढ़ गए । अच्छी बात ये थी, कि मीडिया अब तक जा चुकी थी और बस कुछ ही छोटे - मोटे पत्रकार बचे थे , जिन्हें बॉडीगार्ड्स ने अलग जगह रोक रखा था । गेट से बाहर निकलते वक्त आरव का फोन बजा , फोन नील का था । आरव ने कॉल पिक की , तो नील ने पूछा ।
नील - कहां हो तुम लोग....????
आरव - हम पार्किंग साइड जा रहे हैं ।
नील - हम सब तुम दोनों का वहीं वेट कर रहे हैं...???
आरव ( हैरानी से ) - पर क्यों...????
नील ( बाकी चारों के साइड देखते हुए ) - सौम्या का मूड कुछ ज्यादा ही ऑफ था , इस लिए हम उसका मूड ठीक करने , उसे सामने बने आइस क्रीम पार्लर लेकर गए थे ।
आरव - जब तुम सब यहीं आस - पास थे , तो हम दोनों में से किसी को बताया क्यों नहीं.????
आदित्य ( नील से फोन लेकर तुरंत बोला ) - तू पहले यहां आ जा , फिर बात करेंगे हम ।
आरव ने फोन कट कर दिया , और कायरा की तरफ देखा , तो उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । तभी आरव ने आस पास देखा , तो अधिकतर लोगों की नजरें कायरा पर टिकी महसूस हुई उसे । उसने तुरंत कायरा से कहा ।
आरव - तुम आगे चलो , मैं तुम्हारे पीछे - पीछे चलूंगा ।
कायरा ( बिना उसे देखे ) - इससे लोगों की नजरें मुझपर पड़ना बंद हो जाएगी क्या...???
आरव ( उसे नासमझ सा देखकर ) - इजक्यूस मी ......???? टेल अगेन....!!!!!
कायरा ( उसकी तरफ देख मुस्कुराकर बोली ) - नथिंग इज इंपोर्टेंट ....।
और फिर वह उसी तरह चलने लगी , जैसे आरव ने उससे कहा था । आरव पता नहीं ऐसा करके क्या करना चाहता था , शायद वो कायरा को लोगों की बुरी नजरों से बचाना चाहता था । हां..., पर उसे ऐसा करते देखकर कायरा को पता नहीं क्यों , एक अजीब सा सुकून महसूस हो रहा था , जैसे वो आरव के आस - पास रहने पर खुद को महफूज़ महसूस करती हो । आरव इन सब में छुप - छुप कर कायरा को भी देख लेता था , और उसकी हरकतें महसूस कर कायरा मन ही मन खुद से बोली ।
दोनों पार्किंग एरिया में पहुंच चुके थे और वहां उन्हें पांचों दोस्त इंतजार करते हुए मिल गए । उन्हें देखते ही आरव ने कहा ।
आरव - बताओ अब , क्यों इनफॉर्म नहीं किया तुम सबने ...????
शिवानी ( तुरंत सौम्या की तरफ इशारा कर बोली ) - इसका उखड़ा हुआ मूड देखकर हम सब भूल ही गए तुम लोगों को इनफॉर्म करना ।
आरव ( पांचों को घूरकर ) - अच्छी बात है , किसी दिन हम दोनों को किसी रूम में लॉक कर देना और फिर भूल जाना , कि हम किसी रूम में बंद भी हैं ।
ये सुनकर पांचों ने एक दूसरे को देखा और आंखें चमकाई , जैसे कह रहे हों " काश ये कोइंसिडेंस कभी हो ही जाए और हमारे हाथों चाबी खो जाए " । आरव ने एक बार फिर सबको घूरा, तो राहुल ने कहा ।
राहुल - अब तुझे क्लास लगानी है हम सबकी , तो कल कॉलेज में या ऑफिस में लगा लेना । अभी के लिए सब घर चलते हैं । मौसम बदल रहा है , कब तेज़ बारिश का आगाज़ हो जाए, भरोसा नहीं ।
राहुल की बात पर सबने सहमति जताई , और आरव के कहने पर सब अपनी - अपनी कार की तरफ बढ़ गए । सबसे पहले कायरा आरव की कार पर बैठी , और बाकी सब सिर्फ आदित्य की कार के पास तक पहुंचे बस थे , और नील को फोर्स कर रहे थे आरव के पास जाने को । नील ने बड़ी हिम्मत की और आरव की तरफ बढ़ गया । आरव तब ड्राइवर साइड का गेट ओपन कर , कार के अंदर ही बैठने जा रहा था , कि नील आ धमका ।
नील - आरव...., मुझे कुछ पूछना था तुझसे ।
आरव ( कार के गेट को पकड़ कर खड़ा हो गया और उसे सवालिया नजरों से देखते हुए बोला ) - पूछ.....!!!
नील - यहां नहीं , थोड़ा साइड में आ न..!!!!
आरव ( कार का गेट वापस बंद करते हुए कार से थोड़ी दूर खड़े होकर बोला ) - ऐसा क्या पूछना है तुझे, जो तू ऐसे आने बोल रहा है ।
नील ( शब्दों को मन ही मन जमाते हुए ) - हमारे जाने के बाद कायरा की प्रॉब्लम सॉल्व हुई ।
आरव ( असमंजस की स्थिति में ) - ये पूछना है तुझे..???
नील ( खीझते हुए ) - जितना पूछा है उतने का जवाब दे न ।
आरव ( नजरें इधर - उधर घुमाते हुए ) - हां, सॉल्व हो गई ।
नील ( आरव का चेहरा पढ़ने की कोशिश करते हुए बोला ) - तुम दोनों कहां थे इतने वक्त तक..?? मेरा मतलब अकेले....अकेले थे...??
आरव ( नील को देखकर ) - ये कैसा सवाल हुआ...???
नील ( थूक गटकते हुए ) - मेरे भाई...., मेरा मतलब है तुम दोनों के बीच कुछ बात - चीत हुई...., ( फुसफुसाते हुए ) आई मीन कुछ पर्सनल बात - चीत ।
आरव ( उसे घूरते हुए ) - कैसी पर्सनल बात चीत , और ये तू इतना धीरे क्यों बोल रहा है...??? तेरा मतलब क्या है , किस तरह की पर्सनल बात होनी चाहिए हमारे बीच ।
नील ( सहम कर अटकते हुए ) - तुम...., तुम दोनों एक रूम में..., अकेले...., कुछ पर्सनल टॉक...., प्राइवेट बातें ......, ल.......।
आरव को उसकी बातों का अर्थ समझ में नहीं आ रहा था , तो उसने नील को धकियाते हुए कहा ।
आरव - पहले सोच ले , तुझे क्या बोलना है और कैसे बोलना है , उसके बाद बताना मुझे । अब चल निकल , रात भर हम लोग गरबा नहीं करने वाले हैं यहां और न ही मैं तुम लोगों को रात भर ड्रिंक पार्टी देने वाला हूं , चल जा .....।
इतना कह कर आरव अपनी कार की तरफ बढ़ गया और नील मिनमिनाता सा उसका नाम ही पुकारता रह गया । आरव ने कार स्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दी ।
नील सारे दोस्तों के पास गया , तो उन्होंने उससे आरव और उसके बीच क्या बात हुई पूछा । तो बेचारा मासूम सी शकल बना कर बोला ।
नील - हमेशा मुझे ही फसाना तुम लोग , किसी दिन वो मुझे पिटेगा भी और मुंह से आवाज़ भी नहीं निकलने देगा ।
आदित्य ( उसके पीठ पर जोरदार मुक्का जमाते हुए बोला ) - चुप - चाप पते की बात बता , वरना आज यहीं पर तेरी शोभा यात्रा निकालेगें हम चारों ।
नील ( मिनमिनाया सा , शिवानी से बोला ) - तुम तो कम से मेरी हालत समझो ।
शिवानी ( उसे घूरते हुए ) - जितना पूछा है उतना जवाब दो , तुम्हारी हालत जानने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है ।
नील ( चारों पर खुन्नस निकालते हुए बोला ) - डूब मरो सालों तुम सब , चुल्लू भर पानी में ।
राहुल ( नील को गर्दन से पकड़ कर मुक्का दिखाते हुए ) - बताता है तू , कि आज तेरी यहीं रबड़ी बनाएं...????
नील ( उसे रोकते हुए ) - रुक...., बताता हूं । ( खुद में बड़बड़ाते हुए ) भलाई का तो जमाना ही नहीं है , काम करो इनके और धुलाई भी खाओ इन्हीं लोगों से । ( सबने उसे घूरा , तो उसने तुरंत कहा ) मुझे नहीं लगता , दोनों के बीच लव कन्फेशन हुआ होगा । अगर होता , तो मेरे इतना कहने पर तो आरव समझ जाता , कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं । वो तो उलटा नासमझ सा बिहेव कर रहा था ।
इतना कहकर , उसने कुछ पल पहले हुई आरव से बात , चारों को बता दी । चारों ने अपना माथा पीट लिया । शिवानी ने कहा ।
शिवानी ( परेशान होकर ) - अब क्या करेंगे...???
सौम्या ( कुछ सोच कर आदित्य से ) - आदि...!!!! तुमने कहा था न , कि तुम्हारे पास एक प्लान है ।
आदित्य - हां, कहा तो था । लेकिन प्रोमिस करो , तुम चारों पिछली बार की तरह रिस्पॉन्स नहीं दोगे ।
चारों ने हामी भरी , तो आदित्य ने उन्हें एक प्लान बताया । चारों ने बहुत सोचने के बाद , आदित्य के प्लान को डन कर दिया । दोस्तों का पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलते ही आदित्य ने आरव को कॉल किया ।
इधर आरव और कायरा इस वक्त शांत थे । दोनों कुछ समय पहले रूम में हुए वाकिए के बारे में सोच रहे थे और अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को काबू में करने की कोशिश कर रहे थे , जो कि अभी भी वो वक्त याद कर तेज़ हो गई थीं ।दोनों इस बारे में सोच ही रहे थे , कि आरव का फोन बजने लगा । आरव ने आदित्य की कॉल देखी तो कॉल रिसीव कर लिया और ब्लूटूथ से कनेक्ट कर कान में इयरबड्स लगा कर बोला ।
आरव - क्या हुआ आदि ...????
आदित्य - आरव ...!!!! तुझे याद है कल हमारी दो बजे एक मीटिंग है , क्लाइंट के साथ ...।
आरव - हम्मम, याद है ।
आदित्य - उसकी फाइल मैंने रेडी कर दी है , पर आज तुझे दिखाना भूल गया । तू एक काम करेगा ...????
आरव - हम्मम...., बता ।
आदित्य - तू ऑफिस जाकर वो फाइल लेले , मेरे केबिन में मेरी डेस्क के सेकंड ड्रॉर में रखी है । उसे अपने साथ घर ले जा और उसे चेक कर , साइन करके कल ले आना । हम दोनों का काम भी आसान हो जाएगा , और कल की झंझट भी खत्म ।
आरव - यू आर राइट , तेरे केबिन की...., की ( चाबी ) कहां रखी होगी ..????
आदित्य - मेरे केबिन की, की वॉचमैन के पास होगी । मैं अक्सर उसे ही दे देता हूं अपने केबिन की सेकंड की । तू उससे ले लेना ।
आरव - ओके...., मैं ले लूंगा ।
आरव ने कॉल कट कर दिया । और कायरा की तरफ देखा , जो उसे ही देख रही थी । आरव ने उससे कहा ।
आरव - घर पहुंचने में अगर थोड़ा लेट होगा , तो तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं होगी न ...????
कायरा - पर हम घर लेट क्यों जायेंगे...???
आरव - एक फाइल ऑफिस से लेनी है , जो आदित्य के केबिन में रखी है । उसे चेक करना है और उस पर मेरे सिग्नेचर जरूरी हैं , कल मीटिंग है उसी की फाइल है वो । इस लिए हमें घर पहुंचने में थोड़ा और वक्त लगेगा । अगर तुम्हें प्रॉब्लम हो , तो मैं तुम्हें पहले घर ड्रॉप कर देता हूं , फिर वापस आकर फाइल ले लूंगा ।
कायरा ( सोचने के बाद बोली ) - रहने दीजिए आरव , बहुत टाइम लग जायेगा आपको फिर अपने घर पहुंचने में । वैसे भी यहां से ऑफिस पास पड़ेगा और मेरा घर दूर । खामखां आपका बहुत सारा वक्त जाया होगा । आप फाइल ले लीजिए , फिर मुझे घर ड्रॉप कर दीजिएगा ।
आरव को कायरा की बात ठीक लगी और उसने ऑफिस के रास्ते की तरफ अपनी कार मोड़ दी । इधर आरव से बात करने के बाद आदित्य ने कहा ।
आदित्य - वो मान गया है ऑफिस जाने के लिए ।
सौम्या - सच में तुम्हारी फाइल पर आरव के सिग्नेचर जरूरी हैं , या फिर तुमने बहाना बनाया..??
आदित्य - फाइल में सिग्नेचर जरूरी हैं और कल उसी फाइल के साथ क्लाइंट से मीटिंग भी है , जिसमें क्लाइंट उसको अप्रूव करेगा तभी डील पक्की मानी जायेगी । आज के बिजी सेड्यूल के चलते मैंने सोचा था , कल सुबह आरव को वो फाइल दिखा दूंगा और उसके साइन ले लूंगा । लेकिन जब पार्टी में तुम सबने अपना प्लान बताया , तो दोनों को इसी बहाने से वक्त देना मुझे ठीक लगा । पहले वो दोनों ऑफिस जायेंगे फिर घर , तो उन्हें काफी वक्त मिलेगा अकेले साथ टाइम स्पेंड करने को ।
शिवानी ( आसमान की तरफ देखते हुए ) - भगवान करे , हमारी अब ये वाली प्लानिंग सक्सेस हो जाए ।
सौम्या ( उसी की तरह हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुए ) - हां भगवान , प्लीज । हमारी ये विनती सुन लीजिए , प्लीज आज दोनों से, उनके प्यार का इजहार करवा दीजिएगा । इतनी प्लानिंग तो हम सबने खुद के लिए भी कभी नहीं की , जितनी उनके लिए कर रहे हैं । प्लीज भगवान , सफल कर दीजियेगा हमारी ये प्लानिंग ।
बाकी तीनों ने भी मन ही मन भगवान से यही प्रार्थना की और फिर सौम्या आदित्य के साथ, शिवानी नील के साथ और राहुल अपनी कार में , अपने घर चले गए ।
आरव और कायरा ऑफिस पहुंच चुके थे । आरव ने कार पार्किंग एरिया की जगह , ऑफिस बिल्डिंग के सामने ही खड़ी कर दी थी , क्योंकि उसे फाइल लेकर तुरंत निकलना था , पार्किंग में गाड़ी खड़ी करने फिर उसे वापस बाहर लाने में बहुत वक्त लगता । दोनों मेन गेट से अंदर की तरफ आए, तो उन्हें वॉचमैन मिल गया । आरव ने उससे आदित्य के केबिन की चाबी ली और दोनों लिफ्ट की ओर बढ़ गए । तभी वॉचमैन ने उन्हें बताया , कि लिफ्ट आज खराब हो चुकी है । कल उसे बनवाया जायेगा । तो आरव ने परेशानी से कायरा की तरफ देखा । तो उसने कहा ।
कायरा - कोई बात नहीं , हम सीढ़ियों से चले जायेंगे ।
आरव - इतनी ऊपर , तुम्हें पता है न अब हम सब दोस्तों का केबिन टेंथ फ्लोर पर शिफ्ट हो गया है । इतनी सीढियां चढ़कर हम कैसे जायेंगे ।
कायरा ( दो सीढियां चढ़कर बोली ) - ऐसे....।
आरव ( उसकी तरफ आकर बोला ) - एक काम करो , तुम यहीं रुको, मैं लेकर आता हूं । फालतू इतनी सीढियां चढ़कर तुम थक जाओगी ।
कायरा - नहीं थकूंगी । मेरे लिए इतना चढ़ना नॉर्मल है । और वैसे भी आपको टाइम लगेगा , तब तक मैं यहां बोर हो जाऊंगी । इस लिए मैं भी आपके साथ चलूंगी ।
आरव ने उसे मना करने की दोबारा कोशिश की , पर कायरा नहीं मानी । उसका यहां आरव का घंटों तक वेट करना , उसकी एक पक्की नींद लेने बराबर था । अब यहां ग्राउंड फ्लोर पर अकेले , तो वह सो नहीं सकती थी । क्योंकि वॉचमैन तो थोड़ी देर में मेन गेट की तरफ चला जाता , इस लिए उसने ये खयाल त्याग कर आरव के साथ जाना ही ठीक समझा । थक कर आरव ने उसकी जिद मान ली । और दोनों सीढ़ियों से ऊपर की ओर बढ़ गए । हील्स में कायरा से चला नहीं जा रहा था , तो उसने अपनी हील्स पैरों से उतारकर हाथ में ले ली , और फिर आरव से भी तेज़ स्पीड में सीढियां चढ़ने लगी । आरव तो उसकी इस हरकत और फुर्ती को बस देखता ही रह गया । उसे तो चिंता थी , कि कायरा इतनी सीढियां चढ़ पायेगी या नहीं , इसी लिए वो उसे ऊपर जाने से मना कर रहा था । लेकिन कायरा की फुर्ती देखकर तो वो खुद जल्दी - जल्दी सीढियां चढ़ने लगा था । लगभग बीस मिनट बाद दोनों अपने टेंथ फ्लोर पर थे, जहां सारे दोस्तों का केबिन था । आरव ने कायरा से कहा ।
आरव - तुम यहां चेयर पर बैठो , मैं फाइल लेकर आता हूं ।
कायरा ने हामी भर दी , और वहीं एक डेस्क की चेयर पर बैठ गई । आरव आदित्य के केबिन की ओर बढ़ गया । उसने केबिन की लाइट ऑन की और आदित्य के बताए अनुसार सेकंड ड्रॉर में फाइल देखने लगा। लेकिन उसे वहां फाइल नहीं मिली । शायद आदित्य ने गलती से उसे गलत जगह बता दी थी , जिसका आभास खुद आदित्य को भी नहीं था । आरव ने सारी डेस्क छान मारी , लेकिन उसे फाइल नहीं मिली । इन सबमें उसे काफी वक्त लगने लगा ।
यहां कायरा बैठे - बैठे बोर हो रही थी । अभी तक आरव को न आया देख, उसे लगा कि आरव को अभी और वक्त लगेगा । उसने अपना मोबाइल और क्लच ( हैंड पर्स ) वहीं डेस्क पर रखा , और बिना हील्स के वो टेरेस की तरफ बढ़ गई । मौसम आज काफी खुशनुमा सा था , जिसे उसने मेहरा मेंशन से निकलते वक्त महसूस किया था । टेरेस चार फ्लोर ऊपर था , पंद्रवें माले पर । कायरा ने टेरेस का डोर ओपन किया , आज किस्मत से डोर पर लॉक नहीं लगा था , इस लिए कायरा को कोई परेशानी नहीं हुई और उसकी मौसम की ठंडी हवा महसूस करने की मुराद भी पूरी हो गई । कायरा टेरेस पर आ गई , और फिर किनारे पर आकर रेलिंग पर हाथ रखकर वो सब ओर देखने लगी , कितना सुंदर नज़ारा था , बड़ी - बड़ी बिल्डिंग्स थी और साथ में उनमें जगमगाती लाइट्स । नीचे देखने पर लोग चीटी बराबर मालूम पड़ रहे थे , और नीचे सड़क की रोड लाइट्स और साथ में सड़क के किनारे लगे पेड़ और उनपर लगी लाइट्स , उस सड़क की शोभा बढ़ा रहे थे । कायरा पहली बार इतनी ऊंची बिल्डिंग की टेरेस पर आई थी और इतने ऊंचे से पहली बार वह आस - पास का नज़ारा देख रही थी । मौसम में ठंडक थी , क्योंकि कहीं आस - पास पानी बरस रहा था और साथ ही बिजली भी कड़क रही थी । कायरा ने अपने हाथ फैला दिए और ठंडी - ठंडी हवा को मुस्कुराते हुए महसूस करने लगी । उसे यहां बहुत अच्छा लग रहा था । हवा के साथ - साथ कभी - कभी हल्की सी पानी की बौछार भी शुरू हो जाती थी और फिर तुरंत बंद भी , कायरा को तो ये मौसम आज जन्नत से कम नहीं लग रहा था । बहुत खुश थी आज कायरा । तभी उसे कुछ देर पहले आरव और उसके रूम में अकेले होने और वहां जो कुछ भी हुआ , सब याद आया । तो उसने अपने हाथ नीचे कर लिए और उसने महसूस किया कि उसकी धड़कने फिर से सामान्य से तेज़ होने लगी हैं । वह उसी के बारे में सोचने लगी , कैसे आरव ने उसकी मर्यादा और उसके ऊपर आने वाली मुसीबत का ध्यान रखा और उसे उस मुसीबत से निकाल भी दिया । न ही आरव ने अपनी मर्यादा लांघी और न ही आरव ने उस बंद कमरे में उसका फायदा उठाने का इरादा रखा । वरना आजकल तो मदद के नाम पर लोग लड़कियों के साथ बंद अकेले कमरे में क्या करते हैं , ये बात कायरा अच्छे से जानती थी । उसे हर बार आरव में एक समझदार , मेच्योर और हमेशा कायरा की हर इच्छा का खयाल रखने वाला इंसान दिखा । कायरा जब भी कुछ सोचती या करना चाहती या फिर किसी परेशानी में होती, तो आरव हमेशा उसकी मदद करने पहुंच जाता और कभी आरव ने कायरा को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोचा , बल्कि हमेशा उसे हर परेशानी से दूर रखने का ही इरादा रहा है उसका । ये सब सोचते हुए कायरा महसूस कर रही थी , कि आरव वाकई में बहुत अच्छा इंसान है और वह जिसका भी लाइफ पार्टनर बनेगा , वह लड़की कितना खुश रहेगी उसके साथ । क्योंकि उसे लाखों में नहीं..., करोड़ों में नहीं...., बल्कि अरबों में एक वर मिलेगा, जो हर तरह से परफेक्ट होगा । कायरा ये सब सोचकर मुस्कुरा रही थी । लेकिन अचानक आरव को किसी और लड़की के साथ इमेजिन कर कायरा को अच्छा नहीं लगा , उसे उस लड़की से जलन का आभास होने लगा । जबकि वो लड़की कौन होगी , ये भी कायरा नहीं जानती थी , लेकिन तब भी उसे आरव के साथ इमेजिन कर कायरा को जलन होने लगी थी । कुछ पल तक कायरा उस जलन में कुढ़ती रही । लेकिन फिर अचानक से बादलों में तेज़ गड़गड़ाहट हुई , और कायरा उस आवाज़ को सुनकर सहम सी गई । जैसे ये गड़गड़ाहड़ उसे चेतावनी देने के लिए हो, कि जो वह महसूस कर रही है , वैसा हो पाना मुमकिन नहीं है । इसका आभास होते ही कायरा एकबार फिर टेरेस के दूसरे छोर के किनारे पर आ गई और रेलिंग के पास हाथ बांध कर खड़ी हो गई । और एक बार फिर उसे समझ आने लगा , कि इस जलन का कोई मोल नहीं है, क्योंकि उसे तो आरव के साथ कभी जीवन बिताने का मौका मिलेगा ही नहीं । उसके तो भाग्य में ही नहीं है ये , कि जिससे उसने प्यार किया , जिसे उसने मन ही मन अपने दिल में जगह दी, जिसे उसने अपनी आखों में बसाया..... , वो उसका जीवन साथी बन सके । धीरे - धीरे ही वह उस वजह के बारे में भी सोचने लगी , जिसकी वजह से उसने आरव से दूरी बना रखी थी , कभी भी उसकी आखों में उभरे खुद के लिए प्यार को उसने आरव के सामने एक्सेप्ट नहीं किया , इनफेक्ट उसकी इस बारे में उठती नजरों को हमेशा कायरा ने इग्नोर किया है , सिर्फ इसी एक वजह से । कायरा की आखों में अब आसूं भर आए थे और कुछ पल बाद आंखों से बहने भी लगे । हर बार कायरा इन आसुओं को बहने से रोक लेती थी , लेकिन यहां वह अकेली है कोई नहीं है जो उसे रोते देखेगा , सोचकर उसने अपने आंसुओं को आज बह जाने दिया । शायद एक भी दिन ऐसा नहीं निकलता था , जब कायरा इस वजह के बारे में न सोचती रही हो । आरव के इतने पास होकर भी , वो न चाहते हुए भी आरव से इतनी दूर थी , इसका गिल्ट उसे हर वक्त कचोटता था ।
आरव ने फाइल हर जगह ढूंढी , पर उसे कहीं नहीं मिली । आरव ने चाबी के गुच्छे में , कुछ चाबी और देखी , जो कि आदित्य के डेस्क की तो नहीं थी, क्योंकि अभी तो उसने सारे ड्रॉर इन्हीं चाबियों से ओपन किए थे । तभी उसकी नज़र, केबिन के एक दम साइड में रखे कबर्ड पर गई । उसने तुरंत दिमाग लगाया , और कबर्ड की ओर बढ़ गया । उसने बाकी बची हुई चाबियां ट्राय की और कबर्ड ओपन किया । फिर उसने वहां छान - बीन की, तो उसे कुछ नॉर्मल कवर पेज फाइलों के नीचे दबी वो फाइल मिल गई, जिसका जिक्र आदित्य ने किया था । उसने चैन की सांस ली और फाइल निकाल कर उसे चेक कर, कि ये वही फाइल है या नहीं, देखने के लिए खुद को श्योर किया , फिर कबर्ड लॉक किया और फिर केबिन लॉक कर वो बाहर आ गया । बाहर आकर वो उस तरफ बढ़ गया , जहां उसने कायरा को छोड़ा था । डेस्क के पास पहुंच कर जब उसने कायरा को वहां से गायब देखा , तो हैरान होकर खुद से कहा ।
आरव - ये कहां चली गई..???? ( तभी उसे मोबाइल, क्लच और हील्स दिखी , उसने खुद से कहा ) और ये क्या, सारी चीज़ें यहीं छोड़ कर गई है । कहीं अपने केबिन में तो नहीं गई । ( ये सोचते हुए वो कायरा के केबिन की तरफ चला गया , लेकिक केबिन को बाहर से लॉक देख कर वह परेशान हो गया ) आखिर ये लड़की गई कहां और बताया भी नहीं इसने जाने से पहले ।
उसने चारों तरफ नज़र दौड़ाई , सब तरफ उसे बाहर से लॉक केबिन ही दिखे । उसने फाइल वहीं डेस्क पर रखी और वह अनायास ही , इलेवंथ फ्लोर पर चला गया , और फिर जब वहां भी कायरा नहीं दिखी , तो उसने ऊपर के सारे बचे हुए फ्लोर भी छान मारे, ये सोचकर कि अगर वो नीचे जाती, तो अपना सामान इस तरह डेस्क पर छोड़ कर नहीं जाती । आरव फोर्टिन्थ फ्लोर पर जब सब जगह देख कर थक गया, तो उसे अब गुस्सा आने लगा और खीझ भी होने लगी , कि कायरा उसे बता कर क्यों नहीं गई । तभी उसे टेरेस साइड का डोर ओपन दिखा , तो वह सीढियों की तरफ आ गया । और तुरंत वह टेरेस में चढ़ गया । जब वहां उसने नज़र घुमाई और उसे कायरा एक कोने में खड़ी दिखी , तो उसकी जान में जान आई । लेकिन आरव उसके करीब जाता, उससे पहले ही वो खोने सा लगा था उसमें । क्योंकि चमचमाती बिजली , शहर की लाइट्स और चलती ठंडी हवा की अंधेरी रात के बीच , खड़ी वहां कायरा पीछे से बहुत खूबसूरत लग रही थी । उस वक्त वो कायरा है ये पहचानना मुश्किल जरूर था, क्योंकि उसका चेहरा नहीं दिख रहा था, लेकिन वो दृश्य जरूर बहुत सुंदर लग रहा था । शायद अगर वहां कोई कैमरा पर्सन या फिर कोई पेंटर होता , तो जरूर उसे तस्वीर के रूप में उतारता । आरव वहीं से बोलते हुए कायरा की तरफ बढ़ा ।
आरव - यहां क्या कर रही हो कायरा तुम...???? और वो भी ऐसे बिगड़े मौसम में , अकेले .....।
आरव की आवाज सुनकर कायरा चौंक गई, फिर उसने तुरंत आरव से छिप कर अपने आसूं साफ किए और आरव से बोली ।
कायरा - कुछ खास नहीं , बस मन किया आज ठंडी हवा में आने का , तो आ गई ।
इतना कहते हुए वह आरव की तरफ मुड़ी , तो पाया आरव उसे ही देख रहा था। कायरा खुद के जज्बातों को संभाल नहीं पाई और न ही वह अपनी नजरें आरव से हटा पाई । शहर में बिखरी लाइट्स की हल्की रोशनी में दोनों को एक दूसरे का चेहरा , काली - घनेरी रात में किसी चमकते हुए चांद सा प्रतीत हो रहा था । दोनों अपने - अपने चांद में खोए , एक टक एक दूसरे को देख रहे थे । एक तरह से कहें , तो आज असल खूबसूरती दोनों को डिम लाइट्स में एक दूसरे की नज़र आ रही थी , मन की भी और शायद तन की भी । तभी अचानक से बादल गरजे और तेज़ बारिश शुरू हो गई । या ये कहें, मूसलाधार बारिश शुरू हो गई । बगल की बिल्डिंग में गाने चल रहे थे , शायद कोई पार्टी चल रही थी वहां , या फिर कोई आज इन्ही की तरह प्यार में डूबा, शायद अकेले ही किसी को याद कर गाने सुन रहा था । गानों की कतार में , अब फिर से एक गाने ने धुन और सुर पकड़ लिए, और वो गाना दोनों के कानों से होते हुए सीधे दिल के जज्बातों में मिलने लगा , या यूं कहूं दिल के कोने में पनपी मोहब्बत में घर करने लगा । शायद आज सैलाब ही लाना चाहता था, ये गाना और उसपर जोरों की होती ये मूसलाधार बारिश । दोनों को एक दूसरे की खूबसूरती और आखों के सिवा कुछ दिख ही नहीं रहा था , और सुनाई दे रहा था तो बस , पानी की झिमझिमाती बौछार के साथ, उसकी आवाज़ में घुल कर हर तरफ शोर मचाते गाने के अल्फाज़ ।
दोनों काफी ज्यादा भीग गए थे , लेकिन नजरें अब भी एक दूसरे से नहीं हटी थीं । कायरा के चेहरे को भिगोती हुई पानी की बूंदे, आज आरव को चांद के आस - पास बिखरे तारों सी लग रही थी और आरव के गिले बालों के माथे पर आ जाने के कारण , वो बहुत क्यूट लग रहा था , जिसे कायरा अपलक देख रही थी । आरव ने कायरा को देखते हुए, अपना एक कदम कायरा की ओर बढ़ा दिया, तो कायरा ने भी उसे देखते हुए अपना एक कदम पीछे ले लिया । आरव ने अपना अगला कदम बढ़ाया, तो कायरा ने दोबारा अपना कदम पीछे ले लिया । कुछ कदमों के फासलों के दरमियान में बंधे दोनों के मन में, एक अलग एहसास , एक अलग ही समा बंधा हुआ था । आरव जितने कदम कायरा की ओर बढ़ाता, कायरा उतने कदम पीछे ले लेती । अंत में एक पल ऐसा आया, जब कायरा के पीछे टेरेस की रेलिंग आ गई , और अब उसके कदम खुद ही रुक गए, और कायरा को किनारे में देख आरव के कदम भी रुक गए । कुछ पल बाद आरव कायरा के करीब आया , और उसने कायरा को देखते हुए ही अपने दोनों हाथों को रेलिंग से टिका दिया और उन हाथों के बीच में कायरा थी । दोनों की धड़कने तेज़ थी और शोर कर रही थी, लेकिन बारिश और गाने के शोर में धड़कनों की आवाज़ दब गई थी ।
कायरा ने अपनी सांसों को काबू में करने के लिए, आरव को हल्का सा धक्का दिया , जिससे आरव उससे दूर हो गया , और टेरेस के दरवाजे की बगल वाली दीवाल के पास जाकर खड़ी हो गई, साथ ही तेज़ - तेज़ सांसें लेने लगी । आरव कुछ पल तो खड़ा उसे निहारता रहा , और फिर कुछ पल बाद वह कायरा की ओर बढ़ा । जब आरव कायरा के नजदीक आ गया , तो कायरा को इसका आभास हुआ और वह पलटी, कि लड़खड़ा गई , लेकिन आरव ने अपनी मजबूत बाहों में उसे संभाल लिया और दीवाल से टिका दिया और उसके चेहरे को बड़े प्यार से निहारने लगा । कायरा को आरव की खुद के चेहरे पर डूबी हुई नजरें देख, मन में एक अजीब सा लेकिन मीठा सा एहसास हो रहा था । वह आरव से अब नजरें नहीं मिला पा रही थी, क्योंकि आरव की नजरों की कशिश आज जोरों पर थी । तो वह आरव की बाहों की पकड़ से आदाज़ होकर , टेरेस के बीचों बीच जाने लगी, लेकिन तभी उसे अपनी साड़ी का पल्लू खिंचा हुआ सा महसूस हुआ। उसे लगा कि आरव ने उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ा हुआ है, तो वह नजरें नीची कर पलटी और हल्की सी नजरें उठाकर उसने आरव की तरफ देखा, तो आरव ने अपना दाहिना हाथ उठा दिया , जिसकी कलाई में बंधी घड़ी में कायरा की साड़ी का पल्लू अटक गया था । ये देख कायरा को खुद की अल्हड़ पन की सोच पर हंसी आई और वह उसकी कलाई से पल्लू निकालने के लिए बढ़ने लगी । लेकिन कायरा आरव की तरफ बढ़ती , उससे पहले ही आरव ने उसी दाहिने हाथ से कायरा का पल्लू अपनी हथेली में पकड़ लिया और धीरे - धीरे वह उसे समेटते हुए और नजरें कायरा पर जमाए हुए , उसकी ओर बढ़ने लगा । अपनी ओर आरव को आता देख, कायरा की नजरें एक बार फिर उस पर टिक गई । आरव कायरा के करीब आया , और उसने कायरा की कमर को अपनी हथेली की पकड़ में शामिल किया और उसे अपने करीब खीच लिया । कायरा की तो सांसें ही अटक गई, जो कुछ पल पहले तक तेज़ रफ्तार से चल रही थी । शरीर में एक सिहरन की लहर दौड़ने लगी उसके , उसने अपनी पलकें बंद कर लीं और दोनों एक दूसरे के चेहरे पर पानी की तेज़ बूंदों के साथ, एक दूसरे की सांसें महसूस कर पा रहे थे । आरव ने कायरा के दाहिने गाल पर हाथ रख दिया, तो कायरा ने भी अपने बाएं हाथ से उसके दाहिने हाथ पर हाथ रख दिया , और उसने दूसरे हाथ से आरव के कंधे को जकड़ लिया । आरव ने उसे आहिस्ता से घुमाया , और उसकी पीठ अपनी ओर कर ली । एक तेज़ हवा का झोखा दोनों को छूकर निकल गया , जिससे दोनों सिहर उठे थे । कायरा तो बस खोई सी उसकी सांसें खुद की गर्दन पर महसूस करने लगी और आरव कायरा की खुशबू में खोया हुआ था ।
तभी एक जोरदार , भयानक बिजली कड़की । और बिजली कड़कने की इतनी तेज आवाज सुनकर कायरा बुरी तरह से डर गई , और वह तुरंत पलटकर आरव के सीने से जोरों से लिपट गई , उसने अपनी आंखें जोरों से बंद कर रखी थी। अचानक हुए इस वाकिये से आरव भी हैरान था , और कड़कती बिजली के शोर ने उसके कानों को कुछ पल के लिए शून्य अवस्था में कर दिया । जब उसे प्रॉपर सुनाई देने लगा , तो उसे कायरा खुद से जोरों से लिपटी मिली । अब बारी थी आरव की सांसें अटकने की, जो कि वकाई अटक चुकी थी । अपनी पीठ पर कायरा की पकड़ महसूस कर आरव की धड़कन बहुत जोरों से चल रही थी , जिसकी आवाज कायरा के कानों तक भी पहुंच रही थी । लेकिन वह इस वक्त इतनी डरी , सहमी हुई थी , कि उसका ध्यान इस पर ढंग से गया ही नहीं । कायरा को डर से कांपते देख आरव ने भी उसे अपनी बाहों में भर लिया । आरव का स्पर्श पाकर कायरा को एक अनजाना सा सुकून मिला और आरव को भी उसके गले लगे होने से राहत पहुंच रही थी, जैसे बरसों से तपते रेगिस्तान पर किसी ने बारिश कर दी हो । आरव की बाहों में कायरा अपने आपको महफूज़ महसूस कर रही थी । आरव अपने एक हाथ से कायरा के बाल सहलाने लगा , और बिल्कुल बच्चों की तरह उसे शांत रहने और न डरने के लिए कहने लगा , जैसे कायरा कोई छोटी सी बच्ची हो । ये सब देखकर , कायरा को उसकी बाहों में एक अपनापन सा महसूस होने लगा । उसे ये भी याद आया, कि कैसे बचपन में उसके पिता ऐसे ही किसी चीज़ से कायरा के डरने पर , उसे शांत कराया करते थे । आरव के इस तरह शांत कराने के अंदाज में उसे अपने पिता की छवि दिखने लगी । कुछ पल तक दोनों ऐसे ही भीगते पानी में खड़े रहे । कुछ समय बाद कायरा आरव से अलग हुई और उसने अपनी नजरें नीची कर ली , और दोबारा वो उसी दीवाल की तरफ भाग गई , जहां वह कुछ देर पहले आरव के साथ खड़ी थी । कायरा का पल्लू आरव की घड़ी में बंधे होने के कारण , अनायास ही वो भी उसकी तरफ खिंचता चला गया और दोनों ही दीवाल के पास आकर रुके । इस बार कायरा को आभास नहीं था, कि उसका पल्लू आरव की घड़ी से बंधा है । आरव को अपने सामने देखकर कायरा उसे दोबारा देखने लगी । तो आरव ने उसकी पीठ दीवाल से टिका दी और अपने हाथ की घड़ी से उसने कायरा के साड़ी का पल्लू निकाला । उसे कमर से पकड़कर दोबारा अपने करीब खींचा , तो कायरा आरव के सीने से आ लगी । कायरा अब आरव की आंखों में देखने लगी और आरव ने कायरा के साड़ी का पल्लू अपने दोनों हाथों में लिया , और उसके सिर पर ओढ़ा दिया । और उसे दोबारा दीवाल से टिकाकर, उसने अपना एक हाथ दीवाल में और एक हाथ कायरा की कमर पर रख लिया । दूध से सफेद गोरे चेहरे पर , पानी की बूंदों के साथ उढ़ाया हुआ काली साड़ी का पल्लू , चांद को ओढ़ाए हुए काले आसमान के आवरण सा लग रहा था । कायरा उसमें बहुत ही ज्यादा प्यारी लग रही थी और आरव उसे एक टक उसकी इस प्यारी सी खुबसूरती को अपलक देखते हुए , अपनी आंखों में बसा रहा था । कुछ पल उसे निहारने के बाद आरव ने कायरा की तरफ अपने होठ बढ़ाए , तो कायरा ने दोबारा अपनी पलकें भींच ली । आरव ने उसे ऐसा करते देख, मुस्कुराकर उसके माथे पर अपने प्रेम , अपने होठों की छाप छोड़ दी और फिर दोबारा उसे निहारने लगा । कायरा बस पलकें बंद किए इस एहसास को महसूस कर रही थी, क्योंकि ये आरव के होठों का पहला स्पर्श था जो उसके शरीर पर अंकित हुए था और वो भी खूबसूरत लम्हें के रूप में । वो इस एहसास को अपने दिल में समा लेना चाहती थी । कुछ पल बाद आरव ने उसके गाल पर हाथ रख दिया और दूसरा हाथ अपने आप ही आरव का कायरा के होठों पर चला गया । आरव हल्के हाथों से कायरा के होठों को स्पर्श करने लगा , और कायरा थी कि अपने होठों पर आरव के हाथों का स्पर्श महसूस करते ही दीवाल में गड़ी जा रही थी । उसका बस चलता , तो शायद दीवाल को तोड़कर उसमें आज समा जाती । कुछ पल बाद उसे अपने चेहरे पर तेज़ सांसें महसूस होने लगी, जो कि आरव की थी । उसने तेज़ी से अपनी मुट्ठी और आंखें दोनों भींच ली और आरव के होठ , उसके होठों के करीब पहुंच चुके थे ।
आरव के होठ कायरा के होठों से हल्के से ही छुए होंगे , कि कायरा ने तुरंत अपनी मुट्ठी खोली और झट से आरव के सीने से लिपट गई । उसने आरव को अपनी बाहों में बहुत जोर से कस लिया, साथ में अपनी आंखें बंद रखी और आरव ने भी उसी तरह उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके कंधे पर अपना सिर रखकर , उसके बालों पर हाथ फेरने लगा । उसने भी अपनी आखें भींच ली थी ।दोनों को एक अजीब सा सुकून, अजीब सी तृप्ति, एक अजीब सी खुशी मिल रही थी इस वक्त ।
भाद्रपद का महीना और उस पर जन्माष्टमी के आस - पास की बारिश होना शुभ माना जाती है । साथ ही ये एक तरह से अंतिम बारिश भी मानी जाती है । माना कि मुंबई में बिन मौसम बरसात का प्रचलन है, लेकिज इस अंतिम बारिश से कभी मुंबई भी पीछे नहीं रहा है । ऊपर से हो रही ये तेज़ बूंदों की बारिश, मानो लग रहा था जैसे आज जान बूझकर भगवान इतनी तेज़ बारिश करवा रहे थे । उसपर इन दोनों का ये आज अपनी धड़कनों को चीरता हुआ प्यार । अगल ही कहानी लिख रहा था । लेकिन क्या इतना ही काफी था, या फिर इस इज़हार को अमान्य भी माना जा सकता है, इन दोनों के द्वारा ..???? क्या ये दोनों मुकर जायेंगे, अभी हुए इनके दो दिलों के इज़हार से , या फिर इसे आज ये दोनों सहर्ष स्वीकार कर लेंगे । क्या इसके बाद भी शब्दों का होना , जरूरी है...??? इनके प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए, या फिर ये इशारा ही काफी है , कि दोनों एक दूसरे से अटूट प्रेम करते हैं । क्या ये जो प्यार के खूबसूरत एहसास अभी दोनों ने महसूस किए, ये काफी नहीं है इनकी प्रेम की पराकाष्ठा जताने के लिए । खैर......, इन सवालों के जवाब तो वक्त ही देगा , या फिर ये दोनों ।
दोनों एक दूसरे में खोए से खड़े थे, कि तभी उन्हें कदमों की आहट की आवाज़ आई । दोनों ने आंखें खोली और जैसे ही अपने आपको एक दूसरे से लिपटे पाया, तुरंत अलग हो गए । कायरा अपनी साड़ी का पल्लू अपने कंधे पर संभाले टेरेस के किनारे पर जाकर खड़ी हो गई और आरव टेरेस के दरवाजे के पास कायरा से दस कदम की दूरी पर खड़ा हो गया , अब तक उसने अपनी धड़कनों को थोड़ा काबू का लिया था । तभी उसे वॉचमैन की आवाज़ सुनाई दी, जो सीढ़ियों से ऊपर आते हुए उसे देखकर कह रहा था ।
वॉचमैन - अरे सर....., आप तो बहुत बुरी तरह से बारिश में भीग गए ( फिर टेरेस पर आकर कायरा को देखते हुए बोला ) और मैम भी ....। इतनी तेज़ बारिश में आप दोनों यहां क्या कर रहे हैं और मैम वहां किनारे पर क्यों खड़ी हैं ..???? ( आरव ने कोई जवाब नहीं दिया , कोई कुछ कहता उससे पहले ही वॉचमैन आरव को चाबी पकड़ाते हुए बोला ) सर बारिश बहुत उफान पर है, नीचे पार्किंग एरिया पर थोड़ा - थोड़ा पानी जमा हो गया है । मुझे लगता है आप दोनों को भी कपड़े चेंज कर जल्दी ही घर के लिए निकल जाना चाहिए । बारिश बहुत तेज़ हैं, कहीं अगर सड़कों पर जाम लग गया , तो आप दोनों फंस जायेंगे । मैंने सभी जगह लॉक लगा दिया है, सिर्फ आपके फ्लोर का स्विच ऑन है, ये रही बिल्डिंग के मेन गेट और आपके फ्लोर की चाबियां । मैं अगर यहां रहा , तो पानी में फंस जाऊंगा और ऐसे में मेरे बीबी बच्चे परेशान हो रहे होंगे । ऐसी स्थिति में घर में अक्सर पानी भर जाता है , इस लिए उनकी देख रेख़ के लिए मुझे जाना होगा ।
आरव ( उससे चाबियां लेकर ) - ठीक है, तुम जाओ । ध्यान से जाना , और अगर कोई प्रॉब्लम आए , तो बता देना । हम भी कुछ देर में निकलेंगे ।
वॉचमैन - आपने मदद के लिए कहा, इतना ही काफी है साहब । मैं निकलता हूं ।
इतना कहकर वो चला गया । और इधर आरव बरसते पानी में टेरेस के दूसरे छोर में आ गया और उसने अपना हाथ रेलिंग में दे मारा और गुस्से से झुंझलाते हुए मन ही मन खुद से कहा ।
आरव - ये मैंने आज क्या कर दिया...??? इतना क्लोज .., वो भी बिना इकरार के , बिना उसकी सहमति जाने मैं ऐसा कैसे कर गया ये । क्या सोच रही होगी वो मेरे बारे में । आरव...., ये तूने आज क्या कर दिया । कैसे तू आज अपने जज्बातों को कंट्रोल नहीं कर पाया । कैसे तू बहक गया , कैसे...????
इधर कायरा रेलिंग के पास खड़ी , खुद पर गुस्सा कर रही थी । वह मन ही मन खुद को सुना रही थी ।
कायरा - आज तुमने ये क्या कर दिया कायरा..??? खुद पर काबू क्यों नहीं रखा ......??!!! तुमने तो आज ये साबित कर दिया आरव की नजरों में , कि तुम उससे प्यार करती हो । अब भला इतना सब होने के बाद तुम उन्हें कैसे झुठलाओगी..???? उनके सवालों का सामान कैसे करोगी तुम ....???? अब तक तो उन्हें शक था , कि मैं उन्हें पसंद करती हूं , फील करती हूं बहुत कुछ उनके लिए , लेकिन अब तो उनका शक यकीन में बदल गया होगा । ये सब होने के बाद तेरे लिए समस्या और बढ़ने वाली है कायरा, तू कैसे सामना करेगी अब आरव का ...??
आरव ( मन ही मन ) - माना कि उसने विरोध नहीं किया, लेकिन पहल भी तो उसने नहीं की थी , तूने ही की थी । तूने ये गलत किया , उसकी चुप्पी को देख तुझे अपने कदम रोकने चाहिए थे , न कि बढ़ाने चाहिए थे । ( तभी वह कुछ सोचते हुए खुद से मन ही मन बोला ) लेकिन कायरा ने विरोध क्यों नहीं किया ....??? उस दिन राजवीर के उसके हाथ भर पकड़ लेने से उसने उसे करारा तमाचा जड़ दिया था । फिर आज...., इतना सब होने के बाद भी उसने एक शब्द नहीं कहा । जहां तक मुझे पता है, कोई भी लड़की ऐसे ही किसी लड़के के करीब नहीं जाती । और जितना मैं जानता हूं , कायरा उन लड़कियों में से बिल्कुल भी नहीं है जो लड़कों का फायदा उठाए या फिर गलत इरादा रखे । कायरा तो एकदम साफ दिल की सीधी और समझदार लड़की है । फिर उसने विरोध क्यों नहीं किया...??? उसने सारे हक उस वक्त मुझे क्यों दिए...??? पार्टी में भी उसने वो हक मुझे दिया था , जो कि कोई भी लड़की उसे ही देती है जिस पर वो ट्रस्ट करती है । चलो अगर इतना भी है , तो भी कोई बड़ी बात नहीं , क्योंकि इतना हक तो एक दोस्त को भी मिल सकता है , क्योंकि भरोसा तो दोस्त पर भी होता है , और वो तो एक नॉर्मल सा डांस बस था । लेकिन अभी जो हुआ वो...., वो सब नॉर्मल नही था । क्या मेरा शक सही था , कायरा भी मेरे लिए वही फील करती है जो मैं उसके लिए करता हूं । हां......, करती है वो मेरे लिए फील तभी तो आज उसकी आंखें हमेशा की तरह सच बयां कर रही थी । और अभी जो कुछ वक्त पहले हमारे बीच हुआ , उसे देखकर तो साफ है कि मैं आज गलत नही हूं । लेकिन फिर कायरा ने कभी कुछ कहा क्यों नहीं ...???? क्या वो ये चाहती है , कि पहल मैं करूं अपने प्यार की ..???? क्या उसे भी बाकी लड़कियों की तरह ये लगता है , कि हमेशा इस मामले में पहल लड़के को ही करनी चाहिए । लेकिन हमारा प्यार तो बराबरी का है , तो फिर पहले वो करे या मैं इससे उसे या मुझे फर्क तो नहीं पड़ना चाहिए । अगर ऐसा है तो मुझे कायरा से बात करनी होगी , और अगर वो ऐसा चाहती है तो मैं पहल करने को तैयार हूं । और अगर इसके अलावा बात कुछ और है , तो मुझे जननी होगी । मुझे जल्द से जल्द जानना होगा , कायरा ऐसा क्यों कर रही है । क्यों सब कुछ जानते समझते हुए भी वह चुप है ।
सोचते हुए आरव जैसे ही पलटा , उसे दरवाजे के पास कायरा खड़ी नजर आई । वह उसकी तरफ बढ़ गया । कायरा ने नजरें नीची किए ही आरव से कहा।
कायरा - मुझे लगता है हमें चलना चाहिए , हवा बहुत तेज है और बारिश भी ।
आरव कायरा की आवाज में कंपन महसूस कर रहा था और उसने ध्यान से कायरा को देखा , तो बारिश के साथ चल रही तेज़ हवा के कारण वह ठिठुर रही थी । कायरा को ठंड न लग जाए , सोचकर उसने हामी भरी और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया । उसके पीछे - पीछे कायरा भी चल पड़ी । आरव ने टेरेस का डोर लॉक किया और नीचे आने लगा । तीन चार सीढ़ी नीचे उतरने के बाद कायरा के पैरों में फिसलन होने लगी , क्योंकि एक तो गिले कपड़े और उसपर गीले नंगे पैर , साथ में चिकनी टाइल्स होने के कारण उसके पैर फिसल रहे थे । कायरा लड़खड़ाई , पर उसने रेलिंग पर हाथ रख लिया और खुद को गिरने से बचा लिया । आरव ने जब ये देखा , तो वह कायरा की तरफ आया । कायरा कुछ समझ पाती , उससे पहले ही आरव ने उसे अपनी बाहों में उठाया और सीढियां उतरने लगा । कायरा बस हैरान सी उसे देखती रह गई । वह उसे एक टक देख रही थी , पर आरव ने उसे एक बार भी नहीं देखा । वह शायद ऑब्जर्व कर रहा था कायरा को , और उसे अपने सवालों के जवाब भी तो चाहिए थे । दोनों अपने फ्लोर पर आए । आरव ने कायरा को नीचे उतारा और कहा ।
आरव - कपड़े चेंज कर लो , डिजाइन रूम में तुम्हारे पहनने लायक कपड़े मिल जायेंगे , उन्ही में से कुछ पहन लो , जो तुम्हें कंफर्टेबल लगे ।
कायरा - हमें काफी लेट हो चुका है आरव , मैं घर जाकर चेंज वगेरह कर लूंगी । अभी अगर यहां ये सब किया , तो और वक्त बर्बाद होगा । अभी हमें घर चलना चाहिए ।
आरव - तुम जिस तरह से भीगी हो और ठंड से कांप रही हो , उसके बाद भी अगर तुमने ये गीले कपड़े अगर पांच मिनट भी एक्स्ट्रा पहने तो तुम्हें ठंड लग जायेगी , बीमार पड़ जाओगी तुम । और ऐसा मैं चाहता नहीं हूं ।
कायरा - लेकिन आरव हम और लेट हो जाए.....।
आरव - कपड़े चेंज कर लो कायरा । मैं भी अपने केबिन में कपड़े चेंज करने जा रहा हूं । ऐसी हालत में मैं तुम्हें अब एक मिनट भी नहीं देख सकता । अगर तबियत बिगड़ी तुम्हारी , तो हमें इस वक्त कोई क्लिनिक भी खुला मिल जाए तुम्हारे इलाज के लिए , ये भी बहुत बड़ी बात होगी ।
कायरा ने बिना कुछ कहे उसके आगे हाथ बढ़ाया , तो आरव ने चाबी के गुच्छे में से अपने केबिन की चाबी निकाल ली और बाकी की चाबियां उसे पकड़ा दी । कायरा उन्हें लेकर डिजाइनर रूम में चली गई । आरव भी अपने केबिन में चला गया । और उसने अपने पर्सनल कबर्ड में से अपने कपड़े निकाले , जो वह हमेशा तीन से चार जोड़ी जरूरत पड़ने पर काम आने के लिए रखता था , उन्हें लिया और वाशरूम में चला गया । कायरा डिजाइनर रूम के अंदर आई , उसने वहां बहुत से कपड़े देखे , पर वे सारे कपड़े कायरा के पहनावे से उलट थे । जो सूट वगेरह भी थे अगर , तो वे सब भी या तो टाइट या फिर ढीले थे । इस वक्त उन्हें फिट करना बड़ा मुश्किल था , क्योंकि उसमें बहुत वक्त लगता । तभी उसे कुछ साड़ियां दिखी । उन्हें देख कर कायरा ने उदास सा चेहरा बना किया । वह क्या करे उसे समझ नहीं आ रहा था । उसने आगे बढ़कर साड़ियों के ब्लाउज ट्राय किए , तो एक ब्लाउस उसे फिट आ गया । अब टेंशन ये कि वह पहने कैसे । उसने याद किया , कि आरव ने कैसे उसे साड़ी पहनाई थी और मालती जी ने भी कैसे बताया था उसे । वीडियो में कई बार देखा था उसने , वो सब याद किया । उसने एक बार फिर पूरे रूम को देखा , जहां महंगी महंगी गाउन रखी थी , लेकिन बिना फिटिंग की या फिर जो कल डिलीवर होने वाली थी , उन्हें भला वो कैसे पहनती । उसने मजबूरन एक लाइट क्रीम से कलर की साड़ी उठाई और उसे जैसे तैसे करके लपेट लिया । उससे साड़ी की प्लेट्स बनाते तो नहीं बनी , पर उसने इतना तक तो उसे लपेट ही लिया था , कि कम से कम वह उसमें घर पहुंच सके । वह रूम को लॉक कर किसी तरह साड़ी संभाले बाहर आई ।
अब तक कायरा आरव को ऑफिस में आए काफी वक्त हो चुका था, और रात भी गहराने लगी थी । आरव वाशरूम से बाहर आया , उसने लाइट पिंक शर्ट और व्हाइट पेंट पहना हुआ था । वह बालकनी की तरफ ये देखने आया , कि शायद बारिश थोड़ी कम हो गई हो , तो उसे गाड़ी ड्राइव करने में आसानी होगी । लेकिन बालकनी में आकर जब उसने नीचे नजरें घुमाई , तो हैरान रह गया । वह तुरंत केबिन से बाहर आया । बाहर आते ही उसकी नज़र जब कायरा पर पड़ी , तो उसने उसे कुछ पल देखा और फिर अगले ही पल जोर - जोर से हंसने लगा । ये देख कायरा चिढ़ गई और फिर उदास सा चेहरा बनाकर उसने आरव से मुंह मोड़ लिया । ये देख आरव बोला ।
आरव - अच्छा सॉरी ...., सॉरी । लेकिन तुमसे जब ये पहनते नहीं बनती , तो पहना क्यों...?? और भी कपड़े होंगे रूम में , उन्हें वियर कर लेती ।
कायरा ( उसकी तरफ पलट कर उसे घूरते हुए बोली ) - अगर मेरे लायक कपड़े होते , तो पहन लेती । लेकिन नहीं है , और जो हैं वो या तो फिटिंग में नहीं है या फिर कल डिलेवर होने वाले हैं ।
आरव - तो उन्हें ही पहन लेती , क्लाइंट को एक दिन बाद वो ड्रेस डिलीवर हो जाती , आखिर एक ही ड्रेस की तो बात है ।
कायरा - नहीं ...., वैसे भी मैंने इसे वियर कर लिया है , ठीक है जैसी भी है ।
आरव - अरे तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे लायक ड्रेस ढूंढ कर देता हूं ।
कायरा - नहीं , रहने दीजिए , यही ठीक है ।
आरव - तो मैं तुम्हारी इस साड़ी को अच्छे से वियर करने में मदद कर देता हूं ।
कायरा ( खीझकर ) - रहने दीजिए न आरव । हमें देर हो रही है । मैं घर पहुंचते तक संभाल लूंगी इसे कैसे भी करके । आप प्लीज यहां से चलिए , लेट हो रहा है । हमें घर पहुंचने में अब और देर नहीं करनी चाहिए ।
आरव - सॉरी ...., लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता ।
कायरा ( उसकी तरफ देखकर ) - नहीं हो सकता से क्या मतलब है आपका..????
आरव - नीचे घुटनों तक पानी भरा हुआ है , ऐसे में हम कैसे जायेंगे ...???
कायरा ( भौचक्की सी ) - क्या....????
आरव ने हां में सिर हिला दिया , तो वह उसी फ्लोर पर बनी बालकनी में आ गई , जहां से बिल्डिंग का फ्रंट क्राइटेरिया दिखाई देता था । उसने नीचे देखा , तो आरव की आधी कार पानी में डूबी हुई थी । शुक्र था , कि ऑफिस एरिया का फ्रंट गेट बंद था , वरना कार नाव की तरह तैरते हुए अब तक सड़क पर आ जाती । पानी अब भी तेज़ था और पानी को इतना तेज़ बरसते हुए काफी वक्त हो गया था , इसलिए अब जगह - जगह पानी उफान पर था , और अब पानी के भराव जैसी स्थिति हो गई थी , अगर ऐसे ही पानी अगले चौबीस घंटे बरसा तो पक्का वहां बाढ़ की संभावना बन सकती है । ये देख कायरा का सर चकराने लगा और सबसे पहला खयाल उसे अपने घर वालों का आया । वह भाग कर अंदर आई और उसने डेस्क पर रखा अपना फोन उठाया , तो देखा उसमें रूही , देवेश जी , मालती जी और अंश के मिलाकर पैंतीस मिस्ड कॉल्स पड़े हैं । उसने तुरंत मालती जी को कॉल किया और अब उसे बहुत डर लग रहा था और घबराहट हो रही थी , कि वह क्या करे ....., कैसे घर जाए ............।
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3beb438dc42d46c61c8d7d0e0b575a5a01dd8089cfcff5a75e269ebc8c4ab9eb | pdf | 184 / दुष्यन्त कुमार रचनावली चार
उनके व्यवहार और चरित्र के अध्ययन के मामले में डॉ० ब्रह्मदेव शर्मा तो विशेषज्ञ हैं ही, पर श्री महेंद्र कुमार दीक्षित के संस्मरण भी बड़े दिलचस्प हैंः "तुम गाय को हल में जोतते हो ?"
"जोतते हैं।" "मगर क्यों ?"
"इसलिए कि आदमी- औरत (गाय-बैल) दोनों काम करते हैं। हम भी करते हैं।" "पर गाय तो दूध देती है।" "अपने बच्चे को देती है।"
"तुम नहीं निकालते उसका दूध ?"
"क्यों ?"
"कहीं लात मार दे तो !"
इस 'तो' से आदिवासी बहुत घबराता है
"तुम हमसे क्यों डरते हो ?"
"हम तुम लोगों की बोली नहीं जानते ।" "उससे क्या होता है ?"
"कहीं कोई गाली दे दे तो ?"
मेरे पास उनकी इस शंकित मनोवृत्ति के कई संस्मरण हैं। वह वक्त जाने कब आएगा, जब ये लोग मनुष्य मात्र को अपनी बिरादरी का आदमी समझेंगे । पर इस शंकित मनोवृत्ति के लिए दोषी कौन है ? क्या अबूझमाड़ का आदिवासी
(डॉ० ब्रह्मदेव शर्मा जी जब वहाँ के कलक्टर थे, वह सन् 1968-69 था।)
प्रशासन और पीत पत्रकारिता
तब राजा विक्रमादित्य ने बैताल से पूछा, "बैताल, प्रशासन के रास्ते में कौन-सी बाधाएँ सबसे भयंकर होती हैं ?"
बैताल पेड़ से नीचे उतर आया और विक्रमादित्य की ओर देखकर बोला, "राजन्, तेरे भीतर भी स्वच्छ प्रशासन की बड़ी तड़प है, पर तुझे भी एक-दो भ्रष्ट पत्रकार उसी तरह गुमराह करने में लगे हैं, जैसे प्रकाशचंद्र सेठी को ।"
राजा ने पूछा, "बैताल, ये प्रकाशचंद्र सेठी कौन है ? और यह पत्रकार कौन है ?" "राजन् ! अगर तू अपने राज्य में स्वच्छ प्रशासन चाहता है तो पहले प्रकाशचंद्र सेठी और एक पत्रकार का किस्सा सुन । सेठी एक ऐसे प्यारे और साफ़-सुथरे इंसान का नाम है जो राजनीति की कीचड़ भरी पगडंडी भी धुले हुए पाँचों से तय करना चाहता है। जम्बूदीप के भरत खंड में मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के बाद उसने भ्रष्टाचारी हलकों में हलकी ही सही, एक खलबली पैदा ज़रूर की है। इसलिए पुराने हरामी अब नए मुखौटे लगाकर सामने आ रहे हैं और उन्हें गुमराह करने के साथ मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच एक दरार भी डालना चाहते हैं। "
"ये लोग कौन हैं बैताल, और सेठी ने इनका क्या बिगाड़ा है जो ये उन्हें बिगाड़ने पर तुले हैं ?"
"ये अनेक लोग हैं, पर इनमें एक पत्रकार इनका नेता है राजन् ! तुम उसे वास्तविक पत्रकार मत समझ बैठना । वह पत्रकार सिर्फ इसलिए है कि एक अख़बार निकालता है। अख़बार इसलिए निकालता है, क्योंकि उसके पास करने को कोई और धंधा नहीं है। पहले सरकारी नौकरी में था, वहाँ से भ्रष्ट कारगुज़ारियों के लिए निकाला गया तो पत्रकार हो गया ।"
"बैताल, ऐसे आदमी का नाम तो बताओ ?"
"नहीं राजन् ! आज की पत्रकारिता में नाम नहीं लिखे जाते, सिर्फ इशारे किए जाते हैं। मैं एक इशारा करता हूँ, तुम किसी से बूझ लेना, कोई भी तुम्हें नाम बता देगा। कुछ वर्ष पहले म०प्र० शासन के एक कार्यालय में मेढक की शक्ल का एक केरली क्लर्क काम करता था। उसने अपनी हरामखोरी, जालसाज़ी और बेईमानी की जन्मजात खूबियों के बल पर हज़ारों रुपयों का गोलमाल किया और जेब नोटों से भर ली। जब शासन की आँख खुली तो वह पकड़ा गया। सुना है, हथकड़ी डालकर जूते मारते हुए उसे हवालात ले
186 / दुष्यन्त कुमार रचनावली : चार
जाया गया। सरकारी पैसा उगलवाने के लिए सिपाहियों ने उसके मुँह में पेशाब किया। पर उसने पैसा नहीं लौटाया, पेशाब पी लिया। आखिर वह जेल चला गया। तीन साल जेल में रहा और वहाँ से लौटकर उसी पैसे के बल पर एक अख़बार निकालने लगा ।" "वह किस तरह का अख़बार है बैताल ?" विक्रमादित्य ने उत्सुकता से पूछा। "राजन् !" बैताल ने गंभीरता से जवाब दिया, "उसकी अदा है - पीत पत्रकारिता, यानी राज्य के छोटे-छोटे कर्मचारियों और अधिकारियों के ख़िलाफ़ लिखकर उन्हें डराधमकाकर उनसे रकमें ऐंठना और केरली लड़कियों को नौकरी दिलवाना, परंतु इससे पहले उनकी इज़्ज़त और अस्मत से खेलना । इधर वह एक ऐसे नवयुवक उद्योगपति के पीछे पड़ा हुआ है, जिसके सहारे उसने पहले अपनी दुकानदारी शुरू की थी और जिसकी छपाई के बिलों का पेमेंट अभी भी उसे करना है ।"
"बैताल, वह पाजी, मित्र के साथ ऐसा क्यों कर रहा है ?"
"राजन्, उसकी नज़रों में मित्र नहीं, बल्कि अपने मित्र की वह प्रेमिका हरदम घूमती रहती है, जिसको प्राप्त करने के लिए यह पत्रकार मेढक की तरह पिछले दस वर्षो से फुदक रहा है। सारे फाँसे बेकार होने के बाद अब इसने उसके और उसके प्रेमी के ख़िलाफ़ लिखना शुरू किया है।'
"वह क्या कोई सुंदर लड़की है ? "
"हॉ राजन् ! वह एक खूबसूरत मगर गरीब लड़की है । एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क है । कुल डेढ़ सौ या दो सौ तनख्वाह पाती है। परिवार के संस्कारो से मजबूर है, इसलिए एकाध मोटी चिड़िया को फाँसे रखती है, ताकि घर का खर्चा चलता रहे । "
" सुना है, वह शासन में बड़े से बड़े काम करा सकती है, इसीलिए उसे क्रिस्टीना की तरह का नाम दिया गया है ?"
"यह नाम देने वाले उसे अपनी गोद में लाना चाहते हैं। अभी वह कॉन्ट्रेक्ट बेसिस पर चलती है। ये लोग उसे डेली वेज़ेज़ पर करना चाहते हैं। अगर वह शासन में प्रभाव रखती तो सबसे पहले हम्माली करने वाले अपने सगे भाई को कहीं चपरासी रखवाती और यह भी न करती तो कम से कम खुद को निम्न श्रेणी लिपिक से उच्च श्रेणी लिपिक ज़रूर बनवा लेती ।"
"बैताल, हम भी उस लड़की की बातों में उलझ गए, बात सेठी जी की हो रही थी ?" "हॉ राजन् ! वह लड़की है भी उलझाने वाली, पर मेरे या तुम्हारे नहीं, उस पत्रकार के उलझाए ही वह उलझेगी। अभी उसका और सेठ का कॉन्ट्रेक्ट चल रहा 1 जब कॉन्ट्रेक्ट की अवधि ख़त्म हो जाएगी, तब यह पत्रकार कोशिश करेगा, क्योंकि इसके पास ग़बन किया हुआ काफ़ी पैसा है। पत्रकार चाहता है कि सेठ कॉन्ट्रेक्ट तोड़ दे । सेठ तोड़ नहीं रहा, यही असल झगड़ा है । "
प्रशासन और पीत पत्रकारिता / 187
"बात सेठी जी की चल रही थी बैताल !"
"हाँ राजन्, मैं बहक गया था। इस पत्रकार ने उस लड़की के पास अपने एक चमचे को भेजा था और वादा किया था कि सेठी जी से कहकर उसका प्रमोशन करा देगा। इसीलिए सेठी जी के ख़िलाफ़ लिखते-लिखते, इसने सहसा एक करवट बदली और उनकी प्रशंसा के गीत गाने लगा। मगर तभी लड़की ने मुँह फेर लिया, क्योंकि सेठ उसे चार सौ रुपया महीना देने लगा।"
"बैताल, तुम फिर लड़की पर आ गए ?"
"राजन्, क्षमा करना । यह लड़की युग है। मगर सेठी जी को इससे ख़तरा नहीं, क्योंकि वे इस चक्कर से बहुत दूर हैं। वे ही पत्रकार की असलियत समझते हैं और सबसे प्यार से बातें करते हैं ।"
"क्या उन्हें मालूम है कि यह पत्रकार जेलयाफ्ता क्लर्क यानी पुराना सेवक है ।" " उन्हें हर शख़्स की हक़ीक़त मालूम है राजन् ! उन्हें मालूम है, कौन भ्रष्ट है, कौन जेलयात्रा कर आया है और कौन अफ़वाहों को किस ढंग से उछालता है ? कौन किस साउथ इंडियन अफ़सर का चमचा है ? "
"तो इससे क्या शिक्षा मिलती है बैताल ? तुमने ये कहानी मुझे क्यों सुनाई ?" "राजन्, इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि छोटे-मोटे अख़बारों की बातों पर ध्यान मत दो, लेकिन उनके संपादकों से प्यार भरी बातें करो। ये अख़बार जिन अफ़सरों की तारीफ़ करें, समझ लो, खाया है। तुम्हें मालूम नहीं, इस मध्य प्रदेश के सबसे बड़े भ्रष्टाचारी एक साहित्य परिषद के सचिव ने अभी अपने पक्ष में जबलपुर, इंदौर और उज्जैन के बीसों व्यक्तियों से हस्ताक्षर कराके मुख्यमंत्री को ज्ञापन भिजवाए और लेख लिखवाए, मगर सेठी जी उन्हें चुपचाप पी गए । यहाँ तक कि एक कुलपति ने जब सेठी जी से उसे बचाने की बात की तो सेठी जी ने सिर्फ इतना आश्वासन दिया बताते हैं, 'मैं जो नियम-संगत होगा, वही करूँगा ।' इसीलिए लोगों में यह धारणा पक्की हो गई है कि घटिया अख़बार जिस सरकारी कर्मचारी का समर्थन करें, उसने ज़रूर रिश्वत दी है और जिसकी बुराई करें, उससे रिश्वत मॉगी जा रही है।"
"सेठी जी को ये बातें मालूम नहीं हैं क्या ?"
"सेठी जी को सब कुछ मालूम है । पर सेठी जी इन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं देते। जब भ्रष्टाचारी और ग़बनखोर भ्रष्टाचार - उन्मूलन और नैतिकता की बात करता है तो हँसी आती है । आशा है, इस प्रश्नोत्तर से उस पत्रकार का पित्त शीतल हो जाएगा और तुम्हें प्रशासन का वह सूत्र मिल जाएगा, जिसके सहारे तुम प्रकाशचंद्र सेठी की लोकप्रियता की व्याख्या कर सको।"
इतना कहकर बैताल फिर पेड़ पर चढ़कर उलटा लटक गया ।
एक व्यंग्य-चित्र
समारोह से पहले कमलेश्वर का वक्तव्य
पंजाब सरकार द्वारा मोहन राकेश को सम्मानित और पुरस्कृत करने का फ़ैसला किया गया है। यह भी निर्णय किया गया है कि इस अवसर पर उन्हें मानपत्र, एक हज़ार एक सौ रुपए, एक दुशाला, एक पगड़ी और एक दाढ़ी भेंट की जाएगी।
समारोह में मोहन राकेश का भाषण
मुझे सम्मानित किया गया और समारोह में भी वही सब हुआ, जो कि ऐसे अवसरों पर प्रायः होता है। मुझे समारोह की यह पुनरावृत्ति अच्छी नहीं लगी । अतः मैंने फ़ैसला किया कि कम से कम मैं अपनी तरफ से ऐसा कुछ करूँगा या कहूँगा नहीं, जो पहले कहा था किया जा चुका हो। आपको याद होगा, डॉ० मदान ने पिछले साल उन्हें मिली रकम हाथ के हाथ वापस कर दी थीं। लिहाज़ा, मैंने सोचा कि इस वर्ष रुपए वापस करने के स्थान पर पगड़ी वापस करूँगा । लीजिए, ये पगड़ी हाज़िर है। समारोह के बाद वार्तालाप का अंश
दिल्ली आकर राकेश ने कुछ दोस्तों को खाने पर बुलाया - मन्नू भंडारी, राजेंद्र यादव, दुष्यन्त कुमार, जवाहर चौधरी और अनीता। यादव सबसे ज़्यादा उत्साहित थे । बार-बार पूछते, "बोल बे, क्या मिला ?"
सहसा टेलीफोन की घटी बज उठी। राकेश को उठकर दूसरे कमरे में जाना पड़ा। " किसका टेलीफोन था ?" लौटने पर लगभग सभी के चेहरों पर जिज्ञासा उभरी । "पटना से कमलेश्वर ने फोन किया था।" राकेश ने कहा, "यही पूछ रहा था कि क्या-क्या मिला, क्या हुआ ""
"तूने क्या बताया ?" जवाहर ने
"वही, मैंने बताया, एक दुशाला, एक मानपत्र, एक हज़ार एक सौ रुपए, एक पगड़ी और एक दाढ़ी मिली थी। रुपए दुप्यन्त आकर खर्च कराए दे रहा है, दुशाला अम्मा को दे दिया है। मानपत्र मदान को दे आया हूँ और पगड़ी सरकार को । अब केवल तेरी बताई हुई दाढ़ी बची है।"
प्रशासन और पीत पत्रकारिता / 189
एक ठहाके से कमरा गूँज उठा। "तुमने क्या कहा ?" यादव ने पूछा ।
"मैं क्या कहता," राकेश ने उत्तर दिया, "कमलेश्वर ने ही सुझाया है कि दाढ़ी यादव को लगाकर दे दी जाए और उसे यह सिद्ध करने के लिए चंडीगढ़ भेज दिया जाए कि हिंदी का असल पंजाबी लेखक वह है।"
(1970 के आसपास की रचना)
मेरी सबसे मनोरंजक भूल बिना टिकट सफर
उसे देखते ही मेरे हाथों के तोते उड़ गए। मैंने सोचा भी नहीं था कि स्टेशन की भीड़-भाड़ से दूर आधी रात को इस एकांत और निर्जन रास्ते में कोई टिकट चेकर मुझसे टिकट दिखाने को कहेगा ।
मैं लखनऊ से बिना टिकट चला था । मुरादाबाद तक का सफर धड़कते हुए दिल से तय किया था । यद्यपि जेब में पैसे थे, पर पहले तो वक़्त की तंगी और फिर आलस्य के कारण टिकट नहीं बनवा पाया। ज्यों-ज्यों मुरादाबाद पास आता गया - लगा, अब तो घर आ ही गया है, ज़रा-सा घूमकर चुपचाप निकल जाएँगे।
लेकिन चुपचाप उस टिकट चेकर ने मोर्चेबंदी कर ली और बड़ी श्रद्धा से मेरी बॉह पकड़ते हुए बोला, "ऐसी भी क्या जल्दी है ? चाय-वाय पीकर जाना । "
मैं उस रेलवे कर्मचारी की विनम्रता का आज भी कायल हूँ। उसके पुल के ऊपर से मुझे देखा और सिर्फ इस ख़याल से कि मैं ठंड में कुड़कुड़ा रहा हूँ, वह अपनी गेट की ड्यूटी छोड़कर मुझे चाय पिलाने के लिए वहाँ तक भागा आया, यह सोचकर मुझे ख़ुशी होनी चाहिए थी। लेकिन दुर्भाग्य से मैं इस भाषा से परिचित था । अब इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था कि चुपचाप उसके साथ हो लूँ । वह मुझे पुल के ऊपर गेट के पास ले आया। दो-तीन कॉलेज के लड़के मेरी ओर बड़ी अर्थवान, किंतु निष्करुण दृष्टि फेंकते हुए निकल गए। मगर वह सज्जन निर्लिप्त-से व्यस्त बने रहे। काफ़ी देर के बाद उसने पूछा, "लखनऊ से आ रहे हो ?"
"जी हाँ, " मैंने गर्दन हिलाकर सहमति दी ।
"हूँ," उसने एक लंबी साँस छोड़कर कहा, "सत्ताईस रुपए दस आने निकालिए ।" "जी !" मैंने मुख- मुद्रा पर आश्चर्य का भाव विस्तीर्ण करते हुए कहा और फिर चुपचाप जेब से एक रुपए का नोट निकालकर उसके हाथ पर रख दिया।
इस पर उसने बड़ी गहरी पीडा से मेरी आँखों में आँखें डालकर कहा, "क्या मज़ाक़ करते हो बड़े भाई !" और फिर मेरे नोट पर दो रुपए का नोट रखकर लौटाते हुए बोला, "जाओ, मेरी तरफ से कहीं चाय पी लेना ।"
यह मेरे लिए एक अवसर भी था और चुनौती भी। लिहाज़ा मैंने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, "बड़े भाई, एक रुपया ही ले लीजिए।" |
6e7decd89f297d72ed7dfabbe4d10fccc42c40c32f2a30b2514f12d5572013d9 | pdf | अत कह सकते है कि छन्द शास्त्र पारगत सुन्दरदास की रचनाओ मे, वर्णिक एव मात्रिक दोनों प्रकार के छन्दों का समान अधिकार के साथ प्रयोग देखने को मिलता है। ज्ञान-समुद्र काव्य ग्रन्थ के प्रारम्भ में उन्होंने लिखा है कि जितने प्रकार की छन्द - जातियाँ है, उन सबका प्रयोग उन्होने ज्ञान - समुद्र ग्रन्थ मे उसी प्रकार किया है, जैसे सागर में सीपों की स्थिति शोभायमान रहती है । सीपियो के समान ये छन्द, अर्थरूप मोतियों से भरपूर हैं। देखिए -
जाति जिती सब छदनि की, बहु सीप भई इहि सागर माहीं । है तिन मैं मुक्ताफल अर्थ लहैं उनकौ हित सौ अवगाहीं ॥ ज्ञान- समुद्र रचना में प्रयुक्त छन्दों का नामोल्लेख यहाॅ आवश्यक है। ये है - दोहा, सोरठा, चौपई, इन्दव - सवैया, चौपइया, छप्पय, त्रोटक, मनहर, रोड़ा, पवंगम, नन्दा, अर्धभुजगी, पद्धडी, दोधक, गीतक, कुण्डलिया, मालती, चम्पक, गीता / [-चामर] मोतीदाम, लीला, हंसाल, डुमिला, कुण्डली, रासा, नराय, रगिक्का, विज्जुमाला, चन्दाणां, हरसंषाणा, चर्पट, पायक्का और त्रिभगी। ये कुल 34 प्रकार के छन्द हैं । इनके अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में प्रयुक्त छन्दों के नाम हैं- अर्ध सवैया, नीसांनी, भुजंग प्रयात, मोहिनी, चामर, झूलना, रुचिरा, अडिल्ला, मडिल्ला और बरवै । वर्णिक गण छन्द - वृत्तों मे इन्दव (= मत्त गयंद ), दुर्मिल, किरीट तथा वर्णिक मुक्तकों में मनहर
कवित्त) और रूपघनाक्षरी छन्द हैं । मात्रिक सम छन्दों में वीर, समान सवैया (= केतकी) और हंसाल हैं और विषम मात्रिक छन्दों मे कुण्डलिया का प्रयोग सन्दर-वाणी में सर्वत्र देखा जा सकता है। सुन्दरदास ने अपने काव्यों में सर्वाधिक प्रयोग इन्दव ( = मत्तगयन्द ) सवैया का किया है । सच तो यह कि सवैया छन्द - रचना में वे सिद्धहस्त थे । छन्द - रचना की दृष्टि से रीतिकाल के कवियों में उनका स्थान इस प्रकार निर्धारित किया गया है"सवैया छन्द स्वामी सुन्दरदास जी को बहुत प्रिय था। सवैया के बनाने में वे सिद्धहस्त थे। जैसे सूर का पद, तुलसी की चौपाई, नाभादास का छप्पय, केशव का कवित्त, गिरधर की कुण्डलियाँ, बिहारी का दोहा हैं, वैसे ही सुन्दर का सवैया समझना चाहिए । यह सवैया इन्दव है, जिसे मत्तगयन्द भी कहते हैं, जो सुन्दरदास जी की अतिविशिष्ट रचना है।" - पुराहित हरिनारायण शर्मा, सुं. ग्रं. 1 ( भूमिका, पृ. 91 )
जैसा कि बताया जा चुका है कि सुन्दरदास की शिक्षा-दीक्षा, संस्कृत-भाषा-साहित्य के गढ़ कहे जानेवाले काशी नगर में हुई थी । वहीं रहकर उन्होंने व्याकरण, दर्शन, भाषा के रीति-ग्रन्थों तथा काव्य एवं दर्शन की विविध परम्पराओ एवं लोक व्यवहार का सम्यक् अध्ययन-मनन किया था। इस अध्ययन का प्रभाव उनके सभी ग्रन्थों की
108 / सुन्दरदास
रचना-धर्मिता मे देखने को मिलता है । अत सन्त-काव्य-रचयिता अन्य रचनाकारो मे - नामदेव, कबीर, नानक, दादू, रज्जव, मलूकदास, हरिदास निरजनी, मीराबाई आदि से उनकी वाणी का स्वभाव और स्वरूप भिन्न होना सर्वथा स्वाभाविक है। जीवन भर अर्थात् अध्ययन-मनन और लेखन की इतनी लम्बी कालावधि ने उन्हें भाषा-परिपक्वता और छन्द-रचना में सिद्धहस्तता प्रदान की है। जिस भाषा - शब्द-समूह से उन्होने अपने भाषा-छन्दों को सँभारा है और उसमें अर्थतत्त्व को, मुक्ताफल (= मोती, मोक्ष) की तरह, लक्षित बनाए रखा है, यही सब एक जागरूक लेखक की ही पहचान है। साथ ही वे पाठक को अपने वाणी-सागर में अवगाहन की प्रेरणा भी देते रहे हैं -
है तिन मै मुक्ताफल अर्थ लहै उनकौ, हित सौं अवगाही ।
यहाँ सुन्दरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा के स्रोतो पर विचार करना आवश्यक है। आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व, राजस्थानी भाषा-बोली के संस्कारों ने सुन्दर के बचपन को गढ़ा था । युवावस्था में पहुँचते-पहुँचते, काशी जैसे संस्कृत और संस्कृति प्रधान नगरों में उनकी काव्य चेतना जागृत हुई थी और विचारों में परिपक्वता आई । वहाँ रहकर विद्वानों के सम्पर्क - सत्संग एवं काव्य-दर्शन ग्रन्थो के पारायण ने उनकी प्रतिभा को और धारदार बनाया है। अतः जो भाषा उनकी रचनाओ में देखने को मिलती है, वह उनके वैचारिक जीवन के विकास का स्वाभाविक परिणाम है। जो रचनाकार छन्द-भंग, तुक-भंग तक को सहन न कर सकता हो, वाणी-उच्चारण में वचन-तोल के महत्त्व को प्रतिपादित करता हो, उसकी वाणी का विचार - पक्ष एव भाषा - प्रयोग निश्चित ही सुविचारित होना चाहिए । यही नही, अपने वाणी प्रयोग के सम्बन्ध में अपने वचन विवेक कौ अंग मे सुन्दर ने भाषा प्रयोग पर अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। भाषा प्रयोग के सम्बन्ध में एक आचार्य की तरह वे कहते हैं कि शब्द के दुष्ट प्रयोग से श्रोता के हृदय मे बड़ी पीड़ा, बड़ा खेद होता है। अतः ऐसे प्रयोग नहीं करने चाहिए। तो दूसरी ओर वे विचारों के उलझाव और सुलझाव का कारण, वचन-भाषा को ही मानते है । देखिए -
सुन्दर समुझि कैं बचन कौं उचार करि,
अथवानाहीं तर चुप हूवै पकरि बैठि मौंन को ।
सब ही कौं लागै दुख कोऊ नहिं पावै सुख,
बोलि कैं वृथा ही तातें छाती नहिं छोलिये ।
बचन तै उरझि सु सुरझे बचन हीं तैं,
बचन ते भाति भांति सकट सहतु है ।
सुन्दर-वाणीः काव्य का विधायक पक्ष / 109
बचन तै जीव भयौ बचन तै ब्रह्म होइ, सुन्दर बचन भेद बेद यौं कहतु है ॥
भाषा-प्रयोग सम्बन्धी सुन्दरदास की ऐसी दृष्टि, जीवन भर के परिवेश - संस्कारों एव अध्ययन-मनन से अर्जित भापा- पूँजी के बल पर ही बनी है। साथ ही देशाटन ने इस पूँजी को और अधिक समृद्ध किया है। लगता है कि उनकी मनीषा में इतना बड़ा भाषा-शब्द-कोश रहा है कि रचना करते समय शब्द स्वय सुनियोजित होकर उनकी लेखनी के सामने लाचार - से होकर आते रहे होगे । सुन्दर - वाणी को देख पढ़कर यही स्पष्ट राय बनती है कि सुन्दरदास के भाषा प्रयोग मे क्षेत्रीयता की सीमाएँ नही है। जैसे कि जायसी में अवधी, सूरदास में ब्रजभाषा, नानक में पजाबी तथा कबीर मे पूरबी बोली की सीमा बताई गई है। सुन्दरदास ने उन सीमाओं को अपनी भाषा प्रयोग क्षमता से तोड़ा है। प्रस्तुत उदाहरण से उनके भाषिक प्रयोग मन्तव्य को भली प्रकार समझा जा सकता है। देखिएकेचित् कहैं संस्कृत बानी । कठिन श्लोक सुनावहिं जांनी ।। केचित् तर्कत शास्तर पाठी । कौशल विद्या पकरत काठी ॥ केचित् वाद बिबिध मत जानैं । पढ़ि व्याकरण चातुरी ठानें ॥ केचित् कविता कबित सुनावैं । कुंडलिया अरु अरिल बनावैं ॥ केचित् छन्द सवैया जोरें । जहाँ तहाँ के अक्षर चोरें ॥ केचित् बीणा बेणु बदीता । ताल मृदंग सहित संगीता ॥ केचित् नट की कला दिखावैं । हस्त बिनोद मधुर रस गावैं ॥ - सर्वांग. प्रदी, उप. 1/25-28
उक्त विधाओं-कलाओं में आख़िर किसी-न-किसी भाषा का उपयोग प्रयोग होता ही होगा। इन सभी के बीच तत्कालीन साहित्य - शास्त्र और कला के उत्कर्ष-काल में, सुन्दरदास ने अपनी भाषा-अभिव्यक्ति को निर्धारित किया है। उनकी रचनाओं में भाषा प्रयोग एवं उसका विचार पक्ष सुविचारित रूप में ग्राह्य बनता रहा है । सुन्दर-वाणी की भाषा, तत्कालीन समाज मे व्यवहृत सामान्य व्यवहार की साधु ( = सादु ) भाषा है । इस भाषा की बनावट और बुनावट, भाषा-छन्द की परिधि मे ही देखी जा सकती है । कबीर - नानक - दादू - रज्जब - मीरा आदि सन्त रचनाकारो द्वारा व्यवहृत शब्दावली, उनकी लोक-भाषा परिधि में आती है। किन्तु, सुन्दरदास की भाषा इन सभी रचनाकारों के व्यापक परिप्रेक्ष्य को समेटती दिखाई देती है । वह परम्परा और व्यवहार के बड़े दायरे को घेरे हुए, कुछ अधिक समर्थ, कुछ अधिक सांस्कृतिक, कुछ अधिक दावेदार लगती है । भाषा प्रयोग में सुन्दरदास की भाषा का यदि कोई आदर्श माना जा सकता है, तो वह तुलसीदास की भाषा ही है।
110 / सुन्दरदास
सुन्दरदास की ब्रजभाषा - अपनी साहित्यिक सास्कृतिक गरिमा के कारण ही ब्रज बोली, जो मथुरा, अलीगढ, एटा, आगरा, धौलपुर, भरतपुर, कांकरौली आदि क्षेत्रों में बोली जाती रही होगी, अपने व्यापक प्रभाव क्षेत्र के कारण साहित्यिक ब्रजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई है। भापा की क्षमताओं को आधार बनाकर जब हम सुन्दरदास की अभिव्यक्ति वाली टकसाली ब्रजभाषा की परख करते हैं, तो लगता है कि शताब्दियो से प्रयोग में आने के कारण यह भाषा, निरन्तर परिमार्जित होते हुए ही, काव्य-भाषा के पद पर प्रतिष्ठित हुई है। सुन्दरदास ने अपने प्राणों की साधना से, इस भाषा को और अधिक सशक्त रचना-माध्यम बनाकर, लोक व्यवहार में उतारा है।
सुन्दर - वाणी को पढ़ते-पढ़ाते हुए निरन्तर यह लगता रहा है कि विषयानुसार कोमलकान्त पदावली की सानुप्रासिकता के साथ-साथ जो प्रवाहमयता, चित्रोपमता एवं मनोभावो को सहज ही मुखर कर पाने की सामर्थ्य सुन्दर की भाषा मे विद्यमान है, वही इसकी निजता की शक्ति भी है। अभिव्यक्ति में तद्भव और तत्सम शब्दावली के कारण, सुन्दरदास की काव्यभाषा समस्त उत्तर भारत की ही नहीं, विध्याचल के नीचे भी, साधु-भाषा के रूप में अपनाई जाती रही है । सुन्दर-वाणी मे प्रयुक्त विपुल शब्द-भण्डार, उनके कविरूप की प्रतिभा और क्षमता का प्रत्यक्ष प्रमाण है । वाक्य-विधान में निहित शब्द-शक्ति, व्यंजना व्यापार, शब्दो की ध्वन्यात्मकता तथा प्रयुक्त मुहावरे लोकोक्तियाँ, जहाँ आंचलिक क्षमताओं को उजागर करती है, वही युगों से संचित लोक रीति-नीतियों को, सामासिकता में शब्द-बद्ध करके, युगो के लिए भाषा - धरोहर के रूप मे, सॅजोती भी रही है ।
सुन्दर-वाणी की भाषा-सामर्थ्य पर विचार करते हुए थोड़ा और विश्लेषण करें तो हमें लगता है कि सुन्दर वाणी में, गूढ़ार्थ विधाओं को छोड़कर अन्यत्र कहीं भी भाषिक कष्ट- कल्पना देखने को नहीं मिलती। इसका मुख्य कारण यह है कि सुन्दरदास शब्दों को तोड़-मरोड़कर शब्दाडम्बर से पाठक को आतकित करने के पक्षपाती नहीं रहे । उनका भाषा-पाण्डित्य, लोक व्यवहार की शब्दावली एवं स्थानीय बोलियों के शब्दों के प्रयोग के कारण ही दिखाई देता है। सुन्दर रचित भाषा की यही शक्ति है । वास्तव में सुन्दर-भाषा के नियामक तत्त्वों का संगठन, देशाटन अथवा सत्संग- गोष्ठियों में होनेवाले निरन्तर संवाद का परिणाम है । देशाटन में उनका सम्पर्क मुसलमान सूफी- फक़ीरों, नवाबों अथवा उनके नुमाइन्दों से अवश्य होता रहा होगा । फलतः अरबी-फारसी की शब्दावली का निःसंकोच प्रयोग, सम्प्रेषण के लिए आवश्यक बना रहा है। यही नहीं, वैसी अभिव्यक्ति के लिए सुन्दर ने उर्दू शब्दावली ने वाली विधाओं को अपना कर, अपनी भाषिक क्षमता को ही प्रस्तुत किया है। काशी में रहकर पूरबी भाषा, राजस्थान में जन्म-सस्कार तथा गुजराती समाज से निकट सम्पर्क एवं पंजाब के सीमान्त प्रदेशो मे भ्रमण- सत्संग के परिणामस्वरूप ही इन-इन
सुन्दर-वाणीः काव्य का विधायक पक्ष / 111
क्षेत्रो की भापा- बोलियों की शब्दावली, उनके वाक्य-विन्यास, यहाँ तक कि उनके क्रिया-पदों को अपना कर, सुन्दरदास ने जिस भाषा-स्वरूप को प्रस्तुत किया था, वह भाषा- जाति का मूलाधार बनने में समर्थ है। सच तो यह है कि सुन्दर की भाषा-रुचि बड़ी व्यापक पृष्ठभूमि पर विकसित हुई है। समूचे मध्यकाल और मध्यकाल के पूर्व भी, ब्राह्मण - प्रभाव के कारण, संस्कृत भाषा का वर्चस्व बना रहा है । इससे भारतीय समाज की जन-भाषाओ की उपेक्षा होना स्वाभाविक ही था । सन्त-काव्य के समूचे सृजन-काल मे, भारतीय समाज कर्मकाण्ड और धार्मिक रूढ़ियो की जकड़बन्दी मे फँसा रहा है। भाषा-कवियो ने उस बहुत बड़े समाज की घुटन को समझा है । यही कारण है कि सन्त कवियों ने जन-मानस की सह-अनुभूति से प्रेरित होकर, जन के अन्तबार्ह्य भावन और सघर्ष को जो भाषा दी है, जीवन को जो सार्थकता अथवा सरोकार दिया है, वह अप्रतिम है। ऐसी भाषाभिव्यक्ति, साहित्य के इतिहास में, इनसे पहले देखने को नहीं मिलती। भाषा प्रयोग में सन्त सुन्दरदास का, जन-हृदय तक पहुँचना ही लक्ष्य रहा है। इसीलिए उनके भाषा-काव्यो का स्वरूप, व्यापक जन-चेतना से जुड़ा रहने के कारण ही, आज भी सार्थक बना हुआ है। अतः ऐसी जन-चेतना वाली भाषा मे रचित वाणी-काव्यो की भाषा को पंचमेल खिचडी, सधुक्कड़ी अथवा बनारसी बोली की सीमाओं में बाँधना अथवा हीनभाव से देखना, भाषा-काव्यों की सामर्थ्य के निष्कर्षो की अवहेलना करना ही है। जो भाषा की शक्ति है, उसे ही उसकी कमजोरी कहना कहाँ तक उचित है? कबीरादि सन्तों के समान ही सुन्दरदास का वाणी- आदर्श, लोकादर्श से जुड़ा रहा है। उनकी सृजन शक्ति धरती में निहित ऊर्जा से जुड़ी रही है। धरती की खुशहाली और हरियाली से जुड़कर ही यह भाषा, भूमि से अपने जुडाव सिद्ध करके ही देश-भाषा (देसभाखा, देसिल बयना ) कही गई है। इसी अर्थ मे यह भाषा-भाव-धारा सबका हित करनेवाली सुरसरि है। मेघों के घिरने और बरस पड़ने के कारण यह वाणी - वर्षा भी है। इसी बात को सन्त अनुभवानन्द ने अपने पदों में इस प्रकार अभिव्यक्ति दी है -
अनुभव जल बड़ी बूंदन बरसत, अनुभव जल बडी बूँदन । ज्ञान घटा चहुँ दिसि चढि आई पूरि रह्यौ सब चित घन ॥
बरसत अनुभव उमग्यौ सावन ।
जल थल होय रह्यौ सब दरिया, लागे खेत सोहावन ॥
- गुज. सं. हि बा, पद 7-8
सन्तों की यही जन-भाषा, अपनी आन्तरिक ऊर्जा के बल पर, देश-भाषा के रूप मे राष्ट्रभाषा का दायित्व सँभालती रही है। इसी बात को एक सन्त रचनाकार सन्तदास ने भी अपने परिवेश के सगुण समाज के साथ, स्वानुभूत निर्गुण विचार के
112 / सुन्दरदास |
15041f9b1c423dec1ca60a5ea0c3593aff82669b | web | बीसवीं शताब्दी के सबसे बड़े उकसावों में से एक को 1933 वर्ष में रैहस्टाग के नाजियों द्वारा आगजनी माना जाता है, जिसने हिटलर को अपने प्रभाव को मजबूत करने की अनुमति दी थी। हालांकि, एक साल पहले मास्को एक्सएनयूएमएक्स में मध्य अगस्त एक्सएनयूएमएक्स में जो हुआ, वह जर्मन त्रासदी की देखरेख करता है। राजनेताओं के एक समूह की गिरफ्तारी के चार महीने बाद, जिन्होंने खुद को स्टेट ऑफ इमरजेंसी स्टेट या स्टेट इमरजेंसी कमेटी, सोवियत संघ, दो विश्व शक्तियों में से एक कहा, का अस्तित्व समाप्त हो गया। प्रो-वेस्टर्न मार्केट के कट्टरपंथी सत्ता में आए।
पिछले बीस-वर्षों से हर साल, हम बीसवीं शताब्दी के बढ़ते अराजकता और भू-राजनीतिक तबाही को रोकने के लिए एक हताश प्रयास के रूप में जीकेसीपी के बारे में बात कर रहे हैं। हम अपने साथी नागरिकों की अपेक्षाकृत अधिक संख्या को ध्यान में रखते हैं जो विभिन्न सामाजिक समूहों में 25 से 40 प्रतिशत तक आपातकालीन समिति को स्वीकार करते हैं।
आज, रूस वाशिंगटन हॉक्स और ब्रुसेल्स तोते की बंदूक के नीचे है। इसलिए राष्ट्रीय मूल्यों और हितों के आधार पर रूसी समाज को मजबूत करने का महत्व, साथ ही सोवियत-बाद के युग की प्रमुख घटनाओं की एक अद्यतन समझ।
"चीफ ऑफ द जनरल स्टाफ सर्गेई अखरोमीव और आंतरिक मंत्री बोरिस पुगो की अस्पष्ट परिस्थितियों में मृत्यु हो गई"
यह अगस्त 1991 पर पुनर्विचार करने का समय है, यूएसएसआर के उपाध्यक्ष और सोवियत सरकार के शीर्ष अधिकारियों की भागीदारी के साथ एक पहल प्राधिकरण के रूप में राज्य आपातकालीन समिति की भूमिका।
स्टेट इमरजेंसी कमेटी के पहले बयान और स्वस्थ ताकतों को मजबूत करने के प्रयासों को आज तथाकथित डेमोक्रेट के साथ छेड़खानी करते हुए यूएसएसआर के राष्ट्रपति की निष्क्रियता के लिए एक आवश्यक प्रतिक्रिया के रूप में माना जाता है।
लेकिन मिखाइल गोर्बाचेव के अलावा, बोरिस येल्तसिन ने सोवियत राज्य के विध्वंसक के रूप में भी काम किया, जिनकी उन वर्षों में सक्रिय और खतरनाक गतिविधियों को विशाल पश्चिमी मीडिया मशीन द्वारा समर्थित किया गया था। यह कोई संयोग नहीं है कि म्यूनिख से स्टेट इमरजेंसी कमेटी द्वारा हमारे पूर्व हमवतन अलेक्जेंडर ज़िनोवाइव को मिले एक विशेष टेलीग्राम में उन्होंने संक्षेप में कहाः "येल्तसिन को तत्काल अलग कर दो! "
हालांकि, वह अलग-थलग नहीं था, और उसने पीआर गतिविधियों द्वारा पूरक, एक tumultuous गतिविधि का शुभारंभ किया। कुछ दिनों बाद सीपीएसयू पर प्रतिबंध लगाने, राज्य आपातकालीन समिति के आयोजकों की गिरफ्तारी और थोड़ी देर बाद - सीपीएसयू, सार्वजनिक संगठनों, विश्वविद्यालयों, समाचार पत्रों की संपत्ति के संरक्षण पर कानूनों पर हस्ताक्षर किए गए।
इस प्रकार, GKChP का अगस्त मार्ग यूएसएसआर में राजनीतिक प्रणाली और राज्य की शक्ति के विघटन के कारण, महान शक्ति के अपरिवर्तनीय विनाश के लिए प्रेरित हुआ।
1991 वर्ष की गर्मियों और शरद ऋतु में यूएसएसआर की मृत्यु के चरणों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करते हुए, हम उल्लेखनीय रुझान पाते हैं। सबसे पहले, सार्वजनिक चेतना को नष्ट करने के प्रभावी तरीकों का उपयोग और विकल्प "रूढ़िवादी सुधारक", "षड्यंत्रकारी या लोकतंत्र के वकील" की शुरूआत के माध्यम से हमारे हमवतन के मूल्य प्रणाली।
हम सोवियत राज्य के शीर्ष अधिकारियों पर एक व्यक्तिगत हमले पर ध्यान देते हैं, जिनमें से कुछ अपर्याप्त रूप से स्पष्ट परिस्थितियों में मृत्यु हो गई (उदाहरण के लिए, यूएसएसआर सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के प्रमुख, मार्शल सर्गेई अखरोमीव और आंतरिक मंत्री बोरिस पुगो, जिनके पीछे राज्य की संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम बिजली संरचनाएं थीं)।
आर्थिक कठिनाइयों पर अटकलों को याद करें, जो कभी-कभी अकथनीय परिस्थितियों के कारण उत्पन्न हुई थीं। कहते हैं, एक ही समय में, सबसे बड़े सोवियत तम्बाकू कारखानों में से कई पुनर्निर्माण के लिए बंद कर दिए गए थे, जो पुरुषों के एक महत्वपूर्ण हिस्से की कमी और असंतोष का कारण बना।
विरोधात्मक कार्रवाइयों में इन तथ्यों को निभाया गया, समानांतर में सरलीकृत वाक्यांशों और आकलन के दोहराव द्वारा जनसंख्या का एक ज़ोंबी थाः रूढ़िवादी - प्रतिक्रियावादी, सुधारक - ईमानदार।
आपातकाल की स्थिति लागू होने से कुछ महीने पहले, प्रेस और टेलीविजन पर लोकतंत्र के खिलाफ कथित रूप से साजिश रचने के बारे में कहानियों को प्रसारित किया जा रहा था, जिसमें स्वचालित रूप से हर राजनेता या किसी भी नागरिक को शामिल किया गया था जो षड्यंत्रकारियों के रैंक में आपातकालीन उपायों का समर्थन करता था।
इस प्रकार, एक लक्षित सूचनात्मक अभियान वास्तविक और संभावित देशभक्तों के नैतिक विनाश के लक्ष्य के साथ देखा जा रहा है।
सामान्य तौर पर, तथ्यों की समग्रता का विश्लेषण करते हुए, हम यूएसएसआर पर एक शक्तिशाली और व्यापक हमले के बारे में बात कर सकते हैं। यहां, कोई भी वर्तमान दिन के साथ समानता के बिना नहीं कर सकता है, जब पश्चिम में प्रतिबंधों की योजना बनाई जाती है, तो पुतिन समर्थकों की सूची हम में से कई की सामाजिक-राजनीतिक गतिविधि को पंगु बनाने के लिए संकलित की जाती है।
मरने वाले सोवियत संघ पर हमले सामान्यीकरण और राज्य आपातकालीन समिति के येल्तसिन संस्करण वाले आकलन के साथ समाप्त हो गए, जल्द ही यूएसएसआर के भयभीत सर्वोच्च परिषद द्वारा समर्थित।
उसी समय, विरोधी राय पहले से ही व्यक्त की गई थी। उदाहरण के लिए, अलेक्जेंडर ज़िनोविएव, सबसे साहसी और मूल सामाजिक दार्शनिकों में से एक, जो समाजवाद और यूएसएसआर के प्रति सहानुभूति के लिए अपने दोष के लिए दोष देना मुश्किल है, इस घटना को गोर्बाचेव-येल्तसिन तख्तापलट की मदद से रूसी साम्यवाद के विनाश के रूप में वर्णित किया, जो कानूनी तौर पर दिसंबर 1991 में समाप्त हुआ।
आज, वर्ष के 1991 तबाही और "रंग क्रांतियों" के बीच का संबंध, जो पूर्वी यूरोपीय देशों के माध्यम से बहने वाली 80 की दूसरी छमाही से पहले से ही स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के साथ सिंक्रनाइज़ेशन का पहलू, उदाहरण के लिए, विश्व बाजार पर तेल की कीमतों में गिरावट के साथ, यह भी महत्वपूर्ण प्रतीत होता है, साथ ही साथ रोमानियाई नेता निकोले सीयूसेस्कु के प्रदर्शनकारी निष्पादन, अन्य देशों के राजनेताओं को डराने के लिए प्रतिबद्ध है।
यदि राज्य आपातकालीन समिति के निर्माण का कारण गोर्बाचेव की निष्क्रियता थी, जो यूएसएसआर के संरक्षण के संबंध में ऑल-यूनियन जनमत संग्रह के निर्णयों को लागू करने में असमर्थ थे, तो राजनेताओं-देशभक्तों के सक्रिय कार्यों के अंतर्निहित कारणों में एक्सएनएन के दूसरे छमाही में सामाजिक-आर्थिक स्थिति के तेज गिरावट के कारण हैं। कारों, क्योंकि लोकतांत्रीकरण के लिए एक दूरगामी अभियान और, विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि गोर्बाचेव की पेरेस्त्रोइका की वास्तविक विफलता के लिए, जिसके लिए पर्याप्त पूर्वापेक्षाएँ नहीं थीं।
अब हम सुरक्षित रूप से इस बारे में बात कर सकते हैं, जो दुनिया भर में प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के विकास पर निर्भर है। विशेष रूप से, मिशिगन विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर, व्लादिमीर Shlyapentokh (जो 1985 तक नोवोसिबिर्स्क एकेडमोडोरोक में काम करते थे), दृढ़ता से साबित हुए, सांख्यिकीय और समाजशास्त्रीय डेटा के एक विशाल सरणी पर भरोसा करते हुए, कि USSR एक मजबूत प्रबंधन प्रणाली के साथ एक सामान्य अधिनायकवादी समाज था। सोवियत संघ ने वास्तव में सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं को संचित किया जो उपचार के योग्य थे, लेकिन एक महान शक्ति की हत्या नहीं।
अलेक्जेंडर ज़िनोवाइव ने गोर्बाचेव के सुधारों के पूर्वापेक्षाओं की अनुपस्थिति और यूएसएसआर के लिए उनके खतरे को भयावह प्रकाशनों (तबाही ") पर व्यंग्यात्मक प्रकाशनों में लिखा है। "पेरेस्त्रोइका प्रगति नहीं है, लेकिन समाज की एक बीमारी है, यह एक संकट है, जिसमें से एकमात्र तरीका प्रति-पेरोस्टेरिका हो सकता है! - इस लेखक ने भावनात्मक रूप से साबित किया, वर्ष के मार्च 1990 में मल्टीमिलियन-डॉलर के यूरोपीय टेलीविजन दर्शकों का जिक्र किया। "पश्चिम को सोवियत संघ से अलग होने की जरूरत है। "
О критиках горбачевских реформ приходится вспоминать, чтобы лучше понять и оценить историческую роль ГКЧП. Этот чрезвычайный орган власти можно критиковать за непродуманность действий, но с сегодняшней позиции видно, что ему пришлось столкнуться с целенаправленным противодействием.
विभिन्न देशों में "रंग क्रांतियों" की एक श्रृंखला का विश्लेषण करते हुए, हम सभी समझदार हो गए, और फिर भी हम में से कई ने आसन्न घटनाओं के प्राथमिक तर्क को भी नहीं समझा।
शीत युद्ध को प्रचार के रूप में माना जाता था, न कि विभिन्न विनाशकारी प्रौद्योगिकियां जो किसी व्यक्ति और बड़े सामाजिक समूहों की पहचान को बदल सकती थीं, अंततः सामाजिक-राजनीतिक प्रणाली को विकृत कर सकती थीं।
अगस्त 1991 23 की पिछली दुखद घटनाओं के बावजूद, रूसियों के आधे से अधिक, जैसा कि VTsIOM अनुसंधान के परिणामों द्वारा दिखाया गया है, यूएसएसआर के पतन का अफसोस है। इसके अलावा, कुछ कमजोर पड़ने के बावजूद जनमत का यह चलन स्थिर है। दूसरी प्रवृत्ति, और भी आश्चर्यजनक, उल्लेखनीय है - नागरिकों का एक उच्च अनुपात (80 प्रतिशत से अधिक) जो खुद को रूसी देशभक्त कहते हैं।
स्टेट इमरजेंसी कमेटी के गठन और उसके बाद के दौर के लिए बीसवीं सदी का सबसे बड़ा उकसाव, यूएसएसआर में सत्ता और प्रशासन के जल्दबाजी में विस्तार रूसी समाज के व्यापक वर्गों को उत्साहित करता रहेगा। इस मुद्दे की जटिलता और सत्य जानकारी की कमी के बावजूद, राज्य आपातकालीन समिति का रवैया, विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक ताकतों, मुख्य रूप से राजनेताओं और विरोधी राजनेताओं, पुतिन और उनके विरोधियों के समर्थकों के सीमांकन की एक पंक्ति के रूप में कार्य करता है।
एक और पहलू महत्वपूर्ण है - गेन्नेडी यानायेव, वैलेंटाइन पावलोव, व्लादिमीर क्रिचकोव, बोरिस पुगो, वासिली स्टारोडुबत्सेव, ओलेग बेकलानोव, अलेक्जेंडर तिज़लाकोव और दिमित्री याज़ोव के राजनीतिक पुनर्वास की आवश्यकता और संभावना, जो विशेष संसदीय आयोग के काम के परिणामों पर आधारित होनी चाहिए। ऐतिहासिक सत्य का स्पष्टीकरण।
रूस के एकेडमी ऑफ साइंसेज के रूस व्लादिमीर पुतिन और ऐतिहासिक प्रोफ़ाइल के अकादमिक संस्थानों के राष्ट्रपति से एक विशेष निर्देश प्राप्त करने की सलाह दी जाएगी, ताकि वे राज्य आपातकालीन समिति पर एक सामान्य रिपोर्ट तैयार कर सकें और स्रोतों की एक विस्तृत श्रृंखला (विदेशी अभिलेखागार और विदेशी प्रकाशनों से सामग्री सहित) को ध्यान में रख सकें।
उन घटनाओं के अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में क्या हुआ, इसकी पूरी तस्वीर के आधार पर, संप्रभुता, राज्यसत्ता और देशभक्ति के विचारों के इर्द-गिर्द रूसी समाज के एकीकरण के लिए ठोस और सटीक ऐतिहासिक और राजनीतिक आकलन करने का अवसर होगा, अगस्त 18 पर 1991 पर पहुंचे नागरिकों के राजनीतिक पुनर्वास के लिए। विनाशकारी सोवियत संघ।
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8d2afeef64b1afcad667952dd586836e7cdc99da | web | हाल के उपचुनावों में बीजेपी ने जिस विपरीत लहर का सामना किया, यह उसके लिए अच्छी खबर नहीं है। यह लहर यूपी के मतदाताओं का रुख उस गठबंधन की ओर मोड़ सकता है, जो चुनाव में जीत हासिल कर सकती हैं।
अगर अगले लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस ने राज्य में सीटों पर समझौता कर लिया तो उत्तर प्रदेश (यूपी) के चुनावी अखाड़े में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को करारी हार का सामना करना पड़ सकता है।
उदाहरण के तौर पर, अगर यूपी के मतदाताओं ने 2014 की तरह ही अपने वोट डाले, तो बीजेपी गठबंधन की सीटों में काफी कमी आएगी और वर्तमान की 73 सीटों की जगह वह घटकर 24 सीटों तक सिमट जाएगी। गठबंधन की स्थिति में सपा को 26 सीटें, बीएसपी को 25 सीटें और कांग्रेस को 5 सीटें मिलेंगी। वर्तमान में बन रहे राजनीतिक समीकरणों को देखें तो इससे आने वाले चुनाव में, यूपी और देश में होने वाली राजनीतिक घटनाओं के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं।
गोरखपुर और फूलपुर में होने वाले उपचुनावों में जहां बसपा ने सपा को समर्थन देने का फैसला किया है। ऐसी संभावना है कि बीजेपी को अपने ही चुनावी गढ़ में कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, सपा के लिए यह अभी भी एक चुनौती भरा काम है।
1998 से बीजेपी गोरखपुर में कभी नहीं हारी है और अब यह सीट बीजेपी का गढ़ बन गई है। यहां के नेता योगी आदित्यनाथ अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। 2014 में सपा, बीएसपी और कांग्रेस के संयुक्त वोट बीजेपी के वोट से 90,662 कम थे।
इसी तरह फूलपुर, जो कभी कांग्रेस के शीर्ष नेता और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का चुनावी-क्षेत्र था, वहां 2014 में सपा, बीएसपी और कांग्रेस के संयुक्त वोट बीजेपी के वोट से 86,471 वोट कम थे। यहां से केशव प्रसाद मौर्य जीते थे और वे अब उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री हैं।
गोरखपुर में बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी उम्मीदवार को अपने पक्ष में 7 फीसदी अधिक वोट हासिल करने की जरूरत होगी। वहीं फूलपुर में भी विपक्षी उम्मीदवार को जीत हासिल करने के लिए इतने ही ज्यादा वोटों की जरूरत होगी।
पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी के वोटों की संख्या 2014 के आम चुनावों से 2. 96 फीसदी कम हो गई, जो जाहिर तौर पर उसे हराने के लिए अपर्याप्त है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि उपचुनाव के आंकड़े क्या आते हैं। इससे यह पता चलेगा कि मौजूदा सत्तारूढ़ पार्टी अपनी पकड़ बरकरार रखती है या समर्थन खोती है।
कम वोटों के अंतर से जीत बीजेपी के लिए चिंता का विषय रहेगा। एक भी सीट पर हार बीजेपी के लिए दुभाग्यपूर्ण हो सकता है।
आगामी लोकसभा चुनावों में अगर 2014 के मतों के आकड़े नहीं बदलते हैं, तो वास्तव में बीजेपी के लिए इतनी सीटें बरकरार रखना बेहद मुश्किल होगा। नरेंद्र मोदी वाराणसी में अपनी सीट बरकरार रख पाएंगे। इसी तरह लखनऊ में राजनाथ सिंह, मथुरा में हेमा मालिनी, पीलीभीत में मेनका गांधी, कानपुर में मुरली मनोहर जोशी और देवरिया में कलराज मिश्रा भी अपनी सीट बरकरार रख लेंगे। लेकिन, झांसी में उमा भारती, सुल्तानपुर में संजय गांधी के पुत्र वरूण गांधी समेत कई मजबूत उम्मीदवार अपनी सीटें खो सकते हैं। ऐसी स्थिति में जगदम्बिका पाल, जो पिछले आम चुनावों से पहले कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे, उन्हें भी डुमरियागंज में हार का सामना करना पड़ सकता है।
लेकिन, कांग्रेस के पीएल पुनिया, जो गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के लिए सपा-बीएसपी के गठबंधन से नाखुश हैं, वे बाराबंकी में पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं, बशर्ते कि उन्हें वहां से खड़ा किया जाए।
2009 के मुकाबले बीजेपी ने 2014 में उत्तर प्रदेश में असाधारण चुनावी जीत हासिल की थी। 2009 में बीजेपी ने महज 17. 5 फीसदी वोट प्राप्त किए थे (जो कांग्रेस के 18. 25 फीसदी वोटों से भी कम थे)।
2014 में बीजेपी ने अप्रत्याशित रूप से 42. 63 प्रतिशत मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया। कहा जाए तो पहले से ढाई गुना ज्यादा वोट प्राप्त किए।
उन्होंने राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों से संबंधित मुद्दों को उठाते हुए हिंदु वोटों को संगठित कर यह जीत हासिल की। इसके अलावा बीजेपी ने बीएसपी और सपा द्वारा नजरअंदाज किए गए या उनसे नाखुश अनूसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को चालाकी से अपनी ओर आकर्षित किया। इसके बावजूद, उत्तर प्रदेश के मतदाताओं में एक अस्थिरता नजर आती है, जो किसी भी पार्टी के लिए चिंताजनक है। दूसरे ढंग से देखें तो 2014 और 2017 में राज्य के मतदाताओं ने बीजेपी के प्रति जो विश्वास दिखाया था, उससे यह नहीं माना जा सकता कि आगे की स्थिति भी यही रहेगी।
गोरखपुर और फूलपुर की सीटोंं पर सपा और बीएसपी अपने पुराने द्वेष को ताक पर रख कर एकजुट हो गए हैं, लेकिन बीजेपी अपने अपार धन-बल, सरकारी मशीनरी और राज्य में काम कर रहे पार्टी कार्यकर्ताओं के बल पर इन सीटों पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
यह प्रतिष्ठा और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण लड़ाई है। हिंदी भाषी क्षेत्र, विशेष रूप से यूपी में बीजेपी के जबरदस्त प्रदर्शन के चलते 2014 में वह केन्द्र में सरकार बना पाई। यह अप्रत्याशित था और उसे दोहराना अब लगभग असंभव सा लगता है। हाल में हुए मध्य प्रदेश और राजस्थान के उपचुनावों से यह दिखता है कि मतदाता बीजेपी से अलग होने लगे हैं। तो सवाल यह उठता है कि सपा, बीएसपी और कांग्रेस का गठबंधन होता है तो बीजेपी के लिए यह कितना नुकसानदायक साबित होगा?
कहने की आवश्यकता नहीं है कि कोई भी दो चुनाव एक समान नहीं होते हैं। आगामी चुनाव में मत विभाजन के आंकड़े स्पष्ट रूप से 2014 के चुनाव के समान नहीं होंगे।
मतों का घटना और बढ़ना अनेक कारणों पर निर्भर करेगा। कई अनिश्चितताएं और अप्रत्याशित घटनाएं छोटे-बड़े स्तरों पर पैदा होती हैं। ऐसी बातों का अनुमान तब तक नहीं लगाया जा सकता है जब तक ऐसी घटनाएं घट नहीं जातीं।
बीजेपी के सबसे बड़े गढ़ गुजरात के 2017 के विधानसभा चुनाव और 2018 के स्थानीय निकाय चुनावों ने यह दिखा दिया है कि जहां शहरी मतदाताओं को बीजेपी पर अभी भी भरोसा है, वहीं ग्रामीण मतदाता इनसे व्यथित नजर आ रहे हैं।
यह अाश्चर्य की बात नहीं होगी कि बीजेपी अपने किए गए वादों को पूरा न कर पाने की स्थिति में कट्टर हिदुत्व का सहारा लेगी। इस संदर्भ में अयोध्या मसला दोबारा उठ सकता है। हो सकता है कि पार्टी उन वर्गों को डराने के लिए साम्प्रदायिक भेदभाव का सहारा ले, जो आम तौर पर उन्हें वोट नहीं देते हैं।
इसे भी नकारा नहीं जा सकता कि मुलायम सिंह यादव की ओर हाथ बढ़ाकर बीजेपी ओबीसी और सपा के वोटों को विभाजित करने का प्रयास करेगी।
2014 में सपा ने 5, कांग्रेस ने 2 और बीएसपी ने कोई सीट नहीं जीती। अगर समाजवादी पार्टी, बीजेपी के प्रलोभन और दांव-पेच के खिलाफ एकजुटता बरतती है, और बीएसपी इस बात को समझ पाती है कि आगामी चुनाव में उसकी करारी हार से उसका राजनीतिक अन्त निश्चित है, तो ऐसी स्थिति में गठबंधन ही सिर्फ तार्किक और समझदारी भरा कदम होगा।
कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों के नतीजे उत्तर प्रदेश के आगामी आम चुनाव के नतीजों को निश्चित ही प्रभावित करेंगे।
हाल के उपचुनावों में बीजेपी ने जिस विपरीत लहर का सामना किया, यह उसके लिए अच्छी खबर नहीं है। यह लहर यूपी के मतदाताओं का रुख उस गठबंधन की ओर मोड़ सकता है, जो उनकी नजर में चुनाव में जीत हासिल कर सकती हैं, न कि मोदी और योगी की जोड़ी की ओर।
आंकड़े निश्चित रूप से सपा, बीएसपी और कांग्रेस महागठबंधन के साथ हैं, जिन्होंने 2014 के चुनावों में संयुक्त रूप से 49. 83 फीसदी वोट हासिल किए थे।
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6af41694559f340ce8547598b1d1c2e113fee6f4 | pdf | रिजर्व बैंक ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में पच्चीस आधार अंकों की कमी कर पांच दशमलव सातपांच प्रतिशत किया
आर टी जी एस और एन ई एफ टी लेनदेन में लगने वाला शुल्क हटाया स्वच्छ सर्वेक्षण दो हज़ार बीस लीग का आज नई दिल्ली में शुभारंभ चिकित्सा विभाग ने राज्य में निपाह वाइरस रोग के बारे में दिशा निर्देश जारी किए प्रदेश में महाराणा प्रताप की जयंती समारोहपूर्वक मनायी गयी राजसमंद के हल्दीघाटी खमनौर में तीन दिन का मेला शुरू स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने कहा जयपुर में द्रव्यवती नदी का बाकी काम शीघ्र पूरा किया जाएगा प्रदेश में तापमान में उतार चढाव के बीच लू और झुलसाने वाली गर्मी से लोग बेहाल शून्य रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की द्विमासिक समीक्षा में रेपो रेट में पच्चीस आधार अंकों की कमी की है
इसी तरह नकदी समायोजन सुविधा एल ए एफ के तहत रिवर्स रेपो दर साढे पांच प्रतिशत और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसेलिटी एमएसएफ और बैंक दर छह प्रतिशत कर दी गई है
बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली छह सदस्यों की मौद्रिक नीति समिति के इन फैसलों का उद्देश्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में चार प्रतिशत वृद्धि को दो प्रतिशत अधिक या कम रखने का मध्यावधि लक्ष्य प्राप्त करना है
समिति ने पिछली दो नीतियों में भी दो हज़ार पाँच सौ पच्चीस आधार अंकों की कटौती की थी
व्यापार स्पर्धा बढ़ने और ग्रामीण इलाकों में निजी खपत कम होने के कारण रिजर्व बैंक ने दो लाख एक हज़ार नौ सौ बीस में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर सात प्रतिशत से सात दशमलव दो प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया है
रिजर्व बैंक के गर्वनर ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों और दो हज़ार उन्नीस में मॉनसून की अच्छी बारिश होने के आधार पर खुदरा मंहगाई दर पूर्वानुमान में भी बदलाव किया गया है
शून्य पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि बीएस6 उत्सर्जन नियम के अगले वर्ष लागू होने के बाद वाहन प्रदूषण में अट्ठाईस से तीस प्रतिशत तक कमी आ जाएगी
विश्व पर्यावरण दिवस के सिलसिले में आज नई दिल्ली में आयोजित समारोह में उन्होंने कहा कि इस दिशा में साठ हजार करोड़ रूपये निवेश किये जा चुके हैं
प्रकाश जावड़ेकर ने तीन मिनट की अवधि की लघु फिल्म प्रतियोगिता की भी शुरूआत की
इस अवसर पर पर्यावरण राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने कहा कि भारत उन नौ देशों में शामिल हैं जिनके वन क्षेत्र एक प्रतिशत तक बढ़े हैं
शून्य केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आज नई दिल्ली में स्वच्छ सर्वेक्षण दो हज़ार बीस लीग का उद्घाटन किया
लीग भारत के शहरों और कस्बों की तिमाही स्वच्छता समीक्षा करेगी और यह स्वच्छ सर्वेक्षण दो हज़ार बीस से संबंधित होगा
जनवरीफरवरी दो हज़ार बीस के बीच भारत के शहरी क्षेत्रों का ये पांचवां वार्षिक स्वच्छ सर्वेक्षण होगा
शून्य वायुसेना के लापता ए एन32 विमान की खोज के लिए अरूणाचल प्रदेश में व्यापक अभियान जारी है
सोमवार को दोपहर बाद असम में जोरहाट से उड़ान भरने के बाद यह विमान अरूणाचल प्रदेश में कहीं लापता हो गया था
वायुसेना सेना और पुलिस की मदद से सियांग जिले के केइंग और पेयूम सर्किल के करीब ढाई हजार वर्ग किलोमीटर इलाके में खोज कर रही है
शून्य दो राज्य में चिकित्सा विभाग ने निपाह वायरस रोग के बारे में दिशा निर्देश जारी किए हैं
चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री डा0 रघु शर्मा की अध्यक्षता में इस बारे में बैठक भी आयोजित की गई
उन्होंने चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग को निपाह वायरस की रोकथाम और नियंत्रण के लिए सभी आवश्यक उपाय सुनिश्चित करने के निर्देश दिए
उन्होंने इस संबंध में रेपिड रेस्पोंस टीम को भी सतर्क करने को कहा
शून्य महाराणा प्रताप की आज 479वीं जयंती है
इस मौके पर प्रदेशभर में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है
राजसमंद में प्रताप जयंती पर आज से खमनोर हल्दीघाटी में तीन दिन का मेला शुरू हुआ
शाही बाग में हुए उद्घाटन समारोह में विधानसभा अध्यक्ष डा0 सी पी जोशी ने कहा कि महाराणा प्रताप से संबंधित स्थलों का हर संभव विकास किया जाएगा
उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप के जीवन और आदर्शों को अपनाने की आवश्यकता है
इस अवसर पर शोभायात्रा निकाली गई
इससे पहले आज सुबह रक्त तलाई में शहीद स्मारकों पर पुष्पाजंलि दी गई
जयपुर में प्रदेश भाजपा कार्यालय में पुष्पांजलि कायकम हुआ जिसमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी ने युवाओं से महाराणा प्रताप के जीवन से सीख लेने का आह्वान किया
उदयपुर में महाराणा प्रताप की जयंती पर आज मुख्य मार्गों से शोभायात्रा निकाली गई
बांसवाडा में भी शोभायात्रा निकाली गई
जालौर में संगोष्ठी का आयोजन किया गया
प्रतापगढ में विभिन्न संगठनों की ओर से वाहन रैली निकाली गयी
बूंदी जिले के कापरेन में गढ पैलेस में शौर्य यात्रा निकाली गई
नागौर जिले के डीडवाना में रैली के साथ ही समारोह का आयोजन किया गया
डूंगरपुर में महाराणा प्रताप चौक पर स्थित महाराणा प्रताप की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित की गई
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है
एक संदेश में प्रधानमंत्री ने कहा कि महाराणा प्रताप का जीवन साहस स्वाभिमान और वीरता का प्रतीक है जो देश के हर नागरिक को प्रेरित करता रहेगा
शून्य स्वायत्त शासन और आवासन मंत्री शांति धारीवाल ने कहा है कि द्रव्यवती नदी का बचा हुआ काम तीनचार महीने में पूरा कर लिया जाएगा
श्री धारीवाल ने द्रव्यवती नदी परियोजना का दौरा करके वहां हुए कार्यों का निरीक्षण करने के बाद कहा कि कानूनी अड़चनों भूमि और काश्तकारों की समस्याओं की वजह से परियोजना में देरी हुई है
उन्होंने कहा कि इन सभी समस्याओं का शीघ्र निस्तारण किया जाएगा
शून्य उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने आज टोंक में जन सुनवाई की और लोगों के समस्याओं के शीघ्र निपटारे के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए
श्री पायलट ने जनसुनवाई में मौजूद अजमेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक संजीव नर्जरी को निर्देश दिए कि वे रेंज में कानून व्यवस्था की स्थिति और बेहतर करने और अपराधों पर लगाम लगाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं
उन्होंने जिला कलेक्टर को जिले में पेयजल विद्युत व्यवस्था सफाई चिकित्सा व्यवस्था के पुख्ता प्रबंध करें
शून्य उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने साइबर अपराधों में वृद्धि पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि साइबर सुरक्षा हमारी प्रौद्योगिकी संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए
श्री नायडू ने आज हैदराबाद में एक संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा कि इन पर अंकुश लगाने के लिए सॉफ्टवेयर और कंप्यूटिंग कौशल में सुधार लाने की आवश्यकता है
उन्होंने इस बारे में नवाचार अपनाने का आह्वान किया
शून्य बूंदी के लाखेरी में कोटा की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो टीम ने पुलिस उप अधीक्षक ओमप्रकाश चंदेलिया को चौबिस हजार रूपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया
उसे तीन महीने की बंधी के तीस हजार रूपए लेने थे जिसमें से छः हजार रूपए वो पहले ही ले चुका था
बाकी राशि लेते हुए आज ब्यूरो ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया
शून्य और अब जिलों से प्राप्त अन्य समाचार अजमेर के जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए सौ सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे
तीन चूरू जिले के सरदारशहर क्षेत्र में खेत में काम करने के दौरान जमीन में करंट आ जाने से एक किसान की मौत हो गई
बांसवाड़ा जिले के दानपुर कस्बे में आज पुलिस ने बारह जुआरियों को पकड़कर उनके पास से आठ हजार रूपए नकद बरामद किए हैं
शून्य राज्य में पारे में मामूली उतार के बावजूद गर्मी के तीखे तेवर से पूरे प्रदेश में जनजीवन प्रभावित है
सूरज की तपिश लू और झुलसाने वाली गर्मी से लोगों का घरों से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है
आज कोटा प्रदेश का सबसे गर्म स्थान रहा जहां दिन का तापमान छियालीस दशमलव नौ डिग्री सैल्सियस रिकॉर्ड किया गया
उधर चूरू से हमारे संवाददाता ने बताया कि वहां कल के मुकाबले तापमान में गिरावट हुई है लेकिन गर्मी से हालात जस के तस बने हुए है
राज्य के बाकी सभी स्थानों पर आज तापमान चौंतालीस डिग्री या अधिक दर्ज हुआ
मौसम विभाग ने गर्मी और लू की स्थिति आगे भी ऐसे ही बनी रहने की संभावना जताई है
शून्य चार |
141d90ad2c25efe607005b851028dcbd0dd06e3a | web | CGBSE 10th 12th Result 2023 Declared LIVE Updates: छत्तीसगढ़ बोर्ड के लाखों बच्चों का बोर्ड रिजल्ट का इंतजार आज खत्म हो गया है. छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CGBSE) ने आज कक्षा 10वीं और कक्षा 12वीं का रिजल्ट घोषित कर दिया है. छत्तीसगढ़ बोर्ड की दसवीं परीक्षा में राहुल यादव ने टॉप किया है. जबकि 12वीं परीक्षा में रायगढ़ की विधि भोंसले ने टॉप किया है. विधि को 98. 20 प्रतिशत अंक मिले हैं. छत्तीसगढ़ 10वीं की बोर्ड परीक्षा में टॉप करने वाले राहुल को 98. 83 प्रतिशत अंक मिले हैं. बता दें कि छत्तीसगढ़ बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट आज दोपहर 12 बजे जारी कर दिया गया है.
छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 10वीं और कक्षा 12वीं रिजल्ट को छात्र CGBSE की आधिकारिक वेबसाइट cgbse. nic. in और results. cg. nic. in से चेक कर सकते हैं. रिजल्ट चेक करने के लिए छात्रों को अपने रोल नंबर का प्रयोग करना होगा.
छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ बोर्ड कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में सफल होने वाले सभी परीक्षार्थियों और उनके अभिभावकों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की है. बता दें कि पिछले साल छत्तीसगढ़ बोर्ड की 10वीं, 12वीं की परीक्षा में टॉप करने वाले छात्रों को हेलीकॉप्टर राइड दी गई थी. राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बोर्ड परीक्षा के टॉपरों को हेलीकॉप्टर राइड कराने की घोषणा की थी. उन्होंने कहा था छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 10वीं और छत्तीसगढ़ कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा में टॉप 10 में रहने वाले विद्यार्थियों को हेलीकॉप्टर की सवारी कराई जाएगी.
छत्तीसगढ़ बोर्ड परीक्षा 8 लाख से अधिक बच्चों ने दी है, इसमें कक्षा 10वीं और कक्षा 12वीं दोनों के छात्र हैं. बता दें कि सीजीबीएसई कक्षा 10वीं और कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं मार्च महीने में हुई थीं.
- छात्र बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट- cgbse. nic. in पर जाएं.
- होमपेज पर, 'CGBSE 10th Result' or 'CGBSE 12th Result' लिंक पर क्लिक करें.
- दूसरे पेज पर रीडायरेक्ट किया जाएगा.
- यहां छात्र अपना रोल नंबर और जन्मतिथि दर्ज करें.
- ऐसा करने के साथ ही छत्तीसगढ़ बोर्ड कक्षा 10वीं या छत्तीसगढ़ कक्षा 12वीं का रिजल्ट स्क्रीन पर आ जाएगा.
- अब स्टूडेंट अपना रिजल्ट चेक कर डाउनलोड कर सकते हैं.
CGBSE Chhatisgarh Board Class 10th, 12th Results 2023 Live:
छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 10वीं, 12वीं की बोर्ड परीक्षा में जिन बच्चों को किसी एक विषय में कंपाार्टमेंट लग गया है, वे बोर्ड की कंपार्टमेंटल परीक्षा में भाग ले सकते हैं. छत्तीसगढ़ बोर्ड जल्द ही कंपार्टमेंटल परीक्षा की डेट जारी करेगा.
छत्तीसगढ़ बोर्ड का रिजल्ट जारी हुए एक घंटे हो गए हैं, ऐसे में अब तक सभी छात्रों ने अपने रिजल्ट की जांच कर ली होगी. जो बच्चे साइट क्रैश होने से रिजल्ट से वंचित रह गए हैं, उन्हें बता दें कि छत्तीसगढ़ बोर्ड की ऑफिशियल वेबसाइट results. cg. nic. in अब एक्टिव हो गई है. छात्र अब अपना रिजल्ट चेक कर सकते हैं.
छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 10वीं और कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा में पास होने के लिए छात्रों को प्रत्येक विषय में 33 प्रतिशत अंक लाना होता है.
पिछले साल छत्तीसगढ़ बोर्ड की 10वीं, 12वीं की परीक्षा में टॉप करने वाले छात्रों को हेलीकॉप्टर राइड दी गई थी. राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बोर्ड परीक्षा के टॉपरों को हेलीकॉप्टर राइड कराने की घोषणा की थी. उन्होंने कहा था छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 10वीं और छत्तीसगढ़ कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा में टॉप 10 में रहने वाले विद्यार्थियों को हेलीकॉप्टर की सवारी कराई जाएगी.
छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ बोर्ड कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में सफल होने वाले सभी परीक्षार्थियों और उनके अभिभावकों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की है.
पिछले कई सालों से लड़कियों का हर बोर्ड परीक्षा में प्रदर्शन बेहतर रहा है. इस साल भी छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 10वीं, 12वीं की परीक्षा में लड़कियों ने लड़कों को पछाड़ा है. छत्तीसगढञ 12वीं की परीक्षा में 3 लाख से अधिक बच्चों ने भाग लिया था, जिसमें 1,43,919 लड़के और 1,79,706 लड़कियां थी. इसमें लड़कियों का पास प्रतिशत 83. 64 प्रतिशत जबकि लड़कों का 75. 36 प्रतिशत रहा है.
छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 10वीं परीक्षा परिणाम आज दोपहर 12 बजे जारी कर दिया गया है. छत्तीसगढ़ 10वीं परीक्षा में राहुल यादव ने टॉप किया है, राहुल को 98. 83 प्रतिशत अंक मिले हैं. वहीं दूसरे नंबर पर सिंकदर यादव का नाम है, उन्हें 98. 67 प्रतिशत अंक मिले हैं और तीसरे नंबर पर पिंकी यादव का नाम है. पिंकी को 98. 17 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए हैं.
छत्तीसगढ़ बोर्ड की 12वीं परीक्षा में कुल 79. 96 प्रतिशत छात्र पास हुए हैं. इस साल छत्तीसगढ़ बोर्ड की 12वीं की परीक्षा 3 लाख से अधिक बच्चों ने दी है. वहीं छत्तीसगढ़ बोर्ड 10वीं, 12वीं दोनों की परीक्षा में करीब 8 लाख बच्चों ने भाग लिया है. राज्य के शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रिजल्ट की घोषणा की है.
छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 12वीं की परीक्षा में रायगढ़ की विधि भोसले ने टॉप किया है. विधि को 98. 20 प्रतिशत अंक मिले हैं. वहीं जांजगीर चांपा के विवेक अग्रवाल दूसरे नंबर पर है, उन्हें 97. 40 प्रतिशत और तीसरे नंबर पर रितेश कुमार का नाम है. रितेश को बोर्ड परीक्षा में 96. 80 प्रतिशत प्राप्त हुए हैं.
छत्तीसगढ़ बोर्ड ने आज कक्षा 10वीं और कक्षा 12वीं दोनों बोर्ड परीक्षाओं का रिजल्ट घोषित कर दिया है. छत्तीसगढ़ बोर्ड की दसवीं परीक्षा में राहुल यादव ने टॉप किया है. वहीं छत्तीसगढ़ बोर्ड की 12वीं परीक्षा में रायगढ़ की विधि भोंसले ने टॉप किया है.
छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CGBSE) ने बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट आज दोपहर 12 बजे जारी कर दिया है. जैसे ही बोर्ड ने रिजल्ट की घोषणा की, CGBSE की ऑफिशियल साइट क्रैश हो गई है. जिसे छात्रों को रिजल्ट का लिंक प्राप्त होने में देरी हो सकती है. स्टूडेंट धैर्य बनाएं रखें, जल्द ही रिजल्ट लिंक एक्टिव कर दिया जाएगा.
छत्तीसगढ़ बोर्ड कक्षा 10वीं और 12वीं के नतीजे घोषित कर दिए हैं. हालांकि ज्यादा ट्रैफिक की वजह से साइट क्रैश हो गई है.
छत्तीसगढ़ कक्षा 10वीं, 12वीं के नतीजे जारी होने वाले हैं. करीब आठ लाख बच्चों ने इस साल 10वीं, 12वीं की परीक्षा दी है. कुछ ही मिनटों में ये छात्र अपना बोर्ड रिजल्ट चेक कर सकेंगे.
छत्तीसगढ़ बोर्ड के छात्र एडमिट कार्ड के साथ तैयार हो जाएं. रिजल्ट कुछ ही मिनट में ऑनलाइन जारी होने वाला है. रिजल्ट का लिंक एक्टिव होने वाला है.
छत्तीसगढ़ बोर्ड रिजल्ट में बस एक घंटे की देरी रह गई है. छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा बोर्ड आज दोपहर 12 बजे रिजल्ट की घोषणा करेगा.
छत्तीसगढ़ परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों को सीजी बोर्ड परिणाम 2023 की जांच करने के लिए अपना एडमिट कार्ड रेडी रखना होगा. एडमिट कार्ड में दिए गए रोल नंबर से रिजल्ट चेक किया जा सकता है.
1. स्टूडेंट बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट cgbse. nic. in पर जाएं.
2. होमपेज पर छत्तीसगढ़ 10वीं के छात्र दसवीं के लिंक पर और छत्तीसगढ़ 12वीं के छात्र बारहवीं रिजल्ट के लिंक पर क्लिक करें.
3. अब स्टूडेंट रोल नंबर के साथ लॉग इन करें.
4. ऐसा करने के साथ ही छत्तीसगढ़ बोर्ड का रिजल्ट स्क्रीन पर नजर आयेगा.
5. अब यहां से अपने रिजल्ट को चेक कर डाउनलोड कर लें.
सीजीबीएसई 10वीं रिजल्ट 2023 लिंक दोपहर 12 बजे तक सक्रिय हो जाएगा. छात्र एसएमएस के जरिए भी रिजल्ट देख सकते हैं.
छत्तीसगढ़ बोर्ड के छात्र हो जाएं अलर्ट. छत्तीसगढ़ बोर्ड रिजल्ट 2023 का इंतजार खत्म. आज दोपहर 12 बजे छत्तीसगढ़ बोर्ड द्वारा रिजल्ट की घोषणा की जाएगी.
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d51e1bcdc4a46e6d050bac19fce87412ef8a1646 | web | होम सिनेमा सिस्टम 2।1 - यह सब इतना साधारण और अबाध है। रियल कंप्यूटर एक प्राथमिकताओं में दो स्टीरियो स्पीकर हैं, और इसके साथ बहस करना काफी मुश्किल है। वास्तव में, किसी भी समस्या के बिना एक साधारण जोड़ी को किसी भी पीसी से जोड़ना संभव है, लेकिन मल्टीमीडिया उपकरणों के साथ कई उपयोगकर्ताओं को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। वैसे, हम गुणवत्ता के बारे में नहीं भूल सकते हैं। सभ्य होम थिएटर और 2.1 सिस्टम केवल 10,000 रूबल तक मूल्य श्रेणी में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
इस लेख का फोकस सामान्य स्वेन स्टीरियो सिस्टम है।एसपीएस-700। मालिकों के विवरण, विशेषताओं और समीक्षाओं से पाठक को इन अद्भुत स्तंभों के बारे में बहुत सारी दिलचस्प चीजें सीखने को मिलेंगी। शायद यह यह लेख है जो संभावित खरीदारों के नकारात्मक रवैये को ऐसे उपकरणों में बदल देगा।
निर्माता की निर्दिष्ट विनिर्देशों, समीक्षाउपयोगकर्ता और कम लागत (3,000 रूबल तक) कई संभावित खरीदारों के बीच भ्रम पैदा करते हैं। धोखा दे? हां, यह मान लेना तर्कसंगत है कि "स्वेन" कॉलम निम्न गुणवत्ता के हैं, लेकिन नकारात्मक में देने की आवश्यकता नहीं है। यह बहुत आसान है। उपकरण का रूसी बाजार फिनलैंड और चीन (केवल एक सीमा) से आता है, क्रमशः उच्च गुणवत्ता वाले वक्ताओं की कीमत में न्यूनतम रसद लागत शामिल है।
कम लागत को प्रभावित करने वाला दूसरा कारकगरीब ब्रांड जागरूकता है। स्वेन केवल सीआईएस देशों में लोकप्रिय है, और विश्व बाजार में प्रवेश करने के लिए, निर्माता बस डंप करता है, न्यूनतम स्वीकार्य निशान द्वारा उच्च गुणवत्ता वाले सामान की लागत को कम करता है।
रूसी उपभोक्ता कब तक कोई नहीं जानताअभूतपूर्व उदारता की ऐसी कार्रवाई उपलब्ध होगी, लेकिन अब कई संभावित खरीदार अधिक सक्रिय हो गए हैं और सस्ते ब्रांड पर संकीर्ण रूप से देखना शुरू कर दिया है।
डेटिंग के पहले मिनट से स्पीकर स्वेन एसपीएस -700निश्चित रूप से संभावित खरीदारों का ध्यान आकर्षित करेगा। लगभग 10 किलोग्राम वजन का एक विशाल आकार का बॉक्स वास्तव में किसी को भी साज़िश करने में सक्षम है। घने कार्डबोर्ड, रंगीन पैकेजिंग, रूसी-भाषा डिजाइन - सभी आवश्यक सुविधाएं जो भविष्य के मालिक को पसंद आएंगी।
निर्माता ने स्पष्ट रूप से फोम प्लास्टिक को नहीं छोड़ाः स्तंभ गंभीरता से भरे हुए हैं, ऐसा लगता है कि फिन्स भालू के लिए उपकरण एकत्र कर रहे थे जो पैकेज के लिए फुटबॉल खेल रहे होंगे। दूसरी ओर, इस तरह की सुरक्षा उत्पाद के साथ परिचित होने के पहले मिनटों के दौरान सकारात्मक भावनाओं का कारण बनती है।
वक्ताओं का मानक पैकेज हैः स्टीरियो जोड़ी स्वेन SPS-700 ब्लैक, इंटरफ़ेस केबल, इंस्ट्रक्शन मैनुअल और वारंटी कार्ड। कभी-कभी बक्से में एक विज्ञापन पुस्तिका भी होती है जिसमें आप निर्माता द्वारा निर्मित सभी उत्पादों से परिचित हो सकते हैं।
शायद बहुत पहले नहीं, स्वेन पर जारी किया जाएगाअपने माल के साथ दुनिया के बाजार। मीडिया में मालिकों की समीक्षाओं को देखते हुए, संपूर्ण दोष स्पीकर सिस्टम का डिज़ाइन है। 21 वीं शताब्दी आंगन में है, और फिन्स अभी भी दो वक्ताओं के साथ सामान्य समानताएं बनाते हैं। बोलने वालों Sven SPS-700 की उपस्थिति प्रभावशाली नहीं है।
एर्गोनॉमिक्स के लिए भी हैनिर्माता को कई सवाल। सबसे पहले, एम्पलीफायर को बिजली की आपूर्ति करने वाला पावर केबल सीधे स्पीकर से जुड़ा होता है, इसे डिस्कनेक्ट करने का कोई तरीका नहीं है (उदाहरण के लिए, स्थापना या परिवहन में आसानी के लिए)। स्तंभों में दूसरा नकारात्मक, कई उपयोगकर्ता नियंत्रण कक्ष पर विचार करते हैं। इसे मुख्य स्तंभ (जहां एम्पलीफायर स्थित है) पर एक विशेष अवकाश में रखा गया है। यह सिस्टम का प्रबंधन करने के लिए असुविधाजनक है यदि यह दूरी पर है। यहां रिमोट कंट्रोल बाधित नहीं होगा।
क्या उपयोगकर्ता के साथ गलती नहीं मिलेगी, इसलिएयह गुणवत्ता स्टीरियो जोड़ी बनाने के लिए है। कॉलम "स्वेन" को एक संदर्भ उत्पाद कहा जा सकता है। एमडीएफ प्लेट (हाँ, लकड़ी नहीं) पूरी तरह से एक साथ फिट होते हैं। कोई अंतराल या स्कीप नहीं - ऊंचाई पर गुणवत्ता का निर्माण करें।
थोड़ा स्पष्ट नहीं माउंट वक्ताओं, औरदृश्य निरीक्षण में एक भावना है कि वे असुरक्षित रूप से घुड़सवार हैं। लेकिन यह राय भ्रामक है, बस निर्माता ने कम से कम यहां अपनी डिजाइन क्षमताओं को दिखाने का फैसला किया है। यदि आप स्तंभ को अलग करते हैं, तो मालिक देखेंगे कि स्पीकर सुरक्षित रूप से तय किए गए हैं और बाहर नहीं गिरेंगे।
इंटरफेस के लिए, टेक्नोलॉजिस्ट यहां भी हैं।स्वेन खरीदार को आश्चर्यचकित करने में सक्षम थे। एक कंप्यूटर के लिए एक स्टीरियो जोड़ी को जोड़ने और स्पीकर को एक दूसरे से जोड़ने के लिए मानक कनेक्टर के अलावा, निर्माता ने निष्क्रिय सबवूफ़र को जोड़ने के लिए एम्पलीफायर से ऑडियो पोर्ट के आउटपुट का आयोजन किया। काफी दिलचस्प फैसला है, हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इस आउटपुट को किस प्रतिरोध का समर्थन है।
सौंदर्य और उपस्थिति केवल अच्छे हैंअधिकांश संभावित खरीदार स्वेन एसपीएस -700 कॉलम के पूरी तरह से अलग मापदंडों में रुचि रखते हैं। उपयोगकर्ता की प्रतिक्रिया हमेशा ध्वनि की गुणवत्ता के आकलन से शुरू होती है, इसलिए यह स्टीरियो जोड़ी की तकनीकी विशेषताओं से परिचित होने का समय है।
एक एम्पलीफायर के साथ बेहतर शुरुआत करें। निर्माता ने कहा कि यह TDA2030A एनालॉग सर्किट के अनुसार इकट्ठा किया गया था और पूरे श्रव्य आवृत्ति रेंज (20-20,000 हर्ट्ज) को पुनः पेश करने में सक्षम है, लेकिन व्यवहार में सब कुछ कुछ अलग दिखता है। कई उत्साही भी आलसी नहीं थे, सिर के स्तंभ को भंग कर दिया और परीक्षणों की एक श्रृंखला आयोजित की।
यह प्रयोगात्मक रूप से स्थापित किया गया था कि एम्पलीफायर100 से 18 000 हर्ट्ज तक की सीमा देता है, और TDA2030A बोर्ड विशेष दुकानों में बेची गई चिप से थोड़ा अलग है। यह स्पष्ट है कि यह कारक सकारात्मक समीक्षा नहीं जोड़ता है।
यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि स्वेन प्रणाली की गतिशीलताएसपीएस -700, हालांकि वे उच्च श्रेणी के हैं, पूर्ण आवृत्ति रेंज में ध्वनि को पुनः पेश नहीं कर सकते हैं। लेकिन, जैसा कि अभ्यास से पता चलता है, ध्वनिकी कम आवृत्तियों के प्रजनन के साथ अच्छी तरह से मुकाबला करती है। बास बहुत नरम और गहरा है। सामान्य तौर पर, ऐसा लगता है कि सिस्टम एक सबवूफर से जुड़ा है। उनकी समीक्षाओं में, कई मालिक ऐसे उच्च गुणवत्ता वाले वक्ताओं के लिए निर्माता को खुले तौर पर धन्यवाद देते हैं (यह मत भूलो कि वे न केवल बास के लिए जिम्मेदार हैं, बल्कि मिडरेंज के लिए भी)
आप एक और विचित्रता पढ़ने का सामना कर सकते हैंवक्ताओं के निर्देश स्वेन एसपीएस -700। हमारे द्वारा किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि निर्माता द्वारा घोषित शक्ति (प्रति चैनल 20 वाट) उपयोगकर्ताओं का ध्यान आकर्षित करती है। ध्वनि को देखते हुए, कई मालिकों को यकीन है कि एम्पलीफायर के साथ लाउडस्पीकर लगभग 50 डब्ल्यू का उत्पादन करते हैं, निश्चित रूप से, कई उपयोगकर्ता वॉल्यूम को अंत तक चालू नहीं करते हैं। इस तरह के एक स्टीरियो के साथ, यह न केवल फिल्मों को देखने और गेम खेलने के लिए अच्छा है, बल्कि अपने पसंदीदा ऑडियो ट्रैक्स को सुनने का आनंद लेने के लिए भी है।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह कितना सुंदर दिखता है, उपयोगकर्ताओंवैसे भी, वक्ताओं के निर्माता स्वेन एसपीएस -700 के सवाल होंगे। सिस्टम को पीसी से कैसे कनेक्ट किया जाए, अगर स्पीकर सिस्टम यूनिट से बड़ी दूरी पर स्थापित हैं? संभावित खरीदारों के बीच यह सबसे आम सवाल है। तथ्य यह है कि एक निश्चित लंबाई वाली जेक-आरसीए केबल का उपयोग स्पीकर को पीसी से जोड़ने के लिए किया जाता है। स्वाभाविक रूप से, उपयोगकर्ता के पास एक दुविधा हैः कंप्यूटर के करीब स्पीकर स्थापित करें, या वांछित लंबाई का एक नया केबल खरीद लें। लेकिन निर्माता के लिए आरसीए कनेक्टर्स के बजाय स्प्रिंग-लोडेड टर्मिनलों को स्थापित करना आसान होगा।
कई उपयोगकर्ता ध्यान देते हैंकम-गुणवत्ता वाले कैपेसिटर जो बोर्ड पर स्थापित होते हैं। सचमुच, ऑपरेशन के एक साल बाद, टंकियां सूज जाती हैं, यही वजह है कि ध्वनि काफी बिगड़ जाती है। समस्या, निश्चित रूप से भाग को प्रतिस्थापित करके हल की जाती है।
ध्वनिकी और उपकरण के स्वामी नाराज हैंवक्ताओंः बस के अंदर कोई भराई है, क्योंकि उच्च और मध्य आवृत्तियों किसी न किसी तरह लग रहा है। इसे नरम बनाने के लिए, मालिक को वक्ताओं को अलग करना होगा और वक्ताओं के चारों ओर सिंथेटिक सिंथेटिक सामग्री रखना होगा, जो ध्वनि को लकड़ी के मामले से गूंजने की अनुमति नहीं देगा।
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6a34e3e22c34531e4956b1dc3d63bfee8437c0a3 | web | कोरोनोवायरस महामारी ने दुनिया भर में एक ठहराव के लिए जीवन ला दिया है। विशेष रूप से कबड्डी दुनिया में, लोगों के बीच संपर्क द्वारा परिभाषित एक खेल, चीजें सामान्य पर्यटन से एक ब्रेक ले रही हैं। एथलीट हममें से बाकी लोगों की तरह नियमों से बंधे हुए हैं, लेकिन कबड्डी के लिए एथलीटों से बात की जाती रही है, अपने घरों या अकादमियों में, अपनी बदली हुई दिनचर्या पर, प्रतियोगिताओं के साथ और उनके पास काफी समय है ।
रितु नेगी, भारतीय कबड्डी स्टार की डिफेंडर जिन्होंने महिला कबड्डी की दुनिया में अजूबा किया है, कबड्डी अड्डा के साथ बातचीत में थीं और शुरुआत में थोड़ी शर्माती थीं, लेकिन बातचीत के आगे बढ़ने के साथ ही सहज हो गईं।
केएः इस लॉकडाउन के दौरान आपकी दिनचर्या कैसी रही?
केएः इस तालाबंदी के दौरान आपकी दिनचर्या कैसी रही? रितुः इस लॉक डाउन के दौरान, मैं अपने परिवार के साथ बहुत समय बिता रही हूं, जो एक बहुत अच्छा एहसास है क्योंकि हम एथलीटों को सामान्य परिस्थितियों में इस तरह से ज्यादा खाली समय नहीं मिलता है। मैं घर में सफाई और अन्य घरेलू कामों में भी मदद कर रही हूं।
केएः आपकी ट्रेनिंग और वर्कआउट शेड्यूल कैसा दिखता है?
केएः यदि आपको कबड्डी खिलाड़ियों को यह बताने की इच्छा है कि इस लॉकडाउन अवधि में वे किस तरह के वर्कआउट कर सकते हैं, तो वह क्या होगा?
रितुः अपने घर को सीमित न रहने दें लेकिन आप जो भी कसरत करने की योजना बना रहे हैं, यह सुनिश्चित करें कि यह घर पर ही हो क्योंकि सीमित स्थानों में प्रशिक्षण के तरीके भी हैं। यहाँ कुछ मूल बातें हैं जो आप अपने घर से कर सकते हैं जो आपको कड़ी मेहनत करवाएँगीः
केएः आप परिवार के साथ कैसे समय बिता रहे हैं? क्या कोई नया शौक है जो आपने उठाया है?
रितुः हम वास्तव में अपना ज्यादातर समय टीवी देखने में बिताते हैं, अब जब वे दो महाकाव्य शो रामायण और महाभारत का प्रसारण कर रहे हैं, तो हम एक साथ बैठते हैं और इन दो शो का आनंद लेते हैं। हम अपने कैरम बोर्ड पर भी मैच खेलते हैं जब भी हम टीवी नहीं देख रहे होते हैं, जो काफी मजेदार और प्रतिस्पर्धी भी रहा है।
केएः आपके परिवार में और कौन हैं / खेल में हैं?
रितुः मेरे पिताजी, भवन सिंह नेगी ने अपने छोटे दिनों के दौरान राज्य स्तरीय कबड्डी खेली है, और कम मौकों और फिर कोई वास्तविक मंच नहीं मिलने के कारण उन्हें खेलना बंद करना पड़ा। वह अब पास के एक स्कूल में पीटी शिक्षक है इसलिए यह अच्छा है कि जब वह खेल भी खेले तो वह उस ज्ञान में से कुछ दे सकता है।
केएः आप कबड्डी से कैसे जुड़ गए, यह सब कैसे शुरू हुआ और क्या आप हमें अपनी यात्रा के बारे में बता सकते हैं?
रितुः मेरे स्कूल के समय में, स्कूल की कुछ सीनियर लड़कियाँ कबड्डी खेला करती थीं और मैं बस उन्हें देखकर रोमांचित हो उठता था और इसी तरह मैं कबड्डी के प्रति आकर्षित हो गया और अब तक पीछे मुड़कर नहीं देखा। जब मैं 10 वीं कक्षा में था, तो स्कूल के मेरे कोच ने मुझे SAI बिलासपुर में चयन के लिए ट्रायल में ले लिया, जहाँ मेरा चयन हुआ और मैंने वहाँ 9 साल तक प्रशिक्षण लिया। इस दौरान, मैंने जूनियर और सीनियर दोनों नेशनल खेले और सीनियर नागरिकों के लिए जूनियर नेशनल में दो गोल्ड मेडल और हिमाचल प्रदेश के लिए सीनियर नेशनल में 5 ब्रॉन्ज मेडल जीते। 2011 में, मैंने तब भारतीय जूनियर टीम की कप्तानी की और स्वर्ण पदक जीता जो एक विशेष भावना थी और 2014 में मैं इंडियन रेलवे में शामिल हो गयी ।
केएः आपने इसे भारतीय जूनियर टीम में कैसे बनाया? और एक कप्तान के रूप में आपने सभी दबावों और उम्मीदों को कैसे संभाला?
रितुः मैंने छत्तीसगढ़ में 2011 में जूनियर नेशनल खेला था, जो मुझे जूनियर इंडियन टीम के कैंप के लिए मिला था, जहां 30 लड़कियां इसका हिस्सा थीं और आखिरकार यह घटकर 12 रह गई जिसमें मुझे कप्तान के रूप में चुना गया। हां, एक कप्तान के रूप में बहुत दबाव था और यह भारत के लिए मेरा पहला टूर्नामेंट था और मैं थोड़ा परेशान महसूस कर रहा था जैसे हर कोई करता है, लेकिन इसका श्रेय सभी कोचों को जाता है। एक विशेष उल्लेख रामबीर सिंह कोखर सर का भी था, जो तब जूनियर भारतीय टीम के कोच थे और उन्होंने दबाव में आने और अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने में मेरी मदद की और आखिरकार हमने स्वर्ण पदक जीता। वो एक खास एहसास था!
केएः क्या खेल के भीतर एक खिलाड़ी है जिसे आप एक प्रेरणा के रूप में देखते हैं?
रितुः हिमाचल प्रदेश से पूजा ठाकुर मेरी प्रेरणा हैं। वह 2009 में जूनियर एशियन चैंपियनशिप में जूनियर भारतीय टीम की कप्तान थीं और वह हमेशा से ही ऐसी थीं, जिन्हें मैं देखती हूं।
केएः हिमाचल प्रदेश में कबड्डी पारिस्थितिकी तंत्र पर आपके क्या विचार हैं?
रितुः हिमाचल प्रदेश में आमतौर पर खेलों के लिए अच्छा बुनियादी ढांचा है। राज्य में 5 खेल छात्रावास हैं जहां खिलाड़ी रह सकते हैं और अभ्यास कर सकते हैं। हिमाचल खेलों में बहुत अच्छा है, विशेष रूप से कबड्डी और हमेशा अजय ठाकुर, बलदेव सिंह, विशाल बड़वाज और पूजा ठाकुर जैसी मजबूत कबड्डी प्रतिभाओं का निर्माण किया गया है। हिमाचल से कुल 9 खिलाड़ी हैं जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 5 महिला और 4 पुरुष खिलाड़ी खेले हैं।
केएः आपने पढ़ाई और खेल के बीच संतुलन का प्रबंधन कैसे किया?
रितुः स्पोर्ट्स हॉस्टल में, मेरी सुबह और शाम मेरे अभ्यास के लिए समर्पित थे और दिन के दौरान, हम स्कूल / कॉलेज में जाते थे, इसलिए यही दिनचर्या और संतुलन था जो हमने अध्ययन के लिए पाया और खेल पर भी ध्यान केंद्रित किया। घर पर, मेरे माता-पिता शुरू में पढ़ाई के बारे में विशेष थे लेकिन जैसे-जैसे मैंने कबड्डी के उच्च स्तर पर खेलना शुरू किया, उन्होंने यह भी मानना शुरू कर दिया कि पढ़ाई केवल एक चीज नहीं है और यह समझा कि खेल मुझे सफलता के लिए एक कैरियर मार्ग भी प्रदान कर सकता है।
केएः क्या आपको याद है कि आपने अपने छोटे दिनों से अपनी पुरस्कार राशि से कोई विशेष खरीदारी की है?
रितुः अपने शुरुआती दिनों के दौरान, मुझे टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए और टूर्नामेंट जीतने के लिए कुछ पुरस्कार राशि मिलती थी, इसलिए उस पैसे से, मैंने अपने घर के लिए एक शोकेस खरीदा और फिर अपनी सभी ट्राफियां वापस करने के लिए भविष्य की ट्राफियां मुझे अपने हाथ मिल सकती हैं।
केएः आपने इसे भारतीय रेलवे टीम में कैसे बनाया और क्या आप इसके पीछे की प्रक्रिया बता सकती हैं?
रितुः कुछ सीनियर कोच मुझे ए ग्रेड टूर्नामेंट में देखते थे, उन कौशल से प्रभावित थे जिन्हें मैं अपने प्रदर्शन के लिए सक्षम था और मुझे सीधे इंडियन रेलवे में नौकरी की पेशकश की। फिर नौकरी को सुरक्षित करने के लिए, मुझे चयन ट्रेल को साफ करना पड़ा, जो मैंने अंततः किया, इसे साउथ सेंट्रल रेलवे (एससीआर) टीम के लिए बनाया।
मेरे पहले इंटर रेलवे टूर्नामेंट में, एससीआर चैंपियन थे जो हमेशा इंटर रेलवे टूर्नामेंट में ऐतिहासिक रूप से मामला था। फिर मुझे अगले कैंप के लिए चुन लिया गया और वहां से नौकरी पर मेरे पहले वर्ष में सीनियर नेशनल्स के लिए इंडियन रेलवे टीम के लिए चुना गया।
केएः क्या आप हमें सीनियर नेशनल जैसे बड़े टूर्नामेंट से पहले शेड्यूल के बारे में बता सकते हैं?
रितुः सीनियर नेशनल्स से आगे, आमतौर पर 1 महीने का प्री-टूर्नामेंट कैंप होता है, जिसमें 32-35 लड़कियां भाग लेती हैं और हमारे कोच बानी साहा मैम हमें गहनता से प्रशिक्षित करते हैं, जो सीनियर नेशनल टीम के लिए एक अंतिम ट्रायल होता है, जिसमें से अंतिम 12 खिलाड़ियों का चयन किया जाता है। हर दिन विभिन्न प्रकार के "कौशल" अभ्यास में विभाजित किया जाता है और फिर फिटनेस पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिसका संचालन कोच बनानी साहा करते हैं, जो भारतीय महिला टीम के कोच भी हैं।
केएः आपने इसे इंडियन सीनियर टीम में कैसे बनाया?
रितुः 2017 में मुझे एशियाई चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम के कैंप के लिए चुना गया, लेकिन अंतिम 12 में जगह नहीं बनाई। यह 20 दिवसीय कैंप था और यह मेरा पहला भारतीय टीम कैंप भी था। 2018 में, मैंने इसके बाद एशियाई खेलों के लिए कैंप में जगह बनाई और भारतीय टीम के लिए अंतिम 12 में चुना गया और यह ईमानदारी से मेरे लिए एक सपना सच हो गया।
केएः क्या आप हमें एशियाई खेलों जैसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में भारत के लिए खेलने की भावना के बारे में बता सकते हैं?
रितुः यह एशियाई खेलों में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का एक शानदार अनुभव है, लेकिन 2018 में टूर्नामेंट का परिणाम दुर्भाग्य से हमारे रास्ते पर नहीं गया। हम वास्तव में पूरे टूर्नामेंट में बहुत अच्छा खेले लेकिन हम फाइनल में लाइन से नहीं उतर पाए। यह बहुत ही निराशाजनक एहसास था, यह देखते हुए कि उस समय तक हर एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने का एक अद्भुत रिकॉर्ड था।
केएः जब आप अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए जाते हैं और अन्य देशों के खिलाड़ियों के साथ बातचीत करते हैं, तो आप उनसे कितना सीखते हैं?
रितुः हम सभी जानते हैं कि भारतीय कबड्डी टीम किसी भी अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन यह अन्य टीमों से कुछ भी दूर नहीं रखती है क्योंकि वे बहुत तेज गति से सुधार कर रहे हैं। 2018 एक संकेत था और वे भी बहुत आत्मविश्वास दिखाते हैं जब वे हमारे खिलाफ खेलते हैं और जब भी वे मैट पर होते हैं तो बहुत मजबूत लड़ाई करते हैं। यह विश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति के रूप में भी धक्का कभी कभी कुछ सबक हैं जो हम हमेशा उनसे दूर ले जाते हैं।
केएः आप अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में बड़े खेल से पहले खुद को कैसे तैयार करते हैं और जब आप खेल के लिए मैट पर होते हैं तो आपके दिमाग में क्या चलता है?
रितुः हमारे पास खेल से पहले टीम की बैठकें होती हैं जहां हमारे कोच खेल के बारे में बात करते हैं। हम बैठकों में एक साथ बैठते हैं और अपने वीडियो देखकर प्रतिद्वंद्वी की गतिविधियों और उनके गेमप्ले का अध्ययन करते हैं और हम उसी के अनुसार अपने गेम प्लान पर काम करते हैं।
दूसरे प्रश्न का उत्तर देते हुए, जब हम किसी खेल के लिए मैट पर जाते हैं, तो हमारे सभी प्रमुखों में जो बात होती है, वह यह है कि हम सभी ने इस पद पर बने रहने के लिए इतनी मेहनत की है और हमारे कोचों ने यहां पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की है। , इसलिए हमारी एकमात्र प्राथमिकता हमारे देश या टीम के लिए खेल जीतना है।
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6b116afcb99d77195bfb0a96ae374d52d0c669bd | web | आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864-1938) हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। उन्होने हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। उनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग 'द्विवेदी युग' (1900-1920) के नाम से जाना जाता है। उन्होने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। .
33 संबंधोंः द्विवेदी, देवी दत्त शुक्ल, नागरीप्रचारिणी सभा, निबन्ध, बालमुकुंद गुप्त, बालकृष्ण शर्मा नवीन, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, भारत भारती (काव्यकृति), माधव प्रसाद मिश्र, मैथिलीशरण गुप्त, रामचरित उपाध्याय, सत्यशरण रतूड़ी, समस्त रचनाकार, सरस्वती पत्रिका, संस्मरण, स्वदेशी आन्दोलन, हरिभाऊ उपाध्याय, हास्यरस तथा उसका साहित्य (संस्कृत, हिन्दी), हिन्दी नवजागरण, हिन्दी पत्रिकाएँ, हिन्दी पत्रकारिता, हिन्दी साहित्य का इतिहास, हिन्दी गद्यकार, गणेशशंकर विद्यार्थी, गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही', आदिकाल, आदिकाल का नामकरण, आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास, आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास, आधुनिक काल, काशीप्रसाद जायसवाल, केशवप्रसाद मिश्र, अवधी।
द्विवेदी एक भारतीय उपनाम है। ब्राह्मण जाति में एक उप जाति जो द्विवेदी, दूबे, दबे के उप-नाम से विभिन्न स्थानों में निवास करती है। ब्राम्हण की इस उप-जाति का उद्गम स्थान अधिकतर लोग उ॰ प्र॰ के गोरखपुर जिले के "समदरिया एवं सरार" को मानते हैं। यह एक यर्जुवेदिय मध्यान्धनी शाखा के ब्राम्हण होते हैं। जिनमें प्रमुख गोत्र बत्स, भारद्वाज, शान्डिल्य इत्यादि होते हैं। द्विबेदी अथवा दूबे उप-नाम से विशेष कर उ॰प्र॰ में गोरखपुर,Siddharth nagar देवरिया, मदरिया, वाराणसी, लखनऊ, कानपुर (कान्यकुब्ज दूबे) म॰ प्र॰ में इन्दौर, भोपाल, जबलपुर, सतना, रीवा; पंजाब में होशियारपुर,नांगल एवं गुजरात में नन्दियाड़, भावनगर में द्विबेदी अथवा दूबे, दबे उप-नाम से निवास करते हैं। द्विवेदी उप-नाम में महत्व पूर्ण व्यक्तित्व प्रमुख लेखक, कवी संत एवं विद्वान-संत तुलसी दास, महाबीर प्रसाद द्विवेदी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, बाल गोबिन्द द्विवेदी, लाल बहादुर दुबे, रेवा प्रसाद द्विवेदी प्रसिद्ध हैं। श्रेणीःभारतीय उपनाम.
देवीदत्त शुक्ल (१८८८ --) हिन्दी के साहित्यकार एवं पत्रकार थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी के बाद सरस्वती पत्रिका के सम्पादन का गुरुतर भार सन् १९२५ से १९२७ फिर १९२९ - १९४६ तक शुक्ल जी ने ही सँभाला। शुक्ल जी ने २७ वर्षों तक "सरस्वती" का सम्पादन किया। .
नागरीप्रचारिणी सभा, हिंदी भाषा और साहित्य तथा देवनागरी लिपि की उन्नति तथा प्रचार और प्रसार करनेवाली भारत की अग्रणी संस्था है। भारतेन्दु युग के अनंतर हिंदी साहित्य की जो उल्लेखनीय प्रवृत्तियाँ रही हैं उन सबके नियमन, नियंत्रण और संचालन में इस सभा का महत्वपूर्ण योग रहा है। .
निबन्ध (Essay) गद्य लेखन की एक विधा है। लेकिन इस शब्द का प्रयोग किसी विषय की तार्किक और बौद्धिक विवेचना करने वाले लेखों के लिए भी किया जाता है। निबंध के पर्याय रूप में सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। लेकिन साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबंध ही है। इसे अंग्रेजी के कम्पोज़ीशन और एस्से के अर्थ में ग्रहण किया जाता है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार संस्कृत में भी निबंध का साहित्य है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन निबंधों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। किन्तु वर्तमान काल के निबंध संस्कृत के निबंधों से ठीक उलटे हैं। उनमें व्यक्तित्व या वैयक्तिकता का गुण सर्वप्रधान है। इतिहास-बोध परम्परा की रूढ़ियों से मनुष्य के व्यक्तित्व को मुक्त करता है। निबंध की विधा का संबंध इसी इतिहास-बोध से है। यही कारण है कि निबंध की प्रधान विशेषता व्यक्तित्व का प्रकाशन है। निबंध की सबसे अच्छी परिभाषा है- इस परिभाषा में अतिव्याप्ति दोष है। लेकिन निबंध का रूप साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा इतना स्वतंत्र है कि उसकी सटीक परिभाषा करना अत्यंत कठिन है। .
बालमुकुंद गुप्त (१४ नवंबर १८६५ - १८ सितंबर १९०७) का जन्म गुड़ियानी गाँव, जिला Rewari, हरियाणा में हुआ। उन्होने हिन्दी के निबंधकार और संपादक के रूप हिन्दी जगत की सेवा की। .
बालकृष्ण शर्मा नवीन (१८९७ - १९६० ई०) हिन्दी कवि थे। वे परम्परा और समकालीनता के कवि हैं। उनकी कविता में स्वच्छन्दतावादी धारा के प्रतिनिधि स्वर के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना, गांधी दर्शन और संवेदनाओं की झंकृतियां समान ऊर्जा और उठान के साथ सुनी जा सकती हैं। आधुनिक हिन्दी कविता के विकास में उनका स्थान अविस्मरणीय है। वे जीवनभर पत्रकारिता और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे। नवीन जी द्विवेदी युग के कवि हैं। इनकी कविताओं में भक्ति-भावना, राष्ट्र-प्रेम तथा विद्रोह का स्वर प्रमुखता से आया है। आपने ब्रजभाषा के प्रभाव से युक्त खड़ी बोली हिन्दी में काव्य रचना की। उन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६० में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। .
कवि शिरोमणि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री (23 मार्च 1889 - 4 जून 1964) बीसवीं सदी पूर्वार्द्ध के प्रख्यात संस्कृत कवि, मूर्धन्य विद्वान, संस्कृत सौन्दर्यशास्त्र के प्रतिपादक और युगपुरुष थे। उनका जन्म 23 मार्च 1889 (विक्रम संवत 1946 की आषाढ़ कृष्ण सप्तमी) को आंध्र के कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अनुयायी वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के प्रसिद्ध देवर्षि परिवार में हुआ, जिन्हें सवाई जयसिंह द्वितीय ने 'गुलाबी नगर' जयपुर शहर की स्थापना के समय यहीं बसने के लिए आमंत्रित किया था। आपके पिता का नाम देवर्षि द्वारकानाथ, माता का नाम जानकी देवी, अग्रज का नाम देवर्षि रमानाथ शास्त्री और पितामह का नाम देवर्षि लक्ष्मीनाथ था। श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि, द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट आदि प्रकाण्ड विद्वानों की इसी वंश परम्परा में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने विपुल साहित्य सर्जन की आभा से संस्कृत जगत् को प्रकाशमान किया। हिन्दी में जिस तरह भारतेन्दु हरिश्चंद्र युग, जयशंकर प्रसाद युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग हैं, आधुनिक संस्कृत साहित्य के विकास के भी तीन युग - अप्पा शास्त्री राशिवडेकर युग (1890-1930), भट्ट मथुरानाथ शास्त्री युग (1930-1960) और वेंकट राघवन युग (1960-1980) माने जाते हैं। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य एवं रचनात्मक संस्कृत लेखन इतना विपुल है कि इसका समुचित आकलन भी नहीं हो पाया है। अनुमानतः यह एक लाख पृष्ठों से भी अधिक है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली जैसे कई संस्थानों द्वारा उनके ग्रंथों का पुनः प्रकाशन किया गया है तथा कई अनुपलब्ध ग्रंथों का पुनर्मुद्रण भी हुआ है। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री का देहावसान 75 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण 4 जून 1964 को जयपुर में हुआ। .
भारत भारती (काव्यकृति)
भारत भारती, मैथिलीशरण गुप्तजी की प्रसिद्ध काव्यकृति है जो १९१२-१३ में लिखी गई थी। यह स्वदेश-प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग है। भारतवर्ष के संक्षिप्त दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति "भारत-भारती" निश्चित रूप से किसी शोध कार्य से कम नहीं है। गुप्तजी की सृजनता की दक्षता का परिचय देनेवाली यह पुस्तक कई सामाजिक आयामों पर विचार करने को विवश करती है। भारतीय साहित्य में भारत-भारती सांस्कृतिक नवजागरण का ऐतिहासिक दस्तावेज है। मैथिलीशरण गुप्त जिस काव्य के कारण जनता के प्राणों में रच-बस गए और 'राष्ट्रकवि' कहलाए, वह कृति भारत भारती ही है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में पहले पहल हिंदीप्रेमियों का सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली पुस्तक भी यही है। इसकी लोकप्रियता का आलम यह रहा है कि इसकी प्रतियां रातोंरात खरीदी गईं। प्रभात फेरियों, राष्ट्रीय आंदोलनों, शिक्षा संस्थानों, प्रातःकालीन प्रार्थनाओं में भारत भारती के पद गांवों-नगरों में गाये जाने लगे। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका में कहा कि यह काव्य वर्तमान हिंदी साहित्य में युगान्तर उत्पन्न करने वाला है। इसमें यह संजीवनी शक्ति है जो किसी भी जाति को उत्साह जागरण की शक्ति का वरदान दे सकती है। 'हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी' का विचार सभी के भीतर गूंज उठा। यह काव्य 1912 में रचा गया और संशोधनों के साथ 1914 में प्रकाशित हुआ। यह अपूर्व काव्य मौलाना हाली के 'मुसद्दस' के ढंग का है। राजा रामपाल सिंह और रायकृष्णदास इसकी प्रेरणा में हैं। भारत भारती की इसी परम्परा का विकास माखनलाल चतुर्वेदी, नवीन जी, दिनकर जी, सुभद्राकुमारी चौहान, प्रसाद-निराला जैसे कवियों में हुआ। .
माधव प्रसाद मिश्र (१८७१ - १९०७ ई०), हिन्दी के विख्यात साहित्यकार थे। कुछ लोगों का विचार है कि हिन्दी के द्विवेदी युग का सही नाम माधव प्रसाद मिश्र युग होना चाहिये। वे सुदर्शन नामक एक हिन्दी पत्र का सम्पादन करते थे। उनका जन्म भिवानी (हरियाणा) में हुआ था। माधव प्रसाद मिश्र का जन्म भिवानी (हरियाणा) के समीप कूँगड़ नामक ग्राम में हुआ था। वे कट्टर सनातन धर्मी विचारों के थे। वे स्वभाव के बड़े जोशीले तथा भारतीय संस्कृति के संरंक्षक और राष्ट्रप्रेमी विद्वान थे। उन्होंने 'वैश्योपकारक' और 'सुदर्शन' का संपादन किया। 'वेबर का भ्रम' उनके निजी संस्कृतिप्रेम का परिचायक है। नैषध-चरित-चर्चा पर महावीरप्रसाद द्विवेदी से उनकी नोक-झोंक चलती रही। श्रीधर पाठक के काव्य विषय की भी उन्होंने खूब टीका-टिप्पणी की। लोकोपयोगी स्थायी विषयों पर इनके 'धृति' और 'क्षमा' शीर्षक दो लेख उपलब्ध हैं। आपके निबंध अधिकतर भावात्मक हैं। भाषा पांडित्यपूर्ण और मुहावरेदार है। जीवन-चरित-रचना में भी आप सिद्धहस्त थे। श्रेणीःहिन्दी साहित्यकार.
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ - १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली साबित हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो 'पंचवटी' से लेकर जयद्रथ वध, यशोधरा और साकेत तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है। .
रामचरित उपाध्याय हिन्दी कवि एवं साहित्यकार थे। श्री रामचरित उपाध्याय का जन्म सन् १८७२ में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में हुआ था। प्रारंभ में ये ब्रजभाषा में कविता करते थे। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के प्रोत्साहन से इन्होंने खड़ी बोली में रचना प्रारंभ की और इनकी रचनाएँ 'सरस्वती' तथा हिंदी की अन्य पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं। यह राष्ट्रीय जागरण का युग था। इन्होंने 'भारत भक्ति', 'भव्य भारत' तथा 'राष्ट्र भारती' जैसी युगानुरूप रचनाएँ करके राष्ट्रीय जागरण में योगदान दिया। इन्होंने 'रामचरित चिंतामणि' नामक प्रबंध काव्य की भी रचना की। युग की चेतनना से स्पंदित होकर राम के लोकोत्तर रूप का चित्रण न करके मानवीय रूप की प्रतिष्ठा की। इस प्रकार इस काव्य के पौराणि पात्र अतीत काल के प्राणी न रहकर आधुनिक विचारधारा और विकासोन्मुख जीवन से ओतप्रोत हैं। इन्होंने सूक्ति एवं नीति के पद्य भी लिखे, जिनका संग्रह 'सूक्ति मुक्तावली' नामक पुस्तक में हुआ है। इन्होंने महाभारत की कथा के आधार पर एक महिलोपयोगी उपन्यास 'देवी द्रौपदी' की भी रचना की। अपनी बहुमुखी साहित्यसेवा के कारण द्विवेदी युग के साहित्यकारों में इनका विशिष्ट साहित्यसेवा के कारण द्विवेदी युग के साहित्यकारों में इनका विशिष्ट स्थान है। श्रेणीःहिन्दी साहित्यकार.
सत्यशरण रतूड़ी 'चंचरोक' का जन्म गोदी (टिहरी) में हुआ। आप द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवियों में माने जाते हैं। उनकी कविताएँ प्रायः "सरस्वती" में प्रकाशित होती थीं। वे अत्यंत भावुक और सहृदय कवि थे। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने अपने एक पत्र में (2 मार्च 1938 को म्यामचंद नेगी को लिखित) इन शब्दों में उनकी प्रतिभा को स्वीकार किया थाः "स्वर्गवासी पं॰ सत्यशरण जी रतूड़ी सुकवि थे। भाषा पर उनका अच्छा अधिकार था। उनकी वाणी में रस था। उनकी कविताएँ सरस, सरल और भावमयी होती थीं। इससे मैं उन्हें सरस्वती में स्थान देता था।" उनकी कविताएँ विश्वरंदत्त उनियाल द्वारा संपादित "सत्य कुसुमांजलि" में संगृहीत हैं। उनकी "शांतिमयी शैय्या" कविता रामनरेश त्रिपाठी की "कवितावली" में मिलती है। श्रेणीःहिन्दी साहित्यकार.
अकारादि क्रम से रचनाकारों की सूची अ.
सरस्वती हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध रूपगुणसम्पन्न प्रतिनिधि पत्रिका थी। इस पत्रिका का प्रकाशन इलाहाबाद से सन १९०० ई० के जनवरी मास में प्रारम्भ हुआ था। ३२ पृष्ठ की क्राउन आकार की इस पत्रिका का मूल्य ४ आना मात्र था। १९०३ ई० में महावीर प्रसाद द्विवेदी इसके संपादक हुए और १९२० ई० तक रहे। इसका प्रकाशन पहले झाँसी और फिर कानपुर से होने लगा था। महवीर प्रसाद द्विवेदी के बाद पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवी दत्त शुक्ल, श्रीनाथ सिंह, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवीलाल चतुर्वेदी और श्रीनारायण चतुर्वेदी सम्पादक हुए। १९०५ ई० में काशी नागरी प्रचारिणी सभा का नाम मुखपृष्ठ से हट गया। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका कार्यभार संभाला। एक ओर भाषा के स्तर पर और दूसरी ओर प्रेरक बनकर मार्गदर्शन का कार्य संभालकर द्विवेदी जी ने साहित्यिक और राष्ट्रीय चेतना को स्वर प्रदान किया। द्विवेदी जी ने भाषा की समृद्धि करके नवीन साहित्यकारों को राह दिखाई। उनका वक्तव्य हैः महावीरप्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' पत्रिका के माध्यम से ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ नए रचनाकारों को भाषा का महत्त्व समझाया व गद्य और पद्य के लिए राह निर्मित की। महावीर प्रसाद द्विवेदी की यह पत्रिका मूलतः साहित्यिक थी और हरिऔध, मैथिलीशरण गुप्त से लेकर कहीं-न-कहीं निराला के निर्माण में इसी पत्रिका का योगदान था परंतु साहित्य के निर्माण के साथ राष्ट्रीयता का प्रसार करना भी इनका उद्देश्य था। भाषा का निर्माण करना साथ ही गद्य-पद्य के लिए खड़ी बोली को ही प्रोत्साहन देना इनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था। मई १९७६ के बाद इसका प्रकाशन बन्द हो गया।लगभग अस्सी वर्षों तक यह पत्रिका निकली I अंतिम बीस वर्षों तक इसका सम्पादन पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी ने किया I .
स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को 'संस्मरणात्मक निबंध' कहा जा सकता है। व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अन्तर्गत लिया जा सकता है। किन्तु संस्मरण और आत्मचरित के दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवनकथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण भिन्न रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेखक की स्वयं की अनुभूतियाँ तथा संवेदनायें संस्मरण में अन्तर्निहित रहती हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेखक निबन्धकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। इतिहासकार के समान वह केवल यथातथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेनानायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनका साहित्यिक महत्त्व स्वीकारा गया है। .
१९३० के दशक का पोस्टर जिसमें गाँधीजी को जेल के अन्दर चरखा कातते हुए दिखाया गया है, और लिखा है- "चरखा और स्वदेशी पर ध्यान दो।" स्वदेशी आन्दोलन भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण आन्दोलन, सफल रणनीति व दर्शन था। स्वदेशी का अर्थ है - 'अपने देश का'। इस रणनीति के लक्ष्य ब्रिटेन में बने माल का बहिष्कार करना तथा भारत में बने माल का अधिकाधिक प्रयोग करके साम्राज्यवादी ब्रिटेन को आर्थिक हानि पहुँचाना व भारत के लोगों के लिये रोजगार सृजन करना था। यह ब्रितानी शासन को उखाड़ फेंकने और भारत की समग्र आर्थिक व्यवस्था के विकास के लिए अपनाया गया साधन था। वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला। यह 1911 तक चला और गान्धीजी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल अन्दोलनों में से एक था। अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होने इसे "स्वराज की आत्मा" कहा। .
हरिभाऊ उपाध्याय (१८८२ - १९७२) भारत के प्रसिद्ध साहित्यसेवी एवं राष्ट्रकर्मी थे। .
हास्यरस तथा उसका साहित्य (संस्कृत, हिन्दी)
भारतीय काव्याचार्यों ने रसों की संख्या प्रायः नौ ही मानी है जिनमें से हास्य रस प्रमुख रस है। जैसे जिह्वा के आस्वाद के छह रस प्रसिद्ध हैं उसी प्रकार हृदय के आस्वाद के नौ रस प्रसिद्ध हैं। जिह्वा के आस्वाद को लौकिक आनंद की कोटि में रखा गया है क्योंकि उसका सीधा संबंध लौकिक वस्तुओं से है। हृदय के आस्वाद को अलौकिक आनंद की कोटि में माना जाता है क्योंकि उसका सीधा संबंध वस्तुओं से नहीं किंतु भावानुभूतियों से है। भावानुभूति और भावानुभूति के आस्वाद में अंतर है। भारतीय काव्याचार्यों ने रसों की संख्या प्रायः नौ ही मानी है क्योंकि उनके मत से नौ भाव ही ऐसे हैं जो मनुष्य की मूल प्रवृत्तियों से घनिष्ठतया संबंधित होकर स्थायित्व की पूरी क्षमता रखते हैं और वे ही विकसित होकर वस्तुतः रस संज्ञा की प्राप्ति के अधिकारी कहे जा सकते हैं। यह मान्यता विवादास्पद भी रही है, परंतु हास्य की रसरूपता को सभी से निर्विवाद रूप से स्वीकार किया है। मनोविज्ञान के विशेषज्ञों ने भी हास को मूल प्रवृत्ति के रूप में समुचित स्थान दिया है और इसके विश्लेषण में पर्याप्त मनन चिंतन किया है। इस मनन चिंतन को पौर्वात्य काव्याचार्यों की अपेक्षा पाश्चात्य काव्याचार्यों ने विस्तारपूर्वक अभिव्यक्ति दी है, परंतु फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने इस तत्व का पूरी व्यापकता के साथ अध्ययन कर लिया है और या हास्यरस या हास की काव्यगत अभिव्यंजना की ही कोई ऐसी परिभाषा दे दी है जो सभी सभी प्रकार के उदाहरणों को अपने में समेट सके। भारतीय आचार्यों ने एक प्रकार के सूत्ररूप में ही इसका प्रख्यापन किया है किंतु उनकी संक्षिप्त उक्तियों में पाश्चात्य समीक्षकों के प्रायः सभी निष्कर्षों और तत्वों का सरलतापूर्वक अंतर्भाव देखा जा सकता है। .
हिन्दी नवजागरण से अभिप्राय सन् १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत के हिन्दी प्रदेशों में आये राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जागरण से है। हिन्दी-नवजागरण की सबसे प्रमुख विशेषता हिन्दी-प्रदेश की जनता में स्वातंत्र्य-चेतना का जागृत होना है। इसका पहला चरण स्वयं १८५७ का विद्रोह था। इसका दूसरा चरण भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से शुरू हुआ और तीसरा चरण महावीर प्रसाद द्विवेदी से शुरू हुआ। यह मान्यता तो बहुत पहले से प्रचलित रही है कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के उदय के साथ हिंदी में एक नए युग का आरंभ हुआ, किंतु इस नए युग को 'नवजागरण' नाम देने का श्रेय हिंदी में डॉ॰ रामविलास शर्मा को है। 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण' (1977) नामक पुस्तक के द्वारा उन्होंने 'नवजागरण' की नहीं बल्कि 'हिंदी नवजागरण' की संकल्पना प्रस्तुत की। इससे पहले भारत में नवजागरण की चर्चा प्रायः 'बंगाल नवजागरण' के रूप में ही होती रही है। .
हिन्दी पत्रिकाएँ सामाजिक व्यवस्था के लिए चतुर्थ स्तम्भ का कार्य करती हैं और अपनी बात को मनवाने के लिए एवं अपने पक्ष में साफ-सूथरा वातावरण तैयार करने में सदैव अमोघ अस्त्र का कार्य करती है। हिन्दी के विविध आन्दोलन और साहित्यिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्य सामाजिक गतिविधियों को सक्रिय करने में हिन्दी पत्रिकाओं की अग्रणी भूमिका रही है।; प्रमुख हिन्दी पत्रिकाएँ- .
हिन्दी पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी है। हिन्दी पत्रकारिता के आदि उन्नायक जातीय चेतना, युगबोध और अपने महत् दायित्व के प्रति पूर्ण सचेत थे। कदाचित् इसलिए विदेशी सरकार की दमन-नीति का उन्हें शिकार होना पड़ा था, उसके नृशंस व्यवहार की यातना झेलनी पड़ी थी। उन्नीसवीं शताब्दी में हिन्दी गद्य-निर्माण की चेष्टा और हिन्दी-प्रचार आन्दोलन अत्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियों में भयंकर कठिनाइयों का सामना करते हुए भी कितना तेज और पुष्ट था इसका साक्ष्य 'भारतमित्र' (सन् 1878 ई, में) 'सार सुधानिधि' (सन् 1879 ई.) और 'उचित वक्ता' (सन् 1880 ई.) के जीर्ण पृष्ठों पर मुखर है। वर्तमान में हिन्दी पत्रकारिता में अंग्रेजी पत्रकारिता के दबदबे को खत्म कर दिया है। पहले देश-विदेश में अंग्रेजी पत्रकारिता का दबदबा था लेकिन आज हिन्दी भाषा का झण्डा चंहुदिश लहरा रहा है। ३० मई को 'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' के रूप में मनाया जाता है। .
हिन्दी साहित्य पर यदि समुचित परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत विस्तृत व प्राचीन है। सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डॉ० हरदेव बाहरी के शब्दों में, हिन्दी साहित्य का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से आरम्भ होता है। यह कहना ही ठीक होगा कि वैदिक भाषा ही हिन्दी है। इस भाषा का दुर्भाग्य रहा है कि युग-युग में इसका नाम परिवर्तित होता रहा है। कभी 'वैदिक', कभी 'संस्कृत', कभी 'प्राकृत', कभी 'अपभ्रंश' और अब - हिन्दी। आलोचक कह सकते हैं कि 'वैदिक संस्कृत' और 'हिन्दी' में तो जमीन-आसमान का अन्तर है। पर ध्यान देने योग्य है कि हिब्रू, रूसी, चीनी, जर्मन और तमिल आदि जिन भाषाओं को 'बहुत पुरानी' बताया जाता है, उनके भी प्राचीन और वर्तमान रूपों में जमीन-आसमान का अन्तर है; पर लोगों ने उन भाषाओं के नाम नहीं बदले और उनके परिवर्तित स्वरूपों को 'प्राचीन', 'मध्यकालीन', 'आधुनिक' आदि कहा गया, जबकि 'हिन्दी' के सन्दर्भ में प्रत्येक युग की भाषा का नया नाम रखा जाता रहा। हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में प्रचलित धारणाओं पर विचार करते समय हमारे सामने हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न दसवीं शताब्दी के आसपास की प्राकृताभास भाषा तथा अपभ्रंश भाषाओं की ओर जाता है। अपभ्रंश शब्द की व्युत्पत्ति और जैन रचनाकारों की अपभ्रंश कृतियों का हिन्दी से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जो तर्क और प्रमाण हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गये हैं उन पर विचार करना भी आवश्यक है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश-अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य-रचना प्रारम्भ हो गयी थी। साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, शृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी अपभ्रंश या 'प्राकृताभास हिन्दी' में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने देसी भाषा कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि हिन्दी शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में हिन्दी शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य 'भारतीय भाषा' का था। .
कोई विवरण नहीं।
गणेशशंकर विद्यार्थी गणेशशंकर 'विद्यार्थी' (1890 - 25 मार्च 1931), हिन्दी के पत्रकार एवं भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सिपाही एवं सुधारवादी नेता थे। .
गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' (1883-1972) हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के द्विवेदी युगीन साहित्यकार हैं। इन्होंने 'सनेही' उपनाम से कोमल भावनाओं की कविताएँ, 'त्रिशूल' उपनाम से राष्ट्रीय कविताएँ तथा 'तरंगी' एवं 'अलमस्त' उपनाम से हास्य-व्यंग्य की कविताएँ लिखीं। इनकी देशभक्ति तथा जन-जागरण से सम्बद्ध कविताएँ अत्यधिक प्रसिद्ध रही हैं। .
आदिकाल सन 1000 से 1325 तक हिंदी साहित्य के इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। आचार्य रामचंद्र शुक्लने वीरगाथा काल तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे वीरकाल नाम दिया है। इस काल की समय के आधार पर साहित्य का इतिहास लिखने वाले मिश्र बंधुओं ने इसका नाम प्रारंभिक काल किया और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने बीजवपन काल। डॉ॰ रामकुमार वर्मा ने इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर इसको चारण-काल कहा है और राहुल संकृत्यायन ने सिद्ध-सामंत काल। इस समय का साहित्य मुख्यतः चार रूपों में मिलता है.
हिन्दी साहित्य के इतिहास के प्रथम काल का नामकरण विद्वानों ने इस प्रकार किया है- .
आधुनिक काल १८५० से हिंदी साहित्य के इस युग को भारत में राष्ट्रीयता के बीज अंकुरित होने लगे थे। स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और जीता गया। छापेखाने का आविष्कार हुआ, आवागमन के साधन आम आदमी के जीवन का हिस्सा बने, जन संचार के विभिन्न साधनों का विकास हुआ, रेडिओ, टी वी व समाचार पत्र हर घर का हिस्सा बने और शिक्षा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार। इन सब परिस्थितियों का प्रभाव हिंदी साहित्य पर अनिवार्यतः पड़ा। आधुनिक काल का हिंदी पद्य साहित्य पिछली सदी में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा। जिसमें अनेक विचार धाराओं का बहुत तेज़ी से विकास हुआ। जहां काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग,नयी कविता युग और साठोत्तरी कविता इन नामों से जाना गया, छायावाद से पहले के पद्य को भारतेंदु हरिश्चंद्र युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग के दो और युगों में बांटा गया। इसके विशेष कारण भी हैं। .
हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा। ईश्वर के साथ साथ मानव को समान महत्व दिया गया। भावना के साथ-साथ विचारों को पर्याप्त प्रधानता मिली। पद्य के साथ-साथ गद्य का भी विकास हुआ और छापेखाने के आते ही साहित्य के संसार में एक नई क्रांति हुई। आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे भारत में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों में विभक्त किया जा सकता है- .
हिंदी साहित्य का आधुनिक काल तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ। इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ। सं 1800 वि.
काशीप्रसाद जायसवाल (१८८१ - १९३७), भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार, पुरातत्व के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान् एवं हिन्दी साहित्यकार थे। .
केशवप्रसाद मिश्र (चैत्र कृष्ण सप्तमी, विक्रम संवत् १९४२ - चैत्र ७, संवत् २००८) शिक्षाविद तथा हिन्दी साहित्यकार थे। .
अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। यह उत्तर प्रदेश में "अवध क्षेत्र" (लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, प्रतापगढ़), इलाहाबाद, कौशाम्बी, अम्बेडकर नगर, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती तथा फतेहपुर में भी बोली जाती है। इसके अतिरिक्त इसकी एक शाखा बघेलखंड में बघेली नाम से प्रचलित है। 'अवध' शब्द की व्युत्पत्ति "अयोध्या" से है। इस नाम का एक सूबा के राज्यकाल में था। तुलसीदास ने अपने "मानस" में अयोध्या को 'अवधपुरी' कहा है। इसी क्षेत्र का पुराना नाम 'कोसल' भी था जिसकी महत्ता प्राचीन काल से चली आ रही है। भाषा शास्त्री डॉ॰ सर "जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन" के भाषा सर्वेक्षण के अनुसार अवधी बोलने वालों की कुल आबादी 1615458 थी जो सन् 1971 की जनगणना में 28399552 हो गई। मौजूदा समय में शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 6 करोड़ से ज्यादा लोग अवधी बोलते हैं। उत्तर प्रदेश के 19 जिलों- सुल्तानपुर, अमेठी, बाराबंकी, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, कौशांबी, फतेहपुर, रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद व अंबेडकर नगर में पूरी तरह से यह बोली जाती है। जबकि 6 जिलों- जौनपुर, मिर्जापुर, कानपुर, शाहजहांपुर, बस्ती और बांदा के कुछ क्षेत्रों में इसका प्रयोग होता है। बिहार के 2 जिलों के साथ पड़ोसी देश नेपाल के 8 जिलों में यह प्रचलित है। इसी प्रकार दुनिया के अन्य देशों- मॉरिशस, त्रिनिदाद एवं टुबैगो, फिजी, गयाना, सूरीनाम सहित आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व हॉलैंड में भी लाखों की संख्या में अवधी बोलने वाले लोग हैं। .
यहां पुनर्निर्देश करता हैः
पं महावीर प्रसाद द्विवेदी, महाबीर प्रसाद द्विवेदी, महावीरप्रसाद द्विवेदी।
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2b047012125ff622a21eefae1575fd4c0f27e83f | web | कई आधुनिक माताओं और पिता पहले से ही प्रबंधित कर चुके हैं"हाथों के ठीक मोटर कौशल" की अवधारणा से परिचित होने के लिए। बच्चे के विकास को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की कोशिश करते हुए, माता-पिता लगातार जादूगरों और उंगली भूलभुलैया को बच्चे में फिसलते हैं, और बड़े बच्चों के साथ वे दिन के अंत तक पेंट और मोल्ड करते हैं।
लेकिन आप कैसे जानते हैं कि क्या किए गए कदम सही हैं? क्या लोड की डिग्री बच्चे की उम्र से मेल खाती है और अभ्यास वांछित प्रभाव लाता है? इन और अन्य सवालों के जवाब देने के लिए, किसी को ठीक मोटर कौशल के विकास पर नज़र डालना चाहिए।
मोटरिक्स शरीर की गतिविधियों का एक संयोजन है,शरीर की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं के नियंत्रण में प्रतिबद्ध है। मोटर प्रक्रियाएं जो एक व्यक्ति के पास अपने समन्वय और बुद्धि के विकास के स्तर का विचार देती है।
मनोवैज्ञानिक मोटर गतिविधि को वर्गीकृत करते हैं, इसके कई प्रकारों को अलग करते हैंः
- सामान्य, या बड़े, मोटर कौशल मांसपेशियों के समूह के आंदोलन के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसी गतिविधि का एक उदाहरण चल रहा है या squatting है।
- ललित मोटर कौशल - हाथों या उंगलियों की गति। हाथों की विकसित मोटर प्रतिक्रियाएं हमें जूते को फीस करने या कुंजी के दरवाजे को बंद करने में मदद करती हैं। मोटर कौशल को ठीक करने के लिए वे क्रियाएं हैं जिनमें आंखों और हाथों की गतिविधियों को गठबंधन करना आवश्यक है, उदाहरण के लिए।
- आर्टिकुलरेटरी मोटर कौशल एक भाषण उपकरण के काम को समन्वय करने की क्षमता है, यानी बोलने के लिए।
बच्चों के मुद्दों पर शोध करते समयमनोविज्ञान और अध्यापन, वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला। यह पता चला है कि लगभग एक तिहाई प्रांतस्था हाथों के मोटर कौशल के विकास के लिए ज़िम्मेदार है। इसके अलावा, यह तीसरा संभवतः भाषण केंद्र के करीब के रूप में स्थित है। इन तथ्यों की तुलना ने मानव भाषण के लिए जिम्मेदार हाथों और उंगलियों की मोटर गतिविधि पर विचार करने के आधार दिए।
हाथों के ठीक मोटर कौशल के इस विकास के संबंध मेंएक प्रारंभिक बच्चा भाषण कौशल के शिक्षण में मौलिक कार्यों में से एक है। बेशक, articulatory गतिविधि के सुधार के साथ। कई वर्षों के अनुभव के परिणाम साबित करते हैं कि वैज्ञानिकों के निष्कर्ष सही साबित हुए।
उपर्युक्त निर्भरता के अलावा, ठीक मोटर कौशलतर्क, मानसिक कौशल, स्मृति को मजबूत करने, अवलोकन, कल्पना और समन्वय के प्रशिक्षण पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। जिन बच्चों के पास अपने हाथों का बेहतर कमान है, वे अधिक पतले होते हैं और धीरे-धीरे थके हुए होते हैं।
प्रत्येक उम्र में बच्चा प्रदर्शन करने में सक्षम होता हैकुछ क्रियाएं तंत्रिका तंत्र की परिपक्वता के रूप में उन्हें नए अवसर दिखाई देते हैं। प्रत्येक नई उपलब्धि इस तथ्य के कारण है कि पिछले कौशल को सफलतापूर्वक महारत हासिल किया गया था, इसलिए मोटर कौशल के गठन के स्तर का पालन करना आवश्यक है।
- 0-4 महीने - बच्चा समन्वय करने में सक्षम हैआंख आंदोलन, अपने हाथों से वस्तुओं तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। यदि आप खिलौना लेने का प्रबंधन करते हैं, तो ब्रश की झुकाव होती है, बल्कि, रिफ्लेक्स के लिए धन्यवाद, जो छह महीने तक मर जाती है। प्रमुख प्राथमिकताएं जो अधिक "आरामदायक" हाथ से क्रियाएं करने की अनुमति देती हैं, बच्चा अभी तक अस्तित्व में नहीं है, और वे जल्द ही दिखाई नहीं देंगे - वह अभी भी "दाहिने हाथ" और "बाएं हाथ" हैं।
- 4 महीने - वर्ष - बच्चे के कौशल सक्रिय हैंसुधार, अब वह वस्तुओं को हाथ से हाथ में ले जा सकता है, पृष्ठों को मोड़ने जैसी सरल कार्रवाइयां कर सकता है। अब दो अंगुलियों के साथ बच्चे भी एक छोटे से मोती पकड़ने में सक्षम हो जाएगा।
- 1-2 साल - आंदोलन अधिक आत्मविश्वास है, अब बच्चेअधिक सक्रिय रूप से अपनी अनुक्रमणिका उंगली का उपयोग करता है। पहले ड्राइंग कौशल हैं - बच्चा अंक और मंडल प्रदर्शित करता है, और जल्द ही एक पेंसिल के साथ शीट पर एक रेखा खींचने में सक्षम हो जाएगा। अब वह दूसरे हाथ को एक तरफ पसंद करना शुरू कर देता है।
- 2-3 साल - हाथों के मोटर कौशल आपको कैंची पकड़ने और यहां तक कि उन्हें कागज काटने की अनुमति देता है। चित्रकारी शैली पेंसिल के तरीके के साथ बदलती है, और पहले सचेत आंकड़े शीट पर दिखाई देते हैं।
- 3-4 साल - बच्चा पहले से ही आत्मविश्वास से खींचता है, जानता है कि कैसेतैयार लाइन के साथ चादर काट लें। उन्होंने पहले से ही प्रमुख हाथ पर फैसला कर लिया है, लेकिन खेलों में वह कुशलतापूर्वक दोनों का उपयोग करता है। जल्द ही बच्चा एक वयस्क की तरह पेन या पेंसिल पकड़ना सीखेंगे, इसलिए 4 साल की उम्र तक वह लिखित कौशल सीखने के लिए तैयार होगा।
- 4-5 साल इस उम्र के बच्चों के हाथों की अच्छी मोटरसाइकिल पहले से ही वयस्कों की गतिविधियों के समान दिखती है। ध्यान देंः ड्राइंग या सजाने के दौरान बच्चे एक ही समय में सभी हाथों से नहीं चलता है, लेकिन केवल ब्रश के साथ। आंदोलन अधिक परिष्कृत हैं, यही कारण है कि किसी ऑब्जेक्ट को कागज़ से बाहर करना या समोच्चों को छोड़ दिए बिना इसे सजाना मुश्किल नहीं है।
- 5-6 साल इस उम्र में, पूर्वस्कूली ब्रश पूरी तरह से समन्वयित होना चाहिए, बच्चे पहले से ही तीन अंगुलियों के साथ हैंडल रखता है, वयस्कों जैसे छोटे विवरण खींचता है, कैंची का उपयोग कर सकता है। बच्चे के सभी कौशल कहते हैं कि उन्हें स्कूल में कठिनाइयों का अनुभव नहीं होगा।
मोटर विकास का निम्न स्तर - इससे क्या भरा हुआ है?
अपर्याप्त गठित हाथ यांत्रिकीन केवल भाषण कौशल के विकास को रोकता है। ऐसे बच्चे को स्मृति, तर्क के साथ समस्याएं आ सकती हैं। यदि यह एक प्रीस्कूलर है, तो उसे तत्काल मदद करनी चाहिए, क्योंकि स्कूल में वह बिल्कुल तैयार नहीं होगा। इस तरह के एक छात्र को ध्यान में कठिनाई होगी, वह जल्दी से थक गया होगा और अनिवार्य रूप से पीछे हटना शुरू कर देगा।
बच्चे के साथ अध्ययन कब और कैसे शुरू करें?
जन्म के बाद से, आप ध्यान देना शुरू कर सकते हैंबच्चे के विकास। बेशक, नवजात लेस के साथ रुचि रखते हैं या सॉर्टर खिलौना नहीं है। लेकिन आप अलग बनावट के कपड़े के लिए, उसे संभाल खड़खड़ डाल कर स्पर्श उंगलियों, बेबी मालिश घुंडी बनाने के लिए शुरू कर सकते हैं।
जिस उम्र में सक्रिय हैहाथों की उंगलियों के यांत्रिकी के विकास, - 8 महीने। यदि अब तक इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया है, तो अब कोई कार्रवाई करने का समय है।
अपने आप के साथ असली सबक व्यवस्थित करने के लिएबच्चे, माँ को पेशेवर शैक्षणिक कौशल की आवश्यकता नहीं है। अभ्यास के लिए, किसी भी घर में हमेशा पाए जाने वाले सबसे सरल आइटम उपयुक्त होते हैं। मुख्य सिद्धांत जिस पर हाथों के मोटर कौशल का विकास होता है वह "बड़े से छोटे" होता है। यह किस तरह से व्यक्त किया जाता है?
- प्लास्टिक की गेंद से बाल गेंदों के साथ रोल करना शुरू करें। बच्चे को कुछ अंधा कर दें। यदि वह ऐसा करने में सक्षम है - तो आप धीरे-धीरे अधिक छोटे और जटिल विवरणों पर जा सकते हैं।
- आप सिर्फ पेपर फाड़ सकते हैं। पहले बड़े टुकड़ों पर, फिर छोटे बच्चों पर। अंत में विवरण छोटे, बच्चे में मोटर विकास का स्तर जितना अधिक होगा।
- यह संभव है, बच्चे के साथ, एक स्ट्रिंग पर मोती स्ट्रिंग करने के लिए, जूते को बांधें, और बटन को तेज करें।
निष्क्रिय जिमनास्टिक (मालिश)
बाल समन्वय के विकास में उत्कृष्ट सहायकसक्षम मालिशर। एक अनुभवी विशेषज्ञ भी बच्चे के पेन के मोटर कौशल में मदद करेगा। आप बच्चे के पहले 3-4 महीनों में कक्षाएं शुरू कर सकते हैं, जबकि सत्रों को दिन में कई बार 5 मिनट के लिए आयोजित किया जा सकता है।
मालिश सत्र सर्वश्रेष्ठ पेशेवर को सौंपा जाता है, लेकिनयदि आवश्यक हो, तो कुछ अभ्यासों को स्वतंत्र रूप से प्रदर्शन करने की अनुमति है। तो, बच्चे के हाथ एक मिनट के लिए लोहा किया जाना चाहिए, फिर थोड़ा रगड़ना चाहिए। फिर हाथों और हथेलियों पर अपनी उंगलियों के साथ कंपन टैपिंग करें। मालिश में एक और प्रभावी व्यायाम - प्रत्येक के बाद के मालिश के साथ उंगलियों के flexion और विस्तार।
भारी मात्रा में मोटर कौशल के लिए खिलौनेबच्चों के सामान भंडार में बेचे जाते हैं। उनके लिए, यहां तक कि निर्देश संलग्न है, जो गेम प्रक्रिया की अनुशंसित आयु और विवरण दर्शाता है। लेकिन कुछ भी खरीदना जरूरी नहीं है। आप किसी भी वस्तु के साथ खेल सकते हैं - मोटर कौशल के विकास के लिए, घर में लगभग किसी चीज (बच्चे के लिए सुरक्षित) करेंगे।
मोटर कौशल के विकास के लिए बोर्ड, अपने हाथों सेमोंटेसरी तकनीक के अनुसार बनाया गया, या एक बिसबोर्ड, एक बच्चे के लिए 3 साल की उम्र के बीच एक उत्कृष्ट उपहार है। ऐसा खिलौना पिता बना सकता है। ऐसा करने के लिए, आपको प्लाईवुड की एक चादर और घर में सबसे खतरनाक वस्तुओं की आवश्यकता होगीः एक प्लग, फर्नीचर फिटिंग, स्विच, लंच और अन्य घरेलू भागों के साथ एक सॉकेट। खिलौना का अर्थ बच्चों को उनके सुरक्षित रूप में ऐसी चीजों का ज्ञान है। स्टैंड पर आउटलेट से परिचित होने के बाद, बच्चा वर्तमान में दिलचस्पी नहीं लेगा, और इन वस्तुओं को उंगलियों से छूकर, वह अपनी उंगलियों के मोटर कौशल विकसित करेगा।
यदि आपका प्यारा बच्चा पहले से ही 3 साल मारा है, तो आप सिंड्रेला में एक गेम पेश कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए, पाउच में विभिन्न अनाज या फलियां डाली जाती हैं, और बच्चे को सबकुछ सुलझाने का काम दिया जाता है।
"अनुमान" क्यों नहीं खेलें? आप अपने बच्चे की आंखों को बांध सकते हैं और घरेलू सामानों को अपने हाथों में डाल सकते हैं - उन्हें अनुमान लगाएं।
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84211f382683264aa6756a30fa48a07eeb43aff729fc420e22165e01e3bdebb2 | pdf | कि बिना अपनी हानि किये हम दूसरो को हानि नहीं पहुॅचा सकते । उसी समय हमे यह भी मालूम होता हैं कि जो अपने ही लिये जीवित रहता है उसका जीवन बहुत ही सकुचित हो जाता है क्योंकि इस विस्तृत मानव क्षेत्र मे उससे कोई काम नही होता । किन्तु जो सेवा करता है वह अपने जीवन को लोगो के जीवन मे मिला देता है और इस प्रकार वह अपने जीवन के मूल्य को हजारो गुना बढ़ा लेता है और चारो उसे सुख ही सुख मिलता है, क्योकि सब मे वह अपने जीवन का श ही देखता है ।
सच्ची सेवा के बारे मे दो एक शब्द कहना जरूरी है। पिटर और जान एक बार गिरजे जा रहे थे । ज्योही वे फाटक के भीतर जाने वाले थे कि उनको एक गरीब लॅगडा मिला । उसने उनसे भिक्षा माँगी । दिन भर का भोजन देने और भविष्य मे उसको फिर दीन अवस्था मे छोड देने की अपेक्षा पिटर ने एक वास्तविक सेवा की जो उसके लिये और ससार भर के लिये लाभदायक थी । उन्होंने कहा, 'सोना और चॉदी तो मेरे पास नही है किन्तु जो कुछ मेरे पास है, उसे मै तुमको दे रहा हूँ ।" ऐसा कहकर उन्होंने उसे एक मनुष्य बना दिया और उसे इस योग्य कर दिया कि वह अपने भोजन का प्रबन्ध स्वय कर सके । सबसे बड़ी सेवा जो हम दूसरो की कर सकते हैं, यह है कि उन्हे हम अपनी सहायता करने के योग्य बना दें । सीधे मदद देने से सम्भव है कि जिसको मदद दी जाय वह त बन जाय यद्यपि ऐसा होना कोई आवश्यक नही है। यह बात परिस्थितियों पर निर्भर है। किन्तु किसी को इस योग्य बना देना कि वह अपनी स्वयं मदद कर सके, उसे कमजोर बनाना नहीं है बल्कि उसको साहसी और
सबल बनाना है, क्योंकि ऐसा करने से उसका जीवन उदार और मजबूत होता है ।
मनुष्य में ऐसा भाव उत्पन्न कर देना कि वह स्वयं अपनी सहायता कर सके, इससे बढ़कर उसके लिये और कोई दूसरी अच्छी सहायता नहीं हो सकती । मनुष्य अपने भीतर की सुप्त शक्तियों को जान ले, इससे चढ़कर ज्ञान देने का कोई दूसरा अच्छा साधन नहीं है । जब मनुष्य समझ ले कि हम और ईश्वर एक ही हैं तो समझो कि उसकी सुप्त शक्तियाँ जाग्रत हो उठीं । उस समय वह को ईश्वर की ओर
लगा देगा जिससे ईश्वर का काम और उसकी इच्छा उसी मनुष्य के द्वारा पूर्ण होती रहे ।
इन्ही विचारों से ग्राज कल की सामाजिक समस्यायें भी हल हो सकती हैं । विश्वास रखिये, जब तक हम इन विचारों को पूर्ण रूप से समझ कर अपना जीवन उन्हीं के अनुसार न बनावेंगे तब तक सामाजिक समस्या का पूरा और चिरस्थायी हल नहीं हो सकता ।
बुद्धि और भीतरी प्रकाशईश्वर मेहबुद्धि है और जितना अधिक सम्पर्क हम ईश्वर से रक्खेंगे उतनी ही अधिक बुद्धि हमे मिलेगी और हमारे द्वारा प्रकाशित होगी। इस प्रकार हम ब्रह्माण्ड की तह तक पहुँच सकते हैं और उन विभूतियो का पता लगता सकते हैं जिनको बहुत से लोग नही जानते किन्तु जो जानी जा सकती हैं ।
उत्तम बुद्धि और ज्ञान प्राप्त करने के लिये हमे किसी के द्वारा नही किन्तु सीधे ईश्वर पर विश्वास होना चाहिये कि वह हमारा पथ प्रदर्शक है । ज्ञान र बुद्धि के लिये हम दूसरो के पास क्यो जायँ ? मनुष्यो की अपेक्षा हम सीधे ईश्वर से ही क्यो न प्राप्त करे ? जिस स्रोत से ये चीजें मिलती हैं उसी के पास हम क्यो न जाये ? यदि किसी को बुद्धि चाहिये तो उसे सीधे ईश्वर से मॉगना चाहिये । ईश्वर कहता है, "मागने के पहिले मै लोगो को दूँगा चोर बोलने के पहले मैं उनकी बातो पर ध्यान दूँगा ।"
इस प्रकार जब हम ईश्वर के पास सीधे जाते हैं तो फिर हम महान् पुरुषो, सस्था और पुस्तकों के दास नहीं रह जाते किन्तु यदि इनसे सचाई का कोई सुझाव हमे मिले तो उसके ग्रहण करने के लिये हमे हमेशा तैयार रहना चाहिये । ये हमे बुद्धि देने के स्रोत नही हैं किन्तु इनसे हमे बुद्धि मिल सकती है। ये हमारे मालिक नही हैं, हॉ, हमारे गुरू हैं । कविवर ब्राउनिग ने क्या ही खूत्र कहा है :६
सत्य हमारे भीतर है । तुम्हारा विश्वास किसी में भी क्यों न हो किन्तु सत्य वाह्य पदार्थों में निहित नहीं है। हमारे हृदय के भीतर सत्य का केन्द्र है और उसी मे वह पूर्णरूप से रहता है।
इससे बढ़कर शिक्षाप्रद उपदेश ससार में और दूसरा क्या हो सकता है कि "तुम अपने हृदय से सच्चे रहो।" यानी अपनी आत्मा के प्रति वफादार रहो, क्योंकि आत्मा के ही द्वारा ईश्वर हमसे बातचीत करता है । यह हमारा भीतरी पथप्रदर्शक है । यह वह प्रकाश है जो इस संसार मे हर एक व्यक्ति को प्रकाशित करता है। इसको अंतःकरण भी कहते हैं । यह पसेप बोलता है । यह हमारी आत्मा की आवाज है, यह परमात्मा की आवाज है । महात्मा ईसा ने कहा है, "तुम अपने भीतर एक आवाज सुनोगे जो कहेगी कि यह सही रास्ता है, इसी पर चलो।"
जब एलिजा पहाड़ पर थे तब बडी शारीरिक हलचल के बाद
उन्होने अपने भीतर की बहुत ही धीमी आवाज सुनी जो उनकी आत्मा की आवाज थी, जिसके द्वारा ईश्वर बोल रहा था । यदि हम अन्तःकरण की आवाज के अनुसार चलें तो वह और भी अधिक स्पष्ट तथा और भी अधिक खुलकर बोलेगी, यहाँ तक कि धीरे-धीरे जो वह कहेगी वह हमेशा ठीक ही हुआ करेगा । कठिनता तो यह है कि हम इस आवाज की बात को नहीं मानते और न उसके अनुसार काम ही करते हैं । तब हमारी दशा उस घर की तरह हो जाती है जिसमें दरारें पढ गई है। कभी हम इधर खींचे जाते हैं और कभी उधर, यहाँ
तक कि किसी बात का हमारा निश्चय नही होता । मेरे एक मित्र इस भीतरी आवाज को इतने ध्यान से सुनते हैं और उसी के अनुसार इतनी तेजी से काम करते हैं और उसी आवाज के बल पर अपने जीवन को चलाते हैं कि वह हमेशा ठीक समय पर ठीक रीति से सब काम ठीक ठीक करते हैं । वह जानते हैं कि कब और किस प्रकार काम करना चाहिये । उनकी दशा उस घर की तरह नही रहती जो फट गया है।
किन्तु कुछ लोग पूछ बैठते हैं कि "क्या हमेशा अन्तःकरण के अनुसार काम करने से हम खतरे से बच सकते हैं ? मान लो कि हमारा अन्तःकरण कहता है कि अमुक व्यक्ति को हानि पहुॅचा दो तो ?" हमे इसकी परवाह नहीं करनी चाहिये, क्योकि हमारी भीतरी आवाज
ईश्वरीय आज हमसे कभी न कहेगी कि अमुक को नुकसान पहुॅचा दो और न हमसे कोई ऐसा काम करने के लिये कहेगी जो ठीक न हो, जो सच न हो और जो न्यायपूर्ण न हो । यदि नुकसान पहुॅचाने की आपको सुनाई पडे तो समझ लो कि वह ईश्वर की आवाज नही है । यह तो तुम्हारी नीच बुद्धि है जो ऐसा करने के लिये तुम्हे वाव्य कर रही है ।
अपनी बुद्धि को दबाओ नही नही किन्तु किन्तु ईश्वरीय तेज द्वारा उसे बराबर प्रकाशित करते रहो । ज्योज्यो उसमे ईश्वर का प्रकाश भरता जायगा त्यो त्यो हमारी बुद्धि हमको प्रकाश और शक्ति देगी । जब मनुष्य ईश्वर मे सर्वथा लीन हो जाता है तो वह ज्ञान और बुद्धि के साम्राज्य में प्रवेश करता है । परमात्मा मे वही लीन हो सकता है जो यह समझता है कि हमको
शक्ति ईश्वर से ही मिली है । जब मनुष्य इस महान् तत्त्व को समझ लेता है को ईश्वर की ओर लगा देता है जो बुद्धि का और
समुद्र है, तो वह असली शिक्षा के द्वार में प्रवेश करता है और वह रहस्य की बातें, जो उसे पहले मालूम नहीं थी, अब मालुम होने लगती है । इसी प्रकार की शिक्षा मनुष्य को प्राप्त करनी चाहिये जो भीतर से विकसित होती है और जिसका सम्बन्ध ईश्वर से होता है ।
यदि हम ईश्वरीय आवाज को सुने तो जिन अकी हमे जरूरत हो वे सत्र प्राप्त हो सकती हैं । इस प्रकार हम महात्मा हो सकते हैं और हर वस्तु की तह तक पहुँच कर उसे जान सकते हैं । कोई नये तारे नहीं हैं, कोई नये कानून नही हैं किन्तु यदि हम ईश्वर से खुलकर सम्पर्क रक्खे तो हम तारो को भी जान सकते हैं जो पहले नहीं जाने गये और इस प्रकार वे हमारे लिये नये हो जायेंगे । जब हमे सचाई का ज्ञान हो जायगा तो हमें उन चीजों की जरूरत न रह जायगी जो वरावर बदलती रहती हैं । तब हम अपनी यात्मा हो मे ग्रानन्द ले सकते हैं । हम भीतर का दरवाजा खोल कर बाहर देख सकते हैं और जो चीज चाहें, एकत्र कर सकते हैं । यही सच्ची बुद्धिमानी है । ईश्वर सम्बन्धी ज्ञान का ही नाम बुद्धिमानी है । बुद्धिमानी भीतर से प्राप्त होती है । वह योग्यता से भी बडी है । बहुत सी वस्तुओं का ज्ञान तो अच्छी धारणा शक्ति से परिश्रम करके प्राप्त होता है किन्तु बुद्धिमानी ज्ञान से कही ऊँची है और ज्ञान उसका एक अंश है।
जो बुद्धिमानी के साम्राज्य में प्रवेश करना चाहता है उसे अपनी बुद्धि के अहंकार को छोड़ना पडेगा । उसे एक बच्चे के सदृश होना होगा । पक्षातर पहले से एकत्र की हुई धारणाएँ सच्ची बुद्धिमानी
में विघ्न उत्पन्न करती है । घमंड से भरी हुई धारणाये हमेशा अपने को हानि पहुॅचाती और बुरा प्रभाव डालती हैं। वे सचाई के फाटक मे घुसने से रोकती हैं ।
चारो ओर हम धर्म के संसार मे, विज्ञान के संसार मे, राजनीति के क्षेत्र मे और समाज मे बडे बडे धुरन्धर विद्वान देखते हैं किन्तु वे ही अभिमान और स्वार्थ मे इतने फँसे रहते हैं कि सचाई का
प्रकाश उनमे देखने को नहीं मिलता और बढ़ने की अपेक्षा वे दिनोंदिन संकुचित होते जाते हैं और सचाई के ग्रहण करने की उनमे योग्यता ही नही रह जाती । संसार की उन्नति में सहायता पहुॅचाने के स्थान मे वे रोडे अटकाते रहते हैं । किन्तु वे ऐसा हमेशा नहीं कर सकते । ऐसे लोग घायल और मुर्दा होकर पीछे रह जाते हैं और ईश्वर की सचाई का विजयी रथ धीरे-धीरे आगे बढ़ जाता है।
जब कि भाफ के इंजिन (Steam Engine ) का प्रयोग हो रहा था और जब उसका इस्तेमाल पूरा-पूरा नही होने पाया था तो एक प्रसिद्ध गरेज वैज्ञानिक ने एक विस्तृत पुस्तिका लिखी थी जिसमे उसने सिद्ध किया था कि समुद्र में स्टीमइंजिन का प्रयोग हो ही नहीं सकता, क्योंकि भट्टी मे जलाने के लिये पर्याप्त मात्रा मे कोयला ले जाना किसी भी जहाज के लिये बिल्कुल असंभव है । किन्तु दिलचस्प बात तो यह है कि जो जहाज इंगलैण्ड से अमेरिका पहले पहल गया उसमे सामान के अलावा इस विस्तृत पुस्तिका के पहिले संस्करण का एक भाग भी रक्खा हुआ था । उस पुस्तिका का एक ही संस्करण हो पाया
यह वास्तव मे एक मनोरञ्जक बात मालूम होती है किन्तु सत्र से मनोरञ्जक बात उस मनुष्य की है जो जानबूझ कर सत्य का दरवाजा बन्द कर देता है । सत्य रूढ़ियो से, धर्मान्धता से किसी स्वीकृत धर्म से नहीं मिल सकता । सम्भव है, सत्य का मेल रीतिरिवाजो और विश्वासो से न खाय । इसके विरुद्ध
तुम्हारी आत्मा में कई झरोखे हों ताकि इस ब्रह्माण्ड की पूर्ण छटा उसे सुन्दर बनावे जो अगणित साधनों से दीप्तिमान है । वहां पर एक साधारण सिद्धान्त की छोटी सी खिड़की का काँच कितनी आभा की झलक दे सकता है । अन्धविश्वास के परदों को चीर दो; सुन्दर जालियों से रोशनी आने दो- - वह रोशनी सत्य के समान विशाल तथा प्रकाश की तरह ऊर्ध्वगामी है । अपने कानों को सितारों के स्वर्गीय संगीत से तथा प्रकृति के निनाद से लावित करो । जिस प्रकार पौधे सूर्य की रोशनी को लेने के लिये बढते हैं, तुम्हारा हृदय भी सत्यम्, शिवम् को पाने के लिये उसी प्रकार अग्रसर हो । हजारों श्रदृश्य-शक्तियों अपने शान्ति प्रदायक भवनों से तुम्हारी मदद करेंगी और इस लोक की तमाम शक्तियाँ तुम्हें बल प्रदान करेंगी । पूर्ण सत्य के ग्रहण करने में और पूर्ण सत्य के बहिष्कार करने में भय न करो।"
अपनी बुद्धि के अभिमान, पक्षपात या पूर्व निश्चित सम्मति से मनुष्य अपने को सत्य के मार्ग से हटा लेता है किन्तु नियम कहता है
कि ऐसे व्यक्ति के पास सत्य जायगा ही नही । दूसरी ओर यदि कोई स्त्री या पुरुष सत्य का फाटक खुला रखता है तो एक बडा कानून यह भी है कि चारो ओर से सत्य बहकर उस स्त्री या पुरुष के पास जायगा । स्वतंत्र पुरुष ही सत्य का दरवाजा खोल सकते हैं, दूसरे नहीं । क्योंकि सत्य ही हमे स्वतंत्र बनाता है। जो लोग सत्य पर नहीं चलते, वे गुलामी की जंजीरों में बँधे रहते हैं, क्योंकि सत्य वहाँ हरगिज न जायगा जहाँ उसकी पूछ न हो अथवा जहाँ उसका सम्मान न किया जाय ।
जहाँ सत्य को प्रवेश नहीं मिलता वहां उसके साथ जाने वाली महान् बरकते ठहर नहीं सकतीं । वह वहाँ अपना एक दूत भी मेजता है जो शारीरिक, प्राध्यात्मिक र मानसिक कमजोरी, बीमारी और मृत्यु लेकर जाता है औरष्ट करने लगता है । जो पुरुष दूसरों की स्वच्छन्द सत्य की खोज मे बाधा डालेगा, जो दूसरों को हानि पहुॅचाने की दृष्टि से सत्य का ढोंग करेगा वह डाकू से भी बदतर है । उससे पार हानि होती है । जिस आदमी का जीवन वह अपने हाथ में लिये हुए है उसको वह निश्चित रूप से भारी हानि पहुॅचा रहा है ।
ईश्वर के असीम सत्य को रखने और वॉटने के लिये क्या किसी ने किसी को नियुक्त कर रक्खा है ? बहुत से लोग श्रद्धावश उपदेशक कहे जाते हैं किन्तु सच्चा उपदेशक दूसरों के लिए सत्य की खोज नहीं करेगा । सच्चा उपदेशक वह है जो दूसरों को आत्मज्ञान करा दे और उसके भीतर जो शक्तियाँ हैं उनकी जानकारी करवा दे जिससे वह सत्य की खोज स्वयं करने लगे । इसके अतिरिक्त और जो काम उपदेशक करें तो समझ लेना चाहिये कि वे अपने लाभ के लिये
कर रहे हैं। जो इस बात का ढोग रचता है कि जो मै कहता हूँ वही सत्य है और उसके अलावा कोई सत्य नहीं है वह धर्मान्ध है, मूर्ख है ।
पूर्वीय साहित्य मे मेढ़क की एक कहानी है । वह एक कुयें मे रहता था । उसके बाहर वह कभी नहीं गया था । एक दिन एक दूसरा मेढ़क, जो समुद्र मे रहता था, उस कुये मे गया । उसको सत्र चीजो के जानने की इच्छा थी, इसलिये वह कुये के भीतर गया । कुयें के मेढ़क ने पूछा, "तुम कौन हो और कहाँ रहते हो ?" समुद्र के मेढक ने उत्तर दिया, "मै एक मेढ़क हूँ और समुद्र मे रहता हूँ ।" कुऍ के मेढ़क ने पूछा, "समुद्र क्या चीज है और कहाँ है ?" समुद्र के मेढ़क ने उत्तर दिया, "समुद्र पानी का बहुत वडा भण्डार है और यहाँ से दूर नहीं है।" कुर्ये के मेढ़क ने पूछा, "तुम्हारा समुद्र कितना बड़ा है ?" समुद्र के मेढक ने कहा, "मेरा समुद्र बहुत ही बडा है ।" कुये वाले मेढ़क ने पास ही पड़े हुए एक छोटे पत्थर को दिखला कर कहा कि क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्र के मेढ़क ने कहा, "इससे कहीं बडा है।" कुये वाले मेढ़क ने उस तख्ते को दिखलाकर कहा, जिसमे वे दोनो बैठे हुए थे कि, क्या समुद्र इतना बडा है। समुद्र के मेढ़क ने कहा, "इससे कहीं अधिक वडाहै ।" कु के मेढ़क ने पूछा, "तो फिर कितना बडा है ?" समुद्र के मेहक ने कहा, "मैं जिस समुद्र मे रहता हूँ वह तुम्हारे सारे कुयें से बढा है । तुम्हारे कुयें की तरह उसमे लाखो कुयें बन जायेंगे ।" कुर्ये के मेढ़क ने कहा, "वेवकूफ कही के । तुम धोखेबाज हो । तुम बडे झूठे हो ।' मेरे कुयँ से चले जाओ। तुम्हारे ऐसे मेढ़को से मै कोई सम्बन्ध नहीं
"यदि तुम सत्य को जान लो तो सत्य तुमको स्वतन्त्र बना देगा ।" यदि सत्य का दरवाजा बन्द कर दोगे और ही कार मे भूले रहोगे तो तुम्हारा अहंकार ही तुमको मूर्ख बनाये रहेगा ।" यह बात मै उन लोगो के लिये कह रहा हूँ जिन्हें अपनी प्रतिभा का बडा घमड है । मूर्खता से मानसिक विकास नही होने पाता । सत्य की र बेपरवाही करने से मानसिक उन्नति रुक जाती है और एक प्रकार की मूर्खता पैदा हो जाती है । उसको 'मूर्खता' भले ही न कहे । दूसरी ओर एक मूर्खता और है जो उन सब बातो को बन्द करके
मान लेने से पैदा होती है जिनको कोई एक विशेष व्यक्ति कह
देता है, अथवा जो किसी एक विशेष पुस्तक मे
किसी एक विशेष संस्था में पाई जाती हैं। वे ही
लिखी होती है अथवा लोग ऐसी ऐसी बातो
को मानते हैं जो केवल बाहर देखते हैं, अपने भीतर के प्रकाश को नहीं देखते जिसकी उपासना करने से प्रकाश और भी अधिक स्पष्ट होता जाता है। वाल्ट व्हाइटमैन कहते हैं ।
"इसी क्षण से मै अपने को बन्धनो से विमुक्त करता हॅू। मै ही अपना पूर्णरूप से स्वामी हूँ । मै अपनी इच्छानुसार विचरण करता हूँ । मै ही दूसरो की बातो को सुनता हूँ और उनपर अच्छी तरह विचार करता हूँ। मैं ही बड़ी नम्रता से उनकी देख भाल करता हूँ और ग्रहण करके उनपर विचार करता हूँ । लेकिन ये सब बातें मैं किसी के बन्धन में जकडकर नही करता।
इसके लिये खुशी मनाना चाहिये कि ईश्वर का सत्य सब |
992f3fa726765a7d4d6bc49bb89f1cb9bf8e5a7f | web | कार्रवाई देश Berendeys में प्रागैतिहासिक काल में जगह लेता है। अभिनेताः वसंत-लाल, ठंढ, Boyar Bermyata, बकुला, चरवाहा लेल, Berendey। दृश्यों को भी मेडेन, Kupava, Mizgir, Goblin और दूसरों शामिल हैं। टुकड़ा परियों की कहानी Ostrovsky पर लिखा है।
यह ओपेरा "हिमपात मेडेन" बनाया?
रिम्स्की-कोर्साकोव पहले पेश किया गया था Ostrovsky का काम 19 वीं सदी के प्रारंभिक सत्तर के दशक में। मुझे कहना पड़ेगा कि अगर कहानी संगीतकार पर एक छाप के ज्यादा नहीं बना दिया है। सत्तर के दशक में, रिम्स्की-कोर्साकोव इसे फिर से फिर से पढ़ें। और फिर, संगीतकार के रूप में खुद को कहा, "अपने काव्य सौंदर्य के लिए एक बढ़िया दृष्टि की तरह। " 1880 गर्मियों में वह एक ओपेरा की रचना करने के लिए शुरू किया। बाद में, संगीतकार याद करते हैं कि कोई काम नहीं उसके द्वारा इस तरह आसानी और गति के साथ, ओपेरा "हिमपात मेडेन" के रूप में लिखा गया था। अगले 1881-वें वर्ष के लिए, काम पूरा किया गया। 1882 में यह Mariinsky थियेटर में पहला प्रीमियर का आयोजन किया। यह बड़ी सफलता के साथ पारित किया है। उत्साह से खुद को Ostrovsky की स्थापना को अपनाया। उन्होंने कहा कि संगीत के बारे में बात करने के लिए उनकी कहानी इतनी अद्भुत वह कल्पना नहीं कर सकता कि अधिक उपयुक्त और अत्यंत ताजा कुछ भी व्यक्त करता है रूस बुतपरस्त पंथ के सभी कविता था।
लीब्रेट्टो "हिम मेडेन"
परियों की कहानी Ostrovsky पर खड़ी जीवनदायी शक्तिशाली प्राकृतिक बलों है कि लोगों को खुशी लाने का एक उत्सव है। विचार लोक कविता का काम करता है के लिए वापस चला जाता है। बयान में यह भी कला की शक्ति की महानता के विचार का प्रतीक है। असली दुनिया में विषम कल्पना की स्थापना, संगठित, संगीतकार खुद को, के रूप में "नियमित रूप से करता है, प्रकृति का शाश्वत बलों। " शेफर्ड लेल, हिमपात मेडेन, Berendey वर्ण आधा असली, आधा शानदार रहे हैं। "क्रिएटिव शुरुआत, लोगों में उत्पन्न होती हैं, और जीवन के स्वरूप को" गंभीर ठंड के साथ विषम। हिम मेडेन - - स्प्रिंग और फ्रॉस्ट की बेटी, लोगों को सूरज को सब मेरे दिल चलाता है। संगीतकार गर्मी और प्यार की सच्चाई से, बहुत कलात्मक उत्सव प्रदर्शित करता है, मौत के लिए महिला अग्रणी। यह विचार है, और है ओपेरा का एक सारांश "हिम मेडेन"। निम्नलिखित आप कहानी के बारे में अधिक बताने के लिए है।
ओपेरा "हिमपात मेडेन" की साजिश एक चांदनी रात पर करेंगी। पक्षियों का एक परिचारक वर्ग से घिरा हुआ जमीन पर वसंत-लाल हो जाता है। देश एक ठंडा, बर्फ से ढके जंगल में है। 15 साल पहले, फ्रॉस्ट और स्प्रिंग का जन्म हुआ बेटी - बर्फ मेडेन। उस समय से, जरी-सूर्य, गुस्सा, जमीन एक छोटे से गर्मी और प्रकाश देने के लिए शुरू किया, कम - सर्दियों कठोर और लंबे समय से है, और गर्मियों था। फ्रॉस्ट, दृश्य पर दिखाई देता है वसंत के दायरे छोड़ने के लिए वादा किया। लेकिन छोड़ने के लिए एक बेटी खतरनाक था - Yarilo सिर्फ लड़कियों के प्यार करता हूँ कि यह पिघल की आत्मा में आग प्रज्वलित करने के लिए इंतजार कर, वह मर जाएगा। माता-पिता, निःसंतान बकूल-Bobylev लिए स्नो व्हाइट भेजने के लिए कॉलोनी Berendeevka में निर्णय लेते हैं। युवा खुश - यह लंबे समय से लोगों को अद्भुत गायन चरवाहा लेल आकर्षित किया है। फ्रॉस्ट और स्प्रिंग जाना, उनकी बेटी leshemu रक्षा करने के लिए सौंपा। Berendeys भीड़ आ रही है। वे प्रफुल्लित कर रहे हैं - पैनकेक अनुरक्षण और बसंत के आगमन का स्वागत करते हैं। यह जंगल झाड़ी मेडेन से निकलता है। खुशी है कि उसके अनुरोध Bobyl उसे अपनी बेटी के रूप में लेने के लिए।
हिम मेडेन लेल के अनुरोध पर उसे गीत गाती है, लेकिन जब वह गर्लफ्रेंड के कॉल सुना तो उन्होंने भाग जाता है, उसके द्वारा प्रस्तुत फूल फेंकने। महिला नाराज है। इस समय, हिमपात मेडेन Mizgir के साथ प्यार में Kupava सूट। वह उनकी खुशी को साझा करने के लिए उतावली, वे कहते हैं कि जल्द ही उनकी शादी आयोजित किया जाता है। प्राचीन कस्टम Mizgir के अनुसार गर्लफ्रेंड के साथ उनकी दुल्हन के एवज। लेकिन वहाँ देखने के लिए स्नो व्हाइट हो जाएगा, वह लड़कियों की सुंदरता से मोहित किया गया था, Kupava मना कर दिया। इस तरह के व्यवहार Mizgir लोगों से नाराज सलाह Kupava एक बस और अच्छा राजा Berendey की हिमायत पूछना।
समझदार Berendey Guslar महिमामंडन। लेकिन राजा की आत्मा परेशानः जरी कुछ के लिए Berendeys पर गुस्सा। भयानक देवता Berendey अगले दिन सभी दुल्हनों और दूल्हे शादी करने का फैसला कम करने के लिए। इस समय, राजा Kupava चलाता है और उसके दुः ख का बताता है। क्रोधित Berendey आदेश उसे करने के लिए नेतृत्व और अनन्त निर्वासन के लिए युवाओं की निंदा Mizgir। युवक उचित नहीं है, लेकिन केवल राजा स्नो व्हाइट को देखने के लिए पूछता है। ब्यूटी महिला Berendey से टकराई। राजा को पता चला कि बर्फ मेडेन प्यार की भावनाओं को आयोजित नहीं है, वह समझता है क्या Yarilo नाराज हो गए। Berendey घोषणा की थी कि जवान आदमी है जो सुबह होने से पहले महिला की आत्मा में एक लग रहा है प्रज्वलित करने के लिए सक्षम हो जाएगा, उसकी पत्नी को पाने का फैसला किया। Mizgir कसम खाते वह मेडेन उससे प्यार करती है, और निष्कासन को स्थगित करने के लिए कहा कर देगा।
अगले कदम के लिए संरक्षित वन में जगह लेता है। एक समाशोधन में लोगों को गर्मी की शुरुआत के साथ मना रहा भोर Berendey जलता है। गीत लेल गाती है। उनके Berendey के लिए एक पुरस्कार के रूप में एक लड़की का दिल चुनने के लिए युवाओं को प्रदान करता है। शेफर्ड Kupava दृष्टिकोण है कि आँसू करने के लिए परेशान स्नो व्हाइट। Mizgir प्रकट होता है। वह उत्साह से, हिमपात मेडेन को संदर्भित करता है उसे उसके प्यार का बताता है। लेकिन वह अपनी भावनाओं को नहीं कर सकते करने के लिए जवाब। इस बिंदु पर, Goblin ब्लॉक रास्ता Mizgir, वन मोहित और उनका भूत महिला से रोमांचित एक युवक teases। लेल और Kupava खाली समाशोधन में बाहर। वह धीरे तथ्य यह है कि वह उसे शर्म की बात है से बचाया के लिए धन्यवाद शेफर्ड। कौन निराशा में इस दृश्य मेडेन देखा। वह वसंत ऋतु में अपनी मां को जाती है, एक दिल गर्मी के लिए पूछने के लिए।
ओपेरा "हिम मेडेन" भोर में दृश्य पूरा करती है। स्प्रिंग एक जादू पुष्पांजलि बेटी पर डालता है। इस क्षण से वह प्रेम की भावना जानता है, और फिर से मिलने के Mizgir बदले में उसकी उत्कट मान्यता को पूरा करती है। हालांकि, जल्द ही सूर्य और हिमपात मेडेन के लिए चढ़ना, अपने माता-पिता की शिक्षाओं को याद, जल्दी प्रेमी बल्कि Yarily किरणों कि यह नष्ट कर सकते हैं से पलायन। घाटी में एक ही समय में Berendey अपने दल के साथ प्रकट होता है। सूर्य राजा की पहली किरणों के साथ दूल्हे और दुल्हन को आशीर्वाद देता है। घाटी वहाँ Mizgir और हिमपात मेडेन में। वह उसकी आत्मा भावना में पैदा हुई कहते हैं। बेटी Moroaza वसंत और प्यार में जानने के लिए, Yarily की चपेट में बन गया - लेकिन उसकी खुशी अल्पकालिक है। सनबीम, कोहरे के माध्यम से टुकड़ा करने की क्रिया, महिला पर पड़ता है। मेडेन, यहां तक कि अपनी मौत की आशंका, कृतज्ञता अपनी मां के प्रति अपने प्रेम की भावना को देखते हुए के लिए बदल जाता है। Mizgir सख्त झील के लिए जाती है। घाटी में लोगों को मारा। हालांकि, एक बुद्धिमान Berendey समझता है कि मेडेन के अस्तित्व प्रकृति के नियमों का उल्लंघन। उसकी मौत Yarilo अब गुस्सा और वापसी के साथ देश गर्म है और धूप, और राज्य में जीवन एक बार फिर से खुशी होगी। शेफर्ड लेल और उसके साथ सभी लोगों को सूरज को प्रशंसा के गीत गाते हैं।
सबसे सभी लेखक द्वारा बनाई गई उत्पाद की काव्य यह एक ओपेरा "हिम मेडेन" माना जाता है। रिम्स्की-कोर्साकोव खुद भी उसके उसका सबसे अच्छा निर्माण का आह्वान किया। सभी दृश्यों आश्चर्यजनक ढंग से संवेदनशीलता और प्यार से लोक जीवन के चित्रों, चमत्कारिक ढंग से लोक कथाओं, प्राचीन बुतपरस्ती का अनुष्ठान reproduced। सभी ओपेरा "हिमपात मेडेन" बुद्धिमान सादगी और रूस वसंत जागरण प्रकृति टन और नरम गीत से छलनी गाने के अमर ताजगी के साथ imbued है। प्रस्तावना के लिए ऑर्केस्ट्रा है में शामिल होने से एक रंगीन संगीत चित्र, ताजा सर्दियों के बाद अपनी जागृति, उत्कर्ष प्रकृति का वर्णनः को बदलने के लिए उदास कठोर धुन क्लॉस कोमल आकर्षक धुन वसंत आते हैं। संगीतकार बहुत पतले और सही ढंग से मूड और पात्रों बता देते हैं। शांत और स्पष्ट धुन बांसुरी के साथ आम में प्रकाश और सौम्य आवाज की एक सुंदर खेल, - तो, ओपेरा "हिमपात मेडेन" "अपने दोस्तों के साथ से मेडेन गीत जामुन पर" जाने के लिए। सेरेमोनियल रंगीन दृश्य कार्निवल के तारों की विशेषता, राष्ट्रीय लोककथाओं गोदाम एपिसोड की एक नंबर शामिल हैं। ओपेरा "हिमपात मेडेन" से गीत लोला - "Zemlyanichka-बेरी" और मजेदार नृत्य धुन "कैसे जंगल में वन एक शोर बनाता है", प्रकृति, मज़ा, लोगों के मुक्त जीवन के लिए लोगों की पहली भूमिका दर्शाया निकटता को खोलता है।
2 भाग में, वर्तमान बातचीत दृश्यों में से एक पर्याप्त बड़ी संख्या में भजन एपिसोड के साथ। शान से शांत, धीरा गाने गाए Guslar प्राचीन महाकाव्य धुनों जैसा दिखता है। जोड़ी Kupava और Berendey उत्साहित भाषण लड़कियों छायांकित शांत और स्नेही टिप्पणी राजा। महाकाव्य राजसी और बहुत गंभीर भजन Berendeys। आयामी ट्रैकिंग आर्केस्ट्रा Cavatina Berendey सुचारू रूप से काव्य, काल्पनिक राग बहने की पृष्ठभूमि के खिलाफ। एक बड़ी भीड़ दृश्य तीसरे अधिनियम में शुरू होता है। लड़कों और लड़कियों दौर नृत्य गीत गाते हैं, और Bobyl धुन पर नाच तेज "एक ऊदबिलाव स्नान किया था। " "मूर्खों का नृत्य" एक कलाप्रवीण व्यक्ति, आर्केस्ट्रा का रंग, रोमांचक लोक लय के साथ सिम्फनी प्रकरण से भरा है। एक चरवाहा की लोक धुन शहनाई के साथ तीसरे गीत लोला शुरू होता है। इसके बाद Privolnaya में व्यापक राग। प्रेरित होकर गेय arioso, निष्पादन योग्य Mizgir।
चौथे अधिनियम राग संचारित में हिमपात मेडेन की गेय भावनाओं प्राप्त करें। कोमल मधुर युगल लड़की और उसके प्रेमी Mizgir आसानी से और स्वतंत्र रूप से pours। एरिया में फिर से प्रस्तावना से एक राग (Arietta "मैंने सुना है") सुनते हैं। लेकिन इस बार संगीत भावना और गर्मी है। दुनिया ओपेरा साहित्य दृश्य के सबसे मार्मिक दृश्यों में से एक हिमपात मेडेन के पिघलने माना जाता है। उसकी छवि की नाजुक कोमलता Yarile परमात्मा के लिए अंतिम भजन भजन के एक उज्ज्वल, राजसी ध्वनि से बाहर सेट। यह प्रशंसा और ओपेरा "हिमपात मेडेन" पूरा किया।
ओपेरा "हिमपात मेडेन" के लिए दृश्यों, रेखाचित्र वास्नेत्सोव से बनाया गया, प्रस्तुत छवियों के पूरे सेट के सबसे दिलचस्प है। सबसे पहले, कलाकार 1882 वर्ष की शुरुआत में Ostrovsky से खेलने के लिए बनाया गया। तीन साल बाद, वास्नेत्सोव थिएटर प्रेमी Mamontova में ओपेरा प्रदर्शन के डिजाइनर बन गया। जब आप रेखाचित्र बनाने वास्नेत्सोव प्राचीन वास्तुकला के वास्तुशिल्प तत्वों, लोक कढ़ाई, पेंटिंग और woodcarving की मंशा का इस्तेमाल किया। कलाकार, अद्वितीय तकनीक का उपयोग, की काफी एक सामंजस्यपूर्ण रास्ता बनाया गया है राजा के घर, उन्हें स्पष्ट रूप से और खूबसूरती से प्रस्तुत करते हैं। वेशभूषा के लिए आधार पहनें सफेद कैनवास में कार्य किया। इसके साथ संयोजन के रूप में विभिन्न रंगों गहने पात्रों में से अर्थपूर्ण सुविधाओं और एक पूरे के रूप तैयार करने के दौरान सजावटी प्रभाव दे दी है। वास्नेत्सोव उत्पाद है कि मजबूती से उसे द्वारा बनाई दृश्य छवियों जुड़ा हुआ है, लोक गीतों के रूपांकनों के साथ की राष्ट्रीय पहचान पर कब्जा करने में सक्षम था।
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edb77aedd24ed4257f2a87c44b7d82f1454cd9d805c42a86720340fb6e1fffe5 | pdf | नाम कर्म निवारण पूजा
(तर्ज- तन मन से फ्लो माला, काटे रे नाला नीत्रका)
कर्मों के मल को हरती जल पूजा प्रभु की कीजियें । नाम करम नित रूप बनाता, यहाँ चितेरे जैसा अरूपी देखो, हो गया कैसा कैसा रे
॥ क० १ ॥ नरक तिरि नर सुर गति चारों, भटक भटक भरमाया । इक दो तीन चार पंचेन्द्रिय जाती जोर जमाया रे ॥ क० २ ॥ श्रौशरिक वैकिय आहारक तेजस कार्मण जानो। आदि तीन के अंग उपांगा अंगोपाग पिछा मोरे ॥ ० ३ ॥ बन्धन सघातन शरीर के पाच पाच परकारा। लास और दंताबी जैसे- वध ग्रहण करतारा रे ।। क० ४ ॥ वज्र भाषभ नाराच ऋऋषभनाराच अध नाराचा । क्लिी छेवठा छह संघयणे, मारो मोह तमाचारे ॥क०५॥ समचउरस निगोह सादि थोर - कूध चावना हुडा । आतम योगी पुण्य उपावे और पाप का कुण्डा रे ॥ ० ६ ॥ वर्णगन्ध रस फरस वीस शुभ अशुभ सभी कहलाये। मनुपूर्वी हय लगाम ज्यों चार गति ले जाये रे ॥ क० ७ ॥ चाल शुभा शुभ गति विहायस् जीव सभी की होती । हरि करीन्द्र धन भाग गति मति मातम अभिभुव होती रे ॥ ०८ ॥ काव्यम् ।। लोकेपणाति तृप्पोदय वारणाय० । मन्त्र- ॐ ह्रीं अहं परमात्मने नाम कम समूलाच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय जल यजामहे स्वाहा ।
● द्वितीया चन्दनपूजा कु (दोहा)
मलयाचन चदन सरस- क्षेत्र विशेषित भाव । प्रभु पद पाउन क्षेत्र में प्रकटे पुण्य प्रभाव ॥१॥ दन गुण सन्ताम दर- हे प्रभु भाप विशेष । चन्दन से पूजा करो- मिटें करम मे क्लेश ॥२॥
( तर्जः - अवधू सो योगी गुरु मेरा - आशावरी ) -
चन्दन पूजा करियें प्रभु की चन्दन पूजा करियें । पाप ताप परिहरियें प्रभु की चन्दन पूजा करियें ॥ टेर ॥ नाम करम की पिण्ड प्रकृतियों-- चौदह उत्तर जानो। पैंसठ होती आतम अभिमुख कर आतम पहिचानो ॥ प्र०१ ॥ बन्धन पांच कहे पनरा भी -- संघातन सहयोगी । वीस प्रकृतियाँ तन अन्तर्गत समझें योगी ॥ प्र० २ ॥ वर्णादिक भी मूल चार हैं- उत्तर वीस बताई । कर्म विचार समास किया यों- सोला वीस घटाई प्र० ३ ॥ हैं प्रत्येक प्रकृतियाँ अट्टा- वीस विशेष प्रकारा । सडसठ होती नाम करम की- प्रकृति लमात विचारा ।। प्र० ४ ।। बिस्तारे छत्तीस मिलाते होती एक सो तीन । आसक्ति तज नाम करम पर - विजयी होते प्रवीन ॥ प्र० ५ ॥ जीव विपाकी प्रल थावर त्रिक' - सुभग दुभग चउ जानो। श्वास जाति गति तीर्थ विहायोगति अन्तर्गति ठानो ॥ प्र० ६ ॥ नाम ध्रुवोदयी प्रकृति वारह- तनु चउ अरु उपघाता। साधारण प्रत्येक उद्योत- आतप युत परधाता ॥ प्र०७ ॥ नाम कर्म की ये छत्तीसों, प्रकृति पुद्गल पाका । हरि कवीन्द्र समझ समझ कर, ले लो शिवपुर नाका ।। प्र०८ ॥ काव्यम् ॥ पापोपताय शमनाय महद्गुणाय० । मन्त्रॐ ह्रीं अहं परमात्मने नाम कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय चन्दनं यजामहे स्वाहा । * तृतीया -पुष्प-पूजा के (दोहा)
कुसुम कली खिलती रहे, प्रभु चरणो को पाय । त्यों पूजन जन प्रातमा - अन्तर्गत खिल जाय ॥१॥ कुसुम कली सुविकासमें-- सौरभ सुगुण विलास । परमातम परसंग में- अध्यातम गुण खास ॥२॥
नाम - कर्म - निवारण - पूजा
(तन - मीनामर स्वामी ग्रन्दनामी चारो पारसनाथमान )
पूजो फल विकासी कर्मों की, फासी कार्डे श्री भगवान । मिले पद अवि नाशी सहज विलासा पूजक हो भगवान ॥ ढेर ॥ प्रभु पूजा से पुरायोदय हो, होता हे सुख सात । अन्य सनल को जो आघाते, प्रकृति हो पराघात रे ॥ ५० १ ॥ श्वासोच्छवास हो जीवन हेतु, यातप ताप प्रधान सूर्य निर्माने सूरज पूजे - शाश्वत श्री भगवान रे ॥ पू० २ ॥ उत्तर वैक्रिय तारा मण्डल में होता है उद्योत । न लघु न गुरु गुरु लघु- गरीर हो सुख श्रोत रे ॥ ५०३ ॥ जो तीर्थंकर नाम कमानें, त्रिभुवन जन सुख खाग । अंगोपाग व्यवस्था करता, नाम करम निर्माण रे ॥ १०४ ॥ अपने ही अंगों से पीडित होना है उपघात । साठ ये प्रत्येक बताये नाम करम विधात रे ॥ पू०५ ॥ त्रस चादर पर्याप्ता प्रत्येक स्थिर शुभ सुभग सुनाम । सुस्वर प्रादेय यश कीरति ये - नस दशका अमिरे । पू० ६ ॥ त्रस दशके से उल्टा होता - स्थावर दशक प्रमाण नाम करम क्षय होता आखिर- चौदशमें गुणठाय रे ॥ १० ७ ॥ हरि कवीन्द्र प्रभु परमातम आप अकाम अनाम । अध्यातम भावे भराधो सकुसुम पूज प्रमाण रे ॥ १०८ ॥ काव्यम् ॥ चञ्चत्सुपञ्चवर वरण विराजिभित्र ० । मन्त्र- ॐ ह्रीं अई परमात्मने नामर्क्स समूलोच्छेद्राय श्रीवीर निनन्द्राय पुष्पं यजामहे स्वाहा । ॐ चतुर्थ - 7 - पूजा ( दोहा )
अगर तगर चन्दन सरस- कस्तूरी घनसार । सेल्हारस वर केन्दरू- करो घृप विस्तार ॥ १ ॥ धूप धूम उंचा चढे- घंढे सुयश वर भाव । प्रभु पद पूजा घृपकी ऊरध गति स्वभाव ॥२ ॥
( वर्ज- तुम्हें नाथ नैया तिरानी पडेगी )
धूप से पूजा जो कर पावे, उर्ध्वं गति वह सहज उपाये ।। टेर । काल अनादि कारण योगे-- श्री प्रभु दर्शन भाव वियोगे । थावर दशक पद जीव कमावे ॥ धूप० १ ॥ पृथिवी पानी आग पवन में - और वनस्पती के जीवन में धावर पद सदगुरु समभावें ॥ धूप०२ ॥ सूक्ष्म नाम कर्मोदय हेतु, लोक भरा बहु दुःख निकेतु । ज्ञानी जन उपदेश सुनावे ॥ धूप० ३ ॥ निज पर्याप्ति पूरी न करते और बीच में जीव जो सरते। अपर्याप्त विशेष कहा वे ॥ धूप० ४ ॥ जीव अनन्ते एक शरी रे, साधारण तरू जाति कही रे । नाम करम नवरूप दिखाने ।। धूप०५।। स्थिर नहीं होते अंग उपांगा, अथिर नाम का यही अडंगा । पुण्य योग थिर रूप उपावे ॥ धूप० ६ ॥ पाप रूप जो होता अशुभ है, ठीक लगे ना वह दुर्भग है। दुःस्वर स्वर जिसका न सुहावे ॥ धूप० ७ ॥ वचन समान्य अनादेय नामा, अपजश कारण हो दुख धामा । हरि कवीन्द्र न जो प्रभु घ्यावे ॥ धूप०८ ॥ काव्यम् ॥ स्फुर्जरसुगन्ध विधिनोर्ध्वगति प्रयाणे० ! ॐ ह्रीं अहं परमात्मने नाम कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय
धूपं यजामहे स्वाहा ।
॥ पञ्चमी - दीपक
पूजा ॥
दीपक से प्रभु पूजते- दीपक गुण अभिराम । प्रातम हो परमातमा- दूजो करो प्रणाम ॥ १ ॥ जहां पात्र तपता नहीं - स्नेह न होता नाश । वृत्ति जहां जलती नहीं- प्रातम दीप उजास ॥ २ ॥ ( वर्ज - उठो नो मोरे रामा, जिनमुख जोत्रा जहयें रे )
नाम कर्म-निवारण पूजा
करिये भविज्ञत-भव वन में न भटकियें रे । मोइ तिमिर मिट जाये रे भविजन दुर्गति में न लटकिये दुर्गति में न लटकियें रे ॥ टेर ॥ त्रास पडे तन गति
कर सकता यह त्रस नाम कहावे रे । विकलेंद्रिय पंचेन्द्रिय प्रस है- धन जो प्रभु मुख पावे रे ।। दी०१ ॥ स्थूल रूप जीवन में पाता बादर नाम सुयोगे रे । जीव त्रिपाकी होकर भी जो- पुद्गल में अभियोगे रे ॥ दी० २ ॥ पर्याप्ति शक्ति छद्द होती आहारादि मकारा रे। लन्धि-करण पर्याप्ता भावे प्रभु पूजक जय कारा रे ॥ दी० ३ ॥ पृथक शुगरे पृथक जीव हो वह प्रत्येक सुनामा रे । जिन दर्शन निज दर्शन करता, वह जीवन अभिरामा रे ॥ दी० ४ ॥ अंग उपागे दृढता होती, जो थिर नाम उपावे रे । नाभि से सिर तक सुन्दर शुभ धन प्रभु दर्शन पावे रे ॥ दी०५ ॥ भोरों को प्यारा होता है सुभग महा पड़ भागी रे । जो रहता चेदाग जगत में वीतराग पद रागी रे ।। दी० ६ ।। सुस्वर स्वर जब सुनना चाई - वचन न जास उथापे रे । वह आदेय वचन प्रभु प्रवचनधन जीवन में थापे रे ॥ दी० ७ ॥ हरि कनीन्द्र जश कीरति गावें प्रभु चरणे क्षय लाई रे। यस दश के परमातम दीपक - दिव्य ज्योति प्रकटावे रे ॥ दी०८
।। काव्यम् ।। सम्पूर्ण सिद्धि शित्र मार्ग सुदर्शनाप । मन्त्र- ॐ ह्रीं भई परमात्मने नाम कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय दीपकं यजामहे स्वाहा। @ पष्ठी-भवत पूजा ( दोहा )
श्राप भरूपी भातमा- श्रदय गुण भण्डार । नाम क्रम रूपी हुना- सचतपद आधार ॥ १ ॥ सचत पर दूरी बरण- मघत पूज विचार । प्रभु प्रषत पद योगनें- अबत पद अधिकार ॥२॥ |
7c01085948643fa0020e33f5a12aca134980a83c | web | तीन विवादित कृषि क़ानूनों को संसद से पारित हुए एक साल हो चुका है। इनके विरोध में जारी किसान आंदोलन को भी दिल्ली की सरहदों पर पूरे दस महीने हो रहे हैं। हालांकि पंजाब और हरियाणा, दो प्रमुख राज्य हैं जहां इन क़ानूनों का विरोध जून 2020 से ही जारी है जब केंद्र सरकार ने इन्हीं क़ानूनों को अध्यादेशों के तौर पर थोपा था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों के किसान भी स्थानीय स्तर पर इन अध्यादेशों के खिलाफ अलख जगा रहे थे। इन राज्यों के किसान उसी समय से सरकार की मंशाओं पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। ये बात तब भी किसी के गले नहीं उतर नहीं थी कि ऐसे समय में जब पूरा देश सख्त लॉकडाउन से गुज़र रहा था, इन अध्यादेशों को लाने की क्या ज़रूरत थी? यह सवाल हालांकि अब सवाल नहीं रहा बल्कि सरकार की कॉर्पोरेटपरस्ती और अपने नागरिकों के प्रति उसकी निष्ठुरता सभी के सामने है।
सितंबर 2020 में इन अध्यादेशों को हड़बड़ी में और न्यूनतम संसदीय मर्यादायों को ताक पर रखकर संसद के दोनों सदनों से पारित करवा लिया गया। इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी इन दोनों राज्यों के किसानों से जुड़े और दिल्ली का रुख किया गया। 26 नवंबर 2020 को तीनों राज्यों के किसानों ने एक साथ दिल्ली पहुँचकर इन तीनों क़ानूनों के खिलाफ अहिंसक सत्याग्रह शुरू करने का निर्णय लिया। दिल्ली पहुँचने से पहले ही हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने सत्याग्रही किसानों पर दमनात्मक कार्रवाइयां कीं। अंततः किसानों को दिल्ली से लगी दोनों राज्यों की सीमाओं पर रोक दिया गया।
मजबूत इरादे लेकर घर से चले किसान खाली हाथ वापस लौटने के लिए नहीं आए थे इसलिए वो उन्हीं सरहदों पर बैठ गए। अब दस महीने बीत रहे हैं। सरकार ने किसानों से अंतिम औपचारिक संवाद 22 जनवरी को किया था उसके बाद से सरकार इनकी तरफ से बेपरवाह है।
इस बीच किसान आंदोलन देश के अन्य सभी राज्यों में पहुँच चुका है। पूरे देश के किसान इन तीनों क़ानूनों के खिलाफ लामबंद हैं और 'कानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं' के इरादे लेकर धैर्य से बैठे हैं। प्रचंड बहुमत सरकार के पास देश की 70 प्रतिशत आबादी की समस्याओं के लिए कोई समाधान नहीं है।
इस बीच हरियाणा सरकार ने 24 अगस्त 2021 को विधानसभा में भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापन और पुनर्वास संशोधन कानून, 2021 पारित किया है। इस संशोधन कानून को हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्रातेय ने 11 सितंबर 2021 को मंजूरी भी दे दी है।
यह कानून भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार, 2013 के खिलाफ लाया गया है। एक ऐसा कानून जिसे पारित हुए 8 साल हो रहे हैं लेकिन जिसका उपयोग देश भर की किसी भी राज्य सरकार ने नहीं किया है। यानी अब 2013 का कानून महज़ एक रेफरेंस की तरह वजूद में बना हुआ है ताकि उसके खिलाफ हर राज्य अपने अपने मसौदे बना सकें।
दिसंबर 2014 में इस सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार द्वारा 2013 में लाये गए भूमि अधिग्रहण से जुड़े कानून को सिरे से खारिज करते हुए एक अध्यादेश लाया। इस अध्यादेश का पुरजोर विरोध हुआ। न केवल जन संगठनों, किसान संगठनों बल्कि तत्कालीन विपक्षी दलों ने भी इन अध्यादेश का भरसक विरोध किया। लोकसभा में पूर्णबहुमत पाने के बाद भी राज्यसभा में इस सरकार के पास पर्याप्त बहुमत न होने से ये अध्यादेश कानून के रूप में पारित नहीं हो सका।
हालांकि केंद्र सरकार ने हार नहीं मानी और इसी अध्यादेश को कुल तीन बार थोपने की कोशिश की। तीनों ही बार इसमें असफलता मिली। इसके बाद केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी। 2015 से अब तक कई राज्यों विशेष रूप से भाजपा-शासित राज्यों ने इस केंद्रीय कानून के खिलाफ और भाजपा सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश के अनुरूप अपने अपने कानून विधानसभाओं से पारित कर लिए।
हालिया उदाहरण हरियाणा का है और यह दिलचस्प भी है कि प्रदेश के किसान पूरी तरह अपनी सरकार के खिलाफ हैं, वो सड़कों पर हैं, प्रदेश के मुख्यमंत्री तक कहीं सार्वजनिक सभा करने की जुर्रत नहीं कर पा रहे हैं, राज्य सरकार के मंत्रियों और विधायकों का घर से निकल पाना दुश्वार है। बावजूद इसके यही विधायक, यही मंत्री और यही मुख्यमंत्री किसानों की शिकायतें और समस्याएँ सुनने समझने और उनका समाधान करने की जगह उनके खिलाफ कानून बना रहे हैं। क्या हरियाणा सरकार पूरी तरह यह भूल चुकी है कि वह अपने ही राज्यों के नागरिकों द्वारा चुनी गयी है और हरियाणा के 80 प्रतिशत नागरिक खेती पर ही आश्रित हैं? और हरियाणा में इस समय बेरोजगारी दर पूरे देश में सबसे ज़्यादा है?
24 अगस्त 2021 को एक पत्रकार वार्ता में प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस कानून के बारे में बताया कि -'प्रदेश में अब कृषि भूमि का रेशनेलाइजेशन कर उसकी न्यूनतम सीमा निर्धारित की जाएगी जिसमें तय किया जाएगा कि कम से कम कितनी ज़मीन को कृषि भूमि माना जाएगा'। यह किसान और कृषि विरोधी काम इसी नए कानून के मार्फत होना है।
इस एक बयान से संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून की मंशा समझ में आती है। लेकिन यह संशोधित कानून कई और मामलों में केंद्र सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश और अन्य राज्यों में किए गए संशोधनों से भी आगे जाकर कृषि की ज़मीनों को किसानों से जबरन हड़पने का रास्ता साफ करते नज़र आता है।
इस कानून के मुख्य प्रावधानों को अगर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार द्वारा 2013 में लाये गए कानून के संदर्भ में देखें तो उन तमाम प्रावधानों को सिरे से खारिज कर दिया गया है जिनकी वजह से 2013 के कानून को सही मायनों में यह माना जा रहा था कि यह एक स्वतंत्र, संप्रभुता सम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य का कानून है। उल्लेखनीय है कि 2013 में पारित हुआ कानून औपनिवेशिक काल के भूमि अधिग्रहण कानून 1894 को रद्द करके बना था और इस जबरिया कानून के स्थान पर देश के इतिहास में 127 सालों के बाद भूमि-अधिग्रहण में 'सहमति' जैसा प्रावधान जोड़ा जा सका था। इस कानून को लाने की प्रक्रिया देश के लोकतान्त्रिक इतिहास में शायद सबसे ज़्यादा जन भागीदारी और परामर्श आधारित प्रक्रिया थी। जिसका प्रभाव भी इस कानून में दिखलाई देता है। तमाम ऐसे प्रावधान इसमें रखे गए थे जिनकी वजह से जन भागीदारी और निर्णय प्रक्रिया को लोकतान्त्रिक व समावेशी बनाने की पहल थी। हालांकि इसकी भी आलोचनाएँ हुईं थीं लेकिन यह कानून भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी व जनतान्त्रिक बनाने का प्रयास ज़रूर था।
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार (हरियाणा संशोधन), बिल 2021 के नाम से पारित हुए इस कानून की असल मंशा इस कानून के जरिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को आसान बनाकर 'विकास परियोजनाओं' में तेज़ी लाना है। जिन विकास परियोजनाओं को इस कानून के माध्यम से तेज करने की कोशिशें की जा रहीं हैं उनमें मुख्य रूप से प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप यानी पीपीपी मॉडल के तहत -राष्ट्रीय सुरक्षा या भारत की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाएं,विद्युतीकरण, ग्रामीण आधारभूत संरचना,-किफायती आवास, गरीबों के लिए आवास,प्राकृतिक आपदा से विस्थापित लोगों के पुनर्वास की आवास योजना,राज्य सरकार या उसके उपक्रमों द्वारा स्थापित औद्योगिक गलियारे, जिसमें निर्दिष्ट रेलवे लाइनों या सड़कों के दोनों ओर 2 किमी तक की भूमि का अधिग्रहण करना हो,स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित परियोजनाएं,पीपीपी परियोजनाएं जिनमें भूमि का स्वामित्व राज्य सरकार के पास हो और शहरी मेट्रो और रैपिड रेल परियोजनाएं प्रमुख हैं।
इन तथाकथित विकास की परियोजनाओं के लिए किसानों से उनकी ज़मीनें हड़पने के लिए 2013 के केंद्रीय कानून की पूरी मंशा और प्रावधानों को बदल दिया गया है। उदाहरण के लिए 2013 में बने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार कानून में स्पष्ट और बाध्यकारी प्रावधान था कि पीपीपी के तहत किसी भी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले कम से कम 70 प्रतिशत प्रभावित ज़मीन मालिकों की 'सहमति' लेना होगी और परियोजना का सामाजिक प्रभाव आंकलन करना होगा। हरियाणा विधानसभा से पारित इस कानून में ये दोनों ही प्रावधान खारिज दिये गए हैं।
जिला कलेक्टर को असीम शक्तियाँ इस कानून में दे दी गईं हैं। हरियाणा सरकार ने इस बिल में एक नई धारा 31ए भी जोड़ दी है। कलेक्टर के पास सभी योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण का मुआवज़ा तय करने का सम्पूर्ण अधिकार होगा।
इस धारा के अंतर्गत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जिला कलेक्टर रेल या सड़क जैसी रेखीय संरचनाओं के लिए तय मुआवज़े का 50 प्रतिशत प्रभावित परिवारों को एकमुश्त देकर मुआवज़े का फ़ुल एंड फ़ाइनल सेटल्मेंट कर सकेगा। यानी अगर आपकी ज़मीन के लिए आपको एक साल में 1 लाख रुपए मिलने थे, तो कलक्टर आपको एकमुश्त 50 हज़ार रुपए मुआवज़ा देकर भरपाई कर सकेगा। इसके बाद आप किसी मुआवज़े के हक़दार नहीं होंगे। इस कानून में संपत्ति के 'मौद्रीकिकरण' करने के लिए भारत सरकार द्वारा लायी गयी 'नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (एनईपी)' की स्पष्ट छाप दिखलाई देती है। ठीक देश की वित्तमंत्री की तरह यहाँ भी यही तर्क दिया जा रहा है कि पीपीपी के तहत अधिग्रहित ज़मीनों का स्वामित्व सरकार के पास ही रहेगा लेकिन लंबी अवधि के लिए कारपोरेट्स या कंपनियों को वो दी जाएंगीं।
इस बिल का एक और भयावह पक्ष जिस पर कम चर्चा हुई है वो है किसी अधिग्रहीत जमीन या इमारत को मुआवजा राशि देने के तत्काल बाद ज़मीन पर नियंत्रण लिया जाना। यह 2013 के कानून की धारा 40(2) को संशोधित करके किया गया है। अब तक चले आ रहे क़ानूनों में कम से कम 48 घंटे की पूर्व सूचना देना जरूरी होता है। लेकिन इस कानून में स्पष्ट और बाध्यकारी प्रावधान दिया गया है कि मुआवजा राशि के भुगतान होते ही वह ज़मीन या संपत्ति तत्काल राज्य सरकार के अधीन ले ली जाएगी।
देश में महज़ नाम के लिए लेकिन मौजूद 2013 के कानून में बहुफसलीय ज़मीन के अधिग्रहण को लेकर स्पष्ट निर्देश थे कि इसका अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। लेकिन हरियाणा सरकार ने यह बंदिश भी हटा दी है।
इसके अलावा इस कानून में धारा 23ए के तहत भू-आयुक्त को यह अधिकार दिये गए हैं कि वो उन किसानों की ज़मीनों का जबरन अधिग्रहण कर सकता है जो अपनी ज़मीन स्वेच्छा से देने को राजी नहीं हैं। इसके अलावा इस कानून में उन लोगों के हकों को दरकिनार किया गया है जिनके प्रोप्राइटरी राइट्स यानी स्वामित्वाधिकार तो किसी ज़मीन पर होते हैं लेकिन उनके नाम भू-अभिलेखों में दर्ज़ नहीं होते हैं। ऐसे लोगों में सबसे ज़्यादा मार महिलाओं और किराएदारों पर पड़ने वाली है।
इस कानून में कृषि भूमि की न्यूनतम सीमा तय किए जाने का प्रावधान भी खेती की छोटी जोतों को एक साथ लाकर 'रीयल एस्टेट' के लिए मुहैया कराना है। जिसे मुख्यमंत्री रेशनेलाइजेशन कह रहे हैं। अभी ज़्यादा दिन नहीं बीते जब देश के प्रधानमंत्री ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप के नाम से बनाए जा रहे विश्वविद्यालय के अवसर पर अपने भाषण में तीन कृषि क़ानूनों का यह कहकर बचाव किया था कि उनकी सरकार की मंशा छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा करना है। शायद उस समय तक प्रधानमंत्री यह भूल रहे थे कि उनकी ही सरकार ने हरियाणा में एक ऐसा कानून बना दिया है जिससे सबसे ज़्यादा नुकसान इन्हीं छोटी जोत के किसानों को होने जा रहा है।
हालांकि हरियाणा में विपक्ष ने इस कानून का पुरजोर विरोध किया है और इसे किसान विरोधी बताया है लेकिन उनकी आपत्तियों को अनसुना करते हुए राज्यपाल ने इसे मंजूरी दे दी है। अब देखना है कि राष्ट्रपति विपक्ष और देश में चल रहे किसानों आंदोलन को देखते हुए इसे अंतिम मंजूरी देते हैं या नहीं।
(लेखक क़रीब डेढ़ दशक से सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं। समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)
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1481cf82a87e27e452f044ad6a0515f41040f38b | web | Fitness Band For Healthy Lifestyle - Fitness Band हेल्दी लाइफ जीने वालों के लिए बेहद जरूरी हैं और आजकल इनकी डिमांड बढ़ रही है जिसे देखते हुए हम भारत के बेहतरीन फिटनेस बैंड लेकर आए हैं।
नई दिल्ली। लॉकडाउन के बाद से ही लोगों ने अपनी हेल्थ और सेफ्टी पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है। जैसे-जैसे अप लाइफ सामान्य हो रही है वैसे-वैसे अब फिजिकल एक्टिविटी पर ध्यान देने केंद्रित करने का वक्त आ गया है। हमें अपनी हेल्थ को बेहतर करने और यह देखने के लिए कि हम सही दिशा में आगे जा रहे हैं या नहीं इसके लिए बॉडी के स्टेटस को लगातार ट्रैक करने की जरूरत होगी। मार्केट में एक से बढ़कर एक Fitness Band मौजूद हैं, जिन्हें आप अपने बजट के हिसाब से चुन सकते हैं। यहां हम आपको कुछ बेस्ट फिटनेस ट्रैकर के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें आप खरीद सकते हैं। यहां ऐसे फिटनेस बैंड की बात करें जो कि बहुत ज्यादा स्लीक हैं और पहनने पर किसी को नजर भी नहीं आएंगे। इसमें कुछ वॉच के साइज के हैं जो कि आपको स्मार्टफोन वाली फील देंगे। आइए Xiaomi Mi Smart Band 6, OnePlus Band, Redmi Watch, Realme Watch 2 Pro, Realme Watch S Pro, Xiaomi Mi Watch Revolve Active और Amazfit GTS 3 के बारे में जानते हैं।
फीचर्स और स्पेसिफिकेशन की बात की जाए तो Xiaomi Mi Smart Band 6 में 1. 56 इंच की AMOLED डिस्प्ले दी गई है। यह एक वाटर रेसिस्टेंट बैंड है। इसमें स्लीप ट्रैकिंग, SPO2 मॉनिटर, स्टेप काउंटर, एक्सेलेरोमीटर सेंसर, जायरोस्कोप सेंसर और हार्ट रेट मॉनिटर दिया गया है। यह एंड्रॉयड स्मार्टफोन और आईफोन के साथ कंपेटिबल है। बैटरी बैकअप की बात की जाए तो इसमें 125mAh की बैटरी दी गई है जो कि 2 घंटे में फुल चार्ज होकर 14 दिनों तक चल सकती है। इसमें ब्लूटूथ v5. 0, एक्टिविटी ट्रैक, हैल्थ मॉनिटरिंग और जीपीएस दिया गया है। कलर ऑप्शन की बात की जाए तो यह Blue, Light Green, Maroon और Orange में उपलब्ध है। यह ट्रेडमिल, एक्सरसाइज, आउटडोर रनिंग, साइकलिंग, वॉकिंग, स्विमिंग, जुंबा, डांस और क्रिकेट को सपोर्ट करती है। कीमत की बात की जाए तो खबर लिखे जाने तक ई-कॉमर्स साइट Amazon पर Xiaomi Mi Smart Band 6 की कीमत 3,499 रुपये है।
फीचर्स और स्पेसिफिकेशन की बात की जाए तो OnePlus Band में 1. 56 इंच की AMOLED डिस्प्ले दी गई है, जिसका रेजोल्यूशन 126x194 पिक्सल है। बैटरी बैकअप की बात की जाए तो इसमें 100mAh की बैटरी दी गई है जो कि सिंगल चार्ज में 14 दिनों तक चल सकती है। कलर ऑप्शन की बात की जाए तो यह Black में उपलब्ध है। सेंसर की बात की जाए तो इसमें एक्सेलेरोमीटर सेंसर, जायरोस्कोप सेंसर, ऑप्टिकल हार्ट रेट सेंसर वाइब्रेशन मोटर दिया गया है। वर्कआउट मोड्स की बात करें तो इसमें ट्रेडमिल, एक्सरसाइज, आउटडोर रनिंग, साइकलिंग, वॉकिंग, स्विमिंग, इंडोर रन, फैट बर्न रन, आउटडोर साइकिलिंग, इंडोर साइकिलिंग, इलिप्टिकल ट्रेनर, रोइंग मशीन, क्रिकेट, बैडमिंटन, योग, फ्री ट्रेनिंग मिलते हैं। हेल्थ के लिए इसमें स्लीप ट्रैकिंग, SPO2 मॉनिटर और स्टेप काउंटर दिया गया है। कनेक्टिविटी के लिए इसमें ब्लूटूथ v5. 0 दी गई है। कीमत की बात की जाए तो खबर लिखे जाने तक ई-कॉमर्स साइट Amazon पर OnePlus Band की कीमत 1,499 रुपये है।
फीचर्स और स्पेसिफिकेशन की बात की जाए तो Redmi Watch में 1. 4 इंच की AMOLED डिस्प्ले दी गई है, जिसका रेजोल्यूशन 320x320 पिक्सल है। बैटरी बैकअप की बात की जाए तो इसमें 100mAh की बैटरी दी गई है जो कि सिंगल चार्ज में 10 दिनों तक चल सकती है। बैटरी सिर्फ 2 घंटे में फुल चार्ज हो जाती है। यह एंड्रॉयड और आईओएस डिवाइस को सपोर्ट करता है। कलर ऑप्शन की बात की जाए तो यह Black, Blue, Ivory और Olive में उपलब्ध है। सेंसर की बात की जाए तो इसमें हार्ट रेट सेंसर, जियो मैग्नेटिक सेंसर, एंबिएंट लाइट सेंसर, बैरोमीटर सेंसर, थ्री एक्सिस एक्सेलेरोमीटर सेंसर, जायरोस्कोप सेंसर, ऑप्टिकल हार्ट रेट सेंसर वाइब्रेशन मोटर दिया गया है। स्पोर्ट्स मोड्स की बात की जाए तो इसमें 11 वर्कआउट मोड्स मिलते हैं। कनेक्टिविटी के लिए इसमें ब्लूटूथ 5. 1 दी गई है। कीमत की बात की जाए तो खबर लिखे जाने तक ई-कॉमर्स साइट Amazon पर Redmi Watch की कीमत 3,999 रुपये है।
फीचर्स और स्पेसिफिकेशन की बात की जाए तो Realme Watch 2 Pro में 44mm की डिस्प्ले दी गई है, जिसका रेजोल्यूशन 320x385 पिक्सल है। बैटरी बैकअप की बात की जाए तो इसमें 100mAh की बैटरी दी गई है जो कि सिंगल चार्ज में 14 दिनों तक चल सकती है। कलर ऑप्शन की बात की जाए तो यह Black और Light Grey में उपलब्ध है। सेंसर की बात की जाए तो इसमें हार्ट रेट मॉनिटर और थ्री एक्सिस एक्सेलेरोमीटर सेंसर दिया गया है। स्पोर्ट्स मोड्स की बात की जाए तो इसें 90 वर्कआउट मोड्स मिलते हैं। कनेक्टिविटी के लिए इसमें ब्लूटूथ 5. 0 और जीपीएस दिया गया है। इसमें ब्लड ऑक्सीजन मॉनिटर और स्लीप डिटेक्शन मिलता है। कीमत की बात की जाए तो खबर लिखे जाने तक ई-कॉमर्स साइट Amazon पर Realme Watch 2 Pro की कीमत 4,599 रुपये है।
फीचर्स और स्पेसिफिकेशन की बात की जाए तो Realme Watch S Pro में 33mm की डिस्प्ले दी गई है, जिसका रेजोल्यूशन 454x454 पिक्सल है। बैटरी बैकअप की बात की जाए तो इसमें 420mAh की बैटरी दी गई है जो कि सिंगल चार्ज में 14 दिनों तक चल सकती है, जिसे सिर्फ 2 घंटे में फुल चार्ज किया जा सकता है। यह वॉच Android और iOS को सपोर्ट करती है। कलर ऑप्शन की बात की जाए तो यह Black, Blue, Orange और Green में उपलब्ध है। हेल्थ फीचर्स की बात की जाए तो इस वॉच में पीपीजी, SpO2 मॉनिटर, स्टेप काउंट और हार्ट रेट मॉनिटर दिया गया है। कनेक्टिविटी के लिए इसमें ब्लूटूथ 5. 0 और जीपीएस दिया गया है। प्रोसेसर की बात की जाए तो इस वॉच में ARM Cortex M4 प्रोसेसर दिया गया है। कीमत की बात की जाए तो खबर लिखे जाने तक ई-कॉमर्स साइट Amazon पर Realme Watch S Pro की कीमत 9,999 रुपये है।
फीचर्स और स्पेसिफिकेशन की बात की जाए तो Xiaomi Mi Watch Revolve Active में 33mm की AMOLED डिस्प्ले दी गई है, जिसका रेजोल्यूशन 454x454 पिक्सल है। बैटरी बैकअप की बात की जाए तो इसमें 420mAh की बैटरी दी गई है जो कि सिंगल चार्ज में 14 दिनों तक चल सकती है, जिसे सिर्फ 2 घंटे में फुल चार्ज किया जा सकता है। यह वॉच एंड्रॉयड और आईओएस डिवाइस को सपोर्ट करती है। कलर ऑप्शन की बात की जाए तो यह Beige, Black और Navy Blue में उपलब्ध है। सेंसर के मामले में इस वॉच में हार्ट रेट सेंसर, एक्सीलेरेशन सेंसर, जायरोस्कोप सेंसर, जियो मैग्नेटिक सेंसर, बायोमेट्रिक सेंसर और एंबिएंट लाइट सेंसर दिया गया है। हेल्थ फीचर्स की बात की जाए तो इस वॉच में 110+ वॉच फेस, SpO2 मॉनिटर, स्पोर्ट्स मोड्, फर्स्टबीट मोशन एल्गोरिद्म, प्रेशर डिटेक्शन, 24 आर हार्ट सेट मॉनिटरिंग, ब्रीथिंग ट्रेनिंग, स्लीप डिटेक्शन दिया गया है। कनेक्टिविटी के लिए इसमें ब्लूटूथ 5. 0, Glonass और जीपीएस है। कीमत की बात की जाए तो खबर लिखे जाने तक ई-कॉमर्स साइट Amazon पर Xiaomi Mi Watch Revolve Active की कीमत 9,999 रुपये है।
फीचर्स और स्पेसिफिकेशन की बात की जाए तो Xiaomi Mi Watch Revolve Active में 44mm की AMOLED डिस्प्ले दी गई है, जिसका रेजोल्यूशन 454x454 पिक्सल है। बैटरी बैकअप की बात की जाए तो इसमें दी गई बैटरी सिंगल चार्ज में 21 दिनों तक चल सकती है। यह वॉच एंड्रॉयड स्मार्टफोन और आईफोन को सपोर्ट करती है। कलर ऑप्शन की बात की जाए तो यह Black में उपलब्ध है। सेंसर के बात करें तो इसमें एक्सेलेरोमीटर सेंसर, बैरोमीटर सेंसर, जायरो सेंसर, लाइट सेंसर, ऑप्टिकल हार्ट रेट सेंसर, SpO2 सेंसर और ब्लड प्रेशर मॉनिटर दिया गया है। हेल्थ फीचर्स की बात की जाए तो इस वॉच में स्टेप काउंट, कैलोरी काउंट, हार्ट रेट मॉनिटर से अल्टिमीटर और 150 स्पोर्ट्स मोड्स दिए गए हैं। कनेक्टिविटी के लिए इसमें ब्लूटूथ 5. 1, मैसेजिंग सपोर्ट, जीपीएस और थर्ड पार्टी ऐप सपोर्ट दिया गया है। ऑपरेटिंग सिस्टम की बात की जाए तो यह ZeppOS पर काम करता है। कीमत की बात की जाए तो खबर लिखे जाने तक ई-कॉमर्स साइट Amazon पर Xiaomi Mi Watch Revolve Active की कीमत 13,990 रुपये है।
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0ff2f3d4b0099341590cf8393c31f2f49d175278 | web | एक पुलिस का फोरेन्शिक टीम मेंबर बैडरूम के खुले दरवाजे के पास कुछ इन्वेस्टिगेशन कर रहा था दूसरा मेंबर बड़ा लेंस द्वारा जमीन पर कुछ ढूंढ रहा था उतने में इंस्पेक्टर शिशोदिया औऱ करुण नायर विक्रम ओर सुजान के साथ आ जाता है वह इन्वेस्टिगेशन करने वाला पलटकर देखने के पहले ही उसे कड़े स्वर में इंस्पेक्टर शिशोदिया ने पूछा बॉडी किधर है ??
सर इधर अंदर है ! वह टीम मेंबर अदब के साथ खड़े होते हुए बोला।
कुछ सबूत या फिंगर प्रिंट प्राप्त हुए ??
नही सर ! सिर्फ एक आत्महत्या पत्र प्राप्त हुआ है जिसमे उसने अमर से दूर होने की कारण आत्महत्या करने की बात कबूल की है ।
डिटेक्टीव नायर ने पत्र को बारीकी से देखा तभी पीछे से आवाज आती है ।
इंस्पेक्टर शिशौदिया ने विक्रम को सहलाते हुए कहा वह तुम्हारे भाई से बहुत प्यार करती थी इसलिए उसने आत्महत्या कर ली वह तुम्हारे भाई की जुदाई सह नही पाई।
यह आत्महत्या नही है इंस्पेक्टर ! करुण नायर दीवार की तरफ देखते हुए बोला।
मर्डर !
यह आप कैसे कह सकते है कमरे में कोई फिंगर प्रिंट नही मिले है सिवाय रश्मि के और उसका खुद का लिखा हुआ इसलिए आत्महत्या यह एक आत्महत्या ही है सभी तथ्य इसी बात का गवाह है ! शिशौदिया ने कहा।
लेकिन तथ्य बदले भी जा सकते है औऱ मेरा मानना है कि यह सिर्फ मात्र एक छलावा है पुलिस को गुमराह करने के लिए दरअसल यह एक मर्डर है ! करुण नायर लाश को बड़ी गौर से देखते हुए कहता है।
लेकिन आप यह कैसे कह सकते है ।
तुम देख सकते हो कि रस्सी छोटी है इसका अर्थ यह है कि आम तौर पर फांसी रस्सी की लंबाई को दर्शाता है छोटी रस्सी में पीड़ित व्यक्ति की मौत गला घोंटने जाने के कारण हो सकती है जिसमे मस्तिष्क को कम ऑक्सीजन मिलने के कारण होती है । अगर लड़की को कुर्सी पर खड़ा भी किया जाए तब भी पंखे ओर लड़की से लगभग सात से आठ इंच का फैसला रह जायेगा और रस्सी इतनी छोटी है कि पंखे तक अकेली लड़की की बसकी बात नही है इसलिए यह साफ होता है कि पहले इस लड़की का रस्सी से गला घोंटा गया फिर लटकाया गया है लड़की के नाखूनों में किसी तरह का मांस का टुकड़ा है जो एक अहम सबूत यह है कि कोई व्यक्ति के नाखूनों में किसी छोटे मांस का टुकड़ा तभी होता है या तो उसे अपने आप को खुजलाने की आदत हो लेकिन बॉडी पर ऐसा कोई निशान नही है तो हो सकता है कि यह मांस का टुकड़ा हत्यारे का हो । मेने जब कमरे में प्रवेश किया तब कमरे को मैने ध्यान से देखा तभी मेरी नजर एक पिक्चर पर गई जिसमें अमर रश्मि बैड पर बैठे हुए है आमतौर पर लडकिया अपनी सजावट का तरीका कभी नही बदलती इस पिक्चर पर बैड पर तकियों को ओर चादर को व्यवस्थित ढंग से रखा गया है औऱ कातिल ने भी बेहतरीन नकल की लेकिन वह ताकियो को कर्मानुसार नही रख पाया लेकिन ऐसी नकल वही कर सकता है जो जान पहचान का हो जिसका यंहा आना जाना हो और वह रश्मि को अच्छी तरह से जानता हो इसलिए इंस्पेक्टर शिशोदिया पहले आप वह मांस का टुकड़े की पोस्टमार्टम की जांच कराए ओर रश्मि के साथ के जितने भी रिश्तेदार सगा सम्बधी दोस्त पड़ोसी सबका D N A करवाया जाए और उस टुकड़े से जोड़ कर इसको चेक किया जाए हमे खूनी के बारे में पता चल जाएगा ओर शायद वही अमर का भी कातिल हो।
बहुत खूब डिटेक्टिव करुण नायर जितना आपके बारे में सुना था आप उससे ज्यादा चमत्कारी व्यक्तिव वाले है इंस्पेक्टर शिशोदिया ने तारीफ करते हुए कहा।
धन्यवाद यह मेरा काम है ! करुण नायर ने कहा।
लेकिन नायर मुझे एक बात अभी भी नही समझ आई कि वह चिट्ठी जो खुद रश्मि ने लिखा वह क्या है इंस्पेक्टर शिशोदिया ने उत्सकुतापूर्वक पूछा।
में सोच ही रहा था कि आप ये कब पूछोगे । दरअसल यह सच है कि यह रश्मि ने ही लिखा लिखा है लेकिन उसने यह खुद से नही लिखा है।
यह रश्मि से लिखवाया गया है क्योंकि रश्मि बांये हाँथ से लिखती है लेकिन उसने यह पत्र दांये हाँथ से लिखा है यह क्योकि उसके शब्दो का टेढ़ापन यह दर्शाता है जो कि ऐसे हाँथ से लिखने पर ही आता है जिसके हम आदि नही होते इस प्रकार हम यह कह सकते है कि वह इस आत्महत्या पत्र से यह दर्शाना चाहती थी कि उसकी हत्या की जा रही है । डिटेक्टिव नायर ने समझाते हुए कहा।
उसी पिक्चर से जिसमे रश्मि ने पेन को बांये हाँथ में पकड़ा हुआ है ! नायर ने कहा।
मुझे आशा है कि ऐसा ही हो इंस्पेक्टर! करुण ने एक मुस्कराहट के साथ कहा ।
इतना कह कर करुण नायर विक्रम ओर सुजान के साथ बैडरूम से बाहर आ जाते है ओर इंस्पेक्टर टीम मेंबर के साथ गहराई से कमरे का निरीक्षण करने लगता है । करुण कार में बैठकर अपने कमरे पर आ जाता है और विक्रम के साथ सुजान हॉटेल चले जाता है जंहा विक्रम ठहरा हुआ था।
विक्रम ओर सुजान एक तरफ बैठे हुए है और करुण सुबह की चाय पी रहा है बरामदे में पीपल का पेड़ है जिस पर कई प्रकार की चिड़िया चहचहा रही है। सुबह के इस मनमोहक दृश्य में शांति फैली हुई है मानो चर्चा शुरू करने के लिए कोई बात खोज रहे हो।
नही सुजान हमारे पास एक अन्य व्यक्ति ओर है जो हमे उस रात का कुछ तो वर्णन कर ही सकता है ! करुण ने बड़े ही शालीनता से कहा।
फिर तो हमे फ़ौरन वँहा चलना चाहिए ! विक्रम ने एकदम से कहा।
नही आपको आज ही भरतपुर के लिए निकलना पड़ेगा क्योंकि आपकी जान को यंहा खतरा है पहले अमर फिर उसकी प्रेमिका अब वो आपकी जान लेना चहएगा इसलिए आप आज की ही तत्काल ट्रेन पकड़कर भरतपुर के लिए रवाना हो और में सुजान दोनो उस चौकीदार से पूछताछ करेंगे उसके दो दिन बाद हम भी भरतपुर आ जाएंगे । हो न हो कातिल आपके कोई घर का ही है करुण नायर ने समझाते हुए कहा।
इतना कह कर विक्रम वँहा से चला जाता है और करुण अपनी चाय खत्म करके अपने रहस्यमयी कमरे में चला जाता है जिसमे सिर्फ सुजान के ही आने की अनुमति थी और सुजान बैठकर अपनी कुर्सी पर वकालत की किताबें पढ़ने लगता है। चिड़ियों की चहचहाहट अब शांत हो चुकी थी और ठंडी हवाएं बरामदे के पीपल के पेड़ की पत्तियों को हिला कर नीचे गिरा रही थी।
लीगल ग्राउंड कंपनी में मशीनों के कार्यात्मक होने की आवाजें चारो तरफ शोर कर रही थी । मजदूर अपना अपना कार्य करने में व्यस्त थे मशीनों द्वारा खुदाई का कार्य हो रहा था । दूसरी जगह रेत को छानने का कार्य चल रहा था । कंपनी का चौकीदार बहादुर अपने कमरे में बैठा हुआ था वह किसी ख्यालो में खोया हुआ था वह उस रात की बातों को बार बार याद कर रहा था मानो वह अपने आप से ही मूक भाषा मे अपने आप से बात कर रहा था तभी डिटेक्टिव करुण नायर और सुजान चटर्जी कंपनी में प्रवेश करते है और चारो तरफ देखने लगते है मानो वह उस चौकीदार को ढूंढ रहे थे।
हां बहादुर मुझे कुछ जानना था उस रात को क्या हुआ था और मुझे आशा है कि मुझे तुमसे पुलिस को बताई गई जानकारी से ज्यादा प्राप्त होगी खैर माफी चाहता हु में बताना भूल गया में डिटेक्टिव करुण नायर हु ओर जो उस रात मेरे क्लायंट विक्रम सिंह राठौड़ का बड़ा भाई अमर सिंह राठौड़ थे ! करुण ने सिगार सुलगाते हुए कहा।
भरतपुर का खजाना ? क्या ये कत्ल भरतपुर के खजाने के लिए हो रहे है और ये किस रहस्य की बात कर रहे है ?? सुजान ने पूछा।
पता नही लेकिन ये सच तो भरतपुर जाकर ही पता चलेगा कि किस रहस्य की बात हो रही है और ये कातिल भरतपुर में कँहा है और खजाना ये क्या चक्कर है ! करुण ने कुछ सोचते हुए कहा।
शाम का समय करुण नायर ओर सुजान चटर्जी कुर्सी पर बैठे है पास में आग जल रही है जिससे उनके पैरों को गरमाहट मिल रही है करुण नायर अपनी सिगार को सुलगाने में व्यस्त है और सुजान अपनी वकालत की किताबें पढ़ रहा था तभी इंस्पेक्टर शिशोदिया बरामदे में प्रवेश करते है ।
आइये इंस्पेक्टर शिशोदिया ! करुण ने एक खाली कुर्सी को आगे बैठने का इशारा किया ।
लेकिन कैसे !
आप जल्द ही उस लाश को ढूंढ़िए जरूर कातिल का उस लाश के पास छूट गया है जिससे वह पाना चाहता है ।
जी हम पूरी कोशिश करेंगे डिटेक्टिव।
सही कहा तुमने ! सुजान ने हामी भरते हुए कहा।
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